दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए
सूरत पे अपनी एक नज़र डालिए हुजूर
जरा ढूढिए तलाशिए चेहरे का खोया नूर
खुशियों से भरी जिंदगी की रात कीजिए
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए
नुक्स निशां सब आपके दिखाएगा आईना
सच्चाई को कभी न तुमसे छुपायेगा आईना
फिक्रो अमल रुहानी बस दिन रात कीजिए
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए
मुश्किलों में हो कोई तो खुद साथ दीजिए
मांगे कोई तो बढ़ा के अपना हाथ दीजिए
यूँ जुल्मों सितम की शह की मात कीजिए
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए
विपिन सोहल
नितदिन का ये अभ्यास।।
गर विश्वास की डोरी टूटी।
लगे हमारी किस्मत फूटी।।
नहीं किसी की आशा कर।
दर्शन की अभिलाषा कर।।
अपने दिल को यूँ मत तोड़ो।
विश्वासों की है डोरी जोड़ो।।
जो इस जग में किया गुरूर।
हुआ सदा ही वो चकना चूर।।
करनी का ही फल मिलता है।
आज नहीं तो कल मिलता है।।
"नीर"हमें है इतिहास बताता।
हर गलती पर सदा जताता।।
नाज करो जी खुद को लेकर।
विश्वास न मिलता पैसे देकर।।
ःःःःःःःःःनवीन कुमार भट्ट
☆☆☆☆
जीवन! आशा की उड़ान है,
जीवन! स्वप्न का स्थान है,
जीवन! हँसता हुआ प्राण है,
जीवन! प्रकृति का गान है।
मीरा से डूब जाओ तो,
जीवन! कृष्ण मुरली की तान है,
जीवन! तो अभ्युत्थान है,
जीवन! मुक्ति का सामान है।
जीवन! नहीं अनबन है,
जीवन! तो मधुवन है,
जीवन! सुनहरे क्षणों का मिश्रण है,
जीवन! अध्यात्म का दर्शन है।
जीवन! नहीं मारकाट है,
जीवन! नहीं बन्दरबाँट है,
जीवन! जांतपात की,
नहीं कोई हठी गाँठ है।
जीवन! तो एक खेल है,
मधुर मिलन की बेल है,
बहुत ही गहरे संदर्भों में,
ईश्वर से सुनहरा मेल है।
यहां वहां जैसे तैसे दो चार फोटो लगवा दो
दल बदली में माहिर हैं जो चाहे वो कर लेंगे
घटा जोड़ गुणा भाग से दो का दस कर लेंगे
ऐडी चोटी जोर लगा दें, कैसे भी कुर्सी चढवा दो
हमको भी नेता बनवा दो
हड़तालो और अनशन के आते सारे हथकंडे है
अंदर शैतानी ज्वाला है दिखते वैसे ठंडे हैं
बांट काट हैं खेल खिलौने, सत्ता का हलवा खिलवा दो
हमको भी नेता बनवा दो
रंगो के तो जादूगर हैं, काम ऐसा कर जायेंगे
हरा केसरी नीला जैसे कहो वैसे रंग जायेंगे
जनता को नही जगने देंगे, चाहे जो कसम खिलवा दो
हमको भी नेता बनवा दो
यही मेरा सच है कि तुम,,,झूठ बोल रहे हो !
अपनी पोल खुद के, लबो से खोल रहे हो !!
उसके खामोश रहने की तो कुछ वजह थी!
तुम बेवजह दोस्तों,,,,कितना बोल रहे हो !!
रत्ती भर सोने की कीमत लोहे से ज्यादा है!
बस इतनी बात बड़े तराज़ू में तोल रहे हो!!
हक़ीकत बयान करना गुनाह तो नही है!
क्यों ज़िन्दगी में ज़हर,, तुम घोल रहे हो!!
तमाशा भी खुद,तमाशबीन भी खुद बन!
क्यों अपनी इज़्जत को बेच बेमोल रहे हो !!
मूल्य है मेरी नज़र में दोस्ती और इश्क़ का!
तुम भी तो'दीक्षित' के लिये अमनोल रहे हो !!
सूर्य प्रकाश दीक्षित
काव्य गोष्ठी मंच, काँकरोली
राजसमन्द
29 / 4 / 2018
29--4--2018
स्वतंत्र
********************
तकदीर का फ़साना,
क्यों रोता है जमाना।
चुनिंदा राहों पर क्यो,
पुलिंदा है उठाना।
हाथों में रख तकदीर को,
कोसता क्यो हर पल है तू।
परिश्रम,विश्वास तेरे संग है,
क्यो ठहरा है हर पल।
जीवन मिला अनमोल है,
उसे भाग्य पर न टालना।
संकल्प ले परिश्रम का ,
बाकी विकल्प तू छोड़ दे।
उपवन में खिलते फूलों का,
माली बना तकदीर है।
तपती दोपहरी,स्वेद की बूंदे,
निखारती माली की तकदीर को।
एक कदम तो तू बढा,
दूजा भी खुद बढ़ जाएगा।
भाग्य को न कोसना,
वरना,हाथ मलता रह जाएगा।
समय सीमा सभी के पास एक बराबर है
किसी ने कर लिए अविष्कार,
कोई खाली हाथ बैठा है।
क्यो बैठा है मुख ढाल कर,
उठ खड़ा हो धीर धर,
मन मे अपने हौंसला तू रख।
सूरज से हौंसला ,चाँद से शांति,
दोनो से सीख कर्मों को,
आगे तू खुद बढ़ता जाएगा।
तकदीर तेरे पास है,
दर-दर भटकता क्यो खाक है।
वीणा शर्मा
कितने विकार थे मन में कितनों को दूर भगाया है
अन्त:करण में प्रभु प्रेम का दीपक एक जलाया है ।।
प्रेम भक्ति का सरल मार्ग सबने ये बतलाया है
कृपा प्रभु की ही हुई हर समय उलझा पाया है।।
मत रोना दुख से बन्दे शायद उसने बुलाया है
सब पर समदृषिट उसकी क्यों इतना अकुलाया है।।
माया तो महाठगिनी सबने यह समझाया है
हर हाल में जो खुश रहे बृह्मज्ञानी कहलाया है।।
सबका अपना अपना जीवन सबमें वो समाया है
अपने को समझ ''शिवम" क्यों आखिर तूँ आया है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मदमाती खुश्बू से,
आकर्षित हो भौंरे ,
जब उनपर मंडराते हैं।
उनके गुनगुन का,
नशीला संगीत,
वातावरण को बेहद,
उन्मादित करता है।
तुम्हारी कमी तब ,
बहुत खलती है।
सुनहरी गेँहू की बालियाँ,
झूम झूम कर जब,
मिलन के गीत गाती हैं,
कहीं दूर कोयल की कूक,
तुम्हारी पुकार सी लगती है।
तुम्हारी कमी तब ,
बहुत खलती है।
घुंघरू की तरह,
गुँथे हुए आम के बौर।
अमराई मे झूला झूलती सखियाँ ,
जब खिलखिला कर हँसती हैं।
तुम्हारी कमी तब,
बहुत खलती है।
हाथों में मेहंदी के बूटे,
पाँवों मे सुर्ख महावर,
माथे पे लाल बिंदिया,
हाथों में हरी हरी चूड़ियाँ,
धानी चूनर छमछम करती
पायलिया पहन जब,
गाँव की गोरी,
मेला देखने जाती।
तुम्हारी कमी तब,
बहुत खलती है।
पर तुम जरा भी,
मायूस मत होना।
आज ही अखबार में पढ़ा,
दुश्मन के बंकर ध्वस्त हुए,
ढेरों विरोधी सैनिक मारे गए।
देखो न!आज मैंने भी ,
सोलह शृंगार किया है।
तुम्हारी पसंद की ,
लाल चूनर पहनी है।
और चूड़ियों की खनक मे,
तुम्हारी हँसी सुन रही हूँ।
हाँ!पायलिया नहीं पहनी है,
क्योंकि वो शोर मचाती है न!
तुम तो सो रहे हो न!
हमेशा के लिए ,
चिरनिद्रा मे।
मैं जानती हूँ,
सोते समय तुम्हें,
शोर नहीं पसन्द है।
©प्रीति