Sunday, April 29

स्वतंत्र लेखन-29अप्रैल 2018





आईने से आज आप मुलाकात कीजिए
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए


सूरत पे अपनी एक नज़र डालिए हुजूर 
जरा ढूढिए तलाशिए चेहरे का खोया नूर
खुशियों से भरी जिंदगी की रात कीजिए 
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए

नुक्स निशां सब आपके दिखाएगा आईना
सच्चाई को कभी न तुमसे छुपायेगा आईना 
फिक्रो अमल रुहानी बस दिन रात कीजिए 
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए

मुश्किलों में हो कोई तो खुद साथ दीजिए 
मांगे कोई तो बढ़ा के अपना हाथ दीजिए 
यूँ जुल्मों सितम की शह की मात कीजिए 
दिल ही दिल में दिल से जरा बात कीजिए 

विपिन सोहल

खुद पे है इतना विश्वास।
नितदिन का ये अभ्यास।।
गर विश्वास की डोरी टूटी।

लगे हमारी किस्मत फूटी।।
नहीं किसी की आशा कर।
दर्शन की अभिलाषा कर।।

अपने दिल को यूँ मत तोड़ो।
विश्वासों की है डोरी जोड़ो।।
जो इस जग में किया गुरूर।
हुआ सदा ही वो चकना चूर।।
करनी का ही फल मिलता है।
आज नहीं तो कल मिलता है।।

"नीर"हमें है इतिहास बताता।
हर गलती पर सदा जताता।।
नाज करो जी खुद को लेकर।
विश्वास न मिलता पैसे देकर।।
ःःःःःःःःःनवीन कुमार भट्ट



 जीवन
☆☆☆☆


जीवन! आशा की उड़ान है,
जीवन! स्वप्न का स्थान है,
जीवन! हँसता हुआ प्राण है,
जीवन! प्रकृति का गान है।

मीरा से डूब जाओ तो,
जीवन! कृष्ण मुरली की तान है,
जीवन! तो अभ्युत्थान है,
जीवन! मुक्ति का सामान है।

जीवन! नहीं अनबन है,
जीवन! तो मधुवन है,
जीवन! सुनहरे क्षणों का मिश्रण है,
जीवन! अध्यात्म का दर्शन है।

जीवन! नहीं मारकाट है,
जीवन! नहीं बन्दरबाँट है,
जीवन! जांतपात की,
नहीं कोई हठी गाँठ है।

जीवन! तो एक खेल है,
मधुर मिलन की बेल है, 
बहुत ही गहरे संदर्भों में,
ईश्वर से सुनहरा मेल है।

हमको भी नेता बनवा दो !
यहां वहां जैसे तैसे दो चार फोटो लगवा दो

दल बदली में माहिर हैं जो चाहे वो कर लेंगे 
घटा जोड़ गुणा भाग से दो का दस कर लेंगे 
ऐडी चोटी जोर लगा दें, कैसे भी कुर्सी चढवा दो
हमको भी नेता बनवा दो 

हड़तालो और अनशन के आते सारे हथकंडे है 
अंदर शैतानी ज्वाला है दिखते वैसे ठंडे हैं 
बांट काट हैं खेल खिलौने, सत्ता का हलवा खिलवा दो 
हमको भी नेता बनवा दो

रंगो के तो जादूगर हैं, काम ऐसा कर जायेंगे 
हरा केसरी नीला जैसे कहो वैसे रंग जायेंगे 
जनता को नही जगने देंगे, चाहे जो कसम खिलवा दो 
हमको भी नेता बनवा दो

🙏🙏



यही मेरा सच है कि तुम,,,झूठ बोल रहे हो !
अपनी पोल खुद के, लबो से खोल रहे हो !!


उसके खामोश रहने की तो कुछ वजह थी! 
तुम बेवजह दोस्तों,,,,कितना बोल रहे हो !!

रत्ती भर सोने की कीमत लोहे से ज्यादा है! 
बस इतनी बात बड़े तराज़ू में तोल रहे हो!! 

हक़ीकत बयान करना गुनाह तो नही है! 
क्यों ज़िन्दगी में ज़हर,, तुम घोल रहे हो!! 

तमाशा भी खुद,तमाशबीन भी खुद बन! 
क्यों अपनी इज़्जत को बेच बेमोल रहे हो !!

मूल्य है मेरी नज़र में दोस्ती और इश्क़ का! 
तुम भी तो'दीक्षित' के लिये अमनोल रहे हो !!

सूर्य प्रकाश दीक्षित 
काव्य गोष्ठी मंच, काँकरोली
राजसमन्द
29 / 4 / 2018




💐भावों के मोती💐
29--4--2018
स्वतंत्र
*
*******************
तकदीर का फ़साना,
क्यों रोता है जमाना।
चुनिंदा राहों पर क्यो,
पुलिंदा है उठाना।
हाथों में रख तकदीर को,
कोसता क्यो हर पल है तू।
परिश्रम,विश्वास तेरे संग है,
क्यो ठहरा है हर पल।
जीवन मिला अनमोल है,
उसे भाग्य पर न टालना।
संकल्प ले परिश्रम का ,
बाकी विकल्प तू छोड़ दे।
उपवन में खिलते फूलों का,
माली बना तकदीर है।
तपती दोपहरी,स्वेद की बूंदे,
निखारती माली की तकदीर को।
एक कदम तो तू बढा,
दूजा भी खुद बढ़ जाएगा।
भाग्य को न कोसना,
वरना,हाथ मलता रह जाएगा।
समय सीमा सभी के पास एक बराबर है
किसी ने कर लिए अविष्कार,
कोई खाली हाथ बैठा है।
क्यो बैठा है मुख ढाल कर,
उठ खड़ा हो धीर धर,
मन मे अपने हौंसला तू रख।
सूरज से हौंसला ,चाँद से शांति,
दोनो से सीख कर्मों को,
आगे तू खुद बढ़ता जाएगा।
तकदीर तेरे पास है,
दर-दर भटकता क्यो खाक है।

वीणा शर्मा

 गज़ल

कितने विकार थे मन में कितनों को दूर भगाया है

अन्त:करण में प्रभु प्रेम का दीपक एक जलाया है ।।

प्रेम भक्ति का सरल मार्ग सबने ये बतलाया है
कृपा प्रभु की ही हुई हर समय उलझा पाया है।।

मत रोना दुख से बन्दे शायद उसने बुलाया है
सब पर समदृषिट उसकी क्यों इतना अकुलाया है।।

माया तो महाठगिनी सबने यह समझाया है
हर हाल में जो खुश रहे बृह्मज्ञानी कहलाया है।।

सबका अपना अपना जीवन सबमें वो समाया है
अपने को समझ ''शिवम" क्यों आखिर तूँ आया है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"




 पीली सरसों की,
मदमाती खुश्बू से,
आकर्षित हो भौंरे ,

जब उनपर मंडराते हैं।
उनके गुनगुन का, 
नशीला संगीत, 
वातावरण को बेहद,
उन्मादित करता है।
तुम्हारी कमी तब ,
बहुत खलती है।
सुनहरी गेँहू की बालियाँ,
झूम झूम कर जब,
मिलन के गीत गाती हैं,
कहीं दूर कोयल की कूक,
तुम्हारी पुकार सी लगती है।
तुम्हारी कमी तब ,
बहुत खलती है।
घुंघरू की तरह,
गुँथे हुए आम के बौर।
अमराई मे झूला झूलती सखियाँ ,
जब खिलखिला कर हँसती हैं।
तुम्हारी कमी तब,
बहुत खलती है।
हाथों में मेहंदी के बूटे,
पाँवों मे सुर्ख महावर,
माथे पे लाल बिंदिया,
हाथों में हरी हरी चूड़ियाँ,
धानी चूनर छमछम करती 
पायलिया पहन जब,
गाँव की गोरी,
मेला देखने जाती।
तुम्हारी कमी तब,
बहुत खलती है।
पर तुम जरा भी,
मायूस मत होना।
आज ही अखबार में पढ़ा,
दुश्मन के बंकर ध्वस्त हुए,
ढेरों विरोधी सैनिक मारे गए।
देखो न!आज मैंने भी ,
सोलह शृंगार किया है।
तुम्हारी पसंद की ,
लाल चूनर पहनी है।
और चूड़ियों की खनक मे,
तुम्हारी हँसी सुन रही हूँ।
हाँ!पायलिया नहीं पहनी है,
क्योंकि वो शोर मचाती है न!
तुम तो सो रहे हो न!
हमेशा के लिए ,
चिरनिद्रा मे।
मैं जानती हूँ,
सोते समय तुम्हें,
शोर नहीं पसन्द है।
©प्रीति



Saturday, April 28

चित्रलेखन (1)-28अप्रैल 2018




💐भावों के मोती💐

28--4--2018
चित्रलेखन
*
**************
आजा रास बिहारी,तुझ बिन मीरा अधूरी
श्वेत वस्त्र मैं धारी,तेरी रंग रलिया न्यारी।।

लिए सितार और मजीरे,तुझ पे मैं बलिहारी
गोपियों सँग रास रचाओ,मैं तेरी प्रेम पुजारी।।

रंग रंगीली दुनिया तेरी,मैं हो गई श्वेत सलोनी
सुधबुध ले लो अब गिरधर,तुझ बिन मैं हारी।।

मोर मुकुट पितांबर धारी,गले वैजयंती माला
दूर खड़े क्यों ताक रहे,मीरा की भक्ति शाला।।

मन ही मन मुस्काए वो,कैसा जादू कर डाला
मंत्र मुग्ध है बैठी मीरा,दिल छलनी कर डाला।।

प्रेम की भक्ति भड़क रही,अब तो आ साँवरियाँ
छोड़ रास रंग की गली ,झलक दिखा साँवरियाँ।।

पंथ निहारूँ तेरा कान्हा, जोगनियाँ मैं हो गई
बिंदी,कँगन,गले की माला,सब तेरी हो गई।।

वीणा शर्मा

 चित्रलेखन पर मेरी ये रचना ----------होठो की बंसी

तू ही माला, तू ही मंतर, तू ही पूजा, तू ही मनका

का कहूं के, मेरी धड़कन पे गंगाजल सी प्रीत लिखूं।
तू है मधुबन में, तेरे होठों पे मुरलीया, सुन मेरे कान्हा
कैसे मै इन अधरों पर, मेरे मधुर बंसी का गीत लिखूं 

तू है सृष्टि में, तू है दृष्टि में, तू ही काल कराल वृष्टि में
मैं निपट अकेली इस जग में कैसे विरह की पीर लिखूं।
मन की बंजारन, तन से भी हुई बावरी, ओ मेरे मोहन,
कैसे अपनी भूली सुधियों पे बहते अश्रु का नीर लिखूं !

तू ही रैन, तू ही मेरा चैन, तू ही मेरा चोर, तू चितचोर
बहती यमुना सी आकुल हदय की कैसे धीर अधीर लिखूं।
तू ही नंदन, तू ही कानन, तू ही वंदन, सुन मेरे कृष्णा
कैसे मेरे निर्झर नैनो मे तेरे दर्शन की पीर अधीर लिखूं !

तू ही सासों में, तू ही रागों मे, तू ही संगीत , तू मेरे साजो में
का कहूं की, मुरलिया सुध बुध बिसरायी,मै हार या जीत लिखूं। 
छू लूं तेरे चरण, मै तेरी शरण, कर आलिंगन, ओ मेरे श्यामा।
तेरे होठो की बंसी बन बन जाउँ और शाश्वत संगीत लिखूं।
------डा. निशा माथुर(8952874359whatsapp)



भाव2/28/4/2018शनिवार।।शीर्षकःचित्रलेखन,कृष्ण, मीरा, गोपी,मुरली
एक प्रयास ः
जय जय मेरे कृष्ण कन्हाई।

सखियों संग द्वार तेरे आई।
अपनी वीणा हाथ थामकर,
हुई मगन भक्त ये मीराबाई।

तुझे महल द्वार सब मैंने छोडे।
श्याम मुझे मिले कितने थे रोडे।
श्वेत वस्त्र शरीर पर धारण कर,
सितार हाथ आभूषण भी छोडे।

मै अंगअंग कृष्णा के बस जाऊँ।
हाथ थाम वीणा सितार मै गाऊँ।
मुरलीमनोहर मुझे सुना दे वंशी,
मै वंशीधर संग रास रचाना चाहूँ।

जैसे भी हो प्रभु मै तुझे रिझाऊँ।
निशदिन वंशीवाले के गुण गाऊँ।
बजा सितार मनमोही मनमोहन,
तन मन धन सब मै यहाँ लुटाऊँ।

मैंने श्वेत वस्त्र तेरे कारण पहने हैं।
अब करताल वीणा मेरे गहने हैं।
ये मोती माला माथे की बिंदिया,
मतवाले तेरी ही खातिर पहने हैं।

सुधबुध खोई हुई तन्मय बेगानी।
मै पूरी तरह हुई कृष्ण दीवानी।
संग साथ सहेलियाँ नृत्य करूँ मै,
अब तो बस कान्हा की दीवानी।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



मीरां मगन मद मस्त भई
प्रेम रस भीगी सुध बुध
बिसार आई


रास रसैया किशन कन्हैया
रास रचाय ताता थैया

प्रीत रस में डूबी मोहे मीरा
ग्वाल बालन ज्यूं सोहे राधा

भजन सरिता की मधु धारा
बहती मानो शीतल चँदन छाया

रेतीले धोरों से उद्गमित भक्ति सरिता
कर आई गोवर्धन परिक्रमा

मेड़तड़ी मीरां महाराणी
वृंदावनी कुंज गलियन की
प्रेम दीवानी

द्वापर युग का श्याम सलोना
बन घनश्याम कलियुग आयो

ज्यूं राधै को प्रेम निभायों
त्यूं ही मीरा को अंग लगायो ।

डा. नीलम


दिल जीगर मे रख कर तेरो नाम
मीरा जोगन भई तेरी घन श्याम।

राणा ने जो भेजा विष का प्याला 
वो झट से पी गई लेकर तेरा नाम।

क्या है तेरे नाम जो भई बावरिया
रानी होकर तजो सारो ऐशोआराम।

लोक लाज सब छोडकर वो हरदम
गाती फिरती मेरे श्याम घनश्याम ।

सकल जगत आज तक उसे जाने
मीरा ही है भक्त तेरी ओ घनश्याम ।

हामिद सन्दलपुरी की कलम से

 हे कृष्ण कन्हैया
मुरली मनोहर 
नटखट मदन गोपाल 

मैं हार रही जीवन की बाजी 
मोहे तू लगा दे पार 

हरी-भरी मेरे जीवन बगिया 
सूरज की तपन से मुरझाई
मेरे श्याम संभाल ले इसे 
ना कर मुझसे रुसवाई 
रुकमा का तू नटखट नागर 
यशोदा का नंदलाल 
राधा के हृदय में बसे 
मेरे कृष्ण गोपाल 
क्यों कराएं मेरी जग हंसाई 
मेरे घनश्याम 
कृष्ण कन्हैया 
मुरली मनोहर 
नटखट मदन गोपाल 

प्रीत में तेरी बावरी होकर 
बन बन भटकी जाऊं 
कान्हा मेरे मन में बसे 
यह दर्द किसे दिखाऊं 
मीरा बोले सुन मेरे कान्हा 
अर्ज मेरी सुन ले 
या तो मुझको गले लगा ले 
या प्रीत मेरी हर ले 
अखियां मेरी तरस रही है 
अब मान ले मेरी बात 
कृष्ण कन्हैया 
मुरली मनोहर 
नटखट मदन गोपाल 

घिरी तूफान में मेरी नैया 
डगमग डगमग डोले 
मेरी पार लगा दे जीवन नैया 
क्यों तू मुखड़ा मोड़ें
मैं विनती करूं मेरे प्रभु 
कर ले मेरी संभाल 
अपने चरणों में जगह देकर 
कर मुझ पर उपकार 
कृष्ण कन्हैया 
मुरली मनोहर 
नटखट मदन गोपाल

स्वरचित मिलन जैन

Thursday, April 26

नोट -27अप्रैल 2018






 '' नोट "

बच्चे बूढ़े सभी को भाये

जितना भी हो कम कहलाये ।।

क्या अरबपति क्या फक्कड़ 
सभी लगायें उसके चक्कर ।।

भाई भाई को भी भुलाये 
हरेक कार्य जिससे हो जाये ।।

बताओ वो क्या चीज है 
हर दिल जिसका अजीज है ।।

वो फल फूल न वो अखरोट 
वो है ''शिवम" सिर्फ एक नोट ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

भावों के मोती*1*27/4/2018,शुक्रवार।शीर्षक।नोट,रुपया ः

बाप भलो न भैया।

सबसे बडो रूपैया।
रोज पूजते हैं हम,
कहते लक्ष्मी मैया।

नहीं चलती नोट बिन
गृहस्थी की गाडी,
नहीं होते कुछ काम।
धनलक्ष्मी हाथ अपने तो
बनते बिगडे काम।

एक कदम आगे नहीं बड पाते
बिन लक्ष्मी के भैया।
लक्ष्मी जी गर साथ में हैं तो
सब करते ताता थैया।
बिन लक्ष्मी कुछ नहीं चल पाऐ
होते हम सब हैरान।
धन से ही व्यवहार चल पाते
यह अच्छा है मेहमान।

धनदौलत से रिश्ते बनते हैं,
धनदौलत से ही पहचान।
अपने घर यदि नोट नहीं तो
अपनी नहीं है कुछ भी शान।

लगे रातदिन हम नोट बटोरने ,
नहीं कोई जात पात का भेद।
जैसेभी जितना समेट लेंय हम
फिर जल्दी काला करें सफेद।

बैंक सभी हम खोखले कर दें
नीरव मोदी माल्याजू के संग।
लूट माल देश का भागें फिर,
निश्चिंत करें विदेश हुडदंग।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।


आज के शीर्षक पर मेरी रचना-------दो पैसे की पुङिया

एक दो पैसे की पुङिया में कभी मुझ गरीब के नाम,

क्या कोई लेकर आयेगा मेरे लिये जीने का पैगाम?

मुखौटे लगाकर, और खूबसूरत लफजों की जुबान,
क्या मुझे सङक से उठाकर कभी कोई देगा आराम।

कुछ थोङी सी चांदनी, लाकर कुछ थोङी सी धूप
मेरे पेट में जलती हुयी, कब मिटेगी, ये मेरी भूख।

मांगू थोङी सी हंसी, फिर चाहूं थोङी सी खुशी
एक मैली फटी सी चादर, क्या यहीं है मेरी बेबसी!

बंदरबांट से बंट गये है, धरती मां के दाने दाने,
खाली चूल्हा,गीली लकङी पे कैसे अरमान पकायें।

लोग कहते है कि मजलूम का कोई घर नहीं होता,
फरिश्तो की दुआओं में शिद्दत और रहम नहीं होता।

आज! मैं इस सङक पे एक चुभन लिये पल रहा हूं
पूछो तो सही जन्म से ही,कैसे मर मर के मर रहा हूं।

क्या मेरी गरीबी और भूख की पहचान कभी बदलेगी,
क्या वो दो पैसे की पुङिया मेरा भाग्य भी बदलेगी ?
---डा. निशा माथुर/8952874359(whatsapp)

पैसा 
💰💰💰💰

दे
खिये ये पैसा क्या कमाल कर गया 
हंसी लबों से लूट के कंगाल कर गया 
वो जिसके लिए कांटो पे गुजार दी उम्र
आंखो को आंसुओं से लाल कर गया 
पल भर में गैर कह के तोड़ डाले सब भरम 
जख्मों से इस दिल को मालामाल कर गया 
जज्बात चूर चूर हैं बेरंग है मंजर 
सीने में तूफान है क्या हाल कर गया 
वफा के बदले दे गया हजार तोहमत
जादूगर था काम बेमिसाल कर गया ।

सपना सक्सेना 
नोएडा


धन दौलत का अभिमान न कर बन्दे,
ये तो क्षणभंगुर है।
साथ जाएगा कर्म तेरा,

जग मे होगा नाम अमर।
सेवा सत्कर्म और रहम,
ये ही देंगे सच्चा सुख।
धन के मद मे चूर,
रिश्तों को मत भूलना।
धन तो आना जाना है,
रिश्ते तो अनमोल ख़जाना है।
हर पल बढ़ते जाना है।
धन का उपयोग उचित हो,
ये हम सबको समझना होगा।
ज़रुरतमंदों की मदद करें,
यही हमारा आज है।
कल किसने देखा है,
ना जाने किस रूप में,
"नारायण" मिल जाएं।
©प्रीति

 नमन मंच।
"नोट'
सुनो सुनो मेरी रामकहानी।

मैं नोट मेरी बात है निराली।
मै सबके मनभावन हूँ
मै हूँ सबकी आली।
दुनिया को मैं खूब नचाउँ
योगी हो या भोगी।
रिश्ते नाते रखें ताक पर
मुझसे मोह न तोड़े।
मंदिर मस्जिद हो या गिरिजाघर
मेरे बिना वे बन नही पाते।
डाक्टर हो या इनंजीनियर
मुझसे ही रोटी पाते।
हर काम के पीछे मैं हूँ।
हर नाम के पीछे मैं।
फकीरचंद हो या दौलतराम
मुझसे ही नाम कमाते।
परन्तु मेरी गति समझे ना कोई।
दान करें जो वही मीत मेरे होई।


लगी आज नोटों की ऐसी झड़ी है
 वही आग सीने में फिर जल पड़ी है 

वो 8 नवंबर को मोदी जो बोले 

नोटों के बंडल रद्दी में है बदले 
चुपचाप निकाले हरे नोटों की रंगत 
जाने कब कैसे काली हो चली थी

देखी आज उनकी फिर जेब भरी है 
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है

वो किटी के पैसे और जुगाडू रुपये 
तिजोरी में पड़े मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे 
पति से छुपाकर जोड़ी जो बचाई
वो मेहनत मेरी पानी-पानी हो गई थी

पति की नजर अब मुझ पे अटी है 
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है

वो पड़ोसन काकी और रिश्ते की दादी 
बड़ी जोड़-तोड़ करके बचाई कमाई 
बुढ़ापे का सहारा काला हो गया था 
महीला विकास का नारा मद्धम हो चला था

मेरे साथ काकी दादी रो रही है 
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है

नीति अनीति कौन किसको बताए
राजनीति का ये खेला हमें भीसीखाए 
नेताओं के पैसे सफेद हो गए हैं
और गूढ़ सी बातें हवा हो गई हैं

जुगाड़ से जिंदगी फिर चल पड़ी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है

लगी आज नोटों की ऐसी झड़ी है 
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है

मिलन जैन

💐भावों के मोती💐
27-4-2018
नोट, रुपया,धन,दौलत
िरामिड
****************
है
क्यों
रुदन
हर मन
धन संचित
स्नेह से वंचित
संस्कार न अर्जित।

वीणा शर्मा

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...