लेखक परिचय
नाम - विपिन सोहल
जन्मतिथि - 06/07 /1976
शिक्षा - M.A. ,M.Ed. UGC - NET
प्रकाशित रचनाएँ - कुछ कविता गजल आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित । कोई संग्रह (किताब) नहीं।
ईमेल - vipinsohal@rediffmail.com
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कोई गीत गाएं जो फुरसत मिले तो
कहीं घूम आएं जो फुरसत मिले तो
मुद्दत से थी आरज़ू आप ही की
करम फरमाएं जो फुरसत मिले तो
कहना था कुछ और सुनना था कुछ
दिल की सुनाएं जो फुरसत मिले तो
अजब कशमकश में हैं मसरुफियत
खुद को ढूंढ लाएं जो फुरसत मिले तो
थका सा लगा है उदासी में चेहरा
जरा मुस्कुराएं जो फुरसत मिले तो
विपिन सोहल। स्वरचित
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कहीं जीत कहीं हार लगती है।
ये जिन्दगी इश्तिहार लगती है।
अभी भी मुझपे असर है तेरा।
जो न उतरा खुमार लगती है।
थी लडकपन की भूल मेरी।
जवां पहला बुखार लगती है।
कभी लगती के कमाई नफरत।
तो कभी खोया प्यार लगती है।
मै उसे रोज ही याद करता हूँ।
ये बात उसे नागवार लगती है।
मुझे शायद न होश आए अब।
वो खिंजाओं में बहार लगती है।
हूँ सरोबार जिसमें आज तक।
बस वही गर्दो - गुबार लगती है।
ये जो दिल में खलिश सी है मेरे
नाकामियों का सार लगती है
जिनसे खेले थे कभी "सोहल"।
वही मुश्किलें बेशुमार लगती है।
स्वरचित विपिन सोहल
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हमीं से खफा हो गए हैं
सनम बेवफा हो गए हैं
मुझे शर्म आने लगी है
वो यूं बेहया हो गए हैं
इक - दूजे में अटके हुए
कहने को जुदा हो गए हैं
है मर्ज आप मरने लगा
दर्द खुद दवा हो गए हैं
जो सीखे सबक आप से
मेरा कायदा हो गए हैं
आईने को शिकायत है
हम क्या थे क्या हो गए हैं
हैं वही अश्क अब देखिए
मेरा हौसला हो गए हैं
गुमां आसमां से भी ऊंचा
अजी क्या खुदा हो गए हैं
भूला बैठे तहज़ीब है
बडे बे - हूदा हो गए हैं
बिन पिए होश आता नहीं
वो ऐसा नशा हो गए हैं
विपिन सोहल। स्वरचित
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शिव भजन
धुन - जहां डाल डाल पर.......
मनोकामनाएं भक्तों की
है सब पूरी करने वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
हे महाकाल हे महारुद्र
चंद्र त्रिशूल डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
अमृत दायिनी गंगा का
प्रभु तुमने मान किया है
प्रभु तुमने मान किया है
सृष्टि में बना रहे जीवन
परहित विषपान किया है
परहित विषपान किया है
नीलकण्ठ शिव शम्भु हैं
सबकी पीड़ा हरने वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
सब देवों के पूज्य देव
महादेव हैं नाम तुम्हारा
महादेव हैं नाम तुम्हारा
जिसपे संकट पड़े यहां
वही तेरा नाम पुकारा
प्रभु तेरा नाम पुकारा
दीन दयालु काशीनाथ
बाबा झोली भरने वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव गंगाधर व्योमकेश
भैरव औघड़ रूप तुम्हारे
भैरव औघड़ रूप तुम्हारे
अपनी कृपा बनाए रखना
सर पर जग भूप हमारे
सर पर जग भूप हमारे
मुण्ड सर्प बाघम्बर पहने
"सोहल" भक्तों के रखवाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
विपिन सोहल स्वरचित
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बूंदों में बरसातो मे इन काली ठंडी रातों में।
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।
सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।
जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।
वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।
नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।
विपिन सोहल। स्वरचित
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सरहद पर लुटा आए जो जानो तन नमन उन्हें।
जो खेले आग से जिंदा जल शोले बन नमन उन्हें।
होम किया जीवन ज्वलंत राष्ट्रप्रेम की ज्योति से।
किया प्राणों को अर्पित आहूति सम नमन उन्हें।
अडिग रहेगा मान देश का चाहे जान चली जाए।
लहराया नभ वीर तिरंगा जन गण मन नमन उन्हें।
गए छोड बिलखता घर आंगन न पीछे मुड देखा।
निज सुख त्याग किया रण भीषणतम नमन उन्हें।
रीते रह गए स्वप्न कई मन की मन में आशाएं।
बलिबेदि पर चढे हंसे तरुण देह मन नमन उन्हें।
तडपे आंचल जननी का यह न कभी घाव भरेगा।
क्या देखे राह दे गये मां विप्लव रूदन नमन उन्हें।
बिलख रहे भ्राता भगिनी है परिणय संगिनी बेसुध।
मामा काका रोए पिता पाषाण हुए नम नमन उन्हें।
घर का घाट बन गया अब नहीं जीवन में कोई बाट।
राखी रोए फीकी होली हुई दीवाली गम, नमन उन्हें।
स्मृतियाँ खडी लखाएं क्षण क्षण बीता भूल न पाए।
संगी साथी करे शिकायत क्यूँ हुए न हम नमन उन्हें।
सो गए कर आरती जिये सनातन ए मां भारती।
कर गए तुम्हारे हवाले जो है वतन नमन उन्हें।
विपिन सोहल। स्वरचित
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आज तुम्हारा प्रणय पाश मैं कैसे स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं
स्निग्ध बड़ा-बड़ा कोमल है आलिंगन तेरा
नयन तेरे मादक श्रोणि का उठता वसन तेरा
कामुकता को प्रेम नाम दूं ह्रदय कैसे संघार करूं
आज तुम्हारा प्रणय पास में कैसे स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं
देख तुम्हारी चंदन सी पर अब वह दहक कहां
किसी और के घर का सुख हो तुम में वह चहक कहां
कैसे अमृत की प्याली में विष इस बार भरूं
आज तुम्हारा प्रणय पास कैसे मैं स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं
विपिन सोहल स्वरचित
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असफलता से मैं निराश नहीं होता।
वहीं तिमिर,जहाँ प्रकाश नहीं होता।
भूलों के शूलों से बिंध विदीर्ण मन।
करता है नि:शक्त और जीर्ण तन।
आशंकाओं में प्रयास नहीं खोता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
घोर शीत रात्रि का पट जैसे खुलता।
प्रहर, वीर-धीरो का स्वतः बदलता।
किस निशापरान्त प्रभास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता
बरबस होता वह जो अकल्पनीय है।
मानव नरश्रेष्ठ बना क्यूं दयनीय है।
दैवयोग क्या अनायास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
भीरू मन भय से लज्जित कब तक।
मुक्ति अवश्यमभावी किन्तु जब तक।
स्वयं से स्वयं का उपहास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
स्वरचित विपिन सोहल
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जन्मभूमि वन्दना
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
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अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे।
पांव के तले आसमान है प्यारे।
मरवा डालेगी इसे काबू कर।
यह जो तेरी जबान हैं प्यारे।
बड़ी ठंडक हैं इसके साये में।
यह इक पुराना मकान है प्यारे।
कहां हैं वो मकतब वो कालेज।
अब तो खाली दुकान है प्यारे।
जख्म तो कब का भर चुका है।
बचा तो बस निशान हैं प्यारे।
जरा चलना संभल संभल के।
ये जिंदगी इक ढलान हैं प्यारे।
बढ रही है तपिश क्या होगा।
समझ खतरे में जान है प्यारे।
कुछ फिक्र कर कुछ कर अमल।
तू भी तो इक इन्सान है प्यारे।
मिट गयी हस्ती न होश आया।
तुझे तो अब भी गुमान है प्यारे।
भरोसा रख परों पर न घबरा।
ये पहली पहली उड़ान है प्यारे।
समझ बिन कहे मुहब्बत है गर।
खामोशी भी इक जुबान है प्यारे।
मुझ से देखा नही जाता ये मंजर।
हर आदमी लहु लुहान है प्यारे।
इस बेबसी को समझ न मुक़द्दर।
यही तो असली इम्तिहान है प्यारे।
उन्हीं से बच के रहना मुश्किल ।
जो कुछ ज्यादा मेहरबान है प्यारे।
इन्हें कभी खिलौने न समझना।
मां की बच्चों मैं जान है प्यारे।
मुझको वो नहीं समझता"सोहल"।
जिसके कदमों में जान है प्यारे।
स्वरचित विपिन सोहल
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झूठे-सच्चे ख्वाब सजाना छोड़ दिया।
अरमानों के बाग लगाना छोड़ दिया।
जब से इन हाथों में आया मोबाइल है।
सब लोगों ने आवाज़ लगाना छोड़ दिया।
इतनी सीलन है रिश्तों में आज कहूं।
माचिस ने भी आग जलाना छोड़ दिया।
भूख बनीं दुश्मन क्यों पेट नहीं भरता।
जबसे अपने घर का खाना छोड़ दिया।
पूछा जो दिया क्यों जवाब हाथ पैरों ने।
तुमने जो सुबह घूमने जाना छोड़ दिया।
जबसे हमको दी दाद तुम्हारी आंखों ने।
हमने भी महफिल में गाना छोड़ दिया।
रुसवा ना हो जाओ तुम दुनिया में सोहल।
बस नाम तेरा होंठों पर लाना छोड़ दिया।
विपिन सोहल
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क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने।
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था।
पडोसी सभी थे भाई। मुश्किल घड़ी जो आई।
हर आदमी खडा था। अहसान क्या बडा था।
बाहर न घर में डर था। हरेक को फिकर था।
हर आदमी सिपाही। हर शख्स पासबां था।
मेहनतो की थी कमाई। स्वादों सुकूं से खाई।
चैन की नीदं सोकर। हर कोई बादशाह था।
रातों को घर अंधेरे थे। पर उजले बडे सवेरे थे।
चेहरे थे खिलखिलाते। कोई नहीं खफा था।
क्यों घर वो सब पुराने। यूं अब तोडे जा रहे हैं।
प्यार और मुहब्बत। सब क्यूँ छोडे जा रहे है।
कोई नहीं यकीं हैं। और कोई नहीं अकीदा।
हर आदमी है समझे। खुद ही को बस खुदा है।
ये कैसी तरक्की है। और ये कैसा जमाना है।
हर चेहरा अजनबी है। हर शख्स बेगाना है।
कहने को भीड़ है। पर कोई मेरा यहाँ नहीं है।
हर आदमी है तन्हा। के हर शख्स अलहदा है।
अरमां की न कीमत। हर दिल तो बेवफा है।
कहने की मौज है। लेकिन हर चीज़ बेमज़ा है।
क्या सोच घर से निकले। और क्या मिला है।
ये वक्त काटना है या कि जीना कोई सजा है।
क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने।
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था।
स्वरचित। विपिन सोहल
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यह सोचो तो ख्याल अच्छा है।
जो गुजरा वोह साल अच्छा है।
जो तेरा हुआ वो गया ईमान से।
चलो इससे तो मलाल अच्छा है।
कहो बेकार कटती जिन्दगी कैसे।
तेरे गम में जीना मुहाल अच्छा है।
नौजवानों का इसमें क्या कसूर।
अब भी तेरा ये जाल अच्छा है।
कहो क्या हाल है वो ये पूछते हैं।
खैर फिर भी ये सवाल अच्छा है।
विपिन सोहल
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है खाक छानी जहाँ की हमनें।
मिला न कूचा ए यार फिर भी।
मेहनतो की तो कमी न कुछ थी।
फली न फ़सलों बहार फिर भी।
मेरा झुका सर, हर एक दर पर।
क्यूं रही खुदा की मार फिर भी।
कभी न हारा है, कोई दौर मैने।
रही मेरे सर क्यों , हार फिर भी।
मिला के रख दूं, दो जहां को ।
मिला नहीं है, करार फिर भी ।
बढी है यूं तो तरबियत जहां मे ।
गिरा है लेकिन मेयार फिर भी।
है मुद्दतों से हम, नदीद उनके।
नहीं है उतरा, खुमार फिर भी।
विपिन सोहल
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उडती हुई रंगत हूँ और खामोश नजारा हूँ,
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
नयी नयी रवानी थी हर रोज़ ही कहानी थी,
सबसे छुपानी थी कुछ तुम को सुनानी थी।
समझा नहीं जिसे तुमने मै ही वो इशारा हूँ,
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
उठती हुई मौजे थी क्या खूब जवानी थी,
क्या खूब समन्दर था क्या खूब रवानी थी।
तरसा था जो बूंदों को वही एक किनारा हूँ,
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
अपनी ही खताओं से मैं रोज ही मिलता हूँ,
हर शाम सुलगता हूँ हर रात मै जलता हूँ।
आजाओ हवा बनके धुआँ होके पुकारा हूँ,
मैं तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
विपिन सोहल। स्वरचित
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कांटों से निभाना चाहता है।
दिल है कि मुस्कुराना चाहता है।।
भुला कर भूल सब गुजरी हुई।
नयी दुनिया बसाना चाहता है।।
क्या जरा ऊंचा लगा मेरा मयार।
उठा कर फिर गिराना चाहता है।।
वो जिसकी लूट थीं फितरत सदा।
वही सब कुछ लुटाना चाहता है।।
मिला पाया न जो नज़रें कभी।
मुझे वो आजमाना चाहता है।।
बहुत डरने लगा है भीड़ में दिल।
कोई तन्हा ठिकाना चाहता है।।
कहो कुछ शेर कि गाने लगे वो।
नहीं जो गुनगुनाना चाहता है।।
सियासत जलजलों की है जहां पर।
वहीं तू घर बनाना चाहता है।।
हुई कब यह दुनिया भला किसकी।
किसे अपना बनाना चाहता है।।
कितनी बड़ी बातें बनाकर वोह।
मुझे फिर से बनाना चाहता है।।
बना कर भेस वो अपना फकीरी।
निरी दौलत कमाना चाहता है।।
मुझको दिए जख्मों को सहलाकर।
बहुत अहसां जताना चाहता है।।
करता उसे शरीके रंगो महफ़िल।
वो मेरी मय्यत पे आना चाहता है।
ऐसे उठा कर उंगलियां किस पर।
मुझे आईना दिखाना चाहता है।।
विपिन सोहल स्वरचित
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हथेली पे फिर शौक से जान रख।
थोड़ा सा सब्र और इत्मीनान रख।
कोई शै नही दूर रहें पावं जमीं पे।
निगाहों में चाहे तो आसमान रख।
जन्नत कहां अगर जो नहीं है यहाँ।
तू बस एक ख्यालों में अमान रख।
नंगी है तो कभी भरोसा न करना।
साथ में ही तलवार के मयान रख।
ना कुछ न छिपेगा लाख छिपा ले।
तू सच्चा करम सच्चा बयान रख।
दोस्त को ये दुश्मन बना सकती है।
सोच ले फिर तोल कर जबान रख।
किससे निभेगी छोड तुझे सोहल।
ऐसे नामुराद का ना अरमान रख।
माना कि मुश्किल ठहरना हवा में।
हैं शर्त इरादों के आगे उडान रख।
स्वरचित विपिन सोहल
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हुजूम है भीड है तमाशा है।
आदमी खून का ही प्यासा है।।
हरेक जुबां की है कहानी जुदा।
इल्म कुछ नहीं क्या खुलासा है।।
पत्थर के हाथों में पत्थर थमे।
फरिश्तों ने किसे यूं तराशा है।।
मै खार को फूल कहता रहा।
फर्क उसमें मुझमें जरा सा है।।
ईमान पर हुई अकीदत मुझे।
उसी दिन से "सोहल" बुरा सा हैं।।
विपिन सोहल। स्वरचित
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अर्ज किया है।
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया। कुछ और खास है बाकी ?
इक उम्र हुई तुमको । देखा नही इन आखो ने ।
नजरो मे नुमाया हो । फिर तलाश है क्या बाकी ?
दिल कयूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी?
चले आए तो हो महफिल मे । देखा नही मुडकर भी ।
तेरे दिल मे सितमगर । कोई फांस है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ?
वो एक वक्त तेरा था । और ये एक वक्त मेरा है ।
मुझे अब भी मुहब्बत है । तु उदास है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया । कुछ और खास है बाकी ?
स्वरचित विपिन सोहल
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सर्द मौसम में फिर वही दर्द उभर आया है।
आह निकली जो तेरा जिक्र अगर आया है।
भूल कर बैठे थे जो हम भूल नहीं पाएंगे।
याद करता हूँ तो मुंह को जिगर आया है।
अब यकीं हमको मुहब्बत पर नहीं होता।
तेरी सोहबत का कुछ तो असर आया है।
हाल पूछा भी मेरा उसने मेरे रकीबों से।
ख्याल कुछ देर के बाद खैर मगर आया है।
मुतमईन अब भी नहीं तो कहां जाओगे।
मेरी नजरों को नजारा यह नजर आया है।
विपिन सोहल
कोई गीत गाएं जो फुरसत मिले तो
कहीं घूम आएं जो फुरसत मिले तो
मुद्दत से थी आरज़ू आप ही की
करम फरमाएं जो फुरसत मिले तो
कहना था कुछ और सुनना था कुछ
दिल की सुनाएं जो फुरसत मिले तो
अजब कशमकश में हैं मसरुफियत
खुद को ढूंढ लाएं जो फुरसत मिले तो
थका सा लगा है उदासी में चेहरा
जरा मुस्कुराएं जो फुरसत मिले तो
विपिन सोहल। स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
कहीं जीत कहीं हार लगती है।
ये जिन्दगी इश्तिहार लगती है।
अभी भी मुझपे असर है तेरा।
जो न उतरा खुमार लगती है।
थी लडकपन की भूल मेरी।
जवां पहला बुखार लगती है।
कभी लगती के कमाई नफरत।
तो कभी खोया प्यार लगती है।
मै उसे रोज ही याद करता हूँ।
ये बात उसे नागवार लगती है।
मुझे शायद न होश आए अब।
वो खिंजाओं में बहार लगती है।
हूँ सरोबार जिसमें आज तक।
बस वही गर्दो - गुबार लगती है।
ये जो दिल में खलिश सी है मेरे
नाकामियों का सार लगती है
जिनसे खेले थे कभी "सोहल"।
वही मुश्किलें बेशुमार लगती है।
स्वरचित विपिन सोहल
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हमीं से खफा हो गए हैं
सनम बेवफा हो गए हैं
मुझे शर्म आने लगी है
वो यूं बेहया हो गए हैं
इक - दूजे में अटके हुए
कहने को जुदा हो गए हैं
है मर्ज आप मरने लगा
दर्द खुद दवा हो गए हैं
जो सीखे सबक आप से
मेरा कायदा हो गए हैं
आईने को शिकायत है
हम क्या थे क्या हो गए हैं
हैं वही अश्क अब देखिए
मेरा हौसला हो गए हैं
गुमां आसमां से भी ऊंचा
अजी क्या खुदा हो गए हैं
भूला बैठे तहज़ीब है
बडे बे - हूदा हो गए हैं
बिन पिए होश आता नहीं
वो ऐसा नशा हो गए हैं
विपिन सोहल। स्वरचित
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शिव भजन
धुन - जहां डाल डाल पर.......
मनोकामनाएं भक्तों की
है सब पूरी करने वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
हे महाकाल हे महारुद्र
चंद्र त्रिशूल डमरू वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
अमृत दायिनी गंगा का
प्रभु तुमने मान किया है
प्रभु तुमने मान किया है
सृष्टि में बना रहे जीवन
परहित विषपान किया है
परहित विषपान किया है
नीलकण्ठ शिव शम्भु हैं
सबकी पीड़ा हरने वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
सब देवों के पूज्य देव
महादेव हैं नाम तुम्हारा
महादेव हैं नाम तुम्हारा
जिसपे संकट पड़े यहां
वही तेरा नाम पुकारा
प्रभु तेरा नाम पुकारा
दीन दयालु काशीनाथ
बाबा झोली भरने वाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव गंगाधर व्योमकेश
भैरव औघड़ रूप तुम्हारे
भैरव औघड़ रूप तुम्हारे
अपनी कृपा बनाए रखना
सर पर जग भूप हमारे
सर पर जग भूप हमारे
मुण्ड सर्प बाघम्बर पहने
"सोहल" भक्तों के रखवाले
शिव शंकर भोले भाले
शिव शंकर भोले भाले
विपिन सोहल स्वरचित
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बूंदों में बरसातो मे इन काली ठंडी रातों में।
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।
सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।
जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।
वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।
नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।
विपिन सोहल। स्वरचित
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सरहद पर लुटा आए जो जानो तन नमन उन्हें।
जो खेले आग से जिंदा जल शोले बन नमन उन्हें।
होम किया जीवन ज्वलंत राष्ट्रप्रेम की ज्योति से।
किया प्राणों को अर्पित आहूति सम नमन उन्हें।
अडिग रहेगा मान देश का चाहे जान चली जाए।
लहराया नभ वीर तिरंगा जन गण मन नमन उन्हें।
गए छोड बिलखता घर आंगन न पीछे मुड देखा।
निज सुख त्याग किया रण भीषणतम नमन उन्हें।
रीते रह गए स्वप्न कई मन की मन में आशाएं।
बलिबेदि पर चढे हंसे तरुण देह मन नमन उन्हें।
तडपे आंचल जननी का यह न कभी घाव भरेगा।
क्या देखे राह दे गये मां विप्लव रूदन नमन उन्हें।
बिलख रहे भ्राता भगिनी है परिणय संगिनी बेसुध।
मामा काका रोए पिता पाषाण हुए नम नमन उन्हें।
घर का घाट बन गया अब नहीं जीवन में कोई बाट।
राखी रोए फीकी होली हुई दीवाली गम, नमन उन्हें।
स्मृतियाँ खडी लखाएं क्षण क्षण बीता भूल न पाए।
संगी साथी करे शिकायत क्यूँ हुए न हम नमन उन्हें।
सो गए कर आरती जिये सनातन ए मां भारती।
कर गए तुम्हारे हवाले जो है वतन नमन उन्हें।
विपिन सोहल। स्वरचित
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आज तुम्हारा प्रणय पाश मैं कैसे स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं
स्निग्ध बड़ा-बड़ा कोमल है आलिंगन तेरा
नयन तेरे मादक श्रोणि का उठता वसन तेरा
कामुकता को प्रेम नाम दूं ह्रदय कैसे संघार करूं
आज तुम्हारा प्रणय पास में कैसे स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं
देख तुम्हारी चंदन सी पर अब वह दहक कहां
किसी और के घर का सुख हो तुम में वह चहक कहां
कैसे अमृत की प्याली में विष इस बार भरूं
आज तुम्हारा प्रणय पास कैसे मैं स्वीकार करूं
आधे मन से आधे जीवन को कैसे अंगीकार करूं
विपिन सोहल स्वरचित
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असफलता से मैं निराश नहीं होता।
वहीं तिमिर,जहाँ प्रकाश नहीं होता।
भूलों के शूलों से बिंध विदीर्ण मन।
करता है नि:शक्त और जीर्ण तन।
आशंकाओं में प्रयास नहीं खोता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
घोर शीत रात्रि का पट जैसे खुलता।
प्रहर, वीर-धीरो का स्वतः बदलता।
किस निशापरान्त प्रभास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता
बरबस होता वह जो अकल्पनीय है।
मानव नरश्रेष्ठ बना क्यूं दयनीय है।
दैवयोग क्या अनायास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
भीरू मन भय से लज्जित कब तक।
मुक्ति अवश्यमभावी किन्तु जब तक।
स्वयं से स्वयं का उपहास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
स्वरचित विपिन सोहल
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
जन्मभूमि वन्दना
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
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अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे।
पांव के तले आसमान है प्यारे।
मरवा डालेगी इसे काबू कर।
यह जो तेरी जबान हैं प्यारे।
बड़ी ठंडक हैं इसके साये में।
यह इक पुराना मकान है प्यारे।
कहां हैं वो मकतब वो कालेज।
अब तो खाली दुकान है प्यारे।
जख्म तो कब का भर चुका है।
बचा तो बस निशान हैं प्यारे।
जरा चलना संभल संभल के।
ये जिंदगी इक ढलान हैं प्यारे।
बढ रही है तपिश क्या होगा।
समझ खतरे में जान है प्यारे।
कुछ फिक्र कर कुछ कर अमल।
तू भी तो इक इन्सान है प्यारे।
मिट गयी हस्ती न होश आया।
तुझे तो अब भी गुमान है प्यारे।
भरोसा रख परों पर न घबरा।
ये पहली पहली उड़ान है प्यारे।
समझ बिन कहे मुहब्बत है गर।
खामोशी भी इक जुबान है प्यारे।
मुझ से देखा नही जाता ये मंजर।
हर आदमी लहु लुहान है प्यारे।
इस बेबसी को समझ न मुक़द्दर।
यही तो असली इम्तिहान है प्यारे।
उन्हीं से बच के रहना मुश्किल ।
जो कुछ ज्यादा मेहरबान है प्यारे।
इन्हें कभी खिलौने न समझना।
मां की बच्चों मैं जान है प्यारे।
मुझको वो नहीं समझता"सोहल"।
जिसके कदमों में जान है प्यारे।
स्वरचित विपिन सोहल
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झूठे-सच्चे ख्वाब सजाना छोड़ दिया।
अरमानों के बाग लगाना छोड़ दिया।
जब से इन हाथों में आया मोबाइल है।
सब लोगों ने आवाज़ लगाना छोड़ दिया।
इतनी सीलन है रिश्तों में आज कहूं।
माचिस ने भी आग जलाना छोड़ दिया।
भूख बनीं दुश्मन क्यों पेट नहीं भरता।
जबसे अपने घर का खाना छोड़ दिया।
पूछा जो दिया क्यों जवाब हाथ पैरों ने।
तुमने जो सुबह घूमने जाना छोड़ दिया।
जबसे हमको दी दाद तुम्हारी आंखों ने।
हमने भी महफिल में गाना छोड़ दिया।
रुसवा ना हो जाओ तुम दुनिया में सोहल।
बस नाम तेरा होंठों पर लाना छोड़ दिया।
विपिन सोहल
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क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने।
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था।
पडोसी सभी थे भाई। मुश्किल घड़ी जो आई।
हर आदमी खडा था। अहसान क्या बडा था।
बाहर न घर में डर था। हरेक को फिकर था।
हर आदमी सिपाही। हर शख्स पासबां था।
मेहनतो की थी कमाई। स्वादों सुकूं से खाई।
चैन की नीदं सोकर। हर कोई बादशाह था।
रातों को घर अंधेरे थे। पर उजले बडे सवेरे थे।
चेहरे थे खिलखिलाते। कोई नहीं खफा था।
क्यों घर वो सब पुराने। यूं अब तोडे जा रहे हैं।
प्यार और मुहब्बत। सब क्यूँ छोडे जा रहे है।
कोई नहीं यकीं हैं। और कोई नहीं अकीदा।
हर आदमी है समझे। खुद ही को बस खुदा है।
ये कैसी तरक्की है। और ये कैसा जमाना है।
हर चेहरा अजनबी है। हर शख्स बेगाना है।
कहने को भीड़ है। पर कोई मेरा यहाँ नहीं है।
हर आदमी है तन्हा। के हर शख्स अलहदा है।
अरमां की न कीमत। हर दिल तो बेवफा है।
कहने की मौज है। लेकिन हर चीज़ बेमज़ा है।
क्या सोच घर से निकले। और क्या मिला है।
ये वक्त काटना है या कि जीना कोई सजा है।
क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने।
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था।
स्वरचित। विपिन सोहल
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यह सोचो तो ख्याल अच्छा है।
जो गुजरा वोह साल अच्छा है।
जो तेरा हुआ वो गया ईमान से।
चलो इससे तो मलाल अच्छा है।
कहो बेकार कटती जिन्दगी कैसे।
तेरे गम में जीना मुहाल अच्छा है।
नौजवानों का इसमें क्या कसूर।
अब भी तेरा ये जाल अच्छा है।
कहो क्या हाल है वो ये पूछते हैं।
खैर फिर भी ये सवाल अच्छा है।
विपिन सोहल
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है खाक छानी जहाँ की हमनें।
मिला न कूचा ए यार फिर भी।
मेहनतो की तो कमी न कुछ थी।
फली न फ़सलों बहार फिर भी।
मेरा झुका सर, हर एक दर पर।
क्यूं रही खुदा की मार फिर भी।
कभी न हारा है, कोई दौर मैने।
रही मेरे सर क्यों , हार फिर भी।
मिला के रख दूं, दो जहां को ।
मिला नहीं है, करार फिर भी ।
बढी है यूं तो तरबियत जहां मे ।
गिरा है लेकिन मेयार फिर भी।
है मुद्दतों से हम, नदीद उनके।
नहीं है उतरा, खुमार फिर भी।
विपिन सोहल
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उडती हुई रंगत हूँ और खामोश नजारा हूँ,
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
नयी नयी रवानी थी हर रोज़ ही कहानी थी,
सबसे छुपानी थी कुछ तुम को सुनानी थी।
समझा नहीं जिसे तुमने मै ही वो इशारा हूँ,
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
उठती हुई मौजे थी क्या खूब जवानी थी,
क्या खूब समन्दर था क्या खूब रवानी थी।
तरसा था जो बूंदों को वही एक किनारा हूँ,
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
अपनी ही खताओं से मैं रोज ही मिलता हूँ,
हर शाम सुलगता हूँ हर रात मै जलता हूँ।
आजाओ हवा बनके धुआँ होके पुकारा हूँ,
मैं तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
विपिन सोहल। स्वरचित
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कांटों से निभाना चाहता है।
दिल है कि मुस्कुराना चाहता है।।
भुला कर भूल सब गुजरी हुई।
नयी दुनिया बसाना चाहता है।।
क्या जरा ऊंचा लगा मेरा मयार।
उठा कर फिर गिराना चाहता है।।
वो जिसकी लूट थीं फितरत सदा।
वही सब कुछ लुटाना चाहता है।।
मिला पाया न जो नज़रें कभी।
मुझे वो आजमाना चाहता है।।
बहुत डरने लगा है भीड़ में दिल।
कोई तन्हा ठिकाना चाहता है।।
कहो कुछ शेर कि गाने लगे वो।
नहीं जो गुनगुनाना चाहता है।।
सियासत जलजलों की है जहां पर।
वहीं तू घर बनाना चाहता है।।
हुई कब यह दुनिया भला किसकी।
किसे अपना बनाना चाहता है।।
कितनी बड़ी बातें बनाकर वोह।
मुझे फिर से बनाना चाहता है।।
बना कर भेस वो अपना फकीरी।
निरी दौलत कमाना चाहता है।।
मुझको दिए जख्मों को सहलाकर।
बहुत अहसां जताना चाहता है।।
करता उसे शरीके रंगो महफ़िल।
वो मेरी मय्यत पे आना चाहता है।
ऐसे उठा कर उंगलियां किस पर।
मुझे आईना दिखाना चाहता है।।
विपिन सोहल स्वरचित
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हथेली पे फिर शौक से जान रख।
थोड़ा सा सब्र और इत्मीनान रख।
कोई शै नही दूर रहें पावं जमीं पे।
निगाहों में चाहे तो आसमान रख।
जन्नत कहां अगर जो नहीं है यहाँ।
तू बस एक ख्यालों में अमान रख।
नंगी है तो कभी भरोसा न करना।
साथ में ही तलवार के मयान रख।
ना कुछ न छिपेगा लाख छिपा ले।
तू सच्चा करम सच्चा बयान रख।
दोस्त को ये दुश्मन बना सकती है।
सोच ले फिर तोल कर जबान रख।
किससे निभेगी छोड तुझे सोहल।
ऐसे नामुराद का ना अरमान रख।
माना कि मुश्किल ठहरना हवा में।
हैं शर्त इरादों के आगे उडान रख।
स्वरचित विपिन सोहल
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हुजूम है भीड है तमाशा है।
आदमी खून का ही प्यासा है।।
हरेक जुबां की है कहानी जुदा।
इल्म कुछ नहीं क्या खुलासा है।।
पत्थर के हाथों में पत्थर थमे।
फरिश्तों ने किसे यूं तराशा है।।
मै खार को फूल कहता रहा।
फर्क उसमें मुझमें जरा सा है।।
ईमान पर हुई अकीदत मुझे।
उसी दिन से "सोहल" बुरा सा हैं।।
विपिन सोहल। स्वरचित
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अर्ज किया है।
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया। कुछ और खास है बाकी ?
इक उम्र हुई तुमको । देखा नही इन आखो ने ।
नजरो मे नुमाया हो । फिर तलाश है क्या बाकी ?
दिल कयूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी?
चले आए तो हो महफिल मे । देखा नही मुडकर भी ।
तेरे दिल मे सितमगर । कोई फांस है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ?
वो एक वक्त तेरा था । और ये एक वक्त मेरा है ।
मुझे अब भी मुहब्बत है । तु उदास है क्या बाकी ?
दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया । कुछ और खास है बाकी ?
स्वरचित विपिन सोहल
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सर्द मौसम में फिर वही दर्द उभर आया है।
आह निकली जो तेरा जिक्र अगर आया है।
भूल कर बैठे थे जो हम भूल नहीं पाएंगे।
याद करता हूँ तो मुंह को जिगर आया है।
अब यकीं हमको मुहब्बत पर नहीं होता।
तेरी सोहबत का कुछ तो असर आया है।
हाल पूछा भी मेरा उसने मेरे रकीबों से।
ख्याल कुछ देर के बाद खैर मगर आया है।
मुतमईन अब भी नहीं तो कहां जाओगे।
मेरी नजरों को नजारा यह नजर आया है।
विपिन सोहल
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नेताओं के आजकल बदले भाव है।
सूखी बातों के मरहम तले घाव है।
घास खा रहे किस तरह से भेड़िये।
लगता है इन दिनो आ गये चुनाव है।
जनता के मन में क्या कोई न जाने।
डगमग होती अच्छे अच्छे की नाव हैं।
दूर अभी अंजाम उम्मीदो की शाम।
खाली मूछों में यूँ ही दे रहे ताव है।
तडप रहे सत्ता का करने रसपान।
बैरी करें गठबंधन हो कैसे निभाव है।
स्वरचित विपिन सोहल
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साथ जो रहने की आदत हो गई।
जुदाई पल भर की आफत हो गई।
बदलने लगा है जमाने का सुलूक।
कमजोरियों जब से ताकत हो गई।
जब से देखी सनम की अंगड़ाइयां।
हाय इस दिल पर कयामत हो गई।
आप के रुखसार पर ठहरी नजर।
तो आज शर्मिंदा नजा़कत हो गई।
आके मिल जाओगे सरे राह तुम।
हम ये समझेंगे जियारत हो गई।
बेरूखी हैं बेसबब क्यों आपकी।
हमसे क्या ऐसी हिमाकत हो गई।
सच कहूँ तो सच में लगता है डर।
जब से खतरे में शराफत हो गई।
विपिन सोहल
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दौडती भागती जिन्दगी रह गई।
फुर्सते वक्त बस ढूंढती रह गई।
भागता - दौडता मै रहा उम्र भर।
छूट पीछे कहीं हर खुशी रह गई।
मुस्कुराती जहां उम्मीद थीं कभी।
चेहरे पर फकत मायूसी रह गई।
थम गए पांव जब मेरे जज्बात के।
पलकों पर मेरी कुछ नमी रह गई।
चल दिए तोड कर वो दिल मेरा।
मेरे साथ बस यह शायरी रह गई।
विपिन सोहल
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यकीं नहीं मगर सच्चाई बहुत है।
लगती जरूर है फैसले में देरी।
उस के दर पर सुनवाई बहुत है।
मै तुम्हें बहुत पहले भूल जाता।
मगर तेरी याद आई बहुत है।
यूं हम इतने खासे मशहूर न थे।
हमारी दुश्मनो ने उडाई बहुत है।
मै मौके पर भी ईमान खो न सका।
मुझे मेहनत की कमाई बहुत है।
दिल फिर भी यकीन रखता है।
इल्म है तेरे वादे हवाई बहुत है।
चाहो तो अब भी नहा के देख लो।
दिले दरिया की गहराई बहुत है।
तुम फिर सलामत किस तरह बचे।
जो पकड़े गये हुई पिटाई बहुत है।
मै तो लंगोटी ही बचा पाया विपिन।
कहते हैं कि इश्क में कमाई बहुत है।
विपिन सोहल
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अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।
एक तुम ही नहीं जवां और भी हैं।
जिससे मैं मिला वो रोता ही मिला।
तुम ही तन्हा नहीं परेशां और भी हैं।
मुश्किलों से हौसला बडी चीज है।
न डर ए दिल किश्तियां और भी हैं।
अब क्यों आईने से डरने लगे तुम।
दूर हो जायेंगे जो गुमां और भी हैं।
कर आजमाइश हवा के पैतरों की।
सितारों के आगे जहां और भी हैं।
तरक्की की कोई हद हो तो बता दो।
तय करने अभी आसमां और भी हैं।
रुका तेरे दर पर तो तेरी ही खातिर।
वरना इस शहर में मकां और भी हैं।
विपिन सोहल
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बाकी बचा बस जहर है।
बडी ही कठिन रहगुजर है।
न जाने कैसे कटती यूं ही।
शुक्र के आप हमसफर है।
जल्द ही शाम ढलने लगेगी।
कहां बची लम्बी उमर है।
मर गए होते हम कभी के।
आपकी दुआ का असर है।
अब और सब्र न हो शायद।
अभी तक काबू में जिगर है।
हर्फ सराबोर हैं लहू से।
हादसों की हर इक खबर है।
हो नाम रब का हर साँस में।
जिन्दगी यूं भी मुख्तसर है।
हुआ अम्न गायब शहर से।
लगी चैन को भी नज़र है।
विपिन सोहल
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जैसे किया हो फैसला, सिक्का उछाल कर।
आखों में उसने देखा था यूं, आखें डालकर।
दीवाने तो हम जैसे मिलेगें , हरेक मोड़पर।
तुम चलना जरा बाहोश दुपट्टा सम्हाल कर।
वो जो आ गये आगोश में तो सुकून आ गया।
फिर जो हुए रुखसत के बैचेनी बहाल कर।
बस इश्क को समझोगे तो तुम भी उसी रोज।
रख देगा जिन्दगी का, जब जीना मुहाल कर।
कुछ नये हैं उनके पैतरे हथियार है कुछ नये।
नश्तर चला दिया बेदर्द ने लफ्जों में डालकर।
लिखता है हरेक रात वो एक कशमकश नई।
कागज पे रख दिया है, कलेजा निकाल कर।
विपिन सोहल
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सभी लोग रहने लगे हैं किनारे।
डूबती कश्तियां किसे है पुकारे।
तरक्की पसन्द घर गये छोडकर।
बुढापे मे मां अब किसके है सहारे।
मेहरबानी जब से हुई है आपकी।
किस्मत के चमकने लगे हैं सितारे।
आपने नजर भर जो देखा इधर।
सोये थे अरमां अब जगे है हमारे।
हम से क्या शिकवा हम तो गैर थे ।
हुए जिनके तुम क्या सगे हैं तुम्हारे।
साफगोई से बडा जुर्म कोई नहीं।
लफ्ज क्यूं तीर लगने लगे हैं हमारे।
विपिन सोहल
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तू इतना भी गुमान मत करना।
दिखावे को झूठी शान मत करना।
उसकी हर कली गुंचे पे निगाह है।
छुप के भी ऐसे काम मत करना।
धोखे में भी अजब धोखा है दोस्त।
दे कर खाने का काम मत करना।
रकीब जो आए तो सीने से लगाना।
सिर्फ चाय का इन्तजाम मत करना।
मेरी सलाह है मानो न मानो तुम।
जीते जी वसीयत नाम मत करना।
मुझसे जो मिलो तो नजरें मिला के।
वरना झूठा एहतराम मत करना।
सरजमीं कुछ भी मांग सकती है।
जान दे देना लहू हराम मत करना।
विपिन सोहल
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भुला दो नफ़रतें मन की सभी इस बार होली में।
भुला दो नफ़रतें मन की सभी इस बार होली में।
लगा लो तुम गले सबको अरे इस बार होली में।
करें क्या साली से मस्ती दिला दी याद है नानी।
सुंघा दी रख के फूलों में है हमें नसवार होली में।
तुम्हारे बिन हमारी जिंदगी के सब रंग है फीके।
हुए मुश्किल से हैं प्यारे आपके दीदार होली में।
तुम्हारी हर अदा पर आज मेरा दिल हुआ शैदा।
फिर हुए नाराज क्यूँ तुम मेरे सरकार होली में।
मुश्किल से है मिलता मुहब्बत मे भिगो दें जो।
दो पडने जिस्म पर प्यार की ये बौछार होली में।
बदल लेते हैं फितरत ही जो रंग जाए इस रंग में।
हुए मासूम से गुल हैं जो कभी थे खार होली में।
करो तामीर आज मुहब्बत का इक नया मकतब।
गिरा दो आज नफरत की हरेक दीवार होली में।
इस मस्ती भरे मौसम में लिए फागुन है अंगड़ाई।
वही हल्ला वहीं हुल्लड रहेगा हर बार होली में।
विपिन सोहल
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अपने आप से जब कुछ सवाल करता है ।
हकीकत में दिलका बडा मलाल करता है।
डुबा के लिखता हूँ हर्फ को दर्द जख्मों में।
लोग कहते हैं कि शायर कमाल करता है।
जब कहा मैंने के आओ जरा मिल के चलें।
कह रहे रहनुमा के तु क्यों बवाल करता है।
मिला के आग को पानी मे जब बरसता है।
बन के बादल मेरा साहिब धमाल करता है।
हैरान हूँ खिला के फूल सेहरा मे दरिया में।
किस तरह से वो रौशन जमाल करता है।
विपिन सोहल
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यूं आब से तिश्नगी पुकारी है।
फिर वही जिन्दगी हमारी है।
किस कदर हम यूं हैरान हैं ।
जाने क्या मरजी तुम्हारी है।
किस चीज़ का गुमां हम करें ।
सांस पल - पल की उधारी हैं।
कितनी भोली हैं सूरत तेरी।
लगे हैं आसमां से उतारी है।
संवर गई अपनी तकदीर भी।
जो मैंने जुल्फ तेरी संवारी है।
है जिन्दगी मौत का सिलसिला।
कब कौन किसका शिकारी है।
होश मुझको न आया कभी।
न ही उनकी उतरी खुमारी है।
जो कट गयी थी वही जिन्दगी।
क्यूँ आज पल पल की भारी है।
यूँ सामां है जिन्दगी के सभी।
हां बस इक कमी तुम्हारी है।
इश्क है जंग दुनिया में आखिर।
उस पर शमशीर ये दुधारी हैं।
स्वरचित विपिन सोहल
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तौहीन ए ईमान से खुद किनारा कर लिया।
मैंने फाकों से दोस्ती की गुजारा कर लिया।
उनके महल की सोने , के पिंजरे सी जिंदगी।
काटे कटी ना रात सफर गवारा कर लिया।
मै तुम वे और आप की चख चख है बेमजा।
प्यारी सी एक हंसी सबको प्यारा कर लिया।
उनकी हंसी पे कैसे हंसा यूं अरसे के बाद मैं।
मालूम हो कि जख्मे- दिल दोबारा कर लिया।
छुपाते रहे हैं लोग अक्सर ऐबों को पैरहन में।
मैंने गिरते हुए मेयार का, नजारा कर लिया।
आज उनके इल्म के हम भी हुए हैं कायल।
दौलत को अपनी मांग का सितारा कर लिया।
हंसती है आज सोहल ये जमाने की रौनके।
तूने गिरती हुई दीवार का सहारा कर लिया।
विपिन सोहल
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अजनबी से मुहब्बत हुई।
भूले खुद को है, मुद्दत हुई।
दांव हमने लगाया मगर।
न, मेहरबान किस्मत हुई।
मुझसे झुकना नहीं आया।
यू, बेड़ियाँ मेरी गैरत हुई।
न वो कुछ मेहरबां हुए।
न कुछ हमसे खिदमत हुई।
वो मसरूफ है अपने घर।
न हमें उनकी आदत हुई।
देख लेता है बंद आंखों में।
दिल को जब भी जरुरत हुई।
हम जां - बे - हक हो जाएंगे।
हाय यह कैसी शरारत हुई।
अब तो ईमान डरने लगा।
है ऐसे रुसवा शराफत हुई।
चार बूंदों से बुझती है क्या।
खैर मौसम को राहत हुई।
जब से गिरने लगा मयार है।
नाकाम हर हिफाज़त हुई।
हवस ने किया दिल में घर।
बस खतरे में अमानत हुई।
'सोहल 'बात दिल की कही।
ऐसी भी क्या हिमाकत हुई।
विपिन सोहल
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यह सोचो तो ख्याल अच्छा है।
जो गुजरा वोह साल अच्छा है।
जो तेरा हुआ वो गया ईमान से।
चलो इससे तो मलाल अच्छा है।
कहो बेकार कटती जिन्दगी कैसे।
तेरे गम में जीना मुहाल अच्छा है।
नौजवानों का इसमें क्या कसूर।
अब भी तेरा ये जाल अच्छा है।
कहो क्या हाल है वो ये पूछते हैं।
खैर फिर भी ये सवाल अच्छा है।
विपिन सोहल
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सरहद पर लुटा आए जो जानो तन नमन उन्हें।
जो खेले आग से जिंदा जल शोले बन नमन उन्हें।
होम किया जीवन ज्वलंत राष्ट्रप्रेम की ज्योति से।
किया प्राणों को अर्पित आहूति सम नमन उन्हें।
अडिग रहेगा मान देश का चाहे जान चली जाए।
लहराया नभ वीर तिरंगा जन गण मन नमन उन्हें।
गए छोड बिलखता घर आंगन न पीछे मुड देखा।
निज सुख त्याग किया रण भीषणतम नमन उन्हें।
रीते रह गए स्वप्न कई मन की मन में आशाएं।
बलिबेदि पर चढे हंसे तरुण देह मन नमन उन्हें।
तडपे आंचल जननी का यह न कभी घाव भरेगा।
क्या देखे राह दे गये मां विप्लव रूदन नमन उन्हें।
बिलख रहे भ्राता भगिनी है परिणय संगिनी बेसुध।
मामा काका रोए पिता पाषाण हुए नम नमन उन्हें।
घर का घाट बन गया अब नहीं जीवन में कोई बाट।
राखी रोए फीकी होली हुई दीवाली गम, नमन उन्हें।
स्मृतियाँ खडी लखाएं क्षण क्षण बीता भूल न पाए।
संगी साथी करे शिकायत क्यूँ हुए न हम नमन उन्हें।
सो गए कर आरती जिये सनातन ए मां भारती।
कर गए तुम्हारे हवाले जो है वतन नमन उन्हें।
विपिन सोहल
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हाय किस्मत तेरे पहलू मे बंधा क्या है।
जिये जाता हूँ बेखबर तो मजा क्या है।
हरेक शख्स ने पूछा मेरे महबूब का नाम।
जिसने बनायी है दुनिया वो भला क्या है।
होके चाहत में दफन देखा नहीं कुछ भी़।
क्या थी बहारे चमन और फज़ा क्या है।
तुम झुकाए खड़े हो क्यों अपने सर को।
माफ तो कर दूँ तुम्हें मगर खता क्या है।
जब उठाता हूं सर तो कर देते हैं कलम।
अब वही जाने जालिम की रज़ा क्या है।
विपिन सोहल
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इन्सानियत से आदमी दूर कितना हो रहा है।
खामखाँ में देखिये मजबूर कितना हो रहा है।
तोलती है आदमी को आदमी की हैसियत ।
मालो जर के नशे में चूर कितना हो रहा है।
खुद को समझे है खुदा नादानियत देखिए।
हैरान हूँ देखकर मगरूर कितना हो रहा है।
बे - अदब माहौल है मगरबी सिलसिलो का।
मुआशरा इन दिनों बेशऊर कितना हो रहा है।
जुल्मी है जितना पापी है उतना बड़ा नाम है।
देखिए तो आप भी मशहूर कितना हो रहा है।
विपिन सोहल
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लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
कब रोकोगे जाग के रस्ता मरुथल और चट्टानों का
आगे बढने वाले सैनिक के पांव मैं जंजीर है क्यों
मेरे भारत का मस्तक यह घायल कश्मीर हैं क्यों
मोड दो रुख लाहौर कराची बमबारी विमानों का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
आर्य पुत्र कहलाते तुम आती क्या कुछ लाज नहीं
रोते हो बस कल का रोना दिखता कुछ आज नहीं
ढूंढो फिर सुभाष भगत सिंह ये काम नहीं परवानों का लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
दस टुकड़े करके भी क्या तुम को ना चैन मिला
दीवारें चुन कर बनवा दो भारत को मजबूत किला
उठो जागो अब वक्त नहीं पंचशील प्रतिमानों का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
चुन-चुन कर मारो गद्दारों को तभी कदम तुम धरना रोएगी वीरों की रूहे अगर जिंदा छोड़ोगे वरना
याद करो बलिदान अशफ़ाकउल्ला जैसे परवानों का लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
लंका ढाने वाले कितने आज विभीषण बैठे हैं
खाते मेरा गाते उनका जाने किस बात पर ऐठे हैं
काम नहीं मेरी मिट्टी में ऐसे नमक हरामों का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
देखी दुनिया तुमने रूस चीन इजराइल अमरीका
खाली बातें कर आए हो या फिर है कुछ सीखा
सत्यसारथी बनो प्रधान सिर कुचलो सर्प गुमानो का लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
मेरी कोख जनेगी हरदम बिस्मिलआजाद लाहड़ी को
कैसे दुश्मन चढ बैठा अपनी टाइगर हिल पहाड़ी को
तोपों की करो गर्जना वक्त नहीं ट्विटर आह्वानो का लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
मरने वाला द्रविड़ गोरखा वीर मराठा राजस्थानी है बैठके दिल्ली क्या देखोगे क्या जंगल क्या पानी है फेंको उतार तुम आज लबादा अय्याशी सुल्तानों का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
राज तुम्हे सौंपा है जनमत ने फिर क्या मजबूरी है
सोने के मंदिर से दुश्मन की 16 किमी की दूरी है
एक बार फिर ढूंढ लो घर पंजाबी रअरमानो का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
हथियारों के बल पर कैसा नाच हुआ यथा नंगा
देखूं खोजो मेरे मस्तक का खोया ताज तिरंगा
रणभेरी की बेला है यह छोड़ो अब राग तरानों का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
कुर्बानी को क्या समझे जो आराम से घर में लेटा है मरने वाला नहीं सियासी मजदूर किसान का बेटा है हक है इस मिट्टी पर केवल ऐसे ही कुर्बानो का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
सूखे फूल चढ़ाकर मेरे शव पर यूं ना आघात करो
मरता जिनकी गोली से उनके घर जाकर बात करो
सो गया क्योंआज रक्त बर्बर शेरों की संतानों का
लहू सियासत कब तक पिएगी मेरे वीर जवानों का
विपिन सोहल
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धूल मिट्टी और पत्थर।
रास्ते मे जो न हो अगर।
फिर रहा कैसा मजा।
आसान हो जो सफर।
राह दुष्कर जो मिले।
मन में हिम्मत है फले।
बढते आगे है सदा जो।
राह की ठोकरों मे पले।
धुंधलायेगी भी नजर।
घबरायेगा भी जिगर।
गिरने का गम तू न कर।
न पथ से डिगना मगर।
हिम्मत बढती जायेंगी।
मेहनत तेरी रंग लायेगीं।
बस हौसला कायम रहे।
मजिंले पास आयेगी।
विपिन सोहल
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जिंदगी कुछ और ही होती अगर।
वक्त न तकदीर जो खोती अगर।
कुछ सुकूं मुझको भी आ जाता।
बोझ यूं सांसे न जो ढोती अगर।
हो गया होता मुकम्मल ये सफर।
ये मंजिलें कांटे नही बोती अगर।
हाथ उसके भी पाक थे ईमान से।
दाग़ वो बेदाग़ जो ना धोती अगर।
जागता हूँ नींद में और ख्वाब में।
लगती भले आंखें मेरी सोती अगर।
मैं फरिश्ता हो गया होता "सोहल"।
अकीदत तुम्हे इश्क में होती अगर।
विपिन सोहल
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न मंजिल है न , है कोई सफर अब।
न पाने का है न, खोने का डर अब।
क्या हम कहें औरो का क्या हाल है।
रहती नहीं हमें खुद की खबर अब।
चलो उनको अपना ठिकाना मिला।
किसी तरह जिन्दगी होगी बसर अब।
वादा है तुमसे न तुमको चाहेंगे हम।
शर्त हैं ख्वाबों में न आना मगर अब।
उनसे बडी मुश्किलों से हुई दोस्ती।
जमाना हुआ है, दुश्मन मगर अब।
मै क्या करूँ जिक्र उनके सितम का।
क्या हाले दिल क्या हाले जिगर अब।
पी गया हूँ गमों गुस्सा मै सब्र करके।
पीने को खाली बचा है ज़हर अब।
विपिन सोहल
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कितना हसीन और मुबारक है दिन।
आज दोनों जहाँ क्या महकने लगे हैं।
राज़ की बात मत पूछिए दिल से कुछ।
बन के अरमान , पंछी चहकने लगे हैं।
है फूलों की रंगत, बड़ी खुशनुमा सी।
हवा चल रही है, कि हो दिलरुबा सी।
रोके रुके न कैसी अजब सरसराहट।
ताल में ढल के घुंघरू छनकने लगे हैं।
सजी संवरी क्या सूरत मेरे सामने है।
अभेदी है मुस्कान जाने क्या मायने हैं।
मुखड़े पे लो आ गयी हंसी रोशनी सी।
बैरी पायल के घुंघरू खनकने लगे हैं।
कूक कलरव कहीं, कहीं चहचहाहट।
ठंडक मे भाती हैं धूप की गुनगुनाहट।
महीनों से पडे थे घर में सिकुड़े बेचारे।
आज उनके भी चेहरे चमकने लगे हैं।
विपिन सोहल
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तुम्हारा खत यूं सम्हाल कर रक्खा हुआ है।
जख्मे जिगर ज्यों पाल कर रक्खा हुआ है।
लगाया तुमने जिससे मेरे जख्मों पे मरहम।
मैंने वह कांटा निकाल कर रक्खा हुआ है।
यूं पूछते हैं कि तुम अब मुस्कुराते क्यों नहीं।
आंखों में समन्दर उबाल कर रक्खा हुआ है।
अब वही जाने कि उनके दिल मे छुपा क्या।
हमनें ये कलेजा निकाल कर रक्खा हुआ है।
मुझको किसी सूरत अब अफसोस न होगा।
उसने तो सिक्का उछाल कर रक्खा हुआ है।
जो घर की दहलीज छोड कर आए थे तुम।
उसी पर हमनें दिया बाल कर रक्खा हुआ है।
जो हंस रहे थे बीच शहनाईयों के उस पल।
उन्होने अब घूंघट निकाल कर रक्खा हुआ है।
क्या करेगी कल ये दुनिया जल रही है जब।
सिर्फ हाथों में हाथ डाल कर रक्खा हुआ है।
है नसीहत को ये पुतले देख कुछ डरो सोहल।
तूफान शीशे मे पिंघालकर कर रक्खा हुआ है।
विपिन सोहल
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अपने आप से जब कुछ सवाल करता है ।
हकीकत में दिलका बडा मलाल करता है।
डुबा के लिखता हूँ हर्फ को दर्द जख्मों में।
लोग कहते हैं कि शायर कमाल करता है।
जब कहा मैंने के आओ जरा मिल के चलें।
कह रहे रहनुमा के तु क्यों बवाल करता है।
मिला के आग को पानी मे जब बरसता है।
बन के बादल मेरा साहिब धमाल करता है।
हैरान हूँ खिला के फूल सेहरा मे दरिया में।
किस तरह से वो रौशन जमाल करता है।
विपिन सोहल
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घूंघट में छुपा, चंदा जैसा। मुखड़ा है तेरा सोने जैसा।
एक बार तेरा दर्शन हो तो। उड जाए है , नीदं मेरी।
चाल चले घुंघरू छनके। मोती बाटे उन्मुक्त हसीं तेरी।
एक बार तेरा दर्शन हो तो। उड जाए है नीदं मेरी।
गालों का रंग गुलाबी है। बालों की घटा शराबी है।
उफन रही नदिया में जैसे। यौवन ने आग लगा दी है।
मेरी रातो का सपना सच। हो कर हो जाओ मेरी ।
एक बार तेरा दर्शन हो तो। उड जाए है नीदं मेरी।
विपिन सोहल
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हरेक साल वही फिर गुनाह करते हैं।
फिक्रो- गम में जिन्दगी तबाह करते हैं।
बेपत्ता हो जो शजर तो पहचानते नहीं।
ऐसे दरख्त पे कहां पंछी पनाह करते हैं।
उनकी बनती ही नहीं है फूलों से कभी।
ये हमीं हैं जो कांटों से निबाह करते हैं।
सरे बाजार मिले सनम हंसते हमीं पर।
भूले वो इश्क जब से निकाह करते हैं।
हम पे असर कैसा है तेरी सोहबत का।
तुम ही तुम हो जिधर निगाह करते हैं।
विपिन सोहल
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जिनकी चाहत में तडपता रहा उम्र भर।
जिनकी खातिर, मेै इतना परेशान था।
इस कहानी पे मेरी गजल गाने वाले।
उस जवानी पे मेरी रहम खाने वाले।
अब सभी पूछते हैं मेरी कब्र से यह।
मौत से इतनी जल्दी भी क्या काम था।
जिनकी चाहत में तडपता रहा उम्र भर।
जिनकी खातिर, मेै इतना परेशान था।
था न इतना यकीं, धोखा इतना हसीं।
रेशमी फन्द में जाके जां थी फंसी ।
मैंने समझा था जिसे खुशियों की लडी।
वो मेरी मौत का ही तो सब सामान था।
जिनकी चाहत में तडपता रहा उम्र भर।
जिनकी खातिर, मेै इतना परेशान था।
विपिन सोहल
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गिरा बडा है वकार, जब जब झुकी कलम है।
कहाँ बचा है मयार, जब जब बिकी कलम है।
हौसलो के हर्फो में, हिम्मत की लिखावट है।
थके थके हम यार, जब जब थकी कलम है।
तहरीर ने लिखे है यहां, तहरीक के अन्जाम।
रुके हैं सिलसिले के जब जब रुकी कलम है।
लिखे हैं दर्द भरे जाने, ये कितने ही अफसाने।
हंसी की बरसात हुई ,जब जब हंसी कलम है।
इसकी कुर्बानियों के सिलसिलो की हद नहीं।
फूंक दी जान वतन मे जब जब फुंकी कलम है।
विपिन सोहल
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पिता से मिला जीवन
शरीर प्राण और मन
पालन पोषण शिक्षा
ज्ञान मान और धन
पिता जीवन प्रकाश
पिता अमित विश्वास
पिता हाथ ईश्वर का
पिता एक पूर्वाभास
पिता अमृतम कलश
ऐश्वर्य सब पितृ वश
पिता अद्वितीय प्रिय
सदैव वसति पुत्र हिय
समान अनुपम नयन
पिता शत - शत नमन
विपिन सोहल
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अजब सी ठंडक हवाओं में हैं।
मिजाजे़ - मौसम बदल रहा है।
है धडकनों में ये कैसी दस्तक।
करारे दिल क्यों मचल रहा है।
तुम्हारी आंखें, तुम्हारा चेहरा।
गुलाबी गालों पे है शर्म पहरा।
सम्हालो फिसला है ये दुपट्टा।
न तुमसे ये क्यों संभल रहा है।
तुम्हारी यादों के आईने में ।
हजारों मौसम हैं दिल्लगी के।
तड़पते साहिल की गोदियों में।
बरसता सावन उछल रहा है।
विपिन सोहल
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बूंदों में बरसातो मे इन काली ठंडी रातों में।
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।
सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।
जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।
वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।
नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।
विपिन सोहल
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हथेली पे फिर शौक से जान रख।
थोड़ा सा सब्र और इत्मीनान रख।
कोई शै नही दूर रहें पावं जमीं पे।
निगाहों में चाहे तो आसमान रख।
जन्नत कहां अगर जो नहीं है यहाँ।
तू बस एक ख्यालों में अमान रख।
नंगी है तो कभी एतबार न करना।
साथ में ही तलवार के मयान रख।
ना कुछ न छिपेगा लाख छिपा ले।
तू सच्चा करम सच्चा बयान रख।
दोस्त को ये दुश्मन बना सकती है।
सोच ले फिर तोल कर जबान रख।
माना कि मुश्किल ठहरना हवा में।
हैं शर्त इरादों के आगे उडान रख।
किससे निभेगी छोड तुझे सोहल।
ऐसे नामुराद का ना अरमान रख।
विपिन सोहल
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क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने।
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था।
पडोसी सभी थे भाई। मुश्किल घड़ी जो आई।
हर आदमी खडा था। अहसान क्या बडा था।
बाहर न घर में डर था। हरेक को फिकर था।
हर आदमी सिपाही। हर शख्स पासबां था।
मेहनतो की थी कमाई। स्वादों सुकूं से खाई।
चैन की नीदं सोकर। हर कोई बादशाह था।
रातों को घर अंधेरे थे। पर उजले बडे सवेरे थे।
चेहरे थे खिलखिलाते। कोई नहीं खफा था।
मगर अब
क्यों घर वो सब पुराने। यूं अब तोडे जा रहे हैं।
प्यार और मुहब्बत। सब क्यूँ छोडे जा रहे है।
कोई नहीं यकीं हैं। और कोई नहीं अकीदा।
हर आदमी है समझे। खुद ही को बस खुदा है।
ये कैसी तरक्की है। और ये कैसा जमाना है।
हर चेहरा अजनबी है। हर शख्स बेगाना है।
कहने को भीड़ है। पर कोई मेरा यहाँ नहीं है।
हर आदमी है तन्हा। के हर शख्स अलहदा है।
अरमां की न कीमत। हर दिल तो बेवफा है।
कहने की मौज है। लेकिन हर चीज़ बेमज़ा है।
क्या सोच घर से निकले। और क्या मिला है।
ये वक्त काटना है या कि जीना कोई सजा है।
क्या दिन थे वे सुहाने। थे गुज़रे जो दिन पुराने।
मुहब्बत का वो जहाँ था। हर आदमी भला था।
विपिन सोहल
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न मुंह से कुछ कह पाया, न कागज़ पे लिख पाया।
चराग ए इश्क यूं दिल का, जल पाया न बुझ पाया।
गुमां उनका न सर से उतरा, न हम गैरत गवां पाये।
एक हैरान है दिल अपना, न रो पाया न हंस पाया।
ख्वाबों ख्यालों की दुनिया का एक खोया शहर हूँ।
बयानी है करते निशां यूं, उजड़ पाया न बस पाया।
सजा़ क्या खूब की है तजवीज गुनाह ए इश्क की।
अजब हालत है मुल्जिम, न मर पाया न बच पाया।
मुकम्मल हो सकती थी दास्ताने मुहब्बत हमारी भी।
कहीं तुम लड़खड़ाए, और कहीं पर मै न चल पाया।
विपिन सोहल
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कुछ और भी सामां थे जिन्दगी के वास्ते।
क्यूँ दिल जला रहे हो रोशनी के वास्ते।
नफरत का जहर दिल में क्यूँ भर लिया।
खुद ही को मिटा रहे हो दुश्मनी के वास्ते।
माना के खो गई है बचपन की वो हंसी।
मुस्कुरा लिया करो कभी खुशी के वास्ते।
मरते थे जिनपे तुम वही निकले हैं बेवफा।
जी भी लिया करो कभी किसी के वास्ते।
मायूस जिन्दगी ने नाकाम मुहब्बत में।
दुनिया ही छोड़ दी मैकशी के वास्ते।
ठोकरें भी खाके मुझे कभी अक्ल न आई।
बेजा़र है दिल बेरहम अजनबी के वास्ते।
हुस्न का है समन्दर चारों तरफ सोहल।
मयस्सर नहीं दो बूँद तिश्नगी के वास्ते।
विपिन सोहल
स्वरचित
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खुश हो कर त्योहार मनाने से पहले।
कुछ सोचो घर द्वार सजाने से पहले।
देखो भाई बिन क्या तन्हा जी पाओगे। अपने आंगन मे दीवार उठाने से पहले।
मन को रोशन कर लेते खुशियों से।
तुम दीपक दो चार जलाने से पहले।
फिक्र जरा होती अपनों की गैरों की।
खुद को लम्बरदार बनाने से पहले।
अदब और कायदा तुम भूल गए हो।
इस बर्बादी को यार बनाने से पहले।
थोड़ा सा किरदार बना लेते अच्छा।
तुम बंगले मोटर कार बनाने से पहले।
हम पर हंसने वालों कोई बात नहीं।
तुमसे हमें है प्यार जमाने से पहले।
अभी बहुत लम्बा रस्ता दूर है मजिंल।
जरा सोच कदम चार उठाने से पहले।
तौल के अपना दिल देख कभी लेना।
सबको झूठा मक्कार बताने से पहले।
आज दहन करले द्वेष मन के सोहल।
ये झूठे पुतले हर बार जलाने से पहले।
विपिन सोहल
बहुत आदत है मुस्कुराने की।
क्या अदा है हमें सताने की।
जब भी चाहो तो जान ले लेना।
करो न कोशिश यूं आजमाने की।
जब से देखा है नींद रूठ गई।
क्या सजा है ये दिल लगाने की।
शर्म से चांद छुपा है बदली में।
है कोई हद ही नहीं बहाने की।
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हैरान सुन के दास्तां यूं हो गया कोई।
दर्द मेरे दिल का था और रो गया कोई।
दिखला के झलक ऐसे खो गया कोई।
गायब मेरी नजरो से कैसे हो गया कोई।
करवटे बदल कर कटती नहीं हैं रात।
मुझको जगा के जैसे के सो गया कोई।
सूखती नहीं नमी पलकों की है मेरी।
आखों में मेरी जैसे अश्क बो गया कोई।
बिजली थी बादल के काली घटा थी वो।
रात भर बरसा यूं मन के धो गया कोई।
विपिन सोहल
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सर के बल चलके हम जरूर आते।
तुम्हीं ने कोशिश न की बुलाने की।
चलो आएंगे कभी मिलने को मगर।
क्या भला उम्र है गुल खिलाने की।
नेक- नामी है बहुत सरमाये को।
अगर है बात जो कुछ कमाने की।
हर मासूम पे इल्जाम है सोहल।
यह रवायत है इस जमाने की।
विपिन सोहल
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