ऊषा सेठी





 29-01-2020
विषय:-ऋतुराज
विधा :-ताटंक छंद

प्रखर बोल बोली कोयलिया , चकित हुआ मन है मेरा ।
महकी मंजरि से बौराई , डाल लिया वन में डेरा ।।

हवा बसंती वन में पहुँची , पिक अगुवानी में गाये ।
दहक उठें किंशुक वन के जब , ऋतुओं की रानी आये ।।

पुष्प खिले ऋतुराज देख कर , दूब धूप में मुस्काई ।
खिले देख डैफोडिल गेंदा , पीली सरसों हर्षाई ।।

पंछी बजा रहे मंजीरे , सुनते सुर उनके न्यारे ।
पंखों में सुरताल आ गया , वाद्य बजाते हैं सारे ।।

लगे गूँजने भौंर तितलियाँ ,मानों चारण हों गाते ।
तरु शिखरों पर फुनगी हँसती , देखा मनसिज को आते ।।

शोभा अनंत चहुँदिशि छाई , मंजरि आमों पे झूले ।
जंगल में महुआ गदराया , भँवरे गलियों को भूले ।।

शीत ऋतु अवसान है करती , वर्षा फिर भी आ जाती ।
बढ़ जाती ठिठुरन न्यून सी , ऋतु बसंत है छा जाती ।।

पंचमी को माँ शारदा की , ऋतुराज करे है पूजा ।
रंग बिरंगा पुष्प ग़लीचा , बिछाये न कोई दूजा ।।

वीर चूम कर फंदा गाते , रंग दे बसंती चोला ।
ऋतु बसंत ने अमर प्राण में , केसरी रंग था घोला ।।

फूल फूल चहुँदिशि में दिखते , मन मधुबन सा हो जाता ।
दिखती समरसता कुदरत में , मन निधिवन में खो जाता ।।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा 

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27-01-2020
विषय:-पीड़ा/व्यथा
विधा :- ताटंक छंद ( द्वितीय प्रस्तुति )

छलक रही है आँसू गगरी , पूछ रही कब आओ गे ।
फड़क रहे हैं अंग बाहिनें , जल्दी कंठ लगाओ गे ।।

तुम बिन मैं तो हुई बावरी , पीड़ा बहती आँखों से ।
दिखे नहीं बहती यह नदिया , विह्वल सूखी आँखों से ।।

नित्य देखती पंथ तुम्हारा , बरगद के नीचे जाती ।
गाते थे दोनों झूले पर , गीत अकेली हूँ गाती ।।

आती नीचे देख पक्षिनी , ढाढ़स मुझे बँधा देती ।
रक्तिम फल बरगद के चुन कर , मुझको फुदक खिला देती ।।

देख अभिसार चाँद चाँदनी , ईर्ष्या से जल मैं जाती ।
निशा विरहिणी मुझे देख कर , रोक न आँसू है पाती ।।

अश्रु पंक तन मैला करता , पद्म न विकसित मन का होता ।
प्रेम बीज दलदल में मरते , व्यथित हृदय रहता रोता ।।

शीघ्र लौट के आओ प्रीतम , करो विलम्ब नहीं प्यारे ।
बरस बरस के रिक्त न होते , मेघ नयन के ये कारे ।।

अपने तन की शरशैया पर , तुम बिन रहती हूँ सोई ।
यादों की तस्वीरें धुँधली , उनमें रहती हूँ खोई ।।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा

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20-12-2019
विषय:- जीवन शैली
विधा :-दोहा

कल क़िसने देखा यहाँ , करो आज ही काम ।
कौन यहाँ है जानता , कब होये विश्राम ।।१।।

बाल्यकाल से भक्ति का , दीप जगे मन द्वार ।
सत्कर्मों के तेल से , सदा रहे उजियार ।।२।।

अनुशासन शैली बने ,करता जीव विकास ।
स्वस्थ रहे तन मन सदा ,कभी न होये ह्रास ।।३।।

भोग करे जब त्याग से , रहता जीव निरोग ।
करे योग पालन सदा , दूर भागते रोग ।।४।।

यथायोग्य आदर करें , दे सबको सम्मान ।
सुनियोजित परिवार हों , करे देश उत्थान ।।५।।

जीवन शैली हो सरल , होता नहीं विषाद ।
सहज सरस मुस्कान मुख , देती है आह्लाद ।।६।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा

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01-11-2019
विषय:-प्रार्थना
विधा :- विजात छंद
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करें हम प्रार्थना सारे ,
रहें मिल जुल यहाँ सारे ।
दया सब पर करें भगवन ।
बने ख़ुशहाल ये जीवन ।

नहीं झगड़ा करे कोई ,
बुरा मज़हब नहीं कोई ।
जहाँ विश्वास हो जिसका ,
वही दिखता खुदा उसको ।

करें सब प्रार्थना ऐसी ,
सुने ईश्वर वहाँ वैसी ।
बड़ी कल्याणकारी हो ,
वही आह्लादकारी हो ।

भगायें हम ग़रीबी को ,
बुलायें खुश नसीबी को ।
मसीहा बन सभी जायें ,
सभी ख़ुशियाँ सभी पायें ।

पढ़ें बच्चे यहाँ सारे ,
नहीं वो जिंदगी हारे ।
उठायें बोझ ख़ुद अपने ,
करें सब पूर्ण सब सपने ।

सवेरा प्रार्थना से हो ,
निशा भी अर्चना से हो ।
करें हम काम लोगों के ,
रहें हम दूर रोगों से ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा


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19-9-2019
विषय:-पलकें
विधा :- कुण्डलिया

पलकें शबरी की बिछीं , प्रेम पंथ की राह ।
आएँ गे श्री राम जी , तीव्र मिलन की चाह ।।
तीव्र मिलन की चाह , पंथ में पुष्प बिछाए ।
आए जब श्री राम , चखे फल बेर खिलाए ।
सुनकर नवधा भक्ति , प्रेम में सिमटी ढल के ।
दिया मोक्ष का धाम , बिछी देखी जब पलकें ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


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18-9-2019
विषय :- वीर रस
विधा:- ताटंक छंद

बहता वीर रस हुँकारों से , भारती के सपूतों का ।
शत्रु की छाती को चीरते , प्रलयंकारी दूतों का ।।

रक्तिम आँखें शस्त्र हाथ में , डटे वीर सीमाओं पे ।
झेल के सीनों पर गोलियाँ , जूझें उलट हवाओं से ।।

शस्य श्यामला करे सदा ही , गुणगान शूरवीरों के ।
सुरभित होते घाव पुष्प खिल ,मिट्टी में इन धीरों के ।।

सीमा की वे चिंता करते , चिंता ना परिवारों की ।
करता है रस वीर प्रशंसा , डटे मृत्यु से यारों की ।।

सैनिक सोता भी है सुनता , रणभेरी ही कानों में ।
शान तिरंगे की नैनों में , ले सोता तहखानों में ।।

नमन भारती माँ है करती , मृत्यु के अलंकारों को ।
सरहदें अभिमान है करती , वीर सिपहसालारों को ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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आज हिंदी के महान रवि सम सितारे आदरणीय बालमुकुंद गुप्त जी का अवसान हुआ था । विनम्र श्रद्धांजलि :-
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गुडियानी के गाँव में , जन्मा हिंदी लाल ।
हिंदी परिमार्जित करी , अद्भुत किया कमाल ।।
अद्भुत किया कमाल , लिखा हरिदास , खिलौना ।
सोते बालमुकुंद , उर्दू को कर बिछौना ।
गोरों को ललकार , कहा मत खा बिरियानी ।
अंग्रेज़ों को पत्र , लाल लिखता गुड़ियानी ।
✍️
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा

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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹14-9-2019
विषय:- हिंदी दिवस
विधा :-पद्य

हिंदी का सिंहासन हिमाद्रि ,
और पग पखारता है सिंधु ।
माथे का चंदन मलयाचल ,
सोहे है शीश पर रवि बिंदु ।

जन -जन की वाणी है हिंदी ,
अरु भरा है इसमें माधुर्य ।
गुणवता छुपी है शब्दों में ,
अर्थों में श्लेष का प्राचुर्य ।

सम्प्रेषण करती भावों का ,
वंदनीय भाषा है हिंदी ।
मात्राओं के भूषण पहने ,
माथे पर सूरज सम बिंदी ।

जब गीत फूटते हैं मन के ,
देती है भाषा धार उसे ।
हृदय के उमड़ते भावों को ,
निज भाषा दे शृंगार उसे ।

सूर , तुलसी , केशव अभिमान
रहीम बिहारी घना रसखान ।
कितने सपूत माँ हिंदी के ,
बढ़ाते हैं जो इसकी शान ।

जनक खड़ी के हैं भारतेंदु ,
महाप्राण दिनकर अरु प्रसाद ।
हिंदी का है गौरव इनसे ,
करे साहित्य ये शंखनाद ।

परदेश में पहचान मिलती ,
सहोदरी का भास दिलाती ।
इस से जन्मी सब भाषाएँ ,
माँ जननी को शीश झुकाती।

राजनीति के गलियारो में ,
अस्मिता को नहीं खोने दो ।
हिंदी के विस्तृत आँचल में ,
सब भाषाओं को होने दो ।

सीमित फ़ाइलों तक न रखिए ,
इसके प्रवाह को बहने दो ।
वर्चस्वी भाषा कवियों की ,
इसको गरिमामय रहने दो ।

हिंदी है भारत की बोली ,
विश्व तक इसे पनपने दो ।
देश के भाल की बिंदी को ,
सुंदर साकार से सपने दो ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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विषय:-बंजर / रेगिस्तान
विस्तृत है मरुथल पीडा का ,
दिखता नहीं कोई मरुद्यान ।
मिलन बना रहता मृगतृष्णा ,
विरह का दुस्तर रेगिस्तान ।

मन विरहिण का बन कर सिकता ,
रैन दिवस ही उड़ता रहता ।
विरह किरकिरी चुभे आँख में ,
रक्त टपक के रहता बहता ।

रक्त रंग आँसू विरहिण से ,
दहके किंशुक वन प्रांतर में ।
ताप दग्ध है विरह वेदना ,
मरुथल उगता अभ्यंतर में ।

अँसुवन जल से रोज विरहिणी ,
मनोभूमि का सिंचन करती ।
खिलती नहीं हृदय शेफाली ,
मन को व्यथा अकिंचन करती ।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा

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09-9-2019
विषय:-संदेश
विधा :- दोहा

लुप्त हुई संवेदना , वृद्धाश्रम को खोल ।
देव तुल्य माँबाप के , रिश्ते हैं अनमोल ।।१।।

भ्रातृ भाव हो देश में , बने एक परिवार ।
वैमनस्य सब ख़त्म हों , रखें उच्च संस्कार ।।२।।

नारी का घरबार में , करें सभी सम्मान ।
हत्या कन्या भ्रूण की , मत करिए श्रीमान ।।३।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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20-7-2019
विषय:-नटखट बचपन / नटखट बुढ़ापा ( बाल कविता )
विधा :- पद्य

दादी दादी मैं भी अपनी ,
गुड़िया का ब्याह करुँ गी ।
गुड्डा लेकर आए गी राधा ,
स्वागत बारात मैं करूँ गी ।

सुनते ही गुड़िया के ब्याह की ,
दादी को सब याद आ गया ।
साठ वर्ष पीछे जा पहुँची ,
ब्याह रचाना याद आ गया ।

जा पहुँची दादी बचपन में ,
लाठी दूर चला कर मारी ।
पहले मुझे दहेज दिखा दे ,
फिर खाने की करें तैयारी ।

हैरानी से बहू ने देखा ,
करते सासु को सब तैयारी ।
गुड्डा देखा जब घोड़े पर ,
आई बिजली सी होशियारी ।

चलो चलो सब द्वार पे पहुँचो ,
दादी ने की बारात अगुवानी ।
राधा और बाराती भौचक्के ,
जाए नहीं उनकी हैरानी ।

पहले रिबन दूल्हा काटे गा ,
फिर चम्पा दूल्हे पर वारे पानी ।
दादी गुड्डे से रिबन कटवा कर ,
पोती को कहती पी ले पानी ।

गुड्डे गुड़िया को वरमाला पहना ,
दादी पीट रही थी ताली ।
नाच उठी थी दादी ब्याह में ,
व्हील चेयर रखी थी ख़ाली ।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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20-7-2019
विषय:-नटखट बचपन / नटखट बुढ़ापा
विधा :- पद्य

जब आती है वृद्धावस्था ,
नटखट मन पर लगता ताला ।
दादी जी जब करें शरारत ,
बहू मारती व्यंग का भाला ।

नहीं सोचते वो भी इक दिन ,
होंगे बूढ़े और लाचार ।
तरसे गी बचपन को वय तब ,
होंगे बूढ़े पर नहीं बीमार ।

मन जब बचपन में लौटता ,
बुढ़ापा स्मरण नहीं रहता है ।
नटखट बचपन की स्मृतियों की ,
खिड़की खोल कुछ कहता है ।

शाखामृग बन जाता नटखट ,
स्मृतियों की शाखाएँ झूलता ।
सब बच्चों की सब शरारतें ,
बूढ़ा नटखट बन के भूलता ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
03-7-2019
विषय:-बूँद
विधा :-दोहा

बूँद धरा पर लिख रही , प्रेम भरा अनुबंध ।
मिट्टी में चाहे मिलूँ , बना रहे सम्बन्ध ।।१।।

पद्म पत्र पर दीखती , बूँदे हीरक हार ।
मनहुँ लटक लड़ियाँ करें , पुष्पों का शृंगार ।।२।।

सुन बरसी बूँदे धरा , गज पयोद चिंघाड़ ।
महाकाव्य फिर प्रेम का , लिख देता आषाढ़ ।।३।।

हरित दूब पर बूँद गिर , करवाती आभास ।
क्षण भंगुरता जीव की , ओस करे परिहास ।।४।।
✍️
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


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30-6-2019
विषय:- सरिता सिंधु मिलन
विधा :- चतुष्पदी छंद


गिरि शिखर से उतर कर , मिलन स्वर को मुखर कर , प्रेम से है गा रही , मिटे गी अब दूरियाँ ।
हृदय भरी उमंग है . साँसों में तरंग है , आशा किरण गा रही , होगी न मजबूरियाँ ।।

मिलन के अतिरेक से , उदार सिंधु नेक से , कंटकाकीर्ण पथ पर ,गाती है सुहासिनी ।
दिखे है उत्कंठिता , विरह से है कुंठिता , तटों को है तोड़ती , दिखे बनी विलासिनी ।।

अहिनिशि हृदय गंतव्य , करती स्पष्ट मंतव्य , उच्च कलकल नाद से , मन के भेद खोलती ।
बहती नदी निर्बाध ,हृदय प्रेम है अगाध , सारी रात जाग के , मीठे छंद बोलती ।।

सहे सूरज का ताप , अरु प्रभंजन संताप , प्रेम पथ पर हो अडिग , पत्थरों पर बहे सहे ।
सरिता सिंधु की प्रीत , शाश्वत प्रेम की जीत , हृदय उर्मि प्रमोद से , कलोलिनी बहे कहे ।।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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विषय:-इंद्रधनुष
विधा:- दोहा

इंद्र देव के द्वार का , इंद्र धनुष आकार ।
लोग धरा के देखते , देवलोक साकार ।।१।।

झूलें सुर तिय गगन पर , दिया हिंडोला डाल ।
सतरंगी हैं डोरियाँ , दिखती बहुत कमाल ।।२।।

अंतरिक्ष में ब्रह्म है , इंद्रधनुष का रूप ।
मन की आँखें देखती , उसका यह अपरूप ।।३।।

इंद्रधनुष नभ पर बना , रहस्य देता खोल ।
सात रंग ब्रह्मांड के , कहते ईश खगोल ।।४।।

इंद्रधनुष की सूर्य ने , पींग गगन दी डाल ।
धरा लोक हैरान है , देख गगन की चाल ।।५।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055

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25-6-2019
विषय:-मोबाइल
विधा :- कुण्डलिया
( १ )

सब मोबाइल से दुखी ,फिर भी नहीं बेकार ।
रिश्ते सारे खा गया , रहता भूत सवार ।।
रहता भूत सवार , बनी दुनिया आभासी ।
पति पत्नी भी दोउ , बने इसके अधिवासी ।
नित होते अपराध , लोग इसके क़ायल अब ।
ले ले चाहे जान , रहें पकड़े इसको सब ।।
( २ )

लेना दूभर हो गया , मोबाइल बिन श्वास ।
मोबाइल का छोड्ना , दिखता है बनवास ।।
दिखता है बनवास , निरर्थक जीवन होता ।
सरै न कोई काम , बिना इसके जग रोता ।
शानदार ये खोज , नहीं दे सकते देना ।
लगी हुई है होड़ , कौन सा मॉडल लेना ।।
( ३ )

बातें करते रात तक , लगा प्रेम का रोग ।
मोबाइल कारण बना , प्रेम बना उद्योग ।।
प्रेम बना उद्योग , युवा बनते अपराधी ।
मुश्किल ही है रोक , ग्रस्त है पीढ़ी आधी ।
बूढ़े और जवान , गुज़ारें इस पर रातें ।
रख सिरहाने फोन , करें बिस्तर में बातें ।।
( ४ )

छोटी दुनिया हो गई , दूर नहीं परदेश ।
बिन पैसे के हो रहे , व्हाट्सएप संदेश ।
व्हाट्सएप संदेश , फोन से रहते करते ।
सूचना का प्रसार , सभी मोबाइल करते ।
बीवी रहे नकार , लगे भद्दी अरु मोटी ।
हरदम करते बात , लगे दुनिया है छोटी ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055

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21-6-2019
विषय/- योग
विधा :-सरसी छंद

करें संकल्प योग दिवस पर , नित्य करें गें योग ।
खेल अनूठा ये साँसों का ,दूर करे सब रोग ।।१।।

मानव मन जब अस्थिर होए , विचलित होए श्वास ।
करे प्राणायाम नित आदमी , हो सेहत का भास ।।२।।

योग पतंजलि का होय सफल , , करो योग अभ्यास ।
अन्तर मन में जो घट रहा , करिए उसमें वास ।।३।।

योग साधना जब करनी हो , मन को करो फ़क़ीर ।
योग में चाहिए दो वस्तु ही , मन के संग शरीर ।।४।।

करे उपचार नहीं औषधी , भोग रहें हों रोग ।
तन अंदर की निष्क्रियता को , बतला देता योग ।।५।।

सूर्य नमस्कार जो मित करे , होते दूर विकार ।
योग उपकरण देह शुद्धि का ,करे रोग उपचार ।।६।।

लाखों लगी बीमारियों का , एक योग उपचार ।
इसके नित्य के अभ्यास से , रहें नहीं बीमार ।।७।।

इक्कीस जून को योग दिवस , मना रहा संसार ।
विश्व योग से भोग करे तो ,लोग न हों बीमार ।।८।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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16-6-2019
पितृ दिवस

जब जीवन में आँधी आती , बाबा तुम्हीं बचाते ।
मंदिर क़ाबा दिखता तुम में , जब थे कुछ सिखलाते

ज्वर हल्का सा मुझको आता , नहीं रात भर सोते ।
उठ उठ मुझे दवाई देते , पास हमेशा होते ।
मेरे सिर पर हाथ फेर के , पूरा लाड़ लडाते ।
मंदिर क़ाबा दिखता उनमें -------

ग़ालिब मीर सुनाते मुझको , सब थे याद ज़ुबानी ।
देती शायरी इक़बाल की , जिंदगी को रवानी ।
निर्धनता में नाम कमाना , शेरों से बतलाते ।
मंदिर क़ाबा दिखता तुम में ------

करती रहती रोज प्रार्थना , बाबा मिलने आओ ।
समय आखिरी आया मेरा , मुझको राह दिखाओ ।
वही बालिका नन्हीं सी हूँ , अँगुली पकड़ चलाते ।
मंदिर क़ाबा दिखता तुम में -----------

तरस गई हूँ उन फूलों को , कलियाँ जो तुम लाते ।
पुलकित नैन देख कर मेरे , कितने खुश हो जाते
बालों में यह नहीं टाँकनी , कहकर खूब चिढ़ाते ।
मंदिर क़ाबा दिखता तुम में ----

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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08-6-2019
विषय:-नीम
विधा :- कुण्डलिया

झूला डाला नीम पर , सावन में पी संग ।
खिलाते पी निबौरिया , मधुर प्रेम के रंग ।।
मधुर प्रेम के रंग , निबौरी मीठी लगती ।
स्वर्णिम मीठी पीत , खिला सैयाँ को ठगती ।
झूले का वह प्रेम , नहीं अब तक है भूला ।
चढी प्रेम की पींग , भूलते कभी न झूला ।।


पी पिरोई निबौरियाँ , कंठ सजाया हार ।
देख सखी बौरा गई , अद्भुत ये मनुहार ।।
अद्भुत ये मनुहार , प्रेम को दुगुना करते ।
श्वेत नीम के पुष्प , माँग तारों सम भरते ।
रहे निबौरी याद , खिलाई प्रेम भिगोई ।
रहती कंठी याद , पिया की प्रेम पिरोई ।।


खाओ छील निबौरिया , रखिए तन नीरोग ।
पुष्प गुच्छ पत्ते सभी , करिए खूब प्रयोग ।।
करिए खूब प्रयोग , चर्म रोग नहीं रहते ।
रहें दाँत मज़बूत , वैद्य सारे हैं कहते ।
देख नीम के लाभ , पेड़ तुम यही लगाओ ।
करे पित्त को शांत , निबौरी रहते खाओ ।।

आँगन आँगन नीम है , सुंदर लगते गाँव ।
बूढे हुक्का पी रहे , बैठे उसकी छाँव ।।
बैठे उसकी छाँव , समय को बुरा बताते ।
नए दौर को देख , शर्म से मरते जाते ।
दातुन लेते काट , नीम की देखें छाँगन ।
चलो उगाएँ नीम , रिक्त दिखता जों आँगन ।।

दादी दातुन के कहे , होते लाभ असीम ।
कभी नहीं हो दंत क्षय , करिए दातुन नीम ।।
करिए दातुन नीम , स्वस्थ रखती दाँतों को।
करे उदर कृमि नष्ट , स्वच्छ करती आँतो को ।
करते नीम प्रयोग , पहनते जो हैं खादी ।
बनते ।
रहें स्वस्थ नीरोग , सदा कहती है दादी ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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22-4-2019
प्रथम वर्ष गाँठ पर शुभ कामनाओं को हृदय से सम्प्रेषित करते हुए अपने असीम स्नेह की अभिव्यंजना ।
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" पिरोते रहो ये भावों के मोती ,
निराला धरा पर यह परिवार होगा ।
रहें गे खिले पुष्प रंग बिरंगे
मौसम हमेशा ख़ुशगवार होगा ।
भावों की वाटिका में रहती सदा ही
ऋतुराज से सजी ऋतु बसंत
वीणा के मधुर सुरों से चुराकर
वनप्रिय भगाती है ऋतु हेमन्त ।
दीये नेह के जला कर है रखती
हृदय मोतियों से सजा कर है रखती
सम्मोहन की विद्या ये जानती है
मर्यादा निभाना ये जानती है
मीठे बोलों की मरहम
लगाना ये जानती है
पूर्णिमा से रहता यहाँ पर उजाला
मनोभावों से करती मतवाला ।
नवल विद्वान कोविद नगीना
सुसंस्कृत भाषा का स्रोत रसभीना
राठौर से मंच की शान है
रोबदार नाम से मंच की आन है
योगदान सबका है अति सराहनीय
वीणा ऋतुराज दोनों सम्माननीय ।""
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
भावों के मोती एक अनुपम वाटिका है जिसमें भावों के मोती अंकुरित होते हैं और रंग बिरंगी काव्य विधाओं के पुष्प प्रफुल्लित होते हैं , हृदय वाटिका सदा सुरभित रहती है । यह वह गहरा समुद्र है जिसमें अनमोल मोतियों के ख़ज़ाने साहित्यकारों के रूप में भरे हुए हैं जो सामाजिक उत्थान में मील का पत्थर साबित होंगे जिनको पढ कर कई लोगों को जीने की कला आ जाए गी ।
कम उम्र में जहाँ लोग कदम रखने में डगमगा जाते हैं वहाँ यह कम आयु के पुरोधा आदरणीया वीणा शर्मा वशिष्ठ जी और आदरणीय ऋतुराज दवे जी लोगों की अँगुली पकड के राह दिखा रहे हैं ।
दिन रात अथक भरसक प्रयास से मंच को अर्थात भावों के मोतियों की आब चमकाने में रत हैं ।
इनके भावों के मोती स्नेह दीप बन कर लोगों के दिलों का अँधकार दूर कर रहे हैं मंच एकनिष्ठा से एक वृहद परिवार के रूप में पल्लवित हो गया है यह एक ताम्र लाल पुष्पों का किरीट पहन कर एक वटवृक्ष है जिसकी शीतल छाया के नीचे बैठ कर हमें प्राण ऊर्जा प्राप्त हो रही है । जीवन की आपाधापी में मन और आत्मा का मिलन करा देता है । बेसब्री से मन विषय की प्रतीक्षा करता है और भावों के मोतियों को लिखने के लिए विह्वल हो जाता है ।
प्रतिदिन आदरणीया पूर्णिमा साह जी , आदरणीय नवल किशोर जी , आदरणीय राठौड़ साहब और हर रोज नित नवीन विषय सुझाने वाले विद्वान और विदुषियों का सहयोग उस को परिमार्जित और परिष्कृत करता है ।अथाह अमूल्य मोतियों से सुसज्जित यह मंच निरन्तर उन्नति की ओर बढ़ते हुए नव आयाम स्थापित कर रहा है समूचे भारत वर्ष और विदेश में बैठे साहित्यकार इस मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं सारा श्रेय आदरणीया वीणा शर्मा वशिष्ठ जी और आदरणीय ऋतुराज दवे जी को जाता है जिनकी कर्मठता से यह पाठकों की भावप्रवणता को मंतव्य से गंतव्य की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध हुई है ।
सहकारिता ओर उदारता ने इस मंच को चार चाँद लगा दिए हैं । आदरणीय ऋतुराज जी हाइकु किंग ने जैसे हाइकु और पिरामिड सिखा कर हमारी कमियाँ दूर करके हमारी बौद्धिक क्षमता को निखारा है मैं तो आजीवन यानी कुछ बच्चे लम्हों तक ऋणी रहूँगी और शुभाशीष देती रहूँगी कि यह मंच और इसके अधिकारी नेक और सद्विचारों से " भावों के मोती "
मंच को शिखर पर ले जाएँ ।उत्कृष्ट मंच के सुशील संस्कारी लोग अ से ज्ञ तक बसंत के सदृश मनमोहक और भव्यता से मंच को सुशोभित कर रहे हैं ।
" 🌹एक वर्ष की पूर्णता , भरती मन उल्लास ।
उन्नति के सोपान पर , हो नित नूतन भास " ।🌹

पुन: हार्दिक बधाई देते हुए मंगलमय कामनाओं के साथ जिसे आपसे भरपूर प्यार स्नेह मिला :-
आप सबकी अपनी यथायोग्य :-
ऊषा सेठी
सिरसा
नोट :- कुछ भाव विह्वलता में ग़लत कह दिया हो तो माननीय सदस्य गण क्षमाप्रार्थी हूँ ।

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16-4-2019
विषय:- पन्ने
विधा :- पद्य

जीवन पुस्तक के पन्नों को ,
विरह दीमक ने जीर्ण किया है ।
जब से प्रेम परीक्षा में बैठी
उसको नहीं उतीर्ण किया है ।

कोरे पन्नों की किताब पर ,
अश्रु लिखित था प्रेम कथानक ।
विक्षिप्त किया सन्देह शूल ने ,
रूप प्रेम का हुआ भयानक ।

भग्न हृदय की टूट फूट के ,
चुभ गए किरचे सारी देह में ।
अश्रुन मोतियन की लड़ी टूट के
बिखर गई है सारे गेह में ।

बन कर प्रेम पताका पन्ने ,
श्वास समीर के संग लहराते ।
अश्रु भीगे संदेश पीया को ,
अब मुझसे बाँचे नहीं जाते ।

प्रेम गुदड़ी बनी पन्नों की ,
शर शैय्या सी चुभती रहती ।
विरह हंसिनी बैठी पन्नों पर ,
मोती आँसू के चुगती रहती ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा 

 

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12-4-2019
विषय:-सुख -दुख 
विधा:-दोहा

सुख दुख में ही है छिपा , जीवन का आनंद ।
नर इनकी अनुभूति से , खोजे परमानंद ।।१।।

जीवन के उद्यान में , सुख दुख जैसे फूल ।
संग गुलाबों के लगे , चुभ जाते ज्यों शूल ।।२।।

किंकर्तव्य विमूढ हो , दुख समझें अभिशाप ।
गुरु सच्चा दुख ही बने , गूढ़ ज्ञान दे आप ।।३।।

सुख शीतल हैं ओस सम , खिल जाती मुस्कान ।
दुख की बने कठोरता ,जीवन की पहचान ।।४।।

दुख पीछे सुख है खड़ा , निशि पीछे परभात ।
सुख दुख की अनुभूति से ,किस को मिली निजात ।।५।।

सुख दुख दोनों की बनें , इच्छाएँ आधार ।
इच्छाओं की पूर्ति से , मिलती खुशी अपार ।।६।।

इच्छाओं को डालता , मन जैसी भी खाद । 
सुख दुख उसके फूल हैं , कहते हर्ष विषाद ।।७।।

दीर्घ श्वास भरिए सदा , करिए प्राणायाम ।
सुख दुख से ऊपर उठो , जपिए प्रभु का नाम ।।८।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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विषय:- क़ीमत / दाम
वि
धा :-कुण्डलिया छंद

(१)
पहला पग ही हो गलत , पड़े चुकाना दाम ।
उम्र निकल जाती समझ ा् , मिले नहीं आराम ।।
मिले नहीं आराम , चैन मन का छिन जाता ।
लो कितना पछताय , समय वापिस ना आता ।
दिल में होते घाव , सदा रहता वह दहला ।
उम्र चुकाती दाम , गलत पग जो हो पहला ।।

(२)
क़ीमत ऊँची प्रेम की , तन मन देता दाम ।
रात दिवस आँसू बहें , चित्त नहीं विश्राम ।।
चित्त नहीं विश्राम , प्रेम में डूबा रहता ।
रहे प्रेम की प्यास , नीर अँखियाँ से बहता ।
ये वस्तु अति अमोल , पाय विरला ही नेमत ।
मिल जाय बिन दाम , नहीं होती है क़ीमत ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
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13-3-2019
विषय:-भ्रम
विधा :-ताँका


भ्रम संकेत
अंतहीन शृंखला
कहाँ उत्पत्ति
जीव भ्रम में जीता
तिक्त घूँट है पीता

जीवन सुखी
सुंदर बने भ्रम
परांगमुखी
बदले रूपरेखा
परिस्थिति का लेखा

भ्रम का जादू
बदले आकृतियाँ
नहीं स्मृतियाँ
मोहक भ्रम जाल
नशा चढ़े तत्काल

भ्रम है रोग
जीवन में जरूरी
रखे निरोग
जिंदगी हो आसान
एक मनोविज्ञान

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


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27-02-2019
विषय:- फाग
विधा :- ताँका


🌺

मस्ताना फाग
होरी रसिया राग
चूनर पाग
अनंग अनुराग
प्रेम सरस आग

🌺

फाग उल्लास
रसभीना प्रत्यंग
रंग विलास
अलि संग कलियाँ
पीत अमलतास
🌺
पलाश रंग
विरहिणी निस्संग
फाग अंगार
समीर गदराई
पुष्पित कचनार
🌺
फाग आनंद
रसिक घनानंद
मृदु समीर
प्रेम छंद अधीर
आकुल नैन नीर
🌺
रवि रश्मियाँ
कण कण उल्लास
शीत प्रवास
फाग फूली सरसों
संगीत मधुमास
🌺
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )








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26-02-2019
विषय:-सर्जिकल स्ट्राइक -२
विधा :-दोहा
कोटि नमन सेनानियो , सिद्ध हुए जाँबाज़ ।
झंडे गाड़े विश्व में , ले ऊँची परवाज़ ।।१।।

हिंद फ़ौज की विश्व में , होती जय जयकार ।
लोहा माना शत्रु ने , खाकर मुँह की मार ।।२।।

शत्रु तीन सौ मार के , ठान लिया प्रतिशोध ।
मारें गे हर शत्रु को , जो भी बने गतिरोध ।।३।।

शत्रु धराशायी करो , बचे नहीं कुछ शेष ।
ऐसा नृशंस मारिए , दिखे नहीं अवशेष ।।४।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )








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13-12-2018
विषय:- कोहरा
विधा :-हाइकु
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दिल में चाव
कोहरे की चादर
प्रेम अलाव

एक कोहरा
प्रेम से अनुरक्त
हो न विभक्त

कोहरा ओढ़
बेदर्दी प्रेम सिंधु
मुख ले मोड़

निशा ओढ़ती
कोहरे का लिबास
शशि उदास

रश्मि की पीठ
रवि के हस्ताक्षर
लुप्त कोहरा

श्वेत कोहरा
पारदर्शी रश्मियाँ
निर्वस्त्र दिन

मस्त कोहरा
अंकपाश भरता
बना छिछोरा

जीवन थोरा
ठाट बाट का राज्य
करे कोहरा

शरद गाए
कोहरे दुकूल में
प्रात:लजाए

रवि आज़ान
कोहरे की मध्याह्न
दिनावसान
१०
मद्धम रवि
कोहरा भ्रष्ट छवि
बालेन्दु जैसा

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स्वरचित कॉपी राइट
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )










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22-10-2018
भावों के मोती - मंच को नमन
विषय :- 🌺अर्द्धवार्षिक पूर्णता 🌺

छ: ऋतुओं से छ: माह
अच्छे हुए व्यतीत ।
भावों के मोती बनें ,
चारु छंद अरु गीत ।।

वीणा वीणा वादिनी ,
रहे निभाती साथ ।
जो भी आए पटल पर ,
रख लेती सिर माथ ।।

विदुषी गार्गी सी दिखे ,
ज्ञान दिखे चहुँ ओर ।
प्रेम स्नेह देते सभी ,
होती भाव विभोर ।।

प्रिय वीणा स्वीकार हो ,
प्रेम भरी आशीष ।
रहो सफल निज लक्ष्य में ,
संग रहे वह ईश ।।

स्वरचित
ऊषा सेठी
सिरसा ( हरियाणा )









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भावों के मोती
06-10-2018
विषय:-पड़ाव
विधा :-हाइकु



आह पड़ाव
पुकारते ही रहे
ब्रह्म दर्शन

रहे ढूँढते
विरहिणी के आँसू
योग पड़ाव

मन क्यों रुके
पड़ाव जिंदगी के
पाँव ही थके

तू आफताब
क्यों देखता पड़ाव
चला चल रे

एक पड़ाव
जहाँ महकी साँसे
रुकी जिंदगी

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055









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01-10-2018
विषय :-कृष्ण राधा प्रेम



कुंज निकुंज में मिलते कान्हा ,
कितनी सदियां बीत गई है ।
हाथ पकडते अंक में भरते ,
प्रेम गगरियाँ रीत गई हैं ।


प्रेम पुष्प है देव लोक का ,
जिसे देख प्रकृति है खिलती ।
प्रकृति रूप में तू ही राधिके ,
यत्र तत्र सर्वत्र है मिलती ।


हाथ पकड कर रम्य कुंज में ,
पुष्पों से कर कच विन्यास ।
मैं योगेश्वर निर्लिप्त नृत्य से ,
सारी रैन रचाऊँ महा रास ।


प्रेम हृदय की वस्तु अनमोल ,
कौन सका है इसको तोल ।
छाया रहता मन पर उन्माद ,
जैसे हो गूँगे का गुड स्वाद ।

कर छोडूँ अब मैं नहीं कान्हा ,
देख हुई मैं प्रेम में बावरी ।
तुझे छोड मैं घर नहीं जाऊँ ,
बीते गी संग तेरे विभावरी ।
तू अनंत शुचिता की आकर ,
अथाह प्रेम सिंधु रत्नाकर ।
नील स्याम तन सोहे तुम से ,
जैसे किरणों संग दिवाकर ।
मेरे विरह विषाद में हो गई ,
सब भँवरों की आवली काली ।
मैं आह्लादिनी शक्ति हूँ तेरी ,
तेरे प्रेम की हूँ मतवाली ।
यह प्रेम लीला जो है राधिके
पुरुष प्रकृति की लीला रचाई ।
दिव्य विशुद्ध अखंड प्रेम की ,
सबके हृदय में ज्योति जगाई ।
हे कृष्णा ! अभिन्न हूँ तुमसे ,
प्यासी भटकी देह काया में ।
मैं ही सनातन प्रकृति रूप में
विचरण करती जग माया में ।,
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
















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15-9-2018
विषय :-काग़ज़
विधा :-डमरु
अथाह समंदर
मन के अंदर
भीगे काग़ज़
प्रेम कथा
विरह
लिखूँ
मैं
पढ़ो
प्रेमाश्रु
बने स्याही
पीड़ित व्यथा
विरहिणी बनी
काग़ज़ कहे कथा

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )


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15-9-2018
वीणा कितनी गुणी है , यह जाना है आज ।
वरद हस्त माँ शारदा , जाने सकल समाज ।।१।।

वीणा सार्थक नाम है ,करते काम बखान ।
सर्वगुण सम्पन्न बनी , रखती मधुर ज़ुबान ।।२।।

संस्कारी भार्या बनी , जन्म लिया कुल श्रेष्ठ ।
सबकी सेवा में लगी , मिलता मान यथेष्ट ।।३।।

हाथ जोड़ आदर करे , रखती सबका मान ।
अपने इस गुण से सदा , पाती निज सम्मान ।।४।।

भव्य रूप मृग लोचनी , दिखती कुशल प्रवीण ।
विद्या का वर्चस्व है , रहता रूप नवीन ।।५।।
वीणा प्रिय अनुजा लगे , पूर्व जन्म पहचान ।
सबको अपनी सी लगे , रखती सबका ध्यान ।।६।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
















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12-9-2018
विषय :- इंसानियत
विधा :- कुण्डलिया छंद

चाहो जो इंसानियत , ऊँचे रखो उसूल ।
मौत खड़ी हो सामने , करिए उसे क़बूल ।।
करिए उसे क़बूल , लगे प्राणों की बाज़ी ,
धर्म नहीं जागीर , होय पंडित या क़ाज़ी ।
दिखे जहाँ हैवान , उसे कोल्हू में गाहो,
उन्नत दिखे समाज ,सब इंसानियत चाहो ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )









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25-8-2018
विषय :- सृजन
विधा :- दोहे
दया करो माँ शारदे! , करो क़लम का स्पर्श ।
मन वाणी से जो लिखूँ , होय काव्य उत्कर्ष ।।१।।

दोहे हों निज से परे, हों समष्टि आधार ।
हरि !हित में जग के सकल ,होय शब्द संचार ।।२।।

सुरसरि सम दोहे बनें , पढ़े मिले आनंद ।
कस्तूरी सम यश मिले , हो माधुर्य अमंद ।।३।।

शुभ विचार शुभ भाव से , किया सृजित है काव्य ।
पठन करें विद्वान जो , हो उनके संभाव्य ।।४।।

करुणा करो उदार प्रभु , दो मुझको वरदान ।
दोहे जो मैं लिख रही , बन जाएँ रसखान ।।५।।
करूँ सृजन जो शारदे , करना तुम उपकार ।
बहुजन हित साहित्य हो , मिले यही उपहार ।।६।।
पढ कर श्रुति पुराण निगम , पाया जो भी ज्ञान ।
वह समर्पित समाज को , सबका हो कल्याण ।।७।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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हिंदी का सिंहासन हिमाद्रि ,
और पग पखारता है सिंधु ।
माथे का चंदन मलयाचल ,
सोहे है शीश पर रवि बिंदु ।

जनजन की वाणी है हिंदी ,
देव नागरी में माधुर्य है ।
छुप रही गुणवता शब्दों में ,
अर्थों में सौष्ठव प्राचुर्य है ।

सम्प्रेषण करती भावों का ,
विश्व वंद्य भाषा है हिंदी ।
मात्राओं के भूषण पहने ,
माथे पर सूरज सम बिंदी ।

जब गीत फूटते हैं मन से ,
भाषा देती है धार उसे ।
हृदय के उमड़ते भावों को , 
निज भाषा दे शृंगार उसे ।

सूर , तुलसी , केशव ,घना,
रहीम , बिहारी अरु रसखान ।
अगनित सपूत माँ हिंदी के ,
बढ़ाई जिन्हों ने इसकी शान ।

भारतेंदु , द्विवेदी, श्री निवास,
दिनकर, निराला अरु प्रसाद ।
राष्ट्रीय स्वाभिमान हिंदी के , 
करते ऐतिहासिक शंखनाद ।

करवाती पहचान प्रवास में ,
सहोदर सा आभास दिलाती ।
इससे जन्मी सब भाषाएँ ,
माँ जननी को शीश झुकाती ।

राजनीति की दुर्नीतियों से ,
अस्मिता न इसकी खोने दो ।
हिंदी के विस्तृत आँचल में , 
सब भाषाओं को होने दो ।

रखो न सीमित फ़ाइलों तक,
इसके प्रवाह को बहने दो ।
वर्चस्वी वाणी कवियों की ,
इसको गरिमामय रहने दो ।

हिंदी है भारत की बोली ,
इसे विश्व तक पनपने दो ।
भारत के भाल की बिंदी को , 
सुंदर साकार तुम सपने दो ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
House No 839
Sector 14
Gurgaon 122001 Haryana
Mo:- 9812284001



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ठहरी है न ठहरे गी कहीं ,
करती स्पर्श आसमानों का ।
मत
 आँको कम क्षमता उसकी ,
देख प्रतिभा के मुहानों को ।

जिसने पहचानी है प्रतिभा ,
होती मंज़िल हासिल उसको ।
करता उन्नति वह अविरल है ,
कौन कह सके गाफ़िल उसको ।

निखरे प्रतिभा उद्यम से है ,
रहता आलस्य कोसों दूर ,
क़दमों को सफलता है चूमे ,
विफलता जाती हो मजबूर ।

प्रतिभा पर काई लगे नहीं ,
मस्तक के पारस घिसने दो ।
निखरे गा रंग प्रतिभा का ,
मेहँदी की भाँति पिसने दो ।

मूर्द्धन्य कुशल ओजस्वी जो ,
देखो उसका इतिहास गवाह ।
आँधी तूफ़ान सहे तन पर ,
तब ऐश्वर्य का विलास बना ।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी 
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )



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जब तक नारी ने सहन किया ,
कहलाई वह संस्कारी है ।
आवाज उठाई जब उसने , 
सहनी वह नर को भारी है ।

अब अबला नारी रही नहीं ,
कहलाय नहीं बेचारी है ।
लड़ना सीखी हालातों से ,
सुनना पड़ता व्यभिचारी है ।

दुनिया के सारे क्षेत्रों में , 
बराबर पुरुष के आई है ।
कठिन हुआ नर को सहना , 
कहता उसकी अधमाई है ।

उस दासत्व के औचित्य पर , 
पुरुष क़ौम बलिहारी थी ,
कैसी विडम्बना है नर की , 
वह शक्ति बनी बेचारी थी ।

पुरुषों के मन को भाती थी , 
वह श्रद्धा बनी कामायनी थी ।
अबला सबने स्वीकारी थी ,
जो वास्तव में नारायणो थी ।

वह सर्व मंगला दुर्गा 
है ,
वह गार्गी जैसी कुशाग्र है ।
दोहरी भूमिका में आगे ,
प्रभुत्व वर्चस्वी आगर है ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )


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विषय:- कृष्ण जन्मोत्सव

कृष्णमय हो सब प्राणी गए ,
पूर्ण सृष्टि में दिखे उल्लास ।
कृष्ण जन्म उत्सव की लहरें ,
वर्षा के संग करें विलास ।

मंदिर में हैं सजी झाँकियाँ ,
दिखती नहीं अंधेरी रात ।
चारों ओर प्रकाश पुंज है ,
निकला हो ज्यों सूरज प्रभात ।

शिशु गोपाल मुकुट वंशी से ,
स्वर्ण पालने में राजे हैं ।
पुष्प सजी रेशम की डोरी ,
हाथों में अनुपम साजे है ।

स्नान कराते पंचामृत से ,
माखन मिश्री भोग लगाएँ ।
नंद यशुदा को दें बधाई ,
नाचे गाएँ जन्म मनाएँ ।

नव वसनों में रंग बिरंगी , 
सजी टोलियाँ घूम रही हैं 
लल्ला की बधाइयाँ गाती, 
बाज़ारों में झूम रही हैं ।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी 
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )


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विधा :-दोहे

गो शालाएँ बन रही , गो है मात समान ।
सुरभि यजन हैं हो रहे , करते महिमा गान । ।१।।

श्याम सुरभि का दुग्ध हो , रहे कन्हैया याद ।
संस्कारी बच्चे बने , दुग्ध पान के बाद ।।२।।

गौ,गंगा, गीता करें , सबका ही कल्याण ।
जाति भेद को छोड़ कर, करो सुरभि यश गान ।।३।।

पथमेड़ा में है बनी , शाला सुरभि विशाल ।
पंचगव्य उपचार से , सम्पदा बेमिसाल ।।४।।

गोधन नंद बाबा का , रखा कृष्ण संभाल ।
गोचारण कारण बना , कहलाए गोपाल ।।५।।

अचल सम्पदा सुरभि है , करिए बहु संभाल ।
दूध पूत सम्पन्नता , करती मालामाल ।।६।।

गोवर्धन कान्हा किया , दूध दही भण्डार ।
सुरभि बोझ मत जानिए , देती क़र्ज़ उतार ।।७।।

गो वध कारण नाश का , होती संस्कृति ह्रास ।
सुरभि महक के सुरभि की, करती बुद्धि विकास ।।८।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

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गर्भ -काल में सुनते रहते, 
माँ की नीतियाँ और विचार 
शीश झुका कर करो वंदना ,
मानो हृदय से अति आभार ।

उठना चलना खाना पीना ,
सब बातें माँ ने सिखलाई ,
उँगली पकड कर मैया ने ही , 
विद्यालय की राह दिखाई ।

श्याम पट पर श्वेत चॉक से ,
वर्ण लकीरों से बनवाए ।
नमस्कार उस गुरु शिक्षक को ,
जो विद्या के पथ पर लाए ।

दुर्गम पथ आते जीवन में ,
रखना जीवन में चतुराई ।
टल जाते तूफ़ान बड़े भी ,
झुकने की तदबीर बताई ।

सखी गुरु बन गई जीवन की , 
मूल मंत्र बनी उसकी बात ।
सबसे मिली खूब सराहना ,
भोगी ख़ुशियों की बरसात ।

गुरु अनेक बनें चराचर में,
वंदन करती हूँ मैं आज ।
समझूँ जीवन धन्य मैं अपना , 
सिखाए जिन्हें ने जो भी काज ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055( हरियाणा )

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मैं पतित पावनी गंगा हूँ ,
मैली क्यों कह बुलाते हो ?
नहीं नाम बिगाड़ो तुम मेरा ,
क्यों पीड़ा मुझे पहुँचाते हो ।

सदियों से भार है वहन किया , 
ख़ुशियाँ बाँटी दुख सहन किया ।
मल जो भी आँचल में डाला ,
उस सब को मैंने ग्रहण किया ।

गोमुख से जब मैं निकली थी ,
हृदय बहुत संकीर्ण था ।
जब देखी ज़रूरत संतति की ,
दिल को किया विस्तीर्ण था ।

गंगा मैली की प्रत्यंचा जब,
खिंच जाती है वक्ष मेरे ।
लहूलुहान रूह होती है ,
होते प्रश्न मौन समक्ष मेरे ।

संगम पर पहुँचने से पहले , 
उज्ज्वल कर शृंगार करो ।
'मैला' शब्द लगे दुखदायी ,
निर्मला कह मनुहार करो ।

राह में न रुकी ठिठकी ठहरी ,
सिंधु पर ही जा रुकती हूँ ।
करती हूँ समर्पण मैं उसको , 
बिंदु असीम पर झुकती हूँ ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )



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ठहरी है न ठहरे गी कहीं ,
करती स्पर्श आसमानों का ।
मत आँको कम क्षमता उसकी ,
देख प्रतिभा के मुहानों को ।

जिसने पहचानी है प्रतिभा ,
होती मंज़िल हासिल उसको ।
करता उन्नति वह अविरल है ,
कौन कह सके गाफ़िल उसको ।

निखरे प्रतिभा उद्यम से है ,
रहता आलस्य कोसों दूर ,
क़दमों को सफलता है चूमे ,
विफलता जाती हो मजबूर ।

प्रतिभा पर काई लगे नहीं ,
मस्तक के पारस घिसने दो ।
निखरे गा रंग प्रतिभा का ,
मेहँदी की भाँति पिसने दो ।

मूर्द्धन्य कुशल ओजस्वी जो ,
देखो उसका इतिहास गवाह ।
आँधी तूफ़ान सहे तन पर ,
तब ऐश्वर्य का विलास बना ।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी 
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )

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हिंदी का सिंहासन हिमाद्रि ,
और पग पखारता है सिंधु ।
माथे का चंदन मलयाचल ,
सोहे है शीश पर रवि बिंदु ।

जनजन की वाणी है हिंदी ,
देव नागरी में माधुर्य है ।
छुप रही गुणवता शब्दों में ,
अर्थों में सौष्ठव प्राचुर्य है ।

सम्प्रेषण करती भावों का ,
विश्व वंद्य भाषा है हिंदी ।
मात्राओं के भूषण पहने ,
माथे पर सूरज सम बिंदी ।

जब गीत फूटते हैं मन से ,
भाषा देती है धार उसे ।
हृदय के उमड़ते भावों को , 
निज भाषा दे शृंगार उसे ।

सूर , तुलसी , केशव ,घना,
रहीम , बिहारी अरु रसखान ।
अगनित सपूत माँ हिंदी के ,
बढ़ाई जिन्हों ने इसकी शान ।

भारतेंदु , द्विवेदी, श्री निवास,
दिनकर, निराला अरु प्रसाद ।
राष्ट्रीय स्वाभिमान हिंदी के , 
करते ऐतिहासिक शंखनाद ।

करवाती पहचान प्रवास में ,
सहोदर सा आभास दिलाती ।
इससे जन्मी सब भाषाएँ ,
माँ जननी को शीश झुकाती ।

राजनीति की दुर्नीतियों से ,
अस्मिता न इसकी खोने दो ।
हिंदी के विस्तृत आँचल में , 
सब भाषाओं को होने दो ।

रखो न सीमित फ़ाइलों तक,
इसके प्रवाह को बहने दो ।
वर्चस्वी वाणी कवियों की ,
इसको गरिमामय रहने दो ।

हिंदी है भारत की बोली ,
इसे विश्व तक पनपने दो ।
भारत के भाल की बिंदी को , 
सुंदर साकार तुम सपने दो ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
House No 839
Sector 14
Gurgaon 122001 Haryana

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