Saturday, May 9

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें 
ब्लॉग संख्या :-727
विषय - अंदाज़
विधा- ग़ज़ल

प्रथम प्रयास

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

शोख अदाओं की तस्वीर बनाता हूँ
मैं जब जब लिखुँ उन्हे सामने पाता हूँ ।।

जैसे की कोई जिंदा गज़ल हो वो
और मैं उसे तरन्नुम में गाता हूँ ।।

अंदाज़ अपना अपना है वो मुझको
और मैं उन्हे ख्वाबों में आता हूँ ।।

सादगी की इक सजीव मूरत है वो
और मैं उसका पुजारी कहाता हूँ ।।

परस्तिश कि तमन्ना सदियों से शायद
आज ये गज़ल मैं यूँ नहि बनाता हूँ ।।

अंदाज उनका कुछ बेहद खास रहा
और मेरा भी आज ये बताता हूँ ।।

जान ही जायेंगे वो दिल की लगी
वो मुझे सताय मैं उन्हे सताता हूँ ।।

आँसु न ला दूँ तो मेरा नाम न 'शिवम'
जो आँसु मिले थे वही लौटाता हूँ ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 05/05/2020
दिन :मंगलवार
दिनांक:०५-०५-२०२०

विषय : #अन्दाज़
विधा : छंदमुक्त कविता
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
•••#बिलकुल #अलग है ।•••

तेरे अन्दाज़,............ मेरे अन्दाज़ से बिलकुल अलग हैं,
तेरा छुप-छुपके जीना अलग,मेरा डटके मरना अलग है।
मैं चुनने से पहले छानता,.........चुनके नहीं बखानता हूँ,
हौसला,सीरत मेरा तब्बजो है,.......मेरा घुलना अलग है।।

जिसे चाहता हूँ फिर उसे दिल-ओ-जान से ही चाहता हूँ,
कुछ पग चल के,उसकी पिछली कुंडली नहीं बखानता हूँ!
हर की ज़िंदगी के क़िस्से अलग,बात को जानता,मानता हूँ,
इसलिए मेरी मंज़िल अलग है,मेरा सबसे कारवाँ अलग है।।

उनकी आँखों को, चेहरे की ख़ामोशी को पढ़ना जानता हूँ,
दिल के अंदर उठती लहरों और तूफ़ानों को पहचानता हूँ।
हाथों से उन गेसुओं को सहलाके,कंधा देता सिर टिकाने को,
इसलिए प्यार करने का लहजा अलग, मेरा घृणा अलग है।।

प्यार में तैर के दरिया पार नहीं,बीच में ख़ूब डूबता हूँ,
अपनी हार का जश्न मनाता, जीत में घंटों मसोसता हूँ।
जब भी आवाज़ सुनता,गहरी नींद को पल में यूँ झटकता ,
सोने में आँखें बंद का तरीक़ा अलग,मेरा जागना अलग है।।

मैं अपना सब कुछ बता दिया सबको,अब है आपकी बारी,
क्योंकि मेरे बताने का तरीक़ा अलग ,मेरा पूछना अलग है ।।

•••#कुमार @ शशि
#घोषणा :ये रचना मेरी स्वरचित ,अप्रकाशित और मौलिक है ।
विषय अंदाज
विधा काव्य

5 मई 2020,मंगलवार

अंदाजे बया करना मुश्किल
इस अद्भुत चँचल जीवन में।
समय चक्र चलता रहता नित
कब पतझड़ आवे उपवन में?

प्रकृति के अंदाज अद्भुत हैं
कब सागर सुनामी आ जावे
धरा धधकती भीषण गर्मी से
पता नहीं कब बदरिया छावे?

जग मानव अंदाज अलग हैं
विश्वासों को सदा उधेड़ता।
स्वार्थ मदिरा मद में उलझा
नित ही नव नव सपने बुनता।

सकल विश्व महामारी व्याप्त
जीने के अंदाज अलग सब।
समय समक्ष बोना है मानव
है दुःखी चिंतिंत शायद रब।

सब अंदाज व्यर्थ मानव के
होगा वही जो राम रचि राखा।
जीने के अंदाज अलग सब
नियति ने फेंका अद्भुत पांसा।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक 5।5।2020 मंगलवार
विषय अंदाज


अपने अंदाज़ को बदल राही,
मंजिल मिल जाएगी, कट जाएगा रास्ता,
बस उम्मीदों की डोर पकड़ के निकल राही।
पाँव न हों शिथिल,आत्मा न हो व्याकुल,
तूं गरुड़ है बस याद कर वह बल राही।
काम है बहुत लोग उम्मीद लगाए बैठे,
वक्त तो रेत सा जा रहा फिसल राही।
तेरा अंदाज देख आंधी भी शरमा जाए,
तभी तो होगा अपने लक्ष्य में सफल राही।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा
दिनाँक-5-5-2020
विषय-अंदाज

विधा-गीत
वह तेरी आवाज थी उस तीर से,
मैं उसे पहचान कर ठहरा हुआ हूँ।

हो गई संध्या मिले दो पात ये,
मिल गये बिछुड़े धरा नभ साथ में,
और ये दो कूल भी मिल जायेंगे,
बस यही अंदाज ले ठहरा हुआ हूँ।।

दूर तक है दीखती सूनी डगर,
हो गया निःशब्द क्यों ये आम्र तरु,
क्या किसी की राह में यह भी खड़ा?,
जिस अंदाज से मैं यहाँ ठहरा खड़ा हूँ।

तुम बढ़ो मैं भी बढ़ूँ उस ओर को,
क्या न पायेंगे कभी उस छोर को,
पंथ धुँधला देखकर शायद तुम्हें,
सोच हो जाऊँ किधर जाऊँ किधर,
तो मेरी आवाज के उस छोर को,
तुम पकड़ पाओ इधर आओ इधर।
मैं उसे अंदाज से पहचान कर ठहरा खड़ा हूँ।
मैं उसी अंदाज में ठहरा खड़ा हूँ।।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक'
विषय -अंदाज
हास्य कविता


मोबाइल तेरे हर अंदाज में,
जादूगरी दिखती है ।
क्या कहूं तुमको मैं तेरे बिना,
एक पल भी नहीं कटती है ।।

कलियुग में तुम ही,
हमारी रानी हो,
एकाकी जीवन की,
तुम ही कहानी हो।।

बिन भोजन दिन कट जाता,
बिन साजन भी मन लग जाता।
पर मोबाइल तुम ऐसी सखी अलबेली,
तुझ बिन क्षणभर रहा ना जाता ।।
बहुत ही जिया छटपटाता।।

कभी स्कूल के दोस्तों की ,
खट्टी मीठी बातें ।
कभी कॉलेज के दिनों की ,
बेकरारी की रातें ।।

कभी फेसबुक में ,
लाइक की टेंशन ,
कभी प्रोफाइल पिक्चर में ,
सुंदरता का डिस्क्रिप्शन।।
ललक रहे दिन रात ,
पल पल जिया घबरात।।

खाना बनाते भी,
मोबाइल की पूजा।
खाते वक्त भी,
हमजोली कोई ना दूजा।।

अब तो बाथरूम में भी ,
आने लगी हो ।
अंदाज नए-नए दिखाकर ,
गाना सुनाने लगी हो।।

मोबाइल की ऐसी ,
मायावी तमन्ना ।
जैसे यही भगवान ,
करूँ दिन- रात आराधना।।

तन की सुधी,
मोबाइल रखती।
हेल्थ ट्रैकर ,
कैलोरी बताती ।।

मन की सुधि,
मोबाइल के हाथ ।
गाना, मूवी ,
यूट्यूब के साथ ।।

रिश्ते नाते सब ,
यही निभाती ।
बटन दबाकर ही,
सबसे मिलाती।।

कभी व्हाट्सएप में,
चुटकुला सुनाती !
कभी हंसाती ,
कभी गुदगुदाती।।

रोज नए नए ,
अंदाज दिखाती।
मुझे खुद से नित्य नई ,
पहचान कराती ।।

आज यहीं तीर्थ है ,
यही सब धाम।
प्रेमियों का प्रेमी बनकर ,
निभाती वफा तमाम।।

तकिए के नीचे,
कभी पॉकेट में शोभित ।
कभी सीने से चिपक कर,
हाथों में झूला झूलती।।

एक पल भी,
इसका साथ न छूटती।
इसकी दया से मेरी जिंदगी,
कभी भी ना रूठती।।

तुम ही मेरी कल्पवृक्ष ,
तुम ही संजीवनी बूटी ।
हर रोग की दवा तुम ,
हर सवाल का जवाब तुम ।।

गूगल जैसे गुरुदेव ,
सब संशय मिटाते ।
इतिहास, गणित,
साहित्य में ,डुबकी लगाते ।।

तुम ही जीवन पतवार,
तुम ही नैय्या खैवनहार।
तुम जीवन धन आधार,
तुम बिन रूठे सकल संसार।।

इंटरनेट तेरा गहना ,
सखी मान ले मेरा कहना।
मेरे इर्द -गिर्द ही रहना,
मुझसे कभी भी ना बिछुड़ना।।

शराब से भी ज्यादा नशीली ,
बड़ी नखरीली बड़ी रंगीली।
डांट भी सुनाती हो,
पर क्या कहूं तुम्हारी लत,
बिल्कुल छोड़ी नहीं जाती हो !

कभी चलते- फिरते,
जब कविताएं बन जाती है ।
तब तुम डायरी ,
बनकर उनको संजोती हो।।

मेरी नशीली जाम,
मेरी सहेली तुम आठो याम।
तेरे हर अंदाज पर मरती हूं ,
तुझ बिन एक पल भी जी नहीं सकती हूँ।।

अंशु प्रिया अग्रवाल
स्वरचित
मौलिक अधिकार सुरक्षित
5/5/2020/मंगलवार
*अंदाज*

मुक्तक

भावनाऐं व्यक्त करने का अंदाज जुदा अपना।
कौन किसकी मानता है यहां सबका खुदा अपना।
चाहा था हमने आशियाना ‌एक हो अलग नहीं,
मगर सभी को नहीं भाया कहें अलविदा अपना।

मानते अंदाजे बयां कुछ अपने अलग भले हों।
मगर नहीं इधर अब कोई फालतू हलचले हों।
समझें वाद-विवाद मनमुटाव का कारण न बने,
अच्छा लगे हम सभी आपस में मिलते गले हों।

दुराभावी वयानों से विवाद जन्म लेते हैं।
बोलने की आदतों से विवाद जन्म लेते हैं।
मनोभावनाओं पर हमें ध्यान देना जरूरी,
बेतुकी बातों से कहीं विवाद जन्म लेते हैं।

कुछ लोगों ने अपना अंदाज ही ऐसा बनाया।
नमक मिर्ची लगाकर बदनाम इतिहास रचाया।
ता जिन्दगी माना जिन्हें जहर ही जहर उगलना,
बेचारे क्या करें जब मजहब ने यही सिखाया।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

भा*अंदाज*
दिनांक-05/05/2020
विषय- अंदाज


मयखाने के अंदाज की एक शाम तेरे नाम

ढल चुका है सूरज,पंछी है घर को चले
मत करना इंतजार,हो चली है शाम धीरे- धीरे।

सौ बार मरना चाहा, तेरी निगाहों में डूब कर
तू भी देखेगी मेरे खुशी का इंतकाम धीरे-धीरे।

मारुतो संग जो हमने भेजे थे खत तुझे
न जाने कब मिलेगा तुम्हारा पैगाम धीरे-धीरे।

महफिले सजेगी तो सब राज खुलेंगे
सुना है आशियाने में हो रहा इंतजाम धीरे-धीरे।

चलती रहेंगी बातें ,जलती रहेगी शमा की रातें
नूर तेरे दर होगा,तब चलते रहेंगे जाम धीरे-धीरे।

सुनकर मेरी दलीलें ना मुंह मोड़ लेना
हम देखेंगे इस महफिल का अंजाम धीरे-धीरे।

रास्ता भटक गया हूं ....
आऊंगा तेरी अंजुमन में एक दिन जरूर
मुझे तू मुझे देगी पनाहों का इनाम धीरे-धीरे।

शहर में कम नहीं है नजरों से पिलाने वाले
तू भी देखेगी इश्क मस्ती का इंतकाम धीरे-धीरे।।

स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
दिनांक 5-5- 2020
विषय अंदाज


कौन भला सुनता यहां ,
किसकी है आवाज|
सबके होते हैं यहां ,
अपनेअलग अंदाज |

नजर बचाते फिर रहे,
लेकर अपना आज|
एक दूसरे से सभी,
छुपाते अपना राज|

अपने-अपने सुर लिए
अपने-अपने साज|
अपने अपने स्वांग का ,
दिखा रहे अंदाज़ |

मान और अभिमान का,
इसका होता साथ |
प्यार और तिरस्कार का,
होता अलग अंदाज|

हंसी और मुस्कान ही ,
इसके सुंदर रूप |
नफरत और हिंसा मगर ,
करती इसे कुरूप |

इसीलिए अंदाज में ,
रहे प्यार का भाव |
सबसे सुंदर प्यार का,
होता है अंदाज|

मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
उत्तर प्रदेश


सादर प्रणाम
🙏🙏🙏
वि
षय =अंदाज
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹
नहीं अंदाज
लेगा कितनी जान
कोरोना आज

अंदाज पार
कोरोना यमराज
ले गया साथ

कोरोना बम
रिफ्यूज करे हम
रख दूरियां

नया अंदाज
विश्व में महामारी
फैलाता चीन

बिना प्रयास
अंदाज से अधिक
प्रकृति शुद्ध

मधुशाला में
अंदाज से अधिक
लगी कतार

अंदाज नहीं
हम हो संक्रमित
घर में रहें


मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
विषय- अंदाज
दिनांक ५-५-२०२०


दर्द दिल रख तुझे,जहां में सदा ऐसे ही मुस्कुराना।
एक आंख आंसू रख,दूसरे में तुझे ख्वाब सजाना।
जहां बेदर्द कोई नहीं समझेगा अभी तुम्हें वीणा,
खामोश रह कर तूम्हें,बस अपनी बात समझाना।

जीने का एक अंदाज रखना

सख्त राहों पर चल,तुझे ही आसां सफर बनाना।
माँ दुआओं का है असर, यह जहां को दिखाना।
जिंदगी में हिम्मत तू भूल कभी ना हारना वीणा,
अपनी लेखनी से ,समाज को नई राह दिखाना।

जीने का एक अंदाज रखना

नेकी का फल ना मिले,पर तू कभी ना घबराना।
तजुर्बा कम लिया,इसे अभी और तुझे है बढ़ाना।
जिंदगी राह कठिन आसान ना समझना तू वीणा,
हुनरमंद तू बन जा,वरना जहां बना देगा बेगाना।

जीने का एक अंदाज रखना

आए हो जहां ,तो एक पहचान तुम भी बनाना।
जैसे आए वैसे,तुम भूल कर ना जहां से जाना।
गर्व करें जहां ऐसा तू भी कुछ कर जाना वीणा,
अंदाज ए हौसलों से,तुम एक इतिहास रचाना।

जीने का एक अंदाज रखना

फरिश्ता नहीं ,तू बस इंसान बन जहां से जाना।
अर्थी के पीछे ,काफिला बताएगा तेरा फसाना।
नेकी कर कुएं में डाल तू इतना याद रख वीणा,
हकीकत कब तक तेरी ,यूं बिसराएगा जमाना।

जीने का एक अंदाज रखना

वीणा वैष्णव"रागिनी"
राजसमंद
दिनांक-05-05-2020
विषय- अंदाज


अंदाज़ पुराना जीने का ये,
धीरे से कुछ बदल गया।
आघातों से इस दुनिया की,
मन हृदय अब संभल गया।

वंचना छल प्रपंचों की तो,
मुझे पहचान है होने लगी ।
कुटिल चाल षड्यंत्रों की,
परछाई भी मैं धोने लगी।

पंछी जब उड़ता नभ में,
अंदाज बदलता रहता है ।
हवा के रुख को पहचाने,
खुद ही संभलता रहता है ।

बुद्धि,विवेक,साहस जोड़,
अग्निपथ पर चलती हूँ ।
राही हूँ निर्जन पथ की ,
अंधियारे से न डरती हूँ।

पथ में जब बाधा आती ,
अंदाज़ नया अपनाती हूँ।
भव्य शिलाओं को धकेल,
गंगा सी आगे बढ़ जाती हूँ।

कदमों की रफ्तार को फिर,
तीव्र गतिमान कर जाती हूँ।
शीतलता जब बने निर्बलता,
कुछ हद में रह छोड़ जाती हूँ।

संस्कारों की बेड़ियों में नित,
खुद को बाँध मैं जाती हूँ ।
आत्मविश्वास से ही मन को ,
अंदाज़ नवीन दे पाती हूँ ।

कुसुम लता 'कुसुम'
दिनांक-5-5-2020
विषय-अंदाज़

विधा-ग़ज़ल



मेरे लिबास पर बिखरीं हैं
ढेरों गजलें

आँचल पर लिखे हैं
शबो अल्फ़ाज़ !!

शर्मोहया से लिपटी है काया
हर अंदाज़ है मेरा लाजवाब !!

अंग अंग कर रहा है शायरी
हूँ मैं एक बंद सी डायरी !!

पढ़ लो गर पढ़ सको तो
समझ लो अनकहे सवाल भी !!

मत बांधो मेरे लफ्ज़ों को
मेरा हर गीत महक रहा है !!

मत छुओ मुझे अपनी
कातिल निग़ाहों से
मेरा इश्क इश्क बह रहा है !!

पलकों पर सजा लो मुझे
कि तेरा ही ख्वाब हूँ मैं !!

जिसे अब तक ढूँढ रहे थे तुम
वही तो जवाब हूँ मैं !!

तुम जिसे कभी भुला न सकोगे
वो अलग सा अंदाज़ हूँ मैं!!

*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
नई दिल्ली
5/5/2020
बिषय, अंदाज

अंदाज़ अपना अपना
ढपली अपनी अपनी सुरताल अपना अपना
नहीं किसी को किसी की परवाह
प्रेम स्त्रोत सूख रहे खत्म हुई चाह
राह अपनी अपनी मकान अपना अपना
स्वार्थ अपना अपना ध्यान अपना अपना
हम दो हमारे दो में सिमटकर रह गए
बाग अपना अपना बागवान अपना अपना
जगह अपनी अपनी सामान अपना अपना
शर्म संकोच का नामोनिशान नहीं
मर्जी अपनी अपनी परिधान अपना अपना
मर्जी अपनी अपनी स्वाभिमान अपना अपना
दो शब्द स्नेह के निकलते भी नहीं
बस काम अपना अपना अभिमान अपना अपना
ज्ञान अपना अपना सम्मान अपना अपना
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
मंच को नमन
विषय_ अंदाज़

दिनांक 5 म ई 2020
अंदाज़
मैं उसकी बातों से हैं
अंदाजा लगा लेती हूं
कि वो क्या कहने वाला है,
उसकी लच्छेदार बातें अच्छी लगती हैं
बात करने में माहिर है
उसे पता है कि मुझे जेंटलमैन पसंद है
व़ो उसी तरह रहता है,
बातें भी उसी करता रहता है।
हर आदमी का अंदाज़
उसके व्यक्तित्व का पहचान बताता है।
कभी-कभी नाटक करते करते
आदमी अच्छा बन जाता है।
मेरे चलने बोलने उठने बैठने का
अंदाज उसे बहुत पसंद है,
वह कहता है
आप देखने से हैं पवित्र आत्मा लगती हैं
पता नहीं वह जो कहता है
कितना सच है ,
लेकिन वह पुत्रवत है।।
माधुरी मिश्र
साहित्यकार जमशेदपुर झारखंड,यह मेरी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है।
भावों के मोती
5/5/20

मंगलवार
विषय अंदाज
विधा... कविता
जाने क्या अंदाज था वो, कौन सी थी सादगी...
जाने कैसे मनमहफिल में सल्तनत उनकी सजी....
लुट गई दिल कि रियासत...
जुर्म जाने कैसा ये हुआ....
मैं ही मुजरिम मैं ही अदालत और
मैं ही फैसला लेने चली...
इस जुर्म कि सजा फिर... कुछ
यूँ मुकर्रर हुई...
उस सादगी को दिल कि कोठरी
मैं सजा उम्र कैद क़ी हुई...
पूजा नबीरा काटोल
नागपुर
महाराष्ट्र
दिनांक ०५/०५/२०
विषय - अंदाज


समझ लेते हैं वो मुझ को,
होता संवाद नहीं कोई।

वो मुझ में हैं कितने मैं कितनी
उन में अंदाज नहीं कोई।

दुनियाँ हैं वो मेरे दिल की
रिश्ता उनसे मेरा नहीं कोई।

खुली किताब सा मेरा दिल
पढ लेते हैं वो और नहीं कोई।

वो मेरे कान्हा मैं राधा उनकी
बस दुनियाँ में अब नहीं कोई।

मीनू@कॉपीराईट
राजकोट
विषय- अंदाज़
अंदाज़ तेरे इश्क़ का अजीब हैं।
क़बूल हो ना हो पर क़बूल हैं।।
इश्क़ में फ़ना की ज़िद किये।
कहाँ इश्क़ आपको हासिल हैं।।

ये अंदाज़ आपका ख़ूब भाता हैं ।
मर मिटने का जी चाहता हैं।।
ये इश्क़ अब मर्ज़ हो गया ।
दर्दे दिल अब तुम्हें चाहता हैं ।।

स्वरचित - सीमा पासवान
तिथि-05/05/2020
विषय- अंदाज़


"अंदाज़ मेरा"
**********

सुख मिले मुझे या दुख,रहता मन हरदम खुश मेरा,
चलो लोगो को खुश करें यही है अन्दाज़ मेरा।

रोने के लिये तो उम्र पड़ी है,हँसी से भर लो दिल अपना,
चलो रोतों को हँसाया जाये यही है अंदाज़ मेरा।

बिखरे हैं कांटें राहों में क्यूं रब से शिक़वा करें हम
चलो दामन में फूल खिलाते जायें यही है अंदाज़ मेरा।

दुनिया में बहुत बड़ी नेमत है प्यार भरा दिल,
आओ प्यार बांटते चलें यही है अंदाज़ मेरा।

अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
दिनांक -०५/०५/२०२०
विषय -अंदाज


कोरे कागज पर, एक चित्र उकेरा है।
हर अदा तुम्हारी है हर अंदाज तुम्हारा है ।।

जो जख्म दिए तुमने मलहम को लगाया है ।
ये जान भी तुम्हारी है ,ये दिल भी तुम्हारा है ।।

हर खार हमारा है हर फूल तुम्हारा है ।
हमने ही लहू देकर गुलशन को संवारा है ।।

सौ जुल्म किए तुमने ,एक आह न कि मैंने,
हमने वो जमाना भी हंस हंस के गुजारा है।।

ऐ-दिल उनके क्या, राज बताएंगे।
अब तू ही बता ए-दिल क्या राज हमारा है।।

हर खार हमारा है................।।

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
Damyanti Damyanti 

दिनांक_ ५/५/२०२०
विषय_ अंदाज

बदलते युग के जीने के अंदाज निराले |
भूले अपनी संस्कृति संस्कार सब |
भूले माँ की ममता ,पिता का प्यार |
भूले नाते रिश्तो की मर्यादा सब |
धर्म भूले मानवता का करते हनन |
भौतिकता के चलते निज हितार्थ
करते अन्याय ,अत्याचार मन माने |
निमयो की उडाते धज्जियां खुले आम |
बदलो अंदाज अब तो कब तक करोगे मन मानी |
समझो धर्म ,अर्थ काम मोक्ष केमायने |
चलो ईमानदारी सदाचरण पर ,सुखी सकल संसार |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
भावों के मोती।
विषय-अंदाज।

स्वरचित।

अंदाजे बयां अपना तो
सबसे अलग है।
जहां देखता कोई कांटे,
हमें दिखता फूल है।।

करता कोई शिकायत
सारे जहां से अपनी।
हमें जो भी मिला
वह सब कबूल है।।

कोई बोर होता घर में
कोई भागदौड़ से परेशां।
वक्त का तकाजा
हर बात पै रोना फिजूल है।।

मस्त हैं हम,व्यस्त हैं हम
हर परिस्थितियों के अभ्यस्त हैं हम।
यूं ही थोड़े ही बनाया ईश्वर ने हमें
सारी दुनियां से निराले अव्यक्त हैं हम।।
****

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
05/05/2020

दिनांक - 5,5,2020
दिन - मंगलवार

विषय - अंदाज

शिक्षा और तहजीब सदा ,
अंदाज व्यक्ति का कहता है।
लिबास चाहे जैसा भी हो ,
घर का पता वो देता है।

जज्वात जनहित वाले ,
महसूस अंदाज से हो जाते ।
बगुला भगत नहीं छिपता ,
अंदाज अनुभव से होता है।

छुपाकर गम अपने बाँटते ,
जो लोग खुशियाँ को अक्सर ।
कहलाते हैं वो दीवाने ,
रोचक अंदाज रहता है ।

अंदाज हमेशा माता का ,
आँख में प्रेरक अंकित हो।
ममता त्याग और दृढ़ता का ,
अंदाज मोहित करता है।

अंदाज हमारा ऐसा हो ,
पीड़ा मिटा दे जो सबकी ।
दीवार न हो दिल में कोई ,
लक्ष्य जिसका समानता हो ।

स्वरचित, मधु शुक्ला ,
सतना , मध्यप्रदेश .
05 /05/2020

शीर्षक--अंदाज

विश्व हिला ,जीवन कठिन।
भारी है वर्ष 2020,
अंदाज है मेरा।

कोरोना महामारी,मुँहखोले खड़ी।
संभलें स्वयं,
अंदाज है मेरा।

पलायन में आपाधापी।
पेट पालन,पुनः पलायन
अंदाज है मेरा।

अर्थव्यवस्था चौपट,मुश्किल राह।
शिक्षा व्यापार, खाली वर्ष,
अंदाज है मेरा।

स्वच्छ पवन,प्रकृति प्रसन्न।
उदास मानव,
अंदाज है मेरा।

दीन-दुःखी, दया-भाव।
हर संभव प्रयास,
अंदाज है मेरा।

प्रातः भ्रमण, अनुशासन।
स्वास्थ्य रक्षक,
अंदाज है मेरा।

पक्षी-दाना पशु-खाना
प्रकृति निहारना
अंदाज है मेरा।

स्वतंत्र भाव, लेखन शौक।
नाम न शोहरत,
अंदाज है मेरा।

ये शोखियां,ये नजारे।
ये नखरे ये अदाएं ,
अंदाज है मेरा।

स्वरचित - आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय-अंदाज
विधा-हाइकु

०५-०५-२०२०मंगलवार
🎖️🎖️🎖️🎖️🎖️🎖️🎖️🎖️
माँ का अंदाज
चुटकी भर नून
दाल-रोटी में👌

मदिरालय
बेतरतीब भीड़
सही अंदाज👍

फिर क्या होगा
लॉक डाऊन छूट
नहीं अंदाज💐

लगा अंदाज
कैसे हो बेहतर
आज से कल🎖️

शत्रु की छाती
सैनिक का अंदाज
निशाने पर🌻

आएगा कभी
किसे था अंदाज
ऐसा भी दिन🏆

बिन कोशिश
वातावरण साफ़
था किसे पता✍️
🏅🏅🏅🏅🏅🏅🏅🏅
💟श्रीराम साहू🏵️
विषय : अंदाज़
विधा : कविता
तिथि : 5.5.2020

अंदाज़
--------

तेरी सादगी लाजवाब
तूं सादगी में खिलता माहताब
क्या कहने इस अंदाज़ के-
भरी भीड़ में भी लगतीं तुम गुलाब!

सादा तेरा पहनावा
बिन मेकअप की काया
क्या कहने इस अंदाज़ के-
भरे पानी फ़ैशन परस्त आवा।

मासूम सी मुस्कान
निगाहें नादान
क्या कहने इस अंदाज़ के-
लूट लेतीं दिल बन कर मेहरबान।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित

बातों में मधुरिम साज रखें
अपना अलग अंदाज़ रखें..

ग़फलत के खिलाफ सदा
बुलंद अपनी आवाज़ रखे..

अब कुरीतियों को तज दें
दृढ़ कल का आगाज रखें..

रखें जीवन में गुण के पुष्प
प्रसंशनीय से स्वकाज रखें..

लोगों का भला सोंचे-करें
दुआओं का सिर ताज़ रखें..

अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ

विषय अंदाज़

मैं जो हरदम मुस्कुराती हूँ
ये अंदाज़ है मेरा
अपने गम छुपाती हूँ
प्यार किया था तुमसे मैंने
सपनों का महल सजाया था
टूट कर बिखर गया मेरा सपना
अंदाज है ये मेरा
कि अब सूखे रेत से घर एक बनाकर
दिल अपना बहलाती हूँ
श्रिंगार कर तुम्हारे लिए
देख आईना शर्माती थी
फिर आने का वादा कर के
इन्तजार करवाती थी
बैठी हूँ आज इन्तज़ार में तुम्हारे
ये अंदाज़ है मेरा
कि तनहाईयों के बूटे सजाती हूँ

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी

५/५/२०२०
विषय अंदाज


#अंदाज
--------------
वो गुपचुप से आया मेरे जीवन में
फिर गुपचुप समाया मेरे मन में
जिंदगी जीना हुआ सार्थक
रंग बिरंगे फूल खिले मेरे जीवन में

उसके आने का अंदाज निराला
जैसे बहार आई सूखे उपवन में

वो गुपचुप खिलाता हर दिन
और मैं खाती जाती गिन-गिन
कुछ तीखी कुछ खट्टी-मीठी
ऐसे बीत रहे थे हर दिन
जैसे फूल खिले उपवन में

उसके आने का अंदाज निराला
जैसे बहार आई सूखे उपवन में।

चुपके से आया छुप के
मेरे दिल के आँगन में
गुपचुप बातें होने लगी
हर दिन मनभावन में
खुशियाँ छा गई दामन में

उसके आने का अंदाज निराला
जैसे बहार आई सूखे उपवन में!

शशि मित्तल "अमर"
५/५/२०२०
मौलिक एवं स्वरचित
5/5/2020
विषय-अंदाज़

स्वरचित


मुस्कान के पीछे
छिपा कोई राज़ ही होगा

ये कल को पीछे छोड़ दो
सब आज ही होगा

बहुत घुमा फिरा रहे
कुछ काज ही होगा

बखूबी किया काम
तो फिर ताज ही होगा

ये धुन बड़ी ही प्यारी
बजा साज़ ही होगा

जो नाम कमाया है तो
फिर नाज़ ही होगा

हो तुम जो अनोखे
निराला अंदाज़ भी होगा
डॉ. शिखा
05-05 2020
विषय ...अंदाज


मौलिक गीतिका....
अंदाज नहीं है

मन मेरा परिंदा मगर परवाज़ नहीं है।
आई हूँ इधर क्यों अंदाज़ नहीं है।।

पुछिए नहीं हाले दिल बहुत डर गयी हूँ।
हादसों के शहर में खुद से बिछड़ गयी हूँ।।

विकल अंतरमन लेकिन आवाज नहीं है।
आई हूँ इधर क्यों अंदाज़ नहीं है।।

निज कांधें पर लिए लाश फिरती हूँ।
मर गयी कब का बस जिंदा दिखती हूँ।।

अन्नदाता की बखारी में अनाज नहीं है।
आई हूँ इधर क्यों अंदाज़ नहीं है।।

शायद यहीं कहीं पर है मेरा भी मजार।
दिखता नहीं कहीं पर मेरा घर बार।।

चाहत ताजमहल बनाऊँ मुमताज़ नहीं है।
आई मैं इधर क्यों अंदाज़ नहीं है।।

साधना कृष्ण

भावों के मोती
दिनाँक5/5/2020/

बिषय अंदाज
विधा-मुक्तक काव्य

मेरे आँगन में फुदकने वाली
नन्हीं चिडिया का अंदाज
अलवेला ,अनोखा ,प्यारा
चंचल ,चतुर नायिका सा था!

वह उड कर आयी पंख हिलाते
बैठीपेड की डाल,छोटी छोटीअँखियों
से देखने लगीआँगन के हाल,दाना पानी
देखकर गरदन मटकाये पंख फैलाती!

फुर्र उड कर आयी धरा के पास कभी
इधर तो कभी उधर मन मे भरा अन्नत
उल्लास,चोंच डुबाती चोंच उठाती चोंच से
तन खुजलाती दिखाती अपना मधुरअंदाज!
स्व रचित
साधना जोशी
उत्तरकाशी उत्तराखण्ड
विषय ** अंदाज
************†

छंद रहित
********
अंदाज मेरी चाहत का,
सरताज तेरी आहट का।
हर चीज मयस्सर है,
जब इल्म. तेरी आगत का।।

अंदाज तेरी बातों का,
प्यार की सौगातों का।
सबसे अलग हटकर,
है सार मुलाकातों का।।
राज्यश्री सिंह
स्वरचित
५/५/२०२०
विषय-अंदाज


नफ़रत,वैर भाव को दिल से मिटाओ,
अंदाज प्यारा, सबको गले लगाओ,
प्रेम अमृत गंगा हदय में बहाओ,
दुख-दर्द सभी इस जीवन से भगाओ।

अधरों पे हंसी मुस्कान को सजा दो ,
अंदाज जीने का सभी को सिखा दो,
विपदाओं से न डरें, संयम से रहे,
प्रेरणा के फूल जीवन में बिखरा दो।

अंदाज एक लक्ष्य निश्चित कर चल पड़े,
आत्मबल दृढ़ बाधायें रोक न ले ,
मंज़िल ढूँढ कर बाँहे क़ैद कर ले,
अंदाज प्रखर सरल कोई टोक न दे।

स्वरचित
चंदा प्रहलादका

दिनांक/3मई/2020
दिन - मंगलवार

विषय - अंदाज
विधा- गीत
************************
मन का अंदाज पुराना,
आओ कोई फ़साना लिख दें।
प्रेम अंखियों से बरसता ,
राधा -कृष्ण जमाना लिख दें। ।

चेहरे की खामोशी ने,
अंदाज बयां कर दी है।
आओ अपना कोई,
ख्वाब पुराना लिख दें।।

गम में डूबी शाम....
सुना रही है कोई कहानी...
हमारे तुम्हारे मिलन की.....
आओ अपना इतिहास
पुराना लिख दें ।।

स्वरचित मौलिक रचना
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड


विषय- अंदाज
५-५-२०

किसी का दोस्ताना
किसी का शायराना
अंदाज ऐसा हो जो
बना लें सबको दीवाना।।

अंदाज लफ्जों के होंठों पर सजने की
अंदाज है कुछ सुंदर रचने की।।

अंदाज में ही वो बात होता है
जब दिल पे किसी का राज होता है।।

अंदाजेबयां का हुनर ऐसा होता है
मन पंछी हमराज के सपनों में ही खोता है।।

कोई पहली नजर में ही अंदाज पे फिदा होता है
गर नापाक हो नीयत तभी दिल जुदा होता है।।

अंदाज ही किसी के मन को मोह लेता है
अंदाज से ही विक्षोभ होता है।।

बना के रखिए अंदाज अपने अपने
पूरे होंगे जीवन के हर एक सपने।।

बुद्धि,ज्ञान, कौशल से नया अंदाज रखिए
समय के साथ स्वयं के हर अंदाज को परखिए।।

स्वरचित एवं मौलिक
प्रियंका प्रिया,पटना,बिहार।।
दिनांक ५/५/२०२०
शीर्षक-अंदाज


आज है चाँद का अलग अंदाज
खिड़की से नही झांकता वह
नही डालता श्रृंगार पर नजर
नही कभी बतियाता वह।
सुहाती नही अभी चांदनी रातें।
मन में रहता घबराहट सदा।
जब जितेगा देश हमारा
होगी हार कोरोना की।
फिर बदलेगा नजरिया हमारा
होगी फिर चांद से बातें
हंसेंगे हम चांद के साथ
शितलता आयेगी रास
सुहानी होगी फिर चांद की बातें
लौट आयेगा पुराना अंदाज।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।




No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...