लेखिका परिचय
नाम_ सुलोचना सिंह
जन्मतिथि_ 10/7/1980
जन्मसथान_ सीतापुर (उ. प्र.)
शिक्षा_ स्नातक (रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यलय)
सृजन की विधाएं_ छंदबद्ध एवं छंदमुक्त कविताएं, कहानियां, हाइकु परिवार की सभी विधाएं।
प्राप्त कोई सम्मान_ साहित्यिक समूह के सम्मान पत्र।
संप्रति_ गृहणी
स्थाई पता_ E.W.S 1301-02, housing board colony, industrial estate, Bhilai (C.G.)
.
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
खो गई हूँ
मैं शून्य हो गई हूँ
भटकते अनंत की खोज में
जाने कब मैं
कृष्ण विवर में खो गयी हूँ
मै शून्य हो गई हूँ।
कृष्ण विवर क्या
निगल लेगा मुझे
या फेंक देगा उठा कर
अंतहीन किसी कंदरा में
और फिर निकल पड़ूंगी मैं
अनंत की खोज में
हां फिर शायद
स्वंय को पाऊँ
ब्रह्म की गोद में ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मैं शून्य हो गई हूँ
भटकते अनंत की खोज में
जाने कब मैं
कृष्ण विवर में खो गयी हूँ
मै शून्य हो गई हूँ।
कृष्ण विवर क्या
निगल लेगा मुझे
या फेंक देगा उठा कर
अंतहीन किसी कंदरा में
और फिर निकल पड़ूंगी मैं
अनंत की खोज में
हां फिर शायद
स्वंय को पाऊँ
ब्रह्म की गोद में ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
जज्बातों की जेब
लुटा रही
स्नेह की अशरफ़ियां ।
खिली जा रही
रूह की बगिया
महक रही रूबाइयां ।
रोज करते घोटाला
खुल रही सबकी कलाइयां ।
हाथों में चाहिए माहताब
तो सूखे ना जेब का आब
हौसलों में भर लो ताब
वर्ना मिलेगी सिर्फ रूसवाइयां ।
जो कम हुआ तेरी जेब का शबाब
रूठ जाएगा तुझसे रूआब
छोड़ जाएगी तन्हा तुझे
तेरी परछाइयाँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय -मैं /स्व मैं विध्वंस ,
मैं निर्माण
नित्य नव जीवन मैं ।
मैं सुगम आगम,
सहज निगम
प्रयाण मैं , निर्वाण मैं ।
मैं स्व सिंचित मोह बेल
सृष्टि का आरंभ मैं
अंत का नवल खेल मैं ।
मैं सांझ सुरीली
निशा अलबेली
स्व विहान, स्व विधान मै ।
मैं सुदृढ संस्कार
मैं प्रतिकार ।
आवाह्न मैं
विसर्जन मैं
नित नित नव सृजन मैं
मैं अर्जन , अर्पण
मैं समर्पण ।
सर्व विनाश भी मैं
सबकी एकल आस भी मैं ।
श्वास निश्वास भी मैं
आरोह प्ररोह मैं
माया ,मुक्ति ,मोह मैं ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मैं निर्माण
नित्य नव जीवन मैं ।
मैं सुगम आगम,
सहज निगम
प्रयाण मैं , निर्वाण मैं ।
मैं स्व सिंचित मोह बेल
सृष्टि का आरंभ मैं
अंत का नवल खेल मैं ।
मैं सांझ सुरीली
निशा अलबेली
स्व विहान, स्व विधान मै ।
मैं सुदृढ संस्कार
मैं प्रतिकार ।
आवाह्न मैं
विसर्जन मैं
नित नित नव सृजन मैं
मैं अर्जन , अर्पण
मैं समर्पण ।
सर्व विनाश भी मैं
सबकी एकल आस भी मैं ।
श्वास निश्वास भी मैं
आरोह प्ररोह मैं
माया ,मुक्ति ,मोह मैं ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय -बुद्धि, मति, दिमाग
चंद हाइकु
1
प्रज्ञा की गली
विवेक उपवन
महके मन
2
बुद्धि विवेक
प्रेम का अतिरेक
मानव नेक
3
सुमति मिली
सरपट है चली
जीवन गाड़ी
4
मति के मारे
भटके द्वारे -द्वारे
पिया अनाड़ी
5
दिल के हाथों
मजबूर दिमाग
कुछ ना सूझे
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
चंद हाइकु
1
प्रज्ञा की गली
विवेक उपवन
महके मन
2
बुद्धि विवेक
प्रेम का अतिरेक
मानव नेक
3
सुमति मिली
सरपट है चली
जीवन गाड़ी
4
मति के मारे
भटके द्वारे -द्वारे
पिया अनाड़ी
5
दिल के हाथों
मजबूर दिमाग
कुछ ना सूझे
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
विषय - लाभ
क्षणिका
1
स्वार्थ की भीड़
शुभ लापता
कैद में लाभ
शुभ लापता
कैद में लाभ
2
हानि ही हानि
चमचमाती थाली में
परोसते लाभ
झूठा , बेमानी ।
चमचमाती थाली में
परोसते लाभ
झूठा , बेमानी ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
भिलाई (दुर्ग )
हाइकु /तांका
1
वादों की लड़ी
चुनावी फुलझड़ी
वोटर बम
2
मताधिकार
उपयोगिता जानो
देश संभालो
3
हर्ष उल्लास
सुखद एहसास
वोट की आस
4
वोट पलीता
फूटे पाँचवे वर्ष
हर्षित जन
5
एक भी वोट
अनमोल है बड़ा
व्यर्थ न जाए
6
अपना 'मत'
अपना लोकोत्सव
अपना देश
7
स्वतन्त्र 'मत'
लोकतंत्र का पर्व
देश का गर्व
8
हाथ जोड़ते
कामचोर जो नेता
मांगते वोट
9
वोट खातिर
कही फूटते बम
चलती गोली
खेल रहे हैं देखो
नेता चुनावी होली
10
चुनावी पूजा
चाहिए वोट भिक्षा
पंडित मुल्ला
लोकतंत्र का मंत्र
एक है राजा रंक
(स्वरचित )
सुलोचना सिंह
भिलाई, दुर्ग
1
वादों की लड़ी
चुनावी फुलझड़ी
वोटर बम
2
मताधिकार
उपयोगिता जानो
देश संभालो
3
हर्ष उल्लास
सुखद एहसास
वोट की आस
4
वोट पलीता
फूटे पाँचवे वर्ष
हर्षित जन
5
एक भी वोट
अनमोल है बड़ा
व्यर्थ न जाए
6
अपना 'मत'
अपना लोकोत्सव
अपना देश
7
स्वतन्त्र 'मत'
लोकतंत्र का पर्व
देश का गर्व
8
हाथ जोड़ते
कामचोर जो नेता
मांगते वोट
9
वोट खातिर
कही फूटते बम
चलती गोली
खेल रहे हैं देखो
नेता चुनावी होली
10
चुनावी पूजा
चाहिए वोट भिक्षा
पंडित मुल्ला
लोकतंत्र का मंत्र
एक है राजा रंक
(स्वरचित )
सुलोचना सिंह
भिलाई, दुर्ग
विषय -बुद्धि, मति, दिमाग
चंद हाइकु
1
प्रज्ञा की गली
विवेक उपवन
महके मन
2
बुद्धि विवेक
प्रेम का अतिरेक
मानव नेक
3
सुमति मिली
सरपट है चली
जीवन गाड़ी
4
मति के मारे
भटके द्वारे -द्वारे
पिया अनाड़ी
5
दिल के हाथों
मजबूर दिमाग
कुछ ना सूझे
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
चंद हाइकु
1
प्रज्ञा की गली
विवेक उपवन
महके मन
2
बुद्धि विवेक
प्रेम का अतिरेक
मानव नेक
3
सुमति मिली
सरपट है चली
जीवन गाड़ी
4
मति के मारे
भटके द्वारे -द्वारे
पिया अनाड़ी
5
दिल के हाथों
मजबूर दिमाग
कुछ ना सूझे
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ह्रदय में लौ लिए देश प्रेम की
प्राण न्यौछावर कर दिए ।
नफरत की ज्वाला जली
झुलसन पहुंची आजाद परिंदे तक
ऑच ना पहुंचने पायी तिरंगे तक ।
विद्युतशिखा चुमते
रौंदते नित कंटकों को
सीने से लगाए घुमते हैं
गुमराह भाईयो के फेंके पत्थरों को ।
प्राण न्यौछावर कर दिए ।
नफरत की ज्वाला जली
झुलसन पहुंची आजाद परिंदे तक
ऑच ना पहुंचने पायी तिरंगे तक ।
विद्युतशिखा चुमते
रौंदते नित कंटकों को
सीने से लगाए घुमते हैं
गुमराह भाईयो के फेंके पत्थरों को ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिपावली
सियाचिन की खून जमाती वादियों में
तपते है जहाँ वीर जवान
चलो एक उष्मा दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
रिश्तों के दरकते खंडहर
जहाँ कुछ ना रहा शेष
चहकता घर बनाया जाये
चलो नेह का एक दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली
गम के सुने स्याह गलियारे मे
छुप कर बैठा सिसकता है कोई
प्रयास हंसाने का किया जाये
उम्मीदों का सुनहरा दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
कुछ खट्टे मीठे , सोंधे चटपटे पकवान बना
न जलता हो जहाँ चुल्हा दो वक्त
भूखा सो जाता हो कोई मासूम
कोई बुजुर्ग रोटी को तरसता हो
उन सब को खिलाया जाये
एक दिप आस का जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
भेदभाव के गढ़े मुर्दे को
कहीं दूर फूंक आया जाये
भाईचारे का नव दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
सियाचिन की खून जमाती वादियों में
तपते है जहाँ वीर जवान
चलो एक उष्मा दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
रिश्तों के दरकते खंडहर
जहाँ कुछ ना रहा शेष
चहकता घर बनाया जाये
चलो नेह का एक दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली
गम के सुने स्याह गलियारे मे
छुप कर बैठा सिसकता है कोई
प्रयास हंसाने का किया जाये
उम्मीदों का सुनहरा दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
कुछ खट्टे मीठे , सोंधे चटपटे पकवान बना
न जलता हो जहाँ चुल्हा दो वक्त
भूखा सो जाता हो कोई मासूम
कोई बुजुर्ग रोटी को तरसता हो
उन सब को खिलाया जाये
एक दिप आस का जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
भेदभाव के गढ़े मुर्दे को
कहीं दूर फूंक आया जाये
भाईचारे का नव दिप जलाया जाये
फिर मना लेगें दिपावली ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
राकेश की बाहों मे निशा रही सिमट ,
सुंदर सवेरा मुस्कुराता बाहें फैलाए ।
रक्तिम आभा से लिपट गगन हर्षाया ,
राकेश की बाहों मे निशा रही सिमट ,
सुंदर सवेरा मुस्कुराता बाहें फैलाए ।
रक्तिम आभा से लिपट गगन हर्षाया ,
इंद्रधनुषी अरुणाई को ले आगोश में
देखो आनंदित कैसे सलिल है ।
तरू की लहकती डालियाँ,
जैसे गोरी की बालियाँ ।
हरियाला मिट्ठू मटक मटक खेल रहा
चिड़ियों की चहक से गूँज आंगन रहा ।
अरूण की अंगड़ाई देख
सवेरा भी हौले-हौले फैल रहा ।
समीर भी महक उठा ,
सुंदर कलियों से लिपट ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई, दुर्ग
छत्तीसगढ
देखो आनंदित कैसे सलिल है ।
तरू की लहकती डालियाँ,
जैसे गोरी की बालियाँ ।
हरियाला मिट्ठू मटक मटक खेल रहा
चिड़ियों की चहक से गूँज आंगन रहा ।
अरूण की अंगड़ाई देख
सवेरा भी हौले-हौले फैल रहा ।
समीर भी महक उठा ,
सुंदर कलियों से लिपट ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई, दुर्ग
छत्तीसगढ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
बेटियाँ
बड़ी प्यारी प्यारी भोली सी, नाजुक फूलों सी
मेरी सांसों की सरगम मेरी बेटियां।
उंगली पकड़ चलती थी जो रुनझुन रुनझुन,
हाथ पकड़ आज मेरा देखो कैसे मुझे संभालती
हर डग मेरा मजबूत बनाती मेरी बेटियां।
नहीं पांव की बेड़ियां हर पल संबल बनती, हर दुख के आगे ढाल बन जाती मेरी बेटियां।
छुईमुई सी लजाती लाजवंती,
घर आंगन महकाती सेवंती,
पल में दुर्गा काली झांसी वाली रानी बन जाती मेरी बेटियां।
अरे नारी को दुर्बल कहने वालों!
कहीं सीता, कहीं सरस्वती, रानी पद्मावती, कहीं अंधेरा, कहीं शक्ति बन नर पिशाचों से लोहा लेती,
बड़ी मजबूत हैं हिमालय सी अटल,अचल,
फूलों सी नाजुक , मेरे आंगन की रोशनी मेरी बेटियाँ।।
सुलोचना सिंह (स्वरचित )
बड़ी प्यारी प्यारी भोली सी, नाजुक फूलों सी
मेरी सांसों की सरगम मेरी बेटियां।
उंगली पकड़ चलती थी जो रुनझुन रुनझुन,
हाथ पकड़ आज मेरा देखो कैसे मुझे संभालती
हर डग मेरा मजबूत बनाती मेरी बेटियां।
नहीं पांव की बेड़ियां हर पल संबल बनती, हर दुख के आगे ढाल बन जाती मेरी बेटियां।
छुईमुई सी लजाती लाजवंती,
घर आंगन महकाती सेवंती,
पल में दुर्गा काली झांसी वाली रानी बन जाती मेरी बेटियां।
अरे नारी को दुर्बल कहने वालों!
कहीं सीता, कहीं सरस्वती, रानी पद्मावती, कहीं अंधेरा, कहीं शक्ति बन नर पिशाचों से लोहा लेती,
बड़ी मजबूत हैं हिमालय सी अटल,अचल,
फूलों सी नाजुक , मेरे आंगन की रोशनी मेरी बेटियाँ।।
सुलोचना सिंह (स्वरचित )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सागर
जिंदगी के मायने बदल जाते है ,
दोस्ती के कायदे बदल जाते है,
फिजाओं मे जाने कैसी हवा है चली ,
लोगो के आशियाने बदल जाते है ।
जिंदगी के मायने बदल जाते है ,
दोस्ती के कायदे बदल जाते है,
फिजाओं मे जाने कैसी हवा है चली ,
लोगो के आशियाने बदल जाते है ।
दायरों मे सिमटती वफाओ की बुलंदीयाॅ,
रेत पर सूखती #सागर # की सिपीयां,
मौजो के सीने पर तैरते हुए साहिल ,
जाने कैसे जमाने बदल जाते है ।
सीने मे अरमानो की दीवारें चटक गयीं,
मंजिलो के फासलो मे निगाहे भटक गयी,
हम तो मुसाफिर हैं, हमारा क्या 'मंजु '
आज इस दौर मे रास्ते बदल जाते है ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह(मंजु )
रेत पर सूखती #सागर # की सिपीयां,
मौजो के सीने पर तैरते हुए साहिल ,
जाने कैसे जमाने बदल जाते है ।
सीने मे अरमानो की दीवारें चटक गयीं,
मंजिलो के फासलो मे निगाहे भटक गयी,
हम तो मुसाफिर हैं, हमारा क्या 'मंजु '
आज इस दौर मे रास्ते बदल जाते है ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह(मंजु )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दान
ये न सोचो कि क्या लाये थे क्या ले जायेंगे।
संकल्प यही हमारा हो ,
जो लाये थे वो दे जायेगे ।।
जन्म ले कर आए थे, हम अपनी मृत्यु का उत्सव मनाएंगे ।।।
अंगदान कर अपने हम ,
औरो को जीवन दे जायेंगे ।।।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
ये न सोचो कि क्या लाये थे क्या ले जायेंगे।
संकल्प यही हमारा हो ,
जो लाये थे वो दे जायेगे ।।
जन्म ले कर आए थे, हम अपनी मृत्यु का उत्सव मनाएंगे ।।।
अंगदान कर अपने हम ,
औरो को जीवन दे जायेंगे ।।।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
बंधन
परमात्मा से आत्मा का बंधन , बड़ा प्यारा सुखदायी है,
इस नश्वर जगत् में ये अनश्वर बंधन।
कुछ जन्म के बंधन जब तड़पाते है,
चलते-चलते राह मे बस यूँ ही अनायास
जो बंधन जुड़ जाते है,
वो जख्मों पर मरहम लगाते है ।।।।।।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
परमात्मा से आत्मा का बंधन , बड़ा प्यारा सुखदायी है,
इस नश्वर जगत् में ये अनश्वर बंधन।
कुछ जन्म के बंधन जब तड़पाते है,
चलते-चलते राह मे बस यूँ ही अनायास
जो बंधन जुड़ जाते है,
वो जख्मों पर मरहम लगाते है ।।।।।।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मनोरथ
नित उठाते हैं जो ,
इमानदारी की शपथ
देखो! हो चुके बेइमानी कितने
साधने अपने मनोरथ।
अपेक्षा स्वार्थ से परे, कुछ दिखता ही नही 'मंजू'
बडी शराफत से दे देते है ,तिलांजलि ।
मायने नही रखते अब किसी के लिए औरो के मनोरथ।।।
सुलोचना (स्वरचित )
नित उठाते हैं जो ,
इमानदारी की शपथ
देखो! हो चुके बेइमानी कितने
साधने अपने मनोरथ।
अपेक्षा स्वार्थ से परे, कुछ दिखता ही नही 'मंजू'
बडी शराफत से दे देते है ,तिलांजलि ।
मायने नही रखते अब किसी के लिए औरो के मनोरथ।।।
सुलोचना (स्वरचित )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
गंगा
बंधुओं अब तो जागो,
ग़र ऐसे ही मैली करते जाओगे, पतित - पावनी, जीवन दायीनी गंगा ।
छोड़ हमें कहीं लौट ना जाए,
स्वर्ग की ओर फिर गंगा ।
रोग, दोष फिर अपने कहाॅ धोओगे,
तन के संग धो आओ जाकर कभी ,मैली हो चुकी आत्मा भी अपनी ।
वर्ना फिर दूसरा भागीरथी कहाॅ से लाओगे ?
सच कहती हूँ, फिर धरा पर तुम ,
गंगा लौटा कर ना ला पाओगे ।।।
सुलोचना सिंह (स्वरचित )जागो
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
बीता कल जाते-जाते
फोड़ गया
मन पर पडे़
कुछ छाले
रिसते घावों पर
मरहम लगाने
नव उम्मीदों का
नव वर्ष
अकेला नहीं आया
ले आया बाँह पकड़
अनुभवों के यादगार
कुछ लम्हे उधार
पुराने अनुभवों से
नई सीख लें
कह रहा
बीता कल
उमंगों के झोंके ले
चला आ रहा
नव वर्ष ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
बंधुओं अब तो जागो,
ग़र ऐसे ही मैली करते जाओगे, पतित - पावनी, जीवन दायीनी गंगा ।
छोड़ हमें कहीं लौट ना जाए,
स्वर्ग की ओर फिर गंगा ।
रोग, दोष फिर अपने कहाॅ धोओगे,
तन के संग धो आओ जाकर कभी ,मैली हो चुकी आत्मा भी अपनी ।
वर्ना फिर दूसरा भागीरथी कहाॅ से लाओगे ?
सच कहती हूँ, फिर धरा पर तुम ,
गंगा लौटा कर ना ला पाओगे ।।।
सुलोचना सिंह (स्वरचित )जागो
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
बीता कल जाते-जाते
फोड़ गया
मन पर पडे़
कुछ छाले
रिसते घावों पर
मरहम लगाने
नव उम्मीदों का
नव वर्ष
अकेला नहीं आया
ले आया बाँह पकड़
अनुभवों के यादगार
कुछ लम्हे उधार
पुराने अनुभवों से
नई सीख लें
कह रहा
बीता कल
उमंगों के झोंके ले
चला आ रहा
नव वर्ष ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय -सुख दुख
जीवन के ये इंद्रधनुषी रंग ,
सुख दुख दोनों चलते संग ।
जैसे हो रही हो ,
धूप छाँव में कोई जंग ।
दुख की कंदरा से ही होता
सुख का सुर्य उदय
जी निर्भय !
हे मनु तू जी निर्भय ।
सुख खेले दुख संग होली
दुख लगाता सुख के माथे
चंदन, कुमकुम, रोली ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
जीवन के ये इंद्रधनुषी रंग ,
सुख दुख दोनों चलते संग ।
जैसे हो रही हो ,
धूप छाँव में कोई जंग ।
दुख की कंदरा से ही होता
सुख का सुर्य उदय
जी निर्भय !
हे मनु तू जी निर्भय ।
सुख खेले दुख संग होली
दुख लगाता सुख के माथे
चंदन, कुमकुम, रोली ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय -मैं /स्व मैं विध्वंस ,
मैं निर्माण
नित्य नव जीवन मैं ।
मैं सुगम आगम,
सहज निगम
प्रयाण मैं , निर्वाण मैं ।
मैं स्व सिंचित मोह बेल
सृष्टि का आरंभ मैं
अंत का नवल खेल मैं ।
मैं सांझ सुरीली
निशा अलबेली
स्व विहान, स्व विधान मै ।
मैं सुदृढ संस्कार
मैं प्रतिकार ।
आवाह्न मैं
विसर्जन मैं
नित नित नव सृजन मैं
मैं अर्जन , अर्पण
मैं समर्पण ।
सर्व विनाश भी मैं
सबकी एकल आस भी मैं ।
श्वास निश्वास भी मैं
आरोह प्ररोह मैं
माया ,मुक्ति ,मोह मैं ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मैं निर्माण
नित्य नव जीवन मैं ।
मैं सुगम आगम,
सहज निगम
प्रयाण मैं , निर्वाण मैं ।
मैं स्व सिंचित मोह बेल
सृष्टि का आरंभ मैं
अंत का नवल खेल मैं ।
मैं सांझ सुरीली
निशा अलबेली
स्व विहान, स्व विधान मै ।
मैं सुदृढ संस्कार
मैं प्रतिकार ।
आवाह्न मैं
विसर्जन मैं
नित नित नव सृजन मैं
मैं अर्जन , अर्पण
मैं समर्पण ।
सर्व विनाश भी मैं
सबकी एकल आस भी मैं ।
श्वास निश्वास भी मैं
आरोह प्ररोह मैं
माया ,मुक्ति ,मोह मैं ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
वो
कब
आएगी
कहां कैसे
पता ही नहीं
रहस्य है एक
मृत्यु बंद लिफाफा
2
है
मृत्यु
सहेली
उम्र साथ
जी भर खेली
बिल्कुल अकेली
अनबूझ पहेली
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
वो
कब
आएगी
कहां कैसे
पता ही नहीं
रहस्य है एक
मृत्यु बंद लिफाफा
2
है
मृत्यु
सहेली
उम्र साथ
जी भर खेली
बिल्कुल अकेली
अनबूझ पहेली
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
खामोशी
मेरे साथ साथ चलती है,
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
जो निकल गये दूर बहुत ,
मुझे छोड़कर मजबूर बहुत
उन हमशक्लों की याद दिलाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ।
शोरगुल से दूर चली आई मै,
बीती बाते सारी भुला आई मै
कभी-कभी शोर मचाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
ख़ता क्या थी जो माफ न हुई,
बात क्या थी जो साफ हुई,
मुझसे रूठती और मनाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
मेरे साथ साथ चलती है,
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
जो निकल गये दूर बहुत ,
मुझे छोड़कर मजबूर बहुत
उन हमशक्लों की याद दिलाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ।
शोरगुल से दूर चली आई मै,
बीती बाते सारी भुला आई मै
कभी-कभी शोर मचाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
ख़ता क्या थी जो माफ न हुई,
बात क्या थी जो साफ हुई,
मुझसे रूठती और मनाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
उदास दिलो की बगावत हो तुम ,
बेजान धडकन की राहत हो तुम ,
किस किस नजर से देखूं मै तुम्हे ,
हर नजरिए से सिर्फ मोहब्बत हो तुम ।
फूलों की नजाकत हो तुम,
बचपन की शरारत हो तुम,
यूँ संवर कर आयी हो आज ,
सर से पाँव तक कयामत हो तुम ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
याद
वट वृक्ष की शीतल छाँव,
छीन ली हमसे गमन के अटल सत्य ने।
स्वतंत्रता संग्राम में था इनका योगदान बड़ा, अनुशासन था स्वयं पर कड़ा।
बहुत याद आता है वात्सल्य का झूला।
वो बांहें वो नेह की गोद प्यारी, जिनमें मेरा बचपन खेला।
याद है अब भी वह नीम का बिरवा,जिसके नीचे समझा जाना था हमने देश।
चीन का युद्ध हो,या हो पाकिस्तान संग लड़ाई
सब तुम्हारी आंखों देखी कहानी,जाना हमने तुम्हारी जुबानी।
याद है नाना नानी और दादा कि सीख सब, संघर्ष को ही जीवन जाना।
प्रण है यही मेरा, आपके दिखाएं पथ पर ही चलते रहना मुझको अब।
जो यादें खूब रुलाती है, वही मुस्कान दे जाती है।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हे माँ शारदे , प्रार्थना बस यही तुमसे
मेरी कल्पना साकार हो ,
किसी की किसी से ना रार हो ,
मित्रवत सारा संसार हो ।
अज्ञान का तम हर लो माँ ,
चहुँओर ज्ञान का प्रकाश हो ,
दूख दारिद्र का जग से नाश हो ,
थोड़ा धन थोड़ा मान सबके पास हो ,
मेरा भारत फिर विश्व गुरु के सिंहासन पर विराजमान हो।
चाहिए यही वरदान माँ
मेरी यह कल्पना साकार हो
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
अंतिम ईच्छा
शुद्ध पर्यावरण ही स्वस्थ जीवन का आधार है ।
प्यारे बच्चो एक पौध रोपी है मैंने आज ,
चाहती हूँ तुम भी लगाओ पौधे हजार ।
शुद्ध हो पर्यावरण हमारा ,
प्रदूषण मुक्त हो संसार सारा ।
मै तुम्हे मिलुंगी फिर इसी पावन महकी हवा मे ,
इसी खुबसूरत फ़िजा मे ,
हवा का झोंका बन तुम्हे प्यार से छू जाऊँगी, चिडिया बन तुम्हारे ऑगन मे चहचहाऊॅगी, कभी फूलो की खुश्बू बन तुम्हारा जीवन महकाऊॅगी,मुस्कुराएगा पर्यावरण तो मै भी खिलखिलाऊॅगी सलोने बच्चो (नेहा , निधि )ना व्यर्थ ऑसू बहाना तुम ,
पापा को भी ढांढस बंधाना ,मेरे अंग दान करवाना तुम ।
मेरी ऑखो से कोई देखेगा दुनिया ,किसी के भीतर दिल मेरा धड़केगा ।
किडनी व लीवर किसी को जीवन दे जायेगा ।
लाडलो तुम्हारे प्रेम भरे साहस से कईयो का परिवार मुस्कुराएगा ।और मेरी चिता मे मुझसे पहले अग्नि मे प्रवेश करने वाला एक वृक्ष भी बच जाएगा अपनी गौरैया व गिलहरी के साथ ।
बिजली के दाहघर मे करना प्यारे बच्चो तुम मेरा अंतिम संस्कार ।।।।।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
शुद्ध पर्यावरण ही स्वस्थ जीवन का आधार है ।
प्यारे बच्चो एक पौध रोपी है मैंने आज ,
चाहती हूँ तुम भी लगाओ पौधे हजार ।
शुद्ध हो पर्यावरण हमारा ,
प्रदूषण मुक्त हो संसार सारा ।
मै तुम्हे मिलुंगी फिर इसी पावन महकी हवा मे ,
इसी खुबसूरत फ़िजा मे ,
हवा का झोंका बन तुम्हे प्यार से छू जाऊँगी, चिडिया बन तुम्हारे ऑगन मे चहचहाऊॅगी, कभी फूलो की खुश्बू बन तुम्हारा जीवन महकाऊॅगी,मुस्कुराएगा पर्यावरण तो मै भी खिलखिलाऊॅगी सलोने बच्चो (नेहा , निधि )ना व्यर्थ ऑसू बहाना तुम ,
पापा को भी ढांढस बंधाना ,मेरे अंग दान करवाना तुम ।
मेरी ऑखो से कोई देखेगा दुनिया ,किसी के भीतर दिल मेरा धड़केगा ।
किडनी व लीवर किसी को जीवन दे जायेगा ।
लाडलो तुम्हारे प्रेम भरे साहस से कईयो का परिवार मुस्कुराएगा ।और मेरी चिता मे मुझसे पहले अग्नि मे प्रवेश करने वाला एक वृक्ष भी बच जाएगा अपनी गौरैया व गिलहरी के साथ ।
बिजली के दाहघर मे करना प्यारे बच्चो तुम मेरा अंतिम संस्कार ।।।।।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सृष्टि के आरंभ से, अंत की कहानी पत्थर है कहता,
कठोर है पर क्रूर कतई नहीं,
पत्थर के भीतर बड़ा कोमल हृदय है धड़कता। अहिल्या का करून क्रंदन, इंद्र का सारा छरछंद फिर राम से कौन कहता।
वीरों की अमर गाथा सीने से चिपकाए युगो अटल खड़ा रहता,निर्झर भी तो इसकी छाती चीर है जग की प्यास बुझाता।
पानी भी इस की गोद में निशान अपने छोड़ जाता, अजब बात है ना! पानी पर को कठोर पत्थर अपना निशान नहीं छोड़ पाता।
ठोकरें कई उलाहने अनेक चुप सहता,तराश दे कोई तो हीरा बन चमक उठता पत्थर।
यूं तो ठोकरों में रहता,मूर्ति बन फिर पूजा जाता पत्थर।
( स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हाय ये कैसी विडंबना
छोटे से मकान मे बड़ा प्यारा घर रहा करता था,
मकान बड़ा बनते ही घर जाने कहां खो गया।
सन्नाटा पसर गया ठहाके भाग गए
सुन्दर सपने फुर्र हुए,
अपने अपने कमरे मे सिमटे सब ,
चाहे अनचाहे ही घर से दूर हुए ।
हाय रे जीवन की विडंबना ,
दाँत थे तब चने नसीब न हुए,
चने आये तो दाँत झड़ गये ।।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
छोटे से मकान मे बड़ा प्यारा घर रहा करता था,
मकान बड़ा बनते ही घर जाने कहां खो गया।
सन्नाटा पसर गया ठहाके भाग गए
सुन्दर सपने फुर्र हुए,
अपने अपने कमरे मे सिमटे सब ,
चाहे अनचाहे ही घर से दूर हुए ।
हाय रे जीवन की विडंबना ,
दाँत थे तब चने नसीब न हुए,
चने आये तो दाँत झड़ गये ।।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सागर
जिंदगी के मायने बदल जाते है ,
दोस्ती के कायदे बदल जाते है,
फिजाओं मे जाने कैसी हवा है चली ,
लोगो के आशियाने बदल जाते है ।
दायरों मे सिमटती वफाओ की बुलंदीयाॅ,
रेत पर सूखती #सागर # की सिपीयां,
मौजो के सीने पर तैरते हुए साहिल ,
जाने कैसे जमाने बदल जाते है ।
सीने मे अरमानो की दीवारें चटक गयीं,
मंजिलो के फासलो मे निगाहे भटक गयी,
हम तो मुसाफिर हैं, हमारा क्या 'मंजु '
आज इस दौर मे रास्ते बदल जाते है ।
जिंदगी के मायने बदल जाते है ,
दोस्ती के कायदे बदल जाते है,
फिजाओं मे जाने कैसी हवा है चली ,
लोगो के आशियाने बदल जाते है ।
दायरों मे सिमटती वफाओ की बुलंदीयाॅ,
रेत पर सूखती #सागर # की सिपीयां,
मौजो के सीने पर तैरते हुए साहिल ,
जाने कैसे जमाने बदल जाते है ।
सीने मे अरमानो की दीवारें चटक गयीं,
मंजिलो के फासलो मे निगाहे भटक गयी,
हम तो मुसाफिर हैं, हमारा क्या 'मंजु '
आज इस दौर मे रास्ते बदल जाते है ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सागर
जिंदगी के मायने बदल जाते है ,
दोस्ती के कायदे बदल जाते है,
फिजाओं मे जाने कैसी हवा है चली ,
लोगो के आशियाने बदल जाते है ।
दायरों मे सिमटती वफाओ की बुलंदीयाॅ,
रेत पर सूखती #सागर # की सिपीयां,
मौजो के सीने पर तैरते हुए साहिल ,
जाने कैसे जमाने बदल जाते है ।
सीने मे अरमानो की दीवारें चटक गयीं,
मंजिलो के फासलो मे निगाहे भटक गयी,
हम तो मुसाफिर हैं, हमारा क्या 'मंजु '
आज इस दौर मे रास्ते बदल जाते है ।
सागर
जिंदगी के मायने बदल जाते है ,
दोस्ती के कायदे बदल जाते है,
फिजाओं मे जाने कैसी हवा है चली ,
लोगो के आशियाने बदल जाते है ।
दायरों मे सिमटती वफाओ की बुलंदीयाॅ,
रेत पर सूखती #सागर # की सिपीयां,
मौजो के सीने पर तैरते हुए साहिल ,
जाने कैसे जमाने बदल जाते है ।
सीने मे अरमानो की दीवारें चटक गयीं,
मंजिलो के फासलो मे निगाहे भटक गयी,
हम तो मुसाफिर हैं, हमारा क्या 'मंजु '
आज इस दौर मे रास्ते बदल जाते है ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
छोटे से मकान मे बड़ा प्यारा घर रहा करता था,
मकान बड़ा बनते ही घर जाने कहां खो गया।
सन्नाटा पसर गया ठहाके भाग गए
सुन्दर सपने फुर्र हुए,
अपने अपने कमरे मे सिमटे सब ,
चाहे अनचाहे ही घर से दूर हुए ।
हाय रे जीवन की विडंबना ,
दाँत थे तब चने नसीब न हुए,
चने आये तो दाँत झड़ गये ।।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सृष्टि के आरंभ से, अंत की कहानी पत्थर है कहता,
कठोर है पर क्रूर कतई नहीं,
पत्थर के भीतर बड़ा कोमल हृदय है धड़कता। अहिल्या का करून क्रंदन, इंद्र का सारा छरछंद फिर राम से कौन कहता।
वीरों की अमर गाथा सीने से चिपकाए युगो अटल खड़ा रहता,निर्झर भी तो इसकी छाती चीर है जग की प्यास बुझाता।
पानी भी इस की गोद में निशान अपने छोड़ जाता, अजब बात है ना! पानी पर को कठोर पत्थर अपना निशान नहीं छोड़ पाता।
ठोकरें कई उलाहने अनेक चुप सहता,तराश दे कोई तो हीरा बन चमक उठता पत्थर।
यूं तो ठोकरों में रहता,मूर्ति बन फिर पूजा जाता पत्थर।
( स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शुद्ध पर्यावरण ही स्वस्थ जीवन का आधार है ।
प्यारे बच्चो एक पौध रोपी है मैंने आज ,
चाहती हूँ तुम भी लगाओ पौधे हजार ।
शुद्ध हो पर्यावरण हमारा ,
प्रदूषण मुक्त हो संसार सारा ।
मै तुम्हे मिलुंगी फिर इसी पावन महकी हवा मे ,
इसी खुबसूरत फ़िजा मे ,
हवा का झोंका बन तुम्हे प्यार से छू जाऊँगी, चिडिया बन तुम्हारे ऑगन मे चहचहाऊॅगी, कभी फूलो की खुश्बू बन तुम्हारा जीवन महकाऊॅगी,मुस्कुराएगा पर्यावरण तो मै भी खिलखिलाऊॅगी सलोने बच्चो (नेहा , निधि )ना व्यर्थ ऑसू बहाना तुम ,
पापा को भी ढांढस बंधाना ,मेरे अंग दान करवाना तुम ।
मेरी ऑखो से कोई देखेगा दुनिया ,किसी के भीतर दिल मेरा धड़केगा ।
किडनी व लीवर किसी को जीवन दे जायेगा ।
लाडलो तुम्हारे प्रेम भरे साहस से कईयो का परिवार मुस्कुराएगा ।और मेरी चिता मे मुझसे पहले अग्नि मे प्रवेश करने वाला एक वृक्ष भी बच जाएगा अपनी गौरैया व गिलहरी के साथ ।
बिजली के दाहघर मे करना प्यारे बच्चो तुम मेरा अंतिम संस्कार ।।।।।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हे माँ शारदे , प्रार्थना बस यही तुमसे
मेरी कल्पना साकार हो ,
किसी की किसी से ना रार हो ,
मित्रवत सारा संसार हो ।
अज्ञान का तम हर लो माँ ,
चहुँओर ज्ञान का प्रकाश हो ,
दूख दारिद्र का जग से नाश हो ,
थोड़ा धन थोड़ा मान सबके पास हो ,
मेरा भारत फिर विश्व गुरु के सिंहासन पर विराजमान हो।
चाहिए यही वरदान माँ
मेरी यह कल्पना साकार हो
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
बेजान धडकन की राहत हो तुम ,
किस किस नजर से देखूं मै तुम्हे ,
हर नजरिए से सिर्फ मोहब्बत हो तुम ।
फूलों की नजाकत हो तुम,
बचपन की शरारत हो तुम,
यूँ संवर कर आयी हो आज ,
सर से पाँव तक कयामत हो तुम ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
खामोशी
मेरे साथ साथ चलती है,
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
जो निकल गये दूर बहुत ,
मुझे छोड़कर मजबूर बहुत
उन हमशक्लों की याद दिलाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ।
शोरगुल से दूर चली आई मै,
बीती बाते सारी भुला आई मै
कभी-कभी शोर मचाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
ख़ता क्या थी जो माफ न हुई,
बात क्या थी जो साफ हुई,
मुझसे रूठती और मनाती है
आज भी कुछ खामोश परछाइयाँ ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
प्रिय चिंता नहीं चिंतन किया करो ,
अपने आगोश मे लेकर चिंता ,
तुम्हें चिता पर लिटा आएगी,
तुम्हारे अपनो की समस्याएँ और बढ़ा जाएगी ।
बस थोड़ी हिम्मत करो,
कुछ चिंतन मनन करो
अपने ही भीतर मंथन करो
यही अमृत कलश दिलाएगा
सही राह बताएगा ।
थोड़ी आस थोड़ा उल्लास जीवन मे भरो
सफलता बांहे फैलाए आएगी
हर मुसीबत से निकाल तुम्हे कामयाबी दिलाएगी ।
कभी यूँ ही मुस्कराओ, खिलखिलाने का अभ्यास करो,
बस थोड़ी हिम्मत ,थोड़ा प्रयास करो,
चिंता नही प्यारे, चिंतन किया करो
चिंता के स्याह गलियारे से बाहर निकलो,
सुनहरी भोर पुकार रही है ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मैया तुम्हारी ममता की नेह भरी #कशिश #
खिंच लाती मुझको तेरे दरबार माँ बारम्बार ।
मेरे जीवन कलश मे मैया
भर दो भक्ति का भंडार ।
जीवन राग मधुर बनाती मैया
तुम्हारी वीणा की झंकार ।
सृजन ,सौदर्य, शक्ति से परिपूर्ण
मैया तेरी महिमा अपार
हे ब्रम्हरूपा मैया अरज बस इतनी
आत्मा से मेरी अपनी कशिश
ना कभी कम होने देना
माँ मेरी झोली अनमोल
भावो के मोतियों से भर देना ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सत्य है सारा जीवन
बस अभिलाषा की माया है
जिस माटी से जन्मी मैं
जिसकी गोद मे पली-बढ़ी
उसी भारत की मिट्टी मे
रंगमंच पर खेलते थक कर
जब मै सो जाऊँ , तिरंगा ही मेरा वसन हो ।
कुछ ऐसा कर जाऊँ, मुझ पर ना कर्ज ए वतन हो ।
है ईश, मेरी यही अभिलाषा
मानव मानवता छोड़े ना
शांति प्रेम से मुँह मोड़े ना
अभिलाषा के पंखो पर हो सवार
इंसान चाँद पर जा बैठा
अपनी उपलब्धियो पर ऐंठा ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
अनेकानेक रूप धारणी माँ ।
बच्चों पर संकट आता देख
पल मे दुर्गा, काली , चामुंडा
बन जाती दयानिधि प्यारी माँ ।
खुद संघर्षों की धुप मे तपती
सुख की छाँव हमे ओढाती माँ ।
स्वंय छूप कर रोती सिसकती
हमे देख मुस्काती माँ ।
रोटी की सोंधी सोंधी महक
पायल की मधुर झनक से
घर को स्वर्ग बनाती माँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय -धुन
सफलता का गुंबद गर खड़ा करना हो,
कीर्तिमान नया कोई गढ़ना हो ,
अपनी ही धुन मे रहो मगन
चाहे काॅटो भरा हो चमन ।
कामना के मुहाने पर बैठ कुछ ना होगा
धुन की बाॅहें पकड़
नित आगे ही आगे बढ़ना होगा ।
ख्वाब नुकीले भले ऑखो की कोर छीलें,
अरमान रखना सदा गीले ।
जिन चमकीले पत्थरों से लगी चोट
उन्हे रख लेना बटोर ,
मुस्कराहटों की ओट
इन्हीं पत्थरों से बनेगा धुन का सुनहरा महल
यही सोच प्यारे मित्र
उदासी के दिनों में तू बहल ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
छत्तीसगढ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
No comments:
Post a Comment