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शीर्षक- मति/बुद्धि/दिमाग
मानव जीवन बुद्धि आधार
इसकी ही प्रबलता से ही जीवन पाता निखार
जब -जब इसमें आया अहंकार
सब तरह से हुआ उसका तिरष्कार
बड़ों -बड़ों का जीवन बिखर सा गया
जीवन के उजाले में अँधेरा सा छा गया
मन बुद्धि को रखो काबू में
न फंसों कभी सम्मोहन के जादू में
जब भी कोई भूल होगी तुमसे
कोसी जाएगी बुद्धि ही ज्यादा सबसे
अतः बुद्धि को सबसे अधिक अंकुश की जरूरत है
क्योंकि सूरत नहीं प्रबल सबकी सीरत है
बुद्धि के फिरने से रावण जैसा विद्वान भी नीचे गिरता है
केवल स्वयं नहीं वंश के नाश का कारण बनता है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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दिनांक-29/6/2019
शीर्षक -फासले
जो थे बिल्कुल करीब मेरे
क्या हुआ कि यूँ हुए दूर मुझसे ।
नजदीकियां बदल गई फ़ासलों में
ऐसे फ़ासले जो पाटे नहीं पटते ।
ऐसे फ़ासले जो जोड़े नहीं जुड़ते
तनहा दिल ,तनहा दिन काटे नहीं कटते ।
कौन सी खता है मेरी ,यह तो पता नहीं
पर यूँ तुम खपा हो जाओगे ये था पता नहीं ।
पाट देते फासलों की मंजिलों को
तेरे दर के सामने अपना कारवाँ रोक देते ।
मांग लेते रहमतों की आरजू
गर फासलों की यूँ कोई आहट भी होती ।
मैं माँगता हूँ माफीनामा अपनी गुस्ताखियों का ,
इतने फ़ासलों में जिंदगी ,जिंदगी नहीं रहती ।
बख्श दो रहम मुझपर ,पाट दो फ़ासलों को ,
क्योंकि तुम बिन जिंदगी ज़िन्दगी नहीं होती ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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विधा-लघु कविता
सिद्धान्तों की लग रही बोली है
झूठ फरेब आज इसके हमजोली हैं
करते हैं बातें सिद्धान्तों की
रहती है नज़र फायदे मुनाफों पर
रिश्तों में भी आई खटास है
फ़िर भी सिद्धान्तों पर लगी आस है
कि शायद जीवन मूल्यों पर फिर विश्वास जागे
और सिद्धान्तों पर लोग बढे आगे
यह गिरावट आगे न बढ़ पाए
फिर जीवन मधुमय बन जाए।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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दिनाँक -2/7/2019
विषय- अधिकार
मैं अपने देश में सुरक्षित रहूँ ,
यह मेरा अधिकार है ।
मुझे सारी सुख सुविधाएं मिलें,
यह मेरा अधिकार है ।
मैं किसी भी विषय में कुछ भी बोलूँ
यह मेरा अधिकार है ।
मैं कानून को मानूँ या न मानूँ ,
यह मेरा अधिकार है ।
प्रत्येक व्यक्ति केवल यही है जानता ,
कि यह मेरा अधिकार है ।
अरे अधिकारों की दुहाई देने वालों ,
कभी कर्तव्यों के बारे में भी सोचा है?
कर्तव्यों ने ही तो अधिकारों की फसल को सीचा है ।
बोया कुछ भी नहीं फसल की आस लगाए बैठे हो ?
क्यों अपने मन में रेगिस्तान में जलधार बहाए बैठे हो ?
किया कुछ नहीं सब कुछ पाने की आस लगाए बैठे हो ?
अरे कर्तव्य और अधिकार एक ही सिक्के के दो पहलू है ।
एक चलता है तो दूसरा आता है ।
एक कमाता है तो दूसरा खाता है ।
तो अधिकारों की ख्वाहिश रखने वालों
कर्तव्यों के खाते को भरो तभी अधिकार आता है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ "फैसला"
जग न्यायालय जीवन एक मुकदमा
ईश्वर न्यायाधीश है
कर्मों की गवाही से सुनाए जाते हैं फैसले
बहुत से फैसले देते हैं खुशियाँ अपरिमित
बहुत से फैसले देते हैं परिणाम अनापेक्षित
कुछ फैसले तो रह जाते हैं अनिर्णीत
कभी अपरिमित ख़ुशी ,कभी निराशा
कभी आत्मचिंतन कभी जिज्ञाषा
कभी उसके फैसलों को कोसते नहीं थकते
कभी उसके फैसलों पर धन्यवाद देते नहीं थकते
कुछ भी हो इन फैसलों को करना होता है हमें स्वीकार
क्योंकि ये फैसले और कुछ नहीं हैं ये हमारे कर्मों के आधार ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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रस बरसाए ,मन हर्षाए ,चित पुलकाए
सावन में अपना यौवन दिखलाए
विरहिन को पिया की याद जगाए
अपनी गागर सागर से भर लाए
मेह का सागर धरती पर बरसाए
खारा लेकर मीठा बरसाए
जग को यह रीत सिखाए
संचय नहीं दान का मर्म बताए
जग को हर्षाए पुलकाए ।
बादल उमड़ घुमड़ कर आए।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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जीवन में भाग्य से बहुत पाया है
पर कर्म से संवारा है
भाग्य कर्म से ही बनता है
पर कभी-कभी बहुत अखरता है
जब किसी भाग्यवान का भाग्य बिना कर्म के चमकता है
मन में प्रश्न चिह्न उभरता है ?
फिर यह विश्वास मन में आता है
की नहीं भाग्य कर्म से ही चमकता है
भाग्य पिछले कर्मों का लेखा जोखा है
यह अलग है कि उसे आज किसी ने नहीं देखा है
भाग्य कर्मों का ऐसा बैंक बैलेंस है
जिसमें कल जमा किया था आज पा रहे हैं
आज भरेंगें कल पाएँगे
तुलसीदास ने सच ही लिखा है
सकल पदारथ हैं जग माहीं
कर्महीन नर पावत नाहीं ।
अर्थात कर्म करोगे तो भाग्य चमकेगा
अन्यथा यूँ ही उदासी का बादल बरसेगा
सोचो कलाम ,शास्त्री बैठे रहते भाग्य के भरोसे
तो आज क्या देश उन्हें याद करता ऐसे ?
तो कर्म से कभी न कत राओ
अपने भाग्य को कर्म से चमकाओ ।
स्वरचित -मोहिनी पांडेय
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कागज पर लिख दी है कुछ अनकही बातें
कुछ जिन्हें सुन, जमाना लगा देता हजारों तोहमतें
बिना कुछ जाने बिना कुछ समझे
न समझा पाते कि इसमें कितना गहरा अहसास है
एक दूसरे पे मर मिटने का कितना प्रयास है
न कुछ पाने की चाहत है ,न कुछ खोने का गम है
छुपाते रहे कागजों पर अपने रंजो गम
अपनों से अपने को समेटते रहे हम
अब तो आदत सी पद गई है कि कुछ भी कहना हो कागज से कहो ,कागज पर लिखो ।
क्योंकि कागज ही है मीत ,कागज ही है गीत ।
कागज पर ही विरह ,कागज पर ही संजोग ।
कागज तुमने ही निभाए संजोग।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
शीर्षक- मति/बुद्धि/दिमाग
मानव जीवन बुद्धि आधार
इसकी ही प्रबलता से ही जीवन पाता निखार
जब -जब इसमें आया अहंकार
सब तरह से हुआ उसका तिरष्कार
बड़ों -बड़ों का जीवन बिखर सा गया
जीवन के उजाले में अँधेरा सा छा गया
मन बुद्धि को रखो काबू में
न फंसों कभी सम्मोहन के जादू में
जब भी कोई भूल होगी तुमसे
कोसी जाएगी बुद्धि ही ज्यादा सबसे
अतः बुद्धि को सबसे अधिक अंकुश की जरूरत है
क्योंकि सूरत नहीं प्रबल सबकी सीरत है
बुद्धि के फिरने से रावण जैसा विद्वान भी नीचे गिरता है
केवल स्वयं नहीं वंश के नाश का कारण बनता है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक-29/6/2019
शीर्षक -फासले
जो थे बिल्कुल करीब मेरे
क्या हुआ कि यूँ हुए दूर मुझसे ।
नजदीकियां बदल गई फ़ासलों में
ऐसे फ़ासले जो पाटे नहीं पटते ।
ऐसे फ़ासले जो जोड़े नहीं जुड़ते
तनहा दिल ,तनहा दिन काटे नहीं कटते ।
कौन सी खता है मेरी ,यह तो पता नहीं
पर यूँ तुम खपा हो जाओगे ये था पता नहीं ।
पाट देते फासलों की मंजिलों को
तेरे दर के सामने अपना कारवाँ रोक देते ।
मांग लेते रहमतों की आरजू
गर फासलों की यूँ कोई आहट भी होती ।
मैं माँगता हूँ माफीनामा अपनी गुस्ताखियों का ,
इतने फ़ासलों में जिंदगी ,जिंदगी नहीं रहती ।
बख्श दो रहम मुझपर ,पाट दो फ़ासलों को ,
क्योंकि तुम बिन जिंदगी ज़िन्दगी नहीं होती ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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विधा-लघु कविता
सिद्धान्तों की लग रही बोली है
झूठ फरेब आज इसके हमजोली हैं
करते हैं बातें सिद्धान्तों की
रहती है नज़र फायदे मुनाफों पर
रिश्तों में भी आई खटास है
फ़िर भी सिद्धान्तों पर लगी आस है
कि शायद जीवन मूल्यों पर फिर विश्वास जागे
और सिद्धान्तों पर लोग बढे आगे
यह गिरावट आगे न बढ़ पाए
फिर जीवन मधुमय बन जाए।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनाँक -2/7/2019
विषय- अधिकार
मैं अपने देश में सुरक्षित रहूँ ,
यह मेरा अधिकार है ।
मुझे सारी सुख सुविधाएं मिलें,
यह मेरा अधिकार है ।
मैं किसी भी विषय में कुछ भी बोलूँ
यह मेरा अधिकार है ।
मैं कानून को मानूँ या न मानूँ ,
यह मेरा अधिकार है ।
प्रत्येक व्यक्ति केवल यही है जानता ,
कि यह मेरा अधिकार है ।
अरे अधिकारों की दुहाई देने वालों ,
कभी कर्तव्यों के बारे में भी सोचा है?
कर्तव्यों ने ही तो अधिकारों की फसल को सीचा है ।
बोया कुछ भी नहीं फसल की आस लगाए बैठे हो ?
क्यों अपने मन में रेगिस्तान में जलधार बहाए बैठे हो ?
किया कुछ नहीं सब कुछ पाने की आस लगाए बैठे हो ?
अरे कर्तव्य और अधिकार एक ही सिक्के के दो पहलू है ।
एक चलता है तो दूसरा आता है ।
एक कमाता है तो दूसरा खाता है ।
तो अधिकारों की ख्वाहिश रखने वालों
कर्तव्यों के खाते को भरो तभी अधिकार आता है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ "फैसला"
जग न्यायालय जीवन एक मुकदमा
ईश्वर न्यायाधीश है
कर्मों की गवाही से सुनाए जाते हैं फैसले
बहुत से फैसले देते हैं खुशियाँ अपरिमित
बहुत से फैसले देते हैं परिणाम अनापेक्षित
कुछ फैसले तो रह जाते हैं अनिर्णीत
कभी अपरिमित ख़ुशी ,कभी निराशा
कभी आत्मचिंतन कभी जिज्ञाषा
कभी उसके फैसलों को कोसते नहीं थकते
कभी उसके फैसलों पर धन्यवाद देते नहीं थकते
कुछ भी हो इन फैसलों को करना होता है हमें स्वीकार
क्योंकि ये फैसले और कुछ नहीं हैं ये हमारे कर्मों के आधार ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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नमन मंच भावों के मोती
दिनांक- 22/06/2019
विषय-गवाह
न्यायालय,गवाह ,न्याय -न्यायकर्ता
ये तो हैं न्याय के प्रतिमान ।
जहाँ गवाह सबूत जुटाना है आसान ।
जग भी तो एक न्यायालय है ,
जहाँ रोज चलते हैं मुक़दमे ,आते हैं फैसले ।
फर्क इतना है यहाँ न्यायालय न्यायाधीश मुकदमें कुछ भी नहीं दीखते ,
परंतु आते रहते हैं मुकदमे ,होता रहता है सच्चा न्याय ।
न्यायाधीश कोई और नहीं स्वयं ऊपरवाला है ।
उसके यहाँ तो किसी गवाह सबूत की
आवश्यकता नहीं ,
उसकी दिव्य दृष्टि से कुछ भी छुपा नहीं होता ।
वहाँ तो जन्म-जन्मान्तर के फैसले होते हैं,
वह तो गवाह सबूत से परे होते हैं।
अतः मत सोचो कुछ भी करेंगे गवाह जुटा देंगे ,
मुकदमा जीत लेंगे ,
उसकी नज़र में कुछ भी छुपा नहीं
न्याय असली ही होगा चाहे देर से ही सही ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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नमन मंच को
दिनांक- 10/6/2019
विषय-कोयल
प्यारी -प्यारी लगती कोयल
मीठे गीत सुनाती कोयल ।
मीठे बोल का मोल बताती कोयल
सबको पाठ सिखाती कोयल ।
रंग रूप से कुछ नहीं होता ,गुणों का मोल बताती कोयल ।
आम की डाल पर गाती कोयल
मीठे आम कराती कोयल ।
डाल-डाल पर घूम-घूम कर मीठे बोल सुनाती कोयल।
वातावरण में मधुरस घोल -घोल कर
वसंत का अहसास कराती कोयल ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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बादल घिर-घिर आए ,उमड़ घुमड़ कर शोर मचाएरस बरसाए ,मन हर्षाए ,चित पुलकाए
सावन में अपना यौवन दिखलाए
विरहिन को पिया की याद जगाए
अपनी गागर सागर से भर लाए
मेह का सागर धरती पर बरसाए
खारा लेकर मीठा बरसाए
जग को यह रीत सिखाए
संचय नहीं दान का मर्म बताए
जग को हर्षाए पुलकाए ।
बादल उमड़ घुमड़ कर आए।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
जीवन में भाग्य से बहुत पाया है
पर कर्म से संवारा है
भाग्य कर्म से ही बनता है
पर कभी-कभी बहुत अखरता है
जब किसी भाग्यवान का भाग्य बिना कर्म के चमकता है
मन में प्रश्न चिह्न उभरता है ?
फिर यह विश्वास मन में आता है
की नहीं भाग्य कर्म से ही चमकता है
भाग्य पिछले कर्मों का लेखा जोखा है
यह अलग है कि उसे आज किसी ने नहीं देखा है
भाग्य कर्मों का ऐसा बैंक बैलेंस है
जिसमें कल जमा किया था आज पा रहे हैं
आज भरेंगें कल पाएँगे
तुलसीदास ने सच ही लिखा है
सकल पदारथ हैं जग माहीं
कर्महीन नर पावत नाहीं ।
अर्थात कर्म करोगे तो भाग्य चमकेगा
अन्यथा यूँ ही उदासी का बादल बरसेगा
सोचो कलाम ,शास्त्री बैठे रहते भाग्य के भरोसे
तो आज क्या देश उन्हें याद करता ऐसे ?
तो कर्म से कभी न कत राओ
अपने भाग्य को कर्म से चमकाओ ।
स्वरचित -मोहिनी पांडेय
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
कागज पर लिख दी है कुछ अनकही बातें
कुछ जिन्हें सुन, जमाना लगा देता हजारों तोहमतें
बिना कुछ जाने बिना कुछ समझे
न समझा पाते कि इसमें कितना गहरा अहसास है
एक दूसरे पे मर मिटने का कितना प्रयास है
न कुछ पाने की चाहत है ,न कुछ खोने का गम है
छुपाते रहे कागजों पर अपने रंजो गम
अपनों से अपने को समेटते रहे हम
अब तो आदत सी पद गई है कि कुछ भी कहना हो कागज से कहो ,कागज पर लिखो ।
क्योंकि कागज ही है मीत ,कागज ही है गीत ।
कागज पर ही विरह ,कागज पर ही संजोग ।
कागज तुमने ही निभाए संजोग।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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