ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार




                                  "लेखिका परिचय"
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आत्म परिचय
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अपना पूरा नाम = श्री मती ब्रह्माणी खरे
साहित्यक उपनाम = ब्रह्माणी "वीणा" हिन्दी साहित्यकार
शैक्षिक योग्यता- एम ए ( हिन्दी साहित्य )
जन्म तिथि ===== 11 मार्च
नोयडा में 2009में"दिशा भारती मीडिया" के तत्वावधान में संचालित * ज्ञान यज्ञ * में मेरी तीन प्रमुख प्रकाशित पुस्तकों" काव्य -वीणा" तथा कहानी संग्रह" अपराजिता" व संस्मरण संग्रह" अतीत की गलियाँ " का विमोचन व उदघाटन करने के बाद साहित्यकार सम्मान से विभूषित किया गया,,,,,,जो मेरे लिए अविस्मरणीय है।
पुरस्कार,सम्मान,व उपलब्धियाँ
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करीब 2002 से मै अबतक देश की प्रमुख हिन्दी पत्रिकाओं जैसे मेरी सहेली, सखी ,गृहशोभा ,वनिता तथा विशेष कर दिल्ली -6 की गृह नंदनी व नोयडा की * वूमेन आन टाॅप * की मै समर्पित रचनाकार हूँ मुझे अत्यधिक पुरस्कार व सम्मान मिला है व मिल रहे हैं,,,अनेक हिन्दी समूहों से,,,,,,,,मुक्तक सम्राट , काव्य सुधा सम्मान तीन बार,चित्र मंथन,छंद श्री सम्मान,,,श्रेष्ठ गीतिका सम्मान,,,हिन्दी काव्य भूषण सम्मान,( मुक्तक लोक)
श्रेष्ठ चित्र काव्य प्रतियोगिता* तस्वीर क्या बोले" समूह से तीन बार विजेता,,
"अखिल भारतीय काव्य प्रतियोगिता"मे उत्तरप्रदेश से गाजियाबाद मै तृतीय स्नान
" जीवन-वीणा" कविता पुरस्कृत हुई,,,,,,,,,,,,,,,,
वर्तमान समय में दो वर्षों से फेजबुक में आने के बाद मेरी काव्य अभिरुचि को और भी उड़ान मिल गई है।मुक्तक लोक मेरा प्रिय समूह है जहाँ आदरणीय विश्वम्भर जी के साहित्यिक मंच से नव सृजन,दोहा- मुक्तक ,गीतिका ,-काव्य ज्ञान प्राप्त किया है ,यहाँ की साहित्यक उपलब्धि में कई सम्मान पत्र प्राप्त हुए,,,*गीतिका सम्मान*
छंद श्री सम्मान चित्र मंथन सृजन सम्मान*तथा और कई सम्मान मिले,,,,
"तन दोहा मन मुक्तिका,"विहग प्रीत कै"गीतिका है मनोरम सभी के लिए" में मेरी रचनायें संग्रहित हैं,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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नव वर्ष के शुभागमन पर,,,,
नव निर्मित रचना
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हरिगीतिका छंद में,,,,
2212 ,2212,2212,2212 -मापनी मात्रा
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देखो धरा पे छा गई,,,,,,,,,,नव वर्ष की नव चाँदनी/
आभा लिए नव ज्योत की चमकी किरन मन भावनी//
~~
नव वर्ष का नव रवि उदय,ज्योतिर्मयी सुषमा लिए,
आओ मुदित मन हम मनाएं,,,हर्ष पल शुभ आवनी//
~~
जीवन खिले शतदल कमल सा,महक जाए जिंदगी,
स्वागत करें आगत बरष का,,जो जागरण दे पावनी//
~~
नव वर्ष है,उत्कर्ष है,,,,,,,,,उल्लसित है सारी धरा,
स॔कल्पना हिय मे जगे,,,,गुंजित हृदय में रागनी //
~~
जागो धरा के नौजवानों !आ गया नवरात्रि पर्व ये,
ले लो शपथ नव जोश से,कर दो धरा को सावनी//
~~
नव छंद हो संगीतमय,,,,सुर ताल भी नव रागमय,
रचती रहूँ कविता मधुर,दो ज्ञान " वीणा"- वादनी //
~~
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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२४-१२-२०१९
विषय-प्र्खर/तेज़/प्रचंड


"कलाधर छंद" पर,,,,,,
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गुरु लघु की आवृत्ति 15 बार ,,,चरणांत एक गुरु
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भारती पुकारती,सुनो पुकार देश-वीर,
देश को बचाइये,सुधीर- वीर सैनिकों !
शक्ति धार के,*प्रचंड -लक्ष्य में रहो सदैव,
जै निनाद घोष संग,हो अधीर सैनिकों!
ना झुको,डटे रहो,महान- देश के जवान,
जीत की उमंग में,बढो प्रवीर सैनिकों!
देश- अस्मिता झुकाय,घात से चलाय तीर,
मार डालिए तुरंत वक्ष-चीर,,सैनिकों!!
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🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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भावों के मोती समूह 
22-12-2019

विषय -स्वतंत्र लेखन
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*दंगा-फसाद*
२१२२ २१२२ मापनी पर,,,,
१)
देश का ही,,, खा रहे हैं
सत्य को, झुठला रहे हैं/
**
चंद पैसों के लिए, सब,
मौत बनकर,, छा रहे हैं 
***
देश के ग़द्दार मिल सब
देश को ,,,,,भरमा रहे हैं/
***
हैं अमन के ख़ास दुश्मन,
सब यहाँ,, भड़का रहे हैं/
***
बेहया----- बेशर्म -नेता,
साज़िशें ,,,,,,,फैला रहे हैं/
***
राष्ट का अपमान करके,
ज़िंदगी ,,,,,शरमा रहे हैं /
***
हैं विरोधी,,, देश के सब,
बन ,,,,,,,दरिंदे आ रहे हैं /
***
पोल खुल,जाती तभी सब
जेल,,,,,,, नेता जा रहे हैं/
***
है,,, ,,,वतन प्यारा हमारा,
क्यों? अमन बिगड़ा रहे हैं?
***
मार डालो !,,,,शूट कर दो,
देशद्रोही,,,,,,,,छा रहे हैं //
***
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार 
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित ( गाजियाबाद)
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21-12-2019
विषय-नि:स्वार्थ 


मातृ दिवस पर माँ की नि:स्वार्थ - ममता का गुणगान करती,,,हार्दिक उदगार सहित हाइकु शैली में कविता,,,,,,,

, ,माँ की ममता 
1), ************
माँ की ममता
अवर्णनीय नेह
नि:स्वार्थ प्रेम /
2 )--------------------------
, माँ की ममता 
ज्यों शीतल झरतीं
निर्झर बूँदें /

3)-----------------------------
माँ की ममता 
कोई आदि ना अंता
नि;स्वार्थ सत्ता /

4)-----------------------------
माँ की ममता 
छाँव बरगद की 
कल्पतरु सी /

5 )----------------------------
माँ की ममता 
बहे प्रेम सरिता 
पुण्य सलिला /
6)--------------------------------
माँ की ममता 
अधरों में अमृत 
तुम हो माता ।

7)------------------------------
माँ। की ममता 
अंतहीन भावना 
सृष्टि रचिता /
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)
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भावों के मोती समूह
10-11-2019

स्वतंत्र लेखन

जय श्री राम
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रघुकुलचंद्र श्रीरामचन्द्र जी के जन्मोत्सव पर,,,,,,
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सुंदरी सवैया छंद में,,,,, भावोदगार
112 112 112 112,112 112 112 112 2 ( 8 सगण +2 गुरू)
दूसरा छंद दुर्मिल सवैया छंद में,,,,
112×8 अंत तुकांत
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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अवतारण-धारण आजु कियो,
रघुनन्दन राम लला सुखदाता//
हरषैं उमंगें,अवधेश-नरेश,
सनेह निहारति हैं छबि,,,माता//
सुखदायक हैं रघुनायक जी,
अवतार लियो,हरि विष्णु विधाता//
शरणागत हूँ प्रभु राम-कृपालु,
रमापति जन्म लियो ;;;नवराता //
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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भवतारन दीनदयाल प्रभो,
नवमी-नवरातहि जन्म लियो //
रघुनाथ भए,सुखदायक राम,
धरा,,,जननी,कुल धन्य भयो //
सुरनायक हैं जगपालक राम,
प्रजा-हितकारन वन्य गयो //
दश -शीश विनाशक वीर विभो!
जग,,राम-सिया हरिनाम रट्यो//
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन मंच
13-5-2019
विषय -नवमी
जय श्री राम 
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सुंदरी सवैया छंद में,,


#रघुकुल -चंद्र श्री #रामचन्द्र जी के जन्मोत्सव पर,,,,,,
🍀🌼🌹🍀🌼🌹🍀🌼🌹🍀🌼
भावोदगार
112 112 112 112,112 112 112 112 2 ( 8 सगण +2 गुरू)
#दूसरा छंद दुर्मिल सवैया छंद में,,,,
112×8 अंत तुकांत
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
********************************
अवतारण-धारण आजु कियो,
रघुनन्दन राम लला सुखदाता//
हरषैं उमंगें,अवधेश-नरेश,
सनेह निहारति हैं छबि,,,माता//
सुखदायक हैं रघुनायक जी,
अवतार लियो,हरि विष्णु विधाता//
शरणागत हूँ प्रभु राम-कृपालु,
रमापति जन्म लियो ;;;नवराता //
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भवतारन दीनदयाल प्रभो,
नवमी-नवरातहि जन्म लियो //
रघुनाथ भए,सुखदायक राम,
धरा,,,जननी,कुल धन्य भयो //
सुरनायक हैं जगपालक राम,
प्रजा-हितकारन वन्य गयो //
दश -शीश विनाशक वीर विभो!
जग,,राम-सिया हरिनाम रट्यो//
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#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

#त्वरित #स्वरचित (गाजियाबाद)


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नमन मंच "भावों के मोती"
13-5-2019
विषय-राम नवमी
आप सभी मित्रों को राम नवमी की बधाइयाँ,,,
भगवान श्रीरामचंद्र जी के जन्मोत्सव पर कुछ। भक्तिरस पूर्ण हाइकु,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
, श्री राम जन्मोत्सव
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राम नवमी
श्रीराम जन्मोत्सव
अयोध्या पुरी //🌹
,,बधाई बाजै
कौशल्या के अँगना
खेलै ललना//🌹
, रामावतार
, विष्णु स्वरूप जन्म
, जग तारन //🌹
ठुमक चले
, बालक राम लला
, घुंघरू बाजे //🌹
माता कौशल्या
, छबि पे बलिहारी
, मोहित मन //🌹
कौशल राजा
, दशरथ के भाग्य
, मुदित मन //🌹
प्रजा पालक
हिन्दू धर्म नायक
, श्री राम चन्द //🌹
,
राम चरित्र
, जीवन अमृतम़्
, रामायण में //🌹
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ब्रह्माणी वीणा
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नमन मंच "भावों के मोती"
12-5-2019
शीर्षक-सुख/ दुख
विधा- गीतिका
गीतिका
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मन-वीणा के सात सुरों में,,नव गीत- काव्य संचार हुआ /
मीरा तुलसी के सरस भाव से,नवल छंद रसधार हुआ //
-
हुई स्रजनशील अनवरत ,, कोमल कविता की निर्झरणी ,
मैं रीझ गयी हूँ भावों पर ,,मुझको कविता से प्यार हुआ //
नित खिलते यौवन सी दमकी ,ललित कामिनी सी कविता
सौंदर्य शब्द ,कला चमकी ,प्रिय गीति-,प्रीत अभिसार हुआ /
-
प्रकृति धरा के आँचल में, जीवन ज्योति मिली कविता को ,
#सुख -/#दुख की माया छोड़,प्रभो,,अदभुत हृदयोदगार हुआ //
--
सत्य,आस्था, विश्वास न्याय ,जीवन के आधार बन गए ,
माँ वीणा पाणि के वरद हस्त से ,कवि जीवन का उद्धार हुआ //
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रचनाकार = #ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित (गाजियाबाद)

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नमन "भावों के मोती "
नवरात्रि के शुभ पर्व पर, ,,,,,,
नव दुर्गे माॅ की स्तुति
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पंच चामर छंद में = 12121212 , 12121212 ,मात्रा व 8 लयात्मक सौंदर्य के साथ ( एक पॅक्ति )अंत तुकांत के साथ,,,,,,
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नमामि कौशिकी उमा ,सुकामिनी सुकंठिका !
सुमंगले शुभांकरी , शिवा शिवाय साधिका
महेश्वरी त्रिलोक की,,,सदा दुखे निवारिका
प्रचंड दैत्य मारती ,,कराल रूप चंडिका //
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निशुंभ दैत्य मर्दनी ,नमामि देवि कालिका
महासुरे विदारती , कृपालु मातु कालिका
त्रिनेत्र ज्वाल सी जले,त्रिशूल धारि कालिका /
विछेदती त्रिशूल से,निशुंभ दैत्य कालिका//
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नमामि च॔डिके मही, कृपालु च॔ड नाशिका
विराट रूप धारणी ,सहस्त्र बाण चालिका
सहांरती पछाड़ती ,चलांय तीर चंडिका
त्रिलोक भी हिले डुले,हुंकारती प्रचंडिका /
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नमामि मातु देविका,भजामि देवि अंबिका
नमो नमो दयामयी, कृपा करो सुसाधिका
कत्यायनी उमा रमा, सुशारदे विमोहिका
नमो त्रिशूल धारिणी,जगेश्वरी सुपालिका //
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#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
( गाजियाबाद)
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नमन मंच
शनिवार -6-4-2019
विषय- चैत/नवरात्रि
एक कुंडलियां,,,माँ को समर्पित
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मंगलकारी हो सदा, ,,, संवत्सर नव वर्ष/
प्रारंभ चैत्र मास से,,,,,,, नूतन हिन्दू वर्ष//
नूतन हिन्दू वर्ष,,,,,,,,,,,,संग माँ दुर्गा आईं /
घर -घर मंगल गान,,,,मधुर बाजै शहनाई/
सुन "वीणा" के बोल,, मातु-पूजन शुभकारी /
शुभम् होय नव वर्ष,,,दिवस हों मंगलकारी //
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#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित (गाजियाबाद)

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नमन मंच
शुक्रवार-5-4-2019
विषय-वोट/मतदान
कलाधर घनाक्षरी में,,,भावाभिव्यक्ति
2121212121212121
212121212121212
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भारती पुकारती,सुनो! स्वदेश के सुजान,
"देश ना झुके कभी,सम्मान जान जाइए!
वक़्त आ गया समीप,है चुनाव कर्णधार,
जो रहे प्रधान श्रेष्ठ, वोट डाल आइए!!
हिंद का हिंदुत्व मान,श्रेष्ठ धर्म है महान,
एकता रहै सदैव,शीश को झुकाइए!!
सर्वश्रेष्ठ कर्णधार,शीर्ष भा,ज,पा हमार,
जाति-भेद,द्वेष भाव,देश मे मिटाइए!!
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित ( गाजियाबाद)

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विषय-फूल
विधा-तांका 
1-4-2019
दो "तांका" फूलों पर
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1)
गुलाब फूल
खुशबू के पटल
महके दिल
प्रेम का उपहार
सुरभित हो प्यार//
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2)
बेला - चमेली
महकाती घूमती
यादों की गली
खुशबू सराबोर
प्रीतम संग चली //
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#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित ( गाजियाबाद)
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नमन मंच
"भावों के मोती"
1-4-2019
विषय-#मकरंद
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बसंत में #मकरंद
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दुर्मिल सवैया छंद में,,,, अभिव्यक्ति
112 112 112 112,112112 112112( 8 सगण 112 )अंत तुकांत गुरू
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पियरी-पियरी चुनरी पहिने,
सगरी सखि आजु लुभाय रहीं/
मधुमास सुवास करै नित ही,
वनिता,तन आजु सजाय रहीं/
सरसों महकै,महुआ टपकै,
रसगंध धरा महि छाय रहीं/
चहुँ ओर बसंत रिझाय रहो,
बगिया ,#मकरंद लुटाय रहीं/
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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कलियाँ-कलियाँ सब फूल गईं
मधुगंध पराग लुटावत हैं/
मधुमास सुवास करै नित ही,
कलियों महि प्रीत जगावत हैं /
वन-बागन पुष्प -पराग झरैं,
कलि -प्रेम,अलिंद बुलावत हैं/
कहुं कूकति डारन कोयलिया,
मधुराग-सुतान सुनावत हैं/
🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

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ईश्वर 
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गीतिका
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हरिगीतिका छ॔द में ,,,
2212,2212 2212 2212
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ईश्वर जगत की चेतना,संसार के आधार हैं /
निर्गुण सगुण हर रूप में छाए हुए साकार हैं/
~~
मनु मोह-माया से ग्रसित,भूले सभी अनुदान को,
जो मिल रहा,जो मिल चुका,भगवान के #उपकार हैं/
~~
सब धर्म की वाणी वही,सदज्ञान के हरि रूप हैं ,
करुणा दया-सागर वही,प्रभु प्रेम के अवतार हैं/
~~
सूरज गगन,धरती चमन,संसार के मालिक वही,
सबके हृदय मे बास करते,जग-सृजन सूत्राधार हैं/
~~
हम कर्म-पथ पे चल रहे,शुभ कर्म कर लें हम सभी,
बस जिंदगी में कर्मफल पर ही हमे अधिकार है/
~~
हरि आदि हैं आगोचरा,भव-सिंधु का प्रारूप हैं,
जब जिंदगी-नौका फंसे,प्रभु नाँव खेवनहार हैं/
~~
मस्जिद,इसाई धर्म,मंदिर -साधना प्रभु रूप हैं,
पाहन अगर मानो शिवालय,हृदय मे ओंकार हैं//
~~
वो राम हैं वो श्याम हैं,साईं-गुरू -सतज्ञान में,
अनजान हम प्राणी सभी,प्रभु ज्ञान के आगार हैं //
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विधा-हाइकु 

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🌹
युवा पुरुष 
कर सकें सघर्ष
जीवनी शक्ति//
🌹
आज का युवा 
वक्त से पराजित 
शक्ति विहीन//
🌹
डिग्री धारण
भटकें गली-गली 
रोजी के लिए//
🌹
आजादी मिली 
युवकों की जोश से 
अपार शक्ति//
🌹
यूवा-हृदय 
अति साहसपूर्ण 
युगांतकारी //
🌹
यूवा-जागृति 
क्रांतिकारी प्रगति 
देश उन्नति//
🌹
मन का वेग
अद्भुत ओजपूर्ण 
सृजनशील//
🌹
जय जवान 
युवा शक्ति प्रधान 
देश-प्रहरी //
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🌼🌹🌼🌹🌼🌹
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित

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भगवान श्री कृष्ण चन्द्र , रसिक बिहारी बृजमोहन के नाम समर्पित ,,फागुन में *सुंदरीै सवैया छंद ,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,जय श्री कृष्णा
******** सुंदरी सवैया,********
112 112 112 112,112 112 112 112 2( सगण (112) 8+एक गुरू
🌿🌹🌿🌹🌿🌹
यमुना तट श्याम बने रसिया,जहॅ फागुन फाग रसाल भयो री /
ब्रजमोहन आय गए छलिया, बृषभानुलली मुख लाल भयो री /
सबहीं सखियाॅ नव रंग भईं , बृजलाल के गाल गुलाल भयो री /
मनमोहन रंग भरैं पिचका,हरि की छवि आजु कमाल भयो री //
*******************
🌿🌹🌿🌹🌿🌹
********************
ब्रजनंदन खेलहिं -होरिन में, पिचकारिन रंग दई सखियाॅ री /
अॅगिया चुनरी सब भीज गई ,फगुवा रस- रंग भईं गलियाॅ री /
बृज कुॅजन रंग गुलाल उड़ै,बृज के घनश्याम बने रसिया री /
वृषभानुलली मिलिकै सखियाॅ ,चुपके सब ढूँढ रही छलिया री /
🌿
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#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार


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हाइकु में अभिव्यक्ति 

मैं - वृंदावन
फाग खेलत कान्हा 
धन्य हो गई //

यमुना तट
आए श्याम रसिया
खेलन होरी //

कुँज की गली
गोपियाँ मनचली 
मचावैं होली //

रंगीली होली 
राधा मोहन सॅग 
जी भर खेली //

भर पिचका
डारैं मनमोहन
रंग बरसै //

बृज सखियाँ 
मल दियों गुलाल 
गाल पे लाल//

मीरा के प्रभु 
तन मन रंग दो 
प्रेम रंग में//
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ब्रह्माणी वीणा
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22 12,2212,2212,2212 (मापनी)
हरिगीतिका छंद में,,,
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होली हमारे हिंद का, मधुरिम सरस त्योहार है ।
उड़तीं फुहारें रंग की,ज्यों फुलझड़ी जलधार है।।
*
ये प्रेम का सुन्दर मिलन,,विखरे हृदय को जोड़ता,
सब नफरतों को तोड़ती, होली मिलन दमदार है।।
*
गोकुल बिरज में धूम है,,पिचकारियाँ छूटे वहाँ,
पीताभ रंगों में बसा,,राधा-किशन का प्यार है ।।
*
प्रहलाद की हरि साधना का,भक्तिमय विश्वास ये,
सत धर्म की ये विजय है,भगवान का उपहार है।।
*
होली मनाओ प्यार से,बदरंग बस ना कीजिए,
करलो हृदय को रंगमय,,,,ये प्रेम की बौछार है।।
*
ये भक्ति आस्था से मिला,भगवान का वरदान ज्यों,
जलती रहेगी होलिका,व्यभिचार का प्रतिकार है ।।
*
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#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
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विषय-स्वतंत्र लेखन " होली "
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" बिरज की पावन होली"
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होली शुभागमन पर,,,
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सुंदरी सवैया छंद में ,,,,,नव निर्मित प्रयास
112 112 112 112,112 112 112 112 2( 112सगण×8 ) अंत दो गुरू
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घनश्याम बने रसिया- ब्रज के,
फगुवा महि धूम मचावत होली/
इत श्याम छुपे वन-वीथिन में,
मुख लाल कियो,सखियाँ हमजोली/
उत लाल गुलाल मलैं रसिया,
बृषभानुलली ,,,घुंघटा-पट खोली /
ब्रज -गोकुल रंग फुहार उड़ै,
बदरंग भईं,,, अँगिया अरु चोली//
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सखि!फागुन आय गयो,मनभावन,
मोहन आय,,,मचावन होरी /
घनश्याम- छुपे, चितचोर -मुरारि,
अबीर-गुलाल मलैं,ब्रज- गोरी/
ब्रजराज लिए पिचका कर में,
रँग छाँड़ दई,,,सखियाँ रँगबोरी/
ब्रज-गोकुल आजु अनंद भयो,
रसराज नचावत हैं ब्रज-छोरी//
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकारणी

#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित रचना


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बरसात पर कुछ विशेष छंद, ,बदरा,घन
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सुंदरी सवैया छंद = 112 112 112 112,,112 112 112 112 2 अंत तुकांत के साथ दो गुरु
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बरसात सुहानि लगै मनको, बरसै बदरा मन भाय सखी री/
÷
झरती बुॅदिया सरसै जियरा,झुमिकै हॅसिकै मन गाय सखी री/
÷
कहुॅ कूकति डारन कोयलिया,कहुॅ मोर पॅखा झलकाय सखी री/
÷
प्रिय संग अनंग रिझाय रह्यो,अभिसारहि- प्रेम जगाय सखी री//
÷
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÷
परदेश गए सजना अपने ,हियरा महि याद सतावन लागे /
÷
घनघोर घटा बिजुरी चमकै ,,,,गरजै बदरा डरपावन लागै /
÷
बरसात सुहात तबै सजनी,जब प्रीतम संग मुस्कावन लागैं /

अभिसार करें, उमगैं सजनी,बरषा ऋतु नारि लुभावन लागै //
÷
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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 "नारी अस्तित्व "
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नारी सृष्टि की अनुपम कृति है।
जिसकी महिमा व गरिमा,
अतुलित व अवर्णनीय है 
नारी का अस्तित्व,
सर्वथा पूज्यनीय है 
महिमामयी देवि सदैव वंदनीय है 
जननी की सारभौम शक्ति,
मातृत्व से परिपूर्ण है 
धरणी सी महान है ।
अन्नपूर्णा है मानव जीवन की !
कोमल काया है संसृति की !
फिर भी अपार सहनशीला है !
दयानी है शिवानी है कल्याणी है।
शीतल चंदन सी !
किन्तु, हिमालय सी दृढ़ भी ! 
नारी अम्बे है नारी जगदम्बे है 
नारी सृजन है नारी गंगे है !
पुरुष के समग्र अस्तित्व में समाहित,
अर्धनारीश्वर रूप है शिव की !
पार्वती, सरस्वती भवानी है जग की !
नारी की महिमा का अंतहीन शब्द है 
किन्तु, देखती हूँ ,,,&&&&&&&&&&
इतनी महानता के बावजूद ,
नारी अस्मिता असहाय क्यों? 
आज नारी- उत्थान के परिवेश में,
स्त्री को अपनी गरिमामयी
विशिष्ट , पहचान चाहिए !
बदल गया है जमाना ,
बदल गया सम्मान का पयमाना
अब परदे के पीछे रहने की आन ,बान शान ,
उसको भाती नहीं ।
सिर्फ घर की गृह देवी बनना,
उसको सुहाता नहीं ।
बाहर की विकसित दुनिया में,
उसे लक्ष्य का अनुपम द्वार चाहिए /
जो अपनी अन्तर्व्यथा में,
चुप चुप सहती थी रोती थी,
उसे अब अपने हृदय पट खोलकर,
खुलकर जीने की,
अनंत में उड़ने की,
खुली बयार चाहिए,सपने साकार चाहिए /
माँ ,बहन ,पत्नी का गौरव पद पाकर,
जो करती रहीं सदा न्योछावर ,
आज इसी तिरस्कृत,पीड़ित नारी को,
स्वयंसिद्धा बनने का,
सम्पूर्ण अधिकार चाहिए //
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
प्रस्तुतकर्ता,,,,,,,,,,,,,

रचनाकार =ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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विषय -नारी/ वीरांगना(3)
--नारी अस्तितव पर कुछ बिहंगम दृष्टि,,,,,,
हाइकु विधा मे, ,,,,5 +7+5 वर्ण आधा शब्द गिनती नहीं ,,,
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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---नारी श्रद्धा है
---मानव जीवन की
---विश्वासमयी /
🌹
---नारी गंगा है
---बहती प्रेम- धारा
---ज़ीवन- तट //
🌹
---नारी जननी
---मानव जीवन की
---सृष्टि रचिता //
🌹
---नारी निर्मला
---प्रेम की निर्झरणी
---झरे ममता //
🌹
--- सीप- नारियाँ
--- मुक्ता गर्भधारणी
---जगत्जननी //
🌹
---खिलेंगे फूल
---स्त्री मन के भीतर
---सम्मान हो तो //
🌹
---घर अँगना
----चमकें ज्यों चपला
----प्यारी बहना //
🌹
--- कुलतारनी
----दो कुल संवारे
----बनती सेतु //
🌹
----कन्या से नारी
----त्यागमय बेचारी
----नर ना जाने //
🌹
---माँ का स्वरूप
---सारभौमिक रूप
--- ईश वंदिता //
🌹
---दीप-बेटियाँ
---जीवन की रौशनी
---- होती कल्याणी //
🌹
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
रचनाकार- ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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 जल/ नीर* पर कुछ विशिष्ट तांके,,,,,
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----माता धरणी
----हृदय में धारण
----अमूल्य निधि
----वन , नीर सजल
----गंगा पावन जल //
**********************
----धरा महकी
----ऋतुराज आ गए
----दूल्हन बनी
----पुष्पों का वनमाल
----डालती जयमाल //
***********************
----धरा सहती
----कष्टों के झंझावात
----अमृत देती
----नीर,मेघ सजल
----जग पोषक जल//
***********************
----जल-जीवन
----पोषक तन मन
----धरा -चमन
----कर लें संरक्षण
----जन-जीवन-धन // ***********************



प्रमाणिका छंद मे मुक्तक,,,,
12121212
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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सुहावना ,,,,बसंत है !
सुवासिता दिगंत है !
खिली खिली वसुंधरा,
लो'! शारदीय-अंत है!!
🌷🌿
बसंत की,, ,,,बहार है!
कली कली निखार है!
गली -गली सुगंध की,
सुवासनी ,,,, बयार है !!
🍁🌿
चलो सखी निकुंज में !
बसंत की ,,,,,,,तरंग में !
हरी-भरी,,,,,, वसुंधरा,
निहार लें ,,,,,,,उमंग में !!
🍁🌿
खिली हुई चमेलियाँ !
हरी लतांय -बेलियाँ !
हँसे, गुलाब लाल है,
जगांय रात-रानियाँ !!
🍁🌿
समीर है ,,सुवासनी !
धरा लगे,, लुभावनी!
अलिंद गूंज छा रही,
हँसे लिली सरोजनी !!
*****************
🍁🌿
गुलाब की कली खिली
सुगंध-गंध,,,,,,, फैलती
बहार छा गई,,,,,,, लगै,
प्रमोदनी-हवा,,,,,,,चली//
🍁🌿
विमोहनी-बसंतिका
बनी हुई,, मधूलिका
पराग पे ,,,अलिंद हैं,
अनंग की प्रसारिका//
*****************
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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गीतिका – छंद वीर आल्हा। १६, १५ मात्रा
समान्त – आम 
पदांत – अपदान्त 
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गीतिका
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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भारत माॅ के अमर शहीदों,,,,,,,,,भारत वासी करें प्रणाम 
किया समर्पण जीवन सारा,और किया सुख त्याग अनाम /
~~~~~
धन्य सैनिकों तुम बलिदानी,,,,,,,,वसुंधरा के वीर जवान 
देशभक्त रणवीर सदा तुम;,,;,,कर दुश्मन का काम तमाम /
~~~~~
कितनी माँ के लाल छिन गए,,,,,माँ बहनों का लुटा सुहाग,
नमन धरा के वीर सपूतों,,,,,,,,,,;, ,,,वंदनीय तुम्हारा नाम /
~~~~~~
काश्मीर है सदा हमारा ,,,,,,,,,,,,देवी मातु का प्रतिष्ठान, 
पाक यदि नापाक करे तो,,,,,,,,,दुश्मन भोगेगा परिणाम /
~~~~~~
लक्ष्मी बाई थी महरानी ,,,, ,,,देश पे किया प्राण कुर्बान ,
सत्य न्याय पर लड़ने वाले,.,. अवतारी श्री कृष्ण ललाम /
~~~~~
धन्य मातु हैं धन्य पिता श्री, ,,,,जिनके जन्मे वीर महान, 
स्वदेश समर्पित रणबाॅकुरे ,,,,,त्यागा प्राण'भगत,सुखराम //
~~~~~
*************************************
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शहीदों के नाम एक *घनाक्षरी*
"कलाधर छंद" में,,,,,,
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गुरु लघु की आवृत्ति 15 बार ,,,चरणांत एक गुरु
8+8+8+ 7-- वर्ण-31
समांत-ईर
पदांत-सैनिकों

"वीर सैनिक"

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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भारती पुकारती,सुनो पुकार देश-वीर,
देश को बचाइये,सुधीर- वीर सैनिकों !
शक्ति धार के,प्रचंड लक्ष्य में रहो सदैव,
जै निनाद घोष संग,हो अधीर सैनिकों!
ना झुको,डटे रहो,महान- देश के जवान,
जीत की उमंग में,बढो प्रवीर सैनिकों!
देश- अस्मिता झुकाय,घात से चलाय तीर,
मार डालिए तुरंत वक्ष-चीर,,सैनिकों!!
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🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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भारत के #जवानों ,,,#वीर सैनिकों🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
देश वासी तुम्हें नमन करते है💔💔🇮🇳
कायरों को करारा जवाब दिया जाएगा,,,🦊🦊🦊🦊
सभी शहीदों के नाम समर्पित ,,,विह्वल हृदयोदगार,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गीतिका"
~~~~~~
छंद "गंगोदक सवैया छंद 
चयनित छंद " गंगोदक "
212 212 212 212 ,212 212 212 212= मापनी
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देश को आज ऐसी जगन चाहिए,,,,,,,,ओ शहीदों! तुम्हारी लगन चाहिए /
आज छुपकर भरे भेढिए देश मे,खोज कर इन सभी को कफन चाहिए //
**
देख लो ये किधर को सपोले छिपे, ढूंढ कर तुम जरा ,मार ड़ालो इन्हें ,
दूध जो भी पिलाते रहे जान कर,, ,उन सभी को वतन से गमन चाहिए//
**
पाक नापाक है जानते हैं सभी,,,,,,,,अन्न खाते यहाँ,धर्म खोते सभी,
हद्द है आज ऐसी सुनी ना कभी,,,,,,,जो करें बदसलूकी,शमन चाहिए//
**
सैनिकों तुम सदा देश प्रहरी रहे,,,,,,है भरोसा तुम्हीं पर वतन का रहा,
जंग ऐसी लड़ो मान सम्मान की,,,,,,,आंच आए न ऐसी जतन चाहिए//
**
देखिये हर तरफ आग ही आग है,जल रही अस्मिता देश की हर जगह ,
हो रही गंदगी दुश्मनों से बहुत,,,,,अब हमें साफ सुथरा वतन चाहिए//
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

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बसंतोत्सव 
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पलाश फूलों से लदा बसंत /
दहकता है पीले रंगों में,
यौवन के नव अख्यान सा बसंत /
नवल प्रसूनों में झिलमिलाया ,
नवल रंगो का वरदान है बसंत /
छा गया मथुमास चहुँओर 
हर्ष व् उल्लास छाया , ,
जीवन का उमंग - तरंग बसंत /
टेशू फूलों में प्रस्फुटित लालिमा,
प्रेम राग से गुंजित बसंत /
कली कली खिल गई 
यौवन की कसक जग गई /
लताएँ लिपट चली ,
तरुओं के अलसित प्यार में,
नैनों में रंग गुलाबी बनकर 
मद भर गया है अनंग- बसंत /
उड़े गुलाल प्रीतम के संग ,
तन मन को लुभाता गया,
प्रीत का साथी प्रिय बसंत ।।
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रचनाकार = ब्रम्हाणी वीणा हिंदी साहित्यकार

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चामर छंद 
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212121212121212=23 ( मूल छंद पर आधारित ,वार्णिक )
समांत-आर ,,पदांत दो

माँ शारदा वंदना "( गीतिका)
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आजु है बसंत पर्व ;आइए वसंतिका,
मातु शारदे वरा,,, सुप्रेम में निखार दो !!
***
शारदे विशारदे ,,,,सुकाव्य की सुसाधिका ,
शब्द भाव गम्य हो , सुलेखनी सुधार दो ।।
***
मातु ज्ञान -देवि हो सुज्ञान दान दो मुझे,
शीश पे अशीष दो , सनेह-भाव सार दो ।।
***
ज्ञान दृष्टि दीजिए विधा वरा सुभासनी,
मानसी कृपामयी , सुतीव्र बुद्धि धार दो ।।
***
लेखनी,,हितोपदेश के लिए लिखें सदा,
कामना सदैव मातु ,,,साधना प्रसार दो ।।
***
मूढ हूँ विमूढ हूँ हिया -तमो भरी निशा 
देवयानि साधिका ,प्रबोधनी विचार दो ।।
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

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चामर छंद में ,,,दो सृजन
2121212,,12121212( मापनी)
वार्णिक छंद
1) समांत-ई पदांत-रही
2)समांत- आ पदांत-करे
"जिंदगी"
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जिंदगी सवाल है ,,,,,,जवाब संग भी रही /
जन्म से छिपी हुई,,, पहेलियाँ बनी रही/
न्याय क्यों अन्याय सा,सत्य उकेरती रही/
अंत वक्त में सुशांत,,,, प्रश्न खोजती रही //
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प्रश्न के जवाब भी,,यदा-कदा मिला करे /
ढेर से सवाल- जाल,,,, जिंदगी बुना करे/
धर्म को अधर्म कहें,,असत्य को चुना करें /
पारखी सदा यहाँ,,,,,,सुकर्म में जिया करें/
***
राजनीति में सदा ,,,अनीति ही चला करे/
हार-जीत प्रश्न का जवाब ना मिला करे/
लोकतंत्र है अजीब,,,,,सत्य से घृणा करे/
लाठियाँ-प्रधान की,सुदेश मे चला करै /
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🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार



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