Monday, April 27

"लेखिका परिचय"23.अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-716
एक परिचय मेरा।
******************
लोकप्रिय वाद्य यंत्र हूँ
सदा सरस्वती सँग हूँ
संगीत की अनुपम शान हूँ
मैं,"वीणा शर्मा"सुरमय तान हूँ।
मई पच्चीस को ये जग देखा
मात-पिता का स्पर्श सहेजा
बटी मिठाई'नजफगढ़ दिल्ली में
लक्ष्मी थी जो घर मे आई।
"बाल कृष्ण "के मधुबन में
"कृष्णा"ने मुझको रोपा था
छुई मुई सी पौध थी मैं
स्वावलंबन से फिर सींचा था।
हुई विदाई समय भी आया
"मोहन"सँग परिणय सूत्र बंधाया
शांत,स्नेहिल चितवन मोहन का
यही सभी कुछ मुझे था भाया।
शिक्षा ने दिया अनमोल मुकाम
हिंदी,अर्थशास्त्र मेरी पहचान
चाह यहीं नहीं थमी है मेरी
राजनीतिशास्त्र ,अगली है सीढ़ी।
सुखना झील,निहारूँ शाम
चंडीगढ़ है मेरा धाम
हरियाली,शीतल पवन
मनभावन मेरा चमन।
प्रिय रचना में सर्वप्रथम है नाम
"पौत्री का धूप -स्नान"
लेखक "भावों के मोती "समूह के
आदरणीय सुमित्रानन्दन पंत जी को
मेरा बारम्बार प्रणाम।
अनमोल तुकांत शब्दों से डालते प्राण
ज्यों रचना को स्वर्ण तराशता सुनार
नित -नित मिल रहा मुझे है आशीष
चरणों मे पंत जी नवा रही शीश।
स्वप्न साकार कर रही मैं ये भी
असहायों को मुफ़्त शिक्षा हो
बेरोजगारों को रोजगार हो
मुरझाए चहरों पर मुस्कान हो।
जीवंत रहूँ रचनाओं में ,मैं
माँगू ईश,यही वरदान
रचनात्मक लेख,सटीक प्रहार
कला क्षेत्र भी मेरा संसार।
बह्र समझ न आया यार
छंदमुक्त से सजता मन द्वार
मुक्क्तक से भी मन है रमता
फिर भी मन को सब है जमता😀
'शान है तिरंगा','दुनिया गोल मटोल'
'काव्य सौरभ',ये बचपन संग्रह आदि
समाज कल्याण,सरिता,चित्रलेखा
जनसत्ता,नवभारत,श्रोता,रिपोर्टर आदि में लेख मेरे नाम।
भाई कपिल ने राह नई दिखाई
साहित्यिक समूह में राह बताई
नित नव सृजन आकर करने लगी
अनगिनत विधा मुझे आने लगी।
"भावों के मोती"खेल खेल में बन गया
मन फिर इसमे मानो अपना रम गया
स्नेह नाते ऐसे बन गए
जीवन मे पुष्प हो खिल गए।
भावों में आकर रिश्ते नए बन गए
गुरु, पिता,भाई-बहन,मित्र
सभी यहाँ तो बन गए
दिल से दिल के भाव मिल गए।।
बस,ईश्वर से आशीष हूँ मांगती
स्नेह,विश्वास की डोरी थामे रखना
रूठ बैठे अगर कोई हमसे तो फिर
उससे,उसका साथ मांगती।

दिनांक-२३/०४/२०२०
विषय-लेखक परिचय

*ज़िंदगी ही जानती है*
--------------
ढलती लकीरों में दर्द मिलाकर ही तो खड़ी हूँ मैं,
जिंदगी ही जानती है कितना लड़ी हूँ मैं।

बिखरी उम्मीदों से सजाई है दर ओ दीवार मैंने,
उस दीवार की हर ईंट में गढ़ी हूँ मैं।

दुनिया से नाराज़ हो कर भी क्या करना है,
नाराज़ तो खुद से हूँ, जब भी कमजोर पड़ी हूँ मैं।

न जाने किस किताब में होगी मंज़िल से मुलाक़ात,
एक अधूरी सी कहानी की कड़ी हूँ मैं।

लफ़्ज़ों में सजी जिंदगी का आईना हूँ मैं,
हर ओर से कांटो से जड़ी हूँ मैं।

-निधि सहगल 'विदिता'


लिखती थी मेरी कलम बस ऐसे ही कुछ नग्में
भावों के मोती का साथ मिला
मन में लिखने का एक ख्वाब जगा
जिससे खोये हुये अरमान जगे चल पड़ी मेरी कलम यात्रा .

लिखने के नये आयाम सजे
कभी भक्ति रस में लिखा
कभी बचपन और यौवन में लिखा
जब भी लिखा निष्काम और ह्रदय से लिखा

रीता हैं मेरा नाम
कलम मेरी एक रीत में बंधी हैं
हर कविता को रीत से मैं लिखती
कभी कुछ बेहतरीन हो जाता कभी कुछ ख़ास ना हो पाता.

पर जब भी लिखा भावों के मोती ने सराहा
गुनी जनो का साथ मिला
लिखने का जज्बा जगा
बस यही हैं अभिलाषा सब का साथ ऐसा ही मिले
कलम मेरी ऐसी ही चलती रहें .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
आत्म परिचय

छोटी सी दुनिया है मेरी।
करना है घर का काम।

फुर्सत जो मिल जाए तो,
करती हूं फेसबुक पर काम।

साइंस विथ बायो से ग्रेजुएट।
आया नहीं कुछ भी काम।

पर भावों के मोती समूह में आकर।
मिली कुछ नई पहचान।

बोकारो स्टील सिटी में रहती हूं।
पति इंजीनियर थे प्लांट में।

अब वो हो गये रिटायर।
घर में बैठकर करते हैं आराम।

बस इतना सा परिचय मेरा।
बेकार बैठी रहती हूं।

मन के भावों को अपने।
कागज पर उतारती रहती हूं।

गुणीजनों का साथ मिल गया।
भावों के मोती समूह में आकर।

कलम को नई पहचान मिली।
मित्रों की सराहना पाकर।

वरना मैं तो यूंहीं बेकार जिये जा रही थी।
आंसूओं को अपने नित दिन पिये जा रही थी।

आपने जो पसंद की रचना मेरी।
दिल में नई उम्मीद जगी।

कलम को साथ में लेकर।
नित नई रचना सृजन की।

स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी



दिनांक-23-4-2020
विषय-"लेखक परिचय"(काव्यात्मक शैली में)


मेरा परिचय
नाम-डा.अंजु लता सिंह
शहर-दिल्ली
पसंद-अभिनय,नृत्य,लेखन,गायन,
पेंटिंग, काव्य पाठ
शिक्षा-एम. ए, पी एच .डी ,बी एड
विशेषता- ममतालु मां और जिम्मेदार गृहिणी
फोटो-संलग्न
कोई बात- मेरी स्वर्गीय दीदी की याद सदा मेरे साथ

स्वरचित कविता

मेरा परिचय

नाम मेरा है 'अंजु लता'-
खुद के बारे यही पता.
परिचय बस दे सकती हूं-
आत्म कथा कह सकती हूं,
एक प्रिंसिपल की बेटी हूं-
बस नाम उन्हीं का लेती हूं,
'सरस्वती देवी' हैं मेरी मां-
पिता 'विजय' ज्यों हो आसमां,
पति 'देव' हैं बेटे हैं दो-
डाॅक्टर और इंजीनियर वो,
एक 'मयंक' और एक 'प्रियंक'-
अहसासों में,दिल में हैं संग,
एक दुबई दूजा लंदन-
उलझा रहता उनमें मन,
व्याख्याता रही पैंतीस वर्ष-
हिंदी विषय में पाया उत्कर्ष,
हुईं प्रकाशित तीन किताबें-
तीन प्रकाशनाधीन हैं आगे,
शिक्षक अॅवार्ड और पुरस्कार-
सम्मान मिल चुके कई बार,
मेरे पापा गर्वित होते-
तारीफें करते न थकते,
फेस बुक से जुड़ी हूं अब-
छू लेती हूं अक्सर नभ,
लेखन मेरे रक्त में निहित-
कलम इसी से होती पुलकित,
प्रेरित किया सदा पिता ने-
मेरे मार्गप्रदर्शक बनकर,
धन्यवाद कहती हूं उनको-
आज 'चिरायु हों'यह कहकर,
मां के संबोधन ने मुझमें-
ज्ञान-पिपासा सदा जगाई,
कलमकार बनने की प्रतिभा-
मुझमें उनसे ही हैआई.
बड़ी बहन प्यारी मंजु दी को-
क्रूर-काल ने छीन लिया,
छोटी निक्की बनी चिकित्सक-
प्रण सेवा का सदा लिया,
छोटे भैया दो हैं मेरे-
नाज करूं मैं सांझ-सवेरे,
सुमन,रमन हैं ऊंचे पद पर-
हरदम मन उनको ही टेरे.

लगभग साठ सम्मान पत्र-
फेस-बुकी ढेरों तारीफें,
मिली अभी तक -
कलम साथ निभाए.

'अहा जिंदगी','रूपायन'
'नायिका','काव्य स्पंदन'
'हरियाणा प्रदीप','दैनिक जागरण'
'अमर उजाला' और 'नंदन'

महकी मेरे लेखन की सुरभि
सबमें छपकर हुई प्रफुल्लित
वीणा के तारों सी झंकृत
ऋतुराज सी हुई उल्लसित.

_____
रचयिता-
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
 लेखक परिचय
मैं जन्मी मुरादाबाद में
शिक्षकीय ज्ञान मुरादाबाद में।


इनटरमीडिऐट आर्य कन्या इन्टर कालेज
वेद संस्कृत की पाठन शाला।

विवाह उततराखणड में
स्नातक शिक्षकीय एम०के०पी०विदधालय से।

कर न सकी पोस्ट ग्रेजुएट
पारिवारिक कारणों से ।

अठारह साल स्कूलों में शिक्षकीय
ज्ञान जोत अलख जगाई ।

प्रतिलिपि पर लेखिका बन गई
मन के भावों का उदगार किया।

नहीं चाहे प्रमाणप्रत्र न चाहिये उपहार
बन जाए स्थान मेरा हर जन के हृदय में चिर काल।

स्वास्थ्य पर जोर नहीं शरीर पर है
दवाईयों का कहर ।
लेखन कर जी लेती हूँ ।
अनजाने लोगों से जुड जाती हूँ ।

धन्यवाद ।
पूनम कपरवान
देहरादून ।
उत्तराखंड ।

विषय.. परिचय..काव्य रूप मे
रचना
ऋतुओं मे श्रेष्ठतम ऋतु नाम पाया है।
साहित्य से उपनाम ऋतंभरा भी पाया है।

पढना ही जीवन का उद्देश्य था मेरा शायद
इसी शौक ने परिणय बाद भी,आगे पढाया है।

M.A से हिंदी कर साहित्य तक लाया है।
छू लूँ साहित्य गगन को मन मे आया है।

जुड़ी हूं पच्चीस प्रतिष्ठित साहित्य समूहो से।
गद्य हो या पद्य हर रचना लिखने पर मन आया है

जीते है सैकड़ों प्रशिस्त पत्र मैने पर घमंड छुआ नही।
नम्रता,सहनशीलता, मीठी वाणी व गम्भीरता गुण मेरे।

कहानी ,लेख ,संस्मरण ,गीत ,लघुकथा लिखी मैं।
गजल व छंदो पर मेहनत करना अभी बाकी मैं।

समीक्षा मुक्तक दोहे भी लिख लेती हूं।
नयी विधा सीखने को मन,कसर अभी बाकी है।

आन लाईन काव्य प्रतियोगिता मे भाग लेना व
उनको जीतना आनंदित मुझको कर जाता है।

बड़ा शान्त व सुखमय जीवन अब मैं जीती हूं।
ना कोई हड़बडी,अब ना कोई आपाधापी बाकी है।

जिया संघर्ष मय जीवन ता उमर शिक्षण करने में।
मेहनत से पढा कर शिखर पर बच्चो को पहुँचाया है।

जन्म दिया दो सन्तानो को,मातृत्व सुख भी पाया है।
गौरव,गरिमा दो अनमोल रत्न ने मेरा मान बढाया है।

पोती नाती ने आकर मेरा घर आँगन महकाया है।
बनकर दादी नानी भी ये सुख किस्मत से पाया है।

सहचर नंदकिशोर ने देकर प्यार, सम्मान,मुझको
ता उमर उन्होने मेरा साथ सदा ही निभाया है।

खुश हूं मैं संग उनके इस सांध्यकाल में,अब
ईश्वर तेरे दिव्य दर्शन करने पर मन आया है।

करती रहूँ साहित्य साधना जीवन के अंत तक।
करूँ समाज के लिये श्रेष्ठ साहित्य बस यही
उद्देश्य मैने मन मे ठाना है।

स्वरचित व अप्रसारित ।
रीतू गुलाटी..ऋंतभरा
हिसार हरियाणा

23/4/20
आत्म परिचय



मन जो कहता वो लिखती हूं।
शब्दो की दुनिया मे बसती हूं।
क्या बताऊँ खुद के बारे में
गुमनाम जगह में रहती हूं।
कलम कागज है दोस्त मेरे
प्रेम अथाह उन्हें मैं करती हूं।
ज्ञान नही साहित्य का मुझे
पर हौसला सीखने का रखती हूं।
अनुभवो की पोटली संचित की
कागजो पर उकेरा करती हूं।
खुद के पहचान की चाह नही
सीखने की चाहत रखती हूं।
काव्य सृजन के प्रेमियों के
बीच खुद को आनंदित रखती हूं।
तन मन से समर्पित है जीवन।
कलम सृजन के संसार को
इतना ही है मेरा परिचय
मैं नमन सभी को करती हूं।


स्वरचित
मीना तिवारी


23 अप्रैल 2020
लेखक परिचय

सन्61में अवतरित"मोहनप्रताप"घर
माता-पिता की अभिलाषा
मैं छोटी सी "आशा"
नहीं है मुझे कोई निराशा।

दो भाइयों के मध्य
थी मैं बादशाह
दीदी बड़ी नाते
थीं वह तानाशाह।

शिक्षा दीक्षा ग्रहण
भेजी पिया के घर
"जगदीश"जैसा साथी
पाकर हो गई मैं धन्य।

प्रियवर मेरे सुघड़ सुजान
कभी नहीं छोड़ी आन
प्रशिक्षित होने पश्चात
द्विजन पकड़ी राह।

4 नवरत्न अवतरित हुए
मेरे अपने घर
राशि शुचि प्राची पार्थ
शिक्षित दीक्षित हो वे चले कर्मदर।

कर्मपथ चलती रही
सामाजिक आयामों के मध्य
कभी धूप छांव आती रही
जीवन डगर मध्य ।

हिंदी संस्कृत साहित्य पढ़कर
पेशे से जोड़ना पाई
विद्यालय में आज तक
अंग्रेजी संस्कृत ही पढ़ाई।

प्रारंभिक नींव ही
थी गांधी की दुहाई
अंग्रेजी हिंदी माध्यम में ही
हुई मेरी ढुलाई ।

कवि मन था बचपन से
मद्यपान समसामयिक विषय
पर लिखती रही
कर्म पथ चलती रही।

हालात और परिस्थितियों
से राह पकड़ ना पाई
एक अरसा बीत गया
बीत गई तरुणाई ।

भावों के मोती मंच मिला
मन ने ली नव अंगड़ाई
कलम ले कर मध्य
करने लगी कविताई।

सेवा धर्म दोनों का पेशा
आंख में आंसू ना देखा
गुप्त थर्म की ये राह
ना है नाम की कोई चाह।

आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद


दिनांक- 23/4/2020
विषय- लेखक परिचय
विधा- काव्य
*****************

मेरा परिचय
**********

चौबीस मार्च उन्नीस सौ उनासी,
सरोज माँ के दिल की बाती
पिता जगदीश इतने हर्षाये
पूरे गांव लड्डू बँटवाये |

पैदा हुई देहरादून में
भारत की मै देवभूमि में,
राज्य है उत्तराखंड मेरा,
बसा जहाँ प्रकृति का डेरा।

दादी मन ही मन हरषाई
सुन्दर सी पोती जब पाई ।
नामकरण मेरा करवाया,
पंडित जी को घर बुलवाया |

ख्याति नाम दिया उन्होंने,
ढ़ेरों आशीर्वाद उन्होंने,
नाना जी भी दौड़े आये,
बडे प्यार ,से गले लगायें |

पापा बोले ये मेरी गीता,
रखा नाम मम्मी , संगीता।

एक बहन, दो मेरे भाई,
चारों ने मिल सैन्य बनाई,
आदेश मेरा सभी मानते,
तीनो मेरी खुशी जानते |

माँ शारदा आशीर्वाद,
खूब डिग्रियां मैंने पाई,
स्नातक विज्ञान की होकर,
कला क्षेत्र भी धाक जमाई |

अंग्रेजी में स्नातकोत्तर,
फिर हिन्दी को दिल में बसाई,
प्रेम पुस्तकों से बहुत है,
इसलिए एम. लिब. कर पाई |

शिक्षक बनना मेरा सपना,
बी. एड. भी मैं कर आई,
शिक्षित करती मैं बच्चों को,
विद्यालय- सेविका बन आई |

पढ़ने में थी सबसे आगे,
पापा मेरे खुश हो जाते।,
आया जब यौवन का भार
तब रिश्तों की लगी भरमार |

शुभ लगन मेरा करवाया,
संग मनीश विवाह रचाया,
ससुराल में मिलता खूब प्यार,
दो बच्चे मेरा संसार |

मन के भावों को मैं गढ़ती,
काव्य रूप मे उनको रचती,
छंद रथी की ख्याति पाई,
सम्मानों की वृष्टि आई |

लेखन कला का हुआ आभास ।
'भावों के मोती, से प्रकाश,
संगीत,नृत्य से मुझको प्यार,
यही संगीता का है सार |

संगीता कुकरेती


आयोजन - लेखक परिचय
दिनांक - २४/४/२०
विधा - मुक्त छंद

माता सत्यवती,
पिता रामेश्वर प्रसाद मिश्रा नाम।
पाँच नवम्बर उन्नीस सो छियासठ
को मिला ये जहाँन॥

मैं मीनाकुमारी शुक्ल "मीनू"
उनकी सब से छोटी संतान।
जन्मभूमि बना निराला,
मेरा प्यारा "अजमेर" राजस्थान॥

परास्नातक अभ्यास कर,
शिक्षिका से शुरू किया काम।
प्रिन्सीपल फिर कॉलेज लेक्चरर
तक किया अपना नाम॥

श्री मान मुकुल और श्रीमान श्याममोहन
मेरे बड़े भैया हैं सरकारी उच्च अधिकारी।
सुश्रीदीपा सुश्रीशीला सुश्रीगीता
बड़ी दीदी रहीं सदा प्यारी प्यारी॥

मध्यप्रदेश में है ससुराल,
आयुष ऋषिता दो प्यारी संतान।
शौक बना कविता लेखन,
वर्ष भर पहले थी कविता से अन्जान॥

इमानदारी सच्चाई और
प्रेम मेरे जीवन सिद्धांत।
चेहरे पर दिखता इसी का मेरे
तेज और श्री कांत॥

मीनूशुक्ल
राजकोट
दिनांक - 23,4,2020
दिन - गुरुवार
विषय - लेखक परिचय

होगा परिचय कैसा उस नारी का,
जो सदा ही परम्पराओं की बलि चढ़ी।
जो मर्यादाएं बेटी, बहन, गृहिणी की,
देख-देखकर के जीवन के सोपान चढ़ी।

लालसा पिता की थी मिले उत्तम शिक्षा,
एक अध्यापक की थी भावना बहुत बड़ी।
जिन्होंने कभी विरोध कुटुम्ब का सुना नहीं,
किसी तरह से हिंदी में मैं पोस्ट ग्रेजुएट हुई।

जब उम्र हमारी थी केवल उन्नीस की ,
बिन गृहिणी के घर का पद भार मिला।
मिल गये व्यंगकार पति साहित्य प्रेमी,
साहित्यमय मुझे अदुभुत संसार मिला।

साधन पढ़ने थे तो अध्ययन भी रहा जारी,
लेखन से ज्यादा थी पर घर की जिम्मेदारी।
कन्या रत्नों से नवाज दिया हमको ईश्वर ने,
रीत शिक्षा संस्कार की फिर सहर्ष संभाली।

धीरे से आई बीमारी हृदय ने हिम्मत हारी,
पेस मेकर बना साथी सलाह मिली विश्राम की।
उपद्रवी मन ये ठहरा शरण गया मोबाइल की,
साहित्य वातावरण में साथी बनी कलम की।

लुटाती हूँ भावों के मोती साहित्य के संसार में,
चाह नहीं यश उन्नति की खुश रहती हूँ भावों में ।
शारदे का आशीष रहेगा व्यस्त रहूँगी लेखन में,
मित्र बहुत मिले जीवन में चाह नहीं कोई मन में।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .



दिनांक-23-4-2020

परिचय

माँ 'शारदा'पितु 'ब्रज' की
मैं हूँ पुत्री नाम वंदना
जन्मस्थली झाँसी है मेरी
करती हूँ साहित्य साधना।

मजदूर दिवस को जन्म हुआ
मात पिता की दूजी बेटी
बेटी नहीं इतर बेटों से
कुप्रथा कुटुंब से है मेटी।

मेधावी छात्रा रही सदा ही
अंतर्मुखी स्वभावी हूँ
मुख के बदले कर्म बोलता
वैसे भी मितभाषी हूँ।

देववाणी से स्नातकोत्तर हूँ
बी एड शिक्षा ग्रहण करी
अस्थायी शिक्षण कार्य कर
संचारित ज्योति मन में धरी।

किंचित देरी से भान हुआ
कि लेखन प्रतिभा है मुझमें
प्रतिभाएं सभी में होती हैं
कला हीन न कोई जग में।

मन भावों का लेके सहारा
काव्य साधना करती हूँ
विनम्र भाव से आभार करूँ
शिक्षार्थी बन कर रहती हूँ।

सम्मान प्रशस्ति खूब पाए हैं
करके हमने नियमित लेखन
संचालक और सहयोगी सब
बने हैं आज परम प्रियजन।

छंद विधाएं और स्पर्धाएं
निशिदिन ही तो होती हैं
शुद्ध भावना रखे जो दिल में
जीत उसी की होती है।

मेधा उपनाम दिया गुरुजन ने
सगर्व उसे किया धारण
बुद्धि विवेक से पूरित है इंसान
सर्वश्रेष्ठ का करे सदा पारण।

करबद्ध नमन करती हूँ सबको
सबका जीवन मंगल हो
"मेधा" की है यही कामना
प्रेम भावना सबसे प्रबल हो।।

*वंदना सोलंकी"मेधा"*


विषय -परिचय

हिमगिरि सीना चीर चली मैं
निर्मल जल की धारा
इठलाती ,बलखाती बहती
हूँ 'सरिता' एक धारा
जहाँ -जहाँ से होकर गुजरूँ
वो तीरथ बन जाता
अपने-अपने पाप मिटाने
मानव मुझ तक आता
मीठे जल की धारा हूँ मैं
गुमां नहीं कर पाती
खारे जल से मिलकर मैं
अपना अस्तित्व मिटाती

बचपन बीता ,गई जवानी
अब है संध्या-काल
साहित्यिक अभिरुचियों से
प्रिय ! मैं हूँ मालामाल
एम.ए ,बी.एड शिक्षा पाई
अध्यापन से प्रीत निभाई
दोहे लिखती,मुक्तक लिखती
कुछ कविता और गीत हूँ लिखती
छन्द-बद्ध ,छन्द-मुक्त मैं लिखती
कोशिश सब लिखने का करती
कलाकार का मन है पाया
जीवन में संगीत सजाया

कॉलेज समय से लेकर अबतक
ढ़ेर प्रशस्ति-पत्र मिले हैं
जिन्हें प्रिय पाकर के मेरे
हरदम उर में फूल खिले है
इसी माह पाया है मैंने
'दोहा-रत्न' सम्मान
'मुक्तक -शिरोमणि' बन मैंने
पाया सबसे मान
इसी तरह करती जाऊँ मैं
नित साहित्य की सेवा
साहित्य की हरेक विधा की
चखती जाऊँ मेवा

ईश्वर ने इस योग्य है समझा
तीन पुत्री -धन मुझको सौंपा
पति रिटायर्ड इंजीनियर हैं
नगर गुलाबी अपना घर है
सुंदर है आशियाना हमारा
हर दिन उत्सव ,खेल हैं नाना (प्रकार)
एक बार जो यहां पर आये
लौट कभी न वापस पाये
आमंत्रण है सबको मेरा
कभी यहाँ पर डालो डेरा
प्राकृतिक सौंदर्य यहाँ पर
जगें कवि में भाव यहाँ पर

भावों की गंगा बहे , उर में खिलते फूल।
अपनी थकन मिटाइये,बैठ सरित के कूल।।

सरिता गर्ग



द्वितीय दिवस लेखक परिचय
23/4/2020
विधा-सरसी छंद

यू०पी०की सुंदर नगरी है ,सरस नाम बिजनौर।
जन्म यहीं पर पाया मैंने, मिला सुहाना ठौर।

पौराणिक इतिहास धरा का, गंगा जी के कूल।
विदुर-कुटी की शान निराली, हरि- चरणों की धूल।

सदी बीसवीं वर्ष छियत्तर, फागुन का था माह।
धर्म परायण मात-पिता की, मैंने चुन ली राह।

छोटा सा परिवार हमारा, बड़े निराले ठाठ।
खेल-खेल में सीख गई मैं, जीवन के सब पाठ।

अंग्रेजी में पी०जी० करती, बी०टी०सी० की पास।
लिखने-पढ़ने की हॉबी से, जीवन में उल्लास।

अमित नाम है पतिदेव का, अध्यापन का काम।
दो बच्चों से घर की बगिया, महके आठों याम।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

आत्म परिचय"

रंजना सिंह
श्रीमती पत्ती देवी बालिका इंटर कॉलेज शंकरगढ़ प्रयागराज
बी .ए. बी .एड. एम. ए. हिंदी अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश में जन्म हुआ मैं पापा की शहजादी
थी ।

लाड प्यार से पली-बढ़ी मै नखरे खूब दिखाती
थी ।

पढ़ाई का था मुझे शौक गर्मी की छुट्टियों में भी खूब किताबें पढ़ती थी ।

क्लास में सभी बच्चों से मैं हमेशा ही आगे रहती थी ।

हुआ व्याह यूपी में आई सास ,ससुर, पति की भी दुलारी थी।

घर परिवार सास-ससुर की सेवा हर जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी ।

इन सब में पड़कर पढ़ाई के लिए वक्त ना निकाल पाती थी।

मन में उत्पन्न हुआ निराशा का भाव क्या इतना ही जीवन है।

कुछ बनने की थी ललक कुछ करने की अभिलाषा थी ।

फिर मन में उत्साह जगा जुट गई पढ़ाई में
निरंतर .....

पढ़ने लगी जाग- जाग कर देर रात तक पढ़ती
थी ।
पढ़ लिखकर बन गई शिक्षिका मेहनत का मुझे मिला था फल ।

पूरी लगन और निष्ठा से अपने कर्म पथ पर मै हुई अग्रसर। ।

रंजना सिंह
प्रयागराज


स्वयं का परिचय

माता पिता चरणों में "जया" ने
रखा श्रावण मास में कदम
"राजसमन्द"के छोटे से गांव में
मिला मुझे सानिध्य

गांव से ही शिक्षा पूरी की
सपने थे बहुत बड़े मेरे
बचपन से ही कुछ करने
की अभिलाषा मेरे मन में थी

माता पिता का अटूट प्रेम और
साथ मिला मुझे हमेशा
आगे बढ़ते रहने को मुझे
प्रेरित करने वो हमेशा

उनके सपनों पर हमेशा
खरी उतरने की कोशिश करती
अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में
पूर्ण की मैने अपनी पूरी शिक्षा

कड़ी मेहनत की दिन रात
पर असफलता आईं हाथ
सपने जैसे टूट रहे थे
होंसला भी बिखर चुका था

शादी की उम्र हो चली थी
मां पापा की लाड़ली की
जल्दी से एक अच्छा रिश्ता देखकर
दिलीप कुमार संग मेरा हुआ विवाह

शादी के बाद ज़िन्दगी पूरी बदल गई
नया घर और नया रिश्ता था
नए रिश्तों से मेलजोल करना था
अपनी जिम्मदारियों को निभाना था

जिम्मेदारियों को मैने अपनी पूरी निभाया
पर सपनों में मेरे दिन रात जगाया
मन में शायद एक विश्वास था
माता पिता के सपनों को पूरा करने का

एक दिन जैसे ईश्वर की
असीम कृपा मुझ पर हुई
खोई हुई प्रतिभा का मुझे आभास हुआ
लिखती थी मैं मुझे ज्ञान हुआ

ईश्वर का नाम लेकर मैने
कलम डायरी हाथ में ली
सपनों को जैसे मेरे नए पंख लग गए
खोए हुवे अरमान फिर जग गए

अब तो बस मां सरस्वती के
चरणों में रहना है
अपनी कलम से मुझे
बहुत कुछ लिखना है

जया नाम का अर्थ तो
जीत हासिल करना है
यकीन है मुझे बड़ों के आशीर्वाद से
मुझे एक दिन अपना मुकाम मिल ही जाएगा

कहती हूं मैं सभी को इसलिए
सपने सच करने की चाहत हो
खुद पर पूर्ण विश्वास हो
तो एक सपने जरूर सच होते है

मां सरस्वती की कृपा मुझ पर
बस ऐसे ही सदैव बनी रहे
मेरी कलम से हमेशा मै
अच्छी कविताएं लिखती रहूं।
जया वैष्णव
जोधपुर, राजस्थान


दिनांक २३/४/२०२०
लेखक परिचय


पिताजी शिव नारायण प्रसाद
माँ थी शांति देवी, धार्मिक माहौल में पली पढ़ी मैं।
छपरा बिहार है जन्म स्थान।
नौ भाई बहनों में सबसे छोटी
मिला प्यार अपार।
बोर्ड परीक्षा के पहले पापा बिछड़े
माँ गुजरी बी०ए०फाइनल के दौरान।
भाई भाभी का प्यार रखा हमेशा मुझे खुशहाल।
बी०ए० आर्नस तक शिक्षा पाई
शादी हुई तत्काल, झारखंड है कर्मस्थली मेरा।
एक प्यारी सी बिटिया मेरी,प्यारा है बेटा राजा, जीवन है खुशहाल।
प्यारी सहेली को मनाने को कविता लिखी थी,जब मैं सिर्फ थी १५ साल।
बहुत व्यस्त रहा जिंदगी, पढ़ाई,शादी और बच्चों की परवरिश में व्यस्त रही सालों साल।
२५साल बाद कलम पकड़ी फिर मैंने हाथ।
आत्म सुखाय नही लिखना यही पढ़ी थी किताब,हो कुछ सार्थक संदेश निभाना चाहती आज।
बहुत सम्मान पत्र मिला ,जो मिला भावों के मोती का साथ।
बहुत सारे साहित्य संस्था से जुड़कर साहित्य सृजन करती हूं दिन रात।

दिनांक:23/04/2020
विषय:लेखक परिचय(काव्य रूप)

विधा : छंद मुक्त
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
मै नीलम अपने माँ पिता की लाडली
उनकी थी इकलौती संतान ...
लखनऊ मे जन्मी उन्निस सौ तिरसठ मे
पली बढी नवाबो के शहर मे....
राजधानी उत्तर प्रदेश की
भूलभुलैया रूमी दरवाजा इसकी शान।

पूरे समाज का सामना कर पालको ने
दी मुझको उच्च शिक्षा व संस्कार।
बी0एच0यू0 बनारस से शिक्षित होकर
शुरू किया जीवन का नया अध्याय ।
लखनऊ के इंजीनियरिंग कालेज से
व्याख्याता का शुरू किया नया लक्ष्य।

कुछ ही वर्ष मे बंध गये हम गठबंधन मे

अमित रूप मे मिला जीवन साथी महान।
अयोध्या की नगरी मे पाया सहज ससुराल
डॉक्टर के परिवार पाकर धन्य हो गई मै।
जल्दी ही मेरे आँगन मे आये नये नन्हे मेहमान
ख़ुशियाँ दिनो दिन बढती गई ज्यो वो बढने लगे।
कालेज मे भी संभालते रहे नित नये नये कार्य।
जीवन के इस लम्बे सफर मे आए कई नये आयाम
सीखा प्रबंधन शैली लोगो के साथ मिल जुल के।

रचनाऐ लिखना सीख रहे अब "भावो के मोती" मे
आप सबके सहयोग से यह यात्रा यूँ ही चलती रहे।
लिखू नित नयी नयी विधाऐ गाऊ हर दिन नया गान
सीखू शर्मा जी से मात्रा ञान व दवे से हाककू ञान।
वीणा जी से कुशल संयोजन ,भाव प्रधान उनकी शैली
नीता जी का भाषा ज्ञान ,अनीता सुधीर शैली प्रधान।

आज का समय कठिन ,शुरू की सामाजिक सेवा
लाक डाउन मे कम्यूनिटी किचन शुरू हुआ
टेक्निकल युनिवर्सिटी के माध्यम से।
इक्कीस दिन से हमारा "कलाम अन्न छेत्र"
करता है खाना वितरण का काम
फिर से याद दिलाना सबको घर मे रहना
एक मात्र विकल्प आज हमारे पास है
फिर आयेगे वही पुराने दिन घूमेगे हम शान से।
💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥
सधन्यवाद
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

२३/४/२०२०
लेखक-

परिचय
जन्मस्थान पटना में,चाँद बचपन का नाम,
भरे पूरे परिवार संग , जीवन बीता आम,
बचपन से लेखन किया,संगीत में बसे प्राण,
साहित्य में रुचि हमेशा,मिलता था सम्मान,
शादी हुई कलकत्ते में भरपूर मिला है प्यार,
परिवार सुख समृद्धि संग,सामाज्यस बारम्बार,
बच्चों संग बीता जीवन, ख़ुशियाँ अपरम्पार,
अब जुड़ी इस मंच से ,लेखन करूँ अपार
कविता की पुस्तक छपी,हर्ष ख़ुशी बेमिसाल,
मनमीत बन गया काव्य,शब्दों का बुनकर जाल।
नमन करूँ भावों के मोती,प्रगति पथ पर साथ,
पल पल प्रेरित हो चल दी,कविता को ले हाथ।
स्वरचित

चंदा प्रहलादका



लेखक परिचय

मध्यप्रदेश अन्तर्गते, जिल्हा सागर होय।
तहां तहसील देवरी ,जन्मस्थान मम सोय।।

मात पिता की लाडली, जया जयंती नाम।
शादी के उपरांत से सागर शहर है धाम।।

सन उन्नीस सौ उनहत्तर तिथि पन्द्रह अप्रैल।
इस धरती पर अवतरण, यही दिवस प्रियेल।

कथा कहानी मैं लिखूँ, गीत गजल और छंद।
बुंदेली बोली मेरी, लिखने में आनन्द।।

पथ पुस्तक की लेखिका ,सर्जना रचनाकार।
कविताएँ मन भवानी ,मेरे हिय उदगार।।

रचनाकार
जयंती सिंह
सागर मध्यप्रदेश
भावों के मोती।
विषय-आत्मपरिचय।

हिंदी प्राध्यापिका
करनाल, हरियाणा।

मंजू-शंकर शिक्षक मात-पिता
ब्रजभूमि मुरसान जन्मस्थान।
छह मार्च, फाग, दूज पैदा हुई
घर में तीसरी कन्या,हूं मैं चौथी संतान।

मात-पिता और दादा-नाना सब शिक्षक आचार्य।
ऐसे वातावरण में पलकर बनी शिक्षक
कर्णधार।

बचपन से ही रुचि थी पढ़ने और पढ़ाने में।
चित्रकारी,लेखन, एक्टिंग और नाचने गाने में।

वातावरण अनुकूल नहीं शिक्षा में ध्यान
लगाओ।
कहा गया मातपिता द्वारा इन सबसे ध्यान हटाओ।

छूटा लेखन,चलता क्रम फिर कुछ कभी-कभी।
बस समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा तभी।

बी.ए.बी.एड.और लाॅ कर रही हो गई फिर विदाई।
चंडीगढ़ में बहू बनकर मैं अपनी
ससुरालआई।

पति सुभाष लेक्चरर विज्ञान में नाम कमाएं।
करें नौकरी नारनौल वहां चर्चे खूब सुहाए।
कस्बा छोटा था तो कोर्ट जाना ना हो पाये।
हिंदी एम. ए.करने का फिर अपना मन बनाये ।

ज्यूडीशरी में भी परीक्षा दे मन बहलाया।
एकबार जीत लड़ाई आधी मन मुस्काया।

समय का रथ चलता रहा पर
आंचल खाली दुखता रहा।
बड़ी मंन्नतों के बाद फिर सात साल में
शुभ घड़ी आई।
झोली एक-एक कर दो पुत्र-रत्नों से
मां ने फिर भरवाई।

ईश्वर ने कृपाकर नौकरी हिंदी प्राध्यापिका
स्कूल में लगवाई।
फिर तो फिर से पढ़ने की नई मानो राह मिल गई।
लाइब्रेरी चार्ज मिला साहित्यपठन राह खुल पाई।

पांच साल पहले मां ने जब छोड़ दिया था साथ।
दिल पर फिर लगा एक बहुत बड़ा आघात।

व्यथा दिल में बहुत कागज पर उतर आई।
फेसबुक पर पेज *कुछ अनकही* बना
दिल के खालीपन ने व्यथा-कथा बन लिखवाई।

गृहस्थी और नौकरी में है रहता समयाभाव।
कभी-कभी लिख लेती जब मन में उठते भाव।

एक साल पहले मिली प्रतिलिपि की ऐप।
पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ रचनाएं अनेक।

सी.सी.एल.का लिया फायदा जुलाई महीने से।
शुरूआत हुई लेखन की,मन भावों को पन्ने पे।

आती है पसंद पाठक को कोई तो खुशी होती है।
अपनी भावनाओं को यू समक्ष"प्रीति"रख देती है।
पाठकों से भी प्रेरणा लिखने की मिलती है।
हौसलों से बिन पंख भी उडा़न हो जाती है।।

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"

विषय : आत्म परिचय काव्य रूप में
तिथि : 23.4.2020


नाम ग्रोवर रीता
शिक्षा:एम ए हिंदी कीता,
बीए में भी हिंदी आनर्स विषय था
अनजान थी क्या भविष्य था।

दिल्ली में जन्मी, दिल्ली में शिक्षा पाई
हम दो बहनें और तीन थे भाई।
जीजा जी और बड़े भैया का-
निधन था अति दुखदाई।

सैन्य अधिकारी से हुआ विवाह
तबादलों से जीवन भर किया निर्वाह
अब एक बेटे बहु और एक पोते संग
चल रहा अपने जीवन का प्रवाह।

आयु पूछो तो सठियाने में जोड़ो दस
स्वास्थ्य को दवाओं से रखा है कस
जीवनी शक्ति सलामत रहे
और नहीं कुछ चाहिए बस।

लिखना एक हाबी थी
हॉबी में क्या खराबी थी!
भावनाओं को कागज़ पर
उकेरने की चाबी थी।

लिखा तो फिर छपाने की इच्छा जागी
भाग्यवश सरिता,गृहशोभा जैसी पत्रिकाओं मे
छप गए कुछ लेख रचनाएंं
इससे आस और आगे भागी।

छपाऊं कोई किताब
जो बन सके खिताब
काम करे जनसेवा का
मिले मुझे सवाब

पहली पुस्तक कहानियों की छपवाई
सोचा था यह करे गी अगुआई,
कविताओं को छपवाने की
फिर इच्छा मन में आई।

प्रकाशक वर्ग में तो व्यावसायिकता थी छाई
कहते, कविताएं कराती नहीं कमाई,
कविताओं से उनका था छत्तीस का आंकड़ा
बिन देखे कविताओं को कर देते मनाही।

मैं एक प्रशिक्षित सौदर्य विशेषज्ञा भी थी
वर्षों से निजि पार्लर के व्यवसाय में अति व्यस्त थी
दो वर्ष पॉलिटेक्निक में सौंदर्य शिक्षिका -
दो वर्ष वी. एल. सी. सी मे मैनेजर के पद पर कार्यरत थी।

इंगलिश की तुलना में सौंदर्य विषय पर हिंदी की स्तरहीन पुस्तकें
देख कर अक्सर मुझे होती थी ग्लानि
फिर स्तरीय हिंदी सौंदर्य पुस्तक-
मैने छपवाने की ठानी।

एक एक कर के चार हिंदी सौंदर्य पुस्तकें छपवाईं
स्तर भी सुंदर था, बात मनभाई
अब कविता की पुस्तक छपाऊं-
फिर से बात मन में आई।

पर मामला तो वहीं था, न बड़ा राई
कुल आठ किताबें छपा कर भी,
कविता पुस्तक की बारी न आई
यह विचार मेरे लिए था दुखदाई।

'वर्णपिरामिड जसाला', 'भावों के मोती'
दोनों समूहों ने कुछ करी भरपाई;
पुस्तक की इच्छा तो न मिटी-
समूहों से सम्मान कई पाई।

किंडल पर हिंदी प्रकाशन हुआ आरंभ
मेरी आशा को लगा गया पंख
एक ओर 'भावों के मोती' का ब्लॉग
दूसरी ओर उड़ूं गी किंडल के संग।

इसके अतिरिक्त महिला हूं धर्मभीरु
पर किसी धर्म से कट्टरपने से न जुड़ी
जहां जो अच्छा सच्चा लगा, अपनाया
जो न लगा,उससे स्वयं को बचाया।

हां बुद्धिज़म के कुछ अधिक करीब हूं
उसकी शिक्षाएं मार्गदर्शक बनीं, खुशनसीब हूं
वहां भी अंग्रेज़ी का है बोलबाला
इसपर मुझे विचार आया आला।

एक पुस्तक एकल, दूसरी के बारहों खंड
किया सबका हिंदी अनुवाद, इच्छा थी-न था दंड
हिंदी-बुद्धिज़म में सहयोग की थी इच्छा
अब इनका भविष्य क्या होगा, यह है परीक्षा।

आस्था तो दृढ़ है, पाऊंगी सफ़लता
बुद्धिज़म की शिक्षा है, बनो अपराजेय
धैर्य से करनी है, दूर हर विफ़लता
हर बाधा पार कर, पाऊंगी जय।

यही है मेरी कथा अंतरंग
बांटी मैने 'भावना के मोती' के संग
सब की कथा सुन कर-
क्या समूह करेगा सदस्यों को कुछ दंग?
दिनांक -२३/४/२०२०
विषय -आत्म परिचय
िधा - छंदमुक्त
*******************

तारीख आठ, मास अगहन।
भोर हुआ, मेरा अवतरण।
हुई मनोर घर आत्मजा।
तृप्ति ने नाम रखा तनुजा।।
खेलकूद में थी अभिरुचि।
पढ़ाई में माथापच्ची।।
साहित्य में रहे न लगाव।
फेसबुक ने बढ़ाया चाव।।
आयु नहीं है अभी तक तय।
रचनाओं में लाएँ हम लय।।
शून्य से किया सफर शुरू।
मिले साहित्य साधक गुरू।।

तनुजा दत्ता
23/04/20
द्वितीय दिवस

आत्म परिचय
दोहा छन्द
***

अपना परिचय लिख रही,दोहों में ही आज ।
दो अक्टूबर जन्म है,लकी नाम है राज ।।

जन्म नवाबों के शहर ,माता शीला नाम ।
प्रथम सुता रविन्द्र की ,जन्मी उनके धाम ।।

अनिता की पहचान है ,विद्यालय का नाम ।
कार्बनिक रसायन दिया,जीवन को आयाम ।।

शोध क्षेत्र औषधि रहा ,शौक रहा विज्ञान ।
रहस्य में तब डूब के,किया पूर्ण अभियान ।।

बंधन विवाह में बँधे, पति का नाम सुधीर।
दो संतति के रूप में,जीवन रंग अबीर ।।

जीवन की इस मोड़ में ,लगा व्याधि अरु रोग।
पृष्ठ किये रंगीन तब ,मिला कलम का योग ।।

साहित रुचि दो वर्ष से,आख्या अब उपनाम ।
यात्रा मंगल दायिनी,आये नहीं विराम ।।

भावों के मोती पटल ,मिला आपका प्यार ।
गुणी जनों के साथ से ,भरा ज्ञान भंडार ।।

सत्य मार्ग का अनुसरण ,जीवन का सिद्धांत।
विद्या उत्तम दान दे,पूर्ण करे वृत्तांत ।।

अनिता सुधीर आख्या
Damyanti Damyanti 
दिनांक २३/४/२०२०
मेरा परिचय नगर सुनेल भध्यभारत,था होलकर राज्य |

जन्मस्थली मेरी
पिता डाक्टर बिशनलाल शर्मा |
ममता मयी माँ थी अयोध्या बाई |
शिक्षा स्थल हटूडीं अजमेर मे पाई |
विवाह कर भेजा पिता ने गरोठ जिला मंदसौर मे आई |
पति थे शिक्षक राधेश्याम मिश्रा |
ससुर हनुमान प्रसाद सासू माँ दाखा बाई |
घरगृहस्थी संग की पढा़ई उच्च व उच्चतम शिक्षा विक्रम विश्व विद्यालय से पाई |
अध्यापिका बनकर जीवन संवार बच्चो का सत्यकर्म साथ |
सेवा निवृति ली स्वेच्छिक चार वर्ष पूर्व |
धीरे धीरे चलन हुआ मोबाईल का
सम्माननीय साहित्य कारो से मिला
सुदंर अवसर सीखने का यही हूँ भाग्यशाली |
मै दमयंती मिश्रा का यही परिचय हे |
नमन मंच जिसने मुझे अपनाया |


दिन - गुरूवार
दिनांक- 23अप्रैल/2020

मेरा परिचय

स्वतंत्रता सेनानी की बेटी हूँ मैं,
भारत माँ की शान ......
नाम हमारा रत्ना ...
मैं एक अदना सी इंसान!

पिता - स्व श्री बद्री नारायण मेहता( स्वतंत्रता सेनानी)
माता चमेली देवी की तीसरी संतान!
रखती हूँ सबके लिए प्रेम हृदय में,
जिसमें बसता हिन्दुस्तान ....
मैं एक अदना सी इंसान!!

22फरवरी दिन था शिवरात्रि का,
आंधी पानी साथ लाई जन्म हुआ बिहार !
स्नातक परीक्षा चल रही थी,
हुआ हादसा - मचा कोहराम,
ग्रहण लगा बाबूजी के सपनों को ...
सोचा था वकील बनाऊंगा ..
बिटिया को उच्च शिक्षा दिलवाऊंगा!
मेरी शिक्षा तो अभी
ज़ारी है क्या दूं परिणाम!
एक अदना सी इंसान!

हाव - भाव मदद के,
उठते दोनों हाथ ...
समाज सेविका मैं बनी
एक अदना सी इंसान!

लिखने की प्रेरणा मिली ,
हमें हमारे बाबूजी से ,
छह साल की उम्र में ...
कविता रची बाबूजी पे !
मैं एक अदना सी इंसान!

साहित्यिक उपलब्धियाँ
बहुतों मिलीं हैं ।
करती हूं इनका सम्मान!
नहीं मुझे इसका गुमान .....
मैं एक अदना सी इंसान!

वर्तमान में- शीर्षक साहित्य भोपाल
द्वारा धनबाद प्रभारी ।
साहित्य के प्रति लोगों को जागरूक
करना मेरा काम ।
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 30 से ज्यादा
रचनाएँ प्रकाशित।
साहित्यिक मंच "भावों के मोती "
जैसे अनेकों साहित्य मंच से जुड़ी हूँ।
प्रकाशित- तीन काव्य साझा संकलन
एक एकल पुसतक " तरंग "
शीघ्र प्रकाशित होने वाली काव्य संग्रह -लघुकथा ,संस्मरण , कहानी संग्रह।
वर्तमान पता -
रत्ना वर्मा
204 अंबिका अपार्टमेंट
सराय ढेला
धनबाद -झारखंड
स्थाई पता -
रत्ना वर्मा
K.67/63
इश्वरगंगी
वाराणसी- ( उत्तर प्रदेश)





23/4 /2020
बिषय लेखक परिचय

मध्यप्रदेश जिला नरसिंहपुर निवासी सुषमा ब्यौहार मेरा नाम है
साहित्यिक गतिविधियों में रहना ही मेरा काम है
गाँव के परिवेश में बचपन बीता एम ए की डिग्री पाई है
कठनाईयों के दौर में की मैंने पढ़ाई है
नवभारत दैनिक भास्कर में सदैव प्रथम श्रेणी पाया है
गीता प्रेस गोरखपुर कल्याण में लेखन का अवसर पाया दूरदर्शन पर भी अंताक्षरी में प्रथम स्थान आया है
अपने दादाजी से माँ का सारा प्यार दुलार मिला
प्रसाद रुपी लेखनी का व्यवहार मिला
दादाजी प्रसिद्धी जानी मानी हस्तियों में थी
उनका ही वृहदहस्त मेरे लिए प्रेरणा थी
कभी अपनों से धोखा खाया कभी अपनों ने भरमाया
षडयंत्रों के गहरे सागर में डूब खूब गोता खाया
पर कुछ सम्बल दृढ़ निश्चय का कुछ निर्भयता का साया
अनवरत चलते रहना संघर्षों का संग पाया
कठनाईयों के रहते भी होते कलम नहीं छोड़ी मैंने
कर्तव्यों के बोझ तले मर्यादा नहीं तोड़ी मैंने
दादाजी का आशीर्वाद माँ शारदे की कृपा बनी रहे
कभी खत्म न हो ए दौर कलम सदा चलती रहे
पति का पूर्ण रुपेण सहयोग मेरे संग रहता है
ए मैं नहीं कहती जमाना कहता है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार





द्वितीय दिवस
लेखक परिचय

मेरा परिचय
*********

प्राचीन पाटलिपुत्र जिसे कहते है अब पटना,है गंगा तीरे,
जन्म हुआ वहाँ मेरा,जन्म तिथि है 15 अक्तूबर।
आई गोद माँ बाला,पिता महावीर शर्मा के घर,
मैं अपने घर की सबसे छोटी
सबकी प्यारी,पिता की दुलारी।
शिक्षा पाई स्नातकोत्तर तक
विषय था हिन्दी और इतिहास,
मेरे जीवन का है एक सुखद सा पल
जब मैने पाया एम,ए,का गोल्ड मेडल।
बनना था मुझे शिक्षिका
किया तब मैने बी,एड,कोर्स,
किताबों की मैं दिवानी थी
पाया डिग्री तब बी,लिब,इन्फार्मेशन साइंस की।
विवाह हुआ तब जमशेदपुर आयी,
विनोद सा विनोदी तब पति मैं पायी।
पहनते हैं वो हरदम काला कोट,
वो है एक सीनियर,कुशल ऐडवोकेट।
विवाह बाद मिला मुझे पति का सरनेम,
हुई #शर्मा से #निधि मैं, #निधि होना नहीं है गेम
मेरे आंगन में है बस दो ही बच्चे,
बेटी अंकिता बेटा अमन, मन के सच्चे।
अभी स्कूल सेवा से निवृत हूँ मैं,
स्लम एरिया के बच्चों को पढाती मैं।
वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गों संग बतियाती हूँ ,
हँस बोल कर समय उनके साथ बिताती हूँ ।
लिखने का था शौक बहुत मुझे पर,
समयाभाव के कारण शौक परवान चढ़ने ना पायी।
यूँ रडियो,अखबार,पत्रिकाओं ने
मेरे भावों के मोती को पिरोया है।
लेकिन भावों के #पंखुड़ी खिलने लगी है,
नवतारा का #नवकिरण फैलने लगी है।
है बस इतना ही परिचय मेरा,
मिले आपका आशीर्वाद और
धन्य हो जीवन मेरा!!!

अनिता निधि
जमशेदपुर,पूर्वी सिंहभूम
झारखंड



विषय-लेखक परिचय ( आत्मकथात्मक शैली )

दूध दही का जित सै खाणा...
मेरी जन्मभूमि ...सै हरियाणा
पंडित लखमीचंद ,जाँटी गााम
साँग रागणी से कमाया नाम ।

अट्ठाईस मई उन्नीस सौ बहत्तर
मनुज ..रूप में मैनें जन्म लिया
माता सावित्री पिता रामकुमार
मुझे संतोष कुमारी नाम दिया।

हम चार बहन और एक ..भाई
क्रम संख्या दो मेरे हिस्से आई
मेहनत में हूँ बचपन से अव्वल
कक्षा बारह तक सफल पढाई
गायन,नृत्य और अभिनय में
विशेष महारत स्कूल से पाई ।

एक नव बंधन में बाँध दिया
मेरा जीवन साथी ढूँढ दिया
देश -राजधानी ससुराल बनी
ग्रामीण सभ्यता भी बहुत खली

संस्कृतियों का वह संधि काल
उच्चतर शिक्षा एक बना सवाल
मन में विश्वास ...अटूट इरादा
मैंने .हर एक बाधा को फाँदा ।

दर्शन निष्णात की उपाधि पाई
व्यावसयिक बी.एड डिग्री पाईं
अध्यापन ही आजीविका बनाई
अपनी खास..पहचान बनाईं ।

तीन पुत्रों की कहलाई माता
बड़े बेटे को मिले जुड़वाँ भ्राता
एक दुर्घटना में मैं चोटिल हुईं
मृत्यु की जीवन से यूँ हार हुई
वक़्त बुरा था पर बीत चला
तीन शल्य पीड़ा सहना पड़ा ।

मेरी ज़िंदगी करवट लेने लगी
काव्य से गहरी प्रीति होने लगी
संतोष कुमारी है काग़ज़ी नाम
ख़ुद को संप्रीति दिया उपनाम

पटल मुझे भावों के मोती मिला
बहु विधाओं ..में पारंगत किया
काग़ज़ क़लम से गहरा नाता
लेखन करना मुझको भाता ।

दो एकल,साँझा दस संकलन
और ..पाँच की हुई तैयारी है
पटल, समाचार पत्रों में लेखन
मेरा वर्तमान में भी जारी ..है ।

मंचों पर मिले कई पुरस्कार
काव्य पाठिका छवि साकार
सामाजिक संगठनों से नाता
सेवा करना मुझे बहुत सुहाता

सहृदयता, उदारता पहचान
इनका संबल ही मेरा ईमान
चापलूस लोगों से दूरी रखती
स्पष्टता से बात निज कहती ।

ज़िंदादिल स्वाभिमानी रहूँगी
यही परिचय आज लिखूँगी ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘




विषय- लेखक परिचय काव्यरूप
विधा- छंदमुक्त

काव्यात्मक परिचय

उत्तराखंड देवभूमि में,
सन बहत्तर श्रावण मास,
आविर्भाव हुआ था मेरा,
घर में छाया एक उजास।

माँ लक्ष्मी पिताजी महीधर,
एक बड़ा संयुक्त परिवार।
नई पीढ़ी पहली संतान मैं,
खुशहाल हुआ घर संसार।

शिक्षा- दीक्षा मैंने अपनी ,
देवभूमि प्रांगण में पाई ।
विवाह हुआ सन तिरानबे,
देश की राजधानी में आई।

पेशे से हिन्दी शिक्षिका हूँ,
पुत्र पुत्री रूपी दो रत्न मिले।
मां वाणी की कृपा से फिर,
लेखनी,वर्ण बड़े यत्न खिले।

साधना शब्दों की करती हूँ,
ग़म में भी न रहूं गुमसुम।
कष्ट, तमस पथ संग चले,
आखिर नाम है मेरा कुसुम।

मैं हूँ वही कुसुम जिसे,
कांटे भी प्यार करते हैं ।
राहों से लेकर देवों तक
मुझसे श्रृंगार करते हैं l

कुचल दे चाहे ज़माना ये ,
मुझे पैरों के तले राहों में ।
हूँ स्वाभिमानी मैं बहुत,
रहती नहीं पनाहों में l

शूलों का संग दामन में ,
पीड़ा का मंज़र गढ़ते हैं ।
कदम मेरे मुसीबतों से ,
लड़कर आगे बढ़ते हैं l

पल्लव ही मेरे सच्चे संगी ,
वल्लरी भी प्यार करती हैं ।
मधुमास मदिर तितलियां,
यौवन निसार करती हैं l

सोंधी मिट्टी से उग कर मैं,
वृंत्तों साखों पर खिलती हूँ ।
देव चरणों में कभी हार में ,
कभी मृत्युशैया पर सजती हूँ ।

निदाघ, शीत, कंटक संग,
हर हाल मुस्कराती हूँ ।
रंग बिरंगी मकरंद महक,
अनुराग सबका पाती हूँ।

कभी प्रेमी का अनुराग हूँ मैं ,
कभी स्वप्निल सेज सजती हूँ ।
डाली शाखों से टूटती हूं ,
टूटकर भी मैं नित हंसती हूँ।

मधु पराग कोष भंवरे का हूँ,
मीत मिलन उपहार बनती।
बिन कुसुम उपवन है सूना,
कभी नहीं मैं स्वयं कहती।

उदास निराश न होती कुसुम ,
वृंत्तों से झरकर काम आती ।
दो दिन के क्षणभंगुर जग में,
मुस्कान लबों पर बिखराती ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली



दिनांक -23/4/20
विषय -लेखक परिचय काव्य भाव


कब मैं अस्त हुई कैसे उदय
चंचल स्वभाव देती हूँ परिचय।
जनवरी 23 आई पितृ आँगन में
नाम मिला कंचन इस प्रांगण में।

संतान पहली लाड़ प्यार में पली बढ़ी मैं
बाबा को लगती थी प्राणो से प्यारी मैं।
स्नातक मध्य पहुँची पिया आँगन में
नई चुनौती नया समर्पण
नया जहाँ था नयनन में।

किया स्नातक फिर स्नातकोत्तर
ससुराल के संरक्षण में।
अंकित कर रही अपना जीवन
अपने इस परिचय में।
प्रथम रुचि थी लेखनी साहित्य में।

भावों के मोती पृष्ठ पर उतारती हूँ
यूँही इन शब्दों से जीवन संवारती हूँ।
सकारात्मक सोच दया भाव लिए हृदय में
क़िस्मत पर विश्वास नहीं कर्मप्रधानता जीवन में

कंचन वर्मा
स्वरचित
नई दिल्ली





परिचय
शिखा नाम रक्खा,हनी घर मे कहते
पिता श्री महावीर,माताजी शीला
बड़ा एक है भाई,दूजा है छोटा
डैडी रेलों की दुनिया के हैं जानकार
खूब दुनिया धुमायी,रेलों की सैर
हमने बायो लिया,कुछ डिसेक्शन किया
फाइनल ईयर में ही रिश्ता आनंद से हुआ
छूटी फिर सब पढ़ाई,नयी दुनिया आयी
के रेलों की दुनिया से,रंगों में आये
पति चित्रकार नाम कमाएं अपार
रहते भोपाल,वैसे है छत्तीसगढ़ के
हुए साल तीन,एक परी नन्ही आयी
नीली उसको बुलाये,वो तान्या कहलाये
जब वो जाए स्कूल,तीन की पूरी हुई
फिर हमने भी कॉलेज शुरू कर दिया
BSc फाइनल ईयर में, दाखिला लिया
फिर बस एक साल में पुत्र भी आगया
वरु कहते जिसे,आर्यन नाम रखा
महीने 4 का था तब प्रीवियस किया
ऐसे प्राइवेट एम ए सोशल में किया
फिर रुचि मेरी पेटिंग में बढ़ने लगी
पति को ही फिर गुरु कहने लगी
एम ए पेंटिंग किया,बेटा नर्सरी हुआ
फिर एक शाला में ड्राइंग पढ़ाने लगी
फिर कहानी थोड़ी डगमगाने लगी
हस्पतालों के चक्कर लगाने लगी
जैसे तैसे फिर सम्भले, एक फ्लैट लिया
चार पहिया चलाना भी सिखा दिया
गाड़ी चलती रही दिन गुजरते रहे
एक डिग्री नयी पीएचडी हो गयी
फिर अचानक ही किस्मत ने धोखा दिया
दिसम्बर2017 को जीवन रोक ही दिया
सब वहीं रह गया, सब वहीं रुक गया
चार की छोटी दुनिया में अब तीन हैं
एक फोटो पे माला टंगी रहती है
आंखे उसको ही,अपने मे लिए रहती हैं
उनसे सीखा बहुत,समझा भी बहुत
उनके नाम का दीपक जलाते अब



दिन--गुरूवार
विषय-- परिचय
विधा--गीत
----------------------------------

नाम पिता ने रक्खा रानी |
जीवन की है सरल कहानी ||

खाती - पीती मौज उड़ाती ,
गीत खुशी के दिन भर गाती ,
पसंद मुझको पढ़ना--लिखना ,
समय- समय पर अच्छा दिखना ,

नहीं करुं कोई मनमानी |
जीवन की है सरल कहानी ||

स्नातक ही पढ़ पायी हूं ,
और नहीं मैं बढ़ पायी हूं ,
बाबुल की फिर छूटी गलियां ,
खिली सभी फिर मन की कलियां ,

कहते है सब मुझे सयानी |
जीवन की है सरल कहानी ||

लक्ष्मी नारायण हैं प्रियतम ,
जीवन के सब हरते है तम ,
खुशियां सारी दामन में हैं ,
खिलती कलियां आंगन में हैं ,

दुनिया मुझको लगे सुहानी |
जीवन की है सरल कहानी |

रानी कोष्टी गुना म प्र


दिनांक -23/04/2020
विषय-लेखक परिचय

उत्तम कुल में जन्म लिया ,मम मोहिनी अवस्थी नाम ।
पिता वीर बहादुर अवस्थी थे कृषक ,
माँ का था फूलमती नाम ।
उत्तर प्रदेश प्रांत में था फतेहपुर स्थान ,
उसमें देवमयी था मम जन्मस्थान ग्राम ।
बाल्यावस्था में ही पिता गए स्वर्ग सिधार,
भाई बहनों ने ही लिया था पालन पोषण का भार।
माँ सरस्वती की कृपा से विद्या की ज्योति जगाई,
परिवार क्या ग्राम में प्रथम परास्नातक
लड़की होने का गौरव पाई ।
व्याह हुआ पांडेय परिवार में
श्वसुर थे लक्ष्मी नारायण ,सास थीं विद्या देवी
श्वसुर भी क्या थे? पिता ही थे ,किंतु
वह भी मेरे लिए अधिक दिनों के लिए नहीं बने थे।
पति इंदुशेखर लोकसभा सचिवालय कर्मचारी थे,
संसदीय पटल जैसे महत्तवपूर्ण कार्य के प्रभारी थे ।
दिया सहयोग शिक्षण कार्य रहा जारी,
उसमें माँ जैसी सास का सहयोग रहा भारी ।
बगिया के दो फूल सौरभ और सुरभि हैं
बेटा आर्कीटेक्ट मैनेजर ,बेटी शोध कार्य रत है ।
मैं डी. ए. वी. की सेवा करती हूँ,
मन, वचन ,कर्म से हिंदी का वंदन करती हूँ ।
कभी-कभी भावों के मोती माला में ,एक मोती बन जाती हूँ ।
जब -जब मान मिले तो हँसती ,खिलती इतराती हूँ ।
हे भावों के मोती यूँ ही मान बनाए रखना,
इस मोहिनी की मोह-माया को बनाए रखना ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय



दिनांक- २३-४-२०
विषय- स्वपरिचय

अपना परिचय लिख रही मिला अवसर आज,
बचपन से ही अल्हड़ करती हूं सब काज।।
२८ अक्टूबर को जन्मी पवित्र छठ पूजा का दिन,
आखरी संतान घर की करती अटखेलियां प्रतिदिन।।
नाम पिता धर्मेंद्र हैं, माता नाम आशा व सन्नी है भ्राता।।
दो बड़ी बहनों का भी है साथ,
अभिभावक तुल्य जीजा का भी है सर पर हाथ।।
पवित्र पाटलिपुत्रा जन्म स्थान है मेरा,
गौरवशाली इतिहास का है यह डेरा।।
जीवन के महत्वपूर्ण दिनों में २०१२ है खास,
दिए थे एग्जाम कई किए परीक्षा पास।।
सन् २०१३ में नौकरी लगी बनी स्नातकोत्तर शिक्षिका,
अर्थशास्त्र विषय से सबका परिचय दिया।।
सन् २०१५ में शादी हुई मिला सौभाग्य वर,
जिम्मेदारियों का बोझ मुझपे आ गया पर।।
सन् २०१७ में मुझे मिला मातृत्व सुख,
कष्ट प्रसव का झेल हुआ बहुत दुख।।
पर दुनिया भर की खुशी मुझे मिली,
जब मेरी "आर्था" बेटी मेरी आंगन खिली।।
गृहस्थी और नौकरी यही है जीवन चार,
पूरे करने है अब भी सपने कई हजार।।
अनवरत शिक्षा से रहा है मेरा जुड़ाव,
पाने की है ललक बाकी है कई पड़ाव।।
स्वरचित एवं मौलिक
प्रियंका प्रिया,पटना,बिहार।



23/04/2020
द्व
िवार्षिकी आयोजन
लेखक परिचय

पांच अगस्त, द्वितीय प्रहर
सन् उन्नीस सौ उनहत्तर,
जन्म स्थान बरेली शहर
जन्मी मैं नीता, प्रभु मेहर ;

पिता श्री शिव, रजनी माता
हम बहनें पांच, एक भ्राता,
रूठना मनाना सब आता
सबका स्नेह मुझको भाता ;

पूरनपुर में हुआ विवाह
पति श्री सुशील अग्रवाल,
कर्तव्य की वो मिसाल
रखें सदा सभी का ख्याल ;

दो पुत्र मेरी पहचान
जिनमें बसती मेरी जान,
रिश्तों को समझें दोनों
करें सभी का नित सम्मान ;

सखी सहेलियाँ भायें मुझे
सरल और हंसमुख मैं हूँ,
नित्य निरंतर पढ़ना चाहूँ
परास्नातक हिन्दी में हूँ ;

अर्धशतक उम्र का देखा
सपना था कुछ अलग करूँ,
साहित्यिक कोई मंच मिले
नित नया कुछ लिखा करूँ ;

सुन ली देखो प्रभु ने मेरी
वीणा सा सुंदर झंकार दिया,
'भावों के मोती' मंच मिला
आभार सभी का शुक्रिया ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित





आत्म परिचय काव्य रूप
***

दिन था वो सात फरवरी,
खुशी से थी आँख भरी,
लडकी की थी लालसा,
आई थी घर नन्हीं परी,
पापा थे पुलिस अधिकारी,
माँ राज पर थी घर की जिम्मेदारी,
सबकी आँखों का तारा थी,
खुशियों का फव्वारा थी,
दिन भर की थकान में,
जिंदगी की धारा थी,
छठा वर्ष था बड़ा भयानक,
दुर्घटना हुई अचानक,
दुखदायक उस वक्त में,
आए जीवन में कई सुधारक,
वाणिज्य कला में लिया दाखिला,
आशिर्वाद गुरू मोहनलाल जी का मिला,
हुआ पूर्ण जब डिप्लोमा,
हूनर हाथ को नया मिला,
आया वक्त हुई पराई,
हुई नजफगढ़ से दिल्ली -6में विदाई,
पाकर साथ रविदत्त जी का,
पूर्ण करी अपनी पढ़ाई,
बन शिक्षिका कला बच्चों को सिखाई,
खिले दो फूल बगिया मेरी महकाई,
खुशी न्यारी जीवन में आई,
हँसते खेलते परिवार पर विपदा आई,
२९अप्रैल १३ में पिया की मिली जुदाई,
छूटा साथ प्रियतम का,
आत्मा प्रमात्मा में पिया की समाई
परिवार के साथ भी थी तन्हाई,
कविता बनी फिर दवाई,
कर याद पिया को लिखी कविता,
जो वीणा जी को भाई,
भावों के मोती समूह की सदस्य बनाया,
भावों को कविता में उतारना सिखाया,
संघर्ष पूर्ण इस जीवन में भी,
कभी ना मानी हार,
लबों पर रही सदा मुस्कान,
ना दिखाई किसी को अश्रु धार,
फिर एक दुबारा खुशी आई,
बेटी की करी विदाई,
बेटा कर रहा है पढ़ाई,
भावों के मोती के जन्म दिवस पर
परिचय अपना मैं ये लाई,
एक खुशी और है आई,
अब नानी मैं कहलाई।
******
स्वरचित-रेखा रविदत्त
23/4/20
वीरवार



सादर प्रणाम मंच को
दिनांक,23 /4 2020

लेखक परिचय काव्यरूप

बिहार, उत्तराखंड ,जिला छपरा गंगाजी के घाट ,
ग्राम धरहरा और ग़ंडक के पास
19 सन छियासड ,तिथि सप्तमी पावन कार्तिक मास,
रवि षष्ठी के प्रसाद खाकर अवतरित हुयी उस रात।
मां सीता पिता स्वयं दिनेश्वर
तीन भाईयों की छोटी लाडली
मुझे पाकर मां हो गयी बड़ा निहाल,
गौर वर्ण की बालिका लिए सदैव मुस्कान,
बाबा ने कुंडली ‌बनायी बालिका लक्षणमान,
आज से घर का दिन हो गया उदयमान
नाम करेगी, यश पायेगी, पायेगी सदा सम्मान।
ग्यारहवी शिक्षा के अन्तर्गत हुआ मेरा विवाह
पति श्री सावलिया जी संग आ गयी मै ससुराल ।
इंजीनियरिंग पतिदेव सहज ,सरल सह्रय इंसान।
शादी के बाद घर दो पुत्रों से घर हुआ गुलजार।
जेष्ठ वरुण कनिष्ठ तरुण बालक हुए महान ।
पठन-पाठन इच्छा तो बचपन से थी बलवती,
200 में आकाशवाणी में बन गयी उद्घोषिका,
उदय हुआ साहित्य वहां से ,पेपर मिडिया तक आया।
सन दो हज़ार ग्यारह में, पुत्र ‌पढ़ने गये पराया देश।
मेरे मन में एक विचार आया ,कर लूं‌मै पूरा उद्देश्य।
इग्नू से बी ए की पढ़ाई का किया श्रीगणेश।
दो हजार सोलह में एम ए की डिग्री पायी।
तब मोटी बुद्धि में बात समझ कुछ आयी।
तब तक क ई संस्थाओं हो गयी अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष।
अक्षर कुंभ सम्मान,क ई पत्र पत्रिकाओं हो गया मेरा समावेश ।
दो हजार बारह मे "गंगा चली गई"
कथा संग्रह का हुआ प्रकाशन
पठार की खुशबू ,जो दिल में हैं, 10 गायन ,जटायु ,वर्तमान साहित्य ,कथादेश, परी कथा में
कहानी कविता ने जगह पाई।
देखते देखते जमशेदपुर शहर में
नव पल्लव नई संस्था आई।
ऑनलाइन का हुआ जमाना
साहित्य सागर, साहित्य नामा ,
भावों के मोती में मिला प्रवेश
मन की बातें ,जग बातें ,
,बातों का साहित्य में हुआ प्रवेश।
सहज सरल शब्दों में कविता कहानी लिखती हूं।
मन के भावों को, भावों के मोती में
भी पिरोती हूं। कर्म क्षेत्र में बढ़ते जाना, जीवन का उद्देश्य है ।यथा नाम है तथा वृत्ति है। जीवन का उद्देश्य ।
मिले आशीष आपका तो ज्ञान मै पाऊं।।
माधुरी मिश्र साहित्यकार जमशेदपुर झारखंड




विषय - परिचय काव्य रूप में
23/04/20

गुरुवार
परिचय

ललिता सेंगर नाम मेरा , थी दस जून को जन्मी,
मात- पिता की स्नेहसिक्त छाया में रही मैं तन्वी।

एम ए हिन्दी-संस्कृत से फिर शोध किया संस्कृत में,
इसके इतर रुचि लेखन व सुर-लय-ताल तरंग में।

बनी शिक्षिका मैं, बत्तीस वर्षों तक खूब पढ़ाया,
शिष्यों ने मुझको फ़ेवरेट टीचर का मान दिलाया।

विद्यालय में भी सर्वश्रेष्ठ टीचर सम्मान मिला था ,
संस्कृत की पुस्तक लिखने का भी सौभाग्य मिला था।

पत्र - पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ छपती थीं ,
लेख और आलेखों में भी कलम मेरी चलती थी।

सेवानिवृत होकर मैंने खुद को स्वतंत्र पाया,
और साहित्य- साधना का पथ पूर्ण रूप अपनाया।

अब मेरा मन कविताओं के बीच रमा करता है,
विविध समूहों से भी मुझको प्रोत्साहन मिलता है।

कवियों की सत्संगति में मैं लेखन सीख रही हूँ,
इसीलिए कविता-रस पीकर हर्षित दीख रही हूँ।

डॉ ललिता सेंगर
लखनऊ
उत्तर प्रदेश



विषय- स्वयं का परिचय

मैं हूँ अनामिका जूही
प्यार से कहे सब सीमा
निश्छल मन मधुर मुस्कान
सत्य ईमानदारी मेरी पहचान

हज़ारीबाग़ जन्म भूमि
झारखण्ड राज्य की शान
जंगल पहाड़ यहाँ के मान
मौसम रहता शीतल एक समान

पिता स्व ईश्वरी राम पासवान
रहे झारखण्ड बिहार के शान
पूर्व मंत्री थे बिहार सरकार में
दया प्रेम मीठी बोली उनकी पहचान

इतिहास विषय ले किया स्नातक
साहित्य में बहुत रुचि
लिखती स्वतंत्र ख़याल
बंधन में नहीं बँधे विचार

विवाह मन जितने वाले संग
रौबिला बहुत ले चले मगध
प्रशासन सम्भालते पदाधिकारी
दो पीढ़ी से करे प्रशशिनक सेवा

व्यापार अपना करती हूँ
राजनीति में भी रहती हूँ
एक बेटे की अम्माँ हूँ
प्यार से घर सँवारती हूँ

स्वरचित - सीमा पासवान


23 अप्रैल 2020
स्वयं परिचय


19 मई को जन्म -दिवस
मैं पैदा हुई,...विशेष!
बड़ी देख-रेख कर माँ ने
मुझे बचाया शेष...

बाबूजी ने बड़े प्यार से
'रचना' मुझको नाम दिया,
एक कवि के सुंदर शब्दों ने
मुझको सम्मान दिया ...

लेकिन जब मैं छोटी सी थी
कुदरत ने आघात दिया
नहीं रहे वह!मेरी मां ने एकाकी मुझको पाला
किंतु पिता के बिना जिंदगी हो जैसे काला हाला ...
सपनों को लग गए ग्रहण
और पंखों को जैसे ताला ..

सब गुरुओं की प्यारी थी मैं
सखियों की दुलारी
अव्वल अंकों से करती थी
पास परीक्षा सारी
खूब सुनाती थी मंचों पर
रचना बाबूजी की
गर्वित हूँ यह सोच-सोच
हूँ,रचना' बाबूजी की

22 की थी जब सजना के द्वार चली
हाथों में पतवार लिए उस पार चली...
नया जनम अब मेरा
मुझ पर भारी था,
नारी का किरदार निभाना जारी था...
लतिका सी कोमल मैं 'रचना'
और बहुत थी जिम्मेवारी
तेज भागता वक्त हमेशा तारी था ...

छूटी मेरी पढ़ाई कई प्रयत्न किए
रद्दी हुई किताबें लाखों यत्न किए

जीवन भर जिन अपनों को था मान दिया,
भर-भर कर अंको में खूब सम्मान दिया
मतलब के उन यारों ने जी भर लूटा
मुझे जरूरत थी तब मेरा दिल टूटा

जारी ........
स्वरचित "पथिक रचना"




23/4/20
लेखक परिचय

15 अगस्त, पहले पहर
जब मैं दुनिया में आई,
जन्म स्थान ग्राम सुरखी
जिला सागर में ,मै आई!

माँ तारा /श्री बलराम गौतम
हम पांच बहनें और एक भ्राता,
पति सुरेश (इंजी.)जो है मित्र मेरे
दो बेटे भी जिनसे ये जीवन प्यारा!

मैं एक शिक्षिका हूँ, शिक्षित करूं
जीवन में सरल व्यवहारिकता भरूं,
संस्कारों का अनुसरण भी करूं
सबको लेकर चलूँ, वृद्धों की सेवा करुं!

वृक्षारोपण की मुहिम जो
मैंने पूर्व में है चलाई थी,
जब पौधे बने वृक्ष तो अनंत
खुशियाँ जीवन में आई थी!

अब भावों के मोंती मै कुछ
ऐसे पिरोती हूँ, हमेशा ही,
कर्म पर विश्वास करती हूँ
सोच सकारात्मक ही रखती हूँ!

सीमा मिश्रा
सागर मध्यप्रदेश



दिन - गुरूवार
दिनांक - 23/04/2020

विषय - मेरा परिचय
विधा - कविता

हाँ दीपों की माला हूं मैं ,
मेरा काम है जलते रहना ,
दर्द रहे अंतस में मेरे,
फिर भी मुस्काते रहना ।

हरनारायण और सावित्री ने,
24/12 को मुझको जन्म दिया,
पढाई में भूगोल और हिन्दी में ,
एम.ए और बी.एड. कर लिया।

छग जांजगीर के हरदी गाँव में,
मैंने अपना बचपन बिताया,
राजीवलोचन की शरण में,
मैंने परतेवा में ब्याह रचाया ।

अमित बने मेरे जीवन साथी,
मुझ पर भरपूर प्यार लुटाया,
जब भी मैं कदम बढाती,
मेरा हौसला बहुत बढिया।

साहित्य बनी मेरी सखी सहेली,
बस अपने में ही मुझे डुबाया,
देश दुनियां के रंगों को मुझसे,
कागज कलम पर लिखवाया।

मुझे भी मान सम्मान मिले,
चाहती हूं ऊंचा मेरा भी नाम हो
सदाचार अपनाती रहूं हरदम
बस साहित्य से पहचान हो।

दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
#स्वरचित


आज का विषय है मेरा परिचय
नाम स्मृति श्रीवास्तव

शहर नरसिंहपुर
शिक्षा m.a. हिंदी, शिक्षा में स्नातक
रुचि- गायन लेखन नृत्य खेल साहित्यिक गतिविधियां
फोटो संलग्न है
मेरा परिचय
नरसिंह की पावन धरा जन्मभूमि मेरी
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है
जन्म भूमि ही कर्म भूमि बनी यह गौरव की बात है,
26 फरवरी को जन्मी,
सदैव लोगों की स्मृति में बसती
स्मृति मेरा नाम है
ममतामई माता मिली गायत्री जिनका नाम, अब स्मृति शेष है
पिता एक आदर्श है वह मेरा अभिमान
अग्रज भ्राता रूप मिले प्रोफ़ेसर संजीव
बहने ज्योति आरती सदैव बरसाती नेह

कक्षा में रखा सदा प्रथम दर्जे का ध्यान
मातृभाषा से रहा सदा ही अनुराग
कारण था यही स्नातकोत्तर का विषय यही
स्वभाव में वीरता लक्ष्मीबाई सी
खेल के मैदान में पीटी ऊषा सी
कंठ में मां सरस्वती सदा विराजमान है
हस्त में शोभित लेखनी रचनाएं रचती
सदा
सन 1996 बंधी परिणय सूत्र में
सागर मेरा सुखधाम है
पति रूप में मिले इंजीनियर राजेश
सदैव मार्ग प्रशस्त करते
मुझे उन पर अभिमान है
जेठानी के रूप मिली निर्मला सी बहन
जेठ रूप में मिले भाई साहब राजेंद्र
शशि सुधा साधना अंजना सी
ननदे है चार
सदैव शुभ आशीष देती अपार
घर के उपवन में खिली ,
प्रगति कृति सी कली
जीवन की बगिया सुरभित हो गई
मां ने संस्कारों के रंग ऐसे भरे
जीवन सुरभीत हो गया
दोनों कुलों को पवित्र किया

श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई उत्तर माध्यमिक कन्या शाला नरसिंहपुर


लिख रही निज परिचय,
भावों की मोती आज।
पीयूष पर्याय नाम मेरा
करती स्वंय पर नाज।

19सितम्बर शनिवार को
सन उन्सठ की है बात
गाँव के धनी परिवार में
जन्म लिया सुकोमल गात

जवाहरलाल जी की आँखों की पुतली,
सुमन जी की कलेजा नार।
लालन पालन ममता अतुल
बनी थी मैं प्राणाधार।

सरकारी चिकित्सा अधिकारी,
पिता हृदय थे महान।
भगिनी भ्रात कोई नहीं,
हुई अकेली संतान।

शिक्षा इतनी है मेरी कि, शारदे का कर सकूँ गान।
जीवन पथ से भटकूं ना,
रहे ना लोभ अभिमान।

उमर वासंती आई जब,
वक्त बाँधा परिणय डोर।
सात फेरो संग बंधित जीवन,
शरद जी मेरे जीवन मोर।

सुख दुख धूप छाँव मिले,
काटे सह हँस कर साथ।
तीन पुत्रों के मात पिता बन,
पाया हमने ईश आल्हाद।

जीवन की उमर डगर पर,
कलम रही सदा सहचरी।
स्मृति शेष हुए मात पिता तब,
जीवन की वह कठिन घड़ी।

जीवन साथी और बच्चों ने,
जोड़ा फिर नवीन अध्याय।
अतीत कील सा चुभता,
मायके हुआ निरुपाय।

समय चक्र चलता है यारों,
पीले पात सदा गिरते।
नव कोपल ले आता वसंत,
नवल प्रसून बाग में खिलते।

मेरी नन्ही सी बगिया भी,
मुस्कराते सुमन भरपूर।
कुल वधुओ संग आई खुशियाँ,
पोता पोते परिवार पूर।

नाप रहे हैं जीवन पथ दोनों
नित सारस्वत साधना में।
कलम चले अनवरत बस
कभी कमी ना हो आराधना में ।

योग्य पदासीन हैं बेटे सभी
पतिदेव का उज्जवल साथ।
ईश्वर सदा सुखी रखें उन्हें
अंतर में है बस अभिलाषा ।

जब तक साँसें हैं मेरी,
कलम स्याही ना सुखेगी।
आए वसंत या पतझड़,
सृजन अमिय ना रूकेगी।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़



नमन करूँ नित शारदे,गीता मेरा नाम।
जन्मी यहाँ बिहार में,यू पी का है ग्राम।

जनपद मम उन्नाव है, वीरों का है क्षेत्र
गाथा सुनकर धाम की,पुलकित होते नेत्र।

नाम नगीना मात का,तात रहे अवधेश।
आठ मई की तिथि रही,तनया जन्मी देश।


प्रिय सुत मम वेदांक है, है मनीष मन ईश
माह फरवरी नेह से,बांध दिए जगदीश।

शिक्षक बन मैं करूँ,हरदोई में काज।
प्यारे है बच्चे मुझे,प्यारा लगे समाज।

गीता गुप्ता 'मन



'23-4-2020
विषय :- मेरा परिचय

मेरा परिचय है यही , जो करती हूँ काम ।
साधारण मैं हूँ बहुत , ऊषा नाम ललाम ।।

एक फ़रवरी का दिवस , देखा था संसार ।
पहली थी संतान मैं , बरसा नेह अपार ।।

चिट्ठी पर केसर छिड़क , भेजी दादी पास ।
केसर छिड़का देख कर , दादी मन उल्लास ।।

लड्डू बाँटे गली में , पोता जन्मा जान ।
ताऊ जी ने रात को , सच का किया बखान ।।

दादी ने सिर धुन लिया , केसर किया कमाल ।
नानी को संदेश दे , करने लगी बवाल ।।

पितु डिप्टी कलेक्टर थे ,उच्च कोटि विद्वान ।
ज्ञाता उर्दू फ़ारसी , शायर बहुत महान ।।

पाँच बरस की उम्र में , अद्भुत थी शैतान ।
हाथ नहीं आती कभी , पूरी थी नादान ।।

देख देह ताफ़्ता हुई , साध लिया फिर मौन ।
मनहुँ सयानी हो गई , नहीं देखती कौन ।।

खेली हॉकी नेशनल , मिला वज़ीफ़ा मान ।
के यू के से ले लिया , अर्थ शास्त्र का ज्ञान ।।

शादी के पश्चात ही , पाई शिक्षा और ।
बना दिया जिसने मुझे , शिक्षाविद सिरमौर ।।

प्रोफ़ेसर से बाँध कर , बोझा दिया उतार ।
आधी बीती है सदी , रस्म निभाते प्यार ।।

बीवी शायर की बनी , उनसे पाया ज्ञान ।
देते रहते प्रेरणा , उन पर है अभिमान

प्रेम विवाह की सफलता ,बख़्शी है कर्तार ।
जन्म जन्म माँगूँ यही , मिले यही भर्तार।।

निदेशिका पद पर रही ,किया लोक कल्यान ।
मिली प्रतिष्ठा खूब ही , आज तलक सम्मान ।।

सृजन साहित्य का किया , लिखी पुस्तकें पाँच ।
तीन और तैयार हैं , जिन्हें रही हूँ बाँच ।।

सेवा कर साहित्य की, करूँ मुफ़्त में दान ।
माँ समान बनकर रही , किया नहीं अभिमान ।।

अंग्रेज़ी ग्रैमर बनी , जन जीवन अभियान ।
ट्यूशन से बच्चे बचें ,सहे नहीं नुक्सान ।।

प्यार मिला सबसे बहुत , और दिया है खूब ।
ईश कृपा ही मानिये , सबकी हूँ महबूब ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी कमाल
सिरसा

लेखक परिचय
—————-
जन्म के बाद माँ के शब्द:-
सोचा वेदों ने एक दिन
संसार से ज्ञान लुप्त हो रहा
ज्ञान की शिखा यूँ ही जलती रहे
प्रेम की ज्ञान की एक प्रतिमा गढ़ी
मन्दिरों में जब हुई आरती
सबने देखा वेदस्मृति है बनी।

अब परिचय
————-
गर्मी से संतप्त धरा को
जब बरखा की बूँदों ने छुआ
मंगल के दिन सात जुलाई
को , प्रातः मेरा जन्म हुआ.
देवालय में सात बजे तब
पूजन -अर्चन का वक्त हुआ
माँ शर्मिष्ठा , ओम पिता के
घर इक बेटी का जन्म हुआ।
चंदौसी है भूमि जन्म की
गेहूँ ख़रबूज़ों की धरती
लेकिन पूना भूमि कर्म की
ये भी प्यारी मुझको लगती।
माँ- बाबा ने ख़ूब पढ़ाया
कर्तव्यों का भी ज्ञान दिया
जाने कितने शोध किए फिर
सुन्दर सा मुझको नाम दिया।
अँग्रेजी में एम ए किया फिर
बी. एड. का अध्ययन करके
अध्यापन का मार्ग चुना , अब
करती सृजन लेखन करके .
- वेदस्मृति कृती

23/4/2020
बिषय-परिचय

गंगा,यमुना का उदगम जहाँ
गंगोत्री यमनोत्री धाम है,यही
जन्मभूमि मेरी उत्तरकाशी
जिसका नाम है,
उत्तराखण्ड राज्य की वासी
साधना जोशी मेरा नाम है,
आठअप्रैल सन उन्नीस सौ
पिचहत्तर मे जन्म लिया,
शैलादेवी, गीता राम जीकीपुत्री हूँ,
,जिनकी धर्म पत्नी हूँमै
संजय जोशी उनका नाम हैं,

गौरी ओम की माँ हूँमै,शिक्षिका
हूँ मै पेशे से, हिन्दी भाषा की मै
पुजारन हूँ,एम0ए0एम0एड0की
धारिता बन पायी हूँ,
दोहरी भूमिका" प्रथम काव्य संग्रह मेरा,
दूजा- सडक है जिन्दगी"तैयार है,
आपको इस परिचय संग साधना का प्रणाम है
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड
भावों के मोती
23/04/20

विषय - परिचय
************
सीता की राज दुलारी ,
पिता नारायण का सिरमौर हूँ ।
नाम मेरे पापा ने प्यार से रेणु रखा,
जन्म लिया सत्ताईस दिसम्बर उन्नीस सौ सन्तानवे घर ने लक्ष्मी पायी थी,
मानपूर , नांगल्या जयपुर ( राजस्थान )
में जन्म लिया और धरती महक आयी थी।
मां सीता ने संस्कार दिए ,
पिता ने दुनियादारी सिखाई ।।
बहनों का भरपूर प्यार मिला,,
और शिक्षा भी हमने ग्रहण की ।।
उम्र में छोटी हूँ अभी कुछ न प्राप्त किया,,
पर साहित्य क्षेत्र में बहुत खूब किया,,
अनेक बार साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुआ ।।
नाम - रेणु शर्मा
जयपुर ( राजस्थान )
मीना कुमारी मेरा नाम

जनम मास है जुलाई
दिनांक2 वर्ष1984 को इस धरा पर आई

स्नातक तक शिक्षा पायी
शिक्षिका बन कराती पढ़ाई

दो हैं बेटी मेघना,खनक
घर में है उनसे रौनक

अपनी लेखनी की पहचान बताती हूँ
कुछ पंक्तियाँ उसपे भी सुनाती हूँ

शब्द सरल,और गूढ़ अर्थ ही है मेरी लेखनी की पहचान
लेकिन.......

शब्दों की चाशनी में डूबी
जलेबी सी कविता, चखने वाले को
कलाकंद का स्वादार्थ कहाँ समझ आता है

सब तैरना पसंद करते हैं
शब्दों के उथले उथले पानी में
सागर की गहराई में भला कौन उतर पाता है

स्वरचित
मीना कुमारी

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