Monday, April 13

" निर्मल,पवित्र,पावन, शुद्ध"11अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-707
11/4/2020
पवित्र मन
राधे कृष्ण सा बंध
स्नेह सम्बंध।।

शुद्ध विचार
तन मन महके
जीवन सार।।

गंगा आधार
माँ के नयन बहे
पवित्र धार।।

पवित्र प्रेम
मन की बात बोले
दिल के द्वार।।

स्वरचित
विषय निर्मल,पावन,पवित्र,शुद्ध
विधा काव्य

11 अप्रेल 2020, शनिवार

गंगोत्री से झर झर झरता
शीतल जल भारत में आता।
पुण्यशील हम इस धरा पर
हर जन सुरसरि सुख पाता।

शुद्व विशुद्ध प्रिय धर्म हमारा
अहिंसा परमोधर्म सिखाता।
सब धर्मों का करता है आदर
हर नर को वह गले मिलाता।

चार धाम बारह ज्योतिर्लिंग
धर्म ध्वजा है अति सुशोभित।
शुद्ध विशुद्ध भक्तों का आना
मन निर्मल शोभा अपरिमित।

स्वछ रजत हिमगिरि पावन
सुरभूमि अति भव्य मनोहर।
अमरनाथ केदार बद्रीनाथ
गूँजे बम बम भोले नित स्वर।

मलय पवन नित चलते झोंखे
मदमाती है केसर की क्यारी।
वनउपवन अद्भुत सुन्दर अति
भारत की शोभा अति प्यारी।

निर्मल पावन पवित्र शुद्ध रज
सोना उपजे हर कण कण में।
द्वेष ईर्ष्या असत्य त्याग कर
नहीं रखते छल कपट मन में।

स्वरचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - निर्मल/पावन

मन में मैल भरा है भारी ।
संत सतसंग है हितकारी ।।

मन बीमार तो तन बीमार ।
निर्मल मन की सुधी विसारी ।।

आया था कितना था निर्मल ।
सबको भायी थी किलकारी ।।

आज लगाले अन्दाजा तूँ ।
कितनी परत मैल की कारी ।।

पावन मन मंदिर ईश्वर का ।
करले उस ईश्वर से यारी ।।

उससे दूरी बढ़ती जाए ।
उससे दूरी सदा है जारी ।।

कुछ तो कदम उस ओर बढ़ा ।
उसकी कीर्ति सदा है न्यारी ।।

संतो का सानिध्य बनाले ।
मन के स्वास्थ्य को गुणकारी ।।

'शिवम' हो निर्मल मन जहाँ पर ।
वहीं बसते हैं त्रिपुरारी ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/04/2020
विषय-निर्मल/पवित्र


मैं गंगा मैया हूं
मैं मोक्ष दायनी हूं
मत समझो कूड़ाघर
मत फेको कचरा तुम
तुम आस्था वान बनो
मैं निर्मल अविरल बहू
कलकल कर बहती रहूं
मुक्ति को देती रहूं
मत निर्मलता रौदो
दूषित मत मुझे करो
उपकार करो मुझपर
इतिहास पर करो नजर
अभियान चलाते हो
औऱ भूल जाते हो
अनुसरण सदा करना
मर्यादित बन रहना
माता भी कहते हो
अपमान भी करते हो
भगीरथ बनने का
प्रयास क्यो तोड़ते हो
मैं गंगा मैया हूँ
मैं मोक्षदायिनी भी हूं
सदियों से बहती आई
सदियों तक रहूंगी
मत गंदा करो मुझको
पावन महिमा तुम गाते
प्रभु चरणों को धोते
मेरे बिना तुम मुक्ति नही पाते
मेरे गुणों का बखान तुम गाते
मेरे बिना कैसे
मुक्ति को पाओगे



स्वरचित

मीना तिवारी

दिनांक 11।4।2020 दिन शनिवार
शब्द-निर्मल।पवित्र।पावन


मन पवित्र तन निर्मल कर लो।
भक्ति भाव को मन में भर लो।।
सकल कामना सिद्ध तुम्हारी।
पथ परहित का हो हितकारी।।
जन-जन का कल्याण करोगे।
झोली सुख वैभव से भरोगे।।
शुद्ध कर्म से चरित हो पावन।
शेष अशेष योग मनभावन।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा
दिनांक-11/04/2020
विषय-निर्मल/पवित्र


रेत किनारे निर्मल चंदन सी
दिए की लौ जला करो।
जमी को जन्नत तू बना दे
भागीरथी सी बहा करो।।
गंगा ,जमुना ,सरस्वती
का मेल जहां हो जाए
त्रिवेणी संगम तीर्थराज कहाये।
गंगा निर्मल धार लुभाती
हरित क्रांति यमुना दर्शाती
सलीला सरस्वती की महिमा
कर से लिखी न जाए।
त्रिवेणी संगम तीर्थ राज कहाय।
हर पल अमिय धार बरसाती
श्रद्धा भाव मुक्ति दिलाती
रेत किनारे की चंदन सी
खुशबू नित्य नए फैलाती।
संगम तेरी शोभा न्यारी
कल्पवास करते नर नारी
दिग दिगंत में संत समागम
करतल ध्वनि की है अब जारी।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
11/4/2020 शनिवार
बिषय- *निर्मल, पवित्र,पावन,शुद्ध*

विधा-काव्य

सद्भाव भक्ति माँ निर्मल मन दे।
माँ वीणावादिनी निर्मल तन दे।
‌गंगाजल सा हो निर्मल जीवन,
प्रेम ओतप्रोत हर निर्मल जन दे।

प्रेम प्रीत हो जन जन के मन में।
प्रति दिन मधुमास हो जीवन में।
प्रेमपुष्प विकसित हों कलियां,
मिले मकरंद घुला निर्मल मन में।

ना रक्तचाप किसी का बढ पाऐ।
ना रक्तपात किसीं का हो पाऐ।
निर्मल मन तो भाव जागते निर्मल,
क्यों ना सबकुछ निर्मल हो जाऐ।

मनोमालिन्य नहीं रहे कहीं पर।
हर घर सुखद शांति से भर जाऐ।
आत्मीय भाव जाग्रत हों हृदय में,
ममत्व मुझे निर्मलता मिल जाऐ ।

स्वरचित,
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
गुना म.प्र

*निर्मल,पवित्र,पावन*
काव्य
11/4/2020/शनिवार
11/4/2020/शनिवार
*निर्मल, पवित्र,पावन, शुद्ध*काव्य


तन-वसन धवल।
गंगाजल निर्मल।
पवित्र यदि मन,
जीवन है सफल।

नमन नयन सजल।
हृदय शुद्ध सरल।
स्नेहासिक्त भाव,
सच जीवन सफल।

दीन देख है विकल।
मनोभाव है विव्हल।
चरित्र शुद्ध आचरण,
जीव धन्य हो निर्मल।

पवित्र मन नहीं छल।
पिऐं निरीह के गरल।
शौर्य गाथाऐं लिखें,
मन उमंग हो चपल।

संवेदना मरें नहीं।
दुर्भावनाऐं नहीं।
शुद्धता मनोवास ,
असफल मान नहीं।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
विषय:निर्मल/पवित्र/ पावन/ शुद्ध
दिनांक10/04/ 2020
दिन- शनिवार
*************************************
झरने के निर्मल जल जैसा
तन-मन भी निर्मल हो जाए
मिट जाएं सब राग-द्वेष
प्रेममय वसुधा हो जाए।
कल-कल करता झरने का जल
जैसे निर्बाध-निरंतर बहता जाए
वैसे ही जीवन अपना उन्नति
पथ पर बढ़ता जाए।
झरने का शीतल जल
जैसे सबको शीतलता पहुंचाए
सदकर्मों से अपने हम
अपनी वसुधा को महकाएं।
कल-कल बहता झरने का जल
जैसे प्रकृति की सुंदरता बढ़ाए
सदकर्मों से अपने हम
अपनी वसुधा का मान बढ़ाएं।
झरने का निर्मल शीतल जल
जैसे प्यास धरा की बुझाए
करुणामय हो ह्रदय हमारा
जन-जन को सुख पहुंचाएं।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय - निर्मल/पावन/पवित्र/शुद्ध
स्वरचित।

प्रदूषणमुक्त करो भारत को
बस नारा यही लगाओ।
हर क्षेत्र में बढ़ा प्रदूषण
कहां कहां हटबाओ?

बहु सदियों से थी निर्मल गंगा
कुछ सालों में कर दी मैली।
कहते थे जिसको गंगा मां
पापों से है भरदी।।

बाकी सब का यही हाल है
बच्चों का पाप हैं धोतीं।
फैक्ट्री गंद और कर्मकांड में
अपना शुद्ध स्वरूप हैं खोतीं।।

बसुधा का भी हाल बुरा है
दोहन इसका होता।
कहीं पर पहाड़ गंदगी का
कहीं ज्वालामुखी सोता।।

और हवा कि पूछो मत ना
जहरीला कण-कण है।
सांसो का भी बुरा हाल है
अब जीना भी मुश्किल है।।

शोर-शराबा दुनिया भर में
तकनीकी की भरमार।
कानों से सुनना भी कम हो
आंखों पर भी पड़ा प्रभाव।।

इन सब से भी बढ़कर है
एक और प्रदूषण की मार।
जब मन हो जाए प्रदूषित
जिसमें रह ना जाए प्यार।।

ईर्ष्या-द्वेष,लोभ औ लालच
इसके घर बन जाएं।
प्यार मोहब्बत भाई-चारा
सपने सब हो जाएं।।

स्वार्थ सिद्ध हो सबसे ऊपर
रिश्ते सब बिसरायें।
बास ना परमेश्वर का दिल में
मोह-माया भरमायें।।

जो मन हो जाए उज्जवल पावन
संयम नियम समझ लें।
मिट जाएगा सांसारिक प्रदूषण
मानव तू ये समझ ले।।
****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
दिनांक -11/04/ 2020
विषय -निर्मल /पवित्र /पावन/ शुद्ध


ऐसा पावन देश हमारा ,
जहां है, चारों धाम ।
ऋषि ,मुनि जहां है बसते
लेते प्रभु का नाम ।

कल-कल करती नदियां बहती,
भारत भूमि को स्वर्ग बनाती ।
धरती को हरियाली से भरकर ,
जनमानस का पोषण करती ।

अलग -अलग है बोली -भाषा,
अलग -अलग परिधान है ।
अलग -अलग है रीति रिवाज,
अलग-अलग त्यौहार है ।

विविधताओं में एकता की
झलक दिखाई देती है ।
भाईचारे की सद्भभावना ,
भारत को महान बनाती है ।

ह्रदय में पवित्रता को धारण कर,
हृदय की कलुषता को दूर भगाएं ।
पवित्र मन में करें ईश्वर वास ,
ऐसा है जग का विश्वास।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

दिनांक:-10-4-2020
विषय:-निर्मल/पवित्र/पावन/शुद्ध

दिन:-शनिवार

प्यार की एक अनोखी,
कहानी हो तुम|
स्नेह,में डूबी निर्मल सी,
वानी हो तुम|
प्रेम की एक पावन निशानी,
हो तुम|
नयनों में मोह की पवित्र, पानी हो तुम|
शुद्ध भावों, शैली की,
रवानी हो तुम|
मेंरी पूजा, तपस्या का,
तुम ध्येय हो|
मेरी दुनिया मेंरी,
जिन्दगानी हो तुम|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि
यह मेंरी मौलिक रचना है|

विजय श्रीवास्तव
बस्ती
निर्मल मन
भवसागर मुक्ति
ईश्वर ध्यान

पूजा पावन
मंत्र जप साधना
मोह न माया

प्रभु शरण
मन होता है शुद्ध
कटती पीड़ा

आशा पंवार
तिथि- 11/04/2020
विषय-निर्मल/पवित्र/पावन/शुद्ध

विधा- कविता

'पवित्र मन'

रखो तुम अपना पवित्र मन
जग का तुम करो कल्यान।
निर्मल मन होता निश्छल
मिलता इससे सुख स्नेहिल।
पवित्र जीवन है कितना सुहाना
ज्ञान से करो प्रकाशित मन का कोना।
शुद्ध आचरण को अपना कर
सृष्टि बनाओ उपवन समान।
जीवन में तो सुख दुख आते ही हैं
हर कोई पाना चाहे सुख का दान।
जीवन में है दुखों की कतार
तभी होती मित्र की पहचान।
ईश्वर की तुम भक्ति कर के
बना लो अपना जीवन पावन।
सच्चे पथ पर चलें हम सदैव
कभी करते कृपा श्री भगवान।

अनिता निधि
जमशेदपुर
11/4/2020
बिषय, निर्मल, पावन, पवित्र शुद्ध

मन हो जैसे निर्मल जल
झरने सा बहता कलकल
सदा ही रहे शुद्ध आचरण
वनावटी का न हो आवरण
विचार हमारे हैं जो पावन
तो सदैव रहते शुलभ साधन
हृदय में हो पवित्र भावना
स्वयं ही पूर्ण होती कामना
मुश्किलों का जो होता सामना
बिचलित नहीं होती धारणा
पत्थर भी जो हैं टकराते
टुकड़े टुकड़े वही हो जाते
जो संतोषी सदा सुखी है
वरना यहाँ तो हर. शख्स दुखी है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
11/4/2020
विषय -निर्मल ,पवित्र ,शुद्ध


निर्झरिणी मैं!
"निर्मल" सुंदर,
क्या है उद्गम मेरा नही जानती'
उतंग पहाड़ों का विलाप हूं
या महादेव की जटाओं से अच्युत कोई जल धार,
बस अब मैं निर्झरिणी ।
गिरती ऊंचाईयों से बन निर्झर
चट्टानों से टकराती,
फिर भी गुनगुनाती
कभी नही निश्चल निशब्द,
मेरी अनुगूंज विराट तक,
चल के गिरती फिर चलती,
न रुकती न हारती कभी,
गिरना चलना मेरी शान,
कभी उदण्ड हो किनारे तोडती ।
मैं निर्झरिणी ।
ऐसे पल भी आते
लगता पर्वतों का रुदन थम गया,
मैं रेत पर पसर तनवंगी सी,
अपना अस्तित्व बचाने
स्वयं नैनो से अश्रु बहाती,
इधर-उधर फैला अपनी बांहे
रेत के बिछौने पर करवट बदलती,
फिर नई भोर का इंतजार,
जो मुझे फिर नव जीवन दे दे,
भर दे मुझे फिर थला-थल
मैं निर्झरिणी ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।

 निर्मल मन
तन रखे निरोगी
मौन साधना !!


खिले सुमन
धरा रहे पावन
स्वच्छता रखो !!

खार ना बनो
खारे जल में रहो
मिटे विषाद !!

निर्मल मन
सकारात्मक सोच
रहे पावन !!

रखो पावन
जीवन उपवन
खिले सुमन !!

मन की धरा
सुकर्मो से निखरे
बिखरे गंध !!

दुःख या सुख
मन रख निर्मल
मिले सुकून !!

मन पावन
जग करें रोशन
निश्छल भाव !!

© रामेश्वर बंग
शनिवार- 11अप्रैल/2020
विषय - निर्मल, पवित्र,पावन, शुद्ध
विधा - कविता
************************
निर्मल मन मेरा ,
शुद्ध प्रेम मेरा ईमान -
हम करते सबसे
प्रेम जगत में
हम भारत की संतान!!

रिश्ता हमारा सबसे अपना ,
जो सकें पहचान ......!!
पवित्र, पावन, गंगा की
धारा सा ....अपना प्रेम महान !
हम भारत की संतान !!

हिम्मत, हौसला न हारे कभी,
मज़हब अलग हो फिर भी -
इंसानियत अपना ईमान !
नेक विचार हमारी शान !
हम भारत की संतान !!

रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद-झारखंड
विषय - निर्मल/ पावन/ शुद्ध
11/04/20
शनिवार
कविता

नमामि गंगे' पुण्य यज्ञ में
आओ हम आहूति दें ,
उसके जल को संशोधित कर
फिर से अमृतमय कर दें।

सुरसरिता तो स्वर्गलोक से
इस भू पर अवतरित हुई ।
धरती को सिंचित करने की
उसने परहित- राह चुनी ।

मगर स्वार्थ में लिप्त मनुज ने
उसका दोहन कर डाला।
कूड़े - कचरे , रसायनों से
उसको विषमय कर डाला।

आज वही गंगा हम सब से
अपना वैभव माँग रही ।
शुद्ध और पावन जल के हित
देखो हमें पुकार रही ।

आज स्वच्छता- आंदोलन में
हम सब भी उद्योग करें ।
गंगा की पावनता हेतु ,
हम भी कुछ सहयोग करें।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

संगीत की देवी

विषय- निर्मल/ पावन.

शीतल उज्जवल निर्मल पावन संगीत की देवी स्वर लहरी.
तू मन गंगा आकाश चली तू धड़कन बन साँसों की आस बनी.
जब हृदय मधुरतम झूम उठा, तू जीवन की मधुमास बनी.
साँसों में गहरी आस लिये, मन में प्रियतम का प्यास लिए.
उस लोक से तू इस लोक चली, वाणी वीणा का तान लिए.
संगीत झरे झरना जैसे, है प्रीति फले अमर फल जैसे.
अधरों पर जैसे अमंद लिए, सागर में है जितना प्यार भरें.
नयी रीति लिए नयी प्रीति लिए, साजन के लिए उपहार भरें.
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली, सिवान, बिहार 841239
दिनांक, 11,4,2020
दिन, शनिवार
विषय, निर्मल , पवित्र , पावन , शुद्ध
विधा, रोला गीत

नहिं मिल पाता प्यार , अधूरी हसरत रहती ।
मन पर रहता भार, रोग की गिनती बढ़ती।।

पावन मन का धाम, बना नफरत का दरिया।
निर्मल जल की धार, मैल से लथपथ नदिया।।
हवा लगे बीमार , धूल से जकड़न रहती ।
नहिं मिल पाता प्यार, अधूरी हसरत रहती।।.........

आँखों की बरसात , भिगोये सूनी कुटिया।
चले गए परदेश , कमाने बेटा बिटिया।।
उलझी मन में बात , सताती हरदम रहती।
नहिं मिल पाता प्यार , अधूरी हसरत रहती।।.....

मित्र पड़ोसी आज , मगन अपनी दुनियाँ में।
प्रेम लगे है शूल , खार मन की बगिया में।।
हरि से रहते दूर , लालसा हर पल रहती ।
नहिं मिल पाता प्यार , अधूरी हसरत रहती।।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

विषय - निर्मल/पावन
द्वितीय प्रस्तुति

निर्मलता नही मन की जाय ।
कदम कदम करता जा उपाय ।।

सुवह का भुला शाम को आय ।
भटका नही फिर वो कहलाय ।।

सतसंग को बनाले साबुन ।
निश दिन मैल ये लगा कहाय ।।

तन बीमार तो बैध बुलाय ।
मन बीमार को संत बचाय ।।

संत कहाँ नही मिलवें 'शिवम' ।
चाह ही हमको राह बनाय ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/04/2020

विषय : शुद्ध, नर्मल, पवित्र
विधा : कविता
तिथि : 11.4.2020

शुद्ध
-----

जब जब मन भले की ओर मुड़ता,
तब तब मन बुराई छोड़ बनता शुभ।
जब जब मन तजता अंत:भाव क्रुद्ध
तब तब हो शुद्ध वह बन जाता बुद्ध।

जब जब सोच सतह को छोड़ कर
गहराई में करने लगती विचरण
तब तब शमन होता भीतरी युद्ध
गहरे में वह पा लेती मोती शुद्ध।

कभीकभी जब अंत: को लपेटे धुंध
निराशा से मन हां, हो जाता क्षुब्ध
तब थाम, इक संकल्प- दूजी आस्था
दोनों मिल खोल देंते राहें अवरुद्ध।

-रीता ग्रोवर
- स्वरचित

विषय-पावन
दिनांक -12/04/20

पावन धरा का निर्मल निर्मल पानी है।
गंगा जमुना के जल से उठी कहानी है।।

गंगा ब्रह्मा की बेटी वेदो ने पाठ पढ़ाया।
जिसमे स्नान से पूर्वजो ने मोक्ष पाया।।

गंगा गंगोत्री से जब पहुची देव प्रयाग।
अति सुंदर पावन होके दिखती कर्ण प्रयाग।।

भागीरथ की हुई तपस्या पूरी जब पहुचे गंगा सागर।
पवित्र वेद पुराण थे जिनसे उपजा है हिन्दू संस्कार।।

हिमालय की जड़ी से शुद्धि उठाता पावन गंगा जल।
बड़े बड़े महानगरों का ढोता है भार फिर भी निर्जल।

पवित्र पावन भारत भूमि , शुद्ध है जिसकी हवा।
शुद्ध दिखते खेत खलिहान और पेड़ों की फिजा।।
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
🐚🌷🍑 गीतका 🌷🐚🍑
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🌺🍀🌻 पावन /निर्मल 🌻🍀🌺
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🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒


ध्यान मुद्रा तप बढ़ाते साधना ।
योग पावन जप सुहाते याचना ।।

बुद्ध की सीखें सदा ही सत्य हैं ,
शान्त कर मन को बताते प्रार्थना ।

सत्य वाणी धर्म धारें जीव यदि ,
प्रेम पथ साधक सजाते वन्दना ।

काम , क्रोध व लोभ गढ़ते पाप को ,
छल -कपट अवगुण मिटाते पावना ।

शील , शिष्टाचार , शुचिता अहिंसा ,
धर्म पथ चलना सुझाते पालना ।

आत्मशोधन से बढ़ें इस त्याग पथ ,
सत वचन संस्कार उगाते भावना ।

आज भी है परम आवश्यक क्रिया ,
ध्यान , निर्मल मन बचाते वासना ।।

🌺🍀🌻🌷🌴🌸🌹

🌲🌹🌲*.... रवीन्द्र वर्मा आगरा

11/04/2020
विषय:निर्मल/पावन/पवित्र/शुद्ध
विधा:हाइकु

1
निर्मल मन
छल प्रपंच हीन
प्रभु की छाया
2
पवित्र आत्मा
पञ्च तत्व की काया
जीव धर्मात्मा
3
शुद्ध विचार
आत्मा निर्विकार
सत्य आचार
4
रिसता नाता
विलुप्त मनुजता
कहाँ पवित्र
5
ढोता जीवन
मनुष्य आजन्म ही
कहाँ पावन
6
नयन अश्रु
समेटता मनुष्य
पवित्र कर्म

मनीष श्री
स्वरचित
11/04/2020
चंद हाइकु (5/7/5)प्रस्तुति..
विषय:-"निर्मल/पावन/पवित्र/शुद्ध"
(1)
सेवा प्रधान
मात-पिता चरण
पावन धाम
(2)
अबोध बाल
निर्मल सी मुस्कान
दिखते श्याम
(3)
किसके पास?
अधूरी सी तलाश
निर्मल मन
(4)
धर्म के सम
ले गए मोक्ष द्वार
पवित्र कर्म
(5)
जीवन धुआँ
कुछ भी शुद्ध नहीं
मौत के सिवा

स्वरचित
ऋतुराज दवे
शुद्ध

जब मन शुद्ध होता है
तो शुद्ध विचार आते है
जो हमारे व्यवहार को
निर्मल बनाते है
व्यावहार से पर्यावरण
शुद्ध बन जाता है
और जीत आपकी
ही हर तरफ होती है
जो आपकी
पहचान दुनियाँ
से कराती है
आपको एक ऐसी
शख्सियत बन जाते है
जिसके पास नाम
दौलत शोहरत
अब कुछ होता है

गरिमा कांसकार

दिनांक 11/4/2020
विषय निर्मल
प्रसंग - अहिल्या कथा

सती पतिव्रता नारी की
एक कथा बताता हूं
निर्मल पावन गंगा सी
उसकी बात बताता हूं

ब्रह्मपुत्री त्रिलोकसुंदरी
देदीप्यमान मनोहारिणी
देव वरण को आतुरित
अहिल्या कथा सुनाता हूं

महर्षि गौतम की पत्नी
नित पति सेवा मे लग्न
ब्रह्मचारिणी पतिव्रता
का गुणगान मै गाता हूं

निर्मल मन निर्मल देह
निर्मलवाणी विचारयुक्ता
निशदिन कर्म बस भक्ति
अहिल्या सतीत्व बताता हूं

संग विश्वामित्र रामलखन
मिथिला नगर को चले
देख उजडा उपवन सारा
गुरूशिष्य वार्ता सुनाता हूं

देख अचंभित दृश्य सारा
मर्यादापुरषोत्तम ने बोला
कैसा खेल यह मुनिश्रेष्ठ
मै ये समझ नही पाता हूँ

बोले मुनि त्रिकालदर्शी
अहिल्या जीवनवृतांत
शापित अपने पति से
पाहनशिला दिखाता हूं

काम मोहित इन्द्र बना
छल से गौतम मुनि बना
चला वरण को अहिल्या
आगे का वृतांत बताता हूं

देख छद्मवेश मे इन्द्र को
सती ने तिरष्कार किया
निष्फल इन्द्र लौटा पुन:
मुनि का शाप सुनाता हूं

देख कुटिया बाहर इन्द्र
मुनि मन मे शंका जागी
पत्नी से उठ गया भरोसा
क्रोधाग्नि बतलाता हूं

इन्द्र नपुंसक हो जाओ
बनो पत्थर अहिल्या तुम
पडी रहो वर्षो तक तुम
आगे की बात बताता हूं

जान सच मुनि ये बोले
रामचरण तेरे शाप तोडे
प्रायश्चित मेरा भी पूरा हो
मै वन को अब जाता हूँ

जानि भेद पाषाण का
राम ने किया तब उद्घार
मुदित भयी तब अहिल्या
राम नाम जप मै गाता हूं

सकल विश्व मे नाम अमर
सती निर्मल अहिल्या का
संभव नही शब्दो मे वर्णन
यत किञ्चित मै गाता हूं

पति पत्नी मे प्रेम जरूरी
विश्वास समर्पण जरूरी
शंका से जीवन पाषाण
सत्य यह मै बताता हूं

निर्मल पावन पवित्रतमा
सती तपस्विनी अहिल्या
हरिचरण से मोक्ष मिला
कलम का धर्म निभाता हूं

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

11/4/2020

निर्मल,पवित्र,पावन, शुद्ध
कुछ और भी जोड़े क्या इसमें स्वस्च्छ्
मानव इन सबको समझ के भी
बैठा होकर निर्लज्ज
दुहाई कभी मशीनों को
कभी कारखानों को
कभी एक दूसरे को
और कभी पता नहीं
किस-किस को
और हमेशा कहता खुद को दक्ष
भूल यहीं वो करता है
फिर ना होता कोई उसके समक्ष
रुक जा-रुक जा मुड़ जा-मुड़ जा
फिर कोई ना लेगा तेरा पक्ष
फितरत रही ऐसी ही तो
सब होंगे विपक्ष
डॉ. शिखा

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"अंदाज"05मई2020

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