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ब्लॉग संख्या :-711
16/42020
विषय-मकरंद
मन अतिथि
कुहूक गाये कोयलिया
सुमन खिले चहुँ ओर
पपीहा मीठी राग सुनाये
नाच उठे मन मोर ।
मन हुवा "मकरंद "आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।
द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तोल।
मन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-मकरंद
मन अतिथि
कुहूक गाये कोयलिया
सुमन खिले चहुँ ओर
पपीहा मीठी राग सुनाये
नाच उठे मन मोर ।
मन हुवा "मकरंद "आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।
द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तोल।
मन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
दिनांक 16-04-2020
विषय- मकरंद /शहद/मधु/ रस
अहा ऋतुराज आया,
मंजरियां खिल गई ।
मकरंद पराग संग ले,
मधु रस से भर गई।
कुसुमित सुरभित है,
बगिया धरा उपवन ।
मधु पिपासी भंवरे,
करते हैं मृदु गुंजन ।
कुसुम कोंपलों पर,
अलि गुंजार भरे ।
रसपान मकरंद से
मधु संग्रह करे।
तितलियां उड़ उड़,
फूलों पर मंडराती।
रंग बिरंगे पंखों से
खुद पर इठलाती ।
मधुऋतु यौवन से,
वसुधा महक रही।
मधुराई कोकिल की
कुहू कुहू चहक रही।
मधुरस फूलों से ले,
मधुमक्खी श्रम करे।
छत्र में संग्रह करती,
परिश्रम से नहीं डरे।
अथक मधुकर देखो,
मधुरस खूब बनाता ।
कुटिल कटुक लगता,
पर मिठास दे जाता ।
स्वार्थी होकर मानव,
शहद निकाल लाता ।
मधुप मंडरा बलखाए,
दर्दीला डंक दे जाता ।
रुकता नहीं मनुष्य,
क्षति छत्र पहुँचाता ।
भरकर मधु गागरी,
खुद पर है इठलाता।
मृदु न कुछ शहद से,
एक बूँद ही भारी,
वाणी हो मधु जैसी,
चाहे दुनिया सारी।
स्वरचित मौलिक
कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय- मकरंद /शहद/मधु/ रस
अहा ऋतुराज आया,
मंजरियां खिल गई ।
मकरंद पराग संग ले,
मधु रस से भर गई।
कुसुमित सुरभित है,
बगिया धरा उपवन ।
मधु पिपासी भंवरे,
करते हैं मृदु गुंजन ।
कुसुम कोंपलों पर,
अलि गुंजार भरे ।
रसपान मकरंद से
मधु संग्रह करे।
तितलियां उड़ उड़,
फूलों पर मंडराती।
रंग बिरंगे पंखों से
खुद पर इठलाती ।
मधुऋतु यौवन से,
वसुधा महक रही।
मधुराई कोकिल की
कुहू कुहू चहक रही।
मधुरस फूलों से ले,
मधुमक्खी श्रम करे।
छत्र में संग्रह करती,
परिश्रम से नहीं डरे।
अथक मधुकर देखो,
मधुरस खूब बनाता ।
कुटिल कटुक लगता,
पर मिठास दे जाता ।
स्वार्थी होकर मानव,
शहद निकाल लाता ।
मधुप मंडरा बलखाए,
दर्दीला डंक दे जाता ।
रुकता नहीं मनुष्य,
क्षति छत्र पहुँचाता ।
भरकर मधु गागरी,
खुद पर है इठलाता।
मृदु न कुछ शहद से,
एक बूँद ही भारी,
वाणी हो मधु जैसी,
चाहे दुनिया सारी।
स्वरचित मौलिक
कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
16 अप्रेल 2020,गुरुवार
मधुमक्खियां उपवन में जा
संचय करती मधु मकरन्द।
भिन्न भिन्न पुष्पो पर जाकर
जीवन भर लेती वह आंनद।
चलती रहती कभी न थकती
उद्देश्य प्राप्ति लक्ष्य उनका।
आल्हादित प्रमुदित मन से
करती पूर्ण साध्य स्व अपना
ज्ञानभक्ति प्रिय मधु रस होता
अति आवश्यक है जीवन में।
करे परिश्रम जो नित उठकर
अति हर्षित जीवन उपवन में।
मधु ज्ञान रस के बल पर नर
प्रति आकांक्षा पूरण करता।
स्वविवेक और परोपकार से
दीन दुःखी हर संकट हरता।
जीवन देना ,लेना नही होता
पेड़ लगाता सुमन खिलाता।
वह जीवन में स्वयं हँस कर
मुदित मन से ,सदा हंसाता।
यह जीवन ही आना जाना
जन्म मृत्यु सदा जग पाता।
मोक्ष धाम उसको मिलता है
भक्ति रस में मग्न हो जाता।
स्वरचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
मधुमक्खियां उपवन में जा
संचय करती मधु मकरन्द।
भिन्न भिन्न पुष्पो पर जाकर
जीवन भर लेती वह आंनद।
चलती रहती कभी न थकती
उद्देश्य प्राप्ति लक्ष्य उनका।
आल्हादित प्रमुदित मन से
करती पूर्ण साध्य स्व अपना
ज्ञानभक्ति प्रिय मधु रस होता
अति आवश्यक है जीवन में।
करे परिश्रम जो नित उठकर
अति हर्षित जीवन उपवन में।
मधु ज्ञान रस के बल पर नर
प्रति आकांक्षा पूरण करता।
स्वविवेक और परोपकार से
दीन दुःखी हर संकट हरता।
जीवन देना ,लेना नही होता
पेड़ लगाता सुमन खिलाता।
वह जीवन में स्वयं हँस कर
मुदित मन से ,सदा हंसाता।
यह जीवन ही आना जाना
जन्म मृत्यु सदा जग पाता।
मोक्ष धाम उसको मिलता है
भक्ति रस में मग्न हो जाता।
स्वरचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - शहद/रस
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शहद से मिठी प्रीत हमारी
कड़वे जीवन पर है भारी ।।
रोग-दोग भी दूर करे है
दवा ही समझो मिरी यारी ।।
मीठे पल की याद जिहन में
भुला देय सारी लाचारी ।।
इक रसमय जीवन जीना ही
कहाए सदा समझदारी ।।
हर पल में खुशियाँ तलाशो
कुछ रसों से भरो अलमारी ।।
मगर दारू का रस न रखना
हैं रस और जो गुणकारी ।।
शहद दवा ही होए 'शिवम'
दादा की न बात विसारी ।।
दादा मेरे बैध रहे हैं
दादा की नसीहत न्यारी ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 16/04/2020
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शहद से मिठी प्रीत हमारी
कड़वे जीवन पर है भारी ।।
रोग-दोग भी दूर करे है
दवा ही समझो मिरी यारी ।।
मीठे पल की याद जिहन में
भुला देय सारी लाचारी ।।
इक रसमय जीवन जीना ही
कहाए सदा समझदारी ।।
हर पल में खुशियाँ तलाशो
कुछ रसों से भरो अलमारी ।।
मगर दारू का रस न रखना
हैं रस और जो गुणकारी ।।
शहद दवा ही होए 'शिवम'
दादा की न बात विसारी ।।
दादा मेरे बैध रहे हैं
दादा की नसीहत न्यारी ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 16/04/2020
मद/मकरंद
कहते हम जीसे,
मद ,मकरंद ।
वह हैं एक छंद ।
छोटी बडी,
मधु मख्खीयां ।
खेलती दिनभर,
फूलो के संग ।
जब फूल लगता इतराने ।
हवा संग गुनगुनाता,
प्रेम रस गाने ।
तो धीरे से चुमकर ।
चूरा लेती,
फूलो का पराग ।
फूल कुछ,
होता निराश ।
लेकिन फिर,
कल मिलने की आस !
आस लगाएं,
बैठता फूल ।
पराग लेकर,
मधुमख्खी घर अाती ।
अपने प्यार पराग को,
रखती सम्हालकर ।
जो होता मीठा,
इसमें कुछ नही झुटा,
कहते उसे,
मद मकरंद ।
जो हैं एक छंद ।
X प्रदीप सहारे
कहते हम जीसे,
मद ,मकरंद ।
वह हैं एक छंद ।
छोटी बडी,
मधु मख्खीयां ।
खेलती दिनभर,
फूलो के संग ।
जब फूल लगता इतराने ।
हवा संग गुनगुनाता,
प्रेम रस गाने ।
तो धीरे से चुमकर ।
चूरा लेती,
फूलो का पराग ।
फूल कुछ,
होता निराश ।
लेकिन फिर,
कल मिलने की आस !
आस लगाएं,
बैठता फूल ।
पराग लेकर,
मधुमख्खी घर अाती ।
अपने प्यार पराग को,
रखती सम्हालकर ।
जो होता मीठा,
इसमें कुछ नही झुटा,
कहते उसे,
मद मकरंद ।
जो हैं एक छंद ।
X प्रदीप सहारे
विषय-मधु,मकरन्द
16-4-20
मधु पराग रस कोष में,संचित है मकरन्द।
मधुकर गुंजित वन करें, मिले वृहद आनन्द।
वाणी मधु सम है भली,ह्रदय पटल बस जाय।
कोकिल,कौआ एक से,वाणी अलग बनाय।
संचय कर मकरंद नित, करती मधु तैयार
मधुमक्खी नित श्रम करें, मिले तभी आहार।
मधुर मधुर मधु पान कर,अलि दल करते शोर ।
हर्षित कुसुमित वाटिका,आनन्दित है भोर।
गीता गुप्ता 'मन'
16-4-20
मधु पराग रस कोष में,संचित है मकरन्द।
मधुकर गुंजित वन करें, मिले वृहद आनन्द।
वाणी मधु सम है भली,ह्रदय पटल बस जाय।
कोकिल,कौआ एक से,वाणी अलग बनाय।
संचय कर मकरंद नित, करती मधु तैयार
मधुमक्खी नित श्रम करें, मिले तभी आहार।
मधुर मधुर मधु पान कर,अलि दल करते शोर ।
हर्षित कुसुमित वाटिका,आनन्दित है भोर।
गीता गुप्ता 'मन'
दिनांक, 16,4,2020
दिन, गुरुवार
विषय, मकरंद, मधु, शहद, रस.
रस जीवन में अब कहाँ , फैला ईर्ष्या द्वेष।
शहद खोजते हैं सभी , मकरंद नहीं शेष।।
वाणी में मधुता नहीं, नहीं बात में ओज।
पट असत्य का ओढ़कर, करें सत्य की खोज।।
काँटे बो कर खुश बहुत, नहीं फूल के खेत।
शहद मिलेगा अब कहाँ, जल्दी जाओ चेत।।
फूलों के रक्षक बनें , बोयें चंदन खेत ।
प्रेम भाव मकरंद से , सीचें मन की रेत।।
मीठी वाणी कर रही , जग में हर उपचार ।
शहद चाहिए जो अगर , मधु रसना ही सार।।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन, गुरुवार
विषय, मकरंद, मधु, शहद, रस.
रस जीवन में अब कहाँ , फैला ईर्ष्या द्वेष।
शहद खोजते हैं सभी , मकरंद नहीं शेष।।
वाणी में मधुता नहीं, नहीं बात में ओज।
पट असत्य का ओढ़कर, करें सत्य की खोज।।
काँटे बो कर खुश बहुत, नहीं फूल के खेत।
शहद मिलेगा अब कहाँ, जल्दी जाओ चेत।।
फूलों के रक्षक बनें , बोयें चंदन खेत ।
प्रेम भाव मकरंद से , सीचें मन की रेत।।
मीठी वाणी कर रही , जग में हर उपचार ।
शहद चाहिए जो अगर , मधु रसना ही सार।।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक-16/04/2030
विषय-मकरंद/मधु/शहद
मकरंदो की मधुर तृप्ति से
तृप्ति भ्रमर हो जाये।
कानन में पुष्पों की कलियां
जर्जर ठूँठ निरीह बन जाये।।
मधुरस का चुंबकीय चुंबन
स्पर्शो का आभास तरल।
भ्रमर के तन मन दोनों से
आलिंगन हो विह्वल विकल।।
भ्रमरों के चित् चितवन
उनके मृदु अधरों की लाली।
बाहों में है पुष्प लता की
मकरंदो की छटा निराली।।
अधरो पर धर अधर भ्रमर
बेसुध है उनका आलिंगन।
मधुरस चूसते कलियों के
उनका चिर यौवन मौन मगन।।
जैसे साकी का चंचल चितवन.......
रुनझुन - रुनझुन ,मंदिम- मंदिम
वायु के नशीले स्वर
मधुरस वितरण करती कलियां।
चहक रहे हैं भ्रमर मदमस्त
माणिक मधु की स्वर्णिम अलिया।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-मकरंद/मधु/शहद
मकरंदो की मधुर तृप्ति से
तृप्ति भ्रमर हो जाये।
कानन में पुष्पों की कलियां
जर्जर ठूँठ निरीह बन जाये।।
मधुरस का चुंबकीय चुंबन
स्पर्शो का आभास तरल।
भ्रमर के तन मन दोनों से
आलिंगन हो विह्वल विकल।।
भ्रमरों के चित् चितवन
उनके मृदु अधरों की लाली।
बाहों में है पुष्प लता की
मकरंदो की छटा निराली।।
अधरो पर धर अधर भ्रमर
बेसुध है उनका आलिंगन।
मधुरस चूसते कलियों के
उनका चिर यौवन मौन मगन।।
जैसे साकी का चंचल चितवन.......
रुनझुन - रुनझुन ,मंदिम- मंदिम
वायु के नशीले स्वर
मधुरस वितरण करती कलियां।
चहक रहे हैं भ्रमर मदमस्त
माणिक मधु की स्वर्णिम अलिया।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
16/04/2020
विषय- मधु , मधुर, रस
धवल वस्त्र धारिणी
मां शारदे वर दे
मधुर स्वर दे
स्वर में रस भर दे
आम्र मंझरिया खिल उठी
अंबिया रूप लेने लगीं
कोयल पीहू पीहू करे
शुक अंबि का रस चखे
मधुमास आया है
वैशाख भी सुहाना है
भोर भए मन को सुहाय
संध्या समय भ्रमण पर जाएं
पौष चला अपने पथ पर
चिड़िया भौंरे चहक उठे
पुष्प पराग लेने को
बगिया बगिया भ्रमण करे।
स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय- मधु , मधुर, रस
धवल वस्त्र धारिणी
मां शारदे वर दे
मधुर स्वर दे
स्वर में रस भर दे
आम्र मंझरिया खिल उठी
अंबिया रूप लेने लगीं
कोयल पीहू पीहू करे
शुक अंबि का रस चखे
मधुमास आया है
वैशाख भी सुहाना है
भोर भए मन को सुहाय
संध्या समय भ्रमण पर जाएं
पौष चला अपने पथ पर
चिड़िया भौंरे चहक उठे
पुष्प पराग लेने को
बगिया बगिया भ्रमण करे।
स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय -मधु, मधुर ,रस, मकरंद
मधुमास
मन रंजित
तन संचित
मधुमासी
संचय मधुर मधु
मधुकंठ
मधुर कुहुक
खिल उठी
रसभरी अंबिया
आम्र वृक्ष
शुक हरित
अम्बी हरी
रसपान करे
छूटे अम्बी
मधुबन-खिले
मनोहारी पुष्प
मधुव्रत(भौंरा) करे
मकरंद पान
मधुमास
मन रंजित
तन संचित
स्वरचित- आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंदविषय -मधु, मधुर ,रस, मकरंद
मधुमास
मन रंजित
तन संचित
मधुमासी
संचय मधुर मधु
मधुकंठ
मधुर कुहुक
खिल उठी
रसभरी अंबिया
आम्र वृक्ष
शुक हरित
अम्बी हरी
रसपान करे
छूटे अम्बी
मधुबन-खिले
मनोहारी पुष्प
मधुव्रत(भौंरा) करे
मकरंद पान
मधुमास
मन रंजित
तन संचित
स्वरचित- आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंदविषय -मधु, मधुर ,रस, मकरंद
मधुमास
मन रंजित
तन संचित
मधुमासी
संचय मधुर मधु
मधुकंठ
मधुर कुहुक
खिल उठी
रसभरी अंबिया
आम्र वृक्ष
शुक हरित
अम्बी हरी
रसपान करे
छूटे अम्बी
मधुबन-खिले
मनोहारी पुष्प
मधुव्रत(भौंरा) करे
मकरंद पान
मधुमास
मन रंजित
तन संचित
स्वरचित- आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय;-मकरंद/मधु/रस/शहद
दिनांक:16-4-2020
विधा गीत
नवरस से ही श्रृष्टि का,
होता है श्रृंगार|
और काव्य अभिव्यक्ति का,
रस ही है आधार|
है मकरंद में भी वही,
जो मधु शहद के पास|
एक दूजे के पर्याय हैं,
प्रयोग का करें प्रयास|
मधु में नशा है रूप का,
मकरंद में विजयोल्लास|
शहद बहुत प्यारी ग़ज़ल,
शब्द दे खुद एहसास|
माया का मेला लगा,
रस बरसे चहुँ ओर|
जाकी जैसी भावना,
तैसी ही पूरी होय|
भ्रमर अहर्निश जब करें,
पुष्प पराग का पान|
तब बड़े सौभाग्य से,
कोई कर पाता मधुपान|
वाणी में घुले जब शहद,
भावों के मोती दें साथ|
मधु रस में डूबे होंठो से,
होती नवरस की बरसात|
कागज हो मकरंद का,
मसि मधु की हो साथ|
शब्द शहद जैसे चुनें,
तबहो कविता की बात|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि
यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक:16-4-2020
विधा गीत
नवरस से ही श्रृष्टि का,
होता है श्रृंगार|
और काव्य अभिव्यक्ति का,
रस ही है आधार|
है मकरंद में भी वही,
जो मधु शहद के पास|
एक दूजे के पर्याय हैं,
प्रयोग का करें प्रयास|
मधु में नशा है रूप का,
मकरंद में विजयोल्लास|
शहद बहुत प्यारी ग़ज़ल,
शब्द दे खुद एहसास|
माया का मेला लगा,
रस बरसे चहुँ ओर|
जाकी जैसी भावना,
तैसी ही पूरी होय|
भ्रमर अहर्निश जब करें,
पुष्प पराग का पान|
तब बड़े सौभाग्य से,
कोई कर पाता मधुपान|
वाणी में घुले जब शहद,
भावों के मोती दें साथ|
मधु रस में डूबे होंठो से,
होती नवरस की बरसात|
कागज हो मकरंद का,
मसि मधु की हो साथ|
शब्द शहद जैसे चुनें,
तबहो कविता की बात|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि
यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
16/4/2020
बिषय, मकरंद, मधु शहद, रस
भौरा बैठा फूल का मकरंद पी रहा
मधुर मधुर रस ले जीवन जी रहा
नित ही नव पंकज मधु पान करता
जमाने में नहीं मुझ जैसा गुमान करता था
एक दिन पीते पीते मस्त हो
और यहाँ रवि फिर अस्त हो गया
पंखुड़ी सिमट गईं घुट घुट के मर के मर गया
अति तृष्णा के कारण दुनिया से गुजर गया
इसलिए कहा है लालच बुरी बला
रस में गिरी मक्खी मिला मौत का सिला
धन पैसा रिश्ते सभी अपने अनुकूल होना चाहिए
जितना चल सके उसी में मशगूल होना चाहिए
ज्यादा मीठा होने से गन्ना भी पेरा जाता है
उसी तरह अत्यधिक सज्जन आदमी को घेरा जाता है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
बिषय, मकरंद, मधु शहद, रस
भौरा बैठा फूल का मकरंद पी रहा
मधुर मधुर रस ले जीवन जी रहा
नित ही नव पंकज मधु पान करता
जमाने में नहीं मुझ जैसा गुमान करता था
एक दिन पीते पीते मस्त हो
और यहाँ रवि फिर अस्त हो गया
पंखुड़ी सिमट गईं घुट घुट के मर के मर गया
अति तृष्णा के कारण दुनिया से गुजर गया
इसलिए कहा है लालच बुरी बला
रस में गिरी मक्खी मिला मौत का सिला
धन पैसा रिश्ते सभी अपने अनुकूल होना चाहिए
जितना चल सके उसी में मशगूल होना चाहिए
ज्यादा मीठा होने से गन्ना भी पेरा जाता है
उसी तरह अत्यधिक सज्जन आदमी को घेरा जाता है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
दिनांक 16 अप्रैल 2020
विषय रस
आनंद का नाम रस है
प्रभु नाम स्मरण रस है
पानी तरल द्रव मे रस है
मनुस्मृति मे मदिरा रस है
स्वाद रूचि इच्छा मे रस है
प्रेम की अनुभूति मे रस है
काव्य के आनंद मे रस है
आयुर्वेद मे जडीबूटी रस है
साहित्य मे नवभांति रस है
संतो की मधूर वाणी मे रस है
गुरू के दिव्यज्ञान मे रस है
माता पिता के प्यार मे रस है
मित्रों को सानिध्य मे रस है
सुंदर काव्यसृजन मे रस है
कलाकार की कला मे रस है
जन जन की सेवा मे रस है
हृदय की मीठी बोली मे रस है
फूलो मे संचित पराग रस है
भंवरे का गुंजन राग रस है
चिड़ियों की चहचहाहट रस है
प्रकृति की सुंदर छटा मे रस है
भगवान की भक्ति मे रस है
जीवन मे सुकून संतोष रस है
बच्चो की मुस्कान मे रस है
मानो तो इस जहान में रस है
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय रस
आनंद का नाम रस है
प्रभु नाम स्मरण रस है
पानी तरल द्रव मे रस है
मनुस्मृति मे मदिरा रस है
स्वाद रूचि इच्छा मे रस है
प्रेम की अनुभूति मे रस है
काव्य के आनंद मे रस है
आयुर्वेद मे जडीबूटी रस है
साहित्य मे नवभांति रस है
संतो की मधूर वाणी मे रस है
गुरू के दिव्यज्ञान मे रस है
माता पिता के प्यार मे रस है
मित्रों को सानिध्य मे रस है
सुंदर काव्यसृजन मे रस है
कलाकार की कला मे रस है
जन जन की सेवा मे रस है
हृदय की मीठी बोली मे रस है
फूलो मे संचित पराग रस है
भंवरे का गुंजन राग रस है
चिड़ियों की चहचहाहट रस है
प्रकृति की सुंदर छटा मे रस है
भगवान की भक्ति मे रस है
जीवन मे सुकून संतोष रस है
बच्चो की मुस्कान मे रस है
मानो तो इस जहान में रस है
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक-16-4-2020
विषय-मकरंद/मधु/शहद/रस
विधा-दोहा
मधुप सुमन रस चूसता,
मीठा है मकरंद।
देख कलियां शर्मा गई,
हुई पंखुड़ी बंद।।1।।
सुन्दर फूलों सी खिली,
मधुमय सी मुस्कान।
मन में छवि है प्रीत की,
पिया बसे दिल जान।।2।।
अधरों पर है आ गई,
मेरे हिय की बात।
नैनों में मधु जाम भी,
छलके ज्यूँ बरसात।।3।।
फूलों सी खिलती लगे,
मंद मंद मुस्कान।
भ्रमर विमोहित हो गया
सच से वो अंजान।।4।।
हर्षित हुई है मधु ऋतु
यौवन चंचल आज।
बासंती बेला सुखद,
झूम उठे ऋतुराज।।5।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
नई दिल्ली
16-4-2020
विषय-मकरंद/मधु/शहद/रस
विधा-दोहा
मधुप सुमन रस चूसता,
मीठा है मकरंद।
देख कलियां शर्मा गई,
हुई पंखुड़ी बंद।।1।।
सुन्दर फूलों सी खिली,
मधुमय सी मुस्कान।
मन में छवि है प्रीत की,
पिया बसे दिल जान।।2।।
अधरों पर है आ गई,
मेरे हिय की बात।
नैनों में मधु जाम भी,
छलके ज्यूँ बरसात।।3।।
फूलों सी खिलती लगे,
मंद मंद मुस्कान।
भ्रमर विमोहित हो गया
सच से वो अंजान।।4।।
हर्षित हुई है मधु ऋतु
यौवन चंचल आज।
बासंती बेला सुखद,
झूम उठे ऋतुराज।।5।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
नई दिल्ली
16-4-2020
विषय-मधु,शहद, रस,
मकरंद
दिनांक --16.4.2020
विधा --दोहा मुक्तक
1.
वाणी मीठी शहद सी, देती सौख्य अपार ।
मधु से जिनके बोल हों, कभी न पाते हार ।
जिन फूलों के पास हो , मधु के हित मकरंद--
उनका जीवन सतत ही, करे मनुज उपकार ।
2.
पूरा जीवन श्रम करे, चम्मच शहद बनाय।
प्राणी के स्वास्थ्य हित में, बनता वही सहाय।
मक्खी सेवन नहिं करे, करती जन हित काम-
जीवन शक्ति बढा सके, मधु इसका पर्याय।
*******स्वरचित ***********
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी (म.प्र.)451551
मकरंद
दिनांक --16.4.2020
विधा --दोहा मुक्तक
1.
वाणी मीठी शहद सी, देती सौख्य अपार ।
मधु से जिनके बोल हों, कभी न पाते हार ।
जिन फूलों के पास हो , मधु के हित मकरंद--
उनका जीवन सतत ही, करे मनुज उपकार ।
2.
पूरा जीवन श्रम करे, चम्मच शहद बनाय।
प्राणी के स्वास्थ्य हित में, बनता वही सहाय।
मक्खी सेवन नहिं करे, करती जन हित काम-
जीवन शक्ति बढा सके, मधु इसका पर्याय।
*******स्वरचित ***********
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी (म.प्र.)451551
शब्द - मकरंद/ मधु /शहद/ रस स्वरचित।
फैलने लगा हर तरफ़
सूर्य की किरणों का जाल।
जा रहा है शीत अब
ले के तीर से चुभते
ठंडे प्रलाप।।
जान सी है आ रही
जमे हुए प्राणों में अब।
तपिश ने दिया मानो
सांसों को प्राणदान है।।
गये पतझड़ के दिन
आ रहा ऋतुराज बसन्त अब।
नवअंकुर अंकुरित,
नवीन पल्लव विकसित।
कोमल नवीन कलियां
मधु -मकरंद से पूरित सुमन।।
नव-नव विहान गाते खग
चहचहाती मृदु बोलियां।
रंग-बिरंगी तितलियां
फूलों पर फूल सी।
आने लगे,भ्रमर भी
रस-गंध के मोह में।।
****
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
फैलने लगा हर तरफ़
सूर्य की किरणों का जाल।
जा रहा है शीत अब
ले के तीर से चुभते
ठंडे प्रलाप।।
जान सी है आ रही
जमे हुए प्राणों में अब।
तपिश ने दिया मानो
सांसों को प्राणदान है।।
गये पतझड़ के दिन
आ रहा ऋतुराज बसन्त अब।
नवअंकुर अंकुरित,
नवीन पल्लव विकसित।
कोमल नवीन कलियां
मधु -मकरंद से पूरित सुमन।।
नव-नव विहान गाते खग
चहचहाती मृदु बोलियां।
रंग-बिरंगी तितलियां
फूलों पर फूल सी।
आने लगे,भ्रमर भी
रस-गंध के मोह में।।
****
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
दिनांक-16/04/2020
विषय-मकरंद/मधु/शहद
"मधु बसंत"
*********
आया मदमाता बसंत
मधुर स्वर कोयल बोले।
लिये प्रेम संदेश, हे सखि
अमवा से मधु है टपके।।
फूली खेतों में सरसों
ओढ़ पीली चुनरिया।
धरती चली इठलाती
देखो बन के गुजरिया।।
खिले नवरंग नवपुष्प।
कानन उपवन में ।
कली कली झूम रही
कैसे हिलोर पवन में।।
कली से बनी फूल
फूल मुस्काये मन्द-मन्द।
भ्रमर बागों में घूम-घूम
ले रहे मधु मकरंद ।।
अनिता निधि
जमशेदपुर
विषय-मकरंद/मधु/शहद
"मधु बसंत"
*********
आया मदमाता बसंत
मधुर स्वर कोयल बोले।
लिये प्रेम संदेश, हे सखि
अमवा से मधु है टपके।।
फूली खेतों में सरसों
ओढ़ पीली चुनरिया।
धरती चली इठलाती
देखो बन के गुजरिया।।
खिले नवरंग नवपुष्प।
कानन उपवन में ।
कली कली झूम रही
कैसे हिलोर पवन में।।
कली से बनी फूल
फूल मुस्काये मन्द-मन्द।
भ्रमर बागों में घूम-घूम
ले रहे मधु मकरंद ।।
अनिता निधि
जमशेदपुर
दिनांक 16-04-2020
विषय- मधु, शहद, रस, मकरंद
मधुमक्खी हर्षित होकर, करती मधुरस पान।
डाली-डाली सुमन के, करती रहती गान।। 1
जीवन में यदि रस नहीं, फिर नीरस बेजान।
मिलती इससे है नहीं, कभी सुयश पहचान।। 2
ज्ञात सभी को है यहाँ, मधु औषधि की खान।
कर्म विविध करते सभी, धर्मग्रंथ गुणगान।। 3
मधु सी भाषा चाहिए, जीवन हो रसवान।
सहज हृदय जिसका यहाँ, होता वह गुणवान।। 4
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
विषय- मधु, शहद, रस, मकरंद
मधुमक्खी हर्षित होकर, करती मधुरस पान।
डाली-डाली सुमन के, करती रहती गान।। 1
जीवन में यदि रस नहीं, फिर नीरस बेजान।
मिलती इससे है नहीं, कभी सुयश पहचान।। 2
ज्ञात सभी को है यहाँ, मधु औषधि की खान।
कर्म विविध करते सभी, धर्मग्रंथ गुणगान।। 3
मधु सी भाषा चाहिए, जीवन हो रसवान।
सहज हृदय जिसका यहाँ, होता वह गुणवान।। 4
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
विधा : कविता
तिथि : 16. 4. 2020
आशीर्वाद
------------
जब ज़िदगी खुष्क हो गई थी-
ज़िदगी से मुश्क खो गई थी,
रंग हीन, सुगंध हीन-
अपनी ही निगाहों में बनी थी दीन।
सो गई थीं सब उमंगें-
उठती न थीं कोई तरंगें-
इंतज़ार भी जैसे खतम हो गया था,
बदले गा कभी कुछ-
यह स्वप्न हो गया था।
तभी एक दिवस मेरे रेगिस्तान में-
खिल उठा एक नखलिस्तान।
आज भी इस वरदान पर-
है मुझे अभिमान।
ऊपर वाले के आशीर्वाद से-
मेरे कुछ कार्मिक सवाब से,
पाया मैने एक मधु कलश।
अरे नहीं! यह कलश न था-
यह तो था मधु-सागर,
मेरे हर्षोल्लास का रत्नाकर।
छिपे थे इसमें रत्न, मधु से लिपटे-
सामने जो आए, हर्ष से हम सिसके;
मधु से लिपटे छिपे थे जो रत्न
खुलते गए एक एक, बिना यत्न।
सोलह वर्ष पूर्व-
खो चुके थे जो अपनी चमक-
वह सारे सपने पुनः जी गए;
खो चुके थे जो अपनी खनक
वह सारे हंसने पुनः जी गए।
भीतर कहीं सिहर उठी धड़कन
अरमानों में जन्मी पुनः नई थिरकन
ठहरे पानी में उठने लगीं लहरें-
लचकीलापन पा गई हर अकड़न।
कहते हैं, मूल से होता सूद प्यारा
दोनों का मेल हो गया न्यारा
दोनों ही थे भावनात्मक सहारा-
मेरी दोनों आंखों का तारा।
सूद का सोलहवां जन्मदिवस
मूल का कैसे चुकाऊं कर्ज़?
आशीर्वादों, दुआओं की झोली-
भर भर दूं तुम्हें, ये मेरी है गर्ज़।
सुख स्वास्थ्य खुशियां, सफ़लता-पग पग पाओ
सत्कर्म-सत्मार्ग सदा अपनाओ
भावना विचार कर्म में लाओ शुद्धता-
कर्म बीज सदा उत्तमोत्तम बिजाओ।
दादी के आशीर्वाद जी भर फलाओ-
पुण्य प्रताप तुम सदा कमाओ;
ऊपर वाले सदा साथ देना-
मेरे बच्चे को सदा समर्थ सक्षम बनाओ।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित।
तिथि : 16. 4. 2020
आशीर्वाद
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जब ज़िदगी खुष्क हो गई थी-
ज़िदगी से मुश्क खो गई थी,
रंग हीन, सुगंध हीन-
अपनी ही निगाहों में बनी थी दीन।
सो गई थीं सब उमंगें-
उठती न थीं कोई तरंगें-
इंतज़ार भी जैसे खतम हो गया था,
बदले गा कभी कुछ-
यह स्वप्न हो गया था।
तभी एक दिवस मेरे रेगिस्तान में-
खिल उठा एक नखलिस्तान।
आज भी इस वरदान पर-
है मुझे अभिमान।
ऊपर वाले के आशीर्वाद से-
मेरे कुछ कार्मिक सवाब से,
पाया मैने एक मधु कलश।
अरे नहीं! यह कलश न था-
यह तो था मधु-सागर,
मेरे हर्षोल्लास का रत्नाकर।
छिपे थे इसमें रत्न, मधु से लिपटे-
सामने जो आए, हर्ष से हम सिसके;
मधु से लिपटे छिपे थे जो रत्न
खुलते गए एक एक, बिना यत्न।
सोलह वर्ष पूर्व-
खो चुके थे जो अपनी चमक-
वह सारे सपने पुनः जी गए;
खो चुके थे जो अपनी खनक
वह सारे हंसने पुनः जी गए।
भीतर कहीं सिहर उठी धड़कन
अरमानों में जन्मी पुनः नई थिरकन
ठहरे पानी में उठने लगीं लहरें-
लचकीलापन पा गई हर अकड़न।
कहते हैं, मूल से होता सूद प्यारा
दोनों का मेल हो गया न्यारा
दोनों ही थे भावनात्मक सहारा-
मेरी दोनों आंखों का तारा।
सूद का सोलहवां जन्मदिवस
मूल का कैसे चुकाऊं कर्ज़?
आशीर्वादों, दुआओं की झोली-
भर भर दूं तुम्हें, ये मेरी है गर्ज़।
सुख स्वास्थ्य खुशियां, सफ़लता-पग पग पाओ
सत्कर्म-सत्मार्ग सदा अपनाओ
भावना विचार कर्म में लाओ शुद्धता-
कर्म बीज सदा उत्तमोत्तम बिजाओ।
दादी के आशीर्वाद जी भर फलाओ-
पुण्य प्रताप तुम सदा कमाओ;
ऊपर वाले सदा साथ देना-
मेरे बच्चे को सदा समर्थ सक्षम बनाओ।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित।
दिन गुरुवार
मधु/शहद
💘💘💘💘
मधुमक्खी अनोखा मधु बनाती
इसमें हर शुद्धता समाती
इसमें वह सुधा भर जाती
एक अनमोल पाठ पढा़ती।
मधु अपनी बातों मे घोलो
सुन्दर सुन्दर भाषा बोलो
अच्छे शब्दों से श्रँगार करो
अलँकारों का उपहार धरो।
पराग कण सँचित करती मधुमक्खी
समर्पण भावना रखती अपनी सच्ची
पूरे समूह की एक ही इच्छा रहती पक्की
मधुमय कर दें डाली तो काम हो अपना नक्की।
हम मधुमय वाणी का प्रयोग करें
वसुदेव कुटुम्बकम में सहयोग करें
आज हर बात का मधु नकली है
मधुमक्खी का प्रसाद ही असली है।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
मधु/शहद
💘💘💘💘
मधुमक्खी अनोखा मधु बनाती
इसमें हर शुद्धता समाती
इसमें वह सुधा भर जाती
एक अनमोल पाठ पढा़ती।
मधु अपनी बातों मे घोलो
सुन्दर सुन्दर भाषा बोलो
अच्छे शब्दों से श्रँगार करो
अलँकारों का उपहार धरो।
पराग कण सँचित करती मधुमक्खी
समर्पण भावना रखती अपनी सच्ची
पूरे समूह की एक ही इच्छा रहती पक्की
मधुमय कर दें डाली तो काम हो अपना नक्की।
हम मधुमय वाणी का प्रयोग करें
वसुदेव कुटुम्बकम में सहयोग करें
आज हर बात का मधु नकली है
मधुमक्खी का प्रसाद ही असली है।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनांक-१६/४/२०२०
शीर्षक-मकरंद/रस/मधु/शहद
हर रस में लिखूं कविता
माँ वाणी ऐसा वर दो
भक्ति रस के भाव भर दो
माँ मेरी लेखनी को वर दो।
निरस हो गर किसी की जिंदगी
माँ सबके जीवन में रस घोल दो
तज दिये जो नीज स्वार्थ को
उनके दुःखो को हर दो।
शहद सा रस घुले बाणी में
माँ तुम आज ये वर दो
सबको मिले अपने हिस्से का मकरंद
माँ,तुम आज ये वर दो।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-मकरंद/रस/मधु/शहद
हर रस में लिखूं कविता
माँ वाणी ऐसा वर दो
भक्ति रस के भाव भर दो
माँ मेरी लेखनी को वर दो।
निरस हो गर किसी की जिंदगी
माँ सबके जीवन में रस घोल दो
तज दिये जो नीज स्वार्थ को
उनके दुःखो को हर दो।
शहद सा रस घुले बाणी में
माँ तुम आज ये वर दो
सबको मिले अपने हिस्से का मकरंद
माँ,तुम आज ये वर दो।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक - 16/04/20
विषय -मकरंद/मधु/शहद /रस
विधा - कविता
शीर्षक -(नीर बरस तू)
पावन पावस नीर बरस तू ,
भीगे मृदु मन प्रेम सिन्धु से!
बूंद पड़े कोमल तन पर,
सिहर -सिहर विधुत बिन्दु से!!
वसुधा का मौन निमंत्रण,
प्रियतम तुम स्वीकार करो ना!
जलमय तन और अंतर भी जलमय,
बरस - बरस नभ अवनि सिंगार करो ना!!
धधक रही ज्वाला अपरिमित,
तापों का झंझावत भीतर तक!
ढुलका कर हिमजल प्रेम का,
उष्ण उर में शीतलता भरों ना!!
चंहु ओर खिले सुमन कोमल,
फूटे अंकुर नवजीवन का!
अंबर-धरा के मधुर मिलन से,
नवयुग का आह्वान करो ना!!
📝स्वरचित 📝
Mr.रमेश रेगर
लेखक /स्वतंत्र रचनाकार
जोधपुर, राजस्थान
विषय -मकरंद/मधु/शहद /रस
विधा - कविता
शीर्षक -(नीर बरस तू)
पावन पावस नीर बरस तू ,
भीगे मृदु मन प्रेम सिन्धु से!
बूंद पड़े कोमल तन पर,
सिहर -सिहर विधुत बिन्दु से!!
वसुधा का मौन निमंत्रण,
प्रियतम तुम स्वीकार करो ना!
जलमय तन और अंतर भी जलमय,
बरस - बरस नभ अवनि सिंगार करो ना!!
धधक रही ज्वाला अपरिमित,
तापों का झंझावत भीतर तक!
ढुलका कर हिमजल प्रेम का,
उष्ण उर में शीतलता भरों ना!!
चंहु ओर खिले सुमन कोमल,
फूटे अंकुर नवजीवन का!
अंबर-धरा के मधुर मिलन से,
नवयुग का आह्वान करो ना!!
📝स्वरचित 📝
Mr.रमेश रेगर
लेखक /स्वतंत्र रचनाकार
जोधपुर, राजस्थान
दिनांक -16/04/2020
विषय- रस,मकरंद,मधु ,शहद
जब भी बोलो ,प्रिय बोलो
जीवन में मधुरस घोलो ।
संबंधो को धन से मत तोलो
मन के दरवाजे खोलो ।
अपनों के ही नहीं सबके होलो
परपीडा़ में भी उर खोलो ।
जीवन का आनंद यही है
फूलों का मकरंद यही है ।
तितली श्रम कर मधुरस लाती
संग्रह कर सबको दे जाती ।
तुम भी अपना संग्रह खोलो
सबके दिल में मधुरस घोलो ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
विषय- रस,मकरंद,मधु ,शहद
जब भी बोलो ,प्रिय बोलो
जीवन में मधुरस घोलो ।
संबंधो को धन से मत तोलो
मन के दरवाजे खोलो ।
अपनों के ही नहीं सबके होलो
परपीडा़ में भी उर खोलो ।
जीवन का आनंद यही है
फूलों का मकरंद यही है ।
तितली श्रम कर मधुरस लाती
संग्रह कर सबको दे जाती ।
तुम भी अपना संग्रह खोलो
सबके दिल में मधुरस घोलो ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
विषय-मधु/शहद/मकरंद
दिनाँक-16/04/2020
विधा-दोहा
फूलों की बिखरी छटा, मलयज बहती मंद।
भ्रमर डोलते फिर रहे,पीने को मकरंद।।
उत्सव अभी वसंत का,अब खिल उठी बहार।
हुआ वल्लरी कुंज में,मधु रस का संचार।।
भटक रहीं मधुमक्खियाँ,करने शहद एकत्र।
पता फूलों का दे रहा,हर डाली का पत्र।।
कोकिल कूके डाल पर,किसको रही पुकार।
मीठी-मीठी तान में, बहती है रसधार।।
मधुमय अब परिवेश है,निखरा सा संसार।
कलरव खग भी हर्ष के,करे प्रकट उद्गार।।
दिनाँक-16/04/2020
विधा-दोहा
फूलों की बिखरी छटा, मलयज बहती मंद।
भ्रमर डोलते फिर रहे,पीने को मकरंद।।
उत्सव अभी वसंत का,अब खिल उठी बहार।
हुआ वल्लरी कुंज में,मधु रस का संचार।।
भटक रहीं मधुमक्खियाँ,करने शहद एकत्र।
पता फूलों का दे रहा,हर डाली का पत्र।।
कोकिल कूके डाल पर,किसको रही पुकार।
मीठी-मीठी तान में, बहती है रसधार।।
मधुमय अब परिवेश है,निखरा सा संसार।
कलरव खग भी हर्ष के,करे प्रकट उद्गार।।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेशविषय-मधु/शहद/मकरंद
दिनाँक-16/04/2020
विधा-दोहा
फूलों की बिखरी छटा, मलयज बहती मंद।
भ्रमर डोलते फिर रहे,पीने को मकरंद।।
उत्सव अभी वसंत का,अब खिल उठी बहार।
हुआ वल्लरी कुंज में,मधु रस का संचार।।
भटक रहीं मधुमक्खियाँ,करने शहद एकत्र।
पता फूलों का दे रहा,हर डाली का पत्र।।
कोकिल कूके डाल पर,किसको रही पुकार।
मीठी-मीठी तान में, बहती है रसधार।।
मधुमय अब परिवेश है,निखरा सा संसार।
कलरव खग भी हर्ष के,करे प्रकट उद्गार।।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
वार-बुधवार
शीर्षक-मकरंद/मधु/शहद/रस
मकरंद सी उनकी बातों को,
मै सुनकर, पल पल जीती हूँ!
मधु मुझमें घुलने लगता है,
जब सामने उनके आती हूँ!
शहद सा फैला यू चित्त में,
जब मुझमें वो मिल जाते है!
सुनो कुसुमासव मै उन्हें कहूँ,
जो रसा रस मुझपे बरसाते है!
पुष्प रस के प्रिय वो गहनों से,
चहुँओर प्रीत सी मुझपे सजते है!
सीमा मिश्रा
सागर मध्यप्रदेश
शीर्षक-मकरंद/मधु/शहद/रस
मकरंद सी उनकी बातों को,
मै सुनकर, पल पल जीती हूँ!
मधु मुझमें घुलने लगता है,
जब सामने उनके आती हूँ!
शहद सा फैला यू चित्त में,
जब मुझमें वो मिल जाते है!
सुनो कुसुमासव मै उन्हें कहूँ,
जो रसा रस मुझपे बरसाते है!
पुष्प रस के प्रिय वो गहनों से,
चहुँओर प्रीत सी मुझपे सजते है!
सीमा मिश्रा
सागर मध्यप्रदेश
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