Tuesday, April 21

आदत18अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-713
18/4/2020
"
आदत"
*****************
है
चाय
राहत
पो आदत
साथ चाहत
ज्यादा न लागत
अतिथि का स्वागत।।
(2)
ये
झूठ
आदत
रूठे खास
रोता विश्वास
एकांत आवास
बिछड़ा परिवार।।

स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ

तुमको आए यकीं याकि आए नहीं।
झूठ कहने की मुझको आदत नहीं।


खुद को समझे खुदा वे समझते रहें।
हमको मंजूर उनकी इबादत नहीं।

हाल देखा जमाने का ऐसा लगा।
रही जिंदा जरा भी शराफत नहीं।

हया और गरूर दो अलग चीज है।
अरे इतनी भी तुझमें नजा़कत नहीं।

मै जानता हूँ कमाई के सारे हुनर।
मगर ये ईमान देता इजाजत नहीं।

अजीजो़ को मेरे है ये कैसे गिले।
हमे तो किसी से शिकायत नहीं।

जान लो जान से तुम्हे प्यारी है जो।
बेटियों से बड़ी कुछ अमानत नहीं।

इल्म अब जाके तुम्हें 'सोहल' हुआ।
इश्क से भी बड़ी कोई आफत नहीं।

विपिन सोहल
विषय आदत
विषय काव्य

18 अप्रेल 2020,शनिवार

मातापिता गुरु संस्कारों से
स्वच्छ स्वस्थ आदते बनती।
जीवन सफल बनाती अपना
परहित कर्म सदा डग भरती।

स्व आदत से जग प्रेरित हो
आकर्षित हो शुचि आदत से।
प्रचंड भीषण गर्मी तपती तब
अति राहत मिलती बादल से।

अनुकरणीय आदत के बल से
जीवन प्रगति के पथ चलता।
स्व स्वार्थ को त्याग सदा वह
दुखः पीड़ा जन जन की हरता।

संगत पर निर्भर यह सोच है
सत्संगत नित आदल बदले।
अति क्रूर रत्नाकर डाकू भी
भक्तिभाव रामचरित में भरदे।

अच्छा बुरा निर्भर विवेक पर
सदविवेक शिक्षा से मिलता।
मलय पवन के चलते झोंखे
आदत पुष्प सदा ही खिलता।

स्वरचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय - आदत
प्रथम प्रस्तुति


आदतों पर शोध किया देखा है
आदतों का जन्मों से लेखा है ।।
आदतें कब कौन नहीं बन जाएँ
बना देंय ये भाग्य की रेखा है ।।

फ़लाँ आदत हमको क्यों रोकी थी
औरों की क्यों राह न वो टोकी थी ।।
क्या हमारे सुक्ष्म शरीर में लिपटी थी
मिटी न वो आदत ताकत झोंकी थी ।।

मंदिर मदिरालय दोनों पास थे
क्यों मदिरालय के हुए हम दास थे ।।
मंदिर भी जा सकते पर नही गए
क्यों आखिर हुए हम आज उदास थे ।।

कहते हैं उसने उसे बिगाड़ा है
बात समझ से परे ये यारा है ।।
क्यों वो संगत आखिरकर भायी थी
पूर्व जन्म का कोई पिटारा है ।।

सतसंग है साबुन जो धोएगा
सतसंग है दवा निरोगी होयगा ।।
जन्मों की ये पाप गठरी बँधी है
समझ 'शिवम' आखिर कब तक सोएगा ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 18/04/2020विषय - आदत
प्रथम प्रस्तुति

आदतों पर शोध किया देखा है
आदतों का जन्मों से लेखा है ।।
आदतें कब कौन नहीं बन जाएँ
बना देंय ये भाग्य की रेखा है ।।

फ़लाँ आदत हमको क्यों रोकी थी
औरों की क्यों राह न वो टोकी थी ।।
क्या हमारे सुक्ष्म शरीर में लिपटी थी
मिटी न वो आदत ताकत झोंकी थी ।।

मंदिर मदिरालय दोनों पास थे
क्यों मदिरालय के हुए हम दास थे ।।
मंदिर भी जा सकते पर नही गए
क्यों आखिर हुए हम आज उदास थे ।।

कहते हैं उसने उसे बिगाड़ा है
बात समझ से परे ये यारा है ।।
क्यों वो संगत आखिरकर भायी थी
पूर्व जन्म का कोई पिटारा है ।।

सतसंग है साबुन जो धोएगा
सतसंग है दवा निरोगी होयगा ।।
जन्मों की ये पाप गठरी बँधी है
समझ 'शिवम' आखिर कब तक सोएगा ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 18/04/2020

विषय, आदत ,
दिनांक, 18, 4,2020


माँ
पुत्र
कुपुत्र
सम दृष्टि
आशीष देती
मन को लुभाती
आदत ममता की ।

स्त्री
धरा
आदत
पूज्यनीय
ममतामयी
पालन पोषण
उपकार, बेमोल ।

ये
नहीं
सुनता
माँ की बात
लाड़ दुलार
अच्छी फटकार
बालक की आदत ।

है
नया
चलन
बनावट
नकली हँसी
दुर्गति मन की
आदत छुपाने की।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

आदत
हाइकु लेखन
1
बूरी संगत
नहीं अच्छी आदत
झूठी राहत
2
स्फूर्तिदायक
चाय की है आदत
सुबह-शाम
3
अच्छी आदत
साधना पूजा-पाठ
सुखी जीवन
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी


विषय - आदत

आदत सी हो गई है मुझे
खुश रहने की और
दूसरों को खुशी देनी की
मां ने यहीं तो अच्छी आदत डाली थी

आदत सी हो गई है मुझे
मेरी मासूमियत सी जिंदगी की
लोग कहते है इतनी मासूम ना बन
पर क्या करू आदत ही हो गई

आदत सी हो गई है मुझे
बस लिखते रहने की कविता
हर वक़्त कलम हाथ में रखने की
क्या करे साहब आदत बुरी चीज है

आदत सी हो गई है मुझे
हर गम में भी मुस्कुराने की
दिल के दर्द को छुपाने की
आदत को आदत की
ही लत जो लग गई

आदत बदलने से नहीं बदलती
मैं तो कहती हूं आखिर
आदत को बदलना ही क्यों है
आदत ही तो तुम्हारी पहचान है
जया वैष्णव
जोधपुर(राजस्थान)
दिनांक 18।4।2020 दिन शनिवार
विषय आदत


एक आदत सी पड़ गई तुम्हें भुलाने की।
तुम न हो तो दिल करता है पास आने की।।
मेरे नयनों की बात तुम न कभी पढ़ पाई।
अब तो मजबूरियाँ ही रह गई छिपाने की।।
यह अच्छी या बुरी आदत है वह तुम जानो।
ले लो एक बार सुधि अपने इस दीवाने की।।
अश्क़ पी पी के गुजर जाती हैं बैरन रातें।
क्या करूँ दिल के मुहब्बत के इस फसाने की।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा

आदत और जरूरत ।
कितना फर्क है ना
सोचा करीब से ।
आदत ही तो सांस लेना ।
तेरे नाम से ।
एक तुम जरूरत बनाकर
आदत दे गए अपनी।
अब जी रहे है ।
एक आदत के साथ सनम
शायद दुनिया से चले जाए जब।
तो ये आदत ही साथ जाए तब ।
स्वरचित ।
पूनम कपरवान।
देहरादून
उतराखणड।

आयोजन - कविता सृजन
विषय - आदत

दिनांक - १८/४/२०
विधा - नज़्म

●○●○●○●○●○●○●○●○●○●○●○

कितना है इश्क़ तुम से ये क्या बतायें,
यूँ बताने की हमको आदत नहीं है।
जितनी होती मुहब्बत उतनी लड़ाई,
रुचि जगाने की हमको आदत नहीं है।।

दिल कभी सेहरा थे अब चमन हो चले,
वीरान दिलों में इश़्क की आँधी चली,
शोख कलियों के दामन भी सजने लगे,
दिल सजाने की हमको आदत नहीं है।।

अदायें तिरी मेरा दिल लुभाने लगीं,
आइने से भी नज़र मैं चुराने लगी।
हर फेंसले पर तिरे सर झुकाने लगी,
सर झुकाने की हम को आदत नहीं है।।

खुशबू इश्क की चमन में उड़ी इस कदर,
छुपाना चाही मगर न छुपी यह लहर।
प्यार का ऐसा असर था थमी हर नजर,
दिल जलाने की हमको आदत नहीं है।।

मदहोशी से तिरी यूँ दिल डरने लगा,
इश्क में साथ मेरे कहीं हो ना दगा।
"मीनू" क्यूँ इश्क तेरे दिल में है जगा,
दिल लगाने की हमको आदत नहीं है।।

मीनू@कॉपी राईट
राजकोट
भावों के मोती
18/4/2020

बिषय - आदत

बेरुखी सी जिंदगी और अपनों से रुसबाई।
दिल में बने फासले मुसीबत सी हो गई।

तुझे भूलने की ज़िद्द थी मगर,
आज तेरी #आदत सी हो गई।

हम दर पर सजदा करने गए और,
हमारी मुलाकात इबादत सी हो गई।

तेरी चाहतो को पलकों पर सजायेंगे हम,
सादगी अदाओं की नजाकत सी हो गई।

गुनाहों की सज़ा का ख़ौफ़ नही हमे,
नाराजगी तुमसे शराफ़त सी हो गई।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा

18/4/2020
विषय: - आदत

पुरानी डायरी को पढ़ने की आदत सी हो गई।
हमें सुर्ख गुलाब को रखने की आदत हो गई।।

तस्वीर सजाकर रखी है हमने दिल मे इस तरह।
उसे बार बार देखने की एक आदत सी हो गई।।

तुम्हारा श्रृंगार तुम्हारी सादगी थी इसलिए दोस्त।
जुबां पर तुम्हारा नाम लेने की आदत सी हो गई।।

संभाला है मैंने जज्बात को मगर फिसल गया।
गुजरे दिनों को याद करने की आदत सी हो गई।।

पूजा की है मैंने जिसे मूरत समझकर जिसकी।
पहली मुलाकात याद करने की आदत हो गई।।

डॉ. राजेश पुरोहित
भवानीमंडी

दिनांक -18/04/2020
विषय-आदत


आदत मेरी ऐसी प्रतिदिन प्रभु बना दे......

प्रस्फुटित स्वर अधरो पे मेरे
धडकनें गुनगुनाने लगे।
भावों के भावनाओं में समाकर
नेत्र मेरे गोते लगाने लगे।।
अपनी आदत में याचना के लिए
शब्द ढूंढू कहां से।
अर्चना ना होवे अधूरी राह दुर्गम में
मेरे पग डगमगाने लगे।।
हे प्रभु मेरी आदत तू बना दे ऐसी..
बोध पाकर तेरा दर्द के उद्गार
हंसकर अधरों पे आने लगे ।
आदत में मेरी थिरके अधरों पर
सरस्वती के भजन
प्रभुता पाकर तेरी【 सत्य】
भी मुस्कुराने लगे।।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

18/4/2020/शनिवार
*आदत*

काव्य

हमारे बचपन के संस्कार।
परिवेश का व्यवहार।
सहायक होते हैं,
आदत बनाने में शुमार।

हम जैसा बीजारोपण करें।
नीचे रहें शिखरों पर आरोहण करें।
आदत नींव बन जाती है कभी,
यदि प्रतिदिन इसका संम्बर्धन करें।

आदत बन जाए छूटती नहीं।
बोलने से वाणी चूकती नहीं।
सुसंस्कार जड़ों में डालें,
बच्चों से खुशियां रूठती नहीं।

दण्ड का विधान क्यों बनाया।
हमने संविधान क्यों बनाया।
जिन्हें आदतें उदंडता की पड़ी हैं,
समझें कभी डंडा क्यों चलाया।

आदत फिर मुश्किल से टूटती हैं।
हमारी पीढियां हमसे पूछतीं हैं।क्यों डालीं आदतें शुरू से,
हमसे आज ये घटनाऐं पूछती हैं।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

*आदत*काव्य
18/4/2020/शनिवार


विषय-आदत
विधा-घनाक्षरी

दिनाँक-18-4-2020
कर्तव्य पथ पर अडिग नजर रहे.
मन की उड़ान को पतंग सा उड़ायें हम।
देश के विकास में हमेशि भागीदार बनें.
छोटी-छोटी बात पर मुँह नहीं छिपायें हम।
भारत महान से महान बन जाये जब.
मेहनत करने की मन ठान पायें हम।
द्वेषभाव भूलकर मूल संस्कार जानें.
सदा मुस्करायें ऐसी आदत बनायें हम।।

आदत
आदत

आदत की तरह घुल गये मुझमें
बस एक सकून से बस गये मुझमें
एक तलब सी उठती है मुझमें..
कहते हैं सब तलब अच्छी नहीं..
पर कुछ आदतें जिंदगी से जाती नहीं
बस उन आदतों से ही हो तुम
छोड़ी जाती नहीं...
किसी दिन बताएँगे....
तुम हमारी आदत हो ये..
तुम को ही बताएँगे....
तलबगार हैं हम...
बैठ कर समजायेंगे...
बस एक आदत हो तुम...
कैसे छोड़ पायेंगे
पूजा नबीरा काटोल नागपुर
महाराष्ट्र

भावों के मोती।
विषय-आदत।

स्वरचित।

जय शारदे मां।

कोशि़शें चाहे हज़ार कर ले कोई,
हार मानने की मेरी आदत नहीं।।

राह में रुकावटें चाहे कितनी डाले कोई।
रुक कर बैठ जाना मेरी आदत नहीं।।

दुनिया का क्या है यूं ही बोलती हरद़म।
गौ़र उस पर करूं मैं मेरी आदत नहीं।।

सुबह शाम मेरे घर गूंजते हैं क़हक़हे।
उमंगों से दूर होना मेरी आदत नहीं।।

कोशिशें चाहे हजार कर लें कोई।
हार मानने की मेरी आदत नहीं।।
*****

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
18/04/2020
विषय-आदत

कोई सदैव मुस्काता है
कोई सदैव कुढा़ता है
कोई सदैव कर्मरत है
कोई नव प्रयोजन करता है।

भांति भांति के मानुष जग में
है नही समरसता किसी में
ईश्वर की ही संरचना है
पर हैआदत सबकी नाना।

है मेरा कर्म योग ही जीवन
करे संतप्त मन शांत
अविरल बहती रहे यह धार
करूं मैं विनती यही करतार।

प्रभु दर्शन की है आस
ना कोई मन में खटास
नेकी मैं करूं सदैव
दुख ना दे कोई देव।

आदत एसी बन गई
कभी न छूटे छुटाए
प्रभु प्रभाव ऐसा पड़ा
मन सदैव है अडिग खडा़।

स्वरचित-आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद


शीर्षक .. आदत
****************


निकल कर ख्वाबों से मेरे, नजर के सामने आ जा।
जो मेरे दिल में है वो तुझमें, भी है क्या बता के जा।
बडा मुश्किल समय है रात दिन मै खोया रहता हूँ,
ये आदत लग गयी मुझको तेरी,आदत छुडा के जा।

बदलते वक्त और हालात का, अजब ही नजारा है।
खडा मै बीच दरिया के मगर, मुश्किल किनारा है।
किधर जाए अधर मे जिन्दगी, उस पार तुम रहती,
ना कश्ति है ना तिनका है,ना मंजिल का ठिकाना है।

सुनो इक बार मेरे दिल पे, अपना हाथ रख देना।
नजर नजरों पे रख कर आँख थोडी सा दबा देना।
मै आँखों में सजो कर तेरी सूरत, जिन्दगी जी लूँ,
नरम होठों को दाँतो मे दबा कर, मुस्करा देना।

ये ख्वाबों की हकीकत है, इसी में शेर जी लेगा।
नरम पत्ते पे दिल रख कर, मेरी जाँ उसको सी लेगा।
ये ही आदत मेरी सुन लो सभी, अब जिन्दगी मेरी,
ना ख्वाबों में हकीकत है, यही अब शायरी मेरी।

शेर सिंह सर्राफ
विषय-आदत
दिनांक-18/04/2020


गमों में भी मुस्कराने की आदत है मेरी,
अंधेरे में दीप जलाने की आदत है मेरी |

चला जाये रूठकर बहुत दूर ही सही,
हर रूठे को मनाने की आदत है मेरी |

डगर पर बेशक काँटे हो कोई बात नही,
मुश्किल आसान बनाने की आदत है मेरी |

पतझर लाने की लाख कोशिश कर ले तू,
गीत मधुमास के सुनाने की आदत है मेरी,

"नील"क्या रोक सकेगी ये आंधिया मुझे,
आसमान तक जाने की आदत है मेरी |

स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
बालाघाट ( मध्यप्रदेश )
18/4/2020
बिषय, आदत

किसी के दुख में दुखी होना बड़ी अच्छी आदत
किसी की याद में पलकें भिगो लेना बड़ी अच्छी आदत है
अपनों से सभी अपनत्व जताते हैं
परायों को अपना लेना बड़ी अच्छी आदत है
अमीरों की चौखट पर खड़े होना समझते शान
गरीबी में काम आना बड़ी अच्छी आदत है
नेताओं के संग में जाने कितने चमचे हैं
वेसहारों का सहारा बनना बड़ी अच्छी आदत है
जहाँ स्वार्थ सिद्दी की हो बात
वहाँ परोपकार कर भूल जाना
बड़ी अच्छी आदत है
स्वरचित सुषमा बयौहार


नमन भावों के मोती



#आदत
हर बार मार हार की खा कर,
क्यों आदत हो गई पिटने की?
हीरे की हालत हुई आज है,
मिट्टी के भाव ही बिकने की।

मेहनत में कहीं मिलावट है ,
या खुद को खुद पर डाउट है।
कोई जरूर रही है कमजोरी,
जो राह में तेरी रुकावट है ।

जितनी मेहनत तुम करते हो,
वो भी तो उतनी ही करते हैं।
फर्क इतना तुम चाहो विजय,
और वो विजय पर मरते हैं।

हिम्मत से हौसला बढ़ता है,
वह तभी परिस्थिति पढता है।
इसी सोच से एक पर्वतारोही,
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ता है।

जब लगन मगन हो लगती है ,
और रखे दिल जिंदा अरमान ।
नामुमकिन को मुमकिन कर दे ,
वह मुश्किल को कर दे आसान।

हो उठ खड़ा क्यों पड़ा हुआ ?
तेरी मंजिल तुझे बुलाती है ।
एक हार जीत के बाद डले ,
अभी वह हार पहना बाकी है ।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
जिला महेंद्रगढ हरियाणा

दिनांक18/04/20

विषय-आदत

ये जो भूलने की आदत है
कभी कभी ले लेती सहादत है।
खाने में यदि नमक कम हो
भोजन में फिर दम न हो
भूलने पे होती सब की सिकायत है
ये जो भूलने.........
भूलने पे नौकरी भी जाती
भूलने पे मम्मी बार बार डांटती
घर मे सब नाखुश हो जाते
बनाने वाले टॉय टॉय फुस हो जाते
माफी ही माफी की इनायत है
ये जो भूलने .....
यदि बेटी कोई बड़ी भूल कर जाती
तो घर खानदान पे आफत टूट जाती
मच जाता चारो ओर कोहराम
न ईस्वर न अल्ला होता केवल राम राम
बार बार टोका टाकी तानो की मचती रिवायत है
ये जो भूलने की.......
छात्र परीक्षा की डेट भूल भर जाय
फेल ही फेल का मन मे भूत भर जाय
कही तो आत्म हत्या कर लेते,
कही सूली पर चढ़ लेते
जैसे ही देखते अपना रिजल्ट और पढ़ लेते
सुना नही कभी,भूलने से इंसान को मिली ताकत है
ये जो भूलने ......
भूलने से एक्सिडेंट बड़े बड़े हो जाते
इंसान बस कार रेलवे सब मे डिमोशन पाते
भूल से मिर्ची ज्यादा खाने में जब हो जाता
जिससे कइयों के गाल पे थप्पड़ बज जाता
क्रोध की घंटी बजती,
जब आया प्रेयसी का भूल भरा खत है
ये जो भूलने की ......
भूलने से रहता जोश मर जाता है
अच्छा खासा मर्द नामर्द कहलाता है
भूलने से कला भी मिट जाती है
भूलने से सरकारे भी घसीट जाती है
सब में बसी भूल है,
घातक न हो इसकी हिमायत है
ये जो भूलने की आदत है
कभी कभी ले लेती सहादत है।।

उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
18.4.2020
शनिवार

आज का शीर्षक है - आदत
विधा-ग़ज़ल

आदत

मेरी#आदत है,मुस्कुराने की
सीखी आदत,न दिल दुखाने की।।

गुल से गुलज़ार ,गुलिस्ताँ है मेरा
इनसे सीखी,कला रिझाने की।।

कुछ परिंदे भी,उतर आते हैं
सीखती हूँ,सुर चहचहाने की।।

भँवरे कलियों के,इर्द-गिर्द रहते हैं
मेरी हसरत है,गुनगुनाने की।।

तितलियाँ ,रंग बिखेरती हैं यहाँ
इंद्रधनुषी ,जहाँ बनाने की।।

फूल-कलियों के,ज़र्द चेहरे हैं
है सिखाई अदा,हमें लजाने की।।

सीखा हमने है,ज़िन्दगी से
‘उदार ‘
रब को अपना सखा, बनाने की।।

स्वरचित
सद्य: रचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार ‘
शीर्षक -#आदत / निरंतरता
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
अब बहुत हु
आ अब बहुत सहे है
आक्रान्ताओं की बनी हुई आदत
जो स्वास्थ्य कर्मी पर प्रहार करे
मानवता को शर्मसार करे सदा से
आतातायीयो के दिनरात बपन करे
आतंक सिखाऐ उपद्रवी बनाऐ
यह आदत सी सदा से बनाऐ उफ़
संसाधनों को निज संम्पति मान
उपभोग करे दुरूपयोग टूटफूट करे
पशुता की सभी हदें पार अब तो
जिहाद करे अमानवीय रहे सदा से
हेवान है पुरे इंसान के चोले में
इंसाफ़ इंसाफ़ कहे कृष्ण चोगे में
विध्वंसक विस्फोटकी हाव भाव
सदा से उनकी आदत में.........
अब जागो सब जागो भारतबंधु
ऐक्य बनो नेक बनो विश्वगुरु संतानों
🚩🇮🇳🚩🇮🇳🚩🇮🇳🚩🇮🇳🚩🇮🇳
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा

दिनांक -१८/०४/२०२०
विषय -आदत


परिवेश से होता है ,
आदतों का निर्माण ।
प्रकृति समान भाव से ,
करती है सबका कल्याण ।

अपनी आदतों को श्रेष्ठ कर
पथिक बढ़े तू पथ की ओर ।
प्रकृति गले लगाएगी ,
खुशियां छायेगी चहुं ओर ।

प्रगति के इस होड़ में
तू गया था सब भूल
अपनी आदतों को सुधार
समझ सके तू जीवन का मोल ।

जन-जन में जागरूकता फैलाएं ,
अच्छी आदतों का करें निर्माण।
प्रकृति से प्रेम करना सीखे ,
तभी होगा मानव कल्याण ।

प्रकृति का संतुलन है बिगड़ा,
मानव ने किया प्रकृति का हास।
संतुलन बनाने के लिए ,
प्रकृति ने किया क्रूर परिहास।।

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

विषय-आदत
विधा-कविता


आदत भी कुछ ऐसी बला है,
ऐसी शै है कई तरह की होती हैं।
कहीं खुशियां बिखरती हैं तो,
कहीं बीज बैर के बोती है।

अगर अच्छी आदत है,
तो घर स्वर्ग बन जाएगा।
वहीं बुरी आदत से वही,
घर नाश हो जाएगा।

इन्हीं आदतों से ही तो,
इंसानों को तमगा मिलता है।
कहीं देव बन जाता है तो,
कहीं वो दानव बनता है।

अगर कुछ नाम करना है ,
तो अच्छी आदतों को डालो।
बस में कर लो अपने मन को,
बुरी आदतों से खुद को बचा लो।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

विषय आदत
विधा कविता

दिनाँक 18.4.2020
दिन शनिवार

आदत
💘💘💘💘

आदत से जीवन हमारा प्रभावित होता
आह्लादित होता उन्मादित होता
या आहों और उदासी के ही
ऋणात्मक भावों से स्रावित होता।

आरम्भ से ही कहते रोज़ का काम रोज़ करो
जो चीज़ जहाँ से लो वहीं धरो
सफा़ई पर रखो सदा विशेष ध्यान
इससे ही मिलते अच्छे परिणाम।

अच्छा व्यवहार है एक आदत
इसमें खुशियाँ सारी हैं समागत
मीठे मीठे शब्दों को बोलो
कुछ नहीं लगती इसमें लागत।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर










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"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...