लेखक परिचय
नाम - हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जन्म तिथि- 15/07/1969
जन्म स्थान- महाराजपुर जि० छतरपुर म०प्र०
शिक्षा- बी एस सी , एडवान्स डिप्लोमा इन रशियन लेन्गुयेज
सृजन की विधायें - मुक्तक , गीत , ग़ज़ल , कवितायें
प्रकाशित रचनायें- 1994 में कई कवितायें जबलपुर से प्रकाशित दैनिक नव भारत के रविवासरीय अंक में ..
पेशा पहले शिक्षण का कार्य किया बाद में स्वतंत्रत पेशा
स्थायी पता - सीता पुरी जनकपुरी नई दिल्ली
Harishankar15769@gmail.com@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शीर्षक- नव,संकल्प
नया साल है नये साल में
उम्मीदों को तुम बल देना।
चमक उठे तुम्हारी प्रतिभा
ध्यान उसमें प्रतिपल देना।
सीखो की जो बनी किताब
उसमें पूजा सा जल देना।
निज समस्या खुद सुलझाना
औरों को भी तुम हल देना।
साल तुम्हारा अच्छा है ये
खुशियों का इक कमल देना।
कहीं बुराई लिपटे गर जो
लिपटना नही बस चल देना।
दीन दुखी औ असहायो को
सहारा और संबल देना।
जाड़ो में ठिठुरते लोगों को
निज कमाई से कंबल देना।
अपना सम औरों का दुख है
किसी को नहि हलाहल देना।
समझो अगर शायर स्वयं को
सुन्दर सी 'शिवम' गज़ल देना।
नया साल है नये साल में
सभी को मीठा फल देना।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 01/01/2020
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शीर्षक- रात/रजनी
बेरिन रतिया लागे आली
बेरिन लागे हर एक खोर।
जब से गयो नन्द को लाला
मथुरा बरसाना को छोड़।
शामे सूनी रातें सूनी
और सूनी रहती हर भोर।
मुरली धुन अब कौन सुनावे
ओ छलिया ओ नन्द किशोर।
रात रात वो छवि निहारू
ज्यों निहारे चाँद चकोर।
रातों की वो नींद ले गया
वो बृजवाला माखनचोर।
'शिवम' सलोनी सूरत वाला
वो निकला निर्दयी कठोर।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/122019
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शीर्षक-प्रखर/तेज
प्रथम प्रस्तुति
कुछ चेहरे खास होते हैं
ज्यों आफताब पास होते हैं।।
उनकी गुणवत्ता के हमको
दूर से अहसास होते हैं ।।
तेज झलकते चेहरे वो
बदन भले हो इकहरे वो ।।
ऊर्जा उनमें हो यूँ भरी
जैसे हो सागर गहरे वो। ।
पढ़ लेते हैं पढ़ने वाले
खुले जिनके मन के ताले ।।
'शिवम' सार्थकता जीवन की
मिलेगी उनसे मेल मिला ले ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/12/2019
प्रथम प्रस्तुति
कुछ चेहरे खास होते हैं
ज्यों आफताब पास होते हैं।।
उनकी गुणवत्ता के हमको
दूर से अहसास होते हैं ।।
तेज झलकते चेहरे वो
बदन भले हो इकहरे वो ।।
ऊर्जा उनमें हो यूँ भरी
जैसे हो सागर गहरे वो। ।
पढ़ लेते हैं पढ़ने वाले
खुले जिनके मन के ताले ।।
'शिवम' सार्थकता जीवन की
मिलेगी उनसे मेल मिला ले ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/12/2019
😔।। देश की दुर्दशा ।।😔उग्र हुआ मानव स्वभाव
शैतानियत का साया है ।
बिना सोचे और समझे
हिंसक रूप दिखलाया है ।
हिंसा नही है कोई हल
हानियाँ खुद उठाया है ।
हिंसा करके दुनिया में
कौन नही पछताया है ।
मतलब परस्ती वालों ने
नादानों को उकसाया है ।
किस्सा नही है ये आज का
इतिहास ये बतलाया है ।
उग्र रूप अच्छा है पर
सीमा पर जो बताया है ।
घर में लड़ना शौर्य नही
कायरता कहलाया है ।
सच क्या और झूठ क्या
पता भी नही लगाया है ।
भीड़ में बस हो हो करना
कितनों को न सुहाया है ।
बड़े बड़े कब लड़े यहाँ
छोटों ने खून बहाया है ।
अच्छे काम में दिल न दौड़ा
बुरे में जोश जगाया है ।
कहें जीनियस हुआ जमाना
ये असत्य समझ आया है ।
देश की दुर्दशा पर 'शिवम'
आज फिर नीर बहाया है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/12/2019
शैतानियत का साया है ।
बिना सोचे और समझे
हिंसक रूप दिखलाया है ।
हिंसा नही है कोई हल
हानियाँ खुद उठाया है ।
हिंसा करके दुनिया में
कौन नही पछताया है ।
मतलब परस्ती वालों ने
नादानों को उकसाया है ।
किस्सा नही है ये आज का
इतिहास ये बतलाया है ।
उग्र रूप अच्छा है पर
सीमा पर जो बताया है ।
घर में लड़ना शौर्य नही
कायरता कहलाया है ।
सच क्या और झूठ क्या
पता भी नही लगाया है ।
भीड़ में बस हो हो करना
कितनों को न सुहाया है ।
बड़े बड़े कब लड़े यहाँ
छोटों ने खून बहाया है ।
अच्छे काम में दिल न दौड़ा
बुरे में जोश जगाया है ।
कहें जीनियस हुआ जमाना
ये असत्य समझ आया है ।
देश की दुर्दशा पर 'शिवम'
आज फिर नीर बहाया है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/12/2019
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शीर्षक- रात/विभावरी
विधा-गीत
पुरानी गायिका निर्मला देवी की गायी ठुमरी- मैंने लाखों के बोल सहे
की तर्ज़ पर
सूनी है रात सखी
सखी """""""""""""
सूनी है रात सखी
बृजवाला ने जादू डाला
निकला वैरी दिल का काला
कटे न विरहा की घड़ी
घड़ी"""""""""""""""""
सूनी है रात सखी
रात रात भर नींद न आवे
विरहा अग्नि जियरा जलावे
कहूँ जाय न पीर कही
कही """""""""""""
सूनी है रात सखी
जमना तट पर रास रचायो
कैसे कैसे जिया रिझायो
भूलो प्रीत की रीत सभी
सभी """""""""""
सूनी है रात सखी
संदेशा भी कहाँ भिजाऊ
पाती भी क्या मैं लिखाऊ
कैसो निकलो निष्ठुर मति
मति """"""""""
सूनी है रात सखी
रातें बैरन लागे आली
भाय न मोहे होली दिवाली
'शिवम' काया सूख गयी
गयी """""""""""
सूनी है रात सखी
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/12/2019
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😄?? भूलने की आदत बुरी या अच्छी ??😄
सबको याद करने की आदत
मुझे है भूलने की आदत ।।
क्या करे कोई जब हो गम ही गम
व्यर्थ जाय चार भाषाओं का मरम ।।
सारा बोझ जो रखेंगे
तो हम भला क्या दिखेगे ।।
समझ न पाय हम ये चक्कर
किस्मत के रहे ये टक्कर ।।
ख़ैर कलम को रहे पकड़े
कलम ने ही हरे अब दुखड़े ।।
दिमाग पर रहे डाले जोर
उसी ने ही किया अब शोर ।।
होती दुखों की जब मरोड़
संग ताउम्र कलम का जोड़ ।।
बनती है मस्त केमिस्ट्री
जो अब लिख रही है हिस्ट्री ।।
लोग पूछते हैं स्पेस्लिटी
कहूँ सब भाषा घिसीपिटी ।।
ऊपर से दुखों की ये लड़ी
ऐसी ही बनाया मैं कढ़ी ।।
मज़ा आएगा 'शिवम' चखिए
हर स्वाद मिलेगा परखिए ।।
कवि यूँ ही न बने कोई
बने जिन्दगी आटे की लोई ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
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स्वरचित 29/12/2019मुक्तक छंद
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मेरी हर भावनाओं को वो बोल दे गयी
कैसे कहूँ कितने मोती अनमोल दे गयी ।।
मिरे जीवन में रंग भरने वाली वो हूर
कितनी आमद वो मुझको बेतौल दे गयी ।।
लड़खड़ाता हूँ जब जब वो सामने होती
लड़खड़ाते दामन को वो थामने होती ।।
मुलाकातों का सिलसिला तो कब का खत्म
लगे है अब भी आमने-सामने होती ।।
उसकी इक हंसी की खातिर जन्नत छोडूं
नही तोड़े जो बंधन वो बंधन तोड़ू ।।
क्या होती विरह की पीड़ा जाना हूँ मैं
'शिवम' और न दुनिया से अब सर फोड़ू ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 29/12/2019
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शीर्षक- नश्वर
नश्वर तन का ज्यादा ख्याल
अमर आत्मा है बेहाल ।।
ऐसी इंसान की है मति
कहे खुद को मालामाल ।।
पूँजी जोड़ी नश्वर सारी
आत्मा की हरदम विसारी ।।
उसकी रटन रही सच की
सच की राह नही निहारी ।।
ले जाने को कुछ न साथ
कैसे बने कोई बात ।।
खरी पूँजी शुभ कर्मों की
शुभ कर्म का टोटा हाथ ।।
नश्वर तन भी क्षीण हो रहा
विकार में बंध 'शिवम' रो रहा ।।
माया की मटमैली राह
अब भी मन वहीं डुबो रहा ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 28/12/2019
नश्वर तन का ज्यादा ख्याल
अमर आत्मा है बेहाल ।।
ऐसी इंसान की है मति
कहे खुद को मालामाल ।।
पूँजी जोड़ी नश्वर सारी
आत्मा की हरदम विसारी ।।
उसकी रटन रही सच की
सच की राह नही निहारी ।।
ले जाने को कुछ न साथ
कैसे बने कोई बात ।।
खरी पूँजी शुभ कर्मों की
शुभ कर्म का टोटा हाथ ।।
नश्वर तन भी क्षीण हो रहा
विकार में बंध 'शिवम' रो रहा ।।
माया की मटमैली राह
अब भी मन वहीं डुबो रहा ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 28/12/2019
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विषय - तुलसीविधा- दोहा
तुलसी तेरे गुण से, कौन भला अन्जान
एक नही सौ रोग का,तुझ में छुपा निदान।।
जाने क्यों भूला तुझे, मूढ़मती इंसान
रोग व्याधियों से स्वयं, जकड़ा अब नादान ।।
आँगन की शोभा बढ़े, हो शुभ मंगल गान
बुरी आत्मा नहि फटके, ऐसी तेरी शान ।।
घर बेशक हो लघु मगर, रखना इतना ध्यान
तुलसी बिन न रहे 'शिवम' जो होय निज मकान ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 25/12/2019विषय - *तुलसी *
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शीर्षक -- निस्वार्थ प्रेम
प्रथम प्रस्तुति
निस्वार्थ प्रेम जो जाना है
वो ईश्वर को पहचाना है ।।
ईश्वर तो भोलेपन में है
अब इंसा हुआ सयाना है ।।
क्या किसी से माँगोगे यहाँ
सब नश्वर और बेगाना है ।।
आखिर तो एक दिन सभी कुछ
जिसका है उसे लौटाना है ।।
फूल काँटे मिलन जुदाई
उसके उसमें मन रमाना है ।।
'शिवम' प्रेम की परिभाषा को
यूँ ही न यहाँ बखाना है ।।
निस्वार्थ प्रेम जो न होता
बनता कहाँ यह तराना है ।।
निस्वार्थ प्रेम कुछ सिखा गया
यह उसी का तानाबाना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/12/2019ो
''सुख/दु:ख"
औरों के दुख जो समझें वो फ़रिश्ते
वैसे तो सबके ही हैं दुखों से रिश्ते ।।
औरों के आँसू पोंछो आके जग में
खुशी खुद आयेगी सुख होंगें सस्ते ।।
बारिश तो तपकर ही आये सबने देखी
सुख दुख की घड़ी सबको रब ने लेखी ।।
धैर्य से जो काम लेता यहाँ है ''शिवम"
वही कहाये जग में ज्ञानी और विवेकी ।।
अपने दुख की परवाह कब करते बडे़
बृक्षों से पूछो जो मुरझाकर भी खड़े ।।
खुद मेहरबां होता है वो ऊपर वाला
उनके त्याग भाव से ही वो बारिश करे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/04/2019
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शीर्षक -- जीवन शैली
प्रथम प्रस्तुति
बदल गयी जीवन शैली
कहीं झटपट कहीं खटपट
अब न वो पनिहारीं पनघट
बचपन न पहले सा नटखट
हर जगह है भागमभाग
लगता ज्यों लगी हो आग
कहीं शांति का नाम नही
किसी को किसी से काम नही
कैसी ये जीवन शैली
लगे ज्यों कश्मीर वैली
इंसान इंसान से डरे
रिश्ते नहि हैं हरे भरे
जीने में कोई रस नही
किसी का किसी पर बस नही
हर जगह अब टकरार है
पति पत्नियों में रार है
क्या होगा कुछ नही पता
किसकी कहें 'शिवम' खता
भूल गये जीवन आदर्श
झूठे चेहरे झूठे हर्ष
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/12/2019
शीर्षक -- क्षमा / माफी
प्रथम प्रस्तुति
भूल अगर कोई करता है
मन ये क्रोध से भरता है ।।
क्यों भूलें हम खुद की भूल
भूल से कौन न गुजरता है ।।
रिश्ते अगर रखना कायम
मन पर 'शिवम' रखना संयम ।।
क्षमा का कोष कम न करना
इससे बड़ा न कोई धरम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/12/2019
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जिन्दगी के दिन दो चार
करले बन्दे परोपकार ।।
कहाँ शाम हो जाये कब
साथ जायें ये पुन्य हमार ।।
कोई न साथी कोई न मीत
पुन्य ही हमें दिलायें जीत ।।
लोक परलोक इससे बने
परमार्थ से करले ले प्रीत ।।
माँगे यहाँ न कुछ मिला
सोच का अंकुर ही खिला ।।
सोच सुधार सदा ''शिवम"
पुन्य का जड़ पाताल चला ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/03/2019
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होती सदा अच्छाई की जीत
राम को थी अचछाई से प्रीत ।।
कारवां सतत चलता गया
मिलते गये उन्हे परम मीत ।।
राम को थी अचछाई से प्रीत ।।
कारवां सतत चलता गया
मिलते गये उन्हे परम मीत ।।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
अवसर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@अवसर
अवसर कभी बुलाते हैं
अवसर कभी आते हैं ।।
अवसरों से संबंध हैं
फिजूल छटपटाते हैं ।।
अवसर कभी आते हैं ।।
अवसरों से संबंध हैं
फिजूल छटपटाते हैं ।।
कहाँ था रावण कहाँ थे राम
राम को मिला स्वयं मुकाम ।।
हर हाल से उन्होने मेल रखा ,
हुई उनकी जीत हुये प्रणाम ।।
राम को मिला स्वयं मुकाम ।।
हर हाल से उन्होने मेल रखा ,
हुई उनकी जीत हुये प्रणाम ।।
कर परख स्वयं की
बात यह मरम की ।।
अवसर को भाग मत
बात मान ''शिवम" की ।।
बात यह मरम की ।।
अवसर को भाग मत
बात मान ''शिवम" की ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/03/2019
स्वरचित 28/03/2019
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अवसर वहीं आयेंगे जो कर्म में तल्लीन है
अवसर वही भुनायेंगे जो कर्म में प्रवीन है ।।
बाकी तो आकर भी अवसर लौट जायेंगे
यह बात है सच यह बात न कोई नवीन है ।।
अवसर वही भुनायेंगे जो कर्म में प्रवीन है ।।
बाकी तो आकर भी अवसर लौट जायेंगे
यह बात है सच यह बात न कोई नवीन है ।।
कुछ अवसर को हैं भाग रहे
कुछ अवसर को हैं जाग रहे ।।
खाली स्वप्न से कुछ न होता
ये सच है क्यों सच न ये भाँप रहे ।।
कुछ अवसर को हैं जाग रहे ।।
खाली स्वप्न से कुछ न होता
ये सच है क्यों सच न ये भाँप रहे ।।
अपने हालात से करले यारी
खिलेगी किस्मत की फुलवारी ।।
कुछ गजब भी यहाँ होता है
बाजी कभी कछुये ने मारी ।।
खिलेगी किस्मत की फुलवारी ।।
कुछ गजब भी यहाँ होता है
बाजी कभी कछुये ने मारी ।।
यकीन कर अवसर दरवाजे खटखटायेंगे
तेरे भाग्य एक दिन निश्चित जाग जायेंगे ।।
संभालना सीख ''शिवम" कभी खुद को
उसके कृपा पात्र कभी हम भी कहलायेंगे ।।
तेरे भाग्य एक दिन निश्चित जाग जायेंगे ।।
संभालना सीख ''शिवम" कभी खुद को
उसके कृपा पात्र कभी हम भी कहलायेंगे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/03/2019
स्वरचित 28/03/2019
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😀😁।। पत्नि ।।😁😀
पत्नि की नित करें उपेक्षा कहें कि ये बीमारी है
कोई न सोचे उसके संग भी कितनी लाचारी है ।।
कोई न सोचे उसके संग भी कितनी लाचारी है ।।
पति बैठा टीवी देखे न्यूज सुन मारे किलकारी है
पत्नि 'शिवम' सोचे कल कौन बने तरकारी है ।।
पत्नि 'शिवम' सोचे कल कौन बने तरकारी है ।।
बेटे को भाजी भाये पति करे न इसमें बियारी है
सबकी च्वाइस सुने पत्नि मुसीबत यह भारी है ।।
सबकी च्वाइस सुने पत्नि मुसीबत यह भारी है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/03/2019
स्वरचित 19/03/2019
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मुक्तक
सारी उम्र भर मैं भटकता रहा
काँटे आते रहे मैं फटकता रहा ।।
अब तो काँटों को भी रहम आई
जग ''शिवम" लगातार हंसता रहा ।।
काँटे आते रहे मैं फटकता रहा ।।
अब तो काँटों को भी रहम आई
जग ''शिवम" लगातार हंसता रहा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/01/2018
स्वरचित 13/01/2018
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आज छठ पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें बधाई प्रस्तुत है छठ पर्व की महत्ता को संक्षिप्त में व्यक्त करती हुई ये रचना -
हो कृतज्ञ जिसका हम पर उपकार है
यही हमारी संस्कृति और संस्कार है ।।
सूर्य ऊर्जा का स्रोत सूर्य से जीवन है
सूर्य के प्रति कृतज्ञता का ये त्यौहार है ।।
यही हमारी संस्कृति और संस्कार है ।।
सूर्य ऊर्जा का स्रोत सूर्य से जीवन है
सूर्य के प्रति कृतज्ञता का ये त्यौहार है ।।
कर स्नान ध्यान सूर्य का वंदन करलें
सूर्य समान तेज अपने अन्दर भरलें ।।
कितने रोग दोग से हरते सूर्य दैव
चलो आज उनका ये पावन व्रत धरलें ।।
सूर्य समान तेज अपने अन्दर भरलें ।।
कितने रोग दोग से हरते सूर्य दैव
चलो आज उनका ये पावन व्रत धरलें ।।
चार दिनों तक चलने वाला पर्व ये प्यारा
सुख समृद्धि से भरे रोग से दे छुटकारा ।।
भक्ति भाव से भर जाये ये मन ''शिवम"
नदी किनारे मेले चहुँ दिश हर्षित नजारा ।।
सुख समृद्धि से भरे रोग से दे छुटकारा ।।
भक्ति भाव से भर जाये ये मन ''शिवम"
नदी किनारे मेले चहुँ दिश हर्षित नजारा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/11/2018
स्वरचित 13/11/2018
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##### सुकून #####
सुकूने ख्याल में लिखे चला जाता
सुकून है कि पास ही नही आता ।।
शायद नाराज है वो अब जमाने से
आज संबंध हैं उसके मयखाने से ।।
सुकून है कि पास ही नही आता ।।
शायद नाराज है वो अब जमाने से
आज संबंध हैं उसके मयखाने से ।।
जाते हैं कुछ वहाँ भी शायद वह मिले
मगर उसके सही पते अब तक न चले ।।
मैंने कहा कुछेक से आइये हम मिलवायें
मगर वो हँसे और बीच राह से स्वयं टले ।।
मगर उसके सही पते अब तक न चले ।।
मैंने कहा कुछेक से आइये हम मिलवायें
मगर वो हँसे और बीच राह से स्वयं टले ।।
हम भी कैसे कहें कि हमें वह मिला है
हमारे पास कहाँ वो आलीशान बँगला है ।।
जहाँ लोग अक्सर इसे ढ़ूढ़ते पाये जाते
मैं तो वैसे भी लगूँ ज्यों कोई अधजला है ।।
हमारे पास कहाँ वो आलीशान बँगला है ।।
जहाँ लोग अक्सर इसे ढ़ूढ़ते पाये जाते
मैं तो वैसे भी लगूँ ज्यों कोई अधजला है ।।
मैंने भी अब अपनी यह राह मोड़ ली है
जज्बात की जो बाँह थी सिकोड़ ली है ।।
नही बहता हूँ अब किन्हीं भी जज्बातों में
अकेले ही ''शिवम" उससे प्रीति जोड़ ली है ।।
जज्बात की जो बाँह थी सिकोड़ ली है ।।
नही बहता हूँ अब किन्हीं भी जज्बातों में
अकेले ही ''शिवम" उससे प्रीति जोड़ ली है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/10/2018
स्वरचित 07/10/2018
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गीत
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
मधुवन आ जइयो आली
मधुवन की छटा न्यारी
मधुवन में भीड़ हो भारी
शोभा कैसे तुम्हे बताऊँ
शोभा जाये नही उचारी
मधुवन में भीड़ हो भारी
शोभा कैसे तुम्हे बताऊँ
शोभा जाये नही उचारी
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
मधुवन आ जइयो आली
फूले सकल फूल फुलवारी
अँगुआ और कदम की डारी
रास रचाये रास बिहारी
सखि मोह लेय संसारी
अँगुआ और कदम की डारी
रास रचाये रास बिहारी
सखि मोह लेय संसारी
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
मधुवन आ जइयो आली
वन की शोभा बढ़ जावे
ग्वालन संग जब वो आवे
मीठे बोल वो ''शिवम" सुनाय
सुदबुद खो जाऊँ मैं सारी
ग्वालन संग जब वो आवे
मीठे बोल वो ''शिवम" सुनाय
सुदबुद खो जाऊँ मैं सारी
कान्हा मुरली मधुर सुनाय
मधुवन आ जइयो आली
मधुवन आ जइयो आली
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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मुक्तक
मंजिल मिले न मिले राहों में मजा लेते हैं
हम जहाँ रहते हैं वहाँ फूल सजा लेते हैं ।।
जिन्दगी ने इस कदर दर्द दिये ''शिवम"
अब हम हर दर्द की दवा बना लेते हैं ।।
हम जहाँ रहते हैं वहाँ फूल सजा लेते हैं ।।
जिन्दगी ने इस कदर दर्द दिये ''शिवम"
अब हम हर दर्द की दवा बना लेते हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
29/06/2018
29/06/2018
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कब जागेगा देश हमारा
युवा रो रहा है बेचारा ।।
डिग्रियों की लिस्ट बना
सड़क पे फिरे मारा मारा ।।
हताशा निराशा पसरी है
घर का बोझ उठा बाप हारा ।।
पैसे जो थे खर्च किये सब
अब कर्जा हुआ बहुत सारा ।।
युवा की आँख में आँसू 'शिवम'
गर्दिश में देश का भाग्यसितारा ।।
युवाशक्ति सदुपयोग न होना
देश की अवनति का है द्वारा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/03/2019
युवा रो रहा है बेचारा ।।
डिग्रियों की लिस्ट बना
सड़क पे फिरे मारा मारा ।।
हताशा निराशा पसरी है
घर का बोझ उठा बाप हारा ।।
पैसे जो थे खर्च किये सब
अब कर्जा हुआ बहुत सारा ।।
युवा की आँख में आँसू 'शिवम'
गर्दिश में देश का भाग्यसितारा ।।
युवाशक्ति सदुपयोग न होना
देश की अवनति का है द्वारा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/03/2019
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ऐ चाँद ! मुझे उनका पता दे
या मेरी खबर उन्हे बता दे ।।
तेरा हमशक्ल है तूने देखा है
मेरे हाल की उन्हे इत्तला दे ।।
कब से तड़फ रहा हूँ दीदार को
क्या उनकी रज़ा वो रज़ा बता दे ।।
अफ़सुर्दगी का आलम क्या कहूँ
रातों में नींद नही नींद वो ला दे ।।
किस्मत रूठी उन्हे खोकर 'शिवम'
किस्मत की खातिर वो मुस्कुरा दे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 26/03/2019
या मेरी खबर उन्हे बता दे ।।
तेरा हमशक्ल है तूने देखा है
मेरे हाल की उन्हे इत्तला दे ।।
कब से तड़फ रहा हूँ दीदार को
क्या उनकी रज़ा वो रज़ा बता दे ।।
अफ़सुर्दगी का आलम क्या कहूँ
रातों में नींद नही नींद वो ला दे ।।
किस्मत रूठी उन्हे खोकर 'शिवम'
किस्मत की खातिर वो मुस्कुरा दे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 26/03/2019
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समझ न पाये फैसला उनकी आँखों का
समझ न पाये फैसला उनकी बातों का ।।
कितनी रातें गुजरीं सोचते अब सोचूँ श्रेय
उन्हीं को जाता कलम से मुलाकातों का ।।
काश वो मेरी जिन्दगी में न होते आये
तकदीर के चमन यूँ न होते मुस्कुराये ।।
बेशक फैसले आज फासले कहलाये
पर इसी जद्दोजहद ने ये गुल खिलाये ।।
फैसले रब के मानो सदा ही ''शिवम"
जो होता अच्छा होता वक्त आता नरम ।।
नसीबा सबका चमकता कभी न कभी
मायूस कभी मत हो करते रहो करम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/03/2019
समझ न पाये फैसला उनकी बातों का ।।
कितनी रातें गुजरीं सोचते अब सोचूँ श्रेय
उन्हीं को जाता कलम से मुलाकातों का ।।
काश वो मेरी जिन्दगी में न होते आये
तकदीर के चमन यूँ न होते मुस्कुराये ।।
बेशक फैसले आज फासले कहलाये
पर इसी जद्दोजहद ने ये गुल खिलाये ।।
फैसले रब के मानो सदा ही ''शिवम"
जो होता अच्छा होता वक्त आता नरम ।।
नसीबा सबका चमकता कभी न कभी
मायूस कभी मत हो करते रहो करम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/03/2019
वस्त्र बड़े बेढंगे हैं
पाश्चात्य के फंदे हैं ।।
भारतीयता गायब है
वस्त्र पहने भी नंगे हैं ।।
फैशन में मतवाले हैं
संस्कार के लाले हैं ।।
गलती है माँ बाप की
क्यों न सवाल डाले हैं ।।
तर्क में सब माहिर हैं
बच्चे भी अब लायर हैं ।।
जिसे भी तुम छेड़ोगे
बन चुके सब फायर हैं ।।
सीमायें 'शिवम' तोड़ रहे
संस्कारों को सब छोड़ रहे ।।
वस्त्र क्या हर क्रियाकलाप
पाश्चात्य से अब जोड़ रहे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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बारिश की बूँदों सी बन आ जाओ कभी
खुशी की बदली बन कर छा जाओ कभी ।।
देखो कब से वीरान है ये दिल का चमन
दिल का चमन फिर मंहका जाओ कभी ।।
मौसम ए बहार हमसे रूठी है कब से
बिन मौसम की बारिश ही कहाओ कभी ।।
गीत मल्हार हम भी कुछ गा लें 'शिवम'
मायूस दिल के भाग्य जगा जाओ कभी ।।
सुन पपीहे की पीऊ पीऊ दिल रोये है
दिल को ढांढस आके बँधा जाओ कभी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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।। एकाग्रता ।।
ऐसे ही न आती है लेखन की शक्ति
लाना होता है मन में सच्ची विरक्ति ।।
प्रेम में भी जब सिर्फ प्रिय को भजते
बन जाती तब वही इबादत या भक्ति ।।
भटका मन कभी नही कुछ पाता
करता हूँ मैं एकाग्रता की संतुति ।।
मन में अथाह शक्ति सीखो बांधना
कुछ पाने की है यह उत्तम युक्ति ।।
लेखन कला शक्ति है आये शनै: शनै:
जन्म मरण से भी मिले 'शिवम' मुक्ति ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/03/2019
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निज दौलत न देखी औरों पर नजर टिकाई
इसी के चलते दुखी हुई यह सारी जगताई ।।
दौलत क्या है दौलत किसे नही दी उसने
मगर किसी ने उस पर नजर नही घुमाई ।।
भागे इधर उधर मत पूछो किधर किधर
और तरकीब भी एक नही हजार लगाई ।।
मगर तरकीबों से कहीं काम चला क्या
जिन्दगी तो यह भूल भुलैयाँ कहलाई ।।
सीधी सच्ची राहें भी हैं हजारों यहाँ
मगर ये राह भला किसको है भायी ।।
चींटी क्या कभी सोची थककर वह बैठी
कि मैं हाथी का ढीलडौल क्यों न पाई ।।
मगर मिसाल 'शिवम' चींटी कि हम क्या
सारे जग ने आज नही सदियों से गायी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 09/03/2019
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नारियों की वीरता से इतिहास भरा
पड़ा है
ये वो देश जहाँ नारियों ने भी युद्ध लडा़ है ।।
भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का मुकुट
ऐसे अनेकानेक हीरे मोतियों से जडा़ है ।।
रानी लक्ष्मी बाई रानी दुर्गावती , अबंतीबाई
जिन्होने शौर्य की परिभाषा जग को बताई ।।
युद्ध के मैदान में अँग्रेजों के दांत खट्टे किये
मरकर भी जिनकी कहानी अमर कहाई ।।
जीजाबाई , शिवाजी जैसे बेटे को जन्म दिया
वीरता क्या है नारी का सर गर्व से ऊँचा किया ।।
नारी का योगदान किसी माने कम न 'शिवम'
नारी ने भी नर के साथ जहर का घूँट पिया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
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पिंजरे का पंछी बन जाये
दर्द आँखों से छलकाये
हमने देखा है ये जहान
मौन रह गया हर इंसान ...
आँखों में दिखे नमी है
धन की न कोई कमी है
अधूरे हैं कुछ अरमान
मौन रह गया हर इंसान ....
पाठशाला में सिखाये थे
गुरू जी मौनव्रत कराये थे
हकीकत ली अब ये जान
मौन रह गया हर इंसान ....
पांडवों का अज्ञात वास
घोर निराशा और परिहास
सबके साथ 'शिवम' ये मान
मौन रह गया हर इंसान ..
चाँद भी आस्मां में दुखी है
सिर्फ एक दिन ही सुखी है
ये कुदरत का कानून जान
मौन रह गया हर इंसान ..
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/03/2019
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घायल दिल को राहत है
मुहब्बत यह इबादत है ।।
कलम में जादू कर गई
ये अजीबोगरीब चाहत है ।।
बर्षों देखा न लफ़्ज़ कहा न
आखिर कैसी ये रिवायत है ।।
लब पे मुस्कान सुर में तान
तन में सांस कैसी हिमायत है ।।
किस्मत की ही थी अदावत
न शिकवा है न शिकायत है ।।
उदास दिल को यादें काफी
कैसी शिफ़ा कैसी इनायत है ।।
मुहब्बतों में दम तो है ''शिवम"
मगर सबको क्यों न आमद है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
ताजीस्त कहाँ नींद किसके नसीब में
फूलों ने नींद गंवायी शूलों के करीब में ।।
नींद तो है बचपन में माँ की गोद
उसके हाथ की थाप लोरी गीत में ।।
जीभ भी शायद दुखी है यह रोये है
रहना होता उसको दांतों के बीच में ।।
मौसम भी रूलाता है किसान को
पानी फेरे उसकी सारी तरकीब में ।।
गलत काम करके नींद जाये जाये
इश्क वालों की नींद का हाल बुरा
आधी रात कटती उनकी संगीत में ।।
बाकी रात में स्वप्न या जागरण
यही देखा पाया नींद की रीत में ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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भोले भाले बाबा लीला अपरम्पार
तुम्हारी
हर बरस ही करते हो तुम शादी की तैयारी ।।
सांप तुम्हारे कण्ठी माला डूड़ा बैल सवारी
भाँग धतूरा भाया तुम्हे आखिर क्या लाचारी ।।
क्यों ये भेष बनाया तुमने बोलो जटाधारी
अजब गजब के काम तुम्हारे नाम त्रिपुरारी ।।
वरदान भी ऐसे दिये पड़ गये खुद पर भारी
तुम सा दयावान न कोई ओ भोला भंडारी ।।
हम पर भी रखना कृपा विनती एक हमारी
तुमसे ही नादान 'शिवम' हम रखना बलिहारी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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देखो पवन चले पुरवइया ...
भाभी को ले आओ भइया ...
चार दिन हम भी संग रहलें
सावन की सुखद समइया ...
भाभी बिन सूना घर लागे
रोटी तुम्हे यहाँ कौन बनावे
बापू गुजरे पाँच बरस भये
अब गुजर गई है मइया ..
मेरी बहना मेरी बहना
जानूँ तुझे सदा न रहना
पिछले बरस खेत खरीदा
इस बरस खरीदी गइया ....
घर में भी छप्पर कराया
तेरी भाभी को घर बनाया
पवन झोंके जब चलते थे
तब होती नही थी छइया ....
बहना जानूँ मैं तेरी ये पीर
हो न अब तूँ और अधीर
सावन की ये 'शिवम' समीर
चल बैठ गायें हम छंद सवैया ...
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
संकल्प में शक्ति है संकल्प का मान
है
इतिहास को देखिये सुसंकल्प महान है ।।
भीष्म पितामह की अटल प्रतिज्ञा ही
कहलायी अद्भुत शक्तियों की खान है ।।
असुरविहीन धरा करने का राम का प्रण
असुरों को मारना हुआ आगे आसान है ।।
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विजय का रथ चला है
दुश्मन का घर जला है ।।
उसके गुनाहों का उसे
माकूल जबाव मिला है ।।
छुपा बैठा था हुआ हलाकान
दरिंदों का मिटा नामोनिशान ।।
तबाही का तांडव रच दिया
सेना का बढ़ा देखो सम्मान ।।
भारत में वीरों की न कमीं है
पाक की तो नापाक जमीं है ।।
नसीहत उसके जिह्न में न आये
अब किया होगा 'शिवम'यकीं हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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रास्ते बने अस्त्र मिले ससैना मित्र मिले
असुरों का मिटाया नामो निशान है ।।
रास्ते स्वतः बने विचार हों जो नेक दृढ़
संकल्प लेना सीखिये संकल्प की शान है ।।
लगन लगाइये मन में हताशा नही लाइये
एकलव्य बिन अँगूठा किया तीर संधान है ।।
हार मान जो बैठा वो कभी न जीता 'शिवम'
संकल्प ले चला जो मंजिल से हुआ मिलान है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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छोटी
गुड़िया ।।
गुड़िया द्वारे राह निहारे ।
गुड़िया द्वारे राह निहारे ।
पापा नही आये हमारे ।
अब न आयें सांझ सकारे ।
कहते काम हैं ढेर सारे ।
सन्डे का किया था वादा ।
सन्डे को रूके न ज्यादा ।
पहले तो थे दादी दादा ।
उनका प्यार हमें रूलाता ।
पापा भी अब झूठे हैं ।
शायद हमसे रूठे हैं ।
खिलौने सारे टूटे हैं ।
मेरे ये भाग्य फूटे हैं ।
कोई न सुनता मेरी बात ।
मम्मी भी न देती साथ ।
पापा आते हैं देर रात ।
भूली गुडडों की बारात ।
कल से मैं स्कूल जाऊँगी ।
घर में कहाँ खेल पाऊँगी ।
होम वर्क रोज लाऊँगी ।
किसी को न मैं सताऊँगी ।
मम्मी भी बनाये बहाना ।
नही सुनाये लोरी गाना ।
इधर उधर बंद है जाना ।
कैसा 'शिवम' ये कैदखाना ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
दर्द के अफसाने हैं सबके पास
एक हम ही नही क्यों हों उदास ।।
तकदीर भी क्या शय बनाई है
बरसात में भी पपीहे की प्यास ।।
सजीला मोर भी आँसू बहाये यहाँ
जब नजर पडे़ पैरों के आसपास ।।
तकदीर कब हंसाये कब रूलाये
तकदीर को सब आम कोई न खास ।।
प्रभु राम की क्या तकदीर कहायी
तिलक की तैयारी थी हुये वनवास ।।
तकदीर से डरो नही , करो सुकर्म
जारी रखो सुकूने पलों की तलाश ।।
कश्मकश खत्म नही होने देती ये
पल पल बदलती 'शिवम' लिबास ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/02/2019
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मैं सोचता ही रहा जिन्दगी बीत गई
लगता है व्यर्थ ही हमारी प्रीत गई ।।
खुशियों से भरी लगी थी यह जिन्दगी
पता भी नही चला कब यह रीत गई ।।
हम देखते रहे वो देखते रहे ''शिवम"
लब सिले संगदिल किस्मत जीत गई ।।
कब चला जोर यहाँ वक्त पर किसी का
बसंत गया हेमंत गया गर्मी औ शीत गई ।।
मेरे दिल में अभी भी वह समाये हैं
इस दिल से अभी भी न वह टीस गई ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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जल की महत्ता जानिये
जल की कीमत पहचानिये ।।
जल नही तो कल नही है
यह पक्का यकीन मानिये ।।
जल की गर आज बरबादी
कल की वो कहाय बरबादी ।।
जल संकट से बड़ा न संकट
यही मुद्दा अब युद्ध का भावी ।।
आखिर कहाँ से जल हम लायेंगे
धरा के सजीव सारे मर जायेंगे ।।
निश्प्राण यह प्रथ्वी रह जायेगी
हम सजीव संहारक कहलायेंगे ।।
समझो 'शिवम' कुछ करो यतन
कल नही करो आज यह मनन ।।
बना नही सकते तो बचा सकते
श्रष्टि आज कर रही है रूदन ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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चोट दिल की हम रहे छुपाये
गम दिल का हम रहे दबाये ।।
सोचा दवा ले लेंगे पता न था
वो आशियां अब दूर हैं बनाये ।।
जब पता चला दर्द और बढ़ा
क्या करें नसीब खोटे कहाये ।।
कहीं और भी तो नही वह दवा
रोज ही दिल रोये आँसू बहाये ।।
कुछ चोटों का भी अजीब हाल
जो चोट दे वही वह दवा दे पाये ।।
दिल भी क्या बनाया रब ने 'शिवम'
अक्सर दुनिया में चोट ही खाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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तूफान की दिये से जन्मों की लड़ाई
दिये ने दुनिया को रौशनी दिखाई ।।
क्या यही हश्र है अच्छाई का जग में
यह बात आज तक न समझ आई ।।
नायक खलनायक की भूमिका सदा ही कहाई
कोई नायक कोई ने खलनायक भूमिका निभाई ।।
अंत में जीत नायक की हुई ये सर्वविदित 'शिवम'
फिर भी यह बात खलनायक को समझ न आई ।।
उजालों में है ताकत उजालों में है शान
क्षणिक जिन्दगी पाया गर्वीला तूफान ।।
बुझाकर दीपक क्या जश्न मानया वह
कद्र न मिली उसको जमीं औ आसमान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
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कला आनी चाहिये गम में हंसने
हंसाने की
आँसू मिलते कला आनी चाहिये छुपाने की ।।
खुशी के भी आँसू कहाँ बताना कहाँ नही
नब्ज पहचानना आनी चाहिये जमाने की ।।
न सत्य पर चल कर गुजारा न असत्य पर
कुछ ताकत होना चाहिये शत्रु को डराने की ।।
जीना एक कला सीखते सीखते आती है
गुलाब में यूँ न आई आदत मुस्कुराने की ।।
यूँ तो कलायें बहुत हैं इंसान में फिर भी
लौ होनी चाहिये एक में निपुणता लाने की ।।
कलाकार से पूछिये 'शिवम' लौ या जुनून
खबर नही होती कभी उसे खाना खाने की ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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मेरी मुहब्बत का न हो कभी अंत
चलती रहे ये यूँ ही जीवन पर्यंत ।।
मुहब्बत में ही जीने का मजा है
ज्ञान तो सब कहें , है ये अनन्त ।।
पढ़ाई करके सोचा परीक्षायें खतम
मगर न जाना था जिन्दगी का मरम ।।
यहाँ परीक्षा ही परीक्षा हर मोड़ पर
कोई न अंत है जिन्दगी लगी सितम ।।
नही है कोई ज्ञान का ओर छोर
नही है कोई बृह्ममांड का ओर छोर ।।
वर्तमान की खुशी पहचानिये 'शिवम'
यूँ तो आते ही रहेंगे सांझ और भोर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/02/2019
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गुजार लेता दो पल आपकी पनाहों में
यही एक ख्वाब था मेरी निगाहों में ।।
मगर किस्मत को कहाँ मंजूर था यह
हया न कहायी दो पल की फिजाओं में ।।
किस्मत रूठी रही ववंडर आते रहे
पनाह ढूढ़ी कभी इस कभी उस राहों में ।।
निराश्रितों से पूछिये दिल की दुखन
कभी पनाह देना असर होता दुआओं में ।।
उजड़ते हैं चमन बिलखते हैं परिन्दे
हजार आसियां होते पेड़ की छाहों में ।।
टेड़ी नजर कब किस पर हो वक्त की
मत डूबे रहिये सिर्फ अपनी ही चाहों में ।।
माँ बाप पालते बच्चों को आसरे को
कोई छीने कितना दर्द होता उन आहों में ।।
आस्मां भी धराशायी हो जायेगा आह से
मत उलझिये 'शिवम' ऐसी गुनाहों में ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/02/2019
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शीर्षक ''बलिदान"
कोई तो आता है जो करता हिसाब चुकता
कोई तो आता है जो करता हिसाब चुकता
जलियाँवाला जला कभी पर पाप न छुपता ।।
जनरल डायर को ऊधम ने वहीं जाकर मारा
कितने बेकसूर निहत्थों का था वह हत्यारा ।।
मत करो ये पाप कर्म इंसान हो इंसान बनो
खुदा सब देख रहा हैवान की न संतान बनो ।।
सैनिकों का मरना मानवता पर कलंक है
कैसे कहें मानव जो बेवजह मारें डंक है ।।
सारी प्रथ्वी खुदा की , रिश्ता भाई का लगता
जो मजहब लड़ना सिखाये मजहब न दिखता ।।
तरस खाओ उन माँओं पर जिनके लाल मरते
कितनी गोद उजड़ती कितने सिन्दूर बिखरते ।।
अमन चैन अपनाओ अमन की करो कदर
अच्छा नही होता ''शिवम" हर रोज गदर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/02/2019
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वक्त पर पहचान न पाया
रिश्ता करीबी का कहाया ।।
यूँ तो शहरों में भीड़ बहुत है
इंसा मुश्किल से मिल पाया ।।
जब भी कोई राज्य हड़पा
हाथ करीबी का ही आया ।।
मानव से अच्छे हैं परिन्दे
छल कपट कभी न भाया ।।
मानव मानव को खा रहा
दानव मानव में है समाया ।।
मानवता कलंकित हुई है
डरा रही खुद की ही छाया ।।
संत तो अब चुप रहते हैं
असंत का जमघट कहलाया ।।
कोई डगर न सीधी शान्त
हर डगर शैतां रौब जमाया ।।
धूल में मिल रही मानवता
जो बचाया 'शिवम'चोट खाया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/02/2019
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पावन मेरे देश की माटी जग ने गाथा
गायी
यहाँ जन्मे श्री राम यहाँ जन्मे कृष्ण कन्हाई ।।
गौतम नानक की जननी भारत भूमि कहाई
हमें गर्व इस मिट्टी पे यहाँ की आवोहवा भायी ।।
कण कण यहाँ का सोना कण कण करिश्माई
धन धान्य से भरा देश दुनिया ने नजर टिकाई ।।
गंगा जमुना सींचे जिसे मिट्टी ने किस्मत पाई
हिमालय जिसकी रक्षा में गाथा जाय न गायी ।।
हजार जन्म न्यौछावर प्रभु अर्ज यही लगाई
जब भी जन्म लूँ 'शिवम' हो भारत माँ मेरी माई ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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अपनी पाक मुहब्बत का पाठ पढ़ाऊंगा
रब से कैसे मिलते राह नई दिखाऊंगा ।।
दाग दामन में अपने लगने नही दिया
भूल से गर लगे कोई उसे मिटाऊंगा ।।
रूहानी खुशी क्या होती है पहचानी
उसका अन्दाज सबको सिखाऊंगा ।।
दौलत शोहरत कमाने में भी दाग हैं
इश्क बेवजह बदनाम शान बढ़ाऊंगा ।।
फिसलन कम नही है इस दुनिया में
कमल का फ़लसफ़ा पढ़ा दोहराऊंगा ।।
बचने वाले काजल की कोठरी में बचे
उनकी हिम्मत को 'शिवम' दाद दिलाऊंगा ।।
बुलन्द इरादा दूर की खुशी अजीब शय
इसकी कीमत पहचानी पहचान कराऊंगा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/02/2019
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हवायें भी कितनी बेसबब बेरहम
दिये की लौ पर करें जुल्मोसितम ।।
दिये की लौ की इम्तहान की घड़ी
सिखाये ये सीख और कितने मरम ।।
स्वार्थ तो स्वार्थ निस्वार्थ भी लपड़े
अपने स्वभाव में दोनो हैं जकड़े ।।
देखकर हवाओं का मनमाना चलन
भुजायें फड़कीं कलम को पकड़े ।।
दिये की लौ का रहेगा गुणगान
जब तक रहेगा 'शिवम' ये जहान ।।
दी है उसने बड़ी कठिन परीक्षा
हरा के भी शर्मिन्दा रहेगा तूफान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/02/2019
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पता नही कहाँ जिन्दगी की शाम हो जाये
कहाँ अमृत कहाँ जहर तेरे नाम हो जाये ।।
कोई नही जान पाया यहाँ जिन्दगी को
कब अच्छे का भी बुरा अन्जाम हो जाये ।।
बड़े बिचित्र हैं जिन्दगी के मोड़
यहाँ एक नही हजारों हैं कोढ़ ।।
टूट ही जाता है इंसान एकदिन
जब अपना ही देता पंजा मरोड़ ।।
तब लगती यह जिन्दगी जहर
मुश्किल से गुजरते शामोसहर ।।
सिवाय ईश्वर के कोई न 'शिवम'
भजले उसीको लेले उसकी मेहर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/02/2019
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शीर्षक - ''जी भर जाना"
जब जी भर जाये तब बता देना
जब जी भर जाये तब बता देना
चुपके से दामन मत हटा लेना ।।
रोता है दिल अपनों को खोकर
ये नादान करे नादानी भुला देना ।।
यह घायल है रातों को है रोता
तहस में जरूर अंगार संजोता ।।
समझो दिमाग से समझौता नही
जो किये हैं उन्हे कुछ नही होता ।।
मिलावट का कारोबार इसे नही भाया
यह भी है शायद यह बहुत है सताया ।।
बीमारेदिल लाचार बालमन से न रूठते
इनके प्रति 'शिवम' दया का भाव बताया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/02/2019
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क्या करें अश्क आँखों की दहलीज पर आ
गये
रूकाये से भी न रूके हाल ए दिल सुना गये ।।
बेसब्र हो रहे थे वो उनको महीने नही सालों से
वो मिले दो लब्ज बोले बाकी अश्क सब बता गये ।।
देखकर चेहरा उनका भी हाल कुछ ऐसे ही लगा
अश्क उनका जैसे आँख की दहलीज पर रूका ।।
पूरा वाक्यात वो दो लब्जों में ही समझ गये
पर वक्त अब भी जैसे किसी दहलीज पर है थका ।।
आते आते बहारें भी कब कहाँ रूक जायें
बारिष कहीं बरसनी हो हवा कहीं उडा़यें ।।
दहलीज पर भी कभी किस्मत थमीं 'शिवम'
आँगन क्यों न किस्मत पर अफसोस मनायें ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/02/2019
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जब तक सांसें हैं जब तक सवाल है
जिन्दगी का यही सच यही हाल है ।।
एक उत्तर खत्म नही दूसरा तैयार है
कौन न हुआ एकदिन इससे बेहाल है ।।
सवालों की गुत्थी बड़ी उलझी है
सुलझाये से भी न यह सुलझी है ।।
बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी भी हार गये
कितने प्रशन की कड़ी अनसुलझी है ।।
सवाल बवाल न बने रखना सूझबूझ
काँटे आते चलो कितना फूँक फूँक ।।
सवालों के घेरे में न डरना ''शिवम"
वक्त भी कभी हल देता है सचमुच ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम् _
स्वरचित 0702/2019
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जिन्दगी उड़ती हुई पतंग है
डोर है तो हवाओं से जंग है ।।
हमने जोड़ रखी प्रभु से डोर
उसीसे पुलकित अंग अंग है ।।
प्रभु इस पतंग की रखना लाज
तुम से ही तो है इसमें परवाज़ ।।
कब तक कैसे उड़ेगी नही पता
नही छोड़ना कभी इसका साथ ।।
कितना यहाँ हवाओं ने बदला रूख
सब सहे न तुमसे कभी हुये बिमुख ।।
डोर तुम्हारी ही तो है यह ''शिवम"
नतमस्तक मैं रहूँ सदा तुम्हरे सम्मुख ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 06/02/2019
डोर है तो हवाओं से जंग है ।।
हमने जोड़ रखी प्रभु से डोर
उसीसे पुलकित अंग अंग है ।।
प्रभु इस पतंग की रखना लाज
तुम से ही तो है इसमें परवाज़ ।।
कब तक कैसे उड़ेगी नही पता
नही छोड़ना कभी इसका साथ ।।
कितना यहाँ हवाओं ने बदला रूख
सब सहे न तुमसे कभी हुये बिमुख ।।
डोर तुम्हारी ही तो है यह ''शिवम"
नतमस्तक मैं रहूँ सदा तुम्हरे सम्मुख ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 06/02/2019
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कभी लगे वरदान कभी लगे अभिशाप
हर जगह दो पहलू बराबर दोनो का माप ।।
विज्ञान जितना हितेषी उतना प्रलयकारी
सोच समझ कर रखना इससे मेल मिलाप ।।
प्रकृति को नष्ट कर के हमने क्या पाया
मगर विज्ञान बिन जीना मुश्किल कहाया ।।
सूझबूझ ही रह गया अब मानव के पास
हर जगह ही आज अब संकट मंडराया ।।
जन जन में जागरूकता अब लानी होगी
विज्ञान की लाभ हानी हमें बताना होगी ।।
अविष्कार का सदुपयोग होना चाहिये
वरना ''शिवम" कीमत हमें चुकाना होगी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 05/02/2019]
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कागज की किस्मत कलम ने बनाई
कलम को स्याही की जरूरत कहाई ।।
अकेला भला कहाँ कौन कुछ कहाये
सीखिये सीखें सीख हर जगह समाई ।।
कागज की कश्ती नही पार हो पाई
खेलने की महज यह शय कहलाई ।।
रंग मिला कागज को कीमत बढ़ी
उपहार के ऊपर जगह तब बनाई ।।
कलम के बिन कागज नही कुछ
कागज के बिन कलम नही कुछ ।।
वाकई ''शिवम" है अधूरी हर शय
ये राज है गहरा जानिये सचमुच ।।
कागज कभी न करता है अहम
चाहिये उसको सदा ही कलम ।।
कलम को दवात की जरूरत रहे
तीनों का अनूठा कहलाये संगम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/02/2019
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''आज के
हालात"
आज तो सब
कुछ सस्ता है ।
इंसान अब
छोटी पर हंसता है ।
बड़ी बात से
वह दूर बचता है ।
छोटा धंधा
अब खूब पनपता है ।
बड़ी चीज
लिये जो बैठे वो रोते हैं ।
सबकी पसंद
अब गोलगप्पे होते हैं ।
दूध मलाई के
स्वप्न कोई न संजोते हैं ।
सोना कैसे
पहने घर में ही वो खोते हैं ।
देख जमाने
के हालात हम हंसते हैं ।
अब तो
चरित्र भी हुये बहुत सस्ते हैं ।
सिक्के भारी
हैं तभी तो वो बजते हैं ।
हर जगह 'शिवम' अब वही
दिखते हैं ।
हरि शंकर
चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/02/2019
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वो बचपन वाला खिलौना मुझे बहुत
भाता है
मैंने वह सजाकर रखा गम में वो काम आता है ।।
मैंने उसके साथ कभी भी छेड़छाड़ नही की
वो तो यूँ ही आँखों को जाने क्यों लुभाता है ।।
दिल तो यह आज भी बच्चा है
इसका रूप तो सदा ही सच्चा है ।।
वो तो दिमाग बीच में आ जाता है
दिल के मुकाबले दिमाग न अच्छा है ।।
दिमाग को कोशिश भर दूर रखता हूँ
दिल बच्चा है बच्चा ही समझता हूँ ।।
उस खिलौने की एक तस्वीर बना रखी
दिल में रख 'शिवम' उसी से हंसता हूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 02/02/2019
मैंने वह सजाकर रखा गम में वो काम आता है ।।
मैंने उसके साथ कभी भी छेड़छाड़ नही की
वो तो यूँ ही आँखों को जाने क्यों लुभाता है ।।
दिल तो यह आज भी बच्चा है
इसका रूप तो सदा ही सच्चा है ।।
वो तो दिमाग बीच में आ जाता है
दिल के मुकाबले दिमाग न अच्छा है ।।
दिमाग को कोशिश भर दूर रखता हूँ
दिल बच्चा है बच्चा ही समझता हूँ ।।
उस खिलौने की एक तस्वीर बना रखी
दिल में रख 'शिवम' उसी से हंसता हूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 02/02/2019
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आज तो इंसान की इंसान से ही जंग
है
वह अपने दुख से न और के सुख से तंग है ।।
क्या होगा आखिर समाज परिवार का ,
हमसे अच्छा तो वो उड़ता हुआ विहंग है ।।
बेशक हमने बनाये महल किले
मगर दिल से दिल नही मिले ।।
औरों की तो छोड़ो अपनों को
अपनों से हैं आज शिकवे गिले ।।
जिस माने इंसा इंसा कहाये वो भूल गये
अपनी तरक्की औ स्वार्थ में ऐसे झूल गये ।।
आज पड़ोसी को पड़ोसी की नही खबर
पता न हम कौन सी तरक्की में फूल गये ।।
जिसमें इंसान इंसान न रहे वह पाप है
आज दौलत शोहरत बेशक अड़नाप है ।।
मगर सुख तो कब का गायब ''शिवम"
वह तो अन्दर रहे हमारे बाहर पदचाप है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/02/2019
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वह अपने दुख से न और के सुख से तंग है ।।
क्या होगा आखिर समाज परिवार का ,
हमसे अच्छा तो वो उड़ता हुआ विहंग है ।।
बेशक हमने बनाये महल किले
मगर दिल से दिल नही मिले ।।
औरों की तो छोड़ो अपनों को
अपनों से हैं आज शिकवे गिले ।।
जिस माने इंसा इंसा कहाये वो भूल गये
अपनी तरक्की औ स्वार्थ में ऐसे झूल गये ।।
आज पड़ोसी को पड़ोसी की नही खबर
पता न हम कौन सी तरक्की में फूल गये ।।
जिसमें इंसान इंसान न रहे वह पाप है
आज दौलत शोहरत बेशक अड़नाप है ।।
मगर सुख तो कब का गायब ''शिवम"
वह तो अन्दर रहे हमारे बाहर पदचाप है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/02/2019
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खुला आस्मां कितनों का साया है
बेचारे कितनों ने न आशियां बनाया है ।।
धरती माँ और आसमां का प्यार है
उसी में रह कर जीवन ये बिताया है ।।
महलों वाले भूल गये कुदरत का प्यार
कुदरत से तो जैसे उनकी है तकरार ।।
कितना सुन्दर होता था वो छत पे सोना
रात रात भर तारों को रहते थे निहार ।।
आसमां में उड़ते पंछी की उमंग
न दौलत न शोहरत मस्ती है संग ।।
तारे तोड़ कर वह भी नही लायेंगे
पर जीते अपनी शैली में ये विहंग ।।
आस्मां में आकर्षण है पर जागना होगा
खुले आसमां में हमें उसको आंकना होगा ।।
ऐ सी में रह कर के क्या कुछ हम पायेंगे
आज 'शिवम' ये बात मस्तक में टांकना होगा ।।
बेचारे कितनों ने न आशियां बनाया है ।।
धरती माँ और आसमां का प्यार है
उसी में रह कर जीवन ये बिताया है ।।
महलों वाले भूल गये कुदरत का प्यार
कुदरत से तो जैसे उनकी है तकरार ।।
कितना सुन्दर होता था वो छत पे सोना
रात रात भर तारों को रहते थे निहार ।।
आसमां में उड़ते पंछी की उमंग
न दौलत न शोहरत मस्ती है संग ।।
तारे तोड़ कर वह भी नही लायेंगे
पर जीते अपनी शैली में ये विहंग ।।
आस्मां में आकर्षण है पर जागना होगा
खुले आसमां में हमें उसको आंकना होगा ।।
ऐ सी में रह कर के क्या कुछ हम पायेंगे
आज 'शिवम' ये बात मस्तक में टांकना होगा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्।
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चैन चुराये चंचल नैन ।
मीठे मीठे से दो बैन ।
कासे कहूँ ये दिल का चैन ।
रहे ये दिल हरदम बैचेन ।
चंचल नार की नेह नजर ।
जोगियों को भुलाये डगर ।
ऐसा छोड़ जाये असर ।
छटपटाये वो जीवन भर ।
दवा न दें बेरहम निकलते
।
चंचल नैन किसे न छलते ।
रहे ''शिवम" हम आँखें मलते ।
देख महफिल अब राह बदलते ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मिलन की आस में जिये जाता हूँ
कितने गम के घूँट पिये जाता हूँ ।।
जख्मों से छलनी दिल सियें जाता हूँ
आयेगी घड़ी इंतजार किये जाता हूँ ।।
बेवजह इल्जाम भी लिये जाता हूँ
तरन्नुम बनी गीत लिखे जाता हूँ ।।
कोई सुने न सुने खुद सुने जाता हूँ
प्यार भी क्या चीज बहे जाता हूँ ।।
''शिवम्" साज छेड़े बजे जाता हूँ
गीत और गज़ल नित लिखे जाता हूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जहाँ घिसटे धरती पर वो धरती न्यारी न भूले।
वो माँ के आँचल में छुपकर प्यारी किलकारी न भूले ।
बचपन के वो मित्र सखा वो यार वो यारी न भूले ।
जन्म भूमि प्राणों से प्यारी उसकी रखवारी न भूले ।
स्वर्ग से सुन्दर जन्म भूमि की चहारदिवारी न भूले
माँ के पीछे पीछे चलना वो आँचल सारी न भूले ।
बड़े हुये स्कूल का बस्ता माँ की बलिहारी न भूले ।
बरसातों में नाव चलाना वो खेत की क्यारी न भूले ।
आँगन में तुलसी का पौधा छत की फुलवारी न भूले ।
वो सुबह का सूरज वो रात की अँधियारी न भूले ।
स्वप्न सलोने बुनने की ''शिवम" तैयारी न भूले ।
स्वर्ग समान जन्म भूमि की यादें सारी न भूले ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
''जीवन यात्रा संस्मरण"
काँटों से भरा जीवन कुछ फूल भी मिले
उनके सहारे जिन्दगी में रहे हम खिले ।।
जब फूल भी बिखरे आँखे बहुत मले
अच्छे भी दिन आये पर अदाओं से ढले ।।
चाहा उन्हे पकड़ना पर हाथ से फिसले
चलना ही है जीवन ये स्वयं पते चले ।।
मुड़कर के फिर न देखे हम रहे अधखिले
ये जिन्दगी है दोस्तो इसके यही सिले ।।
वैसे तो घाव हैं कई पर अपनों के खले
अब हँसते हैं तो कहते हैं लोग बावले ।।
हँसना भी दोस्तो अब पैसों के तले
ये रीत अब बनी है जो टाले न टले ।।
ये जिन्दगी के अनुभव मस्तिक तले पले
पढ़ा करें ''शिवम" ये पन्ने हैं कुछ खुले ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
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फिर सुबह का सूरज आये और आयें बहारें
उम्मीद का दामन न छोड़ो मंजिलें स्वयं पुकारें ।।
कौन सी मंजिल कद्रदान है, इस पर नजर डारें
भूल यहीं रह जाती है पहले सोचें और विचारें ।।
धरती तपे बारिषें आयें , पौधों में प्राण डारें
जो उम्मीदें छोड़ गये , उनको कैसे उबारें ।।
बोल भी न पायें बच्चे सो बार माँ उचारें
तब मिले दूध कठोरता जीवन न बिगारें ।।
पूछिये जौहरी से हीरे को कैसे वो निखारें
समझिये ''शिवम" उम्मीदें जीवन को सँवारें ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
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रहता नही यौवन रहता नही धन
गुरूर फिर किस पर जानें श्रीमन ।।
बहुतों को देखा है नपते हुये
अपनों के आगे झुकते हुये ।।
बहतर है जानें अन्तस में कौन
रहता है जो हरदम ही मौन ।।
कीजिये मुखर उसकी आवाज
पहचानिये जीवन के गहरे राज ।।
जीवन मिला जो जानिये जरा
व्यर्थ के गुरूर में कुछ न धरा ।।
फैंकिये गुरूर की जो चादर पड़ी
जानिये ''शिवम'' ये दीवार है बड़ी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
'उत्सव"
रोज ही उत्सव मनाते हैं हम
मन में बसे हैं मेरे प्रियतम ।।
अटखेली खेलते हम उनसे दिन रात
क्या सुख क्या दुख लगे छोटी ये बात ।।
प्रेम की दीवानी में मीरा कहाऊँ
रोज ही सपने में कान्हा संग गाऊँ ।।
बाहर के उत्सव होते हैं क्षणिक
अन्दर बिखरे हैं हीरे माणिक ।।
भले भूले उसको सारी संसारी
हमें तो भाये हैं बाँके बिहारी ।।
प्रेम की परिभाषा जो जाने यहाँ
उनका हुआ है ये सारा जहाँ ।।
जीवन है उत्सव ये जान लीजिये
सच्चाई है ये पहचान लीजिये ।।
अखण्ड स्रोत से जिसने जोड़े ये तार
''शिवम्" उसके जीवन में आयी बहार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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खुशी कहीं न दूर है
पर मानव मन मगरूर है ।।
घडा़ भरा रखा घर में
पर नजर में ही सुरूर है ।।
सदियों से वेद बताते आये
खुशी अन्तस में भरपूर है ।।
बाहर की खुशी क्षणिक
पर बाहिर्मन में चूर है ।।
हीरे छोड़ कंकड़ को धावे
इंसा कितना बेशऊर है ।।
दोष देय विधाता को
जो बिल्कुल बेकसूर है ।।
हँसी आये इंसा पर ''शिवम"
इंसा में ही खुदा का नूर है ।।
मगर इधर उधर वो भागे
ये खुद का ही कुसूर है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जाने क्यों एक तेरा ही जिक्र करता है दिल
कब से नही आ गया हूँ मैं उस महफिल से
क्या रंगत थी उन जुल्फों में उन निगाहों में
सब ही है आज मगर तेरी कमी खलती है
अकेला चल रहा हूँ आदत सी पड़ गई है
शायद अब भी उसे उम्मीद है दीदार की
काश कहीं मिल जाये वो सूरत ''शिवम"
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
रोज ही उत्सव मनाते हैं हम
मन में बसे हैं मेरे प्रियतम ।।
अटखेली खेलते हम उनसे दिन रात
क्या सुख क्या दुख लगे छोटी ये बात ।।
प्रेम की दीवानी में मीरा कहाऊँ
रोज ही सपने में कान्हा संग गाऊँ ।।
बाहर के उत्सव होते हैं क्षणिक
अन्दर बिखरे हैं हीरे माणिक ।।
भले भूले उसको सारी संसारी
हमें तो भाये हैं बाँके बिहारी ।।
प्रेम की परिभाषा जो जाने यहाँ
उनका हुआ है ये सारा जहाँ ।।
जीवन है उत्सव ये जान लीजिये
सच्चाई है ये पहचान लीजिये ।।
अखण्ड स्रोत से जिसने जोड़े ये तार
''शिवम्" उसके जीवन में आयी बहार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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जब साथ न कोई देता
तब कलम उठा लेता
सुना है सदा से ये
जग की रही प्रणेता
हँसने में भी संग संग
रोने में भी संग संग
कोई जग नही ये
जो मुँह बना लेता
जितनी करूँ प्रशंसा
उतनी कम कहाय
हर गमगीन को ये
गले से लगाय
कलम के सहारे
कई जिन्दगी बिताय
कलम ने प्रभु के
दर्शन कराय
कलम ने मैदान में
युद्ध भी जिताय
कहाँ नही कलम ने
जादू दिखाय
चंद छंदों में ये
वर्णित न की जाय
कितने अनसुलझे पथ
कलम ने सुझाय
चहुँ ओर चमत्कार
कलम से दिखाय
मानव की सुन्दरता में
चार चाँद भी लगाय
जानिये ''शिवम"
कलम के ये मरम
कवि हो तो कलम के
निभाइये धरम
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
तब कलम उठा लेता
सुना है सदा से ये
जग की रही प्रणेता
हँसने में भी संग संग
रोने में भी संग संग
कोई जग नही ये
जो मुँह बना लेता
जितनी करूँ प्रशंसा
उतनी कम कहाय
हर गमगीन को ये
गले से लगाय
कलम के सहारे
कई जिन्दगी बिताय
कलम ने प्रभु के
दर्शन कराय
कलम ने मैदान में
युद्ध भी जिताय
कहाँ नही कलम ने
जादू दिखाय
चंद छंदों में ये
वर्णित न की जाय
कितने अनसुलझे पथ
कलम ने सुझाय
चहुँ ओर चमत्कार
कलम से दिखाय
मानव की सुन्दरता में
चार चाँद भी लगाय
जानिये ''शिवम"
कलम के ये मरम
कवि हो तो कलम के
निभाइये धरम
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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ईश्वर एक अनुभूति है
उसी की बोलती तूती है ।।
वो जो चाहे वो होता है
इंसा कठपुतली बन रोता है ।।
कभी हँसता है कभी गाता है
क्या क्या अर्थ वो लगाता है ।।
वो रहस्य जो कोई जान न पाये
जितना जाने वो कम कहलाये ।।
अखण्ड ऊर्जा का स्रोत वो
ज्यों जलती कोई ज्योत वो ।।
जग नियंता वो कर्ता धर्ता
साकार रूप बन दुख हर्ता ।।
हम सब में उसकी हस्ती है
पर ये नश्वर काया डसती है ।।
उससे मिलने में व्यधान करे
उसके अनुरूप न पग धरे ।।
जुड़िये वो जो अखण्ड ज्योत है
कौन कितना उससे ओतप्रोत है ।।
सद मार्ग ही ''शिवम" पहुँचायेंगे
उसका रस्ता हमको सुझायेंगे।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
उसी की बोलती तूती है ।।
वो जो चाहे वो होता है
इंसा कठपुतली बन रोता है ।।
कभी हँसता है कभी गाता है
क्या क्या अर्थ वो लगाता है ।।
वो रहस्य जो कोई जान न पाये
जितना जाने वो कम कहलाये ।।
अखण्ड ऊर्जा का स्रोत वो
ज्यों जलती कोई ज्योत वो ।।
जग नियंता वो कर्ता धर्ता
साकार रूप बन दुख हर्ता ।।
हम सब में उसकी हस्ती है
पर ये नश्वर काया डसती है ।।
उससे मिलने में व्यधान करे
उसके अनुरूप न पग धरे ।।
जुड़िये वो जो अखण्ड ज्योत है
कौन कितना उससे ओतप्रोत है ।।
सद मार्ग ही ''शिवम" पहुँचायेंगे
उसका रस्ता हमको सुझायेंगे।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हरीतिमा की हल्की चादर ओढ़ती धरती
टहलते आस्मां तले ज्योत आँखों को मिलती ।।
मगर बादलों से जो हमने कर ली है बुराई
उसकी कीमत हमारे साथ पशुओंं ने चुकाई ।।
सबकी भोजन व्यवस्था प्रभु ने थी बनाई
मगर इंसा ने दिखाई अपनी बुद्धि चतुराई ।।
प्रकृति में आग लगाई अब मुसीबत है छाई
बदले मौसम के रूप हरियाली न दी दिखाई ।।
अषाढ़ निकले बारिष की न हुई अगुआई
धरती लगती सजी सँवरी दिखी बेहयाई ।।
हरी चादर ओढ़ने को वो तरस रही भाई
एक भूल ''शिवम" करे कितनों की रूसवाई ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
टहलते आस्मां तले ज्योत आँखों को मिलती ।।
मगर बादलों से जो हमने कर ली है बुराई
उसकी कीमत हमारे साथ पशुओंं ने चुकाई ।।
सबकी भोजन व्यवस्था प्रभु ने थी बनाई
मगर इंसा ने दिखाई अपनी बुद्धि चतुराई ।।
प्रकृति में आग लगाई अब मुसीबत है छाई
बदले मौसम के रूप हरियाली न दी दिखाई ।।
अषाढ़ निकले बारिष की न हुई अगुआई
धरती लगती सजी सँवरी दिखी बेहयाई ।।
हरी चादर ओढ़ने को वो तरस रही भाई
एक भूल ''शिवम" करे कितनों की रूसवाई ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ज्ञान का बिगुल बजाओ
रास्ता सदमार्ग का अपनाओ ।।
चमन है ये जग इसको
खुशबुओं से महकाओ ।।
फूल हैं इस बगिया के हम
बगिया की रौनकें बढ़ाओ ।।
मालिक खुश हो जिसमें
वो खुशी समझ जाओ ।।
क्या नही बनाया उसने
जरा गौर कुछ फरमाओ ।।
उसकी हर कोशिश में
चार चाँद तुम लगाओ ।।
सब में कुछ आकर्षण
अपनी खूबी गले लगाओ ।।
काँटों का भी रहस्य गहरा
काँटों से मत घबड़ाओ ।।
गुलाब नही घबड़ाया
वैसी कीमत तुम पाओ ।।
पूरे चमन में छटा निराली
सौन्दर्य संग महक बढ़ाओ ।।
विविधतायें रहेंगीं ''शिवम"
मन में कुंठा नही जगाओ ।।
सबसे मिलकर बना समाज
सभी से तालमेल बैठाओ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
रास्ता सदमार्ग का अपनाओ ।।
चमन है ये जग इसको
खुशबुओं से महकाओ ।।
फूल हैं इस बगिया के हम
बगिया की रौनकें बढ़ाओ ।।
मालिक खुश हो जिसमें
वो खुशी समझ जाओ ।।
क्या नही बनाया उसने
जरा गौर कुछ फरमाओ ।।
उसकी हर कोशिश में
चार चाँद तुम लगाओ ।।
सब में कुछ आकर्षण
अपनी खूबी गले लगाओ ।।
काँटों का भी रहस्य गहरा
काँटों से मत घबड़ाओ ।।
गुलाब नही घबड़ाया
वैसी कीमत तुम पाओ ।।
पूरे चमन में छटा निराली
सौन्दर्य संग महक बढ़ाओ ।।
विविधतायें रहेंगीं ''शिवम"
मन में कुंठा नही जगाओ ।।
सबसे मिलकर बना समाज
सभी से तालमेल बैठाओ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुबह बड़ी सुहानी है
जाग उठे सब प्राणी है ।।
गीत गा रहे सब मिलकर
बागों में मस्त जवानी है ।।
चम्पा और चमेली फूले
नदियों में मस्त रवानी है ।।
निकल पड़े हलजोत खेत को
मेहनत की रोटी खानी है ।।
प्रकृति के संग खेलो कभी
प्रकृति बड़ी दीवानी है ।।
वो भी सजती धजती है
सुबह का न कोई सानी है ।।
ढूड़ो खुशी तो बिखरी है
कदर न हमने जानी है ।।
सुबह सुबह की सैर ''शिवम"
बुद्धि बल की महारानी है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जाग उठे सब प्राणी है ।।
गीत गा रहे सब मिलकर
बागों में मस्त जवानी है ।।
चम्पा और चमेली फूले
नदियों में मस्त रवानी है ।।
निकल पड़े हलजोत खेत को
मेहनत की रोटी खानी है ।।
प्रकृति के संग खेलो कभी
प्रकृति बड़ी दीवानी है ।।
वो भी सजती धजती है
सुबह का न कोई सानी है ।।
ढूड़ो खुशी तो बिखरी है
कदर न हमने जानी है ।।
सुबह सुबह की सैर ''शिवम"
बुद्धि बल की महारानी है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
अहसानमंद है हर नागरिक सेना के जवानों का
शान देश की बनी रहे फिकर न करते प्रानों का ।।
दुश्मन के मन्सूबों को कामयाब न होने दें
माकूल जबाव देते हैं उनके गंदे अरमानों का ।।
सर पर मौत नाचती पर सिकन न रखते चेहरे पर
सिर्फ पता रखते हैं वो दुश्मन के ठिकानों का ।।
मातृभूमि पर आँच न आये चाहे जां भले जाये
हुनर उन्होने सीखा है तरकश तीर कमानों का ।।
ठण्डी गर्मी कभी न देखें हरदम तनकर पहरा दें
पलक झपकते वार न हो पता नही शैतानों का ।।
हर चुनौती है स्वीकार मातृभूमि की खातिर
धन्य ''शिवम" उनके इन बहुमूल्य बलिदानों का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
शान देश की बनी रहे फिकर न करते प्रानों का ।।
दुश्मन के मन्सूबों को कामयाब न होने दें
माकूल जबाव देते हैं उनके गंदे अरमानों का ।।
सर पर मौत नाचती पर सिकन न रखते चेहरे पर
सिर्फ पता रखते हैं वो दुश्मन के ठिकानों का ।।
मातृभूमि पर आँच न आये चाहे जां भले जाये
हुनर उन्होने सीखा है तरकश तीर कमानों का ।।
ठण्डी गर्मी कभी न देखें हरदम तनकर पहरा दें
पलक झपकते वार न हो पता नही शैतानों का ।।
हर चुनौती है स्वीकार मातृभूमि की खातिर
धन्य ''शिवम" उनके इन बहुमूल्य बलिदानों का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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पलकें उठाके पलकें गिराना ।
चिलमन से यूँ मुस्कुराना ।
हमला है ये कातिलाना ।
क्यों न होगा दिल दिवाना ।
बन जाये न कोई अफसाना ।
सम्हल के चलो जाने जाना ।
नाजुक दिल का क्या बतलाना ।
कब हो जाये ये बेगाना ।
आँखें खंजर का खजाना ।
''शिवम्" इन से दिल बचाना ।
चिलमन से यूँ मुस्कुराना ।
हमला है ये कातिलाना ।
क्यों न होगा दिल दिवाना ।
बन जाये न कोई अफसाना ।
सम्हल के चलो जाने जाना ।
नाजुक दिल का क्या बतलाना ।
कब हो जाये ये बेगाना ।
आँखें खंजर का खजाना ।
''शिवम्" इन से दिल बचाना ।
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सावन मास सुहाना , इसमें दूर कहीं न जाना
मेरे साजन मैंने माना , ये मौसम बड़ा दीवाना ।।
धरा ने रूप धरा सुन्दर , बादलों ने प्यार पहचाना
भर गये ताल तलैया, चहुँदिश खुशी का तानाबाना ।।
जिनके कंत थे दूर देश में , उनका हुआ है आना
ढोल मँजीरे घर घर बाजें , किसान भी गाये गाना ।।
गीत मल्हार कजरी धुन सुनना और सुनाना
झूला भी झूलेंगे ''शिवम" हाथ मेंहदी सजाना ।।
घड़ी सुहानी सावन की ये घड़ी नही विसराना
प्रेम का बन्धन जन्मों का प्रियतम ये निभाना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मेरे साजन मैंने माना , ये मौसम बड़ा दीवाना ।।
धरा ने रूप धरा सुन्दर , बादलों ने प्यार पहचाना
भर गये ताल तलैया, चहुँदिश खुशी का तानाबाना ।।
जिनके कंत थे दूर देश में , उनका हुआ है आना
ढोल मँजीरे घर घर बाजें , किसान भी गाये गाना ।।
गीत मल्हार कजरी धुन सुनना और सुनाना
झूला भी झूलेंगे ''शिवम" हाथ मेंहदी सजाना ।।
घड़ी सुहानी सावन की ये घड़ी नही विसराना
प्रेम का बन्धन जन्मों का प्रियतम ये निभाना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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गोधूलि वेला शाम की सबै सुहावे
बछड़े अपनी माँ को देखें और रमाँवे ।।
दिन भर के बिछुड़े को माँ गले लगावे
चिड़ियाँ चीं चीं करती घोंसले को धावे ।।
सूरज भी शीतल हो अपने पथ को जावे
चाँद की राह निहारें चाँद न दरश दिखावे ।।
आकाश में चहुँ दिश लालिमा सी छा जावे
थके किसान खेत से अपने घर को आवे ।।
गृहणी सजकर पति मिलन की आस लगावे
चोपालें सज जायें सबई मिल बैठ के गावे ।।
ऐसी सुन्दर शाम मनहि को बहुत ही भावे
बसी है जो तस्वीर ''शिवम" बरवस लुभावे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
बछड़े अपनी माँ को देखें और रमाँवे ।।
दिन भर के बिछुड़े को माँ गले लगावे
चिड़ियाँ चीं चीं करती घोंसले को धावे ।।
सूरज भी शीतल हो अपने पथ को जावे
चाँद की राह निहारें चाँद न दरश दिखावे ।।
आकाश में चहुँ दिश लालिमा सी छा जावे
थके किसान खेत से अपने घर को आवे ।।
गृहणी सजकर पति मिलन की आस लगावे
चोपालें सज जायें सबई मिल बैठ के गावे ।।
ऐसी सुन्दर शाम मनहि को बहुत ही भावे
बसी है जो तस्वीर ''शिवम" बरवस लुभावे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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अगर रंग न होते जग में क्या होता जग का हाल
पता चला पैसा ही हँसता न हँसता कोई खाकर दाल ।।
पत्नि लड़ कर करती तंग पति का होता जीना बेहाल
पति बेचारा जिन्दा है हर हाल में रखा खुद को सम्हाल ।।
रंग ही हैं जो इंसान के जीवन में करते हैं कमाल
वरना दुख का अम्बार है सुख की न कोई दुशाल ।।
दुख तो अपने आप भी जाते बेफिजूल करते मलाल
अच्छा है कुछ रंग में रंग कर बना दें कोई मकां बिशाल ।।
कोशिश भर रंग अच्छे ढूड़ो जो करें जीवन खुशहाल
दुख भी हरलें खुशियाँ भरदें रखो ''शिवम"बस यही ख्याल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
पता चला पैसा ही हँसता न हँसता कोई खाकर दाल ।।
पत्नि लड़ कर करती तंग पति का होता जीना बेहाल
पति बेचारा जिन्दा है हर हाल में रखा खुद को सम्हाल ।।
रंग ही हैं जो इंसान के जीवन में करते हैं कमाल
वरना दुख का अम्बार है सुख की न कोई दुशाल ।।
दुख तो अपने आप भी जाते बेफिजूल करते मलाल
अच्छा है कुछ रंग में रंग कर बना दें कोई मकां बिशाल ।।
कोशिश भर रंग अच्छे ढूड़ो जो करें जीवन खुशहाल
दुख भी हरलें खुशियाँ भरदें रखो ''शिवम"बस यही ख्याल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
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हर पल बीत रही उमर
हर पल रो रहा जिगर ।।
मिलन की सूरत नजर न आय
सोचूँ रात रात भर ।।
थके थके से ये नैन रहें
लुका छुपी से चैन रहें ।।
खुशी इश्क में जो दिलवर से
उसको सच्चा चैन कहें ।।
सच्ची पीर मिटे दिल की
वो भले ही हो दो पल की ।।
हो दीदार तुम से ''शिवम"
इंतजार उस महफिल की ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
हर पल रो रहा जिगर ।।
मिलन की सूरत नजर न आय
सोचूँ रात रात भर ।।
थके थके से ये नैन रहें
लुका छुपी से चैन रहें ।।
खुशी इश्क में जो दिलवर से
उसको सच्चा चैन कहें ।।
सच्ची पीर मिटे दिल की
वो भले ही हो दो पल की ।।
हो दीदार तुम से ''शिवम"
इंतजार उस महफिल की ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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भूल जाते हैं लोग या कि वक्त भुलाता है
वक्त हर हाल में हमारा मित्र कहलाता है ।।
नींद नही आती थी कभी उनकी यादों में
मगर अब बिना गोली लिये नींद आता है ।।
वक्त ने हमको इतना छकाया इतना थकाया
बैठे ही दिल नींद के आगोश में चला जाता है ।।
कभी कोई उलझन तो कभी कोई उलझन
इन्ही उलझनों में उलझ कर दिल रह जाता है ।।
कैसे कह सकते हम आखिर वक्त को शत्रु
न चाहने पर भी कभी यह हमको हँसाता है ।।
दिल को टूटने भी नही देता है यह वक्त
एक साथ छूटता है तो दूसरा जुड़वाता है ।।
वक्त क्या क्या न खेल खिलवाये ''शिवम"
वक्त दुनिया में अपने को मित्र कहलवाता है ।
वक्त हर हाल में हमारा मित्र कहलाता है ।।
नींद नही आती थी कभी उनकी यादों में
मगर अब बिना गोली लिये नींद आता है ।।
वक्त ने हमको इतना छकाया इतना थकाया
बैठे ही दिल नींद के आगोश में चला जाता है ।।
कभी कोई उलझन तो कभी कोई उलझन
इन्ही उलझनों में उलझ कर दिल रह जाता है ।।
कैसे कह सकते हम आखिर वक्त को शत्रु
न चाहने पर भी कभी यह हमको हँसाता है ।।
दिल को टूटने भी नही देता है यह वक्त
एक साथ छूटता है तो दूसरा जुड़वाता है ।।
वक्त क्या क्या न खेल खिलवाये ''शिवम"
वक्त दुनिया में अपने को मित्र कहलवाता है ।
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नत मस्तक हो जाता है
जब प्रिय का चेहरा आता है
प्रेम की क्या सौगात दूँ
दिल सोच कर रह जाता है
प्रेम न कोई अहसां है
प्रेम न कोई सौदा है
प्रेम तो ईश्वर की सौगात
ईश्वर नजर आता है
नाम अभी तक दे न पाया
किस नाम से तुम्हे पुकारूँ मैं
हर रूप में तुम ही तुम दिखतीं
दिल दैवी तुम्हे बताता है
कहीं कोई भूल न हो
पल पल दिल घबराता है
प्रेम का रूप तो बिल्कुल उलट
जग में अब कहलाता है
तुम्हे स्मरण करके ही
दिल कलम ये उठाता है
तुम से ही पहचान मिली है
नित चरणनन शीष झुकाता है
पूजो तो हर इंसा में
ईश्वर पाया जाता है
भावना जो शुद्ध हो
ये जग मंदिर बन जाता है
अगर भावना शुद्ध नही
भक्त भी कुछ न पाता है
जो सौगात मिली हमको
दिल गर्व से फूल जाता है
आज तुम्ही से खुशियाँ हैं
दिल हरेक गम सह जाता है
वाह विधाता तेरी सौगात
कैसे किसे हँसाता है
मुझे तो ये महसूस न होता
गम कब निकल जाता है
प्रेम पवित्र है प्रेम को समझो
दुख दूर हो जाता है
प्रेम में रहकर इंसा का
जीवन सँवर जाता है
प्रेम की सौगातों में ''शिवम"
प्रेम ही माँगा जाता है
न तारे न चाँद चाहिये
ये तो छंद ही सिर्फ सजाता है
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जब प्रिय का चेहरा आता है
प्रेम की क्या सौगात दूँ
दिल सोच कर रह जाता है
प्रेम न कोई अहसां है
प्रेम न कोई सौदा है
प्रेम तो ईश्वर की सौगात
ईश्वर नजर आता है
नाम अभी तक दे न पाया
किस नाम से तुम्हे पुकारूँ मैं
हर रूप में तुम ही तुम दिखतीं
दिल दैवी तुम्हे बताता है
कहीं कोई भूल न हो
पल पल दिल घबराता है
प्रेम का रूप तो बिल्कुल उलट
जग में अब कहलाता है
तुम्हे स्मरण करके ही
दिल कलम ये उठाता है
तुम से ही पहचान मिली है
नित चरणनन शीष झुकाता है
पूजो तो हर इंसा में
ईश्वर पाया जाता है
भावना जो शुद्ध हो
ये जग मंदिर बन जाता है
अगर भावना शुद्ध नही
भक्त भी कुछ न पाता है
जो सौगात मिली हमको
दिल गर्व से फूल जाता है
आज तुम्ही से खुशियाँ हैं
दिल हरेक गम सह जाता है
वाह विधाता तेरी सौगात
कैसे किसे हँसाता है
मुझे तो ये महसूस न होता
गम कब निकल जाता है
प्रेम पवित्र है प्रेम को समझो
दुख दूर हो जाता है
प्रेम में रहकर इंसा का
जीवन सँवर जाता है
प्रेम की सौगातों में ''शिवम"
प्रेम ही माँगा जाता है
न तारे न चाँद चाहिये
ये तो छंद ही सिर्फ सजाता है
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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पर मानव मन मगरूर है ।।
घडा़ भरा रखा घर में
पर नजर में ही सुरूर है ।।
सदियों से वेद बताते आये
खुशी अन्तस में भरपूर है ।।
बाहर की खुशी क्षणिक
पर बाहिर्मन में चूर है ।।
हीरे छोड़ कंकड़ को धावे
इंसा कितना बेशऊर है ।।
दोष देय विधाता को
जो बिल्कुल बेकसूर है ।।
हँसी आये इंसा पर ''शिवम"
इंसा में ही खुदा का नूर है ।।
मगर इधर उधर वो भागे
ये खुद का ही कुसूर है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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पिता परमेश्वर का रूप कभी न उन्हे भूल ।
जब तक हैं सो पूजले हर सुखों का मूल ।
पिता वचन वन गमन की , की नही भूल ।
काँटे भी फिर बन गये सदा सुगन्धित फूल ।
युग युग तक आदर्श है श्री राम अवतार ।
पिता वचन को मानकर संकट मिले हजार ।
कभी न कोसे पिता को कभी न किया विचार ।
ऐसे आदर्शों पर चल जीवन ''शिवम" सुधार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जब तक हैं सो पूजले हर सुखों का मूल ।
पिता वचन वन गमन की , की नही भूल ।
काँटे भी फिर बन गये सदा सुगन्धित फूल ।
युग युग तक आदर्श है श्री राम अवतार ।
पिता वचन को मानकर संकट मिले हजार ।
कभी न कोसे पिता को कभी न किया विचार ।
ऐसे आदर्शों पर चल जीवन ''शिवम" सुधार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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गुरू की महिमा जानिये होगा बेडा़पार
भव सागर में नाव है गुरू ही है पतवार ।।
दूजा न कोई रास्ता न कर सोच विचार
बिन पतवार के नाव न होती भव से पार ।।
गुरू समान न दूसरा जग में कोई यार
परम हितेषी जानिये परमात्म का अवतार ।।
भाव से ही भगवान हैं भाव में कर सुधार
एकलव्य का गुरू प्रेम जाना है संसार ।।
सच्चे हृदय से करले गुरू कोई स्वीकार
श्रद्धा और विश्वास का ''शिवम" चमत्कार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
भव सागर में नाव है गुरू ही है पतवार ।।
दूजा न कोई रास्ता न कर सोच विचार
बिन पतवार के नाव न होती भव से पार ।।
गुरू समान न दूसरा जग में कोई यार
परम हितेषी जानिये परमात्म का अवतार ।।
भाव से ही भगवान हैं भाव में कर सुधार
एकलव्य का गुरू प्रेम जाना है संसार ।।
सच्चे हृदय से करले गुरू कोई स्वीकार
श्रद्धा और विश्वास का ''शिवम" चमत्कार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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शक्ति दो हे दाता हमको दायित्व निभायें दिल से
हम भी कुछ पहचान बनायें दिखें कुछ काबिल से ।।
ऐसे हों शुभ कर्म हमारे दुनिया हमको याद करे
दुश्मन की भी आँख हो नम जायें जब महफिल से ।।
दुनिया में दायित्व निभाने हर एक इंसा आया है
गीता के श्लोकों में भी यही सार बतलाया है ।।
रामचरित मानस भी सुन्दर दायित्वों की कृति है
हर पात्र ''शिवम" अपना सुन्दर दायित्व निभाया है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम"
हम भी कुछ पहचान बनायें दिखें कुछ काबिल से ।।
ऐसे हों शुभ कर्म हमारे दुनिया हमको याद करे
दुश्मन की भी आँख हो नम जायें जब महफिल से ।।
दुनिया में दायित्व निभाने हर एक इंसा आया है
गीता के श्लोकों में भी यही सार बतलाया है ।।
रामचरित मानस भी सुन्दर दायित्वों की कृति है
हर पात्र ''शिवम" अपना सुन्दर दायित्व निभाया है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम"
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एक गज़ल का प्रयास
जाने क्यों एक तेरा ही जिक्र करता है दिल
सम्हालूँ तो सम्हाले नही सम्हलता है दिल ।।
कब से नही आ गया हूँ मैं उस महफिल से
मगर अब भी उसी के लिये मचलता है दिल ।।
क्या रंगत थी उन जुल्फों में उन निगाहों में
बार बार उसी में खो जाने को करता है दिल ।।
सब ही है आज मगर तेरी कमी खलती है
बहलाऊँ भी कहीं तो बहलता नही है दिल
।।
अकेला चल रहा हूँ आदत सी पड़ गई है
मगर अब भी कभी कभी ठिठकता है दिल ।।
शायद अब भी उसे उम्मीद है दीदार की
हर रोज ही उसके वास्ते दुआ करता है दिल ।।
काश कहीं मिल जाये वो सूरत ''शिवम"
इस उम्मीद में उन गलियों से गुजरता है दिल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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