शेर सिंह सर्राफ

"लेखक परिचय"
01)नाम:- शेर सिंह सर्राफ
02)जन्मतिथि:- 05/07/1976
03)जन्म स्थान:-देवरिया ( उ0प्र0)
04)शिक्षा:-एम0ए (राजनीति शास्त्र) बी0एड0
05)सृजन की विधाएँ:- कविता लेखन
06)प्रकाशित कृतियाँ:-
07) सम्मान:-
08)संप्रति(पेशा/व्यवसाय):-बर्तन एंव ज्वेलर्स
09)संपर्क सूत्र(पूर्ण पता):-बर्तन घर, नई बाजार , देवरिया ( उ0प्र0)
10)ईमेल आईडी:-sher3639gmail.com
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मै शेरसिंह सर्राफ.....
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इक परिचय मेरा भी सुन लो,
शब्द मेरे है साफ।
लिखता हूँ खुद से खुद को मै,
शेर सिंह सर्राफ।
...
बचपन बीता यौवन भी अब,
मै हूँ चालीस पार।
लेखन मे डूबा रहता मन,
इससे ही मुझको प्यार।
....
पाँच जुलाई का दिन था वो,
सावन की बरसात।
पृथ्वी पर जब गिरे शेरसिंह,
रिमझिम थी बरसात।
.....
गोरखपुर के पास जिला है,
देवरिया निज धाम।
कभी कटोरा चीनी का था,
आज मगर बेनाम।
.....
माता है दमयंती देवी, पिता
महेशेन्द्र सिंह सर्राफ।
चार भगनी अरू तीन बँन्धू मे,
मै दीर्घ नही लघु नाम ।
....
एम ए ,बी एड, एल एल बी संग,
शिक्षा विशारद सम्मान ।
काम मेरा बर्तन आभूषण ,
मै हूँ एक सोनार।
....
निज निकेतन प्रिय- प्रवास है,
प्रिया है भार्या नाम।
दो पुत्रो की यह माता है,
यशवन्त ,राजवीर सिंह नाम।
....
ये है मेरा पूरा परिचय,
जो है बिल्कुल साफ।
यू पी इक कलमकार मै,
शेरसिंह सर्राफ ।
....
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स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
नई बाजार देवरिया, उ0 प्र0
पिन- 274001

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शेर की कविताए...
समर्पित भावों के मोती
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तुम ही मेरे प्रथम प्रीत हो, जिसमें मीर नही कोई।
तुम ही मेरे नयन बिंदू हो, जिसमें नीर नही कोई।
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तुमने ही जीवन को बाँधा,मन मन्दिर को सार दिया,
शेर समाहित है शब्दों में, जिसमें पीर नही कोई।
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भावों के मोती सा मुक्ता, जिसमें क्षीर नही कोई।
प्रीत गीत का वो बन्धन है, जिसमें तीर नही कोई।
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क्या लिखे निःशब्द शेर है, भाव छलकता पर मेरा,
ये ही अन्तर्मन मन है मेरा, जिसमें धीर नही कोई।
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शेर सिंह सर्राफ
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शेर की कविताए....
कुण्डलिया छंद
शीर्षक .. रतिया

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रतिया की बतिया सभी,
फिर द हमें बताई।
भूल गयी बातें सभी ,
बात समझ न आई॥
बात समझ न आई,
पिया फिर हमें बता दो।
क्या है रीति व प्रीत,
हमें खुल कर बतला दो॥
सोच रही हर बात,
बैठ कर अपने खटिया।
क्या था शेर का भाव,
हमे जो बोले रतिया॥

स्वरचित....
शेर सिंह सर्राफ


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शेर की कविताए...
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मिला के लाल में पीला, बना लो रंग केसरिया।
यही वो रंग है जिसनें, शेर के मन को है जीता।
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इसे कहते है सब भगवा,जो प्रिय भगवान को मेरे,
जो है माँ भारती का मन, वतन मेरा है केसरिया।
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व्यथा इसमे नही कोई, कथा सदियों पुरानी है।
हुआ कल्याण मानव का, वो केसरिया कहानी है।
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रवि का रंग केसरिया, उदित हो अस्त हो तो क्या,
शेर का मन भी है भगवा, शिखर पे बात आनी है।
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शेर सिंह सर्राफ

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शीर्षक .. गणतंत्र
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नमन राष्ट्र गणतंत्र देश,
भारत तेरा अभिनन्दन है।
सत्तर सालों से संविधान,
सर्वोच्च तेरा अभिनन्दन है।
है विविध रंग भारत भूमि,
भाषा शैली है अलग मगर।
सम्पूर्ण समाहित है जिसमें,
भारत तेरा अभिनन्दन है।
*****
पृथ्वी के तुम ही प्रथम राष्ट्र,
जिसपर हरि ने जीवन दी थी।
सभ्यता निरन्तर विकसित की,
मानव जीवन को कडी दी थी।
जय विजय पराजय को देखा,
झेला है दासता भी जिसने।
फिर तोड पराभव की बेडी,
मेरा देश तेरा अभिनन्दन है।
**'**
हे शस्य श्यामला माँ तेरी,
गणतंत्र रूप का दर्शन है।
जो बढे निरन्तर गंगा सा,
तू उस सौन्दर्य का दर्पण है।
आभा माँ तेरी बढे सदा,
सतंति का ये ही कर्म रहे।
इस शेर के शब्द व कर्मो से,
जननि तेरा अभिनन्दन है।
*****
आओ मिलकर गुणगान करे,
सम्मान बढे वह काम करे।
जो सोच तोडने की रखे,
उस सोचका हम प्रतिकार करे।
जो झेला है इस धरती ने,
उसका न पुनः आगाज करे।
आओ मिल साथ कहे दिल से,
माँ पुनः तेरा अभिनन्दन है।
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शेर सिंह सर्राफ
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शेर की कविताए...
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नफरतों और आँसूओ को, आओ न हम त्याग दे।
एक माँझा प्यार का ले, सब दुखो को हम त्याग दे।
खून के सब रिश्तो को जोडे, गाँव शहर व देश को,
विश्व को अपना बना कर, अहम को हम त्याग दे।
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आओ जुड करके धरा से, मन की कटुता त्याग दे।
मन से मन को जोड ले अरू ,बाकी बाते त्याग दे।
काटना है तो पतंगा, को उडा कर काट दे।
दौड करके लूटे उसको, मस्ती मे गम त्याग दे।
**
तिल के लड्डू बाँट करके, रूग्णता को त्याग दे।
शेर की कविता पढे अरू, संताप मन को त्याग दे।
एक जीवन ही मिला फिर, आओ खुशिया बाँट दे,
एक पेचा आ लडा ले, आँखों से शर्म को त्याग दे।
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शेर सिंह सर्राफ
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नमन मंच
विषय .. शादी गीत
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पहले पहिल जब आयी गवनवा,
घूर- घूर देख इक काला सा कागा।
आगे पीछे डोले मोरा जिया धडकाये,
पिया को जगाऊ सखी आगे की बताऊ....
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ना जागा ना जागा, मोरा सइया आभागा ना जागा...
उड उड कागा मोरे टीका पे बैठ -2
टीका के रसवा ले भागा.. मोरा सइया अभागा ना जागा।
ना जागा ना जागा...

उड उड कागा मोरे नथिया पे बैठे-2
नथिया के रसवा ले भागा... मोरा सइया अभागा ना जागा।
ना जागा ना जागा.....

उड उड कागा मोरे झुमका पे बैठे-2
झुमका के रसवा ले भागा....मोरा सइया अभागा ना जागा।
ना जागा ना जागा...

उड उड कागा मोरे लाली पे बैठे-2
लाली के रसवा ले भागा...मोरा सइया अभागा ना बैठा।
ना जागा ना जागा...

उड उड कागा मोरे कण्ठी पे बैठे-2
कितना उडाऊ पर कण्ठी पे बैठेे।
कण्ठी के रसवा ले भागा... मोरा सइया अभा ना जागा।
ना जागा ना जागा...

कैसे कहूँ सखी क्या-क्या किया था।
कागा ने जीना मोरा दुर्भर किया था।
सासू ननदिया से कह नही पाऊ,
पिया अनाडी मोरा समझ न पाऊ।

शेर सिंह सर्राफ
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शेर की कविताएं...
दिंनाक .. 04/01/2019
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मिलती जो उमराव जान तो, हम भी मुजरा सुनते ।
ठंडी मे कम्बल को ओढ के, वाह-वाह हम कहते ।

मय को अधरो पर रख करके, मांशा अल्लाह कहते।
मयखाने के रंग महल मे , मय के साथ थिरकते।

आखिर हमको भी जाना है, इक दिन जन्नत द्वारे पे।
अल्लाह ने पूछा जीवन के, सुख-दुख और सन्नाटे पे।

क्या बतलायेगे उनको हम, राग-रंग और जीवन पे।
सोच रहा हूँ कुछ अनुभव लूँ, जीवन के सबरंगो के।

कोई अनुभव हो तो तुमको , मुझको यही बता देना।
पुण्य लोक मे जाने का, अनुभव है सत्य बता देना ।

शेर हृदय के शंकाओ पर, व्यर्थ ना तुम घबरा जाना।
अन्तिम यात्रा की तैयारी , मयखाने से ही जाना ।

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स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

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नमन मंच
शीर्षक .. नश्वर
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जगत मोहिनी भुवन सुन्दरी, श्रीराधा इक नाम।
जिसके रंग रंगरसिया रंग गए, श्रीराधा इक नाम।

सबके मन मे प्रीत जगाए, कण-कण मे भगवान,
शेर के मन मे कृष्ण हृदय मे, श्रीराधा इक नाम।

नश्वर है संसार जगत का नश्वर प्राणी मात्र।
नश्वर काम क्रोध में जलता नश्वर मन का ताप।

भावों से मोती झलकाता ऋद्धि सिद्धि का जाप,
प्रातः वन्दन करो आप ले श्री राधा इक नाम।

प्राण पखेरू के उडने तक, मिटा न मन से पाप।
भोग कर रहा संतति फिर क्यो, नही तुझे संताप।

धूँ- धूँ जली चिता की अग्नि, जला नही पर पाप।
भोग छोड कर आ ले वन्दे, श्री राधा इक नाम।

मानव रूप में ही जन्में थे, राधा मीरा श्याम।
कर्म ने इष्ट बनाया भज तू, श्री राधा इक नाम।

श्री राधे की महिमा जिससे, भव हो जाता पाप।
शेर भज रहा तू भी भज ले, श्री राधा इक नाम।

शेर सिंह सर्राफ
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शेर की कविताए....
शीर्षक ... ''मोहिनी नारी''
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आयुद्धों से भरे हुए भण्डार है मोहिनी नारी के।
नयना तीर कमान बिछाये जाल है मोहिनी नारी के।
माया ममता महबूबा से भाव है मोहिनी नारी के।
अभी तो है शुरूवात अनेको रंग है मोहिनी नारी के।
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शतरूपा से शुरू हुआ संसार है मोहिनी नारी के।
त्रिदेवी का नाम हुआ अवतार है मोहिनी नारी के।
जटिला भामा भोगदा यह सृष्टि है मोहिनी नारी के।
शेर करे शुरूवात लिखे काव्य है मोहिनी नारी के।
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उदित भाग्य बाबुल करे श्रृँगार है मोहिनी नारी के।
बेटी बने सौभाग्य गढे सम्मान है मोहिनी नारी के।
दो घर जोडे आप बढाए मान है मोहिनी नारी के।
ईश्वर का वरदान बनाए भाग्य है मोहिनी नारी के।
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सृजन करे संघार दे जीवनदान है मोहिनी नारी के।
धरा समाहित आचँल मे सृष्टि है मोहिनी नारी के।
शेर कहे इक बात हृदय से मान है मोहिनी नारी के।
त्याग की है भंडार नही लाचार है मोहिनी नारी के।

शेर सिंह सर्राफ

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शेर की कविताए...
शीर्षक .. विरह
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जीवन में आभा ने जैसे, छोड दिया है साथ।
सूखे दिल की मरूभूमि पे, कोई नही है साथ।
बादल ना गरजा ना दिल पे हुआ मेरे बरसात,
प्रेम विरह मे शेर जले है मिला ना उसका साथ।
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राधा मीरा विरह मे जलते, पर है श्याम का नाम।
शेर का प्रीत ना जाने कोई, जाने तो बस राम।
आधा तन है आधा मन है, आधा है उसके पास,
शब्दों में उलझा है शेर बस, और ना जाने काम।
***
सुबह बीत गयी दोपहरी भी, शाम से हो गयी रात।
रात कट गयी यादों मे ही, सुबह हुई फिर रात।
क्या कहना चाहें मन मेरा, समझ ले तू इक बार,
आँखो मे बस तुम रहते हो, यादों की है बारात।
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शेर सिंह सर्राफ

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शेर की कविताए...
दिनांक .. 17/12/2019
शीर्षक .. मेरी वाणी
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मोरी रंग दे ओ रंगरेज चुनरियाँ श्याम रंग मे।
मेरी वाणी को अविराम सुनो मोहन के रंग मे॥
मोरी रंग दे ओ रंगरेज.....

वो रंग जिसमें रंग गयी राधा,
लोकलाज को भी तँज डाला॥
वैसा ही रंग डाल.....सुनो
मोरी रंग दे ओ रंगरेज.....

वो रंग जिसमे रंग गयी मीरा,
प्रीत मे जिसने विष पी लीना॥
वैसा ही रंग डाल.....सुनों
मोरी रंग दे ओ रंगरेज....

सूरदास जिस रंग मे रंग गये,
काँन्हा के बचपन मे चल गये॥
वैसा ही रंग डाल.. सुनों
मोरी रंग दे ओ रंगरेज....

भक्ति की निर्मल सी धारा,
जिसमें डूबा ये जग सारा॥
वैसा ही रंग डाल... सुनों
मोरी रंग दे ओ रंगरेज....

कृष्ण भक्ति सा रंग ना दूजा,
शेर हृदय जिसमे है डूबा॥
वैसा ही रंग डाल..... सुनों
मोरी रंग दे ओ रंगरेज, चुनरिया श्याम रंग में।
मेरी वाणी को अविराम सुनों मोहन के रंग मे॥

शेर सिंह सर्राफ
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शेर की कविताए....
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देखों अब तस्वीर दूसरी, वो ही अब दिखलाना है।
अबला ना सबला बन करके, मन संताप मिटना है।
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नयनों में काजल ही नही, ज्वाला भर करके आना है।
नारी की तस्वीर अलग ही, दुनिया को दिखला है।
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जलना नही चिता की अग्नि, मन में हमे जलाना है।
प्रीत प्रेयसी बन करके भी, कर्म के पथ पर जाना है।
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नारी का इतिहास अलग है, बार -बार दोहराया है।
तारा सीता या हो द्रोपदी, पथ अग्नि पे चलते जाना है।
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शकुन्तला सतयुग की नारी, कलयुग में निर्भया बेचारी।
जन्म से लेकर मरने तक, नारी की इक अलग कहानी।
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सुनों निर्भया बार-बार अब, कृष्ण नही आ पायेगे।
रणचण्डी सा तेज भरों , पापी ना कोई छू पायेगे।
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तुम भारत की गौरव हो, अभिमान शेर के शब्दों की।
तुम हो यामिनी तुम ही दामिनी, श्रेष्ठ सृजन हो ईश्वर की।
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स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ


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अर्पण में तर्पण कर देना, शायद मुक्ति मिले मुझको।
मगर निमन्त्रण देना मन से, शायद तृप्ति मिले मुझको॥
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जीवन इक सषर्ष यदि है, तो लडना है सुनो यही।
किसका कोई करे सहारा, जो होना है सभी यही॥
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कर्म विजेता बनोगे कैसे, भाग्य लिखा जो मिटा नही।
छत्तीस गुण से व्याही सीता, भाग्य कर्म से मिटा नही॥
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मन विचलित है भाव वेदना, मे डूबा उतराता है।
किससे मन की कहे वेदना, शेर समझ ना आता है॥
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शेर सिंह सर्राफ


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नमन मंच
दिनांक .. 24/9/2010
विषय .. खंजर
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नरम पत्तों के शाख से हम भी बहुत ही कोमल थे पर।
है छीला लोगो ने यू बार-बार की अब हम,खंजर से हो गये।
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जिसे ही माना अपना उसने ही आजमाया इतना।
कि शेर हृदय के कोमल भाव भी सूख के,पिंजर से हो गये।
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मिट गये भाव सुधा सरिता सूखी है हृदय पटल की।
सच है ये बात की अबकी शेर का मन भी,बंजर से हो गये।
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शिकायत क्यों किससे और बार- बार ये आँसू ना अब।
जो बोला जैसा जिसने साथ उसी सा, मंजर से हो गये।
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मिटा दी मोह लोभ अब लोगो की बातों मे पडना।
अब शेर भी तन और मन से अलख ,निरंजन हो गये।
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स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ
 
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दिंनाक .. 1/1/2020
दिन .. मंगलवार

विषय .. नववर्ष
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नव भोर मे नव रश्मि ले,
नूतन सवेरा आया है।
नव वर्ष मे नव आस ले,
नव भास्कर फिर आया है॥
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आनन्द मे हर एक कण है,
मन सृजन से भर आया है।
भावों के मोती छलक के,
कविता मे ही भर आया है॥
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कविता के भावों मे मेरी,
फिर जोश सा भर आया है।
इस मंच के सब कवियो के,
अभिनन्दन मे शेर आया है॥
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गत वर्ष के सब गलतियों,
को माफ कर देना मेरे।
आलोचना समलोचना से,
प्राण भर देना मेरे॥
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उत्कर्ष की इस कामना के
साथ सबको है नमन।
महफिल मेरी परिपूर्ण हो,
इस शेर मन से है नमन॥
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स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

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सुनो सम्पर्क में रहना,तुम्ही से कह रहा हूँ मैं।
कभी फुर्सत में मिल लेना,तुम्ही से कह रहा हूँ मैं॥
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ये रिश्तों की जो डोरी हैं,बडी मुश्किल से बँधती है।
जो टूटा तार इस दिल से,नही जल्दी से जुडती है॥
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वहम ये पालना छोडों,की रस्तें में ही मिल लेगे।
वही से हाय हैलो करके,रिश्तों को पकड लेगे॥
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कमा लो नाम दौलत यार,पर मुझसा ना पाओगें।
जरा तासीर ज्यादा पर,महक ना मुझसा पाओगे॥
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हमारी कोशिश पर तुम भी,अपना चाव रख देना।
जरा सम्पर्क मे रहना,शेर को काॅल कर लेना॥
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कभी सम्पर्क जो टूटे,बडा ही दर्द होता है।
कि हम तो आम है पर खास,जो है वो भी रोता है॥
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पढो कविता मेरी दिल सें,ये तेरे ही लिए लिखा।
सुनो सम्पर्क मे रहना,तुम्ही से कह रहा हूँ मैं॥
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स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
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गणपति वन्दना
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जय देव जय देव, जय मंगलकारी।
दुख हर्ता, सुख कर्ता,जय निर्विकारी॥

पार्वती शिव के, अशंधारी।
ऋृद्धि- सिद्धि संग,मंगलकारी॥

जय देव जय देव, जय देव स्वामी।
प्रथम पूजनीय , तुम सर्वव्यापी।

मोदक लड्डू से, भोग लगाये है।
मूषक वाहन , दिव्य सवारी ॥

मात-पिता की, सेवा करे है जो।
परम्परा है वो, आपका स्वामी।

बुद्धि के दानी, हे अन्तर्यामी।
शेर कहे आप हो,जग स्वामी॥

जय देव जय देव, जय मंगलकारी।
दुख हर्ता सुख कर्ता, जय निर्विकारी॥

स्वरचित... शेर सिंह सर्राफ
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शीर्षक -" काँन्हा "
मन साधत है यही साधना ,क्या ऐसा हो जाये।
काँन्हा सा इक नन्हा बालक, मेरे भी अँगना आये।
हा.. मेरे भी अँगना आये...

पग पैजनीया बाँध वो मुझको, मईया कहके बुलाये।
ठुमक ठुमक कर चाल चले, मोरा मन हर्षित हो जाये।
हा.. मोरा मन हर्षित हो जाये...

साँवला मुँख हो लट घुँघराले, नैना हो कजरारे।
कमर करधनी हाथ मे कंगन, मोर पंख सिर बाँधे।
हा... मोर पंख सिर बाँधे....

पूरे घर को सिर पे उठा ले, माखन मिश्री खाये।
भारत की हर माता ये सोचे, काँन्हा मेरे घर भी आये।
हा.. काँन्हा मेरे घर भी आये...

दिव्य रूप हो छँटा निराली, बरबस ममता जागे।
शेर कहे काँन्हा इस जग के, अदभुद पुत्र निराते।
हा.. अदभुद पुत्र निराले....

भादों मास के शुक्ल पक्ष मे, अष्ठमी दिन जो आये।
आर्याव्रत के खण्ड खण्ड मे, सोहर गाया जाये।
हा.. सोहर गाया जाये....

स्वरचित ...
शेर सिंह सर्राफ
देवरिया उ0प्र0

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सरस्वती वन्दना 🌹🌹🌹🌹🌹
हे चन्द्रवदना ज्ञानदा, माँ भारती पदनिलया।
वागीश्वरी सुरवन्दिता, चतुरानन सामाज्या॥

हे हंसवाहिनी श्रीप्रदा , हे महाभद्रा वरप्रदा।
सौदामिनी वीणापणी, जटिला भामा भोगदा॥

हे वाग्देवी भारती , माँ महाश्वेता शिवानुजा।
इस सृष्टि की सम्पूर्णता, रस रंग की माधुर्यता॥

तुमसे ही पुस्तक ज्ञान है, मन शेर का सम्मान है।
हे ज्ञानमुद्रा मालिनी , तुम सुधामूर्ति सरस्वती॥

हम जड है तुम हो चेतना, तुम देवी पद्मालोचना।
करबद्ध स्तुती कर रहा, जग सर्वदेवी स्तुता॥

स्वरचित एंव मौलिक
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शेर सिंह सर्राफ
नयी बाजार देवरिया, उ0 प्र0
पिन- 274001
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दिनांक .. ८••८••२०१९
विषय .. रिश्ता/ नाता
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सब जन्म मुझी से पाते है,
फिर मुझ मे ही लौट के आते है।
ये बातें युगो- युगो की है,
जिसे बार-बार दोहराते है॥
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जिसने भी जन्म लिया जग में,
उसे काल के गाल समाना है।
सब रिश्ते-नाते माया है,
जग मे जिसे छोड के जाना है॥
**
धन- दौलत वैभव नाम सभी,
इस धरती पर रह जायेगा।
सतकर्म का रथ ही साथ तेरे,
हरि द्वारे तक ले जायेगा ॥
**
फिर काहे मूरख बन करके,
तेरा मेरा करता रहता।
तुम शेर की रचना पढो अगर,
मन धीरज को धरता रहता॥
**

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

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दिनांक .. 26/7/2019
विषय .. कारगिल विजय/ विजय दिवस
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खींचा लेना रक्त चन्दन, मध्य मस्तक केंन्द्र पर ।
लालिमा भर लेना अपने, श्वेत नेत्रम् चन्द्र पर ॥
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खींच लेना उस जिव्हृा को, बोले जो अपशब्द पर।
मातृ- गौरव छिन्न ना हो, याद रखना तुम मगर॥
**
धर- पकड, उसको पटक कर, छाती पे चढ जाना पर।
शीश कटने से प्रथम, मरना तू उसको मार कर ॥
**
कारगिल के युद्ध सा, विजयी रहे हर बार तुम।
भारतीय गौरव के रक्षक, चूमे आसमान तुम॥
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वीर गौरव से भरा, इतिहास भारत भूमि का ।
मार कर मरते है जो, गर्वित है हम उन वीर का॥
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चीर कर उसके हृदय के, रक्त से धोना धरा।
मर के भी ना गिरने देना, शेर भारत का ध्वँजा॥
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मान तुम, सम्मान तुम हो, देश के अभिमान पर।
हम ऋणी है, तेरा जीवन देश के सम्मान पर॥

शेर सिंह सर्राफ
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दिनांक ... 21/7/2019
विषय.. स्वर्गीय गीतकार गोपाल दास ''नीरज''
की प्रथम पुण्यतिथि पे शेर की शब्द श्रद्धाजंलि
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कुछ कालजयी से लोग हुए,
जो जाते नही कभी जग से।
वो युगो-युगो तक जिन्दा है,
अपने वचनों और कर्मो से॥
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ये शब्द सुमन मेरे अर्पित,
गोपाल दास कवि नीरज को।
ये शेर का वन्दन अभिनन्दन,
कवियो में श्रेष्ठ निरंजन को॥
.....
जिस गीतकार ने तम देखा,
अभाव का निर्जन वन देखा।
पर डिगे नही पथ कर्मो से,
उत्कर्ष का चरम शिखर देखा॥
.....
यह पुण्य तिथि का प्रथम वर्ष,
जब साथ नही है वो जग में।
भावों के मोती झलक रहे,
है शेर के इस अन्तर्मन में॥
.....
अब नमन तुम्हे हे चन्द्र बिन्दू,
गीतो के सागर क्षीर सिन्धु।
ये शब्द कुसुम स्वीकार करो,
मन शेर का विचलित सा है किन्तु॥
....

स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ


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कुछ शब्द शेर के.....
लगा ली छत पें मैने बाँग, पडोसन के आते ही।
कोई पूछे नही सवाल, लगा ली मैने खूब उपाय॥
मुझे दिन मे दिखता चाँद, पडोसन के आते ही....

सुबह सबेरे योगा करने जब वो छत पर आती है।
ठंडी हवा की खुँशबू बन, अन्तर्मन को महकाती है॥
मेरे दिल को मिला करार, पडोसन के आते ही....

अब घरवाली नही पुछती क्यो जाते हो छत पर।
पूजा के लिए फूल ले आना, कहती है वो तन कर॥
हाँ फैला फूलों से संसार , पडोसन के आते ही......

समझ रही थी खूब पडोसन मेरे मन की बात।
हँस कर इक दिन पूछ लिया, अंकल जी क्या है हाल॥
शेर के दिल पे हुआ आघात, पडोसन के आते ही.....

बिखर गयी बाँगों की कलियाँ, बिखर गया था ख्वाब ।
जेठालाल सा सोच रहा, बबीता जी की थी ख्वाब ॥
अब तो दया का ही है साथ, पडोसन के आते ही.....

लगा ली छत पे मैने बाँग, पडोसन के आते ही।
कोई पूछे नही सवाल, लगा ली मैने खूब उपाय ॥
दिन मे दिखता अब तो चाँद, पडोसन के आते ही.....

स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ

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शेर की कविताए....
जो धर्म को अपने ना जाना,
वो धर्मी कभी ना रह पाया।
इतिहास से जो ना सीख लिया,
इतिहास बना वो ना पाया॥
.....
सतयुग की एक कहानी है,
जहाँ '' नल '' राजा अरू रानी है।
सौभाग्य श्री दमयन्ती की,
यह सुन्दर बहुत कहानी है॥
.....
यह भाव लीन दो प्रेमी थे,
जिसका वर्णन है ग्रंथो मे।
यह कथा सुनो और इसे सुनाओ,
अपने वंशज अरू संतति में॥
.....
सावन का इसमे है वर्णन,
है मेघ मल्हारो का गर्जन।
ऐश्वर्य दमकता है इसमे,
निर्धनता का भी है क्रदंन॥
.....
यह कथा शेर के मन मे है,
जो बचपन मे था सुना कही।
ये कथा आपको अर्पित है,
भारत सा सुन्दर राष्ट्र नही॥
.......
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ


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कुछ शब्द शेर के....
मन भीग-भीग जाता है, तन भीगा तो क्या भीगा।
यह पहली बारिश है ऐसी, जिसमे है रोम-रोम भीगा॥

धरती भीगा अम्बर भीगा, इस शेर का अन्तर्मन भीगा।
बाँगों मे कली कली भीगी, इस उपवन का सबरंग भीगा॥

आओ प्रिय मिल ले इस ऋतृ मे, मन पोर-पोर मेरा भीगा।
आँखो से प्यार छलक करके,अधरो से कण्ठ तलक भीगा॥

मधुमास इसे ही कहते है जब अंग-अंग सारा भीगा।
जो ना भीगा वो क्या भीगा, हर शब्द शेर का है भीगा॥

स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ

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नमन मंच
दिनांक .. 19/06/2019
विषय ... दर्पण
***********************

आँखे ही दर्पण इस दिल का,
जिसमे बिम्ब तुम्हारा।
आकर देखोगे नयनों मे तुम,
इसमे रूप तुम्हारा॥
.....
शेर लबों से ना कहता पर,
मन से रहा तुम्हारा।
मन मंदिर मे तुम ही तुम हो,
दूजा नही हमारा॥
......
सोच सको तो कभी सोचना,
क्या है प्रीत हमारा।
छलक रहे भावों के मोती,
क्या हम मिले दोबारा॥
.......
इक निष्ठुर से प्यार किया जो,
जो बन ना सका हमारा।
मन का दर्पण टूट गया अब,
जुडना नही दोबारा॥
........

स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
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नमन मंच
दिनांक .. 18/6/2019
विषय .. तट/ किनारा
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भरी हुई आँखो के तट से .आँसू झलक रहे है।
प्रेम विरह मे तडपे राधिका, नैना निरख रहे है॥
........
श्याम प्रीत मे डूबी ऐसे, पाया नही किनारा।
एक बार जो श्याम गये फिर, लौटे नही दुबारा॥
......
जमुना का जल श्याम पुकारे, वृन्दावन की धरती ।
बैठे किनारे श्याममयी वो , एक शिला सी रहती॥
......
श्रेष्ठ प्रेमी यदि श्याम पिया तो, छलिया अरू मनमौजी।
पलट के देखा ना राधा को, बने जो कर्म के यौगी॥
........
प्रेम विरह मे शेर भी डूबा, आँखे बनी किनारा।
झलक रही आँखो के तट से, आज भी है जलधारा॥

.....
स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ

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नमन मंच
विषय .. डाल/ शाख
***********************

कजरारी काली ये आँखे, लागे तीर कमान।
बडे बडों का धर्म बदल दे, बलखाती सी चाल।
.....
रंग रूपसी कुन्दन तेरा, लट घुँघराले बाल।
दो गढ्ढे गालो पे बनते, खिलता रूप गुलाब।
.....
मस्तक दीर्घ नाशिका पतली, मोटे अधर कमाल।
ईश्वर ने क्या खूब रचा है रम्भा जस मुस्कान।
......
कामिनी यौवन रागिनी सा मन, कण्ठ कोकिला मान।
रूप रंग से दामिनी दमके, दिल पे करे आघात।
......
इस मधुवन की तू रानी है, पुष्प खिले हर डाल।
चरण चूमते रश्मिरथी तो, शेर की क्या औकात।
.......

स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ


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दिनांक .. 10/6/2019
विषय .. कोयल
********************

कोयल सी बोली थी उसकी,
हिरनी जैसी आँखे थी।
छोटी सी बच्ची ट्विंकल जो,
माँ की राज दुलारी थी।
.....
मार दिया जिसको वहसी ने,
मानवता लाचार हुई।
तीन साल की उस बच्ची का,
कई टुकडो मे लाश मिली।
.....
राजनीति गहराई है फिर,
ना उसको इन्साफ मिली।
शेर हृदय भी सुलग रहा है,
ऐसी घटना आम हुई।
.......
क्या बेटी का जन्म विधाता,
इस जग मे अब पाप हुई।
मर्यादा किसने है तोडो,
बेटी अब लाचार हुई।
........
शोक नही संताप हरो अब,
पाप का मिल नाश करो अब।
जिसने ये कुकृत्य किया है,
दण्ड भी मिल कर आप करो अब।
..........
रूह काँप जाए पापी की,
सोच कभी ना आप बढे।
पढे लिए बचपन बेटी का,
देश का तब अभिमान बढे।
.......

स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ



                                           @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

शीर्षक .. बीता साल
**********************


साल पुराना बीत रहा है, बस कुछ पल के बाद।
आने वाले साल का करो, दिल से इस्तकबाल।
खट्टी- मीठी यादों का था 2019 का यह साल।
मधुकर रस झलकायेगी अब आने वाला साल।
**
विश्व पटल के जन मानस पर उत्तीर्ण बीता साल।
ईश्वर की महिमा से सुन्दर बीते 2020 का साल।
खेतों मे हरियाली फैले , देश का हो विकास।
सीमा रहे सुरक्षित अपनी, भारत का हो नाम।
**
हिन्दू मुस्लिम साथ रहे, न हो कोई तकरार।
दुष्टों और निशाचर का हो, भारत मे संहार।
मानव मानव एक रहे न, हो कोई भेद भाव।
औरत बच्चे रहे सुरक्षित, निश्छल हो मनभाव।
**
प्राणी मात्र की भूख मिटे, अन्याय का हो प्रतिकार।
भारत अपने पुनः पुरातन, गौरव को करे स्वीकार।
आंग्ल विदेशी वर्ष में भी हो सर्व धर्म संम्भाव।
शेर की कविता पढो साथ में, बोलो जय श्री राम।
**

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ


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दिंनाक ... 30/12/2019
*********************

🍁
गुजर रहा है फिर इक साल,
तुम्हारी यादों मे।
नही एहसास है मेरा अब भी,
तुम्हारी साँसो मे॥
🍁
गुजरता है अभी भी वक्त,
थोडा थम- थम कर।
नजर आती हो तुम मुझको,
हमेशा रह-रह कर॥
🍁
गुजरते वक्त मे यादों का ,
आना जायज है।
वो लम्हे शेर के साँसो मे,
आना शायद है॥
🍁
मिले मौका तो मुझको,
याद तुम भी कर लेना।
सुनहरी यादों को आँखो में,
भर के जी लेना ॥
🍁

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ



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शीर्षक .. आने वाला साल
**********************


साल पुराना बीत रहा है, बस कुछ पल के बाद।
आने वाले साल का करो, दिल से इस्तकबाल।
खट्टी- मीठी यादों का था 2019 का यह साल।
मधुकर रस झलकायेगी अब आने वाला साल।
**
विश्व पटल के जन मानस पर उत्तीर्ण बीता साल।
ईश्वर की महिमा से सुन्दर बीते 2020 का साल।
खेतों मे हरियाली फैले , देश का हो विकास।
सीमा रहे सुरक्षित अपनी, भारत का हो नाम।
**
हिन्दू मुस्लिम साथ रहे, न हो कोई तकरार।
दुष्टों और निशाचर का हो, भारत मे संघार।
मानव मानव एक रहे न, हो कोई भेद भाव।
औरत बच्चे रहे सुरक्षित, निश्छल हो मनभाव।
**
प्राणी मात्र की भूख मिटे, अन्याय का हो प्रतिकार।
भारत अपने पुनः पुरातन, गौरव को करे स्वीकार।
आंग्ल विदेशी वर्ष में भी हो सर्व धर्म संम्भाव।
शेर की कविता पढो साथ में, बोलो जय श्री राम।
**

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ


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शीर्षक .. नश्वर
******************

जगत मोहिनी भुवन सुन्दरी, श्रीराधा इक नाम।
जिसके रंग रंगरसिया रंग गए, श्रीराधा इक नाम।

सबके मन मे प्रीत जगाए, कण-कण मे भगवान,
शेर के मन मे कृष्ण हृदय मे, श्रीराधा इक नाम।

नश्वर है संसार जगत का नश्वर प्राणी मात्र।
नश्वर काम क्रोध में जलता नश्वर मन का ताप।

भावों से मोती झलकाता ऋद्धि सिद्धि का जाप,
प्रातः वन्दन करो आप ले श्री राधा इक नाम।

प्राण पखेरू के उडने तक, मिटा न मन से पाप।
भोग कर रहा संतति फिर क्यो, नही तुझे संताप।

धूँ- धूँ जली चिता की अग्नि, जला नही पर पाप।
भोग छोड कर आ ले वन्दे, श्री राधा इक नाम।

मानव रूप में ही जन्में थे, राधा मीरा श्याम।
कर्म ने इष्ट बनाया भज तू, श्री राधा इक नाम।

श्री राधे की महिमा जिससे, भव हो जाता पाप।
शेर भज रहा तू भी भज ले, श्री राधा इक नाम।

शेर सिंह सर्राफ


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विजयरथी बन कर निकला वो,
सुख-दुख के भावों को त्याग।
मौनव्रती वो श्रेष्ठ पुरूष है,
शान्त मगर मन मे है आग।
....
कर्म योगी वो मन से जोगी ,
राष्ट्र पुरूष बन आया।
भारत की धूमिल गरिमा को,
पुनः दिव्य चमकाया।
....
सुख-दुख की है क्या परिभाषा,
योगी क्या जानेगा।
त्याग दिया सारे बन्धन जो,
मोह वही जानेगा।
.....
उसे जान लो मन से भाव दो,
उसका क्या जायेगा।
शेर के संग वो झोला लेकर,
कही चला जायेगा।
.....
स्वरचित एवं मौलिक...
शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 
विधा .. लघु कविता 
*********************
🍁
पुष्प का मकरंद वो,
महका रहा अब देश को।
डेहरी को छोड कर,
सरहद से देखे देश को।
🍁
हर हवा मे गाँव की,
मिट्टी की खूँशबू आ रही।
माँ के आँसू बहन के,
यादों की बादली छा रही।
🍁
देश की रक्षा मे अर्पित,
फिर हुआ इक प्राण है।
चूडियो के टूटने से,
रो रहा आकाश है।
🍁
आँसू अब मकरंद से है,
अधर पंखुडी पुष्प के।
एक सैनिक शेर निकला,
है तिरंगा ओढ के।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


🍁
मान सरोवर ना ये आँखे , फिर भी भर जाता है।
शीशे का दिल नही मगर, पल भर मे टूट जाता है।

🍁
बातो से विश्वास जगे , बातो से टूट जाता है।
करते है हम प्यार जिसे, इक पल मे छूट जाता है।

🍁
दिखता नही घमण्ड किसी का, पर वो कितना ऊँचा है।
सागर से गहरा मानव मन, फिर भी कितना छिछला है।

🍁
लेखन मे संसार समाहित , लेकिन वो ना दिखता है।
शेर कहे पागल मन मेरा, ना जाने किसको तकता है।

🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 
नमन मंच
दिनांक .. 07/04/2019
विषय .. स्वतन्त्र
विधा .. लघु कविता
***********************
🍁
मनभाव बता दो तुम मुझको,
क्या तेरा मेरे जैसा है।
क्या नींद नही आती तुमको,
क्या हाल हमारे जैसा है।
🍁
क्या तुमको भी मेरी ही तरह,
कुछ-कुछ बेचैनी रहती है।
मन के मंदिर अरू हृदय पटल पे,
मेरे यादें रहती है।
🍁
क्या पलक बन्द करते ही तुमको,
शेर नजर आता है।
क्या मन रिद्धम सा भावों को,
झकझोर के रह जाता है।
🍁
कुछ भाव यदि बतला दो तुम,
तो मन के भावों को समझे।
यह बात अगर इक तरफा है,
तो वैध से मिल कर कह दे ।
🍁

स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

शेर की कविताएं....
07/04/2019
*******************
🍁
खुलेगा राज का हर इक पन्ना, एक ना इक दिन।
बजा  लो  चैन  की  बँसी  फटेगा,  ना इक दिन।
🍁
दबाओगे कहाँ तक तुम मेरी, आवाज को हरदम।
कभी तो वक्त आयेगा दिखेगा ,जुर्म सब इक दिन।
🍁
कभी सागर के लहरो को दबाया है भला कोई।
हवाये  तेज  हो  या  मंद  रोका  है  कहा  कोई।
🍁
जहाँ  इन्साफ होता है वहाँ  ना दर्द होता है।
मगर जब दर्द होता है वहाँ इन्साफ ना कोई।
🍁
दिखेगा  जर्म   तेरा  वक्त   आयेगा   मेरा इक दिन।
मिलेगा शेर को इन्साफ, आयेगा वो दिन इक दिन।
🍁
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 
स्वरचित  मौलिक .. शेर सिंह सर्राफf
दिंनाक .. 22/12/2019
********************

🍁
यादें तो चिर यौवना है, 
इस पर ना झुर्री आती है।
मन अरू मस्तिक मे विचर रही, 
सपनो मे भी आ जाती है॥
🍁
अच्छी हो तो मनभाती है,
कुछ यादें बहुत रूलाती है।
मन के भावों अरू जीवन पे,
कुछ अमिट छाप रह जाती है॥
🍁
यादों को याद भले रखना,
यादों को सीख बना लेना।
पर मन पे हाबी हो जाए,
ऐसी यादों को भुला देना॥
🍁
पर बात नही आसा होती,
हर यादें भूल नही पाती।
जीवन के पथ पर बार-बार,
यादें रह-रह कर आ जाती॥
🍁
यह शेर की जो रचना होती,
सब यादें अरू स्मृतिया है।
कुछ खट्टी है कुछ मीठी है,
कुछ तेरी है कुछ मेरी है॥
🍁
ये यादों का साझा तुमसे,
जो शेर के मन मे संचित है।
उदगार मेरी यादों का है,
वो पढे जो इससे वंचित है।
🍁

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय.. विडंबना 
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''

विडंबना पर मत लिखवाओ, मै तो इसका मारा हूँ।
सुबह-सुबह की इक विडंबना, तुमको मै बतलाता हूँ।
****
चली गयी बिजली थी बाप घर, रात को लौट ना आयी।
रात कटी मच्छर के संग और, खूब बजायी ताली ।
****
बाथरूम मे घुसा तो नल मे, पानी ही ना आयी।
विडंबना थी बाप के घर से, बिजली जो ना आयी।
****
बोला अच्छी चाय पिला दो, बच्चो की महतारी।
दूध फट गया फ्रिज बन्द है, बिजली से मै हारी।
****
बिजली पर मै नही लिख रहा, विडंबना पर भाई।
शेर हृदय पर विडंबना है, बिजली ने नाच नचाई।
****
***
**
स्वरचित... Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

फागुन के दिन थोडे रह गये,
मन मे उडे उमँग ।
काम काज मे मन नही लागे,
चढा श्याम का रंग।
🍁
रंग बसन्ती, ढंग बसन्ती,
चाल बसन्ती छायो।
रोम-रोम भयो पुलकित मोरा, 
का करू समझ ना पायो।
🍁
रंग भंग की चाह उठे है,
पाँव मोरा लहराये।
श्याम सखी बन राधा नाचू,
मन तरंग भर जाये।
🍁
काम काज दिन, रोज ही होये,
जीवन दुख बन जाये।
फाग माह ही जीवन बन कर,
अमृत रस बरसाये।
🍁
बसन्त पंचमी लगा के सम्मत,
फागुन मास जलायो।
चैत मास के प्रथम दिवस पे,
होली खेलन जायो।
🍁
होठ गुलाबी, गाल गुलाबी, 
नैना गुलाबी लागे।
डगमग-डगमग चाल सखी तोरा,
मन जल तरंग बरसाये।
🍁
करके जोरा-जोरी मोहे, 
रंग लगा ले कोई।
खोट बिठा के मन मे ना,
होली खेले कोई।
🍁
नैनो से नैन मिला लो हमसे,
बिना पलक झपकाये।
जिसका पहले नैन झपक गये,
उसको रंग लगाये।
🍁
बरसाने की राधा नाचे,
नन्द गली का काँन्हा ।
शिव-शम्भू ने भंग चढा है,
होली खेले आजा।
🍁
काशी की होली मस्तानी
वृन्दावन मे गुलाल।
शेर के मन मे फाग जगा है,
जिसका रंग है लाल।
🍁
भावों को दबने ना देना,
मन के भाव निकाल।
शेर के रंग मे डूब सखी रे,
आओ खेले फाग।
🍁

जोगिरा सा रा रा रा रा
🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

विधा .. लघु कविता 
*************************
🍁
सुप्त हृदय मे पुनः प्रेम का,
अंकुर यू फूटा है।
वर्षो बाद वो बिछडा साथी,
रस्ते मे जो मिला है।
🍁
भूल चुका था जिसको मै वो,
सामने मेरे खडा था।
भाव मेरे निश्छल आखों से,
बरबस आ निकला था।
🍁
याद सुनहरे बन्द हृदय से,
बाहर आ निकला था।
भावो के मोती शब्दों को,
बाँधे मेरे खडा था।
🍁
कैसे कहे तुम्हे वो मंजर जो,
मैने वहाँ देखा था।
दोनो के आसू आँखो से,
अधरो तक पहुचा था।
🍁
गले लगा कर शेर ने उससे,
मन की बात कहाँ था।
याद सुनहरी अंकुर पर,
बरबस ही आ निकला था।
🍁@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

Sher Singh Sarraf
Sher Singh SarrafSher Singh SarrafSher Singh SarrafSher Singh Sarraf

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Sher Singh Sarraf

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Sher Singh Sarraf


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Sher Singh Sarraf


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Sher Singh Sarraf
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🍁
वो डोर से टूटी पतंग,
गिरती सी आसमान से।
जाने कहाँ ले जाएगी,
दुर्भाग्य या सौभाग्य से।
🍁
नन्ही कली सी वो पंतग,
बाँधा सा जिसको डोर से।
जा जी ले अपनी जिन्दगी,
थामा हूँ तेरी डोर को ।
🍁
आकाश मे उडने लगी,
निर्भीक वो लगने लगी।
बाबुल ने पकडा डोर है,
निश्चिन्त वो उडने लगी।
🍁
वो भूल करके जिन्दगी,
उन्मुक्त सी बहने लगी।
वो बादलो के पास थी,
वो डोर संग उडने लगी।
🍁
निश्चिन्त थी वो भाव से,
दुनिया के रीति-रिवाज से।
कुछ मनचले से थे पतंग,
भरने लगे उसे बाँह मे ।
🍁
पहले डरी फिर उड चडी,
विश्वास मे ऐसे पडी।
बाबुल ने खींचा डोर पर,
विश्वास से वो ठग गयी।
🍁
वो डोर से ही कट गयी,
जाने कहाँ पे वो गिरी।
कुछ ने तो थामा डोर पर,
कुछ को तो चिथडो मे मिली।
🍁
कविता मेरी ना पूर्ण है,
मन शेर कुछ अधीर है।
लिखना था डोरी/पंतग पे,
पर भाव ना परिपूर्ण है।
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विधा .. लघु कविता 
**********************
🍁
कागज के पन्नो पर लिख के, 
नाम तेरा मिटकाता हूँ।
मन को अपने मार के तुझसे,
प्यार किए मै जाता हूँ।
🍁
मेरी किस्मत मे ना तू है,
यादों का अब करना क्या।
जा तू खुश रह प्यार तेरा अब,
मेरा ना तो करना क्या।
🍁
मै भी जी लूगाँ तेरे बिन,
तुम खुश रहना मेरे बिन।
मेरी कविता तुझको अर्पित,
जीवन मेरा तेरे बिन।
🍁
हृदय अश्रु की धारा बहता,
शेर हृदय रोता हर पल।
कागज पे जो नाम है तेरा,
छिपा है मन के हर तल पर।

🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarra
f
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


विधा .. लघु कविता
***********************
🍁

गिले-शिकवे भुला करके, चलो मिलते है मुस्का के।
चलो मिलते है पहले से, हजारो गम भुला कर के।
🍁

पुराने पन्ने यादों के, जरा तुमको पलटना है।
सुनहरी यादे पलको मे से,आँखो मे झलकना है।
🍁

चलो फिर साथ चलते है, पुराने फिर वो रस्ते पे।
कि फिर खुल करके हँसते है, वो बाते याद कर-कर के।
🍁

खिलौने की उमर ना है, ना बालामन मे ही हम है।
चलो फिर साथ मिल करके, वो नटखट दोहराते है।
🍁

ये जीवन एक है मिलता, जो आधी और है बाकी।
रगडना क्यो भला साँसे भी, अपने साथ ना जाती।
🍁

तो कोशिश करके देखेगे, चलो अब मुस्कराते है।
ये कविता शेर की पढके, सभी शिकवे भुलाते है।
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


विधा .. लघु कविता 
************************
🍁
सत्य निष्ठा, श्रेष्ठता के द्वंद मे उलझा रहा।
काम ,तृष्णा मोह, के बन्धन मे ही उलझा रहा।
🍁
चाहतो की पूर्णता मे रात-दिन उलझा रहा।
सब हुआ आगे बढा इन्सान पीछे रह गया।
🍁
उम्र के लम्बे सफर के आखिर इस दौर मे।
सोचता हूँ मै अकेला क्या मिला क्या खो दिया।
🍁
चाहतो से पूर्ण रिश्ते वक्त ना था खो दिया।
कितने संगी शेर के थे बेखुदी मे खो दिया।
🍁
भावना मै शून्य होकर अपनो को ही खो दिया।
आदमी तो ठीक था इन्सान पर मै खो दिया।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


सुन्दर सी इक नार नवेली,
जब ससूराल पधारे।
लम्बी सी घुघँट वो डार के,
हौले पाँव वो डोले।
🍁
लाल चुनर धानी से घाघरो,
लजवती सी लागे।
पग पैजनीया रूनूर-झुनूर से,
मनभावन सी लागे।
🍁
पीहर को जब छोड के गोरी,
पिय संग हुई विदाई ।
लाज का घुघँट ओढे बहुरी,
सुख सौभाग्य ले आई।
🍁
सुन्दर से मुखडे को देख कर,
आँखे ही भर आई।
मात-पिता ने करी विदाई ,
शेर हृदय भर आई।
🍁
दो कुल को जोडे है बेटी,
कहना नही पराई।
बेटी जब घुघँट को ओढे,
दूजा कुल है बसाई।
🍁
जा पुत्री सौभाग्यवती भवः,
आँखे ही भर आई।
दो कुल की मर्यादा रखना,
शेर हृदय तर जाई।
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
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संत समागम हो रहा,
संगम तट के पास।
बारह वर्षो बाद लगा,
महाकुंम्भ प्रयाग।
🍁
दिव्य घाट अदभुद छंटा,
संगम नगरी का।
नागाओ का ऐसा संगम,
दिखता और कहाँ।
🍁
दूर-दूर से धर्मधिकारी,
आते रहे यहाँ।
जन प्रतिनीधियो का भी,
डेरा यहाँ लगा।
🍁
भारत की पहचान सदा ही,
संत समाज रहा।
शेर कहे कुछ को छोडो तो,
धर्म है संत समाज।
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
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छूट गया है कलम मेरा,
इस मोबाइल के चक्कर मे।
अब तो मै लिखता हूँ बस,
कलम नही अगुँठे से।
🍁
कागज के पन्नो ने अब तो,
शौर्य ही अपना ।
मनभावो का दर्पण बन,
मोबाइल ही अब उभरा।
🍁
पर मै तो हूँ कलमकार ही,
कलम से अपना नाता है।
शेर की रचना पन्नो पे हो,
मन को ये ही भाता है

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf 
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ऐ दर्द....
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ.....
खुशिया छोड चुका हूँ, गम निचोड चुका हूँ ।
आँखो मे तुमको भर कर, यही बात कहा है।
🍁
ऐ दर्द...
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ....

****
है राज बहुत गहरा, वो दिल मे समाया है।
सागर के मौजो मे भी, सन्नाटा सा छाया है।
खुशियो के भीड मे भी, अब तेरा सहारा है।
🍁
ऐ दर्द...
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ....

****
आँखे खुली रहेगी, सोऊँगा भला कैसे।
सपनो मे ना जो तू है, जीऊँगा भला कैसे।
हम याद तुम्हे हर पल, हर बार करेगे।
🍁
ऐ दर्द...
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ...

****
बिछडी हुई मोहब्बत , टूटा हुआ सहारा ।
कैसे कहे हम अपना, जो ना हुआ हमारा।
फिर भी हम उन्हे याद, दिन-रात किया है।
🍁
ऐ दर्द....
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ....

****
चढता ही जा रहा है, आँखो मे नशा मेरे ।
बढता ही जा रहा है , बेचैनी मेरे दिल मे ।
पागल नही हूँ पर वैसा ही, हाल हुआ है।
🍁
ऐ दर्द....
कुछ तो रहम कर , 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ....

****
लिखता ही जा रहा हूँ, रिसते हुए जख्म को।
शायद वो पढ सकेगी, हालात मेरे दिल के ।
कोशिश तो कर रहा हूँ , नाकाम हुआ है ।
🍁
ऐ दर्द....
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ....

****
पन्नो पे नाम लिख कर, तेरा फाड दे रहा हूँ।
रोते हुए भी खुद पे , हँसता ही जा रहा हूँ ।
तुझे भूलने की कोशिश , बार-बार किया है।
🍁
ऐ दर्द....
कुछ तो रहम कर, 
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ...

****
ये शेर की है कविता, भावों से जुडी बातें।
आसू नही थमे तो, शब्दों मे पिरो डाली ।
कहना ना चाहूँ फिर भी, दिल का हाल कहा है।
🍁
ऐ दर्द....
कुछ तो रहम कर,
मै तेरा रोज का ग्राहक हूँ.....

****
स्वरचित... Sher Singh Sarraf
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विधा .. लघु कविता 
**********************
🍁
🍁
इतना सरल भी नही है जीना,
तेरी यादों के सहारे।
कई रातें जग कर कटती मेरी,
तेरी यादों के सहारे।
🍁
🍁
यादों का झंझावर इतना,
जीवन कठिन हुआ है।
टेढी- मेढी सी पगदण्डी ,
चलना कठिन हुआ है।
🍁
🍁
फिर भी मै तो कुसुम पंथ जी,
चलता रहा निरन्तर हूँ।
जीवन मेरा सरल नही पर,
हँसता रहा तदन्तर हूँ।
🍁
🍁
भावों के मोती मे लिखता,
शेर हृदय का मंतर हूँ।
कविता क्या है भाव मेरे है,
ना ही कोई जन्तर हूँ ।
🍁
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf

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विधा .. लघु कविता 
*******************
🍁

मन बाँधो ना सुनो सखी,
तुम भाव को प्रवाह दो।
श्रीकृष्ण अरू राधा को देखो,
तब प्रेम को सराह दो।
🍁

गंगा सी निश्छलता रहे,
निर्मल तेरा सौभाग्य हो।
संगगामिनी मनभावनी,
सीता के जैसा त्याग हो।
🍁

माधुर्य हो वृन्दावनी,
भक्ति मे मीरा नाम हो।
रैदास हो रविदास हो,
भावों मे बस भगवान हो।
🍁

बहे काव्य की मंदाकिनी,
अमृत सी गुरू की बात है।
सुनो शेर की कविता सभी,
मनभावो का प्रवाह है।
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf


क्यो तलाश जिन्दगी की खत्म होती ही नही है।
क्यो प्यास मेरे मन की कभी बुझती ही नही है।
🍁

क्यो यादों की कुछ बातें मुझे भूलती नही है।
क्यो मन तडप रहा है यादें सम्हलती ही नही है।
🍁

क्या यादों के भँवर मे कोई बिछडा कही है।
क्यो आँखो मे नमी सी रहता हर सुबह है।
🍁

क्यो नींद नही आती मुझे इन सर्द रातों में।
क्या कहना मुझसे चाहें मन भटका के यादों में।
🍁

भावों मे बह ना जाए कही शेर सम्हालो।
बैरागी बन ना जाए मुझे यादों से निकालो।
🍁

कविता मे क्या लिखूँ मन मेरा कितना अधीर है।
बेचैन सी ये साँसे मेरी रूकती भी नही है।
🍁

है इन्तजार तेरा दिल को तेरी तलाश है।
मेरे भाव बह रहे है जो तू ना पास है।
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
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🍁
अजनबी से शहर मे मै, गाँव छोड के आया।
सपनो को सजाने मै, घर को छोड के आया।
🍁
मेरे गाँव मे पगदण्डी, यहाँ चौडी सडक है।
वहाँ बहती है पुरवायी, यहाँ धूल बहुत है।
🍁
मेरे गाँव का जो घर है उसका आँगन बडा है।
पर शहर मे ना आँगन, ना घर ही बडा है।
🍁
रिश्तो को समझना हो तो मेरे गाँव कभी आना।
इस शहर मे तो रिश्ते ना, मतलब ने सबको बाँधा।
🍁
फिर भी सबको छोड के मै, शहर को तेरे आया।
मन शेर का अभी भी, याद गाँव मे ही लागा।
🍁
..
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
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क्यो रूको हो अभी तक वही पे प्रिये,
रस्ता लम्बा अौर मंजिल बहुत दूर है।
सोचने से भला किसको क्या है मिला,
साथ चलते तो मंजिल नही दूर है।
🍁

बात मन मे तुम्हारे जो है बोल दो,
बन्द दरवाजे मन के सभी खोल दो।
मन मे पीडा बढेगी तुम्हारे अगर,
मन दुखेगा मेरा तुम हृदय खोल दो।
🍁

मान अभिमान मे सच के पहचान मे,
जिन्दगी बँध गयी झूठ के शान मे ।
वक्त लौटा नही जो गुजर जाता है,
क्यो खडे हो पकड टूटती शाख से ।
🍁 

जिन्दगी जंग है मन मे ही द्वंद है,
क्या सही क्या गलत ये मेरा प्रश्न है।
शेर की भावना शब्दों मे गढ दिया,
बात कहनी थी जो वो यही कह दिया।
🍁

तुम भी बोलो नही तो चलो साथ मे,
जिन्दगी ना ही रूकती सुनो ध्यान से।
अब चलो भी प्रिये बात तुम मान लो,
रस्ता लम्बा और मंजिल बहुत है। 
🍁

स्वरचित .. Sher singh sarraf

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विधा .. लघु कविता 
*******************
🍁

निश्चय ही ये भ्रम है मेरा,
उसके मन मे मै ही हूँ।
लेकिन ये लगता है जैसे,
उसके मन मे मै ना हूँ।
🍁

राते आँखो मे कटती है,
लेखन मै नैना जगती है।
सुबह सबेरे भी यादों मे,
हर पल तेरी राह तकती है।
🍁

दरवाजे पर बार-बार,
आँखे मेरी रूक जाती है।
शायद वो गुजरे इस रस्ते,
ऐसा एहसास कराती है।
🍁

भाव मेरे कुछ उथल-पुथल है,
संसित मन अधीर लगे।
शेर की कविता भ्रम सा लागे,
भाव नही स्पष्ट लगे
🍁

स्वरचित ... Sher singh sarraf
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विषय .. शूल
विधा .. दोहा
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🍁

फूल शूल काँटे भये, जीवन जिय जंजाल।
प्रीत बिना कैसे जिये, राधा मोहन श्याम।
🍁

राधा तरसे श्याम को, नैना बने ह मेघ।
वृन्दावन मे भटक रही, मन मे लेकर नेह।
🍁

मीरा बनके जोगिनी, हृदय बसे घनश्याम।
भावों मे है श्याम बसे, शेर के मन मे राम।
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
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गये थे जो कभी दिल से, वो वापस लौट आए है।
अतिथि बन कर पुनः यादों को, झिझोर लाए है।
🍁
कभी रहते थे वो दिल मे, अब उनकी यादें रहती है।
कभी वो थे हमारे पर अभी बस याद रहती है।
🍁
मिली इस उम्र मे बिछडी मोहब्बत, तुमसे क्या कहे।
खिजाँबी बाल है उनके तो अपने हाल क्या कहे।
🍁
मगर भावों के मोती फूट कर, बिखरें है राह पे।
ये मन की भावना है शेर के, जो निकले है आह से।

🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf

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विधा .. लघु कविता 
******************
🍁
बातें अब तेरी माई की, मुझको लागे तीर।
अबकी मुझको साथ मे ले चल, ओ ननदी के वीर।
🍁
तेरे बिन ना कटती राते, नैना बरसे नीर।
बात मेरी अब मान भी ले तू , ओ ननदी के वीर।
🍁
ताना मारे बहनें तेरी, सासू मारे तीर।
कहती हूँ मै सुन ना पाऊँ, ओ ननदी के वीर।
🍁
करते विचलित विरह से तन, कोमल मन अधीर।
बीत रहे सावन के पल भी, ओ ननदी के वीर।
🍁
शेर कहे मन कंम्पित मोरा, मन मे जागे पीर।
हाथ जोड विनती करू मै, ओ ननदी के वीर।
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf

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विषय .. बेटी/तनया
विधा .. लघु कविता 
**********************
🍁
अधनंगी चिथडो मे लिपटी,
वहाँ लाश पडी है कोई।
जाने किस निर्दयी ने लूटा,
बेटी पडी है कोई॥
🍁
छोटे से मासूम से मुँख पे,
दर्द अनेको होए।
बचपन भी ना बीता ना,
अस्मित ना जीवन होए॥
🍁

जाने किस पापी के मन मे,
पाप जगा है भाई।
नन्ही सी मासूम कली को,
रौंदा लाज ना आई॥
🍁
शेर कहे अन्तर्मन रोये,
इन्सान नही वो दानव।
छोटो सी बच्ची के दुख से,
इन्सानियत जगा ना मानव॥
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf

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विधा .. लघु कविता 
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🍁
रसवन्ती सी लजवन्ती सी,
सुन्दर सी इक नार।
कमल पंखुडी अधर खुले थे,
नैना तनिक विशाल॥
🍁
बलखाती सी इठलाती वो,
चले मोहिनी चाल।
बडे-बडो के कर्म बिगड गये,
नैना तीर कमान॥
🍁
मधुर कोकिला केशु घटा से,
स्वर्ण भस्म की ताप।
जो भी देखे विस्मृत हो वो,
ऐसी थी मुस्कान॥
🍁
क्या तुमने देखा है सच मे,
ऐसी सुन्दर नार।
शेर कहे वो स्वर्ग अप्सरा,
रम्भा जिसका नाम॥
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

नव भोर मे नव रश्मि ले,
नूतन सबेरा आया है।
नव वर्ष मे नव आस ले,
नव भास्कर फिर आया है॥
🍁
आनन्द मे हर एक कण है,
मन सृजन से भर आया है।
भावों के मोती छलक के,
कविता मे ही भर आया है॥
🍁
कविता के भावों मे मेरी,
फिर जोश सा भर आया है।
इस मंच के सब कवियो के,
अभिनन्दन मे शेर आया है॥
🍁
गत वर्ष के सब गलतीयों,
को माफ कर देना मेरे।
आलोचना समलोचना से,
प्राण भर देना मेरे॥
🍁
उत्कर्ष की इस कामना के
साथ सबको है नमन।
महफिल मेरा परिपूर्ण हो,
इस शेर मन से है नमन॥
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf



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🍁
खामोश जुँबा बेबस सी नजर,
खामोश मुझे तुम रहने दो।
इस भीड मे भी मै तँन्हा हूँ,
तँन्हा ही मुझे तुम रहने हो॥
🍁
गिरती हुई दीवारो की तरह,
नजरो से ना मेरे गिर जाओ।
चाहत का समुन्दर बहने दो,
खामोश मुझे तुम रहने दो॥
🍁
आँखो से ही पढ लेना चेहरा,
खामोश जुँबा को रहने दो।
आँखो को मिला कर आँखो से,
जज्बात का सागर बहने दो॥
🍁
खामोश जुँबा कर ली मैने,
कविता ही मुझे अब लिखने दो,
गर शेर हृदय को पढना है,
कविता ही उसे मेरा पढने दो॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
देवरिया उ0प्र0




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आओ दोनो साथ मिलके, मुस्काया जाए।

बिन माचिस के कुछ को, जलाया जाए॥
🍁
आग नही ये चाहत होगी,
औरो मे सुलगेगी ।
जाने कितने सुप्त हृदय मे,
प्रीत के दीप जलेगी ॥
🍁
आओ दीपो को जलाया जाए।
मन के अंधियारो को ,मिल मिटाया जाए।
🍁
आँखो मे मादकता झलके,
अधरो से झलकाये ।
कोई कुछ भी कह ना पाये,
ऐसी बात बनाये॥
🍁
आओ थोडा प्यार जताया जाए।
बिन बातों के बात बढाया जाए॥
🍁
शायद कुछ टूटे से दिल मे,
चाहत भर दे हम दोनो।
शर्म के तटबंधो को तोड के,
कुछ दिल जोडे हम दोनो॥
🍁
आओ भावों को भडकाया जाए।
पढने वालो मे भावना जगाया जाए॥
🍁
बिन बातो के मुस्काने से,
जीवन मे गति मिलती है।
शूल भरे से इस जीवन मे,
पुष्प अनेको खिलते है॥
🍁
आओ थोडा खिलखिलाया जाए।
इस प्रेम गली को मिल महकाया जाए॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf





@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 
🍁
नही भुलता माँ मुझको,
वो तेरा चेहरा प्यारा ।
तेरे जाने के बाद से ही,
मेरी दुनिया मे अंधियारा॥
🍁
अब ना कोई लोरी गाता,
ना कोई पास सुलाता ।
ना कोई मुझे गोद मे लेकर,
राजा कह कर बुलाता॥
🍁
सूना करके बचपन मेरा,
छोड दिया क्यो अकेला।
यादों मे तू साथ मेरे पर,
मै हूँ एक अकेला॥
🍁
बेबस सी आँखे मेरी अब,
हर ओर तलाशे तुझको।
सबकुछ मिल जाती है पर,
माँ नही मिलती मुझको॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

सुन्दर सी इक कल्पना ,
मोहिनी जस मुस्कान।
कमल पुष्प से नेत्र है,
भृकुटि लगे कमान ॥

**
मोहक सी गजगामिनी,
कटि फूलो की डाल ।
स्वर्ग की कोई अप्सरा,
स्वर्ण भस्म सी ताप ॥

**
शेर हृदय की कल्पना ,
उर्वशी इक नाम ।
रंम्भा हो या मेनका,
रति है स्वर्ग विलास॥

**
स्वरचित -- Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

🌴
हरा आवरण पृथ्वी का तुम,
उससे तो ना छिनो ।
आधुनिकता के दौड मे मानव,
पर्यावरण को ना छेडो॥
🌴
जंगल कटते पेड है रोते,
शुद्ध नही है वायु ।
पृथ्वी क्षरण की ओर बढी है,
नदियाँ बनी विषौली ॥
🌴
गर्म हो रही धरा निरन्तर ,
बढते कल-कारखाने ।
प्लास्टिक कार्बन के कचरो से,
भूमि बन रहा मरूवन॥
🌴
आओ मिल कर पेड लगाये ,
पृथ्वी मे हरियाली लाए।
आधुनिकता और पर्यावरण के,
बीच नया सायंजस्य बनाए॥
🌴
शेर कहे जब हरा हो हर घर,
पेड लगे पौधो का उपवन।
पर्यावरण की रक्षा होगी,
धरा रहेगा सुन्दर सुरवन ॥
🌴🎄🌴🎄🌴🎄🌴🎄

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 


********************
[ 1 ]
एक रूदन नन्हे बालक का,
करूणा मन मे लाया है।
झाडी के पीछे से शायद,
मुझको कोई बुलाता है ॥

**
जाकर देखा तो मेरा यह,
हृदय सन्न हो जाता है।
किस पत्थर दिल माता ने,
इस बालक को यू त्यागा है॥

**
रक्त से सने इस दुधमुहे को
किसी ने यहाँ पर छोडा है।
झाडी मे पत्थर के पीछे,
पत्थर दिल ने फेका है ॥

**
हृदय वेदना से भर बैठा,
किसने ये पाप किया है।
भीड बढी तो इक माता का,
ममता जाग उठा है ॥

**
सीने से वो लगा के शिशु को,
पागल बन कर चूमे ।
कितनो की आँखे भर आई,
तो पत्थर दिल भी रोई ।

**
भाग्य ने कैसा खेल दिखाया,
कहाँ से कहाँ ले आया ।
इक ने ममता त्याग दिया तो,
एक मे ममता जगा ॥

**
स्वरचित.. Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

🌻 
खीच लेना रक्त चन्दन,
मध्य मस्तक केन्द्र पर ।
लालिमा भर लेना अपने,
श्वेत नेत्रम कोण पर ॥
🌻
खींच लेना उस जिव्हा को,
बोले जो अपशब्द पर ।
मातृ गौरव क्षीर्ण ना हो ,
याद रखना तुम मगर ॥
🌻
धर-पकड उसको पटक कर,
छाती पर चढ जाना पर ।
शीश कटने से प्रथम,
मरना तू उसको मार कर ॥
🌻
वीर गौरव से भरा,
इतिहास भारत भूमि का।
मार कर मरते है जो,
गर्वित है हम उन वीर का॥
🌻
चीर कर उसके हृदय के,
रक्त से धोना धरा ।
मर के भी ना गिरने देना,
वीर भारत का ध्वँजा ॥
🌻
मान तुम सम्मान तुम हो,
देश के अभिमान तुम।
हम ऋणी है तुम मगर हो,
देश के ऋण उत्तर्णी ॥
🌻
🌻
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

वचन तोड के, प्रीत छोड के,
राधा को तँज श्याम चले ।
धर्म के पथ पे कर्म के रथ ,
मथुरा को श्रीनाथ चले ॥

**
निरखत द्वौ नयनो मे आँसू,
अधरो पर मुस्कान लिए ।
वचन तोड कर श्याम सखी रे,
वृन्दावन को त्याग चले ॥

**
शायद अब मिलना ना होगा,
प्रीत मे रीत का बन्धन होगा।
वचन निभाना होगा गिरधर,
अब से सबकुछ श्याम रहेगा ॥

**
आकर देखा वृन्दावन मे,
श्याम ही श्याम दिखते है।
वचनो मे बँध श्याम प्यारे,
राधा संग श्याम दिखते है॥

**
स्वरचित.. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

हिन्दी के सम्मान मे मित्रो ,
लिख लो कह लो आज ।
एक वर्ष के बाद पुनः फिर,
होगी इस पर बात ॥

**
बडे`बडे सम्मेलन होगे,
ढोल मंझीरे साथ ।
बडे-बडे बैनर पर होगा,
हिन्दी दिवस है आज॥

**
बोली जाती बहुत ही बोली,
भारत के सम्मान मे ।
पर हिन्दी को नही मिला जो,
दिखता है अब आज मे॥

**
नीति- नियन्ता वो भारत के,
किया है ऐसा काम ।
अंग्रेजी को शौर्य दिया अरू,
हिन्दी सिसके आज॥

**
मातृभूमि और जन भाषा का,
ना हो गर सम्मान।
शेर कहे कैसे समझेगे ,
नवपीढी ये बात ॥

हिन्दी के सम्मान मे मित्रो ,
लिख लो कह लो आज ।
एक वर्ष के बाद पुनः फिर,
होगी इस पर बात ॥

**
बडे`बडे सम्मेलन होगे,
ढोल मंझीरे साथ ।
बडे-बडे बैनर पर होगा,
हिन्दी दिवस है आज॥

**
बोली जाती बहुत ही बोली,
भारत के सम्मान मे ।
पर हिन्दी को नही मिला जो,
दिखता है अब आज मे॥

**
नीति- नियन्ता वो भारत के,
किया है ऐसा काम ।
अंग्रेजी को शौर्य दिया अरू,
हिन्दी सिसके आज॥

**
मातृभूमि और जन भाषा का,
ना हो गर सम्मान।
शेर कहे कैसे समझेगे ,
नवपीढी ये बात ॥


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
चूडियो को तोड कर, सिन्दूर माँथा पोछ कर।
वो सूर्ख मेहदी छोड कर, आया तिरंगा ओढ कर।
*
पग के महावर लाल थे, बेसुध से वो बेजान थे।
सब कस्में-वादें तोड कर, आया वो मुझको छोड कर।
*
सागर झलकता आँख मे, ज्वाला दिखे हर बात मे।
दुश्मन की गर्दन तोड कर, आया वो दुनिया छोड कर।
*
मरना कहे सब शान है, वह देश पर कुर्बान है।
रोकर कहे अब शेर ये, तू देश का सम्मान है।
*
मै भी कहूँ अब तू कह, बेवा नही तुम मान है ।
सम्पूर्ण भारत ये कहे, सिन्दूर तेरा अभिमान है।

*
स्वरचित.. Sher Singh Sarraf

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 

मन के तटबंधों को तोड कर,
प्रेम भावना निकली है ।
जाने कितने दिल तोडेगी,
निश्छल हो कर निकली है॥
****
सारी मर्यादा को तोड कर,
कल-कल छल-छल बहती है।
सागर से अब आन मिलेगी,
कलरव करते निकली है ॥
*****
वह विरह वेदन मे लिपटी,
सागर से मिलने निकली है।
वो श्याममयी सी श्याम सखा,
वो राधा बन कर निकली है॥
*****
मन के भावों को साथ लिए,
वो निर्मल निर्झर बहती है।
करे शेर उजागर प्रेम अधर,
वो मीरा बन कर निकली है॥
****
स्वरचित..
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 




••••••••••••••••••••••••••••••••••••

बादलो के पार उसका छोटा सा संसार है।

अनकही सी अनसुनी वो दिव्य सा संसार है॥

*

उसमे रहते है मेरे अपने जो अब ना पास है।

मेरी ''प्रीती'' भी छुपी है बादलो के पार में ॥
*
कौन देखा था उसे कब कौन जान पाया था।
जानने से पहले वो यमराज बनकर आया था॥
*
तोड के सारे ही बंधन आज ना वो पास है।
बादलो के पार उसका छोटा सा संसार है ॥
*
देखती रहना मुझे तुम अपना वादा याद कर।
मै भी ना तोडूँगा वादा बात पर विश्वास कर॥
*
बादलो के पार से तुम मेरा रस्ता देखना।
वादा पूरा करके अपना आऊगाँ मै भी वहाँ॥
*
फूल सा दिखता हृदय में काँटों का अरण्डय है।
शून्य है प्रारब्ध मेरा शून्य मेरा अन्त है।
*
शेर के तपते हृदय का, अनकहा सा सत्य है।
शून्य है प्रारम्भ मेरा , शून्य सा ही अन्त है ॥
*
स्वरचित... Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


विधा .. लघु कविता 
*********************
🍁🍁🍁
यादों ने दस्तक दिया है , 
आज मुझको बार-बार।
बीते दिन को याद कर मै, 
रो रहा हूँ जार-जार।
🍁🍁🍁
उफ्फ ये बातें बेरूखी की, 
अब हुई है बार-बार।
पर हृदय का जख्म मेरा, 
रिस रहा है लगातार।
🍁🍁🍁
भूलने की बात दिल ने, 
कर दिया है तार-तार।
प्यार दिल में ही रहेगा, 
अब ना होगी जीत-हार।
🍁🍁🍁
शेर के दिल की है दस्तक, 
तुम भी सुनलो मेरे यार।
कह सको तो कह दो कुछ, 
तुम दिल से जोडो दिल के तार।
🍁🍁🍁

स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


विधा .. लघु कविता 
**********************
🍁
लोकतंत्र का उत्सव कहते है जिसे चुनाव।
आओ सब मतदान करे चुने अच्छी सी सरकार॥
🍁
बडे-बडे वादें भी होगे भाषण सुबहो शाम।
नेताओ की नौटंकी से पकोगे जैसे आम॥
🍁
जात -पात की बात भी होगी भूली बिसरी बात।
चरण चटोरे बन जाएगे जिसे कहते हो नेता आप॥
🍁
जनता के निर्णय से बनेगी योग्य सफल सरकार।
शेर कहे तैयार रहो आ रहा 2019 का चुनाव॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मधुवन -मधुवन भटक रहा मन, भौरा बन ललचाए।
मधुरस का प्यासा हिय मेरा, प्रणय मिलन को चाहे ॥
🍁
कामदेव सम रूप धरा तब बोली प्रिय से प्रियतमा ।
क्यो अधराये साजना माटी का यह देह मेरा॥
🍁
जितना तुमको प्रीत है मेरी मोहिनी रूप से।
जीवन सफल होगा तेरा उतनी प्रीत जो राम से॥
🍁
बात हृदय को वेध कर जो निकली उस पार।
तुलसी बन लिख दी कथा राम चरित संसार॥
🍁
प्रणय तो भ्रम संसार का कामी को दिखता काम।
प्रणय साधना राम का शेर हृदय मे भगवान ॥
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

अन्तर्मन मे द्वंद बहुत है,
जाकर किसे दिखाये।
ढूँढ रहा हूँ ऐसा मन जो,
हृदय मेरा पढ पाये॥
🍁
भौतिकता का ओढ आवरण,
नित नये रूप दिखाये।
मै अज्ञानी अध्यात्म ना जाने,
छल से मन बहलाये॥
🍁
ढूँढ रहा नटवर नागर को,
मन मीरा बन नाचें।
जीवन के दूरूह सफर मे,
हरि ही लाज बचाए॥
🍁
जरा-मरण की साधना मे,
मन मेरा भटक रहा है।
शेर की विनती सुन लो भगवन,
मन क्यो तडप रहा है॥
🍁
स्वरचित.. sher singh sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

विधा.. लघु कविता 
*********************
🍁
ऐतबार का झरना मेरा,
सूख रहा है अब तो।
दिल ने इतना धोखा खाया,
डर लगता है अब तो॥
🍁
आँखो से टकराती आँखे,
मन मे प्रीत जगाती है।
पर मन मे किसके क्या है,
यह बात नही बतलाती है॥
🍁
ऐसे ही भावों के चलते,
कितने छल हो जाते है।
गैरो पर हो ऐतबार तो,
मुश्किल मे पड जाते है॥
🍁
शेर हृदय का भावुक मन,
हरदम ही छलनी होता है।
ऐतबार गैरो पर कर के,
मुश्किल जीना होता है ॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

विधा .. लघु कविता 
********************
🍁
निर्दयता को पार कर,
देते वो अन्जाम।
माँ के सामने बच्चो को,
करते रहे हलाल॥
🍁
जीवन जीव दूरूह हुआ,
ममता थी लाचार।
माँ बच्चो को मार कर,
जिव्हा का ले रहे स्वाद॥
🍁
मानव पर मै ना लिखूँगा,
इक पशु है लाचार।
लोग काटते खाते उसको,
बकरी मे भी जान ॥
🍁
तुम ही बोलो कविवर मित्रो
,
क्या उसमे है जीव नही।
ममता, आसू संतति सुख का,
क्या उसमे है भाव नही॥
🍁
ये कविता मेरी रचना है,
इसमे सोच मेरा दर्पण।
ममता का तो भाव सदा ही,
मानव पशु का एक सा है॥
🍁
शेर हृदय मे तीव्र वेदना,
मन को बहुत दुखाता है।
सडक किनारे खुलेआम जब,
कोई पशु काटा जाता है॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
कालजयी इक कविता की, रचना मे करने बैठा हूँ।
नायक खुद बनकर के प्रिय, नायिका मै तुमको कहता हूँ।
🍁
तुम्हे हाव-भाव अरू रूप- रंग का,अदभुद मिश्रण कहता है।
तुम प्रेम यामिनी सौन्दर्य श्री, मै बरबस विष सा दिखता हूँ।
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हे मृगनयनी ये अंत नही, पर भाव अनन्त प्रकाशित है।
इस भाव का केन्द्रित मन बरबस तुम पर ही आकर अंकित है।
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अदभुद है रूप समन्वित तेरा, तुम इस कविता की देवी हो।
है प्रिय-प्रवास अभ्यारण तेरा, जिसमे तुम निच्छल रहती हो।
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स्वरचित... Sher Singh Sarraf

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शैली.. लघु कविता 
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श्रीकृष्ण के धाम मे गोवर्धन,
गिरिराज गिरी इक नाम ।
माधव ने उसे उठाया था,
बालक थे जब घनश्याम ॥
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सात कोश मे फैला है ये,
पर्वत बडा महान ।
कनिष्ठका पे श्रीनाथ के,
तिनके सा सम भान॥
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जीवन मे इक बार तो आकर,
देखो कृष्ण का धाम।
दान घाट से शुरू करो,
अरू गोविन्द घाट आराम॥
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राधा कुंड का निर्मल जल,
इक कुसुम सरोवर नाम।
मानसी गंगा, आन्यौर अरू,
पूंछरी लोटा धाम ॥
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दीपावली को दीपो की माला,
से चमके है गिरिराज।
सुरभि गाय ऐरावत हाथी के,
जिस पर पद चिन्ह भी आज।
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श्याम सलोने की ब्रजभूमि,
निर्मल है संसार।
शेर कहे यदि समय मिले तो,
तुम भी आओ ब्रजधाम॥
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स्वSher Singh Sarraf Sarraf

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शैली.. लघु कविता 
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उसके दिल तक मेरे दिल की,
बात कोई पहुचा दो।
यादों मे मन भटक रहा है, 
उसको ये बतला दो॥
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कंम्पित होने लगता है,
आवाज शून्य हो जाता है।
चाह के भी मन क्यो मेरा,
आवाज नही दे पाता है॥
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क्या अपना वो प्रीत पुराना,
सुप्त हो गया है सच मे।
या दुनियादारी मे प्रिय तुम,
भूल गये मुझको सच मे॥
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ना तुमने आवाज लगायी,
ना मैने तुमको ढूँढा ।
प्रेम नही था शायद हम में,
शेर के मन का था धोखा॥

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स्वरचित .. Sher Singh Sarraf


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विधा.. लघु कविता 
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कैसे कहना है मुझको,
ये बात समझ ना आए।
शब्द तो आते है होठो पे,
पर बात निकल ना पाए॥
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शर्म के तटबंधो को तोडूं,
दिल की बात बताऊ ।
प्रणय मिलन की बाते प्रियतम,
मन मे रोक ना पाऊ॥
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ऋतुओ ने ली है आलिग्न,
शरद ने भाव जगाए।
बिन बोले मन भाव समझ लो,
लाज मुझे अब आए॥
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भावों के मोती से भरे मन,
झलकत मोरा जाए।
शेर कहे ये ऋतु है पिय की,
मन मे प्रीत जगाए॥
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स्वरचित... Sher Singh Sarraf
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1 comment:

  1. मैने इतनी कविताएं लिख दी है... विश्वास नही होता

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"अंदाज"05मई2020

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