Saturday, February 29

"परीक्षा"28फ़रवरी 2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-670
विषय परीक्षा
विधा काव्य

28 फरवरी 2020,शुक्रवार

राम लक्ष्मण वन वन भटके
नियति नित नव लेती परीक्षा।
जनक नंदिनी माता सीता को
देनी पड़ी ,अंत अग्नि परीक्षा।

जन्म से ले ,मरणासन तक
पल पल काल परीक्षा लेता।
जिसकी जैसी करनी जग में
वैसा ही परमात्मा फल देता।

निज कर्मो की होती परीक्षा
सोच समझ कदम बढाओ।
जीवन यह संघर्षो का मेला
सत्य दयामय इसे सजाओ।

क्या लाये, जग क्या ले जावें
अहम भाव रत क्यों रहते हो?
जीवन कड़ी परीक्षा जगति में
क्यों भावों में, मिल बहते हो?

माना जीवन है कड़ी परीक्षा
सदपरिणाम हेतु कुछ करलो।
पुनः पुनः नहीं मिलता जीवन
परोपकार के पथ पर चललो।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
28 /2 /2020
बिषय, परीक्षा

आ गया परीक्षा का मौसम
बिद्यार्थियों का डोल रहा मन
बहुत कठिन ए परीक्षा की घड़ी है
सिर पर मुशीबत आन पड़ी है
कोई राम को मनाते कोई हनुमान
कोई माँ सरस्वती कोई कृष्ण भगवान
पढ़ने वाले सदा ही अगाड़ी
लापरवाह होते अनाड़ी
मेहनत का फल मीठा होता है
पढ़ने वाला रात रातभर न सोता है
पढ़ेंगे लिखेंगे बनेंगे नबाव
खेलेंगे कूदेंगे होंगे खराब
यही भावी पीढ़ी भारत के निर्माता हैं
कुछ सार्थक कर दिखाऐंगे
जो देश के भाग्यबिधाता हैं
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
तिथि -28/2/2020/शुक्रवार
विषय-*परीक्षा*

छंदमुक्त

आज असली परीक्षा की घड़ी है,
चहुंओर आग जल रही है।
बुझाएं या जलाएं कुछ सोचो जरा,
अभी बहुत आंधियां चल रही हैं।
घर द्वार आंगन
मकान जल रहे हैं
पड़ोसी ही पड़ोसी के दुश्मन बन रहे हैं
लहूलुहान हो रहा देश अपना
लोग कैसी परीक्षा दे रहे हैं।
मानवीयता मर गई है
इन्सानियत कहीं रो रही है
सुबक रहे सभी धर्माबलंवी
लाशें परीक्षा फल पूछ रही हैं।
किसने सुलगाई आग बताओ
नफ़रत के भाषण अबतक दिलाओ
दूर बैठकर ये तमाशा देख रहे
परीक्षा ये हमारे सब्र की ले रहे
अब भी नहीं समझ पा रहे कोई
लाख कोशिशों के बाद भी
क्यों यहां शहर
और गली मोहल्ले जल रहे।
संभल जाओ कुछ तो शर्म खाओ
वेशरम अपनी सुसंस्कृति दुनिया से
ईमान को मत जलाओ।
लड़ाई लड़ना है तो सरहद पर लड़ो
अपना दम खम वैरी को दिखाओ
जिसका खा पी रहे,
उस वतन पर सबकुछ लुटाओ।
इस असल परीक्षा में
सफल होकर दिखाओ।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
दिनांक-28/02/2020
विषय-परीक्षा


पथ का साथी डरती है परीक्षा के
........ अविचल मन से

डरती हूं मैं बिकल कली
नग्न तंतु के काया से।
कहीं मैं तेरे उपवन से
छिन्न भिन्न ना हो जाऊं।।
पवन स्पर्श काँपते है मेरे
तेरे इस पुलकित माया से।।
जीवन की इस बीणा में
व्यंग बाण की पीड़ा में।
अश्रु धार की क्रीड़ा में।।
लाज ,कुल ,मान, शील
ज्ञान, अज्ञान होगा।
उच्च प्राचीर महलों का
बारंबार अपमान होगा।।
अग्नि परीक्षा देना होगा

व्यर्थ का अभिमान होगा।
मैं सीता नहीं बन पाऊंगी
नारी जगत तेरा सम्मान होगा।।

भले ही तेरे सौंदर्य के बंधन
क्यों ना स्वर्गीय हो..........

स्वरचित

सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
दिनांक- 28/02/2020
दिन - शुक्रवार

विषय -परीक्षा
विधा - दोहा छंद

१)
देख परीक्षा पास में,फूली है अब सांस।
बिन श्रम के कैसे मिलें,बोलो नम्बर खास।।

२)
समय प्रबंधन जो करे,कुशल वही है छात्र।
हर परीक्षा पास करे,बनता है सद पात्र।।

३)
संकट में जो साथ दे ,वो है सच्चा मीत।
परीक्षा में डटा रहे ,करे निस्वार्थ प्रीत।।

४)
जग जीवन है समर सम,छोड़ो मत मैदान।
डट के करो मुकाबला,इसे परीक्षा जान।।

५)
गुरु ज्ञानी होता वही,जिसमें होता धीर।
ले परीक्षा शिष्यों की,होता नहीं अधीर।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
28/02/2020:: शुक्रवार
विषय-- परीक्षा


देखकर हालात बेबस आँसू बहाता अमन है
रक्त रंजित सी धरा है सहमा हुआ ये गगन है
।।

पेट्रोल बम की बारिशें, पत्थरों की ओलावृष्टि
बाढ़ में दंगाइयों की, हो रहा सबकुछ दहन है।।

इंसानियत के दुश्मनों, क्यूँ खार ऐसे बो रहे
है नहीं मालूम तेरा क्यूँकर हुआ आगमन है।।

दीवार मज़हब की खड़ी,तुम कर रहे ये मान लो
धर्म-ग्रन्थों ने दिया वो, प्रेम का प्यारा वचन है।।

अब परीक्षा की घड़ी में, हो खड़े सब साथ मिलकर
हिन्द के इन दुश्मनों को, दो दिखा अपना चमन है।।

मदमस्त होकर घूमते, ये टिड्डियों के दल बनें
कुछ कभी इनका न बिगड़ा, हो रहा अपना पतन है

चंद ही जयचंद बैठे, तोड़ दो मनसूबे सुनो
साथ ले फिरते हमेशा,ये हमारा ही कफ़न है।।

रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
28/02/20
परीक्षा

**
मुक्तक

भूत परीक्षा का चढ़ा,बच्चे विह्वल आज,
होड़ अंक की जब लगे,गिरती है तब गाज।
मातु पिता तुलना करें ,लेते छात्र तनाव ,
ऐसी हरकत मत करें,खुजली होती खाज ।

मस्ती पूरे वर्ष की ,डूबता अब जहाज ,
पछताने से क्या मिले, ढूँढ़ो सही इलाज।
पढ़ा पाठ जो ध्यान से, कार्य हुआ आसान,
नित नियमित अध्ययन ही,बने सफलता राज ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

परीक्षा काल निकट आया
सबका चैन उसने चुराया ।
कहानी घर घर की हुई
तू दिन भर क्या करता है ?
राजू देखो कितना पढ़ता है
उससे नंबर कम आये
तो मोबाइल तुम नही पाये ।
ऐसी बातें घर घर की
बच्चे पाते ज्यादा भाव
नहीं रखते कोई अभाव
सँग में देते ये तनाव
दूध बादाम तुम खा लो
प्रतियोगिता में दौड़ लगा लो
सबसे आगे रहना है
कम से कम सत्तानवे तो करना है ।
दिन वो जब शुभ आया
परीक्षा कक्ष में खुद को पाया
देख कर पेपर सिर चकराया
गणित के सवालों ने घुमाया
भौतिक के सिद्धांतों में उलझे
कहीं रासायनिक समीकरण गड़बड़ाया
सबकी महत्वाकांक्षाओं ने सिर उठाया ।
हक्का बक्का वो खड़ा हुआ
अवसादों में घिरा हुआ
जीने से आसान मौत लगी
उसे प्यार से गले लगाया
और सन्नाटा ....अंधकार
अखबार की सुर्खी बनी
एक प्रश्नचिन्ह
समाज के माथे बना गया
दोष कहाँ
शिक्षा व्यवस्था में या
परीक्षा प्रणाली में
प्रतिस्पर्धा या
प्रतिद्वंदिता में
शिक्षक के पठन पाठन में
या छात्र के मानसिक स्तर में
मां पिता के उम्मीदों में
कारण जो भी रहा
जिंदगी टूटती है
और यदि ये भार सहन नहीं
तो जीवन में कदम कदम पर परीक्षा
उसका क्या ?

अनिता सुधीर
परीक्षा (हास्य)

गुजर रहा
हर पल
परीक्षा में
शादी के बाद

मस्त थे
मौज में थे
जब थे अकेले
सोना उठना
घुमना गाना
सब था मनमौजी

टकरा गयी निगाहे
आँखें हुई चार
मचला मन
दिल बेकरार

भोली भाली
नीची आँखे
हिरणी सी चंचल
कर ली शादी
एक बार

अब तो
डर सा बैठा है
दिल में
पूछताछ से
हैं परेशान
देते देते 24 घंटे
स्पष्टीकरण
हैं हम हैरान
गये मिलने किससे ?
गये कहाँ थे ?
गये क्यो थे ?
देते देते जबाब
अब तो
हर क्षण
एक परीक्षा है

गड़बड़ाये कहीं
उत्तर हमारे
मासाब से
तेज पड़े छड़ी
बीबी की हमारे

याद रहता
अब तो
"जिन्दगी एक
परीक्षा है
हर क्षण हर पल
जिन्दगी एक
पहेली है"

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

तिथि- 28 02/2020
दिन - शुक्रवार

विषय - परीक्षा
विधा- गीतिका

1. हमने दर्द को सहा, कभी आँसू भी पिया है,
कभी किसी का दर्द लेकर भी जिया है ।
सांसो पर बोझ मन में उदासी है ।
मर कर भी नहीं मरती, मौन अपना साथी है।
ये कैसी कठिन परीक्षा की बारी है !!

2. कभी बंद पलकें, खुली आँखो में सपने हैं।
कभी जीत की कसक , कभी हार भी अपने हैं।
हमने हर बाज़ी जीत कर हारी है !
ये कैसी कठिन परीक्षा की बारी है!!

3. चल रहा मन में जो युद्ध है।
वो चुनौतियों का समुद्र है ।
निःशब्द आवाज़ सीने में दबा रखी है ।
ये कैसी कठिन परीक्षा की बारी है!!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
विषय-परीक्षा।स्वरचित।
परीक्षा-कक्ष का दृश्य

*********************************
आगे-पीछे ,दायें-बाये
हिल-डुल रहे है
विद्यार्थी परीक्षा दे रहे है।।

सभी इन्द्रियाँ उनकी
सजग,सतर्क हो गयी हैँ
सभी से दो सौ प्रतिशत
काम लेने की कोशिश कर रहे है।
विद्यार्थी परीक्षा दे रहे है।।

इस वक्त वो छात्र,जो कक्षा में
कभी सुनते (अध्यापक को) नहीं थे
देखते(किताब एवं बोर्ड) नहीं थे
बोलते (उत्तरों को) नहीं थे
यानि कि गान्धीजी के बन्दरो जैसे थे।।
फर्क इतना था कि-
इन्हे बुरे के बजाय अच्छा
देखना ,सुनना ,बोलना भाता नहीं था।
अध्यापक का पढाया
सर के ऊपर से गुजर जाता था।।
दिमाग का दरवाजा
बन्द कर रखा था
वे सब तीनों बन्दरों के
उलट व्यवहार कर रहे है।
विद्यार्थी परीक्षा दे रहे है।।

आज परीक्षा-कक्ष में
सबसे आगे बैठे को भी
सबसे पीछे वाले के बुदबुदाते
अस्फुट शब्द सुनाई दे जाते हैं।
दस-पन्द्रह फीट की दूरी से
भी अक्षर दिख जाते हैं।
जिन्हे आता नहीं था कुछ
वो भी बताने लग जाते है।
अब तो बन्द दिमाग के
दरवाजे भी खुल जाते हैं।
तेज हो जाती है धार
मस्तिष्क की,जंग हट जाती है।
उसमें से समझदारी के घोङे
सरपट दौङ लगा रहे है।
विद्यार्थी परीक्षा दे रहे है।।
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
दिनांक-28/02/2020
विषय-परीक्षा

जोड़ चुकी मैं तुझसे नाता
जय हो कन्हैया लाल की
जय हो जय हो जयति जय हो
राधा वल्लभ सरकार की।।

न लेना प्रभु और #परीक्षा
हम पापी इंसान हैं
पाप किया जो दुनिया में
तुमको सब संज्ञान है।।

तुम निर्गुण ब्रम्ह निराकार
मन बसे राधा रमण सरकार
नैया पार करा दो भव से
कर दो बिहारी एक उपकार।।

द्वार ठाड़ी मैं तिहारे
मनवा बस झांकी निहारे
दे दो दर्शन श्री कृष्णाय
ऊँ नमो नारायणाय।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)

विषय - परीक्षा

है परीक्षा की घड़ी आज भारत के लिए।
जाने कितने प्रश्न अनुत्तरित है घेरे में लिए।

कौन थे जो जल रहे जला रहे वो कौन थे?
चला रहे बम बंदूकें गोलियां वो कौन थे?
किस लिए है जला दिल्ली हमारी राजधानी?
बेरहम थे कौन और बेकसूर कौन थे?
कौन जवाबदेह है इन दंगों के लिए?
जाने कितने प्रश्न अनुत्तरित है घेरे में लिए?

राजनीति में सारी पार्टियां मशगूल है।
आम जनता मर रही सड़क पे बिखरा खून है।
क्या हैं ये डरे हुए या जिहादी जुनून है?
धर्म का चोला पहनते वतन जलाने के लिए।
जाने कितने प्रश्न अनुत्तरित है घेरे में लिए।

कायराना हरकतों का मुंहतोड़ जवाब कौन दे?
जहर उगलते अब जुबां को क्यूँ भला छोड़ दें?
दिल्ली की गद्दी में शासकों अब कब जगोगे? या तो मैले साफ कर या फिर गद्दी छोड़ दे।
ढूंढता फिर रहा हूँ इन जवाबों के लिए।
जाने कितने प्रश्न अनुत्तरित है घेरे में लिए।


स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
विषय- परीक्षा
ईश्वर ने हर कदम पर

मेरी परीक्षा ली है।
पास होती रहूंगी मैं मगर
मैंने कसम ली है।।
जीवन की किताब को
मैंने अच्छे-से पढ़ लिया है।
कहीं से भी प्रश्न आए
मुझे नहीं कोई परवा है।।
आंसू आने पर मुस्काने का
हूनर मैंने सीख लिया है।
बाधा से दो दो हाथ करना
अब तो मैंने जान लिया है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

दिनांक 28/02/ 2020
विषय -परीक्षा।


हर युग में नारी ही क्यों?
देती आयी अग्नि परीक्षा
पथ पर पग रखने से डरती
सहमी -सहमी सी रहती क्यों?

हृदय विहल तो होता है,
पर मुख से कुछ न निकलता है।
भयभीत आशंकित रहती ,
फिर भी चलती ही रहती है।

इस धरा पर सीता भी क्यों?
न बच पाई अग्निपरीक्षा से
समय काल कलवित होगा
हर नारी है इसी प्रतीक्षा में।

चिंगारी बन धधकी ज्वाला,
वह समय जल्द ही आने वाला
अब अग्निपरीक्षा न देगी
न अब कोई होगा लेने वाला ।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
28/2/2020/शुक्रवार
विषय-*परीक्षा*

विधा-काव्य

कितनी और परीक्षा लेगा हम सबकी भगवान।
बहुत परेशान यहां आपके सारे ही इनसान।
कदाचार दुराचार करते निशदिन मारामारी,
ऐसा लगता जैसे भारत में घुस गए शैतान।

सूख रहे सबके चेहरे नहीं बोलते बनता।
क्या सुनाऐं हम व्यथाऐं नहीं कोई भी सुनता।
मारकाट आगजनी होती कैसे बच पाएं,
जयचंदो का मकड़जाल तो तानेबाने बुनता।

सहनशीलता खत्म करें परीक्षा की तैयारी।
हुऐ बहुत लाचार सभी हम मजबूरी लाचारी।
भारत मां को बांट रहे जो कैसे भारतवासी,
आग लगाकर जता रहे क्या इनकी महिमा न्यारी।

कितने अंग और काटना एकबार कट जाने दो।
अब न बजे रोज बांसुरी एकबार फट जाने दो।
हरामखोर जो पले हुऐ ढूंढो उनके गांव,
भगाओ इन्हें कहीं अब आरपार खट जाने दो।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
विषय-परीक्षा
दिनांक २८-२-२०२०


जिंदगी हर कदम,परीक्षा मैंने दी।
कभी अपनों ने,कभी गैरों ने ली।

हर कदम रखती थी,सोच समझ।
फिर भी कमी,लोगों ने निकाली।

पर हिम्मत ना, आज तक हारी।
हर परीक्षा लिए,पूर्ण तैयारी की।

कैसे विश्वास करु,उलझन रही।
शेर जगह आजकल,गीदड़ ली।

नभ चीर,अंबर से आई आवाज।
प्रभु आवाज, जिंदगी गुजार ली।

समस्या समाधान,खुद ने ढूंढ ली।
साथ ना दिया,जगह गैरों ने ली।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
शीर्षक- परीक्षा
सादर मंच को समर्पित -


🍑🌲🌻 बाल कविता 🌻🌲🍑
**************************************
🍀🍀🍀🍀-🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

उठें परीक्षा सिर पर आई।
कर लें जमकर रोज पढाई।।

पाठ सभी दुहराने होंगे ,
रट कर स्वयं सुनाने होंगे ।
कर अभ्यास गणित आ जाये ,
पढ़ व्याकरण हमें भा जाये ।।

आलस की छुट्टी है भाई ।
इसी में हम सबकी भलाई ।।

थोडा़- थोडा़ याद करेंगे ,
मन में खूब प्रश्न भर लेंगे ।
रटने से कब काम चलेगा ,
मनन करेंगे , उचित रहेगा।।

बार-बार दुहराना होगा ।
याद रहे, यह करना होगा ।।

हमें लेख भी लिखना होगा ,
ध्यान समय का रखना होगा ।
प्रश्नपत्र सब हल करना है ,
हमको अब्बल ही होना है।।

सो कर जल्दी सुबह उठेंगे ।
चलो पढा़ई बहुत करेंगे ।।

🌹🍀🌻🍑

🍓 🐓🐤 🏆🎖***/ ....रवीन्द्र वर्मा आगरा
दिनांक २८/२/२०२०
शीर्षक-परीक्षा


सहजता से जीने के लिए
देनी पड़ती कई परीक्षा
आगामी पल है कौन सी परीक्षा
यह है प्रभु की इच्छा।

माता पिता के धर्य का ना ले परीक्षा
यथासंभव करे उनकी सेवा
सौम्य व्यवहार हो उनके साथ
सभी परीक्षा होगें पास।

समीक्षा करें अपने कर्मों का
करे आलोचना ना दूसरे का
अनुपम है ये जीवन हमारा
चिंतामणि बन ना करें गुजारा।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

28/02/2020
विषय"परीक्षा"
हर घड़ी लेती परीक्षा, प्रश्न है यह जिंदगी...
कामना के जाल में, जंजाल सी यह जिंदगी...
आंँख में सागर छुपाए, मुस्कुराती जिंदगी...
फैलता जब मन! समेटे, बन्दिनी सी जिंदगी...
घाव गहरे हैं मिले, तलवार सी यह ज़िंदगी...
तैरने आता नहीं, मझधार सी यह जिंदगी...
फूल पाने की फिकर में, शूल सी यह जिंदगी...
स्वप्न होंगे सच सभी, इस झूठ में यह जिंदगी...
अतृप्त हीं प्यासी, फिसलती रेत सी यह जिंदगी...
जी सकूँ!यह जंग जारी, हार जाती जिंदगी...
ढ़ो रही है लाश अपनी, क्या बला है जिंदगी...

स्वरचित "पथिक रचना"

विषय परीक्षा
विधा छंदमुक्त


परीक्षा

यात्रा के हर पड़ाव पर
परीक्षा की आँच में तप
जीवन होता कुंदन
चाहे अग्निपरीक्षा नारी की
नर भी आचँ पाता
और तपती राह पर
हाथ पकड़ जो आगे बढ़ जाता
जीवन होता कुंदन ।

बचपन से यौवन तक
परीक्षाओं की सतत यात्रा
मनुष्य को रखती
सजग सचेत
सुन न पाते जो
अंतरात्मा की धुन
और परीक्षाओं से कतराते
मुर्दा हुए शरीर में
जीने का स्वांग करते
कभी नहीं उनका
जीवन होता कुंदन ।

सदा चले परीक्षा
मन सांसों के साथ
खुद शिक्षक स्वयं प्रशिक्षक
मन ही सुनाएं परिणाम
शुभ चिंतन कर पाए
वहीं मानव कहलाए
यात्रा के हर पड़ाव पर
परीक्षा की हर आचँ में तप
जीवन होता कुंदन

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...