Thursday, February 13

"शक/संदेह13फरवरी2020

ब्लॉग की रचनाएँसर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-655
संदेह

नारी तेरे देह से,

जब खत्म हुवा मोह ၊
तब किया हमने,
तुझ पर संदेह ၊
संदेह आते ही,
हुवा बंदिशों का,
खेल शुरु ၊
हम पीने लगे दारु ၊
दारु की नशा में,
होते गये सराबोर ၊
हँसते-खेलते जीवन को,
समझने लगे बोर ၊
तेरी हँसी, तेरी गपशप,
तेरा मुस्कराना, तेरा चलना,
सब ले जाता, संदेह की ओर ၊
संदेह जब गहराता गया,
जलाने लगे तेरी कोमल काया ၊
खत्म हो गया, इन्सानी प्यार ၊
मुक दर्शक लकड़ी,
बनी हथियार ၊
हथियार की मार से,
रात भर तू अकड़ी ၊
फिर भी जी नहीं भरा,
तो जंजीरों में जकड़ी ၊
मासुम बच्चे,
तुझे देखकर रोऐ ၊
तु उन्हे, देखकर रोऐ ၊
हम जो चादर,
तानकर सोये ၊
सुबह हम बेख़बर ,
छोड़ गये तेरा प्राण,
तेरा शरीर नश्वर ၊
इन्सानी समाज को,
इसकी है, खबर ၊
उन्हे है,
"पती- पत्नी"
रिश्ते का ड़र ၊
हम जो तेरी,
चिता पर ၊
संवेदना के चार आँसु रोऐ ၊
फिर संदेह की दुनिया में खोऐ..
फिर संदेह की दुनिया में खोऐ.၊

प्रदीप सहारे

नमन भावों के मोती
विषय - शक/संदेह

प्रथम प्रस्तुति

अच्छे खासे बने रिश्ते बिखर गए
अपने अपने नही रहे मुकर गए।
शक से कुछ न मिला दिल प्यार जीतो
वक्त वक्त की बात है इंसा सँवर गए।

कमजोर दिल रखकर हम नुकसान किये
नकारात्मकता का मानो मान किये।
नकारात्मकता से क्या मिले जीते वो
जो सकारात्मकता का सम्मान किये।

जिसको जो करना है वो करता है
खामियाजा भी इक दिन वो भरता है।
सच पर अडिग रहो भले ही बदले जग
सच वाला इक दिन जरूर संवरता है।

भूलें करना इंसान का स्वभाव है
विचारों में होता सदा बदलाव है।
झूठ वाला इक दिन लौट के आय है
अच्छे बुरे वक्त का होय प्रभाव है।

हर गुण की परीक्षा यहाँ होती है
धैर्य बिन किसकी आँख न रोती है।
राम सा धैर्यवान न जग में 'शिवम'
विशाल हृदय महानता सँजोती है।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 13/02/2020

विषय शक,संदेह
विधा काव्य

13 फरवरी 2020,गुरुवार

शक कारण ही जनक सुता ने
अग्नि परीक्षा दी राघव को।
गरल बेल बढ़ती मानस नित
किया अचंबित श्री माधव को।

सन्देहों के नित चौराहे पर
रोज बलि चढ़ती अबला की।
शक जीवन नारकीय बनता
हर पल जीवे नित विपदा की।

विषवेल फ़ैली है शक की
नर नारी सब यँहा दुःखी हैं।
जग में संदेहों के कारण ही
विश्वधरा जग नहीं सुखी है।

अविश्वासी शक की सूई
नित विलोम चले जीवन में।
सावन में यह आग लगादे
विपदा वर्षा करे मधुवन में।

जीवन का आधार है विश्वास
जीवन उपवन खिलता रहता।
स्नेह समर्पण प्रिय भावों से
जीवन निर्झर झर झर झरता।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

शक/संदेह
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।


शक का कीड़ा ऐसा है,
जिसके जीवन में यह लग जाए।

सारे जहां की खुशियां हों पास उसके,
पर मन को कहीं चैन नहीं आये।

जब कुछ हो आंखों देखी,
तब उसपर संदेह करो।

वरना बेकार में शक करके,
इस जीवन को मत नर्क करो।

ईश्वर ने जन्म दिया हमें,
तो बेकार क्यों करें हम।

व्यर्थ की बातों को सोचकर,
जीते जी क्यों मरें हम।

अपने मन को,
ईश्वर साधना में लगाओ।

पूजा, अर्चना करते रहो,
झूठे संदेह नहीं मन में लाओ।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय- संदेह
विधा- हाईकु

तिथि-013/2/20
1
शक का चोला
पहनता इंसान
बिखरे रिश्ते
2
शक के तार
बिखरता संसार
बुनते जाल
3
शक के तीर
रिश्ते लहुलुहान
दिल घायल
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त

नमन भावों के मोती मंच
13/02/2020

विषय- संदेह
प्रथम प्रस्तुति
*******************************

शीर्षक- फलेच्छा
------------
प्रयत्न संग साधन भी हैं,
है जोश और हिम्मत भी है,
फिर क्यों विजय हो रही है निष्फल?
है क्यों हर प्रयास भी विफल?

एक सपना था जो वर्षों से सजा,
जिसके लिये हर सुख है तजा,
उस एकमात्र के लिए
संगी साथी भी छूटे प्रतिपल,
फिर क्यों विजय हो रही है निष्फल?
है क्यों हर प्रयास भी विफल?

दिखती नहीं वह एक कमी,
जिस कारण से प्रगति है थमी,
संदेह से मन में बसी है हलचल,
फिर क्यों विजय हो रही ‌है निष्फल?
है क्यों हर प्रयास भी विफल?

लगता है कि फलेच्छा ने
मुझको भम्रित है किया,
संदेह से मेरे मन को
शोषित है किया,
मंजिल की आशा में
राहें हो गईं उथल पुथल,
तभी विजय भी हो गई है निष्फल,
हर प्रयास भी हो रहा है विफल।

-निधि सहगल
स्वरचित
13/2 /2020
बिषय,, शक संदेह

रुप अनेक हैं तेरे नारी
एक तू ही सब भारी
जग में तूने परचम लहराया
असंभव को संभव कर दिखाया
दुर्गा भवानी शक्ति तुझमें
मीरा जैसी भक्ति तुझमें
शक संदेह नहीं है इसमें
राधा जैसा प्रेम है तुझमें
सीता जैसा त्याग है तुझमें
वात्सल्य अति अनुराग है तुझमें
अलग अलग समझौता है तुझमें
तीमारदारी का न्यौता है तुझमें
फूलों सी सुवास है तुझमें
समाया पृथ्वी आकाश है तुझमें
अग्नि जैसी दहक है तुझमें
चिड़ियों जैसी चहक है तुझमें
स्वरचित, सुषमा, ब्यौहार
विषय, शक / संदेह
गुरुवार.

१३,२,२०२० .

संदेह सदैव ही हमारे संबंधों को भेज रसातल देता है।

दीमक बनकर संदेह हमेशा रिश्तों को चट कर जाता है।

रहकर सावधान सजग हर पल मन दर्पण रखना पड़ता है।

कभी धूल जमे न संदेहों की विश्वास सहेजना पड़ता है।

विश्वास अटूट जहाँ कायम हो शक कैसे प्रवेश कर सकता है।

अक्सर संदेह के अस्तित्व को नहीं विश्वास निखरने देता है।

होता है पूर्ण समर्पण जहाँ वहाँ पर प्रेम नगर ही बसता है।

केवल त्याग और कर्तव्य के पथ पर जीवन हँसकर चलता है।

बसने न दें हम शक को मन में हमें सानंद स्वस्थ रहने का संकल्प ये कहता है।

है सत्य यही मर्यादाओं का पालन करते हुए सुगंधित मानवता को इंसान ही करता है ।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक-13/02/2020
विषय-शक-संदेह


संदेह सागर के मझधार में......

धो आई क्या इन्हें

अंधेरी रात के अंधकार में।

क्यों कंपित हैं तेरे सजल अंग

सिहरा-सिहरा तेरा मन।।

श्यामल -श्यामल तेरा तन

कैसा विह्वल ये स्पंदन

अंतर्द्वंद के शंखनाद में।।

मुख मंडल तेरा भीना- भीना

पथ में जुगनू ,केश स्वर्ण के फूल

दीपक देता राहों में...........

न जाने क्यों आज एक शूल।

वक्षस्थल ये चंचल

कंधों पे लपेटे दुकूल

निःस्वास मुझे छू जाती

सारगर्भित पथ पग के धूल।

शक के रथ पे रथी घिरा

पथ पर चला पंथी अकेला

लेकर संग संदेहो का मेला

मिल गया उसे गौड़ गंतव्य

मुल्क में हो ईमान का मंतव्य।

करुण क्रंदन की कथा कहें

संदेशो के परिणाम की कथा कहे

मौन रहा क्यों स्तब्ध।

व्यथित मन की रागनी

अग्नि कण उन्मादिनी

शक के प्यास ज्वार ज्वाला बहे

मन शून्य प्रहरी अंगारे बहे......

चितवन हुआ मेरा तम.....

स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

13/02/20
भावों के मोती

संदेह /शक
*****
सभी संभव
संभावनाओं के मध्य
एक छोटा शब्द !
संदेह , शक ,
और उससे उत्पन्न अंजाम!
प्रश्नचिन्ह बनाए
पल पल हंसाता
पल पल डराता
नजर आता है ।
मकड़जाल में जकड़कर
जीवन के हसीन पलों को
अपनी गिरफ्त में लिए
ये शब्द अपना अस्तित्व
बचा जाता है ।
क्या होगा इसका अंजाम ,
परिणाम के पहले संदेह!
भविष्य के गर्भ में क्या छुपा
ये सतत मानसिक संतुलन
बिगाड़ अपनी जीत का
जश्न मनाता है ।
अंजाम की मत करो फिकर
संदेह की नहीं अगर मगर
जो निर्णय लो ,अडिग हो
उसे सत्य ,सही सिद्ध करो
कर्तव्यनिष्ठा ईमानदारी से
सजग हो कर्म करो
केवल कर्म करो ।
एक बात तो तय है
जो भी होगा अंजाम
ये कुछ दे जाएगा
सफल हुए तो लगन
अंजाम गर गलत हुआ
तो जीवन का पाठ सिखा जाएगा,
अंजाम कुछ दे कर ही जायेगा
संदेह से सब बिखर जाएगा ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विधा-काव्य
१३/
२/२०२०

वो मुझपे हर दफ़ा शक़ करता है
फिर भी वो मुझसे इश्क़ करता है

मेरी किस्मत में उजाले है ही नही
ख़ुदा मुझे बा-दीदा-ए-अश्क़ करता है

बहार होती ही नही हैं मुठ्ठी में मेरी
ज़माना फिर क्यों मुझसे रश्क़ करता है

सज़दे किये हैं हज़ारों,इश्क़ में मैंने
दिल फिर भी सीने में रंज रखता है

मैं उसको भुला भी दूं तो क्या
वो शायद दूसरी भी पसंद रखता है।।

स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल

शीर्षक-शक/सन्देह
दिनांक -13-2-2020

विधा --दोहा मुक्तक

1.
हो शक की बुनियाद पर, कोई सा भी काम।
अनिष्ट होता है सदा,बढ़ता दुख आयाम ।
शंका-श्रद्धा शत्रु हैं,रखे याद इंसान --
शक हो तो अच्छे भले, हो जाते बदनाम ।
2.
शक ऐसा आघात है, जिसका नहीं इलाज।
शक चरित्र पर होय तो, गिरे स्वयं पर गाज।
प्रेम सिमटता,शक बढ़े, ढहता है परिवार-
अच्छे भले जीवन का , मिट जाता है साज ।

******स्वरचित************
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी (म. प्र.)451551
दिनांक-13-2-2020
विषय-शक/संदेह

विधा-मुक्तक

वो हँस रहा है शायद मुझ पर
वो दया कर रहे हैं तरस खा कर
मुझे शक है वे मेरी बात करते हैं
मुझे देख बैठ गए हैं चुप होकर।

संदेह कृमि यदि बस जाए मन मे
घुल जाता है हलाहल तन बदन मे
रिश्ते नाते प्यार के वादे लगें खोखले
लाइलाज बीमारी पाली जीवन मे।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

भावों के मोती
13/2/2020

संदेह
विधा पिरामिड

1
ये
घेरे
संदेह
कष्टप्रद
नित्य मरण
चले अविराम
जीवन अभिशाप

2
ये
राह
सहज
घर स्वर्ग
संदेह मुक्त
होता प्रेम युक्त
जीवन वरदान

मीनाक्षी भटनागर
सवरचित

विषय-शक/संदेह

स्वर्ग सा एक घर बनाया |
पति पत्नी ने खूब सजाया |
सोफ़ा टीवी लैपटॉप वगेरे-
बसाकर आनंद बहुत मनाया |

दिवाल पेंटिंग करके सजाई |
रसोई जैसे जी जान लगाई |
कूकर बर्तन सारे बातें करते-
गेस चुल्हे पर चढ़ती कढ़ाई |

वोशिंग मशीन खूब सजी है |
व्हील पाउडर को देख हँसी है |
पेंटशर्ट साड़ी कूर्ती कहते-
हँसती क्या तू समझ फसी है |

पत्नी ने सुबह पौहे बनाए |
चाय जलेबी सबको खिलाए |
सारा मोहल्ला खुशी से झूमा-
हँसी खुशी से पड़ौसी बनाए |

एक दिन उस स्वर्ग से घर में |
शक का भारी तूफान आया |
माचीस की एक तीली बनकर-
सारे घर को श्मशान बनाया |

वही घर है पर जान नहीं है |
गमले फूल हैं पर शान नहीं है |
ईट पत्थर मिट्टी लगते सारे-
इंसान बिना घर संसार नहीं है |

स्वरचित कुसुम त्रिवेदी

भावों के मोती।
विषय-शक।

स्वरचित।
1
रिश्तो में शक
रिश्ते को जला गया
बची थी राख।।
***
2
रिश्तो में शक
जहां खुशहाली थी
आज वीराना।।
***
3
रिश्तो में शक
जिंदगी में दीमक
मिटा दो जड़।।
***
रिश्तो में शक
बेदर्द बेरहम
ना कोई हक।।
***
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
13/2/20

भरोसे से भरोसा अब उठने लगा।
अपनो से अपना पन खोने लगा।

प्यार भी अब पैसों से बिकने लगा।
रिश्तों में रिश्ता अब खोने लगा।

प्रेम में प्रेम पर अब शक होने लगा।
धोखे में धोखा है भारी पड़ने लगा।

वक्त पर वक्त का भार बढ़ने लगा।
सच पर झूठ भारी है पड़ने लगा।

खुदा की बंदगी में भी शकहोने लगा।
दुआओ में विश्वास अब बढ़ने लगा।

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय- शक/संदेह
13/02/20

गुरुवार
कविता

शक का दंश हृदय में जब घर कर जाता है,
प्रेमपूर्ण परिवेश विषैला बन जाता है।

चाहे जितना भी प्रिय-पात्र रहा हो कोई ,
क्षणभर में आंखों का काँटा बन जाता है।

है इतिहास साक्षी इस शक की कटुता से,
कितने ही जीवन इससे अभिशप्त हो गए।

पीड़ाओं से ग्रस्त , अनेकों विपदाओं में ,
कितने ही नारी जीवन संतप्त हो गए।

सीता और अहिल्या की शुचिता की गाथा
शंका के काले बादल की भेंट चढ़ गयी।

एकाकी जीवन की प्रबल वेदना में ही ,
दोनों की दारुण गाथा अभिलेख बन गयी।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय संदेह
विधा कविता

दिनाँक 13.2.2020
दिन गुरुवार

संदेह
💘💘💘

जब होता अपनों पर संदेह
टूट जाता तुरन्त सारा स्नेह
सन्देह भरी दृष्टि अच्छी नहीं
जि़न्दगी कोई छोटी बच्ची नहीं।

कानों की बात केवल कान तक
छोटी बातों को क्यों ढूँढें प्रमाण तक
यदि बात गहरे भी पहुँचे तो
सम्बन्ध रख लो बस प्रणाम तक।

सन्देह राष्ट्र विरुद्ध हो तो है बात बडी़ गम्भीर
ऐसी तो गहरी ही करनी होगी बिल्कुल लकीर
ऐसे सन्देह तुरन्तअन्वेषण माँगते हैं
दण्डित हों वे लोग जो मर्यादा लाँघते हैं।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय-शक
दिनांक 13-2-2020

एक
 बार शक बोया पौधा,वो पल्लवित हो जाएगा।
जिससे किया बरसों प्यार,शक से बिखर जाएगा।

प्यार किया विश्वास कर,तो बरसों निभ जाएगा।
सीता उदाहरण देख,राम तरह तन्हा हो जाएगा।

अपनी मन बात तू,किसी को बता ना पाएगा।
अपने ही दंभ से,बसा बसाया घर तोड़ जाएगा।

लोगों की बातों में आ, दिमाग जो तू न लगाएगा।
अपने ही हाथों तू देख,अपने पैरों कुल्हाड़ी मारेगा।

स्वर्ग जैसा घर था तेरा,क्यों तुने इसे बिगाड़ दिया।
कान भरने वाले चले गए, अब तू तन्हा ही रोएगा।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

शक /संदेह

होती शक की
दीवार-ओ-दर
खतरनाक
बर्बाद
कर देती है
हँसते खेलते
परिवार को

कहे पर
विश्वास नहीं
आँखो देखी
सही होती
होता शक
दायरा बड़ा
रखी संकरी
मानसिकता
मिलता मौका
दुश्मन को

होता
पति पत्नी का
रिश्ता ।नाजुक
करते घुसपेठ
लोग बहुत
गर है मजबूत
दीवारें घर की
नहीं घुस सकेगा
शक रिश्तों में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
भावों के मोती
विषय - शक/संदेह
िधा- क्षणिका
13/02/2020वीरवार
✍️✍️✍️🌹🌹🌹
है किसी को
"शक" कि
बाजार ने हमको
प्रेम से नहीं छला है...👌
तभी तो
बेचारे कबीर का
"ढाई आखर"
अब तक भी
न फूला है
ना ही फला है...👍
🎂🎂🎂🎂🎂🎂
श्रीराम साहू "अकेला"
शीर्षक-. शक/सन्देह
दिनांक 13 /02/2020


साथी तुम स्वयं पर शक ना करो,
जीवन में अच्छा काम करो ।
तुम कर सकते हो पहले से बेहतर ,
दूसरों से अच्छा दूसरों से इतर।

साथी तुम स्वयं पर शक न करो,
मंजिलें मिलने तक आराम न करो,
हो खत्म जहां पर सबके सपने,
तुम उनसे अपनी शुरुआत करो।

खुशहाली लाओ जीवन में,
कुछ अपने कुछ औरों के ,
मेहनत तुम दिन -रात करो ,
पर साथी स्वयं पर शक ना करो।

स्वरचित, रंजना सिंह
दिनाँक-13/02/2020
विषय:-संदेह/शक
िधा-मुक्तक

(1)
बीज है मनोरोग का,असुरक्षा का अहसास है,
तथ्यों को समझे बिना,करे कानों पे विश्वास है,
फिसल जाते हैं रिश्ते औ मन भी बिखर हैं जाते,
जीत से पहले हारे, संदेह जिनके पास है l
(2)
संदेह के आते ही विश्वास रूठ गया,
जीवन तिज़ोरी से सुख चैन लूट गया,
नफरतों की आँधी आई कहर बन के,
रिश्तों का महल पल भर में टूट गया l

स्वरचित
ऋतुराज दवे

विषय : शक, संदेह
विधा : कविता

तिथि : 13.2.2020

शक का तीर
देता पीर,
जिया अधीर
कैसे धरे धीर!

हाय बेबुनियाद शक
गई मैं थक
सफ़ाई देने का क्यों
मुझे नहीं हक!

शक्की मिजाज़
सोच खराब
दुश्मन प्यार
जीना दुश्वार!

मानसिक बीमारी
चोट करारी
बहस ख्वारी
इलाज संवारी।
--रीता ग्रोवर
-- स्वरचित।

विषय-शक

शक का जहर बहुत ही,
विषैला घातक होता है ।
हँसते खेलते घर मे यह,
बीज कलह के बोता है।

जाने कितने ही रिश्ते,
इस जहर की भेंट चढ़े।
खूनी बने जिगरी यार
आपस मे भाई सगे लड़े।

शक ऐसा दीमक है
जिसने खड़े दरख़्त गिराए।
जाने कितनी गृहस्थी टूटी
अरमान जले आँसू भर आये।

कभी -कभी शक में,
निर्दोष भी जान गँवाता है
अनहोनी हो जाने पर
हाथ मल मल पछताता है।

पंडित नेवले की कहानी में
शक दानव बन आया था।
निर्दोष निरीह की हत्या कर
पंडित बड़ा पछताया था।

मन को अपने निर्मल रखो,
कपट,कुचाल से दूर रहो।
शक वहम से नाता तोड़ो,
स्फूर्तिउमंग से भरपूर रहो।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...