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ब्लॉग संख्या :-660
शीर्षक .. रूकावट/बाधा/ठहराव
***************************
हिम्मत शक्ति सामर्थ यदि है, तो बाधा क्या आयेगी।
बहते जल की धारा बन, ठहराव सदा मिट जायेगी।
नही रूकावट आ पायेगी, कर्मरथि जो बनते हो,
अरिहंता दुख हर्ता है फिर संकट क्या कोई आयेगी।
***
नयनों मे ज्वाला इतना कि आँसू सूख नही पाये।
वाणी में ठहराव भी हो कि रिश्ता टूट नही जाये।
धन तबतक ही साथ रहेगा जबतक निधन नही होता,
शेर जो धागा टूट गया वो गाँठ बिना नाहिं जुडता।
***
जो आया है इस धरती पर, उसको जाना ही होगा।
समय व कर्म बताएगा कि तेरा क्या हो पाएगा।
बार-बार मौका नही मिलता संसोधन कर पाने का,
शेर हृदय के भाव को समझो तो कविता बन जायेगा।
***
शेर सिंह सर्राफ
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हिम्मत शक्ति सामर्थ यदि है, तो बाधा क्या आयेगी।
बहते जल की धारा बन, ठहराव सदा मिट जायेगी।
नही रूकावट आ पायेगी, कर्मरथि जो बनते हो,
अरिहंता दुख हर्ता है फिर संकट क्या कोई आयेगी।
***
नयनों मे ज्वाला इतना कि आँसू सूख नही पाये।
वाणी में ठहराव भी हो कि रिश्ता टूट नही जाये।
धन तबतक ही साथ रहेगा जबतक निधन नही होता,
शेर जो धागा टूट गया वो गाँठ बिना नाहिं जुडता।
***
जो आया है इस धरती पर, उसको जाना ही होगा।
समय व कर्म बताएगा कि तेरा क्या हो पाएगा।
बार-बार मौका नही मिलता संसोधन कर पाने का,
शेर हृदय के भाव को समझो तो कविता बन जायेगा।
***
शेर सिंह सर्राफ
विषय ठहराव,बाधा, रुकावट
विधा काव्य
18 फरवरी 2020,मंगलवार
शुभ कर्म में आती बाधा
बाधाओं से क्या घबराना?
लक्ष्य अडिग गर जीवन में
निश्चित फिर मंजिल पाना।
लंबे पथ पर तुम जाते हो
तो ठहराव है अति जरूरी।
चलते चलते थक जाते हैं
है ठहराव मन की मज़बूरी।
कई रूकावटें आती जीवन
जीवन तो है सुन्दर उपवन।
खून पसीना नित बहाते जो
तब सुरभित होता मधुबन।
जीवन होती एक तपस्या
सद्कर्म की आहुति देना।
हाथों को नित जलना होता
सद्पुण्य जीवन में लेना।
बाधा से लड़ना मानवता
बाधा सीख सिखाती हमको।
बाधा बिना क्या जग जीवन
बाधा मंजिल देती है सबको।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
18 फरवरी 2020,मंगलवार
शुभ कर्म में आती बाधा
बाधाओं से क्या घबराना?
लक्ष्य अडिग गर जीवन में
निश्चित फिर मंजिल पाना।
लंबे पथ पर तुम जाते हो
तो ठहराव है अति जरूरी।
चलते चलते थक जाते हैं
है ठहराव मन की मज़बूरी।
कई रूकावटें आती जीवन
जीवन तो है सुन्दर उपवन।
खून पसीना नित बहाते जो
तब सुरभित होता मधुबन।
जीवन होती एक तपस्या
सद्कर्म की आहुति देना।
हाथों को नित जलना होता
सद्पुण्य जीवन में लेना।
बाधा से लड़ना मानवता
बाधा सीख सिखाती हमको।
बाधा बिना क्या जग जीवन
बाधा मंजिल देती है सबको।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - ठहराव/बाधा
प्रथम प्रस्तुति
ठहरना और ठहर कर सँभलना
सँभलकर चलना है नियम शाश्वत!
हमें नही घबड़ाना चाहिए यहाँ
जीवन करता है हमें आश्वस्त!
वक्त कब न बदला वक्त पहचानिए
वक्त की सदा रही यही फितरत !
वक्त के आगे हम भला कर भी क्या-
सकते हैं कौन कर सका नफ़रत!
हो जो भी वक्त स्वीकारना होय
कश्ती को खेना होय अनवरत!
मौसम के मिज़ाज समझिए सदा
लाय गर्मी लाय बरसात सतत!
समस्या स्वतः सुलझी फैंकिए
चिंता चादर रहिए कार्यरत!
बाधायें एक न हजार 'शिवम' पर
हौंसलों के सम्मुख कैसी ज़ुर्रत!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 18/02/2020
प्रथम प्रस्तुति
ठहरना और ठहर कर सँभलना
सँभलकर चलना है नियम शाश्वत!
हमें नही घबड़ाना चाहिए यहाँ
जीवन करता है हमें आश्वस्त!
वक्त कब न बदला वक्त पहचानिए
वक्त की सदा रही यही फितरत !
वक्त के आगे हम भला कर भी क्या-
सकते हैं कौन कर सका नफ़रत!
हो जो भी वक्त स्वीकारना होय
कश्ती को खेना होय अनवरत!
मौसम के मिज़ाज समझिए सदा
लाय गर्मी लाय बरसात सतत!
समस्या स्वतः सुलझी फैंकिए
चिंता चादर रहिए कार्यरत!
बाधायें एक न हजार 'शिवम' पर
हौंसलों के सम्मुख कैसी ज़ुर्रत!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 18/02/2020
दिनांक-18-2-2020
विषय-ठहराव/बाधा/रुकावट
विधा-छन्दमुक्त कविता
उम्मीद का दामन थाम के
हर बाधा को लाँघ के
तू अपनी राह पे चल..
ओ राही चल...!
सपने सुनहरे तू बुन ले
पहले अपने लक्ष्य को चुन लें
मंजिल पाने का कर इरादा
रोक न पाए कोई बाधा
राह की रुकावट को भी साधा
आज को गले लगा के
तू भूल जा गुजरे पल..
ओ राही चल...!
जो अपने बस में नहीं है
उस बात की क्या चिंता करना
झूठ नहीं है सच्चा साथी
उसके साथ कभी न रहना
सच का दामन थामे चलना
दूर नहीं है तेरी मंजिल...
ओ राही चल ...!!
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-ठहराव/बाधा/रुकावट
विधा-छन्दमुक्त कविता
उम्मीद का दामन थाम के
हर बाधा को लाँघ के
तू अपनी राह पे चल..
ओ राही चल...!
सपने सुनहरे तू बुन ले
पहले अपने लक्ष्य को चुन लें
मंजिल पाने का कर इरादा
रोक न पाए कोई बाधा
राह की रुकावट को भी साधा
आज को गले लगा के
तू भूल जा गुजरे पल..
ओ राही चल...!
जो अपने बस में नहीं है
उस बात की क्या चिंता करना
झूठ नहीं है सच्चा साथी
उसके साथ कभी न रहना
सच का दामन थामे चलना
दूर नहीं है तेरी मंजिल...
ओ राही चल ...!!
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
18 //2/2020
बिषय,, बाधा ,,रुकावट,, ठहराव
उन्नति में बाधा हजारों आती
रुकावट में सफलता मिल नहीं पाती
जो ठहर जाए वह चल नहीं पाता
ज्यों ठहरा पानी मैला हो जाता
हिम्मत से बढ़ते ही रहना
मेहनत ही जीवन का गहना
चलते रहें जैसे नदी की धारा
जो डर गया वो जिंदगी से हारा
लेकर चलें हो मन में संकल्प
कहीं न कहीं छिपा रहता है उसका विकल्प
रुकावट जो आए न दें उस पर ध्यान
तो सारी दुनियां में होगा मान सम्मान
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, बाधा ,,रुकावट,, ठहराव
उन्नति में बाधा हजारों आती
रुकावट में सफलता मिल नहीं पाती
जो ठहर जाए वह चल नहीं पाता
ज्यों ठहरा पानी मैला हो जाता
हिम्मत से बढ़ते ही रहना
मेहनत ही जीवन का गहना
चलते रहें जैसे नदी की धारा
जो डर गया वो जिंदगी से हारा
लेकर चलें हो मन में संकल्प
कहीं न कहीं छिपा रहता है उसका विकल्प
रुकावट जो आए न दें उस पर ध्यान
तो सारी दुनियां में होगा मान सम्मान
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय : ठहराव, बाधा
विधा : कविता
तिथि : 18.2.2020
मन निर्बंध
कभी दौड़ता, कभी उड़ता
तनिक न टिकता।
मन
कब तुझमें
आए गा ठहराव
कब मेरी साधना को
मिले गी छांव!
ठहराव में शक्ति है
शक्ति में भक्ति है
क्यों तेरी चाल में अति है?
समझ मन
ठहराव में ही गति है।
मन निर्बंध
रोक दौड़ना, रोक उड़ना
शुरू हो टिकना।
--.रीता ग्रोवर
-- स्वरचित।
विधा : कविता
तिथि : 18.2.2020
मन निर्बंध
कभी दौड़ता, कभी उड़ता
तनिक न टिकता।
मन
कब तुझमें
आए गा ठहराव
कब मेरी साधना को
मिले गी छांव!
ठहराव में शक्ति है
शक्ति में भक्ति है
क्यों तेरी चाल में अति है?
समझ मन
ठहराव में ही गति है।
मन निर्बंध
रोक दौड़ना, रोक उड़ना
शुरू हो टिकना।
--.रीता ग्रोवर
-- स्वरचित।
विषय-ठहराव
18-2-2020
ठहरी हुई जिंदगी को,कागज कलम ने मोड़ दिया।
जीवन सार्थक करने का,ये सुनहरा अवसर दिया।
मूर्त रूप शब्दों को दे ,राह को करीब मैने किया।
जहन के विचारों को,यूं जग उजागर सदा किया।
भीतर का यह जमघट,बढ़ने लगता है जब कभी।
शब्दों के सरिता को,यूं कागज कलम बहा दिया।
ठहराव में ठहरना चाहती,समय बहुत कम बचा।
शेष जीवन को मैंने,समाज हित समर्पित किया।
क्या है यहां कौन शक्ति,कौन सा आकर्षण यहां।
इससे पहले मुझे बांधे,खुद को विमुख मैंने किया।
कहती वीणा ठहराव जरूरी,ऐसा महसूस किया।
कुछ करने का जज्बा जगा,और कुछ मैंने किया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
18-2-2020
ठहरी हुई जिंदगी को,कागज कलम ने मोड़ दिया।
जीवन सार्थक करने का,ये सुनहरा अवसर दिया।
मूर्त रूप शब्दों को दे ,राह को करीब मैने किया।
जहन के विचारों को,यूं जग उजागर सदा किया।
भीतर का यह जमघट,बढ़ने लगता है जब कभी।
शब्दों के सरिता को,यूं कागज कलम बहा दिया।
ठहराव में ठहरना चाहती,समय बहुत कम बचा।
शेष जीवन को मैंने,समाज हित समर्पित किया।
क्या है यहां कौन शक्ति,कौन सा आकर्षण यहां।
इससे पहले मुझे बांधे,खुद को विमुख मैंने किया।
कहती वीणा ठहराव जरूरी,ऐसा महसूस किया।
कुछ करने का जज्बा जगा,और कुछ मैंने किया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 18-02-2020
विषय-बाधा, रुकावट, ठहराव
ठहराव नहीं जीवन में आये
रखना हरदम इसका ध्यान
रहे लचीला नीति सुखद पथ
बने न कोई प्रस्तर प्रतिमान...
चलना होगा हमको हर-पल
ध्येय लिए आँखों में अपने
करके यह विश्वास एक दिन
पूरे हो ही जायेंगे सब सपने...
बाधाएं भी आयेंगी पर हमको
बिचलित न हो करके है बढ़ना
साहस मन में, लक्ष्य नयन में
धर करके पर्वत पर बस चढ़ना...
मिल ही जायेगी मंजिल फिर
जिसकी हमको अतिशय चाह
हो जायेगी फिर पुष्प सुवासित
वह कंकरीट की चुभती सब राह..
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
विषय-बाधा, रुकावट, ठहराव
ठहराव नहीं जीवन में आये
रखना हरदम इसका ध्यान
रहे लचीला नीति सुखद पथ
बने न कोई प्रस्तर प्रतिमान...
चलना होगा हमको हर-पल
ध्येय लिए आँखों में अपने
करके यह विश्वास एक दिन
पूरे हो ही जायेंगे सब सपने...
बाधाएं भी आयेंगी पर हमको
बिचलित न हो करके है बढ़ना
साहस मन में, लक्ष्य नयन में
धर करके पर्वत पर बस चढ़ना...
मिल ही जायेगी मंजिल फिर
जिसकी हमको अतिशय चाह
हो जायेगी फिर पुष्प सुवासित
वह कंकरीट की चुभती सब राह..
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
दिनांक : 18 फरवरी 2020
ठहराव/बाधा/रुकावट
भागती दौड़ती जिंदगी को ठहराव बहुत भाता है
सब दिन भाग भाग के फिर रविवार बहुत भाता है
उस दिन देर से सो के उठते और मनपसंद जीवन जीते
अगले ही दिन फिर वही भाग दौड़ जिससे पुराना नाता है
क्या करें कैसे करें कि जिंदगी में एक ठहराव हो
प्रेम से जीवन कटे आराम हो और न कोई अभाव हो
चाहते तो सब यही पर मज़बूरी भगाती है रहती
जिम्मेदारियाँ मजबूरियाँ इंसान को उसके संघर्ष रास्ते पर रखतीं
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
शीर्षक -रुकावट/ बाधा
दिनांक 18 /02/ 2020
बाधाएं हैं आती जाती ,
चल उठ तुझको चलना है ।
हार जीत श्रृंगार वीर के
आभूषण ये महाधीर के
गिरकर तुम्हें संभालना है।
चल उठ तुमको चलना है।।
बाधाएं हैं आती जाती ,
उत्थान पतन नियमित परपाटी।
कंकड़ पत्थर जोड़ जोड़
हिमगिरि का सीना तोड़ फोड़
सरिता स्रोत बदलना है ।
चल उठ तुझको चलना है।।
स्वरचित ,मौलिक रचना ,
रंजना सिंह
दिनांक 18 /02/ 2020
बाधाएं हैं आती जाती ,
चल उठ तुझको चलना है ।
हार जीत श्रृंगार वीर के
आभूषण ये महाधीर के
गिरकर तुम्हें संभालना है।
चल उठ तुमको चलना है।।
बाधाएं हैं आती जाती ,
उत्थान पतन नियमित परपाटी।
कंकड़ पत्थर जोड़ जोड़
हिमगिरि का सीना तोड़ फोड़
सरिता स्रोत बदलना है ।
चल उठ तुझको चलना है।।
स्वरचित ,मौलिक रचना ,
रंजना सिंह
विषय -ठहराव,रुकावट,बाधा
जीवन काँटों से भरा,जैसे फूल गुलाब।
बाधाओं को पार कर,भर जीवन में आब।।
जीवन में आने न दो,कभी सनम ठहराव।
चलना ही है जिंदगी, बदलो नहीं
स्वभाव।।
कभी रुकावट हो खड़ी,उस पर मत दो ध्यान।
बढ़ते जाओ तीर से,निकला हो जस म्यान।।
हर बाधा संसार की,करनी हमको पार।
जीवन सागर में बनें, प्रभु मेरी पतवार।।
सरिता गर्ग
जीवन काँटों से भरा,जैसे फूल गुलाब।
बाधाओं को पार कर,भर जीवन में आब।।
जीवन में आने न दो,कभी सनम ठहराव।
चलना ही है जिंदगी, बदलो नहीं
स्वभाव।।
कभी रुकावट हो खड़ी,उस पर मत दो ध्यान।
बढ़ते जाओ तीर से,निकला हो जस म्यान।।
हर बाधा संसार की,करनी हमको पार।
जीवन सागर में बनें, प्रभु मेरी पतवार।।
सरिता गर्ग
भावों के मोती
शीर्षक -- ठहराव/रुकावट/बाधा
इन दिनो कुछ अजीब सा सूनापन महसूस करती हूँ
भीड़ में भी नितांत अकेली
ठहराव सा आ गया है मानों
कौनसा दौर है ये जिंदगी का
समझ नहीं पा रही
सोचा था चलो अब कुछ पल खुद के लिए जी लू कलम को अपनी वापिस छू लूं लेकिन ये क्या
सारे हर्फ़ मुझसे रूठे बैठे है
मुस्कुराते नहीं देख मुझे
एहसासो के गुल मुरझा गये
महक नहीं आती अब इनसे
ये क्या हुआ हैं ये ठहराव क्यों
नज़्मों का प्रवाह रूक सा गया
हाँ नैनो की ये गंगा जमुना
अविरल बह रही हैं फिर कोई नज़्म क्यों सफहो पर नहीं
उषा आये या संध्या
कोई हलचल नहीं बस
चलते जा रहीं हूँ
दिवस बीत जाता
उलझनों में यामिनी की
रैना में तन्हाई और ओस की
बूंदें मिल मुझे सहलाती हैं
मेरे होने का आभास कराती
रूखसार नम होते है तो लगता
हैं अभी नमी बरकरार हैं
पर वो भी पीडाओ की वाष्प
बना ले जाती हैं ख़्वाब सब बिखरे से हैं ह्रदय आघातों से आहत
हैं कोई उमंग बाकी नही
फिर भी चक्र चल रहा है
क्या जीवन चक्र ऐसा होता है
दो पल को सुकून अपनी
आगोश में रखे तो मैं
कभी वर्णन कर सकूँ
उन पलों का
कभी ये उदासी ओझल हो
जाये ये तिमिर को शफ़क
अा हर ले मैं ढूंढ लाऊं अपने
लफ्ज़ो को और नित सृजन करूं
एक नई नज़्म का
आशा पंवार
शीर्षक -- ठहराव/रुकावट/बाधा
इन दिनो कुछ अजीब सा सूनापन महसूस करती हूँ
भीड़ में भी नितांत अकेली
ठहराव सा आ गया है मानों
कौनसा दौर है ये जिंदगी का
समझ नहीं पा रही
सोचा था चलो अब कुछ पल खुद के लिए जी लू कलम को अपनी वापिस छू लूं लेकिन ये क्या
सारे हर्फ़ मुझसे रूठे बैठे है
मुस्कुराते नहीं देख मुझे
एहसासो के गुल मुरझा गये
महक नहीं आती अब इनसे
ये क्या हुआ हैं ये ठहराव क्यों
नज़्मों का प्रवाह रूक सा गया
हाँ नैनो की ये गंगा जमुना
अविरल बह रही हैं फिर कोई नज़्म क्यों सफहो पर नहीं
उषा आये या संध्या
कोई हलचल नहीं बस
चलते जा रहीं हूँ
दिवस बीत जाता
उलझनों में यामिनी की
रैना में तन्हाई और ओस की
बूंदें मिल मुझे सहलाती हैं
मेरे होने का आभास कराती
रूखसार नम होते है तो लगता
हैं अभी नमी बरकरार हैं
पर वो भी पीडाओ की वाष्प
बना ले जाती हैं ख़्वाब सब बिखरे से हैं ह्रदय आघातों से आहत
हैं कोई उमंग बाकी नही
फिर भी चक्र चल रहा है
क्या जीवन चक्र ऐसा होता है
दो पल को सुकून अपनी
आगोश में रखे तो मैं
कभी वर्णन कर सकूँ
उन पलों का
कभी ये उदासी ओझल हो
जाये ये तिमिर को शफ़क
अा हर ले मैं ढूंढ लाऊं अपने
लफ्ज़ो को और नित सृजन करूं
एक नई नज़्म का
आशा पंवार
दिनांक : - 18/02/2020
विषय: - ठहराव/बाधा
विधा: - काव्य
*"""""""******""'"""""******""""""*
निरंतर अग्रसर रहो पथ पर
नीर सा बहते रहो
तुम सूर्य पुत्र हो भेदो तिमिर को
मंजिल मिलने तक चलते रहो।
ठहक जाता जब जल धरा पर
हो जाता दुषित, विषाक्त
बहते रहता जो अनवरत
वही बुझाता जन- जन का प्यास।
पथ पर बाधा बहुत मिलेंगे
कब रहती परिस्थिति अनुकूल
दृढ़ और संकल्पित मन ही
बनाते कार्य सरल प्रतिकूल।
स्वरचित : - मुन्नी कामत
विषय: - ठहराव/बाधा
विधा: - काव्य
*"""""""******""'"""""******""""""*
निरंतर अग्रसर रहो पथ पर
नीर सा बहते रहो
तुम सूर्य पुत्र हो भेदो तिमिर को
मंजिल मिलने तक चलते रहो।
ठहक जाता जब जल धरा पर
हो जाता दुषित, विषाक्त
बहते रहता जो अनवरत
वही बुझाता जन- जन का प्यास।
पथ पर बाधा बहुत मिलेंगे
कब रहती परिस्थिति अनुकूल
दृढ़ और संकल्पित मन ही
बनाते कार्य सरल प्रतिकूल।
स्वरचित : - मुन्नी कामत
विषय _ ठहराव /बाधा/रुकावट
तिथि _18_2_2020
वार _मंगलवार
एक क़दम बढ़ा नही
कि रुकावटें हज़ार मिली
पलट कर देखा
तो कुछ उंगलियाँ
उठी हुई थीं
कुछ आंखे लाल
कुछ बातें थीं
तो कुछ नफरतें बेमिसाल
मुश्किल था
बाधा से पार पाना
मगर
क्या सिर्फ इसलिए कि
मैं एक लड़की थी
जो माँ बहन बेटी
और अर्धान्गिनी बन
बिना किसी बाधा या रुकावट के
बढ़ा लेती है हर क़दम
फिर क्यूँ आज बढ़ता नही है
क़दम दूसरा
क्यूँ एक ठहराव सा है
आज जीवन में
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
तिथि _18_2_2020
वार _मंगलवार
एक क़दम बढ़ा नही
कि रुकावटें हज़ार मिली
पलट कर देखा
तो कुछ उंगलियाँ
उठी हुई थीं
कुछ आंखे लाल
कुछ बातें थीं
तो कुछ नफरतें बेमिसाल
मुश्किल था
बाधा से पार पाना
मगर
क्या सिर्फ इसलिए कि
मैं एक लड़की थी
जो माँ बहन बेटी
और अर्धान्गिनी बन
बिना किसी बाधा या रुकावट के
बढ़ा लेती है हर क़दम
फिर क्यूँ आज बढ़ता नही है
क़दम दूसरा
क्यूँ एक ठहराव सा है
आज जीवन में
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
विषय-बाधा/रुकावट/ठहराव
विधा-मुक्त
दिनांक-18/02/2020
जीवन तो है बहती धारा
मुक्त,निश्छल,निर्बाध सदा
आती हैं बाधाएँ
लेकिन....
हर बाधा को लांघती
सरपट यूं दौड़ी जाए
जैसे कोई अल्हड़ निर्झर
पर्वत शिखर से
रपटता आए
बीच कंदरा में पहुँच
थोड़ा ठहर के सुस्ता
फिर वेग सा बहता जाए
कितनी भी कोशिश
करले
जीवन कहीं ठहरता नहीं है
अनजानी बाधाओं से
डरता नहीं है।
डा.नीलम
विधा-मुक्त
दिनांक-18/02/2020
जीवन तो है बहती धारा
मुक्त,निश्छल,निर्बाध सदा
आती हैं बाधाएँ
लेकिन....
हर बाधा को लांघती
सरपट यूं दौड़ी जाए
जैसे कोई अल्हड़ निर्झर
पर्वत शिखर से
रपटता आए
बीच कंदरा में पहुँच
थोड़ा ठहर के सुस्ता
फिर वेग सा बहता जाए
कितनी भी कोशिश
करले
जीवन कहीं ठहरता नहीं है
अनजानी बाधाओं से
डरता नहीं है।
डा.नीलम
विषय: बाधा
विधा: कविता
18/02/2020
राधा भी आधी
मोहन भी आधा
किसने किसको साधा
गोकुल मथुरा सब आधा आधा
दिखती हैं चारो ओर बाधा ही बाधा।
मानव हो या ईश्वर
अनश्वर हो या नश्वर
राजा हो या फकीर
बनती या बिगड़ती हो तकदीर
सब को बाधा ने लादा
दिखती है चारो ओर बाधा ही बाधा।
बाधा जीवन की चुनौती
कोई सीना ताने कोई पिटे छाती
बिन बाधा होता नही विकास
बिन बाधा रिश्तों का होता न अहसास
बाधा तो आयेगी जीवन चाहे हो सीधा साधा
दिखती चारो ओर बाधा ही बाधा।
बाधा लिये आशा की डोर
बाधा लांघने पर ही मिलती छोर
बाधा हिम्मत को और बढ़ाती
बाधा इंसान की परख दिखाती
बाधा मजबूत करती कांधा
दिखती चारो ओर बाधा ही बाधा।।
उमाकान्त यादव उमंग
स्वरचित
मौलिक
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
विधा: कविता
18/02/2020
राधा भी आधी
मोहन भी आधा
किसने किसको साधा
गोकुल मथुरा सब आधा आधा
दिखती हैं चारो ओर बाधा ही बाधा।
मानव हो या ईश्वर
अनश्वर हो या नश्वर
राजा हो या फकीर
बनती या बिगड़ती हो तकदीर
सब को बाधा ने लादा
दिखती है चारो ओर बाधा ही बाधा।
बाधा जीवन की चुनौती
कोई सीना ताने कोई पिटे छाती
बिन बाधा होता नही विकास
बिन बाधा रिश्तों का होता न अहसास
बाधा तो आयेगी जीवन चाहे हो सीधा साधा
दिखती चारो ओर बाधा ही बाधा।
बाधा लिये आशा की डोर
बाधा लांघने पर ही मिलती छोर
बाधा हिम्मत को और बढ़ाती
बाधा इंसान की परख दिखाती
बाधा मजबूत करती कांधा
दिखती चारो ओर बाधा ही बाधा।।
उमाकान्त यादव उमंग
स्वरचित
मौलिक
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
18/2/20
थके थके पाँव
बुझे बुझे से
चली बहुत
थकी बहुत
बोझ उठाये
जिंदगी का
बिना ठहरे
घिसे तलुवों सङ्ग
चलती रही
बाधाओं सङ्ग
चल रही अब भी
एक मुस्कान सङ्ग
कितने जख्म
दर्दो सङ्ग
उनकी भाषा
न पढ़ सका कोई
संघर्षों की दासता
जिंदगी की कहानी
बीता इतिहास
सफर का रूप
तिरछे पैर
टेढ़ी उंगलियां
नसों की जकड़न
असहनीय पीड़ा
दिल से शुरु
अंत पाँव तक
न पढ़ सका कोई
न समझेगा भाषा
अनेक पाँवो की रूपरेखा
भिन्न रूपो में
वेश में भाव मे
आशाओं के संसार मे
नारी के रूप में
वृद्धावस्ता के दहलीज में
स्वरचित
मीना तिवारी
थके थके पाँव
बुझे बुझे से
चली बहुत
थकी बहुत
बोझ उठाये
जिंदगी का
बिना ठहरे
घिसे तलुवों सङ्ग
चलती रही
बाधाओं सङ्ग
चल रही अब भी
एक मुस्कान सङ्ग
कितने जख्म
दर्दो सङ्ग
उनकी भाषा
न पढ़ सका कोई
संघर्षों की दासता
जिंदगी की कहानी
बीता इतिहास
सफर का रूप
तिरछे पैर
टेढ़ी उंगलियां
नसों की जकड़न
असहनीय पीड़ा
दिल से शुरु
अंत पाँव तक
न पढ़ सका कोई
न समझेगा भाषा
अनेक पाँवो की रूपरेखा
भिन्न रूपो में
वेश में भाव मे
आशाओं के संसार मे
नारी के रूप में
वृद्धावस्ता के दहलीज में
स्वरचित
मीना तिवारी
नमन मंच
18-2-2020
"हवाओं से चलना सीखा है"
*********************
पकड़ के उँगली मात पिता की
गुरुओं से पढ़ना सीखा है,
मैने हवाओं से चलना सीखा है।
टकरा कर जीवन लहरों में
तूफानों से लड़ना सीखा हैं
मैंने हवाओं से चलना सीखा है।
लड़खड़ाते कदम संभल जाते
1 है,
गिरकर भी मोती मिल जाते है,
मोतियों को जीवन हार में पिरोना सीखाहै,
मैंने हवाओं से चलना सीखा है।
ताप में रवि के हवाओं से तेजी कम हो जाती है,
छाँव में अपनों की कुछ वक्त ठहरना सीखा है,
मैंने हवाओं से चलना सीखा है।
तपकर ताप में स्वर्ण कुंदन बन जाता है,
ठंडी पवन का झोंका,तपित मन को शीतलता दे जाता है,
आहत मन पर उनसे मरहम लगाना सीखा है,
मैने हवाओं से चलना सीखा हैं।।।।
गीतांजली वार्ष्णेय
18-2-2020
"हवाओं से चलना सीखा है"
*********************
पकड़ के उँगली मात पिता की
गुरुओं से पढ़ना सीखा है,
मैने हवाओं से चलना सीखा है।
टकरा कर जीवन लहरों में
तूफानों से लड़ना सीखा हैं
मैंने हवाओं से चलना सीखा है।
लड़खड़ाते कदम संभल जाते
1 है,
गिरकर भी मोती मिल जाते है,
मोतियों को जीवन हार में पिरोना सीखाहै,
मैंने हवाओं से चलना सीखा है।
ताप में रवि के हवाओं से तेजी कम हो जाती है,
छाँव में अपनों की कुछ वक्त ठहरना सीखा है,
मैंने हवाओं से चलना सीखा है।
तपकर ताप में स्वर्ण कुंदन बन जाता है,
ठंडी पवन का झोंका,तपित मन को शीतलता दे जाता है,
आहत मन पर उनसे मरहम लगाना सीखा है,
मैने हवाओं से चलना सीखा हैं।।।।
गीतांजली वार्ष्णेय
विषय..रूकावट /बाधा /ठहराव
जीवन के सांध्य काल मे,
जब कदमो की चाल मंद,
ठहराव लेना चाहता मन।
पर ऐसा कहां होता है?
लेनी पड़ती है फिर एक,
नयी चुनौती बिना रूकावट,
यही तो जीवन होता है।
बिना बाधा सब सहना होता है,
यही तो जिंदगी जिंदा दिली है।
मुर्दा दिल क्या खाक जीयेगे।
रीतू गुलाटी..ऋतंभरा
जीवन के सांध्य काल मे,
जब कदमो की चाल मंद,
ठहराव लेना चाहता मन।
पर ऐसा कहां होता है?
लेनी पड़ती है फिर एक,
नयी चुनौती बिना रूकावट,
यही तो जीवन होता है।
बिना बाधा सब सहना होता है,
यही तो जिंदगी जिंदा दिली है।
मुर्दा दिल क्या खाक जीयेगे।
रीतू गुलाटी..ऋतंभरा
18/02/2020
रुकावट/बाधा/ठहराव
स्वतंत्र लेखन
हौसलों से तू कर सफर...
छोड़ना न तू डगर..
पार कर बाधा तू हर...
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
संघर्ष तो अविराम है..
असफलता नहीं विश्राम है...
बाधाओं से दो-दो हाथ कर..
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
नियति को ढाल बना...
तीर सी तू चाल बना..
बांध ले सर पर कफन...
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
संकल्पों को आकार दे...
हौसलों को आकाश दे...
खुद ही को तू कर बुलंद...
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
रुकावट/बाधा/ठहराव
स्वतंत्र लेखन
हौसलों से तू कर सफर...
छोड़ना न तू डगर..
पार कर बाधा तू हर...
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
संघर्ष तो अविराम है..
असफलता नहीं विश्राम है...
बाधाओं से दो-दो हाथ कर..
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
नियति को ढाल बना...
तीर सी तू चाल बना..
बांध ले सर पर कफन...
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
संकल्पों को आकार दे...
हौसलों को आकाश दे...
खुद ही को तू कर बुलंद...
हरदम तू बढ़ा कदम,
चल सतत् चल सतत् चल सतत्।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
18-2-2020
दूसरा प्रयास
**********
ठहराव
*******
ठहरी ठहरी सी जिंदगी,
बह चली अविरल नदी सी।
उठती गिरती टकराती मौजों से,
बड़ चली मस्ती में वक्क्त की घड़ी सी।
जाकर सागर की गोद में समा गयीं,
ठहर गयी मिलकर सागर में, मीन सी।
फिर बन बादल फैल गयी धरा पर नव जीवन सी।
फिर बन नदी बह चली भू पर नारी जीवन सी।
ठहर जमीं पर कुछ पल,बड़ चली जीवन गति सी।।
गीतांजली वार्ष्णेय
दूसरा प्रयास
**********
ठहराव
*******
ठहरी ठहरी सी जिंदगी,
बह चली अविरल नदी सी।
उठती गिरती टकराती मौजों से,
बड़ चली मस्ती में वक्क्त की घड़ी सी।
जाकर सागर की गोद में समा गयीं,
ठहर गयी मिलकर सागर में, मीन सी।
फिर बन बादल फैल गयी धरा पर नव जीवन सी।
फिर बन नदी बह चली भू पर नारी जीवन सी।
ठहर जमीं पर कुछ पल,बड़ चली जीवन गति सी।।
गीतांजली वार्ष्णेय
तिथि- 18 /02/2020
विषय- ठहराव, रूकावट, बाधा
विधा - स्वतंत्र कविता
गुजारी है हमने कितनी ही रातें!
सुलगते भावों के ठहराव पर !!
दस्तक दे रहा तेरी चाहत तेरी उल्फत !
आज नहीं डर मुझे गुंजित बाधाओं पर !!
जो रह गयी है बात दबी दिल में!
आज चिंगारी बन निकली बिन रूकावट के!!
विरह बेदना अंतस मन में ज्वार बनी ...
आओ प्रिय हर बाधाओं को पार कर!!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
विषय- ठहराव, रूकावट, बाधा
विधा - स्वतंत्र कविता
गुजारी है हमने कितनी ही रातें!
सुलगते भावों के ठहराव पर !!
दस्तक दे रहा तेरी चाहत तेरी उल्फत !
आज नहीं डर मुझे गुंजित बाधाओं पर !!
जो रह गयी है बात दबी दिल में!
आज चिंगारी बन निकली बिन रूकावट के!!
विरह बेदना अंतस मन में ज्वार बनी ...
आओ प्रिय हर बाधाओं को पार कर!!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
दिनांक, १ ८,२,२०२०
दिन, मंगलवार
विषय, ठहराव, बाधा , रूकावट,
बाधाओं से जो डर जायें,
पथिक नहीं वो कहलाते।
जीवन पथ पर चलने वाले,
काँटों को चुनकर बढ़ जाते।
नदिया सागर से मिलने जाये,
सब पत्थर राहों के हट जाते।
हों दीवारें कितनीं ही फौलादी,
दीवाने फिर भी राह बना लेते।
हथियार हमारा हिम्मत ही है,
हमारी रुकावटों को दूर करे।
ये जीवन दर्शन हमें कहता है,
सदा साहस ही बेड़ा पार करे।
हम अपना हाथ बढ़ाएं अगर,
निर्बल को किनारा मिल जाये।
दुनियाँ की बाधाएं कम हों गर,
यूँ जीने का मकसद मिल जाये।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन, मंगलवार
विषय, ठहराव, बाधा , रूकावट,
बाधाओं से जो डर जायें,
पथिक नहीं वो कहलाते।
जीवन पथ पर चलने वाले,
काँटों को चुनकर बढ़ जाते।
नदिया सागर से मिलने जाये,
सब पत्थर राहों के हट जाते।
हों दीवारें कितनीं ही फौलादी,
दीवाने फिर भी राह बना लेते।
हथियार हमारा हिम्मत ही है,
हमारी रुकावटों को दूर करे।
ये जीवन दर्शन हमें कहता है,
सदा साहस ही बेड़ा पार करे।
हम अपना हाथ बढ़ाएं अगर,
निर्बल को किनारा मिल जाये।
दुनियाँ की बाधाएं कम हों गर,
यूँ जीने का मकसद मिल जाये।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक - 18/2/2020
विषय - रूकावट/बाधा/ ठहराव
जीवन-पथ पर बस मुस्कुराते चलो
बाधाओं को हौंसलों से हराते चलो
दौर कठिनाइयों का सदा ना रहेगा
साथ धैर्य का तुम यूँ निभाते चलो।
इरादा पर्वत- सा उच्च, अटल रहे
मंज़िल से पहले ना कोई स्थल रहे
जुनून इस क़दर मन में रखना होगा
पुण्य आत्मा पर न कोई बोझ रहे।
असफलता चुनौती स्वीकार करो
कारण, निवारण पर विचार करो
नए सिरे से करो एक नई शुरुआत
सफलता के संग तुम दीदार करो।
नदियाँ,झरने-इनको ग़ौर से देखो
पत्थरों से निसदिन टकराना देखो
पूरे वेग से ये बहते ही चले जाते हैं
मंजिल मात्र इनका ठहराव देखो।
जिसने बाधाओं से हार नहीं मानी
अपने पथ पर ही चलने की ठानी
समाज साक्षी रहा है उन वीरों का
बाधा हरा जिन्होने लिखी कहानी।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
विषय - रूकावट/बाधा/ ठहराव
जीवन-पथ पर बस मुस्कुराते चलो
बाधाओं को हौंसलों से हराते चलो
दौर कठिनाइयों का सदा ना रहेगा
साथ धैर्य का तुम यूँ निभाते चलो।
इरादा पर्वत- सा उच्च, अटल रहे
मंज़िल से पहले ना कोई स्थल रहे
जुनून इस क़दर मन में रखना होगा
पुण्य आत्मा पर न कोई बोझ रहे।
असफलता चुनौती स्वीकार करो
कारण, निवारण पर विचार करो
नए सिरे से करो एक नई शुरुआत
सफलता के संग तुम दीदार करो।
नदियाँ,झरने-इनको ग़ौर से देखो
पत्थरों से निसदिन टकराना देखो
पूरे वेग से ये बहते ही चले जाते हैं
मंजिल मात्र इनका ठहराव देखो।
जिसने बाधाओं से हार नहीं मानी
अपने पथ पर ही चलने की ठानी
समाज साक्षी रहा है उन वीरों का
बाधा हरा जिन्होने लिखी कहानी।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
भावों के मोती।
विषय बाधा/रूकावटस्वरचित।
झरना निर्झर बहता रहता।
अपना सबकुछ देता रहता।
निर्मल पावन जल है बहता।।
सबको ये संदेश है देता।
कर्म पथ पर चलो निरन्तर।
फल इच्छा ना तुम रखकर।।
देने वाला सदा भरा है।
अन्दर बाहर तृप्त रहा है।
तुम भी तो कुछ देकर देखो।
पुण्य कमाई करके देखो।।
झरने की छल-छल ध्वनि से
झरने की शीतल प्रकृति से
आनन्दमग्न रहना सीखो।।
संघर्षों के झंझावातों से।
आया लड़कर बाधाओं से।
राह कठिन थी रोके रस्ता
कहीं पत्थर, कहीं पेड़ कटीले।।
राह चुनी चाहे टेढी-मेढी,
पर मंज़िल पर आकर ठहरा।
अमृत सम स्वच्छ,और निखरा।।
अपने विचार-भाव का झरना
तुम भी पावन कर लो।
स्वार्थ-लोभ की बाधाओं से,
निकलो तम की कंदराओं से।
बांटो प्रेम और जीवन भी तुम
मन को तुम झरना सम कर लो।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
विषय बाधा/रूकावटस्वरचित।
झरना निर्झर बहता रहता।
अपना सबकुछ देता रहता।
निर्मल पावन जल है बहता।।
सबको ये संदेश है देता।
कर्म पथ पर चलो निरन्तर।
फल इच्छा ना तुम रखकर।।
देने वाला सदा भरा है।
अन्दर बाहर तृप्त रहा है।
तुम भी तो कुछ देकर देखो।
पुण्य कमाई करके देखो।।
झरने की छल-छल ध्वनि से
झरने की शीतल प्रकृति से
आनन्दमग्न रहना सीखो।।
संघर्षों के झंझावातों से।
आया लड़कर बाधाओं से।
राह कठिन थी रोके रस्ता
कहीं पत्थर, कहीं पेड़ कटीले।।
राह चुनी चाहे टेढी-मेढी,
पर मंज़िल पर आकर ठहरा।
अमृत सम स्वच्छ,और निखरा।।
अपने विचार-भाव का झरना
तुम भी पावन कर लो।
स्वार्थ-लोभ की बाधाओं से,
निकलो तम की कंदराओं से।
बांटो प्रेम और जीवन भी तुम
मन को तुम झरना सम कर लो।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
विषय - बाधा/रुकावट
साध लक्ष्य जो चलते रहते,
चलते रहते कभी न रुकते।
चाहे जितनी बाधा आए,
रोक ना उसको कोई पाए।
बाधाओं के ही संग में
अटल विश्वास भरो मन में।
जीवन को जीना पड़ता है,
राह से कौन डिगा सकता है।
चले कारवां चींटी की तो
रोक सको तो रोक दिखा दो।
ऊँची राह भले बन जाए
गहरी खाई या हो जाए।
नहीं रुकती अविरल चलती
छोटी चींटी बड़ी सयानी।
जल की धारा भी खुद की
राहें अपना ढूंढ ही लेती।
स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
साध लक्ष्य जो चलते रहते,
चलते रहते कभी न रुकते।
चाहे जितनी बाधा आए,
रोक ना उसको कोई पाए।
बाधाओं के ही संग में
अटल विश्वास भरो मन में।
जीवन को जीना पड़ता है,
राह से कौन डिगा सकता है।
चले कारवां चींटी की तो
रोक सको तो रोक दिखा दो।
ऊँची राह भले बन जाए
गहरी खाई या हो जाए।
नहीं रुकती अविरल चलती
छोटी चींटी बड़ी सयानी।
जल की धारा भी खुद की
राहें अपना ढूंढ ही लेती।
स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
दिनांक- 18/02/2020
शीर्षक- ठहराव
विधा- छंदमुक्त कविता
***************
जिन्दगी चलने का नाम है,
किन्तु ठहराव भी जरूरी है,
चलते चलते जब थक जाते,
तब आराम भी तो जरूरी है |
बड़-बड़ बोलना कहां अच्छा होता,
वजन बात का उसका कच्चा होता,
जुबां में थोड़ा गर ठहराव आ जायें,
वजन बात का खुद ही बढ़ जाये |
नदी भी अनवरत बहती रहती ,
कितना कुछ साथ बहा ले जाती,
कहीं अगर वो भी ठहर जाये तो,
बहता कोई अपना भी मिल जाये |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
शीर्षक- ठहराव
विधा- छंदमुक्त कविता
***************
जिन्दगी चलने का नाम है,
किन्तु ठहराव भी जरूरी है,
चलते चलते जब थक जाते,
तब आराम भी तो जरूरी है |
बड़-बड़ बोलना कहां अच्छा होता,
वजन बात का उसका कच्चा होता,
जुबां में थोड़ा गर ठहराव आ जायें,
वजन बात का खुद ही बढ़ जाये |
नदी भी अनवरत बहती रहती ,
कितना कुछ साथ बहा ले जाती,
कहीं अगर वो भी ठहर जाये तो,
बहता कोई अपना भी मिल जाये |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
ठहराव
अच्छे लगते हैं
पल ठहराव के
शातिर दौड़ती जिंदगी
एक पल रुक कर अंदर झांकना
कुछ कमजोरियां पाना
ताकतों को अपना बनाना
पल ठहराव के
अच्छे लगते हैं ।
औरों के सुख-दुख के
किस्सों में
जब शामिल हो दिल अपना
और दिलों की बातें बातों से
हो गुलजार चमन
सांझे दुख सुख की बातों के
पल ठहराव के
अच्छे लगते हैं ।
साधारण से जीवन के
रचे मापदंड
और दिखावट की दुनिया में
मिटे मृगतृष्णा का आभास
यूँ जीवन सादा सच्चा हो
अपनेपन का एहसास
पल ठहराव के
अच्छे लगते हैं ।
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
अच्छे लगते हैं
पल ठहराव के
शातिर दौड़ती जिंदगी
एक पल रुक कर अंदर झांकना
कुछ कमजोरियां पाना
ताकतों को अपना बनाना
पल ठहराव के
अच्छे लगते हैं ।
औरों के सुख-दुख के
किस्सों में
जब शामिल हो दिल अपना
और दिलों की बातें बातों से
हो गुलजार चमन
सांझे दुख सुख की बातों के
पल ठहराव के
अच्छे लगते हैं ।
साधारण से जीवन के
रचे मापदंड
और दिखावट की दुनिया में
मिटे मृगतृष्णा का आभास
यूँ जीवन सादा सच्चा हो
अपनेपन का एहसास
पल ठहराव के
अच्छे लगते हैं ।
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
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