Saturday, February 1

"अहिंसा"'01फ़रवरी2020

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ब्लॉग संख्या :-643

विषय - अहिंसा
प्रथम प्रस्तुति


जब सीमायें पार होतीं हैं,
जब सत्य की हार होतीं हैं,
तब शस्त्र उठाना पड़ते हैं,
गीता में हम यह पढ़ते हैं।

अहिंसा कायर न कहलवाये ,
कमी समझ फायदा न उठाये,
ये हमको ध्यान धरना होता ,
सूझबूझ से सँवरना होता।

भलमानषी का फायदा उठाया,
इतिहास ने हमको यह बताया,
अहिंसा को कितना अपनाना है,
हुआ सफल जो यह पहचाना है।

है सच अहिंसा से कुछ पाते ,
पर ये भी सच बहुत कुछ गंवाते,
इक नारी का चंडी रूप धरना,
है स्वाभिमान बचाना सँभलना।

समाधिस्थ ऋषि पूजा करते थे,
राक्षस उन पर 'शिवम' गरजते थे,
देख ऋषि कंकाल राम रोय थे,
तब वो हिंसा के प्रण सँजोय थे।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'

विषय अहिंसा
विधा काव्य

01फरवरी 2020,शनिवार

आत्मा परमात्मा सम होती
पर आत्मा कभी न सताओ।
अहिंसा परमो धर्म हमारा
मिल सबको गले लगाओ।

जीओ और जीने दो सबको
अहिंसा जीवन की राह है।
हम ईश्वर की सब सन्ताने
सद्ग्रन्थों की यही सलाह है।

हिंसा जीवन का अपराध है
हिंसा लक्ष्य साधन नहीं होता।
दया करो नित निम्न जीव का
अहिंसक पुण्य बीज ही बोता।

दानव मानव भेद मुख्य यह
दानव प्रवृत्ति होती हिंसक।
मानव दया करुणा की मूरत
वह होता हर जीव का रक्षक।

हृदय उत्पीड़न होती है हिंसा
स्नेह सुधा बरसाओ जग में।
जग जीवन पता नहीं मित्रों
सुखद सुमन बिछाएँ पथ में।

स्वरचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
को
Damyanti Damyanti 

विषय_ अहिंसा |
श्रेष्ठ सत्य अहिंसा परमो धर्म हमारा
युग युग रीत चली आ रही |

चलते रहे सदैव इसी पथ पर मानव
हे आत्मा मे रमता परमात्मा न भूलो |
जीव मात्र न सताओ होता कष्ट सभी को |
जड हो या चेतन है सब ईश्वर की संताने |
महात्मा बुद्ध ,महावीर आधुनिक युग मे गांधी का नारा |
भूल रहा मानव सत्य अहिंसा को
मारकाट हो रही खुलमखुला |
लज्जाहीन हो रहा मानव शनै शनै |
चाहते हो परिवार समाज राज्य देश की भलाई तो सदगुणो सदाचार से
भाई नाता जोडो |
होगा विकास मानव मात्र व देश
यही मूल मंत्र अपनाओ |
हिंसा न करेगे न करने देगे सोच अपनाओ
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
1/2/2020/शनिवार
*अहिंसा*काव्य


सत्य सनातन धर्म हमारा,
हम नहीं किसी से घात करें।
हमेशा ‌रहे अहिंसावादी,
हम नहीं कभी आघात करें।

वीर धीर वलवान निडर हैं,
पहले घात नहीं हम करते।
पीछे वार करे कोई तो,
हम कभी नहीं इसको सहते।

महावीर गौतम की धरती,
सत्य अहिंसा मार्ग बताती।
किसी जीव को नहीं बताना,
भारत माता सदा सिखाती।

सुसंस्कृति संस्कार मिले हैं,
इनको ही हम धारण करते।
चलें श्रीराम आदर्शों पर हम,
कोशिश कुछ हम पालन करते।

नहीं मानते गर कोई तो,
यहां हिंसा ज्यादा करते हैं।
फिर उनको सबक सिखाने हम,
विराट रौद्र रूप धरते हैं।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
1 /2/2020
बिषय, अहिंसा

अहिंसा परमोधर्मः हो सभी का नारा
सारे जहां में सर्वश्रेष्ठ हो देश हमारा
स्वच्छ रहे जो गंगा यमुना की धारा
माँ नर्मदा वहे जैसे हो दूध धारा
वन पर्वतों को सुरक्षित कर बचायें
गर्भावस्था में न मार बेटियों को बचाऐं पढ़ाऐं
सर्वोच्च शिखर पर भारत का झंडा हम फहराऐं
जीने का सबको समानता का अधिकार है
जियो और जीने दो यही कहता व्यवहार है
स्वरचित ,सुषमा, ब्यौहार
दिनांक-01-02-2020
विषय-अहिंसा


अहिंसा

महावीर, बुद्ध और गांधीजी
इसी धरा पर जन्में थे
दया,अहिंसा ,करुणा के बल पर
वे शांति जगत में लाए थे।

अहिंसा के चाबुक की शक्ति से
भारत को जिसने आज़ाद कराया
गाँधी जैसा महात्मा ही
यह चमत्कार थे कर पाए।

सत्य अहिंसा के उपासक थे बापू
अहिंसा से उनके प्राण गए
उनके ठोस सिंद्धान्तों के
अब विरले ही हैं अमल में लाएं।

सुभाषचंद्र,भगतसिंह, राजगुरु
सरीखे देश भक्तों की
कुर्बानी से हम
आज़ाद देश के वासी कहलाए।

मन वाणी,कर्मो से किसी का
दिल किसी का नहीं दुखाएं
इसी कृत्य से महापुरुषों ने
प्राणिमात्र में प्रेम ले आये।

है दुर्भाग्य इस देश का
कि हम उनके कदमों पर न चल पाए
सहनशक्ति अब हुई तिरोहित
हिंसा को सर्वोपरि आज ले आए।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

शीर्षक- अहिंसा
सादर मंच को समर्पित -


🐚🌷🍑 गीतका 🌷🐚🍑
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🌺🌻 अहिंसा 🌻🌺
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ध्यान मुद्रा तप बढ़ाते साधना ।
योग पावन जप सुहाते याचना ।।

बुद्ध की सीखें सदा ही सत्य हैं ,
शान्त कर मन को बताते प्रार्थना ।

सत्य वाणी धर्म धारें जीव यदि ,
प्रेम पथ साधक सजाते वन्दना ।

काम , क्रोध व लोभ गढ़ते पाप को ,
छल -कपट अवगुण मिटाते पावना ।

शील , शिष्टाचार , शुचिता अहिंसा ,
धर्म पथ चलना सुझाते पालना ।

आत्मशोधन से बढ़ें इस त्याग पथ ,
सत वचन संस्कार उगाते भावना ।

आज भी है परम आवश्यक क्रिया ,
ध्यान , निर्मल मन बचाते वासना ।।

🌺🍀🌻🌷🌴🌸🌹

🌲🌹🌲*.... रवीन्द्र वर्मा आगरा

भावों के मोती
विषय-अहिंसा

_______________
दिशाएं कह रही हमसे,
हवाओं में न विष घोलो।
उजाड़े यह चमन हमने,
कलम खुशियों भरी रोपो।

सुलगती नफरतें दिल में,
ये सच्ची आज हकीकत है
लड़ाई मजहबी लड़ते,
वतन की बदनसीबी है।

नशा जब झूठ का चढ़ता,
करें सब आज मनमानी,
अहं सिर पर चढ़ा बैठा,
किसी की बातें न मानी,

है पाली नफरतें दिल में,
मिटा सब प्रीत के बंधन।
तराने प्यार का भूले,
मिटी है प्रीत की सरगम।

कहाँ सुख-चैन खो बैठे,
भूले सत्य अहिंसा भी।
सभी कुर्बानियाँ भूली,
धरा की शान्ति भी भूले।

***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
आज का शीर्षक - "अहिंसा"
विधा - छंद मुक्त कविता
दिन - शनिवार
दिनांक - 01-02-2020
*********************
अहिंसा से मुक्ति भारत को मिली।
विदेशी साम्राज्य की चूलें हिली।
जाग तरुणाई ने जो अँगडाई ली,
खिल उठीं कलियाँ रहीं जो अधखिली।।

बैठकर बारूद के इक ढेर पर।
मन रहा है जश्न, है अंधेर पर।
जब तलक जागेगी दुनिया नींद से,
हो चुकेगी संभलने में देर पर।।

अपनी ढपली अपना अपना राग है।
हर कहीं पसरा जहर का नाग है।
है बहुत दुष्कर सहज जीना यहाँ,
आसमां पानी जमीं पर आग है।।

खून का प्यासा हुआ इंसान है।
जान लेना किसी की आसान है।
कर क्षमा जो भूलकर अपराध को,
जिंदगी जो दे नयी भगवान है।।

है नहीं यह समय शर संधान का।
मत करो प्रतिकार भी अपमान का।
कायरों की भाँति बर्बर मत बनो,
अहिंसा तो शस्त्र है बलवान का।।

#पूर्णतः_मौलिक एवं_स्वरचित

विनीत मोहन औदिच्य
सागर, मध्य प्रदेश
शीर्षक-अहिंसा।
स्वरचित।
"अहिंसा परमो धर्म"
पढ़ाया गया एक अधूरा वाक्य
और चल पड़े सब पीछे पीछे।
समय परिस्थिति और काल
नियत करती है हमेशा कर्म।
अधूरा ज्ञान,अधूरी जानकारी
हमेशा पहुंचाती है नुकसान
किसी व्यक्ति को,समाज को या देश को।
इसीलिए जानना चाहिए पूर्णता से
वेदऋचाओं का,ऋषि-मुनियों के वचनों का
पुराणों में दिए उपदेशों का,ग्रंथों में दिए नियमों का।
अहिंसा का पालन कराने के लिए
बल प्रयोग भी होता है जरूरी कभी-कभी।
शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए
दंड देना होता है जरूरी कभी-कभी।
धर्मस्थापना के लिए,अधर्म के नाश के लिए
सहारा होता शास्त्रोचित नियमों का।
हमारी संस्कृति हमारी सभ्यता की
अविरल सनातन से बहती धारा
जिसके मूल में है अहिंसा मन,वचन औ कर्म से
लेकिन जब जरूरी हो समाज के लिए,
देश के लिए,धर्म के लिए तो
हिंसा भी हमारा धर्म है,कर्म है,वचन है।।

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
01/02/2020
धा : हाईकू
तिथि : 1.2.. 2020

राह पावन
अहिंसक जीवन
हिंसा पीड़न।

अहिंसा दीक्षा
महात्मा गांधी शिक्षा
गर्व परीक्षा।

हिंसा न शान
अहिंसा अभिमान
उत्तम ज्ञान।

हिंसा है श्राप
अहिंसा वरदान
सुकर्म ज्ञान।

---रीता ग्रोवर
---स्वरचित

अहिंसा
लावणी छंद पर आधारित गीतिका

***

सत्य अहिंसा बात पुरानी,रार मचाना आता है ।
दूजे घर में आग लगा के,दाल पकाना आता है ।।

देख! द्रवित होते अब गांधी,ग़द्दारों से देश भरा ,
शिक्षा के मंदिर में देखो,हथियारों से नाता है ।।

अपशब्दों का दौर बढ़ा है ,वादों की अब झड़ी लगी,
विश्वास नहीं नेताओं पर,ठगा इंसान जाता है ।

रामराज्य का सपना देखा ,फिर भी हिंसा बढ़ती क्यों,
अपनी ढपली राग बजाते ,भारत कहाँ सुहाता है।।

समृद्ध संस्कृति भारत की है ,इसका मान बढ़ाएं हम ,
सत्य अहिंसा का व्रत लेकर,वचन निभाना आता है ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

विषय- अंहिसा
दिनांक १-२-२०२०
सत्य अहिंसा जग में ,कहीं नहीं मिलती।
झूठ फरेब कुटिल हंसी,हर चेहरे खेलती।

सत्य बोलने वालों की,हंसी उड़ाई जाती।
हरिश्चंद्र औलाद कह,मजाक उड़ाई जाती।

हिंसा काम होता,अहिंसा नजर ना आती।
सत्य राह जो चला,उसे मौत गले लगाती।

सच्ची बात कड़वी लगी,झूठ की वाह वाही।
अहिंसा ताकत,किसी को नजर ना आती।

अहिंसा मार्ग कठिन, हिंसा ही रास आती।
सच्चाई सबके गले,फांस सी चुभ पाती।

कुछ दरिंदों के कारण ही,हिंसा धरा होती।
देख उनकी दरिंदगी,मानव जाति शर्माती।

अहिंसा के पुजारी,हिंसा कांटे सी चुभती।
बापू की तस्वीर,दफ्तरों में ही नजर आती।

अहिंसा दम आजादी,बात समझ ना आती।
कठिन राह मुश्किल,आसान राह ही भाती।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय, अहिंसा
दिन, शनिवार

दिनांक, १,२,२०२०.

यहाँ अहिंसा है वो परिपाटी , प्रीत के राग जो गाये।
रहें हम प्यार से जग में , यही हमेशा हमको समझाये।

प्यार में क्या काम हिंसा का, इसे क्यों फिर हम अपनायें।
बनें क्यों जानवर हम तुम, किसी पर बल क्यों अजमायें ।

होता बस एक ही धर्म मानवता, दूसरा हो नहीं सकता ।
नहीं जिस दिल में करुणा हो, वो इंसा हो नहीं सकता।

दुखाना दिल किसी का पाप का परिचायक होता है,
दुनियाँ में सदा रोते को हँसाना ही महान धर्म होता है।

जो छोड़ कर तेरा मेरा हम भोग लिप्सा को ठुकरा दें,
बना लें धर्म अहिंसा को तो स्वर्ग दुनियाँ को बना दें ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .

विषय अहिंसा
तिथि 1,2,2020

वार शनिवार

कहाँ है आज अहिंसा
हिंसा का ही है बोलबाला
चहूँ ओर
आज अगर कोई जीता है
तो हिंसा के बल पर
जीत है असत्य की
सत्य पर
कहाँ है अहिंसा
सिर्फ और सिर्फ
एक किताबी शब्द
बनकर रह गया है
जब असत्य और हिंसा से
काम बन जाए
फिर क्यूँकर कोई
अहिंसा को अपनाए

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी

विषय अहिंसा
दिवस शनिवार

तिथि १/२/२०२०
अहिंसा कौंध कहती मेरी नैन अपने दिल की प्रेम भरी बात!
स्वप्न सुहाने देखती जो क्यो ओझल होती वो अहिंसा की बारात! !
÷÷÷÷÷÷
मन की संध्या ने रुलाया फिर भी स्वप्न रहे साथ!
अपने ही धुन में हँसते-खिलखिलाते लिए राष्ट्र धर्म की अभिलाषा साथ! !
दूर तलक दौड़ते "नैन लिए मन में हिंसा की संवेदना भरी संघात!
स्वप्न सुहाने देखती जो क्यो ओझल होती वो अहिंसा की बारात! !
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हृदय की मधुरिम रश्मियाॅ देखे सुन्दर स्वप्न साकार!
अहिंसा की स्नेहिल अभिलाषा खोल नपाये ज्योतिर्मय मन के द्वार! !
सौहार्द भरे चंद्र तारों की लकीरें आती धरती पर ले प्रेम सौगात!
स्वप्न सुहावने देखती जो क्यो ओझल होती वो अहिंसा की बारात! !
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वसंत के रंगौ से भरी राष्ट्र की मोहनी छबि देख पुलकित हुआ हृदय स्नेहिल प्रेम राग!
राजनीतिज्ञों के ज्वलित शब्द वाणों से देह धारा कम्पित हुव़ी फिर कैंसे प्रबल हो प्रेम अनुराग! !
उनकी जहर भरी ऑंखों में छाया मेरे मन की खुशियों का उद्घात!
स्वप्न सुहाने देखती जो क्यो ओझल होती वो अहिंसा की बारात! !
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राष्ट्र धर्म कर्म हीन ना ही निष्ठुर व्यवहार की मेरी पहचान!
फिर क्यो प्रेम के रिश्ते टूटते क्यों दुखित दिल की पहचान! !
सर्व सौहार्द भरा धर्म-कर्म को सदा समर्पित फिर क्यो अधूरेपन की आघात! !
स्वप्न सुहाने देखती जो क्यो ओझल होती वो अहिंसा की बारात! !
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
हल्द्वानी
विषय-अहिंसा

अत्याचार कर ना सके
अहिंसा ऐसा भाव है ।
अहिंसा मरहम बनी ,
हिंसा देती घाव है।

यह महान भावना थी,
राष्ट्रपिता ने अपनाई।
लाठी के आगे रहे अडिग ,
मार निज तन पर खाई ।

गांधीजी ने कष्ट सहे ,
पर अहिंसा को ना छोड़ा ।
सत्य मार्ग पर अडिग रहे,
गुरूर गोरों का तोड़ा।

अहिंसा का शांतिदूत एक,
राजकुमार उपजा था।
मानवता के त्राण हेतु,
अपना घरद्वार तजा था।

दुर्दांत क्रूर दस्यु को भी,
उस तपसी के नैनो ने ।
झुकाया अंगुलिमाल को,
बुद्ध के प्रेमिल बैनों ने।

इस सर्वोच्च भावना से,
अशोक बड़ा महान बना।
शिलालेख बतलाते हैं,
देश की शान वह बना।

आज जरूरत है हमको ,
परम अहिंसा धर्म की ।
इसको अपनाकर बहाएँ,
निर्मल धारा निज कर्म की।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक-१/१/२०२०
शीर्षक-"अहिंसा"


हिंसा नही है उचित
अहिंसक बन जाइए
बापू ने जो दिये सीख
उसे चित धरिए।

अहिंसा तो है परम गुण
इसे अपनाइए
अज्ञान का तम हटाकर
ज्ञान चक्षु खोलिए।

सकल धरा है एक परिवार
हिंसक मत बनिए
मानव है तो मानवता को
भुल मत जाइए।

लोभ,क्रोध है अवगुण
दया भाव अपनाइए
अपने से दुर्बल को कभी न सताइए।

हिंसा का जबाव हिंसा से,
प्रतिहिंसा मत बढ़ाइए
अहिंसा अपनाकर
सत्य मार्ग पर डटे रहिए।

अहिंसक बन,स्वस्थ माष्तिक अपनाइए
हिंसक बन चैन मत खोइए
मन कर्म वचन से अहिंसक बन जाइए।
दुनिया में गम बहुत,उसे भुल जाइए।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
1/2/2020
विषय -अहिंसा

अहिंसा को भूल गए है हम,
हिंसा में खो गए हैं हम!
संयम धैर्य का नाम ना रहा,
शांति का वो पैगाम ना रहा!
बेजुबानों पर हिंसा कुछ करते है,
उनसे अपना पेट भरते हैं!
उनमे भी हमारी तरह ही सांस है,
उनको भी जीवन जीने की आस है!
जाने क्यों लोग अब मतलबी से हो गए,
बापू के भारत में अहिंसा वादी से हो गए
स्वरचित (एकता शर्मा)

विषय- अहिंसा
विधा हाइकु


बापू का मार्ग
सत्य अहिंसा धर्म
कठिन बड़ा

अहिंसा अच्छी
हिंसा भी ज़रूरी है
कुछ के लिए

मैं अहिंसक
तुम हिंसा पसंद
मुश्किल जीना

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

दिनांक :01/02/2020
विषय : अहिंसा
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
दुःखी है शिक्षा
किताबों में अहिंसा
रोड पे हिंसा
(2)
तोप न अस्त्र
विचार हथियार
अहिंसा शस्त्र
(3)
बुद्ध न गाँधी
अहिंसा की फसल
माँगती पानी
(4)
खून तमाशे
अहिंसानगर में
मिलती लाशें
(5)
हो गया गुम
अहिंसा के द्वार से
शांति का रास्ता

स्वरचित
ऋतुराज दवे

1फ़रवरी20
विधा:-हाइकु

विषय:अहिंसा

वुहान क्षेत्र ~
हिंसा दुष्परिणाम
कोरोना वार

अहिंसा धर्म~
गौतम गांधी मार्ग
भारत देश

अहिंसा राह
जीव परमधर्म ~
वेद सन्देश

देश विदेश
प्रक्षेपास्त्र की होड़~
कहाँ अहिंसा

मनीष श्री

1-2-2020
अहिंसा

*******
कब तक इंतजार करें,
हिंसा का कब तक वार सहें।
सत्य,अहिंसा का गाँधी ने दिया नारा था,
क्यूँ हिंदु ही अहिंसा का वार सहे।
कभी निरपेक्षता के नाम पर,कभी राजनीति के नाम पर अपने धर्म का बलिदान करें,
क्या अधिकार उन्हें ही हिंसा कर रोष जाता सकें,
क्यूँ हिन्दू ही गाल आगे करे,
क्यूँ नहीं अधिकार, वार का प्रतिकार कर सके।
ईश्वर ने अधिकार दिया सबको जीने का,
बल दिया अपनी रक्षा कर सकें।।
हिंसा का जबाब अहिंसा नही हो सकता,
ईश्वर भी मदद नहीं करता उसकी,अपनी रक्षा जो न कर सके।।
आज नहीं "अहिंसा परमोधर्मः",
ईश्वर बल दो इतना'शठे शाठयम समाचरेत"का पालन कर सकें।।
गीतांजली वार्ष्णेय

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"अंदाज"05मई2020

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