Thursday, February 6

"पाँव/पद06फरवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-648
दिनांक-06/02/2020
विषय-पाँव/पद


शून्य दाहिने जिसके लगता
एक नहीं दस गुना चलता।
पैरों से मत रेत कुरेदो
गहरे सागर में मोती पलता।।

मंजिल है उसे के चरणों में
जो कालचक्र का ज्ञाता है।
निःस्वार्थ भाव से सरिता जल
अविरल ही बहता जाता है।

नागफनी की गलीयों में
पांव में कांटा चुभता जाता।
मरुस्थल में चलने वाला
जल का उद्गम जरूर पाता।।

आ जाये पर्वत राहों में
हम समेट ले बाहों में।
दुर्गम पथ को पार करें
हर पल कदम से रार करे।।

पथ पर चला पंथी अकेला
लेकर संग रश्मियो का मेला।
कुर्बानी के गीत अधरों पर
मिलेगा जरूर शहीदों का टीला।

पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण
शस्य श्यामला सदैव बहता।
धरा के प्रांगण में पदचाप का
उमंग उत्सव हर पल सजता।।

स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज।


विषय पद, पाँव
विधा काव्य

6 फरवरी 2020,गुरुवार

सरयू तट पर श्री केवट ने
पाँव पखारे श्री राघव के।
मर्यादा पुरूषोत्तम पहिचाने
केवट हिय भक्ति भाव के।

पद स्तम्भ हैं इस शरीर के
जो पद प्रगति के पथ जाते।
एवरेस्ट पर ध्वज रोपण कर
मंजिल ऊपर चरण पँहुचाते।

यह पद हैं नर अंगद के जैसे
जल थल नभ में करे बसेरा।
पद चलते रूकते नहीं जिनके
अरुण मय नित देखें सवेरा।

महापुरुषों के पद चिन्हों ने
सत्य यशस्वी मार्ग दिखाया।
चार वेद प्रिय महान गर्न्थो ने
जीवन जीना जगत सिखाया।

परोपकार पथ पाँव बढाओ
दीनदुःखी मिल गले लगाओ।
माँ भारती के पद सरोज नित
विनयशील बन शीश झुकाओ।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

पाँव

बचपन से अाएं हैं,
सुनते सुनते ।
वहीं मन में गुनते ।
पाँव जमीं पर,
हो तो अच्छें ।
मन उडे आंसमा,
तो अच्छें ।
जो पाँव,
जमीं से जुड़े ,
हो अच्छें ।
वही काम करें सच्चे ।
काम हो सच्चे,
तो राह चले अच्छे ।
और राह चले अच्छे,
फिर पाँव कहाँ बचे ।
फिर पाँव बने चरण ।
फिर उन चरणों में,
हम जाते शरण,
चाहते है,
उन चरणों ,
मिले स्पर्श ।
जो दें,
सीर्फ हर्ष ।

Xप्रदीप सहारे

पग पग पर परेशानी प्यारे,
मत बाधाओं से डरना तू।
नया बना खुद अलग रास्ता,
मत पीछे पीछे चलना तू ।

मुसीबतों मुश्किलों को देख,
तू पथ में रखना घुटना मत।
नींद आराम आलस्य दुश्मन,
तू इन के आगे झुकना मत।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©

विषय- पाँव
प्रथम प्रस्तुति

पाँव में पड़ गए छाले
ये कौन सुने है नाले।।
सबको अपने से फुर्सत न
सब अपने में मतवाले।।

डिग्री लैके घूमें भागे
गली-गली की धूल फाँके।।
सरकारों के सिस्टम न्यारे
दलालों के भाग्य जागे।।

जाके पैर न फटी बिवाई
वो क्या जाने पीर पराई।।
सियासत आज वो सिखायें
जो विदेश में करे पढ़ाई।।

जमीं से जुड़ा न नेता कोई
फाइव स्टार में मीटिंग होई।।
सर से पैर विलासिता झलके
कहूँ 'शिवम' यह साफगोई।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 06/02/2020
"पांव/पद"
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।

चाहे पांव में कांटे चुभे, चाहे पांव में पड़े छाले।
चलते हुए रहोगे तो पाओगे मंजिल चलनेवाले।

जीवन डगर कठिन है कितना।
थक जाते हैं पांव।
चलनेवाले पहुंच हीं जाते हैं।
चाहे धूप मिले या छांव।

लगे रहो अनवरत।
चाहे राहें हों कितनी मुश्किल।
पांव दे अगर साथ तो।
कोई काम नहीं है मुश्किल।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

6 /2 /2020
बिषय ,पांव,, पद
पांव में घुंघरू गले जयमाल
ठुमक ठुमक चले नंद के लाल
हाथ में कंगना कमर करधनियां
सांवली सूरत लगे मोहनियां
धरणी पर पद जो धारे
छनछन गूंजे अंगना द्वारे
मोटे मोटे कजरारे नैना
मधुर मधुर बोले तोतरी बैना
लिए लकुटी अधर बंसुरिया
कांधे पर है कारी कमरिया
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे
मनमोहन पर मनवा मोहे
लाल यशोदा के राधा के सावरिया
मेरी भी प्रभु लेना खबरिया
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार

दिनाँक-06-02-2020
विषय- पाव/ पद
दबे पाँव कब आयी जवानी,
ये मुझको मालूम नहीं।
बालपन कब दूर हो चला,
ये मुझको मालूम नहीं।
समय की धारा यू बहती है
जैसे नदियाँ कलकल करती।
जीवन में भी ऐसी नदियाँ
हर घाट और दर से बहती।
दबे पाँव कब बीता जीवन
ये मुझको मालूम नहीं।
जीवन बहुत ही रंग-रंगीला
कभी खुशी और गम का मेला
सभी चाहते खुशियाँ मिल जाए
जीवन ऐसा रंग- रंगीला।
जीवन में गर चाहों संतुलन
तो प्रपंचों से दूर रहो।
तभी सजीला जीवन होगा।
ऐसा ही संकल्प करों।।

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार
841239

6/2/20
विषय-पाँव

उषा ने सुरमई शैया से
अपने सिंदूरी" पाँव "उतारे,
पायल छनकी
बिखरे सुनहरी किरणों के घुंघरू,
फैल गये अम्बर में
उस क्षोर से क्षितिज तक,
मचल उठे धरा से मिलने
दौड़ चले आतुर हो,
खेलते पत्तियों से
कुछ पल द्रुम दलों पर ठहरे,
श्वेत ओस को
इंद्रधनुषी बाना पहना चले,
नदियों की कल-कल में
स्नान कर पानी मे रंग घोलते,
लाजवन्ती को होले से
छूते प्यार से,
अरविंद में नव जीवन का
संदेश देते,
कलियों फूलों में
लुभावने रंग भरते,
हल्की बरसती झरनों की
फुहारों पर इंद्रधनुष रचते ,
छन्न से धरा का
आलिंगन करते,
जन जीवन को
नई हलचल देते,
सारे विश्व पर अपनी
आभा छिटकाते,
सुनहरी किरणों के घुंघरू।

स्वरचित
कुसुम कोठारी।


दिनांक - 6/2/2020
विषय: - पाँव
******************
शोभा बढ़ जाती है कदमों की जब बँधता है पायल थिरकते पाँव में,
नहीं करता ये भेद-भाव कोई
देता सुकून सुनने वालों के कानों में।

सुनाई देता एक सा हीं धून
जब भी बजे घर-आँगन में
या बजे तवायफों के महफिल में,
फर्क सिर्फ इतना है यारों
एक इज्जत की जिंदगी जीता
दूजा करता कुर्बान जिंदगी
दर्द की घूँट पीने में।

कैद मिलते है कितने बेकसूर
इन गलियारों में,
दफन हो जाती है उनकी सिसकियां
पाजेब की झनकारों में,
मसले जाते है रोज इनके अरमाँ
हवस के दीवारों में।

थी कभी वो भी बेटी किसी की
संजोए थे वो भी सपने नयन में,
बनाएं थे जो महल इसने शायद,
था वह किनारे बह गया समंदर में
बिखर गया सबकुछ ऐसे
जैसे लिखी हो रब ने
उसकी किस्मत आयनें में।

स्वरचित: - मुन्नी कामत।

विषय-पांव।
स्वरचित।

गोरी चली है सज-धज के,
पायल झंकार के ।।
चली पिया के घर पांव में,
मेहंदी लगाइके।।

शुभ शगुन की मेहंदी,बड़ी खूब रची है।
पिया के प्यार में मानो रची-बसी है।
सखियां भी देखें मेहंदी,
लहंगा उठाइके।।
गोरी.....

सुंदर सलोने सपने,अंखियन में रचे-बसे हैं।
पांवों में सुगढ़ पायलिया,घुंघरू बजे हैं।
कदमों से पायल की,
छम-छम बजाइके।।
गोरी....

आई पिया मिलन की बेला,
किये गोरी ने सोलह श्रृंगार।
प्रतीक्षारत हैं कजरारे नैना
घूंघट में मुखड़ा छिपाइके।।
गोरी.....

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"

तिथि-6/2/2020/गुरुवार
विषय-*पांव/पग*
काव्य

पग पैजनिया घूंघरवारी।
अपने नाच रहे गिरधारी।
धरें मुरलिया अधरों सुंदर,
मनमोही ‌‌ लगते वनवारी।

नैना काजल खूब लगाऐ।
मोही मोहन हमें लुभाऐ।
मोटी मोटी अंखियां वैरी,
बंधी पैंजनी गीत सुनाऐ।

राधा रानी इसे बुलातीं।
मीठी वाणी इसे लुभाती।
करती बातें बहुत सुहाऐ,
झूठ बोलती इसे सताती।

पांव बांधके रखता कोई।
मर्यादित भी रहता कोई।
प्रेम सुखी पग आगे बढ़ते,
नहीं प्रीत बिन रहता कोई।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
जय जय श्री राम राम जी

भा*पांव/पग*काव्य
विषय, पाँव /पद
६,२,२०२०.
गुरुवार .

प्रभु चरणों की धूल मिले,
लालायित ज्ञानी रहते हैं।
माँ के पाँव मे जन्नत होती,
समझदार ही समझते हैं।

कदम बढ़ाना सीखा माँ से,
तब भले बुरे का ज्ञान हुआ।
माँ के आँचल की छाया में,
ये विस्तृत सारा संसार हुआ।

सोच समझ कर चलने वाले,
यहाँ ठोकर कम ही खाते है।
कदम बहक जाते हैं जब जब,
आँसू अपयश के संग आते हैं।

पथ प्रदर्शक जो निशां पाँव के,
उनको दुनियाँ वाले अपनाते हैं।
पाँव हमारे अक्सर इस जग में,
आचरण को प्रदर्शित करते हैं।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश.
विषय- पद/ पाँव
विधा- ग़ज़ल
दिनांक-06-02-2020

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क्या खूब हैं नजारे तेरे पाँव की कसम,
हम हो गए तुम्हारे तेरे पाँव की कसम।

नाखून तेरे सुर्ख नुकीले तो हैं मगर,
लगते हैं खूब प्यारे तेरे पाँव की कसम।

सब उंगलियों की साइज़ तेरी है अलग अलग,
बेबाक हैं पसारे तेरे पाँव की कसम।

दिखता है अनूठा बहुत ये तेरा अंगूठा,
ज्यूँ आसमां के तारे तेरे पाँव की कसम।

नाज़ो अदा से पाँव को रक्खा है पाँव पे,
हम इनपे जान वारे तेरे पाँव की कसम।

शेफालिका झा
स्वरचित... सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक 6 /1/ 2020
विषय -पांव
दिन -गुरुवार
पांव भार उठाता सारे तन का आगे बढ़ता जाता है।
कंकरीली पथरीली राहों में भी कष्ट उठाता है ।।
जिसके कारण आज सभी उन्नति के पथ पर जाते हैं।
बोझ उठाता है शरीर का काम सभी कर पाते हैं।।
संकट में जो भाग -भाग कर सबका प्राण बचाते हैं ।
सबसे नीचे होकर भी जो ऊंचा हमें बनाता है।
काम करे सबसे अच्छा पर निम्न भाग कहलाता है।
सभी प्रणाम करें जिसको वही पांव कहलाता है।।
मौलिक रचना
स्वरचित- रंजना सिंह प्रयागराज

विषय पाँव
विधा कविता

दिनाँक 6.2.2020
दिन गुरुवार

पाँव
💘💘💘

बहुत मुश्किल होता बचाव
जब डगमगाने लगते हैं पाँव
चाहे कैसा भी कर्म क्षेत्र हो
ज़माने पड़ते हैं अपने पाँव।

मुहावरे बने हुए हैं बहुत ही पाँव पर
जो बतला देते हमें ये हैं कैसी ठाँव पर
किसी के तो पाँव भारी हुए
और किसी के अकड़ गये
किसी के डगमगा गये
और किसी के उखड़ गये।

किसी के पाँव स्तम्भ हैं
किसी के लम्बे खम्भ हैं
किसी के पाँव सींक से
उडा़ न दे कोई खींच के।

किसी के पाँव होते वन्दनीय
चरण पादुका प्रसँग प्रशँसनीय
पाँव छूना है हमारी सँस्कृति
पाँव पड़ जाना यानि दुर्बल मति।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
6/2/20
थके थके पाँव

बुझे बुझे से
चली बहुत
थकी बहुत
बोझ उठाये
जिंदगी का
घिसे तलुवों सङ्ग
चलती रही
चल रही अब भी
एक मुस्कान सङ्ग
कितने जख्म
दर्दो सङ्ग
उनकी भाषा
न पढ़ सका कोई
संघर्षों की दासता
जिंदगी की कहानी
बीता इतिहास
सफर का रूप
तिरछे पैर
टेढ़ी उंगलियां
नसों की जकड़न
असहनीय पीड़ा
दिल से शुरु
अंत पाँव तक
न पढ़ सका कोई
न समझेगा भाषा
अनेक पाँवो की रूपरेखा
भिन्न रूपो में
वेश में भाव मे
आशाओं के संसार मे
नारी के रूप में
वृद्धावस्ता के दहलीज में

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय : पैर, पांव
विधा : हाईकू

तिथि : 6.2.2020

पांव सुदामा
मैले, नेह अर्पणा
धोवत कृष्णा।

दबाए पांव
आ जाता है दुर्भाग्य
बिल्ली समान।

झांझर पैर
थिरके प्रिय संग
भाव न गैर।

थकित पांव
ढ़ूंढते प्रभु धाम
श्रम संग्राम।

- रीता ग्रोवर
- स्वरचित

पाँव/ पद

होंगी
फ़तह मंजिल
जब होंगे
पाँव मजबूत
मुकाम तलक
पहुंचेंगे हम
लेंगे जब
संकल्प
भरपूर

दें
बच्चों को
संस्कार अच्छे
बनें
देश के
नागरिक
सच्चे वो

रखो
दृढ विश्वास से
पाँव अपने
चाहे हो
जंगल या
पगडंडी गाँव

पद
पैचनियां बांध
कृष्ण नाचे हैं
वृन्दावन
राधा संग
नाची है

करो
सेवा
माता पिता की
पाँव दबा
लो
आशीर्वाद
उनका

है
इतिहास
पाँव का
बहुत
कहें "भारी हैं
पाँव बहू के "
छाई खुशियाँ
घर अंगना

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

दिनांक-६-२-२०
विषय- पाँव/पद

वीर छंद(१६,१५ मात्राएँ, अंत गुरु लघु)

आलय है आधार शिला ही,
रमता मनु मन का विस्तार।
मनुज देह का पाँव अंग भी,
करे जीव शाला निस्तार।।

प्रात काल के भ्रमण गमन से,
तजती काया कष्ट अपार।
दौड़ दौड़ना खेल खेलना,
लीला पद की अपरम्पार।।

प्रथम चरण बालक है धरता ,
मधुरिम स्मृतियों का अंबार।
निधियाँ बुनते मात-पिता भी,
शैशव जब तजता है द्वार।।

होता प्रमुदित यौवन का गृह,
परम अंग है ये दिगपाल।
धीमे-धीमे चरण बढ़ा कर,
कन्या डाले वर जयमाल।।

गाथाओं में पग की वाणी,
शोभित करते हैं अवतार।
राघव रज पग तार अहिल्या,
नैय्या केवट की भी पार।।

संशय भृगु मन हुआ उदित जब,
मार सृष्टि देवों को लात।
लक्ष्मीपति ने धैर्य धार कर,
पूछा मुनिवर पग आघात।

तोड़ अहम बलि का नारायण ,
तीन पगों में भू को नाप ।
सीता पग तोड़ें रेखा को,
बना हरण का विचलित ताप।।

पाँव बढ़ायें जीवन रण में,
मंथन करना सागर सार।
पा जाओगे सोम रत्न को,
या पाओगे विष की धार।।

स्वरचित
रचना उनियाल
बंगलुरु
दिनांक-६/२/२०२०
शीर्षक-"पाँव/पद"


अपने पाँव पर खड़ा होना,
तभी मिलेगा पहचान।
सुनकर माँ की फटकार,
उठ खड़ा हुआ वह माई का लाल।
करके श्रम इक्कठा किया,
वह रोकड़ा हजार।

खर्च किया जब बेहिसाब
माँ का मिला फटकार
"" पाँव पसारे उतना ही
जितना हो लंबी तान"।

सुनकर माँ की बातें
निकला, करने नया काम
माँ ने फिर सुनाई गाथा
सीख लो एक बात
"जहाँ,जहाँ पाँव पड़े
सफलता चुमे पाँव"।
करना तुम वैसा काम।

करने को मेहनत बहुत
उठे मन विचार,
"जाके पाँव न फटे बेवाई
सो क्या जाने पीड़ पराई"

समझ गया वह बात वह आज,
दीन दुखियों की सेवा से बढ़कर
नही बढ़िया कोई काम
करने लगा वह दीनन की सेवा

मन में रख विश्वास
सेवक राम का नाम गुंजने लगा
हुआ वह विख्यात
माँ ने दिया फिर खुश होकर
फिर एक आर्शिवाद।

"पुत्र के पाँव पालने में ही
पहचाने जाते है"
मैं समझ गई थी बात।

तभी मैं तुम्हें देती थी फटकार
सही राह चुनो,और सफलता
चुमे तुम्हारा पाँव।
माँ का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

दिनांक-6/2/2020
विषय - पाँव/पद


जन्म जननी की कोख से लेकर
शिशु इस जग जीवन में आता है
अपने क्रंदन से स्पंदन जतलाकर
पलने में अपने नन्हे पाँव चलाता है

माँ की ममता का स्नेहिल आँचल
जीवन उसका प्रतिपल हर्षाता है
घुटनों के बल चल- चलकर ही
धरा पर वह अपने पाँव जमाता है।

मात-पिता के संस्कारों से पोषित
अपने आचार औ विचार बनाता है
अपने गुरुजनों की वंदना करने को
पाँवों में वह सादर शीश नवाता है

श्रद्धा-भक्ति के जब भाव उमड़ते
मंदिर दर्शन करने चला जाता है
मनोकामना की पूर्ति की खातिर
नंगे पाँवों से वह अर्जी लगाता है

कठिन कर्म -साधना में रत होकर
निज लक्ष्य को एक दिन पा लेता है
पाँवों पर अपने ही खड़ा होता जब
अनंत बुलंदियों को वह छू लेता है।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे।
पांव के तले आसमान है प्यारे।


मरवा डालेगी इसे काबू कर।
यह जो तेरी जबान हैं प्यारे।

बड़ी ठंडक हैं इसके साये में।
यह इक पुराना मकान है प्यारे।

कहां हैं वो मकतब वो कालेज।
अब तो खाली दुकान है प्यारे।

जख्म तो कब का भर चुका है।
बचा तो बस निशान हैं प्यारे।

जरा चलना संभल संभल के।
ये जिंदगी इक ढलान हैं प्यारे।

बढ रही है तपिश क्या होगा।
समझ खतरे में जान है प्यारे।

कुछ फिक्र कर कुछ कर अमल।
तू भी तो इक इन्सान है प्यारे।

मिट गयी हस्ती न होश आया।
तुझे तो अब भी गुमान है प्यारे।

भरोसा रख परों पर न घबरा।
ये पहली पहली उड़ान है प्यारे।

समझ बिन कहे मुहब्बत है गर।
खामोशी भी इक जुबान है प्यारे।

मुझ से देखा नही जाता ये मंजर।
हर आदमी लहु लुहान है प्यारे।

इस बेबसी को समझ न मुक़द्दर।
यही तो असली इम्तिहान है प्यारे।

उन्हीं से बच के रहना मुश्किल ।
जो कुछ ज्यादा मेहरबान है प्यारे।

इन्हें कभी खिलौने न समझना।
मां की बच्चों मैं जान है प्यारे।

मुझको वो नहीं समझता"सोहल"।
जिसके कदमों में जान है प्यारे।

स्वरचित विपिन सोहल
शीर्षक- पाँव/ पद
सादर मंच को समर्पित -


🍊 गीतिका मीत हँसती 🍊
**************************
🌸 पाँव / पद 🌸
🍀 छंद-माधव मालती 🍀
मापनी- 2122 , 2122 , 2122 , 2122
समांत- आँव ,पदांत- लिख दूँ
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

मीत हँसती धूप लिख दूँ
या सुहानी छाँव लिख दूँ ।
आपके हैं पाँव कोमल
मखमली हर ठाँव लिख दूँ ।।

जिन्दगी तेरे हवाले
क्यों रहें हम दूर राही ,
प्यार की सोंधी सुरभि सा
एक स्वप्निल गाँव लिख दूँ ।

सावनी मौसम सुहाना
रिमझिमी सौगात पल-पल ,
पायली झनकार बाजे
सुर्ख अलता पाँव लिख दूँ ।

लो घटायें घिर रहीं हैं
आज बादल भी जवाँ हैं ,
मोर की आवाज लरजें
कूक कोयल काँव लिख दूँ ।

खो नहीं जाओ कहीं तुम
इस जमाने की बला से ,
मैं चुरा लूँ मीत तुम को
आज ऐसा दाँव लिख दूँ ।।

🌺🍀🍊🌻🌹

🌴🌻💧🍊**...रवीन्द्र वर्मा आगरा

06-02-2020
विषय:- पग
वि
धा :-ताटंक छंद

निरख निरख नन्हें पद पंकज , मातु आनंद है पाती ।
सुन कर बाज रही पैंजनियाँ ,मन ही मन है मुस्काती ।।

सखरस कर में नवनीत लिये , घूम घूम कर हैं खाते ।
उतर रही है पीत काछनी , गिर मुँह के बल हैं जाते।।

उठ कर देख मरी है चींटी , कर के नीचे है आई ।
रुदन भूल कर कान्हा कहता , मरी न चींटी है माई ।।

भोरे मुख की सुन कर बातें , अंकवारि भर है लेती ।
आँचल से ढक कर लल्ला को , मुख दिठौना है देती ।।

पग मस्तक जब लगे परसने ,खींच पाँव हरि हैं लेते ।
दुग्ध पान कर माँ के तन को , भींच हाथ से हैं देते ।।

रक्त पद्म पग पर रंजित माँ , करती तुतली है बातें ।
तुतले बोलों से खुश होकर , खूब मारते हैं लातें ।।

हरि चरणों की अद्भुत लीला , समझ न यशुमति है पाती ।
किलकारी से हर्षित करते , मैया बलि बलि है जाती ।।

कंधों पर लेकर लल्ला को , सारे आँगन में घूमें ।
कभी एक पग कभी दूसरा , लेकर हाथों में चूमें ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा

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