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ब्लॉग संख्या :-646
जो दिखता है वो बिकता है
सुंदर पुष्प पिरो माला में ,
कहो किसे धागा दिखता है।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
कंधे ऊपर किल बेचारी ,
लेकर फोटो अडिग खड़ी है।
सब कहते वाह कितनी सुंदर,
कभी कील न नजर पड़ी है।।
स्याही हो कुर्बान पेज पर ,
बोलें सभी पैन लिखता है ।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
नीले अंबर पतंग पितम्बर ,
हवा के संग भरे हिलोरी ।
सब प्रशंसा करें पतंग कि ,
नहीं दिखती पतली डोरी।।
करतब करे कमाल आसमां,
किसे पता धागा खिचता है।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है ।।
तेल साथ में जलकर बाती,
करती रोशनी तम भगाती।
सब कहते हैं दीपक जलता,
जबकि बाती बदन जलाती।।
बाती की ना पीड़ा जानी,
ध्यान सदा लौ पर टिकता है।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
खजूर देख सब करें अचम्भा ,
चली न चर्चा कभी जड़ों के।
सभी जीत का दावा करते ,
दुआ कभी ना दिखे बड़ों की।।
सब तारीफ करें झरने की,
बूंद --बूंद पानी रिश्ता है ।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
सुंदर पुष्प पिरो माला में ,
कहो किसे धागा दिखता है।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
कंधे ऊपर किल बेचारी ,
लेकर फोटो अडिग खड़ी है।
सब कहते वाह कितनी सुंदर,
कभी कील न नजर पड़ी है।।
स्याही हो कुर्बान पेज पर ,
बोलें सभी पैन लिखता है ।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
नीले अंबर पतंग पितम्बर ,
हवा के संग भरे हिलोरी ।
सब प्रशंसा करें पतंग कि ,
नहीं दिखती पतली डोरी।।
करतब करे कमाल आसमां,
किसे पता धागा खिचता है।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है ।।
तेल साथ में जलकर बाती,
करती रोशनी तम भगाती।
सब कहते हैं दीपक जलता,
जबकि बाती बदन जलाती।।
बाती की ना पीड़ा जानी,
ध्यान सदा लौ पर टिकता है।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
खजूर देख सब करें अचम्भा ,
चली न चर्चा कभी जड़ों के।
सभी जीत का दावा करते ,
दुआ कभी ना दिखे बड़ों की।।
सब तारीफ करें झरने की,
बूंद --बूंद पानी रिश्ता है ।
दुनिया की है रीत पुरानी ,
जो दिखता है वो बिकता है।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
विषय - श्रेय
प्रथम प्रस्तुति
हर हालात वही बने थे
जाने कहाँ हम ठने थे।
आज नज़र डाली देखा
कवि वास्ते हम चुने थे।
निमित्त किससे क्या कराये
पल में किसे कहाँ पहुँचाए।
अच्छी भली डगर प्यार की
पहला दर्द न गया भुलाए।
शुरू हुए किस्मत के किस्से
हजार दर्द आय मिरे हिस्से।
गिनते भी न बनें वो सारे
कहें भी तो अब कहें किससे।
श्रेय यही किस्मत मेरी
गम की घटा दी घनेरी।
वही कथायें लिखूँ 'शिवम'
किस्मत की हर हेराफेरी।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/02/2020
प्रथम प्रस्तुति
हर हालात वही बने थे
जाने कहाँ हम ठने थे।
आज नज़र डाली देखा
कवि वास्ते हम चुने थे।
निमित्त किससे क्या कराये
पल में किसे कहाँ पहुँचाए।
अच्छी भली डगर प्यार की
पहला दर्द न गया भुलाए।
शुरू हुए किस्मत के किस्से
हजार दर्द आय मिरे हिस्से।
गिनते भी न बनें वो सारे
कहें भी तो अब कहें किससे।
श्रेय यही किस्मत मेरी
गम की घटा दी घनेरी।
वही कथायें लिखूँ 'शिवम'
किस्मत की हर हेराफेरी।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/02/2020
विषय श्रेय
विधा काव्य
04 फरवरी 2020,मंगलवार
है परमपिता जग परमेश्वर
जग श्रेय प्रिय तेरा स्वामी।
पञ्च तत्व के तुम निर्माता
नमन करें प्रिय अंतर्यामी।
यह जीवन अति अद्भुत है
सुख दुःख आते जाते रहते।
मातपिता गुरुजन संस्कार
श्रेय उन्हें संस्कारित करते।
मातृभूमि के अँचल पर खेले
सुधा नीर पिलाया निर्मल।
अन्न वसन मलय पवन दी
श्रेय वसुधा हम पर विमल।
जो पापों को धोती सरयू माँ
श्रेय उसे देते सब मिलकर।
पाप विनाशनी माँ भगीरथी
गले लगाती अंत मे हँसकर।
सुख की नींद सोते सब हम
श्रेय जाता है वीर सैनिक।
हिम खण्डो पर सदा जागता
स्व कर्तव्य निभावे दैनिक।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
04 फरवरी 2020,मंगलवार
है परमपिता जग परमेश्वर
जग श्रेय प्रिय तेरा स्वामी।
पञ्च तत्व के तुम निर्माता
नमन करें प्रिय अंतर्यामी।
यह जीवन अति अद्भुत है
सुख दुःख आते जाते रहते।
मातपिता गुरुजन संस्कार
श्रेय उन्हें संस्कारित करते।
मातृभूमि के अँचल पर खेले
सुधा नीर पिलाया निर्मल।
अन्न वसन मलय पवन दी
श्रेय वसुधा हम पर विमल।
जो पापों को धोती सरयू माँ
श्रेय उसे देते सब मिलकर।
पाप विनाशनी माँ भगीरथी
गले लगाती अंत मे हँसकर।
सुख की नींद सोते सब हम
श्रेय जाता है वीर सैनिक।
हिम खण्डो पर सदा जागता
स्व कर्तव्य निभावे दैनिक।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
4 / 2/2020
बिषय,, श्रेय
करनेवाला सब प्रभु फिर हम क्यों श्रेय लेते हैं
अपने ही हाथों पीठ थपथपा देते हैं
करता धरता कौन सब कुछ भूल.जाते हैं
बड़प्पन दिखलाने को क्या क्या गुल खिलाते हैं
यही है हाल नेताओं का जो अपना ढोल बजवाते हैं
करना कराना नहीं कुछ केवल गाल बजाते हैं
चिकनी चुपड़ी बातों से जनता को लुभाते हैं
मतलब पूरा होने पर लापता हो जाते हैं
न मैं और न तू करनेवाला कोई और है
सुंदर सा जहां बना दिया सबको ठौर है
फिर क्यों इंसान इतना फूला फूला फिरता है
संसार एक है सराय क्यों नहीं समझता है
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, श्रेय
करनेवाला सब प्रभु फिर हम क्यों श्रेय लेते हैं
अपने ही हाथों पीठ थपथपा देते हैं
करता धरता कौन सब कुछ भूल.जाते हैं
बड़प्पन दिखलाने को क्या क्या गुल खिलाते हैं
यही है हाल नेताओं का जो अपना ढोल बजवाते हैं
करना कराना नहीं कुछ केवल गाल बजाते हैं
चिकनी चुपड़ी बातों से जनता को लुभाते हैं
मतलब पूरा होने पर लापता हो जाते हैं
न मैं और न तू करनेवाला कोई और है
सुंदर सा जहां बना दिया सबको ठौर है
फिर क्यों इंसान इतना फूला फूला फिरता है
संसार एक है सराय क्यों नहीं समझता है
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
नमन, वन्दन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
करता है कोई,श्रेय मिलता है किसी को।
दुनियां की यही रीत है।
फोटो कील में लटका रहता है।
कील को श्रेय मिलता नहीं है।
मजदूर दिन-रात काम करता है खेतों में।
अनाज मिलता है जमींदार को।
ईश्वर देते हैं सबको सबकुछ।
श्रेय देते हैं लोग अपने आप को।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
करता है कोई,श्रेय मिलता है किसी को।
दुनियां की यही रीत है।
फोटो कील में लटका रहता है।
कील को श्रेय मिलता नहीं है।
मजदूर दिन-रात काम करता है खेतों में।
अनाज मिलता है जमींदार को।
ईश्वर देते हैं सबको सबकुछ।
श्रेय देते हैं लोग अपने आप को।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
शीर्षक-#श्रेय
विधा-#चौपई छंद आधारित गीतिका
4/2/2020
उन्नति का साधन है ज्ञान।
मानवता का मूल महान।
धर्म सनातन आविर्भाव।
जाने भारत की संतान।
वेद पढ़ातें अद्भुत पाठ।
कालजयी निकले अनुमान।
सेवा धर्म बड़ा अनमोल।
प्रेम-दया का रखिए भान।
श्रेय लेने की होड़ नहीं।
सार्थक कीजे कार्य विधान।
अंतस में हों उच्च विचार।
बढ़े सदा धरणी का मान।
शुभ इच्छा से करिए काम।
करते रहो मनुज अवधान।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विधा-#चौपई छंद आधारित गीतिका
4/2/2020
उन्नति का साधन है ज्ञान।
मानवता का मूल महान।
धर्म सनातन आविर्भाव।
जाने भारत की संतान।
वेद पढ़ातें अद्भुत पाठ।
कालजयी निकले अनुमान।
सेवा धर्म बड़ा अनमोल।
प्रेम-दया का रखिए भान।
श्रेय लेने की होड़ नहीं।
सार्थक कीजे कार्य विधान।
अंतस में हों उच्च विचार।
बढ़े सदा धरणी का मान।
शुभ इच्छा से करिए काम।
करते रहो मनुज अवधान।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
02-2020
श्रेय के दाता तो मात्र ईश्वर है।
वही हमारे भाग्य के विधाता है।
उन्हीं के रहमोकरम पर हम है।
यश देना, मान देना, सम्मान देना।
उन्हीं के अनुग्रह पर आश्रित है।
लाभ हो, हानि हो, दु:ख हो, सुख हो।
इसके केन्द्र ईश्वर ही एक मात्र है।
उनकी कृपा से गूँगा बोलने लगता है।
अंधे को सबकुछ दिखने लगता है।
लगड़ा दौड़ने लगता है,
बहरा सुनने लगता है।
दरिद्र गौरवशाली हो जाता है।
बांझ संतान वाला होता है।
ईश्वर के श्रेय से तिल भी पहाड़ हो जाता है।
ईश्वर के श्रेय से अज्ञानी, ज्ञानवान हो जाता है।
हे प्रभु! हमसब पर अपना श्रेय बनाये रखना।
हमसब पर ममता की छाया बनाये रखना।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार
श्रेय के दाता तो मात्र ईश्वर है।
वही हमारे भाग्य के विधाता है।
उन्हीं के रहमोकरम पर हम है।
यश देना, मान देना, सम्मान देना।
उन्हीं के अनुग्रह पर आश्रित है।
लाभ हो, हानि हो, दु:ख हो, सुख हो।
इसके केन्द्र ईश्वर ही एक मात्र है।
उनकी कृपा से गूँगा बोलने लगता है।
अंधे को सबकुछ दिखने लगता है।
लगड़ा दौड़ने लगता है,
बहरा सुनने लगता है।
दरिद्र गौरवशाली हो जाता है।
बांझ संतान वाला होता है।
ईश्वर के श्रेय से तिल भी पहाड़ हो जाता है।
ईश्वर के श्रेय से अज्ञानी, ज्ञानवान हो जाता है।
हे प्रभु! हमसब पर अपना श्रेय बनाये रखना।
हमसब पर ममता की छाया बनाये रखना।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार
दिवस मंगलवार
तिथि ४/२/२०२०
🛃🛃🛃🛃🛃🛃
बीर सपूतों के हौंसले
🛃🛃🛃
स्वर्ग से सुन्दर भारत भूमि ने दिया हमें श्रेय,
दुश्मन के मंसूबों को धूल चटायेंगे यही हमारा धेय।
कबतलक करेंगे धरने फसाद,
घरके दुश्मन मिट जाऐंगे,
राष्ट्र रक्षित द्रण संकल्पितों को मिलेगा श्रेय ।
जब बीड़ा उठालिया वतन की हिफाज़त का,
हों चाहे हिम शिखर बीहण चट्टाने पार करना हमारा धेय ।
राष्ट्र रहे सुरक्षित एक ही लक्ष,
अभिलाषा ओ से भरे हम, हमारी उड़ाने दुश्मन पर लक्ष,
हमारी जीवन धारा ईश्वर की कृपा तय करेंगी ।
भारत माता के बीर सपूतो की भुजाओं का बल अमर है,
अमन भरा हमारा लक्ष,
राष्ट्र रक्षा का हर पल मिलता है बीरों को श्रेय ।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक नैनीताल
तिथि ४/२/२०२०
🛃🛃🛃🛃🛃🛃
बीर सपूतों के हौंसले
🛃🛃🛃
स्वर्ग से सुन्दर भारत भूमि ने दिया हमें श्रेय,
दुश्मन के मंसूबों को धूल चटायेंगे यही हमारा धेय।
कबतलक करेंगे धरने फसाद,
घरके दुश्मन मिट जाऐंगे,
राष्ट्र रक्षित द्रण संकल्पितों को मिलेगा श्रेय ।
जब बीड़ा उठालिया वतन की हिफाज़त का,
हों चाहे हिम शिखर बीहण चट्टाने पार करना हमारा धेय ।
राष्ट्र रहे सुरक्षित एक ही लक्ष,
अभिलाषा ओ से भरे हम, हमारी उड़ाने दुश्मन पर लक्ष,
हमारी जीवन धारा ईश्वर की कृपा तय करेंगी ।
भारत माता के बीर सपूतो की भुजाओं का बल अमर है,
अमन भरा हमारा लक्ष,
राष्ट्र रक्षा का हर पल मिलता है बीरों को श्रेय ।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक नैनीताल
विषय : श्रेय
विधा : कविता
तिथि : 4.2.2020
दर्द
अवसाद
जो मिला
बेवफ़ा तूने दिया।
गम घिरा
मन गिरा
विश्वास हिला
बेवफ़ा तूने दिया।
जन्म गिला
दिल सिला
अश्रु पिया
बेवफ़ा तूने दिया।
हाय बेवफ़ा-
निशाना तुझ पर सधा
मुझे क्यों न दिखा-
बबूल, जो था मैने बुआ!
--रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 4.2.2020
दर्द
अवसाद
जो मिला
बेवफ़ा तूने दिया।
गम घिरा
मन गिरा
विश्वास हिला
बेवफ़ा तूने दिया।
जन्म गिला
दिल सिला
अश्रु पिया
बेवफ़ा तूने दिया।
हाय बेवफ़ा-
निशाना तुझ पर सधा
मुझे क्यों न दिखा-
बबूल, जो था मैने बुआ!
--रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
दिनांक-4-2-2020
विषय-श्रेय
विधा-दोहा
जलती है बाती सदा,दीपक लेता श्रेय।
ख्याति नाम सब छोड़ दो,मनुज धर्म हो ध्येय।।
पीछे रहती है सदा,नारी बड़ी महान।
श्रेय देकर मौन रहे,बन जाये अनजान।।
माता सुत पर सदा करे,बिना मांगे दुलार।
नहीं चाहती श्रेय वो,चाहे तो बस प्यार।।
नहीं चाहते श्रेय हम, बस दे देना मान।
कह रहे हैं मातु पितु,सुन ले तू संतान।।
बड़े बड़ाई न करें,न ही चाहते श्रेय।
उनके बस हैं गुण यही,साक्षर प्रज्ञा प्रमेय।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-श्रेय
विधा-दोहा
जलती है बाती सदा,दीपक लेता श्रेय।
ख्याति नाम सब छोड़ दो,मनुज धर्म हो ध्येय।।
पीछे रहती है सदा,नारी बड़ी महान।
श्रेय देकर मौन रहे,बन जाये अनजान।।
माता सुत पर सदा करे,बिना मांगे दुलार।
नहीं चाहती श्रेय वो,चाहे तो बस प्यार।।
नहीं चाहते श्रेय हम, बस दे देना मान।
कह रहे हैं मातु पितु,सुन ले तू संतान।।
बड़े बड़ाई न करें,न ही चाहते श्रेय।
उनके बस हैं गुण यही,साक्षर प्रज्ञा प्रमेय।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
दिनांक- 4/02/2020
शीर्षक- "श्रेय"
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
एक सास की दो बहुएँ,
दोनों में खूब गुण थे भरें,
काम काज में दोनों आगे,
अालस उनसे दूर ही भागे |
कभी काम की गिनती न करती,
करती वो सब जो होता बसकी,
श्रेय कभी वो खुद नहीं लेती,
बस निष्ठा से सब काम करती |
सास हमेशा खुश उनकी रहती,
बहुएें अच्छी मेरी, सबसे कहती,
आशीष उनको खूब ही मिलता,
परिवार उनका,जैसे गुलदस्ता |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- "श्रेय"
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
एक सास की दो बहुएँ,
दोनों में खूब गुण थे भरें,
काम काज में दोनों आगे,
अालस उनसे दूर ही भागे |
कभी काम की गिनती न करती,
करती वो सब जो होता बसकी,
श्रेय कभी वो खुद नहीं लेती,
बस निष्ठा से सब काम करती |
सास हमेशा खुश उनकी रहती,
बहुएें अच्छी मेरी, सबसे कहती,
आशीष उनको खूब ही मिलता,
परिवार उनका,जैसे गुलदस्ता |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
दिन -मंगलवार
विषय -श्रेय
विधा - स्वतंत्र
***************
आज जहाँ भी हूँ
तुम्हारी वजह से
जो भी कल्पनाओं के , भाव,
मन में उद्गार बनकर बहते हैं,
उन सब के हकदार तुम हो।
मैं कच्ची मिट्टी जैसी थी ,
तुमने अपने प्यार के सांचे में,
ढाल कर एक आकृति देनी चाही
ये और बात है,
मिट्टी की लोई ठीक से पकी नहीं
शायद,
इसलिए आज भी आधारभूत ढांचे
की शक्ल नहीं ले पाई।
तलाशती हूँ आज भी
अपने वजूद को,
जो अभी भी अपना अस्तित्व बना
नहीं पाई।
अगर मैं करना भी चाहूँ,
कुछ सृजन, तो आधे अधूरे
ही रहेंगे,
क्योंकि मैंने अपने ख्वाब, ख्वाहिशों
को कहीं पीछे छोड़ दिया है।
कल्पना में डूबते उतराते भी ,
वहाँ तक न पहूँच पाती
आज यहाँ तक मुझको
पहुँचाने में सारा श्रेय
तुम्हीं को जाता है...
तनुजा दत्ता ( स्वरचित )
विषय -श्रेय
विधा - स्वतंत्र
***************
आज जहाँ भी हूँ
तुम्हारी वजह से
जो भी कल्पनाओं के , भाव,
मन में उद्गार बनकर बहते हैं,
उन सब के हकदार तुम हो।
मैं कच्ची मिट्टी जैसी थी ,
तुमने अपने प्यार के सांचे में,
ढाल कर एक आकृति देनी चाही
ये और बात है,
मिट्टी की लोई ठीक से पकी नहीं
शायद,
इसलिए आज भी आधारभूत ढांचे
की शक्ल नहीं ले पाई।
तलाशती हूँ आज भी
अपने वजूद को,
जो अभी भी अपना अस्तित्व बना
नहीं पाई।
अगर मैं करना भी चाहूँ,
कुछ सृजन, तो आधे अधूरे
ही रहेंगे,
क्योंकि मैंने अपने ख्वाब, ख्वाहिशों
को कहीं पीछे छोड़ दिया है।
कल्पना में डूबते उतराते भी ,
वहाँ तक न पहूँच पाती
आज यहाँ तक मुझको
पहुँचाने में सारा श्रेय
तुम्हीं को जाता है...
तनुजा दत्ता ( स्वरचित )
विषय - श्रेय
दिनांक - ४,१,२०२०.
वार - मंगलवार
लोग सदा तत्पर रहते श्रेय लेने के लिए,
लेकिन सेवा पथ से सब दूर रहें ।
यहाँ महिमा मंडित होने के लिए ही ,
सब रोज दिखावे नये करें ।
बनी नये दौर की ये नई कहानी ,
किसको हम बदनाम करें।
जब चाल चल रहे हों सब बदरंगी,
चिन्हित हम किस किस को करें।
श्रेय नहीं मिलता कभी माँ को,
नहीं मातृत्व को सम्मान मिले।
मौन साधना की जिस पालक ने ,
उसका श्रेय सुनिश्चित कौन करे ।
हैं संस्कार हीन, पाश्चात्य भक्त जो,
उम्मीद क्या ये हम उनसे करें।
धरती, अम्बर, प्राकृतिक धरोहर,
हम इनको बढ़कर नमन करें।
श्रेय इन्ही को मानव जीवन का,
इनके लिए हम जरूर जागरूक बनें।
फल शुभ कर्मों का मीठा रहे हरदम ,
हम श्रेय के लालायित न रहें।
दिनांक - ४,१,२०२०.
वार - मंगलवार
लोग सदा तत्पर रहते श्रेय लेने के लिए,
लेकिन सेवा पथ से सब दूर रहें ।
यहाँ महिमा मंडित होने के लिए ही ,
सब रोज दिखावे नये करें ।
बनी नये दौर की ये नई कहानी ,
किसको हम बदनाम करें।
जब चाल चल रहे हों सब बदरंगी,
चिन्हित हम किस किस को करें।
श्रेय नहीं मिलता कभी माँ को,
नहीं मातृत्व को सम्मान मिले।
मौन साधना की जिस पालक ने ,
उसका श्रेय सुनिश्चित कौन करे ।
हैं संस्कार हीन, पाश्चात्य भक्त जो,
उम्मीद क्या ये हम उनसे करें।
धरती, अम्बर, प्राकृतिक धरोहर,
हम इनको बढ़कर नमन करें।
श्रेय इन्ही को मानव जीवन का,
इनके लिए हम जरूर जागरूक बनें।
फल शुभ कर्मों का मीठा रहे हरदम ,
हम श्रेय के लालायित न रहें।
श्रेय (हास्य कविता )
करूँ अच्छा
या हो अच्छा
है इसका श्रेय
मेरा
कर बुरा
या हो बुरा
इसका श्रेय
है तुम्हारा
पत्नी ने किया
इकरारनामा
अब करता हूँ
तहेदिल से
तारीफ उसकी
खाता रहता हूँ
गालियाँ उसकी
कर गयी
वो एक कारनामा
कहा हमने
नहीं है आदत
श्रेय लेने की
हमारी
खुश रहो
फूल कर
गुप्पा होती रहो
यह किस्मत है
तुम्हारी
उठता हूँ
सुबह
करता हूँ
काम सभी
और दोपहर
बोलती है
सखियों से
है नकारा
आलसी
निखट्टू
पति मेरा
करती हूँ
काम सब मैं
तोड़ता रहता है
बिस्तर दिन रात ये
सुनता हूँ सब
पर हूँ मजबूर
रहता हूँ मैं
बन मजदूर
श्रेय जो पत्नी
को देना है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
करूँ अच्छा
या हो अच्छा
है इसका श्रेय
मेरा
कर बुरा
या हो बुरा
इसका श्रेय
है तुम्हारा
पत्नी ने किया
इकरारनामा
अब करता हूँ
तहेदिल से
तारीफ उसकी
खाता रहता हूँ
गालियाँ उसकी
कर गयी
वो एक कारनामा
कहा हमने
नहीं है आदत
श्रेय लेने की
हमारी
खुश रहो
फूल कर
गुप्पा होती रहो
यह किस्मत है
तुम्हारी
उठता हूँ
सुबह
करता हूँ
काम सभी
और दोपहर
बोलती है
सखियों से
है नकारा
आलसी
निखट्टू
पति मेरा
करती हूँ
काम सब मैं
तोड़ता रहता है
बिस्तर दिन रात ये
सुनता हूँ सब
पर हूँ मजबूर
रहता हूँ मैं
बन मजदूर
श्रेय जो पत्नी
को देना है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
4/2/2020/मंगलवार
*श्रेय*काव्य
जब सबकुछ तू है करता धरता।
तू ही इस जग का पालन करता।
बिन तेरे पत्ता न हिल पाए,
न कोई कोशिश श्रेय की करता।
सब तेरा जग है तेरी माया।
प्रभु हर मानव की तुझसे काया।
भगवान श्रेय हम तुमको देते,
पाऐं प्रभु जी तुमसे छाया।
ये जड चेतन सब तुमसे चलता।
जब चाहो तभी सूर्य निकलता।
इस प्रकृति के तुम ही रखवाले,
इस हरियाली को ईश बदलता।
न रामनाम बदनाम करें हम।
सदा यहां सब शुभकाम करें हम।
होड़ नहीं करें श्रेय पाने की,
इस भारत को सुखधाम करें हम।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र जय जय श्रीराम राम जी
*श्रेय*काव्य
4/2/2020/मंगलवार
*श्रेय*काव्य
जब सबकुछ तू है करता धरता।
तू ही इस जग का पालन करता।
बिन तेरे पत्ता न हिल पाए,
न कोई कोशिश श्रेय की करता।
सब तेरा जग है तेरी माया।
प्रभु हर मानव की तुझसे काया।
भगवान श्रेय हम तुमको देते,
पाऐं प्रभु जी तुमसे छाया।
ये जड चेतन सब तुमसे चलता।
जब चाहो तभी सूर्य निकलता।
इस प्रकृति के तुम ही रखवाले,
इस हरियाली को ईश बदलता।
न रामनाम बदनाम करें हम।
सदा यहां सब शुभकाम करें हम।
होड़ नहीं करें श्रेय पाने की,
इस भारत को सुखधाम करें हम।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र जय जय श्रीराम राम जी
*श्रेय*काव्य
4/2/2020/मंगलवार
दिनांक - 4/2/2020
विषय - श्रेय
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आगमन वसंत का
सुंदर मनोरम दृश्य लाया है
ऊषा की लालिमा संग
कोयल की कूक सुनाया है।
पंख फैलाए विचर रहे हैं
सारे पक्षी आसमां में
धरा ओढ़ी प्रेम चुनर
भौंरा भी गुनगुनाया है।
विरान थी जो वृक्ष की डाली
वो भी नव पल्लवों से सज गयी
भागा भय से शीत काहिल
चारों दिशाओं में उमंग भर गयी।
पाकर श्रेय तेरा, ऐ 'भावों के मोती'
मैं पुनः कलम उठाई हूँ
गढ़कर लाई हूँ शब्दों का हार
समर्पित तुझे करने आई हूँ। 🙏🙏
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
विषय - श्रेय
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आगमन वसंत का
सुंदर मनोरम दृश्य लाया है
ऊषा की लालिमा संग
कोयल की कूक सुनाया है।
पंख फैलाए विचर रहे हैं
सारे पक्षी आसमां में
धरा ओढ़ी प्रेम चुनर
भौंरा भी गुनगुनाया है।
विरान थी जो वृक्ष की डाली
वो भी नव पल्लवों से सज गयी
भागा भय से शीत काहिल
चारों दिशाओं में उमंग भर गयी।
पाकर श्रेय तेरा, ऐ 'भावों के मोती'
मैं पुनः कलम उठाई हूँ
गढ़कर लाई हूँ शब्दों का हार
समर्पित तुझे करने आई हूँ। 🙏🙏
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
विषय-श्रेय।
स्वरचित।
सबसे पहले श्रेय परम प्रिय को
जो परमात्मा कहलाता।
वो सागर, हम बूदें उसकी
कण-कण में वही समाता।।
श्रेय उसे दें अपने अस्तित्व का
जन्म दिया है जिसने।
श्रेय उसे दें अपने व्यक्तित्व का
पोषण किया है जिसने।।
श्रेय सभी पंचतत्वों को
जिनसे मिलकर बनते।
हवा-आग और मिट्टी-पानी
ध्वनि के संग-सब पगते।।
प्रीति शर्मा "पूर्णि
स्वरचित।
सबसे पहले श्रेय परम प्रिय को
जो परमात्मा कहलाता।
वो सागर, हम बूदें उसकी
कण-कण में वही समाता।।
श्रेय उसे दें अपने अस्तित्व का
जन्म दिया है जिसने।
श्रेय उसे दें अपने व्यक्तित्व का
पोषण किया है जिसने।।
श्रेय सभी पंचतत्वों को
जिनसे मिलकर बनते।
हवा-आग और मिट्टी-पानी
ध्वनि के संग-सब पगते।।
प्रीति शर्मा "पूर्णि
दिनांक-04/02/2030
विषय- श्रेय
श्रेय सूर्य का शौर्य से कहता
श्रम की अविरल गाथा।
श्रेय लेने को सबसे आगे आता
अभिजनवाद की मूक भाषा।।
प्रत्याशा की धवल किरणों को वेधो
श्रेय लेने की हताशा को छोड़ो।।
सत कर्मों का श्रृंगार करकर
हर जीवन की प्रत्याशा को मोड़ो।।
धरित्री के धैर्य को श्रेय से जगाओ
अवनि, अंबर में श्रेय को महकाओ।
श्रृंगार श्रेय के शब्द का है सुंदर
श्रेय की परिभाषा है अविरल।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय- श्रेय
श्रेय सूर्य का शौर्य से कहता
श्रम की अविरल गाथा।
श्रेय लेने को सबसे आगे आता
अभिजनवाद की मूक भाषा।।
प्रत्याशा की धवल किरणों को वेधो
श्रेय लेने की हताशा को छोड़ो।।
सत कर्मों का श्रृंगार करकर
हर जीवन की प्रत्याशा को मोड़ो।।
धरित्री के धैर्य को श्रेय से जगाओ
अवनि, अंबर में श्रेय को महकाओ।
श्रृंगार श्रेय के शब्द का है सुंदर
श्रेय की परिभाषा है अविरल।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय श्रेय
विधा कविता
दिनाँक 4.2.2020
दिन मंगलवार
श्रेय
💘💘💘
आत्मश्लाघी लोगों का सुन्दर पेय
वे लेते हैं हर कुशलता का श्रेय
वे कहते हमने ही उसे बतलाया था
शुरु का गुर तो हमने ही उसे सिखलाया था।
श्रेय लेने की हर ज़गह होड़ सी रहती है
ऐसी नदी हर ज़गह ही बहती है
बेचारा ऊँचाई चढ़ने वाला सोचता होगा क्या करुँ
किसके प्रति कृतज्ञता अपनी भरुँ।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
विधा कविता
दिनाँक 4.2.2020
दिन मंगलवार
श्रेय
💘💘💘
आत्मश्लाघी लोगों का सुन्दर पेय
वे लेते हैं हर कुशलता का श्रेय
वे कहते हमने ही उसे बतलाया था
शुरु का गुर तो हमने ही उसे सिखलाया था।
श्रेय लेने की हर ज़गह होड़ सी रहती है
ऐसी नदी हर ज़गह ही बहती है
बेचारा ऊँचाई चढ़ने वाला सोचता होगा क्या करुँ
किसके प्रति कृतज्ञता अपनी भरुँ।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
दिनांक-४/२/२०२०
शीर्षक-"श्रेय"
जीवन का लक्ष्य एक है
करे उन्नति चहूं ओर
श्रेय लेना देना ध्येय नहीं
कह गये चितचोर।
श्रेय लेना उचित नही
दूसरों के नाम का,आप
अपने दम पर काम करे तो
आये मन विश्वास।
गृहस्थ जीवन में श्रेय का
होता नही कोई काम
एक दूजे के लिए जीना
है गृहस्थी का नाम।
जब तक है इस धरा पर
करे लोक कल्याण
श्रेय के लिए क्यों करे?
करे मन में रख प्यार।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय- श्रेय
आदत है कुछ लोगों की
औरों के परिश्रम का
श्रेय खुद लेने का।
कोई अगर प्रशंसा ना करे
खुद ही आगे बढ़कर
मियां मिट्ठू बनने का।।
ऐसे लोगों से राम बचाए
बहुत ही शातिर होते हैं।
अपनी गलतियों को वो
औरों पे मंढ़ देते हैं।
दिखते भोले-भाले पर
छुपे रुस्तम होते हैं।
अच्छे खासे समझदार को
बेवकूफ बना देते हैं।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
दिनांक - 4/02/2020
दिवस - मंगलवार
विषय - श्रेय
विधा - स्वतंत्र
क्या क्या कहें इस जमाने को,
की जमाने में श्रेय लेने की होड़ मची है
मची है होड़ पैसे कमाने की
की नैतिकता की अब कद्र नहीं है।
पुष्पों की सुगंध का भला बीजों को कभी
क्या श्रेय मिला
मिला श्रेय क्या बच्चों की सफलता का
परवरिश को कभी।
मत उलझो श्रेय की पहेली में जो उलझे तो
खैर नहीं
कर्म इमानदारी से कर परवाह कैसी की फिर
श्रेय मिले या नहीं।
मौलिक रचना - स्वरचित रंजना सिंह
दिनांक- 4/2/2020
विषय - श्रेय
विधा - मुक्त छंद
समाज से ख़ुद को जोड़ते नहीं हो
रूढ़िवादी बंधनों को तोड़ते नहीं हो
अपनी ही धुरी मात्र पर घूमने वालों
अधिकारों के रक्षक जँचते नहीं हो
अभिव्यक्ति आज़ादी नाम बतलाते
नीति मर्म जाने बिन रोष जतलाते
भुलाकर देशहित की भावना को
मज़हबी रंग संग विरोध दिखलाते
हिंसा चिंगारी फैलाना ठीक नहीं
मासूमों को यूँ सताना ठीक नहीं
छद्म राजनीति की ओट लेकर
श्रेय देशप्रेमी का पाना ठीक नहीं
जन को जन से ही जोड़ना चाहिए
विचार अलगाव का छोड़ना चाहिए
एकता वाला सरोकार हो जिसमें
नीति का विकल्प खोजना चाहिए
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवंमौलिक
त दो कोई श्रेय
मुझे अब
मैं कोई
कवि नही
देना ही है
दो इन शब्दों को
भावनाओ में बहती
इन पंक्तियों को
मेरे खयालो में छिपे
अंतर्द्वंदों को
मेरे लक्ष्यों को
शब्दो की इन मालाओं को
मौन स्वीकृति
की अभिव्यक्ति को
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक 04/02/2020
शिर्षक -श्रेय
विधा -छन्द मुक्त
*******************
श्रेय तुम्हारा ही होगा हरपल
चाहे वो भूखे सोये हो प्रतिपल
सबकुछ सौंप दिया था तुम पर
आज जैसा करोगे वैसे होगा कल
जनता का श्रेय कहो कब होता है
जनता मरती भूखो ,ओ सोता है
ऐसे हाथ में मत जाने देना कभी
नही ,श्रेय जनता का उनमे खोता है
तंगहाली का कलंक हमारा होगा
बदहाली का जिम्मा सारा होगा
भुखमरी ऒ दूर किये ,हाँ कहना होगा
विकास में सारा श्रेय बीएस उनका होगा
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
विषय,श्रेय
गड़ी नींव की ईंट
अंधेरे गर्त में हुई दफन
चमचमाता हुआ भवन
सभी ने सराहा
पर किसी ने
ना देखा ना चाहा
इस सौंदर्य की
आधारशिला को
कि अगर वह नहीं होती
तो कैसे खड़ा होता ।है
इतना आलीशान भवन
ऐसे ही जैसे
आधी आबादी का त्याग
होता है जाया।
चौबीस घंटे
काम किसी और का
श्रेय किसी और को।
आशा शुक्ला,शाहजहाँपुर
,उत्तरप्रदेश
विषय -श्रेय
विधा-कविता
श्रेय
हो रही है हवा मैली।
बिक रहा है जल थैली थैली।
शंकर हो रही हैं फसलें,
विकृत हो रही है गोधन की नस्लें।
भावना शुन्य हो रहे हैं हृदय।
मार कर आत्मा मिल रही है विजय।
विचारों में कलुष घुल रहा है।
चहुँ ओर स्वार्थ सिर चढ़ रहा है।
ना सूर्यवंशी दिन है,ना चँद्रवंशी रातें।
अब तो जुगनुओं के प्रकाश में,
धुंध के बादलों को देख,
आधी रात में दादुर बोल रहा है।
ये पतन है,या उत्थान!!
ये आगमन है या प्रस्थान!!!
कौन है यहाँ जो ध्येय दे!!!
कौन है यहाँ जिसे श्रेय दे!!!!
स्वरचित-सरिता विधुरश्मि😊
शीर्षक-"श्रेय"
जीवन का लक्ष्य एक है
करे उन्नति चहूं ओर
श्रेय लेना देना ध्येय नहीं
कह गये चितचोर।
श्रेय लेना उचित नही
दूसरों के नाम का,आप
अपने दम पर काम करे तो
आये मन विश्वास।
गृहस्थ जीवन में श्रेय का
होता नही कोई काम
एक दूजे के लिए जीना
है गृहस्थी का नाम।
जब तक है इस धरा पर
करे लोक कल्याण
श्रेय के लिए क्यों करे?
करे मन में रख प्यार।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय- श्रेय
आदत है कुछ लोगों की
औरों के परिश्रम का
श्रेय खुद लेने का।
कोई अगर प्रशंसा ना करे
खुद ही आगे बढ़कर
मियां मिट्ठू बनने का।।
ऐसे लोगों से राम बचाए
बहुत ही शातिर होते हैं।
अपनी गलतियों को वो
औरों पे मंढ़ देते हैं।
दिखते भोले-भाले पर
छुपे रुस्तम होते हैं।
अच्छे खासे समझदार को
बेवकूफ बना देते हैं।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
दिनांक - 4/02/2020
दिवस - मंगलवार
विषय - श्रेय
विधा - स्वतंत्र
क्या क्या कहें इस जमाने को,
की जमाने में श्रेय लेने की होड़ मची है
मची है होड़ पैसे कमाने की
की नैतिकता की अब कद्र नहीं है।
पुष्पों की सुगंध का भला बीजों को कभी
क्या श्रेय मिला
मिला श्रेय क्या बच्चों की सफलता का
परवरिश को कभी।
मत उलझो श्रेय की पहेली में जो उलझे तो
खैर नहीं
कर्म इमानदारी से कर परवाह कैसी की फिर
श्रेय मिले या नहीं।
मौलिक रचना - स्वरचित रंजना सिंह
दिनांक- 4/2/2020
विषय - श्रेय
विधा - मुक्त छंद
समाज से ख़ुद को जोड़ते नहीं हो
रूढ़िवादी बंधनों को तोड़ते नहीं हो
अपनी ही धुरी मात्र पर घूमने वालों
अधिकारों के रक्षक जँचते नहीं हो
अभिव्यक्ति आज़ादी नाम बतलाते
नीति मर्म जाने बिन रोष जतलाते
भुलाकर देशहित की भावना को
मज़हबी रंग संग विरोध दिखलाते
हिंसा चिंगारी फैलाना ठीक नहीं
मासूमों को यूँ सताना ठीक नहीं
छद्म राजनीति की ओट लेकर
श्रेय देशप्रेमी का पाना ठीक नहीं
जन को जन से ही जोड़ना चाहिए
विचार अलगाव का छोड़ना चाहिए
एकता वाला सरोकार हो जिसमें
नीति का विकल्प खोजना चाहिए
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवंमौलिक
त दो कोई श्रेय
मुझे अब
मैं कोई
कवि नही
देना ही है
दो इन शब्दों को
भावनाओ में बहती
इन पंक्तियों को
मेरे खयालो में छिपे
अंतर्द्वंदों को
मेरे लक्ष्यों को
शब्दो की इन मालाओं को
मौन स्वीकृति
की अभिव्यक्ति को
स्वरचित
मीना तिवारी
शिर्षक -श्रेय
विधा -छन्द मुक्त
*******************
श्रेय तुम्हारा ही होगा हरपल
चाहे वो भूखे सोये हो प्रतिपल
सबकुछ सौंप दिया था तुम पर
आज जैसा करोगे वैसे होगा कल
जनता का श्रेय कहो कब होता है
जनता मरती भूखो ,ओ सोता है
ऐसे हाथ में मत जाने देना कभी
नही ,श्रेय जनता का उनमे खोता है
तंगहाली का कलंक हमारा होगा
बदहाली का जिम्मा सारा होगा
भुखमरी ऒ दूर किये ,हाँ कहना होगा
विकास में सारा श्रेय बीएस उनका होगा
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
गड़ी नींव की ईंट
अंधेरे गर्त में हुई दफन
चमचमाता हुआ भवन
सभी ने सराहा
पर किसी ने
ना देखा ना चाहा
इस सौंदर्य की
आधारशिला को
कि अगर वह नहीं होती
तो कैसे खड़ा होता ।है
इतना आलीशान भवन
ऐसे ही जैसे
आधी आबादी का त्याग
होता है जाया।
चौबीस घंटे
काम किसी और का
श्रेय किसी और को।
आशा शुक्ला,शाहजहाँपुर
,उत्तरप्रदेश
विधा-कविता
श्रेय
हो रही है हवा मैली।
बिक रहा है जल थैली थैली।
शंकर हो रही हैं फसलें,
विकृत हो रही है गोधन की नस्लें।
भावना शुन्य हो रहे हैं हृदय।
मार कर आत्मा मिल रही है विजय।
विचारों में कलुष घुल रहा है।
चहुँ ओर स्वार्थ सिर चढ़ रहा है।
ना सूर्यवंशी दिन है,ना चँद्रवंशी रातें।
अब तो जुगनुओं के प्रकाश में,
धुंध के बादलों को देख,
आधी रात में दादुर बोल रहा है।
ये पतन है,या उत्थान!!
ये आगमन है या प्रस्थान!!!
कौन है यहाँ जो ध्येय दे!!!
कौन है यहाँ जिसे श्रेय दे!!!!
स्वरचित-सरिता विधुरश्मि😊
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