Tuesday, February 11

"शीर्ष / शिखर"11फरवरी2020

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ब्लॉग संख्या :-653
विषय -शीर्ष/शिखर
प्रथम प्रस्तुति


वो शिखर पर पहुँच गए हैं
हमको शिखर पर जाना है!
हमने देर से छेड़ा यह
अपना मधुर तराना है!

क्या करें नसीब जो मिला
हमें उसको भुनाना है!
उनसे बहतर कार्य क्षेत्र में
करके 'शिवम' बताना!

शीर्ष पर कहीं से पहुँच सकते
अब नही हमें पछताना है!
बुरा भी नही यह रास्ता
देर से भले पहचाना है!

एक प्रण था मन ही मन में
अब मूर्त रूप में लाना है!
बैठ के शिखर पर हमें भी
उनसे हाथ मिलाना है!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/02/2020
विषय -शीर्ष/शिखर
प्रथम प्रस्तुति


वो शिखर पर पहुँच गए हैं
हमको शिखर पर जाना है!
हमने देर से छेड़ा यह
अपना मधुर तराना है!

क्या करें नसीब जो मिला
हमें उसको भुनाना है!
उनसे बहतर कार्य क्षेत्र में
करके 'शिवम' बताना!

शीर्ष पर कहीं से पहुँच सकते
अब नही हमें पछताना है!
बुरा भी नही यह रास्ता
देर से भले पहचाना है!

एक प्रण था मन ही मन में
अब मूर्त रूप में लाना है!
बैठ के शिखर पर हमें भी
उनसे हाथ मिलाना है!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/02/2020
विषय शीर्ष,शिखर
विधा काव्य

11 फरवरी 2020,मंगलवार

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर
चादर जम रही हिमाच्छादित।
शून्य से नीचे तापक्रम रहता
रहना वँहा पर अति विवादित।

उस बर्फीली शीतल वादी पर
खड़ा हुआ मुस्तेदी सैनिक।
ठंड कंपाती रक्त जमाती हिम
रक्षा करता है देश की दैनिक।

प्रगति के शिखर पर चढ़ना
यह सपनों का खेल नहीं है।
कड़ी तपस्या करनी पड़ती
जिसका जग में मेल नहीं है।

एवरेस्ट के उच्च शिखर पर
उच्च होंसले वँहा पहुंचे हैं।
गिरते पड़ते लक्ष्य न भूले
ऐसे वीर भारत में समूचे हैं।

वीर प्रसूता है भारतमाता
राणा कुंभा वीरों की धरती।
शीश चढ़ाते मातृभूमि को
उन्हें देख वसुधा भी हँसती।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
"शीर्ष/शिखर"
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।


जो मनुष्य अनवरत।
जीवन में चलते रहते हैं।
धूप, छांव चाहे जितने हों।
सब वो सहते रहते हैं।

संघर्ष भरा जीवन वे।
हरदम जीते रहते हैं।
तब कहीं जाकर वो।
उच्च शिखर पर पहुंचते हैं।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय , शीर्ष / शिखर
११,२,२०२०.

मंगलवार,

आसान नहीं मुश्किल है बहुत,
उच्च शिखर पे आदर्शों के रहना है ।

दुनियाँ बस काँटे ही बोती,
सदा संभल संभल के चलना है।

अभिमान नहीं धीरज रखना,
यदि तुमको नाम कमाना है।

दुर्व्यसन नहीं आचरण उच्च ,
अपना हर समय रखना है।

दुर्व्यवहार नहीं संयम सचादार,
अपनापन सबसे रखना है।

है शीर्ष शिखर की चाह अगर,
मजबूत हौंसला रखना है।

हो मोती खोजना लक्ष्य अगर ,
गहरे पानी में उतरना है।

जीवन मानव का अनमोल बहुत,
इसे उच्च शिखर पर रखना है।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
शीर्षक- शीर्ष /शिखर
सादर मंच को समर्पित -


🌸🍀🌻 गीतिका 🌻🍀🌸
*************************************
🌸 शीर्ष / शिखर 🌸
छंद-- हरिगीतिका
मापनी -- 2212 ,2212 ,2212 ,2212
समान्त -- आस , पदान्त - आस की
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

आओ मिटायें तम घटा , कलियांँ खिलें नव आस की ।
जीवन जगे सद्भावना , मिट जाय धारा प्यास की ।।

हो ज़िन्दगी का सफर नूतन प्रगति की छाया रहे ,
दिल में सदा जागृत रहे नव ज्योति घन विश्वास की ।

हों कृत्य शुभ ऐसे सजायें शीर्ष पथ जीवन सुधा ,
हरियालियों में गूंँजती शोभा खिले मधुमास की ।

शोषित रहे कोई नहीं पावन धरा के छोर तक ,
फिर प्यार की नदियांँ बहें , कालिख मिटे संत्रास की ।

सब खेतिहर , मजदूर जन खुशहाल हों जीवन जियें ,
जग अन्नदाता कृषक भी खुशियांँ पगे उल्लास की ।

खोजें हमेशा शिखर को अपने विवेकाधीन हो ,
नव ज्ञान की पावन सुधा से जीत हो आभास की ।

जीवन मिला अनमोल है , यह व्यर्थ ही जाये नहीं ,
सत्कर्म करते ही बढ़ें , यादें बनें इतिहास की ।।

🌺🍀🌹

🌹🍋🌸🌴.. रवीन्द्र वर्मा आगरा
दिनांक-11-02-2020
विषय-शिखर/शीर्ष

विधा-छन्दमुक्त कविता

शिखर पर पहुँच कर
आदमी अकेला हो जाता है
वो भूल जाता है
वहां तक पहुंचने में
वो कितनों का
दिल दुखाता है

ज्यूँ खजूर का पेड़
उद्देश्यहीन सीना
ताने खड़ा रह जाता है
भूल जाता है वह
कि उसका काम है
पथिक को
शीतल छाँव देना
वह अपने नीचे सबको
बेबस खड़ा हुआ पाता है
बिजली,बरखा,आंधी तूफान से
उनकी रक्षा नहीं कर पाता है

फिर भी सब शिखर पर
चढ़ने को बेचैन हैं
ये जानते हुए भी कि
शिखर पर आदमी बेचैन है ..!

ये आदमी हैं ना
इनको किसी बात से
कदापि न आता चैन है..!!

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

11 /2//2020
बिषय,, शीर्ष,, शिखर

सर्वोच्च शिखर की गाथाएं
हम जो सुनते आए हैं
अनेकों वीर जवानों ने अपने
प्राण गवाएं। हैं
धरती माता की खातिर
वीरगति को प्राप्त हुए
दुश्मन को सीमा से हटा
परचम अपना लहराए हैं
शीर्ष पर पहुंचने का नशा
या हिमालय की चोटी का जुनून हो
नेतृत्व की क्षमता जिसने
करके वही दिखाए हैं
राई को पर्वत कर दे
पर्वत को राई
संकल्पों को पूर्ण कर
शान अलग बनाए हैं
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
तिथि -11/2/2020/मंगलवार
विषय-*शीर्ष/शिखर*

विधा- काव्य

हमें प्रेम भक्ति देना भगवान।
प्रभु चढ़ाऐं शिखर करे गुणगान।
मिले शक्ति हम भी वलशाली हों,
गाऐं ग़ौरव बने देश महान।

जन मनोरंजन हो भारत वैभव।
हरजन का हो यहां अपना वैभव।
शीर्ष शिखर पर सभी जन पहुंचें,
यह स्वदेश ही हम सबका वैभव।

हो प्रेमपूर्ण परिवेश हमारा।
कहें भारतवासी देश हमारा।
जय सभी भारतमाता की बोलें,
यहीं सदैव हो उद्घोष हमारा।

हम सब बडभागी गौरवशाली।
जन्में जहां वीरबाहु वलशाली।
हुंकार भरें शिखरों पर चढ़कर,
हुऐ शिवा महावीर वलिवाली।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
दिनांक-11/02/2020
विषय- शिखर/शीर्ष


शैशव का स्वप्न......... शिखर का सच

इतिहास उन्हीं का होता है
जो पांव अनल पर रखता है
तप कर अगणित चोटें सहकर
तब स्वर्ण खरा उतरता है
किसी के गले का हार बनता
किसी के कलमो का छंद

बीच भंवर में पतवार को थामो .......
लहरों में जरा उतरकर
चलो निरंतर तुम मत बैठो
हाथों को यूं मल मलकर
गगन चूमने के खातिर
निज पंखों का विस्तार करो
लक्ष्य को भेदने वाले
कंटक शीर्ष पथ स्वीकार करो।

जीवन की इस आपाधापी मे......
तुम स्वीकार करो
आर करो या पार करो
हर कंटक पथ स्वीकार करो
कष्टों के आलिंगन को
अंगीकार करो या तो तेज धार करो....
शीर्ष शिखर को पार करो

स्वरचित.....

सत्य प्रकाश सिंह
शीर्षक -शीर्ष/शिखर
दिनांक -11.2.2020

विधा --दोहे
1.
लगन और मेहनत से , करते सतत प्रयास
शिखर वही छूते सदा, होते नहीं निराश ।।
2.
शिखर पहुंचने पर सदा ,होता है ये भान
शिखर बहुत से शेष है ,याद रखे इंसान
3.
एक कूद से शीर्ष पर ,बिरले ही चढ़ पायँ।
धीरे धीरे जो चढ़ें, मंजिल तक चढ़ जायँ
4.
गुण से मनुष्य महान है ,उच्चासन से नाहिं।
महल शीर्ष पर बैठकर, काग न गरुड़ कहाहिं।।

*****स्वरचित *********
प्रबोध मिश्र 'हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551

भावों के मोती।
विषय-शिखर।

स्वरचित।
शिखर पर बैठा है जो
देखो कैसे ऐंठा है वो।
कल तक था राह पर
चलता एक आम आदमी।
कुछ दिन के अन्तराल में
आम से हो गया खास आदमी।।

आम और खास के बीच
क्या खोया क्या पाया उसने?
कितनों को सीढ़ियां बना
खुद को ऊपर चढ़ाया उसने।।

आम से खास के सफर में
ये बतायें आपबीती उसकी।
चाह खोई,आह ली।
प्यार खोया,नफरत ली।
रिश्ते खोए,अकेलापन पाया।
अपनापन खोया,बेगानापन पाया।।

खो दिया आत्मसम्मान,
हो गया नतमस्तक रुतबे पर।
खो दी करूणा,दया, मानवता
गवां दिया ईमानदारी का उद्घघोष।

छोटी-छोटी गंवा दी खुशियां।
अपनों की गवां दीं नजदीकियां।
दूसरों से पाया सम्मान पर
अपनों की ले ली हिराकत औ उपेक्षा।।

धन आया,वैभव आया
पर लुट गया दिल का खजाना।
गंवा दिया अन्तर का सुख
बैठा शिखर पर आज अकेला
भरमाया याकि पछताया?
******
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
11/02/2020

विषय : शिखर
विधा : कविता

तिथि : 11.2.2020

शिखर
छू बन प्रखर।

बड़ आठों पहर,
रोक सके न कोई कहर,
जब तक मिले न मंज़िल-
कभी न ठहर।

राह में आएं कैसे भी ज़हर,
बनाने को उनको गंगा नहर-
पी जाना उन्हें बन कर शिव,
पहुंचाए गी मंज़िल हर लहर।

कैसे भी हों गहरे गह्वर-
इक दिन बन जाएंगे सब 'खबर';
जिस दिन शिखर को छू लेने की-
जीवन में होगी सहर। - रीता ग्रोवर
-स्वरचित

विषय_ शीर्ष, शिखर
तिथि _ 11_2_2020


पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
हताशा या निराशा जब घेर ले तुमको
तो उदास कभी न होना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और जीवन को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
ज़िंदगी अनमोल है तुम्हारी
व्यर्थ की बातों से नष्ट न हो
दुनिया में कोई नही ऐसा
जीवन में जिसके कष्ट न हो
नाकामी जीवन का अन्त है
ये कभी न मानना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और ज़िंदगी को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
बेकार समझ कर जीवन को अपने
कभी इसका अपमान न करना
पहचान कर प्रतिभा अपनी
उसका तुम सम्मान करना
टूटा है जो दिल तुम्हरा
जोड़ने का उसके प्रयास करना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और ज़िंदगी को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
भावी निर्माता हो तुम इस जग के
आशाओं के सपने बनो तुम
फूलों की कमी नहीं जग में
काँटो की राह क्यूँ चुनो तुम
अपने बड़ो की सीख लेकर
नई राह चलकर उनके गुण गाना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और ज़िंदगी को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर तुमको
हरदम ये स्वीकारना

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
बिषय - शिखर

जीवन में खुशियाँ मिले कभी न उदास रहे

दुआएं मिले हजार आशीर्वाद तेरे साथ रहे

जहाँ रहो खुश रहो ईश्वर से यही कामना हैं
कामयाबी कदम चूमे दिल में यही आस रहे

तुम मेरी जिंदगी व सुंदर सा प्यारा फूल हो
चाहें राह में कांटे मिले न तेरे आस-पास रहे

मेरे रूह में शायद बस चुके हो तुम इसकदर,
मेरे अंतर्मन की साँसों में सदैव तेरा वास रहे

हौसला बुलंद रखो कामयाबी मिलेगी जरूर,
ऊंचाई के शिखर पहुँचो जीवन तेरा उजास रहे।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
विषय-शिखर
दिनांक 11-2-2020
शिखर पहुंच मन अभिमान,कभी ना लाना।
कई गिरे हैं, जिनका ना कोई ठोर ठिकाना।

जिस दौर से गुजरा,उसे सदा याद रखना।
समय बलवान,देख ये तू कभी ना भुलाना।

आया कभी गुमान,तू अपना हश्र देख लेना।
भूल गया,तो एक चक्कर शमशान लगाना।

मिले है मिट्टी मे,जिन्होंने दंभ गले लगाया।
रावण कौरव कंस,जग कभी न बिसराना।

पसीने का महत्व,सदा जग को बतलाना।
बागबान मेहनत से,क्यों अनजान जमाना।

इतिहास अमर होने का,काम कर जाना।
उदाहरण बन सदा,जन ह्रदय तू छा जाना।

जानवरों सा जीवन जी,ना जग विदा लेना।
प्रभु श्रेष्ठ रचना कहे,ऐसा कुछ कर जाना।

कहती वीणा,अलंकार बन तू शोभा बढाना।
माँ शारदे की लेखनी में,सदा अमर हो जाना।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

दिनांक-11-02-2020
विषय-शिखर/शीर्ष

विधा-छन्दमुक्त कविता

शिखर पर पहुँच कर
आदमी अकेला हो जाता है
वो भूल जाता है
वहां तक पहुंचने में
वो कितनों का
दिल दुखाता है

ज्यूँ खजूर का पेड़
उद्देश्यहीन सीना
ताने खड़ा रह जाता है
भूल जाता है वह
कि उसका काम है
पथिक को
शीतल छाँव देना
वह अपने नीचे सबको
बेबस खड़ा हुआ पाता है
बिजली,बरखा,आंधी तूफान से
उनकी रक्षा नहीं कर पाता है

फिर भी सब शिखर पर
चढ़ने को बेचैन हैं
ये जानते हुए भी कि
शिखर पर आदमी बेचैन है ..!

ये आदमी हैं ना
इनको किसी बात से
कदापि न आता चैन है..!!

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
11 /2//2020
बिषय,, शीर्ष,, शिखर

सर्वोच्च शिखर की गाथाएं
हम जो सुनते आए हैं
अनेकों वीर जवानों ने अपने
प्राण गवाएं। हैं
धरती माता की खातिर
वीरगति को प्राप्त हुए
दुश्मन को सीमा से हटा
परचम अपना लहराए हैं
शीर्ष पर पहुंचने का नशा
या हिमालय की चोटी का जुनून हो
नेतृत्व की क्षमता जिसने
करके वही दिखाए हैं
राई को पर्वत कर दे
पर्वत को राई
संकल्पों को पूर्ण कर
शान अलग बनाए हैं
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
तिथि -11/2/2020/मंगलवार
विषय-*शीर्ष/शिखर*

विधा- काव्य

हमें प्रेम भक्ति देना भगवान।
प्रभु चढ़ाऐं शिखर करे गुणगान।
मिले शक्ति हम भी वलशाली हों,
गाऐं ग़ौरव बने देश महान।

जन मनोरंजन हो भारत वैभव।
हरजन का हो यहां अपना वैभव।
शीर्ष शिखर पर सभी जन पहुंचें,
यह स्वदेश ही हम सबका वैभव।

हो प्रेमपूर्ण परिवेश हमारा।
कहें भारतवासी देश हमारा।
जय सभी भारतमाता की बोलें,
यहीं सदैव हो उद्घोष हमारा।

हम सब बडभागी गौरवशाली।
जन्में जहां वीरबाहु वलशाली।
हुंकार भरें शिखरों पर चढ़कर,
हुऐ शिवा महावीर वलिवाली।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
दिनांक-11/02/2020
विषय- शिखर/शीर्ष


शैशव का स्वप्न......... शिखर का सच

इतिहास उन्हीं का होता है
जो पांव अनल पर रखता है
तप कर अगणित चोटें सहकर
तब स्वर्ण खरा उतरता है
किसी के गले का हार बनता
किसी के कलमो का छंद

बीच भंवर में पतवार को थामो .......
लहरों में जरा उतरकर
चलो निरंतर तुम मत बैठो
हाथों को यूं मल मलकर
गगन चूमने के खातिर
निज पंखों का विस्तार करो
लक्ष्य को भेदने वाले
कंटक शीर्ष पथ स्वीकार करो।

जीवन की इस आपाधापी मे......
तुम स्वीकार करो
आर करो या पार करो
हर कंटक पथ स्वीकार करो
कष्टों के आलिंगन को
अंगीकार करो या तो तेज धार करो....
शीर्ष शिखर को पार करो

स्वरचित.....

सत्य प्रकाश सिंह

शीर्षक -शीर्ष/शिखर
दिनांक -11.2.2020

विधा --दोहे
1.
लगन और मेहनत से , करते सतत प्रयास
शिखर वही छूते सदा, होते नहीं निराश ।।
2.
शिखर पहुंचने पर सदा ,होता है ये भान
शिखर बहुत से शेष है ,याद रखे इंसान
3.
एक कूद से शीर्ष पर ,बिरले ही चढ़ पायँ।
धीरे धीरे जो चढ़ें, मंजिल तक चढ़ जायँ
4.
गुण से मनुष्य महान है ,उच्चासन से नाहिं।
महल शीर्ष पर बैठकर, काग न गरुड़ कहाहिं।।

*****स्वरचित *********
प्रबोध मिश्र 'हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
भावों के मोती।
विषय-शिखर।

स्वरचित।
शिखर पर बैठा है जो
देखो कैसे ऐंठा है वो।
कल तक था राह पर
चलता एक आम आदमी।
कुछ दिन के अन्तराल में
आम से हो गया खास आदमी।।

आम और खास के बीच
क्या खोया क्या पाया उसने?
कितनों को सीढ़ियां बना
खुद को ऊपर चढ़ाया उसने।।

आम से खास के सफर में
ये बतायें आपबीती उसकी।
चाह खोई,आह ली।
प्यार खोया,नफरत ली।
रिश्ते खोए,अकेलापन पाया।
अपनापन खोया,बेगानापन पाया।।

खो दिया आत्मसम्मान,
हो गया नतमस्तक रुतबे पर।
खो दी करूणा,दया, मानवता
गवां दिया ईमानदारी का उद्घघोष।

छोटी-छोटी गंवा दी खुशियां।
अपनों की गवां दीं नजदीकियां।
दूसरों से पाया सम्मान पर
अपनों की ले ली हिराकत औ उपेक्षा।।

धन आया,वैभव आया
पर लुट गया दिल का खजाना।
गंवा दिया अन्तर का सुख
बैठा शिखर पर आज अकेला
भरमाया याकि पछताया?
******
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
11/02/2020
विषय : शिखर
विधा : कविता

तिथि : 11.2.2020

शिखर
छू बन प्रखर।

बड़ आठों पहर,
रोक सके न कोई कहर,
जब तक मिले न मंज़िल-
कभी न ठहर।

राह में आएं कैसे भी ज़हर,
बनाने को उनको गंगा नहर-
पी जाना उन्हें बन कर शिव,
पहुंचाए गी मंज़िल हर लहर।

कैसे भी हों गहरे गह्वर-
इक दिन बन जाएंगे सब 'खबर';
जिस दिन शिखर को छू लेने की-
जीवन में होगी सहर। - रीता ग्रोवर
-स्वरचित

विषय_ शीर्ष, शिखर
तिथि _ 11_2_2020


पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
हताशा या निराशा जब घेर ले तुमको
तो उदास कभी न होना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और जीवन को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
ज़िंदगी अनमोल है तुम्हारी
व्यर्थ की बातों से नष्ट न हो
दुनिया में कोई नही ऐसा
जीवन में जिसके कष्ट न हो
नाकामी जीवन का अन्त है
ये कभी न मानना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और ज़िंदगी को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
बेकार समझ कर जीवन को अपने
कभी इसका अपमान न करना
पहचान कर प्रतिभा अपनी
उसका तुम सम्मान करना
टूटा है जो दिल तुम्हरा
जोड़ने का उसके प्रयास करना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और ज़िंदगी को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर
हरदम ये स्वीकारना
भावी निर्माता हो तुम इस जग के
आशाओं के सपने बनो तुम
फूलों की कमी नहीं जग में
काँटो की राह क्यूँ चुनो तुम
अपने बड़ो की सीख लेकर
नई राह चलकर उनके गुण गाना
सुनना अपने अन्तर्मन की आवाज़
और ज़िंदगी को सँवारना
पहुँचना है शीर्ष पर तुमको
हरदम ये स्वीकारना

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
बिषय - शिखर

जीवन में खुशियाँ मिले कभी न उदास रहे

दुआएं मिले हजार मन में उमंग उल्लास रहे

जहाँ रहो खुश रहो ईश्वर से यही कामना हैं
कामयाबी कदम चूमे दिल में यही आस रहे

तुम मेरी जिंदगी व सुंदर सा प्यारा फूल हो
चाहें राह में कांटे मिले न तेरे आस-पास रहे

मेरे रूह में शायद बस चुके हो तुम इसकदर,
मेरे अंतर्मन की साँसों में सदैव तेरा वास रहे

हौसला बुलंद रखो कामयाबी मिलेगी जरूर,
ऊंचाई के शिखर पहुँचो जीवन तेरा उजास रहे।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
11/2/20

होता महोत्सव
है शिखर का
श्रेस्ठम के वरन का
कीर्ति की फहराती
है पताका
कर्म की महिमा
का उजागर
नीव की महिमा
जो सृस्टि का आदर्श है
चढ़ते गए
सीढ़ी पे सीढ़ी
ले सहारा नीव का
नीव के पाषाण
का अपना वो
इतिहास कहाँ
होता है गुणगान
गगनचुंबी इमारतों का
शीर्ष को छूती
भव्यता का
सोचा किसी ने
बोझ से दबी
उन नीव का
जो भार को
है उठाये शीर्ष का

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय-शीर्ष/शिखर

उच्च शिखर चढ़ते वही, करे परिश्रम घोर।
काली निशि ही झेलकर,मिले सुहानी भोर।।

काम क्रोध मद लोभ हैं, घातक हिंसक भाव ।
शीर्ष पंथ बाधित करें ,नित दें मन को घाव।।

राजनीति की संकरी, कपट भरी है राह।
शीर्ष पहुंच की होड़ में ,बने पाप की राह।।

पार मनीषियों ने किया ,बड़ा कष्टप्रद पंथ ।
शीर्ष कोटि तब रच सके,अमिट अमर शुभ ग्रंथ।।

अगर चाहिए आपको ,शीर्ष जनों का मान।
मानवता धारण करो, रखो लोक हित ध्यान।।

शिखर सफलता का मिले,बनें लोकप्रिय आप।
निश्छल मन से लोक का ,दूर करें संताप।।

स्वरचित-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

दिनांक ११/०२/२०२०
विषय -शीर्ष /शिखर


अभिलाषा हो कुछ करने की
कुछ बनने की कुछ ठनने की
अथक परिश्रम करना होगा
रातों में भी जगना होगा।

हो मनसंकल्पित अगर शिखर
तो प्राप्त तुम्हें तो करना होगा।
शिखर की तृष्णा अच्छी है
जो सोच तुम्हारी सच्ची है।

दूर नहीं तुमसे यह मुकाम
करने होंगे तुम्हें नेक काम
हर मार्ग तुम्हें ले जाएगा
और जीत तुम्हारी सुनिश्चित है।

स्वरचित, रंजना सिंह
विषय शिखर
विधा कविता

दिनाँक 11.2.2020
दिन मंगलवार

चोटी उवाच
💘💘💘💘

हाँ मैं पर्वत की चोटी ही तो हूँ
तुम्हें दूर से लगती छोटी ही तो हूँ
आओ मैं तुम्हें अपने पास बुलाती हूँ
उमंगों के सुन्दर झूलों में झुलाती हूँ।

ऊँचाई कैसे पाते हैं तुम्हें बताऊँगी
ऊँचाई से कैसे झाँकते हैं दिखाऊँगी
दुर्गम पथों पर चलना सिखाऊँगी
धैर्य किसे कहते हैं समझाऊँगी।

ऊँचाई पर टिके रहने के लिये
जलाने पड़ते हैं सँयम के दिये
एक विस्तृत आधार रखना पड़ता है
और वही स्थापित करता दृड़ता है।

मैं चोटी ही रहूँ इसके बहुत समीकरण हैं
इसके बिना तो हरण ही हरण हैं
चाहिये बहुत सामन्जस्य और तालमेल
उसी पर ही है निर्भर यह सारा खेल।

मेरी सोच ही जड़ तक जाती है
पूरा आधार यह सुदृड़ बनाती है
मैं अपने पास कुछ नहीं सिंचित करती
जो भी मिलाता है मुझे मैं तुरन्त वितरित करती।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि
विषय-शिखर
दिनांक 11-2-2020
शिखर पहुंच मन अभिमान,कभी ना लाना।
कई गिरे हैं, जिनका ना कोई ठोर ठिकाना।

जिस दौर से गुजरा,उसे सदा याद रखना।
समय बलवान,देख ये तू कभी ना भुलाना।

आया कभी गुमान,तू अपना हश्र देख लेना।
भूल गया,तो एक चक्कर शमशान लगाना।

मिले है मिट्टी मे,जिन्होंने दंभ गले लगाया।
रावण कौरव कंस,जग कभी न बिसराना।

पसीने का महत्व,सदा जग को बतलाना।
बागबान मेहनत से,क्यों अनजान जमाना।

इतिहास अमर होने का,काम कर जाना।
उदाहरण बन सदा,जन ह्रदय तू छा जाना।

जानवरों सा जीवन जी,ना जग विदा लेना।
प्रभु श्रेष्ठ रचना कहे,ऐसा कुछ कर जाना।

कहती वीणा,अलंकार बन तू शोभा बढाना।
माँ शारदे की लेखनी में,सदा अमर हो जाना।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

विषय-शीर्ष / शिखर
विधा-मुक्त

दिनांक-11 /02 /2020

पहुँच शिखर पर बेटियाँ
कर रहीं दुनियां के दिलों
पर राज़ हैं
दो घर ही नहीं ,ना जाने कितने घरों की नाज़ हैं

शीर्ष पर होकर भी कभी
घमंड करती नहीं
शीर्ष से बहती निर्झरिणी-सी
सदैव नम् हो बहती हैं।

डा.नीलम

दिनांक 11-02-2020
विषय-शिखर


चाहते हो यदि शिखर पर पहुंचना
ध्येय अन्तर्मन लिए बढ़ना ही होगा
राह दुर्गम हो भले ही चाहे जितना
भूलकर पीड़ा सतत चढ़ना ही होगा

पांव फिसलेंगे भी लेकिन ध्यान हो
ठोकरों से है हमें बचकर निकलना
चोट संभव है लगे इससे कहीं पर
पर हमें हर हाल में होगा सँभलना...

कुछ निगाहे भी उठेंगी चाहती यह
हौसला तुम छोड़ करके टूट जाओ
न पहुँच पावोगे तुम ऊँचे शिखर पर
खुद ही किस्मत से अपने रूठ जाओ.

पर रहे मन में सदा संकल्प दृढ़
ध्येय अपना है शिखर पर जाना
स्वप्न आँखों में सजा जब एक है
तय समझ लो फिर हमें है आना..

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
विधा -छंदमुक्त
विषय-शिखर/शीर्ष


शिखर पर पहुँचना
आसान नहीं होता
एक-एक सीढ़ी पर
पाँव जमा कर
सदा रखना होता
राह में काँटे बहुत हैं शीर्ष के
कोई रास्ता आसान नहीं होता
कई तूफान आते हैं
हौंसले तोड़ देते हैं
कई सैलाब आते है
जो रुख ही मोड़ देते हैं
जो ऊपर से अगर झाँकें
तो मन कैसा दहलता है
अगर जोखिम नहीं झेली
नहीं फिर शीर्ष मिलता है
न हारें जो कभी
जीवन में अपने
खुली आँखों से देखें
सुनहरे खूब सपने
हौंसले हों बुलंद
रुके न पाँव जिनके
सदा ही चूम लेती है
सफलता पाँव उनके

सरिता गर्ग

11/02/2020::मंगलवार
विषय -- शिखर


शिखर की चाह में
तलाशते अपना अपना
आसमान!!
चढ़ते गए निरन्तर
न जाने कितने सोपान
उम्र भर साथ निभाने के
भूल गए वो कसमें वादे
आशियाना तब्दील हो गया
एक मकान में
अटल थे तो सिर्फ इरादे
न तो वक्त था न ही जरूरत
जिंदगी लग रही थी बहुत खूबसूरत
रात दिन खटते रहे
बनकर मशीन
लग रहीं थीं ये वादियाँ भी
कुछ ज्यादा हसीन
हाय, हैलो से ज्यादा नहीं वक्त था
शिखर छूने का नियम बड़ा सख्त था
आज हम दोनों ही खड़े
उस मुकाम पर
जिसकी चाहत थी मन में
किसी भी दाम पर
बुलंदियों पर लहरा परचम
रुके क्षणिक
तब हुआ अहसास
बहुत कुछ पाने की चाह में
छूट गया कुछ खास
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

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