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ब्लॉग संख्या :-666
विषय निचोड़,सार
विधा काव्य
24 फरवरी 2020,सोमवार
यह जीवन एक निचोड़ है
गन्ना जब मशीन में पिसता।
नित अति दर्द सहन करता
गुड़ शक्कर मिश्री रस देता।
बड़भागी हैं हम सब सारे
मानव की यह देह मिली है।
जो समझा सार जीवन का
उस हिय की कली खिली है।
जीवन का बस सार एक है
निज कर्त्तव्य पालन करना।
हम आए इस मातृभूमि पर
नित भारती वृक्षों से भरना।
एक निचोड़ इस जीवन का
जन्म मृत्यु के बंधन सहना।
सुख दुःख धूप छाँव से आते
आये हैं हटकर कुछ करना।
कोई किसी का नहीं हुआ है
इस मायावी चँचल जीवन में।
आते और जाते रहें पल पल
इस जीवन चञ्चल मधुवन में।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
24 फरवरी 2020,सोमवार
यह जीवन एक निचोड़ है
गन्ना जब मशीन में पिसता।
नित अति दर्द सहन करता
गुड़ शक्कर मिश्री रस देता।
बड़भागी हैं हम सब सारे
मानव की यह देह मिली है।
जो समझा सार जीवन का
उस हिय की कली खिली है।
जीवन का बस सार एक है
निज कर्त्तव्य पालन करना।
हम आए इस मातृभूमि पर
नित भारती वृक्षों से भरना।
एक निचोड़ इस जीवन का
जन्म मृत्यु के बंधन सहना।
सुख दुःख धूप छाँव से आते
आये हैं हटकर कुछ करना।
कोई किसी का नहीं हुआ है
इस मायावी चँचल जीवन में।
आते और जाते रहें पल पल
इस जीवन चञ्चल मधुवन में।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
"निचोड़/सार"
नमन, वन्दन मंच भावों के मोती समूह। गुरुजनों, मित्रों।
जीवन का सार यही है।
.......नश्वर तन है मानव का।
जिन्दगी में रखा है नहीं कुछ।
....... सेवा कर लो निर्बल का।
देंगे दूआयें, धन्य होगा जीवन।
.......सौंप दो सेवा में अपना तन,मन।
संसार में इससे बढ़कर कुछ नहीं।
........सच मायने में सही है जीवन यही।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन, वन्दन मंच भावों के मोती समूह। गुरुजनों, मित्रों।
जीवन का सार यही है।
.......नश्वर तन है मानव का।
जिन्दगी में रखा है नहीं कुछ।
....... सेवा कर लो निर्बल का।
देंगे दूआयें, धन्य होगा जीवन।
.......सौंप दो सेवा में अपना तन,मन।
संसार में इससे बढ़कर कुछ नहीं।
........सच मायने में सही है जीवन यही।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय - निचोड़/सार
प्रथम प्रस्तुति
जिन्दगी पहेली जो उलझाती है
यह बात देर से समझ आती है।।
निचोड़ क्या निकलेगा भला कोई
हर वक्त नये नये सवाल लाती है।।
किस मोड़ पर कहाँ शाम हो जाए
ये बात कहाँ किसको ये बताती है।।
हर पल को समझो पूर्णतः को बढ़ो
इक प्रेम की पट्टी सुख सरसाती है।।
ज्ञान का नही कहीं ओर छोर कोई
जिन्दगी प्रेम से ही सँभल पाती है।।
प्रेम में भक्ति है प्रेम में शक्ति है
वो डोर जो परमात्म से बिंधाती है।।
ढाई अक्षर प्रेम की पट्टी जाने क्यों
'शिवम' अक्सर ही ये भूल जाती है।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/02/2020
प्रथम प्रस्तुति
जिन्दगी पहेली जो उलझाती है
यह बात देर से समझ आती है।।
निचोड़ क्या निकलेगा भला कोई
हर वक्त नये नये सवाल लाती है।।
किस मोड़ पर कहाँ शाम हो जाए
ये बात कहाँ किसको ये बताती है।।
हर पल को समझो पूर्णतः को बढ़ो
इक प्रेम की पट्टी सुख सरसाती है।।
ज्ञान का नही कहीं ओर छोर कोई
जिन्दगी प्रेम से ही सँभल पाती है।।
प्रेम में भक्ति है प्रेम में शक्ति है
वो डोर जो परमात्म से बिंधाती है।।
ढाई अक्षर प्रेम की पट्टी जाने क्यों
'शिवम' अक्सर ही ये भूल जाती है।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/02/2020
23 /2 /2020
बिषय,, निचोड़,, सार
जीवन का बस सार यही है
अपने में खुश रहना
सुख दुख दोनों धूप छांव हैं नहीं किसी से कहना
दुख तो कोई नहीं बांटता खुद पड़ता है सहना
सुख के साथी सभी विपत्तियों पर न अपना
फिर क्यों किसी से दुखड़ा रोना
अच्छा बुरा सब हमको ही ढोना
जमाने के सामने न आँख भिगोना
ए दुनिया एक तमाशा है
न करना इससे आशा है
कोई किसी का नहीं है
यही निचोड़ यही सही है
जग को मनाने की वजाय
भगवान को मनाऐं
सारा सुख दुख उसी को सुनाऐं
जो तेरा है कर दे अर्पण
ए तन मन कर उसे समर्पण
इसी में भलाई यही है सार्थक
वरना जीवन जाएगा निर्थरक
संसार का मोह जाल छोड़ प्रभु को मनाले
सफलता इसी में जो ईश्वर को पा ले
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय,, निचोड़,, सार
जीवन का बस सार यही है
अपने में खुश रहना
सुख दुख दोनों धूप छांव हैं नहीं किसी से कहना
दुख तो कोई नहीं बांटता खुद पड़ता है सहना
सुख के साथी सभी विपत्तियों पर न अपना
फिर क्यों किसी से दुखड़ा रोना
अच्छा बुरा सब हमको ही ढोना
जमाने के सामने न आँख भिगोना
ए दुनिया एक तमाशा है
न करना इससे आशा है
कोई किसी का नहीं है
यही निचोड़ यही सही है
जग को मनाने की वजाय
भगवान को मनाऐं
सारा सुख दुख उसी को सुनाऐं
जो तेरा है कर दे अर्पण
ए तन मन कर उसे समर्पण
इसी में भलाई यही है सार्थक
वरना जीवन जाएगा निर्थरक
संसार का मोह जाल छोड़ प्रभु को मनाले
सफलता इसी में जो ईश्वर को पा ले
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
विषय सार
दिनांक 24/2/2020
नफरत के बदले प्यार सही
जीवन का है यह सार सही
मेहनत का फल मीठा होता
मिलते चाहे आने चार सही
बैर किसी से क्यूं हम पाले
दिलों के जोडे हम तार सही
दोनो हाथ लुटाओं खुशियां
दुखों का नही है पार सही
लिखले चाहे कितना ही हम
ढाई आखर का प्यार सही
भावों के मोती बस चुन लो
बने सुंदर चाहे एक हार सही
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक 24/2/2020
नफरत के बदले प्यार सही
जीवन का है यह सार सही
मेहनत का फल मीठा होता
मिलते चाहे आने चार सही
बैर किसी से क्यूं हम पाले
दिलों के जोडे हम तार सही
दोनो हाथ लुटाओं खुशियां
दुखों का नही है पार सही
लिखले चाहे कितना ही हम
ढाई आखर का प्यार सही
भावों के मोती बस चुन लो
बने सुंदर चाहे एक हार सही
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक-24/02/2020
विषय-निचोड/सार
कल्पना के रथ पर सवार
करूं मैं भावो का श्रृंगार
यही है जीवन का सार.....
मरघट की ठंडी बुझी राख
सुलग जाती धूँए की गुबार
सुनो चीरते तिमिर का पुकार।
यही जीवन का है सार........
समय के काले सूरज की हुंकार
एक कील न जाने क्यों चुभता
सिद्ध चित् विकृत हृदय के तार।
यही है जीवन का सार...........
पल-पल होता मेरा तिरस्कार
तुम मधुर -मधुर हम क्षार -क्षार
तुम सुर्ख मिलन हम इंतजार
यही है जीवन का सार...........
उजड़े जीवन में है अंधकार
फिर भी हम है बेकरार
यही है जीवन का सार............
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-निचोड/सार
कल्पना के रथ पर सवार
करूं मैं भावो का श्रृंगार
यही है जीवन का सार.....
मरघट की ठंडी बुझी राख
सुलग जाती धूँए की गुबार
सुनो चीरते तिमिर का पुकार।
यही जीवन का है सार........
समय के काले सूरज की हुंकार
एक कील न जाने क्यों चुभता
सिद्ध चित् विकृत हृदय के तार।
यही है जीवन का सार...........
पल-पल होता मेरा तिरस्कार
तुम मधुर -मधुर हम क्षार -क्षार
तुम सुर्ख मिलन हम इंतजार
यही है जीवन का सार...........
उजड़े जीवन में है अंधकार
फिर भी हम है बेकरार
यही है जीवन का सार............
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
24/2/2020
विषय-सार (निचौड़)
यही सार जीवन का
मधु ऋतु सुहाए सखी पतझर नही भाए।
अरे बावरी बिन पतझर ,मधु रस कैसे मन भाए ,
अंधकार नही तो बोलो कैसे जुगनु चमक पाए।
रजनी का जब गमन है होता तब उषा मुसकाए,
सारा समय चमकता सूरज भी नही भाए।
निशा की कालिमा ही सूरज में उजाला भरती,
जब घन अस्तित्व खोते तो धरती खूब सरसती।
फूल झरते हैं खिल के, पंक्षी फिर भी गाते ,
गिरा घोंसला पक्षी का फिर भी फूल मुस्काते।
किसी का आना किसी का जाना चलन यही दुनिया का,
जगती में कोई मूल्य नही दु:ख बिन सुख का।
कोई हारा कोई जीता यही "सार" जीवन का ,
हे री सखी पतझर बिनु मधु रस कैसे जीवन का।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-सार (निचौड़)
यही सार जीवन का
मधु ऋतु सुहाए सखी पतझर नही भाए।
अरे बावरी बिन पतझर ,मधु रस कैसे मन भाए ,
अंधकार नही तो बोलो कैसे जुगनु चमक पाए।
रजनी का जब गमन है होता तब उषा मुसकाए,
सारा समय चमकता सूरज भी नही भाए।
निशा की कालिमा ही सूरज में उजाला भरती,
जब घन अस्तित्व खोते तो धरती खूब सरसती।
फूल झरते हैं खिल के, पंक्षी फिर भी गाते ,
गिरा घोंसला पक्षी का फिर भी फूल मुस्काते।
किसी का आना किसी का जाना चलन यही दुनिया का,
जगती में कोई मूल्य नही दु:ख बिन सुख का।
कोई हारा कोई जीता यही "सार" जीवन का ,
हे री सखी पतझर बिनु मधु रस कैसे जीवन का।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
24/02/2020सोमवार
विषय-निचोड़/सार
विधा-लघु कविता
🍁🍂🌺🍁🌺🍂
सर्जन,
अर्जन,
विसर्जन,
जगत में
यही सार है🌷
आया है
अकेला
जाएगा भी
अकेला
संसार में
यही सार है🌹
आया है
खाली हाथ
जाएगा भी
खाली हाथ
दुनिया का
यही निचोड़ है🍁
🍂☘️🍂☘️🍂☘️
श्रीराम साहू अकेला
विषय-निचोड़/सार
विधा-लघु कविता
🍁🍂🌺🍁🌺🍂
सर्जन,
अर्जन,
विसर्जन,
जगत में
यही सार है🌷
आया है
अकेला
जाएगा भी
अकेला
संसार में
यही सार है🌹
आया है
खाली हाथ
जाएगा भी
खाली हाथ
दुनिया का
यही निचोड़ है🍁
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श्रीराम साहू अकेला
विषय : सार, निचोड़
विधा : कविता
तिथि : 24.2.2020
सत्य सार
जग निस्सार
जन्म हैं आने-जाने
शाश्वत कर्म संस्कार।
सत्य सार
बड़ों से दुआ
अपनों से प्यार
प्राप्त शाश्वत बहार!
सत्य सार
छल-कपट निस्सार
करुणा स्नेह प्रसार
फला यही व्यापार।
सत्य सार
आशा आहार
निराशा ख्वार
समझदारी सत्कार।
-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 24.2.2020
सत्य सार
जग निस्सार
जन्म हैं आने-जाने
शाश्वत कर्म संस्कार।
सत्य सार
बड़ों से दुआ
अपनों से प्यार
प्राप्त शाश्वत बहार!
सत्य सार
छल-कपट निस्सार
करुणा स्नेह प्रसार
फला यही व्यापार।
सत्य सार
आशा आहार
निराशा ख्वार
समझदारी सत्कार।
-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
विषय, निचोड़, सार
दिनांक, 24, 2, 2020.
वार, सोमवार
सब ग्रंथों का सार यही है ,
नश्वर जग और एक अमर वही है।
जन्म मृत्यु सब कुछ तय होता,
कर्म बीज पर सृष्टि खड़ी है ।
बीज जो बोया होगी फसल उसी की ,
बात नहीं कुछ सही गलत की ।
सुख दुख सब करनी के फल हैं,
शिकवा शिकायत सब व्यर्थ सभी की।
सबसे बड़ा तप सिर्फ सत्य है ,
और पर पीड़ा ही पाप का घर है ।
यहाँ असंतोष ही दुख की जड़ है,
जहाँ संतोष है सुख भी उधर है ।
आत्मा अमर है यही ईश्वर है ,
हर एक जीव में उसका ही अंश है ।
करता प्रेम ही एकाकार सब को,
मिलन प्रभु से साकार यही है ।
परम शक्ति में विलय सत्य है,
मार्ग मिलन का ईश प्रेम सही है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक, 24, 2, 2020.
वार, सोमवार
सब ग्रंथों का सार यही है ,
नश्वर जग और एक अमर वही है।
जन्म मृत्यु सब कुछ तय होता,
कर्म बीज पर सृष्टि खड़ी है ।
बीज जो बोया होगी फसल उसी की ,
बात नहीं कुछ सही गलत की ।
सुख दुख सब करनी के फल हैं,
शिकवा शिकायत सब व्यर्थ सभी की।
सबसे बड़ा तप सिर्फ सत्य है ,
और पर पीड़ा ही पाप का घर है ।
यहाँ असंतोष ही दुख की जड़ है,
जहाँ संतोष है सुख भी उधर है ।
आत्मा अमर है यही ईश्वर है ,
हर एक जीव में उसका ही अंश है ।
करता प्रेम ही एकाकार सब को,
मिलन प्रभु से साकार यही है ।
परम शक्ति में विलय सत्य है,
मार्ग मिलन का ईश प्रेम सही है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
भावों के मोती।
विषय -सार।स्वरचित।
सार तभी इस जीवन का
जब ग्रहण करो जीवन में
अर्थभरी बातें,
प्यार मुहब्बत,करूणा और दया।।
छोड़ो,जाने दो
नि:सार व्यर्थ की बातों को,द्वेषों को,
नफ़रत और कुविचारों को।।
अपनाओ बस अनुरागों को
सार नहीं कुछ भेदभाव और अलगाव में।
आओ मिलकर बचाएं प्यार की दुनियां को
फूल कुछ नए खिलाएं,खुशबू बिखराएं
इस उपवन रूपी जीवन में।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा "
24/02/2020
विषय -सार।स्वरचित।
सार तभी इस जीवन का
जब ग्रहण करो जीवन में
अर्थभरी बातें,
प्यार मुहब्बत,करूणा और दया।।
छोड़ो,जाने दो
नि:सार व्यर्थ की बातों को,द्वेषों को,
नफ़रत और कुविचारों को।।
अपनाओ बस अनुरागों को
सार नहीं कुछ भेदभाव और अलगाव में।
आओ मिलकर बचाएं प्यार की दुनियां को
फूल कुछ नए खिलाएं,खुशबू बिखराएं
इस उपवन रूपी जीवन में।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा "
24/02/2020
24/ 02/ 2020
विषय - निचोड़/ सार
विधा- काव्य
प्रतिष्ठा, लज्जा, हया, कलंक, नेकी बदी , सभी जीवन के रंग !
कल्पना, अनुकरण , आदर्श, कथा - कहानी - सभी चलते संग संग!!
आकृति, शक्ल, मुखाकृति,ढंग, शैली , तर्ज, अर्थ जीवन सार !
तस्वीर, अंकित, चित्रकार, काल्पनिक, दृष्टि विचार जीवन सार!!
परख , अच्छे- बुरे तमीज , कोमल रिश्तों की सूक्ष्मता जीवन निचोड़ !!
कुल, वंश पवित्रता, हृदय हरा भरा पन प्रकृति के कण कण में जीवन निचोड़!!
आज्ञाकारी, विनम्रता, प्रबंध, उठना
बैठना , तौर-तरीका देख - भाल जीवन सार !!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद-झारखंड
विषय - निचोड़/ सार
विधा- काव्य
प्रतिष्ठा, लज्जा, हया, कलंक, नेकी बदी , सभी जीवन के रंग !
कल्पना, अनुकरण , आदर्श, कथा - कहानी - सभी चलते संग संग!!
आकृति, शक्ल, मुखाकृति,ढंग, शैली , तर्ज, अर्थ जीवन सार !
तस्वीर, अंकित, चित्रकार, काल्पनिक, दृष्टि विचार जीवन सार!!
परख , अच्छे- बुरे तमीज , कोमल रिश्तों की सूक्ष्मता जीवन निचोड़ !!
कुल, वंश पवित्रता, हृदय हरा भरा पन प्रकृति के कण कण में जीवन निचोड़!!
आज्ञाकारी, विनम्रता, प्रबंध, उठना
बैठना , तौर-तरीका देख - भाल जीवन सार !!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद-झारखंड
विषय - सार
सार जीवन का है केवल,
देह तो यह नश्वर है।
सुक्ष्म स्वरूप है आत्मा का, परमपिता परमेश्वर है।
आते हैं हम करने अभिनय,
धरा के इस रंगमंच पर।
अभिनय पुरा होते ही जाते,
आते फिर से रूप नया धर।
आना जाना चलता ही रहता,
कर्मों के अनुरूप यहाँ।
निर्देशक तो एक ईश हैं, बाकि सब प्रारूप यहाँ।
भाग्य न लिखता कोई अपना, कर्म ही अपना भाग्य बनाता।
सौभाग्य या दुर्भाग्य जो भी,
कर्मों से संस्कार है बनता।
निराकार है निर्विकार है,
सर्वशक्तिमान परमात्मा।
है पिता वो एक सभी का,
बाकि सब है आत्मा।
'मनमना भव' होकर ईश्वर को,
मन ही मन जो याद करे।
कर्म करे विकर्म त्याग कर,
सत्कर्मों पर ध्यान धरे।
जीवन का निचोड़ यही है,
शुभभावना हो सर्व हेतु।
करो कामना मंगल सबकी,
शांति का बन जाओ सेतु।
यही तो है परम ज्ञान भी,
गीता का भी सार यही है।
जो दिखता सबका विनाश तय,
न दिखता वह अविनाशी।
स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड।
सार जीवन का है केवल,
देह तो यह नश्वर है।
सुक्ष्म स्वरूप है आत्मा का, परमपिता परमेश्वर है।
आते हैं हम करने अभिनय,
धरा के इस रंगमंच पर।
अभिनय पुरा होते ही जाते,
आते फिर से रूप नया धर।
आना जाना चलता ही रहता,
कर्मों के अनुरूप यहाँ।
निर्देशक तो एक ईश हैं, बाकि सब प्रारूप यहाँ।
भाग्य न लिखता कोई अपना, कर्म ही अपना भाग्य बनाता।
सौभाग्य या दुर्भाग्य जो भी,
कर्मों से संस्कार है बनता।
निराकार है निर्विकार है,
सर्वशक्तिमान परमात्मा।
है पिता वो एक सभी का,
बाकि सब है आत्मा।
'मनमना भव' होकर ईश्वर को,
मन ही मन जो याद करे।
कर्म करे विकर्म त्याग कर,
सत्कर्मों पर ध्यान धरे।
जीवन का निचोड़ यही है,
शुभभावना हो सर्व हेतु।
करो कामना मंगल सबकी,
शांति का बन जाओ सेतु।
यही तो है परम ज्ञान भी,
गीता का भी सार यही है।
जो दिखता सबका विनाश तय,
न दिखता वह अविनाशी।
स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड।
दिनांक 24 /02/2020सोमवार विषय -निचोड़ /सार
जो समझ गया जीवन का सार,
उत्थान पतन सब निराधार ।
ना करे कोई किसी से तकरार
मानव -मानव से ना करे रार ।
न चल करके कुछ आया है ,
न चलकर करके कुछ जाएगा
पाप -पुण्य की यह गठरी
सब यहीं धरी रह जाएगी ।
नित्य निरंतर कर्म करो ,
फल की चिंता ना करो
जो समझ न पाया जीवन का सार,
इस धरा पर जन्म लेना है बेकार।।
स्वरचित ,रंजना सिंह
जो समझ गया जीवन का सार,
उत्थान पतन सब निराधार ।
ना करे कोई किसी से तकरार
मानव -मानव से ना करे रार ।
न चल करके कुछ आया है ,
न चलकर करके कुछ जाएगा
पाप -पुण्य की यह गठरी
सब यहीं धरी रह जाएगी ।
नित्य निरंतर कर्म करो ,
फल की चिंता ना करो
जो समझ न पाया जीवन का सार,
इस धरा पर जन्म लेना है बेकार।।
स्वरचित ,रंजना सिंह
वार : सोमवार
दिनांक : 24.02.2020
आज का शीर्षक : निचोड़ / सार
विधा : स्वतंत्र
गीत
क्या खोया है क्या पाया है ,
इसका गणित लगाना है !
आज नहीं गर सार गहा तो ,
फिर आगे पछताना है !!
सब कुछ है , संतोष अगर ना ,
जीती बाज़ी हार गये !
चुटकी में बीती है उमरिया ,
लगता है अब पार गये !!
अर्थ के पीछे रहे दौड़ते ,
अर्थ नहीं पर जाना है !!
कभी छला है , छले गये हम ,
हार मिली है जीत कभी !
कभी मिली है खुशियाँ ढेरों ,
पाये हैं गम और कभी !
कभी समय का मोल न जाना ,
यह अब हाथ न आना है !!
पूजन , अर्चन , ध्यान , धारणा ,
कभी लुभावन नहीं रहे !
चढ़े न मंदिर की सीढ़ी हम ,
भाव , भावना नहीं गहे !
पल पल हमको ठगते आये ,
सीख गये मुस्काना हैं !!
बाल सुलभ मन करना सीखें ,
मात पिता की सेवा हो !
दीन हीन की मदद करें बस ,
रीझ रहे सब देवा हो !
आवागमन औ मुक्ति क्या है ,
इसमें उलझ न जाना है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
दिनांक : 24.02.2020
आज का शीर्षक : निचोड़ / सार
विधा : स्वतंत्र
गीत
क्या खोया है क्या पाया है ,
इसका गणित लगाना है !
आज नहीं गर सार गहा तो ,
फिर आगे पछताना है !!
सब कुछ है , संतोष अगर ना ,
जीती बाज़ी हार गये !
चुटकी में बीती है उमरिया ,
लगता है अब पार गये !!
अर्थ के पीछे रहे दौड़ते ,
अर्थ नहीं पर जाना है !!
कभी छला है , छले गये हम ,
हार मिली है जीत कभी !
कभी मिली है खुशियाँ ढेरों ,
पाये हैं गम और कभी !
कभी समय का मोल न जाना ,
यह अब हाथ न आना है !!
पूजन , अर्चन , ध्यान , धारणा ,
कभी लुभावन नहीं रहे !
चढ़े न मंदिर की सीढ़ी हम ,
भाव , भावना नहीं गहे !
पल पल हमको ठगते आये ,
सीख गये मुस्काना हैं !!
बाल सुलभ मन करना सीखें ,
मात पिता की सेवा हो !
दीन हीन की मदद करें बस ,
रीझ रहे सब देवा हो !
आवागमन औ मुक्ति क्या है ,
इसमें उलझ न जाना है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
विषय - सार/ निचोड़
24/02/20
सोमवार
गज़ल
प्रेम की हर कथा का यही सार है ,
दूर होकर भी दिल का जुड़ा तार है।
हर घड़ी ख्वाब की एक दुनिया सजे,
इश्क में कल्पना का ही आधार है।
रोज सपनों में मिलते हैं दिल और जां,
इस जहां में तो मिलना ही दुश्वार है।
हर तरफ़ बंदिशें राह को रोकती ,
प्रेम की यह डगर तीक्ष्ण तलवार है ।
दो दिलों को कभी चैन मिलता नहीं ,
एक- दूजे से रहता अटल प्यार है ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
24/02/20
सोमवार
गज़ल
प्रेम की हर कथा का यही सार है ,
दूर होकर भी दिल का जुड़ा तार है।
हर घड़ी ख्वाब की एक दुनिया सजे,
इश्क में कल्पना का ही आधार है।
रोज सपनों में मिलते हैं दिल और जां,
इस जहां में तो मिलना ही दुश्वार है।
हर तरफ़ बंदिशें राह को रोकती ,
प्रेम की यह डगर तीक्ष्ण तलवार है ।
दो दिलों को कभी चैन मिलता नहीं ,
एक- दूजे से रहता अटल प्यार है ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विधा कविता
दिनाँक 24.2.2020
दिन सोमवार
सार/निचोड़
💘💘💘💘
पेट जब पूरा खाली होता
एकदम सूखी डाली होता
आशा की कोई किरण ना होती
मन भी सारा धीरज खोता।
जब बन नहीं पाते समीकरण
नहीं होता इच्छाओं का भरण
रोने लगता है फिरअन्तःकरण
जीते जी दिखता है केवल मरण।
जीती हुई बाजी निकल जाती
हार भी जब नहीं टल पाती
किसी की कुटिलता छल जाती
सारी जि़न्दगी यूँ ही ढल जाती।
जब छूटता है कोई सहारा
जब टूटता आशा का तारा
लगने लगता अब हारा अब हारा
अपनों से ही दिल जाता मारा।
तब नहीं रहता जीवन में सार
सब कुछ ही लगता निस्सार
तब लगता अज़ब है सँसार
चलो चलो अब इसके पार।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनाँक 24.2.2020
दिन सोमवार
सार/निचोड़
💘💘💘💘
पेट जब पूरा खाली होता
एकदम सूखी डाली होता
आशा की कोई किरण ना होती
मन भी सारा धीरज खोता।
जब बन नहीं पाते समीकरण
नहीं होता इच्छाओं का भरण
रोने लगता है फिरअन्तःकरण
जीते जी दिखता है केवल मरण।
जीती हुई बाजी निकल जाती
हार भी जब नहीं टल पाती
किसी की कुटिलता छल जाती
सारी जि़न्दगी यूँ ही ढल जाती।
जब छूटता है कोई सहारा
जब टूटता आशा का तारा
लगने लगता अब हारा अब हारा
अपनों से ही दिल जाता मारा।
तब नहीं रहता जीवन में सार
सब कुछ ही लगता निस्सार
तब लगता अज़ब है सँसार
चलो चलो अब इसके पार।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
कहीं जीत कहीं हार लगती है।
ये जिन्दगी इश्तिहार लगती है।
अभी भी मुझपे असर है तेरा।
जो न उतरा खुमार लगती है।
थी लडकपन की भूल मेरी।
जवां पहला बुखार लगती है।
कभी लगती के कमाई नफरत।
तो कभी खोया प्यार लगती है।
मै उसे रोज ही याद करता हूँ।
ये बात उसे नागवार लगती है।
मुझे शायद न होश आए अब।
वो खिंजाओं में बहार लगती है।
हूँ सरोबार जिसमें आज तक।
बस वही गर्दो - गुबार लगती है।
ये जो दिल में खलिश सी है मेरे
नाकामियों का सार लगती है
जिनसे खेले थे कभी "सोहल"।
वही मुश्किलें बेशुमार लगती है।
स्वरचित विपिन सोहल
ये जिन्दगी इश्तिहार लगती है।
अभी भी मुझपे असर है तेरा।
जो न उतरा खुमार लगती है।
थी लडकपन की भूल मेरी।
जवां पहला बुखार लगती है।
कभी लगती के कमाई नफरत।
तो कभी खोया प्यार लगती है।
मै उसे रोज ही याद करता हूँ।
ये बात उसे नागवार लगती है।
मुझे शायद न होश आए अब।
वो खिंजाओं में बहार लगती है।
हूँ सरोबार जिसमें आज तक।
बस वही गर्दो - गुबार लगती है।
ये जो दिल में खलिश सी है मेरे
नाकामियों का सार लगती है
जिनसे खेले थे कभी "सोहल"।
वही मुश्किलें बेशुमार लगती है।
स्वरचित विपिन सोहल
विषय- निचोड़ / सार
विधा- स्वतंत्र
दिनांक-24/02/2020
हर चीज़ की अहमियत है
हर चीज़ का सार है
खुशनुमा इस जिंदगी का
मृत्यु ही सार है
देख कर ज़माने की
चंद हकीकतें
प्रश्न अनायास जब सिद्धार्थ के मन में उठा
त्याग राजपाट और स्वर्ग सी अप्सरा यशोधरा
खोजने जीवन का सार
करते रहे निर्जन विहार
वर्धमान भी जीवन की
पीड़ा का सार खोजना
चाहते थे
तभी तो भरी जवानी में
सुख-वैभव सब त्याग दिए
जीवन की सच्चाई भी
यही है
हँसते-खेलते जीवन का
क्या सार है।
डा.नीलम
विधा- स्वतंत्र
दिनांक-24/02/2020
हर चीज़ की अहमियत है
हर चीज़ का सार है
खुशनुमा इस जिंदगी का
मृत्यु ही सार है
देख कर ज़माने की
चंद हकीकतें
प्रश्न अनायास जब सिद्धार्थ के मन में उठा
त्याग राजपाट और स्वर्ग सी अप्सरा यशोधरा
खोजने जीवन का सार
करते रहे निर्जन विहार
वर्धमान भी जीवन की
पीड़ा का सार खोजना
चाहते थे
तभी तो भरी जवानी में
सुख-वैभव सब त्याग दिए
जीवन की सच्चाई भी
यही है
हँसते-खेलते जीवन का
क्या सार है।
डा.नीलम
विषय- निचोड़/ सार
कर्म किए जा,
बगैर फल की चाह किए
श्रीकृष्ण ने कहा
भगवदगीता में
अपने प्रिय सखा अर्जुन से।
प्रेरित किया
अपनों से युद्ध के लिए
ये कहते हुए
कौन अपना, कौन पराया
ये तो है मेरी ही माया।
पाकर गीता के उपदेश
अर्जुन ने गाण्डिव धारण किया
फिर तो भीषण युद्ध छिड़ा
कौरव और पांडव के बीच
अठारह दिनों के पश्चात
आखिर जीत पाण्डवों की हुई
श्रीकृष्ण थे जिनके साथ।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
कर्म किए जा,
बगैर फल की चाह किए
श्रीकृष्ण ने कहा
भगवदगीता में
अपने प्रिय सखा अर्जुन से।
प्रेरित किया
अपनों से युद्ध के लिए
ये कहते हुए
कौन अपना, कौन पराया
ये तो है मेरी ही माया।
पाकर गीता के उपदेश
अर्जुन ने गाण्डिव धारण किया
फिर तो भीषण युद्ध छिड़ा
कौरव और पांडव के बीच
अठारह दिनों के पश्चात
आखिर जीत पाण्डवों की हुई
श्रीकृष्ण थे जिनके साथ।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
दिनांक २४/२/२०२०
शीर्षक-सार
हर क्षण मधुर हो जीवन में
यह तो नही होता जग में
जीवन है सुख दुःख का रेला
मानव तू इसे क्यों भूला?
हर क्षण,हर पल हो प्रयास
जीवन हो सुखद संसार
नीरस ना हो जीवन आज
करे सदा सुन्दर काज।
उस जीवन का सार नहीं
जिसमें रिश्तो का मान नही
कर्मठ बन करें प्रयास
सबका जीवन हो खुशहाल।
जिंदगी का बस यही है सार
हारे ना हिम्मत,बिसारे ना हरी नाम
हर कर्म का प्रतिफल यही है
सुखद कर्म तो सुखद जीवन है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक-सार
हर क्षण मधुर हो जीवन में
यह तो नही होता जग में
जीवन है सुख दुःख का रेला
मानव तू इसे क्यों भूला?
हर क्षण,हर पल हो प्रयास
जीवन हो सुखद संसार
नीरस ना हो जीवन आज
करे सदा सुन्दर काज।
उस जीवन का सार नहीं
जिसमें रिश्तो का मान नही
कर्मठ बन करें प्रयास
सबका जीवन हो खुशहाल।
जिंदगी का बस यही है सार
हारे ना हिम्मत,बिसारे ना हरी नाम
हर कर्म का प्रतिफल यही है
सुखद कर्म तो सुखद जीवन है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
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