लेखिका परिचय
नाम :अनिता सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि :2nd अक्टूबर 62 जन्मस्थान :लखनऊ शिक्षा :M.Sc Organic chemistry सृजन की विधा: छन्द मुक्त और छन्द युक्त ,सामाजिक विषयों पर लेख प्रकाशित कृतियां :पत्रिका में प्रकाशित सम्मान : दूसरे पटल पर सम्मानित रचना पेशा :अध्यापन पता : 13/103 ,सेक्टर 13 ,विकास नगर ,लखनऊ ,226022 ईमेल आईडी : luckysudhir02@gmail.com
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25/12/19
तुलसी
तुलसी रूप
श्वेत राम औ श्याम
उत्तम कृष्ण
तुलसी पौधा
जड़ी बूटी में श्रेष्ठ
उत्तम वैद्य
तुलसी दल
विशनू जी को भावे
भोग लगावे
तुलसी पूजा
सकरात्मक ऊर्जा
लक्ष्मी स्वरुपा
तुलसी पूजा
सतत दिया बाती
मोक्षदायिनी
तुलसी चौरा
हर घर आँगन
मनभावन।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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24/12/19
प्रचंड ,प्रखर
****
सदा रही प्रचंड जिज्ञासा ,क्या जीवन आधार।
प्रश्न कई अनुत्तरित रहते ,लगा हुआ भंडार ।।
फल कर्मों का यदि मिलता जो,परिश्रम का क्या लाभ।
कर्म,नियति में उलझे रहते ,लिये समय की मार।।
धर्म बना इंसानों से या ,इंसानों से धर्म ।
कीमत प्राणों की सस्ती है,रोटी का व्यापार ।।
भगवान बसे पत्थर में !क्यों,मनुज हुआ हैवान ।
देख धरा की अद्भुत पीड़ा, रोता रचनाकार ।।
जीवन है अनबूझ पहेली,परम सत्य है मौत ।
प्रखर हुआ आडम्बर जो अब ,ये जीवन का रार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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22/12/19
Mathmatics day
स्वतंत्र दिवस
वृत्त परिधि पर अनगिनत बिंदु
सबकी दिशायें अलग अलग
जीवन परिधि पर
ऐसे ही अनगिनत लोग
सूक्ष्म कण मानिंद
विचार और राह
सब अलग अलग।
ना लेना एक ना देना दो
फिर क्यों जंग छिड़ी हुई
मैं सही तुम गलत।
कोई दो बिंदु गर
प्रेम केंद मे रख, जुड़े तो
व्यास बन बड़े हो जाये
केंद्रित जो न हुए प्रेम से
कॉर्ड बन छोटे हो जायेगे(chord)
एक और एक मिल
क्यों बनते हो शून्य
जिंदगी है जोड़ ,गुना
एक और एक मिल
बन जाओ ग्यारह ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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20/12/19
जीवन शैली
**
जीवन शैली में हुये .......बड़े बड़े बदलाव ।
बने आधुनिक अब सभी,कारण समयाभाव।।
सुबह शाम की दौड़ है......,करे नहीं व्यायाम ।
रोग व्याधि से ग्रसित अब,दें औषधि का दाम।।
देर रात तक जागते ,उठे नहीं जो भोर ।
उत्तम भोजन न करें ,ये कैसा है दौर।।
संस्कार का ह्रास है ,हुई सभ्यता भार।
भूल गये संकल्प वो ,जो जीवन आधार ।।।
नीति नियम से थामिये,संस्कार की डोर।
देश भक्ति संकल्प हो,कीर्ति पताका छोर ।।
लुप्त हुई संवेदना ,रखते घृणित विकार
संस्कार की नींव से ,मिटे दिलों के रार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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16/12/19
विषय छल बल
विधा उपमान छन्द
23 मात्रा ,13,10 अंत 22
**
पल ये कैसा आ गया ,कैसी लाचारी।
हवा चली अब लोभ की,मति हुई बेचारी।।
कमी धैर्य की हो रही ,पल में सब पाना ।
किसी तरीके से सही,इसमें सुख जाना ।।
कोई तर्कों से छले, झूठ सदा जीता ।
कोई बल प्रयोग करे,कोई विष पीता।।
भैंस सदा उसकी रही,प्रबल रही लाठी।
छल बल धोखे से रहे,उत्तम कद काठी।।
छुरी पीठ में भोंकता,भोला भाला वो।
कोई रिश्तों में छले ,मन का काला वो।
मीठी वाणी से दिये ,अपनों को धोखा ।
छल बल उत्तम मानते ,रंग लगे चोखा ।।
सत्य मार्ग पर पग बढ़े ,चलो शपथ खायें।
छल बल जीवन में नहीं ,ये कसम निभायें।।
नाश अहम का जो करे,जग में सुख पाता।
सतकर्मों से वो सदा ,झोली भर पाता ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
तुलसी
तुलसी रूप
श्वेत राम औ श्याम
उत्तम कृष्ण
तुलसी पौधा
जड़ी बूटी में श्रेष्ठ
उत्तम वैद्य
तुलसी दल
विशनू जी को भावे
भोग लगावे
तुलसी पूजा
सकरात्मक ऊर्जा
लक्ष्मी स्वरुपा
तुलसी पूजा
सतत दिया बाती
मोक्षदायिनी
तुलसी चौरा
हर घर आँगन
मनभावन।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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24/12/19
प्रचंड ,प्रखर
****
सदा रही प्रचंड जिज्ञासा ,क्या जीवन आधार।
प्रश्न कई अनुत्तरित रहते ,लगा हुआ भंडार ।।
फल कर्मों का यदि मिलता जो,परिश्रम का क्या लाभ।
कर्म,नियति में उलझे रहते ,लिये समय की मार।।
धर्म बना इंसानों से या ,इंसानों से धर्म ।
कीमत प्राणों की सस्ती है,रोटी का व्यापार ।।
भगवान बसे पत्थर में !क्यों,मनुज हुआ हैवान ।
देख धरा की अद्भुत पीड़ा, रोता रचनाकार ।।
जीवन है अनबूझ पहेली,परम सत्य है मौत ।
प्रखर हुआ आडम्बर जो अब ,ये जीवन का रार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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22/12/19
Mathmatics day
स्वतंत्र दिवस
वृत्त परिधि पर अनगिनत बिंदु
सबकी दिशायें अलग अलग
जीवन परिधि पर
ऐसे ही अनगिनत लोग
सूक्ष्म कण मानिंद
विचार और राह
सब अलग अलग।
ना लेना एक ना देना दो
फिर क्यों जंग छिड़ी हुई
मैं सही तुम गलत।
कोई दो बिंदु गर
प्रेम केंद मे रख, जुड़े तो
व्यास बन बड़े हो जाये
केंद्रित जो न हुए प्रेम से
कॉर्ड बन छोटे हो जायेगे(chord)
एक और एक मिल
क्यों बनते हो शून्य
जिंदगी है जोड़ ,गुना
एक और एक मिल
बन जाओ ग्यारह ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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20/12/19
जीवन शैली
**
जीवन शैली में हुये .......बड़े बड़े बदलाव ।
बने आधुनिक अब सभी,कारण समयाभाव।।
सुबह शाम की दौड़ है......,करे नहीं व्यायाम ।
रोग व्याधि से ग्रसित अब,दें औषधि का दाम।।
देर रात तक जागते ,उठे नहीं जो भोर ।
उत्तम भोजन न करें ,ये कैसा है दौर।।
संस्कार का ह्रास है ,हुई सभ्यता भार।
भूल गये संकल्प वो ,जो जीवन आधार ।।।
नीति नियम से थामिये,संस्कार की डोर।
देश भक्ति संकल्प हो,कीर्ति पताका छोर ।।
लुप्त हुई संवेदना ,रखते घृणित विकार
संस्कार की नींव से ,मिटे दिलों के रार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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16/12/19
विषय छल बल
विधा उपमान छन्द
23 मात्रा ,13,10 अंत 22
**
पल ये कैसा आ गया ,कैसी लाचारी।
हवा चली अब लोभ की,मति हुई बेचारी।।
कमी धैर्य की हो रही ,पल में सब पाना ।
किसी तरीके से सही,इसमें सुख जाना ।।
कोई तर्कों से छले, झूठ सदा जीता ।
कोई बल प्रयोग करे,कोई विष पीता।।
भैंस सदा उसकी रही,प्रबल रही लाठी।
छल बल धोखे से रहे,उत्तम कद काठी।।
छुरी पीठ में भोंकता,भोला भाला वो।
कोई रिश्तों में छले ,मन का काला वो।
मीठी वाणी से दिये ,अपनों को धोखा ।
छल बल उत्तम मानते ,रंग लगे चोखा ।।
सत्य मार्ग पर पग बढ़े ,चलो शपथ खायें।
छल बल जीवन में नहीं ,ये कसम निभायें।।
नाश अहम का जो करे,जग में सुख पाता।
सतकर्मों से वो सदा ,झोली भर पाता ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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10/12/19
संतुलन
212 212 212 212
काम अपने सिरे सब न पाला करो
वक़्त मेरे लिये कुछ निकाला करो।
चार दिन जिंदगी के बचे अब यहाँ,
सन्तुलन ये रहे, कुछ निराला करो ।
साँझ अब जिंदगी की यहाँ हो रही
वक़्त को साध लो मन न काला करो।
दूसरों का सहारा सदा तुम बने ,
खुद कभी को जरा अब संभाला करो ।
तौलती क्यों रही जिंदगी हर घड़ी,
साध के संतुलन वक़्त ढाला करो।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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08/12/19
आधार दोहा छन्द
**
जीवन ऐसा ही रहा ,जैसे खुली किताब,
कुछ प्रश्नों के क्यों नहीं,अब तक मिले जवाब।
पृष्ठ बंद जो है रखे,स्मृतियाँ उनमें शेष,
मिलन अधूरा रह गया,हुये न पूरे ख्वाब।
प्रीत निभाई रीत से,क्यों थी मैं मजबूर,
समझे नहिं दिल की व्यथा,रूठे रहे जनाब।
प्रेम चिन्ह संचित करे,विस्मृत नहीँ निमेष ,
फिर कैसे वो खो गये ,सूखे हुये गुलाब ।
चाहा था हमने सदा,सात जन्म का साथ,
सुलझ न पायी जिंदगी,ओढ़े रही नकाब।
नहीं मिला इस जन्म भी,मुझको तेरा प्यार,
बेताबी के पल रहे,कैसे करें हिसाब।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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10/12/19
संतुलन
212 212 212 212
काम अपने सिरे सब न पाला करो
वक़्त मेरे लिये कुछ निकाला करो।
चार दिन जिंदगी के बचे अब यहाँ,
सन्तुलन ये रहे, कुछ निराला करो ।
साँझ अब जिंदगी की यहाँ हो रही
वक़्त को साध लो मन न काला करो।
दूसरों का सहारा सदा तुम बने ,
खुद कभी को जरा अब संभाला करो ।
तौलती क्यों रही जिंदगी हर घड़ी,
साध के संतुलन वक़्त ढाला करो।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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08/12/19
आधार दोहा छन्द
**
जीवन ऐसा ही रहा ,जैसे खुली किताब,
कुछ प्रश्नों के क्यों नहीं,अब तक मिले जवाब।
पृष्ठ बंद जो है रखे,स्मृतियाँ उनमें शेष,
मिलन अधूरा रह गया,हुये न पूरे ख्वाब।
प्रीत निभाई रीत से,क्यों थी मैं मजबूर,
समझे नहिं दिल की व्यथा,रूठे रहे जनाब।
प्रेम चिन्ह संचित करे,विस्मृत नहीँ निमेष ,
फिर कैसे वो खो गये ,सूखे हुये गुलाब ।
चाहा था हमने सदा,सात जन्म का साथ,
सुलझ न पायी जिंदगी,ओढ़े रही नकाब।
नहीं मिला इस जन्म भी,मुझको तेरा प्यार,
बेताबी के पल रहे,कैसे करें हिसाब।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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07/12/19
आसरा
***
जीवन का ताना बाना,सुख दुख का आना जाना।
रो रो कर दिन क्यों काटे,गम हँस कर सहते जाना ।।
आती है जब कठिनाई , हो जाता जीवन खारा ।
थामा है हाथ बढाके, देते हो सदा सहारा ।।
जग के पालनहारे तुम ,हम सबके रखवारे तुम।
प्रेम सुमन अर्पित करते ,दूर करो अंधियारे तुम।।
नाव फँसी तूफानों में,अब मिलता नहीं किनारा।
अन्तर्मन में दीप जला ,भर दो मन में उजियारा।।
अनिता सुधीर
आसरा
***
जीवन का ताना बाना,सुख दुख का आना जाना।
रो रो कर दिन क्यों काटे,गम हँस कर सहते जाना ।।
आती है जब कठिनाई , हो जाता जीवन खारा ।
थामा है हाथ बढाके, देते हो सदा सहारा ।।
जग के पालनहारे तुम ,हम सबके रखवारे तुम।
प्रेम सुमन अर्पित करते ,दूर करो अंधियारे तुम।।
नाव फँसी तूफानों में,अब मिलता नहीं किनारा।
अन्तर्मन में दीप जला ,भर दो मन में उजियारा।।
अनिता सुधीर
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विषय :वस्त्र/आवरण/चीर/परिधान
विधा :हाइकु
आदिम युग
वृक्ष की छाल, पर्ण
तन वसन
वृक्ष की छाल, पर्ण
तन वसन
वस्त्र की खोज
विकसित सभ्यता
लाज ढकता
विकसित सभ्यता
लाज ढकता
नीला अम्बर
प्रकृति आवरण
मन हरण
प्रकृति आवरण
मन हरण
चीर हरण
नारायण रक्षक
अब है कहाँ?
नारायण रक्षक
अब है कहाँ?
मनुष्य रूप
मौसम अनुरूप
वस्त्र विभिन्न
मौसम अनुरूप
वस्त्र विभिन्न
स्वरचित
अनिता सुधीर
अनिता सुधीर
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नमन मंच भावों के मोती
विषय नजर
आधार छंद--वाचिक भुजंग प्रयात
(मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- लगागा लगागा लगागा लगागा
समान्त -आना ,पदान्त -न आया
****
तुम्हें भाव अपने दिखाना न आया ।
तुम्हीं से कहूँ क्या बताना न आया ।।
छिपाते रहे राज हम आपसे जो ।
नजर से हमें क्यों छुपाना न आया ।।
नजर जो उठी आपकी इस तरह से ।
दिया क्यों मुझे तब बुझाना न आया ।।
उलझती रही डोर मन की सदा क्यों ।
मुझे चाल से क्यों बचाना न आया ।।
जहाँ हम बसायें धवल चाँदनी में ।
सपन क्यों पलक पर सजाना न आया ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय नजर
आधार छंद--वाचिक भुजंग प्रयात
(मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- लगागा लगागा लगागा लगागा
समान्त -आना ,पदान्त -न आया
****
तुम्हें भाव अपने दिखाना न आया ।
तुम्हीं से कहूँ क्या बताना न आया ।।
छिपाते रहे राज हम आपसे जो ।
नजर से हमें क्यों छुपाना न आया ।।
नजर जो उठी आपकी इस तरह से ।
दिया क्यों मुझे तब बुझाना न आया ।।
उलझती रही डोर मन की सदा क्यों ।
मुझे चाल से क्यों बचाना न आया ।।
जहाँ हम बसायें धवल चाँदनी में ।
सपन क्यों पलक पर सजाना न आया ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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भावों के मोती
दीपक
***
दीपक की टिमटिमाती लौ
देख अंधियारा मुस्करा ,ये कह उठा ,
सामर्थ्य कहाँ बची अब तुझमें
और मुझे मिटाने का ख्वाब सजा रहा।
रंग बिरंगी झालरों की रौनक में
तेरा वजूद गौण हो गया है ।
गढ़ता रहा जो कुम्हार ताउम्र तुम्हें
वो अब मौन हो गया है ।
दीपक भी हँस के बोला
मेरी सामर्थ्य का भान नहीं है तुम्हें,
मेरे वजूद की बात करते हो
तेरा वजूद मेरे ही तले है
मैं अकेला सामर्थ्य वान हूँ
तुम्हें कैद करने को ,
तमस मिटा करता हूँ उजास
अकेले दीप से दीप जलते रहेंगे
और तुम यूँ ही कैद में तड़पते रहोगे ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दीपक
***
दीपक की टिमटिमाती लौ
देख अंधियारा मुस्करा ,ये कह उठा ,
सामर्थ्य कहाँ बची अब तुझमें
और मुझे मिटाने का ख्वाब सजा रहा।
रंग बिरंगी झालरों की रौनक में
तेरा वजूद गौण हो गया है ।
गढ़ता रहा जो कुम्हार ताउम्र तुम्हें
वो अब मौन हो गया है ।
दीपक भी हँस के बोला
मेरी सामर्थ्य का भान नहीं है तुम्हें,
मेरे वजूद की बात करते हो
तेरा वजूद मेरे ही तले है
मैं अकेला सामर्थ्य वान हूँ
तुम्हें कैद करने को ,
तमस मिटा करता हूँ उजास
अकेले दीप से दीप जलते रहेंगे
और तुम यूँ ही कैद में तड़पते रहोगे ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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25/10/19
धनतेरस
**
1)सेदोका
धनतेरस
चहुँ और उल्लास
धन्वंतरि पूजन
धन की देवी
बर्तन का बाजार
आभूषण का क्रय ।
2) दोहा
एक अरज मेरी सुनो ,धन के देव कुबेर।
पेट सबका भरा रहे ,कष्ट का न हो ढेर।।
**
3)
युगों से चला आ रहा सत्य ये
सच्चा धन ......है ज्ञान
हम सदैव रख इसका मान
करें जन जन का ...कल्याण
अगर ज्ञान पर किया अभिमान
तब बन जाये ये विष समान
आओ इस धनतेरस पर चलायें
ये सच्चा धन देने का अभियान ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
धनतेरस
**
1)सेदोका
धनतेरस
चहुँ और उल्लास
धन्वंतरि पूजन
धन की देवी
बर्तन का बाजार
आभूषण का क्रय ।
2) दोहा
एक अरज मेरी सुनो ,धन के देव कुबेर।
पेट सबका भरा रहे ,कष्ट का न हो ढेर।।
**
3)
युगों से चला आ रहा सत्य ये
सच्चा धन ......है ज्ञान
हम सदैव रख इसका मान
करें जन जन का ...कल्याण
अगर ज्ञान पर किया अभिमान
तब बन जाये ये विष समान
आओ इस धनतेरस पर चलायें
ये सच्चा धन देने का अभियान ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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परिंदा/पंछी
***
उड़ते परिंदे सिखा रहे
दुनिया इक सराय है ।
क्यों संचित कर रखना
क्यों मायाजाल में फंसना।
पंखों पर है उसे भरोसा
रात बिता उड़ जाते हैं।
हम आये दुनिया मे
कर्म करें ,
क्यों मायामोह मे पड़े
रात बिता
मन का पंछी इक दिन
पिंजरे से उड़ जाएगा
सतकर्मों के सिवा
क्या यहाँ से जाएगा।
दुनिया एक सराय है
कुछ दिन के हम
पथिक यहाँ
स्वरचित
अनिता सुधीर
***
उड़ते परिंदे सिखा रहे
दुनिया इक सराय है ।
क्यों संचित कर रखना
क्यों मायाजाल में फंसना।
पंखों पर है उसे भरोसा
रात बिता उड़ जाते हैं।
हम आये दुनिया मे
कर्म करें ,
क्यों मायामोह मे पड़े
रात बिता
मन का पंछी इक दिन
पिंजरे से उड़ जाएगा
सतकर्मों के सिवा
क्या यहाँ से जाएगा।
दुनिया एक सराय है
कुछ दिन के हम
पथिक यहाँ
स्वरचित
अनिता सुधीर
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20/10/19
स्वतन्त्र दिवस
दोहा गजल
***
सत्य वचन ये मानिये ,असली धन है ज्ञान।
लिप्त हुआ अभिमान जो,होये गरल समान ।।
दीप जला जो ज्ञान का,रोशन सब जग होय।
जन जन का कल्याण हो,रखिये इसका ध्यान ।।
दूषित मन की स्वच्छता, करती दूर विकार।
मर्म समझ त्यौहार का,रखना होगा मान।।
श्रेष्ठ दान है ज्ञान का ,कहते वेद पुराण ।
करिये जीवन में सदा ,असली धन का दान।।
अंतस की बाती बना ,तेल समर्पण डाल।
दीप अवलि बन कर जलें,ऐसा हो अभियान।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
स्वतन्त्र दिवस
दोहा गजल
***
सत्य वचन ये मानिये ,असली धन है ज्ञान।
लिप्त हुआ अभिमान जो,होये गरल समान ।।
दीप जला जो ज्ञान का,रोशन सब जग होय।
जन जन का कल्याण हो,रखिये इसका ध्यान ।।
दूषित मन की स्वच्छता, करती दूर विकार।
मर्म समझ त्यौहार का,रखना होगा मान।।
श्रेष्ठ दान है ज्ञान का ,कहते वेद पुराण ।
करिये जीवन में सदा ,असली धन का दान।।
अंतस की बाती बना ,तेल समर्पण डाल।
दीप अवलि बन कर जलें,ऐसा हो अभियान।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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कर्ण महानायक या ...
महाभारत युद्ध के पहले कुंती पांडवों की रक्षा का वचन लेने जब कर्ण के पास जातीं हैं तो वह कर्ण की सच्चाई उसे बता देती हैं । ये जानने के पश्चात कर्ण की स्थिति को ,कर्ण द्वारा कुंती से पूछे जाने वाले प्रश्नों के माध्यम से व्यक्त किया है...
***
सेवा से तुम्हारी प्रसन्न हो
ऋषि ने तुम्हें वरदान दिया
करो जिस देव की आराधना
उसकी संतान का उपहार दिया।
अज्ञानता थी तुम्हारी
तुमने परीक्षण कर डाला
सूर्य पुत्र मैं, गोद में तेरी,
तुमने गंगा में बहा डाला ।
इतनी विवश हो गयी तुम
क्षण भर भी सोचा नहीं,
अपने मान का ध्यान रहा ,
पर मेरा नाम मिटा डाला ।
कवच कुंडल पहना कर
रक्षा का कर्तव्य निभाया
सारथी दंपति ने पाला पोस
मात पिता का फर्ज निभाया ।
सूर्य पुत्र बन जन्मा मैं
सूत पुत्र पहचान बनी
ये गलती रही तुम्हारी , मैंने
जीवन भर विषपान किया।
कौन्तेय से राधेय बना मैं
क्या तुम्हें न ये बैचैन किया!
धमनियों में रक्त क्षत्रिय का
तो भाता कैसे रथ चलाना।
आचार्य द्रोण का तिरस्कार सहा
तो धनुष सीखना था ठाना।
पग पग पर अपमान सहा
क्या तुमको इसका भान रहा !
दीक्षा तो मुझे लेनी थी
झूठ पर मैंने नींव रखी ,
स्वयं को ब्राह्मण बता ,मैं
परशुराम का शिष्य बना ।
बालमन ने कितने आघात सहे
क्या तुमने भी ये वार सहा !
था मैं पांडवों मे जयेष्ठ
हर कला में उनसे श्रेष्ठ,
होता मैं हस्तिनापुर नरेश
क्या मुझे उचित अधिकार मिला
क्या तुम्हें अपराध बोध हुआ!
जब भी चाहा भला किसी का
शापित वचनों का दंश सहा
गुरु और धरती के शाप ने
शस्त्र विहीन ,रथ विहीन किया।
भरी सभा द्रौपदी ने
सूत पुत्र कह अपमान किया
मत्स्य आँख का भेदन कर
अर्जुन ने स्वयंवर जीत लिया ।
मैंने जो अपमान का घूंट पिया
क्या तुमने कभी विचार किया !
कठिन समय ,जब कोई न था
दुर्योधन ने मुझे मित्र कहा
अंग देश का राजा बन
अर्जुन से द्वंद युद्ध किया ।
मित्रता का धर्म निभाया
दुर्योधन जब भी गलत करे ,
कुटिलता छोड़ कर , उसको
कौशल से लड़ना बतलाया ।
दानवीर नाम सार्थक किया
इंद्र को कवच कुंडल दान दिया
तुमने भी तो पाँच पुत्रों
का जीवन मुझसे माँग लिया
क्या इसने तुम्हें व्यथित किया !
आज ,जब अपनी पहचान जान गया
माँ ,मित्र का धर्म निभाना होगा
मैंने अधर्म का साथ दिया ,
कलंक सदियों तक सहना होगा
अब तक जो मैंने पीड़ा सही
उसका क्या भान हुआ तुमको !
मेरी मृत्यु तक तुम अब
पहचान छुपा मेरी रखना
अपने भाइयों से लड़ने का
अपराध, मुझे क्षमा करना ।
जीवन भर जलता रहा आग में
चरित्र अवश्य मेरा बता देना
खलनायक क्यों बना मैं
माँ तुम जग को बतला देना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
महाभारत युद्ध के पहले कुंती पांडवों की रक्षा का वचन लेने जब कर्ण के पास जातीं हैं तो वह कर्ण की सच्चाई उसे बता देती हैं । ये जानने के पश्चात कर्ण की स्थिति को ,कर्ण द्वारा कुंती से पूछे जाने वाले प्रश्नों के माध्यम से व्यक्त किया है...
***
सेवा से तुम्हारी प्रसन्न हो
ऋषि ने तुम्हें वरदान दिया
करो जिस देव की आराधना
उसकी संतान का उपहार दिया।
अज्ञानता थी तुम्हारी
तुमने परीक्षण कर डाला
सूर्य पुत्र मैं, गोद में तेरी,
तुमने गंगा में बहा डाला ।
इतनी विवश हो गयी तुम
क्षण भर भी सोचा नहीं,
अपने मान का ध्यान रहा ,
पर मेरा नाम मिटा डाला ।
कवच कुंडल पहना कर
रक्षा का कर्तव्य निभाया
सारथी दंपति ने पाला पोस
मात पिता का फर्ज निभाया ।
सूर्य पुत्र बन जन्मा मैं
सूत पुत्र पहचान बनी
ये गलती रही तुम्हारी , मैंने
जीवन भर विषपान किया।
कौन्तेय से राधेय बना मैं
क्या तुम्हें न ये बैचैन किया!
धमनियों में रक्त क्षत्रिय का
तो भाता कैसे रथ चलाना।
आचार्य द्रोण का तिरस्कार सहा
तो धनुष सीखना था ठाना।
पग पग पर अपमान सहा
क्या तुमको इसका भान रहा !
दीक्षा तो मुझे लेनी थी
झूठ पर मैंने नींव रखी ,
स्वयं को ब्राह्मण बता ,मैं
परशुराम का शिष्य बना ।
बालमन ने कितने आघात सहे
क्या तुमने भी ये वार सहा !
था मैं पांडवों मे जयेष्ठ
हर कला में उनसे श्रेष्ठ,
होता मैं हस्तिनापुर नरेश
क्या मुझे उचित अधिकार मिला
क्या तुम्हें अपराध बोध हुआ!
जब भी चाहा भला किसी का
शापित वचनों का दंश सहा
गुरु और धरती के शाप ने
शस्त्र विहीन ,रथ विहीन किया।
भरी सभा द्रौपदी ने
सूत पुत्र कह अपमान किया
मत्स्य आँख का भेदन कर
अर्जुन ने स्वयंवर जीत लिया ।
मैंने जो अपमान का घूंट पिया
क्या तुमने कभी विचार किया !
कठिन समय ,जब कोई न था
दुर्योधन ने मुझे मित्र कहा
अंग देश का राजा बन
अर्जुन से द्वंद युद्ध किया ।
मित्रता का धर्म निभाया
दुर्योधन जब भी गलत करे ,
कुटिलता छोड़ कर , उसको
कौशल से लड़ना बतलाया ।
दानवीर नाम सार्थक किया
इंद्र को कवच कुंडल दान दिया
तुमने भी तो पाँच पुत्रों
का जीवन मुझसे माँग लिया
क्या इसने तुम्हें व्यथित किया !
आज ,जब अपनी पहचान जान गया
माँ ,मित्र का धर्म निभाना होगा
मैंने अधर्म का साथ दिया ,
कलंक सदियों तक सहना होगा
अब तक जो मैंने पीड़ा सही
उसका क्या भान हुआ तुमको !
मेरी मृत्यु तक तुम अब
पहचान छुपा मेरी रखना
अपने भाइयों से लड़ने का
अपराध, मुझे क्षमा करना ।
जीवन भर जलता रहा आग में
चरित्र अवश्य मेरा बता देना
खलनायक क्यों बना मैं
माँ तुम जग को बतला देना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
१७/१०/१९
श्रृंगार
छंदमुक्त
**
माथे पर बिंदिया की चमक
हाथों मे कँगने की खनखन,
मेहंदी की खुशबू रची बसी
माँग में सिंदूर की लाली सजा
सुहाग का जोड़ा पहन
पैरों मे महावर लगा
अग्नि को साक्षी मान
बंधी सात वचनों मे
बनी में तुम्हारी सुहागन
मन में उमंग लिये
तुम्हारे संग चली,
छोड़ के अपना घर अँगना।
हाथों की छाप लगा द्वारे
आँखो मे नए सपने सजाए
तुम संग आई ,तुम्हारे घर सजना ।
सामाजिक बंधन रीति रिवाज़ों में
तुम्हारी जीवनसाथी ,तुम्हारी अर्धांगिनी ।
अर्धागिनी.....अर्थ क्या....
अपना घर छोड़ के आने से
तुम्हारे घर तक आने का सफर
बन गया हमारा घर...
मेरे और तुम्हारे रिश्ते नाते
अब हो गए हमारे रिश्ते,
मेरे तुम्हारे सुख दुख ,मान सम्मान
अब सब हमारे हो गए ।
एक दूसरे के गुण दोषो को
आत्मसात कर
मन का मन से मिलन कर
मैं और तुम एकाकार हो गए ।
जीवन के हर मोड़ पर
एक दूसरे के पूरक बन
जीवनसाथी के असली अर्थ को
बन अर्धांगिनी तुम्हारी जी रहे हम।
ये चांद सदा साक्षी रहा
हमारे खूबसूरत मिलन का
सुहाग की सुख समृद्धि रहे
ये श्रृंगार सदा सजा रहे
बस यही है मंगलकामना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
श्रृंगार
छंदमुक्त
**
माथे पर बिंदिया की चमक
हाथों मे कँगने की खनखन,
मेहंदी की खुशबू रची बसी
माँग में सिंदूर की लाली सजा
सुहाग का जोड़ा पहन
पैरों मे महावर लगा
अग्नि को साक्षी मान
बंधी सात वचनों मे
बनी में तुम्हारी सुहागन
मन में उमंग लिये
तुम्हारे संग चली,
छोड़ के अपना घर अँगना।
हाथों की छाप लगा द्वारे
आँखो मे नए सपने सजाए
तुम संग आई ,तुम्हारे घर सजना ।
सामाजिक बंधन रीति रिवाज़ों में
तुम्हारी जीवनसाथी ,तुम्हारी अर्धांगिनी ।
अर्धागिनी.....अर्थ क्या....
अपना घर छोड़ के आने से
तुम्हारे घर तक आने का सफर
बन गया हमारा घर...
मेरे और तुम्हारे रिश्ते नाते
अब हो गए हमारे रिश्ते,
मेरे तुम्हारे सुख दुख ,मान सम्मान
अब सब हमारे हो गए ।
एक दूसरे के गुण दोषो को
आत्मसात कर
मन का मन से मिलन कर
मैं और तुम एकाकार हो गए ।
जीवन के हर मोड़ पर
एक दूसरे के पूरक बन
जीवनसाथी के असली अर्थ को
बन अर्धांगिनी तुम्हारी जी रहे हम।
ये चांद सदा साक्षी रहा
हमारे खूबसूरत मिलन का
सुहाग की सुख समृद्धि रहे
ये श्रृंगार सदा सजा रहे
बस यही है मंगलकामना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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विषय अनंत
विधा तांका
***
इच्छा अनंत
क्यों जीवन पर्यन्त
कहाँ है अंत !
मन करें बसंत
प्रभु सत्ता अनंत
प्रेम अनंत
जैसे नभ अनंत !
धरा अनंत
में शून्य कण हम
हो विस्तार अनंत ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विधा तांका
***
इच्छा अनंत
क्यों जीवन पर्यन्त
कहाँ है अंत !
मन करें बसंत
प्रभु सत्ता अनंत
प्रेम अनंत
जैसे नभ अनंत !
धरा अनंत
में शून्य कण हम
हो विस्तार अनंत ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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तिथि 1410/19
विषय प्रपंच
***
मूल अर्थ लुप्त हुआ
नकरात्मकता का सृजन हुआ
नई परिभाषा रच डाली
प्रपंच का प्रपंच हुआ ।
पंच का मूल अर्थ संसार
"प्र" ,पंच को देता विस्तार
क्षिति ,जल,पावक ,गगन समीर
पांच तत्व का ये संसार
और पंचतत्व की काया है ।
"प्र" लगे जब सृष्टि में,अर्थ
अद्भुत अनंत विस्तार हुआ,
नश्वर काया मे प्र जुड़ कर
भौतिकता का विस्तार करे
अधिकता इसकी ,जीवन
का जंजाल और झमेला है
स्वार्थ सिद्धि हेतु लोग
छल का सहारा ले
नित नए प्रपंच रचते हैं
अनर्गल बातों का दुनिया
में प्रचार किये फिरते हैं ।
प्रपंच मूल संसार नहीं
प्रपंच माया लोक हुआ
मूल अर्थ न विस्मृत कर
प्र को और विस्तृत कर ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय प्रपंच
***
मूल अर्थ लुप्त हुआ
नकरात्मकता का सृजन हुआ
नई परिभाषा रच डाली
प्रपंच का प्रपंच हुआ ।
पंच का मूल अर्थ संसार
"प्र" ,पंच को देता विस्तार
क्षिति ,जल,पावक ,गगन समीर
पांच तत्व का ये संसार
और पंचतत्व की काया है ।
"प्र" लगे जब सृष्टि में,अर्थ
अद्भुत अनंत विस्तार हुआ,
नश्वर काया मे प्र जुड़ कर
भौतिकता का विस्तार करे
अधिकता इसकी ,जीवन
का जंजाल और झमेला है
स्वार्थ सिद्धि हेतु लोग
छल का सहारा ले
नित नए प्रपंच रचते हैं
अनर्गल बातों का दुनिया
में प्रचार किये फिरते हैं ।
प्रपंच मूल संसार नहीं
प्रपंच माया लोक हुआ
मूल अर्थ न विस्मृत कर
प्र को और विस्तृत कर ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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13/10/19
शरद पूर्णिमा विशेष
1)
दोहा
***
गहन तिमिर अंतस छटे,धवल प्रबल हो गात।
अमृत की बरसात हो ,शरद चाँदनी रात ।।
**
2)
**
क्षणिका
शरद पूर्णिमा की रात में
अमृत बरसता रहा ,
मानसिक प्रवृतियों के द्वंद में
कुविचारों के हाथ
लग गया अमृत ,
वो अमर होती जा रहीं ।
**
3)
छंदमुक्त
***
उतरा है फलक से चाँद जो मेरे अंगना
तारों की बारात लेके आओ सजना ,
पूनों की चाँदनी लायी ये पैगाम है
अपनी मुहब्बतों पे तेरा ही नाम है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
शरद पूर्णिमा विशेष
1)
दोहा
***
गहन तिमिर अंतस छटे,धवल प्रबल हो गात।
अमृत की बरसात हो ,शरद चाँदनी रात ।।
**
2)
**
क्षणिका
शरद पूर्णिमा की रात में
अमृत बरसता रहा ,
मानसिक प्रवृतियों के द्वंद में
कुविचारों के हाथ
लग गया अमृत ,
वो अमर होती जा रहीं ।
**
3)
छंदमुक्त
***
उतरा है फलक से चाँद जो मेरे अंगना
तारों की बारात लेके आओ सजना ,
पूनों की चाँदनी लायी ये पैगाम है
अपनी मुहब्बतों पे तेरा ही नाम है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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सिलसिला
हरिगीतिका छन्द
विधान 28 मात्रा
गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा
समीक्षा हेतु
***
नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो।
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।।
अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा।
ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।।
ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे ।
अनुराग से आप'को मनाने का हमें अधिकार हो।
जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चलता रहा
सद्भावना अरु प्रेम से प्रतिदिन यहाँ त्यौहार हो ।
बेकार बातों की बहस का सिलसिला क्यों हो रहा ।
सम्मान करना युगपुरुष का अब सदा आचार हो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
हरिगीतिका छन्द
विधान 28 मात्रा
गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा
समीक्षा हेतु
***
नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो।
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।।
अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा।
ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।।
ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे ।
अनुराग से आप'को मनाने का हमें अधिकार हो।
जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चलता रहा
सद्भावना अरु प्रेम से प्रतिदिन यहाँ त्यौहार हो ।
बेकार बातों की बहस का सिलसिला क्यों हो रहा ।
सम्मान करना युगपुरुष का अब सदा आचार हो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
08/09/19
गीतिका छन्द
**
सिर उठा कर हम यहाँ रहते बड़े ही शान से ।
नाम ऊँचा सब करें ,माँ भारती के गान से ।।
योजना से आप की सब ठीक ही चलता रहा।
क्यों उदासी में रहें ,मंजिल मिलेगी ज्ञान से ।।
दो कदम थी दूर मंजिल ,अब बिछडती जा रही।
हौसला रख कर्म पथ पर तू बढ़े जा शान से ।।
राह धूमिल हो जलाना, दीप तुम विश्वास का ।
साथ अपनों का मिला पूरा करेंगे जान से ।।
टूटती है आस जब होती निराशा है बड़ी ।
मीडिया खबरें दिखाती क्योँ बड़े अभिमान से ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
गीतिका छन्द
**
सिर उठा कर हम यहाँ रहते बड़े ही शान से ।
नाम ऊँचा सब करें ,माँ भारती के गान से ।।
योजना से आप की सब ठीक ही चलता रहा।
क्यों उदासी में रहें ,मंजिल मिलेगी ज्ञान से ।।
दो कदम थी दूर मंजिल ,अब बिछडती जा रही।
हौसला रख कर्म पथ पर तू बढ़े जा शान से ।।
राह धूमिल हो जलाना, दीप तुम विश्वास का ।
साथ अपनों का मिला पूरा करेंगे जान से ।।
टूटती है आस जब होती निराशा है बड़ी ।
मीडिया खबरें दिखाती क्योँ बड़े अभिमान से ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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07 /10/19
शांति /सकून
**
जिंदगी भर करती रही ,शांति की तलाश।
लम्हा लम्हा बीत रहा,होते अब निराश ।।
जीवन की रात अंधेरी, खुशियां हुई दूर।
आपाधापी लगी रही ,हम हुये मजबूर ।।
मंदिर मस्जिद भटके हैं ,आया न कुछ रास।
थके हार सब छोड़ दिया,पाया अपने पास।।
चादर में पैर पसारे , खरचे करे न्यून ।
गरीब को देकर देखा ,रोटियां दो जून ।।
बूढ़ों सँग समय बिताया ,सेवा है जुनून।
बच्चों की किलकारी में ,मिलता है सुकून।।
बीते वक़्त की याद में,खोये दिल का चैन।
भविष्य का पता नहीं क्यों ,मन करे बैचैन।।
उम्मीद हम क्योंकर करें ,करती ये हताश।
वर्तमान में खुश रह कर,पूरी करें तलाश ।।
भानु प्रातः का उदित हुआ ,बीती जाय रात।
है सुकून जब जीवन में,खुशियों की बरात ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
शांति /सकून
**
जिंदगी भर करती रही ,शांति की तलाश।
लम्हा लम्हा बीत रहा,होते अब निराश ।।
जीवन की रात अंधेरी, खुशियां हुई दूर।
आपाधापी लगी रही ,हम हुये मजबूर ।।
मंदिर मस्जिद भटके हैं ,आया न कुछ रास।
थके हार सब छोड़ दिया,पाया अपने पास।।
चादर में पैर पसारे , खरचे करे न्यून ।
गरीब को देकर देखा ,रोटियां दो जून ।।
बूढ़ों सँग समय बिताया ,सेवा है जुनून।
बच्चों की किलकारी में ,मिलता है सुकून।।
बीते वक़्त की याद में,खोये दिल का चैन।
भविष्य का पता नहीं क्यों ,मन करे बैचैन।।
उम्मीद हम क्योंकर करें ,करती ये हताश।
वर्तमान में खुश रह कर,पूरी करें तलाश ।।
भानु प्रातः का उदित हुआ ,बीती जाय रात।
है सुकून जब जीवन में,खुशियों की बरात ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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मोह
छन्द मुक्त
मोह बंधन है साँसों का..
मोह बिना जीवन नीरस..
मोह गुण है ...
मोह अवगुण है ...
प्रेम निस्वार्थ है ...
प्रेम त्याग है....
बारीक सी रेखा दोनों को
विभक्त करती हुई...
मर्म जान जो जाए
जीवन सफल हो जाये ..
प्रेम की आसक्ति मोह
मोह सीमा में ममत्व,
अधिकता में दुर्बलता..
प्रेम की अट्टालिका
की नींव है मोह ..
प्रेम और मोह साथ
निभाते जीवन भर
मोह स्वयं में समाहित ..
दायरा बढ़ता
परिवार ,समाज ,धर्म तक फैलता
राष्ट्र से मोह उत्पन्न
राष्ट्र भक्ति की अलख जगाता
वसुधैव कुटुम्बकम
मानव धर्म का पाठ पढ़ा
निराकार ,निस्वार्थ प्रेम
को जन्म दे जाता है ।
धृतराष्ट्र का पुत्र के
लिए मोह ...
राजा हरिश्चन्द्र का
पुत्र के लिए प्रेम ..
यही अंतर मानव जाने
यही पहचाने .....
प्रेम यदि दिव्य है
तो मोह क्या विष है ..
स्वरचित
अनिता सुधीर
छन्द मुक्त
मोह बंधन है साँसों का..
मोह बिना जीवन नीरस..
मोह गुण है ...
मोह अवगुण है ...
प्रेम निस्वार्थ है ...
प्रेम त्याग है....
बारीक सी रेखा दोनों को
विभक्त करती हुई...
मर्म जान जो जाए
जीवन सफल हो जाये ..
प्रेम की आसक्ति मोह
मोह सीमा में ममत्व,
अधिकता में दुर्बलता..
प्रेम की अट्टालिका
की नींव है मोह ..
प्रेम और मोह साथ
निभाते जीवन भर
मोह स्वयं में समाहित ..
दायरा बढ़ता
परिवार ,समाज ,धर्म तक फैलता
राष्ट्र से मोह उत्पन्न
राष्ट्र भक्ति की अलख जगाता
वसुधैव कुटुम्बकम
मानव धर्म का पाठ पढ़ा
निराकार ,निस्वार्थ प्रेम
को जन्म दे जाता है ।
धृतराष्ट्र का पुत्र के
लिए मोह ...
राजा हरिश्चन्द्र का
पुत्र के लिए प्रेम ..
यही अंतर मानव जाने
यही पहचाने .....
प्रेम यदि दिव्य है
तो मोह क्या विष है ..
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हलचल
धरती माँ तुम
जन्मदायिनी हो ,
जीवन दायिनी हो
पर तुम्हारे सीने की
हलचल
लील लेती हैं जिंदगी
पैरों की थिरकन
तुम्हारी ,मिटा
देती हैं सभ्यताएं।
माँ कहते हैं सब तुम्हें
बच्चों की चीखें क्या
तुम्हें सुनाई नहीं देती
वो उजड़े घर
उजड़ी माँग
तुम्हें द्रवित नहीं करते ,
या तुम्हारे द्रवित होने
से तरल बाहर निकल
चक्रवात ले आता ।
ये हलचल
बंद करो माँ ...
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
04/10/19
स्पर्श / सिहरन
हाइकु
प्रथम स्पर्श
तन मे सिहरन
प्रेमानुभूति
नाजुक स्पर्श
नवजात बेटी का
हर्षित मन
हृदय स्पर्शी
बेटी भ्रूण कूड़े में
दुर्गा उत्सव
तन कम्पन
शीत लहर स्पर्श
लाचार वृद्ध
चीखों का स्पर्श
व्यथित होता मन
वेदना तन।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@नमन मंच
03/11/19
दोहा छन्द गीतिका
आज कल की ज्वलंत समस्या
प्रदूषण
****
बीत गया इस वर्ष का,दीपों का त्यौहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा ,जन मानस बीमार ।।
दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।
कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम ,सरकारें लाचार ।।
विद्यालय में घोषणा ,आकस्मिक अवकाश।
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करो आचार ।।
व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
03/10/19
निःशब्द
***
निःशब्द हो जाती हूं
जब विद्वजनों की लेखनी
में खो जाती हूँ
और लेखन रस के संसार में
डूब जाती हूँ ।
कलाकारों की कलाकृतियां
देख साँस थामे
निशब्द अपने भाव
प्रकट कर आती हूँ
उन उंगलियों का स्पर्श
कर ,मौन प्रशंसा कर आती हूँ।
निःशब्द परमसत्ता
के रहस्यमयी संसार
में हूँ ।
निःशब्द मन की उड़ान में हूँ।
पर आज निःशब्द हूँ.....
इतिहास में दफन राज
पर होती निरर्थक बहस
और विचार से ,
बिना समय ,परिस्थिति जाने
उसकी सत्यता से ,
महापुरुषों को अपशब्द कहने से ..
झाड़ू की राजनीति से..
अब शब्द देने पड़ेंगे
विचारों की स्वच्छता के लिए
सत्य की कसौटी के लिए ,
युवा मस्तिष्क से
जहर को दूर करने के लिए
अब शब्द देने पडेंगे।
वाणी मुखर करनी होगी ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
30/09/19
माँ
***
माँ दुर्गा के नवरूप है इस जीवन का आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।
शैलपुत्री माता तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।
चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति ,इच्छाओं को एकाग्र करो ।
कूष्मांडा प्राणशक्ति तुम ऊर्जा का भंडार भरो ।
स्कंदमाता ज्ञानदेवी कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम क्रोध का संहार करो ।
कालरात्रि माता तुम जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ सौंदर्य से दैदीप्यमान करो ।
सिद्धिदात्री माता जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के जीवन को आलोकित करो ।
आत्मसात कर सके ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ,ऐसी कृपा हम पर करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
29/09/19
"बदलेगी तक़दीर"
दोहावली
***
आराधन "माँ" का करें, दूर करेंगी पीर।
शुद्ध चित से भक्ति करें ,बदलेगी तकदीर।।
कर्मभूमि संसार ये,रखिये मन में धीर।
सत्य राह जो पग बढ़ें ,बदलेगी तकदीर ।।
संतति धन के लोभ में ,बाँट रही जागीर ।
मातु पिता आशीष से, बदलेगी तक़दीर ।।
अलग रहें जो भीड़ से ,खींचें बड़ी लकीर।
आयेगा दिन एक वो, बदलेगी तक़दीर ।।
उन्नत होगा देश जो , हो उद्योग कुटीर।
खुशहाली घर घर बढ़े,बदलेगी तक़दीर ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
27/08/19
विवेक
***
भटकाव लिये मन हुआ दिशाहीन,
बोझ इच्छाओं का अब अंतहीन ।
शक्ति ,धैर्य विवेक का हुआ ह्रास,
मद के नशे में जन अस्तित्वहीन।।
भ्रष्टाचार का बोलबाला आज,
बिना रिश्वत न कोई होता काज।
सिद्धान्तों की बलि चढ़े बार बार ,
कुटिल चालों से क्यों न आयें बाज ।।
आधुनिक युग में खो रहे संस्कार,
आवश्यक है अब इसका उपचार।
नैतिकता को बना के शस्त्र आज,
सभी बुराईयों पर करें प्रहार ।।
बने नहीं जो इच्छाओं का दास ,
विषम परिस्थिति में रखे रहे आस।
वो जग में कर जाते अपना नाम,
संस्कार के मान से रचें इतिहास ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
26/09/19
स्वेद/पसीना
**
खेतों में
धूप के समंदर में
पसीने का दरिया
बहाता किसान!
पसीना नहीं ,लहू बहता है
तब किसान आधा पेट खा कर
दूसरों का पेट भरता है ।
सड़कों पर
पसीने के आगोश में
बोझे को गले लगाता मजदूर !
अपने लहू से सींच
दूजे का महल
खुद सड़क किनारे सो जाता है।
सीमा पर
जवान धूप में
खड़ा अपना फर्ज निभाता !
अपनों की चिंता किये बिना
हमारी रक्षा में शहीद हो जाता है ।
घर में
पिता जीवन भर
परिवार के लिये
खून पसीना बहाता !
स्वयं कम में गुजारा कर
अपना जीवन होम कर जाता ।
पसीने की स्याही
से लिखता जो
अपने जीवन के कोरे पन्ने!
वो खून के आँसू नहीं
खुशियों के अश्कों से
जिंदगी भिगोया करते हैं।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@25/09/19
कलाकार
***
दीवारों पर रंग बिरंगी पेंसिल
से आड़ी तिरछी रेखाओं का जाल
नन्हें हाथों का कमाल
कितने मासूम है ये कलाकार।
कोरे श्वेत कागज पर
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
रंगों से अनजान ये कलाकार ।
रंगीन पेंसिल से रच
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
इनसे बड़ा कौन है कलाकार ।
नन्हें हाथों मे पेंसिल
से कलम लेने लगा आकार
अब 'की बोर्ड 'के बटन अपार
भीड़ मे खो कर रह गए ये कलाकार ।
रंगों का अर्थ अब जानो
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
जीवन कैनवास के स्वयं बनो कलाकार ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
24/09/19
विषय बनारस
दोहावली
***
वरुणा असि के नाम से ,पड़ा बनारस नाम ।
घाटों की नगरी रही ,कहें मुक्ति का धाम ।।
विशिष्टता इन घाट की ,है काशी की साख।
होती गंगा आरती ,कहीं चिता की राख ।।
विश्वनाथ बाबा रहे ,काशी की पहचान ।
गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।
गंगा जमुना संस्कृति ,रही बनारस शान ।
तुलसी रामायण रचें,जन्म कबीर महान ।।
कर्मभूमि 'उस्ताद' की , काशी है संगीत।
कत्थक ठुमरी की सजे ,जगते भाव पुनीत।।
काशी विद्यापीठ है ,शिक्षा का आधार ।
विश्व विद्यालय हिन्दू,'मदन' मूल्य का सार।।
दुग्ध ,कचौरी शान है ,मिला'पान 'को मान ।
हस्त शिल्प उद्योग से ,'बनारसी' पहचान ।।
त्रासदी अधजले शवों ,की !भोग रहे लोग।।
गंगा को प्रदूषित करें ,काशी को ही भोग ।।
बाबा भैरव जी रहे , काशी थानेदार ।
हुये द्रवित ये देख के ,ठगने का व्यापार।।
धीरे चलता शहर ये,अब विकास की राह।
काशी मूल रूप रहे ,जन मानस की चाह ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
22/09/19
स्वतंत्र दिवस
**
बेटी दिवस पर
दोहावली
***
बेटी बगिया की कली,पल पल यों मुस्काय ।
बहती मुग्ध बयार सी ,हिय हर्षित हो जाय ।।
पापा की नन्ही परी ,घर आँगन की शान,
बेटी की जिद पर करे ,सौ जीवन कुर्बान।
पायल की झंकार तुम ,करती दिल पर राज ,
लाडो तुमसे ही बजें ,....मेरे मन के साज ।
बेटी लाडों से पली ,घर आँगन की शान ।
बेटी को शिक्षित करें ,दो कुल का अभिमान ।।
बड़ा अखरता है हमें,अब बढ़ता व्यभिचार ।
नहीं सुरक्षित बेटियां ,यह कैसा संसार ।।
भेद भाव ये किसलिए, बेटी क्यों है भार,
मात पिता के प्रेम पर ,दोनों का अधिकार।
कुरीतियों पर वार कर ,रचती सभ्य समाज ।
आगे है हर क्षेत्र में , बेटी पर है नाज ।
भोले मुखड़े पर सदा ,सजी रहे मुस्कान,
जीवन खुशियों से सजे ,तू मेरा अभिमान ।
व्याकुल हूँ ये सोच के ,बेटी नाजुक काँच
प्रभु !विनती है आपसे,आय न इस पर आँच।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
*
ये विषय देख अपने मन के भावों को पिरोया है।कोई काव्य सौंदर्य या विधा में नहीं और न इसे एडिट किया है।
मैं इस बात पर सदैव जोर देती रही हूँ।
क्षमा सहित
***
संगत की महिमा सुनते आए
सज्जन का गान करते आए
एक प्रश्न सदा सामने खड़ा
जवाब अब तक समझ ना पाए।
संगत से जीवन सुधर जाए
कुसंगत से मानव बिगड़ जाए
ये तो बड़ा सरल है बंधु
काजल की कोठरी में हो जाते काले सभी
बात तो तब उचित है
जब उसमें से उजले निकल आये ।
बड़ी आसानी से दोष लगा देते हैं
अपनी गलतियां दूसरों के मत्थे मढ़ देते हैं
कोई कैसे बिगाड़ सकता है किसी को
वो बिगड़े को सुधारता क्यों नहीं ?
कमियां भीतर है
नैतिकता और सच्चरित्रता
अब तो किताबी ज्ञान भी कहाँ रहा।
एक दोस्त ने नशा किया
दूसरे दोस्त को सिखा दिया
अब ये दूसरे की बात करें
क्या इनका कोई चरित्र नहीं था
इन्होंने पहले का छुड़ाया क्यो नहीं ।
अब सत्संग की बात करते हैं
बड़े बड़े ज्ञानी महात्मा के प्रवचन होते हैं
हमारे देश की भोली भाली
जनता इनको सुनने जाती है,
अब जो मोह माया छोड़ने की
बात करते हैं
उनके ही हजारों में फीस होती है ,
या जो ये कहते है
या जो लोग सुनते हैं
क्या कहे और सुने का अनुसरण करते है।
सार यही जीवन का
चरित्र ही मूल मंत्र है ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पलकें
***
पलकों में कैद छोटे सपनों
की छोटी छोटी खुशियां हैं ,
छोटे-छोटे इन पलों में
सिमटी अपनी दुनिया है ।
पलक झपकते ही कुछ
ख्वाब टूट बिखर जाते हैं ,
टूटने के चुभन की टीस से
पलकों से मोती गिर जाते हैं ।
पलकें बिछाकर राहों में
बैठे थे उनके इंतजार में ,
पलक झपकी ही नहीं
उनके आने के करार में ।
पलकों के द्वारे से नींद
बड़ी दूर खड़ी थी ,शायद
बीते लम्हों को लेकर
उनकी पलकों तक चली थी ।
पलकों का गिरना उठाना
नजरों से सब कह गया
उन आंखों के काजल में
दिल वही अटका रह गया।
पलकों पर बिठाकर
प्रभू मूरत उर बसाऊं,
कैद कर इन नयनों में
जीवन तुझमें ही लगाऊँ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
धरती माँ तुम
जन्मदायिनी हो ,
जीवन दायिनी हो
पर तुम्हारे सीने की
हलचल
लील लेती हैं जिंदगी
पैरों की थिरकन
तुम्हारी ,मिटा
देती हैं सभ्यताएं।
माँ कहते हैं सब तुम्हें
बच्चों की चीखें क्या
तुम्हें सुनाई नहीं देती
वो उजड़े घर
उजड़ी माँग
तुम्हें द्रवित नहीं करते ,
या तुम्हारे द्रवित होने
से तरल बाहर निकल
चक्रवात ले आता ।
ये हलचल
बंद करो माँ ...
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
04/10/19
स्पर्श / सिहरन
हाइकु
प्रथम स्पर्श
तन मे सिहरन
प्रेमानुभूति
नाजुक स्पर्श
नवजात बेटी का
हर्षित मन
हृदय स्पर्शी
बेटी भ्रूण कूड़े में
दुर्गा उत्सव
तन कम्पन
शीत लहर स्पर्श
लाचार वृद्ध
चीखों का स्पर्श
व्यथित होता मन
वेदना तन।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@नमन मंच
03/11/19
दोहा छन्द गीतिका
आज कल की ज्वलंत समस्या
प्रदूषण
****
बीत गया इस वर्ष का,दीपों का त्यौहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा ,जन मानस बीमार ।।
दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।
कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम ,सरकारें लाचार ।।
विद्यालय में घोषणा ,आकस्मिक अवकाश।
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करो आचार ।।
व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
03/10/19
निःशब्द
***
निःशब्द हो जाती हूं
जब विद्वजनों की लेखनी
में खो जाती हूँ
और लेखन रस के संसार में
डूब जाती हूँ ।
कलाकारों की कलाकृतियां
देख साँस थामे
निशब्द अपने भाव
प्रकट कर आती हूँ
उन उंगलियों का स्पर्श
कर ,मौन प्रशंसा कर आती हूँ।
निःशब्द परमसत्ता
के रहस्यमयी संसार
में हूँ ।
निःशब्द मन की उड़ान में हूँ।
पर आज निःशब्द हूँ.....
इतिहास में दफन राज
पर होती निरर्थक बहस
और विचार से ,
बिना समय ,परिस्थिति जाने
उसकी सत्यता से ,
महापुरुषों को अपशब्द कहने से ..
झाड़ू की राजनीति से..
अब शब्द देने पड़ेंगे
विचारों की स्वच्छता के लिए
सत्य की कसौटी के लिए ,
युवा मस्तिष्क से
जहर को दूर करने के लिए
अब शब्द देने पडेंगे।
वाणी मुखर करनी होगी ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
30/09/19
माँ
***
माँ दुर्गा के नवरूप है इस जीवन का आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।
शैलपुत्री माता तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।
चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति ,इच्छाओं को एकाग्र करो ।
कूष्मांडा प्राणशक्ति तुम ऊर्जा का भंडार भरो ।
स्कंदमाता ज्ञानदेवी कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम क्रोध का संहार करो ।
कालरात्रि माता तुम जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ सौंदर्य से दैदीप्यमान करो ।
सिद्धिदात्री माता जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के जीवन को आलोकित करो ।
आत्मसात कर सके ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ,ऐसी कृपा हम पर करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
29/09/19
"बदलेगी तक़दीर"
दोहावली
***
आराधन "माँ" का करें, दूर करेंगी पीर।
शुद्ध चित से भक्ति करें ,बदलेगी तकदीर।।
कर्मभूमि संसार ये,रखिये मन में धीर।
सत्य राह जो पग बढ़ें ,बदलेगी तकदीर ।।
संतति धन के लोभ में ,बाँट रही जागीर ।
मातु पिता आशीष से, बदलेगी तक़दीर ।।
अलग रहें जो भीड़ से ,खींचें बड़ी लकीर।
आयेगा दिन एक वो, बदलेगी तक़दीर ।।
उन्नत होगा देश जो , हो उद्योग कुटीर।
खुशहाली घर घर बढ़े,बदलेगी तक़दीर ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
27/08/19
विवेक
***
भटकाव लिये मन हुआ दिशाहीन,
बोझ इच्छाओं का अब अंतहीन ।
शक्ति ,धैर्य विवेक का हुआ ह्रास,
मद के नशे में जन अस्तित्वहीन।।
भ्रष्टाचार का बोलबाला आज,
बिना रिश्वत न कोई होता काज।
सिद्धान्तों की बलि चढ़े बार बार ,
कुटिल चालों से क्यों न आयें बाज ।।
आधुनिक युग में खो रहे संस्कार,
आवश्यक है अब इसका उपचार।
नैतिकता को बना के शस्त्र आज,
सभी बुराईयों पर करें प्रहार ।।
बने नहीं जो इच्छाओं का दास ,
विषम परिस्थिति में रखे रहे आस।
वो जग में कर जाते अपना नाम,
संस्कार के मान से रचें इतिहास ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
26/09/19
स्वेद/पसीना
**
खेतों में
धूप के समंदर में
पसीने का दरिया
बहाता किसान!
पसीना नहीं ,लहू बहता है
तब किसान आधा पेट खा कर
दूसरों का पेट भरता है ।
सड़कों पर
पसीने के आगोश में
बोझे को गले लगाता मजदूर !
अपने लहू से सींच
दूजे का महल
खुद सड़क किनारे सो जाता है।
सीमा पर
जवान धूप में
खड़ा अपना फर्ज निभाता !
अपनों की चिंता किये बिना
हमारी रक्षा में शहीद हो जाता है ।
घर में
पिता जीवन भर
परिवार के लिये
खून पसीना बहाता !
स्वयं कम में गुजारा कर
अपना जीवन होम कर जाता ।
पसीने की स्याही
से लिखता जो
अपने जीवन के कोरे पन्ने!
वो खून के आँसू नहीं
खुशियों के अश्कों से
जिंदगी भिगोया करते हैं।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@25/09/19
कलाकार
***
दीवारों पर रंग बिरंगी पेंसिल
से आड़ी तिरछी रेखाओं का जाल
नन्हें हाथों का कमाल
कितने मासूम है ये कलाकार।
कोरे श्वेत कागज पर
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
रंगों से अनजान ये कलाकार ।
रंगीन पेंसिल से रच
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
इनसे बड़ा कौन है कलाकार ।
नन्हें हाथों मे पेंसिल
से कलम लेने लगा आकार
अब 'की बोर्ड 'के बटन अपार
भीड़ मे खो कर रह गए ये कलाकार ।
रंगों का अर्थ अब जानो
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
जीवन कैनवास के स्वयं बनो कलाकार ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
24/09/19
विषय बनारस
दोहावली
***
वरुणा असि के नाम से ,पड़ा बनारस नाम ।
घाटों की नगरी रही ,कहें मुक्ति का धाम ।।
विशिष्टता इन घाट की ,है काशी की साख।
होती गंगा आरती ,कहीं चिता की राख ।।
विश्वनाथ बाबा रहे ,काशी की पहचान ।
गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।
गंगा जमुना संस्कृति ,रही बनारस शान ।
तुलसी रामायण रचें,जन्म कबीर महान ।।
कर्मभूमि 'उस्ताद' की , काशी है संगीत।
कत्थक ठुमरी की सजे ,जगते भाव पुनीत।।
काशी विद्यापीठ है ,शिक्षा का आधार ।
विश्व विद्यालय हिन्दू,'मदन' मूल्य का सार।।
दुग्ध ,कचौरी शान है ,मिला'पान 'को मान ।
हस्त शिल्प उद्योग से ,'बनारसी' पहचान ।।
त्रासदी अधजले शवों ,की !भोग रहे लोग।।
गंगा को प्रदूषित करें ,काशी को ही भोग ।।
बाबा भैरव जी रहे , काशी थानेदार ।
हुये द्रवित ये देख के ,ठगने का व्यापार।।
धीरे चलता शहर ये,अब विकास की राह।
काशी मूल रूप रहे ,जन मानस की चाह ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
22/09/19
स्वतंत्र दिवस
**
बेटी दिवस पर
दोहावली
***
बेटी बगिया की कली,पल पल यों मुस्काय ।
बहती मुग्ध बयार सी ,हिय हर्षित हो जाय ।।
पापा की नन्ही परी ,घर आँगन की शान,
बेटी की जिद पर करे ,सौ जीवन कुर्बान।
पायल की झंकार तुम ,करती दिल पर राज ,
लाडो तुमसे ही बजें ,....मेरे मन के साज ।
बेटी लाडों से पली ,घर आँगन की शान ।
बेटी को शिक्षित करें ,दो कुल का अभिमान ।।
बड़ा अखरता है हमें,अब बढ़ता व्यभिचार ।
नहीं सुरक्षित बेटियां ,यह कैसा संसार ।।
भेद भाव ये किसलिए, बेटी क्यों है भार,
मात पिता के प्रेम पर ,दोनों का अधिकार।
कुरीतियों पर वार कर ,रचती सभ्य समाज ।
आगे है हर क्षेत्र में , बेटी पर है नाज ।
भोले मुखड़े पर सदा ,सजी रहे मुस्कान,
जीवन खुशियों से सजे ,तू मेरा अभिमान ।
व्याकुल हूँ ये सोच के ,बेटी नाजुक काँच
प्रभु !विनती है आपसे,आय न इस पर आँच।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
*
ये विषय देख अपने मन के भावों को पिरोया है।कोई काव्य सौंदर्य या विधा में नहीं और न इसे एडिट किया है।
मैं इस बात पर सदैव जोर देती रही हूँ।
क्षमा सहित
***
संगत की महिमा सुनते आए
सज्जन का गान करते आए
एक प्रश्न सदा सामने खड़ा
जवाब अब तक समझ ना पाए।
संगत से जीवन सुधर जाए
कुसंगत से मानव बिगड़ जाए
ये तो बड़ा सरल है बंधु
काजल की कोठरी में हो जाते काले सभी
बात तो तब उचित है
जब उसमें से उजले निकल आये ।
बड़ी आसानी से दोष लगा देते हैं
अपनी गलतियां दूसरों के मत्थे मढ़ देते हैं
कोई कैसे बिगाड़ सकता है किसी को
वो बिगड़े को सुधारता क्यों नहीं ?
कमियां भीतर है
नैतिकता और सच्चरित्रता
अब तो किताबी ज्ञान भी कहाँ रहा।
एक दोस्त ने नशा किया
दूसरे दोस्त को सिखा दिया
अब ये दूसरे की बात करें
क्या इनका कोई चरित्र नहीं था
इन्होंने पहले का छुड़ाया क्यो नहीं ।
अब सत्संग की बात करते हैं
बड़े बड़े ज्ञानी महात्मा के प्रवचन होते हैं
हमारे देश की भोली भाली
जनता इनको सुनने जाती है,
अब जो मोह माया छोड़ने की
बात करते हैं
उनके ही हजारों में फीस होती है ,
या जो ये कहते है
या जो लोग सुनते हैं
क्या कहे और सुने का अनुसरण करते है।
सार यही जीवन का
चरित्र ही मूल मंत्र है ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पलकें
***
पलकों में कैद छोटे सपनों
की छोटी छोटी खुशियां हैं ,
छोटे-छोटे इन पलों में
सिमटी अपनी दुनिया है ।
पलक झपकते ही कुछ
ख्वाब टूट बिखर जाते हैं ,
टूटने के चुभन की टीस से
पलकों से मोती गिर जाते हैं ।
पलकें बिछाकर राहों में
बैठे थे उनके इंतजार में ,
पलक झपकी ही नहीं
उनके आने के करार में ।
पलकों के द्वारे से नींद
बड़ी दूर खड़ी थी ,शायद
बीते लम्हों को लेकर
उनकी पलकों तक चली थी ।
पलकों का गिरना उठाना
नजरों से सब कह गया
उन आंखों के काजल में
दिल वही अटका रह गया।
पलकों पर बिठाकर
प्रभू मूरत उर बसाऊं,
कैद कर इन नयनों में
जीवन तुझमें ही लगाऊँ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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18/09/19
विषय रस
***
ये भावों के मोती देता ,आज विषय रस घोल ।
रस के कितने ही रूपों से ,मन में उठे हिलोल।।
माता से अमृत रस पाते, करे दुग्ध का पान।
बूंदे निचोड़ कर छाती की ,देती जीवनदान।।
ईश्वर के वंदन में होता, भक्ति भाव का नूर ।
मात पिता की आशीषों में ,जीवन रस भरपूर।।
गुंजन करके पीते भौरें , फूलों का मकरंद ।
नव कोपल से कलियां खिलती,रचें सृष्टि का छन्द।।
काव्य रसों से सजी लेखनी ,रचते ग्रंथ सुजान ।
लिखे वीर रस की गाथायें,भरती जोश महान ।।
कोमल उर के भावों से है सजता रस श्रृंगार।
विरह अग्नि का रस ये लिखता,प्रणय भाव का सार।
भावों का रस ये वाणी में, है अद्भुत अनमोल।
कभी घाव बन कर टीसें क्यों,तोल मोल के बोल।।
बंजर मन की धरती पर रस जीवन का आधार।
कहता कोई हौले से तुम बिन सूना है संसार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय रस
***
ये भावों के मोती देता ,आज विषय रस घोल ।
रस के कितने ही रूपों से ,मन में उठे हिलोल।।
माता से अमृत रस पाते, करे दुग्ध का पान।
बूंदे निचोड़ कर छाती की ,देती जीवनदान।।
ईश्वर के वंदन में होता, भक्ति भाव का नूर ।
मात पिता की आशीषों में ,जीवन रस भरपूर।।
गुंजन करके पीते भौरें , फूलों का मकरंद ।
नव कोपल से कलियां खिलती,रचें सृष्टि का छन्द।।
काव्य रसों से सजी लेखनी ,रचते ग्रंथ सुजान ।
लिखे वीर रस की गाथायें,भरती जोश महान ।।
कोमल उर के भावों से है सजता रस श्रृंगार।
विरह अग्नि का रस ये लिखता,प्रणय भाव का सार।
भावों का रस ये वाणी में, है अद्भुत अनमोल।
कभी घाव बन कर टीसें क्यों,तोल मोल के बोल।।
बंजर मन की धरती पर रस जीवन का आधार।
कहता कोई हौले से तुम बिन सूना है संसार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
17/09/19
धुँआ
*
वैधानिक चेतावनी दे कर
कर्तव्य निभा लेते है,
श्वेत वस्त्रों मे लिपटी
काली मौत बेचते रहते है
अपने व्यापार का अंजाम देखो
स्कूली कपड़े पहन जब
बच्चे उडाते ये धुँआ
पान की दुकानों पर
उंगलियो की शान बढ़ाते युवा
हर उम्र के लोग कर रहे
जीवन अपना धुँआ धुँआ
देख इन्हें मन मे कसक ,
सवाल
धुएं के छल्ले मे
क्या उड़ा रहे ये
खून पसीने की कमाई
या अपनों के सपने,
काला जहर धीरे धीरे
इनकी रगों मे उतरता
फैलाता जा रहा
कालिमा इनके जीवन पर
क्षणिक आनंद के लिए
बनते जा रहे इसके
गुलाम जीवन भर के लिए
अब प्रण करो संकल्प लो
इसे कुचल मिट्टी में मिला
आशा की नई पौध लगाएंगे
विश्वास से सींच इसे
जीवन की हरियाली बढाएगें ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
धुँआ
*
वैधानिक चेतावनी दे कर
कर्तव्य निभा लेते है,
श्वेत वस्त्रों मे लिपटी
काली मौत बेचते रहते है
अपने व्यापार का अंजाम देखो
स्कूली कपड़े पहन जब
बच्चे उडाते ये धुँआ
पान की दुकानों पर
उंगलियो की शान बढ़ाते युवा
हर उम्र के लोग कर रहे
जीवन अपना धुँआ धुँआ
देख इन्हें मन मे कसक ,
सवाल
धुएं के छल्ले मे
क्या उड़ा रहे ये
खून पसीने की कमाई
या अपनों के सपने,
काला जहर धीरे धीरे
इनकी रगों मे उतरता
फैलाता जा रहा
कालिमा इनके जीवन पर
क्षणिक आनंद के लिए
बनते जा रहे इसके
गुलाम जीवन भर के लिए
अब प्रण करो संकल्प लो
इसे कुचल मिट्टी में मिला
आशा की नई पौध लगाएंगे
विश्वास से सींच इसे
जीवन की हरियाली बढाएगें ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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15/09/19
मुक्तक
**
देवनागरी में रचा,तुलसी ग्रंथ महान ।
हिन्दी का वंदन करें ,हिंदी हो अभियान ।।
सरल सहज हिन्दी रही,रस कानों में घोल।
बाँध रहे क्यों दिवस में ,हिन्दी हिंदुस्तान ।।
**
स्वरचित
अनिता सुधीर
मुक्तक
**
देवनागरी में रचा,तुलसी ग्रंथ महान ।
हिन्दी का वंदन करें ,हिंदी हो अभियान ।।
सरल सहज हिन्दी रही,रस कानों में घोल।
बाँध रहे क्यों दिवस में ,हिन्दी हिंदुस्तान ।।
**
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
12/09/19
शहनाई
***
दोहा और चौपाई के माध्यम से
***
घर अँगना बजते रहें ,शहनाई के साज ।
मधुर सुरों की गूँज से,पूरे मंगल काज ।।
किलकारी से गूँजा आँगन,नन्हीं परी गोद में आई
सुंदर मुखड़ा देख सलोना,माँ की ममता है अकुलाई।
मंगल गीतों से हिय हरषे,कलिका बगिया में मुस्काई,
तोरण द्वारे द्वारे सजते,देखो गूँज उठी शहनाई।
ठुमुक ठुमुक कर जब चलती वो,खन खन कर पायल खनकाई।
चन्द्रकला सी बढ़ती जाये ,आती जल्दी क्यों तरुणाई
हाथों में लेकर जयमाला ,बेटी की अब होय विदाई
छोड़ चली बाबुल का अँगना,देखो गूँज उठी शहनाई ।
शहनाई के साज से ,बसा रहे संसार ।
शुचिता शुभता से मिले ,खुशियों का भंडार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
12/09/19
शहनाई
***
दोहा और चौपाई के माध्यम से
***
घर अँगना बजते रहें ,शहनाई के साज ।
मधुर सुरों की गूँज से,पूरे मंगल काज ।।
किलकारी से गूँजा आँगन,नन्हीं परी गोद में आई
सुंदर मुखड़ा देख सलोना,माँ की ममता है अकुलाई।
मंगल गीतों से हिय हरषे,कलिका बगिया में मुस्काई,
तोरण द्वारे द्वारे सजते,देखो गूँज उठी शहनाई।
ठुमुक ठुमुक कर जब चलती वो,खन खन कर पायल खनकाई।
चन्द्रकला सी बढ़ती जाये ,आती जल्दी क्यों तरुणाई
हाथों में लेकर जयमाला ,बेटी की अब होय विदाई
छोड़ चली बाबुल का अँगना,देखो गूँज उठी शहनाई ।
शहनाई के साज से ,बसा रहे संसार ।
शुचिता शुभता से मिले ,खुशियों का भंडार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
11/09/19
पहला खत
**
अरमान फिर वो मचल उठे
तुम्हारी पहली चिट्ठी जो पढ़ी ,
पीले पड़ गए उन पन्नों में
एहसासों की वही महक भरी।
चाँद सितारों की बाते न थीं
ख्वाबों को तुमने लिखा नहीं
पहले खत के चंद शब्दों में
जीवन का अद्भुत प्रेम लिखा ।
सूखे गुलाबों की खुश्बू से
भीगा आज मेरा तन मन है ,
पढ़ती जाती पहले खत को
जज्बातों से आंखे नम हैं ।
पहला खत तुम्हारा,पूंजी मेरी
वही एहसास,धड़कन है मेरी
जेहन में तुम वही याद आते
खत थमाते हुए वो नजरें तेरी।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पहला खत
**
अरमान फिर वो मचल उठे
तुम्हारी पहली चिट्ठी जो पढ़ी ,
पीले पड़ गए उन पन्नों में
एहसासों की वही महक भरी।
चाँद सितारों की बाते न थीं
ख्वाबों को तुमने लिखा नहीं
पहले खत के चंद शब्दों में
जीवन का अद्भुत प्रेम लिखा ।
सूखे गुलाबों की खुश्बू से
भीगा आज मेरा तन मन है ,
पढ़ती जाती पहले खत को
जज्बातों से आंखे नम हैं ।
पहला खत तुम्हारा,पूंजी मेरी
वही एहसास,धड़कन है मेरी
जेहन में तुम वही याद आते
खत थमाते हुए वो नजरें तेरी।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
1222, 1222, 122
काफिया आ
रदीफ़। कर देखते हैं
**
काफिया आ
रदीफ़। कर देखते हैं
**
उलझनों मे हम पड़े क्यों हुए है
गमों को क्यों बढ़ा कर देखते हैं।
गमों को क्यों बढ़ा कर देखते हैं।
जमाने की हवा है आज बिगड़ी
चिरागों को जला कर देखते हैं।
चिरागों को जला कर देखते हैं।
किस नशे में मदमस्त वो चल रहे
अकड़ उनकी झुका कर देखते है ।
अकड़ उनकी झुका कर देखते है ।
सहारा वो बनी किश्ती की मेरी
चलो उनसे वफ़ा कर देखते है ।
चलो उनसे वफ़ा कर देखते है ।
फलक से टूट के बिखरा सितारा
इक कमी थी दुआ कर देखते हैं।
इक कमी थी दुआ कर देखते हैं।
खुशी की लहर मे झूमे जमाना
चलो फिर गुनगुना कर देखते है ।
चलो फिर गुनगुना कर देखते है ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय विज्ञान
कुछ हल्के फुल्के अंदाज में
**
जब नहीं था विज्ञान,जीना था कितना आसान ।
बच्चे बोझा ढो रहे ,अपनी किस्मत को रो रहे ।
कुछ हल्के फुल्के अंदाज में
**
जब नहीं था विज्ञान,जीना था कितना आसान ।
बच्चे बोझा ढो रहे ,अपनी किस्मत को रो रहे ।
न्यूटन की गति ने ,मारी है मति
किलो,लंबाई के मानक कर रहे अति ।
दिन भर दीवार को धक्का दिया
लोगों ने फिर निकम्मा क्यों कहा ।
जो भारी है उसका अधिक जड़त्व
जल का क्यो अलग चार पर घनत्व।[ 4℃]
किलो,लंबाई के मानक कर रहे अति ।
दिन भर दीवार को धक्का दिया
लोगों ने फिर निकम्मा क्यों कहा ।
जो भारी है उसका अधिक जड़त्व
जल का क्यो अलग चार पर घनत्व।[ 4℃]
बॉयल ने दाब बढ़ा आयतन घटाया
चार्ल्स ने ताप बढ़ा आयतन बढ़ाया ।
ये सब देख देख कर माथा चकराया
ताप को माइनस दो सौ तिहत्तर पहुंचाया।
केमिस्ट्री की मिस्ट्री समझ न आई
हाइजेनबर्ग ने क्या अनिश्चितता जताई ।
चार्ल्स ने ताप बढ़ा आयतन बढ़ाया ।
ये सब देख देख कर माथा चकराया
ताप को माइनस दो सौ तिहत्तर पहुंचाया।
केमिस्ट्री की मिस्ट्री समझ न आई
हाइजेनबर्ग ने क्या अनिश्चितता जताई ।
ज़्या कोज्या में दिल ऐसा लटका
ब्याज औ क्षेत्रफल में माथा खिसका।
कितने आदमी कितने दिन में पूरा करें
प्रमेय और रेखाओं से अब डर लगें।
टैक्स अभी देना नहीं तो क्यों पढ़ें
समुच्चय के सवालों से क्यों आगे बढ़े।
ब्याज औ क्षेत्रफल में माथा खिसका।
कितने आदमी कितने दिन में पूरा करें
प्रमेय और रेखाओं से अब डर लगें।
टैक्स अभी देना नहीं तो क्यों पढ़ें
समुच्चय के सवालों से क्यों आगे बढ़े।
मैट्रिक्स तू क्यों दो जगह विराजमान है
लैमार्क ,डार्विन पर जीवन गतिमान है ।
जीव जंतु पौधों के क्यों विशेष नाम है
वायरस बैक्टीरिया कवक से जीना हराम है ।
इतने तंत्र पढ़ कर निकली छोटी सी जान है
बोस जी कह गए , पौधों में भी जान है ।
लैमार्क ,डार्विन पर जीवन गतिमान है ।
जीव जंतु पौधों के क्यों विशेष नाम है
वायरस बैक्टीरिया कवक से जीना हराम है ।
इतने तंत्र पढ़ कर निकली छोटी सी जान है
बोस जी कह गए , पौधों में भी जान है ।
अब जब विज्ञान आया है,जीवन में उजाला लाया है
माध्यम से इसके अपना यान ,मङ्गल तक पहुंचाया है।योग के साथ विज्ञान का जब हुआ अद्भुत संजोग
विश्व गुरु बना भारत ,करके ये उत्कृष्ट प्रयोग ।।
माध्यम से इसके अपना यान ,मङ्गल तक पहुंचाया है।योग के साथ विज्ञान का जब हुआ अद्भुत संजोग
विश्व गुरु बना भारत ,करके ये उत्कृष्ट प्रयोग ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
अनिता सुधीर
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दोहे
मन का पंछी उड चला, तन का पिँजडा तोड।
सँग भला क्या जायगा,निजकर्मों को छोड।।
सँग भला क्या जायगा,निजकर्मों को छोड।।
पूजा है उत्तम यही , रखें बडो का ध्यान।
सेवा का जो व्रत लिए ,तभी मिलें भगवान।।
सेवा का जो व्रत लिए ,तभी मिलें भगवान।।
बचे न कोई कोप से.......समय बड़ा बलवान।
क्षणभंगुर की जीवनी ...क्यूँ करता अभिमान ।।
क्षणभंगुर की जीवनी ...क्यूँ करता अभिमान ।।
ढूँढ़ रहे चहुँदिश उसे ,कण कण जिसका ठौर।
रे मन!दूजा कौन है ....उन सा जग में और ।।
रे मन!दूजा कौन है ....उन सा जग में और ।।
सब कुछ किस को है मिला,किस्मत का क्या दोष।
हरि इच्छा जो कुछ मिले, ....उसमें कर संतोष।।
हरि इच्छा जो कुछ मिले, ....उसमें कर संतोष।।
श्रद्धा औ विश्वास से, चित्त साध लो आज।
गुरु कृपा बिन होत कब, पूरन मङ्गल काज।।
गुरु कृपा बिन होत कब, पूरन मङ्गल काज।।
©anita_sudhir
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
लोकप्रिय
****
लोकप्रिय सबको होते देख
मेरा भी मन ललचाया
पर क्या करें ऐसा
कुछ समझ ना आया
टीवी खोल कर बैठे जब
तब मामला समझ में आया
लोकप्रिय हो जाते वो
जो पानी पी देते गाली देते
या हजम कर खाते गाली ।
टीवी पर बैठ रोज चिल्लाते हैं
यह सब बिके हुए नजर आते हैं
लोकप्रिय होने के लिए
प्रायोजित कार्यक्रम चलवाते हैं
कोई हो रहा लोकप्रिय
तोड़ के सगाई
कोई है लोकप्रिय
जिसने कम उम्र से शादी रचाई
बैंक लूट के कोई नाम बटोर रहे
देश विरोधी नारे लगाकर
कोई लोकप्रिय हो रहे
राम को तारीख दे
कोई सुर्खियां बटोर रहे
तरह-तरह के हथकंडे हैं
देख के माथा ठनके हैं
लोकप्रिय ना होने में ही
अपनी समझी भलाई
सीधी साधी जनता है हम
दो जून की रोटी खाते है
कर के गाढ़ी कमाई ।
लोकप्रिय होने का विचार
जब त्याग दिया
फिर कुछ महापुरुषों के
जीवन की पुस्तके मंगाई
सोचे कुछ उनके जैसा कर जाये
कि लोकप्रिय हो जाए
टीवी पर आए चाहे ना आए
किताबों में अमर हो जाए ।
****
लोकप्रिय सबको होते देख
मेरा भी मन ललचाया
पर क्या करें ऐसा
कुछ समझ ना आया
टीवी खोल कर बैठे जब
तब मामला समझ में आया
लोकप्रिय हो जाते वो
जो पानी पी देते गाली देते
या हजम कर खाते गाली ।
टीवी पर बैठ रोज चिल्लाते हैं
यह सब बिके हुए नजर आते हैं
लोकप्रिय होने के लिए
प्रायोजित कार्यक्रम चलवाते हैं
कोई हो रहा लोकप्रिय
तोड़ के सगाई
कोई है लोकप्रिय
जिसने कम उम्र से शादी रचाई
बैंक लूट के कोई नाम बटोर रहे
देश विरोधी नारे लगाकर
कोई लोकप्रिय हो रहे
राम को तारीख दे
कोई सुर्खियां बटोर रहे
तरह-तरह के हथकंडे हैं
देख के माथा ठनके हैं
लोकप्रिय ना होने में ही
अपनी समझी भलाई
सीधी साधी जनता है हम
दो जून की रोटी खाते है
कर के गाढ़ी कमाई ।
लोकप्रिय होने का विचार
जब त्याग दिया
फिर कुछ महापुरुषों के
जीवन की पुस्तके मंगाई
सोचे कुछ उनके जैसा कर जाये
कि लोकप्रिय हो जाए
टीवी पर आए चाहे ना आए
किताबों में अमर हो जाए ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
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चित्र
दीवारों पर रंग बिरंगी पेंसिल
से आड़ी तिरछी रेखाओ का जाल
नन्हें हाथों के कल्पना के चित्र
कितने मासूम है ये चित्रकार
से आड़ी तिरछी रेखाओ का जाल
नन्हें हाथों के कल्पना के चित्र
कितने मासूम है ये चित्रकार
कोरे श्वेत कागज पर
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
रंगों से अनजान ये कलाकार
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
रंगों से अनजान ये कलाकार
रंगीन पेंसिल से रच
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
इनसे बड़ा कौन है चित्रकार
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
इनसे बड़ा कौन है चित्रकार
नन्हें हाथों मे पेंसिल
से कलम लेने लगा आकार
अब की बोर्ड के बटन अपार
भीड़ मे खो कर रह गए ये चित्रकार
से कलम लेने लगा आकार
अब की बोर्ड के बटन अपार
भीड़ मे खो कर रह गए ये चित्रकार
रंगों का अर्थ अब जानो
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
जीवन कैनवास के चित्र के बनो चित्रकार
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय अधिकार
***
कथित सभ्य सुसंस्कृत उन्नत समाज में
मानव लड़ रहा अधिकारों के लिए
क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनती
सभी सिर उठा कर जिये
समता का भाव लिए ।
शिक्षा ,कानून आजादी ,धर्म भाषा
काम हो सबका मौलिक अधिकार
क्या कभी चिंतन कर सुनिश्चित किया
क्यों नहीं बना अब तक वो उसका हक़दार।
समता के नाम पर क्या किया तुमने
आरक्षण का झुनझुना थमा हीन साबित किया
बांटते रहे रेवड़ियाँ अपने फायदे के लिए
सब्सिडी और कर्ज माफी से उन्हें बाधित किया।
मानव अधिकार की बातें कही जाती हैं
अधिकार के नाम पर भीख थमाई जाती है
देने वाला भी खुश और लेने वाला भी खुश
इस लेनदेन में जनता की गाढ़ी कमाई जाती है।
क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनाई जाती है
जहां अधिकार की बातें बेमानी हो जाए
ना कोई भूखा सोए ,न शिक्षा से वंचित हो
भेदभाव मिट जाए,हर हाथ को काम मिल जाये ।
योजनाएं तो बनाते हो पर लाभ नहीं मिलता
बिचौलिए मार्ग में बाधक बन तिजोरी भरते है
कानून का अधिकार है,लड़ाई लंबी चलती है
लड़ने वाला टूट गया बाकी सब जेबें भरते है।
महंगी शिक्षा व्यवस्था है कर्ज ले कर पढ़ते है
नौकरी गर न मिली तो कर्ज कैसे चुकायेगें
कर्ज देने मे भी बीच के लोग कुछ खायेंगे
बेचारा किसान दोनो तरह से चपेटे में आएंगे।
आयोग बना देने से,एक दिवस मना लेने से
रैली निकाल लेने से ,कुछ नहीं होगा
मानव पहल तुम करो ,दूसरे के अधिकार मत छीनो
खोई हुई प्रतिष्ठा के वापस लाने के हकदार बनो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
***
कथित सभ्य सुसंस्कृत उन्नत समाज में
मानव लड़ रहा अधिकारों के लिए
क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनती
सभी सिर उठा कर जिये
समता का भाव लिए ।
शिक्षा ,कानून आजादी ,धर्म भाषा
काम हो सबका मौलिक अधिकार
क्या कभी चिंतन कर सुनिश्चित किया
क्यों नहीं बना अब तक वो उसका हक़दार।
समता के नाम पर क्या किया तुमने
आरक्षण का झुनझुना थमा हीन साबित किया
बांटते रहे रेवड़ियाँ अपने फायदे के लिए
सब्सिडी और कर्ज माफी से उन्हें बाधित किया।
मानव अधिकार की बातें कही जाती हैं
अधिकार के नाम पर भीख थमाई जाती है
देने वाला भी खुश और लेने वाला भी खुश
इस लेनदेन में जनता की गाढ़ी कमाई जाती है।
क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनाई जाती है
जहां अधिकार की बातें बेमानी हो जाए
ना कोई भूखा सोए ,न शिक्षा से वंचित हो
भेदभाव मिट जाए,हर हाथ को काम मिल जाये ।
योजनाएं तो बनाते हो पर लाभ नहीं मिलता
बिचौलिए मार्ग में बाधक बन तिजोरी भरते है
कानून का अधिकार है,लड़ाई लंबी चलती है
लड़ने वाला टूट गया बाकी सब जेबें भरते है।
महंगी शिक्षा व्यवस्था है कर्ज ले कर पढ़ते है
नौकरी गर न मिली तो कर्ज कैसे चुकायेगें
कर्ज देने मे भी बीच के लोग कुछ खायेंगे
बेचारा किसान दोनो तरह से चपेटे में आएंगे।
आयोग बना देने से,एक दिवस मना लेने से
रैली निकाल लेने से ,कुछ नहीं होगा
मानव पहल तुम करो ,दूसरे के अधिकार मत छीनो
खोई हुई प्रतिष्ठा के वापस लाने के हकदार बनो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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12/04/19
सुख दुख
***
सुख दुख विस्तृत अर्थ लिये
कैसे इसे परिभाषित करें!
शब्द न कर पा रहे बखान
कलम बेबस ,बुद्धि अज्ञान ।
सुख का क्या है मापदण्ड
क्या एक सा हर काल खण्ड,
ये सबके लिए क्यों अलग
कोई प्रसन्न ,कोई भोग रहा दण्ड।
फुटपाथ पर भी सुख चैन
की नींद कोई सो जाता है
नरम बिस्तर भी दुख दे कर
किसी को रात भर जगाता है।
सुख दुख जीवन की डगर,
है मन की स्थिति पर निर्भर
सुख दुख तो आने जाने हैं
सम भाव रहना हर पल ।
वर्तमान में जो जी लेते हैं
वो ही जग में सुख पाते है
भूत और भविष्य मे उलझे
दुख उनमें घर कर जाते हैं ।
सुख का गड़ा न खजाना
मेहनत से कमा कर लाना
किसी के दुख दर्द दूर कर
अपने दुख को दफना आना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय :वृक्ष /पेड़
विधा : दोहा
वृक्ष काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास।
वृक्षारोपण सब करें ,इस आषाढ़ी मास ।।
धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इसपर गौर ।।
भोजन का निर्माण कर ,वृक्ष करे उपकार।
स्वच्छ प्राण वायु बने ,जीवन का आधार ।।
देव रुप में पूज्य ये ,धरती का सिंगार ।
गुणों का भंडार लिये ,औषध की भरमार ।।
संतति रुप में वृक्ष ये ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम खाद पानी से ,लें रक्षा का भार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावों के मोती
तिथि 25/06/19
विषय मोबाइल/ फ़ोन
**
विरोधाभास लिये ,
अपनी स्थिति पर मौन
मैं मोबाइल फ़ोन !
सोचता ....
मैं कैसे गलत हो गया ..
सभी का दोष कैसे माथे चढ़ गया..
बड़ी आसानी से इल्जाम लगा देते हैं ..
गलतियां मेरे आवरण में छुपा देते है ..
एहसान फरामोश हैं ये ...
दूर बैठे परिजनों के जब
वीडियो दिखाता हूँ ..
बच्चों की मासूमियत को
दादी नानी से रूबरू कराता हूँ..
कुशलक्षेम की पाती हूँ..
विरह का साथी हूँ...
एक क्षण में जानकारी बताता हूँ ...
कहीं भी दो के मध्य सेतु बन जाता हूँ ..
दुरुपयोग तुम करो
और दोष मेरे सर मढ़ो...
मैं तो ठहरा एक यंत्र ...
मैं वही करूं जो तुम फूकों मंत्र
मैं बुद्धि विवेक हीन हूँ...
तुम तो नहीं...
क्यों नही रिश्ते निभाते हो ..
अपनी सुविधा के लिये
बच्चों को मोबाइल थमाते हो ..
सही गलत का निर्णय तुम करो ..
जनक हो तुम मेरे
मेरे अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह क्यों..
मैं बेचारा मोबाइल फ़ोन
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
फासले /दूरी
**
संग चलने के सपने देखे थे हमने
उनको यूँ पल मे बदलते देखा है।
जो पलकों पर ख़्वाब मचलते थे कभी
बेबस हो आज उनको मरते देखा है।
जीवन भर खामोशियाँ डराती रही
दरमियाँ अब मौन पसरते देखा है ।
लब से बात जुबा पर आती नही
कोई तूफाँ दिल में पलते देखा है।
कुछ कागज के टुकड़ों खातिर
दरमियां दूरियां बढ़ते देखा है।
लोगों की कलम बिकती है यहाँ
सच को झूठा कर बेचते देखा है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
**
संग चलने के सपने देखे थे हमने
उनको यूँ पल मे बदलते देखा है।
जो पलकों पर ख़्वाब मचलते थे कभी
बेबस हो आज उनको मरते देखा है।
जीवन भर खामोशियाँ डराती रही
दरमियाँ अब मौन पसरते देखा है ।
लब से बात जुबा पर आती नही
कोई तूफाँ दिल में पलते देखा है।
कुछ कागज के टुकड़ों खातिर
दरमियां दूरियां बढ़ते देखा है।
लोगों की कलम बिकती है यहाँ
सच को झूठा कर बेचते देखा है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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विषय जनतंत्र
जनतंत्र का युवा पीढ़ी से आह्वान
**
मैं .......जनतंत्र बोल रहा हूँ
मैं बदलता भारत देख रहा हूँ
मैं युवा भारत की आहट सुन रहा हूँ
मैं ये सोच आनंदित हो रहा हूँ ( तुम)
लक्ष्य निर्धारित कर ,कर्म पथ पर चले
मिले मार्ग मे शूल ,निडर बढ़ते चले
सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर खड़े
सपनोँ को पूरा करने की ऊँची उड़ान भरे।
मुझे तुम पर है पूरा विश्वास ,मगर
मैं कभी ये देख कांप जाता हूँ
जब तुम्हें नशे की गिरफ्त में पाता हूँ
नारी का अपमान सहन न कर पाता हूँ
भ्रष्टाचार में लिप्त तुम्हे देख नही पाता हूँ
अपशब्द देश के लिये सुन नही पाता हूँ
हिंदी की अवस्था पर घबरा जाता हूँ।
मैं युवा भारत से आह्वान करता हूँ
सांस्कृतिक विरासत को सहेज आगे बढ़ो
चरित्र निर्माण,पौरुष में सतत लगे रहो
राष्ट्रप्रेम के भाव से पूर्ण रहो
सत्कर्म करो ऐसे, जग मे अमर रहो
मैं ........जनतंत्र बोल रहा ......
स्वरचित
अनिता सुधीर
जनतंत्र का युवा पीढ़ी से आह्वान
**
मैं .......जनतंत्र बोल रहा हूँ
मैं बदलता भारत देख रहा हूँ
मैं युवा भारत की आहट सुन रहा हूँ
मैं ये सोच आनंदित हो रहा हूँ ( तुम)
लक्ष्य निर्धारित कर ,कर्म पथ पर चले
मिले मार्ग मे शूल ,निडर बढ़ते चले
सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर खड़े
सपनोँ को पूरा करने की ऊँची उड़ान भरे।
मुझे तुम पर है पूरा विश्वास ,मगर
मैं कभी ये देख कांप जाता हूँ
जब तुम्हें नशे की गिरफ्त में पाता हूँ
नारी का अपमान सहन न कर पाता हूँ
भ्रष्टाचार में लिप्त तुम्हे देख नही पाता हूँ
अपशब्द देश के लिये सुन नही पाता हूँ
हिंदी की अवस्था पर घबरा जाता हूँ।
मैं युवा भारत से आह्वान करता हूँ
सांस्कृतिक विरासत को सहेज आगे बढ़ो
चरित्र निर्माण,पौरुष में सतत लगे रहो
राष्ट्रप्रेम के भाव से पूर्ण रहो
सत्कर्म करो ऐसे, जग मे अमर रहो
मैं ........जनतंत्र बोल रहा ......
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावों के मोती
तिथि 26/06/19
विषय इंद्रधनुष
***
रिमझिम बरसात है,
भीगे अल्फाज है,
अलसायी सी सुबह,
प्रियतम का साथ है।
उठो न.....चलो........
निकलो बंद कमरे से
धूप निकली है
ले रही अंगड़ाई नभ से ।
किरणें अपवर्तित ,
परावर्तित ,विसरित
हो आसमाँ को
सात रंगों से सजा रही,
चिड़ियों की चहचहाहट,
मौसम को खुशनुमा बना रही।
भीगे अल्फाजों को
प्यार से संजोते हैं
अपनी कल्पनाओं को
आओ नई उड़ान देते है
सुनहरी धूप का एक छोर पकड़,
इन्द्रधनुष के रंग चुरा लाते है।
सात रंगों को जीवन मे भर
सतरंगी सपने सजाते है ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
तिथि 26/06/19
विषय इंद्रधनुष
***
रिमझिम बरसात है,
भीगे अल्फाज है,
अलसायी सी सुबह,
प्रियतम का साथ है।
उठो न.....चलो........
निकलो बंद कमरे से
धूप निकली है
ले रही अंगड़ाई नभ से ।
किरणें अपवर्तित ,
परावर्तित ,विसरित
हो आसमाँ को
सात रंगों से सजा रही,
चिड़ियों की चहचहाहट,
मौसम को खुशनुमा बना रही।
भीगे अल्फाजों को
प्यार से संजोते हैं
अपनी कल्पनाओं को
आओ नई उड़ान देते है
सुनहरी धूप का एक छोर पकड़,
इन्द्रधनुष के रंग चुरा लाते है।
सात रंगों को जीवन मे भर
सतरंगी सपने सजाते है ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
23/06/19
गरमी
दोहावली
*
सूरज उगले आग जब, बढ़े धरा का ताप।
मौसम गरमी का हुआ ,बढ़ता मन संताप।।
दिन अब लम्बे हो गये, छोटी होती रात ।
जेठ आषाढ़ मास में ,गरमी दे आघात ।।
वृक्ष काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास ।
इस गरमी के ताप में ,बरखा की है आस ।।
अन्नदाता !गरमी में ,बोयें फसल खरीफ ।
वर्षा पर निर्भर रहें ,पायें वो तकलीफ ।।
खान पान का ध्यान रख,दें गरमी को मात।
शीतल जल अरु छाछ है,मौसम की सौगात ।।
बच्चों की मस्ती बढ़ी ,गरमी में अवकाश ।
सैर सपाटा कर रहे ,खुला मिला आकाश ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मृत्यु
***
जीवन के चक्र में
मृत्यु है अटल सत्य
आया जो इस जग में
जाना है उसका निश्चित
मनवा तू कर ऐसे कृत्य
जब हो सामने मृत्यु
तू निडर हो कर वरण।
जानता हूँ ये परम सत्य ...
पर असमय ,बिन आहट
मृत्यु सामने आ जाये
देश की सुरक्षा हेतु
हँसते हँसते वरण कर जाते
अपने लिए न मन डरे
परिजन के लिए डरता हूँ
माँ बाप के बुढापे की लाठी
बहन की राखी हूँ
बच्चों का भविष्य हूँ
पत्नी का श्रृंगार हूँ
मैं एक बार मृत्यु का वरण करूंगा
ये तो जीते जी रोज मरेंगे
जीवन की कठिनाई में
ये कैसे सर उठा जी पाएंगें!
कुछ समय में ही ,लोगों का
देशभक्ति का जोश उतर जाएगा
नेता फिर से गन्दी राजनीति
में उलझ जाएगा
गैर तो गैर ,अपने भी
धोखा देने आ जाएँगे
जीवन के लम्बे सफ़र मे
माँ बाप बन वो
अकेली कैसे बड़ा करेगी
बहन की डोली को
कैसे वो विदा करेगी ।
देश के हित के लिए
मुझे मृत्यु से डर नहीं
ये सब सोच सहम जाता हूँ
आप से समाधान चाहता हूँ
आप से समाधान चाहता हूँ ...
स्वरचित
अनिता सुधीर
***
जीवन के चक्र में
मृत्यु है अटल सत्य
आया जो इस जग में
जाना है उसका निश्चित
मनवा तू कर ऐसे कृत्य
जब हो सामने मृत्यु
तू निडर हो कर वरण।
जानता हूँ ये परम सत्य ...
पर असमय ,बिन आहट
मृत्यु सामने आ जाये
देश की सुरक्षा हेतु
हँसते हँसते वरण कर जाते
अपने लिए न मन डरे
परिजन के लिए डरता हूँ
माँ बाप के बुढापे की लाठी
बहन की राखी हूँ
बच्चों का भविष्य हूँ
पत्नी का श्रृंगार हूँ
मैं एक बार मृत्यु का वरण करूंगा
ये तो जीते जी रोज मरेंगे
जीवन की कठिनाई में
ये कैसे सर उठा जी पाएंगें!
कुछ समय में ही ,लोगों का
देशभक्ति का जोश उतर जाएगा
नेता फिर से गन्दी राजनीति
में उलझ जाएगा
गैर तो गैर ,अपने भी
धोखा देने आ जाएँगे
जीवन के लम्बे सफ़र मे
माँ बाप बन वो
अकेली कैसे बड़ा करेगी
बहन की डोली को
कैसे वो विदा करेगी ।
देश के हित के लिए
मुझे मृत्यु से डर नहीं
ये सब सोच सहम जाता हूँ
आप से समाधान चाहता हूँ
आप से समाधान चाहता हूँ ...
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
22/06/19
गवाह/सबूत
**
मैं कैसी
चर्चा का विषय क्यों
हर बार कसौटियों पर
मैं ही परखी जाऊँ
लहूलुहान होती रूह पर
कब तक मरहम लगाऊं
सदियों से चुप रही
कराहती रूह को
थपथपा सुलाती रही
पर अब नहीं ...
जैसी भी मैं
क्यों दें सबूत
साक्ष्य प्रमाण क्यों
एक एक कृत्य के
गवाह क्यों
नहीँ चाहिये मुझे
तुम्हारी अदालत से
कोई फैसला
कोई सनद नहीं
कोई प्रमाण पत्र नहीं
स्वयं को बरी करती हूँ.....
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
तिथि 21/06/19
विषय योग
योग दिवस और स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएं
दोहावली
***
विश्व में सम्मान बढ़ा ,मची योग की धूम ।
गर्व विरासत पर हमें ,धूलि देश की चूम ।।
करते प्रतिदिन योग जो ,रहें रोग से दूर।
साँसों का बस खेल है ,मुख पर आए नूर ।।
आसन बारह जो करे,हो बुद्धि में निखार ।
होता सूर्य नमन से ,ऊर्जा का संचार ।।
पद्मासन में बैठ कर ,रहिये ख़ाली पेट।
चित्त शुद्ध अरु शाँत हो,करिये ख़ुद से भेंट ।।
प्राणवायु की कमी से , होते सारे रोग
प्राणायाम करके सभी ,जीवन उत्तम भोग ।।
ओम मंत्र के जाप से ,होते दूर विकार।
तन अरु मन को साधता ,बढ़े रक्त संचार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावों के मोती
तिथि 20/06/19
विषय दर्पण
***
दर्पण को आईना दिखाने का प्रयास किया है
दर्पण
*********
दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है तुम्हें
अपने पर ,कि
तू सच दिखाता है।
आज तुम्हे दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता है
कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य नहीं,
लक्ष्य है
आत्मशक्ति के प्रकाशपुंज
से गंतव्य तक जाना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
19/06/19
किनारा
किनारा शब्द के कई अर्थ को लिखने का प्रयास
***
समन्दर का *किनारा
ठंडी रेत पे नंगे पाँव
हाथों में हाथ लिए
दुनिया जहान से दूर
अपने में रहते मशगूल
वो दिन भी क्या दिन थे।
वक़्त ने क्या सितम किया
गलतफहमियां दीवार बन गयीं
रिश्ते बिखरते जा रहे थे
एक दूजे से दूर जा रहे थे
*किनारे की तलाश में
बेड़ियोँ के भँवर में डूबते जा रहे थे ।
समय के चक्रव्यूह में
उलझ कर रह गए हम
तुम तो गैर हो गए थे
अपनों ने भी *किनारा कर लिया।
नदी के दो *किनारों की तरह
हम समानांतर चलते रहे
मिलना न था नसीब में
*किनारे की तलाश में
हम सहारा ढूँढते रहे ।
जल नदियों का *किनारा
छोड़ता जा रहा है
सिकुड़ती हुई नदियां
सूखे की स्थिति ला रही हैं
जल, किनारा तोड़ निरंकुश हो जाये
प्रलय और बाढ़ के हालात बनते जाएं ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
12/06/19
विषय चक्रव्यूह
विधा मुक्तक
**
हर शख्स ने चेहरे पे इक चेहरा लगा रखा है
लबों पर हंसी और सीने मे दर्द छुपा रखा है
फरेबी दुनिया में सुंदर मुखौटे पहने लोगों ने
रिश्तों की सच्चाई में कुछ झूठ छिपा रखा है।
धरा मानव मन की अब क्यों हो गयी बंजर
सिसकती कातरता से ,देख दोस्ती का मंजर
कैसे विश्वास के बदले विष भर गया रिश्ते मे
मुँह से बोलते राम ,रखते पीठ पीछे खंजर।
किस चक्रव्यूह में उलझ कर रह गया इंसान
किया जिस पर विश्वास,तोड़े रिश्तों का मान
जीवन के झंझावातों में साथ जिसका प्यारा था
विश्वास घात से पाया जीवन भर का अपमान ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन मंच भावों के मोती
तिथि 11/06/19
विषय घर
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घर और माँ के मध्य वार्तालाप
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ईंट गारे की दीवारों में ख़्वाब को सजाया था
जद्दोजहद के साथ इस मकान को बनाया था
प्यार ,विश्वास एहसास की सतरंगी चूनर से
मकान को अपना खूबसूरत घर बनाया था ।
अकेला देख मुझे,दिल पर वार करता है
चुभती निगाहों से, ये घर पूछ लिया करता है
तुम्हारे नीड़ के पंछी एक एक कर उड़ गए
ढूँढती उनके सामानों में ,तुम्हें तन्हा कर गए।
तन्हा नहीं मैं ,पल पल साथ रहते वो मेरे
घर के हर कोने मे अपने अहसास बिखेरे
उड़ने को आसमान हमने ही दिया उन्हें
उन्मुक्त गगन में वो ऊंची उड़ान भर रहे ।
स्वार्थवश हम उनके पंखों को क्यों काटे
संस्कार के बीज पड़े वो अपनी जड़ों से जुड़े
हमारे सपनों को पूरा कर नया आयाम दे रहे
और अपना जीवन भी अपने सोच से जी रहे ।
जवाब मेरा सुन , घर सुकून से भर गया
कहने लगा ,आशय तुम्हें चोट पहुँचाना नहीं ,
तुम्हारी ही तपस्या से मै सजीव घर बना हूँ,
निश्चिन्त हुआ ,अस्तित्व मेरा यूँ ही बना रहेगा ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन मंच
10/06/19
विषय कोयल
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ये रचना प्रस्तुत करने में किसी की भावनाएं आहत करने का मक़सद नहीं है ,पर कोयल के माध्यम से आज के समाज को दिखाया है ।
मेरे विचार गलत भी हो सकते हैं । क्षमाप्रार्थी हूँ.
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कौवे का केवल तन काला
कोयल का मन भी काला है ।
कौवे की कर्कश वाणी में
सच्चाई का बोलबाला है ।
चाशनी सी मीठी बोली
में घोटाला ही घोटाला है ।
नर और मादा कोयल दोनों
समाज की रीति बताते हैं ।
नर कोयल मीठा गा गा कर
अपना सिक्का चलाता है।
पुरुष प्रधान समाज का
वो आईना बन जाता है ।
दूजा अंश नष्ट कर मादा
दूसरे नीड मे वंश बढ़ाती है।
नारी ही नारी की दुश्मन
ये सच जग को बतलाती है
मीठी वाणी की शिक्षा
पहले कभी अनमोल रही
आज का समय यही कहे
जो मीठा बोले तो सतर्क रहो।प
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन मंच भावों के मोती
तिथि 17/06/19
विषय नीयत
विधा दोहा छन्द
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नीयत सुधरी जो रहे ,नियति सुधर खुद जाय ।
सन्त ऋषि की सीख यही,तब जीवन मुस्काय ।।
दो रोटी की भूख में ,नीयत जाती डोल ।
चोरी के आक्षेप से ,मनुज बिका बिन मोल।।
नीयत का आभास नहि,ओढ़ लिये हैं खोल।
पीठ पीछे वार करें , मीठी वाणी बोल ।।
नीयत में है खोट जो ,वो झूठा इन्सान ।
करता है दुष्कर्म वो ,बन जाता हैवान ।।
नीयत क्यों बिगड़ी हुई ,मासूमों को देख ।
डरो खुदा की मार से,क्या किस्मत का लेख।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन मंच
07/04/19
जयति जगतजननी
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माँ दुर्गा के नवरूप है
इस जीवन का सार
कल्याणकारिणी देवी तुम
करो जन जन का उद्धार
शैलपुत्री माता तुम
चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता तुम
अनंत दिव्यता से मन भरो
चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति
इच्छाओं को एकाग्र करो
कूष्मांडा प्राणशक्ति
ऊर्जा का भंडार भरो
स्कंदमाता ज्ञानदेवी
कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम
क्रोध का संहार करो
कालरात्रि माता तुम
जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ
सौंदर्य से दैदीप्यमान करो
सिद्धिदात्री माता तुम
जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के
जीवन को आलोकित करो
आत्मसात कर सके
ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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