डॉ ललिता सेंगर



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विषय - जन्मभूमि
08/02/20

शुक्रवार
कविता

देशभक्ति का राग वही सच्चा सपूत गा पाता है,
जिसको अपनी जन्मभूमि का कर्ज चुकाना आता है।

सदा राष्ट्र की आन- बान व शान उसे बस भाती है,
जिसकी ख़ातिर जान हथेली पर रखकर वह जाता है।

ऐसे वीर सपूतों ने ही आजादी दिलवाई थी ,
इसीलिए यह देश गीत वीरों के यश के गाता है।

अमर जवान ज्योति साक्षी है उनके दृढ कर्तव्यों की,
जिसका प्रबल प्रकाश राष्ट्र को ज्योतिर्मय कर देता है।

है इतिहास गवाह राष्ट्र के भक्तों ने संघर्ष किया ,
तभी देश के आँगन में स्वतंत्रता-दीपक जलता है।

देश सदा ऐसे सपूत पर गौरव अनुभव करता है,
बार-बार उनके समक्ष सिर श्रद्धा से ही झुकता है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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31/01/20
शुक्रवार
कविता

तिलक देश के सैनिक के मस्तक पर जब लग जाता है,
मातृभूमि पर मर-मिटने का भाव प्रबल हो जाता है।

कितनी ही बाधाएं उसके पथ को रोक खड़ी होतीं,
वह उन सबको रौंद विजय-पथ पर आगे बढ़ जाता है।

आतप, शीत और बारिश में सरहद पर सीना ताने,
वह फौलादी बनकर भारत का रक्षक बन जाता है।

कठिन परिश्रम और अनुशासन उसमें क्षमता भरते हैं,
उसके मन में शत्रु-विजय का लक्ष्य सजगता लाता है।

कभी शत्रु के सम्मुख उसका शीश नहीं झुक पाता है,
वह जाबांज समर में उनको ऊँचा करके जाता है।

उसके ओजस्वी भावों से जन- जन प्रेरित होता है,
देश की खातिर कुछ करने को हृदय विकल हो जाता है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय - ऋतुराज/ वसंत
29/01/20
बुधवार
मुक्तक

ऋतुराज ने अब दी है दस्तक , हम रंग जाएँ उसके रंग में।
सरसों के पीले चंवर डोल भरते उमंग अब जन-जन में।
वन -उपवन की शोभा अनंत करती है मंत्रमुग्ध सबको-
धारण कर पीले सुगढ़ वस्त्र सब जन डूबें उसके ढंग में।

सरसों के पीले फूलों से आ रही सहज तैलाक्त गंध।
चहुंओर बिछी पीली चादर,बिखरीअतुलित-अनुपम सुगंध।
कोमल पत्रों से आच्छादित वन-उपवन के अगणित पादप-
रवि की स्वर्णिम किरणों से हैं पीताभ पुष्प शोभित अमंद।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय - भारतीय गणतंत्र/संविधान/26 जनवरी
26/01/20

रविवार
कविता

राष्ट्र का उत्थान ही हर नागरिक का धर्म हो ,
मातृ-भू कल्याण प्रेरित ही सभी का कर्म हो।

न कहीँ इस भूमि पर जयचन्द सा दुष्कार्य हो ,
न कहीँ रावण की लंका का यहाँ विस्तार हो।

राम की छवि हो सभी में ,कृष्ण सा सद्भाव हो ,
और महात्मा बुद्ध जैसा प्राणियों से प्यार हो।

हों सभी युवा विवेकानन्द जैसे देश के ,
चन्द्रशेखर और भगतसिंह सा हृदय में त्याग हो।

हों सभी बच्चे भरत से वीर ,निर्भय ,साहसी ,
और हर बेटी में लक्ष्मीबाई सी हुंकार हो।

गुरु सभी बन जाएँ विश्वामित्र और चाणक्य से ,
शिष्य भी एकलव्य और आरुणि के अवतार हों।

भारतीय - मूल्य ही पहचान हों इस देश के,
विश्व में भारत का गौरव- गान बारम्बार हो।

देश के गणतन्त्र का सम्मान हो हर दृष्टि से ,
तब हमारे देश का फिर से नवल उत्थान हो ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय -कल्याण
24/01/20

शुक्रवार
कविता

सत्य-शिवं-सुन्दरं को क्यों
आज जमाना भूल गया है,
अपने ही वैभव में रत हो
अहंकार में फूल गया है।

कभी हमारी मातृभूमि पर
इनसे ही जीवन चलता था ,
सत्य -वचन से ही समाज का
नित कल्याण हुआ करता था।

सुन्दरता सबके हृदयों में
बन सुगंध महका करती थी,
घर-घर में खुशियों से पूरित
हँसी सदा चहका करती थी।

आज सत्य- शिव- सुन्दर का
नर ने यह अर्थ निकाल लिया है,
अपना ही हित हो जिसमें-बस
वही सत्य-शिव मान लिया है।

इसीलिए दानवता अपना
मुँह फैलाए खड़ी हुई है,
संस्कार की धरती को
विकृत करने पर अड़ी हुई है।

अब भी समय जागने का है
, फिर से संस्कार दोहराएं,
सत्यं- शिवं - सुन्दरं को
अपने जीवन का लक्ष्य बनाएँ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय- सेवक
21/01/20

मंगलवार
कविता

देशभक्ति का राग वही सच्चा सेवक गा पाता है,
जिसको अपनी मातृभूमि का कर्ज चुकाना आता है।

सदा राष्ट्र की आन- बान व शान उसे बस भाती है,
जिसकी ख़ातिर जान हथेली पर रखकर वह जाता है।

ऐसे वीर सपूतों ने ही आजादी दिलवाई थी ,
इसीलिए यह देश गीत वीरों के यश के गाता है।

अमर जवान ज्योति साक्षी है उनके दृढ कर्तव्यों की,
जिसका प्रबल प्रकाश राष्ट्र को ज्योतिर्मय कर देता है।

है इतिहास गवाह राष्ट्र के भक्तों ने संघर्ष किया ,
तभी देश के आँगन में स्वतंत्रता-दीपक जलता है।

देश सदा ऐसे सेवक पर गौरव अनुभव करता है,
बार-बार उनके समक्ष सिर श्रद्धा से ही झुकता है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय - आँगन/अहाता
18/01/20

शनिवार
कविता

घर के बीचोंबीच पुण्य - पावन होता था ,
खुशियों और गम का गवाह मन भाता आँगन।

सूरज की सतरंगी किरणों की शोभा से ,
प्रातःकाल नहा , पवित्र हो जाता आँगन।

वहीं सुबह और शाम घरों में महफिल सजती,
किस्से और कथाओं में बतियाता आँगन ।

भरी दोपहरी में लुक-छिप व धमा-चौकड़ी ,
बच्चों की किलकारी से इठलाता आँगन ।

तुलसी, गेंदा और गुलाब पौधों से सुरभित ,
हरे - भरे उपवन सा रूप दिखाता आँगन।

सभी तीज- त्योहारों पर सतिये - रंगोली,
मंगल - कलशों से शोभा को पाता आँगन ।

अब तो मात्र कल्पनाओं में ही रहता है ,
फ्लैट-संस्कृति में खोया मुस्काता आँगन।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय-मकर संक्रांति,तिल, गुड़,पतंग,दान
14/01/20
मंगलवार
दोहे

मकर राशि में सूर्य का , जब हो पुण्य प्रवेश।
पर्व मकर संक्रांति का, लाता शुभ संदेश ।।

हिन्दू धर्म का है यही , अति पावन त्यौहार।
इस दिन सच्चे दान से , हो जीवन उद्धार।।

पावन गंगा में सभी , प्रात: कर स्नान ।
विधि-विधान के साथ सब,करते पूजा- ध्यान।।

मकर संक्रान्ति पर्व पर , करें प्रेम से दान ।
निर्धन के हर कष्ट का , हम कर सकें निदान।।

इस दिन करते प्रेम से , सब खिचड़ी का भोग।
तिल के लड्डू का रहे , खिचड़ी के संग योग ।।

भारतीय- संस्कृति का , यह है सुन्दर अंग ।
बालवृंद की गगन में , उड़ती खूब पतंग।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय - हुनर/कला
07/01/20

मंगलवार
कविता

मेहनतकश को हुनर सदा प्राणों से प्यारा,
उससे ही चलती है उसकी जीवन धारा।

प्रातःकाल सभी यंत्रों की पूजा करता ,
अनगढ़ चीजों से वह सुन्दर साधन गढ़ता।

खून-पसीना बहा वह दिनभर मेहनत करता,
फिर भी सबके साथ वह हँसता ,बातें करता।

इतनी मेहनत पर भी जीवन शाप है इसका,
भूख, गरीबी का रहता संताप है इसका।

इसकी कला घरों को नव आकार में लाती,
जीवन यापन के साधन उपलब्ध कराती।

पर इसके श्रम का कुछ भी न मोल है लगता,
कोई अंतर की पीडा को नहीं समझता।

काश इसे भी जीवन के साधन मिल जाएँ,
जैसे सब सुख पाते , वैसे यह भी पाए।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय- बीता साल
30/12/19

सोमवार

नयी चेतना शक्ति ,नवल रस, नव लय ,नूतन भाव भरें ,
नये वर्ष की शुभ - बेला में अंतर्मन के कलुष हरें ।

बीत गया जो साल , उसी से चिंतन-मनन हमें करना ,
जीवन के विकास हित सत्यं- शिवं- सुंदरम् गान करें ।

जर्जर व खोखली प्रथाएं, जो समाज को तोड़ रहीं ,
उनका उन्मूलन कर फिर से नव समाज की नींव रखें।

विषम वेदना से आहत जो जीवन की गति भूल रहे ,
उनमें नयी कल्पनाओं की मधुर -मृदुल मुस्कान भरें।

वृद्ध और मासूमों की पीड़ा मन को आहत करती ,
उनके संरक्षण पर भी हम मिलकर गहन विचार करें ।

राष्ट्र-देवता के साधक बन नित्य देश-हित कर्म करें ,
मातृभूमि की सेवा में हम प्राणों का बलिदान करें ।

नये वर्ष में नव उमंग जन-जन में उद्भित हो जाए ,
उसके लिए स्वयं आगे बढ़ हम प्रेरक आदर्श बनें ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय - संतुलन
10/12/19

मंगलवार
कविता

स्वस्थ और सुन्दर तन - मन का
भोजन है सचमुच आधार ,
किन्तु व्यक्ति को करना होगा
सदा संतुलन में आहार।

आज मिलावट की दुनिया ने
भोजन किया विषैला है,
चारों ओर असाध्य रोग का
भीषण खतरा फैला है।

इसीलिए घर के भोजन पर
सब मिलकर अवधान रखें,
ग्रहण करें अंकुरित खाद्य और
शुद्ध दूध का पान करें।

हरी सब्जियां, ताजे फल व
दाल - चपाती को खाकर,
स्वस्थ और सुन्दर जीवन का
मूल मंत्र सब अपनाएं ।

होगा जब आहार संतुलित
जीवन नवगति पाएगा,
तन-मन का हर कष्ट सदा के
लिए लुप्त हो जाएगा ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन भावों के मोती
03/11/19
रविवार
विषय - स्वैच्छिक
विधा- गीत

वतन के गीत हम सब साथ मिलकर आज गाएँगे,
उसी के वास्ते तन और मन सबकुछ लुटाएंगे।
वतन के गीत .......

इसी के अन्न-जल को प्राप्त कर पोषित हुए हैं हम,
कसम खाते हैं ,अपने देश का न सिर झुकाएंगे।
वतन के गीत .......

यहाँ गंगा की कल-कल धार बहती है दिशाओं में,
उसे करके प्रदूषण- मुक्त हम पावन बनाएँगे।
वतन के गीत .......

न जाति-धर्म की बातों से आपस में लड़ेंगे हम,
सभी को भाईचारे का सबक मिलकर सिखाएंगे।
वतन के गीत .......

हमारी संस्कृति संसार में है सबसे सुन्दरतम,
उसी पर कर अमल हम देश को सुंदर बनाएँगे।
वतन के गीत .......

यहाँ गणतंत्र की रक्षा करेंगे देश के वासी ,
कभी गणतंत्र को गनतंत्र न हरगिज़ बनाएँगे।
वतन के गीत .......

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय - एकता
31/10/19

गुरुवार
छंदमुक्त कविता

आज असम्भव सम्भव होगा
यदि जन-जन का एक रंग होगा
जाति- धर्म का भेद मिटाकर
मंत्र एकता का गूँजेगा
प्रगति-मार्ग पर साथ चलेंगे
हर मुश्किल को साथ सहेंगे
नामुमकिन को मुमकिन करके
हम असीम आकाश छुएंगे
सीमाएँ सब रहें सुरक्षित
ऐसे पहरेदार बनेंगे
शत्रु कभी न घात लगाए
ऐसे सावधान सब होंगे
भ्रष्टाचार का अंत निकट है
अब बन रहा विधान विकट है
जयचंदों पर भी संकट है
उनके जीवन में कंटक है
सूर्य सत्य का अब चमकेगा
न असत्य भू पर धमकेगा
सभी बनेंगे सत् आचारी
कोई न होगा अत्याचारी
जन परहित का काम करेंगे
सुख-दुख में समभाव रखेंगे
जीवन सुखमय हो जाएगा
कहीं न दुख गहरा पाएगा
बच्चे, वृद्ध और बालाएँ
हो उपलब्ध उन्हें सुविधाएँ
हरी-भरी यह प्रकृति रहेगी
नदियों में शुचि धार बहेगी
चारों ओर शान्ति व सुख की
शीतल - सुखद बयार चलेगी
एकसूत्रता से भारत फिर
नित नवीन आयाम गढ़ेगा
विश्व-पटल पर अपने दम से
अनुपम एक मिसाल बनेगा

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय - धन/धनवंतरि/यम/कुबेर
25/10/19

शुक्रवार
दोहे

दीवाली के पर्व पर , यम का होता मान ।
धनतेरस पर दीप का, होता उचित विधान।।

मृत्युलोक के देवता, वाहन महिष विशाल ।
कर में शोभित दण्ड है, नेत्र अग्नि सम लाल।।

दक्षिण के दिक्पाल हैं, करते कर्म विधान।
इनकी दृष्टि से कहीं , छिपे नहीं इंसान ।।

भाई दूज पर यम चलें , बहन यमी के धाम।
देकर शुभ आशीष वे , करते पूर्ण काम ।।

नरकलोक में व्यक्ति का, होता दण्ड- विधान।
इनके ही आदेश से, पाता फल इंसान ।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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विषय -पवन /हवा/समीर
24/10/19

गुरुवार
दोहे

पंचभूत में पवन का , होता अधिक महत्त्व।
जिनसे मानव को मिला , भू पर जीवन-तत्त्व।।

आतप से तपकर मनुज, होता अधिक अधीर।
शीतल मंद पवन हरे , उसके तन की पीर।।

पवन - वेग से झूमती , वृक्षों की हर डाल।
रक्तिम-कोंपल गुच्छ छवि,लगे पुष्प की माल।।

प्रातः झोंका पवन का ,मन पुलकित कर जाय।
नवल -भाव सौन्दर्य से , जीवन में रस आय।।

पवन सिखाता है हमें, रखें पुनीत विचार ।
परहित को ही मान लें , जीवन का आधार।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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नमन भावों के मोती
विषय - श्रद्धा
21/10/19

सोमवार
दोहे

श्रद्धा से हम सब जपें, उस ईश्वर का नाम।
जिसकी पूजा के बिना , मिलता नहीं मुकाम।।

श्रद्धा, भक्ति, प्रेम और , सत्य, अहिंसा भाव।
सद्गुण से पावन बने , नर का उचित स्वभाव।।

सदा बड़ों के प्रति रखें, हम श्रद्धा का भाव ।
इससे रिश्तों की बढ़े, महिमा और लगाव।।

गुरु के प्रति श्रद्धा जहाँ, वहीं मिले सत् ज्ञान।
उनके आशीर्वाद से , हो जीवन उत्थान।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय - सरस
11/10/19

शुक्रवार
गीत

पहला-पहला प्यार हृदय का
पुण्य कोष बन जाता है,
जीवन के उदास लम्हों को
भी वह सरस बनाता है।
पहला - पहला प्यार हृदय का......

मन उन सुन्दर यादों में
इस कदर मगन होता क्षण में,
गम की किसी चुभन का फिर
अहसास नहीं रह जाता है।
पहला - पहला प्यार हृदय का......

आँखों के आगे वे प्यारे
दृश्य घूमने लगते हैं ,
प्रियतम के संग वादों का
सिलसिला याद आ जाता है।
पहला - पहला प्यार हृदय का......

मधुर चाँदनी रातों में
झिलमिल तारों के गगन तले ,
एक- दूजे के लिए गुनगुनाने
का पल याद आता है।
पहला - पहला प्यार हृदय का......

नहीं भुलाया जा सकता वह
प्रथम- प्रणय का अद्भुत क्षण,
जो जीवन को सदा प्रेम की
सरस राह दिखलाता है।
पहला - पहला प्यार हृदय का......

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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08/09/19
रविवार
विषय- हादसे
कविता

कितनी कोशिश कर रही सरकार है ,
पर न रुकती हादसों की मार है।

बन रहे कानून यातायात के ,
पर न थमती सड़क पर रफ्तार है।

न स्वयं के स्वास्थ्य की चिंता कोई,
न किसी की जिंदगी से प्यार है।

धैर्य से चलता नहीं वाहन कोई,
सड़क पर अब व्याप्त अनाचार है।

कितने प्राणों की बलि चढ़ती मगर ,
नशे का न रुक रहा व्यापार है।

हादसे तब तक न कम हो पाएंगे,
जब तलक जनता में भ्रष्टाचार है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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07/10/19
सोमवार
विषय- शान्ति
कविता

अमन, चैन और शान्ति शब्द अब तो बेगाने लगते हैं,
वर्तमान भारत में अब तो अलग तराने बजते हैं।

ऋषियों-मुनियों की धरती पर भीषण विप्लव आया है,
हर भारतवासी के मन में भ्रष्टाचार समाया है।

अपने गौरवमय अतीत को लगता है सब भूल गये,
वैभव की दुनिया को पाकर अहंकार में फूल गये ।

उनके शब्दकोश में अब न अमन -चैन की बातें हैं,
एक- दूजे पर षडयंत्रों की आज लग रही घातें हैं।

रिश्ते-नातों की कडियाँ सब एक-एक कर टूट रहीं,
मानव-मूल्यों की गरिमामय बातें पीछे छूट रही।

बच्चे, वृद्ध और महिलाएं नहीं सुरक्षित लगते हैं ,
उनके शोषण के किस्से प्रतिदिन मन विचलित करते हैं।

कब तक दानवता सबके मन को पीड़ा पहुँचाएगी,
कभी तो मानवता लोगों के हृदयों को पिघलाएगी।

समय जागने का है बस अब हम सब मिल संकल्प करें,
भारत -भू पर दानवता का हम अंतिम संस्कार करें।

तभी शान्ति-दूत भारत फिर उसी रूप में आएगा ,
फिर अपनी पावन वसुधा पर अमन -चैन छा जाएगा।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय - स्पर्श
04/10/19

शुक्रवार
कविता

माँ तुम्हारा साथ जो मिल जाएगा,
स्वप्न मेरा सत्य ही हो जाएगा।
चाँद- तारे कुछ नहीं मेरे लिए,
यह जहां मुट्ठी में मेरी आएगा ।

चाँद को छू लूंगी मैं खुद हाथ से ,
मेरा जीवन-लक्ष्य ही मिल जाएगा।
तेरे हाथों के मथुर स्पर्श से
मुझको कोई कष्ट न हो पाएगा।

तेरी ममता का मिला संबल मुझे,
जिसके बल पर रास्ता कट जाएगा।
तूने ही मुझको दिखाया रास्ता ,
साथ तेरे हौसला बढ़ जाएगा।

लक्ष्य पा लूँगी मैं जीवन मार्ग का,
मन-सुमन आनंद से खिल जाएगा।
विघ्न -बाधा मुझको रोकेगी नहीं ,
तेरा आशीर्वाद जो मिल जाएगा।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर


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30/09/19
सोमवार

विषय - माँ
दोहे

कनक कलेवर पर सजे , लहंगा- चुनरी लाल ।
लाल तिलक से शोभता ,माँ का गर्वित भाल।।

घर- घर में है सज रहा , माता का दरबार।
श्रद्धा से करते सभी , माँ की जय-जयकार।।

माता के दरबार में , होता मंत्रोच्चार।
उसकी पूजा से मिले , सबको शांति अपार।।

सभी भक्त नवरात्र पर , भजते माँ का नाम।
अम्बे माता प्रेम से , करती पूरे काम।।

शक्ति, ज्ञान औ प्रेम की ,तू अतुलित भंडार।
माँ दुर्गे ! हम सब करें,तेरी जय-जयकार।।

रमा ,सरस्वति ,कालिका , की अद्भुत अवतार।
तेरे चरणों में मिले , जीवन-सुख का सार।।

धन, पौरुष, बल, ज्ञान की, माँ ! तू है आगार ।
तेरी महिमा का नहीं , कोई पारावार ।।

दुर्गा माँ ! शक्ति तेरी , सचमुच अपरंपार ।
तेरी करुणा कर रही , कष्टों का निस्तार।।

तुम महिषासुर-मर्दिनी , करती जग का त्राण।
तेरे चरणों में निहित , भक्तों का कल्याण।।

जगजननी,जगदम्बिका,जग की शान्ति-निधान।
सबको सुख-समृद्धि का , दो माता वरदान ।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर


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27/09/19
शुक्रवार
विषय - विवेक
कविता

मानव ने विवेक खोकर यह कैसा कुत्सित मार्ग चुना,
मन की बेचैनी का कितना यह दूषित प्रतिकार गुना।

नशाखोर बनकर उसने जीवन अपना अभिशप्त किया ,
तन -मन-धन तीनों कोषों का वैभव समझो नष्ट हुआ।

इस शराबखोरी ने उसके जीवन का रस चूस लिया ,
मात्र हड्डियों का ढाँचा बन मृत्यु का दर ढूँढ लिया ।

उसको क्या मालूम कि उसपर कितनी जिम्मेदारी थी,
माँ की आस , पिता के सपने ,पत्नी की खुशहाली थी।

अब उसके अभाव में कैसे वे जीवित रह पाएँगे ,
गहन वेदना से आहत हो जीते जी मर जाएँगे ।

सच है नशा किसी व्यक्ति के हित में कार्य नहीं करता,
इस गंभीर समस्या का कोई प्रतिकार नहीं करता ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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24/09/19
मंगलवार
विषय - बनारस
विधा- कुण्डलियां छंद

पावन गंगा-तीर पर , बसा बनारस धाम।
जयकारे शिव-शम्भु के, गूँजें आठों याम।।
गूँजें आठो याम , वहीं संकटमोचन हैं।
जिनकी महिमा देख , ठहर जाते लोचन हैं।।
स्वर्ग-प्राप्ति का नगर,लगे सबको मन भावन।
धुलते सबके पाप , भाव जगते हैं पावन।।

शिक्षा व आध्यात्म का , है यह पावन धाम।
इसीलिए है विश्व में , इसका ऊँचा नाम।।
इसका ऊँचा नाम , शिष्य सब पढ़ने आते।
बनकर वे सब योग्य, देश का मान बढ़ाते।।
लेते साधू- संत , यहाँ आध्यात्म- परीक्षा।
इसीलिए है उच्च , बनारस में हर शिक्षा।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

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विषय - शहनाई
12/09/19

गुरुवार
रोला छंद

जगमग पूरा भवन , सजा कोना- कोना है।
आज तो बेटी का , शुभ गठबंधन होना है।।
शहनाई की गूँज , बनाती मंगल - बेला ।
लगा हुआ है खूब , अतिथियों का तो रेला।।
शोभित बंदनवार , विवाह मण्डप में सुन्दर।
गाएँ मंगल गीत , सभी सखियाँ हिलमिल कर।।
छाया है उत्साह , सभी परिजन पुलकित हैं।
देने को आशीष , हृदय सबके हर्षित हैं।।
ले बाजा बारात , सुमुख वर द्वार पधारे।
कर मस्तक पर तिलक, मात ने पैसे वारे ।।
कर सोलह श्रृंगार, वधू आयी मण्डप में ।
लेकर फेरे सात , बंधी वह गठबंधन में।।
भर आँखों में अश्रु , चढ़ी डोली में बेटी ।
वार -फेर के लिए , ससुर ने खोली पेटी।।
मात -पिता का हृदय, हो रहा कितना भारी।
घर - आँगन से दूर , हो रही बिटिया प्यारी।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर


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