गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक

दिनांक ३०/१३/२०१९
दिवस सोमवार

स्वतंत्र लेखन
आया नव वर्ष लेकर शिशिर चीर प्रभात :
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मनारही धरणी हर्ष भरा उज्ज्वलित पर्व ,
बीस-बीस के आगमन पर गारही धरणी हर्षों का आलोक छंद ।
सहस्रदलों का शब्द अंधकार खण्डित होगा,
मानव मनो को चहुंदिशि से घेर रहा जो चक्रवात ,
धरती के तृण,कणो को केशर कुंज करेगा,
नव वर्ष का प्रेम मधुरिम प्रभात :
बीस-बीस की निधियाँ भरी लौ करेगी जीवन उद्धार ।
धरणी पर विचर रहे वाणी के धूम पंखभरे नर विषाद,
मानव अलियों से भरे बृन्द- बृन्द ,
नव वर्ष में धरती गाती हर्षों का आलोक छंद।
मन भावना शब्द वाणी का लहरा रहा विषाद,
धर्म जाती के तट डुबोने को विषफनौ का उत्पात ,
एक लव्य है राष्ट्र रक्षित को प्रयत्न रत रक्षायाय ,
मानव तिरती लपटों की शब्द वाणी को रहा तान,
उपज रही बीस-बीस की ज्योतिर्स्पन्दन भरी अलंद,
ज्ञान वर्धा की वाणी से भरती विस्व पटल पर भारतीयता स्पंदन ।
हिम के कण धरा मानव को भेदरहे,
हृदय चितवन को झीनरहे विषाद कण स्पंदन,
उन्नीस के संग विषैले कणों को भेद,
बीस-बीस में होंगे उजले पथ रंगीले ।
वर्षेगे प्रेम आभा के जीवन श्रृंगार ।
नर इंद्र के मष्तिष्क अंगारक पाटल से मोती सा चमकेगा भारतीय विकास का मकरंद ।
क्षीण होगी विपक्ष की विघटन रूपी ज्वाला से उपजी विषाद।
भारत भूमि पर मर्यादा की होगी नवनीत प्रात:
बीस-बीस में सत्कर्म के अर्जित शाखाओं की पुलकित प्रात :
आया नव वर्ष लेकर अपना शिशिर चीर प्रभात ।
नापाक अलक्तारण भावना मिटेगी,
भारत भूमि पर बीस-बीस में आयेगी हर्षित भावना की अलकंद प्रभात ।।
सभी के स्वर ताल होंगे बीस इक्कीस सुखद ।
धरणी-धरा की औ-अक्ष बजायेगी लय भाव स्वर ।
जीवन गति होगी रश्मि सौ सौरभ सजग,
बीस के कण-कण अक्षर- अक्षर होंगे अजर,
प्रगति का दीपक नभ में चमकेगा,
होगा धरणी पर हर्षित गीतों का नर्तन का अमिट स्पंदन ।
सौहार्द भरे दीपों का स्नेह अमर,
विष- विषाक्त ज्वलंत ज्वाला जायेगी जर ।
होगा मधुरिम प्रेम दीपों का अक्षर क्षार अजर,
अग्नि शलभों को प्रेम क्षार कर्ता एक,
अग्नि भरी सांसौ का मिटेगा कलिष वेष,
जीणक्षीण होगा विघटन ज्वाला कारी 
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दिनांक👉२८/१२/२०१९
दिवस 👉शनिवार
िषय 👉नश्वर
विधा👉 स्वैच्छिक
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नश्वर को लालषा बड़ी
खड़े कर्ता माटी के रंग महल,
नश्वर है नश्वर होने को सजाता धरती पर संसार,
धुवाॅ - धुवाॅ होता जो मोटी का पुतला धुवाॅ-धुवाॅ हो जाता अभिलाषा भरा संसार ! !
नश्वर नगरी में सुनसान सजाता रंग महल,
पंडित,मुल्ला,नाई,सूद्र सम हुए सभी जहाँ,
नश्वर वो माया भरा संसार,
देखा गुमान नश्वर थे लोग शम हुव़ी शांन सभीकी ! !

अटल मान सजाई उन्होंने यहाँ रंग भरी दुनियाॅ,
मैं -मेरा होते हुए भी
वो घर उसका, बस वही स्थान नश्वर माया नश्वर इन्सान !
छोड़कर आशा,अभिलाषा के महल चौबारे,
हुआ जो धुवाॅ -धुवाॅ वो नश्वर इन्सान ! !

आह ना कराह, बस,
माटी से उठती लौ ,
क्या अजब-गजब वक्त !
लपटों से थे राख के फूल उड़रहे,
नश्वर उठती लौ की सेज में इक नश्वर संसार !
धुवाॅ -धुवाॅ लपेटे खुदको अटल मान उड़ता वो नश्वर इन्सान !!
नश्वर ता में
मैं और मेरा छोडगया
खड़ा तमाशा देखरहा
उसीका चलता-फिरता
नश्वर मानव रूपी हर इन्सान!

गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
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आज का विषय "नेतृत्व"
दिनांक २७ /१२/२०१९

दिवस शुक्रवार
विधा स्वैच्छिक "माँ"शारदे का नेतृत्व
"माँ" "शारदे" स्वर्ण शब्द उभारे "हृदय"भाव़ो के मंड़ल पर,
विचलित थी प्राण विहीन सी यह देह,
मध्यम गति से उदयमान होना शब्द प्रकाश बन "माँ" शारदे का ।
आगमन हुआ सुन्दर सुप्रभात,
अज्ञान की रजनी धूमिल होरही ज्यों विदा होरही तारों की बारात,
"माँ"शारदे का नेतृत्व अटल,
निहार रही सरिता एक टक अटल शांत अपने स्थल,
"माँ" के नेतृत्व से धीरे-धीरे खुलरहा मेरे हृदय का पटल ।
भोर ऐसी,निशांत खड़ी वृक्षपात,
सुनहरी हो प्रेणा भरी बात ।
अज्ञान की कालिमा होरही दूर,
धरणी पर रंगित हर कली हर्षित हुव़ी भरपूर ।
नेतृत्व लिए "माँ"की वात्सल्यता विराजमान सर्व के घर,
अब भय नही अज्ञानता चली गई उधर,
नही दिखता निर्जन,हर देह की भावना हुव़ी सुन्दर ।।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक हल्द्वानी नैनीताल
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आज का विषय
"हसीं मौसम"
दिनांक👉२६ /१२/२०१९
दिवस👉गुरूवार
विधा👉स्वैच्छिक
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हर हसीं का हसीं मौसम,
बहु रंगौ की कतार का भरता रंग ,
ललाट पर चमकता स्वर्ण हसीं मौसम ।
फूल -फूल प्रेम भरी मधुर गुंजन,
भारत धरणी का अलबेला रंग भरा हसीं मौसम ।
कभी दुग्ध सौ श्वेत हिम श्रृंग,
पतझर वसंती बयार ग्रीष्म ताप सावन फुहार
दिखलाता हसीं मौसम ।।
लालों के ललाट को राष्ट्र रक्षित कर्ता हसीं मौसम,
धन्य भारत वसुंधरा अनेको पुष्पो को खिला अखंड एकता का पाठ पढ़ाता हसीं मौसम ।।

गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक हल्द्वानी


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