Tuesday, January 28

"बसंत।/ऋतुराज"'29जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-640
बसंत।/ऋतुराज
२९/०१/२०२०@०४:२३
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ऋतुराज बसंत अगुवाई में।
सकल धरा सुसज्जित है।
सरसों पीत तीसी नीलाभ है।
आम्रपल्लवित पुरवाई बयार।
गेहूं बाली कृषक खुशहालहै।
भारतीय संस्कृति संस्कार में।
पाटी पूजन विद्यारंभ मूहूर्त हैं।
गुरुकुल छात्र सम्मीलन आज।
सदाचार संस्कार शिक्षा आरंभ।
गुप्त नवरात्रि में पंचमी तिथि।
कामकल्लोल कमोद्दीपन छटा।
सकल वसुधा पल्लवित पुष्पित।
शुभाशया ऋतुराज बसंत पंचमी।
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स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा

29-01-2020
विषय:-ऋतुराज
वि
धा :-ताटंक छंद

प्रखर बोल बोली कोयलिया , चकित हुआ मन है मेरा ।
महकी मंजरि से बौराई , डाल लिया वन में डेरा ।।

हवा बसंती वन में पहुँची , पिक अगुवानी में गाये ।
दहक उठें किंशुक वन के जब , ऋतुओं की रानी आये ।।

पुष्प खिले ऋतुराज देख कर , दूब धूप में मुस्काई ।
खिले देख डैफोडिल गेंदा , पीली सरसों हर्षाई ।।

पंछी बजा रहे मंजीरे , सुनते सुर उनके न्यारे ।
पंखों में सुरताल आ गया , वाद्य बजाते हैं सारे ।।

लगे गूँजने भौंर तितलियाँ ,मानों चारण हों गाते ।
तरु शिखरों पर फुनगी हँसती , देखा मनसिज को आते ।।

शोभा अनंत चहुँदिशि छाई , मंजरि आमों पे झूले ।
जंगल में महुआ गदराया , भँवरे गलियों को भूले ।।

शीत ऋतु अवसान है करती , वर्षा फिर भी आ जाती ।
बढ़ जाती ठिठुरन न्यून सी , ऋतु बसंत है छा जाती ।।

पंचमी को माँ शारदा की , ऋतुराज करे है पूजा ।
रंग बिरंगा पुष्प ग़लीचा , बिछाये न कोई दूजा ।।

वीर चूम कर फंदा गाते , रंग दे बसंती चोला ।
ऋतु बसंत ने अमर प्राण में , केसरी रंग था घोला ।।

फूल फूल चहुँदिशि में दिखते , मन मधुबन सा हो जाता ।
दिखती समरसता कुदरत में , मन निधिवन में खो जाता ।।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा

विषय ऋतुराज, वसंत
विधा काव्य

29 जनवरी 2020,बुधवार

ऋतुओं का राजा कुसुमाकर
आगत पर भव्य स्वागत है।
किसलय कुसुम कलियां नव
प्रकृति का हर कण जाग्रत है।

कलियां चटके सुमन खिलते
नव पुष्पों पर भ्रमरों का गुँजन।
पीली सरसों नीली अलसी रंग
अति शोभनीय है प्रिय उपवन।

कूहू कूहू कोयलिया बोले
शस्यश्यामल धरा सुशोभित।
तीर तीक्ष्ण कामदेव बरसाता
मन हो रहा है अति उद्वेलित।

मलय पवन के चलते झौंखे
किसलय कुसुम शाख हिले।
गेंदा गुलाब चमेली मोगरा
पुष्कर मध्य में कमल खिले।

प्रकृति की शोभा अपरिमित
ऋतुराज सुवास सुवासित।
हरियाली शौभित धरती पर
हर्षित है जन मन उल्लासित।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा-छन्द मुक्त
विषय-ऋतुराज


पात पुराने झड़ गए सारे
नव किसलय ने ली अँगड़ाई
नन्दन कानन मद में डूबे
ऋतु बसन्त की अब है आई
आम्र वृक्ष पर बौर लदी हैं
कोयल मीठे गीत सुनाए
खेतों में पीली सरसों भी
लहक-लहक कर खूब रिझाये
सूरजमुखी ,गुलाब ,गेंदा से
भरी हुई उपवन की क्यारी
कुंजों में फूलों की शोभा
हर दिन लगती मन को प्यारी
भँवरे गुंजन करते डोलें
मधुप सँग तितली भी डोले
मंद मलय मन हरती पल पल
टेसू महक साँस में घोले
प्रकृति सजी दुल्हन सी बैठी
कामदेव ने वाण चलाये
नर-नारी उर बेध दिए
मन प्रिय-मिलन की आस जगाए
कोयल कुहुक-कुहुक करती
प्रिय को अपने पास बुलाये
नील गगन में उड़ते पंछी
दूर क्षितिज तक पंख फैलाये
पीली चुनर ढकी धरा पर
धरती शरमा कर मुस्काये
लो ऋतुराज चला आया अब
महक फिजाओं में फैलाये

सरिता गर्ग
" बसंत..."

अंत: स्थल में किधर किधर ,

अंतः स्थल में इधर-उधर ...!
मस्त पुरवाई की अंगड़ाई है ,
पूर्वी बसंत के भीतर भीतर !!

फिक्र करने वालों की रीति रिवाज भी वैसे ही ।
भीतरी धड़कन की धीमी आवाज भी वैसे ही ।।

हालात देखकर उसने मेरा ...।
मस्त हवा के झोंकों ने मुंह फेरा ।।

अंतः स्थल में किधर किधर ,
अंतः स्थल में इधर-उधर ...!
मस्त पुरवाई की अगंड़ाई है ,
पूर्वी बसंत के भीतर भीतर !!

आवाज सुना जाओ वो चेहरा दिखा जाओ ।
आवाज सुना जाओ चेहरा वो दिखा जाओ ।।

इधर आओ मेरे करीब आओ कहते-कहते ।
ठंडी हवा के झोंकें हल्के हल्के बहते बहते ।।

अंत: स्थल में किधर किधर ,
अंत: स्थल में इधर उधर ...!
मस्त पुरवाई की अगंड़ाई है ,
पूर्वी बसंत के भीतर भीतर !!

फिक्र करने वालों की रीति रिवाज भी वैसे ही ।
भीतरी धड़कन की धीमी आवाज भी वैसे ही ।।

हालात देखकर उसने मेरा ...!
मस्त हवा के झोंकों ने मुंह फेरा !!

मनोज शाह 'मानस'
सुदर्शन पार्क ,
मोती नगर , नई दिल्ली
विषय - ऋतुराज/वसंत
प्रथम प्रस्तुति


अब न कोई चाहत है
अब न कोई रंग है।
जिस दिन तुम आ जाओ
उसी दिन वसंत है।

मेरी हर इच्छाओं का
बस वही एक अंत है।
था कभी दुनियावी मन
अब तो मन ये संत है।

ऋतुराज का हुआ आगमन
एक टीस मन में ज्वलंत है।
तुम नही आ पाओगे
बस रहना वही रंज है।

यूँ तो आम मंजरी होगी
सरसों से गेहूं की जंग है।
किसान का मन झूमेगा
नाचेगा अंग-अंग है।

पर मेरे सपनों की रानी
का न होगा मुझसे संग है।
मैं बेचारा गम का मारा
दिखूँगा 'शिवम' बेरंग है।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 29/01/2020


29/01/2020बुधवार
विषय-ऋतुराज/वसन्त

विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
तन-बदन
आग लगा चल दी
हवा वासन्ती👌

तन-मन में
मादकता घोलते
आमों के बौर👍

बसन्त छाए
मन बहक जाए
आम्र बौराते💐

बसन्त राग
छेड़ता मधुमास
प्रकृति सङ्ग👌

छाया वसन्त
लद गया ठूंठ भी
जागी कोंपलें👍

छाया वसन्त
जब कूकी कोयल
हिया घायल💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
दिनांक : 29 .01. 2020
दिवस : बुधवार

विषय : ऋतुराज

ऋतुराज

झूम-झूमकर नाँचे तितली,संगीत मधुकर की साज का।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

रंग बिरंगे फूल खिले हैं ,खेत , बाग सब महक रहे हैं ।
तीतर,मोर ,पपीहा ,तितली,शाखा -शाखा चहक रहे हैं।।
क्या कहूँ लिखा नहीं जाता,ये अद्भुत नजारा आज का ।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

जीव जंतु मानव सब प्राणी,जिक्र कर रहे हरियाली का।
बसंत ऋतु संदेशा लाई है धरती पर खुशहाली का ।।
पैदावार फ़सल की कहती,घर होगा भरा अनाज का ।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

सभी पुलकित वन,उपवन हुए,राग हवा ने दिया है छेड़।
मंद - मंद हँसती है कलियाँ ,फसलों के संग नाचें पेड़ ।।
अली कली को दे संदेशा,सभी खुशियों के आगाज का।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

मौसम में बदलाव हुआ है , नित बसंत ऋतु के आने में।
मधुमक्खियाँ वयस्त बहुत हैं,भँवरों संग आज गाने में।।
आनंद लेते सब वन्य प्राणी,इस मौसम खुशमिजाज का।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
29/01/2020
शीर्षक - बसंत

विधा - हाइकु

1-
शारदा हस्त,
ज्ञान, बुद्धि प्रसार,
जन्म बसंत ।
2-
माँ वीणपाणी,
सप्त सुरों की वाणी,
पर्व बसंत ।
3-
स्वर्णिम धरा,
सरस्वती वंदन,
ऋतु बसंत ।
4-
निढाल वृक्ष,
तन में क्यों स्पंदन ?
स्पर्श बसंत ।
5-
हर्ष अनंत,
सृष्टि का स्वयंवर,
वर बसंत ।
6-
नभ निनाद,
पुलकित संसार,
झूमा बसंत ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

शीर्षक ... ऋतुराज/बसंत
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
**
शिशि
र तिमिर ढलने लगा, उडने लगी पतंग।
आये है ऋतुराज धरा पर मन में उठे तरंग।
**
पीली-पीली सरसों खिलती पवन प्रीत आनन्द,
कामदेव ने करवट ली है मौसम हुआ मलंग।
**
भानु की किरणों ने कहाँ प्रिय आओ अब संग।
शेर का मन चंचल हो बैठा प्रीत का जगे उमंग।
**
अंग बसंती रंग बसंती पुरवा बहे है बन्सत,
आओ न प्रिय आज बसंती,रग दे प्रीत का रंग।
**

शेर सिंह सर्राफ
ऋतुराज/वसंत
नमन मंच भावों के मोती। गुरूजनों मित्रों।


फूलों की खुशबू लिए,
आ गया वसंत।

गाने लगी कोयल,
सब पर छाया वसंत।

जंगल में मोर नृत्य,
करने लगे।

पपीहा की पीहू-पीहू से,
गूंजा वसंत।

आम, लीची, महुआ में,
मंजर आ गए।

मंजरों से लदकर वो,
झुमने लगे।

उनकी खुशबू से,
महका वसंत।

फूलों की खुशबू लिए,
आ गया वसंत।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
दिनांक 29-01-2020
विषय- ऋतुराज/वसंत


देखो झूम रही है प्रकृति ,
लो आया मधुमास बसंत ।
कुसुमित सुरभित है वसुधा,
मधुर मकरंद है दिग दिगंत ।

किसलय भी मुकुलित हुए,
चहुँदिश शोभा श्री है छाई ।
कोकिल कुहू कुहू कूकती,
कुसुमाकर छटा हरषाई ।

रंग-बिरंगे पुष्पों पर अब,
भ्रमर कर रहे हैं गुंजार ।
मधुर पंखुड़ियों में बंद ,
भ्रमर का मधुरिम संसार ।

शीत से सकुचित धरती का,
आंचल अब देखो मुस्काया।
धुंध कुहासा छँट गया सारा,
दिनकर ने प्रकाश बिखराया ।

दिशाएं भी प्रमुदित हो रही,
वसुधा का आंचल लहराया ।
शीतलहर से विह्वल जग ने ,
उष्मा का संचार है पाया ।

विटप पादप वल्लरियों पर,
ऊर्जस्वित नवजीवन आया ।
अरुण हरित कोमल पल्लव से ,
बदल गई शाखों की काया ।

खेतों में लहराती फसलें,
सरसों ने हल्दी रंग चढ़ाया ।
धानी चुनरिया ओढ़े धरती,
निर्मल अंबर मन को भाया ।

अबीर गुलाल की मस्ती है,
सखियां भी गाए फाग राग।
मनभावन बसंत है आया ,
मन में भरा होली अनुराग ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
हे_हंसवाहिनी !हे_माँ_सरस्वती !
हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती!
ज्ञान का वरदान प्रदान कर माँ
हम सब हैं बालक तेरी माँ
ममता की छांव में शरण दे माँ
अहंकार अंकुरित न हो मन में
सदा सद्बुद्धि प्रदान कर माँ।।

हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती!
अज्ञानता दूर कर दे माँ
ईर्ष्या न करुँ कभी किसी से भी
सुंदर विचार मन में भर दे माँ
राह भटक जाऊँ कभी तो
सही राह दिखाना माँ तुम।।

हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती!
संपूर्ण जग का कल्याण करो माँ
हैं जो निर्धन और बेसहारे उनका
सहारा बन जाओ तुम माँ
उनकी पीड़ा दूर कर दो तुम माँ
हाँ माँ उन बेसहारों का सहारा बन माँ।।

हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती!
है बारम्बार प्रणाम तुम्हें माँ
हाँ आज हैं जो भी सफल
उनकी सफलता के पीछे है
तुम्हारा अतुलनीय योगदान माँ
हाँ माँ है बारम्बार नमस्कार तुम्हें।।

©कुमार संदीप
मौलिक,स्वरचित
ग्राम-सिमरा
जिला-मुजफ्फरपुर
राज्य-बिहार

आगमन हुआ ऋतुराज का
प्रकृति के अनोखे साज का
श्रँगार कर आई नायिका
प्रकृति बन गई मोहक गायिका।

बजी हर ओर निराली तान
कोयल का गूँजा सुन्दर गान
भौंरे के मन में जागे प्रान
हुआ मधुर प्रीत का आह्वान।

प्रकृति ने पीली चादर ओढी़
पगडण्डी प्रीत की ओर मोडी़
पत्ते भरमाये फूल मुस्कराये
तितलियों ने अपने पर फैलाये।

मन्मथ ने रति को दिया स्नेह
बरसाया अपने प्यार का मेह
बही उमंगों की एक नई धारा
सब कुछ हो गया प्यारा प्यारा।

माँ सरस्वती की वीणा के गूँजे स्वर
मन्त्र जीवन के निकले निखर निखर
भौतिकता से अध्यात्म पथ तक
ज्ञान सूत्र हो उठे मुखर मुखर।

मेरा बसन्त

जब होने लगे जीवन का अन्त
दर्शन देने की कृपा करना अनन्त
जन्म जन्मों के सँवरेंगे
मेरे फिर अतृप्त बसन्त
समर्पण की मुद्रा मे
सुमित्रा नन्दन पन्त
हाँ सुमित्रा नन्दन पन्त।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि
ऋतुराज / वसंत
सादर मंच को समर्पित -


🏵🍀 दोहा गज़ल 🍀🏵
******************************
🌹🌻 वसंत 🌻🌹
🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺

नयनाभिराम चूनरी , सरसों फूली पीत ।
अमुआ बौरे बाग में , गूँजत भँवरे गीत ।।

ऋतु वसंत का आगमन ,खिली लता बहुरूप ,
सतरंगे गहने सुमन , सुरभि सुधा संगीत ।

कोयल कूके बाग में , चहुँदिश नाचत मोर ,
मन-मयूर विचलित ठगा , पिय बिन जियरा रीत ।

वासंती चूनर रँगी , लँहगा , चोली साज ,
बिन हरजाई सून है , कंटक चुभन प्रतीत ।

आ जाओ मन मीत अब , पथराये हैं नैन ,
तड़पत जियरा रात-दिन , होय न वक्त व्यतीत ।।

🌹🌻🍀🌺🌴

🌷☀️**....रवीन्द्र वर्माआगरा
विषय-बसंत।
्वरचित।

ले के शीत अन्त,
आ गया बसन्त।
लो छा गया चहुं ओर,
मधु-मधुर बसन्त।।

खिली है धूप अनमनी
मेघों का वनगमन,
नभ में मगन अगन।
लो छा गया चहुं ओर----

नव कोपलें खिलीं
भंवरे फिरें अलि
हर कली-कली।
लो छा गया चहुं ओर----

मृदु-मृदू पराग,
मधुमास की है आस
तितलियों के रंग।
लो छा गया चहुं ओर------

वन उपवन मुस्काय,
गूँज उठा सुकोमल
कोयल का मृदु राग।।
लो छा गया चहुं ओर----

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
तिथि -29/1/2020/बुधवार
विषय -*ऋतुराज-बसंत*
विधा-काव्य(30)
वंदना,

हे मात शारदे करें आराधना कुछ तो वर दीजिए।
ज्ञानचक्षु खुलें मातु तुम ऐसा ही कुछ कर दीजिए।
बहे बसंती वयार यहां वातावरण शुद्ध कर दीजिए।
हे वीणापाणी ज्ञानदायिनी शुभ ही शुभ कर दीजिए।
अक्षत,चंदन ,पुष्प समर्पित करते मां श्री चरणों में।
वंदन अभिनंदन करें समर्पण मां शारदे चरणों में।
ऋतुराज का शुभागमन यहां शीत ऋतु का अवसान।
रत प्रकृति सरस्वती आराधना उर करता गुणगान।
पीत वसन ओढ़कर वसुधा अभी पीतांबर में लिपटी।
सरसों फूली मां आराधन धरनी हरीतिमा सिमटी।
मिष्ठान पीतरंग तुम्हें अर्पित वस्त्राभूषण पीले।
जय सरस्वती मात आज समर्पित पुष्पाभूषण पीले।
नहीं कर पाएं हम साधना हे हंसासिनी वरदा।
फिरभी शारदा दयादायिनी मां शुभकारणी सुखदा।
सुर लहरियां वहे यहां सरस्वती सप्तसुरों की गंगा।
रंगारंग समारोह भारत में वहे बसंती गंगा।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
जय-जय श्री राम राम जी

ऋतुराज वसंत

सर्द हवाओं का रुख देखो बदलने लगी है
मौसम पर असर देखो दिखने लगी है
बसंत के आने की साज बजने लगी है
चारों ओर खुश मिजाजी खिलने लगी है
फूलों की खुशबू से चारो दिशा भी महकने लगी है
देखो सरसों भी पीली चुनर ओढ़ नाचने लगी है
ऋतुराज के आते ही हर दिशा देखो महकने लगी है
चारों और फसलें भी लहलहाने लगी है
डाली डाली पर गुलाब,पलाश के साथ गेंदा
भी देखो खिलखिलाने लगी है
फूलों पर लो फिर भंवरों की आहट आने लगी है
कानों में मीठे गीत गुनगुनाने लगी है
हां ऋतुराज वसंत की आहट आने लगी है
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई

भावों के मोती
विषय-- ऋतुराज/ बसंत
_________________
हे विद्या,बुद्धि दायनी
कृपा का शीश हाथ हो
माँ निर्मला मृदुभाषिणी
वेद की तुम स्वामिनी
हे पंकजा मनभावनी
तुम हंस की हो वाहिनी
हे वागेश्वरी मृगलोचनी
माँ तार वीणा छेड़ दो
हे विद्या,बुद्धि दायनी
कृपा का शीश हाथ हो
हे रागेश्वरी सिद्धेश्वरी
माँ ऐसा तू वरदान दे
गीत छंद तुमसे बने
मन के हर बंधन हटे
ज्ञान का प्रकाश भर दो
माँ वीणा वर दायनी
बसंत की आभा अलौकिक
बाँसुरी की तान हो
हे कमलासना शुभ शोभिता
हस्त पुस्तक धारिणी
हे सौम्यरूप,चिरयोगिनी
करुणामयी माँ शारदा
स्वीकार कर माँ वंदना
सकल सृष्टि एक हो
कृपा का शीश हाथ हो

***अनुराधा चौहान*** स्वरचित

विषय - ऋतुराज/ वसंत
29/01/20
बुधवार
मुक्तक

ऋतुराज ने अब दी है दस्तक , हम रंग जाएँ उसके रंग में।
सरसों के पीले चंवर डोल भरते उमंग अब जन-जन में।
वन -उपवन की शोभा अनंत करती है मंत्रमुग्ध सबको-
धारण कर पीले सुगढ़ वस्त्र सब जन डूबें उसके ढंग में।

सरसों के पीले फूलों से आ रही सहज तैलाक्त गंध।
चहुंओर बिछी पीली चादर,बिखरीअतुलित-अनुपम सुगंध।
कोमल पत्रों से आच्छादित वन-उपवन के अगणित पादप-
रवि की स्वर्णिम किरणों से हैं पीताभ पुष्प शोभित अमंद।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं🌻🌻🌻🌻🌻
वसंत
विधा- चोका
ऋतु वसंत
पुलकित दिगंत
खिली कलियाँ
झूमे,अठखेलियाँ
भरे पराग
सुवासित है बाग
रस रंजन
भ्रमर का गुंजन
बना बावला
रस पी मतवाला
बाजे मृदंग
अंग-अंग अनंग
प्रेम आलाप
हृदय मृदु थाप
नैनों में लाज
चहुँ खूब साज
रसिक ऋतुराज
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

दिनांक-29/01/2020
विषय- ऋतुराज

देखो शरद ऋतु है आयी।

नवल रूप बिखरा है भूवि पर

शरद का नील त्रिलोचन है आई।

आफताब निकला गगन पर

प्रभा किरन कमसिन लहराई।

ओंस की बूँदें गिरे दूबो पर

मणि वाले फणियो का मुख

विहवल मन मंद-मंद अकुलाई।

सरवर का शीतल जल मलय समीर

धवल किरणो को ओढे इठलाई।

कलरव चिडियों का कोलाहल

पड़ने लगा मधुर सुनाई।

मौसम संग उपवन ने ले ली

नूतन अगड़ाई।

खेतों में पीली सरसो

फूली है विहलाई।

गुंजित भौंरो के उपर भी

चढी खुमारी है छाई।

धान के पौधे लदे बालियों से

धीरे-धीरे बहती पूरवाई।

सन-सन चले हवा

काँपता तन,मन घबराई।

साँझ के पंक्षी चले घोसले को

लिये पस्त हौसले मन झुँझलाई।

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक- 29/01/2020
विषय- ऋतुराज/वसंत
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
ऋतुओं का राजा है वसंत,
कहलाता 'ऋतुराज' वसंत,
प्रकृति की छटा निराली,
चारों तरफ दिखे हरियाली,

मौसम करवट बदलने लगा,
शीत को कम करने लगा,
सरसों खेतों में लहराये,
पीली चादर मन को भाये |

कोयल हो रही मतवाली,
कूँक रही वो डाली-डाली,
मोर, पपीहा नाचे-गायें,
वसंत ऋतु सबको भाये |

मां शारदे को करें नमन,
खिल गया प्रकृति का चमन,
विद्या धन सबको मिले अपार,
माँ का सदा रहे आशीर्वाद |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

दिवस - बुधवार
शिर्षक - ऋतुराज बसंत
आयोजन - स्वतंत्र
विधा - कविता
----------------------
🌱 बसंत 🌱
जब ठिठुरन हवा हो धुंध अनंत।
तब समझो ? यही है बसंत !

जब पेंड़ लगे खाली-खाली,
जब वस्त्र हीन हुई डाली,
जब संगम करे उदय अंत,
तब समझो ? यही है बसंत !

जब धूप मिठास-नमकीन लगे,
जब आम पे मोजरा हसीन लगे,
जब कोंपल-कोंपल हो सृजंत,
तब समझो ? यही है बसंत !

जब ठिठुरन हवा हो धुंध अनंत।
तब समझो ? यही है बसंत !
सन्तोष परदेशी

* विषय - ऋतुराज
* विधा -मनहरण घनाक्षरी छंद
* वार -मंगलवार 28/01/20

मनहरण घनाक्षरी छंद 8 8 8 7 वर्ण पदांत लघु गुरु

प्रकृति का राज बड़ा
इंच- इंच जिसे गढ़ा
मौसम के शहंशाह
आते ऋतुराज हैं ।

शरद अब जा रहे
गरमी को ला रहे
मिलन शर्द गर्म का
ऋतु पर नाज है ।

दिनकर दिव्य हुए
दिन-दिन भव्य हुये
किरणों में बांकपन
मौसम का राज है ।

वसंत महाराज हैं
सुहावना आगाज हैं
बहुत ही प्यारा लगे
वाह क्या अंदाज है ।।

** 2 **

पीत पात झर गये
हरे-हरे भर गये
ठुमक ठुमक चलें
प्यार मनुहार है ।

सेमरा पे सेहरा है
खिला-खिला चेहरा है
जामुन सुहागिन सी
प्रकृति व्योहार है ।

पलास है खिले- खिले
रतनारे गले मिले
लाली छाई जंगल में
वन में त्यौहार है ।

तालन में तलैया में
खेतन में मड़ैया में
बगिया में बगीचा में
वसंत बहार है

स्वरचित
रामगोपाल 'प्रयास 'गाडरवारा मध्य प्रदेश

Damyanti Damyanti 
विषय_ ॠतुराज/बसंत |
ली मौसम ने अगडाई
गई शिशिर सर्द ,पतझड भी

लो आया ॠतराज बसंत
नव सृजन प्रस्फुटित नव पल्लव |
धरती सजने लगी नवयौवनासी
हरी धानी चुनरिया सजी हे
आम मे आई सुनहरी मंजीरी|
पीली पीली सरसौ फूली
गेहूँ बाली हुई सुनहरी |
सब पेड पौधे फूले फले
आया अनंग लेने मकरंद |
तीतली भवरे करे मधुर गूजंन
कोयल कूहुक उठी कूहू कूहू
वातावरण स्वच्छ सुवासित मन भाये |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

29/1/20
विषय-बसंत


स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी री।

आवो सखी आई बहार बसंत
चहूं और नव पल्लव फूले
कलियां चटकी
मौसम में मधुमास सखी री ,

तन बसंती मन बसंती
और बसंती बयार
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भरमाऐ सखी री ।

धानी चुनर ओढ के
धरा का पुलकित गात
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस सखी री,

स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी री ।।

आवो सखी आई बहार बसंत ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी ।

दिन, दिनाँक - बुधवार, 29/1/20
छंद-विष्णुपद(मापनी मुक्त मात्रिक)

विधान-26मात्रा,16,10पर यति अंत वाचिक गा
**
ऋतुराज

मौसम ने अब ली अँगड़ाई,शीत प्रकोप घटे,
नव विहान की आशा लेकर,अब ये रात कटे।

लगे झूलने बौर आम पर,पतझड़ बीत रहा ,
गुंजन कर भौंरा अब चलता ,है मकरंद बहा।

उगता सूरज लिये लालिमा ,नभ में चाँद छिपा ,
तमस दूर कर करे उजाला ,दिनकर करे कृपा।

पीली चूनर ओढ़े धरती,कलियां मुस्कायीं
प्रकृति छेड़ती मधुर रागिनी,खुशियां हैं छायीं।

बासंती हो तन मन झूमे,नाच रही सखियाँ,
सजा रहे बेटी की डोली ,भर आती अँखियाँ।

कोयल कुहुके डाली डाली,मुग्ध बयार चले,
झूम झूम के प्रेमी देखो मिल रहे हैं गले।

पूजते विष्णु महेश तुमको,माँ हंस वाहिनी,
बुद्धि ज्ञान की देवी हो तुम,श्वेत वसन धरिणी।

बसंत पंचमी शुभ दिवस में,आदि ज्ञान करिये,
मातु शारदे आशीष मिले,मान सदा रखिये ।

स्वरचित
अनिता सुधीर



विषय : ऋतुराज, वसंत
विधा : हाइकू

तिथि : 29. 1. 2020

हर्ष संचार
ऋतुराज बहार
गाओ मल्हार।

वासंती हर्ष
फैला है चहुं ओर
सांझ और भोर।

पीली चूनर
पर्यावरण ओड़ी
अखियां चौड़ी।
--रीता ग्रोवर
-स्वरचित

29/1/20

आये ऋतुराज देखो बहार के दिन है।
महक उठा जग जरा बहार के दिन है।

आगमन कर रही पहन पीली चुनरिया।
गगन देख मगन हुआ बहार के दिन है।

कली कली खिल उठी भ्रमर भी बहक उठे।
मधुर गीत गान कर रहे बहार के दिन है।

नवीन पात झूमते समीर सङ्ग है खेलते।
नही रहे वो पत्ते विहीन बहार के दिन है।

हवाये भी है झूमती नशे मेंबहकी बहकी सी
कोयल भी गीत गा रही बहार के दिन है।

ऋतु राज छ। गया फागुन भी लो आ गया।
लौट आओ न ओ सनम बहार के दिन है।

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय : "वसंत/ऋतुराज"
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
फैलाता रंग
हवाओं की डोली पे
आया वसंत
(2)
छूए वसंत
धरा ले अँगड़ाई
हवा बौराई
(3)
चहके मन
ऋतुराज आँगन
पीत सुमन
(4)
खिचे मधुप
वासंती उपवन
चुम्बक पुष्प
(5)
उम्र है अंक
मन की डाल पर
बैठा वसंत
(6)
मद से भरा
ऋतुराज का स्पर्श
महकी धरा

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)

विषय-बसंत

आज परम पावन "बसंत पंचमी " के शुभ अवसर पर माँ शारदा की वंदना,,,,
चामर छंद
÷÷÷÷÷÷
212121212121212=23 ( मूल छंद पर आधारित ,वार्णिक )
गीतिका
~~~~~~
शारदा वंदना
**********
🌿🥀🌿🥀🌿🥀🌿🥀🌿🥀🌿
*******************************
शारदे विशारदे ,,,,सुकाव्य में निखार दो ।
शब्द भाव गम्य हो , सुलेखनी सुधार दो ।।
***
मातु ज्ञान -देवि हो सुज्ञान दान दो मुझे,
शीश पे अशीष दो , सनेह-भाव सार दो ।।
***
ज्ञान दृष्टि दीजिए विधा वरा सुभासनी,
मानसी कृपामयी , सुतीव्र बुद्धि धार दो ।।
***
लेखनी,,लिखे सदा हितोपदेश के लिए,
कामना सदैव मातु ,,,साधना प्रसार दो ।।
***
मूढ हूँ विमूढ हूँ हिया -तमो भरी निशा
देवयानि साधिका ,प्रबोधनी विचार दो ।।
***
प्रेम-वीण” बाजती,पुकारती सुहासनी,
रागनी सुघामयी, सुगीत -गान प्यार दो !!
********************************
🌿🥀🌿🥀🌿🥀🌿🥀🌿🥀🌿
****
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित ( गाजियाबाद)

विषय-ऋतुराज/बसन्त
दिनांक--29.1.2020

विधा --दोहे

1.
नव कोपल ,नव सृजन की, बासन्ती है वात।
बसंत पंचमी दिन है, जन्म शारदे मात ।।
2.
आँगन पलाश पुष्प हैं, पीले वन्दनवार।
मन उमंग तन सुरसुरी, बहे बसंत बयार ।।
3.
प्रकृति नटी की गोद में, विकसित नव मधुमास।
ये बसंत की डगर है, जीवन का उल्लास।।
4.
महुए की खुशबू उड़ी, पागल हो गए वृन्द।
बासन्ती बयार बही, झटपट बनते छंद।।
5.
जंगल जंगल में मची, बसंत बयार धूम।
कलम ' हितैषी 'की चली, भारत भू को चूम ।।

*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551

विषय- ऋतुराज
दिनांक २९-१-२०२०


बसंत ऋतु आगमन से ही,धरा सौन्दर्य निखरता है।
ऋतुराज आते ही,बागों में बहार आलम छाता है।

मन भावन मौसम बसंती ही, ऋतुराज कहलाता है।
सर्दी गर्मी आभास नहीं,मौसम सुहाना हो जाता है।

पेड़ों के पत्ते झरते ही,हर वृक्ष नव पल्लव आता है।
अंबुआ डाल कोयल कूहुक,मन आनंदित होता है।

बासंती बयार धरा,चहुँओर खुशी आलम छाता है।
माँ शारदे वंदना,सारा मौसम सुहाना हो जाता है।

विशाल धरा खिले,अलि कलि संग गुंजन होता है।
ले नहीं साध नया रंग,हर वर्ष ही ऋतुराज आता है

वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक - 29/01/2020
विषय - बसंत


आया बसंत का ऋतु रे सखी,
मेरा मन भी हुआ प्रफुल्लित ,
सुंदर पुष्प खिले उपवन में ,
सबके मन को करे आल्हादित ।

खेतों में पीले सरसों फूले ,
जैसे धरती माता करे श्रृंगार,
हरे- हरे पत्ते भी अब जैसे ,
झड़ने को हो गये तैयार।

माँ सरस्वती पिताम्बरी धारे,
करती है सुरीली वीणा वादन ,
सभी को देती विद्या बुद्धि ,
ज्ञानी भी शीश नवाये चरण ।

माँ तु तो पुस्तक धारिणी है ,
मैं तो स्वर और शब्द से हीन हूँ ,
कंठ तेरी बसे हैं रागरागिनी ,
मैं तो इन सभी से दीन हूँ।

यौवन भी इठलाती आयी,
मन में पिया मिलन की आस,
प्रेम का प्याला हर कोई पीता,
फिर भी रहता प्रेम का प्यास ।

दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छ. ग.

तिथि:-29/01/2020
विषय:- ऋतुराज
विधा:- छंद

आवाज मुझे तुम देते हो,
कोई जादू सा छा जाता है...
चाहे कोई भी मौसम हो,
ऋतुराज पास मुस्काता है...
कि सर्द धूप में आ जाती है
तपिश तुम्हारी बोली से...
ठूँठ में जैसे नव-पल्लव हो
आस पनप सा जाता है...
फिर से खुशबू घुल जाती है
ठहरी हुई हवाओं में...
प्रेम भरे अनुरागी मन का
राग छलक सा जाता है...
आ जाते हैं फिर से वो दिन
वही रूप श्रृंगार लिए...
मान लिए मनुहार लिए
वो प्यारे दिन लौट आते है...
छेड़ रही हो मुझको जैसे
कोयलिया की तान लगे...
पास हो तुम तो मेरे मन का
तार खनकता जाता है...

स्वरचित"पथिक रचना"

विषय-ऋतुराज/वसंत
विधा-छंदमुक्त


तरु-डालों पर,
फूलों की बेलों ने,
झूला बनाया है ।
आया-आया सखी !
वसंत आया है ।।
रंगीली धरा-सुंदरी ने,
सरसों के फूलों का,
आँचललहराया है।
आया आया सखी !
वसंत आया है।।

गरमाई बयार ,महका पलाश,
बौराये आम की मादक ,
सौरभ ने मन भरमाया है।
आया आया सखी !
वसंत आया है।
कोयल कूक उठी, एक हूक उठी
सतरंगी फूलों में मानो,
इंद्रधनुष मुस्काया है ।
आया आया सखी !
वसंत आया है ।।
यह ऋतु है बड़ी सुहानी,
रंग-रंगीली धरा मस्तानी,
फगुआ गाते, गुलाल उड़ाते ,
बालाओं ने उत्सव मनाया है।
आया आया सखी !
वसंत आया है ।।
विषय --ऋतुराज/वसंत
प्रस्तुत है गीत:-


बसंत गीत:---


मदमयी ले आचरण ,आ गया ऋतुपति मदन।

1
जादुई रँग रूप ले
चम्पई सँग धूप ले
चाहतों के सिलसिले
चन्दनी रिश्ते खिले
कुण्डली में प्रीत की
तोड़ बन्दिश रीत की
झूमते धरती गगन, आ गया ऋतुपति मदन।

2

अनछुई हर भावना
इंद्रधनुषी कामना
फागुनी सौगात ले
प्यार की बरसात ले
खिलखिलाती चाँदनी
गीत गाती रागिनी
तृप्ति का कर आचमन, आ गया ऋतुपति मदन।

3

नेह के अनुबन्ध ले
साधना के छन्द ले
आस ले उल्लास ले
जीत का आभास ले
भावना में प्यार ले
प्यार में मनुहार ले
और शीतल ले अगन, आ गया ऋतुपति मदन ।

***********
🌼🌸🌼

भारती जैन दिव्यांशी
दिनांक २९/१/२०२०
शीर्षक-"बसंत/ऋतुराज


कभी ना आये पतझड़ जीवन में
कभी ना मन मायूसी छाये
कोई लुटेरा लुट न ले
किसी के जीवन का बसंत।

ज्यो विटप उखाड़ फेंके
उन पुराने पत्तो को
त्यों भुला दे, पुरानी यादें
ईजाद करें नई सोच को।

आये बसंत ऋतुओं का राजा
महके धरा,महके पवन
भौंरे गूंजें कलियों के संग
गुनगुनी धूप लगे सुहावन।

राधाकृष्णन मिलन की ये ऋतु
श्रेष्ठ ऋतु ने ली अंगड़ाई
श्री कृष्ण ने स्वंय कहा"मैं बसंत हूं"।
यही है सच्चाई।
ऋतुओं में श्रेष्ठ बंसत ऋतु भाई।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
विषय - ऋतुराज/वसंत
द्वितीय प्रस्तुति


वहाँ पतझड़ से वसंत की
कोई गुफ़्तगू होने लगी।
यहाँ सोलहवे वसंत की
याद रूबरू होने लगी।

काश दे कोई खबर उन्हे
मिलन कि आरजु होने लगी।
हवाओं को पता हाल मिरा
ये चर्चा हर-सू होने लगी।

पपीहे ने टेर लगायी
गली में धूम होने लगी।
मेरे दिल की गली सूनी
फिर महरूम होने लगी।

आहट होय पहले दिल को
'शिवम' आँख ये रोने लगी।
वही विरही गीत अमानत
फिर से रूह सँजोने लगी।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 29/01/2020
दोहा गीत
कामदेव के द्वार में, है सौरभ की गंग।
नयनन सखियों के बसे, ऋतु बसंत के रंग।।

कोकिल कंठी बाग में,कुहुक बसंती राग।
सरगम में स्वर झूमते,चहक रहा अनुराग।।
कालिन्दी के तीर पर, राधे- कृष्णा डोर।
मुरलीधर मुरली बजे, चहके प्रेमी भोर।।
पिकप्रिय पर बौरें सजें,प्रमुदित टेसू फूल।
सुरधनु जैसे लग रहा, अचला का यह कूल।।
श्वेत धाम को तज रहे, भूधर भू के शृंग।
नयनन सखियों के बसे, ऋतु बसंत के रंग।।

हंसवाहिनी शारदे, देती लौकिक ज्ञान।
पीताम्बर सी हर छटा, ज्ञानदायिनी दान।।
गौरा माँ के ध्यान में, उदित मनुज के नेत्र।
माता के वरदान से, मुदित रहे मन क्षेत्र।।
ओढ़े सरसों ओढ़नी,कृषक धरा का लाल।
मोहमयी है मंजरी, मंजुलता का काल।।
कौतुकता मन में भरे, काया रहती दंग।
नयनन सखियों के बसे, ऋतु बसंत के रंग।।

माघ मास की पंचमी, लिखता लेख बसंत।
नवल वर्ष को जोहता, फागुन रचता अंत।।
रंगों की बौछार में, होली का मधुमास।
गुलाल अबीर मल रहे, रागित उर में रास।।
चंदन के सम व्याप्त है, केसर नीरव गंध।
राज करे ऋतुराज ही,खुलें प्रकृति के बंध।।
प्राणी करते वंदना, अंजन लगे अनंग।
नयनन सखियों के बसे, ऋतु बसंत के रंग।।

स्वरचित
रचना उनियाल
विषय - ऋतुराज/वसंत
विधा: हाइकु


१)
बसंत आया,
पतझड़ का अंत
मन हर्षाया !!

२)
फाग के राग
कोकिला की गूँज
महके बाग़ !!

३)
बसंती रंग
मौसम में बहार
उड़े पतंग !!

४)
मन को भाये,
सुगन्धित पवन
पुष्प हर्षाये !!

५)
बसंती साज़
तितलियों का नाच
ऋतू पे नाज़ !!
!
स्वरचित: डी के निवातिया
विधाः- छन्द मुक्त

आज का विषय बसन्त

ऋतुओं का राजा बसन्त है जब आता।
मौसम सबसे अधिक सुहाना हो जाता।।

न ही गर्मी सताती न जाड़ा कपकंपाता।
इसी लिये बसन्त ऋतुराज है कहलाता।।

खेतों में पीली सरसों चहुँ ओर लहराती।
कृषक ही नहीं मन को सब के है भाती।

उस पीली साड़ी को धरती धारण करती।
करने स्वागत बसंत का सजती संवरती।।

पीली साड़ी मे धरती माता सुन्दर लगती।
देख उसको कृषकों की भी आशायें बढ़ती।।

उसे निरख कर भगत सिंह का मन डोला।
लड़ने को अंगरेजों से पहना बसंती चोला।।

क्रान्ती कारियों के तेवर से सिंहासन डोला।
चले गये भारत से करते याद अपना मौला।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दोहा मुक्तक

भौरों का गुंजन मधुर,कोकिल गाती गीत
पुष्प सजीले खिल उठे,चली सदन को शीत।
स्वागत करते हैं सभी,आये हैं ऋतुराज।
मन व्याकुल प्रियतम बिना,कब आओगे मीत।

वीणा पुस्तक धारिणी,भरो हृदय संगीत
ज्ञानदायिनी आपगा,करूँ ज्ञान से प्रीत।
श्वेत वस्त्र शुभ धारिणी,दे दो माँ आशीष
ज्ञान दीप उर में जले, जीवन रहे अभीत।

गीता गुप्ता 'मन'

दिनांक-29/1/2020
विषय-ऋतुराज/वसंत


सब ऋतुओं में जो है सर्वश्रेष्ठ ऋतु
उसे ही ऋतुराज पुकारा जाता है
गर्मी,वर्षा,शरद,हेमंत,शिशिर नहीं
वसंत ऋतु नाम से संबोधन होता है

ऋतु राज ने सभी ऋतुओं को ठेल
अपनी एक पहचान अलग बनाई है
जीव-जगत में छा जाती खुशहाली
नभ के संग धरती भी मुसकाई है ।

सावन का सौदर्य साकार हो उठता
पेड़-पौधों पर यौवन मुसकाता है
दीवानी तितली ; मधुमक्खी को
पुष्प-मकरंद लुभाया करता है।

पीली सरसों की ओढ़ चुनरिया
धरा नवोढ़ा बन जाया करती है
अग्नि देव सूरज की सुहानी धूप
एक नव-ऊर्जा संचार करती है ।

जल की तासीर आंदोलित करती
अहसास अमृत सरिस बन जाता है
नीले -नभ की अनंत,असीम छटा
उर में रोमांच उसी से पनपता है।

आमों की डाली पर बैठ कोकिला
पंचम स्वर से सबको रिझाती है
वसंत पंचमी का पुनीत पर्व मनाते
फाग की होली मानो मुसकाती है।

नव वर्ष के आगमन की बाट जोहते
स्वागत की तैयारी में जुट जाते हैं
पतझड़ की वीरानी को झुठलाकर
मधुमास का सोहर गाया करते है ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘

"भावों के मोती"
29/1/2020

ऋतुराज
-----------
मौसम ने ली अंगड़ाई
है सुंदर मनोरम छटा है छाई
यूँ फैली धरती पल हरियाली
हुआ गुलज़ार धरती का आँचल
आई चारों तरफ तरुणाई
जैसे खिली हो किसी मां की
अन्तस् में कोई कली
माँ के चेहरे पर स्मित मुस्कान है आयी
लहराया माँ का आँचल खुशियों
से जैसे वापस उसकी बिटिया
बसन्त वापस है आई ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर


-29 / 01 /2020

ओढ़ चुनरिया धानी लहरों वाली, रति बासंती सज रही
पीतांबर धारण किये ऋतुराज
भी फब रहे

खेत-खलिहानों में सरसों
सरसरा रही जमीं पे
नील आसमां पर रंग-बिरंगी
पतंगें फरफरा रहीं

कलियां चटकती अँगड़ाई ले
शाखें लद गईं फूलों से
भौरों ने छेड़ा राग बसंती
हवाओं में खनकती महक है।

डा.नीलम

*विधा --------लावणी छंद काव्य*
*दिनांक-------29/01/2020*


इन्द्र धनुषी छटा है छायी ,
भाया बसंत बहार है ।
नीले पीले लाल गुलाबी ,
सप्तरंगी बौछार है ।।

मनमोहक मधुमास मही में ,
लाया मोहक निखार है ।
मादक‌ मौसम मतवाला-सा ,
चली वसंती बयार है ।।

पुष्प- पुष्प पर भौंरे डोले ,
छेड़े गीत गुंजार है ।
सपने संजोये प्रियतम की,
वसुधा करे श्रृंगार है ।।

कलियाँ खिलती डाली-डाली ,
सुरभित समीर फुहार है ।
आम्र-बौर मधुवन में महके ,
बिखरे रसा की धार है।।

बौराये पपीहरा पिक भी ,
छेड़े गीत गुंजार है।
पीली -पीली सरसों बाली,
फूलों भरा संसार है ।।

रंग प्रीत का हर हृदय रँगा ,
करता मधुर झंकार है ।
निखरे टेसू सेमल लाली
आभा अवनि अंबार है।।

शोभा न्यारी आनंद मयी,
ऋतुराज का त्यौहार है।
वरद हुई मातु वीणापाणि ,
रहता सदा उपकार है।।

इन्द्र धनुषी छटा है छायी ,
भाया बसंत बहार है ।
नीले - पीले लाल गुलाबी ,
सप्तरंगी बौझार है ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
विषय- बसंत
विधा- हाइकु

आया बसंत
प्यार दिल में भरा
मन छलका

हे ऋतुराज!
हर दिल पे छाना
रखना लाज

ऋतु बसंत
सब ऋतु की रानी
मनमोहनी
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

विषय , ऋतुराज, बसंत
दिन, बुधवार

दिनांक , २९,१, २०२०.

रिश्ता ऋतुओं का मन से है,
मन ही मन भावन बसंत है ।

उत्साह उमंग और नव सृजन,
सबको देता यही तो बसंत है।

मन ढूँढ़ रहा कब से बसंत ,
मृगतृष्णा ने छीना बसंत है।

हे माँ शारदे हरो अंधकार ,
हो प्रकाशित ये मेरी जिंदगी।

देना शक्ति हमें वीणा वादिनी,
रहे मुखरित कलम हर पल घड़ी।

स्वरचित , मधु शुक्ला.
सतना , मध्यप्रदेश .

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