Friday, January 3

" सर्दी/ठंड/शीत लहर"3जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-614
दिनांक-03/01/2020
विषय-शीत लहर


कोमल सर्दी की गुलाबी ठिठुरन.....

आ गई ठिठुरन की रातें

गहरी है अंतर्मन की बातें

मन निर्मोही ,मन की बाते

ठिठुरन रतियां कैसे काटें

गुत्थम गुत्था हो रहे

बच्चे अवोध ,गरीब अभागे

ठिठुरन से कांपे तनमन

कोहरे की झीनी चादर ओढ़े

रूप छिपाए मादक यौवन

धूप सखी की अंगुली पकड़े

इधर-उधर मँडराये ताके

चौपाल में मुस्कान ठहाके

भींगी शाम, ठिठोली रातें

हेम रात्रि की कंपन आहे

चर्तु दिशाएं ठिठुर रही है

शिशिर बने हैं हिम के कण

कापँता अबोध गरीब का मन

रात्री स्तब्ध पड़ी हुई

मेघ ब्योम में घन -घन

यह कैसी ठिठुरन

यह है कैसी ठिठुरन

स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयाग राज

विषय--शीत/शीतलहर
विधा--दोहे
_________________________
शीतलहर को झेलते, बैठे सिगड़ी ताप।
ठंडी से दुविधा बड़ी,राग रहे आलाप।१।

सूरज रूठा सा लगे,बैठा बादल ओट।
शीतलहर के कोप से, पहने सबने कोट।२।

चुभती है ठंडी हवा,शीतल चुभती भोर।
बैठी गुदड़ी ओढ़ के,माई सूरज ओर।३।

ठंडी भीनी धूप में, बैठे मिलकर संग।
मफलर कानों पे चढ़ा ,डाटे जर्सी अंग।४।

कुहरा झाँके द्वार से,हवा उड़ाती होश।
मोटे ताजे लोग भी, बैठे खोकर जोश।५।

***अनुराधा चौहान***

सर्दी/ठंड/शीत लहर
***************
ऋतु ने बदला
है पैरहनअपना
हिमवती हवाओं
ने बिखेरा है जलवा
अपना,सरसराती
सर्दीली फ़िज़ा ने
सँवारा है रूप अपना।

छाई है धुन्ध
चारों ओर
ठंडी हवा
करती ठिठोली
धूप ने ओढ़
कोहरे का घूंघट
छुपाया है
मुखड़ा अपना ।

सर्द रात में
चाँद चलता
इठला -इठला
छलकते यौवन
को बादलों से
ढक छुप जाता
शीत लहर से
बचकर वो भी
ख्याल रखता अपना।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

विषय--शीत/सर्द/ठंड/शीतलहर

तेरी यादे भी अब तो सताने लगी
सुर्ख रातें भी अब तो जगाने लगी
कोहरे की चादर लपेटे हुए
सर्द रातें भी सौतन सी डसने लगी।
तेरी प्रीत की ऐसी लगन जो लगी
मन प्रमुदित हुआ खिलखिलाने
लगी
तेरे तन से लिपटने को फिर एक बार
सर्द मौसम सुहानी बुलाने लगी।
स्वरचित-
निराशा सिंह' 'निशा'
वाराणसी, उत्तर प्रदेश

विषय शीत ,सर्द , ठंड,,शीत लहर
विधा काव्य

03 जनवरी 2020,शुक्रवार

हाड़ कंपाती सर्दी गिर रही
शीत लहर अति चले हवाएँ।
चिकित्सालय भीड़ जमी है
जनता ले रही रोज दवाएँ।

उत्तराखंड जम गया बर्फ से
दिनभर कंपन कांपे काया।
ऊनी वसन किये सब धारण
चारोंओर ठंड कोहरा छाया।

फुटपाथ पर दयनीय हाल है
फ़टे पुराने बिस्तर में लिपटे।
पूरी रात नित अलाव जलाते
छोटे बालक शीत से कंपते।

जय जवान जय किसान के
बुरे हालात उनके जीवन में।
अति ठंड बर्फीली सीमा पे
धरती पुत्र कांपे उपवन में।

मावट गिर रही नए वर्ष में
पाला गिर रहा हर खेत में।
चले धूजणी शीत से कांपे
बुरे हालात रेगिस्तान रेत में।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

दिनांक ०३/१/२०२०

ठंड________

तन मन में सिहरन सी दौड़ जाती है
जब भी खयाल इन ठंडी मौसम में आती है

शीत लहरियों में जब भी ख्याल तेरा आता है
तन मन को गुदगुदा कर कहीं खो जाता है

कैसे कहूं मोहब्बत में घुल जाने को जी चाहता है
हां बस तेरे साथ कुछ पल गुजारने को दिल चाहता है

नाजुक डोर से हर चाहत बंधी है हमारी न जाने
कब आओगे कब पूरी होगी यह चाहत हमारी

गुनगुनी धुप भी तुझे आगोश में लेना चाहती है
तेरे मखमली बालों को छेड़ना चाहती है

इंतजार है हर पल एक प्याली चाय
संग कभी तो तुम पास आओगी

तड़पते दिल पर हमारे हाथ तो रख जाओगी
कुछ पल ही सही चाय के बहाने साथ तो मिल पाओगी

निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई

03-01-2020

#ठंड

दीनानाथ हर दिन

झेलता है कठिनाई

पर बेरहम मौसम भी

अपना प्रकोप दिखाने से

नहीं चूकती है,

गरीबी न जाने कितने रंग

दिखाती है,

ठिठुरती ठंड में भी

हर दिन खेतों में

जाना निश्चित है,

आखिर मुन्ने की पढ़ाई

और मुनिया की शादी जो

करनी है..

सपने देखना शायद दीनानाथ के

नसीब में ही नहीं,

दो वक्त की रोटी

के लिए कंपकपाती ठंड

में जाता है खेतों में,

ईश्वर की कृपा दृष्टी भी नहीं

पड़ती है दीन दुखियों पर,

आखिर इतना दुख क्यूं हैं

इनके जीवन में?

हे प्रभु जीवन देना कभी जीवन

तो गरीबी न देना तोहफे में किसी को,

बड़ी बेरहम होती है गरीबी

घूंट घूंटकर जीने को

मजबूर कर देती है,

हाँ रो रोकर जीने

को मजबूर कर देती है।

✍️कुमार संदीप
स्वरचित
3/1/19
विषय- ठंड


ये ठिठुरती हुई ठंड
चंद पनाह मांगती है।

सर्द हवाओं से बचने को
गर्म बिस्तर माँगती है।

हिलती हुई हड्डियां
बदन चुटकी भर गर्मी माँगती है।

सड़क पर ठिठुरता भिखारी को
अलाव की तपिश माँगती है।

सवारी की आस में बैठा चालक
पेट की आग की आस माँगती है।

दिन भर मजदूरी करती माँ
लिपटी गुदरी में बच्चों का साथ माँगती है।

सर्द कोहरे से ढकी राहे
रोशनी की एक लकीर माँगती है।

ओढ़। दे कोई कंबल
एक गरीब की आस माँगती है।

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय: शीत/सर्द/ठंड़/शीत लहर
विधा: स्वतंत्र

दिनांक:03/01/2020

शीर्षक : ये सरदी के दिन सुहाने

ये सरदी के दिन सुहाने,
खाने मौज मनाने वाले है।
शीत लहर ओस की बूँदे,
अलाव गर्म जलाने वाले है।

दूध जलेबी केसर वाली,
गाजर हलवा खाने वाले है।
दाल पकौड़ी गरमा गरम,
मूँग हलवा खाने वाले है।

गेहूँ दलिया,मक्की दलिया,
बाजरा खींच खाने वाले है।
मक्की रोटी सरसों दा साग,
बाजरे की रोटी खाने वाले है।

आलू, मटर, गोभी, पालक,
मैथी बथुआ खाने वाले है
मशरूम,शकरकंद,चुकंदर,
गाजर मूली खाने वाले है

गजक,रेवड़ी,तिल,पपड़ी,
गर्म मूंगफली खाने वाले है।
तिल्ली तेल,चिक्की,फीणी,
तिल का कूट्टा खाने वाले है।

किशमिस,अखरोट,पिस्ता,
काजू बादाम खाने वाले है।
दाल के लड्डू, मैथी लड्डू,
गोंद के लड्डू खाने वाले है।

लोहड़ी संक्रांति पर्व मनाने,
मेहमान कुटुंब आने वाले है।
'चरखी पतंग मित्रों के संग,
रिखब' पतंग उड़ाने वाले है।

रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

3 /1/2020
बिषय,, ठंड. शीत,, शीतलहर

इस ठंड ने कितना कमाल कर दिया
अच्छे अच्छों का हाल बेहाल कर दिया
हड्डियों को चुभ रही है शीतलहर
आसमां से वर्षा ढा रही रही कहर
घर से निकलना दुश्वार हो गया
पल्ली रजाई वनियान ही आधार हो गया
सूर्य देव न जाने कहां खो गए
काले काले नभ में आलोप ह़ गए
बहुत ही कष्टों में परेशान है किसान
सड़ रही हजारों क्विंटल ए धान
सूरज देव न जाने कब होंगे मेहरबान
बादल छाए हुए बनकर मेहमान
एक तो प्रकृति का प्रकोप ऊपर से महंगाई
हे प्रभु तुम्हें किसानों की खुशी रास न आई
कैसी ए खुशियां कैसा नया साल
सर्द हवा जलवृष्टि ने किया हाल बेहाल
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

विषय -शीत /ठंड/शीत लहर
विधा -कविता

दिनांक -3/1/2020
शनिवार

माघ,पोष के महीने में शीत चढे परवान ये।
चुभती जब ठंडी हवा,ठिठुरन हो हैवान ये।।

स्वेटर, कंबल , अलाव सभी,कुछ खास नहीं कर पाते।
शीत लहर करती बेचैन,हाड काॅपते घबराते।।

लगे सुहानी थूप गुन गुन,सबके मन को ये भाये।
बाहर भीतर सभी जगह ,यह फैलती जाये।।

जब बारिश ,ओले गिरते,और पवन जब चलती।
कहर बरबाती शीत लहर,बेचैन सभी को कर देती ।।

खेतों में किसान के ,जब पाला पड जाता।
बर्बाद फसल हो जाती ,नसीब फूट जाता ।।

रात दस बजे बाद ,सडकों पर कर्फ्यू सा लग जाता ।
कोई साहस नहीं करता,राह गुजर कैसे पाता।।

फुटपाथों पर लावारिस लोग,ठिठुर ठिठर रह जाते।
कोई नहीं सुनने वाला, कई बदनसीब मर जाते।।

दिन में बिजली नहीं आती, कृषक रात को पानी देता।
ठिठुरन भरी ठंड में ,सब मजबूरी सह लेता।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डाॅ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय ,

दिनाँक-03/01/2020
विषय-शीतलहर

छंद-दोहा

शीतलहर इतनी बढ़ी, घर में दुबके लोग।
चूके जो तुम जरा सा, हो खाँसी का रोग।
***********************************🌺-1

सर्दी इतनी जोर की, कटकट बजते दाँत।
बदन काँपता ठंड से, शीत पड़ गया गात।।
***********************************🌺-2

उड़ती मुख से भाप ही, निकल न पाए बात।
सन सन सन चलती हवा, बर्फीली है रात।।
***********************************🌺-3

पाला पड़ता जोर से, तापें सभी अलाव।
तेजी से बढ़ने लगे ,मूँगफली के भाव।
***********************************🌺-4

स्नान बराबर तप नहीं, जरा धूप की चाह।
गायब सूरज देखके, मुँह से निकले आह।
***********************************🌺-5

मफलर ,स्वेटर में ढके,फिर भी काँपे हाड़।
पंख फुला चिड़िया छिपी,झरबेरी के झाड़
***********************************🌺-6

🌺🍀🐥🌺🍀🐥🌺🍀🐥🌺🍀🐥🌺🍀🐥🌺🍀🐥

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

विषय- शीत
#श्रृंगार_छंद

3/1/2020

करो दिनकर का नर सत्कार।
चला जाएगा अब नीहार।

दिवाकर- दर्शन से है भोर।
खींचते पकड़ शीत की डोर।

हुआ धरणी पर है आलोक।
तिमिर को गहन हुआ है शोक।

जीव में जागा नव उल्लास।
प्राण का होता है आभास।

खगों का कुल देता संदेश।
नहीं होना नर तुम लवलेश।

परख लो जीवन पथ को आज।
करो तुम सुंदर- सुंदर काज।

यही जीवन का मौलिक सार।
जियो और जीने दो का हार।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

दिनांक 03-01-2020
विषय- शीत/सर्द/शीतलहर

विधा-मुक्तछंद

लो आ गई ठिठुरन भरी सर्दी
चली शीतलहर रवि धुंधलाया ।
सब पर एक कुहासा छा गया,
वसुधा का आँचल कुम्हलाया।

दिवस छोटे हुए लंबी हुई रातें ,
सुबह सांझ कड़कती सिहरन ।
पेय पदार्थ गर्म लगते अमृत,
नहीं सुहाए रवि से बिछुड़न ।

प्रात:काल में ओस की बूंदें ,
शीतल हिम आभास कराती ।
धुंध में लिपटी भोर की बेला
आंख मिचौली धूप खिलाती ।

सर्द हवाएं तन को ठिठुराए ,
मूंगफली गजक गर्माहट देते
गर्म चाय की चुस्की दिन भर,
मेवे मिष्ठान आनंद सब लेते ।

क्रिसमस नव वर्ष की बेला,
शीत ऋतु संग लेकर आती ।
मौज मस्ती स्कूल से छुट्टी ,
सबको आनंदित कर जाती।

सुबह शाम गर्म रजाई अपनी ,
सबसे प्रिय हम सबको लगती।
लंबी रातें भी बोझिल सी होती,
भोर प्रतीक्षा में आँखें जगती ।

खान पान आनंद सब लेते ,
इसीलिए ठंड खूब सुहाती ।
अलाव जलाकर ऊष्मा लेते,
निर्धन गरीब को नहीं ये भाती ।

ऊनी वस्त्र गर्म रजाई कंबल,
संपन्न वर्ग तो आनंद मनाता ।
दीन हीन असहाय से पूछो,
सर्दी से जो प्राण तज जाता ।

आओ इस सर्दी हम तुम भी,
दीनों को अपने हाथ बढ़ाएँ ।
ठिठुर रहे खुले नभ नीचे जो,
मदद से उनके प्राण बचाएँ ।

कुसुम लता पुंडोरा
आर के पुरम
नई दिल्ली

दिनांक 03/1/2020
विधा हाइकु

विषय शीत/शीत लहरी

शीत लहरी
अलाव ही अलाव
सजग शासी।

शीत प्रकोप
फुटपाथ पे लाश
गरीबी रोई।

सूर्य प्रकाश
ऊर्जाहीन मकान
अंगीठी ताप।

गजक चिक्की
शकरकंद तिल गुड
शीत व्यंजन।

नूतन वर्ष
शीत काल त्योहार
विश्व मे मस्ती ।

रौशनी पर्व
जगमगाते शहर
भूल के ठंड।

शीत रितु मे
पश्चिमी देश श्वेत
ढकी चादर ।

बर्फ के गोले
फेकते एक दूजे
बनके बच्चे ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

विषय-शीत,ठंड,शीत लहर
दिनांक--3.1.2020

विधा -वर्ण पिरामिड

1.
हाँ
उदै
अगस्त
झरी ओस
शीत लहर
बर्फ बरसात
वस्त्रबिन आघात।
2.
वो
उच्च
शिखर
हिम वर्षा
शीत लहर
गरीबी कहर
जहर सा असर।

*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551

दिनांक 3/1/2020
विषय - शीत ,सर्द, ठंड , शीत लहर ।

विधा -" हाइकू '
1/ सर्द मौसम ,,,,,
जलाया करो आग ,,,,।
जगाओ प्रेम ,,,।
2/ शीत लहर,,,,
अलाव है सहारा ,,,
गरीब लोग ,,,।
3/ बढ़ी मुश्किलें
ठंड बना कहर ।
बेबस लोग ।
4/ सर्द मौसम,,,
जला प्रेम अगन,,
गरमा तन,,,।
5/ ठंडा मौसम ,,,
पकौड़े अच्छे लगे ,,
गरमागरम,,,।
स्वरचित - " विमल '


Vandna Solanki नमन भावों के मोती
दिनांक-3/1/2020
विधा-दोहा

विषय-शीतलहर

शीतलहर के कहर से,हाल हुआ बेहाल।
दुबके भीतर गेह में,बैठे बूढ़े ,बाल।।१।।

देखो ज़रा गरीब को,करिये तनिक विचार।
शीतलहर में बांट दो,कंबल का भंडार।।२।।

धूप खिली है गुनगुनी,,छिपे सूर्य आकाश।
शीतलहर से डर गया,मद्धिम हुआ प्रकाश।।३।।

शीतलहर के कोप से,फसल हुई बेकार।
सालों के परिश्रम पे,भारी पड़ा तुषार।।४।।

बजा रहे धनवान सब,बैठ चैन की बीन।
शीतलहर ने रंक का,लिया निवाला छीन।।५।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय - शीत लहर / ठंड / शीत
विधा - हाइकू
***************

1.
घना कोहरा
हड्डी गलाती ठंड
फटे - चिथड़े।

2.
गर्म प्याली चाय
चटपटे पकौड़े
ऐंठी अंतड़िया।

3.
पाश्मीना शॉल
चबाते अखरोट
बेबस तबका।

4.
शीत लहर
नजरबंद लोग
आसमां कहर।

संगीता सहाय "अनुभूति"
स्वरचित
रांची झारखंड

3/1/20
विषय- शीत,ठंड ,सर्द

बेबस

सर्द हवा की थाप
बंद होते दरवाजे खिडकियां,
नर्म गद्दों में रजाई से लिपटा तन
और बार बार होठों से फिसलते शब्द
आज कितनी ठंड है!
कभी ख्याल आया उनका
जिन के पास रजाई तो दूर
हड्डियों पर मांस भी नही ,
सर पर छत नही ,
औऱ आशा कितनी बड़ी
कल धूप निकलेगी
ठंड कम हो जायेगी ,
अपनी भूख,बेबसी,
औऱ कल तक अस्तित्व
बचा लेने की लड़ाई ,
कुछ रद्दी चुन के अलाव बनायें
दो कार्य एक साथ ,
आज थोड़ा आटा हो तो
रोटी और ठंड दोनों सेक लें ।

स्वरचित

कुसुम कोठरी ।

दिनांक- 3/01/2020
विषय- सर्द/सर्दी
विधा- कविता
************
गर्मी का जाना, सर्दी का अाना,
ये रिश्ता मौसम का, बड़ा पुराना |

सर्दी आई है, स्वागत करो ऐसा,
दूसरा मौसम नहीं, इसके जैसा |

नव वर्ष का हुआ, अब आगमन,
हो रहे हैं देखो सब, मस्त मग्न |

ठंडी ठंडी चल रही,आहा पुरवाई,
सूरज भी कभी-कभी ओढ़े रजाई |

पी लो चाय गरम, अदरक वाली,
सर्दी,खांसी सब दूर भगाने वाली |

सूखे मेवों की, पंजरी बना लेना,
गरम दूध के साथ, रोज खा लेना |

सब्जियों से गरम सूप, बना लेना,
परिवार के साथ इसको पी लेना |

सर्दी आई है तो, असर दिखाएगी,
दो-तीन महीने में विदा हो जायेगी |

हर मौसम का,मजा लेना चाहिए,
सुरक्षा का इंतजाम, रखना चाहिए |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
03/01/2020
शीत-हाइकु

1
पूस की रात
किटकिटाते दाँत
शीत आघात
2
दिल अँगीठी
प्रिय की बातें मीठी
सुहानी सर्दी
3
सर्दी है आई
हड्डी कंपकपाई
भाये रजाई
4
शीत लहर
कोहरे का कहर
मुर्दा शहर
5
आंखों में रात
गरीब के जज़्बात
सर्दी की घात
6
दिल अलाव
गेसुओं की है छांव
सर्दी में ताव
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

03/01/2019
"शीत/सर्द/ठंढ/शीत लहर"
छंदमुक्त
###############
शीत का मचा कोहराम है
बाहर जन-मानस गुमनाम है
अलाव संग मिला आराम है
सर्द से ठिठकी हुई शाम है।

धरा ओढ़ी धुंध का आवरण है
गुमशुम सूरज भी चुपचाप है
निस्तब्ध हुआ पदचाप है..
शीत प्रकोप से सहमी शाम है।

ओस से भीगी हुई सुबह है
निकली अब शर्मिली धूप है
दिवस कहाँ मन के अनुरुप है
शीत लहर आगोश में शाम है।

चिड़ियों का चहकना शांत है
बागों में भँवरे की गुँजन कम है
तापमान भी हो रहा कम है
घर में ही सिसटे सब लोग हैं

अब शीत लहर का प्रकोप है
गरीबों के मन में भरा क्षोभ है
रात कैसे गुजारे रहे सोच हैं
विवशता में जी रहे कुछ लोग हैं।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
प्रथम प्रयास

शीत ने वह कहर बरपाया
चारों तरफ हैं धुंध छाया
बर्फ की कालीन बिछा गई
सूरज देखो मुंह छुपाया।

सूनी हुई गली चौबारे।
देखो अलाव भी हैं हारे
थम सी गई चंचल जिंदगी
शीत लहर है बाँह पसारे।

स्वरचित
सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़

3.1.2020
विषय : शीत, ठंड, सर्दी आदि

विधा: कविता

सर्दी
------
तीर सी चुभती, कंठ अवरुद्धति।
ठंड बड़ी ज़ोर है,अंग-अंग शोर है।
बुड़ापा असहाय,बीमारी से कुश्ती।

सताती है खुश्की, नाक रहे बहती
कुहासी हर भोर है,शाम घनघोर है
सुस्त हो गई सुस्ती,सीमित है मस्ती।

कई कई दिन बीतें,धूप न निकलती
कठिन ये दिन हाय! कैसा दौर है?
धूप की प्रतीक्षा हाय ! न मुकती।

ऑफ़िस जाने की इच्छा न करती
हा! शीत पुरज़ोर है,कहीं न ठौर है।
रज़ाई व हीटरों से भी पूरी न पड़ती।

शीतलहर हाय! करती रहे गश्ती
न लिहाज़ छोटा बड़ा,सब को लपेटे
देखे नहीं वो कोई, छोटी बड़ी हस्ती।

सिखाता मौसम,छोड़ मौकापरस्ती
मौसम न ही भ्रष्टाचारी, न ही चोर है
स्वीकार सर्वोपरि मौसम की सरपरस्ती।
- रीता ग्रोवर
--स्वरचित

शीर्षक ,शीत, सर्द, ठंड, शीतलहर.
दिन , शुक्रवार.

दिनांक , ३,१, २०२०.

हुआ शीत लहर का ऐसा असर ,
जन सामान्य अति बेहाल ।
हर तरफ कड़कड़ाती ठंड में ,
जलते रहते हैं अलाव ।

स्वेटर शाल और गरम वस्त्र सभी ,
आजकल खाने लगे हैं भाव ।
रजाई कम्बल हैं खुश सभी ,
बढ़ गई है उनकी चाह ।

चाय काफी और गरम पेय के ,
हो गये अजब गजब हैं ठाठ ।
मिलने पर सबको ये लग रहा ,
पूरा हुआ सुनहरा ख्वाव।

हालत निर्धन की मत पूछिए ,
उनकी ठंड बनी है काल ।
जैसे तैसे बस किसी तरह से ,
सह रहे ठंड के आघात।

साधन सुविधा से त्यौहार हैं ,
करे शीत ऋतु जिन्हें भेंट ।
सबको तिल गुड़ और मेवा मिले,
होती किस्मत कहाँ है नेक ।

कोशिश हम सबकी हो यही,
करते रहें ठंड से अपना बचाव।
हम देखभाल उनकी भी करें ,
जिनके घर में है अभाव।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .

दिनांक-३/१/२०२०
शीर्षक_शीत/सर्द।


शीत ऋतु ने किया कमाल
बच्चे बुढ़े सभी बेहाल
ठढ़ी वायु के अतिशय प्रकोप
खिड़की दरवाजा कर लो बंद।

आहार विहार का रखो ध्यान
वरना पड़ जाओगे बिमार
जिनके पास न कंबल रजाई
उनके लिए शीत ऋतु त्रासदी लाई।

यथाशक्ति करे कंबल का दान
यही है सबसे बड़ा उपकार
जिनके सर के ऊपर नही है छत
सोचो कैसा है वह मंजर।

दर्शक बन न देखो उनको
चादर कंबल मिलकर बाँटो
हो अभियान यह जरूरी नही
ठंड का निवारण है जरूरी।

संकल्प ले हम करे प्रयास
शीत न ले सके किसी का जान
तन पर हो वसन सभी का
हो प्रयास हम सभी का।

स्वरचित _आरती श्रीवास्तव।

विषय:-सर्द/शीत/ठंड
विधा:-दोहा मुक्तक


१.
ठंड बड़ी है पड़ रही , हवा चले है शीत
प्रियतम मेरे दूर है , कहाँ निभे अब प्रीत
आओ प्रियतम लौटकर,पाए दिल अब चैन
साथ मिले जब आपका , गाऊँ वर्षा गीत

२.
शीत हवाएँ चल रही , ठंड बढ़ी दिन रात
पाला धरती आ गया , सिकुड़ी मानव जात
बच्चे बूढे काँपते , करते ईश्वर याद
अस्त-व्यस्त जीवन हुआ,ठिठुर रहा है गात

राकेशकुमार जैनबन्धु

विषय- शीत लहर
दिनांक 3-1-2020
शीत लहर एहसास,सिर्फ गरीबों को ही होता है।
अमीरों के लिए घूमने का,यह एक बहाना होता है।।

नहीं मिलता तन ढकने को,ना बिछाने को होता है।
अलाव जला नाले में सो,रात वह ऐसे बिताता है।।

हर अमीर की ओर,आशा भरी नजरों से देखता है।
शीत लहर से बचने को,कोई कुछ भी ना देता है।।

घी में घी सब डालते,कहावत यथार्थ वह करता है।
अपने पैसों का रौब,वो गरीबों को ही दिखाता है।।

शीत लहर में ऐसे ही,वह जीवन यापन करता है।
सुबह धूप में बैठेंगे,यही सोच रात वह गुजारता है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 03/01/2020

शीर्षक :- शीत/सर्द/ठंड/शीत लहर

काँपती रूहें..
शहरी फुटपाथों पर..
जूँ तक न रेंगती..
सियासत के कानों पर..
थरथराता पारा..
धड़ धड़ाती ठिठुरन..
सर्द हवा के थपेड़े..
जूझते रहते..
दीन मौन साधकर..
दर्द की हद इतनी..
कि जाँ तक निकलती..
चिथड़े लिपटे तन से..
जाने कब व्यथा ये..
मिटेगी वतन से..
खाने खसोटने में लगा है..
हर रसूखदार यहाँ..
क्यों मुकर जाता है..
हर जिम्मेदार वचन से..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

शीत / ठंड

रखो मान अन्न का
फल ये किसान की मेहनत का
रात रात जागता खेत औ खलिहान
जाहे गर्मी हो या सर्दी

यूँ नहीँ लिखा प्रेमचंद ने
पूस की रात
खेत पर ठिठूर जाते
किसान अनेक

सीमा पर बैठा है जवान
नहीं है कम हौसला उसका
जब सोते हम रजाईयों में
काटता दिन रात वो ठंडी रूवाईयों में

रात रात भर माँ सोती
गीले बिस्तर पर
बैटे को बचाती सर्दी से
टूट जाती तब आत्मा उसकी
जब उड़ाता नहीं
एक कम्बल बेटा उसको

निकलती धूप जब ठंड में
स्वर्ग सी धरती हो जाती
पशु पंछी प्राणी सब में आ जाती
जान नयी

रखो मान पर्यावरण का
हर ॠतु का
है महत्व
जीवन में रखो
सब ॠतू का सम्मान
सर्दी गर्मी
बसंत या बरसात
हैं ये बहनें चार
हर ॠतु है फलदायी
जीवन में सुख समृद्धि की
प्रदायी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

भावों के मोती
विषय-शीत लहर/शीत

विधा-दोहा
३/१/२०२०

शीतलहर के कहर से,काँप रहा है देश।
चाबुक से तन पर पड़े,बदले सबके भेष।

सूर्य देवता ठंड से, छुपे बादलों ओट।
शीतलहर घर में घुसे,करे चोट पर चोट।

खेतों में पाला पड़ा,ठिठुरे सारे लोग।
शीतलहर के कोप से,दंड रहे हैं भोग।

शीतलहर के साथ ही,मावठ आई जोर।
गर्मी डर से काँपती,ढूँढे अपना ठौर।

बूढ़े थर-थर काँपते, बच्चों को आनंद।
शीतलहर चलती रहे,विद्यालय हों बंद।

अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक

सर्द मौसम में फिर वही दर्द उभर आया है।
आह निकली जो तेरा जिक्र अगर आया है।


भूल कर बैठे थे जो हम भूल नहीं पाएंगे।
याद करता हूँ तो मुंह को जिगर आया है।

अब यकीं हमको मुहब्बत पर नहीं होता।
तेरी सोहबत का कुछ तो असर आया है।

हाल पूछा भी मेरा उसने मेरे रकीबों से।
ख्याल कुछ देर के बाद खैर मगर आया है।

मुतमईन अब भी नहीं तो कहां जाओगे।
मेरी नजरों को नजारा यह नजर आया है।

विपिन सोहल

दिनांकः-3-1-2020

विषयः- "शीत/ सर्द/ ठंड/ शीत लहर

शीत पड़ती है जब हल्की बहुत भाती।
गर्मी के मौसम से बड़ी अच्छी लगती।।

शीत का होता है अपना अलग जलवा।
मिलता है खाने को गजक रेवड़ी हलवा।।

पर जैसे जैसे शीत अधिक बढ़ती जाती।
अच्छे अच्छों को नानी भी याद दिलाती।।

चलती पर जब बहुत भयंकर शीत लहर।
लगता है आगया हो कोई डरावना कहर।।

शीत लहर तो कहर अपना है जब ढ़ाती।
कुछ बच्चों व वृध्दों को साथ है ले जाती।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

तिथि -3/1/2020/शुक्रवार
विषय -*शीत,सर्द ,ठंड *

विधा -मुक्तक(28)

शीत लहर गर चली यहां तो हम क्या कुछ कर सकते।
नहीं बरफ गिरे न बरसा होय लोग क्या कर सकते।
ईश बनाता अपना मौसम इसकी ही चलना है,
बचें ठंड से जैसे भी हो
किसका दम भर सकते।

गरमी सरदी बरसा सारी रितुऐं हम सब झेलें।
मूं मुंगौडे खाकर हम फिर गिल्ली डंडा खेलें।
जो पडे यहां खुले मैदान में उनकी भी सोचो
समयानुसार सब सेवा करते इनकी सुध लेलें।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश

विषय- --------कहर*
*विधा--------शक्ति छंद*

*दिनांक------03/01/2020*

122 122. 122 12

विकल कर रही शीत की ये लहर।
विवश हो प्रकृति आज ढाती कहर।।
समय अब विकट आ गया सोच लो ।
प्रकृति का चलो ह्रास अब रोक लो‌।।
‌‌‌‌
रहे साम्य न्यारी धरा में सदा ।
मिले जीव को लाभ बस सर्वदा ।।
हुए आज नाराज मार्तण्ड जी ।
मना लें चलो फिर न दें दंड जी ।।

सहें लोग व्याकुल भरी वेदना ।
जगा सुप्त होती हुई चेतना ।।
निराली मही मोहिनी मोहती ।
बिखेरे छटा छवि सदा सोहती ।।

*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
दोहा मुक्तक

शीत
संजीवन है शीत में,अदरक वाली चाय ।
निर्धन को ये दीजिये,शीत प्रकोप उपाय।।
ठिठुरी बूढ़ी हड्डियां , ठिठुरे गृहणी हाथ ,
इस ठिठुरन में झोपड़ी ,कैसे शीत बचाय ।।

लगी देश में आग जब दूर हो गयी शीत,
जाति धर्म के ताप में ,झुलसा भाव पुनीत।
नेता रोटी सेंकते ,मन में भरते आग ,
बँटवारे में राज कर ,होती उनकी जीत।

अनिता सुधीर

3/01/2020
विषय- शीत

विधा-- मनहरण

ठंड का हुआ कहर
प्रात भी भूली डगर
आती सीधी दोपहर
मतवारी चाल है।

चले है शीत लहर
दिन रात फ़र-फ़र
है रैन बसेरा घर
गरीब बेहाल है

देखिये रवि के घोड़े
मध्यम रफ्तार दौड़ें
क्या करें वो भी नगोड़े
धुंध का धमाल है

जला के बैठें अलाव
नर पशु एक ठाँव
करें शीत से बचाव
साथ ये कमाल है।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

विषय-शीत

मैं शीत हूँ
दिसम्बर और फरवरी के बीच
पड़ने वाली
कड़ाके की ठंड
सब कंपकपाते हैं मुझसे
गरीबों के लिए
अभिशाप हूँ
गरमाई की आस में
कई तन एक साथ
चिपक कर सो जाते
कूड़े का अलाव जलाते
कभी-कभी
फुटपाथ पर पड़े
ठंड से मर जाते हैं
अमीर मेरा लुत्फ उठाते
गरम -नरम रजाई में
घुस जाते
चाय-पकौड़ों का
आनन्द उठाते
मेरे आते ही
घना कोहरा छा जाता
सामने कुछ नजर न आता
धरती गगन एक हो जाते
और प्रकृति
ढक देती
उनके मिलन को
कोहरे की सफेद चादर से
दिशायें खो जाती
सूनी सेज पर
पसरी मैं शीत
विरहिन को
मजबूर करती
मुझे ही आलिंगन कर
रात बिताने को
सुबह सूरज की गर्मी
मुझे डराने की कोशिश में
खुद सहमी रहती
और मैं स्वछंद शीत
सबका स्नेह से
आलिंगन करती
मस्ती में
लहर बन डोलती
मैं शीत लहर हूँ

सरिता गर्ग
दिनांक-3/1/2020
दिवस-शुक्रवार
शीर्षक-ठंड

विकट समस्या है, जहाँ देखों यही चर्चा है। हो भी क्यों ना? ठंड का कहर ही इतना है। पारा गिरता ही जा रहा परन्तु ये जरुरी भी है प्रकृति अपने नियत समय पर अलग अलग रुप धारण करती है, जो जनमानस के लिए हित में ही है। आजकल प्रकृति से हो रही छेड़छाड़ ने संतुलन बिगाड़ रखा है। सभी अलाव की तपन से अपनी प्राण संतुलन में रखे हुए है। इस भयानक शीतलहरी में जीवनसाथी की तरह साथ निभा रही है, वही नुक्कड़ की चाय। कुछ भलमानस महापुरुष गरीबों को कम्बल बांट कर पुण्य भी प्राप्त कर रहे है।ठंड की मार से व्याकुल जनजीवन बड़ी कातर दृष्टि से प्रकाशपुंज दिनेश्वर, भगवान भाष्कर की ओर देख रहा है और याचना कर रहा है " हे आदित्य! अपने सात धोड़े वाले रथ पर बैठे आप हमें दर्शन दे और इस शीत के कहर से हमारी रक्षा करे।

हर्षिता श्रीवास्तव
स्वरचित
प्रयागराज

सर्द हवाओं का सितम

दिसम्बर-जनवरी का महीना

सर्द हवाओं का सितम
रात का न्यूनतम तापमान
पारा गिरने से गलन बरकरार
कड़कड़ाती ठिठुरन भरी सर्दी
तड़के अंधकार भरा कोहरा
बर्फीली हवाओं से गलन
कपकपाते हाथ पांव
कड़ाके की सर्दी ऊपर से
सूर्य देव की लुका छुपी का खेल
कभी धूप कभी छाँव में
जब भी सूर्य की किरणें
जमीं पर बिखेरती है तो वो
संदली सी इतराती, इठलाती धूप
जब खिड़की के झाँकती है
तन को कुछ राहत मिल जाती है
फिर से अपने काम में लीन
समय मिलने पर
सूरज की मखमली धूप में
अपने हाथ पाँव सेकना
फ़टी एड़ियों को छुपाने
के लिए मरहम लगाना
खिली खिली सी आँगन में
उतरती सुनहरी धूप में बैठने से
तन को सुकून मिल जाता है।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा

दिनाँक:-3/01/2020
विषय:-शीत

विधा:-हाइकु

चिल्ला जाड़े में
अंगीठी में पावक---
खाट पे हुक्का

शीत लहर---
मचान पर सोता
खेत प्रहरी

चने का खेत---
पत्तों पर बिखरी
ओस की बूंदें

साँझ प्रहर----
हरी-ताजी सब्जियां
हाट में सजीं

जाड़े की रात---
टी वी न्यूज़ चैनल
चाय के संग
©स्वरचित

मनीष कुमारश्रीवास्तव

दिनांक-03/01/2020
विधा-हाइकु (5/7/5)
िषय :-"शीत/ठंड/शीतलहर"

(1)
शीत है सख्त
निशा की रजाई में
दुबका वक़्त
(2)
मौसम घर
ठंड ने दी दस्तक
निकली ऊन
(3)
ठंड अमीर
मेवों के मौसम में
भूखा गरीब
(4)
दे स्वास्थ्य शिक्षा
शीत लहर लेती
तन परीक्षा
(5)
छेड़ता जल
ठंड से मिलकर
काँपता तन
(6)
आज मौसम
एहसास हैं ठंडे
स्वार्थ गरम

ऋतुराज दवे

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