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ब्लॉग संख्या :-623
विषय मनपसन्द लेखन
विधा काव्य
12 जनवरी 2020,रविवार
जीवन सुख साधन हैं तो
आओ सुख का वरण करें।
सारे सुख जगति में है
परहित डग पर चरण धंरे।
खुद का जीना क्या जीना
परहित हित जीना है जीना।
तृषित सतत प्यासी रहना
अच्छा अति जग में मरना।
जीवन इक सपना है तो
आओ मिल साकार करें।सारे सुख
क्या पीड़ा क्या उत्कंठा है
क्या तेरा और क्या मेरा है?
सब जननी की हम संताने
अहम भाव रत क्यों रहता है?
जीवन शिक्षा का दर्पण है
सत्साहित्य मिल ध्यान करें।सारे सुख
पीड़ा आतुरता दुःख द्वेष
वसुधैव कुटुंब न रहते शेष।
खारापन श्रम का पीकर
विपदा कभी न रहे अशेष।
जीवन जीना एक कला है
पर पीड़ा नित वहन करें।सारे सुख
सुख आनन्द का मेहा बरसे
रिमझिम रिमझिम शांति सरसे।
ज्ञान की नभ बिजली कड़के
पापी मनवा अति मन धड़के।
स्वच्छ विमल हो पर्यावरण
आओ मिल सब काम करें।सारे सुख
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
12 जनवरी 2020,रविवार
जीवन सुख साधन हैं तो
आओ सुख का वरण करें।
सारे सुख जगति में है
परहित डग पर चरण धंरे।
खुद का जीना क्या जीना
परहित हित जीना है जीना।
तृषित सतत प्यासी रहना
अच्छा अति जग में मरना।
जीवन इक सपना है तो
आओ मिल साकार करें।सारे सुख
क्या पीड़ा क्या उत्कंठा है
क्या तेरा और क्या मेरा है?
सब जननी की हम संताने
अहम भाव रत क्यों रहता है?
जीवन शिक्षा का दर्पण है
सत्साहित्य मिल ध्यान करें।सारे सुख
पीड़ा आतुरता दुःख द्वेष
वसुधैव कुटुंब न रहते शेष।
खारापन श्रम का पीकर
विपदा कभी न रहे अशेष।
जीवन जीना एक कला है
पर पीड़ा नित वहन करें।सारे सुख
सुख आनन्द का मेहा बरसे
रिमझिम रिमझिम शांति सरसे।
ज्ञान की नभ बिजली कड़के
पापी मनवा अति मन धड़के।
स्वच्छ विमल हो पर्यावरण
आओ मिल सब काम करें।सारे सुख
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
उत्तरैणी कौतिक का शुभारम्भ
💘💘💘💘💘💘💘
माँ नन्दा देवी की शोभा यात्रा और स्तुति
फिर हुई मँच से साँस्कृतिक सुन्दर प्रस्तुति
माँ सरस्वति ने दी मुझको मति
तो अलँकृत शब्दों ने पाई कुछ गति।
मधुर भाव हो गये झँकृत
शब्द भी हो गये अँलकृत
बहने लगी स्वतः ही सरिता
कहते हैं जिसको कविता।
नन्हीं परियों की सुन्दर भंगिमा
बढा़ देती थी मंच की गरिमा
उनकी सुन्दर सुन्दर भाव मुद्रायें
सजीव हो गईं मानों कल्पनायें।
किशोरियों के पग की लय मय थिरकन
पर्वतीय श्रँखलाओं की उठीं हों मानों धड़कन
उमंगो भरी उनकी भोली चितवन
पहाडी़ सौम्यता का देती थीं दर्शन।
रंगोई पिछोडे़ की फैली अदभुत छटा
मंच पर उतरी सुहानी पर्वतीय घटा
हर आयु का दीवाना चन्दा
अपनी पूरी उमंग के साथ डटा।
रंगोई पिछोडा़ यानि अलग सी जगमगाहट
रंगोई पिछोडा़ यानि बसन्त की आहट
रंगोई पिछोडा़ यानि ललना की मुस्कराहट
रंगोई पिछोडा़ यानि हर पहाडी़ की चाहत।
उत्तराँचल के गीत हुए सुरमय
सुन सुन कर हुए सब तन्मय
शगुना गीतों से हुआ शगुन
पर्वतीय हवा की हुई रुनझुन।
इसी तरह होते रहें मेल मिलाप
पर्वतीय सँस्कृति की गूँजे थाप।
नमन ईष्ट
नमन देव भूमि
जय गोलू देव
💘💘💘💘💘💘💘
माँ नन्दा देवी की शोभा यात्रा और स्तुति
फिर हुई मँच से साँस्कृतिक सुन्दर प्रस्तुति
माँ सरस्वति ने दी मुझको मति
तो अलँकृत शब्दों ने पाई कुछ गति।
मधुर भाव हो गये झँकृत
शब्द भी हो गये अँलकृत
बहने लगी स्वतः ही सरिता
कहते हैं जिसको कविता।
नन्हीं परियों की सुन्दर भंगिमा
बढा़ देती थी मंच की गरिमा
उनकी सुन्दर सुन्दर भाव मुद्रायें
सजीव हो गईं मानों कल्पनायें।
किशोरियों के पग की लय मय थिरकन
पर्वतीय श्रँखलाओं की उठीं हों मानों धड़कन
उमंगो भरी उनकी भोली चितवन
पहाडी़ सौम्यता का देती थीं दर्शन।
रंगोई पिछोडे़ की फैली अदभुत छटा
मंच पर उतरी सुहानी पर्वतीय घटा
हर आयु का दीवाना चन्दा
अपनी पूरी उमंग के साथ डटा।
रंगोई पिछोडा़ यानि अलग सी जगमगाहट
रंगोई पिछोडा़ यानि बसन्त की आहट
रंगोई पिछोडा़ यानि ललना की मुस्कराहट
रंगोई पिछोडा़ यानि हर पहाडी़ की चाहत।
उत्तराँचल के गीत हुए सुरमय
सुन सुन कर हुए सब तन्मय
शगुना गीतों से हुआ शगुन
पर्वतीय हवा की हुई रुनझुन।
इसी तरह होते रहें मेल मिलाप
पर्वतीय सँस्कृति की गूँजे थाप।
नमन ईष्ट
नमन देव भूमि
जय गोलू देव
मनपसंद
छंदमुक्त कविता
मौत , एक हकीकत
है
जिन्दगी से
मौत सुहानी
न रूठने का
गम
न मनाने का
झंझट
मुकाम तलक
पहुंचाने
चार ही चाहिए
नहीं है
शौक हमें
भीड़ बढ़ाने का
यूँ तो
हजारों हैं
मयखाने में
मुझे तो
मतलब है
पैमाने से
बड़ा सुकून
देती है
मौत
न गरमी की
चुभन
न सरदी की
ठुठरन
बस करता हूँ
मैं इबादत
मौला की
चिंता नहीं मुझे
दुनियां की
रहना चाहता हूँ
मैं
फकीर
शानौ-शौकत की
है
नहीं ख्वाईश
खुला है
हर पन्ना
किताब का
कर सके
पढ़ ले
हर कोई अपना
अपने में मस्त
रहता है
"संतोष"
बहुत नहीं
बस रखता है
दोस्ती मौत से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल केम्प पुणे
छंदमुक्त कविता
मौत , एक हकीकत
है
जिन्दगी से
मौत सुहानी
न रूठने का
गम
न मनाने का
झंझट
मुकाम तलक
पहुंचाने
चार ही चाहिए
नहीं है
शौक हमें
भीड़ बढ़ाने का
यूँ तो
हजारों हैं
मयखाने में
मुझे तो
मतलब है
पैमाने से
बड़ा सुकून
देती है
मौत
न गरमी की
चुभन
न सरदी की
ठुठरन
बस करता हूँ
मैं इबादत
मौला की
चिंता नहीं मुझे
दुनियां की
रहना चाहता हूँ
मैं
फकीर
शानौ-शौकत की
है
नहीं ख्वाईश
खुला है
हर पन्ना
किताब का
कर सके
पढ़ ले
हर कोई अपना
अपने में मस्त
रहता है
"संतोष"
बहुत नहीं
बस रखता है
दोस्ती मौत से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल केम्प पुणे
12 /1/2020
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
क्या लिखूं मैं जाड़ा बेसुमार है
हर जगह की पड़ रही ठंड की मार है
लिखने को कलम उठाऐं तो हाथ कांपते
सर्द पवन के झकोरे गहराई नापते
सूरज पकड़ बैठने को करता है मन
जल्दी ही ढल जाता ऐसा बेवफा सनम
तन मन को.चुभ रही ठंडी बयार
शीत लहर को चढ़ा यौवन का खुमार
फिर भी लगता ए मौसम सुहाना
क्यों न हो अपना भी दिल दिवाना
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
क्या लिखूं मैं जाड़ा बेसुमार है
हर जगह की पड़ रही ठंड की मार है
लिखने को कलम उठाऐं तो हाथ कांपते
सर्द पवन के झकोरे गहराई नापते
सूरज पकड़ बैठने को करता है मन
जल्दी ही ढल जाता ऐसा बेवफा सनम
तन मन को.चुभ रही ठंडी बयार
शीत लहर को चढ़ा यौवन का खुमार
फिर भी लगता ए मौसम सुहाना
क्यों न हो अपना भी दिल दिवाना
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
दिनाँक-12/01/2020
शीर्षक-युवा दिवस/स्वामी विवेकानंद
विधा-हाइकु
1.
विवेकानंद
युवा शक्ति के स्रोत
ज्ञान की ज्योत
2.
युग पुरूष
स्वामी विवेकानंद
सादगी मूर्ति
3.
उच्च विचार
भारतीय संस्कृति
विवेकानंद
4.
विवेकशील
राष्ट्र भक्त युवक
विवेकानंद
5.
चरित्रवान
शिक्षा के प्रवर्तक
विवेकानंद
6.
प्रेरणा स्रोत
स्वामी विवेकानंद
देश की शान
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
शीर्षक-युवा दिवस/स्वामी विवेकानंद
विधा-हाइकु
1.
विवेकानंद
युवा शक्ति के स्रोत
ज्ञान की ज्योत
2.
युग पुरूष
स्वामी विवेकानंद
सादगी मूर्ति
3.
उच्च विचार
भारतीय संस्कृति
विवेकानंद
4.
विवेकशील
राष्ट्र भक्त युवक
विवेकानंद
5.
चरित्रवान
शिक्षा के प्रवर्तक
विवेकानंद
6.
प्रेरणा स्रोत
स्वामी विवेकानंद
देश की शान
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
नमन मंच
😄ज़माने को बताना है 😄
😄लिबास यूरोपियाना है 😄
चलती फिरती खजुराहो की मूरतीं
बन्दर बकरी चिडियायें भी घूरतीं ।।
इनसे तो अच्छे हैं अपने ये बच्चे
हद हुई इन नादानों के शऊर कीं ।।
नही पहने कपड़े ये तो बहतर हैं
इंसान अब हुए हमसे भी बदतर हैं ।।
क्या तरक्की की है इन नादानों ने
आज लगता है हम इनसे कमतर हैं ।।
दिन को दिन न रात को रात ये जाने
कोई उसूल कानून न ये पहचाने ।।
हम भी तो पैदा करते अपने बच्चे
पर समय और मौसम को हम अनुमाने ।।
हो रहे हैं देखो कैसे इंसा बरबाद
रास नही आ रहे हैं इन्हें कुदरत के साथ ।।
कुदरत के कानून तोड़ने में अव्वल हैं
बिगड़ चुके हैं मानव के सारे हालात ।।
सूखी शान बनाके मानव घूम रहा
बेशक धरती आस्माँ वो चूम रहा ।।
खो दिया है बहुत और भी खो देगा
आगे यूँ ही जो 'शिवम' महरूम रहा
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 12/01/2020
😄ज़माने को बताना है 😄
😄लिबास यूरोपियाना है 😄
चलती फिरती खजुराहो की मूरतीं
बन्दर बकरी चिडियायें भी घूरतीं ।।
इनसे तो अच्छे हैं अपने ये बच्चे
हद हुई इन नादानों के शऊर कीं ।।
नही पहने कपड़े ये तो बहतर हैं
इंसान अब हुए हमसे भी बदतर हैं ।।
क्या तरक्की की है इन नादानों ने
आज लगता है हम इनसे कमतर हैं ।।
दिन को दिन न रात को रात ये जाने
कोई उसूल कानून न ये पहचाने ।।
हम भी तो पैदा करते अपने बच्चे
पर समय और मौसम को हम अनुमाने ।।
हो रहे हैं देखो कैसे इंसा बरबाद
रास नही आ रहे हैं इन्हें कुदरत के साथ ।।
कुदरत के कानून तोड़ने में अव्वल हैं
बिगड़ चुके हैं मानव के सारे हालात ।।
सूखी शान बनाके मानव घूम रहा
बेशक धरती आस्माँ वो चूम रहा ।।
खो दिया है बहुत और भी खो देगा
आगे यूँ ही जो 'शिवम' महरूम रहा
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 12/01/2020
आज स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस पर युवाओं को समर्पित मेरी स्वरचित रचना,जिसमे युवाओं से राष्ट्रनिर्माण हेतु आह्वान किया है-
"बारह जनवरी अठारह सौ तिरसठ,
धन्य हुआ भारत माँ का आँचल,
महकीभुवनेश्वरी-विश्वनाथदत्त बगिया,
सुंदर कोमल पुष्प नरेन् से,
दैविक गुण ,आध्यात्म की प्नतिमूर्ति,
प्नखर मेधा ,विलक्षण सी प्नतिभा ,
जो संन्यासी बन हुए विवेकानंद,
रामकृष्ण परमहंस का आलोक,
गूंजा शिकागो धर्म सम्मेलन में,तो हुआ महिमामंडितभारतविश्वपटलसा
पुकार अमेरिकावासी भाई- बहिन,
साक्षी भारतीय संस्कृति की परिचायक,
उतिष्ठत्,जाग्रत,प्नाप्यावरान्निबोधत्,
हो ध्येय युवाओं का नित जीवन,
करे सुनील आह्वान युवाओं से,
हो मर्यादित ,तेजस्वी जीवन,
समरसता ,सेवाव्रत की राह,
राष्ट्रभक्ति,राष्ट्रहित,राष्ट्रप्नेरणा सर्वोपरि,
हो स्वामी जी सा आदर्श,
तभी सार्थक होगा युवा दिवस|
स्वरचित -सुनील चाष्टा
सलुम्बर (उदयपुर)
"बारह जनवरी अठारह सौ तिरसठ,
धन्य हुआ भारत माँ का आँचल,
महकीभुवनेश्वरी-विश्वनाथदत्त बगिया,
सुंदर कोमल पुष्प नरेन् से,
दैविक गुण ,आध्यात्म की प्नतिमूर्ति,
प्नखर मेधा ,विलक्षण सी प्नतिभा ,
जो संन्यासी बन हुए विवेकानंद,
रामकृष्ण परमहंस का आलोक,
गूंजा शिकागो धर्म सम्मेलन में,तो हुआ महिमामंडितभारतविश्वपटलसा
पुकार अमेरिकावासी भाई- बहिन,
साक्षी भारतीय संस्कृति की परिचायक,
उतिष्ठत्,जाग्रत,प्नाप्यावरान्निबोधत्,
हो ध्येय युवाओं का नित जीवन,
करे सुनील आह्वान युवाओं से,
हो मर्यादित ,तेजस्वी जीवन,
समरसता ,सेवाव्रत की राह,
राष्ट्रभक्ति,राष्ट्रहित,राष्ट्रप्नेरणा सर्वोपरि,
हो स्वामी जी सा आदर्श,
तभी सार्थक होगा युवा दिवस|
स्वरचित -सुनील चाष्टा
सलुम्बर (उदयपुर)
कांटों से निभाना चाहता है।
दिल है कि मुस्कुराना चाहता है।।
भुला कर भूल सब गुजरी हुई।
नयी दुनिया बसाना चाहता है।।
क्या जरा ऊंचा लगा मेरा मयार।
उठा कर फिर गिराना चाहता है।।
वो जिसकी लूट थीं फितरत सदा।
वही सब कुछ लुटाना चाहता है।।
मिला पाया न जो नज़रें कभी।
मुझे वो आजमाना चाहता है।।
बहुत डरने लगा है भीड़ में दिल।
कोई तन्हा ठिकाना चाहता है।।
कहो कुछ शेर कि गाने लगे वो।
नहीं जो गुनगुनाना चाहता है।।
सियासत जलजलों की है जहां पर।
वहीं तू घर बनाना चाहता है।।
हुई कब यह दुनिया भला किसकी।
किसे अपना बनाना चाहता है।।
कितनी बड़ी बातें बनाकर वोह।
मुझे फिर से बनाना चाहता है।।
बना कर भेस वो अपना फकीरी।
निरी दौलत कमाना चाहता है।।
मुझको दिए जख्मों को सहलाकर।
बहुत अहसां जताना चाहता है।।
करता उसे शरीके रंगो महफ़िल।
वो मेरी मय्यत पे आना चाहता है।
ऐसे उठा कर उंगलियां किस पर।
मुझे आईना दिखाना चाहता है।।
विपिन सोहल स्वरचित
दिल है कि मुस्कुराना चाहता है।।
भुला कर भूल सब गुजरी हुई।
नयी दुनिया बसाना चाहता है।।
क्या जरा ऊंचा लगा मेरा मयार।
उठा कर फिर गिराना चाहता है।।
वो जिसकी लूट थीं फितरत सदा।
वही सब कुछ लुटाना चाहता है।।
मिला पाया न जो नज़रें कभी।
मुझे वो आजमाना चाहता है।।
बहुत डरने लगा है भीड़ में दिल।
कोई तन्हा ठिकाना चाहता है।।
कहो कुछ शेर कि गाने लगे वो।
नहीं जो गुनगुनाना चाहता है।।
सियासत जलजलों की है जहां पर।
वहीं तू घर बनाना चाहता है।।
हुई कब यह दुनिया भला किसकी।
किसे अपना बनाना चाहता है।।
कितनी बड़ी बातें बनाकर वोह।
मुझे फिर से बनाना चाहता है।।
बना कर भेस वो अपना फकीरी।
निरी दौलत कमाना चाहता है।।
मुझको दिए जख्मों को सहलाकर।
बहुत अहसां जताना चाहता है।।
करता उसे शरीके रंगो महफ़िल।
वो मेरी मय्यत पे आना चाहता है।
ऐसे उठा कर उंगलियां किस पर।
मुझे आईना दिखाना चाहता है।।
विपिन सोहल स्वरचित
दिनांक- 12/01/2020
शीर्षक- स्वतंत्र लेखनविधा- हाइकु
आप सभी को स्वामी विवेकानंद जंयती की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 🙏🌹🌹🌹
**********************
(1)
उच्च विचार
सफलता की कुंजी
विवेकानंद
(2)
युवा आदर्श
साहस के प्रतीक
विवेकानंद
(3)
विवेकानंद
वास्तविक था नाम
नरेन्द्र नाथ
(4)
हुई स्थापना
रामाकृष्ण मिशन
विवेकानंद
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- स्वतंत्र लेखनविधा- हाइकु
आप सभी को स्वामी विवेकानंद जंयती की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 🙏🌹🌹🌹
**********************
(1)
उच्च विचार
सफलता की कुंजी
विवेकानंद
(2)
युवा आदर्श
साहस के प्रतीक
विवेकानंद
(3)
विवेकानंद
वास्तविक था नाम
नरेन्द्र नाथ
(4)
हुई स्थापना
रामाकृष्ण मिशन
विवेकानंद
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
वारः-रविवार
विधा- छन्द मुक्त
स्वतन्त्र विषय लेखन
शीर्षकः शीत ऋतु में नहाना बाबा रे बाबा
पढ़ी फेस बुक पर कवि मित्र की कथा।
हुआ व्यथित हृदय,जान उनकी व्यथा।।
दिया हुआ प्रभु का सब था उनके पास ।
थे सन्तुष्ट पूर्ण, नहीं अधिक की प्यास।।
शीत में नहाने से लगता था उनको डर।
जल डालने से पहले कांपते थे थर थर।।
चाहते थे दे कोई तो नहाने की प्रेरणा।
कर सकें आरम्भ वह जाड़ों में नहाना।।
बतलाता हूँ प्रेम से, करें नहीं ऐसी भूल।
डालें नहीं जाड़ों में,अपने ऊपर ठंडा जल।।
सुनाता हूँ श्रीमन आपको एक कहावत।
मर्जी आपकी चाहे मानो या मानो मत।।
मुंह धोये रोजी खोये नहाये नर्क को जाय।
कुल्ला करे जो भूल से पट्ट मर जाये ।।
जाड़ो में भूल कर ठंडे जल से न नहाये।
गर्म जल से भी रोज रोज क्यों नहाये ।।
होते हैं श्रीमान महीने में चार रविवार ।
गर्म पानी से नहाओ सिर्फ हर रविवार ।।
लगे अगर अधिक तो नहाओ दो रविवार।
होगी नहीं हानि इसमें कोई भी मेरे यार।।
पहनिये कपड़े रोज़ ही धुले हुये कलफदार।
छिड़किये उस पे इत्र बढ़िया व खुशबूदार।।
लगोगे इस प्रकार हमेशा आप सदाबहार।
रहोगे रोज नहाने वालों से भी महकदार।।
गर्मी में चाहो तो नहाओ दिन में दो बार।
बताना यही नहाते हो साल में 730 बार।।
शेष दिनों में स्नानघर आप रोज जाइये ।
बहा पानी कपड़े बदल, अकड़ कर आईये।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
विधा- छन्द मुक्त
स्वतन्त्र विषय लेखन
शीर्षकः शीत ऋतु में नहाना बाबा रे बाबा
पढ़ी फेस बुक पर कवि मित्र की कथा।
हुआ व्यथित हृदय,जान उनकी व्यथा।।
दिया हुआ प्रभु का सब था उनके पास ।
थे सन्तुष्ट पूर्ण, नहीं अधिक की प्यास।।
शीत में नहाने से लगता था उनको डर।
जल डालने से पहले कांपते थे थर थर।।
चाहते थे दे कोई तो नहाने की प्रेरणा।
कर सकें आरम्भ वह जाड़ों में नहाना।।
बतलाता हूँ प्रेम से, करें नहीं ऐसी भूल।
डालें नहीं जाड़ों में,अपने ऊपर ठंडा जल।।
सुनाता हूँ श्रीमन आपको एक कहावत।
मर्जी आपकी चाहे मानो या मानो मत।।
मुंह धोये रोजी खोये नहाये नर्क को जाय।
कुल्ला करे जो भूल से पट्ट मर जाये ।।
जाड़ो में भूल कर ठंडे जल से न नहाये।
गर्म जल से भी रोज रोज क्यों नहाये ।।
होते हैं श्रीमान महीने में चार रविवार ।
गर्म पानी से नहाओ सिर्फ हर रविवार ।।
लगे अगर अधिक तो नहाओ दो रविवार।
होगी नहीं हानि इसमें कोई भी मेरे यार।।
पहनिये कपड़े रोज़ ही धुले हुये कलफदार।
छिड़किये उस पे इत्र बढ़िया व खुशबूदार।।
लगोगे इस प्रकार हमेशा आप सदाबहार।
रहोगे रोज नहाने वालों से भी महकदार।।
गर्मी में चाहो तो नहाओ दिन में दो बार।
बताना यही नहाते हो साल में 730 बार।।
शेष दिनों में स्नानघर आप रोज जाइये ।
बहा पानी कपड़े बदल, अकड़ कर आईये।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनाँक - 12/1/2020
भारत के महान संत, महापुरुष, प्रेरणा स्रोत, रामकिशन मिशन के संस्थापक, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस और राष्ट्रीय युवा दिवस की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
---थे विवेकानन्द बड़े महान---
भारत माँ के वीर सपूत
देशभक्ति भरी थी कूट-कूट
किया भारत माँ का गुणगान
थे विवेकानन्द बड़े महान
दिव्य सोच थी दिव्य दृष्टि
करती जिस पर नाज सृष्टि
बढ़ाया भारत का सम्मान
थे विवेकानन्द बड़े महान
नरेन्द्र था बचपन का नाम
ऊंची सोच थी ऊंचे काम
भगवाधारी रखते परम् ज्ञान
थे विवेकानन्द बड़े महान
शिकांगों में परचम फहराया
जग में अपना नाम चमकाया
तुम से बढ़ी भारत की शान
थे विवेकानन्द बड़े महान
सोये लोगों को तुमने जगाया
भारत को विश्व गुरू बनाया
कोटि-कोटि तुम्हे प्रणाम
थे विवेकानन्द बड़े महान
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
भारत के महान संत, महापुरुष, प्रेरणा स्रोत, रामकिशन मिशन के संस्थापक, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस और राष्ट्रीय युवा दिवस की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
---थे विवेकानन्द बड़े महान---
भारत माँ के वीर सपूत
देशभक्ति भरी थी कूट-कूट
किया भारत माँ का गुणगान
थे विवेकानन्द बड़े महान
दिव्य सोच थी दिव्य दृष्टि
करती जिस पर नाज सृष्टि
बढ़ाया भारत का सम्मान
थे विवेकानन्द बड़े महान
नरेन्द्र था बचपन का नाम
ऊंची सोच थी ऊंचे काम
भगवाधारी रखते परम् ज्ञान
थे विवेकानन्द बड़े महान
शिकांगों में परचम फहराया
जग में अपना नाम चमकाया
तुम से बढ़ी भारत की शान
थे विवेकानन्द बड़े महान
सोये लोगों को तुमने जगाया
भारत को विश्व गुरू बनाया
कोटि-कोटि तुम्हे प्रणाम
थे विवेकानन्द बड़े महान
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
स्वपसंद
तिथि-12/1/2020/रविवार
विषय-*अध्यात्म*
विधा- गजल(21)
तुम्हें दर्द दूं और तुम्हें ही दुआ दूं।
पता नहीं कौन में सभी का खुदा हूं।
दिखूं नहीं किसी को फिर भी रहूं मैं,
कहते हैं लोग मैकि सबकी दवा हूं।
रहो चाहे पास तुम दूर हों किनारे
मुझे मानते सब क्यूं सबसे जुदा हूं।
करता हूं प्रीत मैं प्रतीत नहीं होता,
सचमुच फूलता फूटता बुदबुदा हूं।
तुम्हारा नहीं यहां किसी का नहीं मैं,
अकेला हूं नहीं कहीं शादीशुदा हूं।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना ,गुना मप्र
तिथि-12/1/2020/रविवार
विषय-*अध्यात्म*
विधा- गजल(21)
तुम्हें दर्द दूं और तुम्हें ही दुआ दूं।
पता नहीं कौन में सभी का खुदा हूं।
दिखूं नहीं किसी को फिर भी रहूं मैं,
कहते हैं लोग मैकि सबकी दवा हूं।
रहो चाहे पास तुम दूर हों किनारे
मुझे मानते सब क्यूं सबसे जुदा हूं।
करता हूं प्रीत मैं प्रतीत नहीं होता,
सचमुच फूलता फूटता बुदबुदा हूं।
तुम्हारा नहीं यहां किसी का नहीं मैं,
अकेला हूं नहीं कहीं शादीशुदा हूं।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना ,गुना मप्र
दिनाँक-12/1/2020
विषय-स्वतंत्र लेखन
जग की, सृष्टि कर्ता मैं ,
लेने को जन्म, तरसती हूँ।
गर्भ में, मारी जाती हूँ,
निरपराध दण्ड भुगतती हूँ।।
दुर्गा, काली, की उपमा से,
भूषित, मुदित हो जाती हूँ।
फिर अपने ही ,सदनों में
फूँकी, कुचली जाती हूँ।।
अस्तित्व ढूँढ़ती सदियों से,
मुझको भी, अधिकार चाहिए,
वासना, की बलिवेदी नहीं
प्यार भरा ,संसार चाहिए।।
मोह के प्यारे धागे बाँधे
पापा की प्यारी बेटी हूँ।
भैया का रास्ता देख रही
सजाए राखी मैं बैठी हूँ।
सहनशीलता की धरती हूँ,
मैं ,लहर,उमँग,उत्साह की।
मत मारो मुझको ,तुम ऐसे,
परवाह करो मेरी आह की।।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय-स्वतंत्र लेखन
जग की, सृष्टि कर्ता मैं ,
लेने को जन्म, तरसती हूँ।
गर्भ में, मारी जाती हूँ,
निरपराध दण्ड भुगतती हूँ।।
दुर्गा, काली, की उपमा से,
भूषित, मुदित हो जाती हूँ।
फिर अपने ही ,सदनों में
फूँकी, कुचली जाती हूँ।।
अस्तित्व ढूँढ़ती सदियों से,
मुझको भी, अधिकार चाहिए,
वासना, की बलिवेदी नहीं
प्यार भरा ,संसार चाहिए।।
मोह के प्यारे धागे बाँधे
पापा की प्यारी बेटी हूँ।
भैया का रास्ता देख रही
सजाए राखी मैं बैठी हूँ।
सहनशीलता की धरती हूँ,
मैं ,लहर,उमँग,उत्साह की।
मत मारो मुझको ,तुम ऐसे,
परवाह करो मेरी आह की।।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय-स्वतंत्र
विधा-दोहे
दिनांक-12/1/2020
रविवार
विवेकानंद जयंती पर मेरी यह रचना :
था भारत के मान पर,उनको ये अभिमान।
ज्ञान ,दिव्यता ही सदा,है भारत की शान।।
था विवेक उपदेश ये,माॅ का हो सम्मान।
हीरा था वह कीमती,कार्य सदा महान।
थे गौरव वे देश के,ऊॅचे सदा विचार।
स्वार्थ उनमें था नही,न ही कोई विकार।।
निर्बलता है मौत सम,उनका था ये मंत्र।
कर प्रयास आगे बढो,हो कोई भी तंत्र।।
मानव सेवा ही सदा,है जीवन का लक्ष्य।
राष्ट् प्रगति हो सदा,उनका था ये कथ्य।
विश्व एकता ये रहे,दिया शाॅति संदेश।
भीतर रखना दिव्यता,ये उनका उपदेश।।
जोर युवाओं पर रहा,हो चेतना प्रसार।
आगे बढते ही रहो,हो न कोई विकार।।
की मीमाॅसा धर्म की,बढा देश का मान।
जेनेवा में वे गये,सिद्ध किया सब ज्ञान।।
गीता का उपदेश दे,करते धर्म प्रचार।
भारत विश्व गुरू बने,हो सपना साकार।।
स्वरचित
डाॅ एन एल शर्मा' निर्भय ,जयपुर
विधा-दोहे
दिनांक-12/1/2020
रविवार
विवेकानंद जयंती पर मेरी यह रचना :
था भारत के मान पर,उनको ये अभिमान।
ज्ञान ,दिव्यता ही सदा,है भारत की शान।।
था विवेक उपदेश ये,माॅ का हो सम्मान।
हीरा था वह कीमती,कार्य सदा महान।
थे गौरव वे देश के,ऊॅचे सदा विचार।
स्वार्थ उनमें था नही,न ही कोई विकार।।
निर्बलता है मौत सम,उनका था ये मंत्र।
कर प्रयास आगे बढो,हो कोई भी तंत्र।।
मानव सेवा ही सदा,है जीवन का लक्ष्य।
राष्ट् प्रगति हो सदा,उनका था ये कथ्य।
विश्व एकता ये रहे,दिया शाॅति संदेश।
भीतर रखना दिव्यता,ये उनका उपदेश।।
जोर युवाओं पर रहा,हो चेतना प्रसार।
आगे बढते ही रहो,हो न कोई विकार।।
की मीमाॅसा धर्म की,बढा देश का मान।
जेनेवा में वे गये,सिद्ध किया सब ज्ञान।।
गीता का उपदेश दे,करते धर्म प्रचार।
भारत विश्व गुरू बने,हो सपना साकार।।
स्वरचित
डाॅ एन एल शर्मा' निर्भय ,जयपुर
12/01/2020
विषय: युवा दिवस
युवा दिवस
मंच पर आसीन
वृद्ध नेता जी
युवा दिवस
युवक के हाथ में
स्वामी का चित्र
युवा दिवस
विवेकानंद चित्र
दीवार पर
स्वरचित
©मनीष कुमार श्रीवास्तव
विषय: युवा दिवस
युवा दिवस
मंच पर आसीन
वृद्ध नेता जी
युवा दिवस
युवक के हाथ में
स्वामी का चित्र
युवा दिवस
विवेकानंद चित्र
दीवार पर
स्वरचित
©मनीष कुमार श्रीवास्तव
विषय- स्वतंत्र लेखन
दिनांक १२-१-२०२०अक्सर यह सवाल,मैं खुद से ही पूछा करती हूँ।
क्या यही जिंदगी है,जिसको मैं जिया करती हूँ।
लेखनी में अपने जज्बातों को,मैं बयां करती हूँ।
इसी माध्यम,समाज को राह दिखाया करती हूँ।
जिंदगी अनमोल मिली,सार्थक इसे मैं करती हूँ।
बड़े बुजुर्ग आशीष से,सदा आगे बढ़ा करती हूँ।
जहां को दिखाने,चेहरे पे मुस्कुराहट रखती हूँ।
जिंदगी का हर पल,अपनों संग जिया करती हूँ।
पुरुष प्रधान समाज,आईना दिखाया करती हूँ।
होता नारी अत्याचार ,कमजोर बताया करती हूँ।
मैं हकीकत को ,सदा लेखनी में बयां करती हूँ।
ना समझे अगर कोई,उसे सदा नादान कहती हूँ।
प्रभु श्रेष्ठ रचना,शिकायत में ना कभी करती हूँ।
जिंदगी को हर रोज,नए ढंग से जिया करती हूँ।
गलत सही का फैसला,स्व विवेक मैं करती हूँ।
गुरूर जिंदगी में, कभी नहीं किया करती हूँ।
आत्ममंथन से ,अपने भावों को व्यक्त करती हूँ।
जिंदगी अहम फैसला,जल्दबाजी नहीं लेती हूँ।
आ जाए कब बुलावा,बुरा ना किसी का करती हूँ।
कहती वीणा, प्रभू दर्शन मैं सदैव तैयार रहती हूँ।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक १२-१-२०२०अक्सर यह सवाल,मैं खुद से ही पूछा करती हूँ।
क्या यही जिंदगी है,जिसको मैं जिया करती हूँ।
लेखनी में अपने जज्बातों को,मैं बयां करती हूँ।
इसी माध्यम,समाज को राह दिखाया करती हूँ।
जिंदगी अनमोल मिली,सार्थक इसे मैं करती हूँ।
बड़े बुजुर्ग आशीष से,सदा आगे बढ़ा करती हूँ।
जहां को दिखाने,चेहरे पे मुस्कुराहट रखती हूँ।
जिंदगी का हर पल,अपनों संग जिया करती हूँ।
पुरुष प्रधान समाज,आईना दिखाया करती हूँ।
होता नारी अत्याचार ,कमजोर बताया करती हूँ।
मैं हकीकत को ,सदा लेखनी में बयां करती हूँ।
ना समझे अगर कोई,उसे सदा नादान कहती हूँ।
प्रभु श्रेष्ठ रचना,शिकायत में ना कभी करती हूँ।
जिंदगी को हर रोज,नए ढंग से जिया करती हूँ।
गलत सही का फैसला,स्व विवेक मैं करती हूँ।
गुरूर जिंदगी में, कभी नहीं किया करती हूँ।
आत्ममंथन से ,अपने भावों को व्यक्त करती हूँ।
जिंदगी अहम फैसला,जल्दबाजी नहीं लेती हूँ।
आ जाए कब बुलावा,बुरा ना किसी का करती हूँ।
कहती वीणा, प्रभू दर्शन मैं सदैव तैयार रहती हूँ।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-12/01/2020
स्वतंत्र सृजन
युवा दिवस....
शून्य शौर्य का था जब उत्तेजित
विश्व पड़ा था इस पर विच्छेदित।
शस्य श्यामला का वसुधा गौरव
घोर निराशा मे था ........ सशंकित
मानचित्र पे पश्चिमी ज्ञान था अंकित
एक युवा पहुंचा विश्व धर्म संसद में
सम्मेलन हुआ धर्मों की परिपाटी का
नरेंद्रनाथ पहुंचा भारत की माटी का
जिसके शब्दों को सुनकर समूची सभा मौन हुई.......
तर्क नहीं कोई कर सका
जो धर्म सभा बोल गए
भारत का भैरव भूखा है
वह नेत्र सभी के खोल गए
भारत ने ही सभी धर्मों की
सभ्य संस्कृति को स्वीकारा
भारत की चिंतन का यही
मूल मंत्र है ...........हमारा।।
शून्य के प्रखर प्रहर में
अनंत अस्तबल में बैठा
उनका मन प्रत्यूर से कहता..
शून्य मेरे मन का सुरभित छंद बने
हे मेरे ईश्वर ,हे मेरे दाता
मैं ऐसी कविता मांगता हूं
युवा पीढ़ी संभलकर विवेकानंद बने।।
न पनघट पर पनिहारी भटके
ज्ञान मस्तिष्क में सबके अटके
राग द्वेष ना किसी के दर फटके
राम रहीम में ना भेद.... समझे
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
स्वतंत्र सृजन
युवा दिवस....
शून्य शौर्य का था जब उत्तेजित
विश्व पड़ा था इस पर विच्छेदित।
शस्य श्यामला का वसुधा गौरव
घोर निराशा मे था ........ सशंकित
मानचित्र पे पश्चिमी ज्ञान था अंकित
एक युवा पहुंचा विश्व धर्म संसद में
सम्मेलन हुआ धर्मों की परिपाटी का
नरेंद्रनाथ पहुंचा भारत की माटी का
जिसके शब्दों को सुनकर समूची सभा मौन हुई.......
तर्क नहीं कोई कर सका
जो धर्म सभा बोल गए
भारत का भैरव भूखा है
वह नेत्र सभी के खोल गए
भारत ने ही सभी धर्मों की
सभ्य संस्कृति को स्वीकारा
भारत की चिंतन का यही
मूल मंत्र है ...........हमारा।।
शून्य के प्रखर प्रहर में
अनंत अस्तबल में बैठा
उनका मन प्रत्यूर से कहता..
शून्य मेरे मन का सुरभित छंद बने
हे मेरे ईश्वर ,हे मेरे दाता
मैं ऐसी कविता मांगता हूं
युवा पीढ़ी संभलकर विवेकानंद बने।।
न पनघट पर पनिहारी भटके
ज्ञान मस्तिष्क में सबके अटके
राग द्वेष ना किसी के दर फटके
राम रहीम में ना भेद.... समझे
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
12/1/20
विषय --युग पुरुष विवेकानंद जी जयंती पर सादर नमन
तुझमे है सूरज सी दमक
चंदा के जैसी है चमक
बिन पंखोके रखता उड़ान
हे युवापुरुष तुमको प्रणाम
मंसूबो को करता नाकाम
नही करना तुमको है आराम
चाहे छूना हो तुम्हे आसमान
नही सीखा है तूने विराम
तुफानो का करता सत्कार
हौसलों की लेकर उड़ान
तू करे आसमान में सुराख
हो या न हो कायनात
जोश से रहता तैयार
कितने ही करता तू अविष्कार
युवा दिवस के युवातार
शत शत तुमको नमस्कार
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय --युग पुरुष विवेकानंद जी जयंती पर सादर नमन
तुझमे है सूरज सी दमक
चंदा के जैसी है चमक
बिन पंखोके रखता उड़ान
हे युवापुरुष तुमको प्रणाम
मंसूबो को करता नाकाम
नही करना तुमको है आराम
चाहे छूना हो तुम्हे आसमान
नही सीखा है तूने विराम
तुफानो का करता सत्कार
हौसलों की लेकर उड़ान
तू करे आसमान में सुराख
हो या न हो कायनात
जोश से रहता तैयार
कितने ही करता तू अविष्कार
युवा दिवस के युवातार
शत शत तुमको नमस्कार
स्वरचित
मीना तिवारी
"स्वतन्त्र लेखन"
दिनांक :- 12/01/2020.
गज़ल
----------
जल गए दिल कोपलों के,आज नवप्रभात में।
आदमी दिखता नहीं अब आदमी की जात में।
दिन - दहाड़े रोज - मर्रा, मर रही हैं जिंदगी,
दे जिला,तासीर अब दिखती, ना आबे-हयात में।
इस तरह माहौल बिगड़ा,रहबरों की क्या मजाल,
जो अडंगा डाल दें, अब रहजनों की बात में।
दोष मत देना किसी को,जाने क्या किसने कहा,
सादगी पिटती रही, नव सभ्यता की बिसात में।
गमजदा माहौल में , सोचा किए अब क्या करें,
रहनुमा ढूंढा किए, क्या शहर ? क्या देहात में।
खौफ तारी हो 'तरुण', दिन के उजालों में जहां,
क्या मिलेगा? साफ जाहिर है, वहां की रात में।
*********************0****************
दिनांक :- 12/01/2020.
गज़ल
----------
जल गए दिल कोपलों के,आज नवप्रभात में।
आदमी दिखता नहीं अब आदमी की जात में।
दिन - दहाड़े रोज - मर्रा, मर रही हैं जिंदगी,
दे जिला,तासीर अब दिखती, ना आबे-हयात में।
इस तरह माहौल बिगड़ा,रहबरों की क्या मजाल,
जो अडंगा डाल दें, अब रहजनों की बात में।
दोष मत देना किसी को,जाने क्या किसने कहा,
सादगी पिटती रही, नव सभ्यता की बिसात में।
गमजदा माहौल में , सोचा किए अब क्या करें,
रहनुमा ढूंढा किए, क्या शहर ? क्या देहात में।
खौफ तारी हो 'तरुण', दिन के उजालों में जहां,
क्या मिलेगा? साफ जाहिर है, वहां की रात में।
*********************0****************
12 जनवरी 2020 रविवार
विषय--स्वतंत्र
विधा--मनपसंद
*********************
-------युवाओं से------
********
अो जवानी !
इतराना मत
अपनी हैसियत पर
आँखें हैं तो देख
देख अपने
उस माली को
जिसके पसीने की बूँदें
आज तेरे जीवन में
खुशियों के मोती बन कर
चमक रहे हैं
अनगिनत गुलाब के फूल
बन कर गमक रहे हैं
देख उसे आँखें खोल
मत बन अन्धा
निज हृदय-पट खोल
जिसने सजाया तुझे
बचपन से आज तक,
मगरूर होना छोड़
उस बुढ़ापा को सहारा तो दो,
जिस नाव में बैठ कर
अब तक तय करते रहे
जिन्दगी का सफर
आज उसी
लड़खड़ाती नाव को
सुख भरा किनारा तो दो.
*********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार
विषय--स्वतंत्र
विधा--मनपसंद
*********************
-------युवाओं से------
********
अो जवानी !
इतराना मत
अपनी हैसियत पर
आँखें हैं तो देख
देख अपने
उस माली को
जिसके पसीने की बूँदें
आज तेरे जीवन में
खुशियों के मोती बन कर
चमक रहे हैं
अनगिनत गुलाब के फूल
बन कर गमक रहे हैं
देख उसे आँखें खोल
मत बन अन्धा
निज हृदय-पट खोल
जिसने सजाया तुझे
बचपन से आज तक,
मगरूर होना छोड़
उस बुढ़ापा को सहारा तो दो,
जिस नाव में बैठ कर
अब तक तय करते रहे
जिन्दगी का सफर
आज उसी
लड़खड़ाती नाव को
सुख भरा किनारा तो दो.
*********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार
12.1.2020
रविवार
मनपसंद
नया है साल
🌹🌹🌹🌹
नया है साल आएँगे,नए पल और कितने ही
नया है आज आएँगे,नए कल और कितने ही।।
ये कल फिर आज में ढल कर
नया कल आज होने तक
नए अंदाज़ लाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नई कलियाँ खिलेंगी,फूल भी महकेंगे, विहँसेंगे
नए रंग ले के आएँगे,नए पल और कितने ही।।
नए हर साज़ होंगे ,गीत भी, संगीत भी होगा
नए सुर भी सुनाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नया आग़ाज़ फिर होगा,नए अंजाम भी होंगे
नए अंजाम लाएँगे,नए आग़ाज़ कितने ही।।
नई मंज़िल,नई राहें,नए क़िस्से, नए रिश्ते
नया जीवन सजाएँगे,’उदार’
हम और कितने ही ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
रविवार
मनपसंद
नया है साल
🌹🌹🌹🌹
नया है साल आएँगे,नए पल और कितने ही
नया है आज आएँगे,नए कल और कितने ही।।
ये कल फिर आज में ढल कर
नया कल आज होने तक
नए अंदाज़ लाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नई कलियाँ खिलेंगी,फूल भी महकेंगे, विहँसेंगे
नए रंग ले के आएँगे,नए पल और कितने ही।।
नए हर साज़ होंगे ,गीत भी, संगीत भी होगा
नए सुर भी सुनाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नया आग़ाज़ फिर होगा,नए अंजाम भी होंगे
नए अंजाम लाएँगे,नए आग़ाज़ कितने ही।।
नई मंज़िल,नई राहें,नए क़िस्से, नए रिश्ते
नया जीवन सजाएँगे,’उदार’
हम और कितने ही ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
रविवार
१२,१,२०२०,
*युवा*
युवा हमारे
साहसी, संस्कारित
दिली तमन्ना।
युवा दिवस
विवेकानंद स्मृति
श्रद्धा सुमन।
दुरुपयोग
बेरोजगार युवा
राजनीतिज्ञ।
दृढ़ संकल्प
मेहनत लगन
समृद्ध युवा।
चाहत शिक्षा
श्रम उपलब्धता
सम्मान युवा।
भ्रमित युवा
असामाजिक तत्व
लेते फायदा।
मार्ग दर्शन
अवसर पर्याप्त
युवा विकास।
घर समाज
कर्णधार देश के
युवा सहारे।
स्वरचित, मधु शुक्ला,
सतना, मध्यप्रदेश,‘
दिन :- रविवार
दिनांक :- 12/01/2020
विषय :- स्वतंत्र लेखन
वज्रपात सी घात लगी है..
साँसों के इस बंधन को..
मृत्यु खड़ी बाँट जोह रही...
बेबस तन आलिंगन को..
खिले नयन यम दर्श को..
अधरों पर बिखरी मुस्कान..
लेकर गठरी कर्मों की..
तन छोड़ रहा ये पहचान..
कुंठित,कुत्सित तन ये..
हो जाएगा पल में खाक..
गंगा दर्शन को तरसेगा..
बंद मटकी में बन राख..
हृदय विदिर्ण हो उठेगा..
देखकर सब ये हालात..
तन-मन भर जाएंगे सब..
उभरेंगे दर्द के जज्बात..
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 12/01/2020
विषय :- स्वतंत्र लेखन
वज्रपात सी घात लगी है..
साँसों के इस बंधन को..
मृत्यु खड़ी बाँट जोह रही...
बेबस तन आलिंगन को..
खिले नयन यम दर्श को..
अधरों पर बिखरी मुस्कान..
लेकर गठरी कर्मों की..
तन छोड़ रहा ये पहचान..
कुंठित,कुत्सित तन ये..
हो जाएगा पल में खाक..
गंगा दर्शन को तरसेगा..
बंद मटकी में बन राख..
हृदय विदिर्ण हो उठेगा..
देखकर सब ये हालात..
तन-मन भर जाएंगे सब..
उभरेंगे दर्द के जज्बात..
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
12.1.2020
रविवार
मनपसंद
नया है साल
🌹🌹🌹🌹
नया है साल आएँगे,नए पल और कितने ही
नया है आज आएँगे,नए कल और कितने ही।।
ये कल फिर आज में ढल कर
नया कल आज होने तक
नए अंदाज़ लाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नई कलियाँ खिलेंगी,फूल भी महकेंगे, विहँसेंगे
नए रंग ले के आएँगे,नए पल और कितने ही।।
नए हर साज़ होंगे ,गीत भी, संगीत भी होगा
नए सुर भी सुनाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नया आग़ाज़ फिर होगा,नए अंजाम भी होंगे
नए अंजाम लाएँगे,नए आग़ाज़ कितने ही।।
नई मंज़िल,नई राहें,नए क़िस्से, नए रिश्ते
नया जीवन सजाएँगे,’उदार’
हम और कितने ही ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
रविवार
मनपसंद
नया है साल
🌹🌹🌹🌹
नया है साल आएँगे,नए पल और कितने ही
नया है आज आएँगे,नए कल और कितने ही।।
ये कल फिर आज में ढल कर
नया कल आज होने तक
नए अंदाज़ लाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नई कलियाँ खिलेंगी,फूल भी महकेंगे, विहँसेंगे
नए रंग ले के आएँगे,नए पल और कितने ही।।
नए हर साज़ होंगे ,गीत भी, संगीत भी होगा
नए सुर भी सुनाएँगे,नए पल और कितने ही।।
नया आग़ाज़ फिर होगा,नए अंजाम भी होंगे
नए अंजाम लाएँगे,नए आग़ाज़ कितने ही।।
नई मंज़िल,नई राहें,नए क़िस्से, नए रिश्ते
नया जीवन सजाएँगे,’उदार’
हम और कितने ही ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
विषय_ मुक्त सृजन |
युवाओ का आवाहन |
देश के ककर्णधारो उठो जागो
सोने का समय नही ,कुछ कर्म करो |न भटको अपनी राहो से समय नही खोने का ये |
देश मे न फैलाओ अराजकता ,
न करो अपनी शक्तियों का हास
करो सदुपयोग देश के विकास मे |
क्या रखा हडताल दंगे फंसाद मे
देश की संपति को न हानि पहुँचाओ |
करो निज कर्म को आगे बडाने साहस |
तुम मे ही हे संत विवेकानंद भगत सिह
करो उत्थान देश का यू भ्रमित न होवौ |
उठो समय हे अभी जागो उठो लक्ष्य पाओ |
रखो एक लक्ष्य हर युवा देखो
तुम बदल सकते भारत माँ
पुकार ती माँ तुम्हे उठो उठो |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
युवाओ का आवाहन |
देश के ककर्णधारो उठो जागो
सोने का समय नही ,कुछ कर्म करो |न भटको अपनी राहो से समय नही खोने का ये |
देश मे न फैलाओ अराजकता ,
न करो अपनी शक्तियों का हास
करो सदुपयोग देश के विकास मे |
क्या रखा हडताल दंगे फंसाद मे
देश की संपति को न हानि पहुँचाओ |
करो निज कर्म को आगे बडाने साहस |
तुम मे ही हे संत विवेकानंद भगत सिह
करो उत्थान देश का यू भ्रमित न होवौ |
उठो समय हे अभी जागो उठो लक्ष्य पाओ |
रखो एक लक्ष्य हर युवा देखो
तुम बदल सकते भारत माँ
पुकार ती माँ तुम्हे उठो उठो |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
भावों के मोती।
नमन मंच।
विषय-स्वतन्त्र लेखन।
युवा दिवस पर।
स्वरचित।
धन्य धन्य जो हर युग में हमने पाये रत्न महान।
सब में एक नाम नरेन्द्र का हुआ विश्वभर में महान।।
बारह जनवरी,अठारह सौ तिरेसठ मकर संक्रांति काल।
कोलकाता में पैदा हुआ हिंदू घर में एक ओजस्वी लाल ।
पढ़े-लिखे थे दादा-पापा मां की धार्मिक थी पहचान।।
पालने में ही दीख रहे थे उस जिज्ञासु के पांव।
अस्तित्व क्या है मेरा सोचे,और जग से क्या है नाता ।
श्रद्धा थी सन्यासियों के प्रति पर तर्क भी था विद्यमान ।।
दर्शन पढ़ा, डिग्रियां पाईं पर ना जिज्ञासा हुई शांत।
अठारह सौ इक्यासी में परमहंस ने किया प्रभावित
तर्कों का देकर जवाब करदी जिज्ञासा नरेंद्र की शांत।
शिष्य बन गए नरेंद्र उनके वेदों का लिया फिर ज्ञान ।।
भ्रमण किया पूरे भारत का, विवेकानंद हुआ फिर नाम
अठारह सौ तिरानवै में शिकागो में ध्वज लहराया था।
अद्भुत शैली ओजस्वी वाणी ने सबको था बांध लिया।
धर्म गुरुओं के बीच श्रीमद्भागवत पर किया व्याख्यान।।
वेदांत सोसाइटी स्थापना कर वेदों का ज्ञान प्रचार किया। पहली बार विश्व भर में भारत की धर्म ध्वजा को लहराया।
हिंदू सनातन धर्म हमारा प्राचीन सबसे यह मनवाया था।
बिन बन्दिश के आस्था, स्वतंत्र नर नारी हैं औ हर प्राणी है। करुणा, दया, मानवता,विश्वबन्धुत्व यही पहचान हमारी है।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
12/01/2020
नमन मंच।
विषय-स्वतन्त्र लेखन।
युवा दिवस पर।
स्वरचित।
धन्य धन्य जो हर युग में हमने पाये रत्न महान।
सब में एक नाम नरेन्द्र का हुआ विश्वभर में महान।।
बारह जनवरी,अठारह सौ तिरेसठ मकर संक्रांति काल।
कोलकाता में पैदा हुआ हिंदू घर में एक ओजस्वी लाल ।
पढ़े-लिखे थे दादा-पापा मां की धार्मिक थी पहचान।।
पालने में ही दीख रहे थे उस जिज्ञासु के पांव।
अस्तित्व क्या है मेरा सोचे,और जग से क्या है नाता ।
श्रद्धा थी सन्यासियों के प्रति पर तर्क भी था विद्यमान ।।
दर्शन पढ़ा, डिग्रियां पाईं पर ना जिज्ञासा हुई शांत।
अठारह सौ इक्यासी में परमहंस ने किया प्रभावित
तर्कों का देकर जवाब करदी जिज्ञासा नरेंद्र की शांत।
शिष्य बन गए नरेंद्र उनके वेदों का लिया फिर ज्ञान ।।
भ्रमण किया पूरे भारत का, विवेकानंद हुआ फिर नाम
अठारह सौ तिरानवै में शिकागो में ध्वज लहराया था।
अद्भुत शैली ओजस्वी वाणी ने सबको था बांध लिया।
धर्म गुरुओं के बीच श्रीमद्भागवत पर किया व्याख्यान।।
वेदांत सोसाइटी स्थापना कर वेदों का ज्ञान प्रचार किया। पहली बार विश्व भर में भारत की धर्म ध्वजा को लहराया।
हिंदू सनातन धर्म हमारा प्राचीन सबसे यह मनवाया था।
बिन बन्दिश के आस्था, स्वतंत्र नर नारी हैं औ हर प्राणी है। करुणा, दया, मानवता,विश्वबन्धुत्व यही पहचान हमारी है।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
12/01/2020
भावों के मोती मञ्च को
मनपसन्द विषय लेखन
स्वरचित (12 जनवरी 2020)
कहीं पर बादलों की, एक दुनिया, क्या निराली है।
कहीं पर बादलों की - - - - - ।।
कहीं वृक्षों सी आकृतियाँ,
कहीं पशु - पक्षियों जैसे।
कहीं पर श्वेत हैं इतने,
पिसे कर्पूर से बादल।।
कहीं सूरज की आभा से चतुर्दिक फैली लाली है।
कहीं पर बादलों की, एक दुनिया, क्या निराली है।।
गुफा के मध्य में हों इस
तरह, बादल का घेरा है।
हैं बाहर भी घने काले,
व अन्दर भी अँधेरा है।।
कहीं पर धूप चमके तो, कहीं छाया भी काली है।
कहीं पर बादलों की एक दुनिया क्या निराली है।।
कहीं ठहरे, कहीं चलते,
कहीं उड़ते हुए बादल।
कहीं पर पुल सदृश बादल
कहीं वर्षा करें पल - पल।।
कहीं पर धवल गिरि सी,बादलों की छवि निराली है।
कहीं पर बादलों की एक दुनिया, क्या निराली है।।
है अद्भुत दृश्य कुछ ऐसा,
कि मैं वर्णन करूँ कैसा।
नहीं है शब्द में बँधता,
है आलम मेघ का ऐसा।।
कहीं सरिता, कहीं सागर, कहीं दिखती जमीं काली।
कहीं पर बादलों की एक दुनिया क्या निराली है।।
कहीं पर बादलों की - - - - - ।।
मनपसन्द विषय लेखन
स्वरचित (12 जनवरी 2020)
कहीं पर बादलों की, एक दुनिया, क्या निराली है।
कहीं पर बादलों की - - - - - ।।
कहीं वृक्षों सी आकृतियाँ,
कहीं पशु - पक्षियों जैसे।
कहीं पर श्वेत हैं इतने,
पिसे कर्पूर से बादल।।
कहीं सूरज की आभा से चतुर्दिक फैली लाली है।
कहीं पर बादलों की, एक दुनिया, क्या निराली है।।
गुफा के मध्य में हों इस
तरह, बादल का घेरा है।
हैं बाहर भी घने काले,
व अन्दर भी अँधेरा है।।
कहीं पर धूप चमके तो, कहीं छाया भी काली है।
कहीं पर बादलों की एक दुनिया क्या निराली है।।
कहीं ठहरे, कहीं चलते,
कहीं उड़ते हुए बादल।
कहीं पर पुल सदृश बादल
कहीं वर्षा करें पल - पल।।
कहीं पर धवल गिरि सी,बादलों की छवि निराली है।
कहीं पर बादलों की एक दुनिया, क्या निराली है।।
है अद्भुत दृश्य कुछ ऐसा,
कि मैं वर्णन करूँ कैसा।
नहीं है शब्द में बँधता,
है आलम मेघ का ऐसा।।
कहीं सरिता, कहीं सागर, कहीं दिखती जमीं काली।
कहीं पर बादलों की एक दुनिया क्या निराली है।।
कहीं पर बादलों की - - - - - ।।
दिनांक: 12/01/2020
विषय:युवा दिवस
विधा:काव्य
युवा दिवस मनाते हम सब
स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को।
उनकी जीवनी जाने सब युवा
ऐसा है उद्देश्य समाज का।
विभिन्न स्कूलों और कालेजों मे
आयोजित है गोष्ठिया अनेक ।
बचपन से व्यक्तिव अनोखा
रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विशेष ।
उनका आत्म साक्षात्कार किया गुरू देव ने
पदयात्रा से नापा पूरा भारत
विश्व गुरु का सम्मान था पाया।
युवा दिवस .....
विश्व धर्म परिषद थी आयोजित
अमरीका के शिकागो शहर मे।
सभी देश के धर्म गुरु आये आयोजन मे
भारत का प्रतिनिधित्व करने
पहुँचे थे स्वामी विवेकानंद वहा...
एसा व्याख्यान दिया वहा पर
अध्यात्म विधा और भारत दर्शन का
पाठ पढाना शुरू किया तब।
युवा दिवस .....
उनके विचारों से लगातार
देश विदेश के युवा जुड़ने लगे।
एकाग्रता, संयम, आत्म मंथन
खुद पे भरोसा ,दृढ निश्चय
ये सब मंत्र दिये युवाओ को
आज के युवा भी इसी मंत्र से
पार करेगे कोई भी बाधा..
युवा दिवस ....
भारत देश युवाओ का देश बना है
युवा हमारे अपनी शिक्षा व संस्कारों से
ले जाएगे एक दिन देश को अग्रसर सम्पूर्ण
यही मेरी प्रार्थना है और यही मेरी इच्छा भी ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय:युवा दिवस
विधा:काव्य
युवा दिवस मनाते हम सब
स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को।
उनकी जीवनी जाने सब युवा
ऐसा है उद्देश्य समाज का।
विभिन्न स्कूलों और कालेजों मे
आयोजित है गोष्ठिया अनेक ।
बचपन से व्यक्तिव अनोखा
रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विशेष ।
उनका आत्म साक्षात्कार किया गुरू देव ने
पदयात्रा से नापा पूरा भारत
विश्व गुरु का सम्मान था पाया।
युवा दिवस .....
विश्व धर्म परिषद थी आयोजित
अमरीका के शिकागो शहर मे।
सभी देश के धर्म गुरु आये आयोजन मे
भारत का प्रतिनिधित्व करने
पहुँचे थे स्वामी विवेकानंद वहा...
एसा व्याख्यान दिया वहा पर
अध्यात्म विधा और भारत दर्शन का
पाठ पढाना शुरू किया तब।
युवा दिवस .....
उनके विचारों से लगातार
देश विदेश के युवा जुड़ने लगे।
एकाग्रता, संयम, आत्म मंथन
खुद पे भरोसा ,दृढ निश्चय
ये सब मंत्र दिये युवाओ को
आज के युवा भी इसी मंत्र से
पार करेगे कोई भी बाधा..
युवा दिवस ....
भारत देश युवाओ का देश बना है
युवा हमारे अपनी शिक्षा व संस्कारों से
ले जाएगे एक दिन देश को अग्रसर सम्पूर्ण
यही मेरी प्रार्थना है और यही मेरी इच्छा भी ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
टिड्डिदल का कहर 🦗
टिड्डियों के दल ने आ खेतों में कुछ ऐसा कहर बरपाया।
पकी पकाई फ़सलो का पल भर में है कर दिया सफ़ाया।।
औलादों सी पाली फसलों का देखा जब इतना बुरा हाल ।
हलधर की आँखों ने देखो ख़ूब आँसुओ को है बहाया।।
सारी दवाइयों और कीटनाशकों का असर हुआ है बेअसर।।
देख टिड्डी दल के विनाश का तांडव है सबका सर चकराया।।
कहाँ तक जाएगा ये टिड्डी दल पता नहीं किसी को भाई।
कृषि महकमें ,और किसानों का भी मन है बड़ा घबराया।।
कर्ज़ा लेकर किसानों ने फसलें खेतों में शिद्दत से थी बोई।
टिड्डी दल ने एक पल में आकर अन्नदाता को माटी में मिलाया।।
कर सकता हूँ महसूस दर्द मैं भी,मैं भी हूँ किसान का बेटा।
आसमान के ज़रिए देखो अन्नदाता का कैसा ये दुश्मन आया।।
इस प्राकृतिक आपदा के आगे सब नतमस्तक हुए है आज।
चलाकर कलम "ऐश"ने टिड्डीदल पर किसान का दर्द बंटाया।।
©ऐश...(स्वरचित)12/01/2020✍🏻
अश्वनी कुमार चावला, अनूपगढ़,श्री गंगानगर
टिड्डियों के दल ने आ खेतों में कुछ ऐसा कहर बरपाया।
पकी पकाई फ़सलो का पल भर में है कर दिया सफ़ाया।।
औलादों सी पाली फसलों का देखा जब इतना बुरा हाल ।
हलधर की आँखों ने देखो ख़ूब आँसुओ को है बहाया।।
सारी दवाइयों और कीटनाशकों का असर हुआ है बेअसर।।
देख टिड्डी दल के विनाश का तांडव है सबका सर चकराया।।
कहाँ तक जाएगा ये टिड्डी दल पता नहीं किसी को भाई।
कृषि महकमें ,और किसानों का भी मन है बड़ा घबराया।।
कर्ज़ा लेकर किसानों ने फसलें खेतों में शिद्दत से थी बोई।
टिड्डी दल ने एक पल में आकर अन्नदाता को माटी में मिलाया।।
कर सकता हूँ महसूस दर्द मैं भी,मैं भी हूँ किसान का बेटा।
आसमान के ज़रिए देखो अन्नदाता का कैसा ये दुश्मन आया।।
इस प्राकृतिक आपदा के आगे सब नतमस्तक हुए है आज।
चलाकर कलम "ऐश"ने टिड्डीदल पर किसान का दर्द बंटाया।।
©ऐश...(स्वरचित)12/01/2020✍🏻
अश्वनी कुमार चावला, अनूपगढ़,श्री गंगानगर
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