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ब्लॉग संख्या :-281
रचना-** वंदना **
जय जय ज्ञान प्रदायनि माता,
वंदन करूं मैं नित नित माता।
जग को राह सदा दिखलाती,
मां वीणावादनी तुम कहलाती।
ज्ञान की ज्योति तुम हो जलाती,
अज्ञान मन का तुम हो मिटाती।
सच्ची राह पर सदा जो चलता,
माता तुमको सदा ही वह भाता।
जय जय ज्ञान प्रदायनि माता,
वंदन करूं मैं नित नित माता।...
जब जब बजती वीणा की झंकार,
चहुं दिशा में ज्ञान का होता संचार।
सदा ही वाणी में तुम बसती,
शारदे मां भी तुम कहलाती।
सदमार्ग साहस सदा ही देना,
राह आलोकित करना माता।
जय जय ज्ञान प्रदायनि माता,
वंदन करूं मैं नित नित माता।......
...भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखण्ड)
जय जय ज्ञान प्रदायनि माता,
वंदन करूं मैं नित नित माता।
जग को राह सदा दिखलाती,
मां वीणावादनी तुम कहलाती।
ज्ञान की ज्योति तुम हो जलाती,
अज्ञान मन का तुम हो मिटाती।
सच्ची राह पर सदा जो चलता,
माता तुमको सदा ही वह भाता।
जय जय ज्ञान प्रदायनि माता,
वंदन करूं मैं नित नित माता।...
जब जब बजती वीणा की झंकार,
चहुं दिशा में ज्ञान का होता संचार।
सदा ही वाणी में तुम बसती,
शारदे मां भी तुम कहलाती।
सदमार्ग साहस सदा ही देना,
राह आलोकित करना माता।
जय जय ज्ञान प्रदायनि माता,
वंदन करूं मैं नित नित माता।......
...भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखण्ड)
कविता :/विरासत
उसने -जब झुक कर
मुझे प्रणाम किया ,
मुझे बहुत गर्व हुआ
तब अपने आप पर ।
मैं बड़ा हूं उससे
सबसे बड़ा महान
इस बोध ने मेरी
आत्मा के अस्तित्व को
अहं की तुष्टि केलिये
जाग्रत कर दिया ।
और-अब मुझे नित्य ही
झुके सिर ,बंधे हाथ
देखने की आदत होगईं
उनकी नम्रता ही
मेरी विरासत बन गई।
स्वरचित :-उषासक्सेना
उसने -जब झुक कर
मुझे प्रणाम किया ,
मुझे बहुत गर्व हुआ
तब अपने आप पर ।
मैं बड़ा हूं उससे
सबसे बड़ा महान
इस बोध ने मेरी
आत्मा के अस्तित्व को
अहं की तुष्टि केलिये
जाग्रत कर दिया ।
और-अब मुझे नित्य ही
झुके सिर ,बंधे हाथ
देखने की आदत होगईं
उनकी नम्रता ही
मेरी विरासत बन गई।
स्वरचित :-उषासक्सेना
🌴रचना🌴
भव्या भारति पुत्र सर्वदा उन्नतिशील दिखो ।
अपने निज कर्मठ हाथों से अपनी नियति लिखो ।।
संकल्पों को ढँको धारणा परित्राण से ।
धर्मरूढ़ियाँ उन्हें हुँकारो शुद्ध ज्ञान से ।
मानवता की मर्यादा को लक्ष्य बनाओ ।
कर्म साक्षी करो प्रेम की पौध लगाओ ।
नित निगरानी करो स्वत्व की एक दृष्टि से।
सिंचन करो प्रेम क्यारी को भाव वृष्टि से ।
नफ़्रत की चौपालों में मत ऊल जलूल बको।।1।।
विघटनकारी बनें त्याग दो उन पाशों को ।
रहो सत्य पर अडिग बढ़ाओ विश्वासों को ।
संस्कार के शुद्ध नियम हाथों में ले लो ।
भ्रातृ भाव के खेल राष्ट्र आंगन में खेलो ।
वो प्रण धारण करो हृदय जुड़ने का द्योतक ।
अभिनन्दन मत करो कि जो हो कर्म विभक्तक ।
मनन करो तुम डगर-राष्ट्र पर थोड़ी देर रुको ।।2।।
हो अतीत चाहे भविष्य यदि वर्त्तमान हो ।
शाश्वत चिन्तन करो तुम्हारी छवि महान हो ।
रखो धर्म को साथ कृष्ण हैं संग तुम्हारे ।
जिनकी ऐसी कृपा दुष्ट दुःशासन हारे ।
तत्वान्वेषी बनो कर्म में और नियति में ।
एकरूपता भाव जगाओ खुशी विपति में।
गीतामृत चिन्तन निगूढ़ वेदों का सार चखो।।3।।
स्वरचित- 'अ़क्स' दौनेरिया
Sangeeta Joshi Kukreti
भव्या भारति पुत्र सर्वदा उन्नतिशील दिखो ।
अपने निज कर्मठ हाथों से अपनी नियति लिखो ।।
संकल्पों को ढँको धारणा परित्राण से ।
धर्मरूढ़ियाँ उन्हें हुँकारो शुद्ध ज्ञान से ।
मानवता की मर्यादा को लक्ष्य बनाओ ।
कर्म साक्षी करो प्रेम की पौध लगाओ ।
नित निगरानी करो स्वत्व की एक दृष्टि से।
सिंचन करो प्रेम क्यारी को भाव वृष्टि से ।
नफ़्रत की चौपालों में मत ऊल जलूल बको।।1।।
विघटनकारी बनें त्याग दो उन पाशों को ।
रहो सत्य पर अडिग बढ़ाओ विश्वासों को ।
संस्कार के शुद्ध नियम हाथों में ले लो ।
भ्रातृ भाव के खेल राष्ट्र आंगन में खेलो ।
वो प्रण धारण करो हृदय जुड़ने का द्योतक ।
अभिनन्दन मत करो कि जो हो कर्म विभक्तक ।
मनन करो तुम डगर-राष्ट्र पर थोड़ी देर रुको ।।2।।
हो अतीत चाहे भविष्य यदि वर्त्तमान हो ।
शाश्वत चिन्तन करो तुम्हारी छवि महान हो ।
रखो धर्म को साथ कृष्ण हैं संग तुम्हारे ।
जिनकी ऐसी कृपा दुष्ट दुःशासन हारे ।
तत्वान्वेषी बनो कर्म में और नियति में ।
एकरूपता भाव जगाओ खुशी विपति में।
गीतामृत चिन्तन निगूढ़ वेदों का सार चखो।।3।।
स्वरचित- 'अ़क्स' दौनेरिया
🙏😊मेरे कान्हा😊
मेरे कान्हा की मैं प्रेम दिवानी,
आज लिखूँगी अपनी कहानी,
सांवरी सूरत पर मैं मरती हूँ,
प्यार उसे मैं बहुत करती हूँ |
टेढ़ी नजरे हैं लटें घुँघराली,
उस पर जाऊँ मैं बलि बलिहारी,
पीताम्बर तन पर खूब सुहाता,
मन मेरा वो मोह ले जाता |
सपनों में मेरे कान्हा आता,
मुरली मधुर मनोहर बजाता,
गोपी, ग्वाले संग में लाता,
रास रसइया सबको नचाता |
काश जोगनियां मैं बन जाऊँ,
बन मीरा उसी के गुण गाऊँ,
गर तू धूल बना ले चरणों की,
मैं विष प्याला भी पी जाऊँ |
मेरे कान्हा सुन अर्ज मेरी,
दरश दिखा, न कर अब देरी,
भक्ति मेरी तुम स्वीकारो,
चरणों में थोड़ी जगह दे दो |
🙏जय श्री कृष्णा🙏
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
कुछ नगद तो कुछ उधार दी ज़िन्दगी
उसी के सहारे हमने गुजार दी ज़िन्दगी
पत्थर समझ ठोकर लगाया जमाने ने
मूरत में ढल हमने संवार दी ज़िन्दगी
दर्द, तड़प और खालीपन में ढल जाती
तुम न थे तो कितनी लाचार थी जिन्दगी
कलम की स्याही ने सी शायरी के सूत से
भरे बाजार वरना तार-तार थी जिन्दगी
जिन्दगी भर जिंदगी से शिकायतें रही
उम्र भर क्यूं आखिर बेजार थी जिन्दगी
कुछ नगद तो कुछ उधार दी ज़िन्दगी
उसी के सहारे हमने गुजार दी ज़िन्दगी
1
शैशव नहीं
प्रौढ़ बनो
2
संसार को ज्ञान दो
आचार का, व्यवहार का,अध्यात्म का, धर्म का
जन गण मन को ज्ञान दो
उपनिषद दो, गीता दो, भारत का संविधान दो
3
स्वार्थी नहीं
परमार्थी बनो
कामना नहीं
कर्म करो
4
देह नश्वर है
यह ध्यान रखो
अपनी आत्मा को
अमरत्व दो
5
संसार को आलोकित करो
अंधकार में
अमर ज्योति प्रज्वलित करो
भारत की महत्ता का
गुणगान करो
अपने देश का नाम
रोशन करो
6
भारतीय दर्शन
पुण्य-पारावर है
मानवता का
आधार है
संसार के लिए
सदा शांति की मंगलकामना करो
सहिष्णुता हमारी सम्पदा है
सदा इसी की अहनद करो
सर्वत्र भारत की प्रतिष्ठा हो
ऐसा दीप जलाया करो
7
सत्यम् शिवम् सुन्दर् की
गूँज दो
गंगा, यमुना, सरस्वती का
कुँज दो
8
देखो विश्व में हम अग्रणी थे
प्रकाश थे हम और भारत सूरज था
@राधे श्याम
स्वरचित
शैशव नहीं
प्रौढ़ बनो
2
संसार को ज्ञान दो
आचार का, व्यवहार का,अध्यात्म का, धर्म का
जन गण मन को ज्ञान दो
उपनिषद दो, गीता दो, भारत का संविधान दो
3
स्वार्थी नहीं
परमार्थी बनो
कामना नहीं
कर्म करो
4
देह नश्वर है
यह ध्यान रखो
अपनी आत्मा को
अमरत्व दो
5
संसार को आलोकित करो
अंधकार में
अमर ज्योति प्रज्वलित करो
भारत की महत्ता का
गुणगान करो
अपने देश का नाम
रोशन करो
6
भारतीय दर्शन
पुण्य-पारावर है
मानवता का
आधार है
संसार के लिए
सदा शांति की मंगलकामना करो
सहिष्णुता हमारी सम्पदा है
सदा इसी की अहनद करो
सर्वत्र भारत की प्रतिष्ठा हो
ऐसा दीप जलाया करो
7
सत्यम् शिवम् सुन्दर् की
गूँज दो
गंगा, यमुना, सरस्वती का
कुँज दो
8
देखो विश्व में हम अग्रणी थे
प्रकाश थे हम और भारत सूरज था
@राधे श्याम
स्वरचित
स्वाभिमान उठता हिय में
मैं भारत मे रहता हूँ
हिमगिरि शीतल छैया में
गङ्गा नीर नित पीता हूँ
गौरवशाली रहा अतीत में
वैभवता की कमी नहीं है
सत्यमेव जयते रस वाणी
स्नेह सुधा की धार बही है
षड ऋतुओं का अद्भुत संगम
नीरसता जड़ता नहीं रहती
कर्मण्येवाधिकारस्ते वाणी
कुरुक्षेत्र मोहन की कहती
सुर मुनियों की पावन भूमि
नित मङ्गलमय सीख सिखाई
जीवन जग अति मर्यादित है
प्रगति की सद दिशा दिखाई
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई
रहते मिलकर भाई भाई
नित आते हैं उत्सव मेले
हम सबका बस एक है साँई
अहिंसा परमोधर्म सुहाना
वसुधैव कुटुम्बकम प्यारा
सारे जंहा से अति उत्तम है
न्यारा भारत देश हमारा।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
मैं भारत मे रहता हूँ
हिमगिरि शीतल छैया में
गङ्गा नीर नित पीता हूँ
गौरवशाली रहा अतीत में
वैभवता की कमी नहीं है
सत्यमेव जयते रस वाणी
स्नेह सुधा की धार बही है
षड ऋतुओं का अद्भुत संगम
नीरसता जड़ता नहीं रहती
कर्मण्येवाधिकारस्ते वाणी
कुरुक्षेत्र मोहन की कहती
सुर मुनियों की पावन भूमि
नित मङ्गलमय सीख सिखाई
जीवन जग अति मर्यादित है
प्रगति की सद दिशा दिखाई
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई
रहते मिलकर भाई भाई
नित आते हैं उत्सव मेले
हम सबका बस एक है साँई
अहिंसा परमोधर्म सुहाना
वसुधैव कुटुम्बकम प्यारा
सारे जंहा से अति उत्तम है
न्यारा भारत देश हमारा।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
तुम पारखी हो
मनीषी हो,गुणी हो
मैं क्या हूँ
अदना सा कवि
रोकते हो तुम मुझे
लिखने से
कहते हो
लिखना नही आता तुम्हें
पर क्या करूँ मैं
भरा है कटोरा मन का
छलकने को तैयार
कैसे रोकूँ खुद को
मैं हूँ बेजार
मचल रही लेखनी
लिखने को बेताब
कुछ अपनी
कुछ परिवार की
समाज की
देश और दुनिया की
बातें हजार
कलम मेरी पूजा है
ईष्ट है करतार
कृपा करो इतनी
न करो दूर
इन चरणों से
ले सकूँ पनाह
ले सकूँ साँस
जीने दो मुझे
कुछ पल
अपने हिस्से के
सरिता गर्ग
स्व रचित
मनीषी हो,गुणी हो
मैं क्या हूँ
अदना सा कवि
रोकते हो तुम मुझे
लिखने से
कहते हो
लिखना नही आता तुम्हें
पर क्या करूँ मैं
भरा है कटोरा मन का
छलकने को तैयार
कैसे रोकूँ खुद को
मैं हूँ बेजार
मचल रही लेखनी
लिखने को बेताब
कुछ अपनी
कुछ परिवार की
समाज की
देश और दुनिया की
बातें हजार
कलम मेरी पूजा है
ईष्ट है करतार
कृपा करो इतनी
न करो दूर
इन चरणों से
ले सकूँ पनाह
ले सकूँ साँस
जीने दो मुझे
कुछ पल
अपने हिस्से के
सरिता गर्ग
स्व रचित
मेरी जिन्दगी की किताब
मेरी जिन्दगी की किताब को गौर से पढ़िए
करीबी सा लगूं मुझे दिल खोल के पढ़िए।
अरसे से पड़ी बन्द किताब के पीले पन्नों में
सूखे हुए फूलों में यादों की महक को पढ़िए।
छटपटाता दर्द से एक बदहाल परिन्दा हूँ मैं
अपने सीने से लगाकर मेरे जख़्म को पढ़िए।
बेज़ुबान हरफ़ों की एक बेआवाज़ गज़ल हूँ
रात की तनहाई में अपनी आवाज़ में पढ़िए।
ताबूतों में दफ़न कई राज बहकती सांसों के
बेवक्त अपने हंसी चेहरे के नकाब में पढ़िए।
कैद हूँ मुद्दत से मैं आपके वादों के भरम में
तफ़सील अपने वादों की फेहरिस्त में पढ़िए।
आपसे न कोई शिकवा न शिकायत है मुझे
आप खुद अपना सिला अपने आईन में पढ़िए।
तलबगार हूँ मैं आपके इज़हारे मोहब्बत का
अपना हाल अपने दिल की किताब में पढ़िए।
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
सांवली यादें
कई कविताएं आई
सांवलेपन पर छाई
चाय की.. चुस्कियां
काॅफी की रंगेलियां
हमारा मन भी चिंदी सा
चारू चितवन पर आया
न मेघों का उमड़ना
न धरा का संवारना
दिल तो मोहित हुआ
सांवली सी बिंदी पर
कंपकंपाती हथेली पर
अस्थियों के विकृति पर
स्नायु के वेदना .... पर
लड़खड़ाती पैरों...पर
आज भी अपनों के लिए
वही सांवली मुस्कान थी
हाथों में चाय की केतली
सांवले चाय की चुस्कियां
सांवले हाथों की थपकियां
सांवली सी नेह प्रित नदियां
थकी आंखों की बहती अश्क
सांवली यादें बयां......करती
सांवली मां की सांवली चाय
उफ़ आज भी उर में है बसती
उबलती उफनती सांवली यादें।
ज्योति अरूण जैन
कोलाघाट(पं बंगाल)
स्वरचित २७/१/२०१९
💐 यह स्वप्न भी साकार हो 💐
००००००००००००००००००००००
पेड़ फलें, वन लगें,स्वर्ग से उपवन खिलें,
आते जाते मौसम में,नित पंछी नई उड़ान भरें।
उद्यम लगें ,निर्धन घटें,विज्ञान में प्रधान हों ,
खुदा करे मेरे भारत जा,यह स्वप्न भी साकार हो।
डाल डाल में,पात पात में,खुशियों का संचार करें,
धन-धान्य की। गंगा वहे,यह संकल्प सर्व-समान बने।
नीड़ में दो सुगवा चहके,सीमित सा आकार हो,
खुदा करे मेरी धरती का,यह स्वप्न भी साकार हो।
माटी में सब पैदा होते,मन्दिर-मस्जिद के पुजारी,
सीमा में न भाषा बदले,हिंदी सर्व-प्रधान बने।
राष्ट्र प्रेम मानवता पोषक,मेरा भारत महान हो
खुदा करे फिर गाँधी जन्मे,यह स्वप्न भी साकार हो।
( मेरे कविता संग्रह की कविता )
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
००००००००००००००००००००००
पेड़ फलें, वन लगें,स्वर्ग से उपवन खिलें,
आते जाते मौसम में,नित पंछी नई उड़ान भरें।
उद्यम लगें ,निर्धन घटें,विज्ञान में प्रधान हों ,
खुदा करे मेरे भारत जा,यह स्वप्न भी साकार हो।
डाल डाल में,पात पात में,खुशियों का संचार करें,
धन-धान्य की। गंगा वहे,यह संकल्प सर्व-समान बने।
नीड़ में दो सुगवा चहके,सीमित सा आकार हो,
खुदा करे मेरी धरती का,यह स्वप्न भी साकार हो।
माटी में सब पैदा होते,मन्दिर-मस्जिद के पुजारी,
सीमा में न भाषा बदले,हिंदी सर्व-प्रधान बने।
राष्ट्र प्रेम मानवता पोषक,मेरा भारत महान हो
खुदा करे फिर गाँधी जन्मे,यह स्वप्न भी साकार हो।
( मेरे कविता संग्रह की कविता )
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
कविता,
एक कवि की
नहीं होती है,
कविता,
अपने समय की,
एक घटना होती है,
कविता,
जब विचार होती है,
तब,
सत्य के निकट होती है,
क्षितिज से,
उतर कर,
कविता,
जलते धरातल पर,
आती है।
सत्ता से,
देश की राजनीति से,
दग्ध हुए,
जन-मानस को
कविता की प्रतीक्षा है,
कविता को,
लोगों के बीच
लौटाना होगा,
कविता लिखनी होगी,
मानवता केलिए।।
एक कवि की
नहीं होती है,
कविता,
अपने समय की,
एक घटना होती है,
कविता,
जब विचार होती है,
तब,
सत्य के निकट होती है,
क्षितिज से,
उतर कर,
कविता,
जलते धरातल पर,
आती है।
सत्ता से,
देश की राजनीति से,
दग्ध हुए,
जन-मानस को
कविता की प्रतीक्षा है,
कविता को,
लोगों के बीच
लौटाना होगा,
कविता लिखनी होगी,
मानवता केलिए।।
विधा .. लघु कविता
*****************
🍁
की जब मै दर्द लिखता हूँ,
तो पढते है सभी दिल से।
कोई ढाढँस नही देता,
सभी वाह-वाह करते थे।
🍁
ना ही माहौल देखा है,
नही देखे मेरे आँसू।
बडे ही शान से पूछा,
की क्यो बहते तेरे आँसू।
🍁
जँफाओ का वफाओ का,
नही दस्तूर है बाकी ।
नही कोई मोहब्बत है,
मखौटे ही बने साकी।
🍁
तबाही सी मची दिल मे,
धुँआ मे कुछ नही दिखता।
मगर चेहरे मे तेरे अब भी ,
मुझको प्यार है दिखता।
🍁
बजाओ तुम नही ताली,
नही वाह-वाह तुम करना।
ये रिसता जख्म है मेरा,
मुझे लिख करके ही मरना।
🍁
बदनाम अगर हो जायेगा,
तो प्यार नही रह पायेगा।
मत पूछना मुझसे नाम कभी,
बर्दास्त नही कर पायेगा।
🍁
खामोश जुँबा, बेबस सी नजर,
चुपचाप हमे तुम रहने हो।
इस भीड मे भी हम तँन्हा है,
तँन्हा ही हमे तुम रहने दो।
🍁
मेरे भावों के मोती को,
झलकने दो यही पर तुम।
ये कविता शेर की है जो,
कि धागो मे पिरो दो तुम।
🍁
स्वरचित .... Sher Singh Sarraf
*****************
🍁
की जब मै दर्द लिखता हूँ,
तो पढते है सभी दिल से।
कोई ढाढँस नही देता,
सभी वाह-वाह करते थे।
🍁
ना ही माहौल देखा है,
नही देखे मेरे आँसू।
बडे ही शान से पूछा,
की क्यो बहते तेरे आँसू।
🍁
जँफाओ का वफाओ का,
नही दस्तूर है बाकी ।
नही कोई मोहब्बत है,
मखौटे ही बने साकी।
🍁
तबाही सी मची दिल मे,
धुँआ मे कुछ नही दिखता।
मगर चेहरे मे तेरे अब भी ,
मुझको प्यार है दिखता।
🍁
बजाओ तुम नही ताली,
नही वाह-वाह तुम करना।
ये रिसता जख्म है मेरा,
मुझे लिख करके ही मरना।
🍁
बदनाम अगर हो जायेगा,
तो प्यार नही रह पायेगा।
मत पूछना मुझसे नाम कभी,
बर्दास्त नही कर पायेगा।
🍁
खामोश जुँबा, बेबस सी नजर,
चुपचाप हमे तुम रहने हो।
इस भीड मे भी हम तँन्हा है,
तँन्हा ही हमे तुम रहने दो।
🍁
मेरे भावों के मोती को,
झलकने दो यही पर तुम।
ये कविता शेर की है जो,
कि धागो मे पिरो दो तुम।
🍁
स्वरचित .... Sher Singh Sarraf
ऐ जिन्दगी!अब तू ही बता
तू किस मोड़ पर खड़ी है
राहें मेरी क्यों रुक गई है
ऐ जिन्दगी!अब तू ही बता
रिश्तों की झंकार क्यों गुम है
अपनापन क्यों खामोश है
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
नेह के बंधन क्यों टूट रहे
मन में छाया क्यों सन्नाटा है
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
साँसें क्यों बुझ रही है
मेरे हौसले क्यों पस्त हैं
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
प्रश्न चिन्ह बन रही क्यों दूरी है
ऐसी भी क्या मजबूरी है
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
मेरी पुकार कहाँ गुम हुई
फिर भी निगाहें किसे ढूँढती है
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
तू किस मोड़ पर खड़ी है
राहें मेरी क्यों रुक गई है
ऐ जिन्दगी!अब तू ही बता
रिश्तों की झंकार क्यों गुम है
अपनापन क्यों खामोश है
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
नेह के बंधन क्यों टूट रहे
मन में छाया क्यों सन्नाटा है
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
साँसें क्यों बुझ रही है
मेरे हौसले क्यों पस्त हैं
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
प्रश्न चिन्ह बन रही क्यों दूरी है
ऐसी भी क्या मजबूरी है
ऐ जिंदगी!अब तू ही बता
मेरी पुकार कहाँ गुम हुई
फिर भी निगाहें किसे ढूँढती है
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
गजल
हर रिश्ता टूटे छोटी छोटी तकरारों में,
दोस्ती ही तो है जो बिकती ना बाज़ारो में,
देखा दुनिया में क्या क्या हो रहा है
भाई से भाई लड़ता है व्यापारों में,
कितने अत्याचार हो रहे नारी पर
हर रोज पढ़ते हैं हम अखबारों में,
अपनी रोटी सेकन को सब आजकल
जी हजुरी करते है नेता के दरबारों में,
जात पात में बांट दिया इंसां। को
कब रौनक रहती है अब त्योहारों में,
छोड़े मजहब को आपस में लड़ाना
कह दो जाकर जो करते काम इशारों में,
गिरगिट ने भी छोड़ दिया रंग बदलना
सबसे आगे है नर अब इन किरदारों में,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
हर रिश्ता टूटे छोटी छोटी तकरारों में,
दोस्ती ही तो है जो बिकती ना बाज़ारो में,
देखा दुनिया में क्या क्या हो रहा है
भाई से भाई लड़ता है व्यापारों में,
कितने अत्याचार हो रहे नारी पर
हर रोज पढ़ते हैं हम अखबारों में,
अपनी रोटी सेकन को सब आजकल
जी हजुरी करते है नेता के दरबारों में,
जात पात में बांट दिया इंसां। को
कब रौनक रहती है अब त्योहारों में,
छोड़े मजहब को आपस में लड़ाना
कह दो जाकर जो करते काम इशारों में,
गिरगिट ने भी छोड़ दिया रंग बदलना
सबसे आगे है नर अब इन किरदारों में,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
'' समय ''
-------------
समय कहता है मेरे साथ चल।
दुनिया बदलती है तू भी बदल।
न रुक तू पल भर यहाँ।
बस तू चल और चलते चल।
रास्ते में तुझे ख़ुशी मिले या गम।
तू सबको साथ ले तेरे साथ हैं हम।
न करना चाह बस फूलों की।
न सफ़र से डरना शूलों की।
इस रंगीन सफ़र में तू।
नफरतो को दूर कर।
चाहतो और विश्वास को।
दिल में अपने अब तू भर।
हर रात को अपनी समझना अंतिम रात।
हर सुबह रंगीन है न करना इसे बर्बाद।
जिए जा तू शान से औरो को जीना सीखा।
''समय'' तेरे साथ है ''दीप '' तू प्रकाश दिखा।।
======================
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छ ग
-------------
समय कहता है मेरे साथ चल।
दुनिया बदलती है तू भी बदल।
न रुक तू पल भर यहाँ।
बस तू चल और चलते चल।
रास्ते में तुझे ख़ुशी मिले या गम।
तू सबको साथ ले तेरे साथ हैं हम।
न करना चाह बस फूलों की।
न सफ़र से डरना शूलों की।
इस रंगीन सफ़र में तू।
नफरतो को दूर कर।
चाहतो और विश्वास को।
दिल में अपने अब तू भर।
हर रात को अपनी समझना अंतिम रात।
हर सुबह रंगीन है न करना इसे बर्बाद।
जिए जा तू शान से औरो को जीना सीखा।
''समय'' तेरे साथ है ''दीप '' तू प्रकाश दिखा।।
======================
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छ ग
*मिट्टी हिंदुस्तान की*
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की।
तिलक लगा कर देखो इसमें, खुशबू है लोबान की॥
हमसे ही निकला है देखो, हमको आंख दिखाता है।
जब जब हम से ठनी है उसकी, वो तो मुंह की खाता है।
सीख नहीं लगती मोटी चमड़ी है पाकिस्तान की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की॥1॥
शहीद अब्दुल हमीद जी ने, सोलह टेंक उड़ाए थे।
क्या करगिल को भूल गए वो, हमने धूल चटाए थे।
पत्थर फेंके खिसियानी बिल्ली है हालत श्वान की।
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की॥2॥
पीठ में छुरा भौंककर ये तो, बुजदिल जैसे लड़ता है।
युद्ध-विराम करें हम तो भी, ये तो ज़िद पर अड़ता है।
भूल गया मर्यादा सारी, पावन से रमजान की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की॥3॥
सत्तर साल में हमने देखो, कितनी प्रगतियाँ कर लीं हैं ।
पाक ने आतंकवाद पालकर, खुद दुर्गतियाँ वर लीं हैं ।।
विश्व पटल से सुषमा बोली, कथा देश सम्मान की ।
तिलक लगाकर देखो इसमें, खुशबू है लोबान की॥4॥
किसी को मस्जिद वहीं चाहिए, ज़िद देखो बेकार की ।
कोई राग अलाप रहा है, राम लला दरबार की ।
भूल गए ये हिंदू-मुस्लिम, सीखें गीता कुरआन की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की ॥5॥
भेदभाव अलगाव भूलकर, मातृभूमि को शीश नवाएँ,
वीणा पाणी सुर का वर दे,देश हित में मिलजुल गाएं,
एक लय हो जाए हमारे,
*वंदे मातरम* गान की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की ॥6॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की।
तिलक लगा कर देखो इसमें, खुशबू है लोबान की॥
कविता स्वरचित एवं मौलिक है ।
©®🙏
- सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍
छिंदवाड़ा मप्र
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की।
तिलक लगा कर देखो इसमें, खुशबू है लोबान की॥
हमसे ही निकला है देखो, हमको आंख दिखाता है।
जब जब हम से ठनी है उसकी, वो तो मुंह की खाता है।
सीख नहीं लगती मोटी चमड़ी है पाकिस्तान की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की॥1॥
शहीद अब्दुल हमीद जी ने, सोलह टेंक उड़ाए थे।
क्या करगिल को भूल गए वो, हमने धूल चटाए थे।
पत्थर फेंके खिसियानी बिल्ली है हालत श्वान की।
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की॥2॥
पीठ में छुरा भौंककर ये तो, बुजदिल जैसे लड़ता है।
युद्ध-विराम करें हम तो भी, ये तो ज़िद पर अड़ता है।
भूल गया मर्यादा सारी, पावन से रमजान की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की॥3॥
सत्तर साल में हमने देखो, कितनी प्रगतियाँ कर लीं हैं ।
पाक ने आतंकवाद पालकर, खुद दुर्गतियाँ वर लीं हैं ।।
विश्व पटल से सुषमा बोली, कथा देश सम्मान की ।
तिलक लगाकर देखो इसमें, खुशबू है लोबान की॥4॥
किसी को मस्जिद वहीं चाहिए, ज़िद देखो बेकार की ।
कोई राग अलाप रहा है, राम लला दरबार की ।
भूल गए ये हिंदू-मुस्लिम, सीखें गीता कुरआन की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की ॥5॥
भेदभाव अलगाव भूलकर, मातृभूमि को शीश नवाएँ,
वीणा पाणी सुर का वर दे,देश हित में मिलजुल गाएं,
एक लय हो जाए हमारे,
*वंदे मातरम* गान की ॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की ॥6॥
दुनिया के सोने से बेहतर, मिट्टी हिंदुस्तान की।
तिलक लगा कर देखो इसमें, खुशबू है लोबान की॥
कविता स्वरचित एवं मौलिक है ।
©®🙏
- सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍
छिंदवाड़ा मप्र
क्षणिकाएं.... बे-मौसम...
१.
काले दुपट्टे के पीछे से...
दाग़ छुपाता चाँद...
पल भर को झाँका...
दो मोती गिरे...
दिल धड़का गड़गड़ सा...
बादल बरस पड़े...
२.
अचानक कड़कती सर्दी में...
धूप निकली...
कुहरा छंट गया...
ज़र्द-सर्द रिश्ते पिघल गए...
मौसम खिल उठा....
३.
आँख खुली...सपना टूटा...
आईना पोंछा....
चहरे सब बदले मिले...
खूं बिन यूं चहरा पीला...
बेआवाज़ आईना टूटा...
बेमौसम ही मैं भीगा....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२७.०१.२०१९
१.
काले दुपट्टे के पीछे से...
दाग़ छुपाता चाँद...
पल भर को झाँका...
दो मोती गिरे...
दिल धड़का गड़गड़ सा...
बादल बरस पड़े...
२.
अचानक कड़कती सर्दी में...
धूप निकली...
कुहरा छंट गया...
ज़र्द-सर्द रिश्ते पिघल गए...
मौसम खिल उठा....
३.
आँख खुली...सपना टूटा...
आईना पोंछा....
चहरे सब बदले मिले...
खूं बिन यूं चहरा पीला...
बेआवाज़ आईना टूटा...
बेमौसम ही मैं भीगा....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२७.०१.२०१९
**** आक्रोश ****
आजकल देखो तो कितना अधिक जन मन में आक्रोश है ,
दिखती चारों तरफ फैली नाराजी मन में कितना क्रोध है |
किसे दोष दें कुछ कर भी न पायें बडा होता अफसोस है ,
लादे बोझ घूमते दिल पर लगते शापित नहीं कुछ होश है |
बदला है लहजा बिल्कुल ही नहीं छोटे बड़े का बोध है ,
सामाजिक व्यवस्था कैसे बदली ये करना होगा शोध है |
प्रतिभाएं सब ठगी ठगी सी बढा राजनीत का लोभ है ,
वर्चस्व बढ गया प्रभुता का बस दौलत की ही ओट है |
मौन बन गया अब गहना होता आतंक का अभिषेक है ,
लिस्ट बढ गयी खर्चों की सो गया ईमान और विवेक है |
जब लचर व्यवस्था सुधरेगी और घटेगा जब उपदेश है ,
हम अपने मन को जरा सुधारें कुछ नहीं रहेगा शेष है |
स्वरचित ,मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
आजकल देखो तो कितना अधिक जन मन में आक्रोश है ,
दिखती चारों तरफ फैली नाराजी मन में कितना क्रोध है |
किसे दोष दें कुछ कर भी न पायें बडा होता अफसोस है ,
लादे बोझ घूमते दिल पर लगते शापित नहीं कुछ होश है |
बदला है लहजा बिल्कुल ही नहीं छोटे बड़े का बोध है ,
सामाजिक व्यवस्था कैसे बदली ये करना होगा शोध है |
प्रतिभाएं सब ठगी ठगी सी बढा राजनीत का लोभ है ,
वर्चस्व बढ गया प्रभुता का बस दौलत की ही ओट है |
मौन बन गया अब गहना होता आतंक का अभिषेक है ,
लिस्ट बढ गयी खर्चों की सो गया ईमान और विवेक है |
जब लचर व्यवस्था सुधरेगी और घटेगा जब उपदेश है ,
हम अपने मन को जरा सुधारें कुछ नहीं रहेगा शेष है |
स्वरचित ,मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
" संग जी लें क्या"
गुत्थी मन की मैं खोलूं क्या?
उर के राज तुम्हें बतलाऊं क्या?
जीवन सुख दुख का सागर है,
मन के उदगार बतादूं क्या?
तुम चेहरे को पढने वाली,
क्यों कर चुप साधे बैठी हो?
अपने इस सुन्दर मुखड़े पर,
गम को साधे क्यों बैठी हो?
बोलो अपना मुंह खोलूं क्या?
ये प्यार मुहब्बत की बातें,
वो घर परिवार की मिठासें
बातें सब कल की लगती हैं
कमजोर पहल और सोच बड़ी
उन बातों को सरेआम करुं मैं क्या?
जब भी संकट आता मुझपर,
मैं पास तेरे ही आता हूं।
तुम सूर्य रश्मि मेरे दिल की
मैं भाव तुम्हारे अंतरमन का
धड़कन में तुम्हें बसा लूं क्या?
तुम राधा हो अंतर मन की
मैं कृष्ण तुम्हारे मन का हूँ।
तुम खुशहाली मेरे तन मन की
मैं ख्वाब तुम्हारे दिल का हूँ।
अब तो बोलो संग जी लें क्या?
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
नमन करूँ मैं हिन्द को, मेरा देश महान..
आंच अगर जो आये तो देंगे
हम बलिदान l
नमन...
गणतंत्र ये मेरा देश है.. तिरंगा इसकी शान,
देखे जो इसे घूर के.. तो लेलेंगे हम प्राण l
नमन.....
हिन्द की भाषा है हिंदी,.. मेरे देश की बिंदी,
सब भाषा से प्यारी भाषा.. घाटी इसका भाल l
नमन....
आज़ादी है धर्म मेरा,.. रक्षा करूँ दिन रात,
सबसे ऊपर देश है मेरा.. प्यारी सी सौगात.l
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून
आंच अगर जो आये तो देंगे
हम बलिदान l
नमन...
गणतंत्र ये मेरा देश है.. तिरंगा इसकी शान,
देखे जो इसे घूर के.. तो लेलेंगे हम प्राण l
नमन.....
हिन्द की भाषा है हिंदी,.. मेरे देश की बिंदी,
सब भाषा से प्यारी भाषा.. घाटी इसका भाल l
नमन....
आज़ादी है धर्म मेरा,.. रक्षा करूँ दिन रात,
सबसे ऊपर देश है मेरा.. प्यारी सी सौगात.l
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून
पतिदेव जी बोले संडे है और सर्दी भी आज,
चाय संग पकौड़े खिला दो तुम पत्नी जी आज।
तुरंत तपाक से पत्नी जी फिर बोल ही उठी,
ठंडी है,ठिठुर रही,बना खिला दो,पतिश्रीआज।
नहले पे पड़ता देख दहला पतिश्री घबराएँ,
ताके इधर- उधर जवाब न कुछ उन्हें सुझाएँ।
सोचे बोलकर ही कि मैंने बड़ी भारी गलती,
क्या करूँ जिससे समस्या का हल निकले जल्दी।
बोलने पर अपने हो रहा था उन्हें खूब मलाल,
हल ना निकाला जल्दी तो हो जाएगा बवाल।
बोले भूल जाओ तुम खाने - वाने की ये बात,
आओ बैठो तनिक तुम आज प्रिये मेरे साथ।
शाम का खाना आज हमको हॉटेल में खाना है,
जानू कुछ पल हमको आज साथ बिताना है।
चाय-पकौड़े को तो मार दो तुम प्रिय गोली,
सुनो!.....पर तुम ये एक बात , मेरी हमजोली।
मैगी सिर्फ २ मिनिट में हो जाएगी झट तैयार
आज तो ठंड है बहुत तुम मैगी ही बना लो यार......
@सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)
विषय : ड्रग्स
-----------------------
1
अपने परिवार को विघटित मत करना
नशे से सदा दूर रहना
अपने राष्ट्र को कमजोर मत करना
ड्रग्स से सदा दूर रहना
2
ड्रग्स एक ऐसा दलदल है
जो धंसा इसमें वो तबाह हो जाता है
इसके दुष्प्रभाव से
परिवार, समाज, राष्ट्र सब बर्बाद हो जाता है
3
ड्रग्स एक ऐसी सुरंग है
जो बर्बादी के मुहाने तक ले जाती है
4
कभी भी ड्रग्स को
मौज-मस्ती का साधन मत बनाना
कभी भी ड्रग्स को
स्टेटस सिंबल का प्रतीक मत बनाना
तबाह कर देता है यह आदमी को
कभी भी ड्रग्स की गिरफ्त में मत
पड़ना
5
कभी भी ड्रग्स की
अंधेर गली में प्रवेश मत करना
एक झूठे आनंद के लिए
कभी भी ड्रग्स के हाथों शिकार मत होना
6
कभी भी नशे का आदी मत होना
ड्रग्स माफिया के संजाल में मत फंसना
ऐ दोस्तों! कभी भी गुमराह मत होना
ड्रग्स का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
कभी भी इसके दलदल में मत फंसना
7
ड्रग्स कर देता है
जीवन में अंधेरा
जीवन को बर्बाद
जीवन को तबाह
यह हमेशा याद रखना
ड्रग्स घातक होता है
इसका शिकार मत होना
8
राष्ट्र को मजबूत रखना
सदा ड्रग्स से मुक्त रहना
9
चलो जनजागृति लाने का काम करते हैं
एक सकारात्मक वातावरण तैयार करते हैं
ड्रग्स व्यसनी को सही मार्ग पर लाने का काम करते हैं
@शंकर कुमार शाको
स्वरचित
-----------------------
1
अपने परिवार को विघटित मत करना
नशे से सदा दूर रहना
अपने राष्ट्र को कमजोर मत करना
ड्रग्स से सदा दूर रहना
2
ड्रग्स एक ऐसा दलदल है
जो धंसा इसमें वो तबाह हो जाता है
इसके दुष्प्रभाव से
परिवार, समाज, राष्ट्र सब बर्बाद हो जाता है
3
ड्रग्स एक ऐसी सुरंग है
जो बर्बादी के मुहाने तक ले जाती है
4
कभी भी ड्रग्स को
मौज-मस्ती का साधन मत बनाना
कभी भी ड्रग्स को
स्टेटस सिंबल का प्रतीक मत बनाना
तबाह कर देता है यह आदमी को
कभी भी ड्रग्स की गिरफ्त में मत
पड़ना
5
कभी भी ड्रग्स की
अंधेर गली में प्रवेश मत करना
एक झूठे आनंद के लिए
कभी भी ड्रग्स के हाथों शिकार मत होना
6
कभी भी नशे का आदी मत होना
ड्रग्स माफिया के संजाल में मत फंसना
ऐ दोस्तों! कभी भी गुमराह मत होना
ड्रग्स का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
कभी भी इसके दलदल में मत फंसना
7
ड्रग्स कर देता है
जीवन में अंधेरा
जीवन को बर्बाद
जीवन को तबाह
यह हमेशा याद रखना
ड्रग्स घातक होता है
इसका शिकार मत होना
8
राष्ट्र को मजबूत रखना
सदा ड्रग्स से मुक्त रहना
9
चलो जनजागृति लाने का काम करते हैं
एक सकारात्मक वातावरण तैयार करते हैं
ड्रग्स व्यसनी को सही मार्ग पर लाने का काम करते हैं
@शंकर कुमार शाको
स्वरचित
'धर्म-अधर्म"
धर्म के नाम पर लूटा गया भोले भालों को
बना ववंडर धर्म शब्द मजे आये मतवालों को ।।
बनी दुकानदारी यह भी क्या कहें ''शिवम"
कभी न जाना यह जग गरीब के छालों को ।।
अर्थ का अनर्थ हुआ हरदम यह नुमाया है
धर्म पर कुछ कहने से हर एक सकुचाया है ।।
जिससे मानव मानव दिखे वह धर्म काफी है
मगर उसी को भी नही हमने अपनाया है ।।
धर्म कहकर अधर्म की ओर मुड़ जाते हैं
इंसान होकर इंसानियत से पिछड़ जाते हैं ।।
जाने कौन धर्म की बातें करते रहते हम ,
सरेआम सौ अच्छाइयों से इतर जाते हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/01/2019
धर्म के नाम पर लूटा गया भोले भालों को
बना ववंडर धर्म शब्द मजे आये मतवालों को ।।
बनी दुकानदारी यह भी क्या कहें ''शिवम"
कभी न जाना यह जग गरीब के छालों को ।।
अर्थ का अनर्थ हुआ हरदम यह नुमाया है
धर्म पर कुछ कहने से हर एक सकुचाया है ।।
जिससे मानव मानव दिखे वह धर्म काफी है
मगर उसी को भी नही हमने अपनाया है ।।
धर्म कहकर अधर्म की ओर मुड़ जाते हैं
इंसान होकर इंसानियत से पिछड़ जाते हैं ।।
जाने कौन धर्म की बातें करते रहते हम ,
सरेआम सौ अच्छाइयों से इतर जाते हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/01/2019
छंदमुक्त कविता "तुम ही हो...."
जैसे हो तुम वैसे हो तुम
कोई शून्य भी और पूर्ण भी तुम
ये दुःख सुख द्वैत तुम्हारा है
ये मन का खेल तुम्हारा है
हर रंग तुम्हारे अपने हैं
हर साथ तुम्हारे सपने हैं
नक़ल नहीं अद्वितीय हो तुम
कोई संग नहीं एक ही हो तुम......
तुम हो भी तुमसे
या
हो नहीं खुद से
यह संघर्ष तुम्हारा है
हर तर्क तुम्हारे अपने हैं
कुछ...
उधार लिए हुए सपने हैं
स्वप्न नहीं एक होश हो तुम
मात्र बुद्धि नहीं हाँ बुद्ध हो तुम......
प्रकृति जैसी है वैसी है
स्वाभाविक
सहज
नैसर्गिक सी है
और कोई दृष्टिभेद तुम्हारा है
सौंदर्यबोध तुम्हारा है
हर तुलना तुम्हारी तुमसे है
कोई तुलना नहीं अतुलनीय हो तुम
कोई कैद नहीं आकाश हो तुम......
तुमसे है दौड़ जीवन की
या..
जीवन बस पड़ाव भर
तुम हो किसी के लिए
या...
कोई जो तुम्हारे लिए
हर विश्वास तुम्हारा है
हर शब्द तुम्हारे तुमसे है
हर बूँद तुम्हारे तुमसे हैं
मात्र शब्द ही नहीं हाँ गीत हो तुम
कोई बूँद नहीं सागर हो तुम.....
हाँ तुम्हीं हो..
प्रकृति की हर असंभव सम्भावना
तुम ही हो....
स्वरचित
ऋतुराज दवे
जैसे हो तुम वैसे हो तुम
कोई शून्य भी और पूर्ण भी तुम
ये दुःख सुख द्वैत तुम्हारा है
ये मन का खेल तुम्हारा है
हर रंग तुम्हारे अपने हैं
हर साथ तुम्हारे सपने हैं
नक़ल नहीं अद्वितीय हो तुम
कोई संग नहीं एक ही हो तुम......
तुम हो भी तुमसे
या
हो नहीं खुद से
यह संघर्ष तुम्हारा है
हर तर्क तुम्हारे अपने हैं
कुछ...
उधार लिए हुए सपने हैं
स्वप्न नहीं एक होश हो तुम
मात्र बुद्धि नहीं हाँ बुद्ध हो तुम......
प्रकृति जैसी है वैसी है
स्वाभाविक
सहज
नैसर्गिक सी है
और कोई दृष्टिभेद तुम्हारा है
सौंदर्यबोध तुम्हारा है
हर तुलना तुम्हारी तुमसे है
कोई तुलना नहीं अतुलनीय हो तुम
कोई कैद नहीं आकाश हो तुम......
तुमसे है दौड़ जीवन की
या..
जीवन बस पड़ाव भर
तुम हो किसी के लिए
या...
कोई जो तुम्हारे लिए
हर विश्वास तुम्हारा है
हर शब्द तुम्हारे तुमसे है
हर बूँद तुम्हारे तुमसे हैं
मात्र शब्द ही नहीं हाँ गीत हो तुम
कोई बूँद नहीं सागर हो तुम.....
हाँ तुम्हीं हो..
प्रकृति की हर असंभव सम्भावना
तुम ही हो....
स्वरचित
ऋतुराज दवे
जिजीविषा********************
जिजीविषा प्रबल हर पल हो
निःस्वार्थ भाव,कर्म आतुर हो
विश्वास कहीं न कमतर हो
सेवार्थ,धर्मार्थ सदा तत्पर हो।
प्रबल वेग उमड़ती आंधी हो
दुःख ताप लिए कितनी भी हो
पराक्रम लिए 'अंगद' सा डटना
मर्त्य देह हेतु स्नेह न रखना।
ता उम्र जिजीविषा से न मुखरना
जीने की इच्छाएं प्रबल रखना
अपंग,मूर्त-अमूर्त पर दृष्टि डाल
जिजीविषा को 'गंगामय 'करना।
हिय ऋतु वसंत या पतझड़ हो
जिजीविषा समभाव बरकरार हो
परस्पर सहायतार्थ 'वंशी'रहना
मानव रूप में सदा प्रसन्न रहना।
धनलोलुपता का परित्याग कर
अद्वैत रूप अपनाकर,अपंक बन
उच्चाकांशा तरु,मेघ से सीख कर
जिजीविषा का तू अवलोकन कर।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
जिजीविषा प्रबल हर पल हो
निःस्वार्थ भाव,कर्म आतुर हो
विश्वास कहीं न कमतर हो
सेवार्थ,धर्मार्थ सदा तत्पर हो।
प्रबल वेग उमड़ती आंधी हो
दुःख ताप लिए कितनी भी हो
पराक्रम लिए 'अंगद' सा डटना
मर्त्य देह हेतु स्नेह न रखना।
ता उम्र जिजीविषा से न मुखरना
जीने की इच्छाएं प्रबल रखना
अपंग,मूर्त-अमूर्त पर दृष्टि डाल
जिजीविषा को 'गंगामय 'करना।
हिय ऋतु वसंत या पतझड़ हो
जिजीविषा समभाव बरकरार हो
परस्पर सहायतार्थ 'वंशी'रहना
मानव रूप में सदा प्रसन्न रहना।
धनलोलुपता का परित्याग कर
अद्वैत रूप अपनाकर,अपंक बन
उच्चाकांशा तरु,मेघ से सीख कर
जिजीविषा का तू अवलोकन कर।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
कविता -खिड़कियाँ बंद कर दो !
गरीबों के मसिहा मिल मालिकों
सिर्फ यह काम कर दो ,
चंद रोटी के टुकडे़ छिन,
राशि वह वैभव में लगा दो ।
मजदूरों का श्रम लूट
अपनी तिजोरियों में भर दो ।
दरवाजे बंद करो खिड़कियाँ बंद कर दो !
कोई चित्कार सुनाई न दे ,
बाहर खड़े लाचार भूख से तड़पते
जीवित कंकाल को भीतर न आने दो ,
उसे पेट की दाह में जलने दो ।
कोई अफाहिज कहीं बेसाखियाँ न माँग ले ,
तुम्हारा संशय न ताड़ ले ,
सब कुछ न हथिया ले !
सड़क पर पडे़ उन्हें रोने दो ,
नारों को धूल में उड़ने दो ।
सोचना यह कि मिल बंद न हो जाए,
हेतु जाली समझोता हो जाए,
चाहे गरीब लूट जाए,
भीतर से छलनी हो जाए,
हर जिस्म का सौदा हो जाए!
नेता हो मजदूरों का ,
बस उसका ही मुख भर दो ,
फिर नाम की तख्ती पर,
इन से आउट कर दो ,
दरवाजे बंद करो ।
खिड़कियाँ बंद कर दो ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल ',
गरीबों के मसिहा मिल मालिकों
सिर्फ यह काम कर दो ,
चंद रोटी के टुकडे़ छिन,
राशि वह वैभव में लगा दो ।
मजदूरों का श्रम लूट
अपनी तिजोरियों में भर दो ।
दरवाजे बंद करो खिड़कियाँ बंद कर दो !
कोई चित्कार सुनाई न दे ,
बाहर खड़े लाचार भूख से तड़पते
जीवित कंकाल को भीतर न आने दो ,
उसे पेट की दाह में जलने दो ।
कोई अफाहिज कहीं बेसाखियाँ न माँग ले ,
तुम्हारा संशय न ताड़ ले ,
सब कुछ न हथिया ले !
सड़क पर पडे़ उन्हें रोने दो ,
नारों को धूल में उड़ने दो ।
सोचना यह कि मिल बंद न हो जाए,
हेतु जाली समझोता हो जाए,
चाहे गरीब लूट जाए,
भीतर से छलनी हो जाए,
हर जिस्म का सौदा हो जाए!
नेता हो मजदूरों का ,
बस उसका ही मुख भर दो ,
फिर नाम की तख्ती पर,
इन से आउट कर दो ,
दरवाजे बंद करो ।
खिड़कियाँ बंद कर दो ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल ',
*भारत के सपूत *
भारत माँ की चरण धूलि,
चंदन माथे धरता हूँ ।
सपूत हूँ नाम वतन के ,
जीवन अर्पण करता हूँ ।
बहता शोणित यूँ रगों में,
जलते अंगारों सा
सिंधु प्रलय सा उठती
लहरें,
उर में ललकारों का
सिंहनाद हूँकारें भरकर,
शत्रुओं से नित लड़ता हूँ।
माँ की कोख निहाल होती
माटी का कर्ज चुकाता हूँ
अस्मिता की रक्षा खातिर
प्राणोत्सर्जन कर जाताहूँ
मातृभूमि के परवाने बन,
ज्वाल चिता पर जलता हूँ
इस माटी की गंध में लिपटे
जाने कितने कितने नाम
राणा शिवा सावरकर जैसे
है वतन के ये अभिमान
राज गुरू चंद्रशेखर बन
हँसकर फांसी चढ़ता हूँ
बेड़ियों में जकड़ी माता
जब जब अश्रु बहाती है
सिसक उठती हैं सदियाँ
बूँद बूँद कीमत चुकाती है
बन राम कृष्ण अवतरित होता
पीड़ा जगत की हरता हूँ
युगों- युगों से चलती आई
भारत की अमर कहानी
जब -जब संकट आया भू पर
बेटों ने दी है सदा कुर्बानी
जन गण मन साँसों में
समाहित
वतन को नमन करता हूँ।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
27-1-2019
भारत माँ की चरण धूलि,
चंदन माथे धरता हूँ ।
सपूत हूँ नाम वतन के ,
जीवन अर्पण करता हूँ ।
बहता शोणित यूँ रगों में,
जलते अंगारों सा
सिंधु प्रलय सा उठती
लहरें,
उर में ललकारों का
सिंहनाद हूँकारें भरकर,
शत्रुओं से नित लड़ता हूँ।
माँ की कोख निहाल होती
माटी का कर्ज चुकाता हूँ
अस्मिता की रक्षा खातिर
प्राणोत्सर्जन कर जाताहूँ
मातृभूमि के परवाने बन,
ज्वाल चिता पर जलता हूँ
इस माटी की गंध में लिपटे
जाने कितने कितने नाम
राणा शिवा सावरकर जैसे
है वतन के ये अभिमान
राज गुरू चंद्रशेखर बन
हँसकर फांसी चढ़ता हूँ
बेड़ियों में जकड़ी माता
जब जब अश्रु बहाती है
सिसक उठती हैं सदियाँ
बूँद बूँद कीमत चुकाती है
बन राम कृष्ण अवतरित होता
पीड़ा जगत की हरता हूँ
युगों- युगों से चलती आई
भारत की अमर कहानी
जब -जब संकट आया भू पर
बेटों ने दी है सदा कुर्बानी
जन गण मन साँसों में
समाहित
वतन को नमन करता हूँ।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
27-1-2019
संग चलने के सपने देखे थे हमने
उनको यूँ पल मे बदलते देखा है।
जो पलकों पर ख़्वाब मचलते थे कभी
बेबस हो आज उनको मरते देखा है।
जीवन भर खामोशियाँ डराती रही
दरमियाँ अब मौन पसरते देखा है ।
लब से बात जुबा पर आती नही
कोई तूफाँ दिल में पलते देखा है।
कुछ कागज के टुकड़ों खातिर
लोगों को आपस में लड़ते देखा है।
लोगों की कलम बिकती है यहाँ
सच को झूठा कर बेचते देखा है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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