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ब्लॉग संख्या :-261
1
प्रेम तरंग
इंद्रधनुषी रँग
महका मन।।
2
जल तरंग
खिलखिलाता वाद्य
प्रेम छड़ी से।।
3
दिव्यांग बेटी
मलंग सी तरंग
शिखर छूती।।
4
प्रेम का स्पर्श
अरुणिम तरंग
ममता दौड़ी।।
स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ
सांसों की जल तरंग पर गीतों की बहार है
शायद यह जरूर उनके आने की बयार है ।।
उठ रहीं हैं दिल के समुन्दर में तरंगे
ये पहली बार नही हुआ हजार बार है ।।
जब जब उनका हसीं चेहरा याद आया
छाया दिल में एक अजीब सा खुमार है ।।
हिलोरें लेने लगा यह संजीदा दिल
ऐसा यह दिल उनका तलबगार है ।।
तरंगें उठीं जब जब इस सूने दिल से
मानो मोती निकलकर आये अपार हैं ।।
कभी शान्त था ये दिल का समुन्दर ''शिवम"
उनने नज़र क्या फेंकी तरंग की भरमार है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/01/2018
शायद यह जरूर उनके आने की बयार है ।।
उठ रहीं हैं दिल के समुन्दर में तरंगे
ये पहली बार नही हुआ हजार बार है ।।
जब जब उनका हसीं चेहरा याद आया
छाया दिल में एक अजीब सा खुमार है ।।
हिलोरें लेने लगा यह संजीदा दिल
ऐसा यह दिल उनका तलबगार है ।।
तरंगें उठीं जब जब इस सूने दिल से
मानो मोती निकलकर आये अपार हैं ।।
कभी शान्त था ये दिल का समुन्दर ''शिवम"
उनने नज़र क्या फेंकी तरंग की भरमार है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/01/2018
जीवन के है अनेक रंग
कभी खुशी तो
कभी गम के रंग
उत्साह भर देते हैं
जीवन में
इन्द्रधनुषी रंग
पति पत्नी के
जीवन में खुशियों के
रंग भर देते है
ये सतरंगी तरंग
न आने दे परिवार में
कमी उमन्ग की
न आने दे जीवन में
कमी तरंग की
जब हर तरफ हो खुशी तो
मन में भर जाऐगी
तरंग ही तरंग
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिन, सोमवार,
दिनांक, 7,1,2019,
है
कैसी
तंरग
जन मन
आधुनिकता
असंख्य उम्मीदें
विरासत निराशा |
ये
रोग
ग्रसित
हर मन
रक्त तंरग
ठहरा जमाना
बदला परिवेश
जो
रोक
उन्माद
अहंकार
अराजकता
संभव विकास
जीवित मानवता |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
दिनांक, 7,1,2019,
है
कैसी
तंरग
जन मन
आधुनिकता
असंख्य उम्मीदें
विरासत निराशा |
ये
रोग
ग्रसित
हर मन
रक्त तंरग
ठहरा जमाना
बदला परिवेश
जो
रोक
उन्माद
अहंकार
अराजकता
संभव विकास
जीवित मानवता |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
शिव डमरू की उठी तरंग
सूत्र माहेश्वरी स्वर वर्ण मिल
हर रसना पर जम गया रंग
माँ वीणा के तार तरंगित
लय गति ताल सुस्वर देते
जगति के सारे संकट को
एक एक मिल सब हर लेते
तरल तरंगित होती जल में
भाव तरंगित होते मन मे
ध्वनि तरंगित होती मुँह में
स्नेह तरंगित हो जन मन मे
भाव विभाव अनुभाव संचारी
मनमंदिर जब तरंग उठती है
रस मानस में जन्म प्राप्त कर
सद वाणी कविता कहती है
हवा प्रभंजन के झोंको से
सदा तरंगे ऊपर उठती है
चञ्चल होकर आगे बढ़ती
संघर्षों से वह् लड़ती है
परहित भक्ति भाव तरंगे
दानव को मानव करती है
हरण करे वह् अंधकार का
पुंज दीप हिये में भरती है।।
स्व0 रचित
गोविंन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विविध तलों पर लहर वक्र,
शुचि कहलाती चारु तरंग,
व्यापक अर्थ भौतिकी में,
कम्पन सतत मृदुल तरंग।
गहन प्रेम शुचि भाव हृदय में,
करे सृजित मन तरल तरंगें,
मायावी आकर्षणवश उर में,
भर देता अनगिनत उमंगे।
चारु चंद्र के दृष्टिपात से,
होता सागर अन्तस उद्वेलित,
जल के शान्त सुतल पर चारु,
सरगम शुचि ध्वनियुक्त तरंगित।
शोणित संग थमनियो में नित,
बहतीं ऊर्जावान तरंगे,
जीवन का आधार धरणि पर,
चैतन्य गति की अदभुत कारक।
--स्वरचित--
(अरुण)
शुचि कहलाती चारु तरंग,
व्यापक अर्थ भौतिकी में,
कम्पन सतत मृदुल तरंग।
गहन प्रेम शुचि भाव हृदय में,
करे सृजित मन तरल तरंगें,
मायावी आकर्षणवश उर में,
भर देता अनगिनत उमंगे।
चारु चंद्र के दृष्टिपात से,
होता सागर अन्तस उद्वेलित,
जल के शान्त सुतल पर चारु,
सरगम शुचि ध्वनियुक्त तरंगित।
शोणित संग थमनियो में नित,
बहतीं ऊर्जावान तरंगे,
जीवन का आधार धरणि पर,
चैतन्य गति की अदभुत कारक।
--स्वरचित--
(अरुण)
हाइकु
*
सरि दर्पण
है आशाएं तरंग
अक्स किरन
*
तरंग झूला
कुसुमाकर फूला
नगर कूदा
*
कुंभ वंदन
प्रयाग का स्पंदन
मन तरंग
*
सर्द सम्मान
सरहद सैनिक
ध्वज तरंग
**
रंजना प्रमोद सैराहा__
*
सरि दर्पण
है आशाएं तरंग
अक्स किरन
*
तरंग झूला
कुसुमाकर फूला
नगर कूदा
*
कुंभ वंदन
प्रयाग का स्पंदन
मन तरंग
*
सर्द सम्मान
सरहद सैनिक
ध्वज तरंग
**
रंजना प्रमोद सैराहा__
🌹🌹🌹
(1)इश्क पतंग
विचारों की तरंग
उड़े गगन
🌹🌹🌹
(2)लोह तरंग
कर्णप्रिय तरंग
है वाद्ययंत्र
🌹🌹🌹
(3)देख ना पाक
उर उठे तरंग
सेना दबंग
🌹🌹🌹
(4)मानव अंग
विद्युत की तरंग
ले गई संग
🌹🌹🌹
(1)इश्क पतंग
विचारों की तरंग
उड़े गगन
🌹🌹🌹
(2)लोह तरंग
कर्णप्रिय तरंग
है वाद्ययंत्र
🌹🌹🌹
(3)देख ना पाक
उर उठे तरंग
सेना दबंग
🌹🌹🌹
(4)मानव अंग
विद्युत की तरंग
ले गई संग
🌹🌹🌹
(5)नहाए श्रोता
सत्संग की बहती
ज्ञान तरंग
🌹🌹🌹
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
7/1/2019
सत्संग की बहती
ज्ञान तरंग
🌹🌹🌹
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
7/1/2019
"तरंग"
हाइकु
1
ध्वनि तरंग
आवृत्ति परिसर
करे नर्तन
2
भूमिकम्पन
पृथ्वी अंत:तरंग
त्रस्त जीवन
3
नभ पटल
प्रकाशित तरंग
नयन दंग
4
मन दबंग
उद्वेलित तरंग
मस्त मलंग
5
चमगादड़
पराश्रव्य तरंगें
है कर्णप्रिय
6
प्रेम तरंग
धड़कनों के संग
जैसे हो जंग
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
हाइकु
1
ध्वनि तरंग
आवृत्ति परिसर
करे नर्तन
2
भूमिकम्पन
पृथ्वी अंत:तरंग
त्रस्त जीवन
3
नभ पटल
प्रकाशित तरंग
नयन दंग
4
मन दबंग
उद्वेलित तरंग
मस्त मलंग
5
चमगादड़
पराश्रव्य तरंगें
है कर्णप्रिय
6
प्रेम तरंग
धड़कनों के संग
जैसे हो जंग
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
विषय- तरंग
विधा- पिरामिड, हाइकु, माहिया
पिरामिड -
१)-
है
रंग
तरंग
सरगम
मधुरतम
जीवन-स्पंदन
महके तन-मन
#,,, __
२)-
हो
संग
तरंग
सतरंग
जीवन-ढंग
बसे अंग अंग
भर देती उमंग
#,,, __
हाइकु-
संग-तरंग
जीवन का संगीत
महके अंग
#,,, __
माहिया -
तरंगित हुई काया
मधुरिम रागों से
तन मन है हुलसाया
#,,, __
मेधा.
"स्वरचित"
-मेधा नरायण.
विधा- पिरामिड, हाइकु, माहिया
पिरामिड -
१)-
है
रंग
तरंग
सरगम
मधुरतम
जीवन-स्पंदन
महके तन-मन
#,,, __
२)-
हो
संग
तरंग
सतरंग
जीवन-ढंग
बसे अंग अंग
भर देती उमंग
#,,, __
हाइकु-
संग-तरंग
जीवन का संगीत
महके अंग
#,,, __
माहिया -
तरंगित हुई काया
मधुरिम रागों से
तन मन है हुलसाया
#,,, __
मेधा.
"स्वरचित"
-मेधा नरायण.
दिल मेरा मचलने को है...
थाम लो अब हाथ मेरा..
मन में हलचल होने को है..
अजीब सी खुमारी है...
सांसों की इन तरंगों में..
आ कर लूं आत्मसात तुझे..
मन में कुछ तो होने को है..
बावरा हो रहा ये दिल...
अब राह भटकने को है...
प्रेम तरंग उठ रही मन में...
दिल मेरा मचलने को है...
सात सूरों की सरगम...
मन में अब बजने को है...
ख्वाब संग जीने के तेरे..
मन में अब सजने को है...
प्रेम तरंग उठ रही मन में...
दिल मेरा मचलने को है...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
ग़ज़ल,
मौसम को बदलने दो गीत लिखूंगा,
दिल की बात कहने दो गीत लिखूंगा।।१।।
नयनों में मधु मास ले सावन आया,
फूलों को महकाने दो गीत लिखूंगा।।२।।
रात का आंचल थोड़ा ढल जाने दो,
चाहत रंग भरने दो गीत लिखूंगा।।३।।
मनके सागर में तरंग आने दो,
प्यार का रंग घुल ने दो गीत लिखूंगा।।४।।
आंखों से न जाने क्या कह गईं आंखें,
केश को बिखर जाने दो गीत लिखूंगा।।५।।
रात भर में बदलियां न जाने सिसकती रही,
बारिश को थम जाने दो गीत लिखूंगा।।६।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।
मौसम को बदलने दो गीत लिखूंगा,
दिल की बात कहने दो गीत लिखूंगा।।१।।
नयनों में मधु मास ले सावन आया,
फूलों को महकाने दो गीत लिखूंगा।।२।।
रात का आंचल थोड़ा ढल जाने दो,
चाहत रंग भरने दो गीत लिखूंगा।।३।।
मनके सागर में तरंग आने दो,
प्यार का रंग घुल ने दो गीत लिखूंगा।।४।।
आंखों से न जाने क्या कह गईं आंखें,
केश को बिखर जाने दो गीत लिखूंगा।।५।।
रात भर में बदलियां न जाने सिसकती रही,
बारिश को थम जाने दो गीत लिखूंगा।।६।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।
भावों के मोती
७/१/२०१९
विधा-पिरामिड
विषय -तरंग
है
वीणा
झंकृत
सरगम
सुर-सरिता
हृदय-तरंग
अलौकिक-आनंद।
ये
मन
पवन
पुष्प-गंध
जल-तरंग
चंचल-हिरण
उड़ता दिग्दिगंत।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
७/१/२०१९
विधा-पिरामिड
विषय -तरंग
है
वीणा
झंकृत
सरगम
सुर-सरिता
हृदय-तरंग
अलौकिक-आनंद।
ये
मन
पवन
पुष्प-गंध
जल-तरंग
चंचल-हिरण
उड़ता दिग्दिगंत।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
हाइकु.. विषय :-"तरंग"
(1)
झूठा घमंड
जीवन बुलबुला
क्षण तरंग
(2)
हृदय तट
स्मृतियाँ टकराती
बन तरंग
(3)
नमन कुम्भ
धर्म श्रद्धा सागर
आस्था तरंग
(4)
अहं तरंग
स्वार्थ लाया सुनामी
डूबे सम्बन्ध
(5)
उमंग जागे
मन उठे तरंग
प्रेम किनारे
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद (राज.)
(1)
झूठा घमंड
जीवन बुलबुला
क्षण तरंग
(2)
हृदय तट
स्मृतियाँ टकराती
बन तरंग
(3)
नमन कुम्भ
धर्म श्रद्धा सागर
आस्था तरंग
(4)
अहं तरंग
स्वार्थ लाया सुनामी
डूबे सम्बन्ध
(5)
उमंग जागे
मन उठे तरंग
प्रेम किनारे
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद (राज.)
भावों के मोती
विषय-तरंग
वर्ण पिरामिड
(१)
था
कोरा
जीवन
यह कैसी
प्रेम तरंग
झूम उठा मन
प्यार की सुन धुन
(२)
लो
भीगी
धरती
लहराती
जलतरंग
मचाती कहर
लथपथ प्रकृति
***अनुराधा चौहान***स्वरचित पिरामिड
विषय-तरंग
वर्ण पिरामिड
(१)
था
कोरा
जीवन
यह कैसी
प्रेम तरंग
झूम उठा मन
प्यार की सुन धुन
(२)
लो
भीगी
धरती
लहराती
जलतरंग
मचाती कहर
लथपथ प्रकृति
***अनुराधा चौहान***स्वरचित पिरामिड
विधा वर्ण पिरामिड
7/1/2018
1
है
मन
तरंग
भटकता
भव सागर
उसे भरमाता
मनु राह ना पाता
2
ये
तन
सागर
गहराई
नाप ना पाई
तरंग है साँसे
मन बना हरजाई
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
7/1/2018
1
है
मन
तरंग
भटकता
भव सागर
उसे भरमाता
मनु राह ना पाता
2
ये
तन
सागर
गहराई
नाप ना पाई
तरंग है साँसे
मन बना हरजाई
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
ध्वनि
माधुर्य
आकर्षण
उर प्रसङ्ग
जीवन उमंग
सुरभित तरंग।
है
सोच
तरंग
निराकार
अनवरत
क्षणिक जीवन
नित परिवर्तन ।
हायकू-
उर तरंग
प्रमुदित सारंग
बिखरे रंग।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
विधा:पिरामिड
विषय:तरंग
ये
जल
तरंग
कल-कल
विविध रंग
मन में उमंग
जीव अभिन्न अंग
है
नभ
गुंजित
ध्वनि संग
प्रकाश रंग
विभिन्न तरंग
खुश जीवन संग
मनीष श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित
विषय:तरंग
ये
जल
तरंग
कल-कल
विविध रंग
मन में उमंग
जीव अभिन्न अंग
है
नभ
गुंजित
ध्वनि संग
प्रकाश रंग
विभिन्न तरंग
खुश जीवन संग
मनीष श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित
विषय - तरंग
है
भक्ति
प्रेरणा
विषपान
अमृत धारा
मीरा भी मलंग
ह्रदय की तरंग
2
है
स्वर्ग
सुंदर
कुंभ मेला
प्रयागराज
प्रभु भक्ति संग
अध्यात्मिक तरंग
3
है
सुख
सावन
मेघ संग
नाचे अनंग
दामिनी दबंग
बजी जल तरंग
बंशी की धुन
नाच रही गोपियाँ
मन तरंग
प्रेम तरंग
प्रियतम का संग
बाजे मृदंग
क्षणभंगुर
जीवन की तरंग
कैसा गुरूर
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
है
भक्ति
प्रेरणा
विषपान
अमृत धारा
मीरा भी मलंग
ह्रदय की तरंग
2
है
स्वर्ग
सुंदर
कुंभ मेला
प्रयागराज
प्रभु भक्ति संग
अध्यात्मिक तरंग
3
है
सुख
सावन
मेघ संग
नाचे अनंग
दामिनी दबंग
बजी जल तरंग
बंशी की धुन
नाच रही गोपियाँ
मन तरंग
प्रेम तरंग
प्रियतम का संग
बाजे मृदंग
क्षणभंगुर
जीवन की तरंग
कैसा गुरूर
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
दिनांक, 7,1,2019,
तंरग तो है जीवन सुमन, तंरग से ही सुरभित है मन,
जीव मृतप्राय है तंरग के बिन,है संजीवनी मानव का धन,
मन मृदंग उठे जब जब तंरग, गाये जीवन हो लय न भंग,
न गम विषाद न हानि लाभ, जीवन लगे हो फूलों का वन,
सुरभित रहे घर का चमन, छायी रहे हर जन मन उमंग,
घर में खिलें खुशियों के फूल, होती नहीं किसी से भूल,
आ गई है जब से विद्युत तंरग ,हो गया है जीवन सुगम,
अविष्कारों का चला सिलसिला,बना जीवन सुविधा भरा,
तंरग बने अभिशाप जब, बहे नफरतों की तब ही हवा,
तब विनाश हो धन मान का, इज्जत की उडें धज्जियाँ,
प्रयास हम सबका हो यही, सदा तंरग का सदुपयोग हो,
सेवा करते रहें हम देश की,बस सर्वोत्तम अपना देश हो |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
तंरग तो है जीवन सुमन, तंरग से ही सुरभित है मन,
जीव मृतप्राय है तंरग के बिन,है संजीवनी मानव का धन,
मन मृदंग उठे जब जब तंरग, गाये जीवन हो लय न भंग,
न गम विषाद न हानि लाभ, जीवन लगे हो फूलों का वन,
सुरभित रहे घर का चमन, छायी रहे हर जन मन उमंग,
घर में खिलें खुशियों के फूल, होती नहीं किसी से भूल,
आ गई है जब से विद्युत तंरग ,हो गया है जीवन सुगम,
अविष्कारों का चला सिलसिला,बना जीवन सुविधा भरा,
तंरग बने अभिशाप जब, बहे नफरतों की तब ही हवा,
तब विनाश हो धन मान का, इज्जत की उडें धज्जियाँ,
प्रयास हम सबका हो यही, सदा तंरग का सदुपयोग हो,
सेवा करते रहें हम देश की,बस सर्वोत्तम अपना देश हो |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
*****************
बन्द आँख करके जब मैने, यादों मे अपने झाँका।
कितने रिश्ते छूट गये जो , मैने नही सम्हाला।
कुछ दिल के थे कुछ मिलते थे, कुछ ने मुझको बाँधा।
कुछ को रखा, कुछ सम्हाला, तो कुछ रह गया आधा।
बन्द झँरोखा करके मैने, ज्यादा कुछ ना जाना।
अन्तर्मन मे फँसा रहा मै, पर वो भी जाना आधा।
शेर के मन मे द्वंद बहुत है, लिखता कम या ज्यादा।
मेरी रचना पूर्ण हुई ना , मन तरंग सा लागा।
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
कितने रिश्ते छूट गये जो , मैने नही सम्हाला।
कुछ दिल के थे कुछ मिलते थे, कुछ ने मुझको बाँधा।
कुछ को रखा, कुछ सम्हाला, तो कुछ रह गया आधा।
बन्द झँरोखा करके मैने, ज्यादा कुछ ना जाना।
अन्तर्मन मे फँसा रहा मै, पर वो भी जाना आधा।
शेर के मन मे द्वंद बहुत है, लिखता कम या ज्यादा।
मेरी रचना पूर्ण हुई ना , मन तरंग सा लागा।
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
तरंग
मन की तरंग च्युत करती है पथ से,
औ तन की तरंग क्षीण करती शरीर को।
मन की तरंग मार लेते हैं वो ज्ञानी होते,
तन की तरंग मारें ज्ञानी हैं परम वे।।
कर्म निष्काम करें फल की न इच्छा करें,
कर्म से विरत भी न होने पाएँ मन से।
सेवा प्राणिमात्र की यही हो ध्येय जीवन का,
करें सहयोग तन - मन से व धन से।।
मन की तरंग च्युत करती है पथ से,
औ तन की तरंग क्षीण करती शरीर को।
मन की तरंग मार लेते हैं वो ज्ञानी होते,
तन की तरंग मारें ज्ञानी हैं परम वे।।
कर्म निष्काम करें फल की न इच्छा करें,
कर्म से विरत भी न होने पाएँ मन से।
सेवा प्राणिमात्र की यही हो ध्येय जीवन का,
करें सहयोग तन - मन से व धन से।।
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