Sunday, January 20

"चित्र "19जनवरी2019




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चित्र सिमटे अब यादों में,
रहते सिर्फ अब खयालों में।
बनके उभरते घाव कभी,
या नमक से लगते छालों में।

देखता हूँ उन चित्रों को,
जो अब धुँधले से हो गए।
जब से बदली समय ने करवट,
यार दोस्त भी बदल गए।

लगी लत दौलत की ऐसी,
वो अहंकार से भर गए।
जिनसे थी रोशन जिंदगी कभी,
यादों को अंधकार से भर गए।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़





(1)
श्कों की धार
रँगे प्रेम के चित्र
उर विचित्र।।
(2)
चित्र ने बोले
बंद भूत संवाद
दिल के राज।।
(3)
ढलती उम्र
ख़्वाबों में सहेजे
प्रेम के चित्र।।
(4)
मन की बात
अनकही कहानी
चित्र कहते।।
(5)
माँ के नयन
यादों की एलबम
सजीव चित्र।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक




विषय- "चित्र"
विधा- कविता
************
बीते दिनों की वो यादें, 
भुलाई नहीं जाती हैं, 
सामने आये न आये, 
चित्र जरूर खींच जाती हैं |

वो हँसी के चित्र होते हैं, 
वो उदासी के चित्र होते हैं,
बस उन्हें ही देखकर थोडी सी, 
बेजान शरीर में जान आ जाती है |

जिन्दगी के कुछ बेरंग चित्रों में, 
रंग भरने को मेरा जी करता है,
पंख लगाकर उड़ने को जी करता है,
पग घुँघरू पहन थिरकने को जी करता है |

समय के साथ चित्र बदलते हैं, 
पर कुछ धुँधले पड़े चित्रों को, 
साफ करने को जी करता है क्योंकि,
हर एक चित्र अपनी कहानी कहता है |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





नमन करूँ मैं चित्रकार को
चल चञ्चल येचित्र बनाए
कुछ ने निज मर्यादा खो दी
कुछ ने निज नव चित्र सजाए
अद्भुत गगन अंतरिक्ष भू
सूरज चन्दा तारे झिलमिल
खग कुल पात सदा चहकती
वह् रहते हैं सारे हिलमिल
प्रकृति के अद्भुत चित्रों में
कलियां चटके फूल महकते
हिम गिरि के उत्तुंग शिखर से
निर्झर नदियां नित नद बहते
धन्य धन्य वह् चित्रकार है
प्राणवायु सुगंधा भरता
चित्र नहीं दिया अनिल का
जगजीवन अनुभव करता
भूतकाल प्रतीक चित्र है
वर्तमान में सीख सिखाता
कब क्या हो जाये सृष्टि में
भावी मार्ग नित हमे बताता
परमपिता मूरत चित्र है
देवालय भव्य सुशोभित
भाव भक्ति की गङ्गा में
भक्त जन हैं सारे मोहित
चित्रों की चित्रावली जग है
सद चित्रों से जगत सजाओ
आना जाना जीवन सबका
इस जीवन को महान बनाओ
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम




विषय-चित्र
आँख मूंदे बैठा 
देख रहा हूँ
जेहन में उभर रही
कुछ रेखाएँ 
बनती बिगड़ती आकृतियां
धुँधला-सा एक चित्र
नदी किनारे
रेत का टीला
एक कलाकार
उंगलियों से
तराशता कोई चरित्र
एक जलप्रवाह 
बहते रेतों की भित्ति
बंद मुट्ठियों से 
सरकते रेत के सपने
रेतों का चलचित्र
आँखों में जल-धार
नदी के या अंतस के?
मासूम कलाकार
समझ न पाता
विधि का विधना विचित्र
निमग्न मन फिर से
बढ़ता,गढ़ता एक नया चित्र
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित




कलम उठाई न एक तस्वीर उभरती
भाव व्यंजना की लकीर निकरती ।।

कैसे न कहूँ तुझसे ही यह मेरी 
जन्मों की रूठी तकदीर संवरती ।।

जो रह गई अनकही सी बातें 
अब वह भाव बनकर उतरती ।।

तुझसे ही यह कलम चलती 
और लेखन प्रतिभा निखरती 

आखिर क्या था ऐसा खास 
ये बात 'शिवम' घर करती ।।

कितनी तस्वीर देखूँ फिर भी
तुझ बिन तबियत नही भरती ।।

तेरी तस्वीर लेकर जग जीतूँ 
मन में यह उमंग उठा करती ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/01/2018




Sarita Garg 

 चित्र उभरते अनगिनत
मानस पटल पर 
बनते और मिट जाते पल में
कुछ छोड़ कर
अपनी अमिट छाप 
खो जाते
दुनिया की भीड़ में
रह जाती याद उनकी
दिल भुला न पाता
दिमाग मिटा न पाता
तस्वीर उनकी
लिख जाते इबारत 
कुछ ऐसी
मिट न पाती जीवन भर
तन्हाई में याद करते
आँख हो जाती नम
उड़ा जाती नींदें
बरसो पुरानी बात
याद आती हर रात
अचानक मिलना
अपलक देखना
पलकों में समाना
दिल में उतर जाना
थोड़ी सी नजदीकी
पड़ गई फीकी
फिर न मिले दोबारा
विस्मित पथराये अधरों पर
दो जलते अंगार
तपन देते आज भी
चौंक उठ जाती
भरी नींद से
पर वो तस्वीर
न मिट पाई आज भी
हृदय कैनवास से

सरिता गर्ग
स्व रचित


I क्या करूँ मैं...... II 

बूढी अम्मा के कमरे में एक बक्सा पड़ा है...
ऊपर बड़ा सा ताला जड़ा है....
घर के लोगों की आँखों में वो कभी चमक....
कभी निराशा सा देता है....
"अजी सुनो कभी पूछा अपनी अम्मा से...
इस 'पिटारे' में ऐसा क्या छुपा रखा है"...
"हां पूछा बहुत बार, पर कोई जवाब नहीं मिला".....

एक सुबह अम्मा अपने नित-नेम से निवृत हो...
बक्से के पास बैठ गयी...
इतने में ही खबर कानों में पंहुच गयी...
सब की आँखें बक्से पे जम गयीं...
अम्मा ने बक्सा खोला.... 

सबसे ऊपर एक सादा लाल सा जोड़ा पड़ा है...
शादी का लगता है...
फिर एक सूट निकला साथ में कुछ पैसे...
"अरे ये तो वही सूट और पैसे हैं अम्मा.. 
जो मैंने तुमको "दिए" थे जब पहली तनख्वाह मिली थी....
अभी तक रखे हैं "....
और निकले उपहार जो कभी अम्मा ने....
अपनी बहु बेटे को शादी की सालगिरह पर दिए थे...
पर उनको पसंद नहीं थे....पड़े थे...
फिर अम्मा ने हाथ में धागे उठाये...शायद २५-३०......
राखी के धागे हैं..एक दूसरे से बंधे......
जो उस भाई के लिए थे जो उसको छोड़ गया था...
क्यूँकी उसने घर की मर्जी के बिना शादी की थी....
फिर निकला पायल का जोड़ा...जो उसने पोती को दिया था...
पर बहु-बेटे ने वापिस कर दिया था...
और..... बस.....यही कुछ उसमें भरा पड़ा था...
बाकी सारा बक्सा खाली पड़ा था...
अम्मा की जीवन में रिश्तों की तरह....

अम्मा की वीरान आँखें दीवार को देख रही थी...
जैसे सवाल हो उन आँखों में....क्या कसूर था उसका...
उसने तो बेटी..बहन..पत्नी..माँ..दादी का रिश्ता जीया....
पर उसको...
पति भी ५ साल पहले छोड़ के संसार से चला गया...
कौन सा रिश्ता उसके पास है....
फिर धीरे धीरे फिसलती पुतलियाँ स्थिर हो गयी....
बक्से का मुह खुला हुआ था...कह रहा हो जैसे....
लो अब सब खाली हो गया......

घर में शोर सा मच गया...
अजी "बुढ़िया" चली गयी....अब जल्दी से इसकी तयारी कर दो...
और ४ दिन में ही सब काम ख़तम कर दो मेरे पास टाइम नहीं है....

मेरे दिल से वो "रिश्तों के पिटारे" की तस्वीर नहीं जाती....
आँखों के आगे से "हिर्दय विहीन रिश्तों" की तस्वीर नहीं जाती....
क्या करूँ मैं......
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 




विषय -चित्र
----- ----- -----
कुछ लम्हे दिल में बस जाते
तो मिटाएं नहीं मिटते
यादों में उनके चित्र
सदा ज़िंदा ही हैं रहते

बचपन से लेकर जवानी
कुछ यादें नई पुरानी
कुछ धुंधले होते चित्र
कुछ तस्वीरें हैं सुहानी

ज़िंदगी ने हम सभी को
कई रंग है दिखलाए
कुछ कीमती से चित्र हैं
जो दिल में हैं समाएं

कभी-कभी ज़िंदगी में
हालात बदल जाते हैं
समय के साथ लोगों के
ज़ज्बात बदल जाते हैं

बिखर जाते हैं रिश्ते
आ जाती हैं दूरियां
कभी-कभी हालात भी
बड़ा देतीे हैं मजबूरियां

कितना भी करो दिखावा
रखो चाहें कितनी दूरियां
मिटा न सके दिल से कोई
यादों की परछाइयां

कुछ लम्हों के चित्र
कभी मिट नहीं सकते
दूर हो चाहे कितने भी
पर रिश्ते मिट नहीं सकते
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित





विषय चित्र
रचयिता पूनम गोयल

एक चित्र बनाऊँगी ,
मैं ऐसा ।
जो होगा 
सबसे अलग , सबसे जुदा ।।
न होगा उसमें
कोई गमगीन ,
न होंगी फूल-पत्तियाँ ।
ज़िन्दगी का चित्र खींचतीं ,
होंगीं उसमें कुछ ख़ुशियाँ ।।
एवं उसमें होंगें 
वे सपने ,
जो मिलकर
हम दोनों ने देखें ।
उनको हम पूरा करेंगे ,
जीवन की राहों पर चलते ।।
यह है चित्र ,
मेरी कल्पनाओं का ।
बहुत जल्द इसमें ,
संसार होगा
ढेर सारे रंगों का ।।





चित्रकार की चित्रकृति चित्रलिखित सी देखती,
कौन सुघड़ सोच सोच कर अंतर्मन टटोलती।

जिसने रंग भरे हैं न्यारे,
कितने सुंदर कितने प्यारे।
कितनी सुघड़ है उसकी कूची
गलती की न कोई सूची।

देख देख संसार की शोभा मन ही मन सोचती,
किसकी है ये सुंदर रचना जिज्ञासा मन डोलती।

हरा रंग बना खुशहाली,
लाल बना है मंगलकारी।
श्वेत बना शांति का दूत है,
काला बना अज्ञान प्रतीक है।

इंद्रधनुषी रंगों से ये दुनिया कितनी सुन्दर लगती,
नित दिखते नए रंग इसमें कूची कोई न दिखती।

पीला रंग बन बसंत,
जीवन में खुशियां भरता।
जलधि आसमां का रंग,
मन का संताप है हरता।

इन रंगों से सजी ये धरती कितनी सुंदर दिखती,
चित्रकार की चित्रकृति मन को है हर्षित करती।

अभिलाषा चौहान 
स्वरचित




 सेदोका पेश है।
१/चित्र तुम्हारे,
हमेशा उभरते,
सूने इस घर में,
बाट जोह ती,
सजती संवरती, 
आइने से पूछती।।१।।
२/जीवन चित्र,
जैसा रंग रंगते,
वैसा ही चित्र बने,
जीवन चित्र,
हम रंगते,रहे।
पूर्ण कर न पाते।।

सत्य का चश्मा,
चढ़ा कर देखिए,
मानव समाज की,

निज देश की,
हालतें चित्र तुम्हें,
साफ दिख जायेगा।।





आसमां के कनवास पर
बादलों को ले संग
प्रीत के रंगों से
तेरी तस्वीर बनाई

मेरी निगाहों में
तेरा अक्स उभर आया
तस्वीर के पीछे से
तेरी मुस्कान नजर आई

तस्वीर ने जो कहा
वो सारी बातें दिल ने सुना
तुम कह ना सके जो कभी
तेरी तस्वीर कह गई
❇️❇️❇️❇️❇️❇️❇️
"तांका"
तस्वीर संग
महफिल सजाई
यादों का शमां
गुनगुनाती रातें
तुम्हारी हर बातें

स्वरचित पूर्णिमा साह




दीवारों पर रंग बिरंगी पेंसिल 
से आड़ी तिरछी रेखाओ का जाल
नन्हें हाथों के कल्पना के चित्र
कितने मासूम है ये चित्रकार

कोरे श्वेत कागज पर
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
रंगों से अनजान ये कलाकार

रंगीन पेंसिल से रच 
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
इनसे बड़ा कौन है चित्रकार

नन्हें हाथों मे पेंसिल 
से कलम लेने लगा आकार
अब की बोर्ड के बटन अपार
भीड़ मे खो कर रह गए ये चित्रकार

रंगों का अर्थ अब जानो
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
जीवन कैनवास के 
चित्र के बनो चित्रकार

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव




स्मृति पटल सुसज्जित रहता ,
बीते लम्हों के चित्रों से |
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें ,
चित्रित मन की दीवारों पे |
बीता वक्त नहीं आता फिर ,
हमें मिले सहारा चित्रों से |
बचपन और जवानी बुढापा ,
सब याद रहे इन चित्रों से |
एक चित्र बनाया दुनियाँ का ,
तरह तरह के रंगों से |
मोहित है हर आने वाला ,
ईश्वर निर्मित कलाकृतियों पे |
कुछ रेखाएं आडी तिरछीं खींच रखीं ,
स्वरूप नहीं मिल पाता पर इन चित्रों को |
छबि अंकित है मन में लेकिन ,
रंगों का मिलता आधार नहीं |
रंग बिरंगी दुनिया में ,
सबकी किस्मत में रंग नहीं |
कुछ यादों के रंग हृदय पर बिखर गए ,
मर्मस्पर्शी चित्र उन्ही से स्वतः बने |

स्वरचित, मीना शर्मा




अतीत केचित्र
फिर उभर आये 
मन के केनवास पर।

फिर व्यथित हुआ मन
हटने लगीं एक एक परत 
फिर से ,मनपर लगे घावों की।
भूलकर भी भूल नहीं पाता
जब दर्द का पंछी
आकर कोमल मन को
अपने तीखे नाखूनों से खरोंच जाता है।



कहने को है चित्र मात्र,
पर भाव छिपे बहु तेरे हैं।
मानों तो कहता है मन व्यथा,
ना मानों तो है छाया मात्र।
चित्र कहे हर पल के भाव,
करता है सच्चाई का चित्रण।
यह है एक मात्र कला,
जो बिन बोले सब कहती है।
यदि तुम्हें समझना है चित्रों को
मन की आँखों से देखो तुम।
यदि तुम ऐसा न कर सको,
देखो कलाकार के नयनों से।
हर भाव समझ में आएंगे,
मन में भाव रहेंगे राहत के।
तुम समझोगे इस दुनिया को,
और हर पल हर्ष मनाओगे।
(अशोक राय वत्स ) स्वरचित
जयपुर


चित्र हर बात की आधारशिला है
इससे कुछ न कुछ सबको मिला है।

सपनों में भी चित्र बनते
एक से एक विचित्र बनते
कोई देखता प्रेयसी को
कोई देखता बेबसी को
कोई चित्र बनाता सुनहरे
सपने संजोता इनमें गहरे
कोई योजना का रुप देता
अनुभवों की सुन्दर धूप देता
चित्र में ढालता घर को पहले
कालीन बिछाता काल्पनिक रुपहले
भविष्य के चित्र रंगीन बनाता
चैन मिले ऐसी बीन बजाता
बिना चित्र नहीं कुछ भी सम्भव
चित्र में ही पहले ढलता असम्भव
चित्र योजना का प्रारुप है
और यही बदलता उसका रुप है।



माँ से ही बने
ये ममता के चित्र
हैं अनुपम

सच में एक
विचित्र चित्र मित्र
संसार का

जमाने बीते
प्रेम प्रस्ताव चित्र
भूला ना कोई

चित्र तैरते
बाबुल के गांव के
छलकी आंखें

मन में और
नयनों में हैं चित्र 
परमात्मा का

रचना तिथि 19/1/2019 
रचना स्वरचित एवं मौलिक है ।




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