Tuesday, January 8

"आहट "8जनवरी2019

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             ब्लॉग संख्या :-262
हर आहट पर चौंक , नजर हमने उठाई
दूर तक नहीं देता , हमें कोई दिखाई
कैसी चाहत है जो हमें , जीने नही देती
पदचाप तेरे कदमों की ,क्यों देती सुनाई

क्यों मेरी वफ़ा तुमको , नही देती दिखाई
तेरी परछाई सी हमको,क्यों देती दिखाई 
प्यार क्यों हर आहट पे , यूँ चौंका करता 
दिल के दरवाजे पे दस्तक सी देती सुनाई

तेरी आवाज का संगीत ,सुनाई दे हमको
तेरा अंदाज तेरे पास , ले आता हमको
तू एक छलावा बन , आया मेरे जीवन में 
हर घड़ी दर्द के क्यों घूँट पिलाता हमको

सरिता गर्ग
स्व रचित


तेरे आने की आहट
मुरझे लबों में...
गुलाब सी महक लाती है।
सुनसान चार दीवारी में...
मधुरिम साज लाती है।
तीतर बितर यौवन में...
हंसिनी सा रूप लेती है।
तेरी आहट .......
अजब मंजर दिखाती है।
मस्तक पर बिंदिया चाँद सी....
नयनों में काजल सा तीर .....
केशों में गजरे की....
महक लाती है।
अव्यवस्थित श्वासों में...
व्यवस्थित जीवन...
संकेत देती है।
तेरे आने की आहट,
कोयल की गुंजन बताती है...
सर्र-सर्र बहती पवन...
शीतलता का अहसास देती है।
चाँद भी मानों ...
आज शरमा रहा,
तेरी आहट को जता रहे।
प्रकृति प्रफुल्लित हो उठी है...
हरियाली,पुष्पों की रंगत,
चहुँ ओर... खिल गई है।
पपीहों ,तितलियों में...
मस्ती भर गई....
तेरी आहट से....
दुनिया बदल गई।
भँवरों की चंचलता ने...
आज कानों में गूंज दे दी है...
तेरी आने की आहट से..
मन कली खिल गई....

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक

स्वप्न से जगाती सुवह चिड़ियों की चँहचहाहट

आँखों में होती उनकी वही खूबसूरत मुस्कुराहट ।।
ख्वाब तो ख्वाब थे टूट गये बिखर गये जागते ही
शुरू होती वही मायूसी वही टीस वही छटपटाहट ।।

काश कहीं से सुनता उनके आने की आहट
मिलता दिल को चैनो सुकून मिलती राहत ।।
इसी इन्तज़ार में बीते बरसों रब ने भी न की
इनायत रब भी हुआ संगदिल की अदावत ।।

दूर पपीहे कहीं गाते मेले भी हैं आते
मगर उनकी न कोई खबर न खत पाते ।।
आहटों के सिलसिले अब खत्म 'शिवम'
अब तो स्वप्न में ही वो कभी मिल जाते ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
दर्द की एहसास और तुम्हारे आने की आहट !
एेसे में क्यों हो भला जन्नत की चाहत !!

चौक सी जाती हूँ हर गाडियों की आवाज से !
कब मुस्कुरायेगा आँगन में तेरा मुस्कुराहट !!

कई रात ज़ाग जागकर बिताई हमने रात भर !
करबट वही बेचैनी वही, वही है छटपटआहट !!

तुम्हें य़ाद हो न हो मुझे य़ाद है सब कुछ !
पंख लगानेकी ज़िद्द चाँद पकड़ने की हठ !!

आ जा गोद में बिठाकर ज़रा बाल सहला दू !
बन जा तू बालापन का कान्हैयां मेरा नटखट!!

मैं माँ महान या तुम मानस बलवान ....!
आकर खोल दे तू इस भ्रम का पट .....!!

दर्द का एहसास और तुम्हारे आने की आहट !
एेसे में क्यो हो भला जन्नत की चाहत !!

स्वरचित एवं मौलिक 
मनोज शाह मानस 
सुदर्शन पार्क 
मोती नगर नई दिल्ली
आहट
🔯🔯🔯
आहट हुई कोई
तो मन मेरा बोले।
शायद तुम आये।

खिली मन की कलियाँ।
उम्मीद मुस्कुराये।
हर आहट पे लगा।
शायद तुम आये।

कैसे दिल को मनाऊं।
क्या कहकर समझाऊँ।
हरदम ये सोचता है।
शायद तुम आये।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

मंद ध्वनित पदचाप किसी की,
सहसा परिचय नव आहट का,
अनचाहे भी आकर्षित कर लेती,
ध्यान सकल अकुलाहट का।

नित आहट में प्रत्याशा पलती,
कभी प्रतीक्षा को भी छलती,
मानव जीवन भी अति विचित्र,
माधुर्य कभी कड़ुवाहट मिलती।

पदचापों की कदापि काल के,
मिलती नहीं तनिक भी आहट,
पलभर में दुख की बौछारें,
कभी छलकते सुख नयनों में।

प्रतिबन्ध प्रकृति के अनजाने से,
नित कृत्य मनुज के मनमाने से,
विना तनिक आहट बसुधा पर,
जीव मृत्यु परिणय में बँधते।
--स्वरचित--
(अरुण)

लघु कविता
हर आहट के भिन्न रूप हैं
सुखद दुःखद होती है आहट
उपवन आहट आनंदकारी
वन आहट भयमय घबराहट
सैनिक की गोली आहट है
प्रेमी की आहट प्रेयसी
सजनी की आहट सजना है
दुश्मन की आहट बैर सी
पद चाप की आहट कहती
अपनी अपनी अजब कहानी
ज्ञानी ध्यानी ऋषि महऋषि
की आहट में छल छल पानी
पूर्वाभास कराती आहट
अंदर से जाते हम बाहर
कभी सत्य कभी असत्य
भक्ति में रमते नटनागर
धनवानों को चोर की आहट
चोरों को कुत्तों की आहट
मुलजिम को पुलिस आहत
हर अपराधी को घबराहट
काले बादल वर्षा आहट
मई जून गर्मी की आहट
स्वतंत्र गणतंत्र दिवस पर
राष्ट्र भक्ति होती है आहट
संसद में प्रति पक्ष की आहट
संतरी को मंत्री की आहट
चोर चोर मौसेरे भाई मिल 
करते रहते हैं फुसफुसाहट।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।




फिर वही शाम का मौसम होगा।
तेरी यादों से नमोदर गम होगा।


चांदनी मे नहा जवां रात होगी।
हवा के परो मे वही खम होगा। 

इन्तजार का मतलब न कोई। 
मगर कैसे ये गुमां कम होगा। 

सरसराहट के आहट है कोई। 
कुछ नहीं शायद ये वहम होगा।

यादों के चटखे आईने में तेरा। 
वादा टुटी हुई कसम होगा। 

विपिन सोहल


हर आहट हमें चौंका देती है,
सोए दिल के दर्द जगा देती है।
ढूंढती है नजरें तेरे कदमों के निशां,
हवाएं बेरहमी से उन्हें मिटा देती हैं।

वक्त ने दबे पांव बदली करवट है,
छीन ली हमसे हमारी मुस्कराहट है।
यादों के घने जंगल से आती आहट,
बढ़ा देती हमारी छटपटाहट है।

अब तो मिलना भी तुमसे मुश्किल है,
सम्हाले सम्हलता अब नहीं दिल है।
मिल न पाएंगे ख्वाबों में भी कभी,
सोच कर होती बहुत घबराहट है।

नींद भी पास आते घबराती है,
यादें बिन बुलाए चली आती हैं।
हर आहट पर चौंक पड़ती हूं,
आंखें आंसुओं से भीग जाती हैं।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित



आहट सी हुई दर पर ,
लगता है कि तुम हो ।
सावन की घटा छाई, 
लगता है कि तुम हो।
उमड़घुमड़ श्वेत श्याम,
बादलों का शोर,
बतियाता है जैसे मुझसे ।
उम्मीदों का दामन थमा,
सांसों में जैसे धैर्य भरे ।
तूफान सा उठता है दिल में,
इंतिहा हुई इंतजार की,
मेरे हर पल की तमन्ना,
सुखी पत्तियों की सरसराहट,
में बस तुम ही हो।




विधा -गीत
====================

मेरे मन की आहट को तुम,सुन न पाए |
मेरी सच्ची चाहत को तुम,चुन न पाए ||

आहट में एतबार था मेरा ,
सीधा सच्चा प्यार था मेरा |
आहट में था छुपा समर्पण,
सच बोलूँ इज़हार था मेरा ||
क्यों मेरा इजहार ए मोहब्बत,गुन न पाए |
मेरे मन की आहट को तुम,सुन ना पाए || 

तुम ही सच्चे मीत थे मेरे,
तुम्ही हार और जीत थे मेरे |
जीवन भर में गा सकता था,
वह सुंदर संगीत थे मेरे ||
क्यों मेरी धुन में दे अपनी,धुन न पाए |
मेरे मन की आहट को तुम सुन ना पाए ||

भुला न पाया तुमको मैं तो,
याद न आया तुमको मैं तो |
तुम खुश हो अपनी दुनिया में,
यही सोच मुस्काया मैं तो ||
रहे अधूरे ख्वाब जो तुझ संग,बुन न पाए |
मेरे मन की आहट को तुम,सुन न पाए || 

मेरी सच्ची चाहत को तुम,चुन न पाए |
मेरे मन की आहट को तुम,सुन न पाए ||

====================
स्वरचित 
प्रमोद गोल्हानी सरस 
कहानी सिवनी म.प्र.


लघु कविता

रात गहराती
हवा सनसनाती
खयालों में तेरे
जाग रही थी
मन में लिए
एक ही चाहत 
हो शायद मुलाकात
बस था इंतजार
'तेरे कदमों की आहट'

यादों में तेरे
भीगती रही, नहाती रही
चैन अपना लुटाती रही
साथ मेरे
भीगी थी रात
दिल में थी
एक ही चाहत
ऐ काश!सुन लूँ
'तेरे कदमों की आहट'

स्याह रात नें
ली विदाई
भोर हुई, लालिमा छाई
शर्माई, उषा आई
बूँदें थी ओस की
रात को जो थी
यादों की चाहत में नहाई
लेकिन,
वो घड़ी ना आई
जिसके लिए बेताब थी
सुन सकती काश!
'तेरे कदमों की आहट'

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

हाँ आहट हीं तो है
जिससे मैं डरती हूँ
सहमी- सहमी काँपती हुई
छुपने का कोना ढूँढती हूँ
पर नहीं बच पाती
इस कदमचाप से
कहीं भी जाऊँ
दबोची जाती हूँ। 
जब- जब सुनती हूँ
आहटें उनकी
अपने गुड़िया से लिपट
फूट-फूट कर रोती हूँ
बेबसी अपनी किसी को
नहीं बता पाती हूँ
घर में ही 
अपनों के हाथों
मसली जाती हूँ। 

स्वरचित: - मुन्नी कामत।


विधा :- लघु कविता

है आहट बसंत की,
चलने लगी है पुरवाई।
नवपल्लव नव हर्ष का,
प्रकृति करती अगुवाई।

है आहट बसंत की,
खिलने लगी हर कली।
प्रकृति के उपवन की,
महकने लगी हर गली।

है आहट बसंत की,
लगने को है बासंती मेले।
कोयलिया के स्वर गुँजे,
आने को है खुशियों के मेले।

है आहट बसंत की,
प्रकृति नव श्रृंगार करती।
सरसों की पीली चादर,
मन में हर्ष अपार भरती।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


ग़ज़ल,
ग़म को बुलाने की कोशिश कर,

दिल को हंसाने की कोशिश कर।।१।।
कोई आहट रोशनी की हो,
आग जलाने की कोशिश कर।।२।।
मन बोझ से दबी दबी रहती है,
दिल बहलाने की कोशिश कर।।३।।
रोटी आज नहीं कल मिलेगी,
भूख को दबाने की कोशिश कर।।४।।
अब अंधेरों में रहना कैसा,
उजाला लाने की कोशिश कर।।५।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।


विधा:कविता

हर आहट उनकी
वदन में गर्माहट भरती
टूटे हुए दिल में
एक नई ऊर्जा भरती
नील गगन में
कोई चिड़ियां दिखती
घबराये मन को
कान्त की आहट लगती
पत्तियों की सरसराहट
कानों में जब पड़ती
उनके आने की आहट
आंखें हैं निरखती
घर की चौखट 
निगरानी करती
प्रिय वियोग में
दिन व रातें कटती
हर आहट उनकी
वदन में गर्माहट भरती

मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली


कौन सी भंग घुली हवाओं में
पत्तों में ये कैसी सरसराहट है
फूल खिले कलियाँ मुसकाई
चिड़ियों की चहचहाहट है

जगे नयनों में प्रीत प्यास
बदन में अजीब कसमसाहट है
अंग अनंग मतंग मादकाई
हृदय में अधीर अकुलाहट है

मुसकियाँ लिए भ्रमर मन
शोखियों की सुगबुगाहट है
एक दस्तक-सी दिल के द्वार
कंत-वसंत,तेरे आने की आहट है
-©नवल किशोर सिंह
2
कदमों की आहट
बोझिल पग से चल चल के
घूँघट ओट में खूब संभल के 
नागिन-सी लहराती अलके
बेबसी से भींगी हुई पलके
खन-खन खनकती चुड़ियाँ
पैजनियों की छनक छनाहट 
संचित स्थावर दिल में प्रिय
तेरे वापस कदमों की आहट
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित




सुन रजनी
चली है ससुराल 
भोर आहट


आहट सुन
नैनों में जागे ख़्वाब
यही है प्यार 

सुन आहट
अभिलाषाएं करे
मन श्रृंगार 

बटी मिठाई 
बहू मांगे खटाई
खुशी आहट

स्वरचित 
मुकेशभद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश




शीर्षक-आहट"
आने लगा है फिजाओं मे रौनक

घुलने लगी है हवा मे महक
बढ़ने लगी है पतों की सरसराहट
आने लगा है बसंत का आहट

गूंजने लगी है मन मे शहनाई
भाग जाय निराशा ,जागे आशा
फिर सजेगी धरा हमारी
पिली सरसों, चूनर धानी

आहट पा खिले धरा हमारी
कोयल की गूंज तरू पर सारी
पाकर कली की मौन निमन्त्रण
बढ़ने लगा है भौरों का गूंजन

खिल उठे है धरा के कण कण
गूनने लगा है कवियों का मन
लेने लगा है कविताएं आकार
आहट के साथ बसंत का आगाज।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।


वर्ण पिरामिड 
आहट
1
ये 
डर 
आहट 
रुकावट 
घबराहट 
सकपकाहट 
लुप्त मुस्कराहट 
2
क्यों 
हिय 
आहट 
टकराती 
घबरा जाती 
वो तिलमिलाती 
दानवता हँसती 

कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून



इस आहट की है बात निराली
यह तबीयत करती मतवाली।
आती जब प्रेयसी की आहट
होठों पर आती मुस्कराहट।

बच्चे की आती जब आहट
बढ़ती अनोखी जगमगाहट
रोता रोता जब वो हँसता
मिल जाती है एकदम राहत।

तक़लीफो़ की आती जब आहट
बढ़ती तुरन्त है घबराहट
और उस पर यदि ध्यान न दो
तो बढ़ जाती है पछताहट।

माँ की जब आती आहट
चैन की मिलती गरमाहट
तरह तरह की चीजो़ की
बढ़ जाती स्वतः ही चाहत।

आहट यानि होने वाली ख़बर
आहट यानि रखो अपनी नज़र
आहट यानि बढा़लो अपनी डगर
आहट यानि खोल दो अपना जि़गर।


जब भी कोई आहट होती है 
लगता है मेरी खोई हुई यादें लोटी है 
जीवन भी यह सत्य की कसौटी है 
कोई जब वापस न आये तो 
ये आत्मा उसके दुःख में रोती है 
अगर वो होती इस जमीन पर तो ढूंढ लेता उसे 
मगर वो तो स्वर्ग के बिस्तर पर सोती है 
हम तुम्हे बताने ही वाले थे सचाई सारी 
पर तुम हमसे इस तरह दूर हो गयी जैसे पानी से आग होती है 
दरवाजे पर आहट होने पर तुम्हारे ही बारे में सोचते है हम 
तुम्हारे बिना हमारी जिंदगी अधूरी है 
वैसे ही जैसे मुसाफिर बिना सुनी राहें होती है 
आज भी में तुम्हारा इन्तजार करता हूँ जब कोई आहट होती है 
स्वरचित :जनार्धन भारद्वाज 
श्री गंगानगर (राजस्थान )



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यह कैसी है आहट
मन को डराए
कहीं दूर पेड़ों के
हिलते हैं साए
सर्द हवाएं कानों में
कुछ कहती हैं देखो
महकती फिजाओं में
तेरी खुशबू हो जैसे
यह इंतजार की घड़ियां
अब कटती नहीं है
कदमों की आहट
सुनाई देने लगी है
दूर उड़ते पंछी
घर लौटने लगे
कलियां खिलकर
फूल बनने लगी
कहीं बदल न ले
रुख अपना हवाएं
टूट जाए दिल 
और आवाज़ न आए
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना



इस निस्सीम प्रीत के दर की
हर आहट ने तुम्हें उचारा...
सच कहती हूँ मेरे दिल की
हर धड़कन ने तुम्हें पुकारा...

धरती की छाती पर उन्मत्त
घिर आये बादल हो जैसे...
तुम मेरी झुलसी धरती पर
वर्षा के अमृत कण जैसे...

भींग तुम्हारे स्नेह-धार में
इस जीवन को सदा सराहा...
सच कहती हूँ मैंने तुमको
हर पल अम्बर जितना चाहा...

स्वरचित 'पथिक रचना'

हर आहट एक संकेत बनी, नव जीवन का संदेश बनी, 

ममता की आहट जब पायी, शैशव की तब रंगत निखरी,

आहट मिली नवजात की जब, कानों ने किलकारी सुनी ,

आहट मिली बचपन की जब, घर आँगन की बगिया खिली, 
आहट मिली यौवन की जब, नये सपनों की दुनियाँ सजी ,
आहट मिली परिणय की जब, मन की नदिया में लहर उठी, 
आहट पायी प्रियतम की जब, धड़कन दिल की बढने लगी, 
आहट जब आयी बुढ़ापे की, जीवन में निराशा आ धमकी ,
आहट जो आयी बैराग्य की, तब पूँजी ईश्वर भक्ति मिली ,

जब दुख की आहट मन ने सुनी, जिंदगी पतझड़ सी बिखरी ,
निराशा ने दस्तक दे दी, और आँसू की बरसात मिली ,

आहट न मिले किसी को ऐसी, सूचक हो जो बर्बादी की ,

हर घर आँगन में बरसे खुशी,आँखों में न आने पाये नमी ,

उद्देश्य, कामना व संदेश यही, आहट हों बस प्रेरक सुखदाई, 

हर उपवन कानन हो हरियाली, बहार देश में रहे छाई |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


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