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ब्लॉग संख्या :-275
🌷मुक्तक(1)🌷
जिज्ञासा हुई अधीर रोम के हर्षण को ।
नयन तरसते रहे तुम्हारे दर्शन को ।
बगरा दूँ अब कहाँ सुभग पदचिह्नों पर,
अँखियों से नित झरे प्रेम के वर्षण को ।।
🌷मुक्तक(2)🌷
उननसे सगा सम्बन्ध कुछ इस पर मुझे अभिमान है ।
यह सलज मुस्कान उनकी फूल का प्रतिमान है ।
मनहर फबन है रूप की आगे अपेक्षा और क्या,
व्यग्र नयनों के लिए बस दर्श गौरवमान है ।।
🌷मुक्तक(3)🌷
आँख उनसे चार कर क्यूँ देखना इक़्दाम है ।
दूर से दीदार कर लो क़ुर्ब से क्या काम है ?
आगोश प्यार में मजनूं रखना संभल के पा ,
पिन्दार लैला के यहाँ होता दिखे नीलाम है ।।
स्वरचित-'अ़क्स' दौनेरिया
फिर भी दर्शन की हमें है लालसा,
मनुष्य रूप ये जो हमको मिला,
इच्छाओं का है इसमें जाल फैला |
तप करना कहाँ हमें होता मंजूर,
बिना चढ़े ही पेड़ से चाहें खजूर,
विरासत में जो मिला मजे उड़ायें,
काम करने वाले की खिल्ली उड़ायें |
तकलीफ जो गर मिल जाये थोड़ी सी,
झौली फैलाये तेरे दर पे हम आ जायें,
बस एक बार दर्शन दो हमें प्रभु,
गीत ऐसे गुनगुनाते चले जाये |
कोई घंटी बजाकर तुझे रिझाये,
कोई शंख बजाकर तुझे जगाये,
तेरे वक्त की नहीं चिंता किसी को,
बस अपनी अपनी पड़ी यहाँ सभी को |
हर एक के अंदर तु समाया है,
फिर भी मनु तुझे ढूँढता जगह जगह,
कहता प्रभु तेरे दर्शन का अभिलाषी हूँ,
तेरे दर का मैं तो एक फरियादी हूँ|
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
(1)
दर्शन शास्त्र
अनुपम सिद्धांत
यथार्थ ज्ञान।।
(2)
माँ की लोरी
दिनभर का चैन
प्रेम दर्शन।।
(3)
सत्य परख
जीवन दृष्टिकोण
दर्शनशास्त्र।।
(4)
विचार कला
दर्शन के सिद्धांत
अमूल्य विधा।।
(5)
सूर्य दर्शन
निरोग पूर्ण काया
खर्च न माया।।
(6)
मन से रिक्त
आध्यात्मिक दर्शन
शांत चेतना।।
(7)
माता व पिता
मार्गदर्शन किरण
तम का हरण।।
(8)
जीवन पूंजी
तत्वज्ञान दर्शन
श्रेष्ठ कुंजी।।
(9)
दुख निवृति
सत्य दर्शन निष्ठा
सुखी प्रवृत्ति।।
(10)
मन विश्वास
पत्थर भी अद्धभुत
ईश दर्शन।।
(11)
प्रयागराज
सर्व संस्कृति दर्श
संगम पर्व।।
(12)
प्रेम दर्शन
श्रवण की कांवर
दायित्व भरी।।
(13)
आज का दौर
कौतूहल दर्शन
दुबका मन।।
(14)
शिक्षा दर्शन
कर्म,ज्ञान की खोज
फैला उजाला।।
(15)
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक
हम पढ़ते रहे जिन्दगी पढ़ाती रही
फ़लसफ़े नये नये सिखाती रही ।।
कभी हंसाती कभी रूलाती रही
औकात हमें हमारी बताती रही ।।
आखिर क्यों रूठें जिन्दगी से
बात बनेगी उसकी बन्दिगी से ।।
जो मिला उसी में ही ढूढ़ना है हल
निकलेगा उसी से एक सुनहरा कल ।।
वक्त के बाजुओं में होती है ताकत
वक्त की करना हरदम ही हिफ़ाजत ।।
वक्त ने बनाये यहाँ राजा और रंक
वक्त से न भागना 'शिवम' करना जंग ।।
फ़लसफ़ों की फे़हरिस्त बड़ी है
चीटी भी यहाँ पहाड़ चड़ी है ।।
ज़र्रा ज़र्रा यहाँ फ़लसफ़ा कहता है
जीवन वही जो नदी सम बहता है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/01/2018
अंतर्जगत को हम सब भूले
जिसने निज पहिचान लिया
त्वरित गति वह् मंजिल छू ले
देवभूमि जननी भारत माँ
नित दर्शन कर शीश झुकाओ
देवालय में देव खड़े नित
मङ्गलमय गान प्रभु हित गाओ
कुसुमदित सुरभित शौभित
मलय पवन के चलते झौंखे
सुबह शाम उपवन के दर्शन
कौन स्वयं जो निज को रोके
दृग दर्शन उपहार प्रभु का
पर को भी निजता में जोड़े
चारधाम अर्धकुंभ दर्शन भी
मुक्ति मार्ग सतत जग खोले
दर्शन करते मातपिता के
दर्शन करते पालन हारा
दर्शन करते अद्भुत प्रकृति
दर्शन देता है नया सहारा
सद दर्शन ही प्रगति पथ है
सद दर्शन भावातिरेक है
सद दर्शन सद प्रेरक जग है
सृष्टि का भी सृष्टा एक है।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
१/प्राण हंसा लें,
समय के साथ में,
चलना भी सीख ले,
वक्त को कभी,
तोहमत तू न दें
जीवन का दर्शन।।१।।
२/हार न जाना,
अंधेरे जीवन से,
दिन उजाला होगा,
सुबह होगा,
जीवन का दर्शन,
चलते ही रहना।।२।।
३/सूखे पंजर,
घूरें के,कचरे में,
जीवन खोज रहे,
भटक रही,
बेबस मानवता,
जीवन का दर्शन,।।३।।
४/सुख पलती,
प्रकृति की गोद में,
दुनिया के मेले में,
कर्म गीता हो,
श्रम के फूल खिले,
जीवन का दर्शन।।४।।देवेन्द्र नारायण दास बसना
स्वत्व, यथार्थ और ज्ञान की परख
अमृतमय,अव्याख्येय, अनूठा, अनमोल मानवीय चिन्तन
जिसमें कविता भी है,संगीत भी है, सुगंध भी है।
इसमें
रागी भी रत है विरागी भी रत है
संयासी भी रत है गृहस्थ भी रत है
समस्त अस्तित्व ही दर्शन में रत है।
सार्वभौम शाश्वत चिन्तन सारे प्रज्ञा- पुरुष - बुद्ध महावीर- विवेकानंद- गाँधी- अरविन्द दर्शनों के आयाम हैं
अनमोल दर्शन मनीषा के मानसर में खिले हुए नीलकमल हैंं, इसमें रूपाभा एवं विराट चेतना की तदाकार है। एकांगी नहीं सर्वग्राह, सर्वांगी है वैश्विक चिन्तन है।यथार्थ की परख, अनुभव एवं परिस्थितियों का जीवन दर्शन है।मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, वेदांत का पराविद्या है
चार्वाक बौद्ध महावीर विवेकानंद के अध्यात्म का मूल चिन्तन है।
@राधे श्याम
स्वरचित
मुझ पर मेरे आराध्य हमेशा,इतनी कृपा रखना दर्शनों,भक्ति से कभी झोली मेरी खाली न रखना
भूलू जिस दिन याद करना, वो दिन आखरी हो,
सांस सांस पुकारू नाम तेरा मुझसे यूँ प्रीत रखना
भिखारी हूं मैं तेरे दर का,सुन गुहार मेरे साहिब,
पल पल शुक्राने करू,जुबा पे मेरी रहमत रखना।
वक्त जो आए मेरे कर्मों के हिसाब का मेरे मोला!
छोड़ना ना हाथ नीलम का ,इसे थामे रखना।।
नीलम तोलानी
स्वरचित
दर्शन है,
यात्रा!
द्वैत से अद्वैत की
असत्य से सत्य की।
दर्शन कराता बोध,
इहलौकिक जगत ,
के प्रपंचों की सत्यता का,
संसार की नश्वरता का।
दर्शन मार्ग है,
मिलन का
आत्मा का परमात्मा से
आधार अध्यात्म का
ईश्वरीय सत्ता
के आभास का।
दर्शन कराता,
साक्षात्कार
आत्मा के सर्वव्यापी रूप का।
दर्शन से मिटता
करणीय-अकरणीय
का द्वंद्व।
सांसारिकता से होता
मोह भंग ।
यह पंथ है
अनंत की यात्रा का
अंधकार से प्रकाश की
अज्ञान से ज्ञान की यात्रा का।
देह से मिटता मोह,
उद्देश्य का होता बोध,
कर्त्तव्य-कर्म होता प्रधान,
मन होता जिज्ञासा वान।
जानना चाहता सृष्टि के
रहस्य।
करता आत्मचिंतन
इसी पथ पर होता
निर्वाण
भगवतगीता का सार
आत्मा का प्रसार
गौतम बुद्ध के
लोकोपदेश में निहित
चिंतकों, विचारकों
के चिंतन का मार्ग
भक्ति मार्ग का आधार
है केवल दर्शन।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
दर्शन लाभ
नयनों से संभव
कैसा विवाद।।
दर्शन देदो
हर कोई कहता
प्रभु न सुनें।।
योग दर्शन
जीवन का मंत्र
साधते योगी।।
दर्शन शास्त्र
विविध व्याख्या युक्त
गूढ़ पहेली।।
प्रभु की माया
हूं दर्शनाभिलाषी
छाया न धूप।
भावुक
"दर्शन"
वर्ण पिरामिड
1
है
निधि
अमूल्य
देव तुल्य
जीवन मूल्य
विचार दर्शन
प्रतिबिंब दर्पण
2
तू
कर
अर्पण
सेवा भाव
स्व समर्पण
माता के चरण
चारो धाम दर्शन
हाइकु
1
अहं का त्याग
भावना समर्पण
ईश दर्शन
2
मातृ चरण
चारो धाम दर्शन
सेवा अर्पण
3
दर्शन शास्त्र
है शून्य से अनंत
जानो तो संत
4
राधा हृदय
व्याकुल विरहिणी
दर्शन प्यासी
5
जीवन मूल्य
दार्शनिक विचार
देव तुल्य
6
जीवन सार
दर्शन व विज्ञान
मिटा अज्ञान
7
जीवात्मा द्वार
परमात्म दर्शन
जीव उद्धार
स्वरचित पूर्णिमा साह
विधा.. लघु कविता
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🍁
मन की आँखो से देखो प्रभु दर्शन दे देगे।
ज्ञान चँक्षु को खोल ले मूरख जीवन दे देगे।
🍁
यायावर सा भटक रहा क्यो मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे।
अन्तर्मन मे झाँक ले वन्दे जीवन दे देगे।
🍁
कमी नही कुछ होगा वो ही सबकुछ देने वाला है।
कर्म सुधारो तुम अपना वो सब देखने वाला है।
🍁
हर मति को वो ही गति देता वो ही सृष्टि नियन्ता।
शेर के मन मंदिर मे बसता है साँवला मोहन प्यारा।
🍁
स्वरचित .. Sher singh sarraf
दर्शन की अभिलाषा जागी ऐसी बैचैन बड़े मन प्राण हुये ,
गायन वादन सत्संग अर्चन न जाने क्या क्या आयाम हुये ,
प्रियतम के दर्शन पाने को नैना चातक बन बदनाम हुये ,
दर्शन की प्यासी आँखों को जग में सारे धन बेकार हुये ,
दर्शन की चाहत लिए मन ने भक्ति धारा में स्नान किये ,
सूरदास से ज्ञानी कवि ने मन की आँखों से काम लिये ,
ध्रुव प्रहलाद से बालकों ने यहाँ अमर अपने नाम किये ,
ईश्वर के दर्शन की चाहत में कितने ही मन बैराग्य लिये ,
जीवन दर्शन अदुभुत दर्शन दर्शन कितने व्यवहार हुये ,
ज्ञान और ध्यान पध्दति के अलग अलग अविष्कार हुये ,
अजर अमर अविनाशी हरि के दर्शन फिर भी दुश्वार हुये |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
है दिव्य दर्शन आत्मबोध,
निज अंतस उज्ज्वल हो।
कर तू सद्कर्म परहित में,
निज भविष्य उज्ज्वल हो।
है दिव्य दर्शन आत्मबोध,
दूर विकार कर अंतर्मन के।
आत्मचिंतन हो स्वभाव जब,
विकसित हो रंध्र अंतर्मन के।
है दिव्य दर्शन आत्मबोध,
स्पंदित होता हृदय स्थल।
सद्भावना को कर स्थापित,
हृदय बने जल सम निर्मल।
है दिव्य दर्शन आत्मबोध,
पुष्प सी है महक इसकी।
कोमलता नव पल्लव की,
मधुरिम सी है तान इसकी।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
सबमें बसता है आकर्षण।
भक्त मांगता ईश्वर से दर्शन
करता अपनी पूजा अर्पण
प्रेमी भावों के करके वर्षण
चाहता प्रेयसी के सुन्दर दर्शन।
नौकर चाहता है अनुकम्पा
कर्म के भेंट करता पुष्प चम्पा
मातहत चाहता न होवे घर्षण
अधिकारी के मिलें सुखद से दर्शन।
जीवन में दर्शन शास्त्र है अनुपम
इससे सुधरती जीवन सरगम
परलोक के पथ को मधुर बनायें
इसमें मिलते रहते गूढ़ दर्शन
🌺विरही दोहे🌺
ओ मेरे मन मोहना , सुन ले कान्हा यार ।
दर्शन के प्यासे नयन विनय करें हजार ।।
सुन रे कान्हा साँवले मे तो गोरी नार ।
देख तुझ पर रीझ गई, दर्शन दे हजार ।।
दर्शन को मैं खडी ,आई हूँ तेरे द्वार ।
अब तो पट खोल दे, जोड दिये हाथ ।।
हाथ पकडले सांवले जीवन है मजधार।
दर्शन के प्यासे दिल मे पीर उठे हजार ।।
मत कर तू अब देर रे ओ सांवरिया यार ।
तेरे दरश मे जी रही ले चल जग से पार ।।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विधा - दोहे
विषय - दर्शन
भगवा जो धारण करे,लिए कमण्डल हाथ
पर्वत पे जा तप करे प्रभु दरसन की आस
दरसन की प्रभु लालसा , पलपल बढ़ती जाय
मनवा करता हर जतन, किस विधि तुझको पाय
संकट में जब हों कभी , जपते तेरा नाम
आँख मूँद दरसन करें, हो जाते सब काम
हनुमान प्रभु भक्त हैं , मन में राम समाय
हृदय चीर जब देखते,प्रभु दरसन हो जाय
दरसन तेरे की प्रभु,पल पल रहती आस
अर्चन तेरा हम करें,जब तक रहती सांस
मन्दिर मस्जिद में नहीं कण कण में भगवान
मन में अपने झाँक लो ,दिख जाये भगवान
सरिता गर्ग
स्व रचित
मंदिर द्वार
खड़े लगा कतार
दर्शन हेतु
दर्शन तेरे
हर लेते हैं कष्ट
प्रभु जी मेरे
राम के हुए
शबरी को दर्शन
भक्ति में शक्ति
बुझो तो जाने-
पांच साल के बाद
देते दर्शन
दर्शन मात्र
एक बार नर्मदा
मोक्ष को पाता
प्रातः को करे
माता-पिता दर्शन
कहते धर्म
बाजार चौक
दर्शनार्थ है रखा
शहीद देह
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स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
21/01/2019
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