रेखा रविदत्त



लेखिका परिचय
नाम- रेखा रविदत्त जन्मतिथि- 7/2/1975 जन्मस्थान- हरियाणा शिक्षा- स्नातक+ कमर्शियल आर्ट डिप्लोमा सृजन की विधाएँ- सभी प्रकाशित कृतियाँ- कोई नहीं कोई भी सम्मान- फेसबुक साहित्यिक ग्रुप से अनेक सम्मान संप्रति( पेशा/ व्यसाय-) ड्राईंग टीचर
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विषय-घटना
मंगलवार

17/12/19
विधा- हाईकु

दिल सहमा
दर्दनाक घटना
बहती आँखें

मिलते नैन
सपने हैं सजाती
घटना प्यारी

दुख बादल
बिजली सी घटना
जले जीवन

मोड़ घटना
बदलता जीवन
संघर्ष संग
**
स्वरचित रेखा रविदत्त

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10/12/19
विषय-संतुलन

***
बना संतुलन इच्छाओं का,
जीवन -धारा बहती है,
हँसकर जीना सीखो तुम,
हमसे सदा ये कहती है,
**
क्रोध और प्रेम का संतुलन,
संस्कार सदा सीखाता है,
भटक जाते राह जब,
वक्त आईना दिखाता है,
**
समारोह का पा निमंत्रण,
जीभ को भाते स्वाद न्यारे,
पेट की हलचल देखकर,
आते नजर फिर दिन में तारे,
****
स्वरचित रेखा रविदत्त

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विधा-हाईकु

कुटिल बुद्धि
योजनाएँ तैयार
करती वार

बुद्धि विहीन
असफल जीवन
रूकती राह

बुद्धि से वार
शब्दों के हथियार
बनते भले
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
2/4/19
मंगलवार

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दे परीक्षा हुए निफराम,
अब तो खेलने का है बस काम,
टी वी देखे सुबह से शाम,
आँखों का हो चाहे काम तमाम,
महिने की अंतिम शाम,
अना था परीक्षा परिणाम,
धक धक दिल से आए आवाज,
खुलेंगें आज अंकों के राज,
कोई लुढका कोई बना सरताज,
करेगा कोई बच्चों पर अपने नाज,
नई कक्षा में बैठेंगे हो खुश मिजाज,
अगली परीक्षा की खातिर करना है आगाज़।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
31/3/19


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मौका/अवसर
जाग जा ए नादान,
ये वक्त फिर ना आएगा,
मुट्ठी की मिट्टी है ये मौका,
हाथ से फिसल जाएगा,
मिलेंगे ना मौके बार-बार,
दिखला कुछ ऐसा कमाल,
झूठ जैसे दानव की खातिर,
सच का चाबूक संभाल,
भ्रष्टाचार के काँटों को,
समाज से निकालना होगा,
मौके की छत्र-छाया में,
सच्चाई को पालना होगा,
प्रलय की घोर घटाओं में,
बन सितारा चमकना होगा,
कदमों के नीच चाहे हों अंगारे,
विश्वास को अपने जीना होगा।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/3/19
वीरवार


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विषय- किनारा

जीवन नाव
सुख-दुख लहरें
मोह किनारा

वयस्क नदी
मिलन को तरसे
किनारा ढूँढ़े

विपदा भारी
अपनों से किनारा
रीत पुरानी

झूठ चिंगारी
जीवन सुलगाती
सत्य किनारा
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
23/3/19


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साफ हृदय
कर अंधविश्वास
मिलता धोखा

धोखे के काँटे
दिल लहुलुहान
शब्दों के वार

पढ़ाई दूर
भविष्य अंधकार
स्वयं को धोखा

दर्द के रंग
यादें बनी सहारा
धोखे के संग
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
22/3/19

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प्रेम की भूमि
अंकुरित खुशियाँ
सुख है फल

बहा पसीना
धरती है मुस्काई
फूटा अंकुर

नव अंकुर
उम्मीद की किरण
पूर्ण सपने
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/3/19
शनिवार
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चेहरे पर हंसी लेकर
गम छुपाए रहते हैं,
रहकर महफिल के बीच,
तन्हाई हम सहते हैं,
जीवन बंजर सा हो जाए,
लगे जब हृदय को रोग,
मन विचलित सा रहता है,
कैसा है ये ग्रह का योग,
मानसिक पीड़ा को सहते,
दिन रहे हैं बीत,
रोग की होती दवा,
जुदाई की दवा है प्रीत,
अपनों से हो जाए मिलन ,
ऐसी तुम दुआ करो,
प्रेम का लगा कर मरहम,
जख्मों को मेरे भरो।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/3/19
मंगलवार

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"नारी"
हाँ, मैं नारी हूँ,
पैदा हुई मैं,
यहाँ किसी की नन्ही परी,
वहाँ बना शैया कूड़ेदान का पात्र
हाँ, मैं नारी हूँ,
थोड़ी सी बड़ी हुई,
यहाँ किसी की विधालय की जाती बेटी,
वहाँ किसी की रोटी बनाने में सहायक,
हाँ, मैं नारी हूँ,
बड़े होते होते,
यहाँ किसी की स्वपन्नपूरक बिटिया,
वहाँ किसी के कँधे का बोझ,
हाँ, मैं नारी हूँ,
पढ़ाई खत्म जो की,
यहाँ आत्मनिर्भर बनी नारी,
वहाँ शादी अभियान की प्रतियोगी,
हाँ, मैं नारी हूँ,
शादी कर मैं,
यहाँ किसी की जीवन साथी बनी,
वहाँ किसी की बँधुआ पीड़िता,
हाँ, मैं नारी हूँ,
मातृत्व में कदम रख,
यहाँ नवजीवन को साँस दी,
वहाँ हो उत्पीड़ित वंश बढाया,
हाँ, मैं नारी हूँ,
नया जीवन धरती पर लाती,
मैं हर नारीत्व का फर्ज निभाती,
फिर भी जन्म से मृत्यु तक प्रताडित होती,
हाँ, मैं नारी हूँ,
किसी की माँ किसी की बहन,
किसी की सखी,किसी की संगनी,
हर कदम तुम्हारा साथ निभाती,
हाँ, मैं नारी हूँ
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
8/3/19
शुक्रवार
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" नींद"
विश्वास की ओढ़कर चादर,
सोए थे रिश्ते चैन की नींद,
झूठ की चिंगारी से,
रिश्ते हुए शहीद,
त्याग नींद को जगना होगा,
हटाकर बेरूखी का पर्दा,
बसा दिल में अपनों को,
करें मोहब्बत का सजदा,
मधुर शब्दों के तार से,
पिरो रिश्तों के मोती,
कर श्रंगार जीवन का,
हो प्रज्वलित नव ज्योति
द्वेष भाव मिटा हृदय से,
बढ़ा दोस्ती का हाथ,
मिटा भ्रम तू मन से,
ले विश्वास का साथ,
जाग नींद से ओ प्यारे,
हुई भोर खुशियों की,
संगीतमय हुआ जीवन,
जैसे गुंज पपीहों की,
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
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शहीद की माँ"
जल्दी वापिस घर आ जाओ,
याद बहुत ही आती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे तुम,
माँ आवाज लगाती है,
मेरी ममता अब भी दर पर,
आस लगाए रहती है,
आएगा एक दिन तू वापिस,
पल -पल मुझसे कहती है,
दरवाजे पर होती दस्तक,
एक उम्मीद जगाती है,
तुझे ना पाकर लाल वहाँ पर,
आस फिर टूट जाती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे....
जब भी रोटी चूल्हे पर ,
मैं तेरे लिए बनाती हूँ,
तेरी थाली रख पहले,
जल लोटा भर ले आती हूँ,
तेरी बीवी रो-रो कर फिर,
मेरा भ्रम मिटाती है,
आँसू पीकर सारे अपने,
माँ तेरी सो जाती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे..
परमवीर तमगे को तेरे,
रोज सजाकर रखती हूँ,
खाली होते दाल के डिब्बे,
आँसू भरकर तकती हूँ,
रूई के फाहे को मक्खन,
बता बता भ्रमाती है,
बिट्टू की माँ रोज इस तरह,
रोटी उसे खिलाती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे...
तेरी बीवी का माथा,
अब सूना-सूना रहता है,
उसकी चुप्पी से सन्नाटा,
घर में पसरा रहता है,
ना करती है श्रंगार कोई,
गीत ना कोई गाती है,
सबसे छुपकर तन्हाई में,
आँसू रोज बहाती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे...
तेरे बेटे का मुखड़ा अब,
मुरझाया सा रहता है,
रोते-रोते आकर मुझसे,
रोज-रोज ये कहता है,
दादी कब आएँगें पापा,
उनकी याद सताती है,
उसकी भोली बातें सुनकर,
चुप्पी मुझपर छा जाती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे...
मेरे वीर सपूत की जान,
लिपट तिरंगें में आई,
भारत माँ ने चुना तुझे,
मैं माँ शहीद की कहलाई,
आँखें नीर बहाती अब तक,
ममता मुझे रूलाती है,
रात-रात भर लोरी गाती,
गोदी तुझे बुलाती है,
कहाँ गए हो लाल मेरे तुम,
माँ आवाज लगाती है।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/2/19
शुक्रवार
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फहरा तिरंगा हिमालय पर,
ले उम्मीदें आया नया सवेरा,
बढ़े कदम जीत की ओर,
दुश्मनों को वीरों ने घेरा,
चमके नभ में जब तक,
ये चाँद सितारे,
आँच ना आने देंगे देश पर,
माँ तेरे लाल ये प्यारे,
त्याग और वीरता से भरपूर,
मेरा भारत देश है,
सभी धर्मों को मानता,
लोकतांत्रिक मेरा देश है।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
26/1/19
शनिवार
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विषय- मनोबल

दुर्गम राह
सशक्त मनोबल
विघ्न का नाश

जीवन जंग
मनोबल की ढ़ाल
झूका गगन

सत्य वचन
सुदृढ़ मनोबल
दुखों की हार

कष्ट सागर
मनोबल की नाव
जीवन पार
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/1/19
शुक्रवार
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सत्य की जंग
कलम तलवार

असत्य काटे

कवि की जान
कलम दे सत्कार
भाव अक्षर

पृष्ठ की भूमि
भावनाओं के बीज
कलम बोती

मन सागर
कलम पतवार
जीवन पार
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सूर्य किरणें
सुनहरी मुस्कान
धरती चूमें

उत्तम दान
सूर्योदय में स्नान
मोक्ष मिलता

उगता सूर्य
मनमोहक दृश्य
हर्षित मन

सूर्य प्रणाम
व्ययाम अपनाकर
निरोगी काया
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/1/19
मंगलवार



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आँखों में नमी, लबों पर मुस्कान,
तू क्यों रहता है फिर भी अंजान,
अपने दिल में जज्बात लिए,
करूँ इंतजार अश्क लिए,
ना चाहूँ मैं तुझसे उपहार,
प्रेम तेरा बना जीवन आधार,
रूठना तेरा रोक देता हैं साँसे मेरी,
खुशियाँ सारी बाँहों में हैं तेरी,
गमों की बदरी छाई जबसे,
छूटा हाथ पिया जो तुझसे,
वक्त ने मेरी किस्मत लुटी,
फूलों से जैसे खुशबू छूटी,
तरसी आँखें, अब तो आजा,
क्यों है खफा ये तो बता जा,
ऐसा ना हो कर दूँ जिने से इन्कार,
ढूँढ़े फिर तू मेरा प्यार ।
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
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विधा-वर्णपिरामिड़
विषय-सरगम


है
धुन
मधुर
वाद्य टोली
सुरों की होली
पोटली जो खोली
सरगम की बोली

ये
स्वर
उमंग
रंगारंग
वीणा तरंग
लेके स्वर सँग
बनती सरगम

है
शील
मधुर
पर्दा शर्म
निभाती धर्म
बेटी सरगम
दुखों पे मरहम
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/1/19
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तेरीआँखों की कशिश,
हम भूल नही पाते,
यादें चली आती हैं,
सनम तुम नही आते,
अश्कों के धागों से,
जख्मों को सीते हैं,
तेरी याद में ए सनम,
मर-मर के जीते हैं,
अश्कों की जमीं पर,
उम्मीद जगाते हैं,
हारे हुए दिल को,
यादों से बहलाते हैं,
चले आओ उस जहाँ से,
जन्नत की राहों से,
पाएँगें तुम्हें अब,
किस्मत की दुआओं से।
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
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भजन
"मोह"

कान्हा तुझसे मोह लगाके,
भूली सब तेरे कदमों में आके,
जीवन नैया गोते खाए,
श्याम तू ही अब पार लगाए,
इस जीवन से अब मोह छूटा,
क्यों प्रभू तू मुझसे रूठा,
कान्हा......ओ...... कान्हा,
सुन ले तू पुकार मुरारी,
दे दे दर्श अब गिरधारी,
मोह जीवन का मैंनें तजा है,
तुझ बिन तो जीना भी सजा है,
अब तो तू राह दिखादे,
पथ से काँटे तू हटा दे,
कान्हा.......ओ...... कान्हा,
सुन ले तू पुकार मुरारी,
दे दे दर्श अब गिरधारी।
*******
स्वरचित-रेखा रविदत्त

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विषय- शिक्षा

शिक्षा गहना
नित दिन निखरे
सँवारे रूप

शिक्षा का दान
गुरूजन महान
अमृत ज्ञान

शिक्षा किरण
रोशन हो जीवन
स्वर्णिम भोर

गुरू दीपक
बाल अवस्था बाती
शिक्षा है ज्योति

शिक्षा के फूल
मधुबन सा स्कूल
गुरू है माली
स्वरचित-रेखा रविदत्त



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1
मन सागर

गहराई अन्नंत
समझे कौन
2
सागर तीरे
दिखे तैरती आशा
छूटी निराशा
3
इच्छा सागर
कर्म है पतवार
लक्ष्य है साहिल
4
नदी का प्यार
सागर से मिलन
कैसी लगन
5
हृदय माँ का
सागर सा विशाल
बरसे दुआ
6
नैन दरिया
मन इच्छा सागर
मारे उच्छाल

स्वरचित-रेखा रविदत्त
7/8/18
मंगलवार

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"त्यौहार"
जीवन में पिया तेरा साथ हो,
हर दिन मेरा त्यौहार हो,
ना चाहूँ मैं हार कोई,
हर त्यौहार पर प्यार तेरा,
सबसे बड़ा उपहार हो,
दया दृष्टि रहे ईश्वर की,
हर त्यौहार तेरे साथ हो,
बिन कहे समझे तू,
दिल में मेरे जो जज्बात हों,
दिल में हो रिश्तों की सौगात,
ऐसा हर साल त्यौहार हो।

स्वरचित-रेखा रविदत्त


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"चाँद दिला दो"
माँ मुझको चाँद दिला दो,
करूँगी बहुत सी बतिया,
उसमें बैठी अम्मा से मिला दो,
तारों की उस बगिया में,
झूला मेरा लगा दो,
खेलूँ मैं उनके साथ,
खुशियाँ सारी झोली में समा दो,
माँ मुझको चाँद दिला दो,
आते ही सूरज चँदा को भगाए,
सूरज को तुम डाँट लगा दो,
क्यों रहते हैं अलग-अलग
इनकी तुम दोस्ती करा दो,
मोटा पतला होता क्यों चँदा,
माँ इसे तुम डॉक्टर को दिखा दो,
माँ मुझको चाँद दिला दो,
चाँद दिला दो, बस चाँद दिला दो।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
2/8/18
वीरवार

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किससे जाकर कहूँ मैं,व्यथा अपने मन की,
शब्दों की चोट भरें नहीं, भर जाए तन की,

दूसरे से करूँ क्या मैं उम्मीद, जो जाए मुझे जान,
वो ही ना समझे किया जिन्होंने स्तनपान,

मेरी व्यथा मेरे मन में ही रह जाएगी दबकर,
किमत जब जानोगे , रह जाऊँगी जब यादें बनकर,

समझूँ मै तेरे मन की ,नैनों को तेरे पढ़ कर,
समझा दे हल कोई, व्यथा मेरी समझकर।

स्वरचित-रेखा रविदत्त


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शिव
शिव की महिमा गाएँगें,
मिलकर सारे कावडिये,
तू रखना दया दृष्टि,
कष्ट तू भोले सारे हरिए,

सजा चन्द्र जटाओं में,
रूप तेरा महाकाल,
आए दर्शन को भक्त,
अमरनाथ हर साल,

सर्प तू कंठ विराजे,
करता तू विषपान,
जपकर नाम तेरा,
हो जाऐ राह आसान,

हे शिव निलांबर,
करूँ मैं तेरी अराधना,
कर पूर्ण मेरी तपस्या,
हो पूरी मेरी साधना।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
30/7/18
सोमवार



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 "भजन"
लगन नैनों में तेरी है,
तेरा मिलना जरूरी है,
क्या आशा करू जमाने से,
जब तू ही बनाए दूरी है,
सुन घनश्याम मेरे,
 तू तो घट-घट में है,
देता नही क्यों तू दर्शन,
श्याम तू किस हठ में है,
क्या मेरा क्या तेरा है,
व्यर्थ की मोह माया है,
आकर श्याम तेरी छाया में,
सब कुछ मैनें पाया है,
इश्क किया मैनें हरि से,
फिर क्यों ये दूरी है,
लगन नैनों में तेरी है,
तेरा मिलना जरूरी है।

स्वरचित-रेखा रविदत्त


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" दायित्व"
पुरूषों के कँधों पर ,
दायित्व का भार है,
कम ना समझो नारी को,
जीवन का वो सार है,
बेटी बनकर घर आई,
निभाया दायित्व बेटी का,
दी बाबुल ने शिक्षा,
आजादी दी, परवाज दिये,
फैला पंख उसने लक्ष्य पाने का आगाज़ किया,
बाबुल ने जब विदा किया,
निभाने को ससुराल में,
नये दायित्व का भार दिया,
नारी तेरी लीला न्यारी,
निभाती दायित्व दो घरों का,
कभी ना तू हारी,
दायित्व निभाने में,
नारी तू सब पर भारी।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/7/18
शनिवार


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"गुरू"
करते ज्ञान की बरसात,
होते हैं गुरू महान,
प्रथम स्थान दूँ माँ को,
दूजा गुरू का है स्थान,

अक्षर ज्ञान के साथ,
व्यवहारिक ज्ञान भी देते हैं,
लक्ष्य खड़ा करने को,
जीवन की नींव वो रखते हैं,

सिखलाया गुरू ने हमको,
जीवन का सार,
करें मिलकर सब,
गुरू का आभार

स्वरचित-रेखा रविदत्त
27/7/18
शुक्रवार

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पिता घर की वो नींव है,
जिनके मजबूत कंधों पर,
खड़ा हमारा घर है,
सहता सब, ना कहता कुछ,
धरती पर ये एक ऐसा नर है,
अपनी बगिया का बनकर माली,
सिंचता उसको जीवन भर है,
बेटी की मुस्कान की खातिर,
रखता उसकी खुशियों पर नजर है,
करना है एक दिन कन्यादान,
बिछुडने की मन में तड़प है,
दे वर के हाथों में हाथ,
बिन कहे नैन कह जाते बात,
पूंजी ये मेरे जीवन भर की,
आज से शोभा है ये तेरे घर की।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
26/7/18

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"खुशी"
क्या होती है खुशी,
आओ तुम्हे ये समझाएँ,
हँसते देखूँ दूसरों को,
मन मेरा भी हर्षाए, 
हमारी खुशी में माँ-बाप,
अपनी खुशी पा जाएँ,
हम भी करें कुछ ऐसा आज,
चेहरा उनका खिल जाए,
नारी की खुशी,
है उसका परिवार,
भूल दर्द अपना,
देती सबको प्यार,
नाम दो वर्ण का 'खुशी',
जीवन पूरा महकाए,
देकर खुशी का अहसास,
परायों को भी अपना बनाए।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/7/18

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खिला मेरा मन,
पाकर तेरा संग,
छुआ जो पिया तुने,
मन में उठी तरंग,
चेहरे पर है लाली छाई,
पिया चढ़ा जो तेरा रंग,
आकर भर ले बाहों में,
लगाकर पिया अपने अंग,
बनाके दुल्हन तू लाया,
माँग में भर सिंदूरी रंग,
बाँधे विश्वास की ड़ोर,
निभाना सातों जन्म का संग,
तेरे रंग में रंग गई पिया,
चढ़े ना अब कोई रंग,
कर बातें तेरी याद,
निहार रही पलंग,
आहट पाकर द्वार पर,
पाकर समक्ष तुझे रह गई दंग।


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"पलकें"
ये पलकें झपकती हैं जब, 
आँसू गिरा जाती हैं,
भूलना चाहते हैं तुझे,
पर हवा ये तेरी याद दिला जाती है,
तेरी पलकों के साये मेंं चाहा था जीना,
इल्म ना कि जुदाई का जहर पड़ेगा पीना,
पलकें झपकते ही मुराद पूरी की जाती थी,
कहाँ है वो हवा आज, जो पैगाम तेरा लाती थी,
मेरी साँसों में, मेरे दिल में, अहसास तेरा बसता है,
कैसे झपका दूँ ये पलके, 
बनकर सपना तू इनमें बसता है ।

स्वरचित-रेखा रविदत्त

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विधा-हाईकु
विषय- नव वर्ष

नूतन वर्ष
खुशियों का भंड़ार
संभाले हम

बैर पुराने
नव वर्ष मिटाए
बाँटे खशियाँ

प्रीत सहारा
नव वर्ष सहारा
खिले कमल

स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/1/19
मंगलवार

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"सेना"
है इरादों से मजबूत,
देश का हैं ये संबल,
प्रहरी करते दिन रात,
सेना के तीनों दल,
हो दुश्मन पर भारी तुम,
लोहे के चने चबवाते हो,
कर देश की रक्षा ,
शहादत तुम पाते हो,
होती सेना सरहद पर,
चारदीवारी देश की,
करती कोशिश मिटाने की,
है मन में जो भावना द्वेष की।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/7/18
सोमवार

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" सवेरा"
हुआ संतरी आँचल नभ का,
धरती पर किरणें फैली,
पंख फैला छूने नभ को,
चिड़ियों की उड़ गई रैली,

नई उम्मीदों को लेकर ,
सवेरा नया आता है,
ओस की बुंदे मोती का रूप लिए,
घास को गहनों की तरह सजाता हैं,

काली अंधेरी रात के बाद,
उजियारा छा जाता है,
दुख के बाद आएगा सुख,
ये सवेरा ही सीखलाता है।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/7/18
वीरवार


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बैठ आईने के सामने,
खुद को ही ढूँढ़ रही हूँ,
दूसरों की खुशी के खातिर,
फनाह खुद को करती जा रही थी,
आईने ने आज ये दिखा दिया,
रश्क करता था जमाना जिस चेहरे पर,
आज वो मुरझाने लगा,
देख आईने में अपना अक्श,
नजरों से नजरें मिलाई थी,
जागी लौ आत्मविश्वास की,
लबों पर मुस्कान आई थी,
भरने को एक नई उडान,
दिल में तरंग इक जागी थी,
उम्मीद की एक किरण,
आईने से ही तो पाई थी 

स्वरचित-रेखा रविदत्त
2/7/18


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जीवन हंसकर काटिए,
चाहे सुख हो दुख हो चाहे,
आत्मबल हो जब मजबूत,
कट जाती हैं सारी राहें।
आग में जैसे कुंदन तपता,
दुख ईंसान को मजबूत बनाता,
कौन है अपना कौन पराया,
दुख ही पहचान कराता।
सुख जीवन का मिठा सपना,
रखे पाने की सब आस,
दुख के बाद जब सुख आता,
जीवन में मिलता सुखद अहसास।
क्यों रोए तू दुख को देख,
सुख-दुख तो आना जाना है,
कर दुख का सामना तूने,
मंजिल को अपनी पाना है।
स्वरचित-रेखा रविदत्त


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" सुबह"
अंधकार को चीरते हुए,
सूर्य की किरणों का,
हो रहा धरा से मिलन,
मनभावन दृश्य ये,
उजली सुबह का,
कर रहा सृजन,
मन के भावों का,
मन को लुभाए,
ओस की बूंदे,
स्वरूप मोती का लिए
भँवरों को लुभाती,
कलियाँ ये,
जो उपवन को महकाए,
सुबह के दृश्य से,
मन मेरा हर्षित हो जाए।
स्वरचित-रेखा रविदत्त


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"चाहत"
दिल मेरा चाहतों का समुन्द्र है,
चाहा मैंनें सब जो मेरे अंदर है,
चाहत को अपनी चाहत ही रहने दो,
जिद उसका अंजाम ना बन जाए,
तुमने चाहा हरदम,
मेरी चाहतों को मिले अंजाम,
जीवन की परेशानियों में,
खुशनुमा वो तुम्हारा अंदाज,
चाहत यही मेरी ,
तुम बनो मेरे हमराज।
स्वरचित-रेखा रविदत्त


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" देशभक्ति"
माँ तुझे सलाम मैं करती हूँ,
लाल अपने को हँसते- हँसते,
तू सरहद पर भेज देती है,
चले गोलियाँ जब सरहद पर,
छाती तेरी छलनी होती है,
चौड़ी छाती कर बाप ने,
बेटों को सेना में भेजते हैं,
कर न्यौछावर प्राण सपूत ,
तिरंगा अपना लहराते हैं,
इनकी शहादत पर हिमालय ने,
शिश अपना झुकाया था,
देशभक्ति की गर्मी इतनी,
लेह लद्धाख की सर्दी में भी,
खून इनका गरमाया था,
उड़ा दुश्मनों के छक्के ये
हिमालय पर तिरंगा फहराते हैं
देकर जान देश की खातिर,
ये देशभक्त कहलाते हैं ।




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"संतोष"
ओढ़ आवरण संतोष का,
सुखी जीवन पाया है,
काश! ये हो जाए मेरा,
कभी ना ये मुझे भाया है,

जो खुशी दे संतोषी मन,
ना मिले वो धन -दौलत से,
हो जाऐ जीवन सुखमय,
दूर रहे हर नोबत से,

काम चोरी की आदत को,
संतोष का तुम नाम ना देना,
करना संतुष्टि थोड़े में,
हक किसी का ना लेना।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
10/8/18
शुक्रवार




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"नन्हाँ सिपाही"
माँ मुझको बंदूक दिला दे,
मैं भी सरहद पर जाऊँगा,
मिलकर पापा के साथ,
दुश्मन को मार गिराऊँगा,

ना रोना दादू तुम,
पापा को लेकर आऊँगा,
कितना करते हैं याद हम,
जाकर उन्हें मैं बताऊँगा,

दुश्मन चाचा से करके बात,
उनको मैं समझाऊँगा,
देकर टॉफी चॉकलेट,
उनके बच्चों की याद दिलाऊँगा,

सेना जो न कर पाई सरहद पर,
वो काम मैं करके आऊँगा,
बोकर बीज दोस्ती का,
नन्हाँ सिपाही मैं कहलाऊँगा।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/8/18

शनिवार



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भारत माता ने किया आज,
तिरंगे से श्रृंगार,
बच्चे -बच्चे को है यहाँ,
देश से अपने प्यार,

होकर शहीद जवानों ने,
दिया हमें आजादी का दान,
सिर नतमस्तक हो जाता है,
सुन वीरों का बलिदान,

समझा देश को प्राणों से बढ़कर,
तभी तो जंग वो जीते थे,
तोड़ दो सौ सालों की गुलामी,
तिरंगे की शान की खातिर जीते थे,

आजादी की इस वर्षगाँठ पर,
आओ कसम हम ये खाएँ,
प्रगति के रथ के बनकर पहिए,
कामयाबी हम पाते जाएँ।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/8/18
बुधवार


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1
आजाद पंक्षी
ख्वाहिशों का आकाश
चंचल मन
2
दृढ़ निश्चय
ख्वाहिशों का दमन
लक्ष्य पूर्ण
3
मन सागर
ख्वाहिशें हैं लहर
तट मस्तिष्क
4
ऊँची ख्वाहिशें
सुख-दुख ड़गर
दिखे दर्पण
5
बाल ख्वाहिश
चाँद बने खिलौना
माँ परेशान

स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/8/18
वीरवार


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"अपेक्षा"
क्यूँ करूँ अपेक्षा किसी से,
है मन में हिम्मत भरपूर,
क्यूँ घबराऊँ बाधाओं से,
पा लूँगी लक्ष्य हो चाहे कितनी दूर,

अपेक्षाएँ बनाती हैं कमजोर,
ढूँढेंगी निगाहें सहारा चहुँ ओर,
कर हिम्मत बढ़ा कदम तू,
अंधियारे के बाद आएगी भोर,

अपेक्षा की लेकर ढ़ाल,
हो जाएगा जीवन बेकार,
चमकेगा किस्मत का तारा,
जलने को रहो तैयार।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
18/8/18
शनिवार




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"साथ"
मन की बातें मन में रखूँ,
चाह मुझे तेरे साथ की,
तेरी यादें दिल महकाएँ,
जैसे रानी रात की,

जींदगी के सफर में,
जरूरत तेरे साथ की,
आजा साजन बाहों में,
कर ले कदर जज्बात की,

यूँ ना रूठो साजन मुझसे,
है वादा साथ निभाने का,
जल जाएगी समाँ अगर,
हाल होगा क्या परवाने का,

जाने ना दूँगी हाथ छुड़ाके,
बाँधी है प्रेम की ड़ोर,
देना साथ सदा तुम,
चाहे जीवन में आए कोई दौर।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
23/8/18
वीरवार




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विषय-चाँद
विधा-हाइकु

1

बादामी रात
पिया का इंतजार
चाँद के साथ
2
निकला चाँद
चमकीले उजास
पिया का साथ
3
सर्दी की रात
प्रियतम का साथ
चाँद से बात
4
नीली हैं आँखें
चाँद सी सुन्दरता
मन को भाए
5
चाँद बेबस
तुम्हारी बेवफाई
नैनों में अश्क
6
तुम्हारी याद
मचलती चाँदनी
निहारूँ चाँद

स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/8/18
मंगलवार




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"नारी"
मैं अबला नहीं, स्वाभिमानी हूँ,
रखती अपने अंदर खुद्धारी हूँ,
आनंद दायनी, दुख हरणी,
गर्व है मुझे कि मैं नारी हूँ,

इच्छा शक्ति प्रबल रखती,
जग जननी , संस्कारी हूँ,
दूँ शौम्य स्नेह, शक्ति स्वरूपा हूँ,
बनूँ रणचंड़ी भी, दुश्मन पर भारी हूँ

बन रक्षक सरहद पर,
स्वर्णिम युग की तैयारी हूँ,
करते गर्व सब मुझपर,
सम्मान की मैं अधिकारी हूँ।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/9/18
शनिवार


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"कृष्णा"
वह कदम्ब का पेड़,

और उसकी शीतल छाया,
वह पुष्पों के पुंज निकुंज,
मन लुभाए उनकी माया,
द्वापर युग जैसा युग,
अब तक ना आया,
बढ़ गए हैं पाप धरा पर,
फिर भी कृष्णा तू ना आया,
बढ़ा जलस्तर धरती पर,
गोवर्धन कहाँ से लाएँ,
त्राही-त्राही है चारों ओर,
अब कौन हमें बचाए।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
3/9/18
सोमवार


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" गंगा"
कर पाप इंसान,
चैन से है वो सोता,
जाकर गंगा पर फिर,
पाप है वो धोता,
हो जाता है वो आश्वस्त,
लगा डुबकी गंगा में,
दुष्कर्मों का फल ,
ना धुल पाता गंगा में,
खुद नहाएँ तो नहाएँ,
कचरा भी बहा आते हैं,
फिर बैठाते पंचायत,
गंगा में प्रलय क्यों आते हैं?
बोलते माँ तुम गंगा को,
उसको ही फिर गंदा करते हो,
धन -दौलत की खातिर,
गैर कानूनी धंधा करते हो,
जाकर गंगा मैया पर,
दान फिर करते हो,
आकर घर फिर,
गरीबों का लहू चूसते हो।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
6/9/18
वीरवार


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"बंधन"
तेरा मेरा रिश्ता ऐसा,
जैसे संगीत से सुर का बंधन,
तेरे मन के जज्बातों को,
समझे पूर्ण रूप से मेरा मन,
फूलों से खूशबू का रिश्ता,
भँवरों का है प्रेम बंधन,
बिन बंधन का रिश्ता अपना,
देता है कितना अपनापन,
रिश्ता अपना अहसास का,
मोहताज नहीं किसी नाम का,
मन में हो कोई खटास,
वो बंधन किस काम का।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
7/9/18
शुक्रवार


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"सागर"
सागर सी गहराई लिए,
दिल में है सैलाब मेरे,
कभी हँसना है कभी रोना,
सुख-दुख तो हैं दुनियाँ के फेरे,

सागर में छिपे मोती जैसे,
आँसू छूपे हैं मेरे नैनों में,
कोई सहकर दुख जी लेता है,
कोई मिटाए दुख मयखाने में,

खामोशी जिनकी फितरत है,
तभी तो सबको भाते हैं,
सागर सा विशाल हृदय,
सबके राज छुपाते हैं।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
8/9/18
शनिवार



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1
ये चंद सांसें
दिखाती सपना
हैं मूल्यवान
2
साँस छूटती
शरीर है बेजान
बनता राख
3
सांसें हैं सेतु
जीवन है सागर
मिले साहिल
4
अंतिम सांस
बुझे जीवन ज्योत
सब उदास
5
थमती सांसें
शहीद है जवान
तिरंगा ऊँचा
स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/9/18



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देता समाज
3
पैरों में बेड़ी
परंपरा का नाम
बालिका कैद
4
लोगों की आस्था
परंपरा मधु सी 
होते संस्कार
5
आज की पीढ़ी
परंपरा है लुप्त
समझे बोझ
स्वरचित-रेखा रविदत्त
13/9/18
वीरवार



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आओ तुम्हे हिन्दी से मिलाए,
तत्सम, तद्भव शब्द बताएँ,
उपमाओं का ज्ञान कराए,
मातृभाषा हिन्दी से मिलाएँ,
एक शब्द में वाक्य समझाएँ,
गीत-मुक्तक,दोहे, छंद लिखाएँ,
हाइकु,तांका का ज्ञान कराएँ,
मातृभाषा हिन्दी से मिलाएँ
हिन्दी से बन गई हिंग्लिश,
आओ हिन्दी का दर्द बताएँ,
आज की पीढ़ी जुगाड़ भिड़ाए,
अंक लगाकर शब्द बनाएँ,
सोनू को 100नू लिखाएँ,
देख तरीका लिखने का,
हिन्दी आँसू बहाए,
हिन्दी हमारा मान है,
आओ मिलकर इसे बचाएँ।
 स्वरचित-रेखा रविदत्त



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विधा-हाइकु
विषय- वचन

1
बदला जग
अनमोल वचन
मिले संस्कार
2
मीठे वचन
संतुष्ट हुआ मन
मिटते बैर
3
योग संसार
वचन पे अमल
दिखाते मार्ग
4
कटु वचन
दिल पर आघात
बढ़ती दूरी
,5
मान वचन
समाज में सम्मान
खाते कसम
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/9/18


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पर्यावरण
जीवन की जीविता
अन्योन्याश्रित
2
करो विचार
पर्यावरण सुरक्षा
बचाए धरा
3
पर्यावरण
वनस्पति उद्भव
बढ़ा विकास
4
छाया संकट
रोया पर्यावरण
वृक्ष हैं लुप्त
5
हरित मिल्यु
देता पर्यावरण
स्वच्छ माहौल

स्वरचित-रेखा रविदत्त
19/9/18
बुधवार
मिल्यु- चारों ओर के वातावरण का समूह


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" कल्पना"कल अपना है जाना मैंनें,
इसे पाने की ठानी मैंनें,
हर परिस्थिती से किया संघर्ष,
कल्पना में देखूँ मैं पूरे जीवन का हर्ष,
निकल कल्पनाओं से बाहर,
बनना है कुछ अगर,
बढ़ा कदम अपने पथ पर,
उम्मीद किरणों के रथ पर,
कल्पनाओं में जो हैं पाएँ,
आलस से हम क्यों गवाएँ,
कल्पनाओं में थे जो पंख लगाए,
आओ उनको हकीकत बनाएँ।

स्वरचित-रेखा रविदत्त


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