Friday, June 28

" जनतंत्र "28जून2019

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ब्लॉग संख्या :-431

जनतंत्र कहें या जनमत कहे।
दौनो है समरूप एक ही।
नाम मात्र का यह जनतंत्र है।
हावी रहता राजतंत्र है ।
जब जनमत जातिवाद चुनता।
ओर अनपढ अशिक्षित नेता।
दो बच्चों के अधिक बोझ से।
लदा हमारा नेता चुनता।
भला वह कब जन जन तक पहुचें।
पहले परिवार की वह सोचेगा।
जागरूक हो सभी जनतंत्री।
भय और आडंबर मे नही जाना।
जांतिबाद और सुरा बोतल साडी ।
यह क्षणिक प्रलोभन पर मत जाना।
जय हिंदी जय भारतवर्ष जय जनतंत्र।

स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
२८/६/२०१९@०५:५७


विषय जनतंत्र
विधा लघुकविता

28 जून 2019

जन के द्वारा जन के लिये
होता है जनतंत्र उपयोगी।
मतदान अति आवश्यक
दृढ़ विपक्ष अति है संयोगी।

राजा रंक सभी सम होते
है जनतंत्र प्रिय पहिचान।
प्रतिभा का आदर करना
आन मान भारत की शान।

यह जनता का कल्याणक
जनता के द्वारा निर्वाचित।
अभिव्यक्ति की है आजादी
होते विद्वजन गौरवान्वित।

लोकतांत्रिक गरिमा शाली
सबको नव सँविधान मिला।
प्रगतिपथ नित आगे बढ़ना
चलता रहे सदा सिलसिला।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


बिषय,, जनतंत्र,,
भारत का जनतंत्र बड़ा ही प्रबल
न समझें इसको सहज सरल
जब चाहे आसमां से पृथ्वी पर
उतार दे
जब चाहे झोपड़ी को महलों
में संवार दे
पल में बनाती रंक से राजा
जमीं पर बैठने बालों को
पालकी से नवाजा
बड़े बड़े महारथी फुटपाथ
पर धराशायी
बिलुप्त थे जिन्होंने
संसद में बिगुल बजाई
नामीगिरामी दिग्गजों को
तिनके सा बहा दिया
गुमनामी में रहने वालों
को ताज पहना दिया
जनमत देता कृत्यों का अंजाम
जैसी करनी वैसी भरनी
जनतंत्र का पैगाम
स्वरचित,, सर्वाधिकार सुरक्षित
सुषमा ब्यौहार



जनतंत्र

जनतंत्र का हमें,

मतलब समझाया ।
हमारा अंगठाबहादर ,
श्रीमाम रामभाया ।
जनता व्दारा,
जनता के लिए ।
चलने वाला यंत्र ।
इस यंत्र को चलाने,
लगता हैं तंत्र -मंत्र ।
हवा,तेल पानी ।
जीसके पास होता,
यह सब। ज्ञान ।
वह होता ,
स्वामी श्रीमान ।
जो चलाता,
इस यंत्र को ।
अफवा का हवा,
लाशों की आग ।
पैसे को पानी बनाकर ।
भाषण का होता हैं,
इनके पास मंत्र ।
जाे कर देता सम्मोहित ।
फिर न रहता हमें,
अपना हीत ।
खो देते हम,
अपने हीत को ।
लाचार बनकर,
रहते हैं खड़ें ।
क्योंकि ?
स्वामी हैं !!
इस तरह,
चलता जनतंत्र ।
पिसती हैं जनता,
इस यंत्र तंत्र मंत्र में ।
अपने ,
अंतिम समय तक....

X प्रदीप सहारे

शीर्षक-जनतंत्र

भारत जैसे #जनतंत्र में चुनाव इक त्यौहार है।
नेता और मतदाता के बीच का ये इकरार है।

मतदाता के मन का पा न सका कोई पार है।
नेता लुभा रहे हैं खूब, चर्चाओं का बाजार है।

निष्पक्ष और निर्भीक तंत्र, आयोग का विचार है।
औकात दिखाओ उन्हें जिनकी छब दागदार है।

झूठे प्रलोभनों में आना न, बस यही गुहार है,
देश हित है सर्वोपरि, समय की यह दरकार है।

जनतंत्र में जन कुचले, तंत्र को धिक्कार है।
एक विधान एक निशान, जन की पुकार है।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित


दिनांक-२८/०६/२०१९

विषय- जनतंत्र

जनतंत्र के पक्ष में...

जनतंत्र का पावन कुंभ लगे

पांच साल में एक बार।।

जनतंत्र को बना दे जन्नत

त्याज करे कुत्सुत विचार।।

संसद के देवालय में एक दीप जला ले

पूजे हम संसद के देवों को

स्वर्णिम रश्मियों से देश सजा ले।।

आओ करे विराट जनतंत्र का श्रृंगार।

जनता के जनतंत्र का असिंचित प्यार।।

जनतंत्र का पावन मंदिर, देवों का उपहार।

पाँच साल में पावन पर्व आये सिर्फ एक बार।।

जनतंत्र के विपक्ष में...

प्रलय मची है चहुँओर हाहाकार

लोहे के पेड़ भी हरे होंगे

नेता कहते बारंबार बारंबार

आकाश से गिरे उल्का अंगार

सत्य ,अहिंसा मौन खड़ा है

घनघोर हैं संकट के द्वार।।

कुछ के लाभ के लिए

बहुतों का पागलपन ...लिये

अभिजन वर्ग का ही हो उद्धार।

गरीब के सपनों का संहार।।

मंत्री जी पढ़े मूल मंत्र

तनिक भी ना सुधरे जनतंत्र

श्वानों को मिलते दूध

अभागे बच्चे अकुलाते भूख

मालिक देते ब्याज व सूद

पापी महलों का अहंकार देखो

जनतंत्र के मूल्य का प्यार देखो

जनतंत्र के ललाट चंदन को

कैसे मैं नमन करू।

हे भारत देश तेरा गरल फिर भी मैं वमन करूं।।

मौलिक रचना

सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज


28 06 19
विषय - जनतंत्र 


हर विशेष दिवस पर
हर बार तिरंगा फहराते हैं
कुछ कसमे वादे होते
कुछ आश्वासनो के
परचम लहराते
हम फिर भ्रमित हो भुलते
"जनतंत्र" बन गया
लाठी वालों की भैंस 
और देश बन गया
मूक बधिरों का आवास 
लाठी वाले खूब
अपनी भैंस चरा रहे 
हम पंगू बन बैठे
विशेष दिवस मना रहे 
ना जाने देश कहां जायेगा 
हम जा रहे रसातल को 
यद्यपि दीन दुखी गारत है 
विश्व में फिर भी
सर्वोच्च भारत है 
गाना नही अब
जगना और जगाना है
ठंडे हुए लहू को
फिर लावा बनाना है 
मां भारती को
सच में शिखर पर लाना है 
मजबूत इरादों वाला
जनतंत्र बनाना है।

स्वरचित
कुसुम कोठारी ।


विषय जनतंत्र 
जनतंत्र का युवा पीढ़ी से आह्वान
**
मैं .......जनतंत्र बोल रहा हूँ

मैं बदलता भारत देख रहा हूँ
मैं युवा भारत की आहट सुन रहा हूँ
मैं ये सोच आनंदित हो रहा हूँ ( तुम) 
लक्ष्य निर्धारित कर ,कर्म पथ पर चले 
मिले मार्ग मे शूल ,निडर बढ़ते चले
सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर खड़े
सपनोँ को पूरा करने की ऊँची उड़ान भरे।

मुझे तुम पर है पूरा विश्वास ,मगर
मैं कभी ये देख कांप जाता हूँ
जब तुम्हें नशे की गिरफ्त में पाता हूँ
नारी का अपमान सहन न कर पाता हूँ
भ्रष्टाचार में लिप्त तुम्हे देख नही पाता हूँ
अपशब्द देश के लिये सुन नही पाता हूँ
हिंदी की अवस्था पर घबरा जाता हूँ।

मैं युवा भारत से आह्वान करता हूँ 
सांस्कृतिक विरासत को सहेज आगे बढ़ो
चरित्र निर्माण,पौरुष में सतत लगे रहो
राष्ट्रप्रेम के भाव से पूर्ण रहो
सत्कर्म करो ऐसे, जग मे अमर रहो
मैं ........जनतंत्र बोल रहा ......

स्वरचित
अनिता सुधीर


आज का विषय जन तंत्र, लोकतंत्र,
सेदोका मेरे,
1/सियासत को,

टकसाल समझ,
कब तक लूटोगे,
जनतंत्र में,
जनता जाग चुकी,
उठा के फेंक देगी।।1।।
4/जनतंत्र मे,
जीओ ओर जीने दो,
रिश्वतखोरी बाजार,
लूट की होली,
अफसर, बाबू से,
जनता परेशान।।।4।।
5/जनतंत्र मे,
झूठे प्रलोभनों की,
बरसात होती है,
बादल छाये,
बिना मानसून के,
नेता ,नौकरशाही।।
स्वरचित रचना कार देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।


जनतंत्र 
विधा - हाइकु 


ये जनतंत्र 
भारत का गौरव 
रहे अमर 

ये जनतंत्र 
विश्व उदाहरण
है हिन्दुस्तान 

जनतंत्र है
जन मन आकांक्षा 
जय भारत

वोट डालते 
लोकतंत्र उत्सव 
जनतंत्र का

मने खुशियाँ 
हर घर घर में 
है जनतंत्र 

सही फैसले
बढते यूँ कदम 
है जनतंत्र 

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय-जनतंत्र 
=========================
भारत भू का जनतंत्र, 
जग में बड़ा महान। 
मिले हैं अधिकार हमें, 
हम सबकी पहचान।। 
जागरूक बनकर सदा, 
करना अब सम्मान । 
स्वच्छ छवि को ही चुनें, 
तब भारत बने महान।।
कर्तव्यों को सदा निभायें, 
इसका रखें हम ध्यान। 
पावन अपने जनतंत्र से, 
बढ़े जन जन का मान ।।
एकता की डोर बंधे, 
मानवता की बहे धार । 
सारे जगत में भारत की, 
होवे सदा ही जय जयकार ।। 
देश सेवा सदा करें हम, 
फिर न कभी पछताना। 
जनतंत्र की एकता जग को , 
सदा सदा दिखलाना।। 
अपने महान जनतंत्र का, 
आओ करें गुणगान।
भारत भू का जनतंत्र 
जग में बड़ा महान। 
मिले हैं अधिकार हमें, 
हम सबकी पहचान।। ...
(स्वरचित /मौलिक रचना)
............भुवन बिष्ट 
रानीखेत (उत्तराखंड )

विषय:- जनतंत्र
विधा :- राधे श्यामी / मत्त सवैया 

शोषित जनतंत्र में ठान ले , 
हिलती कुर्सी सरकारों की ।
जाता राज तंत्र हर घर में ,
झुकती गरदन बेचारों की ।।

आँखें अपनी लोग खोल के ,
पूरा तख़्ता उलटाते हैं ।
आता जो भी वोट माँगने , 
सब खोटी खरी सुनाते हैं ।।

सिंहासन ख़ाली करवाते , 
शोषित लोग बग़ावत करते ।
नेता चुनकर निज मर्ज़ी का , 
सारे मिलकर दावत करते ।।

बसता जनार्दन जनतंत्र में , 
कृषकों श्रमिकों मज़दूरों में ।
शोषित पीड़ित जो शासन से , 
दिखते बेबस मजबूरों में ।।

जनता जागरूक जब होती ,
सदियों का तम मिट जाता है ।
जब भी होय निरंकुश मुखिया , 
वोटों से वह पिट जाता है ।।

जनता शान है जनतंत्र की , 
चलती सरकारें वोटों से ।
मूरख सत्ता रहे सोचती , 
निर्धन नहीं बिके नोटों से ।।


 ये लोकतंत्र
नेता हैं लूट यंत्र
सोन चिरैया

बचे नही हैं पंख
नोचे विदेशी
आज लूटें स्वदेशी
मची अंधेर
खरीदो टके सेर
मूली व खाझा
मची बंदर बाँट
सच परास्त
झूठ को नही आंच
खुली है काँछ
निकल आयी कांच
पानी न छाछ
सिर्फ वादे ख़ुराक
ये जनतंत्र
जन ही लूटे तन
रक्षक भक्क्षे
घायल भारत माँ
रक्त-रंजित
जाति धर्म की भित्ति
आतंकवाद
नेता देते पोषण
करें शोषण
फेल सारे जंतर
भारी लूट मंतर
भावुक।।।

II जनतंत्र II नमन भावों के मोती....

विधा: मुक्त काव्य - फैसला 

क्यूंकि मैं उनको भा गयी थी....
फैसला था...
घर के सभी लोगों का...
मुझे छोड़ कर...
शादी ऊंचे घराने में...
कर दी मेरी....

ऊंची एड़ी के सैंडल...
चमकते हुए...
बहुत चुभते थे मुझे...
बहुत तकलीफ देते थे...
सब को मगर भाते थे...

एक दिन मैंने...
विद्रोह कर दिया...
जनतंत्र के खिलाफ...
उतार फेंके....
झूठे आवरण....
अपने आप में आ गयी...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२८.०६.२०१९

नमन-मंच
दिनांक-२८/६/२०१९
"शीषर्क-जनतंत्र"
जनतंत्र है हमारी पहचान
इससे है हमारी देश की शान
जनमत ने एक नायक बनाया
राज प्रजा का भेद मिटाया।

पर जिस जनतंत्र को हमने अपनाया
क्या उद्देश्य वह पुरा कर पाया?
आम जनता विकास से दूर
ये नही क्या जनतंत्र का भूल?

आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार,
ये नही जनता की माँग,
जननायक हो सच्चे समाजसेवक
सच्चाई, ईमानदारी हो उनके तेवर

जन मन आशा व निराशा मे क्यो झूले?
और नेता सत्ता सुख के हिंडोले मे भूलें।
जब तक जन जन ,नही जागेगा,
जनतंत्र सफल नही कहलायेगा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।


नमन बावन के मोती
शीर्षक --जनतंत्र
दिनांक--28-6-19
विधा ---दोहे

1.
गलत चयन चनाव बने, सदा जनतंत्र कोढ़।
प्रजातंत्र बाँछे खिलें,मतदाता जब प्रौढ़।।
2
ज्योति कलश जनतंत्र का, प्रजातंत्र मजबूत ।
आत्मा प्रजातंत्र सनी,हो सरकार प्रसूत।।
3.
सही व्यक्ति का चयन हो, मन में लें ये ठान।
धर्म,जाति, धन से परे, हो जनतंत्र महान ।।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551


भावों के मोती
शीर्षक- जनतंत्र
जनतंत्र में न हनन हो
किसी के अधिकारों का
ऊंच-नीच, जाती-धर्म, छुआ-छूत
ना आने पाए, सम्मान हो 
वैगेर भेदभाव के,
सबके ही विचारों का।
सभी को मिले समान सुविधाएं
और आजादी अभिव्यक्ति की
पर किसी हाल में न होने देंना
निंदा अपनी मातृभूमि की।
जान की तरह सम्हालकर रखना
इज्जत अपनी जन्मभूमि की।।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर

विषय - ** जनतंत्र **
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

जनतंत्र
क्या बहुरूपिया है
या दबंगों से डर कर 
रूप बदल लिया है
समझ नहीं आया
छोड़कर जनहित को
बन गया है यह
नेताओं का दास
अफ़सरों का गुलाम
धनवानों का चहेता
आम आदमी का दुश्मन

कोई झुठला नहीं सकता
इस सच्चाई को
सब चुपचाप
देखे जा रहे हैं
सहे जा रहे हैं

संविधान मौन है
दोषी इसका कौन है ??
~~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया


सादर मंच को समर्पित -

🍓🌿 जनतंत्र 🌿🍓
**************************
🍋🌲 ताँका 🌲🍋
**************************
🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑

🍓🍍( 1 )

जनतंत्र है
जनता का , जन को
जन उदास
लूटें सत्ता धन को
कौन देखे जन को

🍈🍋 ( 2 )

जनता राज 
जनतंत्र , सेवा को 
जनता स्वयं
राजा बने प्रजा को 
घर भरें खुद को 

🍎🍊🍈🍑

🍓🍒*** ... रवीन्द्र वर्मा, आगरा
मो0-- 08532852618

नमन भावों के मोती
28-06-19 शुक्रवार
विषय-जनतंत्र/लोकतंत्र
विधा-क्षणिका
💐💐💐💐💐💐
(१)
जनतंत्र में
जनता की भूमिका
अहम है...👌
कब तक होगा...?
फिलहाल तो
वहम है...👍
💐💐💐💐💐💐(२)
गणतंत्र का
"भविष्य"
उज्ज्वल है...👍
गाँव-गली
शहर-नगर
डगर-डगर
कोलाहल है...👌
💐💐💐💐💐💐
(३)
सावधान!
खबरदार!!
होशियार!!!
यहाँ, घोर-
षड्यंत्र है...👌
जहाँ---
यही तो
जनतंत्र है..👍
💐💐💐💐💐💐
(४)
हाय!
जन को लगी
तंत्र की कैसी हाय..👌
माँ
उड़ा रही
गुलछर्रे,
और
दूध पीला
रही धाय...👍
💐💐💐💐💐💐
(५)
मिलकर रहने व
बाँटकर खाने का
दुसरा नाम
जनतंत्र है...👌
सबको पता है
घोर षड्यंत्र है...👍
💐💐💐💐💐💐
(६)
समाजवाद
पूंजीवाद का
मोहताज है...👌
अतः अब
कहा जाना चाहिए
(चूँकि,अब तक समाजवाद नहीं आया)
जनतंत्र दगाबाज है...👍
💐💐💐💐💐💐
(७)
जनतंत्र में
जनता का
बड़ा हाथ है...👌
जिसमें...
हाथ उठाने
वालों का
बड़ा हाथ(राज) है...👍
💐💐💐💐💐💐(८)
जो
झूठ बोलने की
कला में
पारंगत हैं...👌
उन्हें-
जनतंत्र में
नेता बनने की
खुली इजाजत है...👍
💐💐💐💐💐💐
(९)
जनतंत्र के
प्रत्येक गेट पर
"छेद"
नजर आता है...👌
क्योंकि,हरेक-
चौखट व खिड़की पर
एक-एक"पर्दा"
लटकाया जाता है...👍
💐💐💐💐💐💐
(१०)
जनतंत्र में
दलीय
राजनीति है...👌
"दल-दल" की
नीति है...👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला


विधाःः मुक्तक

नयन खोलकर देखिए क्या यही गणतंत्र।
खुल कर लट्ठ चल रहे क्या यही जनतंत्र।
रख परस्पर प्यार हम चुनें प्रगति की राह,
तब समझ में आऐगा क्या सही स्वतंत्र।

भक्ति हम मन से करें नयन बसाकर राम।
यश राग डूबें नहीं कर विचार कर काम।
मानें भले जनतंत्र यह लगता कुछ अभाव,
नयनजल बरस रहा तुम्हें नचाकर श्याम।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम

दिन, शुक्रवार
दिनांक, 2 8,6,2019,

हो जनता के हाथों में जहाँ सत्ता,
कहते जनतंत्र नाम होता उसका।

पर हुआ माहौल आजकल ऐसा,
भेड़ बकरी बनाई गई है जनता ।

सियार लोमड़ी और लकड़बग्घा,
कब से सुख भोग रहे लोकतंत्र का।

कुछ काम नहीं होता जनता का,
सिक्का चलता है बस दबंगों का।

आरक्षक वही बना हुआ जनता का,
कर रहा हनन जो उनके अधिकारों का।

कुछ ज्ञानियों ने मिलकर षड्यंत्र रचा ,
जनता को शिक्षा दौलत से दूर रखा।

कागजों में तो दे दी है उनको सत्ता,
पर हाथों में अपने ही रख्खी है सत्ता ।

जादू चलता रहता है गोलमोल बातों का,
उपयोग किया जाता है भोली भाली जनता का ।

जनता के लिए जनता के द्वारा जनता का,
मनमोहक बड़ा लगा करता है ये जुमला ।

स्वरूप कुछ अलग ही लेकिन है इसका, 
अब नाम बदल गया है हमारे शासकों का ।

ढ़ोंगी मक्कार लालची जो जिन्हें मोह है सत्ता का।
आदर करते दिखते हैं अक्सर वही जनतंत्र का ।

कायम करना है हमको जो शासन जनता का ।
संचार करें हम जन जन में जाकर चेतना का ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश


क्यों खिन्न बैठी धरा
सोचते नहीं
आंसू अविरल निकल रहे
प्रेम पुष्प सूख रहे
गंध सुवासित नहीं रही
जनतंत्र रो रहा
मनतंत्र चल रहा
ये कैसा काल आया
क्या सचमुच कलियुग आया।
एक दिवस भी चैन नहीं
गेह में बैठी बेटियां डरकर अकेली
नहीं आती बगल के सदन से
कोई सहेली।
क्योंकि जनतंत्र ,
भीडतंत्र में बदल रहा है ।
मानवता शर्मसार हो रही
दिन दहाड़े हत्याऐं हो रही
चीर अपहरण,बलात्कार
प्रतिदिन नरसंहार हो रहे
आदर्शों की चीरफाड हो रही
संवेदनाऐं मर रही
वासनाऐं जग रही
सुपवन नहीं रही
क्यों इतनी छूट मिली जो
जनतंत्र की धुरी हिली।
हमें लोकतंत्र चाहिए
मगर अब शोकतंत्र संभालिऐ।

स्वरचितःः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

3-भा,#जनतंत्र,#शब्दःधरा, आंसू, गेह,गंध
काल,खिन्न, आदि
28/6/2019/शुक्रवार


" भावों के मोती " पटल
वार : शुक्रवार 
दिनांक : 28.06.2019
आज का विषय : जनतंत्र
विधा : काव्य

गीत 
प्रजातन्त्र जन जन का शासन ,
जन जन को है भाये !
वोटों का अधिकार मिला बस ,
सत्ता है दुलराये !!

पाँच बरस में अवसर आये ,
नेताओं को चुन लो !
सब्ज़ बाग वे हमें दिखाते ,
सपने अपने बुन लो !
शाही ठाट बाट हैं उनके ,
जन जन धक्के खाये !!

कहाँ फरिश्ते प्रजातन्त्र में ,
रहे रेवड़ी बाँटे !
अर्थव्यवस्था चौपट होती ,
दीमक जैसे चाटें !
सात पीढ़ियाँ करे सुरक्षित ,
वैतरणी तर जायें !!

है चुनाव अधिकार हमारा ,
थोड़ा सा कुछ गुन लें !
जाति , धर्म में बंटे नहीं हम ,
सही राह को चुन लें !
मिले प्रलोभन चाहे जितने ,
कभी न धोखा खायें !!

जननायक का चयन सही हो ,
बेहतर मिले नतीजे !
वहीं विपक्ष भी बैठा बैठा ,
मले हाथ औ खीजे !
अवसर को गर सही दिशा दें ,
उत्सव रोज मनाएं !!

सरकारें जनहित को देखें ,
लाभ जुड़े सबके हों !
उन्नत हो बस देश हमारा ,
उन्नत सब तबके हों !
मुस्कानें हो हर चेहरे पर ,
ठहरे औ गहराये !!

है विधायिका सब पर भारी ,
इसमें थोड़ा भय है !
न्यायपालिका लगे विवश है ,
राजनीति की जय है !
एक देश कानून एक हो ,
न्याय एक सा पायें !!

स्वरचित / रचियता : 
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )


(जनतंत्र)
******
चारु व्यवस्थित जीवन- यापन का,
मंत्र अनूठा शुचि जनतंत्र,
जनता द्वारा जनता के हेतु,
जनता का विहंसित शासन-तंत्र।

सबका साम्य, स्वतंत्रता पूर्ण,
न्यायप्रियता और बंधुत्व,
वर्ग भेद से ऊपर उठना
जनतंत्र शुचित सिद्धांत मूल।

सर्वभौम शिक्षा की व्यवस्था,
आर्थिक सामंजस्य समाज में,
मानवीय व्यवहार मधुरतम,
कार्य प्रमुख जनतंत्र के।

सर्वोपरि राष्ट्र के हित,
चारु प्रणाली जनतांत्रिक,
किन्तु विश्व स्तर पर आज,
तनिक प्रदूषित लोकतंत्र।
--स्वरचित--
(अरुण)


नमन "भावों के मोती"🙏
28/06/2019
िधा:-पिरामिड 
विषय:-"जनतंत्र/लोकतंत्र" 
(1)
है 
शक्ति 
उत्सव 
समर्पण 
उदाहरण 
संविधान मंत्र 
भारत जनतंत्र 
(2)
हा 
स्वार्थ 
दुर्भाग 
भ्रष्टाचार 
वादे बेकार 
दागी होते पास 
जनतंत्र की हार 
(3)
है 
सेवा 
साधना 
देव जन 
आहुति कर्म 
संविधान धर्म 
मंदिर लोकतंत्र 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


लोकतंत्र 
हाइकु 
1)
=======
जिस तन्त्र मे 
जनता परतन्त्र 
है लोकतंत्र 
=======
2)
=======
नोट का वोट 
लोकतंत्र की यही 
बड़ी है खोट
=======
3)
=======
नेता के वादे 
कोई कभी न जाने 
धूर्त इरादे 
=======
4)
======
एक पक्ष है 
दूसरा विपक्ष है 
दोनो कसाई 
=========
5)
=========
पक्ष विपक्ष 
मिलकर चूसते
खुन पसीना
========
6)
=========
लोग हलाल 
लोकतंत्र के लाल 
हैं माला माल 
========
7)
राम रहीम 
हैं हथियार मस्त 
जनता त्रस्त
-------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित


मंच भावों केमोती 
विषय :- जनतंत्र ,/प्रजातंत्र
प्रजातंत्र है प्रजातंत्र पर
प्रजा प्रजा है तंत्र तंत्र पर ।
प्रजा बिचारी भोलीभाली
जो चाहे कर दे मतवाली
बात जो उसके मन की कह दे
वह उसकी हो जाये बिचारी ।
पर तंतर है जंतर मंतर 
जो चाहे सो फूंके मंतर 
जनता भोली बनकर दैखे 
जंतर के मंतर का अंतर ।
नेताजोगी बनकर बैठे
फूंक रहे हैं उसमें मंतर 
प्रजातंत्र की बातें करती
प्रजा स्वयं ही दास बन गई।
उषासक्सेना :-स्वरचित


"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...