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ब्लॉग संख्या :-409
सुप्रभात "भावो के मोती"🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
06/06/2019
"निडर"
1
हर्षित मन
निर्भय विचरण
धरा,अंबर
2
कार्य निर्भय
राष्ट्र उपकारिता
आत्म संतुष्टी
3
डर से जीना
मरने के समान
निडर बन
4
धर्म का पथ
निर्भिकता से चल
छोड़ कुपथ
5
सच की राह
बाधाएँ हैं हजार
चल निडर
6
निर्भीक मन
सुरक्षा को तैनात
सेना प्रहरी
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक निडर
विधा लघुकविता
06 जून 2019,बृहस्पतिवार
पाप पथ पर चलो कभी मत
सत्य मार्ग जीवन की कुंजी
निर्भिकता से कदम बढ़ाओ
स्वाभिमान जीवन की पूंजी
जो डरता वह नित मरता
निडरता साहस देती नित
अदम्य साहस और धैर्य से
मिलते जीवन में सदमित्र
अनवरत निडर हो चलता
फूल बिछे उसके पांवों में
परोपकार करता जीवन मे
मरहम भरे नित घांवो में
आँखो में तूफानी मस्ती
भुजा फड़के निडरता से
असंभव होता नहीं कुछ
सद्कर्म करो वीरता से
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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भावों के मोती
6/6/19
विषय-निडर
विधा-हाइकु
■■■■■■
1)
बन निडर
अनजान डगर
बढ़ते चलो ।।
2)
छोटी चिड़िया
बाज प्रतीक्षा करे
निडर उड़े ।।
3)
बीज निर्भीक
धरती भेद कर
आकाश पाया ।।
■■■■■■
स्वरचित
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ ग
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भावों के मोती
6 /06/ 19
विषय - निड़र
शजर ए हयात की शाख पर
कुछ स्याह कुछ संगमरमर
यादों का पपीहा।
खट्टे मीठे फल चखता गीत सुनाता
उड़-उड़ इधर-उधर फूदकता
यादों का पपीहा।
आसमान के सात रंग पंखों में भरता
सुनहरी सूरज हाथों में थामता
यादों का पपीहा।
चाँद से करता गुफ्तगू बैठ खिडकी पर
नीदं के बहाने बैठता बंद पलकों पर
यादों का पपीहा।
टुटी किसी डोर को फिर से जोड़ता
समय की फिसलन पर रपटता
यादों का पपीहा।
जीवन राह पर छोड़ता कदमों के निशां
"निड़र" हो उड़ जाता थामने कहकशाँ
यादों का पपीहा।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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विषय -- निडर
विधा--ग़ज़ल
निडर और निर्भीक वही है
जो इंसा अन्दर से सही है ।।
अन्दर भी रूह की नजर है
डोर जो परमात्म से रही है ।।
नेक कार्य हर्षित करते
यम से भी लड़ी सती है ।।
सती सावित्री जैसी नारी
बदल देय यम की बही है ।।
डरना अपने कर्म से बन्दे
कर्म होती भय की सुई है ।।
भीष्मपिता सी शख्सियत
मौत को भी टक्कर दई है ।।
जहाँ नेक कर्मों की पूँजी
भय की 'शिवम'जगह नही है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 06/06/2019
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6/6/2019
निडर
💐💐
नमन मंच।
नमस्कार गुरुजनों,मित्रों।
💐💐🙏🙏💐💐
चलता जो निडर होकर जग में,
हर कार्य सफल होता उसका।
निर्भिक जगत में जीते हैं सदा,
हर दिल में छाप होता उनका।
यहां किसी से डरना कैसा,
मर,मरकर यूं जीना कैसा।
मरने से पहले जो मर जाये,
उसका जग में जीवन कैसा।
निडर होकर कर्म करो,
कर्मपथ पर बढ़े चलो।
हर कार्य सफल होगा तेरा,
यहां किसी से नहीं डरो।
💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन मंच को
6/6/2019
हाइकू
1
सत्य निडर
परिस्थितिया सर
जाते उभर
2
जीतो जगत
बनकर निडर
सत्य निर्भर
3
है निडरता
मन न घबराता
सच्ची मित्रता
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
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सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 6-6-2019 (गुरुवार)
विषय : निडर
हाइकु
1
संघर्ष कर
तभी सफल होगा
निडर बन
2
आस -निरास
मत होना उदास
मंजिल पास
3
संकट घड़ी
रहे अपनें साथ
चल निडर
यह मेरी स्वरचित है
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
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नमन मंच भावों के मोती
विषय- निडर
विधा- हाइकु
दिनांक- 6/6/2019
बन निडर
डर से जा उबर
कर दमन।1
मत जा मर
गहरी सांँस भर
कर शमन।2
लगा छलांग
हौसलों की उड़ान
होगा चयन। 3
किसका डर
तिनका तिनका ले
आर पार हो।।4
होगी फतेह
जीवन मित्र बन
चीर पहाड़। 5
शूल ले बीन
हो डर मिट्टी मिट्टी
खिले चमन।6
भव निडर
छोड़ सुगम राह
देख विजय।7
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन भावों के मोती मंच
आज का शीर्षक --निडर
तारीख --६ जुन 2019
विधा -- छंदमुक्त
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माना घनी अंधेरी काली रात है
इस शहर मै वहशी भेड़ियों की तादाद है
मगर मै बेटी भारत की निड़र
मुझको नही लगता अब कोई ड़र
खड़े आबरू लूटते देखकर मूक की तरह
ये जमाने की कैसी बात है
मगर मै बेटी भारत की निड़र
मुझको नही लगता अब कोई ड़र
आता नही कोई आबरू बचाने भीड़ से
हाथ में है मगर मोमबत्ती ये कैसा इतेफाक है
मगर मै बेटी भारत की निड़र
मुझको नहीं लगता अब कोई डर
बेटी अनमोल है धन कीमत इसकी जानते
फिर भी कन्या-भ्रूण हत्या जैसा करते पाप है
मगर मै बेटी भारत की निड़र
मुझको नहीं लगता अब कोई ड़र
अब हर बेटी होगी झांसी की रानी सी निड़र
अब बेटी को नहीं लगता है कोई ड़र
संदीप शर्मा
अलवर राज .
स्वरचित....
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नमन मंच
06/06/19
विषय निडर
विधा पिरामिड
विधा पिरामिड
ऐ
मन
तू चल
हो निडर
सत्य डगर
शूल पथ पर
निर्भीक बढे चल
ये
पुष्प
निडर
शूल मध्य
है सुवासित
विषम में सम
आवास सुरक्षित ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन"भावो के मोती"
06/06/2019
"निडर"
###############
हे प्रभु ! भक्ती देना इतनी
मिले दु:खों को झेल सकूँ
सुख में तुझे ना भूल जाँऊ
जहाँ जन्म दिया है तूने
मन मेरा निर्भय रह पाए।
हे देव ! शक्ति देना इतनी ,
झूठ से ना घबरा जाँऊ
ठोकरें खाकर जो गिर पड़ी
सच की राह ना छूट जाए
निडरता से उठ पाँऊ ।।
हे ईश्वर ! माया हो बस इतनी ,
साँसें जबतक चल रही है मेरी
भयभीत होकर न ठहर जाए
उपर से जब भी बुलावा आए
निडरता से पाँव बढ़ जाए ।।
हे सर्वेश्वर! चराचर के स्वामी,
सबके हित में काम आ सकूँ
पर अभिमान न आए पास
जीवन यूँ ना जाए बेकार
निर्भय हो वंदना कर सकूँ
चरणों में आपके बार-बार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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🙏🌹जय माँ शारदे🌹🙏
नमन मंच ,,भावों के मोती
बिषय ,,निडर,,
सत्ता के लोभियों को ईमानदारी
न भाई
बेईमानी इनके रोम रोम में समाई
जनता को मूर्ख बना अपनी तिजोरी भरते
मौका परस्त होते हैं
ए पाप करने से भी न डरते
खुद पचाने बाले बांटकर
क्या खाऐंगे
क्या चारा बोफोर्स राफेल
हर तरह के घोटाले
निडर हो करते जाऐंगे
कुछ उनसे भी सीखें
जो सीमाओं पर अडिग खड़े
देश की खातिर प़ाण भी
गवाने पड़े
काश ऐसी सोच हमारे नेताओं में
भी होती
फिर क्यों हमारी धरा
आंसुओं से अपना दामन भिगोती
स्वरचित ,,,सुषमा ब्यौहार,,
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सादर अभिवादन
06-06-2019
निडर
एक नन्हा सा बालक नादान
भोला-भाला, जग से अंजान
आत्म-मगन मंगल मोद में
झूला, बादशाह की गोद में
किलककर किंचित विस्मय
खींचा दाढ़ी तनिक न भय
अस्त्र-शस्त्र बल पौरुष हीन
है स्वयं पराश्रयी बालक दीन
कारनामे पर जग से हटकर
निबल है पर सब से निडर
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
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मंच को नमन
दिनांक-6/6/2019
विषय-निडर
पग पग पर तुम्हारा होगा सामना
मन में ना आ पाए डर की भावना
अभाव तुम्हें भटकाएँगे
वे तेरा ईमान डगमगाएँगे
वज्र बन धीर धारण करो
निडर बनकर इंतज़ार करो
जब लक्ष्य कोई बनाओगे
बाधाएँ.चुनौतियाँ तब पाओगे
कर्मठता का ख़ूब मान करो
हौंसलों से उनका सम्मान करो
सपना गर कोई धूमिल हो जाए
तेरी जिजीविषा शिथिल पड़ जाए
नए सिरे से पुनः तुम आग़ाज़ करो
सफल होकर मुक़ाम हासिल करो
डर निराकार देखा है किसने
मन के भावों संग रिश्ते इसके
डरने वाला मृत प्रायः ही होता
निडर व्यक्ति इतिहास रचाता
अत्याचार कोई जब तुम देखो
नामोनिशान मिटाकर उसे रोको
तेरे साहस का सदा होगा सत्कार
धरा भी करेगी तेरी जय जयकार
विषय संजीदा यही तो सिखलाता
निडर व्यक्ति बनता विश्व विधाता
तुम डर के सामने ना कभी झुको
निडर बनकर आगे ही आगे बढ़ो
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
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"नमन-मंच"
"दिनांक-६/६/२०१९"
"शीर्षक -निडर।"
सत्यमार्ग पर चलने वाले का
बस राह एक ही होता है
नही पैर डगमगाते कभी
वह निडर होकर बढ़ता है।
हो अंधेरा राह तो
साहस का एक दीप जलाता है
निडर होकर जब निकले वह
मंजिल स्वयं चलकर आता है।
जब तक रहे हम इस धरा पर
डर डर कर क्या जीना है
करें हमेशा सत्यकर्म
दुर्गुण से बस डरना है।
संस्कार हमारा न हो दुषित
बस हमें ध्यान रखना है
निडर होकर आगे आगे
बस सत्य मार्ग पर बढ़ना है।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव
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नमन मंच 🙏
शीर्षक-"निडर"
***********
जुबां पर सत्य और मन में हौसला है,
माँ भारती का सपूत निडर हो चला है,
हाथों में तिरंगा कांधे पर बंदूक लिये,
मेरे देश का सिपाही आगे बढ़ चला है|
चट्टानों को चीरता इस कदर बढ़ा,
निडर हो वो तूफानों से लड़ चला,
दुश्मन जा कहीं खुद को छुपा ले,
पीछे हट जा तू अपनी खैर मना ले |
दाँत तेरे खट्टे वो ऐसे करेगा,
निडर होकर सामना तेरा करेगा,
वीर योद्धा है मेरे देश का सिपाही,
उसके सामने तू ज्यादा न टिकेगा |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच -०६/०६/२०१९
विषय। -निडर
लघु कविता
निडर बन अब प्रताप सा
चहुँ ओर निरशता छाई है।
यह मांग रही बलिदान आज
सब ओर धरा है कराह रही।
इस कलयुग में है कलह मची
सब लोग खड़े हैं मौन धरे।
चितकार कर रही भारत माता
कब जन्मे गा लाल प्रताप सा।
कब रुकेगा यह अपमान मेरा
कब आएगा वीर मेवाड़ सा।
वह निडर था वह सच्चा था
वह देश भक्त स्वाभिमानी था।
मातृ भूमि हेतु सर्वस्व लुटा
जंगल में रहने वाला था।
वह रण प्रेमी वह धरा पुत्र
बलिदान हुआ था धरा हेतु
ऐसे सच्चे निडर योधा
को पुकार रही यह धरा पुनः
हे वीर शिरोमणि धरा पुत्र
हे एकलिंग दीवान सुनो।
जिस धरा हेतु बलिदान दिया
वह तुम्हें पुकार रही है आज
बस आ जाओ एक बार पुनः
भर दो सबमें एक नया जोश।
बन जाएं सब निडर फिर से
जग जाए सबमें देश प्रेम।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
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नमन मंच
विषय-"निडर"
विधा-लघु कविता
देश का सैनिक
लिए तिरंगा
खड़ा सीमा पर
दीवार बन
चलाते है गोलियाँ
दिया मुँह तोड़ जवाब
हुआ सामना
गिराए हैं बम।
वीर सिपाही का बैठ गया है डर
दुश्मन काँप रहा थर्र-थर्र
भाग गया जंगल में
है सैनिक मेरे देश का निडर।
राकेशकुमार जैनबन्धु
ग्राम-रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
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सादर नमन
"निड़र"
पंख लगाकर उडूँ गगन,
छूना है अब ऊँचाईयों को,
निड़र बन मुझको अब,
नापना है अब गहराईयों को,
हौंसलों की पतवार से,
करना है पार सागर को,
खुशियों की बूँदों से,
भरना है जीवन गागर को,
सत्य और निड़रता से ,
पथ पर कदम बढ़ाना है,
लाचार नही हैं हम अब,
जग को ये दिखाना है,
निड़रता की ले तलवार,
दरिंदों का नाश करना है,
बेटी के पिता के जख्मों को,
हम बेटियों ने ही भरना है।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
6/6/19
वीरवार
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नमनमंच भावो के मोती ।
विषय ---निडर ।
ये संसार सागर गहरा ।
कई छोटे बड मच्छो का डेरा ।
माणिक मोती भी घनेरे ।
चलना संभलकर सत्यपथ पर ।
न डरना किसी से ईमान अपना न छोडना ।
मैने हाथ थाम रखतेरा बडता चल निडर हो ।
कई कटिले पथ हे सहज हो पार कर ।
फूलो पर चलकर भूलना नही ईमान को ।होकर कर कर्म अपने पूरे निर्भिक निडर हो ।
मै हूँ न साथ तेरे गलत होने दूगी ।
माँ हूँ रक्षक बन रहूँगी साथ तेरे ।
कर बल बुद्धि विवेक से हर कार्य ।
ण
मैं हू बैठी आत्मा मे तेरी सुनना मेरी ।
दमंयती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेश
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नमन मंच : भावों के मोती
शीर्षक : निडर
दिनांक : 6 जून 2019
कविता ** निडर **
मैं निडर हूँ
क्योंकि मेरा देश निडर है
क्योंकि मेरी संस्कृति निडर है
क्योंकि मेरे देश के अवाम निडर हैं
क्योंकि मेरे देश के नेता
मेरा देश का प्रधानमंत्री निडर है
जहाँ भाईचारा हो
निडरता का शांति का
वातावरण हो
जहां शांति हो
जहां वैमनस्य ना हो
जहां प्यार प्रेम का भाव हो
जहाँ पर एक दूसरे के प्रति
समर्पण का भाव हो
जहाँ पर देश के लिए
मर मिटने का भाव हो
वहाँ का बच्चा बच्चा निडर होता है
वहां का कण-कण निडर होता है
वहाँ का पत्ता पत्ता निडर होता है
निडरता का अर्थ
भय से मुक्ति नहीं है
निडरता का अर्थ है
अमन चैन शांति विकास और समृद्धि
देश और व्यक्ति की निडरता का
यही सर्वोत्तम भाव है
मौलिक , स्वरचित
राजकुमार निजात
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-06/06/2019
शीर्षक-निडर
विधा-हाइकु
1.
निडर नेता
बड़े फैसले लेता
देश हित में
2.
सत्य के आगे
निडर हुए सब
झुकता रब
3.
मिसाल बनो
बनकर निडर
बढ़ते चलो
4.
उठे कुल्हाड़े
सहम गए पेड़
रोती है धरा
5.
ले तलवार
निडर हुई मनु
किया प्रहार
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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2*भा.6/6/2019/गुरुवार
बिषयःः#निडर#
विधाःः ःकाव्य
मै ,जब अपनी मै से डरूं।
मैं, जब स्वआत्मा से डरूं।
फिर किसी से क्यों डरूं मैं,
सचमुच निश्चित निडर रहूं।
आत्मबल मेरा बडा हो।
ईश जब पीछे खडा हो।
सत्य संस्कार मेरे हिया में,
निडरता मनोबल बडा हो।
निश्छल जब हृदय हमारा।
न विवशताओं का सहारा।
यदि निडरता मन में भरी हो,
प्रतिकार दें दुश्मन को करारा।
चरित्रवान बनकर रहें हम।
नहीं भीरू बनकर रहें हम।
कायरता कभी छू न सकेगी,
गर आत्मा से डरकर रहें हम।
स्वरचितःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री रामरामरामजी
#निडर# काव्यः ः
6/6/2019/गुरुवार
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
06/06/2019
आज "प्रताप जयंती" पर वीर शिरोमणि पर चंद भाव समर्पित... और शत-शत नमन 🌹🌹🙏
जिसकी हुँकार से मुग़ल साम्राज्य दहल गया,
निडरता का प्रतीक संसार में अमर बन गया,
घायल हुआ सौ बार लेकिन संकल्प टूटा नहीं
मरकर भी प्रताप दुश्मन को कायल कर गया l
धन्य है वो माँ जिसने प्रताप को जन्म दिया l
मेवाड़ की धरा को अपने लहू से सींच गया,
मातृभूमि रक्षार्थ गर्दन कभी झुकी नहीं,
गौरव और सम्मान का इतिहास लिख गयाl
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन भावों के मोती
दिनाँक - 6/6/2019
आज का विषय - निडर
विधा - वर्ण पिरामिड
रे
मन
चंचल
मदमस्त
बन तितली
निर्भीक निडर
कर रहा विचर
ये
वीर
प्रतापी
शौर्यवान
दे बलिदान
निडर जवान
देश पर कुर्बान
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
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नमन भावों के मोती
06/06/19 गुरुवार
विषय-निडर
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
होता निडर
बचपन जितना
बुढापा नहीं👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
रह निडर
डर के आगे जीत
पक्की है बात👍
💐💐💐💐💐💐
जीना निडर
मरण का खौफ न
जीने का डर💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐
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नमन मंच को
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 06/06/2019
विषय :- निडर
शूरवीर व निडर वो...
माँ भारती का वो सपूत था...
झुका दिया जिसने मुगलिया परचम...
महारानी जयवंता का जाया वो सुत था...
राणा उदय का उबलता वो रक्त था...
एकलिंग जी का वो अनन्य भक्त है...
मर्यादा थी उसकी श्री राम सी...
तमशीर चलती जैसे हर याम सी...
शौर्य उसका अखंड था...
तेज उसका प्रचंड था...
निर्भिकता का वो पर्याय था....
विक्रमादित्य सा उसका न्याय था..
दगाबाजी से हारा वो..
आज भी अखर रहा..
जुल्म और अन्याय के खिलाफ....
संकल्पित सदा मुखर रहा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, निडर
दिन, गुरुवार
दिनांक, 6,6,2019,
हमारे निडर सपूतों के रहते ही,
देश अपना भारतवर्ष महान है।
हमेशा आजादी के लिए लड़े वो,
कभी भी सहा नहीं अपमान है।
अपने वीर शहीदों की गाथाऐं,
कितनी अनुपम और महान है।
बड़े बड़े आघातों का कर डाला,
उन्होंने निडरता से काम तमाम है।
शौर्य हमारी सेना का है अनूठा,
दुश्मन हो जाता बड़ा हैरान है ।
दुनियाँ में निडर रहे इंसान अगर तो,
उसका कहीं होता नहीं अपमान है।
सही बात कहने से क्या डरना,
होती यही मानवता की पहचान है।
अगर निडरता से हम मन में ठाने,
पल में भष्टाचार हो जाये गुमनाम है।
आतंकवाद सब आतंकी मिट जायें,
पहनें जो हम निडरता का आभूषण है।
जाति धर्म के जो चलाते हैं चक्कर,
स्वार्थियों को निडर हो टक्कर देना है।
हमें छोड़ दिखावे की इस दुनियाँ को,
निडर होकर सच को ही अपनाना है।
सदा आन बान की खातिर ही जीना,
हमको कहीं पर शीश नहीं झुकाना है।
हमसे कहा हमारे ग्रंथों ने भी ऐसा,
इसको कई महानुभावों ने अपनाया है।
आज भी दूर दूर तक नाम है उनका,
उनको सब लोगों ने शीश झुकाया है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
भावों के मोती
शुभ संध्या वंदन
विषय =निडर
विधा=हाइकु
😯😯😯😯
रख हौसला
बने आप निडर
आशां सफर
मौत का कुआ
निडर हो चलाते
कई वाहन
हमारी सेना
देश की करे रक्षा
हो के निडर
वह निडर
शेर साथ खेलता
राजा भरत
हो के निडर
करते प्रदर्शन
आज के बच्चे
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
06/06/2019
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन सम्मानित मंच
(निडर)
*****
विश्वास आत्म का शुचि दृढ़तर,
सदा निडर मानव अंतस में,
तनिक जितेन्द्रिय शुचि अचला पर,
भय भी निश्चित उसके वश में।
साहस अदम्य से सम्पूरित मन,
निडर भाव का शुचि प्रतीक,
चढ़कर जो सोपान प्रगति के,
लहराता ध्वज सदा शिखर पर।
सत्पथ का अनुगामी क्षिति पर,
निडर भाव प्रतिमूर्ति सुनिश्चित,
लक्ष्य बिलम्बित किंचित सम्भव,
किन्तु सफलता नहीं अनिश्चित।
अन्तर्स्वर अनुरूप धरणि पर,
भावानुभूति जिनकी शुचितामय,
परमशक्ति के निकट मनुज शुचि,
रहते जीवन - पर्यन्त निडरतम।
निर्भीक साहसियों की गाथाएँ,
इतिहास पृष्ठ पर अंकित अगणित,
शिक्षाप्रद जिनका जीवनवृत्त शुचि,
वर्तमान युग हित अति समुचित।
--स्वरचित--
(अरुण)
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
शुभ संध्या
।। निडर ।।
द्वितीय प्रस्तुति
निडर भला कोई कैसे हो
जब आत्मा से मेल नही ।।
काया तो माटी को होऐ
आत्मा की कोई जेल नही ।।
जब हुआ हुआ काया प्रेम
आत्म ज्योत में तेल नही ।।
मन का मैल न गया कभी
मन में कभी नकेल नही ।।
भय को बढ़ायें कर्म हमारे
अन्तर्द्वन्द में कौन फेल नही ।।
भगत सिंह सा शूली चढ़ना
''शिवम्" आसान खेल नही ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 06/06/2019
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शीर्षकः-धमकाने का प्रयास भूल कर भी न करना
नमन भावों के मोती नमन आ0वीना शर्मा वशिष्ठ जी
आज का शीर्षकः- निडर
निड़र हैं हम धमकाने का प्रयास हमको न करना।
सब कुछ सीखा, पर नहीं सीखा किसी से डरना।।
केवल ऊपरवाले से ही जानते हैं डरना हम श्रीमान।
उसके बनाये हुय़े बन्दों से हमें आता नहीं डरना।।
यह न समझना आता है हमें केवल कलम चलाना।
वक्त आने पर जानते हैं चक्र सुदर्शन को उठाना।।
मारा है दुर्दान्त हत्यारों ने पूर्व में अनेक लेखको को।
पर मार न पाया कोई शक्तिशाली उनके कलम को।।
आये है न जाने कितने ही सिकन्दर इस संसार में।
हो नहीं पाया सफल कोई कलम अवरुध्द करने में।।
लेखकों को सत्य लिखने से कोई रोक नहीं सकता।
काने को तो काना लिखेगा समदर्शी नहीं लिख सकता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादावादी”
स्वरचित
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बुधवार,दि.15/5/19.
नमनःभावों के मोती
दि.6/6/19
शीर्षकः निडर
घनाक्षरीः
*
विश्व-गुरु भारत की ,अस्मिता अखंड रहे,
निडर, निशंक गिरि - शीर्ष चढ़ते रहो।
ग्यान , बल अर्जन में , करो न प्रमाद कभी,
'चरैवेति' को न भूलो , आगे बढ़ते रहो।
विविध दिशाओं में,बनाओ नये कीर्तिमान,
मातु भारती की , भव्य छवि गढ़ते रहो।
नरता - विकास हेतु , प्रगति - प्रकाश हेतु,
समता - सुहास के , सुपाठ पढ़ते रहो।।
--डा.'शितिकंठ'
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नमन् भावों के मोती
6जून19
विषय निडर
विधा हाइकु
निडर रह
खुद राह बनाते-
जीवन पुष्प
चौथा स्तम्भ है
निडर पत्रकार-
लोकतंत्र में
निडर लोग
सफलता चूमते-
संघर्ष कर्म
पंछी करते
निडर विचरण-
आसमान में
निडर शासक
महत्वपूर्ण निर्णय-
विश्व प्रभाव
निडर राणा
गौरवपूर्ण कथा-
स्वदेश प्रेम
निडर चूमें
एवरेस्ट पर्वत-
शौर्य प्रतीक
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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नमन मंच को
दिनांक-06/06/2019
विषय-निडर
निडर होकर चलना है अपने कर्मपथपर
परवाह नहीं करनी है प्रशंसा एवं आलोचना की ।
निडर होकर खड़े होना है अन्याय और असत्य के खिलाफ
बिना डर के बलशाली और प्रभावशाली लोगों के ।
निडर होकर खड़े होना है कुरीतियों एवं अमानवीयता के
बिना सोचे निजी फायदों और नुकसान के ।
निडर होकर चलना है अपनी सभ्यता और संस्कृति को मानते हुए
बिना सोचे कि कहीं पिछड़े की मुहर न लग जाए ।
निडर होकर रक्षा करनी है मानव मूल्यों की
बिना सोचे कि कहीं इस रास्ते में अकेले न पड़ जाएँ ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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भावों के मोती दिनांक 6/6/19
निडर
लेना जोखिम जिन्दगी में
तो बनों निडर हरदम
लडता है सिपाही
सीमा पर
निडरता के साथ
पाता है अवार्ड
शान के साथ
चलो सत्य मार्ग पर हमेशा
जीवन में रहो
निडर बन कर हरदम
निडर हो , गर जीवन में
मिटा सकता नही कोई
हस्ती हमारी
बच्चे बने निडर जीवन में
आऐ उनमें निखार, हरदम
स्वतंत्र देश का है मूलमंत्र
निडर रहे मतदाता हरदम
मजबूत हो लोकतंत्र भारत का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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