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ब्लॉग संख्या :-413
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक कोयल
विधा लघुकविता
10 जून 2019,सोमवार
कोकिलकंठी लता माधुर्य
जिसने नाम बढ़ाया जग में।
मिस्री घुली अपनी वाणी से
राज करे जग के तन मन में।
कोयल बैठी वृक्ष शाख पर
कुहू कह आकर्षित करती।
अपनी मधुर प्रिय वाणी से
स्नेह सुधा जीवन में भरती।
कौआ काला कोयल काली
रंग रूप भी अलग नहीं है।
वाणी का चातुर्य कोयल में
वह मीठापन कँही नहीं है।
जीवन में कोयल सम बोलो
यह जीवन की एक कला है।
परहित डग पर चरण धरो
मधुर वाणी में सदा भला है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
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सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
10/06/2019
"कोयल"
कोयल काली
बड़ी ही मतवाली
सुरीली गाती
कोयल गीत
संदेशा देती प्रीत
दर्द ही मीत
कोयल प्यारी
गाती अंबुआ डाली
भोर की आली
कोयल बोली
दर्द भी हर लेती
जीना सीखाती
काली कोयल
दर्द अपनी गाती
मधुर बोली
अमुआ डाली
कोयल मतवाली
गीत लुभाती
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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माँशारदे बुद्धि विवेक वर दे ।ज्ञान कीअंतस् ज्योति प्रज्वलित करके माँ
ज्योतिर्मय पथ कर दे ।
भावों के मोती मंच को नमन
दिन सोमवार :-10/6/2019 विषय :-कोयल ।
विधा:-पद्य कविता
कोयल :-
कुहुक रही कोयलिया देखो
फिर अमुवा की डाल पर ।उसके इस कोमल स्वर में
जाने कितनी पीर छिपी है
या दाहक मलय समीर छिपी
मगर मुग्ध दुनिया होती है
सिर्फ शब्द के जाल पर इसीलिये कहुकी कोयल
क्या, तू अमुवा की डाल पर ।
विकल वेदना कभी न प्रियतम
यहां किसी की जान सका
हृदय कुंज में आग लगी तो
ऋतु बसंथ का दान कहा ।
हृदय भार कुछ हल्का कर ले
स्वर लहरी की ताल पर
इसीलिये कुहुकी कोयल
क्या, तू अमुवा की डाल पर ।
स्वरचित :-उषासक्सैना
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"नमन भावों के मोती"
विषय-कोयल
विधा-लघुकविता
कंठ कोयल के बिन्द गए हैं
मीठा राग सुनाते-सुनाते
हर तरफ हाहाकार मचा है
लोग सब कौआ बन जाते।
फिर भी कोयल निरंतर
अपना राग अलाप रही है
मत झगड़ो आपस में तुम
ये आवाज लगा रही है।
हो जाए शान्ति सब ओर
धरा खुश,तब हो जाएगी
गाऊँगी मैं जोर-जोर से
धरा ही स्वर्ग कहलाएगी।
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
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🙏सुप्रभात 🙏
भावों के मोती
=============
10/6/19
विषय-कोयल
विधा-हाइकु
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1)
गाती कोयल
नभ व्योम गुंजित
विरह गान ।।
2)
काली कोयल
रंग पे मत जाना
गीत सुनना ।।
3)
पिक पलास
विरह ने जलाया
कोयला-आग ।।
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क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ ग
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🌳 कोयल 🌳
स्वर में नही तेरा कोई जोड़
कोयल तूँ है वाकई बेजोड़ ।।
मगर बेचारे कोऐ के संग
ठीक नही तेरा यह मखौल ।।
आँख में उसकी धूल झौंकना
अण्डे उसकी नीड़ में रखना ।।
वो ही मिला उल्लू बनाने को
उसका ही घर था तुझे तकना ।।
गाने में तूँ रहती मतवाली
नही होती जो देखाभाली ।।
क्यों फिर बच्चे पैदा करती
निकली तूँ मन की काली ।।
कैसे कैसे यहाँ मिजाज
एक तरफ दिलों पर राज ।।
दूसरे कई बिगड़े ''शिवम"
मिल ही जाते हैं अन्दाज ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/06/2019
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मंच के नमन 🙏
सुप्रभात मित्रों 🙏💐
दिनांक- 10/6/2019
शीर्षक- "कोयल"
विधा- कविता
**************
काली कोयल है मतवाली,
मीठी, सुरीली इसकी वाणी,
रंग पर इसके कोई न जाना,
कोयल तो है गुणों का खजाना |
आम के पेड़ पर बैठ कूहकती,
फलों में खूब मिस्री घोलती,
कू, कू, कू जब यह चहकती,
ताजगी सी हर जगह महकती |
कोयल से मिलती सुन्दर सीख,
अच्छे गुणों से मिलती है जीत,
रंग गोरा हो या फिर हो काला,
इंसान होना चाहिए गुणों वाला |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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🌹🌹🙏🙏जय माँ शारदे🙏🙏🌹🌹🏵🏵🌷🏵🌷🏵🌷🏵🌷🏵🌷🏵🌷🏵🌷🏵🌷
नमन मंच ,भावों के मोती,,
10 /6/2019/
बिषय ,,कोयलिया,,
मोरे आंगना में अमुवां को बिरछा
कोयलिया नित ही आती है
बैठ के डाली पे करती है कुहू कुहू
जाने क्या क्या कह जाती है
जिनके पिय परदेश बसे
संदेशा उनका सुनाती है
ब्यथित हृदय बिरहन खड़ी
ए मन की ब्यथा बढ़ाती है
दूर देश में बाबुल की बिटिया
वो नयन अश्रु बहाती है
जा री कोयलिया बाबुल से कहना
भैया को बहना बुलाती है
और वही नवबधु की कोयलिया
मायके की बात रास न आती है
कब लेने को आऐंगे सजनवा
प्रीति के गीत वो गाती है
किसी को देती प्यार का संदेशा
किसी की प्यास बढ़ाती है
देख सखी नटखट कोयलिया
मेरे आंगना में रोज ही आती
है
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार,,
,🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌼🌼🌷🌷🌸
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक -कोयल
विधा- दोहे
बौर आम पे आ गया, कोयल छेड़े तान।
सुनकर मीठी बोलियां, खिले सहज मुस्कान।।1
सबका मन हर्षित करे, गाए स्वागत गीत।
श्याम वर्ण इसका रहे, काग न इस का मीत।।2
नीड़ बनाती है नहीं , ये कोयल का भेद।
दूजे पंछी पालते, इसके तन का स्वेद।।3
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
10/6/2019
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"चलो जिन्दगी चलें वहांं"
चलो जिन्दगी चलें वहां
जहां सुहानी शाम है
कोयल गाती रहती तानें
अधरों पर मुस्कान है,
चलो जिन्दगी चलें वहां l
सोनें सी है धरती उजली
सूरज दमकाए उसका रूप,
मेघ चूमते माथा जिसका
मधुर सुहानी चंचल धूप,
चलो जिन्दगी चलें वहां l
खुले गगन में बहती सन-सन
मदहोशी पवन-धार है,
भोर भये धोरों पर खिलता
क्या सुन्दर संसार है ?
चलो जिन्दगी चलें वहां l
जीवन महके, रूतें बदलती
चांदनीं ज्यूं उमरिया ढलती,
देवों को भी प्यारी लगती
मेरी जननी, मेरी धरती,
चलो जिन्दगी चलें वहां l
" कभी बुला लें उसी भोर में
बहनें गाएं गीत जहां रागों में,
मीठी त्रृिदम चंग की बजती
मोर संग बोले बागों में,
ऊंचे मगरों में बजती बंसी
और चमके बिजली घनघोर,
मन का पंछी जीवन पिंजरे से
उड़ चला पश्चिम की ओर,
चलो जिन्दगी चलें वहां l"
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर (मैसूरू)
९४८२८८८२१५
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⛳🏆भावों के मोती🏆⛳
शीर्षक -कोयल
१०/६/१९@०९:०७
कोयल काली होकर भी।
मंत्रमुग्ध सबको करती।।
मानव सु सभ्य होकर भी।
पीडा देता पीडित करता।
काली बदरुप कोयल यह।
जब भी बोले मीठा बोले।
न क्रोध मे कुछ भी बोले।
षड् ऋतुओं मे एकसमान।
कोयल कूके बोले कोयल।
जैसे कानों मे मिश्री घोले।
वाह कोयल मानव से उत्तम्।
काली होकर धवलकीर्ति।
⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
०९१२
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कितना भी देखू, जी ना भरा
मरूधरा ओै" मरूधरा,
चलती बयार कुछ मुस्कुरा
मरूधरा ओै" मरूधरा l
मेरी कल्पना यहां
खो सी जाती
इन वादियो में
सो सी जाती
लगता है अपना
ज़र्रा - ज़र्रा
किसे चाहिए
सब हरा - भरा,
मरूधरा ओै " मरूधरा l
ये मधुर शाम और धूप-छांव
ये सरल गांव, सब तेरे नाम
ठण्डी सी रात, तारों के साथ
बहती बयार,गाये मल्हार
मेरे मन में,जाने कब से
कोई मांड संगीत
बज़ सा रहा ,
मरूधरा ओैै " मरूधरा l
मैं सोचता, तेरा प्यार लूँ
मेरी सांस भी, जीवन भी तूँ ,
कभी सावन तेरा
सिंगार करे ,
कभी फागुन तुझको
प्यार करे,
तेरी वादियों में
गुंजे है वांणी,
कहीं कोयलें,तो पपीहरा
मरूधरा ओै" मरूधरा l
तेरी आँधीयां, तेरी गर्म लू
बर्फीली शाम, सावन भी तूँ ,
क्या नाम दूं, तूँ हर खुशी
तेरे रूप में,मेरी जिन्दगी,
मेरी आत्मा,ये फैली धरा
मेरा प्यार है, तुझको सदा,
तेरी खोल दे बांहें ज़रा
मेरे नैंन से, आँसू झरा,
मरूधरा ओै" मरूधरा ll
श्री लाल
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नमन ,🙏भावों के मोती
🙏🌹🌺🌹🌺🌹🙏
विषय:-कोयल
विधा:-तुकांत कविता
,🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
बंशी बट पर राधिका जोह रही है वाट
कान्हा जाने है किधर मधुर मिलन की आस
कोयल गाएं गीत सुरीला मन क्यों है उदास
विरह वेदना को जो हरे कान्हा नहीं है पास
पाती भेजी श्याम को नीर बह रहे आज
देख न पाएं श्याम तो कोयल भी है उदास
राधा के तो श्याम है हृदय जले मधुमास
बरखा की बूँदें गिरे तन का बढाएं ताप
कोयल का गीत कान्हा राधा का संताप
बंशी तेरी मोहती मन मधुर सुनाये राग
लेकर तेरा नाम फिरूँ जोगन बनी मैं आज
बंशीबट पर पूछ रही सखियाँ मुझसे आज
किस निष्ठुर की जोह रही राधे प्यारी बाट
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
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नमन् भावों केमोती
10जून19
विषय कोयल
विधा लघु कविता
कोयल चिड़िया अति बढ़िया
सुर सामाग्री अदभुत चिड़िया
कोयल कूजें अमवा की डलिया
मीठी लोरी बगिया - बगिया
काली-काली कोयल चिड़िया
सुंदर रंग में लगती बढ़िया
श्याम वर्ण की प्यारी चिड़िया
मनमोहक लगती कोयलिया
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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भावों के मोती
10 06 19
विषय - कोयल
भुला बिसरा मधुर जमाना
जब पेड़ों पर कोयल काली
कुहुक कुहुक कर गाती थी
डाली डाली डोल पपीहा
पी कहां की राग सुनाता था
घनघोर घटा घिर आती थी
और मोर नाचने आते थे
जब गीता श्यामा की शादी में
पूरा गांव नाचता गाता था
कहीं नन्हे के जन्म पर
ढोल बधाई बजती थी
खुशियां सांझे की होती थी
गम में हर आंख भी रोती थी
कहां गया वो सादा जीवन
कहां गये वो सरल स्वभाव
सब शहरों की और भागते
नीद औ चैन गंवाते हैं
या वापस आते वक्त साथ
थोडा शहर गांव ले आते हैं
सब भूली बिसरी बातें हैं
और यादों के उलझे धागे हैं।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
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मंच को नमन
दिनांक - 10/6/2019
विषय -कोयल
मैं कोकिला कोयल काली
तुमको कैसे गीत सुना दूँ !!
उजड़े चमन के मौन क्रंदन को
कहो ,सुर मीठे में कैसे गा दूँ !!
प्रकृति मात्र ही तो है मेरा आसरा
वो भी रे मानव ! तूने ही छीना है
वन उपवन को काट -काटकर
तूने केवल अपना घर ही सींचा है
नदी -झरनों का वो मीठा पानी
ज़हर उसमें भी तूने ही घोला है
बूँद -बूँद को मेरे सब साथी तरसे
तेरे विवेक का पेंच ही अब ढीला है
वसंत ऋतु मुझे अति प्रिय लगती
तूने इसमें हस्तक्षेप कर डाला है
भौतिकता का दोयम पुजारी बन
ऋतु चक्र पर भी डाका डाला है
जब तक तू मात्र मानव था रे !
मैं तेरे लिए ही गाया करती थी
तेरे जीवन की निर्मल सुंदरता को
मीठी वाणी में सुनाया करती थी
आज देख तेरे नैतिक पतन को
मैं अपना गाना भूल चुकी हूँ
कैसे सुन पाओगे मुझे आते जाते
समय रहते हुए अगर तुम ना चेते
अस्तित्व मेरा बड़े संकट में है
यह बात तुम्हें समझनी होगी
धरा-जगत के परोपकार से तुझे
मेरी वह मीठी वाणी लौटानी होगी
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
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भावों के मोती
सादर प्रणाम
विषय =कोयल
विधा=हाइकु
स्वर तुलना
कोयल से करते
हम व आप
काली कोयल
आए आम मौसम
कूकती कूह..
सम्मान पाएं
कोयल सी आवाज़
देश की बेटी
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
10/06/2019
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नमन मंच : भावों के मोती
शीर्षक : कोयल
दिनांक : 10 जून 2019
स्वरचित कविता
"कोयल"
प्यारी और कजरारी कोयल
तुझपर जाऊं वारी कोयल
मीठी सुर-लहरी है तेरी-
लहराएं तरू पल्लव कोंपल.
मिसरी से हैं तेरे बोल-
सुनने को हैं सब आतुर,
आम्र-मंजरी लहक रही है-
बहके मोर,शशक,दादुर.
पाखी तू श्यामल-तन की-
सबके मन में बसती है,
कुहू कुहू की टेर लगाकर-
सुंदर सृष्टि रचती है.
स्वरचित--
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
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10/6/2019
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, मित्रों
कोयल
💐💐💐
कोयल होती है काली,
कौवा भी होता काला।
पर कोयल की है मीठी वाणी,
कौवा कर्कश है बोलता।
कोयल की देते उपमा लोग,
कोकिल कंठी कहते,
जैसे लता मंगेशकर को सब,
कोकिल कंठी बोलते।
रूप से होता नहीं है कुछ,
गुण, अवगुण मायने रखता।
कभी बोलो तो मीठा बोलो,
अपनी वाणी में मिश्री घोलो।
सबके मन में बस जाओगे,
हो सके तो कोयल सा बोलो।
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स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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दि- 10-6-19
शीर्षक- कोयल
सादर मंच को -
🌻🏵 कोयल 🏵🌻
🌺🌴 अरसात सवैया 🌴🌺
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🌻 211*7+212 🌻
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
है ऋतुराज खिलीं लतिका ,
वन-बाग सुधा महके बहुरंग है ।
चूनर पीत बिछी सरसों खिलि ,
आम लदे बहु बौर , विहंग है ।।
कोयल कूक रही बगिया ,
मद मोर नचैं सुर सुरभि तरंग है ।
गुंजत भ्रमर सुनावत राग ,
वसंत सभी मन होत उमंग है ।।
🌻🍀🌲☀️🌺🌹
🌷☀️**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
मो0-8532852618
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भावो के मोती
सोमवार 10/6/2019
आदरणीया kusum Kothari जी
आज का विषय-कोयल
अपनी ढपली अपना राग।
खादी पर है कितने दाग।
कोयलियाँ ने छोड़ा बाग़,
काँव-काँव करते हैं काग।
सत्ता के मद में हैं चूर,
फन फैलाये बैठे नाग।
गिरगिट बदल रहे जब रंग,
कैसी होली कैसा फाग।
मानवता हो सबका धर्म,
फैले ना नफरत की आग।
नेता लूट रहे हैं देश,
जाग "निगम"अब तो तू जाग।
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बलराम निगम,कस्बा-बकानी,जिला-झालावाड़ राजस्थान
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नमन मंच
दिनांक .. 10/6/2019
विषय .. कोयल
********************
कोयल सी बोली थी उसकी,
हिरनी जैसी आँखे थी।
छोटी सी बच्ची ट्विंकल जो,
माँ की राज दुलारी थी।
.....
मार दिया जिसको वहसी ने,
मानवता लाचार हुई।
तीन साल की उस बच्ची का,
कई टुकडो मे लाश मिली।
.....
राजनीति गहराई है फिर,
ना उसको इन्साफ मिली।
शेर हृदय भी सुलग रहा है,
ऐसी घटना आम हुई।
.......
क्या बेटी का जन्म विधाता,
इस जग मे अब पाप हुई।
मर्यादा किसने है तोडो,
बेटी अब लाचार हुई।
........
शोक नही संताप हरो अब,
पाप का मिल नाश करो अब।
जिसने ये कुकृत्य किया है,
दण्ड भी मिल कर आप करो अब।
..........
रूह काँप जाए पापी की,
सोच कभी आप बढे।
पढे लिए बचपन बेटी का,
देश का तब अभिमान बढे।
.......
स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
10/6/2019
प्रदत्त बिषय-कोयल
विधा-गीत
............
बेशक मैं रंग रूप की
काली हूँ
पर मैं कोयल
मतवाली हूँ ,
आम के पेड़ों पर
जब बौर घनेरे आते है
स्वयं ही तब मेरे कदम
उस ओर मुड़ जाते हैं
घने पेड़ के पत्तों में
छिप कर मैं बोलती हूँ
दिखावे से दूर हूँ बस
मैं अपनी बोली बोलती हूँ
मैं अपने गुणों से
सबका दिल बहलाती हूँ!
गुणों का खजाना मेरे अंदर
जो सब पर मैं लुटाती हूँ
बस इतनी ही सबसे
आज मैं विनती करती हूँ
रूप रंग पर कभी न जाना
बात खरी मैं कहती हूँ
@वंदना सोलंकी
#स्वरचित
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नमन मंच को
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 10/06/2019
शीर्षक :- कोयल
कोयल होकर भी काली..
है वो कितनी मतवाली..
वाणी में भरकर मिठास..
कूकती वो डाली-डाली..
घोलती मधुरस कानों में..
बनकर स्वरांगिनि कोयल..
कंठ में साजे जैसे सरगम..
मधुर तान सुनाती कोयल..
डाल अमिया बड़ी सुहाए..
गीत मधुरिम वो सुनाए..
पवन चले जैसे ले अंगारे..
तप्त दुपहरी सर्र-सर्र गाए..
कोयल की है कूक प्यारी..
है कोयल सभी से न्यारी..
रंग साँवला मीठी वाणी..
कुदरत की है कलाकारी..
कुरूपता है पर कुंठित नहीं..
देती संदेश सदा सद्भावना का..
शांत चित्त और मधु स्वभाव..
नहीं भाव कोई दुर्भावना का..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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तिथि - 10/6/19
विषय - कोयल
जब जब तुम बातें करो,मुँह में मिसरी घोल
कोयल से मीठे लगें प्रिय तुम्हारे बोल
कोयल काली हो भली मीठे गीत सुनाय
जो नारी मृदुभाषिनी वह सुंदरता पाय
कोयल कूके बाग में बन में नाचे मोर
अच्छे दिन भी आएंगे होगी नूतन भोर
कोयल कौवे से कई , पंछी हुए अनेक
कोयल ही लागे भली , गाती कितना नेक
कोयल रहती पेड़ पर ,मत काटो तुम पेड़
पंछी सब मर जायेंग,गर काटे जो पेड़
सरिता गर्ग
स्व रचित
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भावों के मोती दिनांक 10/6/19
कोयल
रूप रंग पर जाओ मत
मधुर वाणी है सब से मुख्य
कोयल की बोली से
मन हो उठे मयूर
कोयल के सब दीवाने
होती जब की वह कारी
बगिया में चहके जब वो
टूटे लोगों का ध्यान मगन
घुमे अमराई जब कोयल
कुहू कुहू से गूंजे बगिया
कृष्ण की बाजी बासुरिया
राधा डोले संग सखिया
सीख देती है सबक कोयल
काले गोरे का न भेद करो
सब है उस दाता के बच्चे
रहो मानव बन कर सच्चे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन मंच
10/06/19
विषय कोयल
***
ये रचना प्रस्तुत करने में किसी की भावनाएं आहत करने का मक़सद नहीं है ,पर कोयल के माध्यम से आज के समाज को दिखाया है ।
मेरे विचार गलत भी हो सकते हैं । क्षमाप्रार्थी हूँ.
**
कौवे का केवल तन काला
कोयल का मन भी काला है ।
कौवे की कर्कश वाणी में
सच्चाई का बोलबाला है ।
चाशनी सी मीठी बोली
में घोटाला ही घोटाला है ।
नर और मादा कोयल दोनों
समाज की रीति बताते हैं ।
नर कोयल मीठा गा गा कर
अपना सिक्का चलाता है।
पुरुष प्रधान समाज का
वो आईना बन जाता है ।
दूजा अंश नष्ट कर मादा
दूसरे नीड मे वंश बढ़ाती है।
नारी ही नारी की दुश्मन
ये सच जग को बतलाती है
मीठी वाणी की शिक्षा
पहले कभी अनमोल रही
आज का समय यही कहे
जो मीठा बोले तो सतर्क रहो।प
स्वरचित
अनिता सुधीर
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
आज का विषय कोयल,
हाइकु गीत,
----------------
मन की नदी,
उठ रही लहरें
प्यार कर लो।।
हम जी रहे,
नेह रस तो घोलो,
चाँदनी रात,
ज्वार बाकी,
घनी अमराई मे
कोयल बोली।।(कोकिला बोली)
जगत मेला,
नश्वर जग हँसा,
साँझ की बेला।।
ढलता जाए,
दिन रात उमर,
प्यार कर लो।।
भू चाँद तारे,
अनुपम कृति है,
जिसने रचा,
धुली चाँदनी,
मुसकाती कमल,
नीले आकाश,
सावन आया,
सपनो को लेकर,
सुधि जगाए,
बहता पानी,
अपनी धुन गाए,
प्यार कर लो,
दो नही प्रिय,
द्वैत गाथा भुला के,
प्यार कर लो।।
स्वरचित हाइकु गीतकार देवेंद्र नारायण दास बसनाछ, ग,।।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन भावों के मोती
10----06------19
विषय-----कोयल
विधा---हाइकु
💐💐💐🎂🎂🎂
(१)
ऋतु बसन्त
कूकी जब कोयल
हिया घायल👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
तन की काली
पिऊ न सेती अण्डे
मन की मैली👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
कोयल काली
है पहचानी जाती
कुहू की बोली🎂
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू "अकेला"
💐💐💐💐💐💐
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन भावों के मोती ,
आज का विषय, कोयल,
दिन, सोमवार,
दिनांक, 10, 6, 2019,
श्यामल शरीर मनभावन नहीं,
वाणी भधुर मोहक अति वहीं ।
सुन विस्मृत हों क्लेश सब ही,
रीत बोली की कोयल कह रही ।
किसको पता कितनी है जिंदगी,
हम बाँट लें यहाँ पै हँस के खुशी ।
हरेक खुशी मीठे बोल ही में छुपी,
समझा है जो जी उसी ने जिंदगी ।
आज तो नफरतों में दुनियाँ फँसी,
सब को ही तलाश है सुकून की ।
हस्ती मिट रही राग अनुराग की,
सदा चाहिए कोयल के राग की।
हों हरी भरीं जो यहाँ पर वादियां,
कुँहुकें कोयल पेड़ों की डालियाँ ।
खिल उठें सूखीं मन की कलियाँ,
बर्षा हो प्रेम की महक उठे दुनियाँ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
10-6-2019
विषय :- कोयल
विधा :-दोहा
निशि काली सी कोकिला , अति काला है वेश ।
कंठ मधुर से बोलती , देती गुण संदेश ।।१।।
मिले बढाई गुणों को , रूप चार दिन होय ।
चाहें कोकिल कंठ सब , रूप न चाहे कोय ।।२।।
विरहिण कोयल कूकती , विरह लगाई आग ।
विरह अगन काला किया , पिय बिन सूना भाग ।।३।।
करे प्रखर पिक काकली ,होते पुलकित प्राण ।
देख बंद अलि कमल में , मदन बींधता बाण ।।४।।
कीट मकौडे झालियाँ , कोयल का आहार ।
सिर्फ आम पर कूकती , खाय नहीं
फल चार ।।५।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 10-6- 2019 (सोमवार)
विषय : कोयल
हाइकु
1
काली है पर
सबको है लुभाती
दीवानी सभी
2
मन को मोहे
कोयल की पुकार
हृदय तृप्त
3
कोयल तेरी
बसेरा है निराली
आमों की डाली
4
हर्ष अपार
मीठी स्वर विख्यात
मशहूर है
यह हाइकु मेरी स्वरचित है
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
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नमन "भावो के मोती"
10/06/2019
"कोयल"
विधा---मुक्तक
################
बागों में जब आई कोयल,
मीठी गीत सुनाई कोयल,
गीतों से दे प्रीत संदेश,
दर्द अपनी छुपाई कोयल।
काली हूँ पर हूँ बड़ी मतवाली,
कूकती अमुआ की डाली-डाली,
अपने गमों को भूल जाए सभी,
गीतों से सबके मन को लुभाती।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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कोयल काली पर भनभावन ।
मधुरिम गीत सुनाती ।
नही पालती अपने बच्चे ।
कौवे के घोसले मै अंडे देती।
डाली डाली फुदकर कीट भक्षण करती ।
उषाकाल मे सुन मधुर कूक उसकी ।
मुनिया बिछौना त्याग आँगन मे ।
खडी पेड पर बैठी कोयल से बतियाती ।
सुन सखी कहाँ सीखी मधुर गान ।
कही कान्हा से तो नही ।
याद उसकी आती तेरी मधुर तान सुन ।
मनभावन कोयल मीठी बोली हृदय को भाती ।
दमंयती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेश ।
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
10/06/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"कोयल"
(1)🦆
कोयल गान
दूर तक वीरान
तरसे कान
(2)🦆
सूरत कैसी?
सीरत जीते हिय
कोयल जैसी
(3)🦆
रंगीला फाग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग
(4)🦆
भोर की धुन
कानों में मिश्री घोले
कोयल सुर
(5)🦆
सुरों की देवी
लता मंगेशकर
हिंद कोकिला
(6)🦆
कोयल कूक
पिया है परदेस
हृदय हूक
(7)🦆
जेठ की भोर
कोयल सुर वर्षा
हिय विभोर
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन भावों के मोती
दिनांक - 10/6/2019
आज का विषय - कोयल
कोयल रानी कोयल रानी
प्यारी प्यारी मीठी वाणी,
कुहू कुहू का राग सुनाती
सबके मन को खूब सुहाती,
कौआ काला कोयल काली
बोले कौआ सब देते गाली,
छाए बादल कोकिल बोले
मानो कानों में मिश्री घोले,
क्या हुआ रंग की है कारी
सब पक्षियों में फिर भी प्यारी,
शिक्षा देती कोयल सुन लो
जब भी बोलो मीठा बोलो,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
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नमन मंच
"दिनांक-१०/६/२०१९"
'शीषर्क-कोयल"
आमों के बगिया मे कोयल
तुम मीठा गीत सुनाती हो
कितना मधुर कठं तुम्हारा
फिर भी नही इतराती हो।
हम मानव तो थोड़ा हुनर में
बहुत ज्यादा इठलाते हैं
अपनी अच्छाई और दूसरों की कमी
बढ़ा चढ़ा कर बतलाते है।
काली तेरी चमड़ी है पर
कितना निश्छल प्यार तुम्हारा,
हम मानव तो राग देव्ष का
बस हिसाब किताब ही रखते है।
कुछ सीख तुम हमकों दे दो
मीठा बोलना हमें सीखा दो
इस जटिल दुनिया में
खुश रहने का बस नुस्खा बता दो।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन् मंच
दिन - सोमवार
दिनाँक - 10 - 6 - 2019
प्रदत्त शब्द - कोयल
विधा - दोहा
कोयल सी वाणी रहे, सुन्दर सा हो रूप।
ऐसी हो अर्धांगनी, किस्मत जैसे भूप।।
मीठी वाणी सी रही, प्रियतम की हर कूक।
उनकी बोली से सदा, मिटे हृदय की हूक।।
कोयल, कौआ में रहा, सदा सदा से भेद।
इनका अन्तर जान लो, नहीं करोगे खेद।।
चाल चले गजगामिनी, कोयल जैसी बोल।
सुन मानव हर्षित हुआ, मिश्री रस का घोल।।
प्रेम जला है विरह में, है बसन्त की खोज।
प्रियतम की अब आस में, कोयल कूके रोज।।
✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'
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भावों के मोती
10 06 19
विषय - कोयल(कोयलिया)
मन अतिथि
कुहूक गाये कोयलिया
सुमन खिले चहुँ ओर
पपीहा मीठी राग सुनाये
नाच उठे मन मोर ।
मन हुवा मकरंद आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।
द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तोल।
मन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
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नमन : भावों के मोती
दिन : सोमवार
दिनांक : 10/6/2019
शीर्षक : कोयल
ऐ कोयल तू है कितनी
किस्मत वाली, एक से
बढ़कर एक रचना हम
सभी रचनाकारों ने तुझ
पर लिख डाली।
कितना मीठा और कितना
मधुर गीत तुम हो गाती ऐ
मेरी प्यारी कोयल रानी,कूहू
कुहू का मधुर गीत सुनाकर
तुम हम सबका मन लुभाती
हो ऐ मेरी प्यारी कोयल रानी।
तुम इतना मीठा गीत गाती हो
के तेरे कंठ से निकले गीतों की
है बड़ी दीवानी ये दुनिया सारी
होकर मगन तेरी मधुर वाणी में
झूम उठती है ये दुनिया सारी।
तुम हो कितनी किस्मत वाली
जो तुमने पाई है इतनी मधुर
वाणी,काश तुझ जैसी ही मधुर
होती मेरी भी वाणी, तो जीत लेती
तेरी ही भाँति अपने गीतों से मैं भी ये
सारी दुनिया ऐ मेरी प्यारी कोयल रानी।
छोटी सी है और कारी भी है तू
फिर भी हर पंछी से प्यारी है तू,
मुझको तो अपनी जाँ से भी प्यारी
है तू ऐ मेरी प्यारी कोयल रानी
रौशनी अरोड़ा (रश्मि)
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नमन मंच
10/6/2019::सोमवार
1222 1222 1222 1222
प्रदत्त शब्द--कोयल
करें हम आज अभिनन्दन यहाँ ऋतुराज आया है
बहारें साथ लेकर सुन अजी सरताज़ आया है
तराने गा रही कोयल हुई है आज मतवाली
खड़ी लहरा रही खेतों सुनहरी हर कनक डाली
हुए हैं वांवरे भँवरे उन्ही का राज़ छाया है
लगी है झूमने मस्ती में बौराई सी' अमराई
बिना ही साज़ के संगीत सुनाती देख पुरवाई
धरा श्रृंगार कर निखरी ग़ज़ब अंदाज़ पाया है
लगे है अब अमलतासा कन्हैया का है' पीताम्बर
दहकता खूब है महुआ गिरें टेसू भी' झर झर कर
सुनो मधुमास जीवन में,सरस आगाज़ लाया है
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
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नमन सम्मानित मंच
(कोयल)
******
ऋतु बसंत की चारु प्रेयसि,
नील-श्याम रंग नर कोयल,
चितकबरी शुचि श्यामल वर्ण,
मादा चतुर अनूठी कोयल।
कुक्कू कुल का पंछी चारु,
कंठ मधुरतम नर कोयल का,
हिंसक प्रवृति का विहग एक,
मधुर स्वरों संग कटु व्यवहार।
अमराई में आम्र शाख पर,
पंचम स्वर मे गाता नर कोयल,
नीड़ न कोई कभी स्वयं का,
परजीवी पंछी यह जग का।
कोयल की वाणी व्यवहार,
संदेशित करती क्षितितल पर,
मधुरस घुली सभी की वाणी,
विश्वास योग्य होती न कदापि।
--स्वरचित--
(अरुण)
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नमन मंच को
विषय : कोयल
दिनांक : 10/06/2019
विधा : छंदमुक्त
कोयल
आंगन में कू कू करती थी,
पूरे घर में खुशियाँ भरती थी।
वो नन्ही शोख़ शरारतें उसकी,
दुखडे मन के हरती थी ।
नज़र लगी शैतानों की अब,
ना जाने कहां खो गई है़,
कल तक जो कू कू करती थी,
कोयल खामोश हो गई है़ ।
अब कोयलें कहां रह पाएंगी,
यारो इस जहान में ।
ज्य़ादा अंतर नहीं रह गया,
इंसान ओर शैतान में ।
माया मोह काम बस जैसे
अंतरात्मा सो गई है़,
कल तक जो कू कू करती थी,
कोयल खामोश हो गई है़ ।
इंसाफ कहां मिल पाएगा जब,
न्याय खुद बिक जाता हो।
इंसाफ ना मिलता जब अपराधी,
सत्ता में जाना जाता हो।
गौर से देखो मानवता भी,
लहूलुहान हो गई है़,
कल तक जो कू कू करती थी,
कोयल खामोश हो गई है़ ।
ओ भगवन तू क्यूँ नहीं आता,
मिटाने इन हैवानों को।
क्यूँ नहीँ आता ओ मुरलीधर,
अब तू लाज बचाने को ।
अब दुर्गा क्यूँ बने ना चंडी,
पाप की हद हो गई है़,
कल तक जो कू कू करती थी,
कोयल खामोश हो गई है़ ।
कोयल खामोश हो गई है़ ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब।
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दिनांक-10-6-2019
शीर्षक-कोयल
विधा-हाइकु
(1)
आम की डाली
कोयल मतवाली
सुरों की प्याली
(2)
कोयल कूकी
बसंत मेहमान
स्वागत गान
(3)
कोयल दक्ष
स्वसंतान दे त्याग
पालता काग
(4)
सुरों की माप
कोयल का आलाप
हरे संताप
उमा शुक्ला नीमच
स्वरचित
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नमन मंच
विषय-कोयल
विधा-हाइकू
कूक सुहानी
अमराई की छाँव
हर्षित वन।
आओ बसन्त
स्वागत प्रकृति का
गीत कोकिला।
गीत कोयल
बहती सुर सरिता
स्वर सम्राज्ञी ।
भारत रत्न
लता मंगेशकर
स्वर कोकिला।
शीतल हवा
कोकिल सुर साज
नृत्य विटप।
प्रात प्रणाम
गाये मंगल गान
कोयल काली।
सूरत गौण
गुण प्राथमिकता
सीख कोयल।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
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II कोयल II नमन भावों के मोती....
कोयल तान सुना तू मनवा.....
कोयल तान सुना.....
बाँध ले अपने विरहन मन को...
गीत सुहाने गा...तू मनवा....
कोयल तान सुना तू मनवा....
सुलग-सुलगती जाएँ रातें....
नयनन नींद न आये...
बिन पिया के कैसे गाऊं....
दिल को तू भरमा... रे मनवा...
कोयल तान सुना...तू मनवा....
कारी कारी अँखिओं में उसकी....
दिल मेरा खो जाए....
कुहू कुहू धड़कन से आये....
श्याम रंग मोहे भाये....रे मनवा...
कोयल तान सुना...तू मनवा....
पीर परायी कोई न जाने....
मन की बोली कोई न जाने....
जिस तन लागे सो तन जाने...
अपना आप भुला....रे मनवा....
कोयल तान सुना... तू मनवा....
कोयल जैसी मैं भी काली....
विरह रंग मैं और भी काली...
कब तक गाऊं हाल छुपाऊं....
प्रियतम साज सजा के...मनवा...
कोयल तान सुना रे मनवा....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१०.०६.२०१९
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नमन भावो के मोती
10/6/2019
कोयल
याद आती वो मुझको कोयल,
कू कू करती थी जो डाली डाली,
मेरी पुस्तक कूकती थी...
जब भी मैं उसको पढ़ती थी l
कहाँ गयी वो कूक निराली,
गूंजती थी जो गावों में,
पेड़ नहीं रहे अब जगत में,
तो कुंजन कहाँ से आये अब ll
तरस रहे है कर्ण हमारे..
उस कोयल की बोली को,
कहाँ गयी वो चिड़िया रानी,
जिसके बिन है बगियावीरानी ll
सम्भल जाओ ओ.. अमानुष प्राणी,
होगी अपनी ही अब हानि,
अब तो पेड़ लगाओ तुम,
कुहुकेगी फिर ये चिड़िया रानी l
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
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नमन मंच को
दिनांक- 10/6/2019
विषय-कोयल
प्यारी -प्यारी लगती कोयल
मीठे गीत सुनाती कोयल ।
मीठे बोल का मोल बताती कोयल
सबको पाठ सिखाती कोयल ।
रंग रूप से कुछ नहीं होता ,गुणों का मोल बताती कोयल ।
आम की डाल पर गाती कोयल
मीठे आम कराती कोयल ।
डाल-डाल पर घूम-घूम कर मीठे बोल सुनाती कोयल।
वातावरण में मधुरस घोल -घोल कर
वसंत का अहसास कराती कोयल ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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