Thursday, June 13

"घर"11जून 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-414

सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
11/06/2019
   "घर"
सेदोका

प्रेम की नींव
बुजुर्गों का सम्मान
आशीर्वाद दीवार
भाव खिड़की
आस्था प्रवेशद्वार
धर शांति निवास।।

सिंचित भाव
सुख-दु:ख में साथ
एक-दूजे का मान
निर्भिक मन
संग हो परिवार
घर एक मंदिर।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन-मंच को
दिनांक-११/०६/२०१९
विषय-घर

घर हो एक अपना

अपना यही हो सपना।।

घर प्रांगण के अँगना

उमंग उत्सव  से सजते नयना।।

अपना यही हो सपना......

नन्हे मुन्ने की किलकारी हो गूँजना

रश्मियों से द्वार सजे ,मेरे घर अंगना।।

अपना यही वो सपना........

 खुशियों का अंबार हो

तम का कभी ना प्रहार हो

प्रतिपल एक दीप जले

मेरे घर अंगना.....

नेह के दीपक ,प्रेम के बाती

से सजा ले घर अपना....

अपना यही हो ,बस एक सपना

स्वरचित
 सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

⛳भावों के मोती⛳
 शीर्षक_घर।
११/०६/१९@०६:४२
इक अध्यापक ने घर बनाया।
इष्टमित्र को है बहोत बुलाया।
कुछ आऐ गये चाय पीकर सभी।
एक आऐ वह अध्यापक बताऐ।
यह शयनकक्ष बैठक रसोई स्नानागार।
खुब स्वागतम् किऐ विश्राम कराऐ।
भला वह मित्र कैसे रह पाते।
सच्च कहते थे वह कल देखे थे।
कह दिऐ घर कैसा आंगन कहां।
तुलसीबिरबा नीम कहाँ वह है।
जो पूर्वजों ने शिक्षा दी अनुसरण कहां।
यह त्यौ प्रकृति से अतिक्रमण है।
क्या परिजनो कल कर्णाधारो से।
आपकी है यह शत्रुता  भावः।
स्वयं नीम छावं से आकर।
उफ! तप्त दाहकता बाली छत घर।
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक:-घर
दिनांक-11/6/2019

हरसिंगार के फूलों को झरते देखना,
आंखों के पानी को मरते देखना....।
मां का एक-एक ज़ेवर बिकते देखना,
मुफलिसी को #घर में रूकते देखना...,
बारिश के पानी को छत से रिसते देखना,
अपनों को अंधी दौड़ में पिसते देखना।

मनों में छिपे रावणों को जलते देखना,
आस्तीनों में सांपों को पलते देखना..।
बोतलों में पानी को बिकते देखना...,
लोगों के ज़मीर को गिरते देखना।
ज़मीं में दबे बीजों को फूटते देखना,
नाकामियों पर अपनों को टूटते देखना।

मेरे सपने तेरी आंखों में पलते देखना,
बच्चों को घुटने-घुटने चलते देखना।
बेटी को बिदाई में फूट -फूट रोते देखना,
धीरे धीरे अपने #घर की होते देखना....।
बेटे के सर पर कामयाबी का सेहरा देखना,
और आप का मुड़कर दोबारा देखना...।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

फ़कत  ईंट पत्थर  से  होता न घर है।
बाशिंदों के दिल में  मुहब्बत न गर है।

खुशियां कहां  यहां  ठहरेगीं  आकर। 
न अदब माँ  का  न  बाप  का  डर है। 

स्वादों - सुकूं  तुम्हें  रज  के  मिलेगा। 
जो मेहनत की  रोटी पकती अगर है। 

मेहर  वहीं पर  सब  होंगी  खुदा की। 
बडे  बुजुर्गों  की  जहां होती कदर है। 

खुलूस और मुहब्बत को रख नजर में। 
बस चैन  की  जिन्दगी  फिर  बसर  है। 

                              विपिन सोहल
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती
आज का विषय, घर
दिन, मंगलवार
दिनांक, 1 1,6,2019,

एक घर की ख्वाहिश दिल में पल रही ।

हम तो रोज ही देखा करते  हैं मकान कई ।

कहीं सीमेंट आस्था का नजर आता नहीं ।

ईंटें कहीं पर हैं रिश्तों की बहुत ही खोखली ।

भावों के झरोखों का होता कहीं दर्शन नहीं ।

विश्वास का आँगन तो अब बनता ही नहीं ।

नजर नहीं आती है अब बैठक कहकहों की ।

बुजुर्गों के शजर के लिए होती जमीं ही नहीं।

मकबरा दिख रही मकान की चार दीवारी ।

शायद ता उम्र घर की तलाश रहेगी जारी ।

इस देह के घर को मुक्ति नहीं मिलने वाली ।

सुनाये कोई राग हमें कान्हा की बाँसुरी ।

मकान में आ जाये नजर कभी घर की परछाईं ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक      घर
विधा       लघुकविता
11 जून 2019,मंगलवार

खग कुल मिल नीड बनाते
तिनका लाकर उसे सजाते।
वायु प्रकाश समाहित करते
सुख स्वर्गीम निज घर पाते।

जँहा आश्रय मिलता हमको
सब आवश्यकता पूरी होती।
सुख शांति संस्कार संजोते
उस घर में नित दमके मोती।

भाव भक्ति भगवन अर्चन
स्नेह सुधा की सरिता बहती।
वह निकेतन स्वयम स्वर्ग है
दया ममता हिय नित रहती।

पर सत्कार सदा घर होता
मन सन्तोषी सदा सुखी है।
माया मोह अस्थाई यह घर
सत्य सदन प्रभु चहुर्मुखी है।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

🏠 घर 🏠

सपनों का एक घर हो प्यारा
मुहब्बतों का हो वह दयारा ।।
बेशक खनक न हो पैसों की
पर प्रेम से सरावोर हो सारा ।।

दीवारें भी वहाँ देंय दुआयें
पूर्वजों की सदा रहें सदायें ।।
साथ हो उनका जीवन भर
उन सपनों पर खरे कहायें ।।

तमन्नाओं का न ओर छोर
यही आज अब चला है दौर ।।
दौलत शोहरत भले कमाई 
प्रेम का घर न प्रेम का ठौर ।।

घर घर में अब झगड़े हैं
दौलत खातिर बिखरे हैं ।।
किसकी है किसे फिकर
अपने अपनों से बिफरे हैं ।।

छोटे 'शिवम'अब घर होते
प्रेम न वहाँ रत्ती भर होते ।।
चार लोग न रहें प्रेम से 
घर में भी अब डर होते ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/06/2019

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

"अमर बेल थी मुरझाई"

मेरे घर के चिर आँगन की
अमरबेल थी मुरझाई,
मिट्टी का कर्जा खतम हुआ
जीवन से मुक्ति थी पाई l

सूनां-सूना आंगन लगता
जीवन ऐसा ग़मगीन हुआ
गांव का पछी बेरूत बोले
सपना जैसे नींद भया,
ढूंढ रही है मुझको जैसे
पग-पग मेरी परछाई l

वो दिन भी लगते क्या दिन
क्यारी-क्यारी हंसती थी
मिट्टी के हर रोम-रोम में
दुनियां अपनी बसती थी,
फूलों का खिलना जीवन था
पत्तों का बरसता मधुवन था
हर रोज जिन्दगी कोयल थी
हर बरस का सावन ये मन था,
अाज पत्तों की चड़चड़ बजती है
क्यूं फूलों में गंध सी लगती है
क्यूं कोयल को रोना आता है
क्यूं सावन नहीं सुहाता है
क्यूं कण-कण उड़ते दिखते हैं
क्यूं क्यारी-क्यारी कुंभलाई ?

ये रात अँधेरी क्यूं आई
हम रोज उजाला रखते थे
वो दीप हमारा कहां गया
हम जिस पे भरोसा करते थे
हम रस्ता अपना भूलें नहीं
आँखों का उजाला चला गया
ये मेरी केवल बात नहीं है
देश का देश ही छला गया,
आँखों के आंसू सूख चुके
नैनों की पुतलियां पथराई l

"मुरझाई इस अमर बेल के
पत्ते-पत्ते  सजाएंगे
इस लौ के रोशन कण-कण
व्यर्थ कभी न जाएंगे,
ये अमर बेल बस अमर रहे
ऐसा कुछ कर जाएंगे,
हमको ऐसा बाग लगाना
जहां कली-कली हो मुस्काई
मेरे घर के चिर आँगन की 
अमर बेल है मुरझाई ll
                              आदरणीय श्री अब्दुल कलाम के लिए
नमन, देश की महान विभूति को
जय भारत

श्रीलाल जोशी"श्री"
मैसूर
9482888215

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन -मंच को
 द्वितीय प्रस्तुति 
दिनांक-11/06/2029
विषय-घर

जो गिरे  फूल को उठा ना सके तुम

डालिया इस तरह मत हिलाया करो।।

ना हो घर बसाने का हौसला

घोसले इस तरह बनाया ना करो।।

स्वरचित 
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन मंच को....

मंगल दीप जले अंबर में

स्वर्णिम रश्मियों से द्वार सजा ले।।

प्रेम के दीपक नेह के बाती

शीश महल का ख्वाब सजा ले।।

भोर के दुल्हन का दर्शन कर

नृत्य नयन से घर बना ले।।

सन्नाटो की यादों में

उज्जवल मोतियों का घर सजा ले।

चांद की चांदनी को छोड़कर

सूरज जैसा घर बना ले....

स्वरचित सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक-घर
दिनांक-11/06/2019
नगर सूने हुए यारो।
कि घर सूने हुए यारो।

अजी कैसा हुआ आलम,
हुई वीरान हर बस्ती।
यहाँ पसरा पड़ा मातम,
हुई अब मौत क्यों सस्ती।
दिखी खूनी सभी गलियां,
डगर सूने हुए यारो।
नगर सूने हुए यारो।
कि घर सूने हुए यारो।

अमां की रात ये काली ,
नहीं दिखता सवेरा है।
न दाना और अब पानी,
नहीं मिलता बसेरा है।
भटकते रात दिन पंछी,
शज़र सूने हुए यारो।
नगर सूने हुए यारो।
कि घर-----------

दिलो में हैं यहाँ दहशत,
सियासत और नफरत है।
न चिन्ता फिक्र है कोई,
बुराई की लगी लत है।
भला सब चाहते अपना,
जिगर सूने हुए यारो।
नगर सूने हुए यारो।
कि घर------------

धुएं  में सब उड़ा जल जल,
अहिंसा रो रही पल पल।
भरे क्यों एकता का दम,
बँटे हिन्दू मुसलमां हम।
दीवारें खींच गयी जब से,
बशर सूने हुए यारो।
नगर सूने हुए यारो।
कि घर------------

सियासी दांव खेलेंगे,
न खोलोगे कभी पत्ता।
किसी भी मूल्य पे इनको,
यहाँ बस चाहिये सत्ता,
चले यूं छोड़कर ईमां,
असर सूने हुए यारो।
नगर सूने हुए यारो।
कि घर-----------

विचारों से सुधारों से,
बदलना देश अब होगा।
प्रचारों और नारों से,
सँभलना रोज अब होगा।
जुबां खामोश क्यों अब तक,
अधर सूने हुए यारो।
नगर सूने हुए यारो।
कि घर-----------
-------------------------
बलराम निगम ,
कस्बा-बकानी,जिला-झालावाड़,राजस्थान

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

*नमन भावों के मोती
आज का विषय-घर
11/6/2019
छंदमुक्त कविता
.....................
नन्हें नन्हें कदमों से 
डग मग कर चलती थी
मेरे खिलखिलाने से
घर आंगन की बगिया
खिल उठती थी
दादा दादी
मम्मी पापा की
मैं प्यारी परी थी

फिर थोड़ी बड़ी हुई
कि मुसीबत आन खड़ी हुई
जब भी खिल खिला कर
हँसती थी
तब दादी टोकती थी
'लड़कियां ऐसे नहीं हँसती
कुछ मर्यादा होती है
लड़की की'
तब कुछ समझ ना पाती थी
पर मैं सहम जाती थी

फिर जब भी मैंने
कुछ करना चाहा
उत्तर मिला,
'अपने घर'जाकर करना
जो भी तुम्हें है करना

वो दिन भी आया
जब मैं'अपने घर' में आई
ढेरों ख़्वाब साथ में लाई

फिर जब कुछ करना चाहा
जवाब मिला
''अपने घर'से यही सीख
लेकर आई हो?
मनमर्जी  करने की
शिक्षा साथ लाई हो?
तब भी मैं कुछ समझ
न पाती थी
वही सब बातें सुन कर
सहम सी जाती थी

उड़ने से पहले ही
पंख जिसके कट चुके हैं
अंतर्मन की पीड़ा
सहते सहते दिलो-दिमाग
भी अब थक चुके हैं

'अपना घर' मुझे
अब भी न मिला
ये तो सदियों से
चला आ रहा है
सिलसिला
शायद लड़कियों के
'अपने घर'नहीं होते हैं

पर अब मैं 
समझने सहमने की
स्तिथि से
ऊपर उठ चुकी हूँ

लड़कियों के 
'अपने घर' नहीं होते
बनाने पड़ते हैं
तो अब मैं 'अपना घर'
बनाने निकल पड़ी हूँ।।
    @वंदना सोलंकी
  #स्वरचित

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

11/6/2019
            घर
         💐💐
नमन मंच।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
🌺🌺🙏🙏🌺🌺
जिस घर में रहता नहीं कोई,
उसे बुतखाना कहते हैं।
पर जिस घर में गुंजे हंसी की गुंज,
उसे हम आशियाना कहते हैं।

केवल ईंट गारे से हीं कोई घर,घर नहीं बनता,
गर हो ना उसमें खुशियां।
लेकिन,
जब झोंपड़े में भी खुश रहें लोग,
तो वहीं लगती है अपनी दुनियां।

तंगी रहे भले हीं,
पर खुशियां हों भरपूर,
घर उसी को कहते हैं,
जहां प्रेम मिले भरपूर।

बड़े, बड़े महलों में,
दिखते उदास लोग।
वो महल है बेकार,
जहां दिन,रात बेचैनी का संयोग।
🍀🍀🍀🍀🍀🍁🍁🍁🍁🍁
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🌺🌺🌺🌺🌺

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

आज से कुछ समय पहले घर लगता थाहरा भरा ।
गूंजती किलकारियां चहूँ ओर ।
रहते सब मिलकर मुखिया होते वृद्ध ।
देते सीख जीने की कला क्या कैसी हो ।संस्कार अपने आप आते उस सुदंर माहोल मे ।
अब खोगये टी वी मोबाइल की दुनिया मे ।
घर घर न रहा दो तीन लोग वो भी अलग थलग मोबाइलमे गुम 
नबात चीत न सोहार्द्र रहा ।
न सदभावनाऐ न संवैदनाऐ ।
स्वहितार्थ भाई भाई लड रहे ।
माँ बाप कद्र नही रही क्या ये घर है ।
स्वरचित   दमयंयी मिश्रा ।गरोठ मध्यप्रदेश ।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


नमन मंच
दिनांक .. 11/6/2019
विषय .. घर
***********************

ये घर ना जाने किसका है, 
बडा सुन्दर सलोना है।
दीवारे बोलती इसकी,
महकता हर इक कोना है।
....
बडी सी हर तरफ खिडकी,
हवाये मस्त आती है।
सुनहरी रौशनी से हर तरफ,
यह जगमगाती है।
......
बडा सा इसमे उपवन है,
महकता पुष्प  जिसमे है।
क्या ये भावों का उपवन  है,
शेर पहुुचा जिस घर मे है।
......
यहाँ भावों के मोती है
बिखरते सुन्दर अक्षर है।
यहाँ कविता का संचय है,
ये घर भावों का दर्पण है।

....
स्वरचित .. शेरसिंह सर्राफ

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

11/6/19
भावों के मोती
विषय-घर
प्रथम प्रस्तुती
____________________
ढह गया अरमानों का घर
अब पछतानेे से क्या फ़ायदा
घर के चिरागों ने आग लगाई
मिट गई जो इज्जत कमाई
हाल,चाल हाव,भाव
अगर समय से परखते
सही ग़लत की कुछ सीख दे लेते
बेटों के मोह में अँधी थी आँखें
देखते तो भी क्या सीख देते
सीख तो घर से ही सीखे
घर के पुरुषों ने घर की
स्त्री की नहीं की कदर
इंसानियत को ताक पर रखकर
हरदम उनका उत्पीड़न किया
बाहर तिरछी नज़र कर व्यंग्य कसे
ढहना ही था उस घर को एक दिन 
संस्कार बिना खोखली थी उसकी नींव
सत्कर्म से भटके हुए लोग
इंसानियत को भूलकर
दुष्कर्म का मार्ग पकड़कर
करने लगे ज़िंदगियाँ तबाह
ना किसी की माँ का दर्द समझा 
न किसी की बहन, बेटी की पीड़ा
करते रहे माँ की कोख कलंकित
पुरुष होने का दंभ भरते रहे
यह मानसिक रोगियों को 
डर-भय नहीं किसी का नशे में चूर
इंसानियत के वेश में हैवानियत के दूत
सरकार हमारी न जाने क्यों बैठी है चुप
होती रहेंगी यूँ ही ज़िंदगियाँ बरबाद 
हम लोग बेबस‌ होकर यह सब देखते रहेंगे
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

11/6/19
भावों के मोती
विषय-घर
द्वितीय प्रस्तुती
________________
संस्कारों की नींव पर 
आदर्शों की मजबूत दीवारें
हिला न पाए कोई बाधाएँ
प्रेम विश्वास जड़ें जमाए
बड़ों का आशीष अमृत बरसाए
जड़ों की मजबूत पकड़
बाँधे रिश्तों को बड़े प्यार से
नैतिक नियमों का मूल्य सिखाएँ
इंसानियत का मोल बताएँ
स्त्री का सम्मान जहाँ पर
बेटी की खुशियाँ वहाँ पर
प्रेम जिसका आधार प्रथम हो
बेटों को संस्कार दिए हों
बचपन जहाँ हँसे खुलकर
माँ के पायल की छन-छन
भाभी की चूड़ियों की खनक
बहनों की खुशियाँ झलकें
घर में सदा संगीत बनकर
वह घर सदा मंदिर सा लगे
जहाँ हर रिश्ते को सम्मान मिले
यह सीख नहीं सच्चाई है
बिन रिश्तों के किसने खुशियाँ पाईं है
अमूल्य निधि यह जीवन की
बड़े जतन से रखना सँभालकर
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

घर
💐💐

कुछ कच्चे,कुछ पक्के,
कुछ लिपे पुते उजियारे
बड़े अच्छे लगते हैं हमको,
गाँवों के घर द्वारे।।

नीम ,जामुन, मुनगा आम,
आँगन आँगन तुलसी विरबा।
हर घर में गौशाला न्यारी
जहाँ  बंधे हो गाय बछिया।।

पंक्षि करें नित कलरव
सुंदर आँगन में चौबारे।
बड़े अच्छे लगते हमको
गाँवों के घर द्वारे।।

रचनाकार
 जयंती सिंह

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती 
विषय - घर 
11/06/19
मंगलवार 
छंदमुक्त कविता 

घर और परिवार 
जहाँ बसता हो मधुर रिश्तों का संसार 
जहाँ सुनाई देता हो 
माँ के हृदय का स्पंदन 
और दिखाई देता हो
पिता का स्नेहिल प्रबंधन 
सुबह होते ही घर में गूँजने लगती हों
दादा-दादी के प्यारी झिड़कियां 
और प्रेम की हवा से खुलने लगती हों 
घर की खिड़कियाँ
शाम होते ही सब आपस में बाँटते हों
दिनभर के अनुभव ,किस्से और कहानियां
और गूँज उठते हों हँसी-ठहाके व ठिठोलियां 
जहाँ एक का गम दूसरे को आहत करता हो
एक के पैर में लगा काँटा दूसरे को कसकता हो
जहाँ रात को सभी सोते हों एक सुन्दर सुबह के लिए
वास्तव में वही घर व परिवार है मेरे लिए। 

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

भावों के मोती 
सादर अभिवादन 
दिनांक-11/6/19
विषय-घर 
विधा-हाइकु 
############
1)
दिशा झाँकती 
सितारे सजे छत
गरीब घर ।।
2)
दीवार नहीं 
प्रेम स्नेह का छत
अपना घर।।
3)
लहरे आती 
दीवार में प्रहार
गिरता घर ।।
4)
छोटा सा बिल 
बिल में छोटा चुहा
उसका घर ।।
5)
झुल झुलैया 
मजे से झूले बया 
उसका घर ।।
6)
धरा में पेड़ 
पेड़ डाल में नीड़
पंछी का घर ।।
##############
स्वरचित 
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित 
बसना,महासमुंद,छ ग
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


नमन सम्मानित मंच
          (घर)
           ***
परिवार  जह़ाँ  बसता संयुक्त,
  भाव जह़ाँ  शुचि  और सुखद,
    अस्तित्व वहीं अनुपम घर का,
      रसधार  प्रेम  बहती  नित उर।

शिशु की प्रथम पाठशाला चारु,
  मातु-पिता  का   मठ   सा  घर,
    धरती पर  स्वर्ग  समान पुनीत,
      सुसंस्कार   सागर    सा    घर।

नैतिक मूल्यों की  शिक्षा पाकर,
  परिवार महकता उपवन सा घर,
    ईश्वर   की   भक्ति   की   शक्ति,
      कण -कण  में  बसती  वह  घर।

भौतिक  के  सापेक्ष  धरा  पर,
  मनरूपी घर   महत्त्वपूर्ण अति,
    सदविचार से  निर्मित  अदभुत,
      सकारात्मकता  का  शुचि  घर।
                           --स्वरचित--
                              (अरुण)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन मंच 🙏
दिनांक- 11/6/2019
शीर्षक-"घर"
***********
 "मेरा घर"

नीले अम्बर के तले, 
मेरा छोटा सा घर बना, 
ईंट, सीमेंट लगा जरूर, 
दीवारों को प्यार से बुना |

मेरी छोटी सी दुनियां इसमें, 
प्यार,विश्वास है मेरे घर में, 
इमारत की नहीं है ख्वाहिश,
बस कभी न मिले हमें तन्हाई |

  स्वरचित *संगीता कुकरेती*

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन
भावों के मोती
११/६/२०१९
विषय-घर

मेरा घर कुछ कहता है मुझसे..
बनाना है यदि मकान को घर,
तो रहना सीखो
प्यार से...
जीना सीखो
दूसरों के लिए....
सीखो-त्याग समर्पण,
हंसना-हंसाना...
जिन्हें भुला दिया है तुमने,
बांट दिया है घर को,
सरहदों में......!
बांध दिया है रिश्तों को ,
स्वार्थ में ...?
कर दिया है अनदेखा
संबंधों को..... ।
रह गई है नीरसता
बन गया है जेल...!
स्वार्थ की हथकडियां
अहम् की बेड़ियाँ
झुकने नहीं देती..।
और तुम बनाना चाहते हो
मकान को घर ?
उठो सोचो क्या खोया ,
औ क्या पाया है तुमने ?
दरकते रिश्ते
सरकते सुख
खंडहर जीवन
अमिट सूनापन
कुछ भी तो नहीं है
पास तुम्हारे......?
जीना सीखो
जैसे कि पहले जिया करते थे
जहां रिश्ते खिलते थे..!
स्नेह फलता था
जीवन हंसता था
आज जीवन मर रहा है
नफरत जी रही है.....
घर मकान न बन जाए
उससे पहले
चलो जी लें कुछ पल
अपने लिए
अपनों के लिए.... ।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

भावों के मोती मंच को नमन 
दिन मंगलवार-11/6/2019 
विषय :-घर ।विधा :-कविता
घर जो -
सीमेंट ,ईंट 
गारे से नही
उसमें रहने वाले 
इंसानों से बनता है ।
जिसमे सभी के हित 
एक दूसरे से जुड़े रहते हैं ।
एक दूसरे के प्रति समर्पित
सेवाभाव ,प्रेम और सौहार्द्र से ।
स्नेह सहानुभूति और उदारता 
उसका अपना  चरित्र है ।
त्याग और बलिदान की 
नींव पर खड़े घर को 
कोई गिरा नही सकता ।
सीमेंट ईंट गारे से 
बना मकान केवल 
चार दीवारी के अहाते से 
घिरा मकान.तो हो सकता है 
किंतु घर नही ।
घर को बनाने में
ज़िंदगी गुजर जाती है 
तब कहीं बन पाता हैअपने संस्कारों से सजा हुआ
अपने सपनों का घर ।
अब घर नही मकान 
बनाते हैं लोग ,
जिसे इंसानों से नही 
सामान से सजाते हैं लोग ।
स्वरचित:-उषासक्सैना

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन "भावो के मोती"
11/06/2019
    "घर"
मुक्तक

सबके भावो को मिलता मान है
प्रीत प्रेम ही जिसका आधार है
बुजुर्गों को मिले सेवा व सम्मान,
मंदिर सा घर वो समान धाम है।।

दौलत  से  महलें  ही तो बनते,
घर तो परिवार मिलकर बनते,
दीवार  में  पड़  जाती दरारें
मन में नफरत जो पलने लगते ।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन मंच
विषय-घर
11/6/19
💐💐💐
ये तेरा घर ये मेरा घर
ये अपनी हसरतों का घर
सिला है इसमें प्यार का
वफ़ाओं से भरा ये घर।

न आएंगी हवाएँ भी
कभी गलत मिज़ाज़ की
है सपनों से सजा ये घर
है खुशियों से भरा ये घर।
तुम अपना वक्त दो हमे
हम प्यार से सजायेंगे
जो नन्हें फूल आयेगें
वो  फिर इसे महकाएँगे।

हमारी शिद्दतों का घर
हमारी हिम्मतों का घर।
💐💐
स्मृति श्रीवास्तव
(स्वरचित)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सादर अभिवादन 
नमन मंच
 भावों  के मोती 
दिनांक : 11 - 6 -2019 (मंगलवार)
 विषय :  घर 
घर -स्वर्ग से सुंदर   
 घर एक मंदिर है ।इस मंदिर में
 अगर कोई पूजनीय है तो वह है नारी ।
नारी मां भी हो सकती है ,पत्नी भी,
 बहन और बेटी भी ।
नारी पुरुष की शक्ति होती है ।
यही शक्ति घर को सजाती- सँवारती
 और समस्त सुखों से परिपूर्ण रखती है ।
इसलिए स्त्री को उचित सम्मान देना 
पुरुष का परम कर्तव्य है ।
पुरुष को यह कदापि नहीं भूलना चाहिए 
कि हर सफल पुरुष  के पीछे एक नारी होती है ।
 पुरुष के सफलता की कुंजी  स्त्री होती है ।
पुरुष के सफलता का दारोमदार
 काफी हद तक उसके घर के
 वातावरण पर निर्भर करता है 
जिस घर में सुख -शांति का माहौल रहता है
 वहां उन्नति और सफलता का 
भी  बसेरा रहता है घर स्वर्ग से सुंदर  होता है ।

यह मेरी स्वरचित है
मधुलिका कुमारी "खुशबू "

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

भावों के मोती
11 06 19
विषय - घर

शहीदों  की रोती आत्मा जब धोखे में मारे जाते हैं... 

सर पर कफन बांध  कर निकले घर से
मरने से डर कैसा मरने को निकले घर से
घरवालों को पत्थर कर दिल पर पत्थर रख निकले घर से
देश पर करने निज प्राण उत्सर्ग निकले घर से
एक-एक सौ को मार मरेंगे यही सोच निकले घर से
एक एक टुकड़ा वापस लेंगे धरा का यही ठान निकले घर से
क्या पता गीदड़ यूं सीना चीर देंगे घुस के घर मे
सोये शेरों का यूं कलेजा निकाल चल देंगे घर से
मरना तो था पर ना सोचा कभी यूं मरेंगे अपने घर में
नींद में ही भेट चढ़ जायेंगे धूर्त धोखे बाज गीदड़ो के वो भी घर में ।
स्वरचित 
              कुसुम कोठारी।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती
विषय-घर
दिनांक-11-6-2019
वार-मंगलवार

स्वर्ग सा एक घर बनाया 
पति पत्नी ने खूब सजाया
सोफ़ा टीवी लैपटॉप वगेरे 
बसाकर आनंद बहुत मनाया 

दिवाल पेंटिंग करके सजाई 
रसोई जैसे जी जान लगाई 
कूकर बर्तन सारे बातें करते
गेस चुल्हे पर चढ़ती कढ़ाई 

वोशिंग मशीन खूब सजी है 
व्हील पाउडर को देख हंसी है 
पेंटशर्ट साड़ी कूर्ती कहते
हँसती क्या तू समझ फसी है 

पत्नी ने सुबह पौहे बनाए 
चाय जलेबी सबको खिलाए 
सारा मोहल्ला खुशी से झूमा 
हँसी खुशी से पड़ौसी बनाए 

एक दिन उस स्वर्ग से घर में 
शक का भारी तूफान आया 
माचीस की एक तीली बनकर 
सारे घर को श्मशान बनाया 

वही घर है पर जान नहीं है 
कुंडे आदी हैं पर शान नहीं है 
इट पत्थर मिट्टी लगते सारे 
इंसान बिना घर संसार नहीं है 

स्वरचित कुसुम त्रिवेदी

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन-मंच"
"दिनांक-११/६/२०१९"
"शीषर्क-घर"
हवा भी जँहा से हँस के गुजरे
ऐसा सुन्दर घर हो अपना।

नही किसी से मतभेद हो
सहज सरल व्यवहार हो अपना।

शाम को जब घर लौट के आये
"घर"के जैसा "घर" लगे अपना।

कुल का नाम रौशन करें
एक चिराग जन्म ले अँगना।

दुनिया का सबसे प्यारा कोना,
सुन्दर सलोना घर हो अपना।

सबके अंतर में प्यार बसता हो
ऐसा अनुपम घर हो अपना।

  स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन 🙏🙏भावों के मोती
विषय:-घर💞💞💞
विधा :-छंद मुक्त कविता

हो रही है आज धूमिल संसकारों की नीव ,घर कहाँ हैं आज ऐसे मिली जहाँ सम प्रीत........
वासना के पुजारी को कहा खबर है जिस मार्ग से जन्मा उसे रोंदने में तत्पर हैं..........
राक्षस, हैवान से भी आगे बढ रहा इन्सान, मानवता को कलंकित कर रहा शैतान............
जिससे घर बनता है वो एक माँ है
पैदा करती है इन्सान ............
पता नहीं होता उसे कलंकित कर देगा वो रिश्तों को
और भूल चुका कि वो.मेरी माँ है
, बहन है बच्ची है...............
कुचलता , नोचता रहेगा उनके अंगों को
उसे बस वो मार्ग दिखाई देगा
दो पैरों के बीच.............
फिर इस दुनिया मे इन्सानिययत  कहा ,और कहा वो घर
कहा परिवार और कहा स्त्रियों 
की खनकती पायल.............
हर तरफ पसरा है सन्नाटा घर के कोने कोने में
मौन हो जायेगी स्त्री तब कहा होगा अस्तित्व
कहाँ होंगे पुरुष रोंदने को उसका अंग
कहाँ दिखेगा वह मार्ग जो दो पैरों के बीच नजर आता है
सीता का हरण किया रावण लेकिन भोगा नहीं उसे
राक्षसों की दुनियाँ में आज बच्चियों को भी छोड़ा नहीं

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


नमन भावों के मोती
दिनांक : - 11/06/019
विषय : - घर

🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡

घर की हर दीवारें
अब कुछ कहती है
तेरी शरारत पर वह इतराती है

कहती है मुझसे
मुन्ना सिर्फ तुझसे नहीं माँ
मुझसे भी प्यार करता है
देखो मुझे गुदगुदी कर वह
कितनी आकृति बनाता है। 

खामोश ये दीवारें भी
नन्ही स्पर्श को तरसती थी
होली के छिंटे के अलावा
यहीं बाल कलाकृति ढूँढा करती थी। 

तेरा आगमन मुझे
अपना बचपन याद दिलाया है
मकान मेरा अब घर बना
हर कोना - कोना तुने ही सजाया है। 

शायद लगती हो किसी को
यह दिवारें गंदी पर
तूने किया था यही से शुरुआत है
कभी सबके बीच
कभी अकेले में छुप कर
बनाया था अपने भावनाओं का
पहला आकार है। 

स्वरचित: - मुन्नी कामत।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन मंच ११/०६/२०१९
विषय--घर
लघु कविता

मिलकर सब रहते जहाँ , कहते उसे सब घर
नैतिकता जिसके कण कण में, देता हर पल जो सुकून।

बहती हर पल प्रेम बयार, मिलता हर पल चैन
ऐसी दहलीज जो  बसता है , कहते उसको घर।

जिसका हर कोना मंदिर हो, शांति बसे हर कण कण में।
 जिसकी रज माथे से लग कर,देती अपार खुशी हमको।

जहां वास हो देवों का, आशीष बड़ों का मिलता हो
ऐसे स्थान को नमन करू, वह ही तो घर देवालय है।

(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन  मंच  भावों के मोती 
तिथि          11/06/19 
विषय         घर
***
घर और माँ के  मध्य वार्तालाप
****
ईंट गारे की दीवारों में ख़्वाब को सजाया था
जद्दोजहद के साथ इस मकान को बनाया था 
प्यार ,विश्वास एहसास की सतरंगी चूनर से
मकान को अपना खूबसूरत घर बनाया था ।

अकेला देख मुझे,दिल पर वार करता है
चुभती निगाहों से, ये घर पूछ लिया करता है
तुम्हारे नीड़ के पंछी एक एक कर उड़ गए
ढूँढती उनके सामानों में ,तुम्हें तन्हा कर गए।

तन्हा नहीं  मैं ,पल पल साथ रहते वो मेरे
घर के  हर कोने मे अपने अहसास बिखेरे
उड़ने को आसमान हमने ही दिया  उन्हें
उन्मुक्त गगन में वो ऊंची उड़ान भर रहे ।

स्वार्थवश  हम उनके पंखों को क्यों काटे 
संस्कार के बीज पड़े वो अपनी जड़ों से जुड़े
हमारे सपनों को पूरा कर नया आयाम दे रहे
और अपना जीवन भी अपने सोच से जी रहे ।

जवाब  मेरा  सुन , घर  सुकून से  भर गया 
कहने लगा ,आशय तुम्हें चोट पहुँचाना नहीं ,
तुम्हारी ही तपस्या से  मै सजीव घर बना हूँ,
निश्चिन्त हुआ ,अस्तित्व मेरा यूँ ही बना रहेगा ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


नमन        भावों के मोती
विषय       घर
विधा         कविता 
दिनांक      11.6.2019
दिन           मंगलवार 

घर
🎻🎻

घर!रिश्तों से जो रहता है तर
घर! एक दूसरे के लिये जहाँ रहते तत्पर
घर! आपसी खुशी में जो जाता भर
घर! समर्पण भाव रहे जब कोई  हो निर्भर। 

घर! खुशी का मिले जहाँ पडा़व
घर! जहाँ सम्भलता है भटकाव
घर! हँसता रहता जहाँ लगाव
घर! जहाँ मिले वृद्धों की छाँव। 

घर! बच्चों की हो जहाँ तरंग
घर! उन्मुक्त मेल की हो तरंग
घर! अच्छा हो जीवन का ढंग
घर! सब खायें गायें संग संग। 

स्व रचित 
सुमित्रा नन्दन पन्त

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

भावों के मोती
11  06 19
विषय- घर
दूसरी प्रस्तुति 

दीन कैसे जाए घर? 

दूर मूंडेर पर बैठा पंछी
जाने क्या सोच रहा 
धीरे धीरे इधर उधर तक रहा 
जाना "घर" वापस पर 
एक दाना भी नही पास 
कैसे भूख मिटाऐगा नन्हों की 
झांकते होंगे बार बार घोंसले से 
क्षूदा मिटाने अपनी 
राह तकते जन्म दाता की 
कुछ लेके आते होंगे 
उधर वो व्याकुल ढूंढ रहा 
जाते जाते कुछ पा जाऊं 
थोड़ा दे के ही बहलाऊँ 
कल का वादा कर सुलाऊँ 
हा जिंदगी कैसी विडंबना तेरी ¡¡
हर दीन भी दिन के अंत में 
यही सोचता सा घर जाता है 
अपनो से नजर चुराता है 
मानो अपराध कर घर लौटा है।

स्वरचित 
          कुसुम कोठारी।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
11-6--2019
विषय:- घर 

पंछी   पेड़ों पर   सो   जाते ,
निर्धन  फुटपाथों पर   सोते ।
निर्धन का सपना   घर होता ,
सपने  धनिकों के घर बोते ।

ऊँचे     महल    कँगूरों   वाले ,
आसानी  से    हैं   बन  जाते ।
उम्रें    लगती   घर   बनने   में  , 
त्याग  तपस्या  घर बन जाते  ।

सुशीला   जैसी   हो  भामिनी , 
वास उपवास  में जो कर लेती ।
प्रेम  विश्वास सौहार्द गुणों से , 
निर्धनता  में  ऐश्वर्य  भर देती ।

सीमेंट  की   मज़बूत  छतों में , 
रिश्ते  कहाँ मज़बूत  हैं मिलते ।
टूटे    बिखरे    पहन    मुखौटे , 
अवसादित मुख रहते खिल के ।

दो  शब्दों   से घर  बन जाता ,
दो   शब्दों  का  राम   नाम है । 
इक  में  हर्ष विषाद    वास है , 
दूसरे    में   पूर्ण    विराम  है ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन् भावों के मोती
11जून2019
विषय घर
विधा कविता

नीला अम्बर धरा निराली
दुनिया लगती बड़ी सुहानी
अपने घर की बात है आली
घर ही मेरी  दुनिया अपनी
छोटा सा  घर  प्यार भरा
फूल पत्तियों से हरा भरा
दरवाजे पर नीम का विरवा
बहती शीतल मन्द हवा
चीं चीं गौरैया आंगन में आती
बिखरे दाने चुन चुन खाती
घर में रहती चहल पहल
घुल मिल करते सभी टहल
मम्मी पापा का लाड़ प्यार
मिल जुल होते सब त्यौहार
लाड़ली बहना करती भाग दौड़
भाइयों से करती रहती होड़
नोक झोंक दिन भर हम करते
खेल कूद भी करते रहते
साधारण सा मेरा घर प्यारा
बसता उसमें संसार हमारा
प्यार और ममता की धारा
जीवन सुरम्य संसार हमारा

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली 

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

,🌹🌹जय माँ शारदे🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
नमन मंच भावों के मोती,,
11/ 6  2019 
बिषय घर,, 
 पहले एक ही छत के नीचे
 तीन तीन रहती थीं
इक दूजे का दुख सुख सब 
मिलजुल करके सहती थीं
   बड़े बजुर्गों के  इशारों पर सभी चलते थे
 उनकी ही छत्रछाया में 
नेह प्यार सब पलते थे
इन विशाल दरख्तों का रहता मर्यादाओं का द्वार
त्याग योगदान सहयोगों से
मिलजुल चलता घर परिवार
वर्तमान में में घर की परिभाषा 
बदल गई
 नव परिवेश परिधान 
सारी सभ्यता निगल गई
आज घर की जगह ली है 
मकानों ने
 साझा चूल्हा समेट दिया
आधुनिक सामानों ने
ए भवन अट्टालिकाऐं हमें चिढ़ाते हैं
इसमें हम दो,हमारे दो 
नजर आते हैं
 कहाँ गुम हो दादी की 
कहानी नुश्खों का खजाना
एक ही छत के नीचे सारे
तीज त्योहार मनाना
 काश फिर वही लौट आए 
जमाना 
वह एकसाथ हँसी खिलखिलाना 
मुस्कराना
स्वरचित सुषमा ब्यौहार 
🌸🌼🌹🌹🌹🌸🌸🌼🌼

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती 
विषय     -  घर 
तिथि      -  11/6/19
वार        -  मंगलवार 
कैसा अपना #घर और 
कैसा रैन #बसेरा है 
कर दिया अपने से दूर जहाँ 
रोशनी की कोई किरण नहीं
 छाया हर पल बस #अंधेरा है 
 माँ तेरे आंगन में ही मेरा हुआ 
हर दिन सुहाना #सवेरा  है 

बचपन से सुनती आई हूँ 
जिस घर जाओगी वह
 घर तुम्हारा अपना होगा
यहां भी सब कहते हैं 
 ये घर नहीं #तेरा मेरा हैं 
आज तक समझ ना पाई हूँ
 कौन सा #घर मेरा है 

 बस एक बार बता दो मां 
कौन सा मेरा #डेरा है

 स्वरचित मौलिक
         #पूनमसेठी 
        #बरेली_ उत्तरप्रदेश
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


शुभ संध्या
🏥 घर 🏥
द्वितीय प्रस्तुति

जब से घर में बिछे पत्थर
लोगों के दिल हुए पत्थर ।।
न दिलों में प्यार न मर्यादा
जबाव देंय बाप को पुत्तर ।।

कभी हुआ करते थे घर
बेशक मिट्टी के थे पर ।।
प्यार और स्नेह थे मन में
सौ से पार भी रही उमर ।।

अब तो महल बनाते हैं बस
हो जाते हैं टांय टाय फिस ।।
रहना नही उनमें हो पाता
उमर भी ज्यों रह जाती थक ।।

बीमारी कई लग जाती हैं
रौनकें सब रह जाती हैं ।।
कौन अब समझाये 'शिवम'
दीवारें घर कीं चिढ़ाती हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/06/2019

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन मंच :भावों के मोती 
विषय      :  घर 
तिथि       : 11-06-2019

चार दीवारों को लेकर 
एक घर बनाया 
खुशियों  का ....,
आयी-अगणित और अपार 
नन्ही  परी  के  रूप  में 
अब , घर ...घर लगने लगा 
स्वर्ग सरीखा ,
पर,न जाने किसकी लग गई नजर 
आया,एक भेड़िया कहीं से 
ले गया उठा कर घर की खुशी 
अब वह घर घर न रहा ....,रहते 
जिंदा लाश वहां,
चार दीवारों को लेकर,एक घर बनाया 
खुशियों का ......||

     शशि कांत श्रीवास्तव
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सादर अभिवादन
11-06-2019
घर-एक सराय
पहले हम पति पत्नी थे,
अब मैं, उनकी पत्नी हूँ।
और यह घर,
जो पहले घर होता था,
और वे भी इसके बाशिंदे थे,
मौत नही हुई थी तब हमारी,
वरन, हम सोलहों आने जिन्दे थे,
अब रह गया है, महज एक सराय। 
वे तो बस मुसाफिर हैं
आ जाते हैं यहाँ, चन्द घड़ियाँ बिताने।
या मुझे बरगलाने।
फिर मुड़ जाते हैं
कर चुकता संबंधों के किराये।
पहले तो आते रहे, कभी-कभार।
फिर, मैं करती रही इंतज़ार।
वे अब आए, तब आए,
मगर अब तलक न आए।
शायद, ढूंढ लिया
उन्होंने कोई दूसरा सराय।
-©नवल किशोर सिंह
    स्वरचित

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सादर नमन
            "घर"
फूलों की महक से,
घर मेरा महक गया,
कोयल सी कूहके बिटिया,
आँगन मेरा चहक गया,
उसकी तोतली बोली से,
संगीत का जैसे साज सजा,
दिन भर की थकान मिटाता,
उसका साथ जरा सा,
मेरे घर की नूर है वो,
घर में करती उजियारा,
मेरी लाड़ो दुनियाँ मेरी,
मेरे जीवन का है वो तारा,
मेरे घर की रौनक ने,
घर अपने पिया का सँवारा,
खुशियों से महकता रहे,
उसका जीवन सारा।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/6/19
मंगलवार
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


नमन मंच को 
11/6/2019
घर, गृह 
हाइकु 
1
घर है वृक्ष 
देता रहता छाँव 
नहीं अभाव 
2
गृह संस्कार 
प्रथम पाठशाला 
माता शिक्षक 

3
घर आंगन 
बिटिया फुलवारी 
सींचो मन से 

4
पिता व माता 
वासर को सजाये 
देते संस्कार 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


नमन भावों के मोती
दिनाँक-11/06/2019
शीर्षक-घर
विधा-हाइकु

1.
घर की शान
पहचाने बिटिया
मान मर्यादा
2.
अमूल्य धन
दो घरों का चिराग
 शिक्षित बेटी
3.
बेघर हुए
नदी किनारे बसे
गरीब लोग
4.
बर्फ का घर
हिमालय पर्वत
भारत ताज
5.
बेघर किए
सुनामी लहरों ने
हज़ारों लोग
6.
खुला आकाश
गरीबी मजबूरी
घर अपना
7.
फूस झोपड़ी
गरीब का सपना
सुंदर घर
8.
सूखे पोखर
तड़फती मछली
 हुई बेघर
9.
माँ का जिगर
वात्सल्य परिपूर्ण
प्यार का घर
10.
बिजली घर
गाँव और शहर
हैं जगमग
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


"नमन भावों के मोती"
विषय-घर
विधा-लघुकविता

बदल गया परिवेश
भूल गए हैं संस्कार
हो रहा है आपसी तकरार
रिश्ते हो गए हैं तार-तार
फोड़ रहा है सर
भाई-भाई का अब
हैं खून के प्यासे 
आज टूट रहा है
घर-परिवार।

राकेशकुमार जैनबन्धु
गाँव-रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

II  घर II नमन भावों के मोती.... 

घर था कभी जो अब मक़ान हो गया...
ज़िंदा लाशों का वो शमशान हो गया....

कच्चे घरों में आती थी रिश्तों की खुशबू...
पक्के क्या हुए सब सुनसान हो गया....

बरगद के पेड़ तले, फले फूले सभी मगर...
ताड़ क्या हुए बरगद ही मेहमान हो गया...

थी दिलो में रंजिशें मगर ऐसी ना थी कभी....
के दूध के कर्ज को भी मन बेईमान हो गया....

रहा दौरे मुफलिसी बेशक पर बरकतें भी थीं....
छुआ जो आसमान तो सब वीरान हो गया...

कहाँ से लाऊँ ढूंढ के अब वो रिश्ता वो दिल....
हो फख्र जिसपे के प्यार पे कुर्बान हो गया....

खोजा बहुत 'चन्दर' मगर मिला नहीं वो नश्तर...
चीर डालूँ जिससे दिल जो ज़हरे मकान हो गया....

II  स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
११.०६.२०१९

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

दि- 11-6-19
मंगलवार 
शीर्षक- घर
सादर मंच को समर्पित -

          🏡 🌺🌴     घर     🌴🌺🏡 
       ****************************
        🏨 🎪🏦🎪🏦🎪🏢🏡🏗🏝

घर
बनता नहीं मात्र ईंट गारे की चारदीवारी से , 
न आलीशान महल, साजो-सामान से ,
नौकर-चाकरों की लाइन से नहीं ,
न भारी सजावटी ताम-धाम से ।

घर 
बस " माँ " है तो घर है ,
घर बनता माँ की ममता से ,
दिन-रात सब के लिए खटने से ,
बच्चों की गूँजती किलकारी से ।

घर
लगता है सुबह-शाम मिल कर आरती वन्दन से ,
प्यार घुले रुचि के खाने से ,
नाश्ते , भोजन को एक साथ पाने से ,
दादी-दादा के दुलार ,हँस के रिझान से ।

घर 
स्वर्ग बनता है रीति-रिवाज हर्ष साथ निभाने से ,
मंगल त्यौहार आनन्द ,प्रेम से मनाने से ,
गलती पर दादा की डाँट व दादी की कहानी-लोरी से,
सभी का आदर व मर्यादा पालन से ।

घर 
अब घर नहीं हैं , 
सन्नाटे में कैद बहुमंजिला एकाकी जीवन ,
सुबह बच्चे भागते स्कूल को पैक ,
मियाँ-बीबी की  काम पर मशीनी  प्रथक दौड़ ।

बेजुबान घर 
बच्चे आकर सहमे चाकरों के भरोसे ,
रात को थके मोम-डैड निढाल , 
खाने ,सोने तक चाकर सेवा मोबाइलों में व्यस्त ,
ट्यूटर द्वारा पढ़ाई की इतिश्री , नैट गेम एकांत ।

घरेलू तीज-त्यौहार 
आधुनिक पार्टी ,माल ,होटल जंक फूड ,डांस.. ,
बच्चों से गुडनाइट , हलो, हाय बनावटी आडम्बर ,
मेहमान भी कौन प्रेम की आशा रखे , न अतिथि सत्कार ,
मैं , मेरे बच्चे , न दादी ,न दादा , कैसी घर की मर्यादा ।।

                   🏡🏝🌺🌴🎪😂

🏝🏡**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा        
                      मो0-8532852618
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

भा. 11/6/2019/मंगलवार
बिषयःःघर
विधाःः ः काव्यः ः

  जोड जोडकर तिनका तिनका,
    यहां सुंन्दर सा एक नीड बनाया।
       रहें प्रेम से मिलजुलकर घरवाले,
         तो मनमंदिर सब वे पीर बताया।

   सुंन्दर सुहावना सपना होता। 
     घर अपना घरवालों से होता।
       घर मिट्टी पत्थर का नहीं होता,
          घर उसमें रहने वालों से होता।

प्रेमभाव से रहें सभी अगर तो,
  घर मंदिर मस्जिद बन जाता।
    हम कहीं ढूंढते जिसको बाहर,
       सचमुच घर देवालय बन जाता।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम रामजी

भा. 11/6/2019/मंगलवार

 #घर# काव्यः ः

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती
घर,
मंगलवार
11,6,2019

घर हमारा
बगिया गुलाब की
प्यार आपसी
मलयज समीर
महके एहसास

रेशम डोर
पंछियों का बसेरा
घर घरोंदा
मिलने को आतुर
साथ बहुत भाता ।

सपना एक
तलाश जीवन की
गहरा रिश्ता
सुख दुःख समान
घर की सार्थकता

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश



नमन भावों के मोती 
विषय - घर 
चंद हाइकु मंच को समर्पित 


घर में खिले 
ह्रदय जब मिले 
प्रेम सुमन 


प्रभु का घर 
थका हारा ढूंढता 
ह्रदय मेरा 


खुशी का घर 
छोटा एक मकान 
पिया के संग 


ह्रदय मेरा 
प्रियतम का घर 
ढूंढे किधर 


उठी दीवार 
बॅट गया है देखो 
घर आंगन 


प्रेम एकता 
घर बना मंदिर 
आयी समृद्धि 


मन बेघर 
कमरों में जीवन 
बड़ा मकान 


घर की नींव 
हर्षित होते देव 
प्रेम विश्वास 


घर उदास 
गुमशुदा विश्वास 
टूटती आस 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई  (दुर्ग )

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
नमन मंच भावों के मोती
11/6/2019
विषय-घर
घर जो हमारे सुख दुख का गवाह
मात्र  ईमारत नहीं, बल्कि वह जगह है जहाँ हम दुनिया का सबसे ज्यादा सुकून पाते हैं ।
घर प्यारा घर जिसमें आपसी प्रेम सानिध्य की सौगात पाते हैं ।
घर जिसकी दीवारें प्रेम के रंगों  से रंगी  होती हैं ।
जिसके दरवाजे स्नेह के आमंत्रण देते हैं।
जिसकी नींव विश्वास पर टिकी होती है ।
जिसकी पाठशाला में प्रेम त्याग के गुण सीखते हैं ।
घर जहाँ हम दुनिया भर की ख़ुशी पाते हैं।
जहाँ हम दिन भर की थकान मिटा तरोताजा होते हैं ।
जहाँ मीठी नींद और सुनहरे सपने छिपे होते हैं ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

भावों के मोती : शब्द :घर 
****************(***(*(*
वो घर जहाँ मेरे अपने बसते थे
वो घर जहाँ मेरे सपने हँसते थे
बहुत दूर निकल आए है हम 
चलते चलते कहाँ आगए हम 
चलो , अब अपने घर चलते हैं 

जहाँ बच्चों की किलकारियाँ 
गूँजती थींआँगन में 
गीत सजते थे सावन में ।
जहाँ जिंदगी की तस्वीर से 
दीवारें भरी होती थी.
हर तस्वीर का अपना ही रंग होता था 
और उनकी अपनी  कहानियाँ होती थी 
और हर तस्वीर अपने ही रंग में रंगे होते थे
चलो चलते हैं फिर उस घर में ।

जहाँ छत से होकर 
बारिश का पानी टपकता रहता था 
और छम छम बूँदें नाचती थीं 
छोटी बडी काग़ज़ की नाव 
पानी में तैरा करती थीं।
उन नावों में होकर सवार 
हमारे सपने गाँव गलियों की सैर करते
हम तब कितना खुश होते ।
चलो चलते हैं फिर उस घर में !

जहाँ दोपहर को खुले आकाश में 
अपने पतंग की डोर थामे 
इधर  उधर थिरकते फिरते ।
छोटे बडे रंग बिरंगी पतंगों से भरा आसमान
कितना प्यारा लगता था 
आसमान बँट जाता था हिस्सों में
और सबका अपना हिस्सा होता था 
चलो चलते हैं फिर उस घर में!

शाम को घर के अहाते में यार दोस्त आकर मिलते 
बडे बूढ़े बच्चे हँसी ठिठोली करते नहीं थकते ।
दादी नानी कहानियों की गठहरी खोलते 
और सुनाती परियों की कहानी 
हम बेसुध से उनकी गोदी में सर छपाकर सोजाते ।
ठंडी हवा थपकी देकर हमें छेड़ती 
माँ प्यार से माथा चूम लोरी गाती ।
चलो चलते हैं उस घर में!
स्वरचित(c) भार्गवी रविन्द्र ....बेंगलूर ....११/६/२०१९

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन  मंच 
11/6/2019
मंगलवार 
विषय -घर

घर  ,
घर  की  बाते  सबकी  
अपनी  होती  है ,
कोई  किसी  से  नहीं  करता 
अपने  घर  की  बाते ,
जहाँ  होती  है  घर  की  बाते 
वहाँ  घर  नहीं  होते ,
वहाँ  तो  बस  बेघर  होते  है 
किसी  के  उर  से  
तो किसी  के  प्रेम से 
तो किसी के  यकीन  से ......
स्वरचित  
शिल्पी  पचौरी
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...