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ब्लॉग संख्या :-404
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक विपदा ,संकट
विधा लघुकविता
01 जून 2019,शनिवार
हिमगिरि उत्तुंग शिखर पर
बैठ तपस्या ऋषिवर करते
दिनरात विपदाएं सहकर
कानन से ये कभी न डरते
दैहिक दैविक भौतिक विपदा
विपदा जीवन प्रिय सृंगार है
पहले पतझड़ आता प्रकृति में
फिर उपवन में खिले बहार
मानव जीवन हमें मिला है
विपदाओं को गले लगाओ
खून पसीना सदा बहाकर
अपना जीवन सदा सजाओ
मानो तो विपदा अति भारी
न मानो तो क्या विपदा है?
लाख मुसीबत आने पर भी
कर्मवीर सदा ही हँसता है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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1/6/19
💐💐
संकट/विपदा
💐💐💐💐
कैसी विपदा आन पड़ी।
बड़ी हीं मुश्किल है ये घड़ी।
भाई,बन्धु,सखा,सभी।
पीछे पड़े हैं मेरे।
पैसों की खातिर हैं सब,
जीना मुश्किल किये मेरे।
पैसा है सब फ़ंसादों की जड़।
इसीसे रिश्तेदारी निभती।
कैसी..........
पैसा जबतक,रिश्ता तबतक।
पैसा हीं संग सहेली।
पैसा खत्म होते हीं सबने।
अपनी राह चल दी।
कैसी........
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स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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(( संकट विपदा ))
दुआयें लिया करो विपदा से उबारतीं हैं
दुआयें ही हैं जो जिन्दगी को संवारतीं हैं ।।
विपदायें आती हैं आयेंगी नही डरना
विपदायें ही कभी जीवन निखारतीं हैं ।।
जड़े उनकी गहरीं होती जो पेड़ और
जिनकी टहनियाँ तूफां से न हारती हैं ।।
विपदायें हरदम न रहीं आँधी ही हैं ये
जाने क्यों इंसानी सोच ये न विचारती हैं ।।
विपदा किस संग न आयी हों रघुराई
सच्चे मन पढ़े रामायण जो पारखी हैं ।।
नेकी भलाई सहृदयता वो गुण ''शिवम"
राम जैसी खाली हाथ विजय दिलाती हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/06/2019
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संकट समय सदा आता है
अग्नि परीक्षा लेने को
धीर धरे मन में जो रह कर
विकल न हो अकुलाये ।
संयम विवेक को धारण कर
चंचल मन लगाम लगाये
करे प्रतीक्षा मौन ही रह कर
समय निकल सब जाये ।
दुख सुख सब आते जाते हैं
काल चक्र में बिंध कर
हार नही सकता मानव पर
पग धरे विजय के पथ पर ।
स्वरचित :-उषा सक्सेना
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अर्ज सुन लो हमारी
श्याम मोहन मुरारी
कठिन राहें बहुत है
पडी विपदा भारी
अर्ज सुन लो हमारी
श्याम मोहन मुरारी
मन थका तन दुखी
आस है एक तुम्हारी
अर्ज सुन लो हमारी
श्याम मोहन मुरारी
जाएं तो जाए कहां
हमको न भाए जहां
शरण आए मनोहारी
अर्ज सुन लो हमारी
श्याम मोहन मुरारी
विपिन सोहल
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भावों के मोती
1/06/19
विषय - संकट/विपदा।
संकट बाल गोपाल का
मईया बोली सुन मोरे लला
काम पड्यो अति भारी
मैं आऊँ तब तक तूं ही
कर माखन रखवारी
तूं कहत सदा,ग्वाल बाल
ही है माखन के चोर
चोरी करत सब ,
मेरे लल्लन पर डालत दोष
आज तूं ही संभाल माखन मेरो,
दूंगी तूझे घनेरो
सुन मईया की बात मनमोहन
पड्यो घणे संकट में
माखन भरो पड़्यो कटोरो
नही चख पाऊं मैं
निगरानी में डारयो मईया
कैसी अनीति मचाई
सच माँ तूं मोसे सयानी
चोर कू ही कोतवाल बनाई
मै तो जग को ठाकुर हूं,
पर तूं मोरी भी माई।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
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नमन--मंच भावों के मोती
दिनांक-1/6/2019
शीर्षक-संकट
विधा-दोहे
सारी दुनिया हो गई, जल #संकट से त्रस्त।
जल मीठा मिलता नहीं, सकल जगत है पस्त।।
चलन चले तकनीक का, जल का उचित प्रबंध।
बद से बदतर हो रहे, जल सजीव संबंध।।
नीर संपदा कीमती, कुदरत का उपहार।
पर जल संकट से मनुज ,कैसे पाएं पार।।
वर्षा जल संचय करो, करो सकल आयास।
डग-डग नीर बचाइये, बुझे जीव की प्यास।।
नीर व्यर्थ न बहे मनुज , देना इस पर ध्यान।
यक्ष प्रश्न है आज का, ले लो कुछ संज्ञान।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन भावों के मोती
विषय-संकट
विधा-लघु कविता
शीर्षक- "जल संकट"
बहता था कितना पानी
सुनते थे नदियों की
कलकल वाणी
खुश कितना
तब था प्राणी
धरा बनी थी महारानी
पर जल स्तर अब
घट रहा है
जीवन प्यासा मर रहा है
संभल जा तू
ये जल संकट सलाह दे रहा है।
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
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1/6/19
भावों के मोती
विषय-संकट/विपदा
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जेठ दुपहरी की तपन,नौतपा का प्रहार
विपदा यह सबसे बड़ी,करते हाहाकार
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तन जलावे धूप बड़ी,लू का तीखा वार
कैसे यह विपदा टले,प्रभू लगाओ पार
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जल संकट से हर तरफ,मच रहा कोहराम
करो सूर्य उपकार तो,मिल जावे आराम
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कुम्हलाय पेड़ पौधे,संकट बढ़ा अपार
वर्षा के दिख जाए अब,थोड़े से आसार
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***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
016-2019
विषय:- संकट
विधा :-हरिगीतिका छंद
संकट तुम्हें आता दिखे जब , धैर्य को मत खोइए ।
मुश्किल समय जब बीत जाए , कष्ट को मत रोइए ।
जितनी कठिन हो राह उतना , हर्ष मिलता है उसे ।
डंका सदा बोले उसी का , कीर्ति है वर ले जिसे ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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जल संकट पर पाँच दोहे --
कल की चिन्ता सोच के, होता हृदय अधीर।
जल संकट है ये बना, आज बहुत गम्भीर।।
जिसके अन्दर है छिपा, अदभुत जीवन सार।
जल बिन संभव है नहीं, जीवन का आधार।।
बहता पानी देख कर, हुई हृदय में पीर।
मूर्ख हुआ क्यों आदमी, व्यर्थ बहावें नीर।।
जल संरक्षण सब करें, यह मेरा आह्वान।
दोहन करना छोड़ दो, सबकी है यह जान।।
जल स्तर इतना गिरा , सूख गए सब कूप।
धरती बंजर हो रही, सोया क्यों है भूप ।।
✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'
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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, संकट, विपदा, नशा,
दिन, शनिवार,
दिनांक, 1,6,2019,
नशा मुक्त हो जो आदमी,
विपदा आये न पास ।
तरह तरह के हैं नशा,
इनसे बचा न कोई आज ।
सबसे घातक है जो नशा,
वो दौलत कहलाये ।
प्रहर दो प्रहर में उतरे हर नशा,
दौलत का कभी न जाये ।
सबसे बड़ी विपदा यही,
जीवन में लेकर आये ।
सब दुनियाँ को भूलकर मनु,
दौलत को गले लगाये ।
मदमाता रहे रात दिन,
ईश्वर खुद ही बन जाये ।
जब समय चक्र की गति कभी,
जीवन में विपदा लाये ।
हाथ मले और सिर धुने,
उपाय समझ न आये ।
धैर्य मित्र जो साथी रहे,
फिर विपदा निकट न आये।
प्राकृतिक आपदा हैं कई ,
मानव ही जिम्मेदार बन जाये।
कुछ सोचे समझे बिना वो,
स्वार्थ वश हानि प्रकृति को देय ।
जो करें संरक्षण हम प्रकृति का,
और करें चरित्र का अपने निर्माण।
नशा हमारे पास फटके नहीं,
बने प्रकृति हमारे लिए वरदान ।
विपदाओं से हम सब बचें ,
हो मानवता का कल्याण।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 1-6 -2019 (शनिवार)
विषय : विपदा /संकट
आता है वही दरबार में
जो विपदा का मारा होता है
कोई पाता है
कोई खोता है
कोई हंसता है
कोई रोता है
होता है वही इस धरती पर
जो उनको गवारा होता है
आता है वही दरबार में
जो विपदा का मारा होता है
मातम में वहीं
खुशियों में वहीं
महलों में वहीं
कुटियों में वहीं
गिर कर भी कोई उठता है तभी
जब उनका इशारा होता है
आता है वही दरबार में
जो विपदा का मारा होता है
यह रचना मेरी स्वरचित है
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
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नमन
भावों के मोती
1/6/2019
विषय-संकट/विपदा
विपदाएं कह कर नहीं आती,
जब आती है भूचाल लाती हैं।
छिन जाता सुकून जीवन का,
हर राह बंद हो जाती है।
जिन्हें अपना समझते हैं,
जिनके साथ हंसते हैं।
छोड़ जाते हैं साथ वे अक्सर
विपदाएं सच को दिखलाती हैं।
मत हारना कभी हिम्मत
जब साथ दे न किस्मत
विपदाओं का करो सामना
तो विपदाएं हार जाती हैं।
यह पल होता बड़ा कठिन
धैर्य भी कांपता हर क्षण
रखो विश्वास गर खुद पर
नयी राहें निकल आती हैं।
न घबराना संकट में
परिस्थिति हो चाहे विकट
लेना सदा विवेक से काम
तभी मंजिल नजर आती है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
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नमन मंच ०१/०६/२०१९
विषय--संकट/ विपदा
जब जब संकट आता है धरा पर,
तब तब अवतार होता है धरा पर।
क्यों न मिल कर कुछ जतन करें
जो संकट ही न आए फिर से धरा पर।
करें सामना डट कर संकट का,
मान बढाएं मिल कर सब का।
यह जीवन है अनमोल हमारा,
करें सफल हम जीवन सब का।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
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नमन मंच
आज का शीर्षक -- संकट / विपदा
विधा -- मुक्तक
तिथिं -----1 जुन 2019
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कितने संकट आये ये तन -मन वतन को अर्पण ।
जीवन के सारे संकल्प राष्ट्र- हित में ये समर्पण ।
संकट सहकर भीं वतन की सेवा करू निश -दिन -
क्लेद युक्त तन ये प्राण-पुष्प मातृभूमि हित तर्पण ।
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राष्ट्र -सेवा करता रहूं चाहे कितने संकट आये ।
रूके ना कदम थके ना कदम कितने कंटक आये ।
जीवन का हर पल हर क्षण राष्ट्र को समर्पित ---
सदा प्रीत राष्ट्र से होवे प्रीत से मन भटक ना पावें ।
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संदीप शर्मा
अलवर राज
स्वरचित .....
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आप सभी को मेरा हार्दिक नमन
आज की प्रस्तुति में
दोहे
जल संकट छाया विकट,सूखे सब जलधार।
समझो पानी मोल रे,जीवन का है सार।।
काट काट सब वन विटप,जंगल दियो उजाड़।
हरे भरे सब पेड़ थे,हुए झाड़ झंखाड़।।
आकुल होती है धरा,छाती गये चिराय।
तरस रही है बूँद को;काया अगन लगाय।।
जीव जन्तु आकुल सभी,जाते सरिता तीर।
प्यासे अतृप्त लौटते,पाते बूँद न नीर।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
1-6-2019
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नमन मंच
1.6.2019
विषय। विपदा , संकट
जब जब भी विपदाओं ने भरमाया
और और घट जीवन का भर पाया
सुख के दिन और दुखों की हो रैना
मैं देख रहा यह लीला भर भर नैना
तूने भी पाई पीढा़ ये वनवासी
झेल रहा हूँ मैं भी दर्द प्रवासी
जब जब भी विपदाओं ने भरमाया
मैं और और घट जीवन का भरपाया
जीवन चक्र सरल कभी हुआ वर्तुल
आगत का स्वागत, सह ध्वनि कर्तल
जीवन को तो अपने खूब सजाया
मृत्यु गीत ने इसको माटीमोल बताया
जब जब भी विपदाओं ने भरमाया
मैं और और घट जीवन का भरपाया
तम ने जब साम्राज्य सजाया अपना
गाँव उजास का जगाया था मैने
भय अँधियारे का जब जीत न पाया
बैठ दूर अलावों से वो खिसयाया
जब जब भी विपदाओं ने भरमाया
मैं और और घट जीवन का भर पाया
हवन करते करते जब हाथ जला था
विश्वास घात जब जीत गया था
तब भी आशाओं का दीप जलाया
उलझे उलझे से भावों क सुलझाया
जब जब भी विपदाओं ने भरमाया
मैं और और घट जीवन का भर पाया
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
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भावों के मोती दिनांक 1/6/19
संकट / विपदा
धैर्य धरो
संकट में
नैया पार
हो जाए
नाम जपो
ईश का
जीवन सफल
हो जाए
जीवन नैया
लेती
हिचकोले
फंसी बीच
भंवर में
साथ है अगर
ईश तो
विपदा टारे
क्षण भर में
विपदा सह कर
माता पिता पाले
संतान को
अगर न दे साथ
माता पिता का
संकट टारे न टरे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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नमन मंच 🙏
शीर्षक-"संकट/विपदा"
दिनांक- 1/6/2019
विधा- लघुकथा
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नीरज माँ का लाडला, दादा- दादी की जान पिता का अभिमान बहन का हीरो था |
नीरज "माँ 12वीं का रिज़ल्ट बहुत अच्छा रहा, क्या इस बार दोस्तों के संग कुछ दिनों के लिये बाहर हो आऊँ |"
माँ थोड़ा बेमन से "बेटा मैं सोच रही कि परिवार संग कहीं घूम आते हैं |"
नीरज "रहने दो माँ मुझे मालूम है पापा को ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी और जाना केंसिल हो जायेगा |"
माँ "ऐसा नहीं है बेटा पिछले से पिछले साल गये थे न हम छुट्टियाँ मनाने |"
नीरज की जिद्द के आगे मजबूर होकर माँ ने दोस्तों संग जाने की इजाजत दे दी |
दोस्तों के साथ घूमकर आने के बाद नीरज कुछ अलग-अलग सा लगने लगा, कम खाना, ज्यादा बाहर रहना, बस यही सब रोज हो रहा था |
माँ "क्या बात है बेटा तु घर से ज्यादा बाहर रहता है |"
नीरज "कुछ नहीं माँ |"
फिर एक दिन कपडे धोती हुए माँ को नीरज की जेब से सिगरेट, नशीली दवाइयाँ मिली |
माँ को बड़ा धक्का लगा "ये कैसा संकट आ गया प्रभु |"
बेटे की हालत भी गंभीर दिखने लगी पर इतने बड़े बच्चे को कैसे समझाते, डाँट फटकार से कहीं वो ओर कुछ गलत न कर लें |
माँ ने यह बात आराम से उसके पिता को बताई |
पिता "ये तुम्हारे ही लाड-प्यार का नतीजा है |"
माँ "सारा दोष मेरा ही नहीं आपके पास भी तो बच्चों के लिये वक्त नहीं कुछ वक्त बच्चों के लिए निकाला होता तो शायद वो अपनी खुशियाँ दोस्तो में न ढूँढता |"
पिता "चलो अब एक दूसरे को दोष देने से अच्छा हम अपने भटके बेटे को वापस लाने की कोशिश करें |"
फिर वो ज्यादा से ज्यादा वक्त अपने बच्चों को देने लगे, अब नीरज को इतना भी समय न मिलता कि वो नशा कर सके बस धीरे-धीरे परिवार की एकता व प्यार ने नीरज व उसके परिवार को इस संकट से बचा लिया |
अत: व्यस्तता के चलते अपने परिवार को न भूलें वरना वो अपनी खुशियाँ दूसरों में ढूँढने लगते हैं ,और ऐसे कई संकटों के जाल में फँसते चले जाते हैं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच
दिनांक ..1/6/2019
विषय .. संकट/ विपदा
विधा .. लघु कविता
*********************
सारे संकट खत्म हो गये,
अब ना विपदा आयेगी।
आजादी को माँगने वाले,
तेरी भी बारी आयेगी।
....
तपी हुई ये धरती मेरी,
सोने से भर जायेगी।
अब ना कोई कृषक मरेगा,
अच्छे दिन अब आयेगी।
....
देश सुरक्षित हाथों मे है,
शौर्य शीर्ष तक जायेगा।
भगवा रंग मे डूबा भारत,
जय जयकार लगायेगा।
....
शेर हृदय पुलकित होकर के,
राष्ट्रगीत अब गायेगा।
जननी जन्मभूमि माँ तुम पे,
जीवन ये दे जायेगा।
...
शेरसिंह सर्राफ
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सादर नमन
आज का शीर्षक- संकट/विपदा
विधा- भजन
माँ ओ.... माँ
माँ तू शेरोंवाली,
विपदा तू हरने वाली,
सुन ले तू मेरी पुकार,
खड़ी मैं तेरे द्वार,
आँसू है माँ मेरे नैन में,
आई मैं तेरे भवन में,
मेरी तू कर ले गौर,
टूटी रिश्तों की ड़ोर,
माँ ओ.... माँ,
माँ तू शेरोंवाली,
विपदा तू हरने वाली,
खड़ी मैं झोली पसारे,
नैन भी रोकर हारे,
संकट की तू है हरता,
आशीष तेरा है फलता,
सुन ले तू मेरी पुकार,
खड़ी मैं तेरे द्वार,
माँ. ओ... माँ
माँ तू शेरोंवाली,
विपदा तू हरने वाली,
चाहूँ तेरे आँचल की छाया,
रखना तू सदा अपना साया,
भजन मै तेरे गाऊँ,
श्रद्धा मन में जगाऊँ,
माँ रखना तू कृपा बनाके,
रखना मजबूत रिश्तों के धागे।
माँ ओ... माँ.
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/6/19
शनिवार
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नमन भावों के मोती
🙏🏻🌹🌺🌹🙏🏻
दिनाँक-01/06/2019
शीर्षक-संकट, विपदा
विधा-हाइकु
1.
अहं लड़ाई
बन गई आफत
समझे कौन
2.
लड़ते बेटे
धर्मसंकट में माँ
किसकी सुने
3.
संकट घड़ी
ले आए संजीवनी
पवनपुत्र
4.
जल संकट
समस्या है विकट
हो समाधान
5.
भारी संकट
बढ़ती जनसंख्या
हल निकालो
6.
घटते पेड़
बढ़ता प्रदूषण
जीव संकट
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर (झज्जर)
हरियाणा
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आया संकट
सगे संबंधी गोल
कसैला सच।।
ख़राब वक्त
आये बिन बताये
लड़ाकू जीतें।।
विपदा भली
आकर टल गयी
मित्र गायब।।
विपत्ति भारी
आगयी महामारी
घूमें लुटेरे।।
छाया संकट
आया वक़्त विकट
धर्मसंकट।।
गंगा भावुक
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शुभ संध्या
विषय-- (( संकट/विपदा ))
द्वितीय प्रस्तुति
विधा--ग़ज़ल
विपदा के बादल जब छाये
नजर द्वार तब प्रभु के आए ।।
वरना कहाँ जिकर प्रभु की
स्वारथ में यह तन लिपटाये ।।
मिले अगर जो बैठे ही बैठे
हाथ पैर फिर कौन हिलाये ।।
यहाँ अपने कौन पराये कौन
विपदा ही यह बताकर जाए ।।
सकारात्मक सोच जहाँ हो
कुछ न कुछ वो निश्चित पाये ।।
हर शय के दो पहलू होते
कौन में कौन नजर गढ़ाये ।।
परमपिता वो ''शिवम" हमारा
डाँटे भी और प्यार दिखाये ।।
जाने क्यों इतनी सी बातें
इंसान के समझ नही आए ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/06/2019
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नमन मंच को
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 01/06/2019
शीर्षक :- संकट/विपदा
संकट करते विचलित..
करते मार्ग अवरोधित..
डंटकर हो मुकाबला..
जब भय नहीं किंचित..
संकट है कांटे राह के..
संकट भटका देते हैं राहें..
हारा वही जो जूझा नहीं..
हालात को वो समझा नहीं..
हौसले जिसके हो चट्टान से..
दृढ़ हो लड़ा जो,वो हारा नहीं..
संकटों से जो घबरा जाए..
कहाँ वो सफल हो पाए..
संकट कहाँ नहीं मिलते जीवन में..
कांटों सँग पुष्प खिलते उपवन में..
क्षणिक धैर्य व चिंतन हो..
संकटों का भी मनन हो..
जीत जाए वो हर बाजी..
जिसका संकल्प अटल हो..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन भावों के मोती
विषय संकट
विधा कविता
दिनांक 1.6.2019
दिन शनिवार
संकट
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जीवन के किस पथ पर नहीं है संकट
जीवन के किस पथ पर नहीं है झंझट
जीवन के किस पथ पर नहीं है खटपट
जीवन ऐसे ही नहीं दौड़ता है सरपट।
सबको हिसाब से ढलना होता है
श्रम में भी जलना होता है
संकटमय बाधाओं को रस्ते की
सफलता में बदलना होता है।
संकट ही संघर्ष सिखाते हैं
संकट ही उत्कर्ष दिलाते हैं
संकट ही तो दृड़ बनाते हैं
संकट ही सब कुछ बताते हैं।
स्व रचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
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नमन "भावो के मोती"
01/06/2019
"विपदा/संकट"
😊😊😍😊😊😍😊
सजन मोरा बावरा भयो री सखी!!
उमरिया न देखत अपना सखी!
बार-बार दर्पण निहारत सखी!
होके मगन मुखड़ा देखत सखी!
संकट की सूचना लागे हे सखी!
बलम मोरा बावरा भयो री सखी!
कहता है तू अब जा चली
मुझे तो भा गई है तेरी सखी!
मैं तो काट ली जीभ सखी!
विपदा तो आ पड़ी है सखी!
पिया मोरा बावरा भयो री सखी!
हठ ये कैसी कर ली है सखी!
दूजा ब्याह की लगन लगी है सखी!
मैं तो लाज से मरी जाऊँ सखी!
आई कैसी विपदा की घड़ी !
पिया मोरा बावरा भयो री सखी!
कह दी आज तो मैं भी सखी!
जा बन जा फिर से दूल्हा
बच्चे भी तेरे बनेंगे बाराती
ले आ बच्चों के दूजा महतारी
संकट से निपट लूँगी हे सखी!
अब तो मैं भी हुई बावरी सखी!
कर लूँ मैं भी स्वागत की तैय्यारी
हाथों में झाड़ू लेके रहूँगी खड़ी
दैय्या! री दैय्या !मैं तो मर गई सखी!
आई है मुझपर विपदा बड़ी!!!
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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भावों के मोती
शुभ संध्या
विषय =विपदा/संकट
विधा=हाइकु
होते हैं प्यारे
अपने ही पराये
संकट वक्त
ऐसा लगता
भगवान भी शक्त
विपदा वक्त
विपदा वक्त
मानवता जागे
वही है आगे
रहे सचेत
कहकर न आए
संकट वक्त
खूब सिखाता
संकट का समय
ज्ञान का पाठ
कर्म हो सही
संकट आए नहीं
बात है सही
बाढ़ की मार
संकट अवतार
छुटा है द्वार
संकट घड़ी
धरा की छाती चीर
सीता जी चली
पानी संकट
अपनों से झंझट
नलों पे आज
===रचनाकार===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
01/06/2019
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
01/05/2019
विषय:-विश्व तम्बाखू निषेध दिवस पर चंद पिरामिड...
(1)
है
नशा
विनाश
क्षण मज़ा
जीवन सजा
डूबे परिवार
निषेध से उद्धार
(2)
हा
नशा
दुर्दशा
तन फँसा
यम का द्वार
जीवन ख़राब
तम्बाखू या शराब
(3)
है
काल
तम्बाखू
विष पान
क्यों अनजान
मौत का सामान
लत को पहचान
(4)
है
नीति
दोगली
जेब भरे
तम्बाखू बेचे
निषेध से बचे
जीवन से यूँ खेले
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन मंच को
विषय : संकट / विपदा
दिनांक : 01/06/2019
विधा : गीत
संकट
जिसमें दर्द नहीं हों यारो,
ऐसा भी अफसाना कैसा ॥
विपदाए तो इम्तिहान हैं
संकटों से घबराना कैसा ॥
संकटों से ही तो है़ मिलती ,
जीवन की हर सच्ची सीख॥
नाम उन्हीं का होता जग में
संकटों को जो लेते जीत ॥
जीवन के संग चलती विपदा,
हो कोई यार पुराना जैसा,
विपदाए तो इम्तिहान हैं
संकटों से घबराना कैसा ॥
आज नहीं तो कल जाएंगी ॥
सुबह सुहानी फिर आएगी ॥
यूं ना बैठो मन मार कर,
जिंदगी फिर से मुस्कएगी॥
हार ना मानों दिल से प्यारे,
दुख में नीर बहाना कैसा,
विपदाए तो इम्तिहान हैं
संकटों से घबराना कैसा ॥
विपदाए तो इम्तिहान हैं
संकटों से घबराना कैसा ॥
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब
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"नमन-मंच"
"दिनांक-१/६/२०१९"
"शीर्षक-संकट/विपदा
सेहत पर जब संकट आये
स्वदेशी ,स्वच्छ भोजन ही खायें
डर डर कर क्यों जिये जग में
संकट तो पल पल कदम बढायें।
घोर मिलावट हर बस्तु में
जल प्रदूषित हर नदियाँ में
है हमारी नैतिक जिम्मेदारी
हम सब पर न आये संकट ।
आशंकित न हो हम करें प्रलाप
ये नही हमारा काम
दूरदर्शी वही कहलाये
जो संकट को पहले ताड़ पाये।
चलो उठाये कुछ ऐसा कदम
मिलावट से बचे हम सब
हर एक की एक कोशिश
ला देगी बदलाव भारी।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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भावों के मोती
1/06/19
विषय - नशा /व्यसन
विधा - वर्ण पिरामिड
हा
फसा
तम्बाकू
व्यसन में
कैसा था मजा
बुरा हुवा हाल
असाध्य रोग लगा।
है
नशा
शराब
बुरी बला
जानते सभी
करते फिर भी
होती कैसी दुर्गति।
रे
प्राणी
दुर्लभ
नर भव
व्यर्थ न कर
जीवन अमूल्य
नशा नाश का मूल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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