Monday, June 17

"पिता"16जून 2019

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ब्लॉग संख्या :-419

सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
पितृ दिवस पर सभी पिता को हार्दिक बधाई🙏
16/06/2019S
  "पिता"
वर्ण पिरामिड
1
है
पिता
महान
धनवान
संतान प्राण
परिवार शान
जेब रखे मुस्कान
2
है
पिता
विधाता
दु:ख हर्ता
भाग्य निर्माता
वटवृक्ष छाया
लुभावनी है काया।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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16/6/2019
                पिता
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, मित्रों।
पिता जन्मदाता है,
अच्छे,बुरे का ज्ञान कराता है।

दुःख सुख में देता साथ,
बचपन में पकड़े रहता हाथ।

शीतल छांव है पिता,
हमारा अभिमान है पिता।

जिसके कारण हम ऊंचाईयों तक पहुंचे,
वो मेरी पहचान है पिता।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन भावों के मोती
दिनाँक - 16/6/2019
आज का विषय - पिता

पिता दिवस की सभी को हार्दिक बधाई

---पिता---

पिता प्यार है,
पिता दुलार है,
पिता इंतज़ार है,
पिता परिवार का पालनहार हैं।

पिता जाया है,
पिता छाया है,
पिता साया है,
पिता धन ,दौलत और माया है।

पिता आस है,
पिता विश्वास है,
पिता बिन अनाथ है,
पिता सिर पर रखा हाथ है।

पिता जान है,
पिता मान है,
पिता अभिमान है,
पिता माँ और बच्चों की पहचान है

पिता अनुराग है,
पिता चिराग है,
पिता माँ का सुहाग है,
पिता महकते फूलों का बाग है।

          स्वरचित
    बलबीर सिंह वर्मा 
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)

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भावों के मोती
शीर्षक-पिता
दिनांक-16/6/2019
मेरी प्रथम प्रस्तुति

तू मान मेरा अभिमान भी तू
तू सोन चिरैया मेरी है।
मजबूत परों से उड़ान भरे
ये जिम्मेदारी मेरी है।
तू खूब पढ़े‌ और खूब बढ़े
पापा क्षण क्षण ये कहते थे,
हम भी छोटे से बच्चे थे
निर्झर भावों में बहते थे।
पारिजात के फूलों में ,
और गुलमोहर के झूलों में,
मैं पली, बढ़ी और बड़ी हुई।
सुख सपनों से जागी थी,
परिणय- बंधन की घड़ी हुई।
हुए हलद- बान, संगीत सजा,
सप्तपदी का गान हुआ।
देहरी छूटी, संगी छूटे,
और मेरा कन्यादान हुआ।
मंडप नीचे दोहराय छन,
और कंगने का खेल हुआ।
फेरों का साथी जीत गया,
पर जी से जी का मेल हुआ।
बिदा घड़ी......, डूबे तारे, 
आंखें नम और मन भारी है।
बाबुल का घर तो छूट गया,
मेरा मुझसे द्वंद जारी है।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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🌳।। पिता ।।🌳

प्रथम प्रस्तुति

पिता से घर में रौनक आया है
पिता पेड़ की तरह एक छाया है ।।

दुनिया क्या होती नही पता था 
पिता ने इससे अवगत कराया है ।।

पिता पुत्र का नाता बड़ा अटूट है
पिता का सपना बेटे ने सजाया है ।।

प्रयास पिता का था वो सफलता 
मिली देर से बेटा वाहवा पाया है ।।

न दिन देखा कभी न रात देखी
सबके सुख में वह सुख पाया है ।।

बेटा हमसे से बड़ा बने जग में
ऐसा दिल पिता का कहाया है ।।

पिता का दर्द समझना 'शिवम'
पिता ने अपना दर्द छुपाया है ।।

पिता तो साक्षात परमात्मा है
पिता को क्यों न शीष झुकाया है

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/06/2019

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नमन मंच भावोंके मोती
स्वतंत्र लेखन
विधा   लघुकविता
16 जून 2019,रविवार

अति मनमोहक जीवन
जो ईश्वर ने हमें दिया है।
सद्कर्मो के बल पर ही
प्रेम प्याला सदा पिया है।

अनमोलक  है यह जीवन
सुर मुनि आने को तरसे।
गम ग्रीष्म ऋतु बाद ही
सुखमय काले मेघा बरसे।

स्वर्गीम आनन्दमय जीवन
जीवन जीना आना चाहिये।
दुनियां में जो कर्म  करोगे
आप तुरंत प्रतिफल पाइये।

स्वर्ग नहीं ऊपर अम्बर में
स्नेह सुधा बरसाओ जग में।
मातपिता परिवार हितों में
करुणा ममता घोलो डग में।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
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नमन मंच भावों के मोती
16/ 6/2019/
बिषय,,🌹🌹पिता🌹🌹
 सर्वप्रथम पिता दिवस पर
शत् शत् नमन
आत्मा से आत्मा का 
जिनसे है मिलन
बड़े ही कोमल हृदय होते हैं पिता
माला सी परिवार को पिरोते हैं पिता
जाने क्या क्या करते संतान के लिए
चाँद तारों के सपने संज़ोते हैं पिता
सुबह से शाम तक भाग दौड़ ही
अकेले ही सारा बोझा ढोते हैं पिता
सबको  सुखी देखने की चाह में
 दुख अपने ताले में छिपाते हैं पिता
ऊपर से सख्त अंदर से नरम
झूठा ऐ रौब दिखाते हैं पिता
 बहुओं लेकर बेटे अलग क्या हुए
छिप छिप के आंसू बहाते हैं पिता
बेटी की बिदाई हो या बेटा पराए देश
आंसुओं की नदियां बहाते हैं पिता
खुद फटे जूते पुरानी कमीज पहन
बच्चों को नया नया पहनाते हैं पिता
दिल में पहाड़ों सा गम लिए
औलाद के  सामने मुस्कुराते हैं पिता
गलतियां बच्चे करते हजारों
फिर भी सिर हाथ फेर समझाते हैं पिता
 संतान चाहे भले ही छोड़ दे
 मन से बच्चों को न छोड़ पाते हैं पिता
स्वरचित,,""सुषमा ब्यौहार""

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नमन मँच
दिनाँक -१६/०६/२०१९
विषय- पिता

तुमको  पिता  कहूँ या,  खुदा  ही  कहूँ  तुम्हें।
तारीफ  में  तुम्हारी,   क्या-क्या   कहूँ  तुम्हे।।

जब-जब लगी है चोट तो, मरहम बने हो तुम।
मेरे  हर  एक   दर्द  की,  दवा   बने  हो   तुम।।

तुमने  ही  मुझे  रोपकर,  सींचा  है  स्वेद  से।
है   प्रेम  ही   सिखाया,  दूर   हूँ    निर्वेद   से।।

हो  तुम  मेरे  आधार, है  तुमसे  मेरी  पहचान।
है माँ  धरा  के जैसी, और तुम  हो  आसमान।।

उंगली  पकड़  के  मेरी,  चलना  मुझे सिखाया।
हर   एक  चुनौती  से,  लड़ना  मुझे  सिखाया।।

जीवन की हर खुशी  मैं,  तुमको  करूँ  अर्पित।
है धन सहित तन मन मेरा, सब तुमको समर्पित।।

मैं तुम्हारा  हूँ  कृतज्ञ, मन  में  लिए  यह भाव।
अब वृक्ष बनकर जीवन भर, मैं   तुम्हे दूँ  छाँव।।
                                             रवि 'विद्यार्थी'
                                       सिरसा मेजा प्रयागराज

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नमन भवों के मोती💐
पितृ दिवस पर समर्पित

पिता मात्र शब्द नहीं
कोरे कागज पर लिखा
एक
स्थाई पता है।
          पिता......
वृह्मा है पिता
पिता विष्णु
पिता महादेव है।
सम्पूर्ण सृष्टि में
पिता ही केवल-एक है।
           पिता.........
अपने वंशबीजों को
मातृ-मृदा में बोता है
स्वेद से सींचता है
कर्म से अंकुरित करता है
और-
फलों के लड़ जाने पर
स्वयं नहीं खाता
          पिता..........
बिंना मातृ शक्ति के
यह पिता अधूरा है
जिसे-
आने बाला समय
 'एक पुत्र ही ' 
पूरा करता है।
           पिता.........

स्वरचित:16-6-2019

डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)
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भावों के मोती
शीर्षक-पिता
दिनांक-16/6/2019
मेरी द्वितीय प्रस्तुति

यक्ष वेग से भरे,  ‌     प्रश्न पूछते खरे।
कौन उच्च व्योम से,गीत गान ओम से।।

चर्म से कठोर हैं,    मर्म से विभोर हैं।
छत्र तान कर खड़ा, तात छांँव से बड़ा।।

देख-रेख में रहो,     भाव से भरे रहो।
तात का सुहास है,लक्ष्य आस- पास है।।

राम नाम भी भजो, तात को नहीं तजो ।
पूत वो महान है, कालखंड ज्ञान है।।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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भावों के मोती
16  06  19
विषय - पिता/पितृ दिवस। 

पिता 
जिंदगी के किले की आधार शिला है। 
पिता 
सर पर घनेरा आसमां है। 
पिता 
मंजिल के मील का पत्थर है। 
पिता 
उर्जा से भरा सूर्य है। 
पिता  
अमृत का कटोरा है। 
पिता 
श्री फल सा वरदाता है। 
मां हमे जन्म से समझ आ जाती है
और पिता ,जब खुद कोई बनता है पिता
एक ही बात मे ही कम है मां से पिता 
कि कितना भी प्यार करले बच्चोंं से 
उन्हे कभी भीें चाह कर भी
कोख नही  दे पाता पिता। 
उन्हें कभी ......

स्वरचित 
                कुसुम कोठारी ।
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नमन मंच
भावों के मोती 
रविवार-16-6-2019
पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,,,🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

" पिता दिवस " पर विशेष, ,,
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पिता के प्रति अनंत प्रेम दर्शाते कुछ हाइकु, ,,,,,,

पिता की शिक्षा 
सदा हिम्मती बनो
गिरके उठो //
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🍁
पिता का प्रेम
सख्त नारियल सा
हृदय मीठा //
÷÷÷÷÷÷÷÷
🍁
पिता की सीख 
फटकार के साथ 
जंग मे जीत  //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷
🍁
पिता हमारे 
सदैव सुधारक
मार्गदर्शक  //
÷÷÷÷÷÷÷÷
🍁
पिता का प्यार 
वटवृक्ष विस्तार 
अनंत प्यार //
÷÷÷÷÷÷÷÷
🍁
पिता शिक्षक 
प्रथम पाठशाला 
जीवन यात्रा //
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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✍ पापा ही है मेरी दौलत  .✍

अपनी छोटी उंगली पकड़कर ,
चलना हमको सिखलाया हैं ।
भागदौड भरी इस जिंदगी में ,
जीना हमको सिखलाया हैं ।।

छोटी-छोटी गलतियों पर ,
पापा हमको कहते रहते है ।
हमको सुख-सुविधा देकर ,
दुख दर्द वो सहते रहते है ।।

जब-जब भी देखेंगे उनको ,
माथे पर शिकन रहती है ।
पढ़ाई और शादी की चिंता ,
दिमाग में उनके पलती है ।।

चाहे कुछ भी हो जाए पर ,
वो कभी आह नहीं करते है ।
कपडे-जूते दिलाते सबको ,
अपनी अलमारी नहीं भरते है ।।

पसीने की असली कीमत ,
झर्झर बनियान बतलाती है ।
काँटे चुभते रहते जूतों से ,
पर हिम्मत नहीं कतराती है ।।

पाई-पाई जोड़ कर पापा  ,
संतान का पालन करते है ।
भलाई के लिए हमें डाँटते ,
पर प्यार भी बहुत करते है ।।

ऊपर से भले लगते सख्त ,
पर दिल के नरम होते हैं ।
खैर ! माँ तो रो लेती है खुल के ,
पर पापा अंदर ही अंदर रोते है ।।

ना जाने कितनी मेहनत से ,
दो वक्त की रोटी लाते है ।
पेट भर खा ले सन्तान फिर ,
सबसे अंत में रोटी खाते है ।।

माली ज्यूँ फूलों को सींचे ,
वैसे पापा हमको पालते है ।
दुःखों में दो धारी तलवार बन ,
बच्चों की मुसीबत टालते हैं ।।

बच्चों की खुशियों के लिये ,
सब सुख वो भूल जाते हैं  ।
फिर क्यूँ ऐसे पापा के लिए ,
बच्चें कुछ नहीं कर पाते हैं ।।

सच कहता हूँ विश्वास करो ,
जीवन में सदा सुख पाओगे ।
सेवा करो मात-पिता की दिल से ,
जीते जी स्वर्ग को पाओगे ।।

पापा ही है मेरी दौलत ,
पापा से हैं  मेरी पहचान ।
"जसवंत" यूँ ही लिखते रहना ,
बढ़ती जाएगी पापा की शान ।।
बढ़ती जाएगी पापा की शान ।।।।

  कवि जसवंत लाल खटीक
💐रतना का गुड़ा ,देवगढ़💐
     राजसमंद (राजस्थान)
        8505053291
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पिता 

पिता से मिला जीवन
शरीर प्राण और मन
पालन पोषण शिक्षा
ज्ञान मान और धन
पिता जीवन प्रकाश
पिता अमित विश्वास
पिता हाथ ईश्वर का 
पिता एक पूर्वाभास
पिता अमृतम कलश
ऐश्वर्य सब पितृ वश
पिता अद्वितीय प्रिय 
सदैव वसति पुत्र हिय
समान अनुपम नयन 
पिता शत - शत नमन

विपिन सोहल

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1भा.16/6/2019/रविवार
बिषयःः# पिता/पितृ दिवस#
विधाःः काव्यः ः

परमपिता परमात्मा तुम हो।
  घट घट बसे आत्मा तुम हो।
    तुमसे सबकुछ मिला विधाता,
       हम मानते जगदात्मा तुम हो।

माना तुम जगतपिता परमेश्वर,
 अस्तित्व तुम्हीं से सारे जग का।
    मगर संतान हम मात पिता की,
      तू चाहे मालिक हो सारे भव का।

ये मातपिता घर सूना लगता।
  हम सबका कद बौना लगता।
    यहां कितने कष्ट पिता ने झेले,
       पितु अभाव हर कोना लगता।

स्वयं बहुत अभागा मै मानता,
  नहीं पितृ वलिदान को माना।
     सहे कष्ट परिवार की खातिर,
        जब नहीं रहे तब सब जाना।

नौ माह माँ कोख में रखती।
   सपने सलौने मन में बुनती।
     पिता आजीवन माथे पर ढोते
        तब हम संतानें सुख में रहतीं।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
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1/भा#पिता/पितृ दिवस#
16/6/2019/रविवार



नमन🙏भावों के मोती
विषय:-पिता

❤️❤️❤️❤️❤️❤️

कभी खड़ा था बरगद सा मेरे आँगन में
दे रहा था वह पिता छाँव ठंडी आँगन में

आयी जब आँधियाँ कटने लगा था वह
टूट कर बिखरी शाखाएं मेरे आँगन में

ले उड़ी जब आँधियाँ रोये बहुत सब
नहीं पता था कौन अब थामेगा ये सब

देता है संमार्ग पर चलने को कह कर
बनाता है दुनियाँ मे काविल तुम्हें तब

मिलता सहारा  हर फूल कली को तब
बीन कर रखता है काँटों को जब जब

आज उँगली थाम कर बढ रहे हो तुम
कल लड़खड़ाए वो उन्हें थाम लेना तुम

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
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दि- 16-6-19
विषय-- पिता दिवस 
विधा -गीत 
सादर मंच को समर्पित --

     🌺🌴       गीत       🌴🌺
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      🌹   पिता ही सहारा   🌹
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

पिता के हाथ से बढ़ कर
                  सहारा कौन दुनिया में ।
हमें सार्थक बनाने में 
                  सहारा कौन दुनिया में ।।

खिला कर गोद में अपनी , 
                     दुलारा  प्यार  से धीरे ,
पकड़ कर हाथ की उँगली, 
                    चलाया डगर पर तीरे ।
शाम को रोज लाकर दी ,
                  माँग जो भी करी हमने ,
घोड़ा बन पीठ बिठा कर ,
                  हँसाया खूब ही  तुमने ।।

हमारा ध्यान रखने को ,
                    सहारा  कौन  दुनिया में ।
पिता के हाथ से बढ़ कर ,
                    सहारा कौन दुनिया में ।।

जगा कर प्रातः ही हमको ,
                 पढ़ाया  नित्य प्रति तुमने ,
कमी कोई नहीं छोड़ी  ,
                   पढ़ाई  में  कभी तुमने ।

हमारे शिखर छूने में ,
                 पिता सा कौन दुनिया में ।
पिता के हाथ से बढ़ कर,
                सहारा  कौन  दुनिया में ।।

हमारा फर्ज भी इतना ,
                  दुखी न रहें पिता  हमसे ,
हमारे कृत्य हों ऐसे ,
                  मान कम हो नहीं उनसे ।
अपने परिवार की रक्षा ,
                   पिता का फर्ज ही तो है ,
निभायें  धर्म हम भी तो ,
                   हमारे पूज्यवर  जो हैं ।।

पिता आशीष से बढ़ कर ,
              कृपामय  कौन  दुनिया में ।
पिता के  हाथ से  बढ़ कर ,
              सहारा  कौन  दुनिया में  ।।

            🍑🌲🌷🍓🌱🌺

🍓🌴***.....रवीन्द्र वर्मा आगरा 
           मो0- 8532852618
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


अंगुली पकडकर जिसने चलना सिखाया ।
दी कला जीने चरित्र निर्माण की ।
जब न होता पढ़ना बेटी को जरूरी ।
भेज घर दूर शिक्षित कराया ।
कैसै रक्ष करूगी जीवन मै कटीले पथ पर ।
कई भेडिऐ हे इस जगत जगल मे उनसे बचना सिखाया 
दी शिक्षा सबके साथ सदगुणो व सदव्यवहार की।
वे पिता गुरू थै मेरे यही मेरे अस्तित्व व व्यक्तित्व का राज हे जो पाया पिता अपने ।
उनके चरणो है नमन कोटिश ः 
अब नही धरा पर बीत गये वर्षों ।
पर यादे उनकी सदैव संग मेरे ।
देती है आज भी.संबल होसलां जीने का मुझे ।
पिता नही ईश्वर थे मेरै ।पूजा सदैव उनको हृदय से ।आषीश हरदम साथ मेरे ।
स्वरचित ।
दमयन्ती मिश्रा 
गरोठ, मध्यप्रदेश ।
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🌹🙏नमन मंच🙏🌹
आदरणीय जनो को नमन
🌹🙏       🙏🌹
विषय-पिता
दिनांक-16/06/19

पिता स्नेह और दायित्व का दूजा नाम
जिसे नहीं देखा रोते हुए
देखा तो था बोझ ढोते हुए
पर नहीं देखा कभी रोते हुए

कभी पीठ पर बैठाया हमें
कभी कांधे पर
कभी पकड़कर उंगली पिता की
घूम लिया करते थे सारा शहर
जो भिड़ गया ज़माने से
हमें एक माला में पिरोते हुए

पिता जो हमारी स्कूल फीस के लिए 
दिन भर काम करते
जल्द घर से निकल जाते
रात में कई कई घंटे लेट आते
फिर साइकिल पंचर की कथा सुनाते
बच्चा ही रहने दिया हमें
न आया बड़प्पन हममे
बड़ा होते हुए

आज पिता नहीं है......
फिर यह गम हमें रुला गया
बचपन भी हमारा......
साथ उनका पा गया
अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करना जल्द सीखा हमने
हम खड़े हो गए हैं
उनकी यादों को दिल में
 संजोते हुए
वो होते गर तो शायद
न देख पाते हमें........
कभी बड़ा होते हुए।।

   ***स्वरचित****
 --सीमा आचार्य--

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भावों के मोती दिनांक 16/6/19
पिता

देती है माँ संस्कार
पिता बनता है संबल
माँ सिखाती दुनियांदारी
पिता घुमाता दुनियाँ सारी

माँ आँचल में है सुख
पिता की डांट भविष्य में
देती दुःख में भी सुख

बनना है
 एक आर्दश पिता
जैसा देखेंगे 
वैसा सीखेंगे बच्चे
मत करो धुम्रपान 
नशे से भी रहो दूर 
बनों ईमानदार , 
मेहनतकश इन्सान
बगिया महकेगी 
 फल फूलों से 

देती सुखद  नींद 
माँ की लोरी
पिता के सीने से
लग बच्चे पाते 
अपनापन

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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आज कि विषय पिता,
पिता जन्म दाता,
पिता अपने प्रेम के भाव बीज,
माँकी कोख पटल पर दें,
उसे चतुर शिल्पी जीव का रुप देता,
माँ उसे पालती ,माँ पालन हार है।
पारिवारिक जीवन के आधार स्तंभ पिता है।पारिवारिक जीवन के तानाशाह भी पिता है।पिता के बिना घर का पता भी नही हिलता।
माँस्नेह की छाँव है,तो पिता प्रेम जल सीच उसे पल्लवित करता है।वसुंधरा पर मानव जीवन के जन्मदाता पिता श्री ही है।उन्ही के नाम से जाना जाता है संसार मे।
अपना नाम दे जग मे अपनी निशानी छोड़ जाता है।पीढ़ी दर पीढ़ी उसी केनाम पर परिवार आगे बढ़ता है।
पारिवारिक,
आधार स्तंभ होते,
जन्म दाता ही।।
,खेवन हार,
भवसागर पर,
जन्मदाता ही।।2।।
हाइकु कार देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।
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16/6/19
भावों के मोती
शीर्षक-पिता/पितृ दिवस
______________________
तपते मरूस्थल में तरुवर के जैसे
छाया देते पिता सदा ही ऐसे
जीवन की धूप से रखते बचाकर
आगे बढ़ाते सही मार्ग दिखाकर
दिखाते नहीं कभी प्रेम अपना
उनकी डांट में छुपा जीवन का सपना
कठोरता का कभी-कभी पहनकर आवरण
निखारते हैं सदा हमारा आचरण
सोच उनकी कभी ग़लत नहीं होती
हमारे लिए सदा सही मार्ग ही चुनती
एक खरोंच आ जाए तो तड़प उठते
प्रेम दिखाने में मगर बहुत संकोच करते
हृदय में भरा प्रेम का अथाह सागर
व्यक्त करने का पर तरीका अलग है
कहते हैं कम रहते हैं मौन
पिता से बड़ा भला हितैषी और कौन
पग-पग पर खड़े रहते हैं ढाल बनकर
पिता की यही खूबी सबसे है हटकर
माँ से मिलती संस्कारों की पूँजी 
पिता से मिले ज़िंदगी जीने का तरीका
जीवन में तकलीफों को खुद सह लेते
ज़िंदगी में हमारी खुशियाँ ही भरते
पिता के बिना घर, घर नहीं लगता
उनके वजूद से हर रिश्ता खिलता
रौशनी पिता से रौनकें पिता से
ज़िंदगी की धूप में छाया पिता से
खुद कष्ट सहते हमें सुख देते
मुश्किलों में साहस बनते पिता
मत भूल जाना कभी त्याग पिता का
हमारे भविष्य की नींव है पिता
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍

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II  पिता  II नमन भावों के मोती....

( मेरे पास शब्द नहीं हैं "पिता" को परिभाषित करने को...  जो भी लिखा है उसे स्वीकार करें...  मेरे भाव हर पिता के चरणों में समर्पित हैं....) 

मेरी आँखों में दीखता आकाश हो तुम... 
मेरे साकार सपनों का आधार हो तुम...  
रगों में बहती स्वावबलंबी धार हो तुम...  
पथ पे बढ़ते रहने की हुंकार हो तुम...  

न होता उजला जीवन गर तुम नहीं होते...  
बिन तेरे भय से निष्प्राण से जी रहे होते...  
कंटक राहों पे पाँव मेरे लहूलुहान होते... 
हाथों से अपने कांटे गर तुम न चुने होते...

उछाल हवा में जिसदिन बाहों में थामा तुमने....
आसमाँ तो उस दिन ही था छू लिया मैंने...
सितारे फीके मेरी आँखों की चमक के आगे...
जब बाहों में ले झूला मुझे झुलाया था तुमने....

याद है मेरी साँसों को तेरी दर्द छुपाने की कला....
चहरे आँखों से हर पल तेरे मुस्कुराने की कला.... 
सब के सपनों के लिए दिन रात की जदोजहद...
याद है वो दृढ़ता तेरी हालात से लड़ने की कला.... 

नहीं हो पास मेरे पर धडकनों में धड़कते हो तुम...
मेरी आँखों में साँसों में मेरी बातों में रहते हो तुम...
अहसास हर पल है तेरे प्यार भरे आषीश का मुझे....
कमी है तो बस यह ही की अब डांटते नहीं हो तुम....

सांस जब तक मेरे जीवन में रहेगी ऐ खुदा... 
क़र्ज़  पिता  का  हर  पल करूंगा मैं अदा... 
नाम तुम्हारा न धूमिल होने दूंगा मैं कभी...   
ऐसी ज़िन्दगी मैं हर पल जीऊंगा मेरे पिता....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१६.०६.२०१९

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बापू दिवस

जब हम मुळकां सां
बापू के मुहं पै नूर आज्या सै
म्हारी कामयाबी नै देखकै
बापू कै घणा गरूर आज्या सै
सांझ नै जिब घर नै आता
लंबे लंबे डग भर थकान तैं चूर
हमनै देख उतर ज्यांदी थकान
अर नाच उठदा मन मयूर
पाटी धोती अर पाटया कुड़ता
खल्ले भी उसके पाटे पड़े थे
म्हारे नए ल्तयां खातर
मां तैं बी वे अड़े खड़े थे
खुद नै खाये सुके टिकड़
म्हारी खातर खीर चूरमा
खुद नहाया गाच्ची गल्यां
म्हारी खातर साबण निरमा
एक एक पिस्सा बचा बचाके
म्हारी फीस भरया करै था
पिस्यां की घणी तंगी थी जिब
दो ल्तयां मै सारया करै था
छोटीसी बी  कोठड़ी मै हमनै
पढ़ण की सुविधा दिया करै था
खुद गरमी मै सोया कोनी
हमनै पंखा झाल्या करै था
अपणी खातर हमनै एसी रूम
मेहमाना खातर बणाए गैस्ट रूम
पढ़ लिखकै हम बणगे अफसर 
कोठी मै ना था बापू का रूम।

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा

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ये मेरे पिता 
आप थे देवात्मा
मेरे परमात्मा,
आपके संचित पुण्य
आज हमारी हैं ढाल,
आपकी अर्जित
संपत्ति से हैं सब खुशहाल,
आपकी जीवनशैली
अंयत्र देखने को
नही मिली,
आपकी
स्पष्टवादिता,
सदाजीवन उच्चविचार,
सत्य की पक्षधरता
लगभग सब हुए
विलुप्त,
मानवीय भाव हुये
सुप्त,
आपके आदर्शों
का अच्छरशः पालन
करने में मै भी हूं
असमर्थ,
मेरी गलतियों
को क्षमा करें
हे देव तुल्य
मेरे जनक,
आपको नमन,
प्रणाम,
आप स्वर्ग में
करें विश्राम।।

गंगा भावुक

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नमन "भावो के मोती"
17/06/2019
    "पिता"
1
पिता फरिश्ता
झोली भरके लाता
खेल-खिलौने
2
सख्त ऊपर
नारियल सा पिता
नर्म अंदर
3
बुनता रिश्ता
पिता दूरदर्शिता
सीख ही देता
4
जेब हो खाली
दूकान भी हाजिर
पुत्र खातिर
5
पिता शिक्षक
समझ की गणित
संतान सीख
6
पिता की सेवा
आशीर्वाद ही मेवा
धर्म ना दूजा
7
पिता विधाता
वटवृक्ष की छाया
दु:ख हरता
8
जीवन पथ
अनुभव के साथ
पिता का हाथ ।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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भावों के मोती
16  06  19
विषय पिता /पितृ दिवस।

द्वितीय प्रस्तुति 

आज पितृ दिवस पर 

देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं

देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हे नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं

देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हे नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं

देकर मुझको आधार महल
कहां गये हे धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं

देकर मुझ को जीवन 
कहां गये हे सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।

स्वरचित। 

          कुसुम कोठरी।
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II  पिता - २ II 

विधा: मुक्त काव्य....संस्मरण...संवाद.... 

न जाने किन शब्दों और 
भावों का रूप है... 
संज्ञा है....
पिता...
कर्ता...अकर्ता...
द्रष्टा....अदर्ष्टा....

मैं हिन्दू ब्राह्मण हूँ...
क्यूंकि मेरे पिता...
हिन्दू थे और ब्राह्मण थे...
पिता जाति बन गया...
धर्म बन गया...
पालनहार बन गया...
कभी घोडा बन गया...
कभी सूर्य बना तो कभी...
वटबृक्ष की छाँव बन गया...
कभी नफरत तो कभी प्यार बना....
क्या क्या नहीं बना पिता...
सब कुछ हो कर भी...
संज्ञा में उलझा....
अकेला रह गया...
हमने माना पिता...
पर जाना नहीं....
इस लिए वो...
अकेला रह गया....
बिना भेद भाव के....
जो न तो सावन में भीगता है...
न जेठ दुपहरी में तपता है....
पिता....
शब्दों के भावों के जाल से परे....
निर्लिप्त....
एक तपस्वी...वैरागी की तरह...
शमशान निवासी की तरह...
भीतर ही भीतर....
स्वाह होते रिश्तों की भस्म लगाए हो...
पिता....

"मैं चन्दर"...
चरणों को छूते हुए...
ज्यों ही मैंने उस बुर्जुग को कहा....
बादलों में जैसे बिजली चमकती है...
उसके होठों पर मुस्कान चमकी....
बृद्धाश्रम में देख कर उसको...
मेरी आँखें भर आईं...
जब उसके चरणों को बूंदों ने छूआ...
उसका आशीष भरा हाथ मेरे सर पर था....
बिलकुल मेरे पिता जैसे...

घर आ कर मन नहीं लगा...
टीवी लगाया...
एक महापुरुष प्रवचन कर रहे थे....
जगदीश्वर इस जगत का पिता है....
एक और संज्ञा....
पर ये कोई नहीं बताता....
की पिता को पाना हो तो...
पिता की आत्मा से जुड़ना पड़ता है...
वो न जाति है न धर्म....
ज़रूरी नहीं वो तुम्हें जन्म देने वाला...
'पिता' हो....
या तुम उसके पुत्र या पुत्री हो...
पिता तभी मिलता है... 
जब आत्मा का आत्मा से...
संवाद होता है....
वो भी मूक और गहरा संवाद...
वैसा ही जैसा मेरे और उस बुजुर्ग में हुआ...
संवाद....

II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II 
१६.०६.२०१९

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🌹नमन🌹
विषय"_पिता दिवस
तिथि\16 जून 2019
~~~`
          जिसकी  जीत  मे जीत 
         हार मे हार  नहीं  होती 

     पिता  वो,
     दिन का चमकता
     सूरज है ।
     है , धवंल  चाँदनी   का ' 
     मोती ।

            हम तो  कण हैं 
            वो  मण है 
            वो मेरे  मूल के  आधार " हरे  है 
            सच में " पिता '
            परमेश्वर से  भी ' बड़े  हैं ।

      करते  है ,
      वन्दना उनकी तो 
      उपकार  नहीं  वो  कहलाते ।

             सोचो,
             बिना  आधार  मूल के '
             पत्ते डॉली पर 
             कब तक ' 
             हरे रह  पाते ?
,✍
पी राय राठी
भीलवाड़ा ,राज•
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, पिता
दिन, रविवार
दिनांक, 1 6,6,2019

 जिसकी छाया में है बसेरा घर का,
जिसकी मेहनत से सुबह होती है।

ममता का जहाँ छुपा है खजाना,
जहाँ पर स्नेह की बर्षा होती है ।

आकाश है जो घर की धरती का,
जहाँ पर  हर मन्नत पूरी होती है ।

सर्वस्य लुटा देता है जो हँसकर,
पिता की तबियत ऐसी होती है।

बलिदान का जिसके हिसाब नहीं,
नहीं कोई गिनती जिनकी होती है

हँस हँस के मिट जाना ही शायद,
एक पिता की नियति होती है।

चाहत जो चाँद की हो बच्चों को,
चाँद ले आयें ऐसी इच्छा होती है।

 चिराग अलाउद्दीन का है पिता,
बड़ी करिश्माई दुनियाँ होती है।

बच्चों को हर इक सुख देने की,
सदा आतुरता पिता में होती है ।

दुनियाँ भर की दौलत भी कम ,
पिता के एहसासों से होती है।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

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नमन  मंच 
16/06/19
पितृ दिवस 
**
पूजनीय पापा और पापा जी को समर्पित 
**

आज आप हमारे साथ नहीँ,
पल भर भी विस्मृत हुए नही 
आपको  खो कर ऐसा  लगा 
टूट कर बिखर  जायेंगे  हम 
आप के बिना 
ये जीवन कैसे जी पायेंगे हम
रोजाना की छोटी बातों मे
संबल बन थामे रखा मेरा वजूद 
आप के प्रशंसा के बोल से 
निखरता था मेरा वजूद
सादगी की प्रतिमूर्ति आप,
आपके आदर्शों ने छोड़ा 
जीवन पर अमिट छाप।
हर हाल मे मुस्कराना 
आत्मविश्वास और  लगन
से मंजिल तक जाना 
ये  आपसे सीखा
सच्चाई  सेवा भाव  सकरात्मकता
आपका अनुसरण कर जीवन मे उतारा है 
आँखे भर आयी है ,मन भावुक है
मन चाहे आपका वही साथ
जीवन के चक्र में हम सब  बेबस 
आपका आशीर्वाद आपका एहसास 
सदा रहता हमारे साथ ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन मंच १६/०६/२०१९
विषय--पिता/पितृ दिवस

उम्मीद जगाता जीवन में,
हिम्मत भर देता जीवन में।
सर पर यदि हाथ पिता का हो,
हौसला बढ जाता जीवन में।

संघर्ष हमें सिखाता है,
उत्साह भी जगाता है।
नित कष्टों का कर सामना,
इन्सान हमें बनाता है।

उसकी सख्ती उसकी नरमी
जीवन को सजा  सजा देता है।
वन्दन गाऊ और गर्व करुं
मेरे सर पर पिता का साया है।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
जयपुर

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नमन मंच
दिनांक-१६/६/२०१९
"शीषर्क-पिता'
आसमां तू आज अकड़ ले
नही गम है मेरे पास
जब पिता है पास मेरे
छू लूँगा मैं तुम्हें आज

पिता है जब साथ मेरे
तो हर मुश्किल है आसान
जब वे जगाये आत्मविश्वास
जीत ले हम दुनिया हर बार।

जेब खर्च की चिंता नही
पिता अपने पास है
माँ गर भगवान है तो
पिता भी ईश समान है।

उनसे है समाज में मान
ऊपर से वे पत्थर
पर अंदर से मोम समान है।
पिता जीवन के प्रकाश है।

अनुशासन का पाठ पढ़ाते
अंधविश्वास से दूर ले जाये
सही गलत का भेद बतायें
दुनिया का हमे मर्म समझाये।

पिता है साथ तो सुखद है संसार
उनके समर्पित जीवन से
महके हमेशा घर परिवार
पिता है तो मुमकिन है
सच हो जाये सपना हर बार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

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शुभ संध्या
विषय-- ।। पिता ।।
द्वितीय प्रस्तुति

अच्छे बुरे का ज्ञान कराए
पिता हमें चलना सिखाए ।।

कंधों पर अपने बिठाकर
पिता हमको मेला दिखाए ।।

वो अनुभूति वो अहसास
करोड़ों में न खरीदा जाए ।।

आज भाव विचार जो उपजे
पिता उसके सूत्रधार कहाये ।।

पिता का दर्जा बहुत ही ऊँचा
मन में रखो ये सदा बिठाये ।।

पिता से बैर कभी नही करना
हरदम नही वह साथ कहाये ।।

अपना दुख सुख कभी न देखे
संतान के सुख में वह हरषाये ।।

ऐसे पूज्य पिता की महिमा को
शब्दों में न ''शिवम' बाँधा जाए ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/06/2019
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नमन मंच
पिता
मातृ-धरा से अंकुरित निज अंश 
पुलकित तात हृदय पाकर सुवंश

सुरभित शुचि जीवन की क्यारी
नव कोपल किलक किलकारी

नन्हें विरवे को सींचे बन माली
अथक अहर्निश करे रखवाली

रक्षक सदा मौसम के थपेड़ों से
और दिग्दर्शक सभी बखेड़ों में

पौध पुलक बन जग में लहराये
इसी भाव समर्पित पिता हो जाये
-©नवल किशोर सिंह
    स्वरचित

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पितृ दिवस के उपलक्ष्य में
16/6/1019
विधा-हाइकू
..........
पिता पालक
वह पथप्रदर्शक
ईश्वर तुल्य

करे सम्मान
सुखी रहे संतान
सीख अमूल्य

वो वटवृक्ष 
देता शीतल छाँव
रूप विशाल 

उसके होते
सुरक्षित बालक
बांका न बाल

   @वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
16/06/2019
हाइकु (5/7/5)   
विषय:-"पिता" 
(1)
माँ गर धुरी
परिधी पर "पिता"
घर चलता 
(2)
घिसता रोज
"पिता" जादू चिराग
लाये सौगात 
(3)
दौड़ता रोज
"पिता" के काँधे पर
घर की सोच
(4)
स्वप्न सवार
परिवार की नैया
"पिता" खिवैया
(5)
सहिष्णु बड़ा 
बिटिया की विदाई 
फटता "पिता" 
(6)
जीवन धूप
"पिता"का समर्पण
छाते सा रूप

ऋतुराज दवे
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नमन सम्मानित मंच
(पिता/पितृदिवस विशेष)
*********************
परम-शक्ति     है   परमपिता,
  चर -अचर  जीव  का सृष्टि मेंं,
    देवतुल्य     जगतीतल     पर,
      पिता  स्वयं मानव  शिशु  का।

वटवृक्ष   सदृश  हैं    पितृदेव,
  संरक्षण  मेंं   जिसके   मानव,
    सदा  सहज   पालित पोषित,
      बाहर कठोर    अन्तर मृदुतम।

तर्क,बुद्धि, साहस से शोभित,
  पौरुष   शक्ति    का    पर्याय,
    धर्म, तपस्या, स्वर्ग पिता शुचि
      नियति रचियता स्वयं धरा पर।

एक  सुरक्षा  कवच  अभेद्य,
  अमिट प्रमाण विश्व इतिहास,
     व्यक्तित्व समग्र विकासपथ,
       पिता   चारु    रथ    सारथी।
                            --स्वरचित--
                               (अरुण)
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शत शत नमन मेरे पिता को .....

एड़ी से चोटी तक
तन से मन तक
रग रग में बहती 
हर बूँद ऋणी है 
उस पिता की
जिसने सींचा मुझे
अपने लहू से
मेरा अस्तित्व उन्हीं से है
मेरा व्यक्तित्व उन्हीं से है
नन्हें पैरों को 
चलना सिखाया
कांधे पे अपने 
झूला झुलाया
संसार सागर 
तैरना सिखाया
तूफानों से 
लड़ना सिखाया
गमों में फूलों सा 
हँसना सिखाया
हर हाल में 
खुश रहना सिखाया
भौतिक जगत में नहीं
पर दिल में रहते हो
आज भी चुपके से
कान में कुछ कह जाते हो
हौंसला दे जाते हो
दुनिया से लड़ने का
क्या तुम्हें कभी
भुला पाऊँगी
पितृ ऋण क्या
कभी चुका पाऊँगी
भावों और विचारों में
सदा साथ रहना
कर्तव्य पथ से 
डिगने न देना
अपना आशीष
बनाये रखना

सरिता गर्ग

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नमन मंच 
16-06-2019
पितृ दिवस ....
पिता पर लिखी हुई उनको समर्पित रचना ....

   "पिता--हमारी शान है "

       पिता हमारी शान है -तो 
       वो मेरा अभिमान भी है 
       होते हैं वो आदर्श हमारे -और 
       माँ के चेहरे की मुस्कान भी 
       और होते हैं घर की शान 
       बाहर से रहते हैं वो सदा -कठोर 
       पर अंदर से हैं वह नर्म दिल 
       छोटी विपदा में आती है माँ -याद 
       बड़ी  विपदा में आते हैं पिता 
       बच्चों की इच्छा पूरी करने को वह 
         रहते भूखे कभी कभी -और  
       हंस कर कहते भूख नहीं है -अभी 
       जब जब संकट आता जीवन में 
       सदा रहते हैं खड़े साथ हमारे 
       एेसे  हैं  वो  पिता  हमारे 
       वो हमारी शान हैं तो अभिमान भी |

                       शशि कांत श्रीवास्तव 
                       डेराबस्सी मोहाली -पंजाब 
                       ©स्वरचित मौलिक रचना

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नमन मंच
विषय --पिता
विधा---मुक्त 
-------------------------------
कहते हैं माँ होती है 
ठंडी छाँव 
पिता ना हो तो
कैसे हो माँ
की ठंडी छाँव 
पिता जी हो तो
सारा जहान 
अपना है
दुनियां का हर मेला
अपनी जेब का
बस्ता है
घनी अंधेरी रातों का
पिता ही तो
जलता चिराग है
भीड़ भरी 
सड़कों पर
निर्भिकता से
थाम कर हाथ 
सुरक्षित निकल जाएं
वो पिता का ही
हाथ है
संभालना है
संवारता है
आकार देता है
इस फानि दुनियां में 
एक नाम देता है फटी चप्पल पहनता है
हमें मंहगे जूते 
पहनाने को
फटी हो जेब
उसकी 
मगर देता है
हमें जेब खर्ची 
फिर क्यों कहदें
माँ सबकुछ 
पिता नहीं कुछ 
होता है
माँ ठंडी छाँह है
तो पिता
दृढ दीवार है
जिसके साए तले
होते पूरे 
अरमान है। 

       डा. नीलम
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पिता

मार्गदर्शक
पिता जीवन दाता
सुख प्रदाता।

वरद हस्त
शीतल वट वृक्ष
पिता रक्षक।

कर्तव्यरत
कठोर अनुशासन
गृहस्थ पथ।

रचनाकार
जयंती सिंह

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नमन मंच
पिता
विधा  लघुकविता
16  06  2019,रविवार

पिता पालनपोषण कर्ता
वह जीवन में क्यां न देता?
गरल घूंट जीवन में पीता
सारे संकट वह हर  लेता।

पिता ईश में नहीं है अंतर
विपदा को करते छू मंतर।
जीवन आना और जाना है
उनके पास हर प्रश्न उत्तर।

पिता पुत्र का स्नेह अनौखा
पुत्र हेतु वह जीवन  जीता।
पुत्र ,पिता बनता पहिचान
सब कुछ देता रहता  रीता।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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नमन् भावों के मोती
दिनांक 16जून19
विषय पिता
विधा पिरामिड

1

ये
पिता
सहता
दुःख पीता
जीवन दाता
संतान पालता
भाग्य-कर्म विधाता
2
ये
पापा
न रोते
दृढ़ होते
सम्बल होते
पथ प्रदर्शक
जीवन के रक्षक

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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भावों के मोती
शुभ संध्या 
=============
16/6/19
पिता (हाइकु)
=================
1)
माँ पीसती है 
पिता चक्की  में डले 
रोटियाँ बने।।
2)
पिता महान
जिसका सब कुछ
पुत्र जहान ।।
3)
पुत्र ही प्रान 
दसरथ पिता के 
हर ले जान।।
4)
परम पिता
जग माने ,नीचे है 
पक्का ही जाने ।।
5)
पिता का साया
कोसा कीट खोल में 
धूप भी छाया ।।
6)
पिता का हाथ 
माँ की ममता साथ
पास हैं  नाथ।।

=================
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित 
बसना,महासमुंद,छ,ग,

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन मंच को 
दिनांक-16/6/2019
विषय -पिता
पिता जो अपनी इच्छाओं को समेटकर जीता है ,
पिता जो हमारी जिंदगी के हिस्से का सारा जहर पीता है ।
पिता एक ऐसा पेड़ जिसकी छाया में हर बच्चा सुकूँ पाता है ,
जो जिंदगी की सारी धूप अपने सर पर लेता है ।
पिता जो जिंदगी की सारी कड़वाहटों का ज़हर स्वयं पीता है,
स्वयं अभावों  में रह  हमें दुनिया का सारा सुख देता है ।
पिता हमारे सपनों को निर्माता और पूरक होता है,
पिता हमारे लिए नर नहीं साक्षात नारायण होता है ।
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नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 16/06/2019
विषय :- पिता

खुशनसीब होती है वह काया..
जिस पर होता पिता का साया..
तपती धूप में भी जो..
देता है शीतल छाया..
देता वह पल-पल संबल..
बनाता सदा वह सबल..
निराशा जिनका न छुए दामन कभी...
महके न इनके बिना कोई आँगन कभी..
थकान तनाव इनके करीब न आए...
इनके चेहरे पर कभी सिकन न आए..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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आप सभी को हार्दिक नमस्कार 
आज की प्रस्तुति में 

पिता एक समूचा आसमान !
जहाँ विचरते हैं 
सपनों के जगमग सितारे, 
होती महत्वाकाक्षाओं की ऊँची उड़ानें
और असीम को मुठ्ठी में भर लेने का अटूट हौसला ! 

एक मजबूत वटवृक्ष!! 
जहाँ मिलता है 
स्नेह और विश्वास भरा 
शीतल छाँव, 
हर सुख की खान
जिसकी मजबूत बाँहों में 
झूलता है मासूम बचपन
बनाता घरौदे सपनों के
और जिसके पात-पात में रखता है नन्हे कदम,!!

और पाते हैं अनुपम सुख शांति वात्सल्यमय मंजिल 
जिसकी पनाह में सारा जीवन निरद्वंद हो जाता है।

पिता एक ऐसी किताब !!
जिसे कभी पूरा नहीं पढ़ा गया अपठित पन्ना बनाते रहे सदैव, एक रहस्यमय व्यक्तित्व !
अबूझ पात्र जीवन का महानायक जिसका प्रारंभ और अंत उसी पर होता है !

पिता विश्वास का संबल
आस्था का प्रतीक 
निष्ठा का रूप !
कर्मवीर, कर्मपथी, है महारथी पिता परिवार का सारथी !!

सुदृढ मुस्कानों से झेलता
झंझा जीवन का 
बचाए रखता सुरक्षित, 
संतति और परिवार की गरिमा होता है आस्थाओं मर्यादाओं की मजबूत कपाट!!

पिता एक एहसास
अटूट प्यास
मुकम्मल तलाश !
तिमिर पथों पर पुंज उजास,
सृष्टिकर्ता पालनकर्ता 
दुखहर्ता सुखकर्ता !

पिता माथे की धूलि चंदन आत्माओं का बंधन 
विराट का संवर्धन ! 
नम्र नमित नमन
विनय विराटता विहंगम वंदित 
वंदन !

पिता-सूत्र सुक्ति,
युक्त युक्ति,
मोह मुक्ति,
बूंद विराट सम्यक ललाट सत्य प्रकाश !!
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स्वरचित 
 *सुधा शर्मा* 
राजिम (छत्तीसगढ़)
1-6-20196

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भावों के मोती
पितृ दिवस पर

मेरे पापा हैं मेरे आदर्श
मैं भी बनूं उन जैसी
यही है मेरे जीवन का लक्ष्य।

मेरे पापा कभी थकते नहीं
कितना ही काम क्यूं न करना पड़े
मेरे पापा कभी रोते  नहीं
कितना ही दर्द क्यूं न सहना पड़ै
मुस्कुराहट देख उनकी 
भाग जाता हर मर्ज।
मेरे पापा हैं मेरे आदर्श।।

हर मांग हमारी पूरी करते हैं
मुझे खुश देख खुश रहते हैं।
अपनी जरूरतें भी टाल जाते
नहीं पड़ता उन्हें कोई फर्क।
मेरे पापा हैं मेरे आदर्श।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
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मंच को नमन
दिनांक-16/6/2019
विषय -पिता

दिन भी ख़ास है
मौक़ा भी मेरे पास है
मेरे मात पिता के दाम्पत्य जीवन की
55वीं वैवाहिक वर्षगाँठ आज है
मेरे हृदय के उच्चतम भावों ने
शुभकामनाओं की दी मुबारकबाद है

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मैं जानती हूँ और मानती भी हूँ
माँ की चहेती होती ये बेटियाँ
उसके इर्द गिर्द मँडराती है बेटियाँ
पर सच कहूँ ,यक़ीन मानिए मेरा
पापा की बड़ी लाड़ली होती है
ये बेटियाँ मधुमास -सी  होती है ,
पापा के लिए बड़ी ज़हीन है बेटियाँ
संरक्षण में महफ़ूज़ होती है बेटियाँ
पापा जो लाए कमाकर आमदनी
उसकी  हसरत ,बरकत है बेटियाँ
झुक जाए कभी कंधे पापा के
बेटों से पहले बोझ उठाती है बेटियाँ
पापा की पगड़ी का ग़रूर है बेटियाँ
घर की दहलीज़ का नाज़ है बेटियाँ
पापा भरते  जाते हैं उनके सपनों में रंग
भावी जीवन में ख़ुशियों और उमंग
दुनिया के प्यारे प्यारे  सारे पापा
उनमें से हैं एक मेरे भी पापा
मेरी फ़रमाइशों को बिन कहे
कैसे समझ जाते है मेरे पापा !
जो सिद्धांत सलीक़े से उन्होंने सिखाए
मेरी ज़िंदगी में अब तलक काम आए
आदर्शों का नायाब मूर्तरूप
संस्कारों का पिटारा हैं मेरे पापा
सादगी का  अनुपम अलंकार
विनम्रता का शृंगार है मेरे पापा
एक फ़ौजी.एक देशभक्त सिपाही
ईमानदारी का स्तम्भ है मेरे पापा
जय किसान के अमर नारे का
खलिहानों में अब भी देखो
जयकारा लगाते हैं मेरे पापा
वैसे तो पापा के हैं अनंत गुणगान
मेरी उपलब्धियों का स्वाभिमान
उस दिन को कैसे लिखूँ
जब पापा ने मुझे कहा -
काश ! तुम मेरा बेटा होती
कन्यादान से ना यूँ पराई होती
भावुक हो गई थी सुनकर वह बात
दूरियों ने कैसे  अब कर दिए हालात!!

✍🏻 संतोष कुमारी  ‘संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
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नमन भावों के मोती
दिनाँक -16/06/2019
शीर्षक-पिता, पितृ
विधा-हाइकु

1.
प्रेम झरना
आसमान से ऊँचा
पिता का दिल
2.
पिता दीपक
संस्कारों का उजाला
राह दिखाता
3.
संस्कारी पिता
नेक राह चलता
आदर पाता
4.
पिता सूरज
परिवार ब्रह्मांड
मर्यादा धूरी
5.
पिता नाविक
परिवार की नैया
पार लगाता
6.
भाग्य का साया
पिता का आशियाना
सर्वत्र छाया
7.
करू वंदना
आदर्श बने पिता
सुख दुःख में
8.
पिता सागर
वात्सल्य का गागर
स्नेह उड़ेले
9.
पिता हमारा
हर सुख दुःख में
बना सहारा
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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सादर नमन

      " पिता"
चिंता से दूर खिलखिलाता बचपन,
पिता के साये में पलता बचपन,
अपनी काया की ना करता फिकर,
उस पिता को करूँ मैं नमन ।
**
आँगन में बच्चों को चहकते देखा,
ना की पार कभी खर्चे की रेखा,
बच्चों के भविष्य की चिंता में,
पिता को रातों में जगते देखा।
**
माँ का है श्रंगार पिता,
घर का है आधार पिता,
बोता बीज संस्कारों के,
औलाद के लिए संसार है पिता ।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/6/19
रविवार
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🌹भावों के मोती🌹
16/6/2019
             हाइकु
🙏""पिता दिवस विशेष""🙏

(1)
पिता ही छाता
मुसीबत की वर्षा
सदा बचाता।।

(2)
पिता का हाथ
अनमोल खजाना
स्वर्ग की सीढ़ी।।

(3)पिता ही शाख़
मजबूती ने थामे
कोमल पात।।

(4)हिंडोले वाली
खाली कुर्सी समाई
पिता की याद।।

(6)
कल्पना पंख
पिता विश्वास सँग
ऊंची उड़ान।।

(7)
संध्या मुस्काई
पिताजी ने थैले में
खुशियाँ भरी।।

(8)
सम्बल  वृक्ष
तन कर है खड़ा
बेटी का पिता।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलि
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