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ब्लॉग संख्या :-426
कुछ शब्द शेर के....
मन भीग-भीग जाता है, तन भीगा तो क्या भीगा।
यह पहली बारिश है ऐसी, जिसमे है रोम-रोम भीगा॥
धरती भीगा अम्बर भीगा, इस शेर का अन्तर्मन भीगा।
बाँगों मे कली कली भीगी, इस उपवन का सबरंग भीगा॥
आओ प्रिय मिल ले इस ऋतृ मे, मन पोर-पोर मेरा भीगा।
आँखो से प्यार छलक करके,अधरो से कण्ठ तलक भीगा॥
मधुमास इसे ही कहते है जब अंग-अंग सारा भीगा।
जो ना भीगा वो क्या भीगा, हर शब्द शेर का है भीगा॥
स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
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नमन मंच भावों के मोती--
रविवार स्वतंत्र लेखन
ग़ज़ल
बह्र-2122 1122 22
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चांद की आज निशानी आई,
इश्क में तेज रवानी आई।
🌸🌸
यार नायाब मिला है मुझको,
आशिकी खूब निभानी आई।
🌸🌸
साथ दिलशाद फिज़ा थी मेरे,
बारहा बार जवानी आई।
🌸🌸
बंदगी काम सदा आती है,
याद तहरीर पुरानी आई।
🌸🌸
बाद मुद्दत के खुशी हासिल है,
आग पानी में लगानी आई।
🌸🌸
जिंदगी आज मुकम्मल साजन,
शाम फिर देख सुहानी आई।
🌸🌸
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
23/6/2019
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?? कम बोलना किस हद तक ठीक ??
कम बोलना किस हद तक ठीक है
आज घरों की हालत नही नीक है ।।
अपनी अपनी धुन में सब खोए रहें
यह नही समाज को शुभ प्रतीक है ।।
किसी को किसी से न बोलना बीमारी
सबको ही छायी रहे अब यह खुमारी ।।
खतरनाक बीमारी के यह संकेत हैं
इस चपेट में आ रही यह दुनिया सारी ।।
प्यार के दो मीठे बोल अब मँहगे हैं
आज जमाने के बदले सब लहजे हैं ।।
जो समय बचता था वो मोबाइल छीना
ये रफ्तार अच्छाई को दिखा रही ठेंगे है ।।
यह कौन से जमाने अब आ रहे हैं
हरेक अपनी खुशी में मुस्कुरा रहे हैं ।।
पतन हो जाऐगी ये समाज व्यवस्था
ऐसे आसार 'शिवम' नजर आ रहे हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/06/2019
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नमन मंच भावोंके मोती
स्वतंत्र लेखन
विधा लघुकविता
23 जून 2019,रविवार।
पर्यावरण विश्व समस्या
इस पर कुछ करना होगा।
वन सुरक्षा नव पौधों से
धरती पर रंग भरना होगा।
मानसून उठता सागर से
शीतलता आकर्षित करती।
संवहन की क्रिया से ही
वसुंधरा को जल से भरती।
ध्वनि वायु जल प्रदूषण
हाहाकार मचा धरती पर।
इनका केवल एक उपाय है
ध्यान रखें स्वयं करनी पर।
जल,वायु ध्वनि हो निर्मल
नव पुष्पों से धरा पुष्पित हो।
मलय बयार चले धरती पर
सुख समृद्धि सदा फलित हो।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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नमन मंच
विषय .. बेकरार /बेचैन
शैली .. श्रृँगार
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सखी रे सावन आया, पर वो नही आये..
बेचैन मेरे दिल को पिया, नित दिन तडपाये।
सखी रे सावन आया, पर वो नही आये...
...
बरखा जल की बूँदे मेरे, तन मे आग लगाये।
बहे जो पुरवा मेरे मन को, बेकरार कर जाये।
सखी रे सावन आया, पर वो नही आये..
.....
तडप रही मै जल बिन मछली, न जाने वो पीड बेदर्दी।
किसको पीड बताये।
सखी रे सावन आया, पर वो नही आये..
.....
गये पिया परदेश कमाने, ब्याह किया मोहे घर मे बिठा के..
गवनवाँ कराये काहे।
सखी रे सावन आया, पर वो नही आये..
....
मिलन को तडपे तेरी सजनिया, कैसे बात बताये।
शेर सुनो ना कह पाऊँ मै, मन ही मन कुम्हलाये।
सखी रे सावन आया, पर वो नही आये...
......
स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
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सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
23/06/2019
स्वतंत्र लेखन
हाइकु---"रास्ता/मार्ग/पथ"
1
अध्यात्म मार्ग
मोह-माया का त्याग
शांति निवास
2
सच्चाई पथ
चल लेके शपथ
छोड़े ना हम
3
गाँव का रास्ता
बयॉ करती दास्तां
मिट्टी से वास्ता
4
नभ का तारा
बना पथ दर्शक
रात जो भूला
5
सुगम पथ
बनता शांति दूत
देशों के मध्य
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-23.06 2018
क़ाफ़िया- आर
रदीफ़= कर तू ।
अर्कान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
मात्राभार- 212 212 212 2
विधा- ग़ज़ल
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मेरे दिल पर न अधिकार कर तू ।
अपनी फ़ित्रत से तकरार कर तू ।।
*******
दौड़ती ज़िन्दगी रास आई,
मुझको यूँ मत तलबगार कर तू ।।
*******
छोड़ फिर क्यूँ दिया हाथ तूने ,
क्या सबब था ये इज़हार कर तू ।।
*******
शादमानी भला चाहता है,
ज़िन्दगी मगर प्यार कर तू ।।
*******
प्यार की इन्तहा हो गई अब,
दिल न चाहे तो इनकार कर तू ।।
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राम सेवक दौनेरिया "अ़क्स"
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नमन मंच
दिनांक - 23/06/2019
विषय -स्वतंत्र लेखन
(अमृता एक औषधि )
भटक रही, दर-दर देखो !
स्नेह भाव से बोल रही,
अमृत पात्र लिये हाथों में,
सृष्टि, चौखट-चौखट डोल रही|
विशिष्ट औषधि, जीवनदात्री,
सर्वगुणों का श्रृंगार किये
अमृता कहो या गिलाये
संजीवनी का अवतार लिये |
आयुर्वेद ने अर्जित की,
अमूल्य औषधि पुराणों से,
महका, मानव उपवन अपना,
अमृता की झंकारों से |
चेत मानव चित को अपने ,
न खेल बच्चों की किलकारी से,
हाथ में औषधि लिये खड़ी,
प्रकृति जीवन पथ की पहरेदारी में |
स्वरचित कविता -
अनीता सैनी
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मेहन्दी माहात्म्य
☆☆☆☆☆☆☆☆
मेहन्दी आयोजन की ही खूबी थी,
हर महिला मेहन्दी में डूबी थी,
यह मेहन्दी की ही आहट थी,
हर महिला के होठों पर मुस्कराहट थी,
मेहन्दी रच जाने पर थे उनके विजयी भाव
एक दूसरे के प्रति थे पूरे सदभाव,
मेहन्दीमय शाम थी,
ललनाओं के नाम थी,
गरिमा भी नाम कर गई,
और शालिन शाम कर गई।
मेहन्दी !सुन्दर विधा श्रंगार की,
मेहन्दी ! सौन्दर्य के उदगार
की,
मेहन्दी ! सौन्दर्य का अनुपम उदबोधन,
मेहन्दी !हर ललना का अनुमोदन,
मेहन्दी ! भाव समन्वय का,
मेहन्दी ! उत्साह हर वय का,
मेहन्दी ! मधुर धुन है उत्सव की,
मेहन्दी ! रूनझुन खुशियो के भव की,
मेहन्दी ! शुभारम्भ है उत्सव का,
मेहन्दी ! प्रारम्भ है नव नव का।
मेहन्दी ! मेल मिलाप का इक मण्डप है,
मेहन्दी ! सौहार्द प्रेम का अनुपम जप है।
मेहन्दी ! की भाषा विलक्षण है,
मेहन्दी ! माधुर्य निमन्त्रण है,
मेहन्दी !अपना रंग भरती है,
मेहन्दी !सबमें उमंग भरती है।
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सुप्रभात नमन भावों के मोती🙏🌺🌹
23/6/2019
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क्षणिका(आत्म मिलन)
अपने को खोकर
अपने को पाना
यही तो मधुर मिलन है।।
दुनियाँ वालों से मिलना
तो मात्र एक व्यवहार,
एक चलन है ।।
निष्काम कर्म ही
है सच्चा धर्म
असीम आनंद मिलेगा
माना कि ये डगर कठिन है।।
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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23/6/2019
मेंहदी रंग लाती है, पीसने के बाद।
ईन्सान संभलता है ठोकर खाने के बाद।
जिसने कभी ठोकर ना खाई,
वो क्या जाने जिन्दगी होती है कैसी।
वो तो सिर्फ जी लेते हैं जिन्दगी,
क्या जाने वो भूख,प्यास होती है कैसी।
जिनको बगैर कुछ किये मिल गया सबकुछ,
वो क्या जाने धूप होती है कैसी।
जो पसीना बहाया करते हैं धूप में,
वही जानते हैं मेहनत होती है कैसी।
सोने में चमक आती है पीटने के बाद,
ईन्सान भी निखरता है मेहनत करने के बाद।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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भावों के मोती
मंच को सादर नमन
23/6/19
पेड़ लगाता चल
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1)
जीवन राही
छांव बनाता चल
आयेंगे कल ।।
हरा भरा हो पल
पेड़ लगाता चल ।।
2)
काम अनेक
पेड लगना एक
कर्तव्य नेक ।।
फर्ज निभाता चल
पेड़ लगाता चल ।।
3)
थोडी दौलत
पवन और फल
छोड़ता चल।।
विरासत अचल
पेड़ लगाता चल ।।
4)
ये प्रदूषण
दैत्य खर-दूषण
करो मारण।।
अस्त्र अचूक हल
पेड़ लगाता चल ।।
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क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ,ग,
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नमन् भावों के मोती
23जून2109
विषय सत्य की खोज
विधा स्वतन्त्र रचना
मैं चला
अधीर होकर
सत्य खोजने
पथ में
मिले अनेक लोग
मैंने पूंछा
चहकंकर हंस पड़े
बोले पागल हो क्या
मैनें पूंछा क्यों
बोले
लगते पढ़े लिखे हो
मैं बोला
हाँ
क्या तुम भी पढ़े हो
बोले
हाँ बहुत पढ़ा लिखा हूँ
मैंने फिर प्रश्न दोहराया
वे बोले
यार ये तो बहुत सरल है
जाओ
गीता पढ़ो
वेद पढ़ो
रामायण पढ़ो
या अन्य नैतिक शिक्षा की किताबें पढ़ो
सत्य जान जाओगे
मैं बोला
व्यवहार में सीखना चाहता हूँ
वे फिर हंस पड़े
बोले जमाना गया
सत्य अब किताबों के अंदर रहता है
बाहर असत्य का कब्जा है
सत्य बाहर आया तो
Icu में चला जायेगा
फिर मर जायेगा
किताबों में रहने दो
कम से कम कोमा में ही सही जिन्दा तो रहेगा
मैं भी निरुत्तर हो गया
सच ही तो
कोमा में रहेगा तो कम से कम कोई देवदूत फिर कभी आयेगा
सत्य का कोमा से बाहर लाएगा
सत्य फिर आयेगा
जीवन खिलखिलायेगा
इसी इंतजार में
आगे बढ़ा
मैं चला
गम्भीर होकर
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
23 06 19
आज सखी.... (मेघ मल्हार)
आज सखी मन खनक खनक जाए
मन की झांझर ऐसी झनकी
रुनझुन रुनझुन बोल रही है
छेडी सरगम मधुर रागिनी
मन के भेद भी खोल रही है।
आज सखी मन खनक खनक जाए।
प्रीत गगरिया छलक रही है
ज्यो अमृत उड़ेल रही है
मन को घट रीतो प्यासो है
बूंद - बूंद रस घोल रही है।
आज सखी मन खनक खनक जाए ।
काली घटा घन घड़क रही है
बृष्टि टापुर टुपुर टपक रही है
हवा सुर सम्राट तानसेन ज्यों
राग मल्हार दे ठुमक रही है।
आज सखी मन खनक खनक जाए ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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नमन मंच
भावों के मोती
23-6-2019
#अनंगशेखर छंद में,,,प्रयास
12 12 12 12 ,12 12 12 12× 2=16 लघु गुरू ,,अंत सीमांत संग तुकांत
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सखी-सखी सबै चलीं,निकुंज-कुंज की गली,कली-कली पुकारती,कहाँ सुनंद के लला ?
~
लगे नही जिया कहीं,हिया -कली खिली नहीं,,सुना दो'! श्याम बाँसुरी,धरी जु होंठ चंचला/
~
मयूर पाँख शोभिते,सुकंठ माल -माणिके ,
तुम्ही हमार श्यामले,,,,,,,सुधाम-नाम गोकुला/
~
मुरारि हौ ब्रजेश्वरा,तुम्ही विभो सुरेश्वरा,
कृपा करौं दयानिधे,,,,,,करौं हिया समुज्वला/
~
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित ( गाजियाबाद)
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नमन भावों के मोती मंच 🙏
दिनांक 23/06/2019
विषय - स्वतंत्र सृजन
तुम कस्तूरी
मैं हूँ प्यास की बूँद - बूँद,
अमृत तुम हो घट-घट के।
अन्तर मेरे तुम कस्तूरी,
प्राण अकारथ ही भटके।
बन राग बाँसुरी में बैठी,
तूने अधरों से छुआ नहीं।
मैं रही जलती रेत बनकर,
मेघ नेह का हुआ नहीं।
अक्षर-अक्षर मैं बिखरी,
भाव शब्द न बन पाया।
रही बूँद बरसती अंबर से,
मेरा अन्तरतम न भीग पाया।
पाहन - पाहन पूज थकी,
मन प्राण तृप्त न हो पाया।
आँख मूँद कर जब बैठी,
मेरे अन्तर तू ही मुस्काया।
स्व रचित
डॉ उषा किरण
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नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 23/06/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
नसीब लिखता गया,
जिंदगी को!
मैं सदा पढ़ता गया,
जिंदगी को!
एहसासों से भरी पड़ी,
ये जिंदगी!
महसूस कर...
जीता गया जिंदगी को..
जिंदगी देती रही,
खुशियाँ कभी गम..
मैं हरपल...
धन्यवाद कहता गया जिंदगी को...
किसी ने! ख्वाब सजाए...
किसी ने! अपने बनाए..
किसी ने! घाव दिए..
किसी के! हुए पराये..
जो आया सँग उसका हो लिया मैं...
जैसा मिला रंग उसमें रंग गया मैं..
जो मिला! जिंदगी से मिला..
जो सिखाया! जिंदगी ने सिखाया...
इस जिंदगी से कोई गिला नहीं..
जो न था नसीब में..
वही हमें मिला नहीं..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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1*भा.साथियों सादर प्रणाम जय जय श्री राम तिथि ः23/6/2019/रविवार
बिषयःः#ईश विनय #ः
विधाःःकाव्यःः
प्रभु मन के अंतर्द्वंद्व मिटा दो।
तुम मनमानस से भेद हटा दो।
नहीं मालूम क्या मनसा है तेरी,
हमें अखिलेश्वर अभी बता दो।
कहां खोया अपनापन मानव का।
क्यों हुआ ये खस्तामन दानव सा।
पैर पसारती अलगाववादी हरकतें,
सचमुच ही मानव बना दानव सा।
अब प्रेमालंगन कोई नहीं करता।
गले मिल अभिनंदन नहीं करता।
बस हाथ मिला कर हाथ झाडता,
क्या औपचारिकताऐं नहीं करता।
हँदय प्रेमालाप को नहीं तरसता।
क्यों प्रेमामृत कहीं नहीं बरसता।
लगता रागद्वेष मन प्रतिष्ठा हो गई,
तभी हमको शायद नहीं खटकता।
क्या हमें सद्बुद्घि तुम देंगें दाता।
अब नही कुबुद्धि का खोलें खाता।
यहां देख देख मन बिचलित होता,
हैं चरण शरण सब तुम्हीं विधाता।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1*भा#ईश विनय#काव्यः ः
23/6/2019/रविवार
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"जीवन के हर क्षण को
चुस्कियों में पीने दो।"
अति प्रिय कविता
जो जैसे जीता है
उसे वैसे ही जीने दो,
जीवन के हर क्षण को
चुस्कियों में पीने दो।
उपदेशों को क्यूँ मिलाते
अपनेपन की 'छाछ' में,
एक अनोखी सी चुभन है
हर किसी की प्यास में,
रिश्ते ही रिश्ते दीखते हैं
जीवन के उस पार तक,
मत खोजो गलतियां
प्यार को देखो बस, प्यार तक,
जो होता है इस जहाँ में
वो वैसे ही होने दो
जीवन के हर क्षण को
चुस्कियों में पीने दो।
मत बहलाओ तसल्लियों से
जीवन ये व्यापार नहीं,
तमन्नाएं उठती हर कहीं
मेरा-तेरा अधिकार नहीं,
उठती जिज्ञासा, बहकता मन
कहीं बदलाव, कहीं घुटन
रुक सके न चाहने पर भी
दो शाखाओं का अटूट मिलन,
टकराती हैं बिजलियाँ
कुछ शोर भी होने तो दो
जीवन के हर क्षण को
चुस्कियों में पीने दो।
"मैं न चाहूँ, तूँ जो चाहे
फिर भी मिला लें ये निगाहें,
गम नहीं खुमार है
फासलों की ये वजहें,
स्वार्थ के उठते ये खंजर
वक्त के चुभते ये कंकर,
इंसान को पढ़ती आँखे अपनी
खो गया कभी, प्यार का वो मंजर,
गुमनाम है खामोशियाँ
वीराने में ही रहने दो,
दो घडी की जिंदगी है
जो हो रहा है, होने दो,
क्यूँ बजाते हो घंटियां
कोई सो रहा है, सोने दो
जीवन के हर क्षण को
चुस्कियों में पीने दो,
जो जैसे जीता है
उसे वैसे ही, जीने दो।"
श्री लाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर।
(मैसूर 9482888215)
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नमन भावों के मोती
२३/६/१९
विषय स्वतंत्र लेखन
मदिरा सवैया
मोहन जन्म लिए मथुरा मथुरा तब पावन धाम हुई।
मोहन पांव धरे मथुरा ब्रज की रज पुण्य ललाम हुई।
मोहन की परछांइ पड़ी यमुना जल की द्युति श्याम हुई।
मोहन के पद पंकज से मथुरा नगरी अभिराम हुई।
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
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भावों के मोती
दिनांक 23/6/19
स्वतंत्र लेखन
विधा - लघुकथा
इन्सानियत
कड़ाके की ठंड थी , सब गरम कपड़ो में अपने
को ढके थे ।
अचानक अम्मा जी को निमोनिया हो गया था , और उन्हें अस्पताल में भरती कर दिया था , 90 साल की अम्मा जी जिजीविषा के कारण जिन्दगी और मौत से खेल रही थी और आखिर में उन्होंने मौत को भी
हरा दिया था ।
अब चौबीसों घंटे तो कोई अम्मा जी सेवा और साथ नहीं रह सकता था , हालांकि उनके तीन बेटे और एक बेटी थी , याने भरा पूरा परिवार था , पर वही बात , समय किसी के पास नहीं था । सब अपने आफिस और कारोबार में व्यस्त थे । आखिर काफी खोजबीन के बाद अम्मा जी देखभाल के लिए कमला बाई मिल गयी थी यही कोई चालीस साल की रही होगी , पति का देहान्त हो गया था , दो बच्चे थे । घरों में काम करके वह बच्चों को पढ़ा लिखा रही थी ।
कमला बाई को अम्मा जी की देखरेख की जिम्मेदारी सोपीं गयी थी । तीनों भाई दो दो हजार मिला कर कमला बाई को देने को राजी हुए । भाईयो और उनकी पत्नियों ने सोचा अरे दिन भर की चिल्ल-पों से तो अच्छा है कि दो दो हजार दे दो ।
अम्मा जी , कमला बाई से बहुत खुश थी , वह बहुत अच्छे से उनक सेवा कर रही थी ।
लेकिन एक बात थी , अम्मा जी बुढ़ापे की देहरी में थी और कब उनके दिमाग में क्या आ जाए और कमला बाई को रूपया पैसा न दे दें इसलिए परिवार का एक न एक सदस्य कमरे में मौजूद रहता था ।
कमला बाई कड़ाके ठंड में भी सिर्फ एक साड़ी में गुजर रही थी , इस और किसी का ध्यान नहीं था ।
कमला बाई के हाथों खाते पीते आखिर एक दिन अम्मा जी दुनियाँ से चल बसीं ।
कमला बाई सगी बेटी से भी ज्यादा रो रही थी और भागदौड़ कर सब काम कर रही थी ।
ठठरी जला कर सब घर आ गये थे और अम्मा जी के आखरी समय में उपयोग में लाये गये शाल रजाई गद्दे बाहर फैंकने की बात चल रही थी क्यो कि अब मरे- गड़े की चीजें घर में नहीं रखनी थी । कमला बाई को कल से नहीं आने के लिए कह दिया था , कायदे से उसे बीस दिन के पैसे देने थे , परन्तु सब जान कर भी अनजान थे । रात हो चली थी ।
अम्मा जी के सब सामान की गठरी बना कर कमला बाई को कचरे में फैंकने के लिए दे दी थी ।
अपने सिर पर रखी गठरी से कमला बाई को और ज्यादा ठंड सताने लगी थी । उसने सोचा इन चीजों को कचरे में फैंकने से सुबह तक तो यह कीचड़ में खराब हो जाऐगे और किसी काम के नहीं रहेंगे । उसके पैर अपने घर की तरफ मुड़ गये ।
घर में बच्चे चटाई पर कुकडे मुकडे सो रहे थे । कमला बाई ने गद्दे बिछा कर बच्चों को लेटाया फिर रजाई उड़ाई फिर खुद भी रजाई में घुस गयी ।
आज उसे बहुत प्यारी नींद आ रही थी ऐसा लग रहा था मानों अम्मा जी अपने हाथ उसके और बच्चों के सिर पर फैर कर आशीर्वाद दे रही हो ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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लघु कविता( स्वतंत्र विषय लेखन)
"वर्षा मन को लुभा रही"
वर्षा की बूंदों को देखो,मानव मन को लुभा रही।
आसमान में उमड़ घुमड़ कर, बदरी देखो छा रही।।
बदरा को छाते देख, पोर पोर हर्षित हुआ।
पानी की बूंदें आने से, रोम रोम है भीग गया।।
ठंडी ठंडी हवा के झोंके, मन को आज लुभाते हैं।
बागों में छाई हरियाली, सबके मन को भाती है।।
मदमस्त होकर पशु पक्षी, अपनी राग सुनाते हैं।
बाज सरीखे पक्षी देखो, बादल की सवारी करते हैं।।
कल कल करके नदी और नाले, इठलाते से बहते हैं।
उन्हें देख कर ऐसा लगता , मानों नया गीत सुनाते हैं।।
वर्षा की पहली फुहार नें , फूलों में सुगन्ध भर दी है।
देखो देखो इन बूंदों ने, मन में खुशियां भर दी हैं।।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
@@@@@@@@@@@@
#नमन मंच :::भावों के मोती:::
#दिनांक :::२३,६,२०१९::::
#विषय :::स्वतंत्र लेखन::::
#रचनाकार ::दुर्गा सिलगीवाला सोनी,,
""*"" बूंदों की महिमा""*""
बारिश की एक एक बूंद का,
कुछ अलग अलग महत्व है,
हर एक बूंद में जीवन है इसके
हर बूंद में इसके अमरत्व है,
सागर में एक बूंद बरस जाए,
वह बूंद महान बन जाती है,
हिस्सा महासागर का बनकर,
लहरों की उछाल बन जाती है,
एक बूंद जो बरसी गंगा में,
पावन और पूज्य हो जाती है,
छू लेने मात्र से हम पवित्र हुवे,
पूजन में भी चढ़ाई जाती है,
कुछ बूंद जो बरसीं गटरों में,
छू लेने से ग्लानि हो जाती है,
खुद को समझेंगे पतित है हम,
नथुनों तक दुर्गंध भी आती है,
कुछ बूंद अब बरसें खेतों में,
मुस्कान चेहरों में छा जाएगी,
कृषकों को राहत मिल जाए,
अन्न की बारिश भी हो जाएगी,
एक बूंद से जन्मा है मानुष,
एक बूंद से दुनिया भी आईं है,
जो एक बूंद कहीं बरसी"दुर्गा"
उसी एक बूंद ने जाति बनाई है,
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नमन मंच
दिनांक-२३/६/२०१९"
"शीषर्क-स्वतंत्र-लेखन"
बाल कृष्ण ने मिट्टी खाकर
दिया हमें उत्तम संदेश
माटी से जु़ड़े रहे हम
माटी के कठपुतली हम।
माटी मे जन्मे, माटी मे पले
माटी के देह,माटी मे मिले,
फिर माटी से काहे परहेज
कृष्ण के मानव अवतार ने,
दिये हमें संदेश
जीवन संघर्ष के रस्सी पर
तनातनी चले जग सारा
सूत्रधार है नट हमारे
कठपुतली है उनका जग सारा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन मंच भावो के मोती।
स्वतत्रं विधा ।
23/6/201।
बरखा ऋतु आई सखी,चल कालिंदी कूल ।
कदंब की डाली झूला डाले गाये मधुरम गीत ।
आये श्यामा श्याम युगल बशी मधुर बजाई ।
सब सखियां घेरयुगल को करे ठिठोली ।
एक सखी बोली श्याम से दे लालजी मोहे झोटा ऐसा हवा माय उडी जाऊँ ।
श्यामल श्याम दिया ऐसा झोटा गोपी मन हिचकोला खाऐ ।
पाँव पडु कान्हा जीयरा घबराऐ ।
रोक सावरा झूला सांस मैरी रूक रही ।
अब कहूँगी कभी झोटा दो लाला ।
दोनो बिठाया झूले पर देने लगी सखियां झूला होलै होले ।
मै श्याम तेरी दिवानी अब कर ठिठोली ।
स्वरचित दमयन्ती मिश्रा ।
गरोठ, मध्यप्रदेश .
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नमन् भावों केमोती
23जून2019
विषय- चमकी बुखार के सन्दर्भ में
विधा -हाइकु
द्वितीय प्रस्तुति
1
उम्मीद टूटी
डाक्टर परेशान-
किस्मत रुठी
2
दवा बेकार
प्रयास असफल-
चमकी कोप
3
चीख पुकार
हाहाकार प्रकोप-
मृत्यु अकाल
4
निराश व्यक्ति
आधुनिक विकास-
विज्ञान पस्त
5
बुखार जोर-
तकनीकी प्रभाव
नही उपाय
6
दौड़ते लोग-
मरती जिन्दगियां
सूने नयन
7
लाचार लोग
सरकार बेबस-
सिस्टम दोष
8
पीड़ित लोग
चमकी बुखार से-
गांव के गांव
9
कलम स्तब्ध
न मिल रहे शब्द-
मन व्यथित
स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
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नमन मंच
भालों के मोती
दिनांक-22-6-2019
स्वतंत्र लेखन
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एक गीतिका
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छंद “सिंधु”
1222 1222 1222 मापनी पर,,,,
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बजादो श्याम ,,,वंशी मोहिनी प्यारी!
अधर पर धर,सुना दो ! तान मतवारी !!
+
कहीं वन वीथियों में ,,,गूंजती मुरली,
मधुर धुनि छेड़ते हो ,,श्याम वनवारी !
+
बनी सौतन,अधर पर राज करती है,
लली-वृषभान के दिल को करे खारी!
+
मुरलिया-राग मधुरावलि भुवन मोहै, ,
त्रिलोकी के,,,महामुनि देव बलिहारी !
+
बँसुरिया ये सदा करती मुदित मन को,
सुना जब तान ,,,दौड़ीं गोपियाँ सारी!
+
शरण आई तिहारे,,,,,,बाँसुरी वाले,
सुना देना मुझे भी ,,,,,रागिनी न्यारी !
+
बजी "वीणा "हमारी ,,,,,,प्रेम में तेरे,
चले आओ ! ,,,मुरारी,प्रीत से हारी !!
+
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🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
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II स्वतंत्र लेखन II नमन भावों के मोती...
ग़ज़ल - मेरी आशिकी के चर्चे....
मेरी आशिकी के चर्चे रह-ए-आम तक न पहुंचे...
मेरे दर्द के तराने तेरे गाम तक न पहुंचे...
जो मिला है दर्द तुमसे इनआम है वो मेरा...
के ख़ुशी से मर मिटा हूँ जो आराम तक न पहुंचे....
सभी धुल गए हैं चहरे है मिटा ज़मीं से खूं भी...
ये कलम भी अब दबा दो के निजाम तक न पहुंचे...
गम-ए-ज़िन्दग़ी से कह दो मुझे छोड़ कर न जाए...
वो भी दर्द इंतिहा क्या जो अंजाम तक न पहुंचे...
वो झुका के सर हैं बैठे मुझे बेकसी ने मारा...
न नज़र मिले 'चँदर' से कि पयाम तक न पहुंचे...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२३.०६.२०१९
निज़ाम = प्रबंध, व्यवस्था
पयाम = सन्देश,
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नमन "भावो के मोती"
23/06/2019
"स्वतंत्र लेखन"
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आप.. एक बार कहा करते थे।
हम जो सौ बार सुना करते थे।।
वो दिन भी क्या दिन था पहले।
नाम लेते ही....दिखा करते थे।।
समझते थे...... उन हालातों को।
हम कभी भी जो गिला करते थे।।
बात प्यार से कभी जो कहा।
हम ..दिन रात सुना करते थे।।
जब तेरे दर्द में दिल दुखता था।
वो जहर हंसके पिया करते थे।।
रात जब भी कभी ख्वाबों में आते।
उन... लम्हो को ही जिया करते थे।।
याद करके जो कभी रोती रही।
बातें... वो सारी छुपा करते थे।।
नाम से आपके.... शुरु होती रही।
यूँ दिन को भी नशा चढ़ा करते थे।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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नमन भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
रविवार
23,6,2019
जीवन दर्शन होता सबका अपना,
यहाँ पर कोई रोता कोई गाता है।
इस रंग बिरंगी दुनियाँ का सच,
जब नश्तर बनकर चुभ जाता है।
तब बोझ अधूरे सपनों का ही,
बागी तबियत कर जाता है ।
सिलसिला कहीं खुशियों का,
अनवरत जब चलता रहता है।
राग अनुराग प्रफुल्लित हो,
दृष्टिकोण अलग ही देता है।
जहाँ बहती प्रेम स्नेह की धारा,
मानव वहाँ उन्नति पाता है ।
सार्थक जीवन पाने के लिए ,
सकारात्मक सोच पाता है।
जीवन को गति देने के लिए,
दृष्टिकोण मायने रखता है।
धन दौलत तो उपक्रम होता,
क्रियान्वयन ही जीता है।
विचारधारा अगर पावन हो,
समाज को सुथारक मिलता है।
घर परिवार समाज के संग संग,
कल्याण देश का होता है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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23/6/19
भावों के मोती
विषय- स्वतंत्र लेखन
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दिल है कि मानता नहीं
बुनता रहता ताने-बाने
कभी प्रीत भरे
कभी रीते मन के अफसाने
बिखरी किर्चे चुनता रहता
सहेजता उन्हें बार-बार
टूटकर बिखरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
प्रिय का इंतज़ार करता
सुनहरे स्वप्नों में खोकर
नवजीवन के सपने बुनता
उम्मीदों के पंख लगाकर
नीले अम्बर पर उड़ता
आशा की डोली में बैठकर
बीते लम्हों को याद में
मन ही मन बिसूरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख प्रिय का
चुपके-चुपके मुस्कुराने लगता
रात की पालकी में सवार हो
कहीं अँधेरे में जा छुपता
दिल है कि मानता ही नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
नवजीवन के सपने बुनता
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
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शुभ संध्या
🌷 ग़ज़ल🌷
रीता हूँ तभी तो भरता हूँ
नित नई कविता करता हूँ ।।
जुदाई मिली इतनी लम्बी
तभी तो जान छिड़कता हूँ ।।
फ़लसफ़े जिन्दगी के जाने
रब की इल्तिजा समझता हूँ ।।
जिन्दगी इम्तिहान ही तो है
रोज मुश्किलों से गुजरता हूँ ।।
कसम खायी रौशनाई की
तभी चिराग सा जलता हूँ ।।
दुआयें मिलती रहें सबकी
'शिवम' यही अर्ज़ रखता हूँ
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/06/2019
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2भा.23/6/2019/रविवार
बिषयःः ः#मेरी आरजू#
विधाःःकाव्यःः
सच्चा वंशज प्रभु श्री राम का,
कुछ तो आदर्शों पर चल पाऊँ।
हे श्री राम मुझे बस यही चाहिए,
हर जीवन सदचरित्र मै रह पाऊँ।
नहीं हो पाऊँ मन से बिचलित,
यहां कभी पथभ्रष्ट न हो पाऊँ।
पुरूषार्थ करूँ जीवन में अपने,
कुछ परोपकार भी कर जाऊँ।
रहूं सदा मर्यादाओं के बंधन में,
ये झोली पापकर्म से न भर पाऊँ।
यहां रहूं अगर तो सत्संगी बनकर
वरना ये खाली अंजली घर आऊँ।
प्रभु अजर अमर है नाम तुम्हारा।
है हर रघुकुलवंशज श्रीराम तुम्हारा।
नहीं चलते पुरूषोत्तम आदर्शों पर
है जग जाहिर प्रभु काम तुम्हारा।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2*भा#मेरी आरजू#काव्यः ः
23/6/2019/रविवार
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नमन मंच
23/06/19
गरमी
दोहावली
*
सूरज उगले आग जब, बढ़े धरा का ताप।
मौसम गरमी का हुआ ,बढ़ता मन संताप।।
दिन अब लम्बे हो गये, छोटी होती रात ।
जेठ आषाढ़ मास में ,गरमी दे आघात ।।
वृक्ष काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास ।
इस गरमी के ताप में ,बरखा की है आस ।।
अन्नदाता !गरमी में ,बोयें फसल खरीफ ।
वर्षा पर निर्भर रहें ,पायें वो तकलीफ ।।
खान पान का ध्यान रख,दें गरमी को मात।
शीतल जल अरु छाछ है,मौसम की सौगात ।।
बच्चों की मस्ती बढ़ी ,गरमी में अवकाश ।
सैर सपाटा कर रहे ,खुला मिला आकाश ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन भावों के मोती
शीर्षक-स्वतंत्र लेखन
विषय - मित्र
23/06/19
रविवार
मुक्तक
मित्र तेरा साथ जो मिल जाएगा।
अचल पर्वत भी यहाँ हिल जाएगा।
साथ में चूमेंगे उन्नति का शिखर-
जीत का हर गीत यह दिल गाएगा।
मन का दृढ़ विश्वास कम होगा नहीं।
हों अनेकों कष्ट गम होगा नहीं।
कितने भी तूफान पथ को रोक दें-
पर कभी भी क्षीण दम होगा नहीं।
एक -दूजे के लिए हम डोर हैं।
लक्ष्य की खातिर लगे पुरजोर हैं।
अब नहीं हिम्मत को हारेंगे कभी-
क्योंकि हम सब मित्र न कमजोर हैं।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन भावो के मोती मंच
दिनांक;23/06/19
विधा:चोपाई
चोपाई
सहज नहीं है खुद को पाना
अंतस की यात्रा पर जाना
मनका फेर के कुछ न होता
भज ले राम लगा ले गोता ।
ध्यान त्रिकुट पर जब लग जाता
सहस्त्र रवि का प्रकाश पाता
दुनियां की रचना सब झूठी
अब तो मना ले नियति रूठी ।
मानव जन्म काट चौरासी
इसी से बस संभव निकासी
माया के सब रूप सलोने
उसके हाथ ज्यो है खिलौने।
दौड़े पहिया सदा समय का
कौन रखे पहरा साँसों सा
नहीं भरोसा मित्र काल का
अद्भुत उसकी दिव्य चाल का।
नीलम तोलानी
स्वरचित
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सादर नमन " भावों के मोती "
" रंगमंच - किरदारों की सच्चाई "
***"*****"******"*******"******
" ज़िन्दगी में सच्चाई के रंगमंच सजाने को...
किरदार ढूँढने निकली हूँ....!!!!!!!!
पर कैसे निभेगे ये किरदार.....
सोचकर पसीने पसीने हो घबराई हूँ....!!!!!!! "
एक भूखा बच्चा - जो बचा हुआ खाना ही मिल जाये आस लिये बैठा है.... !!
एक बेरोजगार नौजवान - जो डिग्री लेकर नौकरी की तलाश में निकला है़....!!
एक महँगाई का मारा इंसान - जो मँहगाई के फँदे में फँसा बैठा है...!!
एक इज्जत से हारी बेटी - जो बलात्कारी को सजा मिले..इंसाफ की आस लिये बैठी है...!!
एक शहीद का परिवार - जो शहीद हुये पति,बेटा की पहचान ढूँढने की राह में भटका है...!!
एक दहेज के लिये जलाई गया बेटी का बाप - क्यूँ लाडो को जला दिया...कैसे बुझेगी ये आग यही सोचकर खामोश हो गया है...!!
एक भ्रष्ट नेता - जो जनता की आँख में धूल झोंक कुर्सी पर राज किये बैठा है...!!
एक देश का किसान - हार गया है इतना कि आत्महत्या के रास्ते पर चल निकला है...!!
" ज़िन्दगी के इन किरदारों से....
मैं इतना घबरा गयी.....!!!!!
कि किरदारों को छोड़.....
असल ज़िन्दगी में आ गयी..!!!! "
गुरविन्दर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)
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3भा.सादर नमन साथियों
तिथि ः23/6/2019
बिषयःअध्यात्म
विधाः ःताटंक छंद
एक प्रयास मात्र
दुख में भजन करें सब कोई, सुख में कभी नहीं करते।
दुखसुख में सदा रहें एक से,नहीं डरकर कभी मरते।
मन के वश में नहीं रहें तो, हम हरदम सुखी रहेंगे।
इसको दूर रखें हिया से तो,हम सचमुच खुशी रहेंगे।
मधुरस जीवन में घुल जाऐ तो मजा हमें आ जाऐ।
नफरत के बादल ना छाऐं तो मनभावन हो जाऐ।
सबजन रहें प्रेमी सत्संगी, हम मीठी वाणी बोलें।
गर मिलजुलकर रहें सभी तो,कैसे नफरत घोलें।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
3भा.#अध्यात्म#ताटंक छंदः
23/6/2019/रविवार
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सादर नमन
स्वतन्त्र लेखन में मेरी रचना
तेरी यादों के तीर,
हृदय घायल करते हैं,
जल कर विरह की अग्नि में,
रात-दिन आँहें भरते हैं,
आती है जो हवा,
तेरा अहसास देती है,
निहरती रहती हैं अँखियाँ,
यादें तेरी हृदय पर दस्तक देती हैं,
आज तेरी जुदाई में,
तेरी मुस्कुराहट को तरसूँ,
सिमट रही हूँ खुद अपनी बाहों में,
सनम तेरे आगोश को तरसूँ,
याद कर तेरे नग्मों को,
तेरी खुशबू का अहसास करती हूँ,
बेचैन होता है जब मन मेरा,
मूँद कर आँख तेरा दीदार करती हूँ,
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
23/6/19
रविवार
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भावों के मोती : स्वतंत्र लेखन : तोहफ़ा
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इंसान हर लम्हा सहमा सहमा सा रहता क्यूँ है
हर मोड़,हर मुक़ाम पर नया जुर्म सहता क्यूँ है?
शौक़-ए-जाम कहाँ,तरसे अवाम महज़ पानी को
ऐ चश्मे-नम ! मानिंद-ए-दरिया तू बहता क्यूँ है ?
सुनकर अनसुना करने वालों का ही हुजूम यहाँ
ए दिल ! हर बंदे से अपनी दास्ताँ कहता क्यूँ है?
मुस्तकिल यहाँ कोई नहीं,न हम न ये अहले-जहाँ
हर लम्हा बेसबब इतनी मशक्कत करता क्यूँ है?
गिरते हुओं को उठाने,कौन हाथ आगे बढ़ाता है यहाँ
ख़ुद पर ऐतबार कर,औरों से तवक़्क़ो करता क्यूँ है?
तन्हाई को भी कहाँ मयस्सर चंद लम्हे कैफ़ियत के
गुजर जाएँगे ये दिन भी जिंदगी रायगाँ करता क्यूँ है?
ख़ुशी वो शै नहीं जो दुनिया तूझे ‘तोहफ़े’ में दे लाकर
ऐ नादाँ ! दुनिया के भरे बाज़ार में तू उसे ढूँढता क्यूँ है?
स्वरचित(C)भार्गवी .... बेंगलूर.....१८/६/२०१९
अवाम -जनता ,चश्मे नम- आँसू , हुजूम -भीड़ , मुस्तक़िल -स्थायी
अहल ए जहाँ - दुनिया वाले ,मशक्कत -कोशिश ,तवक़्क़ो-उम्मीद
मयस्सरव-पाना ,कैफ़ियत - ख़ुशगवार ,रायगाँ -व्यर्थ ,शै-चीज़
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नमनःभावों के मोती
दि.23/6/19
स्वतंत्र विषय लेखन
*
मिले खिले , गले लगे।
बड़े भले , भले लगे।
परंतु स्वार्थ , सिद्ध कर,
चले हमें , छले लगे।
ठगा - ठगी , तना - तनी,
विचित्र सिल-सिले लगे।
सगे नहीं , हुए सगे,
नदीश - बुलबुले लगे।
प्रपंच - ज्वाल में जले,
न ईश - पग तले लगे।।
-डा.'शितिकंठ'
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साथ
मेरी हर एक आह में आप हो
मेरा हर ख्वाब आप हो
जिंदगी की किताब आप हो
चाहत की इंतेहा आप हो
करीबी से भी करीब आप हो
मेरी ताकत आप हो
दुआ भी आप हो
हर राह की मंजिल आप हो
मंजिल की थाह आप हो
हर पल,लम्हा,हर क्षण ,हर
दिन में साथ आप हो
हर दिशा ,हर डगर,हर
गली,हर राह में आप हो
हर अशआर,हर नज्म,
हर गीत ,हर गजल आप हो
हर घड़ी ,हर समय आप हो
राह में ,हर सफ़र में साथ आप हो।
कामेश की कलम से
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