Monday, June 24

:गवाह/सबूत"22 जून 201 9

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-425

।। गवाह/सबूत ।।

गवाह तो यह मेरी कलम है
जिसने किये मुझ पर करम है ।।

आशिकी कहो या आवारगी
सब खुदा का यह रहम है ।।

सबके हाथ में कहाँ हैं फूल 
किसी की किस्मत बेरहम ।।

देर सबेर मगर सब जागे 
हुए रास्ते उनको सुगम है ।।

सबूत मत ढूढ़ो सच थामो 
सच के दामन में दम है ।।

जिनकी खातिर गिरे आँसू
अब वो स्याही बने 'शिवम'है ।।

आज नही तो कल पढ़ेंगें
वो बिछुड़े जो मेरे सनम है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/06/2019
@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावोंके मोती
विषय    गवाह ,सबूत
विधा      लघुकविता
22 जून 2019,शनिवार

सतयुग से कलयुग स्वयं
कालचक्र गवाह जगत का।
जैसी करनी वैसी भरणी
बहुत फर्क पड़ता संगत का।

जीवन जीना क्या होता है
राम कृष्ण स्वयं गवाह हैं।
सद्ग्रन्थ सब लिखे हुये हैं
कोई नहीं करता परवाह है।

धरती अम्बर सूरज चन्दा
वनस्पति स्वंय गवाह है।
जग नियन्ता स्वयं ईश्वर
सत्य पथ ही श्रेष्ठ राह  है।

अच्छे बुरे का गवाह है ईश्वर
हर पल उससे छिपा नहीं है।
जन्म मृत्यु विवाह नियन्ता
पत्ता उस बिन हिलता नहीं है।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन-भावो के मोती
दिनांक-२२/०६/२०१९
विषय-सबूत

ए कबूतर जरा संँभल के चल

देखता अब तुझे शिकारी है

 उस किस्मत को दाद देता हूं

 जुल्फ जिसने तेरी सँवारी है ।।

सब बताता है नूर चेहरे का 

रात तुमने कहां गुजारी है।।

  हिज्र में बह गए अश्क सब 

अब तक वह नदी तो खारी है।।

स्वरचित 
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

@@@@@@@@@@@@@@@@

सबूत

मैंने मौत से पूछा,
क्यों मोहतरमा,
तकलिफ की,
मेरे घर आने की ।
क्या सबूत हैं,
मेरे जिंदा होने का ।
जीवन भर,
अकड़ा रहा,
मोह माया से,
जकड़ा रहा ।
न सर झुका,
ना छुए चरण ।
इन आँखो से देखा,
अबला का शीलहरण ।
थोडी ना आयी शरम ।
सिक्को के लिए,
जीवन के पैमाने,
बदल दियें ।
जो अपने थे,
दूर हो गयें ।
पथरीली आँखों,
देखता रहा दहन ।
दिल की धड़कने,
ना ज्यादा हुई,
ना कम ।
क्या ?
यह सबूत,
काफी नहीं,
मेरा मरा होने के लिए,
क्यों मोहतरमा,
तकलिफ की,
मेरे घर आने के लिए !!
Xप्रदीप सहारे

@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन
मोहब्बत में हम तेरी फना हो गए,
और तूम आज वफा का सबूत माँगते हो।
निकलते हैं जब तुम्हारी गली से,
क्यों तुम झरोखे से झाँकते हो,
हमने तो तेरी मोहब्बत में अपनों को रूठा दिया,
आज तुम ही मोहब्बत को हमारी कम आँकते हो,
मेरे हर लफ्ज का तुम एतबार करते थे,
आज क्यों तुम गैरों की मानते हो,
दिल में हमारे कोई ना सिवा तुम्हारे,
ए सनम ये तुम भी जानते हो,
कर के हृदय घायल हमारा,
क्यों बार -बार आजमाते हो,
हो जाएँगें रूखसत इस जहाँ से,
ए सनम क्यों हमें इतना सताते हो,
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
22/6/19
शनिवार

@@@@@@@@@@@@@@@@
,,🌹🙏जय माँ शारदे,🙏🌹
नमन मंच भावों के मोती
22/6/2019/
बिषय,सबूत,, गवाह
  हम अपने ही हाथों
 सुकर्म कुकर्म का बीज बोते हैं
किए हुए कर्मों का शीश पर 
बोझा ढोते हैं
अहं के समक्ष किसी की क्या परवाह
भूल बैठे हमारी करनी ही
 हमारी गवाह  
जो भी किया है वही तो पाऐगें
कांटे बोए फूल कहाँ से लाऐंगे
यहाँ सबूत भले ही मिटा दें
प्रभु निरंतर रखता हिसाब है
 हमारे लेखे जोखे की उसी के
पास किताब है
जो हमनें किया उसी का 
पाया सला 
फिर क्यों करें किसी से गिला
बड़ी अदालत में हाजिर जब 
होऐंगे 
स्वयं  के कर्म सबूत बन
निज आंसुओं से धोऐंगे
स्वरचित,,, सुषमा ब्यौहार,,,
@@@@@@@@@@@@@@@@

1*भा.22/6/2019/शनिवार
 बिषयःः#गवाह#साक्षी
विधाःःकाव्यःः

  तुम ज्ञानदेवी हो सरस्वती माता।
    तुम चक्षु ज्ञान के खोलती माता।
      अज्ञान तिमिर सब तुम्हीं मिटाती,
        जय सत्ज्ञान गवाह बोलती माता।

रहें सभी खुशहाल जगत में माते,
   नहीं कोई आपस में वैरभाव हो।
     भाव भावनाओं का संम्प्रेषण हो।
       माँ यहां बस आपस में प्रेमभाव हो।

फूल बनें सब ही भावों के मोती,
  सुरभित हो जन जन का मानस।
     बनें  गवाह हम एकदूजे के माते,
        हो प्रफुल्लित हर मनमानस का।

टूटें रागद्वेष दीवारें आपस की।
  फूटें स्नेह सरिताऐं मानस की।
     हृदय माधुर्य मकरंद फैल जाऐ,
        हों साक्षी आत्माऐं आपस की।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

1भा.#गवाह#काव्यः ः
22/6/2019/शनिवार
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन🙏भावों के मोती🌹🌷

विषय:-सबूत/गवाह
विधा:-नज्म
🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱
सबूत जो मेरे प्यार के पढें नहीं सम्भालें रखें हैं ।
आज मैंने वो खत दिल की तिजोरी में छुपा रखें हैं ।।

सोचती हूँ बहा दूँ, सारे सबूत किसी नदी नाले में ।
कहीं कम पड़ जाये पानी ,आँखों में धारे पाल रखें हैँ

सोचती हूँ कोई केस कर दूँ ,या दफा लगा दूँ तुम पर।
कोई खरोंच न आये इसलिए इरादे टाल रखें हैं ।।

सोचती हूँ सब भुला दूँ और आगे बढ़ जाऊँ कहीं ।
फिर क्योंजख्म ही जिंदा रहने की बजह बना रखें हैं।।

सबूतों को देख न ले दुनियाँ बाले आँखों में मेरी ।
इसीलिए आँखों पर पलकों के पर्दे डाल रखें हैं ।।

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक-गवाही
विधा- ग़ज़ल
22/6/2019
क़ाफिया-- ई
रदीफ़-हो गयी
बह्र 2122 2122 2122 212

आज दिल के हक मे हमदम फिर #गवाही हो गयी,
गैर नजरें उठ रही थीं अब मनाही हो गयी।

दिल में मेरे अब बसेगी राजधानी प्यार की,
मरहबा है दिलजलों की फिर तबाही हो गयी।

मिल गए साथी हयाते जुस्तजू की राह में,
अब्र छाया आसमां में वाहवाही हो गयी।

इश्क की हमदम रवायत एक नियामत है तुझे,
देख मिलते ही नजर ये क्यूं इलाही हो गयी।

आतिशे फुरकत दफा हैं और राजी है सबा,
गिर गई सारी फसीलें बादशाही हो गयी।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन
      " सबूत"
इंसाफ की देवी आज,
बाँध के आँखें रो रही है,
हो खड़ी कचहरी में मासूमों की इज्जत,
सबूतों के अधीन हो रही है,
दरिंदगी का वहशीपन,
मासूम बच्ची सह रही है,
कैसे नौंचा शरीर उसका,
दास्ताँ ये उसकी मौत कह  रही है,
होकर रूखसत इस दुनियाँ से,
रूह उसकी इंसाफ को तरस रही है,
देख कर आजाद उस वहशी को,
दिल से एक माँ के बद दुआ निकल रही हैं,
मिटा दिए जाते हैं यहाँ सबूत,
देख इसे इंसानियत रो रही है,
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
22/6/19
शनिवार

@@@@@@@@@@@@@@@@

22/6/2019
गवाह/सबूत
दूसरी रचना
🛑🛑🛑🛑
एहसासों के कहां सबूत हुआ करते हैं,
जो तुम मुझसे सबूत मांगते हो।
गर देखना है तो झांको मेरे दिल के अन्दर,
रखी है सिर्फ तेरी मूरत,
अब और क्या मांगते हो।

कुछ बातें बगैर सबूत, बगैर गवाह हुआ करते हैं,
पर इसमें बहुत विश्वास हुआ करते हैं।
गर विश्वास हीं नहीं हो रिश्ते में,
फिर क्यों बेमतलब सबूत मांगते हो।
🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐💐💐💐
@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
22 06 19
विषय - गवाह

विराने समेटे कितने पद चिन्ह
अपने हृदय पर अंकित घाव
जाता हर पथिक छोड छाप
अगनित कहानियां दामन में
जाने अन्जाने राही छोड जाते
एक अकथित सा एहसास
हर मौसम "गवाह" बनता जाता
बस कोई फरियादी ही नही आता
खुद भी साथ चलना चाहते हैं
पर बेबस वहीं पसरे रह जाते हैं
कितनो को मंजिल तक पहुंचाते
खुद कभी भी मंजिल नही पाते
कभी किनारों पर हरित लताऐं झूमती
कभी शाख से बिछडे पत्तों से भरती
कभी बहार , कभी बेरंग मौसम
फिर भी पथिक निरन्तर चलते
नजाने कब अंत होगा इस यात्रा का
यात्री बदलते  रहते निरन्तर
राह रहती चुप शांत बोझिल सी।

विराने समेटे..

स्वरचित 
             कुसुम कोठारी ।
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच 🙏
दिनांक - 22/06/2019
विषय - सबूत /गवाह

          गवाह

वे चाँद - तारे
कितनी चाँदनी रातें
वे गुंचे  कलियों के
तैरती फिजाओं में
रजनीगंधा की महक
आँगन का वह कोना
और वहीं डला हिंडोला
उस पर झूलती 
संग - संग हमारी ख्वाहिशें
मंद बहती पुरवाई
हमारे मखमली अहसास भरे
उन मधुर पलों के
गवाह थे सब .....!

वह साँझ का झुरमुट
और समंदर का किनारा
नंगे पैर चलते हुए रेत पर
आकर लहरों का गुदगुदाना
बाहर और भीतर
उफनता हुआ समंदर
वे गवाह थे........!

वह धवल बर्फीली घाटियां
झरते रूई के फाहे से
वर्फ की छूवन
विस्तार अहसास सा
असीमित और अपरिमित
और उन पर चौंधियाती
उमंगों की पुंजमालिका
हमारे उन पलों के
गवाह ही तो थे.....!

स्व रचित
    डॉ उषा किरण

@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन "भावो के मोती"
22/06/2019
     "गवाह/सबूत"
################
चाह कर तुझको फिर ना चाहा किसी को,
इक नाम तेरा ही दिल में लिखें हैं,
सबूत दे रही मेरी धड़कनें हैं।

पाकर तुझे ख्वाहिशें ना कुछ पाने की,
बार-बार तूने ये आजमाए हैं,
सबूत दे रही मेरी साँसें है।

जो कभी रूठ जाते थे तुम,
साए की तरह साथ चलती थी मैं,
गवाह बनें रेत में पाँवों के निशान हैं।

जो तू नहीं तो साथ तेरी यादें है,
रातों को तेरी यादों में जागी हूँ ,
गवाह बनी अलसाई पलकें है।

चाहतों को लुटने वाले जालिम जमाने हैं,
रजनी भी रोती है छुप-छुपकर,
गवाह बनी ओस की बूँदें हैं।

इल्जाम लगाने वाले बहुतेरे हैं,
दामन चाँद का भी न छोड़ा किसीने,
सबूत देख रहे जग सारे हैं।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
@@@@@@@@@@@@@@@@

🙏🌹नमन मंच🙏🌹
22/6/2019
विषय-गवाह/सबूत
*************
मेरे अंदर जो मैं हूँ
वही मैं क्षत विक्षत पड़ी हूँ
उसके कातिल तुम हो
पर मेरे पास कोई सबूत नहीं है
इस बात का...
क्योंकि मैं एक बेजबान
लाचार रूह हूँ
जो अपनों से पराजित हो चुकी हूँ
सबूत के अभाव में..
किसी ने मेरी चीख पुकार
नहीं सुनी
क्योंकि कुछ पीड़ाओं की
ध्वनि नहीं होती
इसलिए वो रह जाती हैं
 अनसुनी..
फिर भुला दी जाती हैं
साक्ष्य के न होने पर
और तुम बाइज़्ज़त
बरी कर दिए जाते हो
इस ज़मीनी अदालत में.
पर क्या उस अदालत से
तुम बच पाओगे...??

    @वंदना सोलंकी©️स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन भावों के मोती
आज का विषय, सबूत गवाह
दिन, शनिवार
दिनांक, 22, 6, 2019,

दुनियाँ की अदालत में
सदियों से चल रहा मुकद्दमा
वादी प्रतिवादी सब मौजूद
सबूत जगह जगह बिखरे
थे सामने नहीं दिखे
कहीं बच्चे कुपोषित थे
कहीं बच्चियाँ थीं मसलीं
कहीं वामा प्रताड़ित थी
कही देह को लुटाती
कहीं नोंची जाती
थे बेवस कितने बंधुआ मजदूर
सड़कों पर सोते गरीब बेघर
आबाद कितने थे बृध्दाश्रम
कचरे के ढेर में दफन नवजात
कानों में गूँजते तीन तलाक
मातृभूमि को शर्मसार करते
देश विरोधी नारों की आवाज
कितने और कितने सबूत चाहिए
मानवता के दुश्मनों के खिलाफ
गवाह भी मौजूद सबूत भी
लेकिन कैसे होगा न्याय
बंद है आँखे न्याय की देवी की
न्यायमूर्ति के बंधे हैं हाथ
अधिवक्ता  का मुँह बंद है
कैसे हो साबित अपराध 
धन और बल का बढ़ा दबाव
सबूत और गवाह नाकामयाब ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच भावों के मोती
दिनांक- 22/06/2019
विषय-गवाह
न्यायालय,गवाह ,न्याय -न्यायकर्ता 
ये तो हैं न्याय के प्रतिमान ।
जहाँ गवाह सबूत जुटाना है आसान ।
जग भी तो एक न्यायालय है ,
जहाँ रोज चलते हैं मुक़दमे ,आते हैं फैसले ।
फर्क इतना है यहाँ न्यायालय न्यायाधीश मुकदमें कुछ भी नहीं दीखते ,
परंतु आते रहते हैं मुकदमे ,होता रहता है सच्चा न्याय ।
न्यायाधीश कोई और नहीं स्वयं ऊपरवाला है ।
उसके यहाँ तो किसी गवाह सबूत की  
आवश्यकता नहीं ,
उसकी दिव्य दृष्टि से कुछ भी छुपा नहीं होता ।
वहाँ तो जन्म-जन्मान्तर के फैसले होते हैं,
वह तो गवाह सबूत से परे होते हैं।
अतः मत सोचो कुछ भी करेंगे गवाह जुटा देंगे ,
मुकदमा जीत लेंगे ,
उसकी नज़र में कुछ भी छुपा नहीं 
न्याय असली ही होगा चाहे देर से ही सही ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
@@@@@@@@@@@@@@@@

भावों के मोती 
नमन 
22/6/2019
गवाही/सबूत 
हाइकु 
••••••••••••••••
1)
मुर्दा गवाही
जिंदा हैं अपराधी 
कानून यही।।
2)
स्याही के बूँद 
कलम है सबूत 
कवि साबुत ।।
3)
बरसा आयी
अंकुर दे सबूत 
बहार लायी।।
______________
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन मंच ' भावों के मोती '
    22/06/19
        गवाह
*************
1/
खुदा गवाह 
    अम्बर की धरती 
             सृष्टि सृजन ।
2/
देते  गवाही
     दिल मे हाथ रख 
             सच के साथी ।
3/
झुकी नजरें 
      बन जाते गवाह 
               सच्चे प्रेम की ।
**********************
स्वरचित --- ' विमल '
@@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती दिनांक 22 / 6 / 19
गवाह / सबूत

विधा - छंदमुक्त

न्याय उलझा है
गवाह और सबूत में
अस्मिता लूट रही 
खुले बाजार में

शैतान घुम रहे 
समाज में
बच्चियाँ भयभीत हैं
भेड़ियों से 

तारीख पर तारीख में
उलझा है न्याय
बदल जाते है गवाह
मिटा दिये जाते हैं सबूत
न्याय की देवी  बांधे है 
आँखो पर पट्टी
कैसे मिलेगा इन्साफ

जरूरत है 
त्वरित न्याय की
मनोबल न टूटे
पीड़ितों का
बदलें पुरातन  कानून
गवाहों पर हो
सख्ती कानून की
पुलिस रहे ईमानदार
तब खत्म  होगा
गवाह  गुमराह करने 
सबूत मिटाने का
घिनोना खेल

समाज होगा निर्भिक
आम आदमी निडर

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव  भोपाल
@@@@@@@@@@@@@@@@
II गवाह / सबूत II नमन भावों के मोती....

विधा : ग़ज़ल - वो तेरा कौन है....

तन बदन में महकता तेरा कौन है... 
नाम होठों पे लरजे बता कौन है...

जो गवाह था मेरे इश्क़-ए-जूनून का...
पूछता है वही तू बता कौन है...

जिस्म तो मर चुका है मगर दिल ये क्यूँ...
पूछता फिर रहा है मरा कौन है....

क़त्ल मेरे में मुंसिफ़ गवाह मैं ही था...
हुस्न को फिर सुनाये सजा कौन है....

तुम न आना कि तुमसे न पूछे 'चँदर'... 
इश्क़ में जो मरा सरफिरा कौन है...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२२.०६.२०१९
@@@@@@@@@@@@@@@@

ख़ुदा गवाह
रुग्ण है मानवता
रुका प्रवाह।।

मरे गवाह
मुक़दमा हो ख़त्म
एक ही चाह।।

भाई का खून
कौन देगा गवाही
जान के लाले।।

मिटे सुबूत
अपराधी स्वतंत्र
पीड़ित तंत्र।।

सुबूत मिले
करते जोड़ तोड़
सज़ा न मिले।।

कानून अंधा
माँगता है सुबूत
गोरखधंधा।।

धारा के दाम
सुविधा शुल्क लेते
बेचते न्याय।।

गंगा भावुक
@@@@@@@@@@@@@@@@

सादर नमन "भावों के मोती "
गवाह /सबूत
एक कोशिश और...
*************************
"  वृध्दाआश्रम या अदालत  "
आज बेटा अपने माता-पिता को वृध्दाआश्रम छोड़ गया.....
भगवान का फैसला मान उन्होने भी उस फैसले को मान लिया...!!!
पर...वहाँ एक दोस्त ने पिता को समझाया....कि.... जो तुमने मेहनत से कमाया है.....
तुम क्यूँ उसे छोड़ते हो....!!!!
वो भी उस बेटे के लिये....
जिसने आसानी से तुम्हे यहाँ छोड़  दिया....!!!
बड़ी मुश्किल से पिता ने माँ को मनाया...
अपना केस अदालत तक पहुँचाया...!!!!
नोटिस देख बेटा-बहु के होश उड़ गये...
जल्दी से दौड़ते हुये वृध्दाआश्रम आ गये....
पिता ने तंज कसते हुये बोले...बड़ी जल्दी याद आ गयी..
अब अगली मुलाकात अदालत में  होगी....!!!
सुनवाई की तारीख आ गयी....
पिता को गवाही के लिये कटघरे में बुलाया गया.....
बेटे के वकील का प्रश्न....क्या सबूत है कि आप मेरे मुक्किल के पिता है...???
पिता ने अपनी पत्नी की तरफ देखा...फिर बोले
आपका प्रश्न गलत है....प्रश्न यह होना चाहिये कि...
क्या ये हमारा बेटा कहलाने के लायक है....?????
मेरे पास बहुत से सबूत व गवाह है आप बुलवाईये तो....
हॉस्पिटल जहाँ इसका जन्म हुआ वहाँ के डा० व नर्स....
स्कूल जहाँ ये पढ़ा वहाँ के प्रिन्सीपल व अध्यापक....
गुब्बारे व कुल्फी वाला जो बिना नागा हमारी गली में आते थे....
और भी बहुत सी बाते याद है मुझे....जो दावा करती है कि
ये हमारा बेटा है.....!!!!
पर...हमें माता-पिता बनाया इसने उसका एक भी सबूत व गवाह लाईये......
नही तो जो हमने कमाया है...हमें लौटाईये....
मैं और मेरी पत्नी क्यूँ रहे वृध्दाआश्रम में...
सच कहूँ तो....इसे आज ही अनाथआश्रम भिजवाईये..!!!!!
अदालत में खामोशी थी व जज की आँखों में पानी...
फैसला माता-पिता के हक में हुआ....
पर सोच रहे थे....क्या जीता क्या हारा....??????
**********************
गुरविन्दर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र)
@@@@@@@@@@@@@@@@

नमन् भावों के मोती
दिनांक 22जून2019
विषय गवाह/ सबूत
विधा हाइकु
1
गलत काम
जिन्दगी परेशान
मन 'गवाह'
2
'सबूतों 'पर
आदलत निर्णय
सही-गलत
3
आज' गवाह'
पैसों पर बिकते
सत्य निःशब्द
4
झूठ हारता
इतिहास' गवाह'
वक्त किताब
5
जन्म मरण
भगवान के हाथ
वक्त 'गवाह'

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
दिनांक-२२/६/२०१९
"शीषर्क-सबूत/गवाह"
गवाहों से भरी थी सभा
दुःशासन ने किया गुनाह
त्वरित न्याय जो द्रौपदी को मिलता
महाभारत न रचता इतिहास।

बर्दाश्त क्यों करें गुनाहगार को
करें त्वरित न्याय
मूक हो क्यों बैठे हम
जब गुनाह हो सामने ,

पथभ्रष्ट हो कोई करें गुनाह
क्षमा नही हमारा काम
खुद कर्म हम ऐसा करें
जिसे मन दे गवाह।

बुरे कर्म हम न करें
मन मे लाख उठे विचार
जीवन रूपी अदालत मे
मन ही है गवाह।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन  मंच 
22/06/19
गवाह/सबूत
**

मैं कैसी 
चर्चा का विषय क्यों 
हर बार कसौटियों पर 
मैं ही परखी जाऊँ 
लहूलुहान होती रूह पर 
कब तक मरहम लगाऊं
सदियों से चुप रही 
कराहती रूह को 
थपथपा सुलाती रही 
पर अब नहीं ...
जैसी भी  मैं
क्यों दें सबूत 
साक्ष्य प्रमाण क्यों
एक एक कृत्य के 
गवाह क्यों  
नहीँ चाहिये मुझे 
तुम्हारी अदालत से 
कोई फैसला 
कोई सनद नहीं 
कोई प्रमाण पत्र नहीं 
स्वयं को बरी करती हूँ.....

स्वरचित
अनिता सुधीर

@@@@@@@@@@@@

नमन मंच को
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 22/06/2019
शीर्षक :- गवाह/सबूत 

बनेंगे गवाह ये..
चाँद-तारे मुहब्बत के..
हसीं हो जाएंगे फिर..
वो नजारे मुहब्बत के..
आसमां तलक फैलेंगे ये उजाले..
झिलमिलाने लगेंगे चिराग मुहब्बत के..
झील सी उन आँखों में...
झरते उन नयनकोरों में..
पढ़ता हूँ अक्सर इशारे मुहब्बत के..
चाँदनी रात में...
चाँदी से सरोवर किनारे..
गढ़ता हूँ अक्सर अफसाने मुहब्बत के..
वीणा की तान में...
प्रकृति के मधुर ताल में..
गुनगुनाता हूँ अक्सर तराने मुहब्बत के..
बनेगी गवाह ये...
सुरमयी साँझ भी...
हमारे दामन में..
खिलेगा चाँद भी..
खिल जाएगी कली-कली..
महक उठेगी गली-गली..
चहकने लगेंगे हर गलियारे मुहब्बत के..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@

नमन मंच🙏
दिनांक- 22/6/2019
शीर्षक-"गवाह/सबूत"
विधा- कविता
**************
   नारी का दु:ख

निकल पड़ी एक दिन जब वो अकेली, 
साथ में न थी तब उसके कोई सहेली, 
मौका देख मनचलों ने घेरा बनाया,
अपनी हवस का शिकार उसे बनाया |

लूट ली बारी बारी इज्जत उसी की, 
नोंच-नोंच शरीर की धज्जियां उड़ा दी, 
अधमरी सी हालत उसकी बना दी,
ऐ खुदा! नारी को ये कैसी सजा दी ?

खुद को समेट जैसे-तैसे खड़ी हो गयी, 
न्याय की आश में न्यायलय पहुँच गई,
वकील ने ऐसे बेतुके सवाल कर दिये, 
आत्मा के टुकड़े कईं हजार कर दिये |

लूटी इज्जत के वकील सबूत माँग रहा,
उस बेचारी के हाल पर प्रहार कर रहा, 
न्याय की देवी के आँखों मे पट्टी बँधी है, 
एक नारी दूसरी नारी का अपमान देख रही है |

किसको वो बेचारी दर्द अपना सुनाये?
सबूत,गवाह लाये तो कहाँ से लाये ?
इंसानों से तो शायद इंसाफ न मिलेगा, 
ऐ खुदा!अब तुझे ही धरती पे आना पड़ेगा |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
@@@@@@@@@@@@
मंच को नमन
दिनांक - 22/6/2019
विषय -गवाह/सबूत

न्याय के मंदिर में फ़ैसले मुक़दमों के होते रहते हैं
बयान गवाहों के पहले क़लमबद्ध करने  ही होते हैं
कभी न्याय की उस मूर्ति को देखा है ग़ौर से
बँधी है आँखों पर पट्टी नज़राने के तौर पे
कुर्सी पर आरूढ़ न्यायाधीश का फ़ैसला सुना है कभी
क़लम की ताक़त से लिखे फ़ैसले बिकते है अभी
धाराओं का उलटफेर इनके बाएँ हाथ का खेल होता
मुजरिम आज़ाद और निर्दोष तब जेल की सेल में होता
माना सबूत जुटाता अनेक वह सूट बूटधारी
स्याह सफ़ेद वर्दी में मगर कहाँ बची ख़ुद्दारी
अनेक फाइल बंद पड़ी हैं आज सबूतों के अभाव में
बिकने लगी गवाही अब बेईमानी के दबाव में
क़ानून के दाँवपेंचो को शातिर खिलाड़ी खेलते हैं
ग़रीब, मुफ़लिस निरीह लोग दोष दंश झेलते हैं
गवाह की गवाही के मायने बहुत गहरे होते हैं
सत्य कसौटी पर ही फ़ैसले सदा सही होते हैं

✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित

@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
दिनाँक -22/06/2019
शीर्षक-गवाह, सबूत
विधा-हाइकु

1.
झूठे सबूत
बने रस्सी का साँप
इंसाफ़ मौन
2.
वक्त गवाह
भूख और गरीबी
सपने स्वाहा
3.
सृष्टि हँसती
सबूत चाँद तारे
खिली चाँदनी
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा



भावों के मोती
नमन
गवाह/सबूत
💐💐
चाँद तारे गवाह हैं
तेरे मेरे मिलन के
अपने दीवानेपन के
नीले गगन के तले
आप हमसे मिले
रातरानी जो महकी
रातें अपनी भी बहकी!
चाँद तारे गवाह हैं
तेरे मेरे मिलन के!!

दुनिया ने पहरे लगाए
दिल न हमारे जुदा थे
हम तुम कभी मिल न पाए..
मिलने में सौ फासले थे
राहे जुदा हो गई फिर
हम मंज़िल पे तन्हा थे..
चाँद तारे गवाह थे
तेरे मेरे मिलन के
अपने दीवानेपन के!!
💐💐💐
स्मृति श्रीवास्तव
सूरत
स्वरचित


22/6/19
भावों के मोती
विषय-गवाह/सबूत
______________________
रात की पालकी में सवार
चाँदनी आई मुस्काती द्वार
गवाह बने चाँद सितारे
मधुर मिलन की बेला में
गूँज उठी मधुर शहनाई
पालकी में होकर सवार
मंद-मंद मुस्कुराती हुई
जीवनसाथी के सपने संजोए
मन ही मन हर्षाती 
कर सोलह श्रृंगार
गोरी घूंघट में शरमाए 
माँ बिछड़ी बाबुल छूटे
पीहर के सब गलियाँ छूटी
रिश्ते छूटे सखियाँ छूटी
कोने में सुबकती बैठी बहना 
आँखों में आँसू छुपाकर
अपलक निहारते भैया
बचपन की यादें पीछे छोड़
अश्रु छलकते नयन लिए
उम्मीदों की पालकी में
नवजीवन का हर्ष लिए
मन में ढेरों प्रश्न लिए 
सुनहरे स्वप्नों को सजाकर
सूनी कर बाबुल की गलियाँ
विदा होकर ससुराल चली
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍

भावों के मोती 
नमन 
22/6/2019(द्वितीय प्रस्तुति)
गवाही (हाइकु)
••••••••••••••••
1)
वृद्ध आश्रम 
धर्म विमुख पूत 
कहे सबूत
2)
पृथ्वी बिगड़ी 
तुफान से तबाही 
सच्ची गवाही ।।
3)
कचरा फैला
जीवन शैली मैली 
गवाही फैली ।
4)
बूढ़ा गवाही
जवान है अपराध
बच्चा कानून ।।
______________
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित



द्वितीय प्रयास🙏🙏🌺🌹🌷

विषय:-गवाह

आओ मिलकर साथ चलें
नवजीवन की शुरूआत करें
जीवन अब क्षणभंगुर ही सही
उस पल का अब रसपान करें

जाना तो है जग से एक दिन
खुलकर उसका सम्मान करें
जो प्रीति पगी अभिलाषा है
उर आशा का सम्मान करें

करते क्रंदन उर के बंधन
उस बंधन को गतिमान करें
गवाह बने जो इस बंधन के
राधेश्याम सा अनुराग करें

काले बादल घनघोर घटना
चली राधा के संग सखियाँ
घुँघरू बजते संग बाँसुरी के
घुल गई अब मिसरी ड़लियाँ

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू😍🙏

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...