Saturday, June 8

"बरसात/वर्षा"07जून 2019

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ब्लॉग संख्या :-410

सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
07/06/2019
  "बरसात/बारिश"
1
मन भिगोया
बारिश की फुहार
यादों को रोया
2
पहली वर्षा
धूलकण को धोया
शीतल धरा
3
वर्षा फुहार
सुहावना मौसम
तृप्त जीवन
4
वर्षा दस्तक
मौसम करवट
मस्त है मन
5
नेह की वर्षा
मन हुआ पावन
घृणा को धोया
6
वर्षा की बूँदें
रवि को किया शांत
संतुष्ट धरा
7
तन व मन
बरसात में भीगा
नव उमंग
8
मन तरंग
छू रहा गगन
बारिश संग
9
भीगी है रात
बारिश की फुहार
सताती याद
10
जलता मन
बरसात की रात
भीगी चाँदनी

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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दिनांक 7/6/2019
दिन-शुक्रवार
शीर्षक बरसात/ वर्षा

मेघ गगन में घूमते ,लिए भाप का भार।
पर्वत जंगल ज्यों मिलें,  बरसे सरस  फुहार।।1

पावस की बूंदे पड़ीं, ठंडी चले बयार।
 झुलसे उपवन हैं मुदित, हरित हुआ संसार।।2

रिमझिम बूंदे गिर रहीं, करतीं तन मन सिक्त।
कूप, बावड़ी भर गये  जगह न कोई रिक्त ।।3

प्यास धरा की मिट गई, बरस रही बौछार ।
छोटी बदली दे रही, बादल को ललकार।।4

उमड़ घुमड़ बादल फिरें, दादुर करते शोर।
 वर्षा जल अनमोल है, कहें नाचते मोर।।5

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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🍁सादर नमन मंच🍁
दिनाँक-7 जून 2019
विषय-बरसात//वर्षा
विधा-मुक्त/नज्म

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
बूँद 
हा,एक बूँद बारिश की
पड़ती है तेरे तन बदन में
पिघल उठता है मेरा मन
हा, वही बूँद बारिश की
जिसमे मिला था दो मन
समा गई थी जिसमे साँसे
नही रहा था होश कुछ भी
मन मष्तिष्क में सिर्फ तुम थी
और थी वो बूँदे, 
हा, वही बूँदे बारिश की
जो आज भी कायम है
हा,मेरे आँखों में अश्रु बन कर।।
तेरी याद बन कर,बारिश की बूँद बनकर।।

-आकिब जावेद
स्वरचित/मौलिक

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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक     बरसात,वर्षा
विधा        कविता
07 जून 2019,शुक्रवार

धरा धधकती है गर्मी से
नभ से नित अंगारे बरसे
रेत तप रही मरु भूमि में
वर्षा की बूंदों को तरसे

शस्यश्यामल वसुधा निर्भर
वर्षा के रिमझिम जल पर
वनस्पति हरियाली झूमे
वर्षा होती है जब थल पर

धन धान्य ताल तलैय्या
सरस् नीर वर्षा देती है।
वन उपवन खिल जाते हैं
गौरी मिल नर्तन करती है

वर्षा पर निर्भर जग सारा
वर्षा सुखद जीवन देती है
यह देती लेती नहीं कुछ  
वर्षा माँ दुनियां  देवी   है

काल अकाल सुकाल निर्भर
वर्षा पर जीवन अवलम्बित
पतन उन्नति का यह कारण
होते हैं सुख दुःख आधारित।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

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*
####बरसात####

वो रिमझिम बरसात की रातें 
और यादों में आपका आना ।।

वो ख्वाब था कोई हसीन या
ख्वाबों का था कोई खजाना ।।

वो अषाढ़ की पहली फुहार
वो तरबतर तेरा भींग जाना ।।

परियों की रानी हो जैसे या
बागों में गुल का मुस्कुराना ।।

इंसान क्या पत्थर का दिल
भी बने आशिक बने दीवाना ।।

झूम झूमकर घने बादलों का
आना और आकर गड़गड़ाना ।।

जैसे कि कोई मतवाला मेघ 
मस्ती में गाये मस्त तराना ।।

''शिवम्" भूलती नही वो बारिश
वो साथ वो मौसम आशिकाना ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/06/2019

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नमन भावों के मोती
आज का विषय, बरसात, बर्षा
दिन, शुक्रवार
दिनांक 7,6,2019,

वादल छाये आशाऐं लाये,
कुँहुकी है  काली कोयलिया।

मन सबके हैं अति हर्षाये,
शायद अब  बरसेंगी  बदरिया।

प्यासी धरती तृप्त हो जाये,
 रंग जायेगी हरी चुनरिया।

ताल तलैया बाबड़ीं  भर जायें,
नाचेगी मोरनी घर घर मां। 

छमछम पानी की जो  बुदिंयाँ बरसें,
गायेगी मन की गौरैया।

खेत लबालब सब हो जायें,
 महके आमों की बगिया ।

भंडार अनाज के भर जायें,
सोये न भूखी कोई मुनिया ।

सूखे वृक्षों के फिर तना हरियायें,
मिल जाये पथिक को छैंयाँ।

बूढ़े नैनों के सावन ठहर जायें,
बस जाये उजड़ी कुटिया।

जो काले काले बादल बरस जायें,
चहक उठे सब दुनियाँ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश

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नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-07.06.2019
शीर्षक-बरसात
विधा-मुक्तक
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                    (01)
जिसे सुनो उसके होठों पर रंजोग़म की बातें हैं ।
इन जग वालों की आँखों में दर्द भरी बरसातें हैं ।।
समय आज का ऐसा आया कोई भी खुशहाल नहीं,
दिन कटते हैं हाय-हाय कर नींद उचटती रातें हैं।।
                      (02)
(महबूबा से कथन )
***************
तेरा मुझसे जब प्यार नहीं यह बात कहाँ से आई?
दिलवर! तेरी  आँखों  में  बरसात कहाँ से आई ?
बार-बार  मिस्काॅलें  देना फिर मुझसे  यह कहना,
*याद  तुम्हारी आती है *,सौगात कहाँ  से आई ?
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   "अ़क्स " दौनेरिया

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7/6/2019
बरसात/वर्षा
कविता
🌸🌸🌸🌸
नमन,मंच।
सुप्रभात गुरुजनों,मित्रों।

रिमझिम, रिमझिम वर्षा बरसे,
भींगे मोरा तन और मन।

ऐसे में कहां छुपे हो प्रियतम,
तरसन लागे है मोरा मन।

बारिश की बूंदें आग लगाये,
मोरा जिया तड़पाये।

बिजली जब,जब चमके है,
मोरा जिया डराये।

दादुर,मोर,पपीहा बोले,
झिंगुर गीत सुनाये।

मोरे प्रीतम परदेश गये हैं,
लौटे ना अबतक हाय।

क्या करूं सखी मैं,कित जाऊं अब,
अकेली मैं घर में हाय।

आ जाओ तुम मोरे साजन,
मैं तड़पता हूं हाय।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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1*भा.7/6/2019/शुक्रवार
बिषयः#बरसात/बर्षा#
विधाःः काव्यः ः

 जय जय जय हे मात शारदे,
   बरसात समस्त नेह की कर दें।
      सूख गये यहां स्नेह के बादल,
          कुछ बर्षा सुखद मेह की कर दें।

 स्वार्थीजन हम सब ही हैं माता।
   हम स्वयं मानते भाग्य विधाता।
    अपनी अपनी खुशी की खातिर
      कुछ ध्यान प्रकृति पर नहीं जाता।

      नहीं किसी से मतलब हमको,
         ढूंढें केवल भौतिक सुख राहें।
           रोज छेडछाड प्रकृति से करते,
             कहीं बर्षा नहीं कोई सुख राहें।

  मेघ मल्हार गाऐं सब मीठे
    बर्षा झूम झूमकर कर बरसे।
      कुछ चमत्कार तुम करदें माते,
         नहीं कोई प्राणी जल को तरसे।

जलस्रोत भरें जगत के संम्पूरण,
  न कहीं यहां अमंगल की बर्षा हो।
    शांति सौहार्द प्रवाहित हो दुनिया में,
       बस माँ मंगल ही मंगल की बर्षा हो।

स्वरचितःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम रामजी
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
1*भा.#बरसात/बर्षा#काव्यः ः
7/6/2019/शुक्रवार



दि- 7-6-19
शीर्षक- बरसात/वर्षा
सादर मंच को समर्पित -
💧 मानसूनी वर्षा के बाद का सुखद चित्रण 💧

 🌻💧🌹 गीतिका     🍎🌴🌹
*****************************
     🌺💧  बरसात / वर्षा  💧🌺
मापनी -- 2122 , 2122 , 2122 , 2
        समान्त--  आई  , पदान्त -- है
*******************************
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

आजकल बर्षात  दिल को  खूब  भाई  है ।
रिमझिमी  पावस   मनों में  प्यार  लाई है ।।

है सुखद चादर  हरी  चहुँ ओर   छाई  अब  ,
नव सुमन की माल शोभित ऋतु खिलाई है ।

ताल, पोखर, झील,नदियाँ उमड़  कर आयें  ,
तृप्त  हो  धरती प्रकृति  नित  जगमगाई  है ।

पड़  गये  झूले  सखी  सब  झूम  कर  गायें ,
गीत   औ '  मल्हार   गूँजें   मृदु   बधाई  है ।

कड़क बिजली  तड़पती है गगन में  भारी ,
दिल धड़कता  है  पिया  की  याद आई  है ।

भीगता  तन- मन  फुहारें  मस्त  कर जातीं  ,
हूक  उठती  है  हिया  हल- चल  मचाई  है ।

दे  रही  सौगात  पावस ऋतु  हमें  जी  भर  ,
सावनी  सरगम  सभी   के  मन  सुहाई है ।।

           🌹🌴🌸🐤🍎🐥🍑

🌹🍀 ***.... रवीन्द्र वर्मा , आगरा 
              मो0 -- 08532852618

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7/6/19
भावों के मोती
विषय -बरसात/वर्षा
_______________________
उमड़-घुमड़ के आए बदरा
नीले अम्बर पर गए बिखर
काली घटाएँ मन हर्षाएँ
शीतल पवन तन-मन सहलाए
दामिनी तड़के बार-बार
वर्षा की उठी मन में आस
अब बरसे अब बरसे
नयना दर्शन को तरसे
बैरी पवन दे गई धोखा
झूम झूमकर चले पवन हिलोरें
जाने कहाँ बादलों को ले गए
दिखने लगा नीला आकाश
सूरज निकला मुस्कान सजाकर
जैसे जीता हो जंग कोई
बिखर गई धूप सुनहरी
तीखी तपन बदन झुलसाए
सबके मन लगे कुम्लहाने
अब तो बरस जा न करा इंतज़ार
गर्मी से हो रहा हाल-बेहाल
मेघराज कृपा करो आकर
काली घटाओं का पहनकर ताज
बदरा बरसे झूम-झूमकर
गर्मी से कुछ मिले निजात
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित✍

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चमकी  बिजली  गरजे  बादल  क्या  बात हुई। 
सूखे सूखे  हम  बैठे  वो कहते  हैं  बरसात हुई।

बातों बातों मे दिन गुजरे  शाम ढले न होश रहा। 
क्या गुजरी  हम पर पूछो  ऐसे फिर ना रात हुई।

न  माने खूब  रिझाऊं  कह दे  क्या  कर  जाऊँ।
हर कोशिश उनके आगे  तीन ढाक के पात हुई। 

हम है बेजार जमाने से  और  उनको  याद नहीं। 
हाय  जालिम  तुमसे  क्या  खूब  मुलाकात  हुई। 

हाय  शराफत  इतनी  भी "सोहल " रास  न आई। 
बच बच के कुछ वे रहे कुछ हमसे एहतियात हुई।

                                            विपिन सोहल

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नमनः भावों के मोती
      दि.7/6/19
विषयः बरसात/वर्षा
*
सवैयाः
रसा नीरस होके जली जा रही,
जरा सोचो कभी,कुछ बात है क्या?
फल मानव-स्वार्थ की देन का है,
अथवा विधि की करामात है क्या?
सरिता-सर,वृक्ष-लता लापता,
हमने ही किया ये कुघात है क्या?
बिना नीर अधीर  हुई जगती,
नहीं माथे  लिखी बरसात है क्या?
                    --'शितिकंठ'

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मनभावन  सी  ये  बरसात

नमन मंच
7/6/2019 शुक्रवार
विषय  बरसात

मन को यूँ भिगा भिगा गई
कस्तूरी   सा   महका  गई
दस्तूर  अपना  निभा  गई
सुंदर  हरियाली से ये पात
मनभावन सी  यह बरसात

गहरे  सागर  से  ले नीर
भर  लेती है  भीतर पीर
मन  में  धरती   है   धीर
कितनी  न्यारी है ये बात
मनभावन सी यह बरसात

हर  पात  पर  करती नर्तन
कण कण का करती चुंबन
प्रकृति का है उपहार पावन
बूँदें     सावन  की   सौगात
मनभावन  सी  यह बरसात

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

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नमन
भावों के मोती
शीर्षक-बरसात
7/6/2019
.................
ओ बरखा रानी!
अब आ भी जाओ !!
तप्त है धरती
प्यासे जन सभी
मेघों की डोली में सवार
हो कर आ जाओ !
कुछ बूंदों से कुछ न होगा
विशाल हृदय दिखला जाओ!
दग्ध ज़मीन धधक रही है
क्या मनुज क्या पशु पंछी
नदियों की प्यास न बुझ रही है
रहम करो कुछ करम करो
बारिश की चाह बढ़ रही है
सब पर नेह सुधा बरसाओ !
हे बरखा रानी !
तपते दिलों को ठंडक तुम पहुँचाओ
अब और न हमको तरसाओ..!!

  @वंदना सोलंकी#स्वरचित

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नमन् भावों के मोती
7जून19
विषय बरसात/वर्षा
विधा हाइकु

बच्चे खेलते
बारिस में भीगते
दादुर शोर

झूमते लोग 
बरसते बादल
धान रोपण

मेघों में छुपा
इंद्रधनुष दिखे
वर्षा ऋतु में

कागज नाव
पोखरों में तैरती
बच्चों का खेल

बाढ़ में डूबे
शहर और गांव
बचाव दल

बारिस लाती
धरा नवजीवन 
प्रकृति धन्य

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

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आज का विषय बरसात, बारिश,
सेदोका मेरे,
1/कौधी बिजली,
सावन की बारिश,
अंगड़ाई लेकर,
भू पर आई,
साधें उर मचली,
गूंजे पी की बतियाँ।।1।।
2/नाग डसते,
सुधियों के अंधेरे,
सावनी बरसात,
यादों का दीया,
प्रीत के संसार में,
रात में जलते है,2।।
3/प्रणय छंद,
मौसम लिख रहा,
धरा ली अंग ड़ाई,
बारिश छंद,
प्रेम रंग बिखरे,
वसुधा मुस काई।।
स्वरचित सेदोका देवेन्द्रनारायण दासबसना।।

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II बरसात / वर्षा II नमन भावों के मोती....

बारिश है घनघोर और फिर रात गहन है...
लेकर निकला नाव मैं जिसमे छेद सहन है...
क्या पता मांझी मुझे मिल जाये कोई ऐसा...
जीया हो ज़िन्दगी कुछ वो मेरे ही जैसा...

हर पल साँसों पे उखड़ती ज़िन्दगी जिसकी....
रुकी थकी हाँफी रही होगी वो खिसकी...
देख कर अपनों में परायों की वो हंसी...
निकली होगी जिसकी मंद मंद सी हंसी...
पीया होगा दर्द-ए-बरसात वो भीतर ऐसा...
क्या पता मांझी मुझे मिल जाये कोई ऐसा...

ले गए होंगे जिसके हाथ से छीन कर रस्सी...
जवार-भाटे में नाव उसकी जब होगी फँसी...
हाथ उठे दुआ में कभी लहरों से टकराये होंगे....
उसकी बाजुओं ने जौहर फिर दिखाए होंगे...
नाव खुद ही को उसने पार लगाया होगा...
हर इक तूफ़ान को हौसले से हराया होगा...

देख कर उसकी ये हौसला बंदगी का सफर...
खुदा भी बरसा होगा दुश्मनों पर दिन रात पहर...
जीत का जश्न फिर उसने खुदा संग मनाया होगा...
रहम बरसात में भीगा जो खुदा का जाया होगा...
अहम में फिर भी न भीगा इंसां वो हुआ होगा ऐसा....
क्या पता मांझी मुझे मिल जाय कहीं कोई ऐसा...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
०७.०६.२०१९
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भावों के मोती 
सादर प्रणाम 
विषय =वर्षा 
विधा =हाइकु 
💭💭💭💭
(1)धरती प्यासी 
      देख भावुक मेघ
      बरस पड़े
      💭💭💭
(2)तोड़ के मौन
     गरज के बरसे
     भू ना तरसे    
      💭💭💭
(3)पहली वर्षा
      महक उठी धरा 
       सौंधी खुशबू
        💭💭💭
(4)बरसा पानी
      प्राणवान हो गयी
       नदिया सारी
        💭💭💭
(5)प्यासी धरती 
      मखमली सी हुई 
      पी वर्षा पानी
      💭💭💭
(6)मेघों का डेरा
     बरसेगा झूम के
      धरा मुस्काई
       💭💭💭 
(7)इंद्र करता
     धरा का अभिषेक 
      मेघ पुष्प से
       💭💭💭
(8)पानी बादल
     धरती को सींचने
      इंद्र ले आयें 
       💭💭💭
(9)वर्षा ने बांधी
     इंद्र धनुषी राखी 
     मेघ कलाई
      💭💭💭
(10)वर्षा ने भरी
      धरती माता गोद
       जन्मी सम्पदा
         💭💭💭
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
7/06/2019

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भावों के मोती
7  06  19
विषय- वर्षा 

वर्षा तो अभी अल्हड़ है
कोई न जाने कैसी राह चली
मस्त,मदंग,मतंग मतवाली 
अपनी चाल चली
कोई देखे हसरत से
फिर भी नही रुकी
कहीं सरसा हो सरसी
कहीं प्रचंड बरसी
कभी मेघ औ पवन के
षड्यंत्रों में उलझी
कभी स्वतंत्र निज मौज में
संग समीर रची ।
वर्षा अभी.......

स्वरचित 

         कुसुम कोठारी ।

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सादर अभिवादन
 नमन मंच
 भावों के मोती
 दिनांक : 7-6- 2019 (शुक्रवार)
 विषय : बरसात/ वर्षा
1
 बादल छाए 
बरसे बदरिया 
 आशायें लाए
2
काली घटाएं
 बड़ा मन हर्षाएँ
 शीतल हवा 
3
 प्यासी धरती 
बरसात में  भींगा
 तृप्त हो गया
4
 सूखी लताएँ
 जल बिना तरसे
 असंतुष्ट है 
5
पिया के संग
 भीगने का उमंग 
मन है शांत

 यह हाइकु मेरी स्वरचित है 
मधुलिका कुमार " खुशबू"


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नमन मंच "भावों के मोती"
विषय-बरसात

आ गया है मानसून,
पर कब होगी बरसात,
तेज तपन तन जला गई,
जल गए सारे जज्बात.....

हो जरा अब बरसात यहां,
लथपथ हो जाये ये धरा,
जलते तन को राहत मिले,
खिल जाये अब मरुधरा.....

सूखते हरे पेड़ और जंगल,
ताक रहे बरसात को
मोर ,पपीहा ,किट, पतंगा,
न समझे हालात को.....

अधर कांपते कंठ सुख रहे,
हाहाकार अब देख जरा,
तड़प रही वसुंधरा हमारी
आकर प्यास बुझा बदरा........

राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )

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नमन मंच
बरसात
धरणी धड़क धधक रही, ज्यों विरहन की रात ।
डोलत सगरों घन पिया, दामिनि कड़कत जात ।।
चातक दृग नभ पर टिके, बरसा की उर चाह,
तन मन सब बंजर भई, नैनन भरि बरसात ।।

झमझम जो बरसे पिया, हरित भरित हो गात ।
वसुधा का आँचल भरे , नवकोंपल सौगात ।।
सोच सरस मनहि उपजे, सृजन सुखद सुखरास,
घहरे घन सघन नभ में, हृदय पुलक मुस्कात ।।
-©नवल किशोर सिंह
  स्वरचित

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नमन  मंच    भावों के मोती 
तिथि          07/06/19
विषय          बरसात
***

रिमझिम बरसात है
भीगे  अल्फाज  है
अलसायी सी सुबह
प्रियतम का साथ है
उठो न.....चलो........
आओ न.....
निकलो बंद कमरे से
सुनहरी धूप निकली है
ले रही अंगड़ाई नभ से ।
किरणें अपवर्तित 
परावर्तित विसरित 
हो आसमाँ को 
सात रंगों से सजा रही,
चिड़ियों की चहचहाहट,
मौसम को खुशनुमा बना रही।
इस रिमझिम बरसात में
भीगे अल्फाजों को 
प्यार से संजोते हैं
अपनी कल्पनाओं को 
आओ नई  उड़ान देते है
सुनहरी धूप का एक छोर पकड़,
इन्द्रधनुष के रंग चुरा लाते है।
सात  रंगों को जीवन मे भर
सतरंगी सपने  सजाते है ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन भावों के मोती
विषय-वर्षा
07/06/19
शुक्रवार 
कविता 

बादल के छाते ही  मौसम का  सुहावना रूप  सजा,
रिमझिम वर्षा  की  बूंदों से मतवाला मन झूम  उठा।

बाहों  को  फैलाकर  मैंने  पावस  का  आनंद  लिया ,
ऐसा  लगा  कि  जैसे  सावन  ने अंतर्मन थाम लिया।

पोर-पोर   पानी  में भीगा , भीग गयीं सब  कटुताएं ,
निर्मल   हृदय  हुआ  क्षण  भर में दूर हुईं  दुर्बलताएं। 

नयी  चेतना  जाग  उठी  जीवन उमंग  से  पूर्ण हुआ,
देख  प्रकृति  का  रूप , लक्ष्य मेरा जैसे संपूर्ण हुआ।

प्रकृति-प्रेम ही हम सब के जीवन को पूर्ण बनाता है,
उससे रहकर  दूर  न मानव जीवन का सुख पाता है।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर
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नमन
भावों के मोती
७/६/२०१९
विषय-वर्षा/बरसात

तपती धरती तपता अंबर,
बरखा अब तो आओ न।
गरम हवा के झोंको से,
हमको अब तो बचाओ न।

आग उगलता सूरज देखो,
तन को कैसे झुलसाता है?
तडप रहे है सभी जीव,
कोई चैन कहां पर पाता है।

रूठ गई हो जबसे तुम,
शीतलता भी चली गई।
प्यासी धरती राह निहारे,
मन न अब हरसाता है !

नित मेघों की राह निहारे,
कोयल देखो कूक रही।
मोर पपीहा और दादुर भी,
राह तुम्हारी तकतें हैं।

कहां गई हो बरखा बोलो,
हमसे तुम क्यो रूठ गईं।
कैसे तुम्हें मनाएं बरखा,
जो खुशियां तुम बरसाओ न।

बरखा अब तो आओ न ,
आके नभ पर छा जाओ न।
छाई धुंध जो इस धरती पर,
आकर उसे मिटाओ न।

सूख गए हैं कंठ हमारे,
उनकी प्यास बुझाओ न।
जीवन नवजीवन देनेवाली,
अब तो आ भी जाओ न।
बरखा अब तो आओ न.....! 

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

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बरखा रानी
बरसो तीरे धीरे
गंध सुहानी।।

बरखा आयी
सोंधी खुश्बू समायी
प्राणी प्रसन्न।।

बरखा झूमी
धरा की प्यास बुझी
खुश किसान।।

भावुक

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नमन भावों के मोती
दिनांक - 7/6/2019
आज का विषय - बरसात

**हो जाए बरसात**

जयेष्ठ आषाढ़ सब बीत गए
ना घटा घनघौर घटी,
ना बरसे बादल
किसान की आस टूटी,
सूखी पड़ी धरती
खेत खलिहान सब प्यासे
तरस रहे बारिश को
बादल भी उमड़े कई बार
पर बिन बरसे निकल गए
बिन बारिश कैसे हो फसल
कैसे चुकाएं बनिये का कर्ज
निभाने भी हैं पारिवारिक फर्ज
बच्चों की पढ़ाई
बूढ़े मां-बाप की दवाई
आखिर खेती पर ही तो आश्रित हैं किसान
पर बिन बरखा कैसे हो फसल
शायद अब बन जाये बात
आया महीना सावन का
हो जाये अच्छी बरसात
होगी बरसात तो हो जाएगी फसल
खिल जाएगा चेहरा किसान का

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)

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प्रदत विषय पर एक छोटी सी कोशिश मेरी भी।

नमन भावो के मोती मंच
बारिशें ..गीत

सुधा बरसती आसमान से, प्यार का मौसम आया 
जो न भीगा एक बार भी कहाँ नेह उसने पाया ?

प्रकृति से मिला अनमोल वरदान होती है बारिशें
उर्जित पोषक बूंद बूंद ,भीग ले ,करती गुजारिशे
धरा तरसे बिरहा तड़के गीत रिझाने को गाया ,
जो न भीगा एक बार भी कहाँ नेह उसने पाया?

 प्राणदाई शीतल मधुरिम आकर जेठ का ताप हरे 
पीली हुई वसुधा का,बारिश हरीत श्रृंगार करें 
प्रेमिल दिलों की आश ऋतु मधुमास न करना जाया 
जो न भीगा एक बार भी कहाँ नेह उसने पाया?

करें क्रंदन जीव सब ज्यु रूठी माँ को बालक पुकारे त्राहि-त्राहि सब और, सांसों के लिए तुम्हें निहारे
 शुचिता धन धान त्योहार की सौगात सावन लाया 
जो न भीगा एक बार भी कहाँ नेह उसने पाया?

नीलम तोलानी
स्वरचित

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नमन मंच-
   विधा-हाइकु कविता
       विषय-  **बारीश**

चली पवन
है सुहाना मौसम
छाए हैं घन

सुनो पुकार
बरसो अब घन
खुश हों मन।

गरजे घन
दामिनी भी हर्षायी
चली पूर्वाई।

बरसी बूँदें
हैं हरियाली छाई
बंटी बधाई।

रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- वर्षा/ बरसात
वर्षा की बूँदें
हरितीमा ओढ़नी
बनती मोती
वर्षा घूँघरू
दामिनी सी चंचल
करती नृत्य
वर्षा की लड़ी
ईन्द्रधनुष श्रंगार
किरणें तार
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
7/6/19
शुक्रवार

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नमन मंच
दिनांक-७/६/२०१९
"शीर्षक-बर्षा
कम हो गई तपिश धरा की
बारिश की जब बूंदे आई
चहके खग कलियाँ मुस्काई
मौसम ने ले ली अंगराई।

झमाझम बरसे बरखा रानी
चारो ओर हरियाली छाई
रूप सुहाना लगे धरनी के
आज धरा है खूब नहाई।

सोंधी महक उठे धरा से
धूलकण से अब मुक्ति पाई
बरखा रानी जमकर बरसो
बहुत दिनों बाद आज खुशियाँ आई।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

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🌹🙏जय माँ ,,🌹🙏
शारदे,,,,,,🌹🌹🌹🌹
नमन मंच भावों के मोती
बिषय ,बरसात ,बर्षा,
7/6/1९/
गर्मी के मारे बुरा हाल है 
सारे जहां में हाल बेहाल है
आओ बर्षा रानी तुम्हारा ही इंतजार है
सच मानो तुमसे बहुत प्यार है
तुम्हारे बिन हम जी न पाऐगें 
तुम्हे पाकर ही चैन पाऐगें
रिमझिम करते जब आएगी बरसात लाएगी संग में राहत की सौगात 
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार

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🌹नमनभावों के मोती🌹
7\6\2019

             कहाँ  है बरसात का पानी जमी पे ,
             अजीब सूरत रोने की ,तेरी कमी पे

             हलक के प्यासों  को  तलास तेरी
             तैरती नहीं कश्तियाँ थोड़ी नमी पे।

             लहलाते खेत वो  कहाँ हरियाली
             दिखते नहीं दरख़्त उतने जमीं पे

             देखता हूँ मंजर सूखा जो पड़ा है
             बहाता  कौन आँसू  इस यकीं पे।

             तलबगारो ने पानी को समझा होता
             समुंदर न होते खारे इस सर जमी पे।

पी राय राठी

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भावों के मोती 
7/6/19
विषय-बरसात 
विधा-हाइकु 
••••••••••••••••
1)
पनिहारन 
बरखा बनकर
जल भरते ।।
2)
जग निगम
बादल कर्मचारी 
जल बांटते 
----------------
स्वरचित 
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित 
बसना,महासमुंद,छ,ग•
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भावों के मोती
शीर्षक- बरसात
अश्कों की बरसात
होती रही सारी रात
विरहन की आँखों से।
वादा करके पीया न आए,
उनके वैगेर निंदिया न आए,
चैन भी उड़ गया जीया से।
जा रे अय हवा बावरी
जाके ये संदेशा पहुंचा दे
आ जाएं वो घर जल्दी से।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


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नमन मंच🙏
शीर्षक- "बरसात/वर्षा"
दिनांक- 7/5/2019
*****************
भीषण गर्मी कर रही परेशान, 
जाने कब होगी झमाझम बरसात?
धरा का तापमान बहुत बढ़ गया, 
पानी को हर जीव तरस गया |

ओ वर्षा रानी! कहाँ गुम हो गई? 
क्या धरा का रस्ता भूल गई? 
अब न होता ज्यादा इंतजार, 
जल्द हो जाये रिमझिम बरसात |

कूलर, ए. सी फेल हो गये, 
गर्मी से हो गया बड़ा बेहाल, 
ओ रे मेघा ! तू बरस जा, 
धरती की बुझा जा प्यास |

   स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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सादर नमन भावों के मोती🙏शीर्षक बरसात/वर्षा
७ जून २०१९
याद आती है ,
सावन की वो पहली #बरसात ,
जब मिले थे हम तुम,
था हाथों में हाथ,
जी भर करी थी मन की बात,
बिजली कड़कने से ,
हो गए थे जुदा,
रास्ते हमारे तुम्हारे,
फिर ना मिले कभी,
ऐ काश !
फिर हो #बरसात ,
मिल जाए तुम्हारा हंसी साथ.....
#स्वरचित
✍ #डॉ.#अनिता_राठौर_मंजरी (#आगरा )

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नमन "भावो के मोती"
07/06/2019
  "वर्षा/बरसात"
################
बारिश से पहले उमस महसूस होती है,
आग की भट्ठी सा घर महसूस  होता है।

बारिश की फुहार में भीगना अच्छा लगता है,
प्रीत  के रंग  से फिर तो मन रंगने लगता है।

बरसात में मौसम सुहावना  होता है,
दोपहर को भी बहार छाया रहता है।

लगातार  दो दिन जो बारिश होती,
गाँव के नाले भी नहर बन जाते हैं।

ऐसे में बचपन के दिन याद आ जाते हैं,
कागज की कश्ती में मन मस्त रहता हैं।

सावन की घटा जब घिर के आती,
रात को चाँदनी भी भीगी रहती है।

मेघों के संग छुप्पा-छुप्पी चाँद का खेलना,
रात  को  आँखों  से  नींद चुरा  लेता है।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल

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#नमन ::;भावों के मोती:;;;:
#वार::::शुक्रवार:;;:::
#दिनांक::::७,६,२०१९:::
#विषय:;::वर्षा,बारिश, बरसात:;;:
#रचनाकार::दुर्गा सिलगीवाला सोनी:;:; 

""*"*""बरखा रानी""*"*""
रस की फुहार जब ये बरखा बरसे,
खग मृग सहित मनु हृदय भी हरसे,
जड़ चैतन्य सभी के मन पुलकित,
ये धरा वनस्पति भी मुदित हैं तबसे,

व्याकुल से मन को यह धीर धराए,
 पिया मिलन की भी आस जगाए,
 भड़की हो बिरहा मन की ज्वाला,
 प्रीतम से मिलन का ये बोध कराए,

आलौकिक आक्छादित इसका यौवन,
ऋतु वर्षा की रिमझिम सी गाती ध्वनि,
अभिनव मनमोहक श्रृंगार है ये करती,
 अनुपम सौंदर्य की देवी है यह अवनी,

 हर बूंद में छुपा है इसके नव जीवन,
सरिता नग ब्रक्ष है निज स्नेही स्व जन,
हृदय में उमंग का यह करती है संचार,
ऋतु वर्षा स्वयं है वसुंधरा का आधार,
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तिथि - 7/6/19
विधा - छंद मुक्त
विषय - बरसात

वो सावन की 
मस्त सुबह थी
रिमझिम बरसा पानी
बिन छतरी मैं निकल चुकी थी
हो गई थी नादानी
तभी अचानक प्रकट हुए तुम
लेकर अपनी छतरी
तिरछी नजर से देखा तुमने
मैंने की आनाकानी
मगर कहाँ तुम सुनने वाले
मेरी एक न मानी
अब हम दोनों भीग रहे थे
सिमट रहे छतरी में
बढ़ती बारिश में हम दोनों
और निकट तब आये
एक दूजे को देख रहे थे
सुध सारी बिसराये 
भूल गए थे उस पल दोनों
कर बैठे नादानी
हुए जुदा न फिर हम दोनों
थी बरसात सुहानी
अब भी जब बारिश होती है
घुमड़ें बादल नभ में
बारिश में भीगें हम दोनों
मचलें हम दीवाने

सरिता गर्ग
स्व रचित

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नमन भावों के मोती 
दिनांक - 7-6-2019
विषय  -  वर्षा /बरसात 

   ऋतु वर्षा की ...,आई 
   काली काली घनघोर घटायें छाईं 
   नीले नीले  आसमान में 
   आस जगी ....,
    कुछ राहत मिलेगी .....गर्मी से 
    प्यास बुझेगी  वसुधा की 
    जो चिटक गई है,जगह जगह से 
     इस ,आग बरसती गर्मी में 
     वृक्ष और लताओं को 
     मिलेगी  एक  ताजगी 
     और ...,
     किसानों के चेहरे खिल गये 
     देख , घटाओं को 
     पर ......यह क्या 
     आया एक पवन का झोंका 
     और ले गया संग वो अपने 
     सारी  घनघोर घटाओं को 
     बिन बरसात ...
     सपने सबके चूर हुये -पर 
     आशा अभी भी जिंदा है 
      कल को घटायें आयेंगी 
      और,बारिश जमकर होगी ..||

     शशि कांत श्रीवास्तव 
     डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब 
     ©स्वरचित रचना

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हरा - भरा कर दिया पूरा उपवन
सींचा जो आकर उसका दामन
उपवन की ये बनी है माली
   बरखा आया मस्त मतवाली।।

झूम झूम कर बरसे ऐसे
सजनी को मिला साजन जैसे
सबके चेहरों पर लाई लाली
   बरखा अाई मस्त मतवाली।।

कड़-कड़ जब बिजली चमकी
रोका मैंने ,सुन ली अरजी
लाई मेरे मन में हरियाली
बरखा आआई मस्त मतवाली।।

इन्द्रधनुष ने रंग बिखराए
जब आसमां साफ़ हो जाए
कितने सुंदर रंगो वाली
   बरखा अाई मस्त मतवाली।।

सूरज किरणे बिखराना चाहे
आकर मेघ उसको ढ़क जाए
घटाएं छाए काली-  काली
  बरखा अाई मस्त मतवाली।।

धरती की ये प्यास बुझाए
नदियां नाले ये भर जाए
इसकी तो हर बात निराली
     बरखा अाई मस्त मतवाली।।.

स्वरचित
गीता लकवाल 
गुना मध्यप्रदेश
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भावों के मोती नमन मंच
07/06/19 शुक्रवार
विषय-बरसात/वर्षा
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
बरसो वर्षा
धरा का तापमान
तवा समान👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
तूफानी वर्षा
झाड़ू-पोंछा करके
आई बरखा👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
तेज बारिश
नहा-धो के तैयार
माँ वसुंधरा☺️
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
शुभ संध्या
##बरसात##
द्वितीय प्रस्तुति

जब जब बुलाओ मेघों को
उनका भी कुछ ध्यान करो ।।

नही है जिनके सर पर छत
उनका भी कुछ निदान करो ।।

बादल तो बरसेंगे सोचो कुछ
मज़लूमों की उनको दान करो ।।

एक हँसे एक रोए ठीक नही
सबके सुखों का सम्मान करो ।।

बादलों को नही यह हमें सोचना 
मानव हैं मानवता का मान करो ।।

इन्द्र भी आखिर सब समझते
कुछ बृक्षों का भी भान करो ।।

बृक्ष ही बादलों को बुलाते हैं
बृक्षों की न अब कटान करो ।।

'शिवम' समस्या भीषण है यह
उठो जागो कुछ अनुमान करो ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/06/2019


नमन सम्मानित मंच
   (बरसात/वर्षा)
    ***********
चीत्कार आद्र शुचि तप्त धरा की,
  स्वर्णिम किरण कुपित दिनकर की,
    सिन्धु   मेघ     संयोग    अनिश्चित,
       उष्ण  पवन  से  कौन   अपरिचित।

चर अचर जी्व  बसुधा  प्राँगण में,
  नील   व्योम    को   ताकें  उत्सुक,
     नित   मेघमालिका   प्रत्याशा   मे,
       नयन  बिछायें   किंचित रुक-रुक।

तनिक   बिलम्बित   मानसून   भी,
  उत्तरदायी     मनुज     स्वयं     भी,
    हस्तक्षेप    प्रकृति    में    प्रतिदिन,
      करता, फिर क्यों मनुज अचम्भित।

जल-वृष्टि    में     ह्रास    निरन्तर,
  अधर धरा  के  शुष्क  तृषित अति,
    घनघोर    घटा     के     घूँघट    से,
       कब   होगी   रिमझिम    बरसात।

ढलकेगे  मेघा   लोचन   से  जब,
  शीतल   जल   के   बिन्दु  अपार,
    मन  -मयूर  का  नृत्य  अलौकिक,
      होंगे  जीवन   प्राण    मुदित  सब।
                               --स्वरचित--
                                  (अरुण)
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नमन भावों के मोती 
विषय - बरसात /वर्षा 

रिमझिम करती बरखा रानी, 
गीत सुहाने गाती  ।
टप टप करती नटखट बूँदे 
सबके मन को भाती ।
सौंधी खुशबु माटी की 
मन को है महकाती ।
बिरहन जागे सारी सारी रैन, 
बरसात झरी, रोये नैन ।
नन्हे नन्हे अंकुर फूटे, 
पेड़ो पर सुंदर फल लटके ।
नाचते मोर, मटके चकोर 
वर्षा की फुहार लेकर 
आयी सुनहरी भोर ।
नर्म हुए सूरज दादा 
जो बन बैठे थे कठोर ।
शीतल पवन के झोंके से 
खिला ह्रदय का पोर पोर ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई  (दुर्ग )

सादर नमन
        "बरसात"
वो रात चाँदनी और हाथों में मेरे तेरा हाथ,
मन की अगन बढ़ाती वो सावन की बरसात,

नैनों में ख्वाब और मचलते दिल के जज्बात,
डसे बनके नागिन विरह की ये काली रात,

महक उठेगी जब हमारे मिलन की रात,
होगी फिर जीवन मे प्रेम की बरसात,

लिख लिया है नाम तेरा मेरे हृदय पात,
दी है तूने अनमोल रत्न प्रेम की सौगात,

 तेरे ही चेहरे के हों दर्शन होते ही प्रभात,
तू मेरे जीवन का दीया और मैं तेरी बात,

यही प्रार्थना ईश्वर से जोड़ दोनों हाथ,
रहे सलामत साजन अपना साथ,
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
7/6/19
शुक्रवार

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सादर नमन साथियो

तिथि ः7/6/2019/शुक्रवार
बिषयःः बरसात/बर्षा
विधाःः मुक्तक

सब  राष्ट्रवाद  की  बात  करें  हम।
फिर क्यों एकदूजे से घात करें हम।
सभी  बरसात  करें  प्रेम  पुष्पों  की,
नहीं  आपस  में प्रतिघात  करें  हम।

है   गौरव  अपना  देश   हमारा।
अलग खानपीन परिवेश हमारा।
होती  भारत भू पर  अमृत  बर्षा,
जय  वैभवशाली स्वदेश  हमारा।

स्वरचितःः ःसर्वथामौलिक
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्रीरामरामजी

 बरसात/बर्षा .#मुक्तक#
7/6/2019शुक्रवार

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भावों के मोती  : प्रेषित शब्द -बारिश 
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फिर बारिश मधुर गीत गुनगुनाने लगी 
*****((**********************
दिल की दहलीज़ पर यादों की दस्तक ,
दूर दूर तलक हँसी वादी महकने लगी 
हवाओं ने छेड़ा फिर मधुर संगीत कोई
फिर बारिश मधुर गीत गुनगुनाने लगी ।

पेडों की शाख़ों पर जो झूले सजने लगे  
पैरों की पायल छन - छन बजने लगी 
आँखों में ख़्वाबों ने चुपके से ली अँगड़ाई 
फिर बारिश मधुर गीत गुनगुनाने लगी ।

सुरमयी शाम न धीरे से आँचल खींचा 
उन क़दमों की आहट दूर से आने लगी
चाँद  शरमाकर जो बादलों मे छुप गया 
फिर बारिश मधुर गीत गुनगुनाने लगी ।

दरिया किनारे शोर मचाता अल्हड़ बचपन
बलखाती काग़ज़ की नाव मस्त बहने लगी 
रेत के घरौंदों में ज़िंदगी खिलखिला उठी 
फिर बारिश मधुर गीत गुनगुनाने लगी ।

प्यासी वसुंधरा जी गई अमृत पान कर 
हरी मखमली चादर दूर तक फैलने लगी 
इंदरधनुष के रंगों से रंग गया आसमान 
फिर बारिश मधुर गीत गुनगुनाने लगी ।
स्वरचित(c)भार्गवी रविन्द्र . ....७/६/२०१९


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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
07/06/2019
हाइकु (5/7/5)   
विषय:-"वर्षा /बारिश/बरसात " 

(1)
नभ श्रृंगार 
रवि-वर्षा ने खींचा 
रंगों का चाप 
(2)
मंच है धरा   
सावन की धुन पे 
नाची  बरखा 
(3)
निराशा टूटी  
आशाओं की कोंपल 
वर्षा से फूटी 
(4)
झरना हँसा  
बरसात का स्पर्श 
महकी धरा 
(5)
सौगात हरा 
बादलों की डोली से 
उतरी वर्षा 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

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नमन         भावों के मोती
विषय        बरसात
दिनांक       7.6.2019
दिन            शुक्रवार 

बरसात
🎻🎻🎻🎻

धरती की प्यासी आँखें, देखतीं बादल की ओर
कहतीं सौंपी है तुझे ,ओ दीवाने मैंने प्रीत की डोर
तू ही है ओ पागल मेरे, इस दिल का असली चोर
तू ही बस नचा सकता है,मेरे मन का पगला मोर। 

तू ही तो देता है मुझको, सरसों की पीली  चादर
तू ही तो भरता है ,आँगन में विस्तृत सागर
तू ही तो भरता है,चूनर में मेरी हरियाली
तेरी कारण ही इतराती,इन होंठों पर ऊषा की लाली। 

तू प्यार नहीं बरसाता है तो, मेरा सब कुछ उजड़ जाता
कोरे रूखेपन का मुझ पर, हर कोई दोष मढ़ जाता
मेरे सौन्दर्य पर हर जगह, पपड़ी सी आ जाती है
एक पतझरी मायूसी सी, हर ओर छा जाती है। 

तू ही मेरा चिर प्रेमी, मेरा मत आँचल उजाड़
कैसे बताऊँ मैं तुझे, मेरी तुझसे प्रीत प्रगाड़
ओ दीवाने,ओ मस्ताने, मुझ पर प्रेम की बूँदे झाड़
अपनी बेरुखी से मुझे, देख न ऐसे कर प्रताड़।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती
दिनाँक-07/06/2019
शीर्षक-वर्षा, बरसात ,बारिश
विधा-हाइकु

1.
आई बारिश
हो गई हरियाली
चमके तरु
2.
ताकते वर्षा
इंतज़ार में बैठे
प्यासे दादुर
3.
देखते वर्षा
उठते स्वागत को
प्यासे पादप
4.
सावन मास
रिमझिम बारिश
मन मगन
5.
सूखे पादप
पानी की तलाश में
वर्षा कोसते
6.
आती बरखा
वन उपवन में
खिलते फूल
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

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नमन भावों के मोती 
विषय - वर्षा /बरसात 
चंद हाइकु 


तप्त सागर 
भरे वर्षा गागर 
मेघ नागर 


सोंधी महक 
नेह की बरसात 
बुझी है प्यास 


घन हैं आये 
प्रकृति की करूणा 
बरखा लाए 


खुशी के बीज 
हर्षित हैं कृषक 
वर्षा मुस्काई 


मेघ सगाई 
वर्षा छम से आयी 
धरा नहाई 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई  (दुर्ग )

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

नमन भावों के मोती
विषय- बारिश/बरसात
विधा- दोहा

🌈🌧🌈🌧🌈🌧🌈🌧🌈🌧🌈

बारिश की बूंदें गिरी, घिरी घटा घनघोर। 
बिजली चमकी जोर से, मेघ मचाए शोर।।

💧💦💧💦💧💦💧💦💧💦💧

मेरा मन तो चल पड़ा, खुले गगन की ओर। 
बूंद संग मैं खेलती, सभी हदों को तोड़।। 

💧💦💧💦💧💦💧💦💧💦💧

छप-छप पानी में करूँ, और लगाऊं दौड़। 
बादल से विनती करूँ, बरसो थोड़ा और।।

💧💦💧💦💧💦💧💦💧💦

खेलूँ मैं बरसात में, ले कागज़ की नाव। 
खिलखिल कर के हँस पड़े,मन के सारे भाव।। 

💧💦💧💦💧💦💧💦💧💦💧

इन्द्रधनुष की ये छटा, रंग बिरंगा गाँव। 
 नभ को देखूँ मैं जरा, जल में डाले पाँव।।

💦💧💦💧💦💧💦💧💦💧💦

पेड़ों के पत्ते धुले,बुझी धरा की प्यास।। 
बारिश की हर बूंद है, नव जीवन की आस।।

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- वेधा सिंह

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विषय-वर्षा
विधा-हाईकू
  (1)
मिटी तपन
वर्षा का आगमन
धरा प्रसन्न
  (2)
वर्षा आ गई 
हरियाली छा गई 
मन भा गई 
(3)
वर्षा की झडी
बेसन की पकौड़ी 
गीतों की लड़ी
(4)
जन बेहाल
वर्षा हो विकराल
काल का गाल
    उमा शुक्ला नीमच 
     स्वरचित
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भावों के मोती दिनांक 7/6/19
बरसात / वर्षा

सूखी धरती
दरकते खेत
प्यासे पंछी
दरकिनार है 
बरसात 

आदमी हैवान
शौषण पानी का
सुबकते नदी नाले
फैलते शहर
प्रदुषित पर्यावरण
जहर घोलते
कल कारखाने
कटते वृक्ष
अन्याय प्रकृति पर
फिर भी उम्मीद
बरसात की

कुदरत नहीं करती
बेइन्साफ किसी से
तुम उसे जीने दोगे
वह मरने नही देगी
होगी वर्षा भरपूर
नाच उठे मन मयूर

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव  भोपाल

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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹07-6-2019
विषय:-वर्षा 
विधा :- गीत 

करे धरा मनुहार पिपासित   , गाओ मेघ मल्हार ।
खुश हो  नभ धरती पर भेजे , सौंपी मधुर फुहार ।।

नभ से मिलने खडी क्षितिज पर , सुनने को संदेश ।
मेघों के घट लेन गए हो , किस अम्बर परदेश ।
ताप शाप से पीड़ित धरती , होती व्यथित अपार ।
करे धरा मनुहार पिपासित --------

झीलें नदियाँ सूख गई हैं , फँसे कंठ में प्राण ।
विरह वेदना मार रही है  , आओ आए जान ।
सूरज दादा रुष्ट  बहुत हैं , बरसाते अंगार ।
करे धरा मनुहार पिपासित --------

कोख सूख के बंजर दिखती , सूख गई है घास ।
भीतर तक जलता उर मेरा , कौन बुझाए प्यास । 
उगें नहीं हैं बीज सृजन के , बिन बरखा बौछार ।
करे धरा मनुहार पिपासित -------

भट्ठी सा तन तपता मेरा , वृक्ष भरें उच्छवास  ।
मूर्च्छित होती लिपटी बेलें , छोड़ मेघ की आस ।
भ्रमर तितलियाँ रविआतप से , भूल गए अभिसार ।
करे धरा मनुहार पिपासित --------

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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