Friday, June 14

"चक्रव्यूह"12जून 2019

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ब्लॉग संख्या :-415

सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
12/06/2019
  "चक्रव्यूह"
तांका
1
 युद्ध दौरान
चक्रव्यूह रचना
सप्तम द्वार
"अभिमन्यु"बेहाल
"भीम"का था आसरा।
2
ईश रचना
माया का चक्रव्यूह
प्रवेश मनु
सप्तम द्वार भेदा
मौत सामने पाया।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।

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नमन मंच
दिनांक .. 12/6/2019
विषय ... चक्रव्यूह 
*************************

चक्रव्यूह मे फँसा हुआ मै,अभिमन्नु सा आज।
निकल नही पाया तो होगा, उसके जैसा हाल।
....
जीवन मे रिद्धम कुछ कम है, ना सुर ना ताल।
शेर फँसा इस धर्मयुद्ध मे, जाने ना अन्जाम।
.....
रिश्तो मे उलझा है मन पर, चाहे एक उडान।
मन को मार के जी ना पाए, बेबस मन लाचार।
......
कविता को मनभाव बना के, लिख दी है हर बात।
शेर द्वंद मे फँसा है अब तो, तुम ही राह दिखाओ।
.......
कर्म की गति मे फल की चिन्ता,
से जीवन दुश्वार।
चक्रव्यूह पर लिखता हूँ मै, अपने मन की बात।

...
शेरसिंह सर्राफ

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(( चक्रव्यूह ))

चक्रव्यूह में फँसाने वाला ।
चक्रव्यूह से छुड़ाने वाला ।
'शिवम' एक है उसको भज ।
मायामोह के फंदे हैं उसे तज ।

कौन नही यहाँ अकुलाया ।
अपनों ने ही जाल बिछाया ।
यह बात खरी है बात समझ ,
मायावी मोह में नही उलझ ।

एक से बचे दूजे में फँसे ।
सैकड़ों चक्रव्यूह हैं सजे ।
कोई न रास्ता बताने वाला ,
सुमर प्रभु को वही है सच ।

वो है बहुत दयालु दाता ।
सच्चा एक उसी का नाता ।
उससे प्रीति लगाले बन्दे ,
मिला जो जीवन उसमें गस* ।

गसना* - घुलना मिलना , 
स्वीकार करना

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/06/2019
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, चक्रव्यूह
दिन, बुधवार
दिनांक, 1 2,6,2019,

एक चक्रव्यूह जीवन सारा,
रचने वाला ऊपर वाला।

गुजरेगा हर आने वाला,
ज्ञान विवेक का ही सहारा।

क्रोध मोह लालच वासना,
माया ममता आसक्ति रचना।

मानव को इनसे ही गुजरना,
प्रगति द्वार रोकती ये संरचना।

बच बच कर पड़ता है चलना,
जगह जगह पर लगा उलझना।

मानव का जीवन है गहना,
इन चोरों से बच कर रहना।

नहीं पाप कर्म का बोझ बढाना,
मुश्किल हो जायेगा चलना ।

हथियार सत्य का थामे रहना,
सारी उमर पड़ेगा लड़ना।

ये चक्रव्यूह जो पार करेगा,
होगा उसका पिय से मिलना।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

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नमन भवों के मोती💐
कार्य:-शब्दलेखन
बिषय:- चक्रव्यूह
विधा:-स्वतंत्र

आज के इंसान की
सबसे बड़ी त्रासदी है-
समय
पल-पल की जिंदगी
जो घूम रही है
चक्रव्यूह में फंसी
दिन रात
मकड़ी जाल में
हारे हुये पांसे " कलि " की तरह!
जिसे-
फैलते-बिखरते-सिमटते
हमने स्वयं निर्मित किया 
एक दायरे में।
तब भी-
जीते जागते अनुभव
पुनरावृत्त हो रहे
युग परिवर्तन की तरह
और
भाग रहे हैं हम
एक दूजे के पीछे
उड़ते गिद्दों की तरह
अज्ञात शिकंजे में जकड़े
एक-
गोल घेरे में फंसे
शून्य ,दिशाशून्य होकर
अपनी ही पीठ में
छुरा घोपने की अभिलिप्सा में
भटकते ,मतिशून्य
उल्लू की तरह
जो निरन्तर दौड़ रहा है
दिवास्वप्न से प्रेरित होकर
कलयुग में
आंखें मूंदे
आज के इंसान की तरह।

(मेरे कविता संग्रह की एक कविता)
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक     चक्रव्यूह
विधा        काव्य
12 जून 2019,बुधवार

हर संघर्ष चक्रव्यूह होता
साहस धैर्य,हल इसका है।
आती जाती रहती विपदाएँ
करे परिश्रम फल उसका है

जीवन स्वयं एक चक्रव्यूह 
सुख दुःख आते जाते रहते
कभी भीषण तपती है गर्मी
नदी नाल फिर निर्झर बहते

ममता माया मोह आच्छादित
चक्रव्यूह में निशदिन डोलते
गांठें बड़ी बड़ी है जगति में
उलझी गांठ कर्मवीर  खोलते

चक्रव्यूह से क्या डरना है
मानव जीवन श्रेष्ठ मिला है
जैसी करणी वैसी भरणी
पंक मध्य कमल खिला है।।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम्

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12/6/2019
            चक्रव्यूह
          💐💐💐
नमन भावों के मोती।
गुरुजनों तथा मित्रों को सुप्रभात।
💐💐💐🙏🙏💐💐💐
चक्रव्यूह सा यह जीवन है,
कठिन है निकलना इससे।
पर कोशिश करते हैं सभी निकलने की,
चाहे निकल पायें इससे जैसे।

चक्रव्यूह में फंसे जब प्राणी,
सूझता नहीं है कोई रास्ता।
जीवन में हैं कितनी उलझनें,
इनसे कितना मन है दुखता।

निकाल सकता है वही एक,
उसी का है सहारा।
भजन भावन में लीन हो जाओ,
वही तोड़ेगा चक्रव्यूह सारा।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐💐💐💐

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भावों के मोती 
मंच को सादर नमन 
12/6/19
विषय -चक्रव्यूह 
विधा-हाइकु 
@@@@@@@@@@
1)
जीवन व्यूह 
मरकर अमर 
वीरता मांगे ।।
2)
कायर हँसे 
व्यूह नीति का खेल
वीरता फंसे ।।
3)
सियार सारे
व्यूह मे मिलकर
शावक मारे।
4)
चेस का प्यादा 
चक्रव्यूह भेदता
मंत्री बनता।।
5)
वीरता सारी 
चक्रव्यूह में फंसी
बाल से हारी ।।
@@@@@@@@@@@@
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित 
बसना,महासमुंद,छ,ग,
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भावों के मोती
12/06 /19
विषय - चक्रव्यूह

जोखिम की मानिंद हो रही बसर है ज़िंदगी
जद्दोजहद  का  एक चक्रव्यूह है ज़िदगी ।

खिल के मिलना ही है धूल में किस्म ए नक्बत
जी लो जी भर माना ख़तरे की डगर है ज़िंदगी।

बरसता रहा आब ए चश्म रात भर बेज़ार
भीगी हुई चांदनी का शजर है ज़िंदगी

मिलने को तो मिलती रहे दुआ ए हयात रौशन
उसका करम है उसको नज़र है ज़िंदगी।

माना डूबती है कश्तियां किनारों पर भी
डाल दो लहरों पर जोखिम का सफर है जिंदगी ।

स्वरचित 

                कुसुम कोठारी ।

नक्बत = दुर्भाग्य, विपदा
आब ए चश्म =आंसू
शजर =पेड़

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1*भा.12/6/2019/बुधवार
बिषयःःचक्रव्यूह
विधाःः काव्यः

मोहमाया के चक्रव्यूह में,
  क्यों यहां फंसा भगवान।
    ढूंढ रहा जो नहीं फंसा हो ,
      ऐसा कोई एक दं मिले इनसान।

जीवनडोर प्रभु के हाथों,
  जैसा चाहे वैसा रख ले।
    हमें खींच ले चक्रव्यूह से,
      अथवा हमें बांधकर रख ले।

जितना निकलें उतने धंसते।
  ये माया मोहों की जननी है।
     इन्हें लपेटकर काया बनती,
        सभी दुखों की जो भगिनी है।

इस चक्रव्यूह से हमें निकालें,
   कब तक फंसे रहें परमेश्वर।
     है आपाधापी का ये जीवन,
        नहीं इसमें रहें अखिलेश्वर।

स्वरचितःः ः
इंजी।शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म।प्र.
जय जय श्री राम रामजी

  1*भा.#चक्रव्यूह#काव्यः ः
12/6/2019/बुधवार

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नमन मंच
12/6/2019
शीर्षक-चक्रव्यूह
कविता
............
मन की तंग कुटिया में
हमने राग द्वेष के नाग पाले हैं
जो कभी कभी हमें ही काट लेते हैं...

उन्माद मद मोह के बीज
जो हमने बोए और सींचे हैं
मुल्ला पंडित उनमें अंधविश्वास की खाद डाल कर वर्धित कर देते हैं...

रिश्तों नातो की फसल
कब की कट चुकी है
अब तो बैर के पैर उग आए हैं
हम स्वयं ही तो वैमनस्य की हवा फैला देते हैं...

मर्यादा की बंजर खेती पर
समीप के रिश्ते सांप बन डसने आये हैं
हम स्वयं ही तो अभिमन्यु को
चक्रव्यूह में फंसा देते हैं...

     @वंदना सोलंकी#स्वरचित
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नमन "भावो के मोती"
12/06/2019
  "चक्रव्यूह"
################
मन तेरा कायल जब से हुआ,
यादें  तेरी चक्रव्यूह  बन गया,
सुबह  से शाम फिर रात  हुई,
पहर-दर-पहर  गुजरता  रहा।

द्वार आज  तक भेद ना पाई,
या शायद भेदना ही ना चाही,
भूलाकर हर मौसमी एहसास,
यादों के मौसम में जीती रही।

 मुझे न मिलेगी मंजिल कभी,
और ना मिलेगा सहारा कभी,
खुश हूँ मैं चक्रव्यूह में खोकर,
खोना है मुझे यादों में अभी।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।

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नमन भावों के मोती
12------06-------19
विषय-चक्रव्यूह
विधा-व्यंग्य क्षणिका
🎂🎂🎂🎂🎂🎂
आधुनिक
अभिमन्यु
भ्रष्टाचार के
चक्रव्यूह को
भेदने में
माहिर लगता है👌
टिट फॉर टेट
की पॉलिसी
अपनाता है,
जाहिर सी बात है...
भ्रष्टाचार को
भ्रष्टाचार से
 पछाड़ता/हराता है👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐

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नमन  मंच  
12/6/2018
बुधवार 
विषय -चक्रव्यूह 

नन्हीं  बच्ची  
कली  कच्ची 
के 
टॉफी, बिस्किट 
बन  गये  चक्रव्यूह 
उजड़  गया  
जीवन  उसका  क्यों 
काश  तुमने 
गर्भ में  सीखा 
होता  भेदना  
चक्रव्यूह 
आज  शायद  
नहीं  होती 
कठुआ, उन्नाव 
अलवर  जैसी  
घटना  हूबहू 
स्वरचित 
शिल्पी  पचौरी

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सादर अभिवादन
 नमन मंच 
 भावों के मोती 
 दिनांक : 12 -6 -2019 (बुधवार )
विषय : चक्रव्यूह
  तांका
1
 नौवें महीने 
गर्भ में सीखी विद्या
 जोखिम उठा
 खतरे की डगर 
निकलना कठिन
2
 सोचता नहीं 
इंसान आज-कल 
फंसता जाल 
हर पल जिंदगी 
चक्रव्यूह में फंसी 

यह  मेरी स्वरचित है
 मधुलिका कुमारी "खुशबू "
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नमन सम्मानित मंच
      (चक्रव्यूह)
       *******
जीवन  के   शुचि   रंगमंच पर,
  नियति   नटी    का   चक्रव्यूह,
    मानव भी  अदभुत  स्थिति  में,
     पाता प्रतिपल किंकर्तव्यविमूढ़।

युद्ध -भूमि  मानस  के पट पर,
  नीति -अनीति   का  अन्तर्द्वन्द,
     काम, क्रोध, मद, लोभ सरीखे,
       योद्धा  सकल    हुए   स्वच्छंद।

स्वार्थ  और आसक्ति  के  वश,
  धृतराष्ट्र समान   मनुज प्रजाति,
     भावशून्य             संवेदनहीन,
       लज्जा दृग में तनिक न आती।

चक्रव्यूह   का  अन्तिम   द्वार,
  भेदनीय   सत्कर्मों    से   मात्र,
      सुसंस्कार शुचि  के  शस्त्रों से,
         चक्रव्यूह    से    होंगे    पार।
                             --स्वरचित--
                                 (अरुण)

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चक़व्यूह ,
मानव जीव,
इच्छोओं के रज्जु मे,
जकड़ा हुआ ही,
पैदा होता है,
इच्छाऐ कामनाएं,
वसुंधरा पर,
जीवो को लाते है।
मानव इच्छोओं के,
चक्रव्यूह मे,
जीता है,
चक्रव्यूह के भीतर 
84लाख योनियाँ
जीवन चक्र ,
घूमता है।
चतुर शिल्पी
जीवो मे कई रंगो से,
नौ महीने,
अथक परिश्रम से मानव का,
निर्माण करताहै।
मानव की इच्छाऐ
चक्रव्यूह रचती है,
चक्रव्यूह भी जीता है,
मानव
वसुधा पर ,
माया ठगिनी,
मानव के पास ही,
सदा रहतीहै।
कभी नारी रुप लिये,
कभी जमीन जायदाद को लिये,
कभी बच्चे के रुपमे।
कभी सत्ता सुन्दरी के रुप मे।
मानव को माया दौड़ ती रहती है।
चक्रव्यूह भी,
मुक्ति तभी मिलेगी,
जब हम,
अपने इच्छोओं, कामनाएं पर संयम,
नियंत्रण कर,
जीवन शैली,
सादा जीवन जीने की कोशिश करेगे।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।

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नमन मंच
दिनांक -१२/६/२०१९
शीषर्क-चक्रव्यूह"
मोहमाया के चक्रव्यूह में घिरे हम
कम नही हो रही जिजीविषा
दिनरात मेहनत कर के भी
पूरी नही हो रही इच्छा।

आशा नही कलिकाल मे किसी से
अपने दम पर जीने की इच्छा
टूटे जब अहंकार का दर्प
जीवन लगे सुहाना दर्पण सा

संघर्ष जारी है जीवन का,
हो सहर अपने दम पर
निशा भागे स्वयं चलकर
जीना सीख ले अपने बल पर।

सूत्रधार ने जब हमें डाला
जीवनरूपी चक्रव्यूह मे,
वे ही रहते जिजीविषा बनकर
हर मानव के अंतरमन में।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन् भाव के मोती 
दिनांक 12 जून 2019 
विषय चक्रव्यूह 
विधा कविता

मनुष्य जन्म पग-पग भ्रम धारा
कर्म से बिंधा हुआ धर्म हारा

चक्रव्यूह सम जीवन विषम हुआ
आज भी चक्रव्यूह है रचा हुआ

भ्रष्टाचार वैमनस्यता से घिरा हुआ
कदम कदम पर मनुष्य डरा हुआ

मनुष्यता का कत्ल हो रहा जघन्य
छल से मरते आज भी अभिमन्यु

धर्म खड़ा है आज सिसककर 
धर्मराज भी रो रहे फफककर

दुष्कर्म,मृत्यु से पीड़ित शोषित समाज
चक्रव्यूह सम डस रहा अन्याय आज

हे माधव,चक्रधारी!
कुछ आज भी करो प्रलयंकारी!

चक्रव्यूह में कोई अभिमन्यु अब न फंसे
सफल ,सुखद जीवन संग ये दुनिया बसे

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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नमन   मंच
12.6.2019 बुधवार
विषय  चक्रव्यूह

चाहतों का उम्मीदों का
खूबसूरत मेल
इच्छाओं की
सांप सीढ़ी में फंसी 
चक्रव्यूह होती ज़िंदगी

कोयल का मादक संगीत
फूलों की अमराई
कलियों को रौंदना
अनाक्रामक आक्रोश से
चक्रव्यूह होती ज़िंदगी

खुशियों की खेती
महत्वाकांक्षाओं के महल
बीच में उलझी
मृगतृष्णा सी
चक्रव्यूह होती ज़िंदगी

पावन प्रेम में खिलता
कंवल आन्नदमय
जब जड़ जमाता
अहं का पत्ता कंटीला
चक्रव्यूह सी होती जि़दंगी

मीनाक्षी भटनागर
 स्वरचित

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शुभ संध्या
(( चक्रव्यूह ))
द्वितीय प्रस्तुति

कर्मों का ही चक्रव्यूह बन जाता है
जो करते हम सामने वह आता है ।।
गजब की कुदरत गजब का जहां
दिखने को कोई नही दिख पाता है ।।

कर्मों की आसान नही कहानी है
जन्मों से इन कर्मों की रवानी है ।।
हम क्या हैं क्या कुछ कर पायेंगे
ज्योतिष ने पहले से ये बखानी है ।।

चक्रव्यूह से अगर बचना कर्म सुधार
चक्रव्यूह जन्मों से 'शिवम'संग हमार ।।
कर्म ही बने भावी जीवन का आधार
चाहें तो पा सकते हम मुक्ति का द्वार ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/06/2019

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नमन मंच 
12/06/19
विषय   चक्रव्यूह
विधा  मुक्तक
**

हर शख्स ने चेहरे पे इक चेहरा लगा रखा है
लबों  पर हंसी और सीने मे दर्द छुपा रखा है
फरेबी दुनिया में सुंदर मुखौटे पहने लोगों ने
रिश्तों की सच्चाई में कुछ झूठ छिपा रखा है।

धरा मानव मन की अब क्यों हो गयी बंजर
सिसकती कातरता से ,देख दोस्ती का मंजर
कैसे विश्वास के बदले विष भर गया रिश्ते मे
मुँह से  बोलते राम ,रखते पीठ पीछे खंजर।

किस चक्रव्यूह में उलझ कर रह गया इंसान 
किया जिस पर विश्वास,तोड़े रिश्तों का मान
जीवन के झंझावातों में साथ जिसका प्यारा था
विश्वास घात से पाया जीवन भर का अपमान ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
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दिनांक- 12/6/2019
शीर्षक-"चक्रव्यूह"
विधा- हाइकु
*************
    ये चक्रव्यूह
अभिमन्यु था फंसा
    सगो ने रचा

    प्रेम में धोखा 
  बनाया चक्रव्यूह 
    दर्द ही मिला 

     गहरी दोस्ती
  चक्रव्यूह में फंसा
     खतरा बना

      गंदी नियत
   चक्रव्यूह में फंसी
     मासूम कली

    नारी जीवन
 चक्रव्यूह से भरा
   घिरता रहा 

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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नमन
भावों के मोती
१२/६/२०१९
विषय-चक्रव्यूह

फिर रचे जा रहे चक्रव्यूह
फिर कोई अकेला अभिमन्यु
फंसकर इस चक्रव्यूह में
गंवा देगा अपने प्राण।
हर और विराजमान हैं धृतराष्ट्र,
देश की दुरवस्था से अनभिज्ञ!
अपने स्वार्थ में लिप्त,
सत्ता की प्रबल चाह
गंदी राजनीति!
हर ओर कराती महाभारत,
द्रोणाचार्य, भीष्म तब भी चुप थे;
अब भी चुप हैं!
कलियुग में कहां से आयेंगे कृष्ण?
अधर्म का नाश करने;
तार-तार होती द्रोपदी की लाज!
जिसका नहीं कोई रखवाला आज;
खंडित होते समाज - परिवार,
लोगों के मन - जीवन,
इस महाभारत से,
सत्ता के गलियारों से,
अधर्म और अनीति,
हर धर्म तक जा पहुंची है।
जातीयता का विष;
प्रचंड हो रहा है!
नीति न्याय समानता सदाचार;
बीते कल की बातें लगती हैं।
हर ओर हैं जयचंद!
हर ओर हैं मतिमंद!
अब तो बस चक्रव्यूह रचे जाते हैं;
जिसमें फंसी अभिमन्यु सी आम जनता!
व्यूह भेद नहीं पाती हैं।
बहुरूपियों की चाल,
समझने में देर हो जाती है।
अब हर ओर महाभारत है!
हर ओर दुःशाशन है!
हर किसी को
चक्रव्यूह रचने की आदत है!!
नहीं है कृष्ण यह सब देखने को,
धर्म की स्थापना हेतु,
जो हुई थी महाभारत!!
वही धर्म बन गया है,
महाभारत का कारण!!
चक्रव्यूह रचने की महारत;
अब हर किसी को है हासिल!.!.!

(अभिलाषा चौहान)
स्वरचित मौलिक

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सादर नमन
 विषय-चक्रव्यूह
विधा-हाइकु
भोग विलास
वासना चक्रव्यूह
होता पतन
है चक्रव्यूह
मानव परिवार
सब निभाते
ज्ञान कटार
अशिक्षा चक्रव्यूह
काटते गुरू
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/6/19
बुधवार 


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नमन भावों के मोती
दिनाँक -12/06/2019
शीर्षक-चक्रव्यूह
विधा-हाइकु

1.
चोर लुटेरे
रचते चक्रव्यूह
दिन व रात
2.
अधूरा लक्ष्य 
जीवन चक्रव्यूह
मंजिल कहाँ
3. 
मासूम बेटी
फँसी चक्रव्यूह में
बचाए कौन
4.
फँसा है चेला
अशिक्षा चक्रव्यूह
उबारे गुरु
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

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भावों के मोती
शीर्षक--चक्रव्यूह
12/6/2019::बुधवार

राजनैतिज्ञ
रचते चक्रव्यूह
मकड़जाल

फसे जनता
उनके चक्रव्यूह
बन नादान

नहीं आसान
तोड़ना चक्रव्यूह
अभिमन्यु सा

देखें लाचार
चक्रव्यूह की धार
कैसे हों पार

मृत्यु साकार
चक्रव्यूह के द्वार
सभी अपने
        रजनी रामदेव
          न्यू दिल्ली

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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹12-6-2019
विषय:- चक्र व्यूह 
विधा :-पद्य 

अभिमन्यु सा भाग्य  लेकर  मैं  , 
जब  से दुनिया  में   हूँ  आई । 
चक्र  व्यूह  को  पीठ पे  लादे , 
देश    देशांतर घूम   हूँ  आई ।

वर्तमान   की    चिंताओं   से 
,निष्ठुर अतीत का चक्र व्यूह ।
भेद    नहीं    पाती   कर्मठता , 
परिस्थितियाँ   बनती   प्रत्यूह ।

बुद्धि  का ये बालक अभिमन्यु , 
कहता  मुझसे सोच  रीत  गई ।
मैं उस से अहिनिशि  हूँ कहती ,
ढोते    मेरी    उम्र   बीत   गई ।

कितने   चक्रव्यूह   जीवन  के , 
इच्छाओं  के  अभिमन्यु मारते ।
भेद न पाते   चक्र निर्धनता  के , 
जीवन    की  बाज़ी  को हारते ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )

सोच रीत गई ,उम्र   बीत गई 
बोझ को ढोते  ,पीठ  टूट  गई ।
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भावों के मोती दिनांक 12/6/19
चक्रव्यूह

इन्सान रचता रहता है 
चक्रव्यूह हमेशा
अपनों फंसाने के लिए
नहीं छोड़ता 
कोई कसर मारने के लिए

कृष्ण भी तब पंगू थे
जब अभिमन्यु फंसा था
चक्रव्यूह में
अट्टहास लगाया कौरवों ने
असहाय थी एक माँ

मंथरा के चक्रव्यूह में
फ॔से थे राम 
दशरथ का देहान्त
14 साल वनवास
भाईयों के बीच दूरियाँ
इसलिए बुरे  होते है
हमेशा चक्रव्यूह

जीवन में सबक लो
इन चक्रव्यूहों से
परिवार में न रचो
कोई चक्रव्यूह
हो मान सभी का 
चक्रव्यूह में फंस कर
नहीं पायी  है 
किसी ने सुख 
शान्ति और संतोष

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव  भोपाल
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छल प्रपंच
रचते चक्रव्यूह
जीवन मंच।।

छद्म भावना
भेदते चक्रव्यूह
अवमानना।।

शुद्ध विचार
चक्रव्यूह के द्वार
अचूक वार।।

गंगा भावुक

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भीतरघात
रचना चक्रव्यूह
बाहर शांत।

सजग चर
नाकाम चक्रव्यूह
हो सावधान।

कठोर दण्ड
भेदेगा चक्रव्यूह
हौसले पस्त।

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