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ब्लॉग संख्या :-422
नमन मंच,भावों के मोती
शीर्षक किनारा,तट
विधा लघुकविता
19 जून 2019,बुधवार
भवसागर फेंका हमको
कभी तैरते कभी डूबते।
हवा प्रभंजन चले थपेड़े
हर पल मात्र तट ढूंढते।
मोटे मोटे मगर मच्छ हैं
मुँह फाड़कर हम देखते।
गर्जन करती आती लहरें
हम सागर अति सहमते।
संघर्षों से लड़ते प्रति पल
नहीं मिलता हमें किनारा।
दूर क्षितिज दिखता केवल
नहीं मिलता है कोई सहारा।
प्रभु एक आसरा बस तेरा
भवसागर से पार लगादो।
भटके भूले सहमे हम सब
आप किनारा हमें दिखादो।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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।। किनारा ।।
बार बार बह जातीं कश्तियाँ
क्या खुशी मनायें किनारे पर ।।
चलो अच्छा करें कुछ करम
किसी बेचारे औ बे सहारे पर ।।
बे सहारे बहुत हैं इस जहां में
देखा हर गली हर चौबारे पर ।।
हम ढूढते रहते हैं खुदा को
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे पर ।।
हम सोचते रहते अपनी कश्ती
को चलाते हवा के इशारे पर ।।
हवा बीच में ही धोखा दे देती
रहम न करती गम के मारे पर ।।
क्यों न कुछ ऐसा करें रौनक
आए किसी गरीब के द्वारे पर ।।
यहाँ कुछ न मुकम्मिल 'शिवम'
क्यों न जियें वक्त के हर धारे पर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/06/2019
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नमन मंच
दिनांक .. 18/6/2019
विषय .. तट/ किनारा
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भरी हुई आँखो के तट से .आँसू झलक रहे है।
प्रेम विरह मे तडपे राधिका, नैना निरख रहे है॥
........
श्याम प्रीत मे डूबी ऐसे, पाया नही किनारा।
एक बार जो श्याम गये फिर, लौटे नही दुबारा॥
......
जमुना का जल श्याम पुकारे, वृन्दावन की धरती ।
बैठे किनारे श्याममयी वो , एक शिला सी रहती॥
......
श्रेष्ठ प्रेमी यदि श्याम पिया तो, छलिया अरू मनमौजी।
पलट के देखा ना राधा को, बने जो कर्म के यौगी॥
........
प्रेम विरह मे शेर भी डूबा, आँखे बनी किनारा।
झलक रही आँखो के तट से, आज भी है जलधारा॥
.....
स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
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आज का विषय तट,किनारा, कूल,साहिल,
हाइकु मुक्तक,
नदी का तट/कल कल करता/चंचल जल/
कितनी बड़ी/प्रकृति की गोद है/मिली कोमल/
छलक रही/मथुरिम छवि सी/खिले कमल/
जुगनू सौ सौ/जगमग करते/सरिता कूल।।1।।
2/सनसनाती/बादलों से खेलती/ हवा कहती।।
चाँद को देखो/शीतलबिखेरती/हवा कहती/
मनुज देखो/धीरज खोकर के/वह जी रहा/
समुद्र देखो/लहरें तट छूती/हवा कहती।।
स्वरचित हाइकु मुक्तककार देवेन्द्रनारायण दास बसनाछ, ग,।।
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नमन मंच
विषय-तट/किनारा
विधा-हायकू
19/6/2019
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#१#
नदी उतरी
तट विहीन हुई
सिंधु में मिली
#२#
मछली मरी
नदी किनारे पर
सूखी सरिता
#३#
चमके बालू
सागर के किनारे
बालक खेलें
#४#
सागर तट
दूर तक निर्जन
प्यासे लोग
#५#
नदी किनारे
नगर गाँव बसे
जीवन यहाँ
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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सादर नमन
19-06-2019
गंतव्य किनारा
देकर दिल को बहुत दिलासा
मन-जाग्रत विपुल अभिलाषा
निज हाथों में थाम पतवार
संग खे चले बीच मँझधार
उठती जो लहरें लोल लोल
नैया को करती है डांवाडोल
लहरों औ तूफान को कोसा
शंकित मन को दिया भरोसा
आँक सकी न मनोभावों को
तेरे मन में पलते दुर्भावों को
कहते पल में मिलेगी किनारा
पुलक प्राप्त सान्निध्य तुम्हारा
प्रलोभन में तेरे जो न बहती
ठगी आज भला क्या रहती
पग-पग जो किए इशारा तुम
मुझसे ही किए किनारा तुम
अविरल कलकल जल धारा
रोके कैसे संग कौन सहारा
शक्ति संबल संचित कर सारा
मँझधार के उस पार किनारा
बहुर पाये न कुत्सित मंतव्य
लक्ष्य यही, अब मेरा गंतव्य
लहरों पर ही मुझे चलना है
कुटिल कुत्सा को कुचलना है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
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भावों के मोती
19 06 19
विषय-किनारा/तट
तट के बंधनो को तोड़ने
विकल सी बढ़ती है लहर मतवाली
पर किनारों के कोलाहल को सुन
फिर लौट जाती अपने सागर की बाहों में
फिर मुक्त होने छटपटाती
सर किनारों पर पटकती
और लौट जाती पता नहीं क्यों?
अनसुलझी सी पहेली अनुत्तरित प्रश्न
या ऐसे लगता ज्यों
इठलाती लहर तट पर
शीश रख कुछ पल जो सोती है
लहर अपना कुछ हिस्सा वंहा
रेत पर ही खोती है
इसलिये लौट लौट फिर जा
सागर के सीने में रोती है
वो मतवाली लहर सूर्य का
हाथ थाम वाष्प बन उड़ जाती है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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1भा.19/6/2019/बुधवार
बिषयः ः #किनारा/तट#
विधाःःकाव्यःः
बीच धार में नाव फंसी तो,
तुम्हीं लगातेे सदा किनारे।
मुरलीवाले कृष्ण कन्हैया,
केवल तुम हो एक सहारे।
कलुषित मन पापी हम देवा।
फिर क्यों पाऐंगे तुमसे मेवा।
परोपकार कुछ करते नहीं तो
प्रभु नहीं करते दीनों की सेवा।
डूव रही प्रभु मझधार में नैया।
तुम बिन नहीं है कोई खिवैया।
जब सोंप चुके पतवार तुम्हें तो,
हमें पार लगाओ हे रासरचैया।
मन निर्मल निश्छल प्रभु कर दें।
तुम स्नेह पुष्प हर हिय में भर दें।
प्रेम किनारे रहें सभी साथ हम,
ऐसा भगवन हम सबको वर दें।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
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1*भा#किनारा/तट#
19/6/2019/बुधवार
🚩भावों के मोती🚩
शीर्षक-किनारा/तट
१९/०६/१९@१३:१०
नदी का किनारा हो।
वृक्षों से आच्छादित।
मलयागिरि समीर बहै।
कुशोच्छादित कुटी हो।
चंपा चमेली मालती पुष्प।
बेला मेहदी गणेश कुसुम।
कलकल ध्वनि नीर बहता।
कलरव करते खगवृंद हो।
ऐसी मनभावन रमणीक।
हरजन की कुटी हो एक।
ऐसी एक कुटी हमारी हो।
शांति हो चहुंओर सदैव।
फल वृक्ष आच्छादित।
सम्पूर्ण धरा वसुंधरा हो।
नदी किनारा वृक्षाच्छादित हो।
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
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नमन "भावो के मोती"
19/06/2019
"किनारा/तट"
छंदमुक्त
################
सागर तट बैठ देखती रही..
लहरों का आना-जाना.....
उच्छास.....आह! गर्जना..
दिखा ना अबतक....
जीवन रुपी...कश्ती...
छा रही थी... मदहोशी..
अंतर्मन को उद्वेलित करती रही...
लहरों का किनारों से टकराना
फिर चले जाना...
क्या नियती यही .....
कब तक.....
बात समझ से परे थी...
तटबंध कितना कठोर...
पाषाण सा मन.....
लहरों का हलचल...
फिर क्यों मूक खड़ा तटबंध..
क्या लहरें इसे भिगोती नहीं..
फिर क्यों मूक तटबंध....
ना जाने कब-तक....
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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नमन मंच
19/06/19
किनारा
किनारा शब्द के कई अर्थ को लिखने का प्रयास
***
समन्दर का *किनारा
ठंडी रेत पे नंगे पाँव
हाथों में हाथ लिए
दुनिया जहान से दूर
अपने में रहते मशगूल
वो दिन भी क्या दिन थे।
वक़्त ने क्या सितम किया
गलतफहमियां दीवार बन गयीं
रिश्ते बिखरते जा रहे थे
एक दूजे से दूर जा रहे थे
*किनारे की तलाश में
बेड़ियोँ के भँवर में डूबते जा रहे थे ।
समय के चक्रव्यूह में
उलझ कर रह गए हम
तुम तो गैर हो गए थे
अपनों ने भी *किनारा कर लिया।
नदी के दो *किनारों की तरह
हम समानांतर चलते रहे
मिलना न था नसीब में
*किनारे की तलाश में
हम सहारा ढूँढते रहे ।
जल नदियों का *किनारा
छोड़ता जा रहा है
सिकुड़ती हुई नदियां
सूखे की स्थिति ला रही हैं
जल, किनारा तोड़ निरंकुश हो जाये
प्रलय और बाढ़ के हालात बनते जाएं ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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दि- 19-6-19
शीर्षक- - किनारा / तट
सादर मंच को समर्पित -
🍑🍊🌿 गज़ल 🌿🍊🍑
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💧 किनारा 💧
काफिया- आरा , रदीफ- न मिलता
🌲🍒 मात्रा भार = 20 🍒🌲
🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋
हमें काश उनका सहारा न मिलता ।
कभी पार जाने किनारा न मिलता ।।
उन्हें प्यार से गर पुकारा न होता ,
हमें आज मन का सितारा न मिलता ।
चले गर न होते हमीं साथ मिल कर ,
किनारे मिलन का इशारा न मिलता ।
जहाँ में सभी को मिली है वफा कब ?
बिना त्याग के दिल हमारा न मिलता ।
हमें तो दिलों की सचाई है प्यारी ,
संकोची मनों का गुजारा न मिलता ।
तभी यों हुआ , खो गया मीत यह दिल ,
कभी प्यार का फिर नजारा न मिलता ।
न होती सुहानी हमारी हकीकत ,
हमें जिन्दगी में दुलारा न मिलता ।।
🍑🍊🌲🍒🍓
🍓🌲 ****.. रवीन्द्र वर्मा ,आगरा
मो0-- 08532852618
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2भा.19/6/2019/बुधवार
बिषयःः# तट/किनारा#
विधाःः काव्यः ः
वसुधा वैभव हमें लुटाती।
सुख संपदाऐं हमें लुभातीं।
जो तटबंधों पर बृक्ष फले हैं,
सुखमय शोभा हमें सुहाती।
प्रकृति प्रदत्त हमें सुख सुविधाऐं।
अच्छे वातावरण में मौज उडाऐं।
जाने क्यों हम सब इतने निष्ठुर,
ये खोद किनारे स्वयं पछताऐं।
कलकल करतीं नदियां बहतीं।
फले बृक्षों पर चिडियां चहकीं।
पुष्पित आच्छादित हों किनारे,
हर हृदय की कलियां महकीं।
क्यों न नदी किनारे पेड लगाऐं।
सच अपना जीवन सफल बनाऐं।
ये प्रकृति बार बार चेतावनी दे रही,
यहां नहीं विपदाएं हम स्वयं बुलाऐं।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
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2*भा#किनारा/तट#काव्यः ः
19/6/2019/बुधवार
नमन भावों के मोती
आज का विषय, किनारा / तट
दिन, बुधवार
दिनांक, 19,6,2019,
चल रहे साथ कब से, दूर रहकर किनारे,
चमक जाते हैं इन से, हमारे भी सितारे ।
कभी प्रकृति से किये थे ये किनारों ने वादे,
हमेशा बाँधे रहेंगे वो बहते जल के धारे ।
सदा फलेंगे फूलेंगे यहाँ पर रहने वाले ,
सबका सहारा बनेंगे जल स्रोतों के किनारे ।
पूछ रहे हैं आज सबसे व्यथित ये किनारे,
आज अस्तित्व जल का क्यों नुकसान पाये ।
कभी क्रोधित होकर अगर ये जमीं छोड़ जाये ,
धरती पर फिर कैसे जिंदगी रह पाये ।
खोजा करते हो क्यों जीवन में सहारे ,
अगर आपको चाहिए ही नहीं है किनारे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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भावों के मोती दिनांक 19/6/19
किनारा / तट
चलता चल
राह ताल तलैया
पास किनारा
दूर किनारा
भटकती है नैया
हिम्मत साथी
उड़ता पंछी
ढूंढता है मुकाम
मिलता तट
न भटकाव
न कोई इन्तजार
मिला किनारा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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नमन मंच
दिनांक-१९/६/२०२९"
"शीर्षक -किनारा"
मजधार मे फँसी है नैया
किनारे तक लाये कौन?
सबको अपनी ही पड़ी है
डूबते का तिनका बने कौन?
अनुकूल नही जब धारा जल की
पतवार फिर संभाले कौन?
भयाकुल जब हर कोई यहाँ पर
नौका फिर संभाले कौन?
दीन और असहाय बनकर दूसरों
से याचना फिर करना क्यों?
याद करें, सिर्फ कमलनयन को
चमत्कार वही दिखावे अब,
नौका किनारे पहूँचाये अब।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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भावों के मोती।
शीर्षक: तट :
यमुना के तट पर बजी बाँसुरिया।
सारी गोपिन बोली- "सुन री राधा,
आय गयो तोरो नटखट सांवरिया।
जा मिल ले जल्दी,है छाई बदरिया।"
राधा गई लज़ा, जैसे नन्ही गुजरिया।
मन में तो लड्डू फूटे,मुख पर छाई हया।
बोली मैं ना जाऊंगी, मोको छेड़े कन्हैया
तबआयो श्याम,पकड़ लीन्ही कमरिया।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
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मंच को नमन
भावों के मोती
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19/6/19
विषय -किनारा
हाइकु
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1)
जीवन धारा
जन्म मृत्यु के तट
बहता प्यारा।।
2)
धाराएँ नई
नदी किनारा वही
नाव भी गई ।।
3)
काठ का नाव
लहरों को झेलता
पार लगता।।
4)
रेत का घर
सागर तट पर
जस का तस ।।
•••••••••••••○○••••••
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बसना,महासमुंद,छ,ग,
••••••••••••••••••••••••
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नाम जब भी मेरे लब पर तुम्हारा आता है।
याद लहरों को वो बिछ्डा किनारा आता है।
दिखा के तुमने कभी जो मुझसे छीना था।
याद कितना था वो हसीं सहारा आता है।
न जी सकेंगे तुम्हारे बिना कहा था तुमने।
वाह क्या खूब तुम्हें करना गुजारा आता है।
जैसे कल ही की कोई बात हो मिलना तेरा।
याद मुझको वो हर घडी नजारा आता है।
मैंने कोशिश हजारों कर के देखी है विपिन।
ख्याल फिर भी तेरा मुझको खुदारा आता है।
स्वरचित विपिन सोहल
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नमन भावों के मोती
विषय किनारा
विधा कविता
दिनांक 19,6,2019
दिन बुधवार
किनारा
🍁🍁🍁🍁
किनारों सी दूरी सदा अख़रती है
यहीं प्यार की दुनियाँ बिख़रती है
आपसी सँवाद यदि होते रहें
तो दिल की दुनियाँ सँवरती है।
किनारे सरिता सागर के ही अच्छे
इनके बीच भी होते लहरों के लच्छे
यदि लहरों सी मुस्कान न हो
तो किनारों के सम्बन्ध भी बिल्कुल कच्चे।
प्रेम में नहीं होने चाहिए किनारे
ऊँचाईयों के फिर होंगे कैसे वारे न्यारे
समीकरण सारे ही बिगड़ जायेंगे
नई मुश्किलों में सब पड़ जायेंगे।
ईश्वर न रख तू मुझसे किनारा
मैंने सदा ही तुझ ही को पुकारा
मैं उलझनों में ही उलझा रहा हूँ
मेरा यही है बस दोष सारा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
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शुभ संध्या
शीर्षक-- ।। किनारा ।।
द्वितीय प्रस्तुति
दुनिया से किनारा कर लिया ,
पर तुमसे किनारा नही होता ।
जाने क्यों यह दिल बार बार ,
तुम्हे याद करता तुमको रोता ।
टूटे दिल के तारों को जोड़ता ,
और नये नये गीतों को पिरोता ।
किनारा तो दूर पल भर दूरी ,
नही बरदाश्त तुममे ही खोता ।
दिल की दीवानगी लाज़िम एक ,
यही जागीर जिससे सुख सँजोता ।
अन्जान कब तक रहेंगे रहम ,
फरमाने की आस में लगाये गोता ।
किनारे वालों से न शिकवे 'शिवम' ,
जब देखा दिल इसी धुन में होता ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/06/2019
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नमन भावों के मोती
शुभ संध्या
19/6/2019
'द्वितीय प्रस्तुति'
विषय-तट/किनारा
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सागर की लहरों से पूछो
किसकी तलाश में वो तट तक आती हैं?
कभी उनसे ये भी पूछो
किसे देख वो लहराती बल खाती हैं?
गहराई से देखा तो जाना
वो हमें एक सीख देकर जाती हैं
वो अपनी हद,अपनी सीमा को
छूकर निज को पाने आती हैं
कि हम भी प्रभु को पाने
निज अस्तित्व पहचानने
रूह के किनारे तक जाएं
जहाँ बस विशुद्ध प्रेम की लहरें हों
जिसकी तरंग में हम भी झूलें लहराएं ।।
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
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नमन सम्मानित मंच
(किनारा/तट)
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प्रवाहमान जीवन सागर के,
तट चारु द्वय शैशव वृद्धापन,
अपरिहार्य शुचि युगल हितार्थ,
ऊर्जामय अदभुत अपनापन।
ब्रह्माण्ड प्राँगण में अनुपम,
एक किनारे बसुधा शोभित,
नील व्योम अस्तित्व अनन्त,
दूजे पर अतिशय आकर्षक।
प्रेम-सिन्धु मानिंद हृदय के,
तट पर नित भावों का मेला,
मानस के विस्तार पटल तट,
विचार श्रंखलाओं का रेला।
जीवन-सरिता के तट द्विय पर,
शुचि जन्म और मृत्यु अस्तित्व,
शाश्वत केवल परम शक्ति शुचि,
घटगत आत्मा मात्र अनित्य।
--स्वरचित--
(अरुण)
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नमन भावों के मोती
विषय - तट / किनारा
19/06/19
बुधवार
कविता
घोर निराशा में आशा का दीप जलाकर
मानव जीवन- पथ पर आगे बढ़ पाता है,
कुण्ठा ,पीड़ा व भय से मर्माहत होकर
न कुछ कर पाया है न ही कर पाता है।
उसको संबल देती हैं आशा की किरणें
जिससे उच्च मनोबल उसका हो जाता है,
नहीं देखता फिर वह पथ की बाधाओं को
कदम लक्ष्य की ओर बढ़ाता ही जाता है।
आशा की ही डोर उसे खींचे रखती है ,
लेशमात्र न बाधाओं से घबराता है,
भंवरों से जूझती नाव को संयत होकर,
वह निश्चय ही उसे किनारे पहुँचाता है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन मंच को
दिन :- बुधवार
दिनांक :- 19/06/2019
शीर्षक :- किनारा/तट
साहिल किनारे वो सुनहरी ढलती शाम,
गुजरे जो साथ तुम्हारे हर वो सुखद याम।
पलकों में समा है जाती वो तस्वीर हमारी,
भरते है आहें सुबहो शाम याद में तुम्हारी।
जिस मखमली रेत पर लिखा नाम तेरा,
उन किनारों पर अब है पसरती वीरानगी।
भूल गया अब मैं राह अपनी मंजिल की,
इस कदर छाई है मुझ पर तेरी दीवानगी।
खिल जाती थी कलियां मुस्कान से तुम्हारी,
छा जाती थी दिल पर अजीब सी खुमारी।
अब तरसते रह जाते इन किनारों पर हम,
पाने को सिर्फ एक शाश्वत झलक तुम्हारी।
हाथों की लकीरों पर तो नाम था तुम्हारा,
पर शायद भाग्य ही गुमनाम था हमारा।
मिला न साथ तेरा सफर-ए-जिंदगी में,
किनारे आके प्यासा रह गया दिल हमारा।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-19/06/2019
शीर्षक-किनारा, तट
विधा-हाइकु
1.
छोड़ दो नशा
जिंदगानी किनारे
बदलो दशा
2.
उठा तूफान
टकराई लहरे
समुद्र तट
3.
धोखे ने तोड़े
प्यार के तटबन्ध
प्यारे सम्बन्ध
4.
राम भरोसे
रहते बेसहारा
नदी किनारे
5.
नाव सहारे
आते हैं मछुआरे
रोज किनारे
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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भावों के मोती : प्रेषित शब्द : किनारा
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१)ज़िदगी की कश्ती उतार तो दी है मँझधार में
ढूँढ रहे है किनारा सागर से विशाल संसार में ।
२)लोगों का कारवाँ साथ होता है , राहें जब तलक आसाँ होती है
परछाईं तक किनारा कर लेती है वो अँधेरे में साथ कहाँ होती है ।
३)इंद्रधनुष का एक किनारा पकड़ सपने लगे हैं आसमां छूने
बडे हौसले से हवा के परों पर बनाया है एक आशियाँ हमने ।
४)वो माँ की आँचल का किनारा , वो ममता की छाँव
शहर की भीड़ में कहीं खो गया वो मेरे बुज़ुर्गों का गाँव ।
५) फैली है दूर दूर तलक खामोशी ,सागर किनारे
अब बच्चे नज़र नहीं आते , रेत में बनाते घरौंदे ।
स्वरचित(c)भार्गवी रविन्द्र .....बेंगलुर...१९/६/२०१९
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19/6/19
भावों के मोती
विषय-किनारा/तट
_________________
तुम नदिया की बहती धारा सी
और मैं ठहरे किनारे-सा
मिलकर भी कभी मिल न सकें
फिर भी सदा संग-संग चलें
तुम चंचल पुरवाई पवन
मैं तरुवर-सा अडिग खड़ा
महसूस प्रीत के अहसास मुझे
फिर भी खड़ा हूँ सूने तट-सा
नाज़ुक कली-सी कोमल हो
मैं फिरता आवारा भँवरे-सा
मन की भाषा समझ सकूँ ना
उड़ता फिरूँ नादान परिंदे-सा
धरती गगन-सा यह मेल रहे
मिलकर भी मन से मिल न सकें
नदिया के किनारों की तरह
विचारों पर अपने अड़े खड़े
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय-किनारा
१
यादें लहर
ढ़ूँढती हैं किनारा
तड़पे मन
२
नदी किनारे
सुन बाँसुरी धुन
राधा मोहित
३
दुख सागर
प्रेम की पतवार
ढूँढ़े किनारा
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
19/6/19
बुधवार
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