हर रात का सबेरा होता है।
दुखों के बाद सुख होता है।
निराशा से कोई मतलब नहीं,
पतझर कभी बसंत होता है।
स्वर्ग का आनंद नर्क देखकर आता है।
मिश्री का मजा नीम खाकर आता है।
परेशानी संघर्षों से क्यों घबराते हम,
सुख का मजा दुख झेलकर आता है।
स्वरचितः ः
इंजी. इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
दुखों के बाद सुख होता है।
निराशा से कोई मतलब नहीं,
पतझर कभी बसंत होता है।
स्वर्ग का आनंद नर्क देखकर आता है।
मिश्री का मजा नीम खाकर आता है।
परेशानी संघर्षों से क्यों घबराते हम,
सुख का मजा दुख झेलकर आता है।
स्वरचितः ः
इंजी. इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
इनसे क्या घबराना है।
सुख जायेगा दुख आयेगा,
दुखपर फिर सुख आना है।।
आते ही पतझड़ पेड़ों के,
सब पत्ते गिर जाते हैं।
किन्तु वसन्त आते ही,
सब हरे- भरे हो जाते है।।
दिन को तपता सूरज,
साम मन्द हो जाता है।
और रात होते ही चंदा,
शीतलता पहुंचाता है।।
अपने ही कुटुम्ब से कोई,
एकदिन विलीन हो जाता है।
फिर सृजित हो नया पौध,
अंगनाई में आता है।।
खोना/पाना, आना -जाना,
जीवन का पैमाना है....
सुख -दुख जीवन की धूप-छाँव है,
इनसे क्या घबराना है।
सुख जायेगा दुख आयेगा,
दुखपर फिर सुख आना है।।
...राकेश,
फूल हैं तो काँटे हैं
धूप है तो छाँव हैं
ऐसे ही सुख दुख रूपी
दुनिया में दो गाँव हैं
दोनो गाँव का देख नजारा
ज्यादा कहीं न ठाँव हैं
फिकर करे किस बात की बन्दे
सच की पकड़ नाँव है
डूबेगी न , डगमगायेगी
कैसा इससे अलगाव है
बहक न जाना ''शिवम" कहीं
यहाँ व्यर्थ की काँव काँव है
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जीवन में दोनों आते हैं,
साथ निभाये मरते दम तक,
वफादारी खूब करते है,
दुःख से नफरत मत करना,
ये अपना धर्म निभाता है,
जाते- जाते आने वाले,
सुःख का एहसास दिलाता है,
सुख- दुःख का ये यराना,
मेरे मन को भाता है,
समझ गया जो इनका अर्थ,
जीवन सफल हो जाता है.
स्वरचित
संगीता कुकरेती
चाहे आये भंवर बीच या हो मझधार।
सुख दुख के कई झमेले है रातदिन
धीरज को अपने बनालो पतवार ।
सम्हल २ के चलना सिखाती जिन्दगी
रिश्तों में भी कभी न आने देना दरार।
ये बांटोगे जितना भी उतना ही बढ़ेगा
वो एक चीज है जिसे कहते हैं प्यार।
फलसफा जिन्दगी का सिखाता हामिद
जीवनमें पद दौलत का न आए खुमार।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
भावों के मोती
स्वरचित लघु कविता
विषय सुख दुख
दिनांक 30.6.18
रचयिता पूनम गोयल
सुख दुख जीवन के पहलू ,
कभी सुख आए , कभी दुख आए !
जीवन में इनकी कीमत ,
हमें दोनों ही समझा कर जाएं !!
दुख न हो , तो सुख का अहसास न कर पाएं !
और सुख न आए , तो दुख सहने की क्षमता कैसे पाएं ?
यह धूप-छाँव ही जीवन की कहानी है !
सच्चाई है यही सबकी , जो किसी ने जानी , किसी ने न जानी है !!
कर्म की छाया
उलझा प्राणी
जीवन गंवाया
जैसा बोया
वैसा पाया
फिर काहे को
आंसू बहाया
सुख में पाप क्यों
दुःख में संताप क्यों
कर्म का लेखा ही है
जो सामने आया
ना गुरूर कर
सुख के दिनों का
ये तो धूप छांव है
बस सत्कर्म कर
स्वरचित : मिलन जैन
एक बिना दूजा बदरंग
दोनों चलते आगे पीछे
बदलें जीने का ये ढंग।
दिन के बाद रात है आती
जीवन के पहलू समझाती
वैसे दुःख भी सुख को लाता
दोनों हैं जीवन के अंग।
दुःख में धैर्य जो रखते हैं
स्वाद सफलता का चखते हैं
गाड़ी के दो पहिये सुख दुःख
एक है डोर तो एक पतंग।
यह नहीं हमारी मंजिल है
सुख में जो लिप्त है
वो धरा में सुप्त है
दुःख तपती धूप है
मिलती जीवों को ऊर्जा है
जीवन में जिसने यह पाया है
जग उसी से उजियारा है
सुख दुःख जीवन में पूरक हैं
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
दुःख का साथी बनकर
सुख का एहसास ही अपनी जीत है
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
ईमानदार तो दुखो के घुट पिया करते है।।
बेईमानो के लिए जेल भी होटल बन जाती है।।
ईमानदारों पर तो कानून की आंखे भी तन जाती है।
सुख-दुख का भेद वो क्या जानते है
जो कफ़न में मुर्दा नही पैसे को पहचानते है।
अधिकांश संसार तो दुखो का भंडार हो गया।
देहव्यापार व भीख मांगना बस व्यापार हो गया
इन झुटो की वजह से दुखी भी सताए जा रहे ह
कई दिन से भूखे बच्चे भी ड्रामेबाज बताये जा रहे ह
ईमानदारी का जीवन कठनाइयों भरा बताते है।।
क्योंकि दुनिया मे ईमानदार ही सताए जाते है।।
""स्वरचित---विपिन प्रधान""
जीवन का यह ताना बाना
सुख दु:ख तो है आना-जाना
कर्म किए जा अपने बन्दे
क्या है खोना क्या है पाना
सुख दु:ख का जिसे ज्ञान नही है
जिसका उसे अभिमान नही है
स्वर्ग सा जीवन जी रहा वो
इंसानो में भगवान वही है
P.k. जिसने दु:ख प्याला
जैसे तैसे वक्त निकाला
जीवन में वो सदा सुखी है
दु:ख से फिर न पड़ता पाला
सुख-दुख
पाप-पुण्य की कर्म भूमि में
सुख-दुख ही दो पहिये है
संभल कर चलना ए मानव तू
जीवन पथ पर गहन अंधेरे है।।
नेत्र लक्ष्य पर साधे रखना
भाग्य विधाता स्वयं का बनना
सुख-दुख तो आना और जाना
इससे न तुम कभी घबराना।।
सुख-दुख तो ये धूप -छांव सी
कभी मावस तो कभी पुनों सी
गहन अंधेरे में भी देखों
टिम टिम तारों की अठखेली।।
सुख-दुख में तुम मेल बैठा कर
धूप छांव के फूल खिला कर
हार न मानो कभी दुख से
चेहरों पर मुस्कान खिला कर।
वीणा शर्मा
Sumitranandan Pant
जीवन के अनजाने पथ पर
साँसों से चलते इस रथ पर
सुख भी है और दुख भी है
बसन्त है पतझर का रुख भी है।
ये दोनों हमारे साथ रहते
अपनी अपनी बात कहते
सुख के सुरों में सुन्दर राग
दुखों में लेकिन उगलती आग।
जीवन पथ पर धूप है छाॅह है
सुगन्धित श्वास है तपती आह है
कभी समतल कभी कंटीली राह है
फिर भी जीवन जीना सबकी चाह है।
इसलिये क्यों न मनालें हम उत्सव
हमसे ही तो बनेगा सुन्दर भव
सरिता का सुन लें यदि कलरव
तो प्रेरणा मिलेगी नित नव नव।
सुख में दुख में मन का सारा खेल है
और यह भी मनोस्थिति का ही मेल है
ये कोई भी चिरस्थायी नहीं मान लें
तो दुख में नहीं कोई रेलमपेल है।
जीवन बगिया में खिलते हैं,
सब फूल यहाँ सुख दुःख वाले।
दोनों में जो सम रहते हैं,
वो लोग हैं असली मतवाले।
सुख में हर्षित आह्लादित हों
दुःख में भी भाव समर्पण हो
ठहराव न हो जीवन पथ में,
चलते रहना हिम्मतवाले
जीवन बगिया में खिलते हैं,
सब फूल यहाँ सुख दुःख वाले
दोनों में जो सम रहते हैं वो लोग हैं असली मतवाले।
दुःख पीड़ा दुसह व्यथित करती
सहने का सम्बल भी भरती,
सुख हर्ष भाव है खुशियों का,
सुख दुख को सहज सहन करते
जो होते हैं मेहनत वाले।
जीवन बगिया में खिलते हैं
सब फूल यहाँ सुख दुःख वाले
दोनों में जो सम रहते हैं वो लोग हैं असली मतवाले।
अनुराग दीक्षित
चाहे सुख हो दुख हो चाहे,
आत्मबल हो जब मजबूत,
कट जाती हैं सारी राहें।
आग में जैसे कुंदन तपता,
दुख ईंसान को मजबूत बनाता,
कौन है अपना कौन पराया,
दुख ही पहचान कराता।
सुख जीवन का मिठा सपना,
रखे पाने की सब आस,
दुख के बाद जब सुख आता,
जीवन में मिलता सुखद अहसास।
क्यों रोए तू दुख को देख,
सुख-दुख तो आना जाना है,
कर दुख का सामना तूने,
मंजिल को अपनी पाना है।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
दैनिक लेखन
शीर्षक -सुख दुख
बात पते की बड़ी बता गये
ज्ञानी ध्यानी लोग महान,
संत महात्मा वही कराये
सुख दुख में जो रहे समान ,
सावन हरे ना भादों सूखे,
परम संतोषी पाये सम्मान,
अति के सुख में झुक कर रहते
हंस कर सबका करते मान,
घोर विपत्ति में धीरज धरते
सरस,हरि का करते ध्यान,
सुख दुख दोनो आने-जाने
चार घड़ी के बस मेहमान,
आपहिं आप बना कर रखिए
सारे जगत में हो गुणगान ।।
सपना सक्सेना
स्वरचित
दुख को चाहे न कोई
सुख संग गर ,हर कोई
दुख चाहे तो फिर सब
समान होई
दुनिया में हर चीज समान
पर कोई न चाहे अपना
अपना दाय
अंधेरों में रहने वालों को
कब रौशन चराग मिलते हैं
उजालों की धरती पर
कब उनके पाँव पड़ते हैं
महल बनाने वाले हाथों में
कब अपनेघर के तालेहोते हैं
अन्न उपजाने वालों के तो
फाको से पाले पड़ते हैं
छत बना कर लोगों को जो
धूप-छाँव से बचाते हैं
वो खुद सर पर दुख की
छतरी ताने रहते हैं।।
डा.नीलम..अजमेर.
स्वरचित
सुख नहीं है
क्या कलियों का खिलना
सुख नहीं है
क्या दुश्मनो से प्रीत करना
सुख नहीं है
क्या बच्चों का मुस्कुराना
सुख नहीं है
क्या माँ का आशीर्वाद पाना
सुख नहीं है
अगर यह सुख नहीं है तो
सुख क्या है
क्या कभी किसी ने
इसके सिवा और
कहीं सुख पाया है
यह सच्ची बातें हैं
सुख दुःख अनुभूति है
तन है
व्याधि है
मन है
दुःख है
जीवन है
सुख दुःख है
फिरभी सुख की चाह
रहती है सदा जीवन में
पर दुःख साथ रहता है
सदा जीवन में
हकीकत है
सुख तृष्णा है
यह सिर्फ कथा कहानी है
सुख की चाह में
कोई काबा जाता है
कोई काशी जाता है
कोई वनवासी बन जाता है
दर दर
सुख को ढूँढता रहता है
कहीं सुख मिलता नहीं
कभी दुःख का
साथ छूटता नहीं
पड़कर सुख की तृष्णा में
जीवनभर भटकता रहता है
सुख माया है
सुख ममता है
सुख मन की दुर्बलता है
मत कर निरादर दुःख का
तू आदमी है
फिकर कर सिर्फ दुःख का
क्योंकि
दुःख ही जीवन का साथी है
सुख तो जीवन का
सिर्फ अभिलाषा है
सुख नश्वर है
घड़ी दो घड़ी में ही
यह साथ छोड़ देता है
फिर इसे क्यों ढूंढता है
निर्बल नहीं
निर्भय बन
खुद में रम
मन का ज्ञान दीप जला
मत बेचारा बन
अगर दुःख आग है तो
तू इसमें तपकर कुंदन बन
तुझमें धैर्य और साहस है
तू जग की मुस्कान बन
@शाको
स्वरचित
😊