Saturday, June 30

"सुख -दुःख "30जून2018


हर रात का सबेरा होता है।
दुखों के बाद सुख होता है।

निराशा से कोई मतलब नहीं,
पतझर कभी बसंत होता है।
स्वर्ग का आनंद नर्क देखकर आता है।
मिश्री का मजा नीम खाकर आता है।
परेशानी संघर्षों से क्यों घबराते हम,
सुख का मजा दुख झेलकर आता है।
स्वरचितः ः
इंजी. इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

सुख -दुख जीवन की धूप-छाँव है,
इनसे क्या घबराना है।
सुख जायेगा दुख आयेगा,

दुखपर फिर सुख आना है।।

आते ही पतझड़ पेड़ों के,
सब पत्ते गिर जाते हैं।
किन्तु वसन्त आते ही,
सब हरे- भरे हो जाते है।।

दिन को तपता सूरज,
साम मन्द हो जाता है।
और रात होते ही चंदा,
शीतलता पहुंचाता है।।

अपने ही कुटुम्ब से कोई,
एकदिन विलीन हो जाता है।
फिर सृजित हो नया पौध,
अंगनाई में आता है।।

खोना/पाना, आना -जाना,
जीवन का पैमाना है....

सुख -दुख जीवन की धूप-छाँव है,
इनसे क्या घबराना है।
सुख जायेगा दुख आयेगा,
दुखपर फिर सुख आना है।।

...राकेश,



''सुख दुख"

फूल हैं तो काँटे हैं

धूप है तो छाँव हैं 
ऐसे ही सुख दुख रूपी
दुनिया में दो गाँव हैं
दोनो गाँव का देख नजारा
ज्यादा कहीं न ठाँव हैं
फिकर करे किस बात की बन्दे
सच की पकड़ नाँव है
डूबेगी न , डगमगायेगी 
कैसा इससे अलगाव है
बहक न जाना ''शिवम" कहीं
यहाँ व्यर्थ की काँव काँव है 

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



सुख-दु:ख सच्चे साथी है,
जीवन में दोनों आते हैं,
साथ निभाये मरते दम तक,
वफादारी खूब करते है,

दुःख से नफरत मत करना,
ये अपना धर्म निभाता है,
जाते- जाते आने वाले,
सुःख का एहसास दिलाता है,

सुख- दुःख का ये यराना,
मेरे मन को भाता है,
समझ गया जो इनका अर्थ,
जीवन सफल हो जाता है.

स्वरचित
संगीता कुकरेती



जीवन रूपी दरिया को करना है पार
चाहे आये भंवर बीच या हो मझधार।

सुख दुख के कई झमेले है रातदिन
धीरज को अपने बनालो पतवार ।

सम्हल २ के चलना सिखाती जिन्दगी
रिश्तों में भी कभी न आने देना दरार।

ये बांटोगे जितना भी उतना ही बढ़ेगा
वो एक चीज है जिसे कहते हैं प्यार।

फलसफा जिन्दगी का सिखाता हामिद
जीवनमें पद दौलत का न आए खुमार।

हामिद सन्दलपुरी की कलम से


भावों के मोती
स्वरचित लघु कविता

विषय सुख दुख
दिनांक 30.6.18
रचयिता पूनम गोयल
सुख दुख जीवन के पहलू ,
कभी सुख आए , कभी दुख आए !
जीवन में इनकी कीमत ,
हमें दोनों ही समझा कर जाएं !!
दुख न हो , तो सुख का अहसास न कर पाएं !
और सुख न आए , तो दुख सहने की क्षमता कैसे पाएं ?
यह धूप-छाँव ही जीवन की कहानी है ! 
सच्चाई है यही सबकी , जो किसी ने जानी , किसी ने न जानी है !!



सुख दुख माया 
कर्म की छाया
उलझा प्राणी 
जीवन गंवाया

जैसा बोया
वैसा पाया
फिर काहे को
आंसू बहाया

सुख में पाप क्यों 
दुःख में संताप क्यों
कर्म का लेखा ही है 
जो सामने आया

ना गुरूर कर 
सुख के दिनों का
ये तो धूप छांव है 
बस सत्कर्म कर

स्वरचित : मिलन जैन


 सुख दुःख जीवन के दो रंग
एक बिना दूजा बदरंग
दोनों चलते आगे पीछे

बदलें जीने का ये ढंग।
दिन के बाद रात है आती
जीवन के पहलू समझाती
वैसे दुःख भी सुख को लाता
दोनों हैं जीवन के अंग।
दुःख में धैर्य जो रखते हैं
स्वाद सफलता का चखते हैं
गाड़ी के दो पहिये सुख दुःख
एक है डोर तो एक पतंग।



जीवन के राहों में सुख छाँव है 
यह नहीं हमारी मंजिल है
सुख में जो लिप्त है
वो धरा में सुप्त है

दुःख तपती धूप है
मिलती जीवों को ऊर्जा है
जीवन में जिसने यह पाया है 
जग उसी से उजियारा है 

सुख दुःख जीवन में पूरक हैं 
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं 
दुःख का साथी बनकर
सुख का एहसास ही अपनी जीत है

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल



सुख और ऐश से तो गद्दार जिया करते है।
ईमानदार तो दुखो के घुट पिया करते है।।

बेईमानो के लिए जेल भी होटल बन जाती है।।
ईमानदारों पर तो कानून की आंखे भी तन जाती है।
सुख-दुख का भेद वो क्या जानते है
जो कफ़न में मुर्दा नही पैसे को पहचानते है।
अधिकांश संसार तो दुखो का भंडार हो गया।
देहव्यापार व भीख मांगना बस व्यापार हो गया
इन झुटो की वजह से दुखी भी सताए जा रहे ह
कई दिन से भूखे बच्चे भी ड्रामेबाज बताये जा रहे ह
ईमानदारी का जीवन कठनाइयों भरा बताते है।।
क्योंकि दुनिया मे ईमानदार ही सताए जाते है।।
""स्वरचित---विपिन प्रधान""


जीवन का यह ताना बाना 
सुख दु:ख तो है आना-जाना 
कर्म किए जा अपने बन्दे 

क्या है खोना क्या है पाना 

सुख दु:ख का जिसे ज्ञान नही है
जिसका उसे अभिमान नही है
स्वर्ग सा जीवन जी रहा वो
इंसानो में भगवान वही है

P.k. जिसने दु:ख प्याला 
जैसे तैसे वक्त निकाला
जीवन में वो सदा सुखी है
दु:ख से फिर न पड़ता पाला


सुख-दुख
ाप-पुण्य की कर्म भूमि में
सुख-दुख ही दो पहिये है
संभल कर चलना ए मानव तू
जीवन पथ पर गहन अंधेरे है।।

नेत्र लक्ष्य पर साधे रखना
भाग्य विधाता स्वयं का बनना
सुख-दुख तो आना और जाना
इससे न तुम कभी घबराना।।

सुख-दुख तो ये धूप -छांव सी
कभी मावस तो कभी पुनों सी
गहन अंधेरे में भी देखों
टिम टिम तारों की अठखेली।।

सुख-दुख में तुम मेल बैठा कर
धूप छांव के फूल खिला कर
हार न मानो कभी दुख से
चेहरों पर मुस्कान खिला कर।

वीणा शर्मा


Sumitranandan Pant 
ीवन के अनजाने पथ पर
साँसों से चलते इस रथ पर
सुख भी है और दुख भी है
बसन्त है पतझर का रुख भी है। 

ये दोनों हमारे साथ रहते
अपनी अपनी बात कहते
सुख के सुरों में सुन्दर राग
दुखों में लेकिन उगलती आग। 

जीवन पथ पर धूप है छाॅह है
सुगन्धित श्वास है तपती आह है
कभी समतल कभी कंटीली राह है
फिर भी जीवन जीना सबकी चाह है। 

इसलिये क्यों न मनालें हम उत्सव
हमसे ही तो बनेगा सुन्दर भव
सरिता का सुन लें यदि कलरव
तो प्रेरणा मिलेगी नित नव नव।

सुख में दुख में मन का सारा खेल है
और यह भी मनोस्थिति का ही मेल है
ये कोई भी चिरस्थायी नहीं मान लें
तो दुख में नहीं कोई रेलमपेल है।



सुख-दुख 

जीवन बगिया में खिलते हैं,

सब फूल यहाँ सुख दुःख वाले। 
दोनों में जो सम रहते हैं,
वो लोग हैं असली मतवाले।
सुख में हर्षित आह्लादित हों
दुःख में भी भाव समर्पण हो 
ठहराव न हो जीवन पथ में,
चलते रहना हिम्मतवाले 
जीवन बगिया में खिलते हैं,
सब फूल यहाँ सुख दुःख वाले 
दोनों में जो सम रहते हैं वो लोग हैं असली मतवाले। 
दुःख पीड़ा दुसह व्यथित करती 
सहने का सम्बल भी भरती,
सुख हर्ष भाव है खुशियों का,
सुख दुख को सहज सहन करते 
जो होते हैं मेहनत वाले। 
जीवन बगिया में खिलते हैं 
सब फूल यहाँ सुख दुःख वाले 
दोनों में जो सम रहते हैं वो लोग हैं असली मतवाले। 

अनुराग दीक्षित



जीवन हंसकर काटिए,
चाहे सुख हो दुख हो चाहे,
आत्मबल हो जब मजबूत,
कट जाती हैं सारी राहें।
आग में जैसे कुंदन तपता,
दुख ईंसान को मजबूत बनाता,
कौन है अपना कौन पराया,
दुख ही पहचान कराता।
सुख जीवन का मिठा सपना,
रखे पाने की सब आस,
दुख के बाद जब सुख आता,
जीवन में मिलता सुखद अहसास।
क्यों रोए तू दुख को देख,
सुख-दुख तो आना जाना है,
कर दुख का सामना तूने,
मंजिल को अपनी पाना है।
स्वरचित-रेखा रविदत्त



शनिवार - 30/6/18
दैनिक लेखन 

शीर्षक -सुख दुख 

बात पते की बड़ी बता गये 
ज्ञानी ध्यानी लोग महान, 
संत महात्मा वही कराये 
सुख दुख में जो रहे समान ,
सावन हरे ना भादों सूखे, 
परम संतोषी पाये सम्मान, 
अति के सुख में झुक कर रहते 
हंस कर सबका करते मान, 
घोर विपत्ति में धीरज धरते 
सरस,हरि का करते ध्यान, 
सुख दुख दोनो आने-जाने 
चार घड़ी के बस मेहमान, 
आपहिं आप बना कर रखिए 
सारे जगत में हो गुणगान ।।

सपना सक्सेना 
स्वरचित



सुख की चाहत सबको है
दुख को चाहे न कोई
सुख संग गर ,हर कोई
दुख चाहे तो फिर सब
समान होई

दुनिया में हर चीज समान
पर कोई न चाहे अपना 
अपना दाय

अंधेरों में रहने वालों को
कब रौशन चराग मिलते हैं
उजालों की धरती पर
कब उनके पाँव पड़ते हैं

महल बनाने वाले हाथों में
कब अपनेघर के तालेहोते हैं
अन्न उपजाने वालों के तो
फाको से पाले पड़ते हैं

छत बना कर लोगों को जो
धूप-छाँव से बचाते हैं
वो खुद सर पर दुख की 
छतरी ताने रहते हैं।।

डा.नीलम..अजमेर.
स्वरचित

क्या सूरज का उगना
सुख नहीं है 
क्या कलियों का खिलना
सुख नहीं है 
क्या दुश्मनो से प्रीत करना 
सुख नहीं है 
क्या बच्चों का मुस्कुराना 
सुख नहीं है 
क्या माँ का आशीर्वाद पाना
सुख नहीं है 

अगर यह सुख नहीं है तो 
सुख क्या है 

क्या कभी किसी ने 
इसके सिवा और
कहीं सुख पाया है 

यह सच्ची बातें हैं
सुख दुःख अनुभूति है
तन है
व्याधि है 
मन है 
दुःख है 
जीवन है 
सुख दुःख है 

फिरभी सुख की चाह 
रहती है सदा जीवन में 
पर दुःख साथ रहता है
सदा जीवन में 

हकीकत है
सुख तृष्णा है 
यह सिर्फ कथा कहानी है 

सुख की चाह में
कोई काबा जाता है 
कोई काशी जाता है 
कोई वनवासी बन जाता है 
दर दर 
सुख को ढूँढता रहता है 
कहीं सुख मिलता नहीं 
कभी दुःख का 
साथ छूटता नहीं 
पड़कर सुख की तृष्णा में
जीवनभर भटकता रहता है 

सुख माया है 
सुख ममता है 
सुख मन की दुर्बलता है 
मत कर निरादर दुःख का 
तू आदमी है 
फिकर कर सिर्फ दुःख का
क्योंकि 
दुःख ही जीवन का साथी है 
सुख तो जीवन का
सिर्फ अभिलाषा है 

सुख नश्वर है 
घड़ी दो घड़ी में ही 
यह साथ छोड़ देता है 
फिर इसे क्यों ढूंढता है 

निर्बल नहीं 
निर्भय बन 
खुद में रम 
मन का ज्ञान दीप जला 
मत बेचारा बन 
अगर दुःख आग है तो 
तू इसमें तपकर कुंदन बन 
तुझमें धैर्य और साहस है 
तू जग की मुस्कान बन 
@शाको
स्वरचित




😊

Friday, June 29

"सुबह"29जून2018



रात बीती सुबह हो गई 
थरती माता धन्य हो गई 
पंछी करने लगे है कलरव 

बिटिया रानी सुबह हो गई 

रोज सुबह उठाती है
सपनो से जगाती है
ये हि मैरी प्यारी माता 
हाथों से खिलाती है

सुबह-सुबह जल्दी उठ जाती 
घर के कामों मे लग जाती 
पी के चाय के दो घूट 
सारा दिन फिर से खप जाती


रात भर आवारा बादल
गरजते बरसते सिसकते
कभी तारों को डपटते
सीने पेआकाश के घूमते रहे

घोर अंधकार का साम्राज्य
निशाचारी थे परेशान गुमसुम
जगतवत्सला पर प्रसन्नहो रही
बरस बाद तन मन की तृष्णा
थी मिट रही 

सह न पाई रवि किरण दबदबा जलद का 
प्राची से आँचल जरा -सा
सरका ,निकल पड़ी यूं
जैसे हैडमास्टर निकल पड़ता है शरारती बच्चों को डराने

किरणों के निकलते ही पंछियों की पाखे खुल गईं
मन हर्षित कलरव करने लगा ,

अंधकार दुम दबा भाग ने लगा

सुबह जब खुलकर आ गई
रौशनी चारों ओर यूं बिखर
गई ज्यूं फैल जाती है गारद
शहर में दंगे के दौरान

हर्षित फूल-पात था
सफ्फाक आसमान 
हर गली कूचे में 
स्वागत सुबह का हो रहा।।

डा.नीलम..अजमेर..
स्वरचित.



सुबह*
--------++-----

हाइकु
*
निशा वधूनी
सहमी सकुचानी
सुबह आनी
*

अल सुबह
चहकता मुंडेर
रजनी जेर
*
रश्मियां डोरी
सुबह हमजोली
सृष्टि रंगीली
*
भोर बौराया
रजनी यवनिका
फ़ाड़ के आया
*
निशा नेपथ्य
सबेरा बतियाया
क्यों सकुचाया
****
रंजना सिन्हा सैराहा



दैनिक कार्य लघु कविता
विषय सुबह

दिनांक 29.6.18
रचयिता पूनम गोयल
हर रात को इन्तजार होता है , एक उजियाली सुबह का !
सूरज के निकलने का और कुछ कर गुजरने का !!
सुबह जो हुई , तो हर कोई व्यस्त हुआ ! 
गृहणी रसोई में , गृहस्थी अपने काम-काज में ,
और दाना चुगने के लिए आकाश में पक्षियों का शोर हुआ !!
रात बनाई विधाता ने , ढेरों सपने सजाने के लिए !
और सुबह बनाई उसने , उन सपनों को साकार करने के लिए !!
सुबह का उजाला , मन में ताज़गी भर देता है !
और आसमान को भी मुठ्ठी में भर लेने की , क्षमता ला देता है !!
इसलिए तू जाग , मुसाफिर , और अपने सफर पर निकल जा ! 
इस नई सुबह के लिए ईश्वर का शुक्रियादा कर , मंजिल पर आगे बढ़ जा !!
क्योंकि रात के अन्धेरों को चीरकर , फिर एक और सुबह आई !
व भावों के मोती ---समूह के लिए कुछ नए भाव पिरो लाई !!



सुबह,सुबह सूरज की किरणे,
मुझको जब भी जगाती हैं,
मन मेरा चंचल हो जाता
स्फूर्ति सी आ जाती है

चिडियों की चहचहाहट,
मधुर संगीत सुनाती है,
फूलों के खिलने से तो सुबह,
अोर भी खूबसूरत हो जाती है,

ताजी,ताजी हवा जब बहती,
प्यारा सा सुकून दे जाती हैं,
सुबह,सुबह सूरज की किरणे,
जब भी मुझ को जगाती हैं .

स्वरचित
संगीता कुकरेती



शुक्रवार -29/6/18
दैनिक लेखन 


सुबह हुई 
🌺🌺🌺🌺

सुबह हुई सूरज चढ़ आया 
हवा ने मीठा गीत सुनाया 
झूम उठी फूलों की डाली 
उपवन की है छटा निराली 
चिटर पिटर पंछी कुछ बोले 
चलो उड़े पंखों को खोलें 
दूर गगन में उड़ते जायें 
आलस को अब दूर भगाए





)शीर्षकःसुबहःःः
प्रतिदिन सुबह की शाम होती है।
कभी कालिमा घनश्याम होती है।

करते रहें निरंन्तर प्रभु ध्यान तो,
सुबह सुखद सुंन्दर शाम होती है।

प्रार्थना हमें सहारा सुबह शाम देती है।
वतन से वफाऐं सदा सदनाम देती हैं।
महकता प्रफुल्लित रहे जीवन हमारा,
ये आशीष सदैव शुभकामनाऐं देती हैं।

नहीं सोचें परोपकार अहसान हो जाऐ।
किसी के काम आऐं इंन्सान हो जाऐं।
करलें कुछ शुभकाम तो ठीक है वरना,
क्या पता जिंंदगी का अवसान हो जाऐ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी.





" सुबह"
अंधकार को चीरते हुए,
सूर्य की किरणों का,
हो रहा धरा से मिलन,
मनभावन दृश्य ये,
उजली सुबह का,
कर रहा सृजन,
मन के भावों का,
मन को लुभाए,
ओस की बूंदे,
स्वरूप मोती का लिए
भँवरों को लुभाती,
कलियाँ ये,
जो उपवन को महकाए,
सुबह के दृश्य से,
मन मेरा हर्षित हो जाए।
स्वरचित-रेखा रविदत्त





सपनों से मच रही कलह
नहीं हो पाई थी सुलह
रात ने खींच लिया पर्दा
हो गई फिर ताज़ी सुबह।

सपने बहुत नाराज थे
बुझी हुई आवाज़ थे
कैसे सॅवारे सुर कोई
जब टूटे हुए साज़ थे।

सपने कहते हमें जीवन दो
इसके लिए अपना तन मन दो
ख़याली पुलाव से क्या है लाभ
हमें तो बस श्रम का धन दो।

सपनों की सुबह नहीं है सूर्योदय
यह तो लक्ष्यों का बस एक उदय
और तब तक रहो इनमें तन्मय
जब तक नहीं ये होते तय।

सपनों को कार्यान्वित कर दो
प्रयासों से आच्छादित कर दो
सुबह सुनहरी अवश्य आयेगी
कर्मों से बाधाओं को बाधित कर दो।


सूरज" आप सबकी नजर .............

सुबह का सूरज

समय के झंझावात ने बरस बरस में क्या बदला है
रोज रोज सुबह का सूरज, हर रोज ही ढला है!!

सरदी, गरमी, बरखा मौसम का मिजाज बदला है
कैसी भी आ जाये मुश्किल दिल अकेला चला है
जनम, मरण, परण का ये यायावर सिलसिला है
दीवारों पे टंगती तस्वीरें फिर भला कौन मिला है
रोज रोज सुबह का सूरज , हर रोज ही ढला है!!

रवि, शशि ये तारे इनको भी किस्मत ने छला है
ग्रहण में आ जाते कभी भी ऐसी घेरती कला है
आंधी, तूफान, बिजली से कायनात तक हिला है
कहर बरपाया चले गये, खाली हाथों को मला है
रोज रोज सुबह का सूरज, हर रोज ही ढला है!!

कदम, कसम, कलम यहां जब जब भी चला है
सोच समझ में जरा से भी बहके, तो खला है
समय, मौत, उमर हमें यूं अलविदा कर चला है
किसका किससे क्यूं इंतजार, कब कौन टला है
रोज रोज सुबह का सूरज हर रोज ही ढला है!!

कर्ज, मर्ज, फर्ज का फंदा भी ऐसा घालमघेला है
इसे छोटा ना समझो यारों ये बङा अलबेला है
हुस्न, रंग, जवानी के करतब में ऐसा जलवा है
डूबे भी और पार ना पाये अनसुलझा झमेला है
रोज रोज सुबह का सूरज , हर रोज ही ढला है!!

समय के झंझावात ने बरस बरस में क्या बदला है
रोज रोज सुबह का सूरज , हर रोज ही ढला है!!

-----------डा. निशा माथुर




भोर होने को थी....

बाहर की हलचल ने...
थोड़ा जल्दी जगा दिया...
देखा पड़ोस में बातें चल रही हैं...
साफ़-साफ़ सुन नहीं पा रहा था...
जिज्ञासावश बाहर निकला...
जानने को कि सब ठीक है...

अभी मैंने पडोसी के घर पाँव रखा ही था...
"शर्माजी मुबारकबाद दो हमें...घर में लक्ष्मी आयी है"
इतना कहते पडोसी ने हमें गले लगा... 
मुंह में मिठाई डाल दी....
पता चला रात १ बजे बेटी का जन्म हुआ है...
और सब ठीक है...

ब्रह्ममुहूर्त में मुंह मीठा नहीं हुआ बल्कि...
देवी के आगमन की ख़ुशी में...
मन...आत्मा तृप्त हो गयी...
काश! ऐसी सुब्ह का आगमन....
हर दिल आँगन में हो...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
age



* सुबह *
बनी रश्मि नव ज्योती 
सुन्दर स्वर्णिम प्रभात हुआ

मिटाकर तम जागा मन
सुखद सुबह नव विहान हुआ

नई रौशनी नया सबेरा
नई चेतना से मन विभोर हुआ

प्रस्फुटित सुमन महकता चमन
सुहावना सुरभित प्रभात हुआ

नया जोश नई कहानी 
नव सृजन से जग हर्षित हुआ

ईश स्मरण कर वंदन
नित कर्मों से गतिशील हुआ 

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


भोर /सुबह /सवेरे पर चंद हाइकु प्रयास 🙏
1)
देख के भोर
हरी दूब, कालीन
पसरी ओस
(2)
रवि के रथ
भोर का आगमन
साथ किरण 
(3)
भोर का प्यार
किरण की थपकी
कली मुस्काई
(4)
भोर के साथ
उठे सारे सपने
जागी आशाएँ
(5)
भोर के साथ
रवि लाता नूतन
स्वर्णिम स्वप्न
(6)
प्रातःकी वेला
नाचती प्राण वायु
बाग में मेला
(7)
भोर का रवि
बोता ऊर्जा के बीज
मन की जमीं
(8)
ना कोई शोर
भोर करे विभोर
प्राणों की ओर
(9)
पेपर वाला
सवेरे ने दौड़ाया 
जेब निवाला
(10)
दूधवाले को
सवेरे ने कराई
पेट की दौड़

''सुबह का सूरज"

रात में देखे जो सपने 
अब पूरे कर तूँ अपने 
सुबह जगाये सूरज
क्यों लगा है तूँ झपने 

कहे कि उठ जा प्यारे 
हो गये अब भुनसारे 
अब अगर सोया तूँ
मुश्किल उन्नति द्वारे 

पंछी देखो उड़ चले 
नीड़ को अपने छोड़ चले
गाते जायें गाते आयें
तूँ ही आँख मले 

उनको हम रोज जगायें 
तुझको हम रोज उठायें 
वो न आलस में डूबें 
तुझको ही थके पायें 

वो अनुशासन नही भुलाये
तुझे अनुशासन नही सुहाये 
तेरी फितरत तुझे मुबारक
मैंने युगों नियम न मिटाये 

सूरज भी नाराज हुये
गरम देखो आज हुये 
''शिवम्" समझो आगे हाल
बदले अब मिजाज हुये 

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

सुबह ना आई के शाम ना आई
किस लम्हे तेरी याद ना आई

हुए ना क्या क्या सितम तुझे क्या मालूम
जिन्दा रहे हैं किस कदर तुझे क्या मालूम
ऐ सुबह तुझे हम चिरागों से क्या वास्ता
बुझ के कैसे गये है बिखर तुझे क्या मालूम

ना दुआ कोई ना कोई दवा काम आई
जख्मों को सहलाने को हवा काम आई
ताउम्र हम यूं ही देखते रहे रस्ता तेरा
जिन्दगी में ना सुबह आई ना शाम आई

रात रात भर अपनी कहानी सुनाती रही
चांदनी भी सितारों संग गुनगुनाती रही
हमने नज़र उठा के देखा ना एक बार
सुबह दरवाजे पर खड़ी मुस्कुराती रही

एक दुआ जो चारों पहर मांगता हूं मैं
लोग कहते हैं कि बेवजह मांगता हूं मैं
मिटा दे जो भूख, दर्द, ग़रीबी के तम को
ऐसी ही तो एक सुबह मांगता हूं मैं



सुबह 
--------
फूल महकने लगे 
पंछी चहकने लगे 
हुई जब मस्जिदों में अज़ान 
धीरे-धीरे सुबह होने लगी ।

भोर का तारा छुपने लगा 
उषा आँचल फैलाने लगी
हुआ जब मन्दिरो में भजन 
जग में अंजोर होने लगा ।

लाल चुनर पहन 
सुबह निकली 
सूरज की लालिमा से 
जग लाल हुआ 
अंत हुआ अँधेरों का 
सूरज का उदय हुआ ।

इठलाते उपवन को देखो 
गुंजन करते भौंरे को देखो 
उठो अपनी निद्रा से 
सुबह के सुन्दर नजारे देखो ।

सूरज निकला ऊर्जा लाया 
नये जीवन की शुरुआत करो 
उठो, जागो, आगे बढ़ो 
थामकर रोशनी का दामन 
आसमां में उड़ान भरो ।

कोई काम असंभव नहीं होता 
अपना लक्ष्य निर्धारित करो 
सुबह देती है ऊर्जा, जोश
अपने कर्म पथ पर चलते रहो ।

सच कहता हूँ दोस्तो 
लक्ष्य उसी ने पाया है 
जो सुबह का दामन थामा है 
सुबह ही सत्य है 
सुबह ही प्रेम है 
सुबह ही धर्म है 
सुबह ही कर्म है 

जिसने सुबह को जाना है 
वही नया जीवन पाया है 
@शाको 
स्वरचित




"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...