Tuesday, June 26

"चाहत "26जून2018




"चाहत"
दिल मेरा चाहतों का समुन्द्र है,
चाहा मैंनें सब जो मेरे अंदर है,
चाहत को अपनी चाहत ही रहने दो,
जिद उसका अंजाम ना बन जाए,
तुमने चाहा हरदम,
मेरी चाहतों को मिले अंजाम,
जीवन की परेशानियों में,
खुशनुमा वो तुम्हारा अंदाज,
चाहत यही मेरी ,
तुम बनो मेरे हमराज।
स्वरचित-रेखा रविदत्त




चाहत बस सिर्फ़ एक ही चाहत है मेरी 
करती रहूं हमेशा इबादत मैं तेरी l 
जहां से दूर पार, तेरी चाहत के सहारे, 
छोड़ इस दुनिया के ये हंसी नज़ारे l 
उड़ के चली आउं मैं इस कदर 
कर पार यूं ही फ़र्श से अर्श तक का सफ़र 
तोड़ के इस पंच तत्व का ये पिंजर 
चली आउं तेरी चाहत का हाथ पकड़ l
चाहत ही पहनूं, चाहत ही ओढ़ूं 
चाहत की ही करूं सिंगार मैं l 
चाहत की चाहत बन यूं खुद ही 
तेरी चाहत में समा जाउं मैं l




िलती है बहुत राहत
जब पूरी होती है चाहत
लेकिन चाहतें बदलतीं अनवरत
और हम होते इनके आगे नत। 

चाहतों का सदा बढ़ता अंबार
और इसी में व्यस्त रहता संसार
यही प्रकृति के चक्रव्यूह का आधार 
भूल जाता है मनुष्य भी वह निराकार। 

चाहतों ने ही बढ़ाया बाबा राज्य
चाहतों ने ही दिखाया विकृत साम्राज्य 
चाहतें कितनी बढ़ीं इनकी अविभाज्य
चाहतों ने ही गिराई फिर इन पर गाज़। 

चाहतों को रखना होगा कम
वरना बढ़ाएंगी ये अपने ग़म
वैसे तो यह शिक्षा पुरानी है
लेकिन यह हर युग की नादानी है।

अनगिनत चाहतें बिगड़ता रुप
बूढ़े लोगों को समझते तपती धूप
बचपन बस्तों के बोझ से ऊब गया
अंक मिले कम और घर का चिराग बुझ गया।

कोचिंग का इतना बढ़ गया शोर
थक गया बेचारा हर किशोर
चाहतों ने अज़ब सी फसल उगा दी
अब कैसे नाचे मन का मोर।





परवाना हूं मैं मुझको तो जल जाने की चाहत है

तू चाहत है मेरी हमदम तूझे पाने की चाहत है
नहीं कुछ और खुदा से हमने बस मांगा है इतना सा
तेरे संग जी ना पाये तो फिर मर जाने की चाहत है

हालात ना और अब संजीदा होने पाये
चिंगारी ना कोई और जिन्दा होने पाये
लौट जा तू अपने घर मेरी जिंदगी
ऐसा ना हो के चाहत शर्मिन्दा होने पाये

चाहत थी मेरी क्या मुझे क्या बना दिया
शीशा था मुझको बनना पत्थर बना दिया
पक्षी वो तड़प के मेरे आगे ही मर गया
बनना था मुझको झील समन्दर बना दिया



जिनकी चाहत में तडपता रहा उम्र भर। 
जिनकी खातिर, मेै इतना परेशान था। 

इस कहानी पे मेरी गजल गाने वाले। 
उस जवानी पे मेरी रहम खाने वाले। 
अब सभी पूछते हैं मेरी कब्र से यह। 
मौत से इतनी जल्दी भी क्या काम था। 

जिनकी चाहत में तडपता रहा उम्र भर। 
जिनकी खातिर, मेै इतना परेशान था। 

था न इतना यकीं, धोखा इतना हसीं। 
रेशमी फन्द में जाके जां थी फंसी । 
मैंने समझा था जिसे खुशियों की लडी। 
वो मेरी मौत का ही तो सब सामान था। 

जिनकी चाहत में तडपता रहा उम्र भर। 
जिनकी खातिर, मेै इतना परेशान था। 

विपिन सोहल





तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा,

कितने रंगीन सपने सजाता रहा। 
मन में उठती उमंगों का इक जोश था,
तब कहाँ वक्त का कुछ हमें होश था
दिन-व-दिन देखने को तरसती नज़र,
तुझको पाने को रव को मनाता रहा
तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा 
कितने रंगीन सपने सजाता रहा। 
रोज का ये अहम एक था सिलसिला,
आज ना कोई शिकवा नहीं है गिला,
चाहने से कहीं कोई कब है मिला
वो ही मिलता जिसे रव मिलाता रहा,
तेरी चाहत लिए गुनगुनाता रहा 
कितने रंगीन सपने सजाता रहा 

अनुराग दीक्षित





आज के विषय " चाहत " पर मेरी ये रचना आप सबकी नजर......." छोटी सी बच्ची बन जाऊँ"....यही प्यारी सी एक चाहत है ........... 
छोटी सी बच्ची बन जाऊं!!


कभी कभी दिल करता है छोटी सी बच्ची बन जाऊं
छोङ तमाशा दुनियादारी का मां के आंचल छुप जाऊं!!

भागूं, दौङूं, उङूं पंतग सी, ख्वाहिशों के पेच लङाऊं
छज्जे उपर छम छमके नाचूं, मस्त मोरनी बन जाऊं!!

मां की गोदी के सिरहाने, माथे की चम्पी करवाऊं
लम्बे लम्बे बालों की, कस के दो चोटी कर आऊं!!

पापा के आंगन में, भइया बहना के लाङ लङाऊं
बच्चों की टोली को लेकर ,गलियों में शोर मचाऊं!!

झूला झूलूं पेंग बढाऊं, आसमान को छू के आऊं
पेङो की फुनगी पे चढके, बादल हाथों में ले आऊं!!

चंदा पाने का सपना देखूं ,तारों को झोली भर लाऊं 
थोङा है थोङे की जरूरत, ना सोचूं खुश हो जाऊं!!

मम्मी की साङी पहनूं ,गुड्डे गुङिया का ब्याह रचाऊं
झूठ मूठ के सजे बराती, मिलकर ज्यौनार जीमाऊं!!

मै मस्त कंलदर सी बनके, बेफिक्री का हुङदंग मचाऊं 
बीते कल की घङी में घुसके, इक लम्हा बचपन लाऊं!!

कभी कभी दिल करता है छोटी सी बच्ची बन जाऊं
छोङ तमाशा दुनियादारी का मां के आंचल छुप जाऊं!!

------ डा. निशा माथुर






गीत 
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रात अकेली बिरहन तरसे,
ऐसे मैं जो तुम आ जाते 
कितने सावन मेघ न बरसे ,
दिल का अपने हाल सुनाते ।

किसको सुनाऊं सारी वो बातें ,
बनके धुआं जो दिल में सुलगे
आग लगाएं चांदनी रातें ,
डाल दिया ये किस मुश्किल में 
लाख मनाऊं एक न माने
,दिल में कितने गम सौगातें ।

तेरी चाहत ने है बनाया 
मुझको मूरत एक पत्थर की,
खुद ही खुद के दुश्मन हैं हम 
छोटी सी ये बात न समझी ,
जान जो जाते तेरे इरादे
कदम कभी ना आगे बढाते ।।

सपना सक्सेना 
स्वरचित







चाहत
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"दिल है दिल में चाहत है 
चाहत में उल्फ़त है 
उल्फ़त में वफा है 
ऐ इश्क नादाँ
तुम्हें क्या बताऊँ 
जिनसे मिलने के लिए 
हरपल तरसता हूँ 
आज वो आनेवाले हैं।"

"तेरी वफाओं की आरजू की 
मैं मन्नतें बन गया होता 
तो चाहत की जिन्दगी की 
मैं भी तकदीर बन गया होता"

"राह में अकेले 
चलने की आदत है 
नित्य नये पथ 
गढ़ने की चाहत है 
मिले नहीं तम
किसी मोड़ पे 
किसी पथिक को
हर मोड़ पे विभा 
बिछाने की चाहत है" 

"आयना है वो 
मेरी चाहत का 
मेरी वफाओं की 
सच्चाई बताता है 
चेहरे का रंग नहीं 
मेरे दिल की 
हकीकत बताता है "

" इंसान की चाहत होती है 
हर मन्नत में खुदा मिले 
पर खुदा की चाहत होती है 
कोई तो इंसान मिले"
@शाको
स्वरचित







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