जब जब आए शाम सुहानी , तेरी याद की बदली छाए
सोई कसक बैचेन करे जब , साहिल में कोई लहर समाए
कैसे गुजरे पल बिरहा के, तू क्या जाने ओ बेदर्दी
नाम पुकारू राह निहारू , दिल पर मेरे क्या न गुजरी
भेजूं कैसे तुझको संदेसा कौन खबर जो तेरी लाए
आके जरा तू देख तो ले , तुझ बिन कितना तन्हा हूं
तेरा गम है आँखें नम है , हाल है क्या ये कैसे कहूं
और किसी को मैं न जानू, राह मेरी बस तुझ तक जाए
तेरी बातें तेरी यादें ,और मुझे अब काम ही क्या है
गीत बना के लब पे सजाऊं, छाया ऐसा कैसा नशा है
दुनिया तेरे नाम से जाने, आते-जाते ताने सुनाये
"गीत "
दिनांक 17/6/2018
"गीत"
काश यह गुजरता वक्त, जरा तो यहीं थम जाए
जी तो लें जी भरकर, कहीं यूँ ही न फिसल जाए
अरमानों को थोड़ी हवा, अब तो लगने दो
बहुत काटा बंदिशों को, जरा उड़ान भरने दो
सो गए थे सपने जो मेरे, उन्हें जरा जगमगाने दो
बहुत जीये सभी के लिए, जरा खुद को जीने दो
बहुत हो गईं तेरी मर्जी, तेरी बातों में न आऊंगी
जीऊंगी खुद के लिए भी, और मेरे सपने जिलाऊंगी
बीत गए जो दिन मेरे, वो फिर लौट न आयेंगे
नए सपने अपने लिए, अब मैं खुद सजाऊंगी
जीऊंगी अपने अरमां को, उन्हें परवाज दूंगी मैं
जिया जो क्षण नहीं अब तलक, उन्हें मैं जी ही जाऊँगी
नये राग भरकर मै, नये भाव से नया गीत गाऊंगी
"समिश्रा "
स्वरचित कविताएँ द्वारा साधना मिश्रा
कापी राइट कानून के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित
लिखने को तो मैं लिखता , पर पता नही लिखवाता कौन
शायद कोई समाया दिल में रहता है जो केवल मौन ।।
कब सुरताल मिले उसका कब हो जाये वो मुखर
वो ही सच्चा यार है मेरा वो ही पूछे मेरी शुकर ।।
गर गमगीन हुआ तो वो गम के गीत बनाता है ।।
गर उलझन में हुआ तो उलझन वो सुलझाता है ।।
हँसने को भी नित नये रास्ते वो ही सुझाता है
गीतकार तो वही हुआ पर रूप न वो दिखाता है ।।
उससे मेल मिलाने में प्रियतम का हाथ कहलाता है
और रहा बेदर्द जमाना जो बखूबी ये कार्य निभाता है ।।
दर्द कसक ही तो ''शिवम" गीतों को उकसाता है
ये ही कवि की पूँजी होती जिससे वो व्यापार चलाता है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
उसी गीत से प्यार मुझे है।
उसी गीत की चाह मुझे है।
विद्यमान अत्युत्तम जिसमें
लोकप्रिय गुण मिले मुझे हैं।
जो लोगों की पीर सुना दे।
हमसब की तकदीर बना दे।
नींद भरे नैनों में भी जो,
आत्मसुख की लहर दिखा दे।
मानवता जो जाग्रत कर दे।
सुप्त उरों में ताकत भर दे।
सभी हृदय में प्रेम बसाकर,
सच्चा प्रेम हमें सिखला दे।
जो अहम को तुरंन्त भुला दे।
स्वाभिमान की याद दिला दें।
और अनेकों खुशियों को भी,
परोपकार के लिए छुडा दे।
जिसके स्वर मे सुंन्दरता हो।
जिसकी लय में तत्परता हो।
साथ साथ में हम सबके भी,
जिसका मतलव सर्व शांति हो।
जो लोगों में प्रीति बढा दे।
मुर्दा दिल में जान डाल दे।
साहस और शौर्य से संचित,
हर मानस में फिर से बल दे।
जो हवा में प्यार घोल दे।
हर मौसम सुख का कर दे।
दुनिया में नित नूतनता हो,
ऐसी अलौकिक रचना करदे।
जनजन को जो मृदु वाणी दे।
बिष को जो अमृत जैसा करदे।
संसार के रगडों झगडों को जो,
नीर क्षीर सा पल भर में कर दे।
सुनें जो अश्रु मोती बन जाऐं।
करूणा की नदियां वह जाऐं।
सुनकर जिसको रोते चेहरे,
मुस्काते हमको दिख जाऐं।
मातृभूमि की जिसमें जय हो।
दुश्मन को सुनते ही भय हो।
निज राष्ट्र की शानोशौकत की ,
सबसे सुंन्दर जिसमें जय हो
उसी गीत को साथी सच्चा गीत समझता हूँ।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
मैं तन्हाई में भी गीत गाता हूँ
हों मुश्किल हलात् कितना भी
दिल से मधुर गीत गाता हूँ
सिर्फ काँटो से ही पथ रूकते नहीं
सिर्फ दीप से ही जग जगमगाता नहीं
हौसले नहीं तो संभव नहीं चाँद छूने का
है हौसला जहाँ
वहीं आसमां की ऊँचाई नप जाती है
मैं उजड़ा वीरान प्राची-मरू पर जिससे
तुम मेरी हर बस्ती आबाद करो
तुम मत ------------
मैं तन्हाई -----------
अपनत्व से ही जिन्दगी सदा महकती है
दुख की घड़ी में भी शहनाई सी लगती है
मुसीबतों से ही अपनो की पहचान होती है
महफ़िल का चमन मिलने से ही खुश्बूदार होता है
कंठ से स्वर निकलता है मधुर मिलन से ही
तुम आहिस्ता-आहिस्ता उजड़ा चमन सींचो
तुम मत-------
मैं तन्हाई -------
मैं छिन चमन से
जिन्दगी लाया हूँ
फूल पत्थर पर रख
मैं रोया हूँ
है बहुत छीना-झपटी जिन्दगी में
दौड़ तकदीर से लगाया हूँ
सौ बार मंदिर की चौखट
चुम आया हूँ
है नहीं स्वीकार इंतजार अपनी भी
तुम मत मुझ पे ऐतबार करो
तुम मत------
मैं तन्हाई --------
मैं मांझी टूटी-फूटी कश्ती चलाता हूँ
तूफानो से लड़ भंवर पार करता हूँ
वह रोकता मुझे बड़ी बड़ी तरंगो से
मैं हौंसलो से आगे बढ़ता जाता हूँ
मैं जीत सकूँ तुम्हें भी मुस्कुराकर जिससे
तुम मत मेरा इस तरह से इंतजार करो
तुम मत ------
मैं तन्हाई -----
@शाको
स्वरचित
पिया मिलन के गीत मैं गाऊं कर
सोलह श्रृंगार
प्रीत के रंग में रंगती जाऊं मैं
नखरीली नार
मैं सावन का गीत पिया जी
तुम मेरा अंदाज
बन रागिनी भाव सजाऊँ ....२
मैं प्रीतम के द्वार
पिया जी
पिया मिलन के गीत मैं गाऊं कर
सोलह श्रृंगार
प्रीत के रंग में रंगती जाऊं मैं
नखरीली नार
बैरन रतियां डसे पिया जी कजरा बह बह जाए
बन बैरागी मोहे सताए ....२
तोहे लाज शरम न आए
पिया जी
पिया मिलन के गीत मैं गाऊं कर
सोलह श्रृंगार
प्रीत के रंग में रंगती जाऊं मैं
नखरीली नार
बदरा बरसे बिजरी कड़के
जियरा मोरा तरसे
राग मल्हारी बन बासंती ..२
क्यूं ना मुझपे बरसे
पिया जी
पिया मिलन के गीत मैं गाऊं कर
सोलह श्रृंगार
प्रीत के रंग में रंगती जाऊं मैं
नखरीली नार
तुम मेरा श्रृंगार पिया जी तुम मेरा अधिकार
तुझ बिन जीवन रास न आए....२
सब लागे बेकार
पिया जी
पिया मिलन के गीत मैं गाऊं कर
सोलह श्रृंगार
प्रीत के रंग में रंगती जाऊं मैं
नखरीली नार
स्वरचित : मिलन जैन
पूरे जीवन का वृतान्त
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गीत
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जीवन स्वयम ही एक गीत है
मद्धम मद्धम बजता संगीत है
बचपन में माॅ की लोरी थी
अपनी तो सीनाजोरी थी
सब लोग ही बलायें लेते थे
गोद में घुमाये रहते थे।
किशोरावस्था तो नादानी थी
प्रतीक्षारत चपल ज़वानी थी
यौवन में काली जुल्फों के बनते गीत
इच्छा होती बन जाये कोई अभिन्न मीत
निखरे दिनोंदिन सुनहरी प्रीत
न रहे हार और न रहे जीत।
अलंकरणों के मधुर छन्दों में
उपमाओं के अनुपम मकरन्दों में
अपनी मलिका का लावण्य ढालूॅ
मन की नगरी सुरम्य बना लूॅ।
भौंरे की गुन गुन वाली बात
कर लेती कली को आत्मसात
बादल की चूमती झूमती बरसात
स्पर्श करती बूंदों से धरती के गात।
फिर एक कली सज संवर कर
श्रृंगारित हो निखर निखर कर
जीवन के नये गीतों में ढलकर
परिणय की उमंगों मे भरकर।
नये नये उपवन में गीत गाती
हँसती जाती और लजाती
फूल कलियों से इसे सजाती
ठुमुक ठमुक कर बतियाती।
उभरते फिर बचपन के गीत
गुड्डी गुड़िया की शादी की रीत
गूंजता फिर तुतलाता गीत
बेटी बेटे निभाते इनकी प्रीत।
ढलती आयु का भी अनुपम गीत
पोतियाॅ बनीं निकटतम मीत
इनकी अलौकिक निश्छल प्रीत
सबसे मधुर बस यही संगीत।
तुतलाते तुतलाते मधुर राग
हर मौसम और हर दिन फाग
महकते चारों और पराग
यह जीवन का सुन्दर भाग।
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