II कुर्सी II
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
तेरे जन्म पे मैं बलिहारी है...
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
अपना तेरा कोई धर्म नहीं...
फिर भी दंगे हो जाए हैं...
पल में दोस्त दुश्मन बनें...
दुश्मन दोस्त हो जाए है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
अनपढ़ हो या हो विद्वान्...
तू सबको ही आसन देती है...
तेरे मोह से वो भी न बच पाए...
जो ठेका नैतिकता का लेते हैं...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
समय के साथ है तू भी बदली...
नाटी, लंबी, मोटी कभी पतली...
हो कैसी भी तुम दिखती पर...
लगती फिर भी प्यारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
कभी सजाया शिक्षक ने तो...
कभी चोरों का मान बढ़ा...
कभी नारियल से पूजा तुमको...
कभी संसद में उछाल दिया...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
समय समय के देव विराजे...
मनुष्य, राक्षस गण भी साजे...
लालच तुझ को पाने को...
हर युग गए हथकंडे साधे...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
तुझको सब अपनाना चाहें...
नेता वसीयत में पाना चाहें...
जो होता है साइकिल सवार..
उसको तू दिलाती फरारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
जिसको तेरा ही मोह रहेगा...
प्रजा से उसका विछोह रहेगा...
बैठे कोई नैतिक धनवान...
फिर होगा सबका कल्याण....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
II मौलिक - सी.एम्. शर्मा II
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
तेरे जन्म पे मैं बलिहारी है...
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
अपना तेरा कोई धर्म नहीं...
फिर भी दंगे हो जाए हैं...
पल में दोस्त दुश्मन बनें...
दुश्मन दोस्त हो जाए है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
अनपढ़ हो या हो विद्वान्...
तू सबको ही आसन देती है...
तेरे मोह से वो भी न बच पाए...
जो ठेका नैतिकता का लेते हैं...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
समय के साथ है तू भी बदली...
नाटी, लंबी, मोटी कभी पतली...
हो कैसी भी तुम दिखती पर...
लगती फिर भी प्यारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
कभी सजाया शिक्षक ने तो...
कभी चोरों का मान बढ़ा...
कभी नारियल से पूजा तुमको...
कभी संसद में उछाल दिया...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
समय समय के देव विराजे...
मनुष्य, राक्षस गण भी साजे...
लालच तुझ को पाने को...
हर युग गए हथकंडे साधे...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
तुझको सब अपनाना चाहें...
नेता वसीयत में पाना चाहें...
जो होता है साइकिल सवार..
उसको तू दिलाती फरारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
जिसको तेरा ही मोह रहेगा...
प्रजा से उसका विछोह रहेगा...
बैठे कोई नैतिक धनवान...
फिर होगा सबका कल्याण....
हे कुर्सी तू बहुत ही प्यारी है...
तेरी लीला बहुत न्यारी है....
II मौलिक - सी.एम्. शर्मा II
सब रत्नों से न्यारी कुर्सी।
नख से शिख तक रमी हुई।
नेता जी की बीमारी कुर्सी।
घड़ियाली आंसू का सावन।
लाज शर्म सब हारी कुर्सी।
चीत्कार जनमानस करता।
ये सुने नहीं बदकारी कुर्सी।
झूठे दर्प आत्मउत्कण्ठाएँ।
है नशा और खुमारी कुर्सी।
हरेक वादा एक झूठा दावा।
है शोषण की तैयारी कुर्सी।
नफरत की खेती करती है।
विष बेल की क्यारी कुर्सी।
हिस्स हिस्स सबका हिस्सा।
कर फुफकार डकारी कुर्सी।
विपिन सोहल
12-6-2018
कुर्सीकुर्सी का झमेला बड़ा अलबेला
इस के पीछे बड़ा ठेलम ठेला।।
मन को भाती लक्कड़ की कुर्सी
आज है साथ,कल हाथों से फिसली।।
इसका स्वभाव बड़ा मस्तमौला
आज साफ सुथरा, कल होगा मैला।।
इसकी महिमा सबने है जानी
सब पीना चाहे इसका ही पानी ।।
नेता की कुर्सी, महिमा अपार
बंद आँखों से देखो इसका व्यापार।।
पापा की कुर्सी है सबसे प्यारी
बच्चों ने घूमी ये दुनिया सारी।।
शिक्षक की कुर्सी, आंखों सा वार
छात्र बेचते,रट्टू तोते सा हाल।।
पति की कुर्सी ताताथैया करती
दूर न जाना,सैया मैं तुझ बिन मरती।।
दादू की कुर्सी ,डंडों सा वार
पापा तो हारे,पौत्र निहाल।।
कुर्सी का होना,हाय रब्बा रोना
कब हिल डुल जाए,इसका भी रोना।।
बिन कुर्सी के,मैं तो महाराजा
इधर बिछोना और उधर बिछोना।।
वीणा शर्मा
बात बड़ी है कुर्सी की
🔸🔸🔸🔸🔸🔸
जिसको देखो नचा रही है, बात बड़ी है कुर्सी की
आंख कान सब बंद पड़े, औकात बड़ी है कुर्सी की
एक तुम सारे भूखे नंगे रोटी दाल में लुट गये
जरा वजीर ने किया इशारा खड़े खड़े ही पिट गये
चुप रहो बस मुंह मत खोलो, जात बड़ी है कुर्सी की
बात बडी है कुर्सी की
इसे बिठाया उसे गिराया हरदम रेलमपेल नयी
जोड तोड़ के ठोक ठाक के चला रहे है रेल नयी
हाथ जोड़कर कांप रहे, सौगात बड़ी है कुर्सी की
बात बडी है कुर्सी की
पागल होकर नोंच रहे एक दूजे को चौराहे पर
इसको मारा उसको फूंका लाचार लाज चौराहे पर
अभी वक्त है बचकर रहना, घात बड़ी है कुर्सी की
बात बड़ी है कुर्सी की
कुर्सी
पद और कुर्सी बड़ी महान होती हैं
चमचों की गीता और पुराण होती है
पूजी जाती हैं नौकरशाही में
कलियुग में ये भी भगवान होतीं हैं।
कुछ कुर्सियों पे मोह का गोंद लगा होता है
एक बार बैठे तो उठना कठिन होता है
कहीं कुर्सी रेस का समाँ होता है
मौका ताड़ते ही उसे कब्जा लेता है
कुछ कुर्सियों पर पहिए होते हैं
जिन पर बैठकर नीयत फिसलती है
कुछ कुर्सियों का वजन इतना होता है
आदर्शों को ढ़ोना बड़ा मुश्किल होता है
कुछ कुर्सियां बड़ी गरीब होती है
रिश्वत के पैसों से अमीर होती है
तो कुछ कुर्सियां इतनी खुद्दार होती है
कि बेईमानी की आँधी में टिकी रहती है
कुर्सियों की महिमा बड़ी न्यारी है
कुछ को इस पर बैठते ही आती खुमारी है
पद और शक्ति का प्रतीक है कुर्सी
किसी के लिए दौड़ या मौज है कुर्सी
तो कहीं सेवा ,समर्पण के पायों पे टिकी है कुर्सी
किस्सा कुर्सी का।
है बड़ा ही मजेदार,
किस्सा कुर्सी का।।
जिसको मिलती,
वो रहे मौज में।
जो ना पाये,
वो रोता है।।
जग की यही,
रीत है भैय्या,
कोई पाता,
कोई खोता है,
है महिमा अपरम्पार,
किस्सा कुर्सी का..
है बड़ा ही मजेदार,
किस्सा कुर्सी का...
नेता हो या अफसर,
सब कुर्सी के दीवाने है।
जल्दी से हम भरें तिजोरी,
मन में बस यही ठाने है।।
है बड़ा ही रसदार,
किस्सा कुर्सी का..
चोर हुये थानेदार
किस्सा कुर्सी का....
पर कुछ -कुछ ऐसे,
लोग है जग में,
जो मर्यादा को जाने हैं।
कुर्सी का नही मोह है उनको,
बस कर्म को पहचाने है।।
यही है तारंतार,
किस्सा कुर्सी का...
सुनलो ये सरकार ,
किस्सा कुर्सी का...
कुर्सी मैया तू ही भगवान।
करते तेरी पूजा इंसान।
आदिकाल से है ये प्यारी,
इस पर मरते देव सुजान।
जब भी कोई तपस्या करते
इंन्द्र देव डरते कुर्सी जाने से।
पता नहीं कितने घबराते हैं,
ये अपनी कुर्सी छिन जाने से।
तपस्वी तपस्या करना नहीं छोडे
इधर उधर कुर्सी पाने ही डोलें।
कुर्सी ही अब जैसे सब जीवन,
कुर्सी के पीछे ही हम होले।
कुर्सी तेरी महिमा अति न्यारी
हे तू माई सबको ही भाती।
तू कहीं छूट फूट जाऐ तो माते,
हमको सचमुच बहुत रूलाती।
नेताओं को तू जान से प्यारी।
अफसरशाही की राजदुलारी।
तेरी महिमा मै कबतक गाऊँ,
है तेरी गरिमा निपट निराली।
तेरे आगे सब शीश झुकाते।
कुछ अनपढ बैठे हमें रूलाते।
ककहरा तक जाने नहीं जो
बैठ के तुझ पर रौव दिखाते।
रहे सलामत अपनी कुर्सी ,
पांच साल पहले थोडे झुक जाते।
पा जाते जब ये फिर से कुर्सी,
यह हमें लूटते हम फिर लुट जाते।
अब तो छोडें पिछलग्गू बनना
इनकी मीठी चुपडी बातों में आना।
अपना उल्लू सीधा करते हैं सब,
अब कुछ तो अपना दिमाग लगाना।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र
जय जय श्री राम राम जी।
शीर्षक: कुर्सी
कुर्सी महान इंसान हैवान
कौन करेगा अब कल्यान
कुर्सी बड़ी इंसान है बोना
ठोके छाती बने नमूना
कुर्सीआस कुर्सी निरास
गौण हो गए सब अहसास
कुर्सी जीत कुर्सी हार
तुच्छ हो गए सब विचार
कुर्सी प्रेम कुर्सी प्रीत
रास रचाए बनकर मीत
छीना झपटी रेलमपेल
संसद बनी कुर्सी का खेल
मन में खोट कुर्सी रिमोट
दो पैसे में बिकते वोट
अमीर सिंचते गरीब रिसते
कुर्सी की आग में सारे पिसते
ना कोई जाति ना कोई धर्म
अपराध की जननी करे अधर्म
कुर्सी मान कुर्सी मनवार
गठबंधन करके पहने ताज
ऊंचे वादे ऊंचे लोग
बह गए सारे मिले जो वोट
कुर्सी मिली नेता तर गए
वादे सारे गधे चर गए
कुर्सी मिलते ही हर हर गंगे
इस हम्माम में सारे नंगे
कुर्सी आन कुर्सी शान
झण्डे गाड़े खींचे प्राण
स्वार्थ का कीड़ा गदर मचाए
तपती जनता शोर मचाए
विकास ख्याली कोष सवाली
पनपे नेता जनता खाली
जनता प्यासी मन उदासी
कुर्सी जीती मानवता हारी
बेचारी कुर्सी प्राण बचाए
बदनाम जिन्दगी किसे बताए
विकसित देश बने बलवान
कुर्सी में सब सींचो प्राण
स्वरचित : मिलन जैन
"कुर्सी की तो बात निराली
ता-ता थैया नचाये ये भैया।
जो एक बार कुर्सी पर बैठे जाये।
फेविकोल का जोड़ लग जाये।
इस पर बैठने वाले का तो आर्दश
गाँधी जी के तीनों बंदर परन्तु
उल्टा इसका वे अर्थ लगाते।
सच्चाई को तो वे देख ही नही पाये।
सच्ची बात वे सुन नही पाये।
नाही सच्चाई वे बोल ही पाते।
दूर से लागे ये कुर्सी है हीरे मोती जरे।
पर होते है इसमे काँटे भरे।
कुर्सी पर बैठ कर कर ले जो न्याय की बात।
तो हो जाये रामराज्य की बात।
कुर्सी की महिमा तो सभी है जाने
इसके मोह को कोई न त्यागे।
बाप बड़ा न भैया।
हर रिश्ते पर भारी कुर्सी है भैया।
ये तो है अलादीन का चिराग
मिल जाये तो खुल जाये
खजानों का पिटारा हर बार।
जो मिल जाये मुझे कुर्सी आज
रंक से राजा मै भी बन जाऊँ आज।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
आज के विषय " कुर्सी" पर मेरी एक हास्य रचना
" ठिकरिया के बापू " आपकी नजर म्हारा ठीकरिया के बापू
आछी थारी प्रजातन्त्र सरकार
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
पहने कुरता टोपी खादीदार
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
कुरसी ही थारौ परिवार
थानै सिक्कां री दरकार
थारो डबल डबल किरदार
थांकी घरां नहीं चले हुंकार
इब थारे घर छै म्हारी सरकार,
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू !!
आछी थारी प्रजातन्त्र सरकार
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
चुनावी वोटया री मनवार
चैलया चापङ री भरमार
कदै ना मानो अपनी हार,
जलेबी जइंया भोलो भरतार
थै, बैपेंदी लोटयां री टंकार
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
आछी थारी प्रजातन्त्र सरकार
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
थारी छैल छबीली नार
थां से ही म्हारा सिणगार
थै नैया मैं थारी पतवार
जोरयां ज्यूं सुनामी धार
थारी नखराली बरछी कटार,
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
आछी थारी प्रजातन्त्र सरकार
अजी म्हारा ठीकरिया के बापू!!
----- डा.निशा माथुर
"कुर्सी"
चाहत सत्ता की,
सतयुग से चलती आई,
वहाँ मंथरा ने आग लगाई,
द्वापर में कुर्सी(राजगद्धी) की,
चाहत ने महाभारत रचाई,
ईंसानों की क्या बात करें,
कुर्सी ने तो ईंद्र की नींद चुराई,
मची हर तरफ लड़ाई है,
पाने के लिए वोट,
जोड़े हाथ जनता में,
पाते ही कुर्सी,
जनता हुई पराई,
नहीं जानते जिसको,
हो रही आज जय जयकार,
कुर्सी की बदोलत,
कमाए दौलत बेशुमार
स्वरचित-रेखा रविदत्त
इससे चलती दुनिया दारी
इसके पीछे लोग है पागल
हर तबके के नर ओर नारी
कुर्सी ताकत देती है
बाकी सब ले लेती है
अपने और पराये रिश्ते
सभी कुछ हर लेती है
नैतिकता और मानवता
सभी छोड़ चले जाते है
ताकत के संग अंहकार
सभी दुर्गुण आ जाते है
P.k. अफसर कुर्सी पर
काफी रोब जमाते है
पढ़े-लिखे अच्छे अच्छे भी
नतमस्तक हो जाते है
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