*मिलन*
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धरती से आकाश का मिलन
बरखा की बूंदो में छलकता
आकाश की प्यास बुझान को
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धरती से आकाश का मिलन
बरखा की बूंदो में छलकता
आकाश की प्यास बुझान को
धरती सागर रीता करदेती है
मिलन फूल का भंवरे से
कितना गहरा गूढ़ रहा
प्यास प्रीत की खातिर
बंद पंखूड़ी में होता है
मिलन समर्पण का तीव्र
शलभ चराग का होता है
क्षण मात्र के सुख खातिर
अग्नि स्नान कर जाता है
सागर के प्रेम में डूबी
नदियां तो हर बंधन तोड़ जाती हैं / बाधाएं पर्वत सी
कितनी सबको लांघ आती हैं
प्रीत की बांसूरी मोहन की
जब राग प्रेम का गाती है
ग्वाल बाल, गोपिया सब
राधा संग लोक-लाज त्याग आतीं
मिलनयामिनी में निशा जब
अंधकारमय होता है
तब कोई हीर,शीरी,लैला,साहिबा
पिय से मिलने आती है।
डा.नीलम
मिलन फूल का भंवरे से
कितना गहरा गूढ़ रहा
प्यास प्रीत की खातिर
बंद पंखूड़ी में होता है
मिलन समर्पण का तीव्र
शलभ चराग का होता है
क्षण मात्र के सुख खातिर
अग्नि स्नान कर जाता है
सागर के प्रेम में डूबी
नदियां तो हर बंधन तोड़ जाती हैं / बाधाएं पर्वत सी
कितनी सबको लांघ आती हैं
प्रीत की बांसूरी मोहन की
जब राग प्रेम का गाती है
ग्वाल बाल, गोपिया सब
राधा संग लोक-लाज त्याग आतीं
मिलनयामिनी में निशा जब
अंधकारमय होता है
तब कोई हीर,शीरी,लैला,साहिबा
पिय से मिलने आती है।
डा.नीलम
मिलन
न है जब तेरे मिलन की आस
चाहिए हमें नहीं मधुमास !
खिलेंगे जब पतझड़ के फूल
चुभेंगे बनकर के नव शूल
भ्रमर की गुंजन धुन सुन पास
खोल देती कलिका दल न्यास
नहीं ये प्रीत नहीं परिहास
न है जब तेरे मिलन की आस
चाहिए हमें नहीं मधुमास !!
प्रीत गर तुमको है कोई भूल
झाड़ देना ज्यों लिपटी धूल
बनेंगे हम भूला इतिहास
बनो प्रियतम की प्रीत प्यास
प्रेम का मिले नया आकाश
नहीं जब तेरे मिलन की आस
चाहिए हमें नहीं मधुमास !!!
न है जब तेरे मिलन की आस
चाहिए हमें नहीं मधुमास !
खिलेंगे जब पतझड़ के फूल
चुभेंगे बनकर के नव शूल
भ्रमर की गुंजन धुन सुन पास
खोल देती कलिका दल न्यास
नहीं ये प्रीत नहीं परिहास
न है जब तेरे मिलन की आस
चाहिए हमें नहीं मधुमास !!
प्रीत गर तुमको है कोई भूल
झाड़ देना ज्यों लिपटी धूल
बनेंगे हम भूला इतिहास
बनो प्रियतम की प्रीत प्यास
प्रेम का मिले नया आकाश
नहीं जब तेरे मिलन की आस
चाहिए हमें नहीं मधुमास !!!
शीर्षक: मिलन
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
मन आंगन उत्सव छाया
बहार ले अंगडाई
निशा चमचम ओढ़ चुनरिया
रवि से मिलने आई
खुशी ओस सी बरस रही
भोर करे अगुवाई
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
मन्दिर घण्ट मंगल गाएं
कोयल ने कूक लगाई
रुत सतरंगी ख्वाब सजाए
धरा पर बासंती छाई
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
रूत फागुनी देख पिया जी
जियरा मोरा तड़पे
पिया मिलन के प्यासे नैना
मेघा जैसे बरसे
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
कर सोलह श्रृंगार पिया जी
प्रीत मिलन धुन गाऊँ
तुम संग घर आंगन महके
नित मधुमास मनाऊं
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
मन आंगन उत्सव छाया
बहार ले अंगडाई
स्वरचित : मिलन जैन
दिनांक : 27 जून 2018
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
मन आंगन उत्सव छाया
बहार ले अंगडाई
निशा चमचम ओढ़ चुनरिया
रवि से मिलने आई
खुशी ओस सी बरस रही
भोर करे अगुवाई
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
मन्दिर घण्ट मंगल गाएं
कोयल ने कूक लगाई
रुत सतरंगी ख्वाब सजाए
धरा पर बासंती छाई
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
रूत फागुनी देख पिया जी
जियरा मोरा तड़पे
पिया मिलन के प्यासे नैना
मेघा जैसे बरसे
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
कर सोलह श्रृंगार पिया जी
प्रीत मिलन धुन गाऊँ
तुम संग घर आंगन महके
नित मधुमास मनाऊं
आई मिलन की बेला
हृदय बजे शहनाई
मन आंगन उत्सव छाया
बहार ले अंगडाई
स्वरचित : मिलन जैन
दिनांक : 27 जून 2018
विषय-मिलन
विधा-गीत
रचयिता-पूनम गोयल
गीत
तुझे इतना प्यार कर लूँ , तुझे इतना प्यार कर लूँ !
जीवन निसार कर लूँ , जीवन निसार कर लूँ !!
१-ना जाने , कब ? सफर ये , ज़िन्दगानी का खत्म हो !
ना जाने , कब ? ये सांसों की डोर , तन से गुम हो !!
उससे भी पहले मैं तो , इज़हार-ए-इश्क कर लूँ !
तुझे इतना.....................,
२-छोटी मिलन की घड़ियाँ , बड़ी लम्बी है जुदाई !
किन मुश्किलों के बाद , ये सुहानी बेला आई !!
मैं समय को क़ैद करके , इन मुठ्ठियों में भर लूँ !
तुझे इतना.....................
३-जानें क्यों ? वक्त लेता , है इतने इम्तिहान !
हो जाते हैं फनाँ फिर , कितने दिल-ओ-जान !!
जी-भर के आज़ तेरा , याराँ दीदार कर लूँ !
तुझे इतना...................
" सांस सांस चन्दन हो गयी ...आप सबकी नजर .....................साँस साँस चंदन हो गयी
मैं! नीर भरी कुंज लतिका सी
साँस साँस महकी चंदन हो गयी
छुई अनछुई नवेली कृतिका सी
पिय से लिपटन भुजंग हो गयी!
अंगनाई पुरवाई महके मल्हार सी
रूप रूप दर्पण मधुबन हो गयी
प्रियतम प्रेम में अथाह अम्बर सी
मन राधा सी वृंदावन हो गयी!
गात वल्लरी हिल हिल हर्षित सी
तरूवर तन मन पुलकन हो गयी
मैं माधवी मधुर राग कल्पित सी
मोहनी मूरत सी मगन हो गयी!
अनहद नाद उर की यमुना सी
मन तृष्णा विरहनी अगन हो गयी
भीगी अलकों की संध्या यौवना सी
दृग नीर भरे नैनन खंजन हो गयी!
मैं! विस्मित मौन विभा के फूल सी
बूंद बूंद घन पाहुन सारंग हो गयी
बिंदिया खो गयी मेरी सूने कपोल
साँसों से महकी अंग अंग हो गयी!
डा. निशा माथुर
मेरा मिलन ईश से हो जाऐ।
मन लीन भक्ति में हो जाऐ।
छूटे इस जगत मोह से बंधन,
प्रभुजी भव से मुक्ति हो जाऐ।
व्याह के पश्चात बिदाई होती है।
मिलन के बाद जुदाई होती है।
नियति बनाई भगवान ने ऐसी,
एकदिन काया से मुक्ति होती है।
ये जीवन चक्र यूंही चलता है।
मानव थकता कब रूकता है।
प्रकृति के नहीं नियम बदलते,
मानव जो करता वैसा भरता है।
आज आऐ हैं कल जाना होगा।
हमें अपना कर्तव्य निभाना होगा।
सांसारिकता के जो नियम बने हैं,
उनका पालन करना कराना होगा ।
दुख से सुख का मिलन होता है।
चंदा का चांदनी से संगम होता है।
सबके निश्चित नियम प्राकृतिक हैं,
जुदाई अपना जुडा मिलन होता है।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
क्यूँ वीणा है मौन मेरी...
नयनं में भी नीर नहीं...
विरह सलिल तृषित नहीं...
हृदय में क्यूँ पीड़ नहीं....
क्यूँ पंक में पंकज खिले...
सरिता सागर में क्यूँ मिले...
नाद दनादन गूंजे भीतर...
शोर बाहर क्यूँ नहीं मिले....
धीरज ध्यान धर्म सब गूंगे...
बहरे हुए हैं कर्ण सभी के...
वैरी हाथ में ज़हर लिये हैं...
प्रेम मधुशाला क्यूँकर भीगे…
विरह पुलकित दर्द निहारे...
मलिन नीर हुआ गंगा धारे..
नाव डूब कर लगी किनारे....
रूह मिलन हुआ प्रीतम द्वारे..
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
मिलन की आस में जिये जाता हूँ
कितने गम के घूँट पिये जाता हूँ ।।
जख्मों से छलनी दिल सियें जाता हूँ
आयेगी घड़ी इंतजार किये जाता हूँ ।।
बेवजह इल्जाम भी लिये जाता हूँ
तरन्नुम बनी गीत लिखे जाता हूँ ।।
कोई सुने न सुने खुद सुने जाता हूँ
प्यार भी क्या चीज बहे जाता हूँ ।।
''शिवम्" साज छेड़े बजे जाता हूँ
गीत और गज़ल नित लिखे जाता हूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
बुधवार -27/6/18
दैनिक कार्य
मिलन
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सांझ मिलन की बेला में
दिन रात गले जब लगते हैं ,
रवि विदाई लेता है
तारागण उगने लगते हैं...
देहरी देहरी आँगन आँगन
दीप प्रज्वलित होते हैं ,
अंधकार की चूनर को
कोटि किरण से धोते हैं ....
घंटे अजान और शंखनाद
श्रवण पथ पावन करते हैं ,
परम शक्ति के स्मरण क्षण
अंतस आकुलता हरते हैं ....
फिरने लगते हैं पंछी दल
दिनभर के श्रमफल साथ लिए ,
पथ पर लोचन बिछ जाते हैं
अपनों के मिलन की आस लिए ।।
सपना सक्सेना
स्वरचित
क्या करूँ
जो आप आ जाइए
मेरे उदास मन में
मुस्कान भर जाइए
रात कब से ठहरी हुई थी
अभी-अभी
शशि ओझल हुआ
रवि निकल आया
सूर्य रश्मि से मिलन कर
लहर-लहर
अँगड़ाई लेने लगी
पंछी चहकने लगे
कलियाँ खिलने लगी
पर मेरा मन व्याकुल ही रहा
होगा आप से कब मिलन
दिन-रात सोचता रहा
ऐ मेरी प्रियतमा
अब आप आ जाइए
मेरे दिल में भी
मुस्कान का अंकुरण
कर दीजिए
मेरे रग-रग में भी हो
प्रेम का प्रस्फुटन
मेरे ह्रदय में
प्रेम सरिता बहा दीजिए
कर मधुर मिलन मुझसे
अपने तपन से
मुझे शीतल कर दीजिए
अपने तन की खुश्बू से
मुझे सुगंधित कर दीजिए
कर मुझे आलिंगन
आनंद रस की
अनुभूति करा दीजिए
मेरे दिल में भी हो
मोहब्बत का स्पंदन
अपने स्पर्श से
मुझ में प्रेम का
रोपण कर दीजिए
मैं भी हर पल
प्रेम रंग में रंगा रहूँ
ऐ मेरी प्रियतमा
आकर मुझसे
मधुर मिलन कीजिए
ऐ मेरी प्रियतमा
क्या करूँ
जो आप आ जाइए
मेरे उदास मन में
मुस्कान भर जाइए ।
@शाको
स्वरचित
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