पत्थर भी ढहता है।
बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।
वियोग तो दुख देती है,
पर संयोग भी खलता है।
सारी रात लौ जलती है,
पर पतिंगा कुछ ही छन जलता है।।
मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।
बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।
सावन भी छलता है,
यौवन भी छलता है,।
जिसपर ज्यादा अकड़ रहे,
ओ दर्पण भी छलता है।।
मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।
बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।
सुख-दुख के गहरे सागर में,
जीवन ये चलता है।
उदित हुआ भानु प्रातः तो,
संध्या को ढलता है।।
मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।
बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।
क्यों? दुख देता जग को,
क्यों?दुख सहता है।
छोड़ दे सब माया,
तुमसे कवि ये कहता है।।
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मिट्टी भी ढहती है,
पत्थर भी ढहता है।
बातें तो कुछ कहती हैं,
पर मौन बहुत कुछ कहता है।।
...राकेश
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
नयी नयी जवानी थी हर रात कहानी थी।
सबसे छुपानी थी कुछ तुम को सुनानी थी।
समझा नहीं जिसे तुमने मै ही वो इशारा हूँ।
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
उठती हुई मौजे थी क्या खूब जवानी थी।
क्या खूब समन्दर था क्या खूब रवानी थी।
तरसा था जो बूंदों को वही एक किनारा हूँ।
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
अपनी ही खताओं से मैं रोज ही मिलता हूँ।
हर शाम सुलगता हूँ हर रात मै जलता हूँ।
आजाओ हवा बनके धुआँ होके पुकारा हूँ।
मै तब भी तुम्हारा था मै अब भी तुम्हारा हूँ।
विपिन सोहल !
''खामोशी"
खामोशी का आलम है , किस्मत की बेवफाई है
सनम तुम्हारी यादों में , रातों में नींद न आई है ।।
पल पल तुम्हे पुकारूँ प्रिय , ये झूठ नही सच्चाई है
पूछो इन हवाओं से इनमें हर सांस समाई है ।।
दे गई धोखा किस्मत मेरी , ये किस्मत रास न आई है
दो पल हँसा के किस्मत ने , दी बरसों की जुदाई है ।।
हँसने को तो हँसता हूँ , पर चोट ये गहरी खाई है
इसकी दवा तो एक तुम्ही , ये दवा कहीं न पाई है ।।
कभी तो मिलन होगा ''शिवम" एक आस यही लगाई है
रब की रहमत के किससे सुन , सब्र की ज्योत जगाई है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मैं खामोश हूं मुस्कुरा रही हूं
अनकही सी बातें जिए जा रही हूं
निःशब्द सी रहती हूं
हसरतें सुलगाती हूं
जिन्दगीं का हाला खामोशी से पी जाती हूं
वो कहते है
कंचन कामिनी ह्रदय यामिनी मुझे
इसी छल को बरसों से जिए जा रही हूं
मेरी खामोशी मेरे अन्तर्मन को झकझोरती है
रिश्ते आह भरते हैं धडकन रोती है
मेरी बेबसी को खामोशी कचोटती है
जख्मों को सीती हूं मरहम लगाती हूं
जिन्दगी का हाला खामोशी से पी जाती हूं
एक वक्त था प्रीत मुस्कुराती थी
मौन अभिलाषाएं भी राह दिखाती थी
खामोशी की जुबांन भी आंख बन जाती थी
दिल का हाल बेखौफ कह जाती थी
पर आज ये क्या सिलसिले हो गए
जन्मों के मीत अजनबी हो गए
ये अबोलापन मुझे सालता है
मेरी धड़कन का शोर क्यों नहीं तुम्हे तड़पाता है
मैं आज भी तुम्हे देखती हूँ
गुदगुदाती हूं
जिन्दगी का हाला खामोशी से पी जाती हूं
तुम वो नहीं जो मेरा मौन पढ़
लेते थे
मेरी आंखों से मेरे जज़्बात समझ लेते थे
माना जिन्दगी के तूफां घनेरे थे
संघर्षो के बादल भी गहरे थे
पर प्रेम क्यूं अपना क्षीण हुआ
ह्रदय स्पन्दन विहीन हुआ
क्यूं तुम निष्ठुर हुए खुद में ही लीन रहे
खामोश रहती हूं खुद को टटोलती हूं
जिन्दगी का हाला खामोशी से पी जाती हूं
तुम भी वही हो मैं भी वही हूं
दिल भी वही है धड़कन भी वही है
चलो दिल की कटुता निश्वांस
कर दें
अरमानों में नई उड़ान भर दें
अपने मौन समर्पण का आल्हाद कर दें
प्रीत को नया आयाम दे दें
ओर खामोशी को विराम दे दें
खामोश मन फरियाद करता है
उगता सूरज अंगडाई भरता है
स्वयं से मिलती हूं लजाती हूं
जिन्दगी की हाला इसी उम्मीद से पी जाती हूं
स्वरचित : मिलन जैन
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ख़ामोशी अच्छी नहीं सम्बन्धों में
ये कमज़ोरी लाती सदा कन्धों में
क्या रखा है आपसी इन द्वन्द्वों में
खुशी मिलेगी प्रेम भरे अनुबन्धों में
खामोशी में समय अच्छा कटता नहीं
प्यार बिना आनन्द कभी बॅटता नहीं
कोई भी सौदा अच्छा पटता नहीं
ख़ामोशी तोड़ दो यारों इसमें कुछ घटता नहीं।
ख़ामोशी में नहीं मिलेगी मुस्कराहट
इसमें होगी बस एक घबराहट
खुशी की दूर होगी सदा आहट
केवल रहेगी बस सकुचाहट
फिर पढ़े लिखे की क्या है बात
ज्ञान ने दी क्या यही सौगात
पीड़ामय बनालो अपनी रात
ख़ामोश रहे हर मुलाकात।
हम सब ही इसके हैं दोषी
हम सब ही इसके हैं पोषी
यदि हम में रहे यह ख़ामोशी
जीवन मतलब है गर्मजोशी।
सोमवार 4/6/18
खामोशी
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गर्त में छिपे राज मासूमियत से खोलती है
खामोशी बोलती है
कांप जाता है पापी मन
पैदा कर देती है सिरहन
सर्द अहसासों से जब गुनाह टटोलती है
खामोशी बोलती है
ले जाती है दर्द के रास्तों पर
रूह आई है जिनसे गुजरकर
कानों में पिघलती आहें घोलती है
खामोशी बोलती है
चुपचाप देखती है धूप छांव
समझती है सारे शतरंजी दांव
इंसानियत को नमआंखों से तौलती है
खामोशी बोलती है ।
सपना सक्सेना
स्वरचित
"तेरी ये खामोशी" तेरी ये खामोशी!!
चुभती शूल सी
बेखुद भूल सी
यूँ कसकती सी
किरचें चुभती सी
तेरी ये खामोशी!!
चटकते आईने सी
मन के बेगाने सी
रूह टीसती सी
आत्मा नोचती सी
तेरी ये खामोशी!!
शब्द ढूंढती सी
आँख मूँदती सी
कलेजा काटती
चीख चीत्कारती
तेरी ये खामोशी!!
नैना नीर बहती
हदय आग दहति
मन शिथिल करती
तन वीथिल करती
तेरी ये खामोशी!!
तुझसे दूर करती
कितनी मौत मरती
सांस सांस तड़पती
बेजान लाश पड़ती
तेरी ये खामोशी!!
....डा निशा माथुर
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